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दीपावली का अर्थ र है - दीपो की पंक्तियाक्तियांक्त। दीपावली के िदन प्रत्येक घर दीपो की पंक्तियाक्तियो से शोभायमान
रहता है। दीपो, मोमबत्तियात्तियो और ियाबत्तजली की रोशनी से घर का कोना-कोना प्रकाियाशत हो उठता है।
इसियालए दीपावली को रोशनी का पवर भी कहा जाता है।

दीपावली काितक माह की अर्मावस को मनाई जाती है। रोशनी से अर्ंक्तधकार दूर हो जाता है। इसी तरह
मन मे अर्च्‍छे ियावचारो को प्रकाियाशत कर हम मन के अर्ंक्तधकार को दूर कर सकते हैं।




ND यह त्योहार अर्पने साथ  ढेरो खुशियाशयांक्त लेकर आता है। एक-दो हफ्ते पूवर से ही लोग घर, आंक्तगन,
मोहल्ले और खियालहान को दुशरुस्त करने लगते हैं। बत्ताजार मे रंक्त ग-रोगन और सफे दी के सामानो की खपत
बत्तढ जाती है। ठंक्त डे मौसम की हल्की-सी आहट से तन-मन की शीतलता बत्तढ जाती है।

दीपावली का िदन आने पर घर मे खुशशी की लहर दौड जाती है। बत्ताजार मे ियामट्‍टी के दीपो, ियाखलौनो,
खील-बत्तताशो और ियामठाई की दुशकानो पर भीड होती है। दुशकानदार, व्यापारी अर्पने बत्तहीखातो की पूजा
करते हैं और कई इसी िदन नए ‍ियावत्तिीय वष र की शुशरुआत भी करते हैं।

संक्तध्या के समय घर-आंक्तगन और बत्ताजार जगमगा उठते हैं। पटाखो की गूंक्तज और फुश लझड़ियाडयो के रंक्त गीन
प्रकाश से चारो ओर खुशशी का वातावरण उपियास्थ त हो जाता है। घर-घर मे पकवान बत्तनाए जाते हैं। बत्तच्चो
की स्कू ल की छुश ियाट्‍टयो से इस त्योहार का मजा दोगुशना हो जाता है।

राियात मे पटाखे चलाए जाते हैं। लगभग पूरी रात पटाखो का शोरगुशल बत्तना रहता है। दीपावली की
बत्तधाइयो के आदान-प्रदान का ियासलियासला चल पडता है।
ND दीपावली के िदन भारत मे ियावियाभन स्थ ानो पर मेले लगते हैं। दीपावली एक िदन का पवर नही अर्ियापतुश
पवो का समूह है। दशहरे के पश्चात ही दीपावली की तैयािरयाँ आरंक्त भ हो जाती है। लोग नए-नए वस
ियासलवाते हैं। दीपावली से दो िदन पूवर धनतेरस का त्योहार आता है। इस बत्ताजारो मे चारो तरफ चहल-
पहल िदखाई पडती है।

बत्ततरनो की दुशकानो पर ियावशेष  साजसज्जा व भीड िदखाई देती है। धनतेरस के िदन बत्तरतन खरीदना शुशभ
माना जाता है अर्तैव प्रत्येक पिरवार अर्पनी-अर्पनी आवश्यकता अर्नुशसार कुश छ न कुश छ खरीदारी करता है।
इस िदन तुशलसी या घर के द्वार पर एक दीपक जलाया जाता है। इससे अर्गले िदन नरक चतुशदशी या
                                                                                र
छोटी दीपावली होती है। इस िदन यम पूजा हेतुश दीपक जलाए जाते हैं।

दीपावली से जुशड ी महत्वपूण र घटनाएंक्त
इस िदन भगवान राम, लक्ष्मण और माता जानकी 14 वष र का वनवास पूणर कर अर्योध्या लौटे थ े और
उनके आने की खुशशी मे नगरवाियासयो ने घर-घर घी के दीये जलाए थ े। तभी‍ से इस त्योहार की शुशरुआत
हुई।

लक्ष्मी पूजा के दूसरे िदन “गोवधरन पूजा” मनाया जाता है। इस िदन भगवान श्री कृ ष्ण ने इन्द को
पराियाजत िकया थ ा।

संक्तबत्तंक्तियाधत जानकारी

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  • 1. दीपावली का अर्थ र है - दीपो की पंक्तियाक्तियांक्त। दीपावली के िदन प्रत्येक घर दीपो की पंक्तियाक्तियो से शोभायमान रहता है। दीपो, मोमबत्तियात्तियो और ियाबत्तजली की रोशनी से घर का कोना-कोना प्रकाियाशत हो उठता है। इसियालए दीपावली को रोशनी का पवर भी कहा जाता है। दीपावली काितक माह की अर्मावस को मनाई जाती है। रोशनी से अर्ंक्तधकार दूर हो जाता है। इसी तरह मन मे अर्च्‍छे ियावचारो को प्रकाियाशत कर हम मन के अर्ंक्तधकार को दूर कर सकते हैं। ND यह त्योहार अर्पने साथ ढेरो खुशियाशयांक्त लेकर आता है। एक-दो हफ्ते पूवर से ही लोग घर, आंक्तगन, मोहल्ले और खियालहान को दुशरुस्त करने लगते हैं। बत्ताजार मे रंक्त ग-रोगन और सफे दी के सामानो की खपत बत्तढ जाती है। ठंक्त डे मौसम की हल्की-सी आहट से तन-मन की शीतलता बत्तढ जाती है। दीपावली का िदन आने पर घर मे खुशशी की लहर दौड जाती है। बत्ताजार मे ियामट्‍टी के दीपो, ियाखलौनो, खील-बत्तताशो और ियामठाई की दुशकानो पर भीड होती है। दुशकानदार, व्यापारी अर्पने बत्तहीखातो की पूजा करते हैं और कई इसी िदन नए ‍ियावत्तिीय वष र की शुशरुआत भी करते हैं। संक्तध्या के समय घर-आंक्तगन और बत्ताजार जगमगा उठते हैं। पटाखो की गूंक्तज और फुश लझड़ियाडयो के रंक्त गीन प्रकाश से चारो ओर खुशशी का वातावरण उपियास्थ त हो जाता है। घर-घर मे पकवान बत्तनाए जाते हैं। बत्तच्चो की स्कू ल की छुश ियाट्‍टयो से इस त्योहार का मजा दोगुशना हो जाता है। राियात मे पटाखे चलाए जाते हैं। लगभग पूरी रात पटाखो का शोरगुशल बत्तना रहता है। दीपावली की बत्तधाइयो के आदान-प्रदान का ियासलियासला चल पडता है।
  • 2. ND दीपावली के िदन भारत मे ियावियाभन स्थ ानो पर मेले लगते हैं। दीपावली एक िदन का पवर नही अर्ियापतुश पवो का समूह है। दशहरे के पश्चात ही दीपावली की तैयािरयाँ आरंक्त भ हो जाती है। लोग नए-नए वस ियासलवाते हैं। दीपावली से दो िदन पूवर धनतेरस का त्योहार आता है। इस बत्ताजारो मे चारो तरफ चहल- पहल िदखाई पडती है। बत्ततरनो की दुशकानो पर ियावशेष साजसज्जा व भीड िदखाई देती है। धनतेरस के िदन बत्तरतन खरीदना शुशभ माना जाता है अर्तैव प्रत्येक पिरवार अर्पनी-अर्पनी आवश्यकता अर्नुशसार कुश छ न कुश छ खरीदारी करता है। इस िदन तुशलसी या घर के द्वार पर एक दीपक जलाया जाता है। इससे अर्गले िदन नरक चतुशदशी या र छोटी दीपावली होती है। इस िदन यम पूजा हेतुश दीपक जलाए जाते हैं। दीपावली से जुशड ी महत्वपूण र घटनाएंक्त इस िदन भगवान राम, लक्ष्मण और माता जानकी 14 वष र का वनवास पूणर कर अर्योध्या लौटे थ े और उनके आने की खुशशी मे नगरवाियासयो ने घर-घर घी के दीये जलाए थ े। तभी‍ से इस त्योहार की शुशरुआत हुई। लक्ष्मी पूजा के दूसरे िदन “गोवधरन पूजा” मनाया जाता है। इस िदन भगवान श्री कृ ष्ण ने इन्द को पराियाजत िकया थ ा। संक्तबत्तंक्तियाधत जानकारी