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संर क
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ु लप त माननीय ो0 डॉ. ल मी नारायण सह - जय काश व व ालय छपरा
डॉ पु प राज गौतम - ाचाय - पीएन कॉलेज परसा
 डॉ संजय क
ु मार सह - वभागा य इ तहास वभाग- पीएन कॉलेज परसा
संपादक मंडल
डॉ संजय क
ु मार सह
डॉ क
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डॉ अ नता क
ु मारी
डॉ मनोज क
ु मार
डॉ सौरभ भ ाचाय
द पा मुखज
चंदन काश
वकास रंजन
डॉ इ क
ु मारी
डॉ मोह मद शमीम
संपादक
डॉ अ नल क
ु मार,
वभागा य राजनी तक शा वभाग, पीएन कॉलेज परसा
"यह शोध प का भाषा, सा ह य, मान वक , समा जक व ान, कला, सं क
ृ त
एवं वा ण य क
े े म व त जन क
े सम अंतररा ीय तर पर तुत करगी।"
शोध प का (संगमनी) जुलाई 2021
मू य: ₹100
अंतररा ीय तर पर ैमा सक शोध प का काशनाथ क
ृ त संक पत
अनु म णका
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ववरण
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माननीय एवं पूजनीय तक
ु लप त महोदय
संपादक क कलम से
महा व ालय एवं श क
श क क
े लए संदेश
व ा थय क
े नाम संदेश
संसार का सबसे बड़ा तप है स य म जीना
व यात और भावशाली आ या मक गु वामी ववेकान द
बाल अपराध एक गंभीर सम या
भारतीय समाज म नारी का ान मातृश प म
रा नमाण म व ा थय का योगदान
आपातकाल त म भारतीय ेस का योगदान
च ारण म गांधी भाव क नरंतरता
भारत म इले ॉ नक ां त एक अ त घटना
वामी ववेकानंद का आ या मकवाद तथा भौ तकवाद का सामंज य
सह श ा अ ययन क
े साथ व ा थय का वकास
अब हम कसी क
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गरीबी संसार का सबसे बड़ा भा य
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कायालय सहायक गण
अखबार क
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पृ सं या
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वग य दरोगा साद राय
भूतपूव मु यमं ी
बहार
महापंिडत रा ल सांक
ृ ायन
हद या ा स ह य क
े पतामह
󰏎व󰋙ा नाम नर󰎠 󰏆पम󰏐धक
ं 󰇹󰉻󰋴गु󰌈ं धनम्।
󰏎व󰋙ा भोगकरी यशः सुखकरी 󰏎व󰋙ा गु󰏆णां गु󰏅ः।
󰏎व󰋙ा ब󰋰ुजनो 󰏎वदेशगमने 󰏎व󰋙ा परं दैवतम्।
󰏎व󰋙ा राजसु पु󰊑ते न 󰏌ह धनं 󰏎व󰋙ा󰏎वहीनः पशुः॥
अथा󰇢त:- 󰏎व󰋙ा इ󰌁ान का 󰏎व󰏒श󰍻 󰏅प है, 󰏎व󰋙ा गु󰌈 धन है. वह भोग देनेवाली, यशदेने वाली, और सुखकारी है.
󰏎व󰋙ा गु󰏅ओं क󰎫 गु󰏅 है, 󰏎वदेश म󰎷 󰏎व󰋙ा बंधु है| 󰏎व󰋙ा बड़ी देवता है, राजाओं म󰎷 󰏎व󰋙ा क󰎫 पूजा होती है, धन क󰎫 नह󰎱,
󰏎व󰋙ा󰏎वहीन 󰍩󰏑󰈸 पशु ह󰎱 है|
02
हमारे माननीय एवं पूजनीय त क
ु लप त महोदय डॉ ल मी
नारायण सह जी क
े बारे म दो श द कहने क
े लए व ा क देवी
मां सर वती क आराधना करनी होगी l
"आपने संगमनी ैमा सक प का का मागदशन द या इसक
े लए भुनाथ महा व ालय आपका सदा आभारी
रहेगा l"
आप एक यात इ तहासकार एवं श ा वद है l आपक
े वष क
े अ यापक जीवन का अनुभव इस व व ालय
को सफलता क आ खरी पायदान पर प ंचा देगी ऐसा हम सबका पूण व ास है, आपने व ा थय को हर
प र त म सदैव मु क
ु राते रहने क सलाह द । कहा क जीवन म हम कभी भी संतु नह होना चा हए। इससे
हमारे अंदर बढ़ने क भूख मर जाती है। आप एक ऊजावान कमठ एवं कत न श ा वद है l आपक
कत न ा हम सब क
े लए ेरणा का ोत है। व व ालय म आपका क
ु शल एवं स दय व ही आपक
पहचान है। म आपक
े व से खासा भा वत ं। म गव क
े साथ कहता ं क आपने व व ालय म सीखने
और वकास क
े लए एक सुंदर वातावरण बनाया है, जसका उपयोग गुणा मक श ा दान करने क दशा म
सफलता ा त ई है। आपका शास नक काय करने क
े तरीका अ त सराहनीय एवं शंसनीय रहा है आप सबका
साथ सबका वकास एवं म वत वहार क
े साथ श क एवं श क
े तर कमचा रय क
े साथ सबसे स चत मु ा
मे उसक
े कत बोध का ान कराने क कला आपक
े अंदर ई रीय श क
े प म आपक
े आरं भक जीवन से ही
देखने को मलता है l आपने जय काश व व ालय छपरा क
े त- क
ु लप त का पदभार हण करते ही आपने
श ा क गुणव ा और मानकता को बेहतर बनाने का सफल यास कया है। आपने क सरकार क नई श ा
नी त का समथन कया है। आपक
े अनुसार यह श ा नी त देश म कौशल को बढ़ावा देगी। एक ऐसी श ा प त
बनायी गई है जो हर युवा को नरमंद बनाएगी। इसक सबसे बड़ी वशेषता यह है क नई श ा नी त म अं ेजी क
बा यता नह होगी। मातृभाषा हद क
े मा यम से श ा ा त क जा सक
े गी। आपक नई व ा एवं मागदशन मे
शोध को बढ़ावा देगी। आपक आने से व ा थय म उ साह एवं उमंग है l सभी व ा थय क
े प रजन आप से
उ मीद लगाए बैठे ह क व व ालय का श ा एवं अनुशासन पहले से यादा सु ढ़ होगा ऑनलाइन वेश
णाली को आपने मजबूत एवं आसान बना दया है जससे हजार छा लाभा वत हो रहे ह। व ा थय को
परामश, परी ा लखने और ड ी, ड लोमा और माण-प ा त करने म आ रही क ठनाइय को आपने र कर
दया गया है। इन सभी और अ य उपाय से श ा क इस णाली म कई गुना छा क सं या म वृ क उ मीद
क जा सकती ह। छा क
े आ म व ास को बढ़ाने क
े लए आपका सरा सबसे बड़ा यास रहा है। रोजगार क
े
अवसर को बढ़ाने को यान म रखकर अं ेज़ी म क
ु शल बनने क
े लए सु वधाएं दान करना ता क जब वह
व व ालय को छोड़कर बाहर जाए, तो उ ह कसी भी अ य यू नव सट या सं ान से या कसी भी कार क
रोजगार तयो गता से हीनता का अनुभव ना हो।
व व ालय को आपक
े साथक समथन क
े साथ सभी लोग क सेवा करने म खुशी होगी एवं हम सभी आप क
े
कायकलाप से सदा ही गौरवा वत महसूस करगे।
माननीय एवं पूजनीय
तक
ु लप त महोदय
डॉ० पु प राज गौतम
ाचाय
03
सारण मंडल सं क
ृ त और राजनी त का संगम ल रहा है। यहां एक ओर महान वतं ता सेनानी यात
कानून वद और भारत क
े थम रा प त डॉ राज साद क कमभू म होने का सौभा य ा त है तो सरी ओर
जय काश नारायण जैसे महान ां तकारी और वचारक क ज मभू म भी रही है।
यह वही धरती है जहां रा ल सां क
ृ यायन जी जैसे महान पं डत क कमभू म होने का गौरव ा त है। इसी
व व ालय से मनोरंजन साद एवं शवपूजन सहाय जैसे हद क
े व ान ने राज कॉलेज म अ ययन कया था।
जसक
े सा ह य क
े औदानो से पूरे भारत को रौशनी मलती है। यह भोजपुरी क
े महान नाटककार और क व
भखारी ठाक
ु र क
े अवदान से पूरा भारत प र चत है। इस महान धरती पर भटक
े ए युवक क क
ुं ठा एवं तनाव को
र करने क
े लए यह आव यक है क उनक
े नै तक मू य को जागृत कया जाए। यह काम श ा का अलख जगा
कर ही कया जा सकता है। ऐसा हमारे महा व ालय क
े ाचाय डॉ पु प राज गौतम एवं व र ा यापक डॉ संजय
क
ु मार सह का मानना है।
उनक सोच है क इसक
े लए एक अ भयान चलाया जाए । हमारे ाचाय का मानना है क समाज म नै तक
मू य अभी भी जी वत ह बस उनम उजा का समावेश करना बाक है ।जब देश म हर नै तकता से प रपूण
होगा तो चार और शां त एवं स ता का माहौल होगा। साथ ही उनका यह भी कहना है क 'अ या म' जीवन क
एक ऐसी सीढ़ है जस पर चढ़कर येक अपनी मेहनत और कमठता से मनचाही सफलता ा त कर सकता
है।
संपादक क कलम से
04
यह शोध प का भाषा, सा ह य, मान वक , सामा जक व ान, कला, सं क
ृ त एवं वा ण य क
े े म अ तन
आधु नक शोध को छा , शोधाथ , अ यापक एवं व तजन क
े सम अ तरा ीय तर पर तुत करेगी।
इस प का क
े संपादक य दा य व क
े नवहन का यास मने पूरे मनोयोग से कया है। फर भी कोई ु ट रह गई हो
तो उसक
े लए मा ाथ ँ। इस असंभव सा लगने वाले काय म हमारे ाचाय डॉ पु पराज गौतम, व र ा यापक
डॉ संजय क
ु मार सह एवं संपादक मंडल क
े सभी व ान सद य का आशीवाद एवं सहयोग ा त आ है। जसक
े
लए म सभी को वशेष प से आभार कट करता ँ । साथ ही आप सभी से आ ह एवं अनुरोध है क इस रा ीय
एवं अ तरा ीय तर क
े सार वत अनु ान म सहयोग कर।
ध यवाद ।
डॉ० अिनल क
ु मार
वभागा य राजनी तक शा वभाग
मोबाइल नंबर -9523635919
इन वचार को छा -छा ा एवं समाज क
े सभी लोग तक प ंचाने का सश मा यम प का से बेहतर कोई और
नह हो सकता। इसी लए हमारा महा व ालय रा ीय एवं अ तरा ीय तर पर ैमा सक शोध प का (संगमनी) क
े
काशनाथ क
ृ तसंक पत है। " संगमनी" दैवी श का वशेष नाम है ।जो व क
े सभी ाक
ृ तक सामथ को
सु व त करती ह । यह 'वाग ृणी देवी' क
े लए ऋ वेद म यु आ है जो उपयु काय हेतु आ या मक
श य का संचालन करती है। श द च ह- "आनो भ ाः कतवो य तु व तः" (ऋ वेद: 1.89.1) ऋ वेद से उ त है।
जसका अथ है सभी दशा से संपूण सु वचार हमारे पास आये ।शीषक पृ पर देद मान सूय आ या मक ऊजा
को न पत करता है, जो संपूण क
ृ त पर अपना भु व रखता है । जो इसे संसार म अपने व प म आ वभाव
होने क
े लए बढ़ाता है। बादल अ ानता पी बाधा को संक
े तक करते ह जो च त देद मान सूय क
े
आ या मक ऊजा से न हो जाते ह। शीषक पृ क
े नीचे खलते ए कमल चमकते ए सूय क
े आ या मक ऊजा
क
े वक सत और आ वभा वत व प का त न ध व करते ह।तीन कमल शीषक 'संगमनी' श द क उपादेयता को
घो षत करते है जो जगत क संपूण व तु को एक त, सु व त एवं संचा लत करती ह।
05
भुनाथ महािव ालय, परसा (सारण)
Prabhunath Mahavidyalaya Parsa, Saran, Bihar
थापना: 1958
महा व ालय एवं श क
06
य श क ,
यह सच है क श ा णाली आपको वह करने क आजाद नह देती, जसे आप सबसे बेहतर मानते ह।
श ा णाली और माता- पता क उ मीद कई बार इतनी बल होती ह क अपने व ा थय से अलग से क
ु छ कहने
का आपक
े पास व त नह होता। मगर इतनी चुनौ तय क
े बावजूद म कहना चा गां क आप एक ब चे को उसक
पूण मता म वक सत होने म योगदान दे सकते ह। आपको हर दन बस तीन मनट का समय नकालना है, यह
देखने क
े लए क – वह कौन सी चीज है, जसक आपक
े छा को वाकई ज रत है।
अभी जो हमारी श ा- णाली है, वह ब च को सफ सूचनाएं व जानका रयां देने क
े बारे म है। आप इन
जानका रय को कई तरीक से दे सकते ह, ले कन अगर आप अपने पास आने वाले सभी छा म ेरणा क एक
न ह सी चगारी पैदा कर पाएं, तो वह पूरी जदगी उनक
े साथ रहेगी। सूचना उपयोगी हो सकती है, वह परी ा पास
करने या नौकरी पाने म उनक मदद कर सकती है, ले कन अगर आप उनक
े अंदर ेरणा क चगारी पैदा करगे, तो
वे पूरी जदगी आपक क करगे।
हर श क को इस पर यान देना चा हए क म कस तरह एक सरल तरीक
े से,सही व पर क
ु छ करक
े या दो श द
कहक
े इन ब को े रत कर सकता ं। चाहे श ा णाली क
ै सी भी हो, आप इतना तो कर ही सकते ह। अब
योग कस तरह से इसम मदद कर सकता है? अगर आप इंसान क खुशहाली चाहते ह, तो भीतर क ओर मुड़ना ही
हर सम या का हल है। अगर आप कोई क ा लेने से पहले दन म सफ दो मनट क
े लए हर कसी को आंख बंद
करने को कह, तो इससे एक बदलाव आएगा। और आप उस बदलाव क
े णेता व सू धार बन सकते ह।
श क क
े लए
संदेश
ाचाय
डॉ० पु प राज गौतम
07
यारे ब ो!
आप सब जानते ह क महा व ालय क
े ब े चाहे वे कसी धम व जा त क
े ह , अमीर या गरीब ह बना कसी
बाधा क
े अपनी पढ़ाई- लखायी पूरी कर सक। मुझे उ मीद है क आप सब व ालय त दन उप त होकर एक
भयमु वातावरण म पढ़, अपने सवाल को श क क
े सामने रखो और पूरे मनोयोग से श ा हण करो।
आपको दरअसल अंदाजा ही नह है क आपक
े माता- पता कतने संघष से गुजर रहे ह। आपका पालन-पोषण
करने, आपक
े जीवन को बढ़ाने, आपक
े लए सबक
ु छ संभव बनाने क
े लए उ ह जो सकस करना पड़ता है, आप
उसक क पना भी नह कर सकते।
राई का पहाड़ बनाने क को शश मत क जए – आप यह पढ़ या वह, या फक पड़ता है? मगर अपने माता- पता
को यह समझाना आपक
े हाथ म है क ‘भले ही म इंजी नयर न बनूं, मगर आप चता मत क जए, म अपने जीवन
म क
ु छ बेहतर ही क ं गा।’ अगर आप उ ह इस बारे म भरोसा दला पाएं, तो भले ही त काल सब क
ु छ ठ क न हो,
मगर आ खरकार वे आपक बात समझ जाएंगे। अभी आपम से ब त से लोग उ ह यह भरोसा नह दला पाते।
वे इस लए घबराते ह य क उ ह लगता है क अगर आप डॉ टर, इंजी नयर या ऐसा ही क
ु छ नह बन पाए तो आप
सड़क पर आ जाएंगे। अगर आप वह नह करना चाहते, जो आपक
े माता- पता को आपक
े लए बेहतर लगता है, तो
आप अपने पसंद क
े कसी सरे े म का ब लयत दखाते ए उनसे क हए, ‘ चता मत क जए।’
म चाहता ं क आप सब एक बात याद रख - जन लोग को आप शव, राम, क
ृ ण या ईसामसीह क
े प म पूजते
ह, उनम से कसी ने आईआईट या ऐसी कोई सरी परी ा पास नह क । आप उनक पूजा इस लए करते ह
य क उ ह ने अपने जीवन को अ तरह जया। आपको बस यही करना है – अ तरह जीना है। इंसानी तं
नया क सबसे ज टल मशीन है। सम या यह है क आपने इस सुपर क
ं यूटर का यूजर मैनुअल पढ़ा ही नह है।
वह यूजर मैनुअल ही योग है। यह आपको अंद नी तौर पर संतु लत होने म मदद करेगा, आपको वाभा वक प
से आनं दत बनाएगा और अपनी पूरी मता म को शश करने म आपक मदद करेगा। अपनी पूरी मता म को शश
करने पर आपको कामयाबी ज र मलेगी। आप कसी और से बेहतर भले न ह , मगर आप जतना बेहतरीन कर
सकते ह, वह करगे। फर जीवन आपक ओर जो क
ु छ भी उछालेगा, उसे आप पूरी ग रमा क
े साथ संभाल पाएंगे।
व ा थय क
े नाम
संदेश
ाचाय
डॉ० पु प राज गौतम
08
संत कबीर ने अपने एक दोहे क
े मा यम से कहा है क इस नाशवान और तरह-तरह क बुराईय से भरे व म
सच बोलना सबसे बड़ी सहज-सरल तप या है। स य बोलने, स ा वहार करने स य माग पर चलने से बढक़र और
कोई तप या है, न ही हो सकती है। इसक
े वपरीत जसे पाप कहा जाता है। बात-बात पर झूठ बोलते रहना, छल-
कपट और झूठ से भरा वहार तथा आचरण करना उन सभी से बड़ा पाप है। जस कसी क
े दय म स य
का वास होता है। ई र वंय उसक
े दय म नवास करते ह। जीवन क
े ावहा रक सुख भोगने क
े बाद अंत म वह
आवागमन क
े मु कल से छुटकारा भी पा लेता है। इसक
े वपरीत म याचरण- वहार करने वाला, हर बात म झूठ
का सहारा लेने वाला न तो चता से छुटकारा ा त कर पाता है न भु क क
ृ पा का अ धकार ही बना
सकता है। उसका लोग तो बगड़ता ही है, वह परलोक-सुख एंव मु ित क
े अ धकार से भी वं चत हो जाया करता है।
स य- वहार एंव वचन को आ खर तप य कहा गया है? इस का उ र सहज-सरल है क व म ेम और
स य माग पर चल पाना खांडे क धार पर चल पाने समान क ठत आ करता है। स य क
े साधक और वहारक क
े
सामने हर कदम पर अनेक क ठनाइय का सामना करना पड़ता है। उसक
े अपने भी उस सबसे घबराकर अ सर
साथ छोड़ दया करते ह। सब कार क
े दबाव और क झेलते ए स य क
े साधक और उपासक को अपनी राह पर
अक
े ले ही चलना पड़ता है। जो स यराधक इन सबक चता न करते ए भी अपनी राह पर ढ़ता से र-अटल रह
नरंतर बढ़ता रहता है। उसका काय कसी भी कार तप करन से कम मह वपूण नह रेखां कत कया जा सकता।
इ ह सब त य क
े आलोक क
े स य क
े परम आराधक क वत ने ापक एंव य अनुभव क
े आधार पर स य को
सबसे बड़ा तप उ चत ही कहा है।
इसक
े बाद अनुभव- स आधार पर ही क व सू चत क
े सरे प पर आता है। सरे प म उसने ‘झूठ बराबर पाप’
कहकर झूठ बोलने या म या वहार करने का संसार का सबसे बड़ा पाप कहा है। गंभीरता से वचार करने पर हम
पाते ह क कथन म वजन तो है ही, जीवन समाज का ब त बड़ा यथाथ भी अं त न हत है। य द अपनी बुराई
को छपाता नह , ब क वीकार कर लेता है, तो उसम सुधार क येक संभावना बनी रहती है। ले कन मानव अपने
वभाव से बड़ा ही कमजोर और डरपोक आ करता है। वह बुराई को छपाने क
े लए अ सर झूठ का सहारा लया
करता है। जब एक बार कोई झूठ बोलता है तो उसे छपाने क
े लए उसे एक-क
े -बाद-एक नरंतर झूठ क राह पर
बढ़ते जाने क
े लए ववश होते जाना पड़ता है। फर कसी भी कार झूठ और झूठे वहार से पड छुड़ाना
मु कल हो जाया करता है। मनु य सभी का घृणा का पा बनकर रह जाता है। जीवन एक कार का बोझ सा बत
होने लगता है। इ ह सब वहार मूलक त य क
े आलोक म स य क
े शोधक संत क व ने झूठ को सबसे बड़ा पाप
उ चत ही ठहराया है।
संसार का सबसे बड़ा तप है स य म जीना
ाचाय
डॉ० पु प राज गौतम
09
वामी ववेकान द क
े समाजवाद तथा मानवतावाद का वकास उनक वैदा तक माणता क अवधारणा क
े
आधार पर आ। उनक
े समाजवाद ने वग सहयोग तथा एकता और उनक
े मानवतावाद ने मुन य क ई र क
े प म
पहचान को तथा मानवता का ेम तथा उपासना क
े मा यम से सेवा को ो सा हत करती रही है। सामाजवाद को
जस प म उ ह ने देखा, वह मानवतावाद क
े वकास क
े सा य का एक साधन मा था। मानव जीवन का आर
समानता से होता है और वै क एकता क ा त म उसक प रण त होती है। इसी लए वह हर कार क
े
वशेषा धकार तथा शोषण क
े व थे, चाहे उनका स ब क
े वचार से हो या फर सामा जक अ त व से
मानव क दासता चाहे वह शरी रक रही हो, या मान सक या आ या मक, उसका एकमा कारण असमानता ही रही
है। वा तव म उनक समानता क अवधारणा उनक समूची आ या मक वचारधारा का आधार है और वह क
े
मक वकास को ो सा हत करती है तथा यह भी बताती है क वकास क इस या म असमानता का
कतना बोलबाला रहा है।
समानता से ववेकान द का अ भ ाय सामा जक, आ थक, राजनै तक अथवा कसी अ य कार क वशेष
असमानता से नह था। उनका अ भ ाय समानता क
े प से न होकर उसक या से था। क
े मक
वकास म अपनी आ ा क
े कारण वह स ूण समानता अथवा स ूण असमानता क
े च कर म फ
ं सने से बच गए।
उनका कहना था क नया म समानता व आसमानता दोन साथ-साथ चलती ह। समानता क तरह असमानता का
होना भी वाभा वक लाभदायक तथा सृजना मक होता है। उ ह ने यह भी वीकार कया है क असमानता न तो
सनातन है और न ही असीम उ ह ने क असमानता क
े व संघष क अ नवायता तथा एकता क आकां ा
को उ चत माना। मानव अनेकता म उनका व ास सां य दशन तथा पातंज ल क
े "आ मानुभू त" क
े स ांत पर
आधा रत था, जब क वेदा त म उनक आ ा ने उ ह मानव एकता क घोषणा क
े लए े रत कया।
वामी ववेकान द क आ या मक या ा क
े व भ पड़ाव वामी जी का वचार था क समानता तथा असमानता
दोन ही ववेक पर आधा रत तथा अव य ावी ह। मानव क
ृ त क
े सां य ारा कए गए मनोवै ा नक व ेषण से
मानव क असमानता क वषमता का पता लगता है। य क
े बीच स व, रजस तथा तमस क
े गुण क
े कारण
पर र मतभेद रहते ह। इसी लए ववेकान द ने वण- वभाजन को तकसंगत माना। अपने वाभा वक गुण क
े
अनुसार, ा ण, य, वै य तथा शू क
े गुण हर म ह। अ तर सफ इतना है क कसी म कसी एक गुण
क धानता है तो कसी म सरे क सामा जक व ा क
े चार गुण भी क
े इ ह गुण पर आधा रत ह।
ा ण, ान क
े शासन तथा संवेदनशीलता क ग त क
े तीक ह। शू असमानता पर समानता क वजय का
तीक है। ान, संर ण,,ग त व धय तथा समानता क एक पता को ववेकान द ने सराहा। ले कन, इसक ा त
को मु कल मानकर हर जा त ने स ा को अपने हाथ म क
े त करने का य न कया, जो अवन त क
े कारण बना।
ववेकान द ने उ जा त क
े लोग ारा अपने से न न जा त क
े लोग क
े त कए गए अ याचार तथा दमन क
े
व संघष कया।
ववेकान द क
े मानव असमानता से स ब त वचार को उनक मानव क
े आ या मक वकास क अवधारणा म भी
ढूंढा जा सकता है। पातंज ल क
े आ मानुभू त क
े स ा त से उ ह ने यह सीखा क आ मानुभू त क ा त से मनु य
क
े वाभा वक गुण म प रवतन होता है और यह े ता क
े एक तर से सरे तर तक प ंच जाता है। पातंज ल क
े
वचार को वीकार करने वाले ववेकान द यह मानते थे क एक तथा सरे क
े बीच म जो अ तर है,
वह उसक
े आ या मक वकास क
े चरण- वशेष का प रचायक है। इसी लए, एक तथा सरे क
े बीच अ तर
व यात और भावशाली आ या मक
गु वामी ववेकान द
10
क
े वल मा ा का है, गुण का नह पातंज ल क
े आ मानुभू त क
े स ा त ने ववेकान द क
े समानता क
े स ा त को
सृजना मक तथा सकारा मक बना दया। इसी लए उ ह ने क पहल, वतं ता तथा समान अवसर क
आव यकता पर जोर दया।
वण तथा असमानता
आ मानुभू त क
े स ा त म व ास क
े कारण ववेकान द ने कम क अवधारणा को वीकार कया तथा
समाज क
े जीवन क
े कारण तथा प रणाम क
े नयम को माना। कम का नयम व भ य क
े बीच अ तर का
बोध कराता है। कम क
े वकास तथा वत ता का प रचायक है। तथा समाज का पतन इस बात पर
नभर करता है क वह या करता है और या करने से बचता है। उनक
े अनुसार, भारत क दासता का कारण जनता
क अपे ा थी। हम अपनी दशा, गरावट, दासता तथा असमानता क
े लए वयं को ही दोषी मानना चा हए।
इस लए, तथा समाज दोन को असमानता क
े कारण को अपने अ दर झांककर देखना चा हए और उ ह र
करने का य न करना चा हए। जब लोग वेदा त क
े उपदेश को मान लगे क जो क
ु छ भी है वह सब एक से ही ह, तो
असमानता का लोप हो जाएगा।
वैदा तक समानता
वेदा त मानव क आ या मक एकता क बात करता है। व ापी एकता क ा त क
े लए समानता जीवन क
आ या मक आव यकता है। एक स े वेदा तवाद क तरह उनका यह मानना था क कसी एक का जीवन
अथवा अ त व सर क
े जीवन तथा अ त व से अलग नह है। सभी एक ही ई रीय श क चगारी ह।
सभी वतं ह, समान ह, एक ह। वेदा त क एकता क भावना को समाज क एक पता क पहचान कराती
है और नः वाथ सेवा क
े लए े रत करती है। सबक
े जीवन म का जीवन है और सभी क
े सुख म का
सुख है। इस कार, ववेकान द ने लोग क
े सामा जक तथा आ थक वकास क
े लए सामा जक एकता क
आव यकता पर बल दया। उनका यह मानना था क असमान समाज म क
े वल एकता क बात करने का कोई अथ
नह होगा, जब तक इस एकता का द लत क
े उ ान क
े लए योग न कया जाए। द लत का उ ान तभी स व
होगा जब अपने अहं को भूल जाए और साम जक चेतना को ो सा हत करे। आ खर क पहचान
समाज क
े अंग क
े प म ही तो है। उनक
े अनुसार, सामा जक एकता को एक सरे क पहचान तथा एक सरे क
े
त यार से ही संजोया जा सकता है। वा तव म सामा जक एकता तभी आएगी जब सभी कार क
े
वशेषा धकार सृजना मक तथा जनतं ा मक था य क जनजागरण का काम मकता तथा शां त का होता है।
अतः समाजवाद समाज क ा त का ल य भी शां तपूण साधन क
े ारा ही स व हो सक
े गा। इस कार,
ववेकान द का समाजवाद जनता को अ म नभरता तथा वशासन का सूचक था।
आ या मकवाद तथा भौ तकवाद का सामंज य
गरीब क
े त ववेकान द क च ता ने उ ह भौ तकवाद क
े मह व पर जोर देने क ेरणा द । उ ह ने कहा : 'भौ तक
स यता तथा वला सता भी बेकार क
े लए काम क
े अवसर पैदा करने वाली हो सकती है। हर गरीब क मांग है
रोट । म ऐसे ई र म आ ा नह रखता जो वग म तो सुख क अनुभू त कराए ले कन इस नया म रोट भी न दे
सक
े ।' वह भौ तक जीवन क
े प धर थे, य क वह गरीबी से घृणा करते थे और आ या मवाद म उनका व ास
इस लए था य क पौ तक समाज क सीमा से प र चत थे।
मा स क भाषा म उ ह ने पाया क उनक
े समय का समाज नधन को और अ धक नधन तथा बनी को और अ धक
धनी बना रहा था। उ ह ने प मी भौ तक जीवन तथा औ ो गक समाज क क मय और सीमा को पहचाना। वह
चाहते थे क लोग भौ तकवाद क
े त अपनी ललक छोड़कर, आ या मवाद क ओर अ सर ह ।
11
ववेकान द क
े अनुसार एक यायो चत अथ व ा क सफलता क संतु पर नभर करती है जो उसे अपने
अ दर से ा त होती है। आ थक आ मसंयम तथा समाज दोन क
े हत म है। को वा त वकता क
े
उ तर उ े य रहते, व क सहायता नह क जा सकती है। उ ह ने कहा क जैसे पूव को व ान तथा तकनीक क
े
ान क आव यकता है, वैसे ही प म को पूव क
े आ या मक सं क
ृ त क । उ ह ने कहा, 'यूरोप, जो क भौ तक
श क अ भ का क
े है, वह 50 साल म खाक म मल जाएगा, अगर उसने अपने वतमान त को बदल
कर आ या मवाद को अपने जीवन का अंग नह बनाया। यूरोप को उप नषद क
े धा मक ान से ही बचाया जा
सकता है। इस कार, ववेकान द ने पुरानी तथा नई नया तथा पूव तथा प म क
े बीच सामंज य ा पत करने
का य न कया।
डॉ० संजय क
ु मार सह
वभागा य इ तहास वभाग
मोबाइल नंबर -9934005182
12
येक देश तथा समाज क अपनी नी तयां, री तयां तथा पर राय होती ह। इनका पालन समाज क
े सभी
सद य क
े लए अ नवाय होता है चाहे सद य क
े प म ौढ़ हो या बालक बालक म अनुभव तथा
प रव ता क कमी होने क
े कारण शरारती होना एक सामा य ल ण है। क तु ये शरारत एवं नटखवन जब ऐसी
सीमा का उ लंघन करने लगता है जससे सामा जक मायादा तथा कानून का उ लंघन होने लगता है तब इस
त को बाल अपराध क सं ा द जाती ह। वतमान समय म ब का वभाव सृजना मक कम व वंसा मक
अ धक हो गया है। अ धकांश ब े अपरा धक वृ क
े हो गए ह चाहे बा लग हो या नाबा ग हो पूण प से
वसा यक आवरण से आ है जसका प रणाम नै तक मू य क
े अवमू यन क
े प म देखने को मल रहा है।
ब क मान सकता ने वक
ृ त प ले लया है। पं डत जवाहर लाल नेह ने कहा था क कोई भी रा महान नह
बन सकता जब तक उसम नवास करने वाले लोग क वचारधारा एवं काय संक
ु चत ह गे। आज ब क
मान सकता ब त संक
ु चत हो गई है वह ब जन हताय क
े ान पर व हताय क बात करते ह। आज ब म
वाथ घृणा हसा नफरत एवं पालायन वृ का बोलबाला है। भारत म क
ु छ वष म बाल अपराध म तेजी से वृ
हो रहे ह जो आँकड़े हमारे सम आ रहे ह वो च का देने वाले ह। सन् 1951 म क
े वल 12000 ब ने अपराध
कए थे वही आज ब क
े ारा कए जाने वाले अपराध क सं या बढ़कर 1.27 लाख से अ धक हो गई है।
भारत क
े गृह मं ालय से का शत एक रपोट से होता है क पछले 10 वष म जहाँ लड़क क
े ारा बाल
अपराध म 10.8 तशत क वृ ई है, वही लड़ कय म बाल अपराध 21.6 तशत बढ़ गए ह। बाल अ ध नयम
1960 क
े अनुसार 7 से 16 वष क
े लड़क तथा 7 से 18 वष क आयु लड़ कय क
े ारा कए जाने वाले कानून
वरोधी वहार बाल अपराध क
े अ तगत आते ह। सी रल वट ने कहा है कसी ब े ारा कए जाने वाले समाज
वरोधी वहार जब इतना बंभीर हो जाता है क रा य ारा उसे दंड देना आव यक हो जाए क
े वल तभी उस
वहार को हम बाल अपराध कहते ह तथा उसक
े अनुसार यह बालक 5 से 18 क आयु क
े होते ह। अतः हम कह
सकते ह क एक न त आयु से कम ब ारा जुआ खेलना, जेब काटना, चोरी करना त करी म सहायता करना,
यौ नक राचरण करना अ व ाएं फ
ै लना, तोड़फोड़ करना इ या द बाल अपराध क ेणी म आते ह। 1897 म
भारत म बने Refmatory School क
े अनुसार 15 वष तक क
े बालक क
े समाज वरोधी काय को बाल अपराध
माना जाता है।
1990 म बाल अपरा धय पर कये गये अ ययन से यह पता चला क बाल अपरा धय ारा कए गए अपराध म
321 ह य 185 अपहरण 96 डक
ै तय 174 लूटमाटर तथा 9.155 चोरी से संबं धत अपराध थे। सबसे
आ यजनक बात यह है क ऐसे अपराध करने वाले क उ 7 से 21 वष से थी।
भारत म बाल अपराध क सम या एक गंभीर सम या है। इस संबंध म जे.सी. द ने कहा है भारत म बाल अपराध
बड़ी ती ग त क
े साथ एक गंभीर संकट होता जा रहा है और देश क
े व भ है भाग क
े जो आज से क
ु छ वष पूव
अ नवाय प से ामीण े क
े ही एक अंग थे ग तशील औ ो गक क
े साथ-साथ यह सम या अनेक प ा य
देश म उपल ान को शी ही हण कर लेगी।
एक अ ययन से पता चलता है क बाल अपराध क सम या ामीण े म भी गंभीर है। सव ण से यह भी कट
आ है क शहर म 17 तशत क तुलना म गांव म 7 से 21 वष क
े वयः समूह वाली क
ु ल कशोर जनसं या क
े
11 तशत बालक ारा अपराधी काय कये गये थे।
बाल अपराध एक गंभीर
सम या
13
बाल अपराध क प रभाषा
यूमेयर क
े अनुसार बाल अपराध को प रभा षत करते ए Juvenile Delinquency In Modern Society
म लखा है। अतः बाल अपराध का अथ समाज वरोधी वहार का कोई कार है । वह गत तथा सामा जक
वघटन का समावेश करता है। इसम एक नधा रत आयु से कम आयु का वह होता है जो समाज वरोधी काय
करता है तथा कानून क से अपराधी होता है।
स टल वट- बालक क
े उस समय क
े काय को बाल अपराध क
े प म प रभा षत करते ह । जब अथवा कया
जाना अ नवाय हो जाए।
बाल अपराध क
े कारक
1. आनुवं शक कारक - बाल अपराध क
े अनेक कारक म आनुवां शक कारक मुख है। अनेक मनोवै ा नक का
मत है क य म अपरा धक वृ ज म से ही पाई जाती है। इनक
े अनुसार अपरा धय क
े क
ु छ वशेष
शारी रक तथा मान सक ल ण होते ह । इटै लयन स दाय क
े मुख Cesare Lombrasso एवं उनक
े श य
Ferri क
े अ त र Maundlsey Dugdates आ द ने अपराध का कारण वंशानु म माना है। इस संदभ म
Valentine का यह मत उ रत करना यहाँ अनुपयु होगा अपरा धक वृ य म आनुवं शक ल ण ारा ही
ो साहन ा त होता है।
2. शारी रक कारक - बालक म शारी रक दोष एवं अ व शरीर क
े चलते यह सम या देखी जाती है। यह तभी
होता है ज बक ब को पौ क भोजन या त नह ा त होता है। जसे शारी रक बलता आ जाती है। वह अपने
हम उ बालक क तुलना म वयं को कमजोर एवं पछड़ा मानता है। फलतः हीनता वश असामा य वहार करने
लगता है साथ ही सामा जक अपमान का सामना भी करना पड़ता है जससे उसका वहार आसमा य हो जाता है
जसम वह अपरा धक काय को करने लगता है।प रवा रक कारक बात अपराध क
े संदभ म कये गये अ ययन से
यह न कष ा त होता।
क). Johnson ने अमे रका बो टन एवं शकाय नगर क
े 4000 अपराधी बालक का अ ययन कया और 2000
अपराधी को को भ न प रवार से संबंध पाया।
ख). Healy and Broner ने अमे रका बो टन एवं शकाग नगर क
े 4000 अपराधी बालक का अ ययन कया
और 2000 अपराधी बालक को भ न प रवार से संबंध पाया
ग ). Eliot ने अपने अ ययन म अनै तक प रवार को 67 तशत लड़ कय म तथा Burt ने 54 तशत लड़क म
आपरा धक वृ य को ा त कया।
घ). Glueck ने अपने अ ययन म यह प रणाम ा त कया 6 अपराधी बालक ऐसे प रवार क
े थे जसको दै नक
आव यकता पूरी नह हो पाती थी। इसी कार 252 अपराधी बालक को ऐसे प रवार से ा त कया जो
अपनीदै नक आव यकता को पूरा करने म अ य धक क ठनाई का अनुभव करते थे। Valentine ने अ या धक
नधन प रवार से बाल अपराध को ा त कए।
ङ). ब क
े त वहार से भी यह वृ ज म लेती है।
3. सं क
ृ त कारक:- साधारण अपने बोलचाल म समूह क
े शवसो मू य आदश खानपान, वेशभूषा और
14
रहन-सहन क
े साधन को सं क
ृ त कहते ह। सं क
ृ त म उ चत और अनु चत क एक धारण होती है। सं क
ृ त
को बताती है क या उ चत और या अनु चत है। मगरेट मोड ने Neuginea क
े तीन जनजातीय समूह का
अ ययन कया जो भौगो लक प से काफ नकट रहते ए भी अलग-अलग रहते थे। पहाड़ म रहने वाले
जरायुपेश सहयोगपूण नेहपूण तथा श य थे। उनम इ और आ मक वहार का सवमा अभाव था। नद तट
पर रहने मुहमर जनजा त क
े लोग अ यंत आ मक थे। पु ष तथा म हलाएं सभीगा और मुख आकाशी थे। यही
नकट हो झोल क
े पास बसे श बुली जनज त वाले लोग से म हला अपे ाक
ृ त अ धक स य नभाने क
े कारण
पु ष पर बनाये ए ह। ये सं क
ृ त उनक
े बालक-प तका म ई।
4. नगरीकरण नगरीकरण औ ो गकरण को बढ़ावा देता है। औ ो गकरण मशीनीकरण को बढ़ावा देता है।
मशीनीकरण ने बेरोजगारी को बढ़ावा दया है। लघु एवं क
ु ट र उ ोग का पतन आ है। ामीण का शहर क ओर
पलायन होने लगता है। नगरीकरण क
े कारण गंद जीवन प रमा रक अ रता एकाक प रवार त धा बाल म
माता का काम पर जाना मादक पदाथ का सेवन संबंध को अ रता कारण बात अपराध को ज म दे रहे ह।
इस सम या को ज म देते ह एवं सरकारी यास से इसक उपचार मनोवै ा नक वैधा नक व धय क
े व भ तरीक
से कया जा सकता है। इस कार इसका समाधान क
े वल शासन क
े यास ारा संभव स व नह होगा इसक
े
लए प रवार समाज क
े वृ तथा युवावग समाज सेवी सं ा तक शासक य यास का मलाजुला योगदान
आव यक है।
डॉ० मनोज क
ु मार
वभागा य दशनशा
मोबाइल नंबर -7488013170
15
ाचीन काल म हमारे समाज म नारी का मह व नर से कह बढ़कर होता था। कसी समय तो नारी का ान नर
से इतना बढ़ गया था क पता क
े नाम क
े ान पर माता का ही नाम धान होकर प रचय का सू बन गया था। धम
ा मनु ने नारी को ामयी और पूजनीया मानते ए मह व द शत कया-
‘य नाय तु पू यते, रभ ते त देवताः।’
अथात् जहाँ नारी क पूजा त ा होती है, वहाँ देवता रमण करते ह, अथात् नवास करते ह।धीरे धीरे समय क
े
पटा ेप क
े कारण नारी क दशा म क
ु छ अपूव प रवतन ए। वह अब नर से मह वपूण न होकर उसक
े समक ेणी
म आ गई। अगर पु ष ने प रवार क
े भरण पोषण का उ रदा य व स ाल लया तो घर क
े अ दर क
े सभी काय का
बोझ नारी ने उठाना शु कर दया। इस कार नर और नारी क
े काय म काफ अ तर आ गया। ऐसा होने पर भी
ाचीन काल क नारी ने हीन भावना का प र याग कर वतं और आ म व ास होकर अपने व का सु दर और
आकषक नमाण कया। पं डत म ा क प नी ारा शंकराचाय जी क
े परा त होने क
े साथ गाग , मै ेयी, व ो मा
आ द व षय का नाम इसी ेणी म उ लेखनीय है।
समय क
े बदलाव क
े साथ नारी दशा म अब ब त प रवतन आ गया है। य तो नारी को ाचीनकाल से अब तक भाया
क
े प म रही है। इसक
े लए उसे गृह ी क
े मु य काय म ववश कया गया, जैसे- भोजन बनाना, बाल ब क
देखभाल करना, प त क सेवा करना। प त क हर भूख को शा त करने क
े लए ववश होती ई अमानवता का
शकार बनकर य व य क व तु भी बन जाना भी अब नारी जीवन का एक वशेष अंग बन गया।
श ा क
े चार सार क
े फल व प अब नारी क वह दशा नह है, जो क
ु छ अंध व ास , ़ढवाद वचारधारा या
अ ानता क
े फल व प हो गयी थ । नारी को नर क
े समाना तर लाने क
े लए समाज च तक ने इस दशा म सोचना
और काय करना आरंभ कर दया है। रा क व मै थलीशरण गु त जी ने इस वषय म ता ही कहा है-
‘एक नह , दो दो मा ाएँ, नर से बढ़कर नारी।’
नारी क
े त अब ा और व ास क पूरी भावना क जाने लगी है। क ववर जयशंकर साद ने अपनी
महाका क
ृ त कामायनी म इसक चचा क वता क
े मा यम से व तार म कया है
नारी आज समाज म त त और स मा नत हो रही है। वह अब घर क ल मी ही नह रह गयी है अ पतु घर से
बाहर समाज का दा य व नवाह करने क
े लए आगे बढ़ आयी है। वह घर क चार द वारी से अपने कदम को बढ़ाती
ई समाज क वकलांग दशा को सुधारने क
े लए कायरत हो रही है। इसक
े लए वह नर क
े समाना तर पद,
अ धकार को ा त करती ई नर को चुनौती दे रही है। वह नर को यह अनुभव कराने क
े साथ साथ उसम चेतना भर
रही है। नारी म कसी कार क श और मता क कमी नह है। क
े वल अवसर मलने क देर होती है। इस कार
नारी का ान हमारे समाज म आज अ धक साया त और त त है।
भारतीय समाज म नारी का ान
मातृश प म
डॉ० अिनता क
ु मारी
िवभागा य अथशा
मोबाइल नंबर -7027215789
16
व ाथ का अथ है – व ा और अथ अथात् व ा का इ ुक या व ा को ा त करने वाला। व ा हण करना
व ाथ का धम और क है। व ा हण करना ही व ा का धम और क नह है, अ पतु इस व ा को
समाज और रा क
े लए उपयोग करना भी व ाथ का धम और क है। व ाथ का जीवन एक पुनीत सं कार
और स यता का जीवन होता है। वह इस अव ध म अपने अ दर द सं कार क यो त जलाता है। ये सं कार ही
धम, समाज और रा क
े त क ब होने क उसे रेणा दया करते ह। इनसे े रत होकर ही व ाथ अपने
ाण का समपण और उ सग कया करता है। इस कार से द सं कार का वकास ा त करक
े व ाथ समाज
और रा क
े त अपना कोई न कोई योगदान करता ही रहता है।
रा क
े त व ाथ का योगदान ब त बड़ा और व तृत भी है। वे अपने योगदान क
े ारा रा को उ त और समृ
बना सकते ह। रा क
े त व ाथ तभी योगदान कर सकता है, जब वह अपनी न ा और स याचरण को े और
महान बनाकर इस काय े म उतरता है। रा क
े त व ाथ य का कम े ब त ही अ त और अनुपम है,
य क वह श ा हण करते ए भी समाज और रा क
े हत क
े त अपना अ धक से अ धक योगदान दे सकता
है। यह सोचते ए यह व च आभास होता है क श ा और राजनी त दोन पहलु क
े लेकर व ाथ क
ै से आगे
बढ़ सकता है। य क व ा और राजनी त का स ब पर र भ और वपरीत है। अतएव व ाथ का अपने
समाज और रा क
े त योगदान देना और इसका नवाह करना अ य त वकट औेर कर काय है। फर एक
समाज च तक और रा भ व ाथ व ा ययन करते ए भी अपना कोई न कोई योगदान अव य दे सकता है।
अगर ऐसा कोई व ाथ करने म अपनी यो यता का प रचय देता है, तो न य ही वह महान रा -धम , रा का
नयामक और रा नायक हो सकता है।
रा नमाण म व ा थय का
योगदान
डॉ० सौरभ भ ाचाया
िवभागा य अं ेजी िवभाग
मोबाइल नंबर -8777797685
17
वतं भारत म सरकार ारा 26 जून, 1975 को घो षत आपातकाल देश और समाज पर बड़ा गहरा भाव
पड़ा। आपातकाल क घोषणा क
े बाद भारतीय ेस पर ीससर शप लगा दया गया था। क
ु ल उ ीस महीने क
े
आपातकाल क
े दौरान भारतीय ेस ने जो ासद भोगी-झोली, वह प का रता क
े इ तहास म काले अ याय क
े प
म रेखां कत हो गया है। प का रता जगत क
े - अ धकतर प कार -संपादक ने माना है क सन् 1974-75 क
े दौरान
भारत क आ थक, सामा जक, राजनी तक प र तयाँ ऐसी नह थ क देश पर आपातकाल थोपना एक मा
वक प बचा हो । भारत क
े महाम हम रा प त ी णव मुखज ने भी अभी हाल म कहा है क संभवत:
आपातकाल को टाला जा सकता था।
व ेषक का मानना है क इलाहाबाद उ यायालय ारा ीमती इं दरा गाँधी क
े चुनाव को अवैध घो षत करने
तथा उ ह छ: वष तक चुनाव लड़ने से अयो य घो षत कए जाने क नराशा और हताशा से उपजी मान सकता
संभवतः आपातकाल क घोषणा का ता का लक कारण बना हो । इसक
े अ त र वप ी दल ारा आंदोलन क
घोषणा, कां ेस क
े व ोह क संभावना ीमती गाँधी क तानाशाही वृ कां ेस क
े चापलूस नेता क चौकड़ी,
स ा से चपक
े रहने क मान सकता तथा महँगाई, बेरोजगारी और ाचार पर नयं ण क असमथता जैसे क
ु छ
मुख कारण ने आपातकाल थोपने क पृ भू म न मत क थी। खैर जो क
ु छ भी हो आपातकाल ने जो तांडव
मचाया उससे समाज जीवन ा हमान कर उठा था।
आपातकाल क घोषणा क
े साथ ही वयोवृ राजनेता और संपूण ां त क
े णेता लोकनायक जय काश नारायण
अटल बहारी वाजपेयी, लालक
ृ ण आडवाणी इ या द स हत हजार लोग को गर तार कया गया। इसने राजनेता
और सामा जक कायक ा क
े साथ-साथ लेखक, प कार, ा यापक, अ धव ा जैसे बु जीवी वग क
े लोग भी
बड़ी सं या म शा मल थे। क
े वल दलली व व ालय क
े 300 से अ धक ा यापक आपातकाल क
े दौरान गर तार
कए गए थे। आपातकाल क ासद और भयावह त का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है क
आपातकाल क
े 19 महीने क
े दौरान 1 लाख से भी अ धक लोग को बंद बनाया गया था जो 1942 क
े भारत छोड़ो
आंदोलन से भी अ धक था।
आपातकाल क
े दौरान ेस क वतं ता को छ नने क
े लए ी-ससर शप क
े साथ-साथ और भी कई कदम उठाए
गए। रा प त ारा 8 दसंबर, 1975 को तीन अ यादेश जारी कए गए जससे ेस को वतं ता द मत और खं डत
ई। देश क
े ायः सभी समाचार प क
े कायालय पर पु लस का पहरा डाल दया गया। अनेक समाचार प क
ेस क बजली काट द गई ता क समाचार प को छपने से रोका जा सक
े । जो समाचार प छप गए थे, उ ह
वत रत नह होने दया गया। क
ु ल मलाकर उसी रात इस बात क पूरी व ा कर ली गई क देश म या क
ु छ हो
रहा है. इसका पता जनता को नह चल सक
े । इसक
े बावजूद दै नक जागरण और नई नया स हत अनेक समाचार
प म उस दन वरोध व प संपादक य का ान खाली छोड़ दया था और सरकार को खुली चुनौती द थी।
इतना ही नह देश क
े सैकड़ प कार ने जन सामा य को व तु त से अवगत कराने क
े लए भू मगत संचार-
व ा शु कर द तथा इसक
े तहत दजन समाचार बुले टन का काशन करने लगे।
क
ु ल मलाकर य प से का शत तथा वत रत होने वाली प -प का क
े संस रत होने क
े म ेनजर भू मगत
संचार व ा समाना तर प से खड़ी हो गई थी। जनता क
े बीच सूचना सं ेषण या क
े छ - भ हो जाने क
े
बावजूद सरकार ारा एकता संवाद सं े षत करने क मान सकता पर क
ु ठाराघात कया गया। प कार ने गु त प
आपातकाल त म भारतीय
ेस का योगदान
18
से नकलने वाले नय मत समाचार बुले टन क
े साथ-साथ पूरे देश म अलग-अलग ान से व भ कार क
े
हड बल, पच, बुकलेट, फलेट इ या द नकालकर पु ल सया दमन का क ा च ा खोलते रहे। जनसंचार क इस
वैक पक व ा ने न क
े वल जन-जीवन को आपातकाल क स ाई से अवगत कराया अ पतु भू मगत आंदोलन
को भी धारदार बनाया।
अ खल भारतीय लोक-संघष स म त ारा न न ल खत बुकलेट का शत कए गए, जो आपातकाल का क ा च ा
खोलते ह-1. ट्वट लाइस ऑफ मसेस एंट गाँधी, 2 एनाटॉमी ऑफ फॉ स म, इज कॉ स ट वी ऑर दे. 3.
फ
ै ट्स (नेल (Nail) इं दराज लाइस), 4. हेन डसऑ ब डएस द् लॉ इज ए ूट . 5. चाटर ऑफ स वल लबट ज,
6. सं वधान को बदल डालने का ा प, 7. इमरजसी ए स-रेज 8 फा जस म 9. रा ीय वयंसेवक संघ और
राजनी त, 10, काली रात
आपातकाल क
े दौरान अनेक समाचार बुले टन भी का शत कए गए, जनम पटना से का शत न न ल खत
बुले टन को नाम उपल ह- 1. लोकवाणी (लोक-संघष स म त और व ाथ प रषद्) 2. त ण ां त (छा संघष
स म त), 3. हमारा संघष (भारतीय लोकदल) 4. मु -सं ाम (लो हया वचार मंच एवं छा संघष स म त), 5.
जनमु (मा सवाद ) 6. ां तवाद (युवा वा हनी). 7. छा -श व ाथ प रषद्) 8. भारतीय (अ खल भारतीय
व ाथ प रषद्) 9. जनता समाचार, 10. लोक-संघष, 11. सं ाम, 12. लोकप (युवा वा हनी एवं छा संघष
स म त), 13. युवा संघष
ससर शप क
े कारण सरकार और समाज क
े बीच सूचना क
े सं सारण म आने वाली परेशा नय का अनुभव
सरकार को भी नह था। शासन क तानाशाही क खबर कसी न कसी प म जनता तक तो प ँच जाती थी.
कतु सरकार तक वह समाचार नह प ँच पाता था तानाशाही क तेज आँच म लोक वातं य धू-धू कर जल रहा था
और सरकार बेखबर थी। सरकार को यह गलतफहमी बनी हरी क सभी सम या क जड़ प -प काएँ ही ह। यही
कारण है क आपातकाल क
े दौरान उननीस महीन तक स ा क
े दमन च क
े नीचे प का रता कराहती रही। ससर
क क
ै ची ने उसका व प ही बगाड़ दया जसका खा मयाजा उसे भुगतना पड़ा।
चार क
े ारा स य को असतय और अस य को स य म बदला जा सकता है ऐसा हटलर तथा टॉ लन दोन करक
े
दखा गए थे। इं दरा जी द णपंथी क यु न ट क मदद से उसी कार का चारा मक आ मण कर रही थ । जे.
पी. आचाय क
ृ पलानी मुह मद करीम छागला, क
ु लद प नैयर, गा, भागवत, फणा रनाथ 'रेणु'. डॉ. रघुवंश, गौर
कशोर घोष इ या द अनेक सवमा य नेता ।
चंदन काश
वभागा य रसायन शा वभाग
मोबाइल नंबर -9798919133
19
च ारण स या ह का मूल कारण आ थक था। ले कन कां ेस म पुराने नेता ने च ारण क आ थक दशा
पर यान देने से मना कर दया था तथा गांधीजी अनमने ढंग से ही च ारण आये थे। उ ह न तो च ारण क
भौगो लक त का कोई ान था और न ही वे नील क खेती क
े बारे म क
ु छ जानते थे। वे च ारण या ा क
े बारे म
शंकालू भी थे। अतः उनक
े साथ बाहर क
े वयंसेवक तथा ेस क
े लोग भी नह आये थे। च ारण गांधीजी क
े लए
एक अनुभव था।
गांधीजी ने यहाँ भयंकर गरीबी देखी। पढ़ने का कोई साधन नह था। रैयत क
े ब े या तो खेत म काम करते या
मटरग ती। एक पु ष मक एक दन म दस पाई, ी मक छः पाई तथा बालक मक तीन पाई ही कमा पाता
था। य द कोई दन म एक चव ी कमा लेता था तो वह सौभा यशाली समझा जाता था। गरीबी इतनी थी क
य क
े पास एक ही कपड़े हाने क
े कारण वे उसे धो नह सकती थी। गंदा रहने क
े कारण कसान बाराबर बीमार
रहते थे और उ ह चम रोग हो जाया करता था।
गांधीजी बड़े थत ए। उ ह ने पाठशालाएं खुलवाई। उ ह ने बाहर से वयंसेवक, श क तथा डॉ टर बुलवाये।
ले कन सबसे बड़ी जो बात ई, वह यह थी क गांधीजी ने यह अनुभव कर लया क बना आ थक वरा य क
े
राजनी तक वतं ता क बात नरथक है।
इ स लए च ारण क
े कसान क सम या से नपटने क
े तुरंत बाद फरवरी, 1978 ई० कपड़ा मज र क हड़ताल
क
े म लए अहमदाबाद गए तथा फर खेड़ा म कसान क
े स या ह का नेतृ व कया। यह कां ेस क
े पुराने नेता क
े
राजनी तक उ े य मा क नी त से सवथा उलट था। गांधीजी ने वयं अपने आ मकथा म लखा है क जब
च ारण म कसान क आ थक सम या का संघष कया गया, तो वे राजनी तक प से अयास ही जाग क हो
गए। डी.जी. त लकर ने लखा है क च ारण, जहाँ संत ने ाचीन काल म ान पाया था, म गांधीजी ने अपने
जीवन क
े मशन का सा ा कार कया और एक ऐसे अ का आ व कार कया जससे भारत वतं कराया जा
सका।
देश क ामीण और गरीब जनता को राजनी तक वतं ता से जोड़ने क
े लए गांधीजी ने चरखा और खाद क
े
आ थक वरा य का मं दया। 6 फरवरी, 1921 ई० पटना म बहार क
े लोग क
े सम अपने भाषण म गांधीजी ने
श द म कहा था क अक
े ले चरखे क
े दम पर ही वराज पाया जा सकता है।
इस कार गांधीवाद युग क
े भारतीय रा ीय आ दोलन पर च ारण स या ह का रगामी प रणाम सहज ही देखा
जा सकता है। इस युग म थम अ खल भारतीय आ दोलन 'असहयोग आ दोलन' अ पृ यता नवारण क
े संदभ म
कई मह वपूण घटनाएँ ई। एक चमार जा त क
े ने एक कलवार जा त क
े क
े घर म ा ण, भू महार,
राजपूत, काय तथा अ य जा तय क
े लोग क
े साथ मो तहारी म क ी रसोई (भात) खाई। च ारण तथा
मुज फरपुर म क
ु छ और य ने अ तजातीय भोज का आयोजन कया। " प रषद् सद य ी ह रवंश सहाय तथा
योगाप क
े ी वशुनाथ सह मु य व ा थे
च ारण क
े अनुभव से गांधीजी ने भारतीय रा ीय आ दोलन को जन आ दोलन बनाने क
े लए जनता म आ थक,
सामा जक एवं शै णक आधार पर रा ीय जागरण को ो सा हत करने क
े मह व को समझा। रा ीय आ दोलन का
च ारण म गांधी भाव क
नरंतरता
20
फलक अ य त व तृत हो गया। चरखा, खाद इ या द क
े सफल योग से ामीण भारत क जनता साल भर
भारतीय रा ीय कां ेस क
े भाव से उ े लत होती रही। चरखा और खाद से देश म नारी-जागृ त तथा धा मक
स ह णुता क
े भाव भी समृ ए। अ धकांश सूत कताई का काय म हलाएँ ही करती थी। ये 'क तने' मु यतः ह
धमावल बी थी तथा - कांश बुनकर (जुलाहे) मु लम थे। फल व प स ूण भारत म रा ीय जागरण क एक नई
और अ धक ती लहर उठ ।
डॉ० क
ु मार व ण
वभागा य हद वभाग
मोबाइल नंबर -9472615216
21
यह हम भली भाँ त जानते ह क आज व ान क
े जो भी चम कार दखाई दे रहे ह, उनम से अ धकांश
इलै क से ही स ब त ह। इस कोण से आज क
े युग को अगर इलै ो न स का युग कहा जाता है, तो कोई
च काने वाली बात नह है और न यह कोई अस य होता है। वा तव म व ान ने इलै ो न स क आज धूम मचा द
है। सच कहा जाए तो व ान का ाण इलै ो न स ही है या व ान इलै ो न स पर ही आधा रत है। यही कारण
है क व क
े जो वक सत रा ह, उ ह ने इलै ो न स को ब त मह व दया है।
हम यह भी भली भां त जानते ह क आज क
े व ान क
े दो ाण त व ह- इलै ो न स और टे नोलाजी। इन दोन
का भाव अपने अपने प र े म अ य त ापक और स य प से है। इलै ो न स क
े ारा जहाँ हम एक से
एक उ ोग- ापार, स क आ द सफलतापूवक और सु वधापूवक कया करते ह, वह टे नोलजी क
े ारा हम
व भ कार क
े काय को भी स कर डालते ह, जो क
े वल इलै ो न स क
े ारा संभव नह है। सरी ओर जो
इलै ो न स क
े ारा हम मह वपूण और आव यक काय को प रपूण कर लेते ह, वह टे नोलाजी क
े ारा भी संभव
नह है। टे नोलाजी क
े दो प हम आज ा त ए ह- एक परमाणु व ान और सरा अंत र व ान। इन दोन
कार क
े व ान से हम अपना व तरीय मह व स करने म सफल ए ह। अतएव टे नोलाजी और
इलै ो न स का आज वशेष मह व स हो रहा है।
य तो भारत म इलै ो न स का उदय सन् 1950 से हो गया था, ले कन इसका अ य धक वकास लगभग 20 वष
क
े बाद आ। अतः भारत म इलै ो न स क बढ़ ई श सन् 1970 क
े आस पास दखाई पड़ी। इससे भारत ने
आ म नभरता क
े े म ब त बड़ी कामयाबी ा त क है। इस कोण से आ म नभरता क
े लए सही स ा त
और नी तय को सुचा प से चलाने क
े लए सन् 1971 क
े फरवरी माह म इलै ो न स आयोग का गठन कया
गया। भारत म इस आयोग क
े गठन क
े फल व प लघु और बड़े उ ोग कलकारखान को संग ठत करक
े लगभग
150 बड़े करखाने और लगभग 2000 छोटे कारखाने ा पत कए गए। उनसे उपयोगी और े इलै ो न स क
े
उपकरण और पुज तैयार कए जाते ह। इन दोन कार क कारखान क उ पादन आय और मता सन् 1980 तक
806 करोड़ क
े आस पास हो गई, जो पूव उ पादन आय क तुलना म अ धक संतोषजनक और अपे त है।
इलै ो न स आयोग क
े गठन क
े बाद ही उपभो ा उपकरण , इलै ो न स क व तुएँ, औ ो गक इलै ो न स क
े
उपकरण, पुज, संचार, उपकरण, वायु उपकरण, सै नक उपकरण, क यूटर, नयं क यं आ द क णा लयाँ भी
लागू क ग ।
भारत म इले ॉ नक ां त एक
अ त घटना
डॉ० इंदु क
ु मारी
वभागा य जंतु व ानं वभाग
मोबाइल नंबर -7667113829
22
वामी ववेकान द क
े समाजवाद तथा मानवतावाद का वकास उनक वैदा तक माणता क अवधारणा क
े
आधार पर आ। उनक
े समाजवाद ने वग सहयोग तथा एकता और उनक
े मानवतावाद ने मुन य क ई र क
े प म
पहचान को तथा मानवता का ेम तथा उपासना क
े मा यम से सेवा को ो सा हत करती रही है। सामाजवाद को
जस प म उ ह ने देखा, वह मानवतावाद क
े वकास क
े सा य का एक साधन मा था। मानव जीवन का आर
समानता से होता है और वै क एकता क ा त म उसक प रण त होती है। इसी लए वह हर कार क
े
वशेषा धकार तथा शोषण क
े व थे, चाहे उनका स ब क
े वचार से हो या फर सामा जक अ त व से
मानव क दासता चाहे वह शरी रक रही हो, या मान सक या आ या मक, उसका एकमा कारण असमानता ही
रही है। वा तव म उनक समानता क अवधारणा उनक समूची आ या मक वचारधारा का आधार है और वह
क
े मक वकास को ो सा हत करती है तथा यह भी बताती है क वकास क इस या म
असमानता का कतना बोलबाला रहा है।
समानता से ववेकान द का अ भ ाय सामा जक, आ थक, राजनै तक अथवा कसी अ य कार क वशेष
असमानता से नह था। उनका अ भ ाय समानता क
े प से न होकर उसक या से था। क
े मक
वकास म अपनी आ ा क
े कारण वह स ूण समानता अथवा स ूण असमानता क
े च कर म फ
ं सने से बच गए।
उनका कहना था क नया म समानता व आसमानता दोन साथ-साथ चलती ह। समानता क तरह असमानता का
होना भी वाभा वक लाभदायक तथा सृजना मक होता है। उ ह ने यह भी वीकार कया है क असमानता न तो
सनातन है और न ही असीम। उ ह ने क असमानता क
े व संघष क अ नवायता तथा एकता क
आकां ा को उ चत माना। मानव अनेकता म उनका व ास सां य दशन तथा पातंज ल क
े "आ मानुभू त" क
े
स ांत पर आधा रत था, जब क वेदा त म उनक आ ा ने उ ह मानव एकता क घोषणा क
े लए े रत कया।
वामी जी का वचार था क समानता तथा असमानता दोन ही ववेक पर आधा रत तथा अव य ावी ह। मानव
क
ृ त क
े सां य ारा कए गए मनोवै ा नक व ेषण से मानव क असमानता क वषमता का पता लगता है।
य क
े बीच स व, रजस तथा तमस क
े गुण क
े कारण पर र मतभेद रहते ह। इसी लए ववेकान द ने वण-
वभाजन को तकसंगत माना। अपने वाभा वक गुण क
े अनुसार, ा ण, य, वै य तथा शू क
े गुण हर
म ह। अ तर सफ इतना है क कसी म कसी एक गुण क धानता है तो कसी म सरे क । सामा जक व ा
क
े चार गुण भी क
े इ ह गुण पर आधा रत ह। ा ण, ान क
े शासन तथा संवेदनशीलता क ग त क
े
तीक ह। शू असमानता पर समानता क वजय का तीक है। ान, संर ण,ग त व धय तथा समानता क
एक पता को ववेकान द ने सराहा। ले कन इसक ा त को मु कल मानकर हर जा त ने स ा को अपने हाथ म
क
े त करने का य न कया, जो अवन त क
े कारण बना। ववेकान द ने उ जा त क
े लोग ारा अपने से न न
जा त क
े लोग क
े त कए गए अ याचार तथा दमन क
े व संघष कया। ववेकान द क
े मानव असमानता से
स ब त वचार को उनक मानव क
े आ या मक वकास क अवधारणा म भी ढूंढा जा सकता है। पातंज ल क
े
आ मानुभू त क
े स ा त से उ ह ने यह सीखा क आ मानुभू त क ा त से मनु य क
े वाभा वक गुण म प रवतन
होता है और यह े ता क
े एक तर से सरे तर तक प ंच जाता है। पातंज ल क
े वचार को वीकार करने वाले
ववेकान द यह मानते थे क एक तथा सरे क
े बीच म जो अ तर है। वह उसक
े आ या मक वकास
क
े चरण- वशेष का प रचायक है। इसी लए एक तथा सरे क
े बीच अ तर क
े वल मा ा का है, गुण का नह ।
पातंज ल क
े आ मानुभू त क
े स ा त ने ववेकान द क
े समानता क
े स ा त को सृजना मक तथा सकारा मक बना
दया। इसी लए उ ह ने क पहल, वतं ता तथा समान अवसर क आव यकता पर जोर दया।आ मानुभू त
क
े स ा त म व ास क
े कारण ववेकान द ने कम क अवधारणा को वीकार कया तथा समाज क
े जीवन
क
े कारण तथा प रणाम क
े नयम को माना। कम का नयम व भ य क
े बीच अ तर का बोध कराता है। कम
वामी ववेकानंद का आ या मकवाद
तथा भौ तकवाद का सामंज य
23
क
े वकास तथा वत ता का प रचायक है। तथा समाज का पतन इस बात पर नभर करता है क वह
या करता है और या करने से बचता है। उनक
े अनुसार, भारत क दासता का कारण जनता क अपे ा थी। हम
अपनी दशा, गरावट, दासता तथा असमानता क
े लए वयं को ही दोषी मानना चा हए। इस लए, तथा
समाज दोन को असमानता क
े कारण को अपने अ दर झांककर देखना चा हए और उ ह र करने का य न करना
चा हए। जब लोग वेदा त क
े उपदेश को मान लगे क जो क
ु छ भी है वह सब एक से ही ह, तो असमानता का लोप
हो जाएगा।
दीपा मुखज
अं ेजी वभाग
मोबाइल नंबर -7318019138
24
सह श ा से ता पय है- लड़ कय तथा लड़क का एक साथ पढ़ना। आधु नक युग म जहां लड़ कयां हर े म
लड़क क
े मुकाबले बेहतर दशन कर सकने म स ह, उ ह श ा क
े अ धकार से व चत नह रखा जा सकता।
सह श ा से ता पय है- लड़ कय तथा लड़क का एक साथ पढ़ना। आधु नक युग म जहां लड़ कयां हर े म
लड़क क
े मुकाबले बेहतर दशन कर सकने म स ह, उ ह श ा क
े अ धकार से व चत नह रखा जा सकता।
हमारा देश एक वकासशील देश है। इसक
े सी मत साधन म लड़ कय व लड़क क
े लये अलग अलग व ालय
अथवा श ण क
े क व ा करना एक महंगा काय है। लड़ कय को पढ़ाने क
े लये ो सा हत व अ त र
खच को वहन करने से ही सह श ा का मह व बढ़ता है।
सह श ा म छा छा ाएं एक साथ पढ़ते लखते और मेलजोल बढ़ाते ह। उनको एक सरे को समझने का पूण
अवसर मलता है, जो उनक
े भावी जीवन म सहायक बनता है।
सह श ा का चलन प चमी श ा और स यता क दने है। आज हर वक सत और वकासशील देश म इसका
चलन है। ाचीन भारत म लड़क
े एवं लड़ कय को गु क
ु ल म रखकर अलग अलग पढ़ाया जाता था। जहां च र
नमाण पर अ य धक बल दया जाता था। आधु नक युग म प र तय क
े साथ साथ च र और आचरण क
े अथ
म प रवतन आया है। बदलते युग क सम या को सुलझाने और उनका सामना करने क
े लए युवा वग का
जाग क होना और एकजुट होना ज री है। देश क ग त क
े लये लड़क
े और लड़ कय क मान सकता म वकास
और उनक बराबर क श ा ब त ज री है।
क
ु छ पुरातन पंथी लोग सह श ा का वरोध करते ह। उनक
े अनुसार लड़क
े और लड़ कय क
े साथ साथ पढ़ने और
उठने बैठने से च र और समाज क मयादा का हनन स व है। पर स य इसक
े वपरीत है। री आकषण बढ़ाती
है और वातावरण म खुलापन लाने क अपे ा छुप छुप कर मलने और अ य बुराइय का कारण बनती है। अतः हम
सचेत रहकर सह श ा को ही ो सा हत करना चा हये।
सह श ा आधु नक युग क मांग है जससे नाग रक और देश का चौमुखी वकास संभव है।
सह श ा अ ययन क
े साथ
व ा थय का वकास
िवकास रंजन
सहायक ोफ
े सर राजनीित शा
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25
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  • 1.
  • 2. संर क त क ु लप त माननीय ो0 डॉ. ल मी नारायण सह - जय काश व व ालय छपरा डॉ पु प राज गौतम - ाचाय - पीएन कॉलेज परसा  डॉ संजय क ु मार सह - वभागा य इ तहास वभाग- पीएन कॉलेज परसा संपादक मंडल डॉ संजय क ु मार सह डॉ क ु मार व ण डॉ अ नता क ु मारी डॉ मनोज क ु मार डॉ सौरभ भ ाचाय द पा मुखज चंदन काश वकास रंजन डॉ इ क ु मारी डॉ मोह मद शमीम संपादक डॉ अ नल क ु मार, वभागा य राजनी तक शा वभाग, पीएन कॉलेज परसा "यह शोध प का भाषा, सा ह य, मान वक , समा जक व ान, कला, सं क ृ त एवं वा ण य क े े म व त जन क े सम अंतररा ीय तर पर तुत करगी।" शोध प का (संगमनी) जुलाई 2021 मू य: ₹100 अंतररा ीय तर पर ैमा सक शोध प का काशनाथ क ृ त संक पत
  • 3. अनु म णका .सं 01 02 03 04 05 06 07 08 09 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 ववरण ांज ल माननीय एवं पूजनीय तक ु लप त महोदय संपादक क कलम से महा व ालय एवं श क श क क े लए संदेश व ा थय क े नाम संदेश संसार का सबसे बड़ा तप है स य म जीना व यात और भावशाली आ या मक गु वामी ववेकान द बाल अपराध एक गंभीर सम या भारतीय समाज म नारी का ान मातृश प म रा नमाण म व ा थय का योगदान आपातकाल त म भारतीय ेस का योगदान च ारण म गांधी भाव क नरंतरता भारत म इले ॉ नक ां त एक अ त घटना वामी ववेकानंद का आ या मकवाद तथा भौ तकवाद का सामंज य सह श ा अ ययन क े साथ व ा थय का वकास अब हम कसी क े गुलाम नह ह गरीबी संसार का सबसे बड़ा भा य अ त थ श क भारतवष कायालय सहायक गण अखबार क े प ो से O’ COVID-19 पृ सं या 02 03 04 06 07 08 09 10 13 16 17 18 20 22 23 25 26 27 28 30 31 32 33
  • 4. वग य दरोगा साद राय भूतपूव मु यमं ी बहार महापंिडत रा ल सांक ृ ायन हद या ा स ह य क े पतामह 󰏎व󰋙ा नाम नर󰎠 󰏆पम󰏐धक ं 󰇹󰉻󰋴गु󰌈ं धनम्। 󰏎व󰋙ा भोगकरी यशः सुखकरी 󰏎व󰋙ा गु󰏆णां गु󰏅ः। 󰏎व󰋙ा ब󰋰ुजनो 󰏎वदेशगमने 󰏎व󰋙ा परं दैवतम्। 󰏎व󰋙ा राजसु पु󰊑ते न 󰏌ह धनं 󰏎व󰋙ा󰏎वहीनः पशुः॥ अथा󰇢त:- 󰏎व󰋙ा इ󰌁ान का 󰏎व󰏒श󰍻 󰏅प है, 󰏎व󰋙ा गु󰌈 धन है. वह भोग देनेवाली, यशदेने वाली, और सुखकारी है. 󰏎व󰋙ा गु󰏅ओं क󰎫 गु󰏅 है, 󰏎वदेश म󰎷 󰏎व󰋙ा बंधु है| 󰏎व󰋙ा बड़ी देवता है, राजाओं म󰎷 󰏎व󰋙ा क󰎫 पूजा होती है, धन क󰎫 नह󰎱, 󰏎व󰋙ा󰏎वहीन 󰍩󰏑󰈸 पशु ह󰎱 है| 02
  • 5. हमारे माननीय एवं पूजनीय त क ु लप त महोदय डॉ ल मी नारायण सह जी क े बारे म दो श द कहने क े लए व ा क देवी मां सर वती क आराधना करनी होगी l "आपने संगमनी ैमा सक प का का मागदशन द या इसक े लए भुनाथ महा व ालय आपका सदा आभारी रहेगा l" आप एक यात इ तहासकार एवं श ा वद है l आपक े वष क े अ यापक जीवन का अनुभव इस व व ालय को सफलता क आ खरी पायदान पर प ंचा देगी ऐसा हम सबका पूण व ास है, आपने व ा थय को हर प र त म सदैव मु क ु राते रहने क सलाह द । कहा क जीवन म हम कभी भी संतु नह होना चा हए। इससे हमारे अंदर बढ़ने क भूख मर जाती है। आप एक ऊजावान कमठ एवं कत न श ा वद है l आपक कत न ा हम सब क े लए ेरणा का ोत है। व व ालय म आपका क ु शल एवं स दय व ही आपक पहचान है। म आपक े व से खासा भा वत ं। म गव क े साथ कहता ं क आपने व व ालय म सीखने और वकास क े लए एक सुंदर वातावरण बनाया है, जसका उपयोग गुणा मक श ा दान करने क दशा म सफलता ा त ई है। आपका शास नक काय करने क े तरीका अ त सराहनीय एवं शंसनीय रहा है आप सबका साथ सबका वकास एवं म वत वहार क े साथ श क एवं श क े तर कमचा रय क े साथ सबसे स चत मु ा मे उसक े कत बोध का ान कराने क कला आपक े अंदर ई रीय श क े प म आपक े आरं भक जीवन से ही देखने को मलता है l आपने जय काश व व ालय छपरा क े त- क ु लप त का पदभार हण करते ही आपने श ा क गुणव ा और मानकता को बेहतर बनाने का सफल यास कया है। आपने क सरकार क नई श ा नी त का समथन कया है। आपक े अनुसार यह श ा नी त देश म कौशल को बढ़ावा देगी। एक ऐसी श ा प त बनायी गई है जो हर युवा को नरमंद बनाएगी। इसक सबसे बड़ी वशेषता यह है क नई श ा नी त म अं ेजी क बा यता नह होगी। मातृभाषा हद क े मा यम से श ा ा त क जा सक े गी। आपक नई व ा एवं मागदशन मे शोध को बढ़ावा देगी। आपक आने से व ा थय म उ साह एवं उमंग है l सभी व ा थय क े प रजन आप से उ मीद लगाए बैठे ह क व व ालय का श ा एवं अनुशासन पहले से यादा सु ढ़ होगा ऑनलाइन वेश णाली को आपने मजबूत एवं आसान बना दया है जससे हजार छा लाभा वत हो रहे ह। व ा थय को परामश, परी ा लखने और ड ी, ड लोमा और माण-प ा त करने म आ रही क ठनाइय को आपने र कर दया गया है। इन सभी और अ य उपाय से श ा क इस णाली म कई गुना छा क सं या म वृ क उ मीद क जा सकती ह। छा क े आ म व ास को बढ़ाने क े लए आपका सरा सबसे बड़ा यास रहा है। रोजगार क े अवसर को बढ़ाने को यान म रखकर अं ेज़ी म क ु शल बनने क े लए सु वधाएं दान करना ता क जब वह व व ालय को छोड़कर बाहर जाए, तो उ ह कसी भी अ य यू नव सट या सं ान से या कसी भी कार क रोजगार तयो गता से हीनता का अनुभव ना हो। व व ालय को आपक े साथक समथन क े साथ सभी लोग क सेवा करने म खुशी होगी एवं हम सभी आप क े कायकलाप से सदा ही गौरवा वत महसूस करगे। माननीय एवं पूजनीय तक ु लप त महोदय डॉ० पु प राज गौतम ाचाय 03
  • 6. सारण मंडल सं क ृ त और राजनी त का संगम ल रहा है। यहां एक ओर महान वतं ता सेनानी यात कानून वद और भारत क े थम रा प त डॉ राज साद क कमभू म होने का सौभा य ा त है तो सरी ओर जय काश नारायण जैसे महान ां तकारी और वचारक क ज मभू म भी रही है। यह वही धरती है जहां रा ल सां क ृ यायन जी जैसे महान पं डत क कमभू म होने का गौरव ा त है। इसी व व ालय से मनोरंजन साद एवं शवपूजन सहाय जैसे हद क े व ान ने राज कॉलेज म अ ययन कया था। जसक े सा ह य क े औदानो से पूरे भारत को रौशनी मलती है। यह भोजपुरी क े महान नाटककार और क व भखारी ठाक ु र क े अवदान से पूरा भारत प र चत है। इस महान धरती पर भटक े ए युवक क क ुं ठा एवं तनाव को र करने क े लए यह आव यक है क उनक े नै तक मू य को जागृत कया जाए। यह काम श ा का अलख जगा कर ही कया जा सकता है। ऐसा हमारे महा व ालय क े ाचाय डॉ पु प राज गौतम एवं व र ा यापक डॉ संजय क ु मार सह का मानना है। उनक सोच है क इसक े लए एक अ भयान चलाया जाए । हमारे ाचाय का मानना है क समाज म नै तक मू य अभी भी जी वत ह बस उनम उजा का समावेश करना बाक है ।जब देश म हर नै तकता से प रपूण होगा तो चार और शां त एवं स ता का माहौल होगा। साथ ही उनका यह भी कहना है क 'अ या म' जीवन क एक ऐसी सीढ़ है जस पर चढ़कर येक अपनी मेहनत और कमठता से मनचाही सफलता ा त कर सकता है। संपादक क कलम से 04
  • 7. यह शोध प का भाषा, सा ह य, मान वक , सामा जक व ान, कला, सं क ृ त एवं वा ण य क े े म अ तन आधु नक शोध को छा , शोधाथ , अ यापक एवं व तजन क े सम अ तरा ीय तर पर तुत करेगी। इस प का क े संपादक य दा य व क े नवहन का यास मने पूरे मनोयोग से कया है। फर भी कोई ु ट रह गई हो तो उसक े लए मा ाथ ँ। इस असंभव सा लगने वाले काय म हमारे ाचाय डॉ पु पराज गौतम, व र ा यापक डॉ संजय क ु मार सह एवं संपादक मंडल क े सभी व ान सद य का आशीवाद एवं सहयोग ा त आ है। जसक े लए म सभी को वशेष प से आभार कट करता ँ । साथ ही आप सभी से आ ह एवं अनुरोध है क इस रा ीय एवं अ तरा ीय तर क े सार वत अनु ान म सहयोग कर। ध यवाद । डॉ० अिनल क ु मार वभागा य राजनी तक शा वभाग मोबाइल नंबर -9523635919 इन वचार को छा -छा ा एवं समाज क े सभी लोग तक प ंचाने का सश मा यम प का से बेहतर कोई और नह हो सकता। इसी लए हमारा महा व ालय रा ीय एवं अ तरा ीय तर पर ैमा सक शोध प का (संगमनी) क े काशनाथ क ृ तसंक पत है। " संगमनी" दैवी श का वशेष नाम है ।जो व क े सभी ाक ृ तक सामथ को सु व त करती ह । यह 'वाग ृणी देवी' क े लए ऋ वेद म यु आ है जो उपयु काय हेतु आ या मक श य का संचालन करती है। श द च ह- "आनो भ ाः कतवो य तु व तः" (ऋ वेद: 1.89.1) ऋ वेद से उ त है। जसका अथ है सभी दशा से संपूण सु वचार हमारे पास आये ।शीषक पृ पर देद मान सूय आ या मक ऊजा को न पत करता है, जो संपूण क ृ त पर अपना भु व रखता है । जो इसे संसार म अपने व प म आ वभाव होने क े लए बढ़ाता है। बादल अ ानता पी बाधा को संक े तक करते ह जो च त देद मान सूय क े आ या मक ऊजा से न हो जाते ह। शीषक पृ क े नीचे खलते ए कमल चमकते ए सूय क े आ या मक ऊजा क े वक सत और आ वभा वत व प का त न ध व करते ह।तीन कमल शीषक 'संगमनी' श द क उपादेयता को घो षत करते है जो जगत क संपूण व तु को एक त, सु व त एवं संचा लत करती ह। 05
  • 8. भुनाथ महािव ालय, परसा (सारण) Prabhunath Mahavidyalaya Parsa, Saran, Bihar थापना: 1958 महा व ालय एवं श क 06
  • 9. य श क , यह सच है क श ा णाली आपको वह करने क आजाद नह देती, जसे आप सबसे बेहतर मानते ह। श ा णाली और माता- पता क उ मीद कई बार इतनी बल होती ह क अपने व ा थय से अलग से क ु छ कहने का आपक े पास व त नह होता। मगर इतनी चुनौ तय क े बावजूद म कहना चा गां क आप एक ब चे को उसक पूण मता म वक सत होने म योगदान दे सकते ह। आपको हर दन बस तीन मनट का समय नकालना है, यह देखने क े लए क – वह कौन सी चीज है, जसक आपक े छा को वाकई ज रत है। अभी जो हमारी श ा- णाली है, वह ब च को सफ सूचनाएं व जानका रयां देने क े बारे म है। आप इन जानका रय को कई तरीक से दे सकते ह, ले कन अगर आप अपने पास आने वाले सभी छा म ेरणा क एक न ह सी चगारी पैदा कर पाएं, तो वह पूरी जदगी उनक े साथ रहेगी। सूचना उपयोगी हो सकती है, वह परी ा पास करने या नौकरी पाने म उनक मदद कर सकती है, ले कन अगर आप उनक े अंदर ेरणा क चगारी पैदा करगे, तो वे पूरी जदगी आपक क करगे। हर श क को इस पर यान देना चा हए क म कस तरह एक सरल तरीक े से,सही व पर क ु छ करक े या दो श द कहक े इन ब को े रत कर सकता ं। चाहे श ा णाली क ै सी भी हो, आप इतना तो कर ही सकते ह। अब योग कस तरह से इसम मदद कर सकता है? अगर आप इंसान क खुशहाली चाहते ह, तो भीतर क ओर मुड़ना ही हर सम या का हल है। अगर आप कोई क ा लेने से पहले दन म सफ दो मनट क े लए हर कसी को आंख बंद करने को कह, तो इससे एक बदलाव आएगा। और आप उस बदलाव क े णेता व सू धार बन सकते ह। श क क े लए संदेश ाचाय डॉ० पु प राज गौतम 07
  • 10. यारे ब ो! आप सब जानते ह क महा व ालय क े ब े चाहे वे कसी धम व जा त क े ह , अमीर या गरीब ह बना कसी बाधा क े अपनी पढ़ाई- लखायी पूरी कर सक। मुझे उ मीद है क आप सब व ालय त दन उप त होकर एक भयमु वातावरण म पढ़, अपने सवाल को श क क े सामने रखो और पूरे मनोयोग से श ा हण करो। आपको दरअसल अंदाजा ही नह है क आपक े माता- पता कतने संघष से गुजर रहे ह। आपका पालन-पोषण करने, आपक े जीवन को बढ़ाने, आपक े लए सबक ु छ संभव बनाने क े लए उ ह जो सकस करना पड़ता है, आप उसक क पना भी नह कर सकते। राई का पहाड़ बनाने क को शश मत क जए – आप यह पढ़ या वह, या फक पड़ता है? मगर अपने माता- पता को यह समझाना आपक े हाथ म है क ‘भले ही म इंजी नयर न बनूं, मगर आप चता मत क जए, म अपने जीवन म क ु छ बेहतर ही क ं गा।’ अगर आप उ ह इस बारे म भरोसा दला पाएं, तो भले ही त काल सब क ु छ ठ क न हो, मगर आ खरकार वे आपक बात समझ जाएंगे। अभी आपम से ब त से लोग उ ह यह भरोसा नह दला पाते। वे इस लए घबराते ह य क उ ह लगता है क अगर आप डॉ टर, इंजी नयर या ऐसा ही क ु छ नह बन पाए तो आप सड़क पर आ जाएंगे। अगर आप वह नह करना चाहते, जो आपक े माता- पता को आपक े लए बेहतर लगता है, तो आप अपने पसंद क े कसी सरे े म का ब लयत दखाते ए उनसे क हए, ‘ चता मत क जए।’ म चाहता ं क आप सब एक बात याद रख - जन लोग को आप शव, राम, क ृ ण या ईसामसीह क े प म पूजते ह, उनम से कसी ने आईआईट या ऐसी कोई सरी परी ा पास नह क । आप उनक पूजा इस लए करते ह य क उ ह ने अपने जीवन को अ तरह जया। आपको बस यही करना है – अ तरह जीना है। इंसानी तं नया क सबसे ज टल मशीन है। सम या यह है क आपने इस सुपर क ं यूटर का यूजर मैनुअल पढ़ा ही नह है। वह यूजर मैनुअल ही योग है। यह आपको अंद नी तौर पर संतु लत होने म मदद करेगा, आपको वाभा वक प से आनं दत बनाएगा और अपनी पूरी मता म को शश करने म आपक मदद करेगा। अपनी पूरी मता म को शश करने पर आपको कामयाबी ज र मलेगी। आप कसी और से बेहतर भले न ह , मगर आप जतना बेहतरीन कर सकते ह, वह करगे। फर जीवन आपक ओर जो क ु छ भी उछालेगा, उसे आप पूरी ग रमा क े साथ संभाल पाएंगे। व ा थय क े नाम संदेश ाचाय डॉ० पु प राज गौतम 08
  • 11. संत कबीर ने अपने एक दोहे क े मा यम से कहा है क इस नाशवान और तरह-तरह क बुराईय से भरे व म सच बोलना सबसे बड़ी सहज-सरल तप या है। स य बोलने, स ा वहार करने स य माग पर चलने से बढक़र और कोई तप या है, न ही हो सकती है। इसक े वपरीत जसे पाप कहा जाता है। बात-बात पर झूठ बोलते रहना, छल- कपट और झूठ से भरा वहार तथा आचरण करना उन सभी से बड़ा पाप है। जस कसी क े दय म स य का वास होता है। ई र वंय उसक े दय म नवास करते ह। जीवन क े ावहा रक सुख भोगने क े बाद अंत म वह आवागमन क े मु कल से छुटकारा भी पा लेता है। इसक े वपरीत म याचरण- वहार करने वाला, हर बात म झूठ का सहारा लेने वाला न तो चता से छुटकारा ा त कर पाता है न भु क क ृ पा का अ धकार ही बना सकता है। उसका लोग तो बगड़ता ही है, वह परलोक-सुख एंव मु ित क े अ धकार से भी वं चत हो जाया करता है। स य- वहार एंव वचन को आ खर तप य कहा गया है? इस का उ र सहज-सरल है क व म ेम और स य माग पर चल पाना खांडे क धार पर चल पाने समान क ठत आ करता है। स य क े साधक और वहारक क े सामने हर कदम पर अनेक क ठनाइय का सामना करना पड़ता है। उसक े अपने भी उस सबसे घबराकर अ सर साथ छोड़ दया करते ह। सब कार क े दबाव और क झेलते ए स य क े साधक और उपासक को अपनी राह पर अक े ले ही चलना पड़ता है। जो स यराधक इन सबक चता न करते ए भी अपनी राह पर ढ़ता से र-अटल रह नरंतर बढ़ता रहता है। उसका काय कसी भी कार तप करन से कम मह वपूण नह रेखां कत कया जा सकता। इ ह सब त य क े आलोक क े स य क े परम आराधक क वत ने ापक एंव य अनुभव क े आधार पर स य को सबसे बड़ा तप उ चत ही कहा है। इसक े बाद अनुभव- स आधार पर ही क व सू चत क े सरे प पर आता है। सरे प म उसने ‘झूठ बराबर पाप’ कहकर झूठ बोलने या म या वहार करने का संसार का सबसे बड़ा पाप कहा है। गंभीरता से वचार करने पर हम पाते ह क कथन म वजन तो है ही, जीवन समाज का ब त बड़ा यथाथ भी अं त न हत है। य द अपनी बुराई को छपाता नह , ब क वीकार कर लेता है, तो उसम सुधार क येक संभावना बनी रहती है। ले कन मानव अपने वभाव से बड़ा ही कमजोर और डरपोक आ करता है। वह बुराई को छपाने क े लए अ सर झूठ का सहारा लया करता है। जब एक बार कोई झूठ बोलता है तो उसे छपाने क े लए उसे एक-क े -बाद-एक नरंतर झूठ क राह पर बढ़ते जाने क े लए ववश होते जाना पड़ता है। फर कसी भी कार झूठ और झूठे वहार से पड छुड़ाना मु कल हो जाया करता है। मनु य सभी का घृणा का पा बनकर रह जाता है। जीवन एक कार का बोझ सा बत होने लगता है। इ ह सब वहार मूलक त य क े आलोक म स य क े शोधक संत क व ने झूठ को सबसे बड़ा पाप उ चत ही ठहराया है। संसार का सबसे बड़ा तप है स य म जीना ाचाय डॉ० पु प राज गौतम 09
  • 12. वामी ववेकान द क े समाजवाद तथा मानवतावाद का वकास उनक वैदा तक माणता क अवधारणा क े आधार पर आ। उनक े समाजवाद ने वग सहयोग तथा एकता और उनक े मानवतावाद ने मुन य क ई र क े प म पहचान को तथा मानवता का ेम तथा उपासना क े मा यम से सेवा को ो सा हत करती रही है। सामाजवाद को जस प म उ ह ने देखा, वह मानवतावाद क े वकास क े सा य का एक साधन मा था। मानव जीवन का आर समानता से होता है और वै क एकता क ा त म उसक प रण त होती है। इसी लए वह हर कार क े वशेषा धकार तथा शोषण क े व थे, चाहे उनका स ब क े वचार से हो या फर सामा जक अ त व से मानव क दासता चाहे वह शरी रक रही हो, या मान सक या आ या मक, उसका एकमा कारण असमानता ही रही है। वा तव म उनक समानता क अवधारणा उनक समूची आ या मक वचारधारा का आधार है और वह क े मक वकास को ो सा हत करती है तथा यह भी बताती है क वकास क इस या म असमानता का कतना बोलबाला रहा है। समानता से ववेकान द का अ भ ाय सामा जक, आ थक, राजनै तक अथवा कसी अ य कार क वशेष असमानता से नह था। उनका अ भ ाय समानता क े प से न होकर उसक या से था। क े मक वकास म अपनी आ ा क े कारण वह स ूण समानता अथवा स ूण असमानता क े च कर म फ ं सने से बच गए। उनका कहना था क नया म समानता व आसमानता दोन साथ-साथ चलती ह। समानता क तरह असमानता का होना भी वाभा वक लाभदायक तथा सृजना मक होता है। उ ह ने यह भी वीकार कया है क असमानता न तो सनातन है और न ही असीम उ ह ने क असमानता क े व संघष क अ नवायता तथा एकता क आकां ा को उ चत माना। मानव अनेकता म उनका व ास सां य दशन तथा पातंज ल क े "आ मानुभू त" क े स ांत पर आधा रत था, जब क वेदा त म उनक आ ा ने उ ह मानव एकता क घोषणा क े लए े रत कया। वामी ववेकान द क आ या मक या ा क े व भ पड़ाव वामी जी का वचार था क समानता तथा असमानता दोन ही ववेक पर आधा रत तथा अव य ावी ह। मानव क ृ त क े सां य ारा कए गए मनोवै ा नक व ेषण से मानव क असमानता क वषमता का पता लगता है। य क े बीच स व, रजस तथा तमस क े गुण क े कारण पर र मतभेद रहते ह। इसी लए ववेकान द ने वण- वभाजन को तकसंगत माना। अपने वाभा वक गुण क े अनुसार, ा ण, य, वै य तथा शू क े गुण हर म ह। अ तर सफ इतना है क कसी म कसी एक गुण क धानता है तो कसी म सरे क सामा जक व ा क े चार गुण भी क े इ ह गुण पर आधा रत ह। ा ण, ान क े शासन तथा संवेदनशीलता क ग त क े तीक ह। शू असमानता पर समानता क वजय का तीक है। ान, संर ण,,ग त व धय तथा समानता क एक पता को ववेकान द ने सराहा। ले कन, इसक ा त को मु कल मानकर हर जा त ने स ा को अपने हाथ म क े त करने का य न कया, जो अवन त क े कारण बना। ववेकान द ने उ जा त क े लोग ारा अपने से न न जा त क े लोग क े त कए गए अ याचार तथा दमन क े व संघष कया। ववेकान द क े मानव असमानता से स ब त वचार को उनक मानव क े आ या मक वकास क अवधारणा म भी ढूंढा जा सकता है। पातंज ल क े आ मानुभू त क े स ा त से उ ह ने यह सीखा क आ मानुभू त क ा त से मनु य क े वाभा वक गुण म प रवतन होता है और यह े ता क े एक तर से सरे तर तक प ंच जाता है। पातंज ल क े वचार को वीकार करने वाले ववेकान द यह मानते थे क एक तथा सरे क े बीच म जो अ तर है, वह उसक े आ या मक वकास क े चरण- वशेष का प रचायक है। इसी लए, एक तथा सरे क े बीच अ तर व यात और भावशाली आ या मक गु वामी ववेकान द 10
  • 13. क े वल मा ा का है, गुण का नह पातंज ल क े आ मानुभू त क े स ा त ने ववेकान द क े समानता क े स ा त को सृजना मक तथा सकारा मक बना दया। इसी लए उ ह ने क पहल, वतं ता तथा समान अवसर क आव यकता पर जोर दया। वण तथा असमानता आ मानुभू त क े स ा त म व ास क े कारण ववेकान द ने कम क अवधारणा को वीकार कया तथा समाज क े जीवन क े कारण तथा प रणाम क े नयम को माना। कम का नयम व भ य क े बीच अ तर का बोध कराता है। कम क े वकास तथा वत ता का प रचायक है। तथा समाज का पतन इस बात पर नभर करता है क वह या करता है और या करने से बचता है। उनक े अनुसार, भारत क दासता का कारण जनता क अपे ा थी। हम अपनी दशा, गरावट, दासता तथा असमानता क े लए वयं को ही दोषी मानना चा हए। इस लए, तथा समाज दोन को असमानता क े कारण को अपने अ दर झांककर देखना चा हए और उ ह र करने का य न करना चा हए। जब लोग वेदा त क े उपदेश को मान लगे क जो क ु छ भी है वह सब एक से ही ह, तो असमानता का लोप हो जाएगा। वैदा तक समानता वेदा त मानव क आ या मक एकता क बात करता है। व ापी एकता क ा त क े लए समानता जीवन क आ या मक आव यकता है। एक स े वेदा तवाद क तरह उनका यह मानना था क कसी एक का जीवन अथवा अ त व सर क े जीवन तथा अ त व से अलग नह है। सभी एक ही ई रीय श क चगारी ह। सभी वतं ह, समान ह, एक ह। वेदा त क एकता क भावना को समाज क एक पता क पहचान कराती है और नः वाथ सेवा क े लए े रत करती है। सबक े जीवन म का जीवन है और सभी क े सुख म का सुख है। इस कार, ववेकान द ने लोग क े सामा जक तथा आ थक वकास क े लए सामा जक एकता क आव यकता पर बल दया। उनका यह मानना था क असमान समाज म क े वल एकता क बात करने का कोई अथ नह होगा, जब तक इस एकता का द लत क े उ ान क े लए योग न कया जाए। द लत का उ ान तभी स व होगा जब अपने अहं को भूल जाए और साम जक चेतना को ो सा हत करे। आ खर क पहचान समाज क े अंग क े प म ही तो है। उनक े अनुसार, सामा जक एकता को एक सरे क पहचान तथा एक सरे क े त यार से ही संजोया जा सकता है। वा तव म सामा जक एकता तभी आएगी जब सभी कार क े वशेषा धकार सृजना मक तथा जनतं ा मक था य क जनजागरण का काम मकता तथा शां त का होता है। अतः समाजवाद समाज क ा त का ल य भी शां तपूण साधन क े ारा ही स व हो सक े गा। इस कार, ववेकान द का समाजवाद जनता को अ म नभरता तथा वशासन का सूचक था। आ या मकवाद तथा भौ तकवाद का सामंज य गरीब क े त ववेकान द क च ता ने उ ह भौ तकवाद क े मह व पर जोर देने क ेरणा द । उ ह ने कहा : 'भौ तक स यता तथा वला सता भी बेकार क े लए काम क े अवसर पैदा करने वाली हो सकती है। हर गरीब क मांग है रोट । म ऐसे ई र म आ ा नह रखता जो वग म तो सुख क अनुभू त कराए ले कन इस नया म रोट भी न दे सक े ।' वह भौ तक जीवन क े प धर थे, य क वह गरीबी से घृणा करते थे और आ या मवाद म उनका व ास इस लए था य क पौ तक समाज क सीमा से प र चत थे। मा स क भाषा म उ ह ने पाया क उनक े समय का समाज नधन को और अ धक नधन तथा बनी को और अ धक धनी बना रहा था। उ ह ने प मी भौ तक जीवन तथा औ ो गक समाज क क मय और सीमा को पहचाना। वह चाहते थे क लोग भौ तकवाद क े त अपनी ललक छोड़कर, आ या मवाद क ओर अ सर ह । 11
  • 14. ववेकान द क े अनुसार एक यायो चत अथ व ा क सफलता क संतु पर नभर करती है जो उसे अपने अ दर से ा त होती है। आ थक आ मसंयम तथा समाज दोन क े हत म है। को वा त वकता क े उ तर उ े य रहते, व क सहायता नह क जा सकती है। उ ह ने कहा क जैसे पूव को व ान तथा तकनीक क े ान क आव यकता है, वैसे ही प म को पूव क े आ या मक सं क ृ त क । उ ह ने कहा, 'यूरोप, जो क भौ तक श क अ भ का क े है, वह 50 साल म खाक म मल जाएगा, अगर उसने अपने वतमान त को बदल कर आ या मवाद को अपने जीवन का अंग नह बनाया। यूरोप को उप नषद क े धा मक ान से ही बचाया जा सकता है। इस कार, ववेकान द ने पुरानी तथा नई नया तथा पूव तथा प म क े बीच सामंज य ा पत करने का य न कया। डॉ० संजय क ु मार सह वभागा य इ तहास वभाग मोबाइल नंबर -9934005182 12
  • 15. येक देश तथा समाज क अपनी नी तयां, री तयां तथा पर राय होती ह। इनका पालन समाज क े सभी सद य क े लए अ नवाय होता है चाहे सद य क े प म ौढ़ हो या बालक बालक म अनुभव तथा प रव ता क कमी होने क े कारण शरारती होना एक सामा य ल ण है। क तु ये शरारत एवं नटखवन जब ऐसी सीमा का उ लंघन करने लगता है जससे सामा जक मायादा तथा कानून का उ लंघन होने लगता है तब इस त को बाल अपराध क सं ा द जाती ह। वतमान समय म ब का वभाव सृजना मक कम व वंसा मक अ धक हो गया है। अ धकांश ब े अपरा धक वृ क े हो गए ह चाहे बा लग हो या नाबा ग हो पूण प से वसा यक आवरण से आ है जसका प रणाम नै तक मू य क े अवमू यन क े प म देखने को मल रहा है। ब क मान सकता ने वक ृ त प ले लया है। पं डत जवाहर लाल नेह ने कहा था क कोई भी रा महान नह बन सकता जब तक उसम नवास करने वाले लोग क वचारधारा एवं काय संक ु चत ह गे। आज ब क मान सकता ब त संक ु चत हो गई है वह ब जन हताय क े ान पर व हताय क बात करते ह। आज ब म वाथ घृणा हसा नफरत एवं पालायन वृ का बोलबाला है। भारत म क ु छ वष म बाल अपराध म तेजी से वृ हो रहे ह जो आँकड़े हमारे सम आ रहे ह वो च का देने वाले ह। सन् 1951 म क े वल 12000 ब ने अपराध कए थे वही आज ब क े ारा कए जाने वाले अपराध क सं या बढ़कर 1.27 लाख से अ धक हो गई है। भारत क े गृह मं ालय से का शत एक रपोट से होता है क पछले 10 वष म जहाँ लड़क क े ारा बाल अपराध म 10.8 तशत क वृ ई है, वही लड़ कय म बाल अपराध 21.6 तशत बढ़ गए ह। बाल अ ध नयम 1960 क े अनुसार 7 से 16 वष क े लड़क तथा 7 से 18 वष क आयु लड़ कय क े ारा कए जाने वाले कानून वरोधी वहार बाल अपराध क े अ तगत आते ह। सी रल वट ने कहा है कसी ब े ारा कए जाने वाले समाज वरोधी वहार जब इतना बंभीर हो जाता है क रा य ारा उसे दंड देना आव यक हो जाए क े वल तभी उस वहार को हम बाल अपराध कहते ह तथा उसक े अनुसार यह बालक 5 से 18 क आयु क े होते ह। अतः हम कह सकते ह क एक न त आयु से कम ब ारा जुआ खेलना, जेब काटना, चोरी करना त करी म सहायता करना, यौ नक राचरण करना अ व ाएं फ ै लना, तोड़फोड़ करना इ या द बाल अपराध क ेणी म आते ह। 1897 म भारत म बने Refmatory School क े अनुसार 15 वष तक क े बालक क े समाज वरोधी काय को बाल अपराध माना जाता है। 1990 म बाल अपरा धय पर कये गये अ ययन से यह पता चला क बाल अपरा धय ारा कए गए अपराध म 321 ह य 185 अपहरण 96 डक ै तय 174 लूटमाटर तथा 9.155 चोरी से संबं धत अपराध थे। सबसे आ यजनक बात यह है क ऐसे अपराध करने वाले क उ 7 से 21 वष से थी। भारत म बाल अपराध क सम या एक गंभीर सम या है। इस संबंध म जे.सी. द ने कहा है भारत म बाल अपराध बड़ी ती ग त क े साथ एक गंभीर संकट होता जा रहा है और देश क े व भ है भाग क े जो आज से क ु छ वष पूव अ नवाय प से ामीण े क े ही एक अंग थे ग तशील औ ो गक क े साथ-साथ यह सम या अनेक प ा य देश म उपल ान को शी ही हण कर लेगी। एक अ ययन से पता चलता है क बाल अपराध क सम या ामीण े म भी गंभीर है। सव ण से यह भी कट आ है क शहर म 17 तशत क तुलना म गांव म 7 से 21 वष क े वयः समूह वाली क ु ल कशोर जनसं या क े 11 तशत बालक ारा अपराधी काय कये गये थे। बाल अपराध एक गंभीर सम या 13
  • 16. बाल अपराध क प रभाषा यूमेयर क े अनुसार बाल अपराध को प रभा षत करते ए Juvenile Delinquency In Modern Society म लखा है। अतः बाल अपराध का अथ समाज वरोधी वहार का कोई कार है । वह गत तथा सामा जक वघटन का समावेश करता है। इसम एक नधा रत आयु से कम आयु का वह होता है जो समाज वरोधी काय करता है तथा कानून क से अपराधी होता है। स टल वट- बालक क े उस समय क े काय को बाल अपराध क े प म प रभा षत करते ह । जब अथवा कया जाना अ नवाय हो जाए। बाल अपराध क े कारक 1. आनुवं शक कारक - बाल अपराध क े अनेक कारक म आनुवां शक कारक मुख है। अनेक मनोवै ा नक का मत है क य म अपरा धक वृ ज म से ही पाई जाती है। इनक े अनुसार अपरा धय क े क ु छ वशेष शारी रक तथा मान सक ल ण होते ह । इटै लयन स दाय क े मुख Cesare Lombrasso एवं उनक े श य Ferri क े अ त र Maundlsey Dugdates आ द ने अपराध का कारण वंशानु म माना है। इस संदभ म Valentine का यह मत उ रत करना यहाँ अनुपयु होगा अपरा धक वृ य म आनुवं शक ल ण ारा ही ो साहन ा त होता है। 2. शारी रक कारक - बालक म शारी रक दोष एवं अ व शरीर क े चलते यह सम या देखी जाती है। यह तभी होता है ज बक ब को पौ क भोजन या त नह ा त होता है। जसे शारी रक बलता आ जाती है। वह अपने हम उ बालक क तुलना म वयं को कमजोर एवं पछड़ा मानता है। फलतः हीनता वश असामा य वहार करने लगता है साथ ही सामा जक अपमान का सामना भी करना पड़ता है जससे उसका वहार आसमा य हो जाता है जसम वह अपरा धक काय को करने लगता है।प रवा रक कारक बात अपराध क े संदभ म कये गये अ ययन से यह न कष ा त होता। क). Johnson ने अमे रका बो टन एवं शकाय नगर क े 4000 अपराधी बालक का अ ययन कया और 2000 अपराधी को को भ न प रवार से संबंध पाया। ख). Healy and Broner ने अमे रका बो टन एवं शकाग नगर क े 4000 अपराधी बालक का अ ययन कया और 2000 अपराधी बालक को भ न प रवार से संबंध पाया ग ). Eliot ने अपने अ ययन म अनै तक प रवार को 67 तशत लड़ कय म तथा Burt ने 54 तशत लड़क म आपरा धक वृ य को ा त कया। घ). Glueck ने अपने अ ययन म यह प रणाम ा त कया 6 अपराधी बालक ऐसे प रवार क े थे जसको दै नक आव यकता पूरी नह हो पाती थी। इसी कार 252 अपराधी बालक को ऐसे प रवार से ा त कया जो अपनीदै नक आव यकता को पूरा करने म अ य धक क ठनाई का अनुभव करते थे। Valentine ने अ या धक नधन प रवार से बाल अपराध को ा त कए। ङ). ब क े त वहार से भी यह वृ ज म लेती है। 3. सं क ृ त कारक:- साधारण अपने बोलचाल म समूह क े शवसो मू य आदश खानपान, वेशभूषा और 14
  • 17. रहन-सहन क े साधन को सं क ृ त कहते ह। सं क ृ त म उ चत और अनु चत क एक धारण होती है। सं क ृ त को बताती है क या उ चत और या अनु चत है। मगरेट मोड ने Neuginea क े तीन जनजातीय समूह का अ ययन कया जो भौगो लक प से काफ नकट रहते ए भी अलग-अलग रहते थे। पहाड़ म रहने वाले जरायुपेश सहयोगपूण नेहपूण तथा श य थे। उनम इ और आ मक वहार का सवमा अभाव था। नद तट पर रहने मुहमर जनजा त क े लोग अ यंत आ मक थे। पु ष तथा म हलाएं सभीगा और मुख आकाशी थे। यही नकट हो झोल क े पास बसे श बुली जनज त वाले लोग से म हला अपे ाक ृ त अ धक स य नभाने क े कारण पु ष पर बनाये ए ह। ये सं क ृ त उनक े बालक-प तका म ई। 4. नगरीकरण नगरीकरण औ ो गकरण को बढ़ावा देता है। औ ो गकरण मशीनीकरण को बढ़ावा देता है। मशीनीकरण ने बेरोजगारी को बढ़ावा दया है। लघु एवं क ु ट र उ ोग का पतन आ है। ामीण का शहर क ओर पलायन होने लगता है। नगरीकरण क े कारण गंद जीवन प रमा रक अ रता एकाक प रवार त धा बाल म माता का काम पर जाना मादक पदाथ का सेवन संबंध को अ रता कारण बात अपराध को ज म दे रहे ह। इस सम या को ज म देते ह एवं सरकारी यास से इसक उपचार मनोवै ा नक वैधा नक व धय क े व भ तरीक से कया जा सकता है। इस कार इसका समाधान क े वल शासन क े यास ारा संभव स व नह होगा इसक े लए प रवार समाज क े वृ तथा युवावग समाज सेवी सं ा तक शासक य यास का मलाजुला योगदान आव यक है। डॉ० मनोज क ु मार वभागा य दशनशा मोबाइल नंबर -7488013170 15
  • 18. ाचीन काल म हमारे समाज म नारी का मह व नर से कह बढ़कर होता था। कसी समय तो नारी का ान नर से इतना बढ़ गया था क पता क े नाम क े ान पर माता का ही नाम धान होकर प रचय का सू बन गया था। धम ा मनु ने नारी को ामयी और पूजनीया मानते ए मह व द शत कया- ‘य नाय तु पू यते, रभ ते त देवताः।’ अथात् जहाँ नारी क पूजा त ा होती है, वहाँ देवता रमण करते ह, अथात् नवास करते ह।धीरे धीरे समय क े पटा ेप क े कारण नारी क दशा म क ु छ अपूव प रवतन ए। वह अब नर से मह वपूण न होकर उसक े समक ेणी म आ गई। अगर पु ष ने प रवार क े भरण पोषण का उ रदा य व स ाल लया तो घर क े अ दर क े सभी काय का बोझ नारी ने उठाना शु कर दया। इस कार नर और नारी क े काय म काफ अ तर आ गया। ऐसा होने पर भी ाचीन काल क नारी ने हीन भावना का प र याग कर वतं और आ म व ास होकर अपने व का सु दर और आकषक नमाण कया। पं डत म ा क प नी ारा शंकराचाय जी क े परा त होने क े साथ गाग , मै ेयी, व ो मा आ द व षय का नाम इसी ेणी म उ लेखनीय है। समय क े बदलाव क े साथ नारी दशा म अब ब त प रवतन आ गया है। य तो नारी को ाचीनकाल से अब तक भाया क े प म रही है। इसक े लए उसे गृह ी क े मु य काय म ववश कया गया, जैसे- भोजन बनाना, बाल ब क देखभाल करना, प त क सेवा करना। प त क हर भूख को शा त करने क े लए ववश होती ई अमानवता का शकार बनकर य व य क व तु भी बन जाना भी अब नारी जीवन का एक वशेष अंग बन गया। श ा क े चार सार क े फल व प अब नारी क वह दशा नह है, जो क ु छ अंध व ास , ़ढवाद वचारधारा या अ ानता क े फल व प हो गयी थ । नारी को नर क े समाना तर लाने क े लए समाज च तक ने इस दशा म सोचना और काय करना आरंभ कर दया है। रा क व मै थलीशरण गु त जी ने इस वषय म ता ही कहा है- ‘एक नह , दो दो मा ाएँ, नर से बढ़कर नारी।’ नारी क े त अब ा और व ास क पूरी भावना क जाने लगी है। क ववर जयशंकर साद ने अपनी महाका क ृ त कामायनी म इसक चचा क वता क े मा यम से व तार म कया है नारी आज समाज म त त और स मा नत हो रही है। वह अब घर क ल मी ही नह रह गयी है अ पतु घर से बाहर समाज का दा य व नवाह करने क े लए आगे बढ़ आयी है। वह घर क चार द वारी से अपने कदम को बढ़ाती ई समाज क वकलांग दशा को सुधारने क े लए कायरत हो रही है। इसक े लए वह नर क े समाना तर पद, अ धकार को ा त करती ई नर को चुनौती दे रही है। वह नर को यह अनुभव कराने क े साथ साथ उसम चेतना भर रही है। नारी म कसी कार क श और मता क कमी नह है। क े वल अवसर मलने क देर होती है। इस कार नारी का ान हमारे समाज म आज अ धक साया त और त त है। भारतीय समाज म नारी का ान मातृश प म डॉ० अिनता क ु मारी िवभागा य अथशा मोबाइल नंबर -7027215789 16
  • 19. व ाथ का अथ है – व ा और अथ अथात् व ा का इ ुक या व ा को ा त करने वाला। व ा हण करना व ाथ का धम और क है। व ा हण करना ही व ा का धम और क नह है, अ पतु इस व ा को समाज और रा क े लए उपयोग करना भी व ाथ का धम और क है। व ाथ का जीवन एक पुनीत सं कार और स यता का जीवन होता है। वह इस अव ध म अपने अ दर द सं कार क यो त जलाता है। ये सं कार ही धम, समाज और रा क े त क ब होने क उसे रेणा दया करते ह। इनसे े रत होकर ही व ाथ अपने ाण का समपण और उ सग कया करता है। इस कार से द सं कार का वकास ा त करक े व ाथ समाज और रा क े त अपना कोई न कोई योगदान करता ही रहता है। रा क े त व ाथ का योगदान ब त बड़ा और व तृत भी है। वे अपने योगदान क े ारा रा को उ त और समृ बना सकते ह। रा क े त व ाथ तभी योगदान कर सकता है, जब वह अपनी न ा और स याचरण को े और महान बनाकर इस काय े म उतरता है। रा क े त व ाथ य का कम े ब त ही अ त और अनुपम है, य क वह श ा हण करते ए भी समाज और रा क े हत क े त अपना अ धक से अ धक योगदान दे सकता है। यह सोचते ए यह व च आभास होता है क श ा और राजनी त दोन पहलु क े लेकर व ाथ क ै से आगे बढ़ सकता है। य क व ा और राजनी त का स ब पर र भ और वपरीत है। अतएव व ाथ का अपने समाज और रा क े त योगदान देना और इसका नवाह करना अ य त वकट औेर कर काय है। फर एक समाज च तक और रा भ व ाथ व ा ययन करते ए भी अपना कोई न कोई योगदान अव य दे सकता है। अगर ऐसा कोई व ाथ करने म अपनी यो यता का प रचय देता है, तो न य ही वह महान रा -धम , रा का नयामक और रा नायक हो सकता है। रा नमाण म व ा थय का योगदान डॉ० सौरभ भ ाचाया िवभागा य अं ेजी िवभाग मोबाइल नंबर -8777797685 17
  • 20. वतं भारत म सरकार ारा 26 जून, 1975 को घो षत आपातकाल देश और समाज पर बड़ा गहरा भाव पड़ा। आपातकाल क घोषणा क े बाद भारतीय ेस पर ीससर शप लगा दया गया था। क ु ल उ ीस महीने क े आपातकाल क े दौरान भारतीय ेस ने जो ासद भोगी-झोली, वह प का रता क े इ तहास म काले अ याय क े प म रेखां कत हो गया है। प का रता जगत क े - अ धकतर प कार -संपादक ने माना है क सन् 1974-75 क े दौरान भारत क आ थक, सामा जक, राजनी तक प र तयाँ ऐसी नह थ क देश पर आपातकाल थोपना एक मा वक प बचा हो । भारत क े महाम हम रा प त ी णव मुखज ने भी अभी हाल म कहा है क संभवत: आपातकाल को टाला जा सकता था। व ेषक का मानना है क इलाहाबाद उ यायालय ारा ीमती इं दरा गाँधी क े चुनाव को अवैध घो षत करने तथा उ ह छ: वष तक चुनाव लड़ने से अयो य घो षत कए जाने क नराशा और हताशा से उपजी मान सकता संभवतः आपातकाल क घोषणा का ता का लक कारण बना हो । इसक े अ त र वप ी दल ारा आंदोलन क घोषणा, कां ेस क े व ोह क संभावना ीमती गाँधी क तानाशाही वृ कां ेस क े चापलूस नेता क चौकड़ी, स ा से चपक े रहने क मान सकता तथा महँगाई, बेरोजगारी और ाचार पर नयं ण क असमथता जैसे क ु छ मुख कारण ने आपातकाल थोपने क पृ भू म न मत क थी। खैर जो क ु छ भी हो आपातकाल ने जो तांडव मचाया उससे समाज जीवन ा हमान कर उठा था। आपातकाल क घोषणा क े साथ ही वयोवृ राजनेता और संपूण ां त क े णेता लोकनायक जय काश नारायण अटल बहारी वाजपेयी, लालक ृ ण आडवाणी इ या द स हत हजार लोग को गर तार कया गया। इसने राजनेता और सामा जक कायक ा क े साथ-साथ लेखक, प कार, ा यापक, अ धव ा जैसे बु जीवी वग क े लोग भी बड़ी सं या म शा मल थे। क े वल दलली व व ालय क े 300 से अ धक ा यापक आपातकाल क े दौरान गर तार कए गए थे। आपातकाल क ासद और भयावह त का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है क आपातकाल क े 19 महीने क े दौरान 1 लाख से भी अ धक लोग को बंद बनाया गया था जो 1942 क े भारत छोड़ो आंदोलन से भी अ धक था। आपातकाल क े दौरान ेस क वतं ता को छ नने क े लए ी-ससर शप क े साथ-साथ और भी कई कदम उठाए गए। रा प त ारा 8 दसंबर, 1975 को तीन अ यादेश जारी कए गए जससे ेस को वतं ता द मत और खं डत ई। देश क े ायः सभी समाचार प क े कायालय पर पु लस का पहरा डाल दया गया। अनेक समाचार प क ेस क बजली काट द गई ता क समाचार प को छपने से रोका जा सक े । जो समाचार प छप गए थे, उ ह वत रत नह होने दया गया। क ु ल मलाकर उसी रात इस बात क पूरी व ा कर ली गई क देश म या क ु छ हो रहा है. इसका पता जनता को नह चल सक े । इसक े बावजूद दै नक जागरण और नई नया स हत अनेक समाचार प म उस दन वरोध व प संपादक य का ान खाली छोड़ दया था और सरकार को खुली चुनौती द थी। इतना ही नह देश क े सैकड़ प कार ने जन सामा य को व तु त से अवगत कराने क े लए भू मगत संचार- व ा शु कर द तथा इसक े तहत दजन समाचार बुले टन का काशन करने लगे। क ु ल मलाकर य प से का शत तथा वत रत होने वाली प -प का क े संस रत होने क े म ेनजर भू मगत संचार व ा समाना तर प से खड़ी हो गई थी। जनता क े बीच सूचना सं ेषण या क े छ - भ हो जाने क े बावजूद सरकार ारा एकता संवाद सं े षत करने क मान सकता पर क ु ठाराघात कया गया। प कार ने गु त प आपातकाल त म भारतीय ेस का योगदान 18
  • 21. से नकलने वाले नय मत समाचार बुले टन क े साथ-साथ पूरे देश म अलग-अलग ान से व भ कार क े हड बल, पच, बुकलेट, फलेट इ या द नकालकर पु ल सया दमन का क ा च ा खोलते रहे। जनसंचार क इस वैक पक व ा ने न क े वल जन-जीवन को आपातकाल क स ाई से अवगत कराया अ पतु भू मगत आंदोलन को भी धारदार बनाया। अ खल भारतीय लोक-संघष स म त ारा न न ल खत बुकलेट का शत कए गए, जो आपातकाल का क ा च ा खोलते ह-1. ट्वट लाइस ऑफ मसेस एंट गाँधी, 2 एनाटॉमी ऑफ फॉ स म, इज कॉ स ट वी ऑर दे. 3. फ ै ट्स (नेल (Nail) इं दराज लाइस), 4. हेन डसऑ ब डएस द् लॉ इज ए ूट . 5. चाटर ऑफ स वल लबट ज, 6. सं वधान को बदल डालने का ा प, 7. इमरजसी ए स-रेज 8 फा जस म 9. रा ीय वयंसेवक संघ और राजनी त, 10, काली रात आपातकाल क े दौरान अनेक समाचार बुले टन भी का शत कए गए, जनम पटना से का शत न न ल खत बुले टन को नाम उपल ह- 1. लोकवाणी (लोक-संघष स म त और व ाथ प रषद्) 2. त ण ां त (छा संघष स म त), 3. हमारा संघष (भारतीय लोकदल) 4. मु -सं ाम (लो हया वचार मंच एवं छा संघष स म त), 5. जनमु (मा सवाद ) 6. ां तवाद (युवा वा हनी). 7. छा -श व ाथ प रषद्) 8. भारतीय (अ खल भारतीय व ाथ प रषद्) 9. जनता समाचार, 10. लोक-संघष, 11. सं ाम, 12. लोकप (युवा वा हनी एवं छा संघष स म त), 13. युवा संघष ससर शप क े कारण सरकार और समाज क े बीच सूचना क े सं सारण म आने वाली परेशा नय का अनुभव सरकार को भी नह था। शासन क तानाशाही क खबर कसी न कसी प म जनता तक तो प ँच जाती थी. कतु सरकार तक वह समाचार नह प ँच पाता था तानाशाही क तेज आँच म लोक वातं य धू-धू कर जल रहा था और सरकार बेखबर थी। सरकार को यह गलतफहमी बनी हरी क सभी सम या क जड़ प -प काएँ ही ह। यही कारण है क आपातकाल क े दौरान उननीस महीन तक स ा क े दमन च क े नीचे प का रता कराहती रही। ससर क क ै ची ने उसका व प ही बगाड़ दया जसका खा मयाजा उसे भुगतना पड़ा। चार क े ारा स य को असतय और अस य को स य म बदला जा सकता है ऐसा हटलर तथा टॉ लन दोन करक े दखा गए थे। इं दरा जी द णपंथी क यु न ट क मदद से उसी कार का चारा मक आ मण कर रही थ । जे. पी. आचाय क ृ पलानी मुह मद करीम छागला, क ु लद प नैयर, गा, भागवत, फणा रनाथ 'रेणु'. डॉ. रघुवंश, गौर कशोर घोष इ या द अनेक सवमा य नेता । चंदन काश वभागा य रसायन शा वभाग मोबाइल नंबर -9798919133 19
  • 22. च ारण स या ह का मूल कारण आ थक था। ले कन कां ेस म पुराने नेता ने च ारण क आ थक दशा पर यान देने से मना कर दया था तथा गांधीजी अनमने ढंग से ही च ारण आये थे। उ ह न तो च ारण क भौगो लक त का कोई ान था और न ही वे नील क खेती क े बारे म क ु छ जानते थे। वे च ारण या ा क े बारे म शंकालू भी थे। अतः उनक े साथ बाहर क े वयंसेवक तथा ेस क े लोग भी नह आये थे। च ारण गांधीजी क े लए एक अनुभव था। गांधीजी ने यहाँ भयंकर गरीबी देखी। पढ़ने का कोई साधन नह था। रैयत क े ब े या तो खेत म काम करते या मटरग ती। एक पु ष मक एक दन म दस पाई, ी मक छः पाई तथा बालक मक तीन पाई ही कमा पाता था। य द कोई दन म एक चव ी कमा लेता था तो वह सौभा यशाली समझा जाता था। गरीबी इतनी थी क य क े पास एक ही कपड़े हाने क े कारण वे उसे धो नह सकती थी। गंदा रहने क े कारण कसान बाराबर बीमार रहते थे और उ ह चम रोग हो जाया करता था। गांधीजी बड़े थत ए। उ ह ने पाठशालाएं खुलवाई। उ ह ने बाहर से वयंसेवक, श क तथा डॉ टर बुलवाये। ले कन सबसे बड़ी जो बात ई, वह यह थी क गांधीजी ने यह अनुभव कर लया क बना आ थक वरा य क े राजनी तक वतं ता क बात नरथक है। इ स लए च ारण क े कसान क सम या से नपटने क े तुरंत बाद फरवरी, 1978 ई० कपड़ा मज र क हड़ताल क े म लए अहमदाबाद गए तथा फर खेड़ा म कसान क े स या ह का नेतृ व कया। यह कां ेस क े पुराने नेता क े राजनी तक उ े य मा क नी त से सवथा उलट था। गांधीजी ने वयं अपने आ मकथा म लखा है क जब च ारण म कसान क आ थक सम या का संघष कया गया, तो वे राजनी तक प से अयास ही जाग क हो गए। डी.जी. त लकर ने लखा है क च ारण, जहाँ संत ने ाचीन काल म ान पाया था, म गांधीजी ने अपने जीवन क े मशन का सा ा कार कया और एक ऐसे अ का आ व कार कया जससे भारत वतं कराया जा सका। देश क ामीण और गरीब जनता को राजनी तक वतं ता से जोड़ने क े लए गांधीजी ने चरखा और खाद क े आ थक वरा य का मं दया। 6 फरवरी, 1921 ई० पटना म बहार क े लोग क े सम अपने भाषण म गांधीजी ने श द म कहा था क अक े ले चरखे क े दम पर ही वराज पाया जा सकता है। इस कार गांधीवाद युग क े भारतीय रा ीय आ दोलन पर च ारण स या ह का रगामी प रणाम सहज ही देखा जा सकता है। इस युग म थम अ खल भारतीय आ दोलन 'असहयोग आ दोलन' अ पृ यता नवारण क े संदभ म कई मह वपूण घटनाएँ ई। एक चमार जा त क े ने एक कलवार जा त क े क े घर म ा ण, भू महार, राजपूत, काय तथा अ य जा तय क े लोग क े साथ मो तहारी म क ी रसोई (भात) खाई। च ारण तथा मुज फरपुर म क ु छ और य ने अ तजातीय भोज का आयोजन कया। " प रषद् सद य ी ह रवंश सहाय तथा योगाप क े ी वशुनाथ सह मु य व ा थे च ारण क े अनुभव से गांधीजी ने भारतीय रा ीय आ दोलन को जन आ दोलन बनाने क े लए जनता म आ थक, सामा जक एवं शै णक आधार पर रा ीय जागरण को ो सा हत करने क े मह व को समझा। रा ीय आ दोलन का च ारण म गांधी भाव क नरंतरता 20
  • 23. फलक अ य त व तृत हो गया। चरखा, खाद इ या द क े सफल योग से ामीण भारत क जनता साल भर भारतीय रा ीय कां ेस क े भाव से उ े लत होती रही। चरखा और खाद से देश म नारी-जागृ त तथा धा मक स ह णुता क े भाव भी समृ ए। अ धकांश सूत कताई का काय म हलाएँ ही करती थी। ये 'क तने' मु यतः ह धमावल बी थी तथा - कांश बुनकर (जुलाहे) मु लम थे। फल व प स ूण भारत म रा ीय जागरण क एक नई और अ धक ती लहर उठ । डॉ० क ु मार व ण वभागा य हद वभाग मोबाइल नंबर -9472615216 21
  • 24. यह हम भली भाँ त जानते ह क आज व ान क े जो भी चम कार दखाई दे रहे ह, उनम से अ धकांश इलै क से ही स ब त ह। इस कोण से आज क े युग को अगर इलै ो न स का युग कहा जाता है, तो कोई च काने वाली बात नह है और न यह कोई अस य होता है। वा तव म व ान ने इलै ो न स क आज धूम मचा द है। सच कहा जाए तो व ान का ाण इलै ो न स ही है या व ान इलै ो न स पर ही आधा रत है। यही कारण है क व क े जो वक सत रा ह, उ ह ने इलै ो न स को ब त मह व दया है। हम यह भी भली भां त जानते ह क आज क े व ान क े दो ाण त व ह- इलै ो न स और टे नोलाजी। इन दोन का भाव अपने अपने प र े म अ य त ापक और स य प से है। इलै ो न स क े ारा जहाँ हम एक से एक उ ोग- ापार, स क आ द सफलतापूवक और सु वधापूवक कया करते ह, वह टे नोलजी क े ारा हम व भ कार क े काय को भी स कर डालते ह, जो क े वल इलै ो न स क े ारा संभव नह है। सरी ओर जो इलै ो न स क े ारा हम मह वपूण और आव यक काय को प रपूण कर लेते ह, वह टे नोलाजी क े ारा भी संभव नह है। टे नोलाजी क े दो प हम आज ा त ए ह- एक परमाणु व ान और सरा अंत र व ान। इन दोन कार क े व ान से हम अपना व तरीय मह व स करने म सफल ए ह। अतएव टे नोलाजी और इलै ो न स का आज वशेष मह व स हो रहा है। य तो भारत म इलै ो न स का उदय सन् 1950 से हो गया था, ले कन इसका अ य धक वकास लगभग 20 वष क े बाद आ। अतः भारत म इलै ो न स क बढ़ ई श सन् 1970 क े आस पास दखाई पड़ी। इससे भारत ने आ म नभरता क े े म ब त बड़ी कामयाबी ा त क है। इस कोण से आ म नभरता क े लए सही स ा त और नी तय को सुचा प से चलाने क े लए सन् 1971 क े फरवरी माह म इलै ो न स आयोग का गठन कया गया। भारत म इस आयोग क े गठन क े फल व प लघु और बड़े उ ोग कलकारखान को संग ठत करक े लगभग 150 बड़े करखाने और लगभग 2000 छोटे कारखाने ा पत कए गए। उनसे उपयोगी और े इलै ो न स क े उपकरण और पुज तैयार कए जाते ह। इन दोन कार क कारखान क उ पादन आय और मता सन् 1980 तक 806 करोड़ क े आस पास हो गई, जो पूव उ पादन आय क तुलना म अ धक संतोषजनक और अपे त है। इलै ो न स आयोग क े गठन क े बाद ही उपभो ा उपकरण , इलै ो न स क व तुएँ, औ ो गक इलै ो न स क े उपकरण, पुज, संचार, उपकरण, वायु उपकरण, सै नक उपकरण, क यूटर, नयं क यं आ द क णा लयाँ भी लागू क ग । भारत म इले ॉ नक ां त एक अ त घटना डॉ० इंदु क ु मारी वभागा य जंतु व ानं वभाग मोबाइल नंबर -7667113829 22
  • 25. वामी ववेकान द क े समाजवाद तथा मानवतावाद का वकास उनक वैदा तक माणता क अवधारणा क े आधार पर आ। उनक े समाजवाद ने वग सहयोग तथा एकता और उनक े मानवतावाद ने मुन य क ई र क े प म पहचान को तथा मानवता का ेम तथा उपासना क े मा यम से सेवा को ो सा हत करती रही है। सामाजवाद को जस प म उ ह ने देखा, वह मानवतावाद क े वकास क े सा य का एक साधन मा था। मानव जीवन का आर समानता से होता है और वै क एकता क ा त म उसक प रण त होती है। इसी लए वह हर कार क े वशेषा धकार तथा शोषण क े व थे, चाहे उनका स ब क े वचार से हो या फर सामा जक अ त व से मानव क दासता चाहे वह शरी रक रही हो, या मान सक या आ या मक, उसका एकमा कारण असमानता ही रही है। वा तव म उनक समानता क अवधारणा उनक समूची आ या मक वचारधारा का आधार है और वह क े मक वकास को ो सा हत करती है तथा यह भी बताती है क वकास क इस या म असमानता का कतना बोलबाला रहा है। समानता से ववेकान द का अ भ ाय सामा जक, आ थक, राजनै तक अथवा कसी अ य कार क वशेष असमानता से नह था। उनका अ भ ाय समानता क े प से न होकर उसक या से था। क े मक वकास म अपनी आ ा क े कारण वह स ूण समानता अथवा स ूण असमानता क े च कर म फ ं सने से बच गए। उनका कहना था क नया म समानता व आसमानता दोन साथ-साथ चलती ह। समानता क तरह असमानता का होना भी वाभा वक लाभदायक तथा सृजना मक होता है। उ ह ने यह भी वीकार कया है क असमानता न तो सनातन है और न ही असीम। उ ह ने क असमानता क े व संघष क अ नवायता तथा एकता क आकां ा को उ चत माना। मानव अनेकता म उनका व ास सां य दशन तथा पातंज ल क े "आ मानुभू त" क े स ांत पर आधा रत था, जब क वेदा त म उनक आ ा ने उ ह मानव एकता क घोषणा क े लए े रत कया। वामी जी का वचार था क समानता तथा असमानता दोन ही ववेक पर आधा रत तथा अव य ावी ह। मानव क ृ त क े सां य ारा कए गए मनोवै ा नक व ेषण से मानव क असमानता क वषमता का पता लगता है। य क े बीच स व, रजस तथा तमस क े गुण क े कारण पर र मतभेद रहते ह। इसी लए ववेकान द ने वण- वभाजन को तकसंगत माना। अपने वाभा वक गुण क े अनुसार, ा ण, य, वै य तथा शू क े गुण हर म ह। अ तर सफ इतना है क कसी म कसी एक गुण क धानता है तो कसी म सरे क । सामा जक व ा क े चार गुण भी क े इ ह गुण पर आधा रत ह। ा ण, ान क े शासन तथा संवेदनशीलता क ग त क े तीक ह। शू असमानता पर समानता क वजय का तीक है। ान, संर ण,ग त व धय तथा समानता क एक पता को ववेकान द ने सराहा। ले कन इसक ा त को मु कल मानकर हर जा त ने स ा को अपने हाथ म क े त करने का य न कया, जो अवन त क े कारण बना। ववेकान द ने उ जा त क े लोग ारा अपने से न न जा त क े लोग क े त कए गए अ याचार तथा दमन क े व संघष कया। ववेकान द क े मानव असमानता से स ब त वचार को उनक मानव क े आ या मक वकास क अवधारणा म भी ढूंढा जा सकता है। पातंज ल क े आ मानुभू त क े स ा त से उ ह ने यह सीखा क आ मानुभू त क ा त से मनु य क े वाभा वक गुण म प रवतन होता है और यह े ता क े एक तर से सरे तर तक प ंच जाता है। पातंज ल क े वचार को वीकार करने वाले ववेकान द यह मानते थे क एक तथा सरे क े बीच म जो अ तर है। वह उसक े आ या मक वकास क े चरण- वशेष का प रचायक है। इसी लए एक तथा सरे क े बीच अ तर क े वल मा ा का है, गुण का नह । पातंज ल क े आ मानुभू त क े स ा त ने ववेकान द क े समानता क े स ा त को सृजना मक तथा सकारा मक बना दया। इसी लए उ ह ने क पहल, वतं ता तथा समान अवसर क आव यकता पर जोर दया।आ मानुभू त क े स ा त म व ास क े कारण ववेकान द ने कम क अवधारणा को वीकार कया तथा समाज क े जीवन क े कारण तथा प रणाम क े नयम को माना। कम का नयम व भ य क े बीच अ तर का बोध कराता है। कम वामी ववेकानंद का आ या मकवाद तथा भौ तकवाद का सामंज य 23
  • 26. क े वकास तथा वत ता का प रचायक है। तथा समाज का पतन इस बात पर नभर करता है क वह या करता है और या करने से बचता है। उनक े अनुसार, भारत क दासता का कारण जनता क अपे ा थी। हम अपनी दशा, गरावट, दासता तथा असमानता क े लए वयं को ही दोषी मानना चा हए। इस लए, तथा समाज दोन को असमानता क े कारण को अपने अ दर झांककर देखना चा हए और उ ह र करने का य न करना चा हए। जब लोग वेदा त क े उपदेश को मान लगे क जो क ु छ भी है वह सब एक से ही ह, तो असमानता का लोप हो जाएगा। दीपा मुखज अं ेजी वभाग मोबाइल नंबर -7318019138 24
  • 27. सह श ा से ता पय है- लड़ कय तथा लड़क का एक साथ पढ़ना। आधु नक युग म जहां लड़ कयां हर े म लड़क क े मुकाबले बेहतर दशन कर सकने म स ह, उ ह श ा क े अ धकार से व चत नह रखा जा सकता। सह श ा से ता पय है- लड़ कय तथा लड़क का एक साथ पढ़ना। आधु नक युग म जहां लड़ कयां हर े म लड़क क े मुकाबले बेहतर दशन कर सकने म स ह, उ ह श ा क े अ धकार से व चत नह रखा जा सकता। हमारा देश एक वकासशील देश है। इसक े सी मत साधन म लड़ कय व लड़क क े लये अलग अलग व ालय अथवा श ण क े क व ा करना एक महंगा काय है। लड़ कय को पढ़ाने क े लये ो सा हत व अ त र खच को वहन करने से ही सह श ा का मह व बढ़ता है। सह श ा म छा छा ाएं एक साथ पढ़ते लखते और मेलजोल बढ़ाते ह। उनको एक सरे को समझने का पूण अवसर मलता है, जो उनक े भावी जीवन म सहायक बनता है। सह श ा का चलन प चमी श ा और स यता क दने है। आज हर वक सत और वकासशील देश म इसका चलन है। ाचीन भारत म लड़क े एवं लड़ कय को गु क ु ल म रखकर अलग अलग पढ़ाया जाता था। जहां च र नमाण पर अ य धक बल दया जाता था। आधु नक युग म प र तय क े साथ साथ च र और आचरण क े अथ म प रवतन आया है। बदलते युग क सम या को सुलझाने और उनका सामना करने क े लए युवा वग का जाग क होना और एकजुट होना ज री है। देश क ग त क े लये लड़क े और लड़ कय क मान सकता म वकास और उनक बराबर क श ा ब त ज री है। क ु छ पुरातन पंथी लोग सह श ा का वरोध करते ह। उनक े अनुसार लड़क े और लड़ कय क े साथ साथ पढ़ने और उठने बैठने से च र और समाज क मयादा का हनन स व है। पर स य इसक े वपरीत है। री आकषण बढ़ाती है और वातावरण म खुलापन लाने क अपे ा छुप छुप कर मलने और अ य बुराइय का कारण बनती है। अतः हम सचेत रहकर सह श ा को ही ो सा हत करना चा हये। सह श ा आधु नक युग क मांग है जससे नाग रक और देश का चौमुखी वकास संभव है। सह श ा अ ययन क े साथ व ा थय का वकास िवकास रंजन सहायक ोफ े सर राजनीित शा मोबाइल नंबर -9304241324 25