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SUMITTED BY : AJAY KUMAR SHARMA
(B.COM PART-I)
SUMITTED TO : RICHA SHARMA
 उद्यमिता (entrepreneurship) नये संगठन आरम्भ
करने की भावना को कहते हैं। ककसी वततिान या भावी
अवसर का पूवतदर्तन करके िुख्यतः कोई व्यावसाययक
संगठन प्रारम्भ करना उद्यमिता का िुख्य पहलू है।
उद्यमिता िें एक तरफ भरपूर लाभ किाने की सम्भावना
होती है तो दूसरी तरफ अयनश्चितता और अन्य खतरे की
भी प्रबल संभावना होती है।
 जीववत रहने के मलए पैसा किाना आवचयक होता है। अध्यापक
स्कू ल िें पढाता है, श्रमिक कारखाने िें काि करता है, डॉक्टर
अस्पताल िें प्रैश्क्टस करता है, क्लकत बैंक िें नौकरी करता है,
िैनेजर ककसी व्यावसाययक उपक्रि िें कायत करता है - ये सभी
जीववका किाने के मलए कायत करते हैं। ये उन लोगों के उदाहरण
हैं, जो कितिारी हैं तथा वेतन अथवा िजदूरी से आय प्राप्त
करते हैं। यह िजदूरी द्वारा रोजगार कहलता है। दूसरी ओर एक
दुकानदार, एक कारखाने का िामलक, एक व्यापारी, एक डॉक्टर,
श्जसका अपना दवाखाना हो, इत्यादद अपने व्यवसाय से
जीववका उपाश्जतत करते हैं। ये उदाहरण हैं
 स्वरोजगार करने वालों के । कफर भी, कु छ ऐसे भी स्वरोजगारी
लोग हैं, जो न के वल अपने मलए कायत का सृजन करते हैं बश्कक
अन्य बहुत से व्यश्क्तयों के मलए कायत की व्यवस्था करते हैं।
ऐसे व्यश्क्तयों के उदाहरण हैं : टाटा, बबरला आदद जो प्रवततक
तथा कायत की व्यवस्था करने वाले तथा उत्पादक दोनों हैं। इन
व्यश्क्तयों को उद्यिी कहा जा सकता है।
 उद्यम करना एक उद्यमी का काम है जिसकी पररभाषा इस प्रकार है :
‘‘एक ऐसा व्यजति िो नवीन खोि करिा है, बबक्री और व्यवसाय ितुरता के प्रयास से नवीन खोज को
आर्थतक िाल िें बदलता है। श्जसका पररणाि एक नया संगठन या एक पररपक्व संगठन का ज्ञात सुअवसर
और अनुभव के आधर पर पुनः यनिातण करना है। उद्यि की सबसे अर्धक स्पष्ट श्स्थयत एक नए
व्यवसाय की र्ुरूआत करना है। सक्षिता, इच्छार्श्क्त से कायत करने का वविार संगठन प्रबंध की साहमसक
उत्पादक कायों व सभी जोखखिों को उठाना तथा लाभ को प्रयतपफल के रूप िें प्राप्त करना है।’
 उद्यमी मौलिक (सृिनात्मक) च िंिक होिा है। वह एक नव प्रवततक है जो पूंजी लगाता है और जोखखि
उठाने के मलए आगे आता है। इस प्रकक्रया िें वह रोजगार का सृजन करता है। सिस्याओं को सुलझाता है
गुणवत्ता िें वृद्र्ध करता है तथा श्रेष्ठता की ओर दृश्ष्ट रखता है अवपतु हि कह सकते हैं उद्यिी वह है
श्जसिें यनरंतर ववचवास तथा श्रेष्ठता के ववषय िें सोिने की र्श्क्त एवं गुण होते हैं तथा वह उनको
व्यवहार िें लाता है। ककसी वविार, उद्देचय, उत्पाद अथवा सेवा का आववष्कार करने और उसे सािाश्जक
लाभ के मलए प्रयोग िें लाने से ही यह होता है। एक उद्यिी बनने के मलए आपके पास कु छ गुण होने
िादहए। लेककन, उद्यि र्ब्द का अथत कै ररयर बनाने वाला उद्देचय पूणत कायत भी है, श्जसको सीखा जा
सकता है। उद्यिर्ीलता नये वविारों को पहिानने, ववकमसत करने एवं उन्हें वास्तववक स्वरूप प्रदान करने
की कक्रया है। ध्यान रहे देर् के आर्थतक ववकास के अथत िें उद्यिर्ीलता के वल बडे व्यवसायों तक ही
सीमित नहीं हैं। इसिें लघु उद्यिों को सम्िमलत करना भी सिान रूप से िहत्वपूणत है। वास्तव िें बहुत से
ववकमसत तथा ववकासर्ील देर्ों का आर्थतक ववकास तथा सिृद्र्ध एवं सम्पन्नता लघु उद्यिों के
आववभातव का पररणाि है
 उद्यिर्ीलता और उद्यि की भूमिका का आर्थतक व सािाश्जक ववकास िें अक्सर गलत अनुिान लगाया
जाता है। सालों से यह स्पष्ट हो िुका है कक उद्यिर्ीलता लगातार आर्थतक ववकास िें सहायता प्रदान
करती है। एक सोि को आर्थतक रूप िें बदलना उद्यिर्ीलता के अंतगतत सबसे िहत्वपूणत वविारर्ील
बबन्दु हैं। इयतहास साक्षी है कक आर्थतक उन्नयत उन लोगों के द्वारा सम्भव व ववकमसत हो पाई है जो
उद्यिी हैं व नई पद्धयत को अपनाने वाले हैं, जो सुअवसर का लाभ उठाने वाला तथा जोखखि उठाने के
मलए तैयार है। जो जोखखि उठाने वाले होते हैं तथा ऐसे सुअवसर का पीछा करते हैं जो कक दूसरों के द्वारा
िुश्चकल या भय के कारण न पहिाना गया हो। उद्यिर्ीलता की िाहे जो भी पररभाषा हो यह कापफी हद
तक बदलाव, सृजनात्िक, यनपुणता, पररवततन और लोिर्ील तथ्यों से जुडी हैं जो कक संसार िें बढती हुई
एक नई अथतव्यवस्था के मलए प्रयतयोर्गता के िुख्य स्रोत हैं।
 यद्यवप उद्यिर्ीलता का पूवातनुिान लगाने का अथत है व्यवसाय की प्रयतयोर्गता को बढावा देना।
उद्यिर्ीलता का िहत्व यनम्न बबन्दुओं से सिझा जा सकता है :
 लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना : अक्सर लोगों का यह ित है कक श्जन्हें कहीं रोजगार नहीं मिलता वे
उद्यिर्ीलता की ओर जाते है, लेककन सच्िाई यह है कक आजकल अर्धकतर व्यवसाय उन्हीं के द्वारा
स्थावपत ककए जाते हैं, श्जनके पास दूसरे ववककप भी उपलब्ध हैं।
 अनुसंधन और ववकास प्रणाली िें योगदान :लगभग दो यतहाई नवीन खोज उद्यिी के कारण होती है।
अववष्कारों का तेजी से ववकास न हुआ होता तो संसार रहने के मलए र्ुष्क स्थान के सिान होता। अववष्कार
बेहतर तकनीक के द्वारा कायत करने का आसान तरीका प्रदान करते हैं।
 राष्र व व्यश्क्त ववर्ेष के मलए धन-सम्पवत्त का यनिातण करना : सभी व्यश्क्त जो कक व्यवसाय के
सुअवसर की तलार् िें है, उद्यिर्ीलता िें प्रवेर् करके संपवत्त का यनिातण करते हैं। उनके द्वारा यनमितत
संपवत्त राष्र के यनिातण िें अहि भूमिका अदा करती है। एक उद्यिी वस्तुएं और सेवाएं प्रदान करके
अथतव्यवस्था िें अपना योगदान देता है। उनके वविार, ककपना और अववष्कार राष्र के मलए एक बडी
सहायता है
 उद्यि को सफलतापूवतक िलाने के मलए बहुत से गुणों की आवचयकता पड सकती है। कफर भी यनम्नमलखखत गुण
िहत्वपूणत िाने जाते हैं :
 पहि : व्यवसाय की दुयनया िें अवसर आते जाते रहते हैं। एक उद्यिी कायत करने वाला व्यश्क्त होना िादहए। उसे आगे
बढाकर काि र्ुरू कर अवसर का लाभ उठाना िादहए। एक बार अवसर खो देने पर दुबारा नहीं आता। अतः उद्यिी के
मलए पहल करना आवचयक है।
 िोखखम उठाने की इच्छाशजति : प्रत्येक व्यवसाय िें जोखखि रहता है। इसका अथत यह है कक व्यवसायी सफल भी हो
सकता है और असफल भी। दूसरे र्ब्दों िें यह आवचयक नहीं है कक प्रत्येक व्यवसाय िें लाभ ही हो। यह तत्व व्यश्क्त
को व्यवसाय करने से रोकता है। तथावप, एक उद्यिी को सदैव जोखखि उठाने के मलए आगे बढना िादहए और
व्यवसाय िलाकर उसिें सफलता प्राप्त करनी िादहए।
 अनुभव से सीखने की योग्यिा : एक उद्यिी गलती कर सकता है, ककन्तु एक बार गलती हो जाने पर वपफर वह
दोहराई न जाय। क्योंकक ऐसा होने पर भारी नुकसान उठाना पड सकता है। अतः अपनी गलयतयों से सबक लेना िादहए।
एक उद्यिी िें भी अनुभव से सीखने की योग्यता होनी िादहए।
 अलभप्रेरणा : अमभप्रेरणा सफलता की कुं जी है। जीवन के हर कदि पर इसकी आवचयकता पडती है। एक बार जब आप
ककसी कायत को करने के मलए अमभप्रेररत हो जाते हैं तो उस कायत को सिाप्त करने के बाद ही दि लेते हैं। उदाहरण के
मलए, कभी-कभी आप ककसी कहानी अथवा उपन्यास को पढने िें इतने खो जाते हैं कक उसे खत्ि करने से पहले सो नहीं
पाते। इस प्रकार की रूर्ि अमभप्रेरणा से ही उत्पन्न होती है। एक सफल उद्यिी का यह एक आवचयक गुण है।
 आत्मववश्वास : जीवन िें सफलता प्राप्त करने के मलए अपने आप िें आत्िववचवास उत्पन्न करना िादहए। एक
व्यश्क्त श्जसिें आत्िववचवास की किी होती है वह न तो अपने आप कोई कायत कर सकता है और न ही ककसी अन्य को
कायत करने के मलए प्रेररत कर सकता है।
 ननणणय िेने की योग्यिा : व्यवसाय िलाने िें उद्यिी को बहुत से यनणतय लेने पडते हैं। अतः उसिें सिय रहते हुए
उपयुक्त यनणतय लेने की योग्यता होनी िादहए। दूसरे र्ब्दों िें उर्ित सिय पर उर्ित यनणतय लेने की क्षिता होनी
िादहए। आज की दुयनया बहुत तेजी से आगे बढ रही हैं यदद एक उद्यिी िें सियानुसार यनणतय लेने की योग्यता नहीं
होती है, तो वह आये हुए अवसर को खो देगा और उसे हायन उठानी पड सकती है
 उद्यिी को अपनी आंखें और कान खुले रखने िादहए तथा वविार र्श्क्त, सृजनात्िक और नवीनता की
ओर अग्रसर रहना िादहए।
 वव ारों को कायाणजववि करना : एक उद्यिी िें अपने वविारों को व्यवहार िें लाने की योग्यता होनी िादहए।
वह उन वविारों, उत्पादों, व्यवहारों की सूिना एकबित करता है, जो बाजार की िांग को पूरा करने िें
सहायक होते हैं। इन एकबित सूिनाओं के आधर पर उसे लक्ष्य प्राश्प्त के मलए कदि उठाने पडते हैं।
 सिंभाव्यिा अध्ययन : उद्यिी अध्ययन कर अपने प्रस्ताववत उत्पाद अथवा सेवा से बाजार की जांि करता
है, वह आनेवाली सिस्याओं पर वविार कर उत्पाद की संख्या, िािा तथा लागत के साथ-साथ उपक्रि को
िलाने के मलये आवचयकताओं की पूयतत के दठकानों का भी ज्ञान प्राप्त करता है। इन सभी कक्रयाओं की
बनायी गयी रूपरेखा, व्यवसाय की योजना अथवा एक प्रोजेक्ट ररपोटत ;कायत प्रयतवेदनद्ध कहलाती है।
 सिंसाधनों को उपिब्ध कराना : उद्यि को सपफलता से िलाने के मलए उद्यिी को बहुत से साधनों की
आवचयकता पडती है। ये साधन हैं : द्रव्य, िर्ीन, कच्िा िाल तथा िानव। इन सभी साधनों को उपलब्ध्
कराना उद्यिी का एक आवचयक कायत है।
 उद्यम की स्थापना : उद्यि की स्थापना के मलए उद्यिी को कु छ वैधयनक कायतवादहयां पूरी करनी होती
हैं। उसे एक उपयुक्त स्थान का िुनाव करना होता है। भवन को डडजाइन करना, िर्ीन को लगाना तथा
अन्य बहुत से कायत करने होते हैं।
 उद्यम का प्रबिंधन : उद्यि का प्रबंधन करना भी उद्यिी का एक िहत्वपूणत कायत होता है। उसे िानव,
िाल, ववत्त, िाल का उत्पादन तथा सेवाएं सभी का प्रबंधन करना है। उसे प्रत्येक िाल एवं सेवा का ववपणन
भी करना है, श्जससे कक ववयनयोग ककए धन से उर्ित लाभ प्राप्त हो। के वल उर्ित प्रबंध के द्वारा ही
इश्च्छत पररणाि प्राप्त हो सकते हैं।
 वृद्चध एविं ववकास : एक बार इश्च्छत पररणाि प्राप्त करने के उपरांत, उद्यिी को उद्यि की वृद्र्ध एवं
ववकास के मलए अगला ऊं िा लक्ष्य खोजना होता है। उद्यिी एक यनधातररत लक्ष्य की प्राश्प्त के पचिात्
संतुष्ट नहीं होता, अवपतु उत्कृ ष्टता प्राश्प्त के मलए सतत प्रयत्नर्ील बना रहता है।
 एक लघु व्यवसाय की इकाई कोई भी व्यश्क्त स्थावपत कर
सकता है। वह पुराना उद्यिी हो सकता है अथवा नवीन,
उसे व्यवसाय िलाने का अनुभव हो सकता है और नहीं भी,
वह मर्क्षक्षत भी हो सकता है अथवा अमर्क्षक्षत भी, उसकी
पृष्ठभूमि ग्रािीण हो सकती अथवा र्हरी।
 उद्यिी को ववचलेषण कर यह ज्ञात करना होगा कक व्यवसाय िें
ककतने पैसे की आवचयकता होगी और ककतने सिय के मलए
होगी। िर्ीन, भवन, कच्िा िाल आदद खरीदने तथा श्रमिकों
की िजदूरी आदद िुकाने के मलए उसे धन की आवचयकता पडती
है। िर्ीनरी, भवन, उपकरण आदद क्रय करने के मलए खित
ककया धन स्थायी पूंजी कहलाती है। दूसरी ओर, कच्िा िाल
क्रय करने तथा िजदूरी तथा वेतन, ककराया, टेलीपफोन और
बबजली के बबल का भुगतान करने के मलए खित ककया धन,
कायतर्ील पूूँजी कहलाती है। एक उद्यिी को दोनों ही प्रकार की
पूंजी जुटानी होती है। यह धन अपने घर से पूरा ककया जा सकता
है अथवा बैंक तथा अन्य ववत्तीय संस्थाओं से ऋण लेकर। मििों
तथा संबंर्धयों से भी धन उधर मलया जा सकता है।
 व्यवसाय करने की प्रकक्रया तब से प्रारम्भ हो जाती है जब
उद्यिी सोिना र्ुरू कर देता है कक वह ककस िीज का
व्यवसाय करें। वह बाजार की िांग को देखते हुए
व्यावसाययक अवसरों पर सोि सकता है। वह ववद्यिान
वस्तु अथवा उत्पाद के मलए यनणतय ले सकता है अथवा
ककसी नये उत्पाद पर वविार कर सकता है। ककन्तु कोई भी
कदि उठाने से पहले उसे व्यवसाय का लाभ, र्श्क्त अथवा
लाभप्रदता और पूंजी यनवेर् पर गंभीरता से वविार करना
होगा। लाभप्रदता तथा जोखखि की श्स्थयत पर वविार कर
लेने के पचिात ही व्यवसाय की कौन सी ददर्ा ठीक रहेगी
इसके बारे िें उद्यिी को यनणतय लेना िादहए
 संगठन के ववमभन्न स्वरूपों के ववषय िें आप जानकारी
प्राप्त कर िुके हैं। अब आपको अपनी आवचयकता के
अनुसार सवतश्रेष्ठ रूप से ियन करना होगा। सािान्यतः
एक लघु उद्यि को िुनना ठीक होगा, जो एकल व्यवसायी
अथवा साझेदारी का रूप ले सकती है
 व्यवसाय कहाूँ र्ुरू ककया जाय? - इस स्थान के िुनाव िें ववर्ेष
सावधनी बरतनी िादहए। उद्यिी अपने स्थान पर अथवा
ककराये के स्थान पर व्यवसाय र्ुरू कर सकता है। वह स्थान
ककसी बाजार अथवा व्यापाररक कॉिप्लेक्स अथवा ककसी
औद्योर्गक भूमि (स्टेट) िें हो सकता है। स्थान-ववषयक
यनणतय लेते सिय उद्यिी को बहुत से कारकों जैसे : बाजार की
यनकटता, श्रि की उपलब्धता, यातायात की सुववध, बैंककं ग तथा
संवहन की सुववधएं आदद पर वविार कर लेना िादहए। कारखाने
की स्थापना ऐसे स्थान पर करनी िादहए, जहां कच्िे िाल की
प्राश्प्त का स्रोत हो और वह स्थान रेल सडक यातायात की
सुववधा से भी जुडा हुआ हो। फु टकर व्यवसाय एक िोहकले
अथवा बाजार िें र्ुरू ककया जाना िादहए
 एक उद्यिी अके ला ही व्यवसाय को नहीं िला सकता। उसे
अपनी सहायता के मलए कु छ व्यश्क्तयों को नौकरी पर
रखना होगा। ववर्ेष रूप से ववयनिातण कायत के मलए उसे
प्रमर्क्षक्षत तथा अधत-प्रमर्क्षक्षत कारीगरों को रखना होगा।
कायत र्ुरू करने से पूवत उद्यिी को यह यनश्चित कर लेना
िादहए कक क्या उसे ककये जाने वाले कायों के मलए उर्ित
प्रकार के कितिारी मिल पायेंगे?
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Ajay presentation1entrepreneurship

  • 1. SUMITTED BY : AJAY KUMAR SHARMA (B.COM PART-I) SUMITTED TO : RICHA SHARMA
  • 2.  उद्यमिता (entrepreneurship) नये संगठन आरम्भ करने की भावना को कहते हैं। ककसी वततिान या भावी अवसर का पूवतदर्तन करके िुख्यतः कोई व्यावसाययक संगठन प्रारम्भ करना उद्यमिता का िुख्य पहलू है। उद्यमिता िें एक तरफ भरपूर लाभ किाने की सम्भावना होती है तो दूसरी तरफ अयनश्चितता और अन्य खतरे की भी प्रबल संभावना होती है।
  • 3.  जीववत रहने के मलए पैसा किाना आवचयक होता है। अध्यापक स्कू ल िें पढाता है, श्रमिक कारखाने िें काि करता है, डॉक्टर अस्पताल िें प्रैश्क्टस करता है, क्लकत बैंक िें नौकरी करता है, िैनेजर ककसी व्यावसाययक उपक्रि िें कायत करता है - ये सभी जीववका किाने के मलए कायत करते हैं। ये उन लोगों के उदाहरण हैं, जो कितिारी हैं तथा वेतन अथवा िजदूरी से आय प्राप्त करते हैं। यह िजदूरी द्वारा रोजगार कहलता है। दूसरी ओर एक दुकानदार, एक कारखाने का िामलक, एक व्यापारी, एक डॉक्टर, श्जसका अपना दवाखाना हो, इत्यादद अपने व्यवसाय से जीववका उपाश्जतत करते हैं। ये उदाहरण हैं  स्वरोजगार करने वालों के । कफर भी, कु छ ऐसे भी स्वरोजगारी लोग हैं, जो न के वल अपने मलए कायत का सृजन करते हैं बश्कक अन्य बहुत से व्यश्क्तयों के मलए कायत की व्यवस्था करते हैं। ऐसे व्यश्क्तयों के उदाहरण हैं : टाटा, बबरला आदद जो प्रवततक तथा कायत की व्यवस्था करने वाले तथा उत्पादक दोनों हैं। इन व्यश्क्तयों को उद्यिी कहा जा सकता है।
  • 4.  उद्यम करना एक उद्यमी का काम है जिसकी पररभाषा इस प्रकार है : ‘‘एक ऐसा व्यजति िो नवीन खोि करिा है, बबक्री और व्यवसाय ितुरता के प्रयास से नवीन खोज को आर्थतक िाल िें बदलता है। श्जसका पररणाि एक नया संगठन या एक पररपक्व संगठन का ज्ञात सुअवसर और अनुभव के आधर पर पुनः यनिातण करना है। उद्यि की सबसे अर्धक स्पष्ट श्स्थयत एक नए व्यवसाय की र्ुरूआत करना है। सक्षिता, इच्छार्श्क्त से कायत करने का वविार संगठन प्रबंध की साहमसक उत्पादक कायों व सभी जोखखिों को उठाना तथा लाभ को प्रयतपफल के रूप िें प्राप्त करना है।’  उद्यमी मौलिक (सृिनात्मक) च िंिक होिा है। वह एक नव प्रवततक है जो पूंजी लगाता है और जोखखि उठाने के मलए आगे आता है। इस प्रकक्रया िें वह रोजगार का सृजन करता है। सिस्याओं को सुलझाता है गुणवत्ता िें वृद्र्ध करता है तथा श्रेष्ठता की ओर दृश्ष्ट रखता है अवपतु हि कह सकते हैं उद्यिी वह है श्जसिें यनरंतर ववचवास तथा श्रेष्ठता के ववषय िें सोिने की र्श्क्त एवं गुण होते हैं तथा वह उनको व्यवहार िें लाता है। ककसी वविार, उद्देचय, उत्पाद अथवा सेवा का आववष्कार करने और उसे सािाश्जक लाभ के मलए प्रयोग िें लाने से ही यह होता है। एक उद्यिी बनने के मलए आपके पास कु छ गुण होने िादहए। लेककन, उद्यि र्ब्द का अथत कै ररयर बनाने वाला उद्देचय पूणत कायत भी है, श्जसको सीखा जा सकता है। उद्यिर्ीलता नये वविारों को पहिानने, ववकमसत करने एवं उन्हें वास्तववक स्वरूप प्रदान करने की कक्रया है। ध्यान रहे देर् के आर्थतक ववकास के अथत िें उद्यिर्ीलता के वल बडे व्यवसायों तक ही सीमित नहीं हैं। इसिें लघु उद्यिों को सम्िमलत करना भी सिान रूप से िहत्वपूणत है। वास्तव िें बहुत से ववकमसत तथा ववकासर्ील देर्ों का आर्थतक ववकास तथा सिृद्र्ध एवं सम्पन्नता लघु उद्यिों के आववभातव का पररणाि है
  • 5.  उद्यिर्ीलता और उद्यि की भूमिका का आर्थतक व सािाश्जक ववकास िें अक्सर गलत अनुिान लगाया जाता है। सालों से यह स्पष्ट हो िुका है कक उद्यिर्ीलता लगातार आर्थतक ववकास िें सहायता प्रदान करती है। एक सोि को आर्थतक रूप िें बदलना उद्यिर्ीलता के अंतगतत सबसे िहत्वपूणत वविारर्ील बबन्दु हैं। इयतहास साक्षी है कक आर्थतक उन्नयत उन लोगों के द्वारा सम्भव व ववकमसत हो पाई है जो उद्यिी हैं व नई पद्धयत को अपनाने वाले हैं, जो सुअवसर का लाभ उठाने वाला तथा जोखखि उठाने के मलए तैयार है। जो जोखखि उठाने वाले होते हैं तथा ऐसे सुअवसर का पीछा करते हैं जो कक दूसरों के द्वारा िुश्चकल या भय के कारण न पहिाना गया हो। उद्यिर्ीलता की िाहे जो भी पररभाषा हो यह कापफी हद तक बदलाव, सृजनात्िक, यनपुणता, पररवततन और लोिर्ील तथ्यों से जुडी हैं जो कक संसार िें बढती हुई एक नई अथतव्यवस्था के मलए प्रयतयोर्गता के िुख्य स्रोत हैं।  यद्यवप उद्यिर्ीलता का पूवातनुिान लगाने का अथत है व्यवसाय की प्रयतयोर्गता को बढावा देना। उद्यिर्ीलता का िहत्व यनम्न बबन्दुओं से सिझा जा सकता है :  लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना : अक्सर लोगों का यह ित है कक श्जन्हें कहीं रोजगार नहीं मिलता वे उद्यिर्ीलता की ओर जाते है, लेककन सच्िाई यह है कक आजकल अर्धकतर व्यवसाय उन्हीं के द्वारा स्थावपत ककए जाते हैं, श्जनके पास दूसरे ववककप भी उपलब्ध हैं।  अनुसंधन और ववकास प्रणाली िें योगदान :लगभग दो यतहाई नवीन खोज उद्यिी के कारण होती है। अववष्कारों का तेजी से ववकास न हुआ होता तो संसार रहने के मलए र्ुष्क स्थान के सिान होता। अववष्कार बेहतर तकनीक के द्वारा कायत करने का आसान तरीका प्रदान करते हैं।  राष्र व व्यश्क्त ववर्ेष के मलए धन-सम्पवत्त का यनिातण करना : सभी व्यश्क्त जो कक व्यवसाय के सुअवसर की तलार् िें है, उद्यिर्ीलता िें प्रवेर् करके संपवत्त का यनिातण करते हैं। उनके द्वारा यनमितत संपवत्त राष्र के यनिातण िें अहि भूमिका अदा करती है। एक उद्यिी वस्तुएं और सेवाएं प्रदान करके अथतव्यवस्था िें अपना योगदान देता है। उनके वविार, ककपना और अववष्कार राष्र के मलए एक बडी सहायता है
  • 6.  उद्यि को सफलतापूवतक िलाने के मलए बहुत से गुणों की आवचयकता पड सकती है। कफर भी यनम्नमलखखत गुण िहत्वपूणत िाने जाते हैं :  पहि : व्यवसाय की दुयनया िें अवसर आते जाते रहते हैं। एक उद्यिी कायत करने वाला व्यश्क्त होना िादहए। उसे आगे बढाकर काि र्ुरू कर अवसर का लाभ उठाना िादहए। एक बार अवसर खो देने पर दुबारा नहीं आता। अतः उद्यिी के मलए पहल करना आवचयक है।  िोखखम उठाने की इच्छाशजति : प्रत्येक व्यवसाय िें जोखखि रहता है। इसका अथत यह है कक व्यवसायी सफल भी हो सकता है और असफल भी। दूसरे र्ब्दों िें यह आवचयक नहीं है कक प्रत्येक व्यवसाय िें लाभ ही हो। यह तत्व व्यश्क्त को व्यवसाय करने से रोकता है। तथावप, एक उद्यिी को सदैव जोखखि उठाने के मलए आगे बढना िादहए और व्यवसाय िलाकर उसिें सफलता प्राप्त करनी िादहए।  अनुभव से सीखने की योग्यिा : एक उद्यिी गलती कर सकता है, ककन्तु एक बार गलती हो जाने पर वपफर वह दोहराई न जाय। क्योंकक ऐसा होने पर भारी नुकसान उठाना पड सकता है। अतः अपनी गलयतयों से सबक लेना िादहए। एक उद्यिी िें भी अनुभव से सीखने की योग्यता होनी िादहए।  अलभप्रेरणा : अमभप्रेरणा सफलता की कुं जी है। जीवन के हर कदि पर इसकी आवचयकता पडती है। एक बार जब आप ककसी कायत को करने के मलए अमभप्रेररत हो जाते हैं तो उस कायत को सिाप्त करने के बाद ही दि लेते हैं। उदाहरण के मलए, कभी-कभी आप ककसी कहानी अथवा उपन्यास को पढने िें इतने खो जाते हैं कक उसे खत्ि करने से पहले सो नहीं पाते। इस प्रकार की रूर्ि अमभप्रेरणा से ही उत्पन्न होती है। एक सफल उद्यिी का यह एक आवचयक गुण है।  आत्मववश्वास : जीवन िें सफलता प्राप्त करने के मलए अपने आप िें आत्िववचवास उत्पन्न करना िादहए। एक व्यश्क्त श्जसिें आत्िववचवास की किी होती है वह न तो अपने आप कोई कायत कर सकता है और न ही ककसी अन्य को कायत करने के मलए प्रेररत कर सकता है।  ननणणय िेने की योग्यिा : व्यवसाय िलाने िें उद्यिी को बहुत से यनणतय लेने पडते हैं। अतः उसिें सिय रहते हुए उपयुक्त यनणतय लेने की योग्यता होनी िादहए। दूसरे र्ब्दों िें उर्ित सिय पर उर्ित यनणतय लेने की क्षिता होनी िादहए। आज की दुयनया बहुत तेजी से आगे बढ रही हैं यदद एक उद्यिी िें सियानुसार यनणतय लेने की योग्यता नहीं होती है, तो वह आये हुए अवसर को खो देगा और उसे हायन उठानी पड सकती है
  • 7.  उद्यिी को अपनी आंखें और कान खुले रखने िादहए तथा वविार र्श्क्त, सृजनात्िक और नवीनता की ओर अग्रसर रहना िादहए।  वव ारों को कायाणजववि करना : एक उद्यिी िें अपने वविारों को व्यवहार िें लाने की योग्यता होनी िादहए। वह उन वविारों, उत्पादों, व्यवहारों की सूिना एकबित करता है, जो बाजार की िांग को पूरा करने िें सहायक होते हैं। इन एकबित सूिनाओं के आधर पर उसे लक्ष्य प्राश्प्त के मलए कदि उठाने पडते हैं।  सिंभाव्यिा अध्ययन : उद्यिी अध्ययन कर अपने प्रस्ताववत उत्पाद अथवा सेवा से बाजार की जांि करता है, वह आनेवाली सिस्याओं पर वविार कर उत्पाद की संख्या, िािा तथा लागत के साथ-साथ उपक्रि को िलाने के मलये आवचयकताओं की पूयतत के दठकानों का भी ज्ञान प्राप्त करता है। इन सभी कक्रयाओं की बनायी गयी रूपरेखा, व्यवसाय की योजना अथवा एक प्रोजेक्ट ररपोटत ;कायत प्रयतवेदनद्ध कहलाती है।  सिंसाधनों को उपिब्ध कराना : उद्यि को सपफलता से िलाने के मलए उद्यिी को बहुत से साधनों की आवचयकता पडती है। ये साधन हैं : द्रव्य, िर्ीन, कच्िा िाल तथा िानव। इन सभी साधनों को उपलब्ध् कराना उद्यिी का एक आवचयक कायत है।  उद्यम की स्थापना : उद्यि की स्थापना के मलए उद्यिी को कु छ वैधयनक कायतवादहयां पूरी करनी होती हैं। उसे एक उपयुक्त स्थान का िुनाव करना होता है। भवन को डडजाइन करना, िर्ीन को लगाना तथा अन्य बहुत से कायत करने होते हैं।  उद्यम का प्रबिंधन : उद्यि का प्रबंधन करना भी उद्यिी का एक िहत्वपूणत कायत होता है। उसे िानव, िाल, ववत्त, िाल का उत्पादन तथा सेवाएं सभी का प्रबंधन करना है। उसे प्रत्येक िाल एवं सेवा का ववपणन भी करना है, श्जससे कक ववयनयोग ककए धन से उर्ित लाभ प्राप्त हो। के वल उर्ित प्रबंध के द्वारा ही इश्च्छत पररणाि प्राप्त हो सकते हैं।  वृद्चध एविं ववकास : एक बार इश्च्छत पररणाि प्राप्त करने के उपरांत, उद्यिी को उद्यि की वृद्र्ध एवं ववकास के मलए अगला ऊं िा लक्ष्य खोजना होता है। उद्यिी एक यनधातररत लक्ष्य की प्राश्प्त के पचिात् संतुष्ट नहीं होता, अवपतु उत्कृ ष्टता प्राश्प्त के मलए सतत प्रयत्नर्ील बना रहता है।
  • 8.  एक लघु व्यवसाय की इकाई कोई भी व्यश्क्त स्थावपत कर सकता है। वह पुराना उद्यिी हो सकता है अथवा नवीन, उसे व्यवसाय िलाने का अनुभव हो सकता है और नहीं भी, वह मर्क्षक्षत भी हो सकता है अथवा अमर्क्षक्षत भी, उसकी पृष्ठभूमि ग्रािीण हो सकती अथवा र्हरी।
  • 9.  उद्यिी को ववचलेषण कर यह ज्ञात करना होगा कक व्यवसाय िें ककतने पैसे की आवचयकता होगी और ककतने सिय के मलए होगी। िर्ीन, भवन, कच्िा िाल आदद खरीदने तथा श्रमिकों की िजदूरी आदद िुकाने के मलए उसे धन की आवचयकता पडती है। िर्ीनरी, भवन, उपकरण आदद क्रय करने के मलए खित ककया धन स्थायी पूंजी कहलाती है। दूसरी ओर, कच्िा िाल क्रय करने तथा िजदूरी तथा वेतन, ककराया, टेलीपफोन और बबजली के बबल का भुगतान करने के मलए खित ककया धन, कायतर्ील पूूँजी कहलाती है। एक उद्यिी को दोनों ही प्रकार की पूंजी जुटानी होती है। यह धन अपने घर से पूरा ककया जा सकता है अथवा बैंक तथा अन्य ववत्तीय संस्थाओं से ऋण लेकर। मििों तथा संबंर्धयों से भी धन उधर मलया जा सकता है।
  • 10.  व्यवसाय करने की प्रकक्रया तब से प्रारम्भ हो जाती है जब उद्यिी सोिना र्ुरू कर देता है कक वह ककस िीज का व्यवसाय करें। वह बाजार की िांग को देखते हुए व्यावसाययक अवसरों पर सोि सकता है। वह ववद्यिान वस्तु अथवा उत्पाद के मलए यनणतय ले सकता है अथवा ककसी नये उत्पाद पर वविार कर सकता है। ककन्तु कोई भी कदि उठाने से पहले उसे व्यवसाय का लाभ, र्श्क्त अथवा लाभप्रदता और पूंजी यनवेर् पर गंभीरता से वविार करना होगा। लाभप्रदता तथा जोखखि की श्स्थयत पर वविार कर लेने के पचिात ही व्यवसाय की कौन सी ददर्ा ठीक रहेगी इसके बारे िें उद्यिी को यनणतय लेना िादहए
  • 11.  संगठन के ववमभन्न स्वरूपों के ववषय िें आप जानकारी प्राप्त कर िुके हैं। अब आपको अपनी आवचयकता के अनुसार सवतश्रेष्ठ रूप से ियन करना होगा। सािान्यतः एक लघु उद्यि को िुनना ठीक होगा, जो एकल व्यवसायी अथवा साझेदारी का रूप ले सकती है
  • 12.  व्यवसाय कहाूँ र्ुरू ककया जाय? - इस स्थान के िुनाव िें ववर्ेष सावधनी बरतनी िादहए। उद्यिी अपने स्थान पर अथवा ककराये के स्थान पर व्यवसाय र्ुरू कर सकता है। वह स्थान ककसी बाजार अथवा व्यापाररक कॉिप्लेक्स अथवा ककसी औद्योर्गक भूमि (स्टेट) िें हो सकता है। स्थान-ववषयक यनणतय लेते सिय उद्यिी को बहुत से कारकों जैसे : बाजार की यनकटता, श्रि की उपलब्धता, यातायात की सुववध, बैंककं ग तथा संवहन की सुववधएं आदद पर वविार कर लेना िादहए। कारखाने की स्थापना ऐसे स्थान पर करनी िादहए, जहां कच्िे िाल की प्राश्प्त का स्रोत हो और वह स्थान रेल सडक यातायात की सुववधा से भी जुडा हुआ हो। फु टकर व्यवसाय एक िोहकले अथवा बाजार िें र्ुरू ककया जाना िादहए
  • 13.  एक उद्यिी अके ला ही व्यवसाय को नहीं िला सकता। उसे अपनी सहायता के मलए कु छ व्यश्क्तयों को नौकरी पर रखना होगा। ववर्ेष रूप से ववयनिातण कायत के मलए उसे प्रमर्क्षक्षत तथा अधत-प्रमर्क्षक्षत कारीगरों को रखना होगा। कायत र्ुरू करने से पूवत उद्यिी को यह यनश्चित कर लेना िादहए कक क्या उसे ककये जाने वाले कायों के मलए उर्ित प्रकार के कितिारी मिल पायेंगे?