"बढ़ते शराब के ठेको ने गांवो से उनकी पहचान और संस्कृति दोनों को छीन लिया है । युवाओं को नशे की लत लग गई है । सैकड़ों परिवारों को रोटी के लाले पड़ गए है । मगर इन सब से ना तो किसी सरकार को मतलब है और ना ही गांव के लोगों को । अगर ऐसा ही चलता रहा तो गांवो को लुप्त होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा - "असली भारत गांवो में बसता है " वाली कहावत केवल सुनने के लिए ही रह जाएगी ।"
शराब के ठेको ने गाँवों को उजाड़ने का काम किया : संदीप सेहरावत
1. शराब के ठेको ने गाँव को उजाड़ने का काम कया : संद प सेहरावत
"बढ़ते शराब के ठेको ने गांवो से उनक पहचान और सं कृ त दोन को छ न लया है । युवाओं को नशे
क लत लग गई है । सैकड़ प रवार को रोट के लाले पड़ गए है । मगर इन सब से ना तो कसी
सरकार को मतलब है और ना ह गांव के लोग को । अगर ऐसा ह चलता रहा तो गांवो को लु त होने
म यादा समय नह ं लगेगा - "असल भारत गांवो म बसता है " वाल कहावत के वल सुनने के लए ह
रह जाएगी ।"
समाज सुधार काय म च
रखने वाले "संद प सेहरावत"
बताते है क यादा समय नह ं
बीता है, आज से अगर 20-25
साल पीछे देखोगे तो गांव
हरे-भरे हुआ करते थे, प रवार
खुशहाल हुआ करते थे, यो क
उस समय गने चुने ह शराब
के ठेके हुआ करते थे जो कसी
क बे या शहर म हुआ करते थे
। िजससे गांव म शराब पीने
वाल क तादाद बहुत कम हुआ
करती थी जो एक-आध लोग
पीते भी थे तो शाम होने के बाद
घर बैठे के खा पी कर सो जाया
करते थे यो क उस समय गांव
के आस पास ठेके नह ं हुआ
करते थे ।
गाँवो के नजद क ठेके खुलने से
युवाओं का बुरा हाल - संद प
सेहरावत बताते है क
सुबह-शाम जब वो खेत क
तरफ जाते है तो ठेको म भीड़
लगी होती है िजसमे अ धकतर
युवा होते है । आज हालत ऐसे
हो गए है क सुबह से शाम तक
200 पए कमाने वाला इंसान
रोज 40-50 पए क शराब पी
जाता है और बा क बचे पैसे से
कै से घर खच चलता होगा ये तो
आप खुद सोच सकते हो ।
आज एक तो युवाओं के पास
रोज़गार नह ं ऊपर से नशे क
लत ने ये सोचने पर मजबूर कर
दया क आने वाले समय म
गांव के युवाओं का भ व य या
होगा ।
अपराध म बढ़ोतर - जैसा क
आप सब जानते है "नशा
वनाश क जड़ है और नशा ह
अपराध क जननी है", आज
आये दन गांव म कसी का
सर फोड़ दया जाता है तो
कसी क टांग तोड़ द जाती है
। इनमे से यादातर मामले
शराब और नशे से जुड़े हुए होते
है । यो क नशे म धुत लोग
का अपने पर आपा तो रहता
नह ं या तो वो कह ं ना कह ं खुद
नाल म गर के अपने हाथ पैर
तुड़वा लेते है या कसी दूसरे का
सर फोड़ देते है..
● बढ़ते शराब के ठेको ने
गांवो से उनक पहचान
और सं कृ त दोन को
छ न लया है ।
● युवाओं को नशे क लत लग
गई है ।
● अपराध म बढ़ोतर
● सैकड़ प रवार को रोज़ी
रोट के लाले
● जानवर पे अ याचार
● सैकड़ प रवार ने गांव छोड़
शहर क तरफ ख कया
और इन सब से सह सलामत
अगर घर पहुंच भी गए तो घर
जाके घरवाल का नंबर या
ब चो का । शराब क बदौलत
ह आज गांवो म म हलाओ पर
भी अ याचार के मामले भी बढ़
गए है।
सैकड़ प रवार को रोज़ी रोट
के लाले - इस शराब पी डायन
ने सैकड़ प रवार क हालत
ऐसी करद है क उनको 2 व त
क रोट तक नसीब नह ं होती ।
जो प रवार पहले खुशहाल हुआ
करता था आज वह प रवार
रोट - रोट को मोहताज हो रहा
है, खाने को रोट नह ं, ब चो
को श ा नह ं । पर तु इन सब
से ना तो सरकार को फक पड़ता
है ना ह चुने हुए जन त न ध
को । य क कसी को अपने
टै स क पड़ी है तो कसी को
अपनी दुकानदार क ।
गांव के नज़द क शराब के ठेके
खोलना गांव के िज़ दा लोग
को मौत के मुँह म डालने के
बराबर है । आज एक - एक
गांव के ऊपर 4-4 शराब के ठेके
खुल गए है ।
जानवर पर अ याचार - शराब
के ठेके खुलने से जानवर पर
अ याचार बढ़ गए है । जगह
जगह मीट-मांस क दुकान खुल
गई है । इससे गांव म
मांस-म छ खाने वाले लोग
क तादाद बढ़ है ।
2. सैकड़ प रवार ने गांव छोड़
शहरो क तरफ ख कया -
गाँव के बगड़ते हालात को
देख कु छ प रवार ने गांव छोड़
शहर क तरफ ख करना शु
कर दया है ।
आज गांव क पहचान और
सं कृ त ख़ म होती जा रह है,
और अगर ऐसे ह चलता रहा
तो गांव धीरे धीरे लु त हो
जाएंगे। "असल भारत गांवो म
बसता है " वाल कहावत के वल
सुनने के लए ह रह जाएगी ।
अगर देखा जाये तो एक शराब
का ठेका कई सकड़ो िजंद गय
पे भार पड़ता है ।
कै से रोका जाये - गांव को लु त
होने से बचाने के लए ाम
पंचायत को आगे आना होगा ।
उनको ल खत म एक प
संबं धत वभाग को देना होगा
क उनको उनके गांव के आस
पास शराब के ठेके नह ं चा हए
। गांव के लोग को भी जाग क
होना होगा, अगर पु ष आगे
नह ं आते है तो गांव क
म हलाओं को अपना प रवार
और ब चो के भ व य के लए
आगे आना होगा ।
शराब मु त चुनाव पॉ लसी को
अपनाना होगा ।
जो भी उ मीदवार वोटस को
लुभाने के लए शराब का
इ तेमाल करे,
उसका ब ह कार करना होगा,
उसको हार का मजा चखा ना
होगा । य क जो उ मीदवार
वोट लेने से पहले अगर आपके
प रवार क सलामती के बारे म
नह ं सोच रहा तो चुनाव जीतने
के बाद तो....
अगर गांव क म हला शि त
एक हो जाये तो गांवो क प
रेखा बदल सकती है । गांव क
म हलाओं को स य राजनी त
म आगे आना होगा । िजस
तरह से एक म हला अपने घर
को संवारती है उसी तरह उसे
इस गांव पी प रवार को
संवारना होगा ।
कलम से...
Sandeep Sherawat
Social Activist, Haryana