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ी शवल लामत
         ृ
ी शवल लामत – अ याय प हला
                                            ृ

                                           अ याय प हला
                  ीगणेशाय नम: ॥   ी सर व यै नम: ॥   ीगु   यो नम: ॥   ीसांबसदा शवाय नम: ॥

          ॐ नमोजी शवा अप र मता ॥ आ द अना द मायातीता ॥ पण
                                                       ू        ानंदशा ता ॥ हे रंबताता जग रो ॥१॥
                                                                                          ु

  यो तमय व पा पुराणपु षा ॥ अना द स दा आनंदवन वलासा ॥ मायाच चाळका अ वनाशा ॥ अनंतवेषा जग पते ॥२॥

  जय जय व पा ा पंचवदना ॥ कमा य ा शु       चैत या ॥ व ंभरा कममोचकगहना ॥ मनोजदहना मनमोहन जो ॥३॥

 भ व लभ तंू हमनगजामात ॥ भाललोचन नील ीव उमानाथ ॥ म तक ं वधनी वरािजत ॥ जा तसमनहारवत जी ॥४॥
                                                         ु                ु

      प    रथ य     पुरांतक ॥ य प त म    तापाक ॥ द मख व वंसक मगांक ॥ न कलंक तव म तक ं ॥५॥
                                                              ृ

     वशाळ भाळ कपूरगौर ॥ काकोलभ क नजभ र णा ॥ व ासा ी भ मलेपन ॥ भयमोचन भवहारक जो ॥६॥

      जो सगि थ यंतकारण ॥      शूलपाणी शादलचमवसन ॥ कदतात सहा यवदन ॥ माया व पनदहन जो ॥७॥
                                         ु         ं     ु

      जो सि चदानंद नमळ॥ शव शांत         ानघन अचळ ॥ जो भानको टतेज अढळ ॥ सवकाळ यापक जो ॥८॥
                                                         ु

   सकलक लमलदहन क मषमोचन ॥ अनंत            ांडनायक जगर ण ॥ प जतातमनरं जन ॥ जननमरणनाशक जो ॥९॥

          कमलो व कमलावर ॥ दशशतमुख दशशतकर ॥ दशशतने सुर भूसुर ॥ अहोरा             याती जया ॥१०॥

     भव भवांतक भवानीवर ॥ मशानवासी गरां अगोचर ॥ जो वधनीतीर वहार ॥ व े र काशीराज जो ॥११॥
                                                    ु

  योमहरण यालभूषण ॥ जो गजदमन अंधकमदन ॥ ॐकारमहाबले र आनंदघन ॥ मदगवभंजन अज अिजत जो ॥१२॥

 अ मतगभ नगमागमनत ॥ जो दगंबर अवयवर हत ॥ उ ज यनी महाकाळ कालातीत ॥ मरणे कृतांतभय नाशी ॥१३॥
               ु

          द ु रतकाननवै ानर ॥ जो नजजन च चकोर चं ॥ वेणुपवरमह पापहर ॥ घु णे र सनातन जो ॥१४॥

      जो उमा दयपंजक र ॥ जो नजजन दया ज मर ॥ तो सोमनाथ श शशेखर ॥ सौरा दे श वहार जो ॥१५॥

     करवलोचन क णासमु ॥
      ै                       ा भ षण
                                  ू       ावतार ॥ भीम भयानक भीमाशंकर ॥ तपा पार नाह ं या या ॥१६॥

   नागदमन नागभूषण ॥ नाग कडल नागचमप रधान ॥ यो त लग नागनाथ नागर ण ॥ नागाननजनक जो ॥१७॥
                         ंु

      व ृ रश ुजनकवरदायक ॥ बाणव लभ पंचबाणांतक ॥ भवरोगवै          पुरहारक ॥ वैजनाथ अ य त जो ॥१८॥
                                                                                     ु

     नयन      गुणातीत ॥   तापशमन     वधभेदर हत ॥ यंबकराज      दोषानलशांत ॥ क णाकर बलाहक जो ॥१९॥

     काम संधुर वदारककठ रव ॥ जगदानंदकद कृपाणव ॥ हमनगवासी है मवतीधव ॥ हमकदार अ भनव जो ॥२०॥
                     ं              ं                                  े

पंचमकट मायामलहरण ॥ न श दन गाती आ नाय गण ॥ नाह ं जया आ द म य अवसान ॥ मि लकाजन
    ु ु                               ु                                    ु                ीशैलवास ॥२१॥

      जो श ा रजनकांतक यकर ॥ भूजासंतापहरण जोडो न कर ॥ जेथे त त अहोरा ॥ रामे र जग ु ॥२२॥

       ऐ सया शवा सव मा ॥ अज अिजत           ानंदधामा ॥ तुझा वणावया म हमा ॥ नगमागमां अत य ॥२३॥

       ानंद हणे    ीधर ॥ तव गुणाणव अगाध थोर ॥ तेथ बुि द च तक पोहणार ॥ न पावती पार त वतां ॥२४॥
कनका स हत मे दनीच वजन ॥ करावया ताजवा आणंू कोठून ॥ योम सांठवे संपण ॥ ऐस सांठवण कोठून आणंू ॥२५॥
                                                                   ू

    मे दनीवसनाच जळ आ ण सकता ॥ कोण या माप मोजूं आतां ॥ काशावया आ द या ॥ द प सरता कवीं होय ॥२६॥
                                                                                 े

      ध र ीच क न प ॥ कधर क जल जल ध मषीपा ॥ सुर म लेखणी व च ॥ क न लह त कजक या ॥२७॥
                      ु                        ु                       ं

      तेह तेथ रा हल तट थ ॥ तर आतां कवीं क ं
                                    े             ंथ ॥ जर तूं मनीं ध रसी यथाथ ॥ तर काय एक न होय ॥२८॥

       तीयेचा कशोर इंद ु ॥ यासी जीणदशी वाहती द नबंधु ॥ तैसे तझे गुण क णा संधु ॥ वण तस अ पमती ॥२९॥
                                                             ु

        स यवती दयर मराळ ॥ भेद त गेला तव गण नराळ ॥ अंत नकळे च समळ ॥ तोह तट थ रा हला ॥३०॥
                                         ु                     ू

  तेथ मी मंदम त कं कर ॥ कवीं
                         े      मूं शक मह मांबर ॥ पर आ मसाथक करावया साचार ॥ तव गुणाणवीं मीन झाल ॥३१॥

      ऐसे श द ऐकतां साचार ॥ तोषला दा ायणीवर ॥ हणे शव ललामत
                                                         ृ            ंथ प रकर ॥ आरं भी रस भर न मी ॥३२॥

    जैसा घ न शशूचा हात ॥ अ र लहवी पं डत ॥ तैसे तव मुख मम गुण सम त ॥ सुरस अ यंत बोलवीन मी ॥ ३३॥

        ोतीं हाव सावध च ॥ क पराणीं बो लला
                           ं ु                    ीशुकतात ॥ अगाध शवल लामत
                                                                        ृ         ंथ ॥       ो रखंड ज ॥३४॥

    नै मषार यीं शौनका दक समती ॥ सता त
                          ु      ू             क रती ॥ तंू चदाकाशींचा रो हणीप त ॥ कर ं त ृ      वणचकोरां ॥३५॥

       तवां बहुत पुराण सुरस ॥
        ु                       ी व णल ला व ण या वशेष ॥ अगाध म हमा आसपास ॥ दशावतार व णले ॥३६॥
                                     ु

        भारत रामायण भागवत ॥ ऐकतां      वण झाले त ृ ॥ पर शवल लामत अ त ॥
                                                               ृ   ु              वण ार ाशन क ं ॥३७॥

    यावर वेद यास श य सूत ॥ हणे ऐका आतां दे ऊ न च ॥ शवच र परमा त ॥
                                                              ु                  वण पातकपवत जळती ॥३८॥

               आयरारो य ऐ य अपार ॥ संत त संप
                 ु                                 ान वचार ॥    वणमा दे णार ॥    ीशंकर नजांगे ॥३९॥

        सकळ तीथ तांचे फळ ॥ महामखांचे     ेय कवळ ॥ दे णार शवच र
                                             े                        नमळ ॥     वण क लमल नासती ॥४०॥

     सकल य ामाजी जपय        थोर ॥ हणाल जपावा कोणता मं ॥ तर मं राज शवषड र ॥ बीजस हत जपावा ॥४१॥

      दजा मं
       ु         शवपंचा र ॥ दोह ंचे फळ एक च साचार ॥ उतरती संसाराणवपार ॥         ा दसुरऋषी हा च जपती ॥४२॥

               दा र द:ख भय शोक ॥ काम
                     ु                  ोध ं पातक ॥ इतु यांसह संहारक ॥ शवतारक मं जो ॥४३॥

        तु ीपु ीध ृ तकारण ॥ मु न नजरांसी हा च क याण ॥ कता मं राज संपुण ॥ अगाध म हमा न वणवे ॥४४॥

        नव हांत वासरम ण थोर ॥ तैसा मं ात शवपंचा र ॥ कमलो व कमलावर ॥ अहोरा हा च जपती ॥४५॥

                 शा ांमाजी वेदांत ॥ तीथामाजी याग अ त ॥ महा मशान
                                                   ु                   े ांत ॥ मं राज तैसा हा ॥४६॥

           शा ांमाजी पाशुपत ॥ दे वांमाजी कलासनाथ ॥ कनकादे जैसा पवतांत ॥ मं पंचा र तेवीं हा ॥४७॥
                                          ै

               कवळ परमत व च मा ॥ पर
                े                         ह च तारक मं ॥ तीथ तांचे संभार ॥ ओवाळू न टाकावे ॥४८॥

हा मं आ म ा ाची खाणी ॥ कव यमाग चा काशतरणी ॥ अ व ाकाननदाहक
                        ै                                                  ा नी ॥ सनका दक       ा न हा च जपती ॥४९॥

         ी शू आ दक नी ॥ हा च जप मु य चहूं वण ॥ गह थ
                                                ृ               चार आ दक नी ॥ दवसरजनीं जपावा ॥५०॥

       जा ुतीं व नी येतां जातां ॥ उभ असतां न ा क रतां ॥ काया जातां बोलतां भांडता ॥ सवदाह जपावा ॥५१॥
शवमं     व नपंचानन ॥ कण आक णतां दोषावारण ॥ उभे च सांडती ाण ॥ न लागतां     ण भ म होती ॥५२॥

   यास मातका व ध आसन ॥ न लागे जपावा ीतीक न ॥ शव शव उ चा रतां पूण ॥ शंकर येऊ न पुढ उभा ॥५३॥
          ृ

अखंड जपती जे हा मं ॥ यांसी नजांगे र ी    ने ॥ आपु या अंगाची साउल कर पंचच     ॥ अहोरा र ी तयां ॥५४॥

     मं जपकांलागनी ॥ शव हणे मी तमचा ऋणी ॥ पर तो मं गु मुखक नी ॥ घेइंजे आधीं वधीने ॥५५॥
                ु               ु

     गु करावा मु यवण ॥ भ     वैरा य द य ान ॥ सव     उदार दयाळू पूण ॥ या च हे क न मं डत जो ॥५६॥

        मतभाषणी शांत दांत ॥ अंगी अमा न व अदं भ व ॥ अ हंसक अ त व र     ॥ तो च गु करावा ॥५७॥

       वणानां ा णो गु : ॥ ह ं वेदवचन नधा ॥ हा यापासो न मं ो चा ॥ क न यावा ीतीन ॥५८॥

  जर आपणासी ठाउका मं ॥ तर गु मुख यावा नधार ॥ उगा च जपे तो अ वचार ॥ तर न फळ जा णजे ॥५९॥

     काम ोधमदयु      ॥ जे कां ाणी गु वर हत ॥ यानी    ान क थल बहुत ॥ पर   यांचे मुख न पहाव ॥६०॥

            वेदशा ं शोधन ॥ जर झाल अपरो
                       ू                  ान ॥ कर संतांशीं चचा पूण ॥ तर गु वण तरे ना ॥६१॥

    एक हणती व नी आ हांते ॥ मं सां गतला भगवंत ॥ आदर सांगे लोकांते ॥ पर तो गु वण तरे ना ॥६२॥

        य    येऊ नयां दे व सां गतला जर गु भाव ॥ तर तो न तरे च वयमेव ॥ गु सी शरण न रघतां ॥६३॥

      मौजीबंधना वण गाय ीमं ॥ जपे तो       अप व ॥ वरा वण वहाडी सम     ॥ काय यथ मळोनी ॥६४॥

  तो वाचक झाला बहुवस ॥ पर    याचे न चकती गभवास ॥ हणो न सां दाययु
                                     ु                               गु स ॥ शरण जाव नधारे ॥६५॥

जर गु कला भलता एक ॥ पर पूवसं दाय नसे ठाऊक ॥ जैसे गभाधासी स यम ॥ वण य
       े                                                                        व प न कळे च ॥६६॥

   असो या मं ाचे पर रण ॥ उ म
                  ु               े ी कराव पण ॥ काशी क
                                            ू         ु   े नै मषार य ॥ गोकण े आ दक न ॥६७॥

   शव व णु े सगम ॥ प व
              ु              थळीं जपावा स ेम ॥ तर ये च वषयीं पुरातन उ म ॥ कथा सांगेन ते ऐका ॥६८॥

      वणी पठणीं नज यास ॥ आदर धरावा दवस दवस ॥ आनमोदन दे ता कथेस ॥ सव पापास
                                               ु                                    य होय ॥६९॥

       वण मनन नज यास ॥ ध रतां सा ा कार होय सरस ॥          न माग न तामस ॥ पावन सव होती ॥७०॥

            तर मथरानाम नगर ॥ यादवंशी परमप व ॥ दाशाहनाम राज ॥ अ त उदार सुल णी ॥७१॥
                 ु

 सव राजे दे ती करभार ॥ कर जोडो न न मती वारं वार ॥ यां या मगटर ा करण साचार ॥ पद याचीं उजळल ं ॥७२॥
                                                          ु ु

      मगुटघषणक नी ॥ करण पडल ं दसती चरणीं ॥ जेण स ावसन पस नी ॥ पाला णल क भनी हे ॥७३॥
       ु                                                               ंु

    उभा रला यशो वज ॥ जेवीं शर काळींचा    जराज ॥ सकल जा आ ण       ज ॥ चं तती क याण जयाच ॥७४॥

     जैसा शु द तीयेचा हमांश ॥ तेवीं ऐ य चढे वशेष ॥ जो दबुि द दासीस ॥ पश न कर काल यीं ॥७५॥
                                                       ु

    स दि दधमप ीसीं रत ॥ व पाशीं तु ळजे रमानाथ ॥ दानश
       ु                                                   सम त ॥ याचकांचे दा र य नव टल ॥७६॥

      भभजांवर जामद य ॥ समरांगणी जेवीं ळया न ॥ ठाण न चळे रणींहून ॥ कठारघाय भू ह जैसा ॥७७॥
       ृ ु                                                         ु

चतदश व ा चौस ी कळा ॥ आकळी जेवीं करतळींचा आंवळा ॥ जेण दानमेघ नव टला ॥ दा र धुरोळा याचकांचा ॥७८॥
  ु
बोलण अ त मधर ॥ मेघ गज जेवीं गंभीर ॥ जाजनांचे च मयर ॥ नृ य क रती वानंदे ॥७९॥
                           ु                                     ू

    याचा सेमा संधु दे खो न अ ुत ॥ जल संधु होय भयभीत ॥ न ळ अंबार ंचा       ुव स य ॥ वचन तेवीं न चळे च ॥८०॥

   याची कांता       पवती सती ॥ काशीराजकमार नाम कलावती ॥ िजच व प वण सर वती ॥ व वदनक नयां ॥८१॥
                                       ु

           जे लाव यसागर ंची लहर ॥ खंजना ी बंबाधर ॥ मदभा षणी पक वर ॥ हं सगमना ह रम या ॥८२॥
                                                    ृ ु

श शवदना भुजंगवेणी ॥ अलंकारां शोभा िजची तनु आणी ॥ दशन झळकती जेवीं हरे खाणी ॥ बोलतां सदनी काश पड ॥८३॥

          सकलकला नपण ॥ यालागी कलावती नाम पण ॥ ज सौदयवैरागर ंचे र
                   ु                      ू                               ॥ जे नधान चातयभमीच ॥८४॥
                                                                                       ु ू

 आंगीचा सुवास न माये सदनांत ॥ िजच मुखा ज दे खतां नपनाथ ॥ ने म लंद ं जी घाल त ॥ धणी पाहतां न पुरे च ॥८५॥
                                                  ृ

  नतन आ णल पणन ॥ मन सज आक षले रायाच मन ॥ बोलावूं पाठ वल ीतीक न ॥ पर ते न ये च ा थतां ॥८६॥
   ू         ू

    व प ंुगारजाळ पस न ॥ आक षला नुपमानसमीन ॥ यालागीं दशाहराजा उठोन ॥ आपण च गेला तजपाशीं ॥८७॥

     हणे       ुंगारव ल शुभांगी ॥ मम तनुव ृ ासी आ लंगीं ॥ उ म पु फळ सवसी जगीं ॥ अ यानंदे सवादे खतां ॥८८॥

 तंव ते    ंगारसरोवरमराळीं ॥बोले सहा यवदना वे हाळी ॥ हणे यां उपा सला श शमौळी ॥ सवकाळ त थ अस ॥८९॥
            ु                     ु

          जे    ी रो ग अ यंत ॥ ग भणी कं वा ऋतु नात ॥ अभु       अथवा त थ ॥ व ृ द अश     न भोगावी ॥९०॥

                     ीपु ष हषयु ं ॥ असावीं त ण    पवंत ॥ अ भोगक न यु    ॥ चंता   त नसावीं ॥९१॥

  पवकाळ त दन नरसन ॥ उ मकाळी ष स अ न भ ून ॥ मग ललना भोगावी ीतीक न ॥ राजल ण स य हे ॥९२॥
                ू

          राव काममद म        चंड ॥ र तभर पसरो न दोदड ॥ अ लंगन दे तां बळ चंड ॥ शर र याचे पोळले ॥९३॥

      लोहागला त       अ यंत ॥ तैसी कलावतीची तनू पोळत ॥ नप वेगळा होऊ न पसत ॥ कसा व ृ ांत सांग हा ॥९४॥
                                                        ृ              ु     ै

                ंगरसदना वला सनी ॥ मम दयानंदव धनी ॥ सकळ संशय टाकनी ॥ मुळींहूनी गो ी सांग ॥९५॥
                 ृ                                             ु

      हणे हे राजच मुकटावतंस ॥
                     ु               ोध भर नेद ं मानस ॥ माझा गु     वामी दवास ॥ अनसुया मज महाराज ॥९६॥
                                                                          ु

          या गु ने परम प व ॥ मज द धला शवपंचा र मं ॥ तो जपतां अहोरा ॥ परमपावन पनीत मी ॥९७॥
                                                                              ु

    ममांग शीतळ अ यंत ॥ तव कलेवर पापसंयु            ॥ अग यागमन कल वचारर हत ॥ अभ य ततुक भ
                                                               े                                 ल ॥९८॥

               मज   ीगु दयक न ॥ राज ा आह         काळ ान ॥ तज जप तप शवाचन ॥ घडल नाह ं सवथा ॥९९॥
                                                           ु

          घडल नाह ं गु सेवन ॥ पुढ रा यांतीं नरक दा ण ॥ ऐकतां राव अनतापक न ॥ स दत जाहला ॥१००॥
                                                                   ु

           हणे कलावती गुणगंभीरे ॥ तो शवमं मज दे ई आदर ॥ याचे न जप सव ं ॥ मह पाप भ म होती ॥१॥

          ती हणे हे भभुज ॥ मज सांगावया नाह ं अ धकार ॥ मी व लभा तंू ाणे र ॥ गु
                     ृ                                                               नधार तूं माझा ॥२॥

     तर यादवकळीं गु व स ॥ गगमु न महाजाज
             ु                                        े ॥ जो   ा नयांमाजी द यमुकट ॥ व ा व र तयाची ॥३॥
                                                                                ु

      जैसे व र वामदे व       ानी ॥ तैसाच महाराज गगमनी ॥ यासी नप े ा शरण जाऊनी ॥ शवद
                                                   ु          ृ                             ा घेइंजे ॥४॥

     मग कलावतीस हत भूपाळ ॥ गगा मीं पातला त काळ ॥ सा ांग नमू न करकमळ ॥ जोडू न उभा ठाकला ॥५॥
अ भाव दाटू न दयीं ॥ हणे शवद       ा मज दे ई ॥ हणू न पढती लागे पायीं ॥ मती नाह भावाथा ॥६॥
                                                            ु

         यावर तो गगमनी ॥ कृतांतभ गनीतीरा येऊनी ॥ पु यव ृ ातळी बैसोनी ॥ नान करवी यमनेच ॥७॥
                    ु                                                             ु

   उभयतांनी क न नान ॥ यथासांग कल शवपूजन ॥ यावर द य र
                               े                                  आणून ॥ अ भषेक कला गु सी ॥८॥
                                                                                 े

          द याभरण द य व       ॥ गु पुिजला नपे आदर ॥ गु द
                                           ृ               णेसी भांडारे ॥ दाशाहराय सम पल ॥९॥

 तनमनधनसी उदार ॥ गगचरणीं लागे नपवर ॥ असो न गु सी वं चती जे पामर ॥ ते दा ण नरय भो गती ॥११०॥
   ु                           ृ

        ीगु चे घर ं आपदा ॥ आपण भोगी सव संपदा ॥ कच
                                                ै     ान या म तमंदा ॥ गु      ानंदा न भजे जो ॥११॥

एक हणती तनमनधन ॥ ना शवंत गु सी काय अपन ॥ परम चांडाळ याच शठ ान ॥ कदा वदन न पाहाव ॥१२॥
          ु                          ू

          धक् व ा धक्     ान ॥ धक् वैरा यसाधन ॥ चतवद शा
                                                  ु         आला पढून ॥ धक् पठण तयाच ॥१३॥

जैसा खरप ृ ईवर चंदन ॥ ष सीं दव      यथ फ न ॥ जेवीं माप तंदल मोजन ॥ इकडून तकडे तकडे टा कती ॥१४॥
                                                          ु    ू

   घाणा इ ुरस गाळी ॥ इतर से वती रसन हाळी ॥ क ं पा ांत शकरा सांठ वल ॥ पर गोडी न कळे तया ॥१५॥

         असो ते अभा वक खळ ॥ तैसा न हे तो दाशाहनपाळ ॥ षोडशोपचार नमळ ॥ पूजन कल गु च ॥१६॥
                                               ृ                           े

        उभा ठाकला कर जोडून ॥ मग तो गग दयी ध न ॥ म तक ं ह त ठे वन ॥ शवषड र मं सांगे ॥१७॥
                                                               ू

          दयाआकाशभुवनीं ॥ उगवला नजबोधतरणी ॥ अ ानतम तेच          णी ॥ नरसू न नवल जाहल ॥१८॥

        अ त मं ाच म हमान ॥ राया चया शर रामधन ॥ को यव ध काक नघोन ॥ पळते झाले तेधवां ॥१९॥
          ु                                ू

   कती एकांचे प     जळाले ॥ चरफ डत च बाहे र आले ॥ अवघे च भ म होऊ न गेले ॥ सं या नाह ं तयांते ॥१२०॥

       जैसा कं चत ् पडतां कृशान ॥ द ध होय कटकवन ॥ तैसे काक गेले जळोन ॥ दे खो न राव नवल कर ॥२१॥
                                           ं

         गु सी नमू न पुसे नप ॥ काक कचे नघाले अमूप ॥ माझ झाल द य
                           ृ                                         प ॥ नजराहू न आगळं ॥२२॥

  गु      हणे ऐक सा ेप ॥ अनंत ज मींची महापापे ॥ बाहे र नघाल ं काका प ॥ शवमं    तापे भ म झाल ॥२३॥

          न पाप झाला नपवर ॥ गु
                      ृ            तवन कर वारं वार ॥ ध य पंचा र मं ॥ तंू ध य गु पंचा र ॥२४॥

         पंचभुतांची झाडणी क न ॥ सावध कल मजलागन ॥ चार दे ह नरसन ॥ कले पावन गु राया ॥२५॥
                                      े      ू               ू    े

       पंचवीस त वांचा मेळ ॥ यांत सांपडल बहुत काळ ॥    ोध म हषासर सबळ ॥ कामवेताळ धसधसी ॥२६॥
                                                               ु                 ु ु

 आशा मनशा त ृ णा क पना ॥       ां त भुल इ छा वासना ॥ या ज खणी य    णी नाना ॥ वटं बीत मज हो या ॥२७॥

   ऐसा हा अवघा मायामेळ ॥ तवां नरसला ता काळ ॥ ध य पंचा र मं
                          ु                                        नमळ ॥ गु दयाळ ध य तंू ॥२८॥

         सह ज मपयत ॥ मज          ान झाल सम त ॥ पाप जळाल असं यात ॥ काक पे दे खल ं यां ॥२९॥

       सुवण तेय अभ यभ क ॥ सुरापान गु त पक ॥ परदारागमन गु नंदक ॥ ऐसीं नाना मह पाप ॥१३०॥

गोह या      ह या धमलोपक ॥      ीह या गु ह या   छळक ॥ पर नंदा पशु हंसक ॥ व ृ हारक अग य ीगमन ॥३१॥

             म   ोह गु   ोह ॥ व दोह वेद ोह ॥ ासादभेद लंगभेद पाह ं ॥ पं     भेद ह रहरभेद ॥३२॥
ानचोर पु तकचोर प       घातक ॥ पाखांडम त म यावादक ॥ भेदबि द
                                                           ु           माग थापक ॥       ीलंपटदराचार ॥३३॥
                                                                                              ु

        कृत न पर   यापहारक ॥ कम        तीथम हमाउ छे दक ॥ बक यानी गु छळक ॥ मातहतक पतह या ॥३४॥
                                                                             ृ     ृ

   दबलघातुक कममाग न ॥ द नह यार पाहती पैशू य ॥ तणदाहक पी डती स जन ॥ गो वध भ गनीवध ॥३५॥
    ु                                          ृ

         क या व य गो व य ॥ हय व य रस व य ॥            ामदाहक आ मह या पाह ॥     णह य महापाप ॥३६॥
                                                                               ू

          ह ं महापाप सां गतल ं    ु पाप नाह ं ग णल ं ॥ इतक ं काक प नघाल ं ॥ भ म झाल ं
                                                         ु                                य   ॥३७॥

कांह गांठ पु य होत परम ॥ हणो न नरदे ह पावल उ म ॥ गु         ताप तरल न:सीम ॥ काय म हमा बोलू आतां ॥३८॥

   गु     तवन क न अपार ॥         ामासी आला दाशाह नपवर ॥ सव कलावती परमचतुर ॥ कला उ दार रायाचा ॥३९॥
                                                  ृ                          े

          जपतां शवमं    नमळ ॥ रा य वधमान झाल सकळ ॥ अवषणदोष द ु काळ ॥ दे शांतू न पळाले ॥१४०॥

    वैध य आ ण रोग मृ य ॥ नाह ंच कोठ दे शांत ॥ अ लं गतां कलावतीसी नपनाथ ॥ शशीऐसी शीतल वाटे ॥४१॥
                                                                  ृ

  शव भजनीं ला वले सकळ जन ॥ घरोघर ं होत शवक तन ॥              ा भषेक शवपूजन ॥ ा णभोजन यथा व ध ॥४२॥

    दाशाहरायाच आ यान ॥ जे ल हती ऐकती क रती पठण ॥ ीतीक न                ंथर ण ॥ अनमोदन दे ती जे ॥४३॥
                                                                                 ु

        सुफळ यांचा संसार ॥ यांसी नजांगे र ी     ीशंकर ॥ ध य ध य ते च नर ॥ शवम हमा व णती जे ॥४४॥

          पुढ कथा सुरस सार ॥ अमअताहू न र सक फार ॥ ऐकोत पं डत चतर ॥ गु भ
                               ृ                               ु                 े मळ    ानी जे ॥४५॥

        पूण     ानंद शूळपाणी ॥    ीधरमुख न म क नी ॥ तो च बोलवीत वचारोनी ॥ पहाव मनीं नधार ॥४६॥

              ीधरवरद पांडुरं ग ॥ तेण शर ध रल शव लंग ॥ पूण     ानंद अभंग ॥ न हे वरं ग काल यी ॥४७॥

         शवल लामत
                ृ      ंथ चंड ॥ कदपराण
                                 ं ु          ो रखंड ॥ प रसोत स जन अखंड ॥ थमो याय गोड हा ॥१४८॥

                                          इ त ी थमो याय: समा : ॥

                                          ॥   ीसांबसदा शवापणम तु ॥
ी शवल लामत – अ याय दसरा
                                            ृ          ु

                                            अ याय दसरा
                                                   ु
                                           ीगणेशाय नमः॥

       जेथ सवदा शव मरण ॥ तेथ भु     मु   सवक याण ॥ नाना संकट व न दा ण ॥ न बाधती काल यी ॥१॥

  संकत अथवा हा यक न ॥ भल या मस घडो शव मरण ॥ न कळतां प रसासी लोह जाण ॥ संघटतां सुवण कर क ं ॥२॥
     े

        न कळतां ा शल अमत ॥ पर अमर कर क ं यथाथ ॥ औषधी नेणतां भ
                       ृ                                              त ॥ पर रोग स य हर क ं ॥३॥

       शु कतणपवत अ ुत ॥ नेणतां बाळक अक मात ॥ अि न फ लंग टाक त ॥ पर भ म यथाथ कर क ं ॥४॥
            ृ                                      ु

      तैसे न कळतां घडे शव मरण ॥ पर सकळ दोषां होय दहन ॥ अथवा वनोदक न ॥ शव मरण घडो कां ॥५॥

       हे कां यथ हांका फो डती ॥ शव शव नाम आरडती ॥ अरे कां हे उगे न राहती ॥ हरहर गजती वेळोवेळां ॥६॥

      शवनामाचा क रती को हाळ ॥ माझ उठ वल कपाळ ॥ शव शव हणतां वेळोवेळ ॥ काय येत यां या हाता ॥७॥

      ऐसी हे ळणा कर   ण णीं ॥ पर उमाव लभनाम ये वदनीं ॥ पु क यानामक नी ॥ शव मरण घडो कां ॥८॥

     महा ीतीन क रतां शव मरण ॥ आदर क रतां शव यान ॥ शव व प माननी ा ण ॥ संतपण कर सदां ॥९॥
                                                            ू

       ऐसी शवीं आवडी धर ॥ याह माजी आल शवरा ी ॥ उपवास जागरण कर ॥ होय बोहर मह पापा ॥१०॥

    ते दवशीं ब वदळ घेऊन ॥ यथासांग घडल शवाचन ॥ तर सह ज मींचे पाप संपण ॥ भ म होऊन जाईल ॥११॥
                                                                   ू

  न य ब वदळ शवासी वाहत ॥ याएवढा नाह ं पु यवंत ॥ तो तरे ल ह नवल न हे स य ॥ या या दशन बहुत तरती ॥१२॥

    ातःकाळी घेतां शवदशन ॥ या मनीच पाप जाय जळोन ॥ पूवज मींच दोष गहन ॥ मा या ह ं दशन घेतां नरती ॥१३॥
                                                                                          ु

     सायंकाळीं शव पाहतां स ेम ॥ स ज मींच पाप होय भ म ॥ शवरा ीचा म हमा परम ॥ शेषह वणू शकना ॥१४॥
                                                                                       े

   क पलाष ी अध दय सं मण ॥ महोदय गज छाया हण ॥ इतुकह पवकाळ ओंवाळून ॥ शवरा ीव न टाकाव ॥१५॥
                                                 े

शवरा ी आधीं च पु य दवस ॥ याह वर पूजन जागरण वशेष ॥       काळपूजा आ ण      घोष ॥ या या पु यासी पार नाह ं ॥१६॥

       वस    व ा म ा द मनी र ॥ सुरगण गंधव क नर ॥ स चारण व ाधर ॥ शवरा
                        ु                                                         त क रताती ॥१७॥

        यदथ सरस कथा बहुत ॥ शौनका दकां सांगे सत ॥ ती ोतीं ऐकावी साव च ॥ अ यादरक नयां ॥१८॥
             ु                               ू

तर मासांमाजी माघमास ॥ याचा यास म हमा वण वशेष ॥ याह माजी कृ णचतदशीस ॥ मु य शवरा
                                                              ु                              जा णजे ॥१९॥

     वं या वासी एक याध ॥ मगप
                          ृ       घातक परम न ष द ॥ महा नदय हंसक नषाद ॥ कले अपराध बहु तेण ॥२०॥
                                                                        े

      धनु यबाण घेऊ न कर ं ॥ पारधीसी चा लला दराचार ॥ पाश वागरा क ेसी धर ॥ कवच लेत ह रतवण ॥२१॥
                                            ु              ु

     कर ं गोधांगु ल ाण ॥ आ णकह हातीं श सामु ी घेऊन ॥ काननीं जातां शव थान ॥ शोभायमान दे खल ॥२२॥

        तंव तो शवरा ीचा दन ॥ या ा आल चहुंकडून ॥ शवमं दर ुंगा न ॥ शोभा आ णल कलासींची ॥२३॥
                                                                            ै
शु रजततगटवण ॥ दे वालय झळक शोभायमान ॥ गगनचंु बत वज पण ॥ र ज डत कळस तळपताती ॥२४॥
                                  े                         ू

             म य म णमय शव लंग ॥ भ          पूजा क रती सांग ॥ अ भषेकधारा अभंग ॥ व ध रती     घोष ॥२५॥

           एक टाळ मदंग घेऊन ॥ स ेम क रती शवक तन ॥ ोते करटाळी वाजवन ॥ हरहरश द घोष क रती ॥२६॥
                   ृ                                             ू

          नाना प रमळ    यसवास ॥ तेण दश दशा दमद ु म या वशेष ॥ ल
                          ु                 ु                       द पांचे काश ॥ जलजघोष घंटारव ॥२७॥

          श शमुखा गजती भेर ॥ यांचा नाद न माये अंबर ॥ एवं चतु वध वा नानापर ॥ भ     वाज वती आनंदे ॥२८॥

           तो तेथ याध पातला ॥ समोर वलोक सव सोहळा ॥ एक महूत उभा ठाकला ॥ हांसत बो लला वनोदे ॥२९॥
                                                       ु

             हे मख अवघे जन ॥ येथ
                 ू                     य काय यथ नासोन ॥ आंत दगड बाहे र पाषाण ॥ दे वपण येथ कच ॥३०॥
                                                                                           ै

             उ म अ न सांडून ॥ यथ कां क रती उपोषण ॥ ऐ सया चे ा कर त तेथून ॥ कानना ती जातसे ॥३१॥

  लोक नाम गजती वारं वार ॥ आपण ह वनोद हणे शव हर हर ॥ सहज स य घालू न शवमं दर ॥ घोर कांतार वेशला ॥३२॥

          वाचेसी लागला तो च वेध ॥ वनोद बोले शव शव श द ॥ नाम ताप दोष अगाध ॥ झडत सव चा लले ॥३३॥

            घोरांदर से वतां वन ॥ नाढळतीच जीव लघुदा ण ॥ त व ण द वधच सदन ॥ वासरम ण वेशला ॥३४॥
                                                                 ू

           नशा वतल सबळ ॥ क ं           ांडकरं डा भरल काजळ ॥ क ं वशाळ कृ णकबळ ॥ मंडप काय उभा रला ॥३५॥
                                                                          ं

         वगतधवा जेवीं का मनी ॥ तेवीं न शोभे कदा या मनी ॥ जर मं डत दसे उडुगणीं ॥ पर प तह न रजनी ते ॥३६॥

      जैसा पं डत गे लया सभतन ॥ मख ज पती पाखंड ान ॥ जेवीं अ ता जातां सह
                           ू    ू                                          करण ॥ उडुगण माग झळकती ॥३७॥

        असो ऐसी नशा दाटल सुब ॥ अवघा वेळ उपवासी नषाद ॥ त एक सरोवर अगाध ॥            ीं दे खल शो धतां ॥३८॥

        अनेक संप ी सभा यसदनीं ॥ तेवीं सरोवर शोभती कमु दनी ॥ तट ं ब वव ृ गगनीं ॥ शोभायमान पसरला ॥३९॥
                                                   ु

योग     कमभमीसी पावती जनन ॥ तेवीं ब वडहा ळया गगनींहून ॥ भमीस लाग या येऊन ॥ माजी र वश श करण न दसे ॥४०॥
           ू                                             ू

         यांत तम दाटल दा ण ॥ माजी बैस या याध जाऊन ॥ शरासनीं शर लावन ॥ कानाडी ओढोन सावज ल ी ॥४१॥
                                                                  ू

        ीं ब वदळ दाटल ं बहुत ॥ तीं द   णह त खडो न टाक त ॥ तो तेथ प जह त था पत ॥ शव लंग द य होत ॥४२॥
                                             ु

      यावर ब वदळ पडत ॥ तेण संतोषला अपणानाथ ॥ याधासी उपवास जागरण घडत ॥ सायास न क रतां अनायास ॥४३॥

          वाचेसी शवनामाचा चाळा ॥ हर हर हणे वेळोवेळां ॥ पाप य होत चा लला ॥ पूजन मरण सव घडल ॥४४॥

         एक याम झा लया रजनी ॥ त जलपानालागीं एक ह रणी ॥ आल तेथ ते ग भणी ॥ परम सकमार तेज वी ॥४५॥
                                                                              ु ु

            याध तण ल     ला द ु न ॥ कृतांतवत परम दा ण ॥ आकण ओ ढला बाण ॥ दे खो न ह रणी बोलतसे ॥४६॥

         हणे महापु षा अ याया वण ॥ कां मजवर ला वला बाण ॥ मी तव ह रणी आहे ग भण ॥ वध तुवां न करावा ॥४७॥

       उदरांत गभ सू म अ ान ॥ व धतां दोष तज दा ण ॥ एक रथभर जीव व धतां सान ॥ तर एक ब त व धयेला ॥४८॥
                                         ु

             शत ब त व धतां एक ॥ वषभह येच पातक ॥ शत वषभ त गोह या दे ख ॥ घडल शा
                                 ृ                  ृ                                    वदतसे ॥४९॥
शत गोह येच पातक पण ॥ एक व घतां होय ा ण ॥ शत
                      ू                                    ह येच पातक जाण ॥ एक      ी व ध लया ॥५०॥

       शत ि यांहू न अ धक ॥ एक गु ह येच पातक ॥ याहू न शतगणी दे ख ॥ एक ग भणी व ध लया ॥५१॥
                                                        ु

    तर अ याय नसतां ये अवसर ं ॥ मज मा रसी कां वनांतर ॥ याध हणे कटुंब घर ॥ उपवासी वाट पहात ॥५२॥
                                                               ु

        मीह आिज नराहार ॥ अ न नाह ंच अणमा ॥ पर मगी होऊ न संदर ॥ गो ी व सी शा ीं या ॥५३॥
                                      ु        ृ          ु

         मज आ य वाटत पोट ं ॥ नराऐशा सांगसी गो ी ॥ तुज दे खो नयां     ीं ॥ दया दयीं उपजतसे ॥५४॥

       पूव तंु होतीस कोण ॥ तुज एवढ   ान कोठून ॥ तूं वशाळने ी प लाव य ॥ सव वतमान मज सांगे ॥५५॥

   मगी हणे ते अवसर ं ॥ पव मंथन क रतां
    ृ                   ू                 ीरसागर ं ॥ चतदश र े का ढल ं सरासर ं ॥ महा य क नयां ॥५६॥
                                                       ु               ु ु

    यांमाजी मी रं भा चतुर ॥ मज दे खो न भुलती सुरवर ॥ नाना तप आचरो न अपार ॥ तप वी पावती आ हांत ॥५७॥

    यां नयनकटा जाळ पस न ॥ बां धले नजरांच मनमीन ॥ मा झया अंगसवासा वेधन ॥ मु न मर धांवती ॥५८॥
                                                            ु       ू

  माझे गायन ऐकावया सरंग ॥ सधापानीं धांवती करं ग ॥ मी भोगीं वग चे द य भोग ॥ व प न मानी कोणासी ॥५९॥
                    ु      ु               ु

    मद अंगी चढला बहुत ॥ शवभजन टा कल सम त ॥ शवरा ी सोमवार दोष त ॥ शवाचन सां डल यां ॥६०॥

       सोडो नयां सधापान ॥ क ं लागल म
                  ु                      ाशन ॥ हर यनामा दै य दा ण ॥ सुर सोडो न रतले यांसी ॥६१॥

       ऐसा लोटला काळ अपार ॥ मगयेसी गेला तो असर ॥ या द ु ासंगे अपणावर ॥ भजनपूजन वसरल ॥६२॥
                             ृ               ु

     मनासी ऐस वाटल पूण ॥ असुर गेला मगयेलागन ॥ इतु यांत याव शवदशन ॥ हणो न गेल कलासा ॥६३॥
                                    ृ     ू                                   ै

     मज दे खतां हमनगजामात ॥ परम        ोभो न शाप दे त ॥ तूं परम पा पणी यथाथ ॥ मगी होई मृ यलोक ं ॥६४॥
                                                                               ृ          ु

     तु या स या दोघीजणी॥ या होतील तजसवं ह रणी ॥ हर य असर मा झये भजनीं ॥ असावध सवदा ॥६५॥
                                   ु                   ु

        तोह मग होऊ न स य ॥ तु हांसीं च होईल रत ॥ ऐक याधा साव च ॥ मग यां शव ा थला ॥६६॥
             ृ

       हे पंचवदना व पा ा ॥ सि चदानंदा कमाध ां॥ द मखदळणा सवासा ा ॥ उ:शाप दे आ हांत ॥६७॥

    भोळा च वत दयाळ ॥ उःशाप वदला पयःफनधवल ॥ ादश वष भरतां ता काळ ॥ पावाल मा झया पदात ॥६८॥
                                    े

       मग आ ह ं मगयोनी ॥ ज मल ये कमअवनीं ॥ मी ग भणी आह ह रणी ॥ सूतकाळ समीप असे ॥६९॥
                 ृ

     तर मी आपु या व थळा जाऊन ॥ स वर येत गभ ठे वन ॥ मग तूं सुख घेई ाण ॥ स य वचन ह माझ ॥७०॥
                                               ू

  ऐसी मगी बो लल साव च ॥ यावर तो याध काय बोलत ॥ तूं गोड बोलसी यथाथ ॥ पर व ास मज न वाटे ॥७१॥
       ृ

     नानापर अस य बोलोन ॥ कराव शर राच संर ण ॥ ह ाणीमा ासी आहे          ान ॥ तर तंू शपथ वद आतां ॥७२॥

         मह पाप उ चा न ॥ शपथ वद यथाथ पूण ॥ यावर ते ह रणी द नवदन ॥ वाहत आण ऐका ते ॥७३॥

       ा णकळीं उपजोन ॥ जो न कर वेदशा
           ु                               ययन ॥ स यशौचविजत सं याह न ॥ माझे शर ं पातक त ॥७४॥

एक वेद व य कर ती पूण ॥ कृत न परपीडक नावडे भजन ॥ एक दानासी क रती व न ॥ गु         नंदा वण एक क रती ॥७५॥
रमावराउमावरांची नंदा ॥ या पापाची मज होय आपदा ॥ दान दधल ज           वंदा ॥ हरोनी घेती माघार ॥७६॥
                                                                               ृ

       एक य त नंदा क रती ॥ एक शा         पहाती ै त न मती ॥ नाना   माग आचरती ॥ वधम आपुला सांडो नयां ॥७७॥

              दे वायला माजी जाऊनी ॥ ह रकथापुराण वणीं ॥ जे बैसती वडा घेउनी ॥ ते कोडी होती पा पये ॥७८॥

     जे दे वळांत क रती   ीसंभोग ॥ क ं    ी तारांसी क रती वयोग ॥ ते नपंसक होऊ न अभा य ॥ उपजती या ज मीं ॥७९॥
                                                                      ु

     वमकम नंदा कर त ॥ तो जगपुर षभ क काग होत ॥ श यांसी व ा असो न न सांगत ॥ तो पंगळा होत नधार ॥८०॥

अनु चत    त ह ा ण घेती ॥ या न म गंडमाळा होती ॥ पर े ीं या गाई वळू न आ णती ॥ ते अ पायषी होती या ज मीं ॥८१॥
                                                                                    ु

    जो राजा कर    जापीडण ॥ तो या ज मीं या कां सप होय दा ण ॥ वथा कर साधुछळण ॥ नवश पण होय याचा ॥८२॥
                                                             ृ                    ू

           ि या तनेम कर त ॥ तारासी अ हे र त ॥ धनधा य असो न वं चत ॥ या वाघुळा होती या ज मीं ॥८३॥

   पु ष क प हणो नयां या गती ॥ या या ज मीं बाल वधवा होती ॥ तेथह जारकम क रती ॥ मग या होती वारांगना ॥८४॥
         ु

      या तारासी नभि सती ॥ या दासी कं वा कलटा होती ॥ सेवक वामीचा ोह क रती ॥ ते ज मा येती
                                         ु                                                        ाना या ॥८५॥

             सेवकापासू न सेवा घेऊन ॥ याच न दे जो वेतन ॥ तो अ यंत भकार होऊन ॥ दारोदार हंडतसे ॥८६॥

               ीपु ष गुज बोलतां ॥ जो जाऊ न ऐक त वतां ॥ याची
                                             े                    ी दरावे हंडतां ॥ अ न न मळे तयात ॥८७॥
                                                                     ु

           जे जारणमारण क रती ॥ ते भत ेत पशाच होती ॥ यती उपवास पी डती ॥ यांते द ु काळ ज मवर ॥८८॥
                                   ू

           ी रज वला होऊनी ॥ गह ं वावर जे पा पणी ॥ पूवज
                             ृ                             धर ं पडती पतनीं ॥ या गह दे व पतगण न येती ॥८९॥
                                                                                 ृ        ृ

जे दे वा या द पांच तोत नेती ॥ ते या ज मीं नपु क होती ॥ या रां धतां अ न चोरोनी भ   ती ॥ या माजार होती या ज मीं ॥९०॥

          ा णांसी कद न घालन ॥ आपण भ
                          ू                    ती ष सप वान ॥ यांचे गभ पडती गळोन ॥ आपु लया कमवश ॥९१॥

      जो माता प यांसी शणवीत ॥ तो ये ज मी मकट होत ॥ सासु शुरा नुषा गांिजत ॥ तर बाळक न वांचे तयेच ॥९२॥

             मगी हणे याधालागन ॥ जर मी न ये परतोन ॥ तर ह ं मह पाप संपूण ॥ मा या माथां बैसोत ॥९३॥
              ृ             ू

       हे म या गो होय साचार ॥ तर घडो शवपजेचा अपहार ॥ ऐसी शपथ ऐकतां नधार ॥ याध शंकला मानसी ॥९४॥
                                        ू

          हणे प त ते जाई आतां ॥ स वर येई नशा सरतां ॥ ह रणी हणे शवपदासी त वतां ॥ पु यवंता जाशील ॥९५॥

          उदकपान क न वेगीं ॥ नजा मा गेल करं गी ॥ इकडे या द
                                         ु                           णभाग ॥ टाक ब वदळे खडू नयां ॥९६॥
                                                                                        ु

          दोन हर झाल या मनी ॥           तीय पजा शव माननी ॥ अधपाप जळाल मळींहुनी ॥ स ज मींच तेधवां ॥९७॥
                                             ू        ु                ु

         नामीं आवड जडल पूण ॥ याध कर शव मरण ॥ मगीमुख ऐ कल न पण ॥ सहज जागरण घडल तया ॥९८॥
                                              ृ

         त दसर ह रणी अक मात ॥ पातल तेथ तषा ांत ॥ याधे बाण ओढ तां व रत ॥ क णा भाक ह रणी ते ॥९९॥
            ु                           ृ

       हणे याधा ऐक ये समयी ॥ मज कामानळ पीडील पाह ं ॥ पतीसी भोग दे ऊ न लवलाह ॥ परतो न येत स वर ॥१००॥

          याध आ य कर मनांत ॥ हणे शपथ बोलो न जाई व रत ॥ ध य तमचे जी व व ॥ सव शा ाथ ठाउका ॥१॥
                                                            ु
चापी तडाग सरोवर ॥ जो प तत मोडी दे वागार ॥ गु नंदक म पानी दराचार ॥ तीं पाप सम म तक ं मा या ॥२॥
                                                                   ु

          महा      य आपण हण वत ॥ समरांगणी माग पळत ॥ व ृ             हर सीमा लो टत ॥ ंथ नं दत महापु षांचे ॥३॥

                   वेदशा ांची नंदा कर ॥ संतभ ांसी े ष धर ॥ ह रहर च र अ हे र ॥ माझे शर ं तीं पाप ॥४॥

         धनधा य असो न पाह ं ॥ पतीलागीं शणवी हणे नाह ं ॥ प त सांडो न नजे परगह ॥ तीं पापे मा झया माथां ॥५॥
                                                                           ृ

    पु     नषा स माग वतता ॥ यांसी यथची गािजती जे नं पाहं तां ॥ ते क प होती त वतां ॥ हंडता भ ा न मळे च ॥६॥
            ु                                                      ु

             बंधुबंधु जे वैर क रती ॥ ते या ज मीं म    य होती ॥ गु च उण जे पाहती ॥ यांची संप    द ध होय ॥७॥

जे माग थांचीं व े ह रती ॥ ते अ तशू        ेतव   पांघरती ॥ आ ह तप वी हणो नया अनाचार क रती ॥ ते घले होती मोकाट ॥८॥
                                                                                               ु

           दासी वामीची सेवा न कर ॥ ती ये ज मी होय मगर ॥ जो क या व य कर ॥ हंसक योनी नपजे तो ॥९॥

             ी ताराची सेवा कर त ॥ तीस जो यथ च गांिजत ॥ याचा गहभंग होत ॥ ज मज मांतर न सटे ॥११०॥
                                                             ृ                        ु

                  ा ण कर रस व य ॥ घेतां दे तां म पी होय ॥ जो       वंदा अपमा नताहे ॥ तो होय
                                                                     ृ                          रा स ॥११॥

                    एक उपकार कला ॥ जो न नाठवी याला ॥ तो कृत न जंत झाला ॥ पूवकम जा णजे ॥१२॥
                              े

                     व    ा द ं जेवनी ॥
                                   ु       ीभोग कर ते दनीं ॥ तो    ानसुकरयोनीं ॥ उपजेल न:संशये ॥१३॥

              यवहार दहांत बैसोन ॥ खोट सा        दे ई गज न ॥ पवज नरक ं पावती पतन ॥ अस य सा
                                                             ू                                   दे तां च ॥१४॥

                    दोघी ि या क न ॥ एक चच राखी जो मन ॥ तो गो चड होय जाण ॥ सारमेय शर र ॥१५॥

          पूवज मीं क डी उदक ॥ याचा मळमू नरोध दे ख ॥ क रतां साधु नंदा आव यक ॥ स वर दं त भ न होती ॥१६॥

          दे वालयीं कर भोजन ॥ तर ये ज मी होय         ीण ॥ प ृ वीपंतीची नंदा क रतां जाण ॥ उदर ं मंदाि न होय प ॥१७॥

           हणसमयीं कर भोजन ॥ यासी प रोग हो दा ण ॥ परबाळ वक परदे श नेऊन ॥ तर सवागीं क भरे ॥१८॥
                                                                                    ु

             जी     ी कर गभपातन ॥ तीउपजे वं या होऊन ॥ दे वालय टाक पाडोन ॥ तर अंगभंग होय याचा ॥१९॥

अपराधा वण         ीसी गांिजताहे ॥ याच ये ज मीं एक अंग जाये ॥ ा णाच अ न ह रती पा पये ॥ यांचा वंश न वाढे कधीं ॥१२०॥

          गु संत माता पता ॥ यांसी होय जो नभि सता ॥ तर वाचा जाय त वतां ॥ अडखळे बोलतां               णा णां ॥२१॥

    जो ा णांसी दं ड भार ॥ यासी या ध तडका लागती शर र ं ॥ जो संतासीं वाद ववाद कर ॥ द घ दं त होती याचे ॥२२॥

              दे व ार ंचे त वर ॥ अ   था द व ृ साचार ॥ तो डतां पांगळ होय नधार ॥ भ ा न मळे हंडातां ॥२३॥
                                                                  ु

   जो सूतका न भ        त ॥ याचे उदर ं नाना रोग होत ॥ आपण च प रमळ          य भोगी सम त ॥ तर दगधी स य सवागी ॥२४॥
                                                                                            ु

     ा णाच ऋण न दे तां ॥ तर बाळपणीं मृ यु पावे पता ॥ जलव ृ ा छाया मो डतां ॥ तर एकह            थळ न मळे यात ॥२५॥

                ा णासी आशा लावन ॥ चाळवी नेद कदा दान ॥ तो ये ज मीं अ न अ न ॥ कर त हंडे घरोघर ं ॥२६॥
                              ू

          जो पु    ष कर त ॥ आ ण द र याच ल न मो डत ॥ तर             ीसी सल राहे पोटांत ॥ वं या नि त संसार ॥२७॥
जेणे ा ण बां धले न हून ॥ यासी सांडस तोडी सयनंदन ॥ जो नायक कथा ंथ पावन ॥ ब धर होय ज मोज मी ॥२८॥
                                               ु              े

     जो पीडी माता पतयांस ॥ याचा सवदा होई कायनाश ॥ एकासी भजे नंद सव दे वांस ॥ तर एक च पु होय यासी ॥२९॥

          जो चांडाळ गोवध कर ॥ यासी मळे ककश नार ॥ वषभ व धतां नधार ं ॥ शतमूख पु होय यासी ॥१३०॥
                                                  ृ

  उदकतण वण पशु मार त ॥ तर मु या च जा होती सम त ॥ जो प त तेसी भोगंू इि छत ॥ तर क प नार ककशा मळे ॥३१॥
      ृ                                                                        ु

        जो पारधी बहु जीव संहार ॥ तो फपरा होय संसार ॥ गु चा याग जो चांडाळ कर ॥ तो उपजतां च मृ यु पावे ॥३२॥

न य अथवा र ववर ं मुते रवीसमोर ॥ याचे बाळपणीं दं त भ न कश शु ॥ जे मत बाळासाठ ं दती नधार॥ यांस हांसता नपु क होय
                                                       े          ृ
                                                      ॥३३॥

      ह रणी हणे याधालागन ॥ मी स वर येत पतीसी भोग दे ऊन ॥ न य तर ह ं पाप संपण ॥ मा या माथां बैसोत प ॥३४॥
                       ू                                                   ू

           याध मनांत शंकोन ॥ हणे ध य ध य तमच
                                          ु         ान ॥ स वर येई गहासी जाऊन ॥ स य संपूण सांभाळी ॥३५॥
                                                                   ृ

              जलपान क न वेगीं ॥ आ म गेल ते करं गी ॥ त मगराज ते च संगीं ॥ जलपानाथ पातला ॥३६॥
                                            ु          ृ

         याध ओ ढला बाण ॥ त मग बोले द नवदन ॥ हणे मा या ि या प त ता सगण ॥ यांसी पसोन येत मी ॥३७॥
                            ृ                                       ु          ु

         शपथ ऐक व रत ॥ क तन क रती ेमळ भ          ॥ तो कथारं ग मो डतां नवश होत ॥ त पाप स य मम माथां ॥३८॥

                      कम वेदो   ॥ शु    नजांगे आचरत ॥ तो अधम नरक ं पडत ॥ परधम आचरतां ॥३९॥

           तीथया ेसी व न कर ॥ वाटपाडी व         य हर ॥ तर सवागी ण अघोर ं ॥ नरक ं पडे क पपयत ॥१४०॥

         शा कोशीं नाह ं माण ॥ कटक वता कर
                               ू                ु ल ून ॥ ह रती ा णांचा मान ॥ तर संतान तयांचे न वाढे ॥४१॥

          ह र दनीं शव दनी उपोषण ॥ व धयु      न कर   ादशी पूण ॥ तर ह त पाद    ीण ॥ होती याचे नधार ॥४२॥

      एक शवहर     तमा फो डती ॥ एक भगव        ां व न क रती ॥ एक शवम हमा उ छे दती ॥ नरसीं होती क टक ते ॥४३॥

          मात ृ ोह यासी याधी भरे ॥ पत ृ ोह पशाच वचरे ॥ गु      ोह ता काळ मरे ॥ भत ेतगणीं वचरे तो ॥४४॥
                                                                                ू

         व आहार बहुत जे वती ॥ यांसी जो हांसे दमती ॥ याचे मुखीं अहोच रोग नि
                                              ु                                ती॥ न सोडती ज मवर ॥४५॥

           एक गो व य क रती ॥ एक क या व य अिजती ॥ ते नर माजार म त होती ॥ बाळ भ          ती आपल ं ॥४६॥
                                                                                            ु

        जो क या भ गनी अ भलाषी ॥ काम       ीं याहाळी प त तेसी ॥ मेहरोग होय यासी ॥ क ं खडा गु ांत दाटत ॥४७॥

                ासादभंग लंगभंग कर ॥ दे वांचीं उपकरण अलंकार चोर ॥ दे व त ा अ हे र ॥ पंडुरोग होय ॥४८॥

 एक म    ोह व ासघात क रती ॥ मात ृ पतह या गु सी संकट पा डती ॥
                                    ृ                              वध गोवध न वा रती ॥ अंगी साम य असो नयां ॥४९॥

         ा ण बैसवो न बाहे र ॥ उ मा न जे वती गहांतर ॥ सोययाची ाथना कर ॥ सं हणी पोटशूळ होती तयां ॥१५०॥
                                             ृ

 एक कम     पंचय   न क रती ॥ एक ा णांची सदन जा ळती ॥ एक द नासी माग नाग वती ॥ एक संतांचा क रती अपमान ॥५१॥

        एक क रती गु छळाण ॥ एक हणती पाह याच ल ण ॥ नाना दोष आरो पती अ ान ॥ यांचे संतान न वाढे ॥५२॥

          जो सदा पतदोष कर ॥ जो
                   ृ                   वंदासी अ हे र ॥ शवक तन ऐकतां ासे अंतर ॥ तर पतवीय न हे तो ॥५३॥
                                         ृ                                          ृ
शवक तनीं न हे सादर ॥ तर कणमळरोग नधार ॥ नस या च गो ी ज पे अपार ॥ जो ददर होय नधार ॥५४॥
                                  ू                                         ु

शवक तन कं वा पुराण वण ॥ तेथ शयन कर तां सप होय दा ण ॥ एक अ ववादक छळक जाण ॥ ते पशाचयोनी पावती ॥५५॥

       एकां दे वाचनीं वीट येत ॥ ा ण पूजावया कटाळत ॥ तीथ साद अ हे र त ॥ यां या आंखुडती अंग शरा ॥५६॥
                                             ं

   मग हणे ऐसीं पाप अपार ॥ मम म तक ं होईल परम भार ॥ मग पारधई हणे स वर ॥ जाई व थाना मगवया ॥५७॥
    ृ                                                                              ृ

       याध शवनाम गज ते        णीं ॥ कठ स दत अ ु नयनीं ॥ मागती ब वदळ खडोनी ॥ शवावर टाक तसे ॥५८॥
                                     ं                     ु         ु

      च    हरां या पूजा चार ॥ संपूण झा या शवजागर ं ॥ स ज मींचीं पाप नधार ं ॥ मुळींहूनी भ म झाल ं ॥५९॥

       त पव दशा मख
          ू      ु          ा ळत ॥ सपणा ज उदय पावत ॥ आर वण शोभा दसत ॥ त च ककम ाचीच ॥१६०॥
                                    ु                                      ंु ु

त तसर मगी आल अक मात ॥ याध दे खला कृतांतवत ॥ हणे मा ं नको मज यथाथ ॥ बाळासी तन दे ऊ न येत मी ॥६१॥
       ृ

          याध अ यंत हषभ रत ॥ हणे ह काय बोलेल शा ाथ ॥ तो ऐकावया हणत ॥ शपथ क न जाय तूं ॥६२॥

    यावर मगी हणे याधा ऐक ॥ जो तणदाहक ामदाहक ॥ गो ा णांच क डी उदक ॥
          ृ                    ृ                                                  यरोग यासी न सोडी ॥६३॥

    ा णांची सदन ह रती दे ख ॥ यांचे पूवज रौरवीं पडती न:शंक ॥ मातपु ां बघडती एक ॥
                                                               ृ                    ीपु षां वघड पा डती ॥६४॥

     दे व ा ण दे खोन ॥ खालती न क रती कदा मान ॥ नंद ती बोलती कठोर वचन ॥ यम कर चरण छे द तयांचे ॥६५॥

   परव तु चोरावया दे ख ॥ अखंड ला वला अस र ख ॥ साधस मान मानी दःख ॥ यासी ने रोग तडका न सो डती ॥६६॥
                                                 ु           ु

      पु तकचोर ते मुक होती ॥ र चोरांचे ने जाती ॥ अ यंत गव ते म हष होती ॥ पारधी नि ती येनप ी ॥६७॥
                     े

       भ ांची जो नंदा कर त ॥ याचे मुखीं दगधी घा णत ॥ जो माता पतयांसी ता डत ॥ लुला होत यालागीं ॥६८॥
                                         ु

              जो अ यंत कृपण ॥ धन न वची अणु माण ॥ तो महाभजंग होऊन ॥ धसधसीत बैसे तेथ ॥६९॥
                                                        ु           ु ु

       भ ेसी यती र आला ॥ तो जेण रता दव डला ॥ शव यावर जाण कोपला ॥ संतती संप ी द ध होय ॥१७०॥

             ा ण बैसला पा ावर ॥ उठवू न घातला बाहे र ॥ याहू नयां दराचार ॥ दसरा कोणी नसे च ॥७१॥
                                                                 ु        ु
    ऐसा धमाधम ऐकोन ॥ पारधी स द बोले वचन ॥ व थळा जाई जलपान क नयां ॥ बाळांसी तन दे ऊन येई ॥७२॥

          ऐस ऐको न मगी लवला ा ॥ गेल जल ाशन क नयां ॥ बाळ तनी लावू नयां ॥ त ृ कल ं तयेन ॥७३॥
                    ृ                                                        े

      वडील झाल    सूत ॥ दसर पतीची कामना पुरवीत ॥ मगराज हणे आतां व रत ॥ जाऊ चला याधापासी ॥७४॥
                         ु                        ृ                       ं

      मग पाडसांस हत सवह ॥ याधापासीं आल ं लवलाह ं ॥ मग हणे ते समयी ॥ आधीं मज वधीं पार धया ॥७५॥
       ृ                                            ृ

     मगी हणे हा न हे वधी ॥ आ ह ं जाऊ पती या आधी ॥ पाडसे हणती
      ृ                             ं                               शु द ॥ आ हांसी वधीं पार धया ॥७६॥

       यांची वचन ऐकतां ते    णी ॥ याध स द झाला मनीं ॥ अ ुधारा लोट या नयनीं ॥ लागे चरणीं तयां या ॥७७॥

     हणे ध य िजण माझ झाल ॥ तमचे न मुख न पण ऐ कल ॥ बहुतां ज मींज पाप जळाल ॥ पावन कल शर र ॥७८॥
                            ु                                                    े

           माता पता गु दे व ॥ तु ह च आतां माझे सव ॥ कचा संसार म या वाव ॥ पु कल सव लटक ॥७९॥
                                                     ै

     याध बोले ेमेक न ॥ आतां कधीं मी शवपद पावेन ॥ त अक मात आल वमान ॥ शवगण बैसले यावर ॥१८०॥
पंचवदन दशभज ॥ या ांबर नेसले महाराज ॥ अ त तयांचे तेज ॥ द च ामाजी न समाये ॥८१॥
                    ु                            ु

       द य वा वाज वती क नर ॥ आलाप क रती व ाधर ॥ द य समनांचे संभार ॥ सुरगण वय वषती ॥८२॥
                                                     ु
  मगे पावल ं द य शर र ॥ याध कर सा ांग नम कार ॥ मुख हणे जयजय शव हर हर ॥ त शर रभाव पालटला ॥८३॥
   ृ

प रसीं झगडतां लोह होय सुवण ॥ तैस याध झाला दशभुज पंचवदन ॥ शवगणीं बहुत ाथन ॥ द य वमानीं बैस वला ॥८४॥
                                                                       ू

     मग पावल ं द य शर र ॥ तींह वमानी आ ढल ं सम ॥ याधाची तु त वारं वार ॥ क रती सरगण सवह ॥८५॥
      ृ                                                                        ु

        याध नेला शवपदा ती ॥ तारामंडळी मगे राहती ॥ अ ा प गगनीं झळकती ॥ जन पाहती सव डोळां ॥८६॥
                                       ृ

    स यवती दयर खाणी ॥ रसभ रत बो लला लंगपुराणीं ॥ त स जन ऐकोत दनरजनीं ॥        ानंदेक नयां ॥८७॥

      ध य त शवरा     त ॥ वण पातक द ध होत ॥ जे ह पठण क रती साव च ॥ ध य पु यवंत नर ते च ॥८८॥

     स जन ोते नजर स य ॥ ाशन करोत शवल लामत ॥ नंदक असुर कत क बहुत ॥ यांसी ा कच ह ॥८९॥
                                        ृ              ु                   ै

       कलासनाथ
        ै          ानंद ॥ तयांचे पदक हार सगंध ॥ तेथ ीधर अभंग ष पद ॥ ं जी घाल त शवनाम ॥१९०॥
                                          ु
        शवल लामत ंथ चंड ॥ कदपुराण
               ृ           ं             ो रखंड प रसोत स जन अखंड ॥    तीया याय गोड हा ॥१९१॥

                                     ॥ ीसांबसदा शवापणम तु ॥
ी शवल लामत – अ याय तसरा
                                             ृ

                                          अ याय तसरा
                                           ीगणेशाय नमः ॥

      जय जय शव मंगलधामा ॥ नजजन दयआरामा ॥ चराचरफलां कत मा ॥ नामाअनामातीत तूं ॥१॥
                                                      ु

 इं दरावरभ गनीमनरं जना ॥ षडा यजनका शफर वजदहना ॥            ानंदा भाललोचना ॥ भवभंजना     परांतका ॥२॥
                                                                                         ु

        हे शव स ोजात वामघोरा ॥ त पु षा ईशान ई रा ॥ अधनार नटे रा ॥ ग रजारं गा गर शा ॥३॥

       गंगाधरा भो गभषणा ॥ सव यापका अंधकमदना ॥ परमातीता नरं जना ॥ गुण य वर हत तूं ॥४॥
                    ू

हे पय:फनधवल जग जीवना ॥
       े                     तीया यायीं कृपा क न ॥ अगाध सरस आ यान ॥ शवरा म हमा वण वला ॥५॥
                                                         ु

   यावर कसा कथेची रचना ॥ वदवीं पंचमुकट पंचानना ॥ शौनका दकां मु नजनां ॥ सूत सांगे नै मषार यीं ॥६॥
         ै                           ु

       इ वाकवंशीं महाराज ॥ म सहनाम भभुज ॥ वेदशा संप न सतेज ॥ दसरा बडौजा प ृ वीवर ॥७॥
            ु                       ू                         ु

         पतनावसनक न ॥ घातल उव सी पालाण ॥ तापसय उगवला पण ॥ श भगण मावळल ं ॥८॥
          ृ                                  ू        ू     ु

तो एकदां मगया याजक न ॥ नघाला धुरंधर चमू घेऊन ॥ घोरांदर वेशला व पन ॥ त सावज चहूंकडून ऊठल ं ॥९॥
          ृ

     या वक र स वनकसर ॥ मग मगी वनगौ वानर वानर ॥ शशकजबुंकां या हार ॥ संहार त नपवर ॥१०॥
         ृ        े     ृ  ृ                                                ृ

    चातक मयूर बदक ॥ क तर करं ग जवा द बडालक ॥ नकल राजहं स च वाक ॥ प ी
                       ू ु                     ु                                ापद धांवती ॥११॥

   नपे मा रले जीव बहुवस ॥ यांत एक मा रला रा स ॥ महाभयानक तामस ॥ गत ाण होऊ न प डयेला ॥१२॥
    ृ

      याचा बंधु परम दा ण ॥ तो ल   ता झाला दरोन ॥ मनीं काप य क पन ॥ हणे सड घेईन बंधूचा ॥१३॥
                                           ु                   ू        ू

   म सह पातला वनगरास ॥ असुर ध रला मानववेष ॥ कृ णवसनवे त वशेष ॥ दव               कधीं घेऊ नयां ॥१४॥
                                                                                 ं

 नपासी भेटला येऊन ॥ हणे मी सूपशा ीं परम नपुण ॥ अ न शाका सुवास कर न ॥ दे खोन सुरनर भूलती ॥१५॥
  ृ

      राय ठे वला पाकसदनीं ॥ यावर पत ृ तथी ल ुनी ॥ गु व स घरालागनी ॥ नप े आ णला ॥१६॥
                                                               ु     ृ

 भोजना आला अ जजनंदन ॥ तो रा स काप य म न ॥ शाकांत नरमांस शजवन ॥ ऋषीस आणून वा ढल ॥१७॥
                                                           ू

      काल ानी व स मनी ॥ सकळ ऋषींमाजी शरोमणी ॥ काप य सकळ जाणनी ॥ म सह शा पला ॥१८॥
                   ु                                       ु

    हणे तूं वनीं होई रा स ॥ जेथ आहार न मळे न:शेष ॥ मी ा ण मज नरमांस ॥ वा ढल कस पा पया ॥१९॥
                                                                             ै

राव हणे मी नेण सवथा ॥ बोलावा सूपशा ीं जाणता ॥ तंव तो पळाला     ण न लगतां ॥ गु    प वना आपु या ॥२०॥

    राव कोपला दा ण ॥ हणे मज शा पले काय कारण ॥ मीह तज शापीन हणोय ॥ उदक कर ं घेतल ॥२१॥
                                                   ु

   तंव रायाची प राणी ॥ मदयंती नाम पु यखाणी ॥ प कवळ लाव यह रणी ॥ चातुय उपमे जेवीं शारदा ॥२२॥
                                                े

     मदयंती हणे राया ॥ दर
                        ू    ीं पाह वचा नयां ॥ श य गु सी शापावया ॥ अ धकार नाह ं सवथा ॥२३॥

    गु सी शाप दे तां नधार ं ॥ आपण नरक भोगावे क पवर ॥ राव हणे चतुर सुंदर ॥ बोलल स साच त ॥२४॥
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  • 2. ी शवल लामत – अ याय प हला ृ अ याय प हला ीगणेशाय नम: ॥ ी सर व यै नम: ॥ ीगु यो नम: ॥ ीसांबसदा शवाय नम: ॥ ॐ नमोजी शवा अप र मता ॥ आ द अना द मायातीता ॥ पण ू ानंदशा ता ॥ हे रंबताता जग रो ॥१॥ ु यो तमय व पा पुराणपु षा ॥ अना द स दा आनंदवन वलासा ॥ मायाच चाळका अ वनाशा ॥ अनंतवेषा जग पते ॥२॥ जय जय व पा ा पंचवदना ॥ कमा य ा शु चैत या ॥ व ंभरा कममोचकगहना ॥ मनोजदहना मनमोहन जो ॥३॥ भ व लभ तंू हमनगजामात ॥ भाललोचन नील ीव उमानाथ ॥ म तक ं वधनी वरािजत ॥ जा तसमनहारवत जी ॥४॥ ु ु प रथ य पुरांतक ॥ य प त म तापाक ॥ द मख व वंसक मगांक ॥ न कलंक तव म तक ं ॥५॥ ृ वशाळ भाळ कपूरगौर ॥ काकोलभ क नजभ र णा ॥ व ासा ी भ मलेपन ॥ भयमोचन भवहारक जो ॥६॥ जो सगि थ यंतकारण ॥ शूलपाणी शादलचमवसन ॥ कदतात सहा यवदन ॥ माया व पनदहन जो ॥७॥ ु ं ु जो सि चदानंद नमळ॥ शव शांत ानघन अचळ ॥ जो भानको टतेज अढळ ॥ सवकाळ यापक जो ॥८॥ ु सकलक लमलदहन क मषमोचन ॥ अनंत ांडनायक जगर ण ॥ प जतातमनरं जन ॥ जननमरणनाशक जो ॥९॥ कमलो व कमलावर ॥ दशशतमुख दशशतकर ॥ दशशतने सुर भूसुर ॥ अहोरा याती जया ॥१०॥ भव भवांतक भवानीवर ॥ मशानवासी गरां अगोचर ॥ जो वधनीतीर वहार ॥ व े र काशीराज जो ॥११॥ ु योमहरण यालभूषण ॥ जो गजदमन अंधकमदन ॥ ॐकारमहाबले र आनंदघन ॥ मदगवभंजन अज अिजत जो ॥१२॥ अ मतगभ नगमागमनत ॥ जो दगंबर अवयवर हत ॥ उ ज यनी महाकाळ कालातीत ॥ मरणे कृतांतभय नाशी ॥१३॥ ु द ु रतकाननवै ानर ॥ जो नजजन च चकोर चं ॥ वेणुपवरमह पापहर ॥ घु णे र सनातन जो ॥१४॥ जो उमा दयपंजक र ॥ जो नजजन दया ज मर ॥ तो सोमनाथ श शशेखर ॥ सौरा दे श वहार जो ॥१५॥ करवलोचन क णासमु ॥ ै ा भ षण ू ावतार ॥ भीम भयानक भीमाशंकर ॥ तपा पार नाह ं या या ॥१६॥ नागदमन नागभूषण ॥ नाग कडल नागचमप रधान ॥ यो त लग नागनाथ नागर ण ॥ नागाननजनक जो ॥१७॥ ंु व ृ रश ुजनकवरदायक ॥ बाणव लभ पंचबाणांतक ॥ भवरोगवै पुरहारक ॥ वैजनाथ अ य त जो ॥१८॥ ु नयन गुणातीत ॥ तापशमन वधभेदर हत ॥ यंबकराज दोषानलशांत ॥ क णाकर बलाहक जो ॥१९॥ काम संधुर वदारककठ रव ॥ जगदानंदकद कृपाणव ॥ हमनगवासी है मवतीधव ॥ हमकदार अ भनव जो ॥२०॥ ं ं े पंचमकट मायामलहरण ॥ न श दन गाती आ नाय गण ॥ नाह ं जया आ द म य अवसान ॥ मि लकाजन ु ु ु ु ीशैलवास ॥२१॥ जो श ा रजनकांतक यकर ॥ भूजासंतापहरण जोडो न कर ॥ जेथे त त अहोरा ॥ रामे र जग ु ॥२२॥ ऐ सया शवा सव मा ॥ अज अिजत ानंदधामा ॥ तुझा वणावया म हमा ॥ नगमागमां अत य ॥२३॥ ानंद हणे ीधर ॥ तव गुणाणव अगाध थोर ॥ तेथ बुि द च तक पोहणार ॥ न पावती पार त वतां ॥२४॥
  • 3. कनका स हत मे दनीच वजन ॥ करावया ताजवा आणंू कोठून ॥ योम सांठवे संपण ॥ ऐस सांठवण कोठून आणंू ॥२५॥ ू मे दनीवसनाच जळ आ ण सकता ॥ कोण या माप मोजूं आतां ॥ काशावया आ द या ॥ द प सरता कवीं होय ॥२६॥ े ध र ीच क न प ॥ कधर क जल जल ध मषीपा ॥ सुर म लेखणी व च ॥ क न लह त कजक या ॥२७॥ ु ु ं तेह तेथ रा हल तट थ ॥ तर आतां कवीं क ं े ंथ ॥ जर तूं मनीं ध रसी यथाथ ॥ तर काय एक न होय ॥२८॥ तीयेचा कशोर इंद ु ॥ यासी जीणदशी वाहती द नबंधु ॥ तैसे तझे गुण क णा संधु ॥ वण तस अ पमती ॥२९॥ ु स यवती दयर मराळ ॥ भेद त गेला तव गण नराळ ॥ अंत नकळे च समळ ॥ तोह तट थ रा हला ॥३०॥ ु ू तेथ मी मंदम त कं कर ॥ कवीं े मूं शक मह मांबर ॥ पर आ मसाथक करावया साचार ॥ तव गुणाणवीं मीन झाल ॥३१॥ ऐसे श द ऐकतां साचार ॥ तोषला दा ायणीवर ॥ हणे शव ललामत ृ ंथ प रकर ॥ आरं भी रस भर न मी ॥३२॥ जैसा घ न शशूचा हात ॥ अ र लहवी पं डत ॥ तैसे तव मुख मम गुण सम त ॥ सुरस अ यंत बोलवीन मी ॥ ३३॥ ोतीं हाव सावध च ॥ क पराणीं बो लला ं ु ीशुकतात ॥ अगाध शवल लामत ृ ंथ ॥ ो रखंड ज ॥३४॥ नै मषार यीं शौनका दक समती ॥ सता त ु ू क रती ॥ तंू चदाकाशींचा रो हणीप त ॥ कर ं त ृ वणचकोरां ॥३५॥ तवां बहुत पुराण सुरस ॥ ु ी व णल ला व ण या वशेष ॥ अगाध म हमा आसपास ॥ दशावतार व णले ॥३६॥ ु भारत रामायण भागवत ॥ ऐकतां वण झाले त ृ ॥ पर शवल लामत अ त ॥ ृ ु वण ार ाशन क ं ॥३७॥ यावर वेद यास श य सूत ॥ हणे ऐका आतां दे ऊ न च ॥ शवच र परमा त ॥ ु वण पातकपवत जळती ॥३८॥ आयरारो य ऐ य अपार ॥ संत त संप ु ान वचार ॥ वणमा दे णार ॥ ीशंकर नजांगे ॥३९॥ सकळ तीथ तांचे फळ ॥ महामखांचे ेय कवळ ॥ दे णार शवच र े नमळ ॥ वण क लमल नासती ॥४०॥ सकल य ामाजी जपय थोर ॥ हणाल जपावा कोणता मं ॥ तर मं राज शवषड र ॥ बीजस हत जपावा ॥४१॥ दजा मं ु शवपंचा र ॥ दोह ंचे फळ एक च साचार ॥ उतरती संसाराणवपार ॥ ा दसुरऋषी हा च जपती ॥४२॥ दा र द:ख भय शोक ॥ काम ु ोध ं पातक ॥ इतु यांसह संहारक ॥ शवतारक मं जो ॥४३॥ तु ीपु ीध ृ तकारण ॥ मु न नजरांसी हा च क याण ॥ कता मं राज संपुण ॥ अगाध म हमा न वणवे ॥४४॥ नव हांत वासरम ण थोर ॥ तैसा मं ात शवपंचा र ॥ कमलो व कमलावर ॥ अहोरा हा च जपती ॥४५॥ शा ांमाजी वेदांत ॥ तीथामाजी याग अ त ॥ महा मशान ु े ांत ॥ मं राज तैसा हा ॥४६॥ शा ांमाजी पाशुपत ॥ दे वांमाजी कलासनाथ ॥ कनकादे जैसा पवतांत ॥ मं पंचा र तेवीं हा ॥४७॥ ै कवळ परमत व च मा ॥ पर े ह च तारक मं ॥ तीथ तांचे संभार ॥ ओवाळू न टाकावे ॥४८॥ हा मं आ म ा ाची खाणी ॥ कव यमाग चा काशतरणी ॥ अ व ाकाननदाहक ै ा नी ॥ सनका दक ा न हा च जपती ॥४९॥ ी शू आ दक नी ॥ हा च जप मु य चहूं वण ॥ गह थ ृ चार आ दक नी ॥ दवसरजनीं जपावा ॥५०॥ जा ुतीं व नी येतां जातां ॥ उभ असतां न ा क रतां ॥ काया जातां बोलतां भांडता ॥ सवदाह जपावा ॥५१॥
  • 4. शवमं व नपंचानन ॥ कण आक णतां दोषावारण ॥ उभे च सांडती ाण ॥ न लागतां ण भ म होती ॥५२॥ यास मातका व ध आसन ॥ न लागे जपावा ीतीक न ॥ शव शव उ चा रतां पूण ॥ शंकर येऊ न पुढ उभा ॥५३॥ ृ अखंड जपती जे हा मं ॥ यांसी नजांगे र ी ने ॥ आपु या अंगाची साउल कर पंचच ॥ अहोरा र ी तयां ॥५४॥ मं जपकांलागनी ॥ शव हणे मी तमचा ऋणी ॥ पर तो मं गु मुखक नी ॥ घेइंजे आधीं वधीने ॥५५॥ ु ु गु करावा मु यवण ॥ भ वैरा य द य ान ॥ सव उदार दयाळू पूण ॥ या च हे क न मं डत जो ॥५६॥ मतभाषणी शांत दांत ॥ अंगी अमा न व अदं भ व ॥ अ हंसक अ त व र ॥ तो च गु करावा ॥५७॥ वणानां ा णो गु : ॥ ह ं वेदवचन नधा ॥ हा यापासो न मं ो चा ॥ क न यावा ीतीन ॥५८॥ जर आपणासी ठाउका मं ॥ तर गु मुख यावा नधार ॥ उगा च जपे तो अ वचार ॥ तर न फळ जा णजे ॥५९॥ काम ोधमदयु ॥ जे कां ाणी गु वर हत ॥ यानी ान क थल बहुत ॥ पर यांचे मुख न पहाव ॥६०॥ वेदशा ं शोधन ॥ जर झाल अपरो ू ान ॥ कर संतांशीं चचा पूण ॥ तर गु वण तरे ना ॥६१॥ एक हणती व नी आ हांते ॥ मं सां गतला भगवंत ॥ आदर सांगे लोकांते ॥ पर तो गु वण तरे ना ॥६२॥ य येऊ नयां दे व सां गतला जर गु भाव ॥ तर तो न तरे च वयमेव ॥ गु सी शरण न रघतां ॥६३॥ मौजीबंधना वण गाय ीमं ॥ जपे तो अप व ॥ वरा वण वहाडी सम ॥ काय यथ मळोनी ॥६४॥ तो वाचक झाला बहुवस ॥ पर याचे न चकती गभवास ॥ हणो न सां दाययु ु गु स ॥ शरण जाव नधारे ॥६५॥ जर गु कला भलता एक ॥ पर पूवसं दाय नसे ठाऊक ॥ जैसे गभाधासी स यम ॥ वण य े व प न कळे च ॥६६॥ असो या मं ाचे पर रण ॥ उ म ु े ी कराव पण ॥ काशी क ू ु े नै मषार य ॥ गोकण े आ दक न ॥६७॥ शव व णु े सगम ॥ प व ु थळीं जपावा स ेम ॥ तर ये च वषयीं पुरातन उ म ॥ कथा सांगेन ते ऐका ॥६८॥ वणी पठणीं नज यास ॥ आदर धरावा दवस दवस ॥ आनमोदन दे ता कथेस ॥ सव पापास ु य होय ॥६९॥ वण मनन नज यास ॥ ध रतां सा ा कार होय सरस ॥ न माग न तामस ॥ पावन सव होती ॥७०॥ तर मथरानाम नगर ॥ यादवंशी परमप व ॥ दाशाहनाम राज ॥ अ त उदार सुल णी ॥७१॥ ु सव राजे दे ती करभार ॥ कर जोडो न न मती वारं वार ॥ यां या मगटर ा करण साचार ॥ पद याचीं उजळल ं ॥७२॥ ु ु मगुटघषणक नी ॥ करण पडल ं दसती चरणीं ॥ जेण स ावसन पस नी ॥ पाला णल क भनी हे ॥७३॥ ु ंु उभा रला यशो वज ॥ जेवीं शर काळींचा जराज ॥ सकल जा आ ण ज ॥ चं तती क याण जयाच ॥७४॥ जैसा शु द तीयेचा हमांश ॥ तेवीं ऐ य चढे वशेष ॥ जो दबुि द दासीस ॥ पश न कर काल यीं ॥७५॥ ु स दि दधमप ीसीं रत ॥ व पाशीं तु ळजे रमानाथ ॥ दानश ु सम त ॥ याचकांचे दा र य नव टल ॥७६॥ भभजांवर जामद य ॥ समरांगणी जेवीं ळया न ॥ ठाण न चळे रणींहून ॥ कठारघाय भू ह जैसा ॥७७॥ ृ ु ु चतदश व ा चौस ी कळा ॥ आकळी जेवीं करतळींचा आंवळा ॥ जेण दानमेघ नव टला ॥ दा र धुरोळा याचकांचा ॥७८॥ ु
  • 5. बोलण अ त मधर ॥ मेघ गज जेवीं गंभीर ॥ जाजनांचे च मयर ॥ नृ य क रती वानंदे ॥७९॥ ु ू याचा सेमा संधु दे खो न अ ुत ॥ जल संधु होय भयभीत ॥ न ळ अंबार ंचा ुव स य ॥ वचन तेवीं न चळे च ॥८०॥ याची कांता पवती सती ॥ काशीराजकमार नाम कलावती ॥ िजच व प वण सर वती ॥ व वदनक नयां ॥८१॥ ु जे लाव यसागर ंची लहर ॥ खंजना ी बंबाधर ॥ मदभा षणी पक वर ॥ हं सगमना ह रम या ॥८२॥ ृ ु श शवदना भुजंगवेणी ॥ अलंकारां शोभा िजची तनु आणी ॥ दशन झळकती जेवीं हरे खाणी ॥ बोलतां सदनी काश पड ॥८३॥ सकलकला नपण ॥ यालागी कलावती नाम पण ॥ ज सौदयवैरागर ंचे र ु ू ॥ जे नधान चातयभमीच ॥८४॥ ु ू आंगीचा सुवास न माये सदनांत ॥ िजच मुखा ज दे खतां नपनाथ ॥ ने म लंद ं जी घाल त ॥ धणी पाहतां न पुरे च ॥८५॥ ृ नतन आ णल पणन ॥ मन सज आक षले रायाच मन ॥ बोलावूं पाठ वल ीतीक न ॥ पर ते न ये च ा थतां ॥८६॥ ू ू व प ंुगारजाळ पस न ॥ आक षला नुपमानसमीन ॥ यालागीं दशाहराजा उठोन ॥ आपण च गेला तजपाशीं ॥८७॥ हणे ुंगारव ल शुभांगी ॥ मम तनुव ृ ासी आ लंगीं ॥ उ म पु फळ सवसी जगीं ॥ अ यानंदे सवादे खतां ॥८८॥ तंव ते ंगारसरोवरमराळीं ॥बोले सहा यवदना वे हाळी ॥ हणे यां उपा सला श शमौळी ॥ सवकाळ त थ अस ॥८९॥ ु ु जे ी रो ग अ यंत ॥ ग भणी कं वा ऋतु नात ॥ अभु अथवा त थ ॥ व ृ द अश न भोगावी ॥९०॥ ीपु ष हषयु ं ॥ असावीं त ण पवंत ॥ अ भोगक न यु ॥ चंता त नसावीं ॥९१॥ पवकाळ त दन नरसन ॥ उ मकाळी ष स अ न भ ून ॥ मग ललना भोगावी ीतीक न ॥ राजल ण स य हे ॥९२॥ ू राव काममद म चंड ॥ र तभर पसरो न दोदड ॥ अ लंगन दे तां बळ चंड ॥ शर र याचे पोळले ॥९३॥ लोहागला त अ यंत ॥ तैसी कलावतीची तनू पोळत ॥ नप वेगळा होऊ न पसत ॥ कसा व ृ ांत सांग हा ॥९४॥ ृ ु ै ंगरसदना वला सनी ॥ मम दयानंदव धनी ॥ सकळ संशय टाकनी ॥ मुळींहूनी गो ी सांग ॥९५॥ ृ ु हणे हे राजच मुकटावतंस ॥ ु ोध भर नेद ं मानस ॥ माझा गु वामी दवास ॥ अनसुया मज महाराज ॥९६॥ ु या गु ने परम प व ॥ मज द धला शवपंचा र मं ॥ तो जपतां अहोरा ॥ परमपावन पनीत मी ॥९७॥ ु ममांग शीतळ अ यंत ॥ तव कलेवर पापसंयु ॥ अग यागमन कल वचारर हत ॥ अभ य ततुक भ े ल ॥९८॥ मज ीगु दयक न ॥ राज ा आह काळ ान ॥ तज जप तप शवाचन ॥ घडल नाह ं सवथा ॥९९॥ ु घडल नाह ं गु सेवन ॥ पुढ रा यांतीं नरक दा ण ॥ ऐकतां राव अनतापक न ॥ स दत जाहला ॥१००॥ ु हणे कलावती गुणगंभीरे ॥ तो शवमं मज दे ई आदर ॥ याचे न जप सव ं ॥ मह पाप भ म होती ॥१॥ ती हणे हे भभुज ॥ मज सांगावया नाह ं अ धकार ॥ मी व लभा तंू ाणे र ॥ गु ृ नधार तूं माझा ॥२॥ तर यादवकळीं गु व स ॥ गगमु न महाजाज ु े ॥ जो ा नयांमाजी द यमुकट ॥ व ा व र तयाची ॥३॥ ु जैसे व र वामदे व ानी ॥ तैसाच महाराज गगमनी ॥ यासी नप े ा शरण जाऊनी ॥ शवद ु ृ ा घेइंजे ॥४॥ मग कलावतीस हत भूपाळ ॥ गगा मीं पातला त काळ ॥ सा ांग नमू न करकमळ ॥ जोडू न उभा ठाकला ॥५॥
  • 6. अ भाव दाटू न दयीं ॥ हणे शवद ा मज दे ई ॥ हणू न पढती लागे पायीं ॥ मती नाह भावाथा ॥६॥ ु यावर तो गगमनी ॥ कृतांतभ गनीतीरा येऊनी ॥ पु यव ृ ातळी बैसोनी ॥ नान करवी यमनेच ॥७॥ ु ु उभयतांनी क न नान ॥ यथासांग कल शवपूजन ॥ यावर द य र े आणून ॥ अ भषेक कला गु सी ॥८॥ े द याभरण द य व ॥ गु पुिजला नपे आदर ॥ गु द ृ णेसी भांडारे ॥ दाशाहराय सम पल ॥९॥ तनमनधनसी उदार ॥ गगचरणीं लागे नपवर ॥ असो न गु सी वं चती जे पामर ॥ ते दा ण नरय भो गती ॥११०॥ ु ृ ीगु चे घर ं आपदा ॥ आपण भोगी सव संपदा ॥ कच ै ान या म तमंदा ॥ गु ानंदा न भजे जो ॥११॥ एक हणती तनमनधन ॥ ना शवंत गु सी काय अपन ॥ परम चांडाळ याच शठ ान ॥ कदा वदन न पाहाव ॥१२॥ ु ू धक् व ा धक् ान ॥ धक् वैरा यसाधन ॥ चतवद शा ु आला पढून ॥ धक् पठण तयाच ॥१३॥ जैसा खरप ृ ईवर चंदन ॥ ष सीं दव यथ फ न ॥ जेवीं माप तंदल मोजन ॥ इकडून तकडे तकडे टा कती ॥१४॥ ु ू घाणा इ ुरस गाळी ॥ इतर से वती रसन हाळी ॥ क ं पा ांत शकरा सांठ वल ॥ पर गोडी न कळे तया ॥१५॥ असो ते अभा वक खळ ॥ तैसा न हे तो दाशाहनपाळ ॥ षोडशोपचार नमळ ॥ पूजन कल गु च ॥१६॥ ृ े उभा ठाकला कर जोडून ॥ मग तो गग दयी ध न ॥ म तक ं ह त ठे वन ॥ शवषड र मं सांगे ॥१७॥ ू दयाआकाशभुवनीं ॥ उगवला नजबोधतरणी ॥ अ ानतम तेच णी ॥ नरसू न नवल जाहल ॥१८॥ अ त मं ाच म हमान ॥ राया चया शर रामधन ॥ को यव ध काक नघोन ॥ पळते झाले तेधवां ॥१९॥ ु ू कती एकांचे प जळाले ॥ चरफ डत च बाहे र आले ॥ अवघे च भ म होऊ न गेले ॥ सं या नाह ं तयांते ॥१२०॥ जैसा कं चत ् पडतां कृशान ॥ द ध होय कटकवन ॥ तैसे काक गेले जळोन ॥ दे खो न राव नवल कर ॥२१॥ ं गु सी नमू न पुसे नप ॥ काक कचे नघाले अमूप ॥ माझ झाल द य ृ प ॥ नजराहू न आगळं ॥२२॥ गु हणे ऐक सा ेप ॥ अनंत ज मींची महापापे ॥ बाहे र नघाल ं काका प ॥ शवमं तापे भ म झाल ॥२३॥ न पाप झाला नपवर ॥ गु ृ तवन कर वारं वार ॥ ध य पंचा र मं ॥ तंू ध य गु पंचा र ॥२४॥ पंचभुतांची झाडणी क न ॥ सावध कल मजलागन ॥ चार दे ह नरसन ॥ कले पावन गु राया ॥२५॥ े ू ू े पंचवीस त वांचा मेळ ॥ यांत सांपडल बहुत काळ ॥ ोध म हषासर सबळ ॥ कामवेताळ धसधसी ॥२६॥ ु ु ु आशा मनशा त ृ णा क पना ॥ ां त भुल इ छा वासना ॥ या ज खणी य णी नाना ॥ वटं बीत मज हो या ॥२७॥ ऐसा हा अवघा मायामेळ ॥ तवां नरसला ता काळ ॥ ध य पंचा र मं ु नमळ ॥ गु दयाळ ध य तंू ॥२८॥ सह ज मपयत ॥ मज ान झाल सम त ॥ पाप जळाल असं यात ॥ काक पे दे खल ं यां ॥२९॥ सुवण तेय अभ यभ क ॥ सुरापान गु त पक ॥ परदारागमन गु नंदक ॥ ऐसीं नाना मह पाप ॥१३०॥ गोह या ह या धमलोपक ॥ ीह या गु ह या छळक ॥ पर नंदा पशु हंसक ॥ व ृ हारक अग य ीगमन ॥३१॥ म ोह गु ोह ॥ व दोह वेद ोह ॥ ासादभेद लंगभेद पाह ं ॥ पं भेद ह रहरभेद ॥३२॥
  • 7. ानचोर पु तकचोर प घातक ॥ पाखांडम त म यावादक ॥ भेदबि द ु माग थापक ॥ ीलंपटदराचार ॥३३॥ ु कृत न पर यापहारक ॥ कम तीथम हमाउ छे दक ॥ बक यानी गु छळक ॥ मातहतक पतह या ॥३४॥ ृ ृ दबलघातुक कममाग न ॥ द नह यार पाहती पैशू य ॥ तणदाहक पी डती स जन ॥ गो वध भ गनीवध ॥३५॥ ु ृ क या व य गो व य ॥ हय व य रस व य ॥ ामदाहक आ मह या पाह ॥ णह य महापाप ॥३६॥ ू ह ं महापाप सां गतल ं ु पाप नाह ं ग णल ं ॥ इतक ं काक प नघाल ं ॥ भ म झाल ं ु य ॥३७॥ कांह गांठ पु य होत परम ॥ हणो न नरदे ह पावल उ म ॥ गु ताप तरल न:सीम ॥ काय म हमा बोलू आतां ॥३८॥ गु तवन क न अपार ॥ ामासी आला दाशाह नपवर ॥ सव कलावती परमचतुर ॥ कला उ दार रायाचा ॥३९॥ ृ े जपतां शवमं नमळ ॥ रा य वधमान झाल सकळ ॥ अवषणदोष द ु काळ ॥ दे शांतू न पळाले ॥१४०॥ वैध य आ ण रोग मृ य ॥ नाह ंच कोठ दे शांत ॥ अ लं गतां कलावतीसी नपनाथ ॥ शशीऐसी शीतल वाटे ॥४१॥ ृ शव भजनीं ला वले सकळ जन ॥ घरोघर ं होत शवक तन ॥ ा भषेक शवपूजन ॥ ा णभोजन यथा व ध ॥४२॥ दाशाहरायाच आ यान ॥ जे ल हती ऐकती क रती पठण ॥ ीतीक न ंथर ण ॥ अनमोदन दे ती जे ॥४३॥ ु सुफळ यांचा संसार ॥ यांसी नजांगे र ी ीशंकर ॥ ध य ध य ते च नर ॥ शवम हमा व णती जे ॥४४॥ पुढ कथा सुरस सार ॥ अमअताहू न र सक फार ॥ ऐकोत पं डत चतर ॥ गु भ ृ ु े मळ ानी जे ॥४५॥ पूण ानंद शूळपाणी ॥ ीधरमुख न म क नी ॥ तो च बोलवीत वचारोनी ॥ पहाव मनीं नधार ॥४६॥ ीधरवरद पांडुरं ग ॥ तेण शर ध रल शव लंग ॥ पूण ानंद अभंग ॥ न हे वरं ग काल यी ॥४७॥ शवल लामत ृ ंथ चंड ॥ कदपराण ं ु ो रखंड ॥ प रसोत स जन अखंड ॥ थमो याय गोड हा ॥१४८॥ इ त ी थमो याय: समा : ॥ ॥ ीसांबसदा शवापणम तु ॥
  • 8. ी शवल लामत – अ याय दसरा ृ ु अ याय दसरा ु ीगणेशाय नमः॥ जेथ सवदा शव मरण ॥ तेथ भु मु सवक याण ॥ नाना संकट व न दा ण ॥ न बाधती काल यी ॥१॥ संकत अथवा हा यक न ॥ भल या मस घडो शव मरण ॥ न कळतां प रसासी लोह जाण ॥ संघटतां सुवण कर क ं ॥२॥ े न कळतां ा शल अमत ॥ पर अमर कर क ं यथाथ ॥ औषधी नेणतां भ ृ त ॥ पर रोग स य हर क ं ॥३॥ शु कतणपवत अ ुत ॥ नेणतां बाळक अक मात ॥ अि न फ लंग टाक त ॥ पर भ म यथाथ कर क ं ॥४॥ ृ ु तैसे न कळतां घडे शव मरण ॥ पर सकळ दोषां होय दहन ॥ अथवा वनोदक न ॥ शव मरण घडो कां ॥५॥ हे कां यथ हांका फो डती ॥ शव शव नाम आरडती ॥ अरे कां हे उगे न राहती ॥ हरहर गजती वेळोवेळां ॥६॥ शवनामाचा क रती को हाळ ॥ माझ उठ वल कपाळ ॥ शव शव हणतां वेळोवेळ ॥ काय येत यां या हाता ॥७॥ ऐसी हे ळणा कर ण णीं ॥ पर उमाव लभनाम ये वदनीं ॥ पु क यानामक नी ॥ शव मरण घडो कां ॥८॥ महा ीतीन क रतां शव मरण ॥ आदर क रतां शव यान ॥ शव व प माननी ा ण ॥ संतपण कर सदां ॥९॥ ू ऐसी शवीं आवडी धर ॥ याह माजी आल शवरा ी ॥ उपवास जागरण कर ॥ होय बोहर मह पापा ॥१०॥ ते दवशीं ब वदळ घेऊन ॥ यथासांग घडल शवाचन ॥ तर सह ज मींचे पाप संपण ॥ भ म होऊन जाईल ॥११॥ ू न य ब वदळ शवासी वाहत ॥ याएवढा नाह ं पु यवंत ॥ तो तरे ल ह नवल न हे स य ॥ या या दशन बहुत तरती ॥१२॥ ातःकाळी घेतां शवदशन ॥ या मनीच पाप जाय जळोन ॥ पूवज मींच दोष गहन ॥ मा या ह ं दशन घेतां नरती ॥१३॥ ु सायंकाळीं शव पाहतां स ेम ॥ स ज मींच पाप होय भ म ॥ शवरा ीचा म हमा परम ॥ शेषह वणू शकना ॥१४॥ े क पलाष ी अध दय सं मण ॥ महोदय गज छाया हण ॥ इतुकह पवकाळ ओंवाळून ॥ शवरा ीव न टाकाव ॥१५॥ े शवरा ी आधीं च पु य दवस ॥ याह वर पूजन जागरण वशेष ॥ काळपूजा आ ण घोष ॥ या या पु यासी पार नाह ं ॥१६॥ वस व ा म ा द मनी र ॥ सुरगण गंधव क नर ॥ स चारण व ाधर ॥ शवरा ु त क रताती ॥१७॥ यदथ सरस कथा बहुत ॥ शौनका दकां सांगे सत ॥ ती ोतीं ऐकावी साव च ॥ अ यादरक नयां ॥१८॥ ु ू तर मासांमाजी माघमास ॥ याचा यास म हमा वण वशेष ॥ याह माजी कृ णचतदशीस ॥ मु य शवरा ु जा णजे ॥१९॥ वं या वासी एक याध ॥ मगप ृ घातक परम न ष द ॥ महा नदय हंसक नषाद ॥ कले अपराध बहु तेण ॥२०॥ े धनु यबाण घेऊ न कर ं ॥ पारधीसी चा लला दराचार ॥ पाश वागरा क ेसी धर ॥ कवच लेत ह रतवण ॥२१॥ ु ु कर ं गोधांगु ल ाण ॥ आ णकह हातीं श सामु ी घेऊन ॥ काननीं जातां शव थान ॥ शोभायमान दे खल ॥२२॥ तंव तो शवरा ीचा दन ॥ या ा आल चहुंकडून ॥ शवमं दर ुंगा न ॥ शोभा आ णल कलासींची ॥२३॥ ै
  • 9. शु रजततगटवण ॥ दे वालय झळक शोभायमान ॥ गगनचंु बत वज पण ॥ र ज डत कळस तळपताती ॥२४॥ े ू म य म णमय शव लंग ॥ भ पूजा क रती सांग ॥ अ भषेकधारा अभंग ॥ व ध रती घोष ॥२५॥ एक टाळ मदंग घेऊन ॥ स ेम क रती शवक तन ॥ ोते करटाळी वाजवन ॥ हरहरश द घोष क रती ॥२६॥ ृ ू नाना प रमळ यसवास ॥ तेण दश दशा दमद ु म या वशेष ॥ ल ु ु द पांचे काश ॥ जलजघोष घंटारव ॥२७॥ श शमुखा गजती भेर ॥ यांचा नाद न माये अंबर ॥ एवं चतु वध वा नानापर ॥ भ वाज वती आनंदे ॥२८॥ तो तेथ याध पातला ॥ समोर वलोक सव सोहळा ॥ एक महूत उभा ठाकला ॥ हांसत बो लला वनोदे ॥२९॥ ु हे मख अवघे जन ॥ येथ ू य काय यथ नासोन ॥ आंत दगड बाहे र पाषाण ॥ दे वपण येथ कच ॥३०॥ ै उ म अ न सांडून ॥ यथ कां क रती उपोषण ॥ ऐ सया चे ा कर त तेथून ॥ कानना ती जातसे ॥३१॥ लोक नाम गजती वारं वार ॥ आपण ह वनोद हणे शव हर हर ॥ सहज स य घालू न शवमं दर ॥ घोर कांतार वेशला ॥३२॥ वाचेसी लागला तो च वेध ॥ वनोद बोले शव शव श द ॥ नाम ताप दोष अगाध ॥ झडत सव चा लले ॥३३॥ घोरांदर से वतां वन ॥ नाढळतीच जीव लघुदा ण ॥ त व ण द वधच सदन ॥ वासरम ण वेशला ॥३४॥ ू नशा वतल सबळ ॥ क ं ांडकरं डा भरल काजळ ॥ क ं वशाळ कृ णकबळ ॥ मंडप काय उभा रला ॥३५॥ ं वगतधवा जेवीं का मनी ॥ तेवीं न शोभे कदा या मनी ॥ जर मं डत दसे उडुगणीं ॥ पर प तह न रजनी ते ॥३६॥ जैसा पं डत गे लया सभतन ॥ मख ज पती पाखंड ान ॥ जेवीं अ ता जातां सह ू ू करण ॥ उडुगण माग झळकती ॥३७॥ असो ऐसी नशा दाटल सुब ॥ अवघा वेळ उपवासी नषाद ॥ त एक सरोवर अगाध ॥ ीं दे खल शो धतां ॥३८॥ अनेक संप ी सभा यसदनीं ॥ तेवीं सरोवर शोभती कमु दनी ॥ तट ं ब वव ृ गगनीं ॥ शोभायमान पसरला ॥३९॥ ु योग कमभमीसी पावती जनन ॥ तेवीं ब वडहा ळया गगनींहून ॥ भमीस लाग या येऊन ॥ माजी र वश श करण न दसे ॥४०॥ ू ू यांत तम दाटल दा ण ॥ माजी बैस या याध जाऊन ॥ शरासनीं शर लावन ॥ कानाडी ओढोन सावज ल ी ॥४१॥ ू ीं ब वदळ दाटल ं बहुत ॥ तीं द णह त खडो न टाक त ॥ तो तेथ प जह त था पत ॥ शव लंग द य होत ॥४२॥ ु यावर ब वदळ पडत ॥ तेण संतोषला अपणानाथ ॥ याधासी उपवास जागरण घडत ॥ सायास न क रतां अनायास ॥४३॥ वाचेसी शवनामाचा चाळा ॥ हर हर हणे वेळोवेळां ॥ पाप य होत चा लला ॥ पूजन मरण सव घडल ॥४४॥ एक याम झा लया रजनी ॥ त जलपानालागीं एक ह रणी ॥ आल तेथ ते ग भणी ॥ परम सकमार तेज वी ॥४५॥ ु ु याध तण ल ला द ु न ॥ कृतांतवत परम दा ण ॥ आकण ओ ढला बाण ॥ दे खो न ह रणी बोलतसे ॥४६॥ हणे महापु षा अ याया वण ॥ कां मजवर ला वला बाण ॥ मी तव ह रणी आहे ग भण ॥ वध तुवां न करावा ॥४७॥ उदरांत गभ सू म अ ान ॥ व धतां दोष तज दा ण ॥ एक रथभर जीव व धतां सान ॥ तर एक ब त व धयेला ॥४८॥ ु शत ब त व धतां एक ॥ वषभह येच पातक ॥ शत वषभ त गोह या दे ख ॥ घडल शा ृ ृ वदतसे ॥४९॥
  • 10. शत गोह येच पातक पण ॥ एक व घतां होय ा ण ॥ शत ू ह येच पातक जाण ॥ एक ी व ध लया ॥५०॥ शत ि यांहू न अ धक ॥ एक गु ह येच पातक ॥ याहू न शतगणी दे ख ॥ एक ग भणी व ध लया ॥५१॥ ु तर अ याय नसतां ये अवसर ं ॥ मज मा रसी कां वनांतर ॥ याध हणे कटुंब घर ॥ उपवासी वाट पहात ॥५२॥ ु मीह आिज नराहार ॥ अ न नाह ंच अणमा ॥ पर मगी होऊ न संदर ॥ गो ी व सी शा ीं या ॥५३॥ ु ृ ु मज आ य वाटत पोट ं ॥ नराऐशा सांगसी गो ी ॥ तुज दे खो नयां ीं ॥ दया दयीं उपजतसे ॥५४॥ पूव तंु होतीस कोण ॥ तुज एवढ ान कोठून ॥ तूं वशाळने ी प लाव य ॥ सव वतमान मज सांगे ॥५५॥ मगी हणे ते अवसर ं ॥ पव मंथन क रतां ृ ू ीरसागर ं ॥ चतदश र े का ढल ं सरासर ं ॥ महा य क नयां ॥५६॥ ु ु ु यांमाजी मी रं भा चतुर ॥ मज दे खो न भुलती सुरवर ॥ नाना तप आचरो न अपार ॥ तप वी पावती आ हांत ॥५७॥ यां नयनकटा जाळ पस न ॥ बां धले नजरांच मनमीन ॥ मा झया अंगसवासा वेधन ॥ मु न मर धांवती ॥५८॥ ु ू माझे गायन ऐकावया सरंग ॥ सधापानीं धांवती करं ग ॥ मी भोगीं वग चे द य भोग ॥ व प न मानी कोणासी ॥५९॥ ु ु ु मद अंगी चढला बहुत ॥ शवभजन टा कल सम त ॥ शवरा ी सोमवार दोष त ॥ शवाचन सां डल यां ॥६०॥ सोडो नयां सधापान ॥ क ं लागल म ु ाशन ॥ हर यनामा दै य दा ण ॥ सुर सोडो न रतले यांसी ॥६१॥ ऐसा लोटला काळ अपार ॥ मगयेसी गेला तो असर ॥ या द ु ासंगे अपणावर ॥ भजनपूजन वसरल ॥६२॥ ृ ु मनासी ऐस वाटल पूण ॥ असुर गेला मगयेलागन ॥ इतु यांत याव शवदशन ॥ हणो न गेल कलासा ॥६३॥ ृ ू ै मज दे खतां हमनगजामात ॥ परम ोभो न शाप दे त ॥ तूं परम पा पणी यथाथ ॥ मगी होई मृ यलोक ं ॥६४॥ ृ ु तु या स या दोघीजणी॥ या होतील तजसवं ह रणी ॥ हर य असर मा झये भजनीं ॥ असावध सवदा ॥६५॥ ु ु तोह मग होऊ न स य ॥ तु हांसीं च होईल रत ॥ ऐक याधा साव च ॥ मग यां शव ा थला ॥६६॥ ृ हे पंचवदना व पा ा ॥ सि चदानंदा कमाध ां॥ द मखदळणा सवासा ा ॥ उ:शाप दे आ हांत ॥६७॥ भोळा च वत दयाळ ॥ उःशाप वदला पयःफनधवल ॥ ादश वष भरतां ता काळ ॥ पावाल मा झया पदात ॥६८॥ े मग आ ह ं मगयोनी ॥ ज मल ये कमअवनीं ॥ मी ग भणी आह ह रणी ॥ सूतकाळ समीप असे ॥६९॥ ृ तर मी आपु या व थळा जाऊन ॥ स वर येत गभ ठे वन ॥ मग तूं सुख घेई ाण ॥ स य वचन ह माझ ॥७०॥ ू ऐसी मगी बो लल साव च ॥ यावर तो याध काय बोलत ॥ तूं गोड बोलसी यथाथ ॥ पर व ास मज न वाटे ॥७१॥ ृ नानापर अस य बोलोन ॥ कराव शर राच संर ण ॥ ह ाणीमा ासी आहे ान ॥ तर तंू शपथ वद आतां ॥७२॥ मह पाप उ चा न ॥ शपथ वद यथाथ पूण ॥ यावर ते ह रणी द नवदन ॥ वाहत आण ऐका ते ॥७३॥ ा णकळीं उपजोन ॥ जो न कर वेदशा ु ययन ॥ स यशौचविजत सं याह न ॥ माझे शर ं पातक त ॥७४॥ एक वेद व य कर ती पूण ॥ कृत न परपीडक नावडे भजन ॥ एक दानासी क रती व न ॥ गु नंदा वण एक क रती ॥७५॥
  • 11. रमावराउमावरांची नंदा ॥ या पापाची मज होय आपदा ॥ दान दधल ज वंदा ॥ हरोनी घेती माघार ॥७६॥ ृ एक य त नंदा क रती ॥ एक शा पहाती ै त न मती ॥ नाना माग आचरती ॥ वधम आपुला सांडो नयां ॥७७॥ दे वायला माजी जाऊनी ॥ ह रकथापुराण वणीं ॥ जे बैसती वडा घेउनी ॥ ते कोडी होती पा पये ॥७८॥ जे दे वळांत क रती ीसंभोग ॥ क ं ी तारांसी क रती वयोग ॥ ते नपंसक होऊ न अभा य ॥ उपजती या ज मीं ॥७९॥ ु वमकम नंदा कर त ॥ तो जगपुर षभ क काग होत ॥ श यांसी व ा असो न न सांगत ॥ तो पंगळा होत नधार ॥८०॥ अनु चत त ह ा ण घेती ॥ या न म गंडमाळा होती ॥ पर े ीं या गाई वळू न आ णती ॥ ते अ पायषी होती या ज मीं ॥८१॥ ु जो राजा कर जापीडण ॥ तो या ज मीं या कां सप होय दा ण ॥ वथा कर साधुछळण ॥ नवश पण होय याचा ॥८२॥ ृ ू ि या तनेम कर त ॥ तारासी अ हे र त ॥ धनधा य असो न वं चत ॥ या वाघुळा होती या ज मीं ॥८३॥ पु ष क प हणो नयां या गती ॥ या या ज मीं बाल वधवा होती ॥ तेथह जारकम क रती ॥ मग या होती वारांगना ॥८४॥ ु या तारासी नभि सती ॥ या दासी कं वा कलटा होती ॥ सेवक वामीचा ोह क रती ॥ ते ज मा येती ु ाना या ॥८५॥ सेवकापासू न सेवा घेऊन ॥ याच न दे जो वेतन ॥ तो अ यंत भकार होऊन ॥ दारोदार हंडतसे ॥८६॥ ीपु ष गुज बोलतां ॥ जो जाऊ न ऐक त वतां ॥ याची े ी दरावे हंडतां ॥ अ न न मळे तयात ॥८७॥ ु जे जारणमारण क रती ॥ ते भत ेत पशाच होती ॥ यती उपवास पी डती ॥ यांते द ु काळ ज मवर ॥८८॥ ू ी रज वला होऊनी ॥ गह ं वावर जे पा पणी ॥ पूवज ृ धर ं पडती पतनीं ॥ या गह दे व पतगण न येती ॥८९॥ ृ ृ जे दे वा या द पांच तोत नेती ॥ ते या ज मीं नपु क होती ॥ या रां धतां अ न चोरोनी भ ती ॥ या माजार होती या ज मीं ॥९०॥ ा णांसी कद न घालन ॥ आपण भ ू ती ष सप वान ॥ यांचे गभ पडती गळोन ॥ आपु लया कमवश ॥९१॥ जो माता प यांसी शणवीत ॥ तो ये ज मी मकट होत ॥ सासु शुरा नुषा गांिजत ॥ तर बाळक न वांचे तयेच ॥९२॥ मगी हणे याधालागन ॥ जर मी न ये परतोन ॥ तर ह ं मह पाप संपूण ॥ मा या माथां बैसोत ॥९३॥ ृ ू हे म या गो होय साचार ॥ तर घडो शवपजेचा अपहार ॥ ऐसी शपथ ऐकतां नधार ॥ याध शंकला मानसी ॥९४॥ ू हणे प त ते जाई आतां ॥ स वर येई नशा सरतां ॥ ह रणी हणे शवपदासी त वतां ॥ पु यवंता जाशील ॥९५॥ उदकपान क न वेगीं ॥ नजा मा गेल करं गी ॥ इकडे या द ु णभाग ॥ टाक ब वदळे खडू नयां ॥९६॥ ु दोन हर झाल या मनी ॥ तीय पजा शव माननी ॥ अधपाप जळाल मळींहुनी ॥ स ज मींच तेधवां ॥९७॥ ू ु ु नामीं आवड जडल पूण ॥ याध कर शव मरण ॥ मगीमुख ऐ कल न पण ॥ सहज जागरण घडल तया ॥९८॥ ृ त दसर ह रणी अक मात ॥ पातल तेथ तषा ांत ॥ याधे बाण ओढ तां व रत ॥ क णा भाक ह रणी ते ॥९९॥ ु ृ हणे याधा ऐक ये समयी ॥ मज कामानळ पीडील पाह ं ॥ पतीसी भोग दे ऊ न लवलाह ॥ परतो न येत स वर ॥१००॥ याध आ य कर मनांत ॥ हणे शपथ बोलो न जाई व रत ॥ ध य तमचे जी व व ॥ सव शा ाथ ठाउका ॥१॥ ु
  • 12. चापी तडाग सरोवर ॥ जो प तत मोडी दे वागार ॥ गु नंदक म पानी दराचार ॥ तीं पाप सम म तक ं मा या ॥२॥ ु महा य आपण हण वत ॥ समरांगणी माग पळत ॥ व ृ हर सीमा लो टत ॥ ंथ नं दत महापु षांचे ॥३॥ वेदशा ांची नंदा कर ॥ संतभ ांसी े ष धर ॥ ह रहर च र अ हे र ॥ माझे शर ं तीं पाप ॥४॥ धनधा य असो न पाह ं ॥ पतीलागीं शणवी हणे नाह ं ॥ प त सांडो न नजे परगह ॥ तीं पापे मा झया माथां ॥५॥ ृ पु नषा स माग वतता ॥ यांसी यथची गािजती जे नं पाहं तां ॥ ते क प होती त वतां ॥ हंडता भ ा न मळे च ॥६॥ ु ु बंधुबंधु जे वैर क रती ॥ ते या ज मीं म य होती ॥ गु च उण जे पाहती ॥ यांची संप द ध होय ॥७॥ जे माग थांचीं व े ह रती ॥ ते अ तशू ेतव पांघरती ॥ आ ह तप वी हणो नया अनाचार क रती ॥ ते घले होती मोकाट ॥८॥ ु दासी वामीची सेवा न कर ॥ ती ये ज मी होय मगर ॥ जो क या व य कर ॥ हंसक योनी नपजे तो ॥९॥ ी ताराची सेवा कर त ॥ तीस जो यथ च गांिजत ॥ याचा गहभंग होत ॥ ज मज मांतर न सटे ॥११०॥ ृ ु ा ण कर रस व य ॥ घेतां दे तां म पी होय ॥ जो वंदा अपमा नताहे ॥ तो होय ृ रा स ॥११॥ एक उपकार कला ॥ जो न नाठवी याला ॥ तो कृत न जंत झाला ॥ पूवकम जा णजे ॥१२॥ े व ा द ं जेवनी ॥ ु ीभोग कर ते दनीं ॥ तो ानसुकरयोनीं ॥ उपजेल न:संशये ॥१३॥ यवहार दहांत बैसोन ॥ खोट सा दे ई गज न ॥ पवज नरक ं पावती पतन ॥ अस य सा ू दे तां च ॥१४॥ दोघी ि या क न ॥ एक चच राखी जो मन ॥ तो गो चड होय जाण ॥ सारमेय शर र ॥१५॥ पूवज मीं क डी उदक ॥ याचा मळमू नरोध दे ख ॥ क रतां साधु नंदा आव यक ॥ स वर दं त भ न होती ॥१६॥ दे वालयीं कर भोजन ॥ तर ये ज मी होय ीण ॥ प ृ वीपंतीची नंदा क रतां जाण ॥ उदर ं मंदाि न होय प ॥१७॥ हणसमयीं कर भोजन ॥ यासी प रोग हो दा ण ॥ परबाळ वक परदे श नेऊन ॥ तर सवागीं क भरे ॥१८॥ ु जी ी कर गभपातन ॥ तीउपजे वं या होऊन ॥ दे वालय टाक पाडोन ॥ तर अंगभंग होय याचा ॥१९॥ अपराधा वण ीसी गांिजताहे ॥ याच ये ज मीं एक अंग जाये ॥ ा णाच अ न ह रती पा पये ॥ यांचा वंश न वाढे कधीं ॥१२०॥ गु संत माता पता ॥ यांसी होय जो नभि सता ॥ तर वाचा जाय त वतां ॥ अडखळे बोलतां णा णां ॥२१॥ जो ा णांसी दं ड भार ॥ यासी या ध तडका लागती शर र ं ॥ जो संतासीं वाद ववाद कर ॥ द घ दं त होती याचे ॥२२॥ दे व ार ंचे त वर ॥ अ था द व ृ साचार ॥ तो डतां पांगळ होय नधार ॥ भ ा न मळे हंडातां ॥२३॥ ु जो सूतका न भ त ॥ याचे उदर ं नाना रोग होत ॥ आपण च प रमळ य भोगी सम त ॥ तर दगधी स य सवागी ॥२४॥ ु ा णाच ऋण न दे तां ॥ तर बाळपणीं मृ यु पावे पता ॥ जलव ृ ा छाया मो डतां ॥ तर एकह थळ न मळे यात ॥२५॥ ा णासी आशा लावन ॥ चाळवी नेद कदा दान ॥ तो ये ज मीं अ न अ न ॥ कर त हंडे घरोघर ं ॥२६॥ ू जो पु ष कर त ॥ आ ण द र याच ल न मो डत ॥ तर ीसी सल राहे पोटांत ॥ वं या नि त संसार ॥२७॥
  • 13. जेणे ा ण बां धले न हून ॥ यासी सांडस तोडी सयनंदन ॥ जो नायक कथा ंथ पावन ॥ ब धर होय ज मोज मी ॥२८॥ ु े जो पीडी माता पतयांस ॥ याचा सवदा होई कायनाश ॥ एकासी भजे नंद सव दे वांस ॥ तर एक च पु होय यासी ॥२९॥ जो चांडाळ गोवध कर ॥ यासी मळे ककश नार ॥ वषभ व धतां नधार ं ॥ शतमूख पु होय यासी ॥१३०॥ ृ उदकतण वण पशु मार त ॥ तर मु या च जा होती सम त ॥ जो प त तेसी भोगंू इि छत ॥ तर क प नार ककशा मळे ॥३१॥ ृ ु जो पारधी बहु जीव संहार ॥ तो फपरा होय संसार ॥ गु चा याग जो चांडाळ कर ॥ तो उपजतां च मृ यु पावे ॥३२॥ न य अथवा र ववर ं मुते रवीसमोर ॥ याचे बाळपणीं दं त भ न कश शु ॥ जे मत बाळासाठ ं दती नधार॥ यांस हांसता नपु क होय े ृ ॥३३॥ ह रणी हणे याधालागन ॥ मी स वर येत पतीसी भोग दे ऊन ॥ न य तर ह ं पाप संपण ॥ मा या माथां बैसोत प ॥३४॥ ू ू याध मनांत शंकोन ॥ हणे ध य ध य तमच ु ान ॥ स वर येई गहासी जाऊन ॥ स य संपूण सांभाळी ॥३५॥ ृ जलपान क न वेगीं ॥ आ म गेल ते करं गी ॥ त मगराज ते च संगीं ॥ जलपानाथ पातला ॥३६॥ ु ृ याध ओ ढला बाण ॥ त मग बोले द नवदन ॥ हणे मा या ि या प त ता सगण ॥ यांसी पसोन येत मी ॥३७॥ ृ ु ु शपथ ऐक व रत ॥ क तन क रती ेमळ भ ॥ तो कथारं ग मो डतां नवश होत ॥ त पाप स य मम माथां ॥३८॥ कम वेदो ॥ शु नजांगे आचरत ॥ तो अधम नरक ं पडत ॥ परधम आचरतां ॥३९॥ तीथया ेसी व न कर ॥ वाटपाडी व य हर ॥ तर सवागी ण अघोर ं ॥ नरक ं पडे क पपयत ॥१४०॥ शा कोशीं नाह ं माण ॥ कटक वता कर ू ु ल ून ॥ ह रती ा णांचा मान ॥ तर संतान तयांचे न वाढे ॥४१॥ ह र दनीं शव दनी उपोषण ॥ व धयु न कर ादशी पूण ॥ तर ह त पाद ीण ॥ होती याचे नधार ॥४२॥ एक शवहर तमा फो डती ॥ एक भगव ां व न क रती ॥ एक शवम हमा उ छे दती ॥ नरसीं होती क टक ते ॥४३॥ मात ृ ोह यासी याधी भरे ॥ पत ृ ोह पशाच वचरे ॥ गु ोह ता काळ मरे ॥ भत ेतगणीं वचरे तो ॥४४॥ ू व आहार बहुत जे वती ॥ यांसी जो हांसे दमती ॥ याचे मुखीं अहोच रोग नि ु ती॥ न सोडती ज मवर ॥४५॥ एक गो व य क रती ॥ एक क या व य अिजती ॥ ते नर माजार म त होती ॥ बाळ भ ती आपल ं ॥४६॥ ु जो क या भ गनी अ भलाषी ॥ काम ीं याहाळी प त तेसी ॥ मेहरोग होय यासी ॥ क ं खडा गु ांत दाटत ॥४७॥ ासादभंग लंगभंग कर ॥ दे वांचीं उपकरण अलंकार चोर ॥ दे व त ा अ हे र ॥ पंडुरोग होय ॥४८॥ एक म ोह व ासघात क रती ॥ मात ृ पतह या गु सी संकट पा डती ॥ ृ वध गोवध न वा रती ॥ अंगी साम य असो नयां ॥४९॥ ा ण बैसवो न बाहे र ॥ उ मा न जे वती गहांतर ॥ सोययाची ाथना कर ॥ सं हणी पोटशूळ होती तयां ॥१५०॥ ृ एक कम पंचय न क रती ॥ एक ा णांची सदन जा ळती ॥ एक द नासी माग नाग वती ॥ एक संतांचा क रती अपमान ॥५१॥ एक क रती गु छळाण ॥ एक हणती पाह याच ल ण ॥ नाना दोष आरो पती अ ान ॥ यांचे संतान न वाढे ॥५२॥ जो सदा पतदोष कर ॥ जो ृ वंदासी अ हे र ॥ शवक तन ऐकतां ासे अंतर ॥ तर पतवीय न हे तो ॥५३॥ ृ ृ
  • 14. शवक तनीं न हे सादर ॥ तर कणमळरोग नधार ॥ नस या च गो ी ज पे अपार ॥ जो ददर होय नधार ॥५४॥ ू ु शवक तन कं वा पुराण वण ॥ तेथ शयन कर तां सप होय दा ण ॥ एक अ ववादक छळक जाण ॥ ते पशाचयोनी पावती ॥५५॥ एकां दे वाचनीं वीट येत ॥ ा ण पूजावया कटाळत ॥ तीथ साद अ हे र त ॥ यां या आंखुडती अंग शरा ॥५६॥ ं मग हणे ऐसीं पाप अपार ॥ मम म तक ं होईल परम भार ॥ मग पारधई हणे स वर ॥ जाई व थाना मगवया ॥५७॥ ृ ृ याध शवनाम गज ते णीं ॥ कठ स दत अ ु नयनीं ॥ मागती ब वदळ खडोनी ॥ शवावर टाक तसे ॥५८॥ ं ु ु च हरां या पूजा चार ॥ संपूण झा या शवजागर ं ॥ स ज मींचीं पाप नधार ं ॥ मुळींहूनी भ म झाल ं ॥५९॥ त पव दशा मख ू ु ा ळत ॥ सपणा ज उदय पावत ॥ आर वण शोभा दसत ॥ त च ककम ाचीच ॥१६०॥ ु ंु ु त तसर मगी आल अक मात ॥ याध दे खला कृतांतवत ॥ हणे मा ं नको मज यथाथ ॥ बाळासी तन दे ऊ न येत मी ॥६१॥ ृ याध अ यंत हषभ रत ॥ हणे ह काय बोलेल शा ाथ ॥ तो ऐकावया हणत ॥ शपथ क न जाय तूं ॥६२॥ यावर मगी हणे याधा ऐक ॥ जो तणदाहक ामदाहक ॥ गो ा णांच क डी उदक ॥ ृ ृ यरोग यासी न सोडी ॥६३॥ ा णांची सदन ह रती दे ख ॥ यांचे पूवज रौरवीं पडती न:शंक ॥ मातपु ां बघडती एक ॥ ृ ीपु षां वघड पा डती ॥६४॥ दे व ा ण दे खोन ॥ खालती न क रती कदा मान ॥ नंद ती बोलती कठोर वचन ॥ यम कर चरण छे द तयांचे ॥६५॥ परव तु चोरावया दे ख ॥ अखंड ला वला अस र ख ॥ साधस मान मानी दःख ॥ यासी ने रोग तडका न सो डती ॥६६॥ ु ु पु तकचोर ते मुक होती ॥ र चोरांचे ने जाती ॥ अ यंत गव ते म हष होती ॥ पारधी नि ती येनप ी ॥६७॥ े भ ांची जो नंदा कर त ॥ याचे मुखीं दगधी घा णत ॥ जो माता पतयांसी ता डत ॥ लुला होत यालागीं ॥६८॥ ु जो अ यंत कृपण ॥ धन न वची अणु माण ॥ तो महाभजंग होऊन ॥ धसधसीत बैसे तेथ ॥६९॥ ु ु ु भ ेसी यती र आला ॥ तो जेण रता दव डला ॥ शव यावर जाण कोपला ॥ संतती संप ी द ध होय ॥१७०॥ ा ण बैसला पा ावर ॥ उठवू न घातला बाहे र ॥ याहू नयां दराचार ॥ दसरा कोणी नसे च ॥७१॥ ु ु ऐसा धमाधम ऐकोन ॥ पारधी स द बोले वचन ॥ व थळा जाई जलपान क नयां ॥ बाळांसी तन दे ऊन येई ॥७२॥ ऐस ऐको न मगी लवला ा ॥ गेल जल ाशन क नयां ॥ बाळ तनी लावू नयां ॥ त ृ कल ं तयेन ॥७३॥ ृ े वडील झाल सूत ॥ दसर पतीची कामना पुरवीत ॥ मगराज हणे आतां व रत ॥ जाऊ चला याधापासी ॥७४॥ ु ृ ं मग पाडसांस हत सवह ॥ याधापासीं आल ं लवलाह ं ॥ मग हणे ते समयी ॥ आधीं मज वधीं पार धया ॥७५॥ ृ ृ मगी हणे हा न हे वधी ॥ आ ह ं जाऊ पती या आधी ॥ पाडसे हणती ृ ं शु द ॥ आ हांसी वधीं पार धया ॥७६॥ यांची वचन ऐकतां ते णी ॥ याध स द झाला मनीं ॥ अ ुधारा लोट या नयनीं ॥ लागे चरणीं तयां या ॥७७॥ हणे ध य िजण माझ झाल ॥ तमचे न मुख न पण ऐ कल ॥ बहुतां ज मींज पाप जळाल ॥ पावन कल शर र ॥७८॥ ु े माता पता गु दे व ॥ तु ह च आतां माझे सव ॥ कचा संसार म या वाव ॥ पु कल सव लटक ॥७९॥ ै याध बोले ेमेक न ॥ आतां कधीं मी शवपद पावेन ॥ त अक मात आल वमान ॥ शवगण बैसले यावर ॥१८०॥
  • 15. पंचवदन दशभज ॥ या ांबर नेसले महाराज ॥ अ त तयांचे तेज ॥ द च ामाजी न समाये ॥८१॥ ु ु द य वा वाज वती क नर ॥ आलाप क रती व ाधर ॥ द य समनांचे संभार ॥ सुरगण वय वषती ॥८२॥ ु मगे पावल ं द य शर र ॥ याध कर सा ांग नम कार ॥ मुख हणे जयजय शव हर हर ॥ त शर रभाव पालटला ॥८३॥ ृ प रसीं झगडतां लोह होय सुवण ॥ तैस याध झाला दशभुज पंचवदन ॥ शवगणीं बहुत ाथन ॥ द य वमानीं बैस वला ॥८४॥ ू मग पावल ं द य शर र ॥ तींह वमानी आ ढल ं सम ॥ याधाची तु त वारं वार ॥ क रती सरगण सवह ॥८५॥ ृ ु याध नेला शवपदा ती ॥ तारामंडळी मगे राहती ॥ अ ा प गगनीं झळकती ॥ जन पाहती सव डोळां ॥८६॥ ृ स यवती दयर खाणी ॥ रसभ रत बो लला लंगपुराणीं ॥ त स जन ऐकोत दनरजनीं ॥ ानंदेक नयां ॥८७॥ ध य त शवरा त ॥ वण पातक द ध होत ॥ जे ह पठण क रती साव च ॥ ध य पु यवंत नर ते च ॥८८॥ स जन ोते नजर स य ॥ ाशन करोत शवल लामत ॥ नंदक असुर कत क बहुत ॥ यांसी ा कच ह ॥८९॥ ृ ु ै कलासनाथ ै ानंद ॥ तयांचे पदक हार सगंध ॥ तेथ ीधर अभंग ष पद ॥ ं जी घाल त शवनाम ॥१९०॥ ु शवल लामत ंथ चंड ॥ कदपुराण ृ ं ो रखंड प रसोत स जन अखंड ॥ तीया याय गोड हा ॥१९१॥ ॥ ीसांबसदा शवापणम तु ॥
  • 16. ी शवल लामत – अ याय तसरा ृ अ याय तसरा ीगणेशाय नमः ॥ जय जय शव मंगलधामा ॥ नजजन दयआरामा ॥ चराचरफलां कत मा ॥ नामाअनामातीत तूं ॥१॥ ु इं दरावरभ गनीमनरं जना ॥ षडा यजनका शफर वजदहना ॥ ानंदा भाललोचना ॥ भवभंजना परांतका ॥२॥ ु हे शव स ोजात वामघोरा ॥ त पु षा ईशान ई रा ॥ अधनार नटे रा ॥ ग रजारं गा गर शा ॥३॥ गंगाधरा भो गभषणा ॥ सव यापका अंधकमदना ॥ परमातीता नरं जना ॥ गुण य वर हत तूं ॥४॥ ू हे पय:फनधवल जग जीवना ॥ े तीया यायीं कृपा क न ॥ अगाध सरस आ यान ॥ शवरा म हमा वण वला ॥५॥ ु यावर कसा कथेची रचना ॥ वदवीं पंचमुकट पंचानना ॥ शौनका दकां मु नजनां ॥ सूत सांगे नै मषार यीं ॥६॥ ै ु इ वाकवंशीं महाराज ॥ म सहनाम भभुज ॥ वेदशा संप न सतेज ॥ दसरा बडौजा प ृ वीवर ॥७॥ ु ू ु पतनावसनक न ॥ घातल उव सी पालाण ॥ तापसय उगवला पण ॥ श भगण मावळल ं ॥८॥ ृ ू ू ु तो एकदां मगया याजक न ॥ नघाला धुरंधर चमू घेऊन ॥ घोरांदर वेशला व पन ॥ त सावज चहूंकडून ऊठल ं ॥९॥ ृ या वक र स वनकसर ॥ मग मगी वनगौ वानर वानर ॥ शशकजबुंकां या हार ॥ संहार त नपवर ॥१०॥ ृ े ृ ृ ृ चातक मयूर बदक ॥ क तर करं ग जवा द बडालक ॥ नकल राजहं स च वाक ॥ प ी ू ु ु ापद धांवती ॥११॥ नपे मा रले जीव बहुवस ॥ यांत एक मा रला रा स ॥ महाभयानक तामस ॥ गत ाण होऊ न प डयेला ॥१२॥ ृ याचा बंधु परम दा ण ॥ तो ल ता झाला दरोन ॥ मनीं काप य क पन ॥ हणे सड घेईन बंधूचा ॥१३॥ ु ू ू म सह पातला वनगरास ॥ असुर ध रला मानववेष ॥ कृ णवसनवे त वशेष ॥ दव कधीं घेऊ नयां ॥१४॥ ं नपासी भेटला येऊन ॥ हणे मी सूपशा ीं परम नपुण ॥ अ न शाका सुवास कर न ॥ दे खोन सुरनर भूलती ॥१५॥ ृ राय ठे वला पाकसदनीं ॥ यावर पत ृ तथी ल ुनी ॥ गु व स घरालागनी ॥ नप े आ णला ॥१६॥ ु ृ भोजना आला अ जजनंदन ॥ तो रा स काप य म न ॥ शाकांत नरमांस शजवन ॥ ऋषीस आणून वा ढल ॥१७॥ ू काल ानी व स मनी ॥ सकळ ऋषींमाजी शरोमणी ॥ काप य सकळ जाणनी ॥ म सह शा पला ॥१८॥ ु ु हणे तूं वनीं होई रा स ॥ जेथ आहार न मळे न:शेष ॥ मी ा ण मज नरमांस ॥ वा ढल कस पा पया ॥१९॥ ै राव हणे मी नेण सवथा ॥ बोलावा सूपशा ीं जाणता ॥ तंव तो पळाला ण न लगतां ॥ गु प वना आपु या ॥२०॥ राव कोपला दा ण ॥ हणे मज शा पले काय कारण ॥ मीह तज शापीन हणोय ॥ उदक कर ं घेतल ॥२१॥ ु तंव रायाची प राणी ॥ मदयंती नाम पु यखाणी ॥ प कवळ लाव यह रणी ॥ चातुय उपमे जेवीं शारदा ॥२२॥ े मदयंती हणे राया ॥ दर ू ीं पाह वचा नयां ॥ श य गु सी शापावया ॥ अ धकार नाह ं सवथा ॥२३॥ गु सी शाप दे तां नधार ं ॥ आपण नरक भोगावे क पवर ॥ राव हणे चतुर सुंदर ॥ बोलल स साच त ॥२४॥