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बेरोजगारी का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, एवं भारत
में बेरोजगारी की विशेषताएं
byPravin
•March 22, 2023
0
बेरोजगारी हमारे सामने एक भयंकर स्वरूप में उपस्थित है। अतः इसे राष्ट्र की एक महत्वपूर्ण समस्या
माना जा सकता है। हम राजनैतिक दृष्टिकोण से अवश्य स्वतन्त्र हो गये हैं किन्तु आर्थिक दृष्टिकोण से
हम अभी भी काफी पीछे हैं। इस आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने क
े लिए शासन सतत्प्रयास कर रहा है
किन्तु बेरोजगारी में कमी नहीं हुई है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली को बेरोजगारी बढ़ाने में अत्यधिक
जिम्मेदार माना जाता है, क्योंकि यह क
े वल छोटे कार्य करने वालों का ही निर्माण करती है।
इस प्रकार अशिक्षा हमारे राष्ट्र में बेरोजगारी की समस्या का एक प्रधान कारण है। पंचवर्षीय योजनाओं में
शिक्षा को समुचित स्तर पर महत्व नहीं दिया गया है। जिसक
े कारण नवयुवकों का गुणात्मक विकास
नहीं हो पाया है। इसक
े अतिरिक्त कला-कौशल का भी सम्पूर्ण विकास नहीं हो सका है। शिक्षण संस्थाओं
की तुलना में उद्योगों का विकास समुचित रूप से नहीं हो पाया है, जिसक
े फलस्वरूप शिक्षित बेरोजगारी
का जन्म हुआ है।
यह भी पढ़ें-
​ वैश्वीकरण क्या है - अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता एवं प्रभाव
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बेरोजगारी का अर्थ एवं परिभाषाएँ
बेरोजगारी से आशय रोजगार क
े अवसरों की तुलना में मानव श्रमशक्ति क
े आधिक्य से है अर्थात्ऐसी
मानव शक्ति जो चालू मजदूरी दरों पर कार्य करने की इच्छा, योग्यता एवं सामर्थ्य रखते हुए भी
सम्बन्धित कार्य से वंचित रहती है, बेरोजगारी कहलाती है।
बेरोजगारी को परिभाषित करते हुए कीन्स ने लिखा है कि "स्वैच्छिक बेरोजगारी एक ऐसी स्थिति है,
जिसमें मुदा मजदूरी की अपेक्षा वस्तु मजदूरी में अपेक्षाकृ त वृद्धि होने पर श्रम की सामूहिक पूर्ति चालू
मुद्रा मजदूरी एवं क
ु ल माँग की तुलना में वर्तमान रोजगार की मात्रा अधिक होगी।"
विलियम बेवरिज क
े शब्दों में : "पूर्ण रोजगार का अर्थ है बेरोजगार व्यक्तियों की तुलना में अधिक रिक्त
स्थान रखना। इसका अर्थ यह है कि नौकरी उचित मजदूरी पर उपलब्ध है और वह इस प्रकार की है, जो
ऐसे स्थानों पर क
े न्द्रित है कि बेरोजगार व्यक्ति उन्हें सरलता से प्राप्त करने की आशा रख सकता है।"
उपर्युक्त परिभाषाओं क
े आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रचलित मजदूरी पर जो श्रमिक कार्य करने
को तत्पर हो जाते हों तो उसे पूर्ण रोजगार कहा जाता है। यदि कोई व्यक्ति प्रचलित मजदूरी दरों पर कार्य
करने को तैयार न हो तो उसे बेरोजगार नहीं कहा जा सकता है। क
े वल वही व्यक्ति बेरोजगार माने जायेंगे
जो अनिच्छा से बेरोजगार हैं, जो व्यक्ति प्रचलित मजदूरी दरों पर कार्य करने को तत्पर हों, पर उन्हें काम
न मिले तो उसे बेरोजगार की श्रेणी में रखा जायेगा।
बेरोजगारी क
े प्रकार या स्वरूप
सैद्धान्तिक आधार पर बेरोजगारी क
े अनेक प्रकार या स्वरूप होते हैं। इसमें से क
ु छ विशेष प्रकार की
बेरोजगारी विकसित देशों में पायी जाती है तो क
ु छ अन्य प्रकार की भारत जैसे विकासशील देशों में पायी
जाती है। बेरोजगारी क
े स्वरूप या प्रकारों को संक्षेप में निम्न प्रकार से स्पष्ट कर सकते हैं-
संरचनात्मक बेरोजगारी
जब किसी अर्थव्यवस्था क
े संरचनात्मक ढाँचे में परिवर्तन होता है और परिणामस्वरूप एक क्षेत्र विशेष में
कार्य करने वाले श्रमिक दूसरे क्षेत्र या उद्योग क
े लिए उपयुक्त नहीं रहते हैं, तब इस प्रकार की बेरोजगारी
उत्पन्न होती है। ऐसी बेरोजगारी को संरचनात्मक बेरोजगारी कहा जाता है।
चक्रीय बेरोजगारी
चक्रीय बेरोजगारी मुख्यत: विकसित पूँजीवादी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में पायी जाती है। इन देशों में
मंदीकाल क
े समय में वस्तुओं की पूर्ति, माँग की तुलना में अधिक होने पर स्टॉक बढ़ जाता है। इससे
हानि उठाने वाले उद्योग बन्द हो जाते हैं और बेरोजगारी फ
ै ल जाती है। तेजी आने पर ये उद्योग पुनः
उत्पादन प्रारम्भ करते हैं और बेरोजगारी कम हो जाती है। तेजी एवं मंदी की यह स्थिति एक निश्चित
चक्र में आती है। अतः इस प्रकार उत्पन्न होने वाली बेरोजगारी को चक्रीय बेरोजगारी कहा जाता है।
तकनीकी बेरोजगारी
तकनीकी बेरोजगारी स्वचालित मशीनों क
े अधिकाधिक प्रयोग से उत्पन्न होती है। इस प्रकार की स्थिति
कृ षि, उद्योग एवं यातायात आदि किसी भी क्षेत्र में उत्पन्न हो सकती है। उदाहरण क
े लिए, कृ षि में
यन्त्रीकरण से तथा उद्योगों में आधुनिकीकरण करने से तकनीकी बेरोजगारी उत्पन्न हो जाती है।
अर्द्ध-बेरोजगारी
अर्द्ध-बेरोजगारी का अर्थ योग्य तथा काम करने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को कम समय का तथा
योग्यता से कम काम मिलता है। भारत जैसे विकासशील देशों में ग्रामीण अल्प रोजगार की समस्या
सबसे अधिक गम्भीर रूप से पायी जाती है। भूमिहीन श्रमिक, छोटे किसान, कारीगर आदि ऐसे लोग हैं
जिन्हें क
ु छ महीनों तक बेकार बैठे रहना पड़ता है।
मौसमी बेरोजगारी
क
ु छ उद्योग ऐसे होते हैं, जो वर्ष में क
ु छ विशेष दिनों में ही चलते हैं तथा शेष समय में बन्द रहते हैं।
उदाहरण क
े तौर पर चीनी उद्योग क
े वल शरद ऋतु में ही चलता है। ऐसे मौसमी व्यवसाय जब बंद हो
जाते हैं तो श्रमिक बेरोजगार हो जाते हैं। इस प्रकार की बेरोजगारी मौसमी बेरोजगारी कहलाती है।
शिक्षित बेरोजगारी
शहरी या नगरीय क्षेत्रों में शिक्षित व्यक्तियों को भी रोजगार क
े पर्याप्त अवसर न मिलने से बेरोजगारी की
समस्या उत्पन्न होती है। विकासशील देशों में यह एक जटिल एवं गम्भीर समस्या है।
ग्रामीण बेरोजगारी
ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक प्रकार की बेरोजगारी पायी जाती है; जैसे अर्द्ध-बेरोजगारी, अदृश्य बेरोजगारी एवं
मौसमी बेरोजगारी आदि। कृ षि प्रधान देशों में ग्रामीण बेरोजगारी की समस्या अत्यन्त भयावह है।
अदृश्य बेरोजगारी
अदृश्य बेरोजगारी उस स्थिति में होती है. जबकि किसी कार्य में आवश्यकता से अधिक श्रमिक कार्यरत
हों। ग्रामीण क्षेत्रों में एक अनुमान क
े अनुसार लगभग पाँच करोड़ व्यक्ति अदृश्य रूप से बेरोजगार हैं। यह
व्यक्ति काम पर लगे हुए प्रतीत होते हैं परन्तु इनका उत्पादन में योगदान शून्य क
े बराबर होता है।
इसीलिए इसे अदृश्य बेरोजगारी कहते हैं।
यह भी पढ़ें-
​ विश्व व्यापार संगठन - आशय, उद्देश्य, विशेषतायें, कार्य, संगठन की संरचना एवं समझौता
​ विनियोग क्या है || अर्थ, परिभाषा, महत्व, प्रकार, तत्व एवं भारत में विनियोग निर्धारण
भारत में बेरोजगारी की विशेषताएँ
भारत में बेरोजगारी की विशेषताओं का अध्ययन हम निम्नलिखित शीर्षकों क
े अन्तर्गत कर सकते हैं-
श्रम या श्रमिक शक्ति की भागीदारी की कम दर
सम्पूर्ण जनसंख्या में श्रम शक्ति क
े अनुपात को ही श्रम-शक्ति की भागीदारी दर कहा जाता है। क
ु ल
श्रम-शक्ति की आयु 15-59 वर्ष गिनी जाती है। भारत में यह दर 43% प्रतिशत है। इसक
े विपरीत
श्रम-शक्ति की भागीदारी जापान, अमेरिका, कनाडा आदि देशों में 55% से अधिक है। इसका अर्थ यह है
कि भारत में श्रम-शक्ति को आश्रितों का बड़ा भार वहन करना पड़ता है। अर्थात्हमारे देश में निर्भरता
अनुपात ऊ
ँ चा है।
बेरोजगार श्रम शक्ति
भारत में बेरोजगार श्रम शक्ति से सम्बन्धित आँकड़े अग्रलिखित सारणी में दिये गये हैं-
सारणी: रोजगार तथा बेरोजगारी से सम्बंधित आंकड़े (करोड़ में)
वर्ष
(Year)
जनसंख्या
(Population
)
श्रम बल
(Labour
Force)
रोजगार
(Employe
d)
बेरोजगार
(Unemploye
d)
बेरोजगारी की दर
(%)
(Unemployment
Rate)
2001-2002 102.90 37.82 34.34 3.48 9.21
2004-2005 109.28 41.72 38.28 3.44 8.28
2009-2010 117.00 42.89 40.08 2.81 6.60
2011-2012 120.80 44.4 41.57 2.47 5.60
2016-2017
(अनुमानित)
128.32 52.41 51.82 0.59 1.12
Source: NSSO Report,2011, Eleventh Five Year Plan Document and Economic Survey
2014-15.
उपर्युक्त सारणी से स्पष्ट है कि 2011-12 में क
ु ल श्रम शक्ति 44.04 करोड़ थी। इस श्रम शक्ति में से
41.57 करोड़ लोगों क
े पास रोजगार था अतः बेरोजगारों की संख्या 2011-12 में 2.47 करोड़ थी।
बेरोजगारी दरें
भारत की वर्तमान बेरोजगारी और ग्रामीण तथा शहरी बेरोजगारी दर की स्थिति को नीचे सारणी में
दर्शाया गया है-
सारणी: बेरोजगारी दर का अनुमान (2009-10)
अनुमान ग्रामीण शहरी क
ु ल
सामान्य प्रमुख आधार (UPS) 1.6 3.4 2.0
वर्तमान साप्ताहिक आधार (CWS) 3.3 4.2 3.6
वर्तमान दैनिक आधार (CDS) 6.8 5.8 6.6
उपर्युक्त सारणी क
े अंकों से स्पष्ट होता है कि-
(i) साप्ताहिक प्रस्थिति और सामान्य प्रस्थिति की विधि की तुलना में CDS विधि क
े अनुसार उच्च
बेरोजगारी दरें उच्च आवर्ती बेरोजगारी की द्योतक है।
(ii) शहरी बेरोजगारी UPS और CWS दोनों क
े तहत अधिक थी लेकिन ग्रामीण बेरोजगारी CDS विधि
क
े अन्तर्गत अधिक थी। यह सम्भवतः शहरी इलाकों क
े मुकाबले ग्रामीण इलाकों में अधिक आवर्ती या
मौसमी बेरोजगारी का संक
े त है, यह क
ु छ ऐसा है जिस पर मनरेगा जैसे रोजगार सृजन की योजनाओं को
ध्यान देना चाहिये।
पुरुष और महिलाओं में बेरोजगारी
जैसा कि नीचे सारणी में दर्शाया गया है वर्ष 2010 में ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों में बेरोजगारी दर 6.4% व
महिलाओं में बेरोजगारी दर 8.0% थी। शहरी क्षेत्रों में वर्ष 2010 में पुरुषों में बेरोजगारी दर 5.1% तथा
महिलाओं में यह 9.1 प्रतिशत थी। वर्ष 2009-10 में ही अनपढ़ वर्ग में बेरोजगारी दर क
े वल 0.2 प्रतिशत
तथा ग्रेजुएट एवं इससे अधिक शिक्षित लोगों में बेरोजगारी को दर 9 प्रतिशत थी।
सारणी: पुरुष और महिला में बेरोजगारी
क्षेत्र (Area) पुरुष (Male) महिलायें (Females) क
ु ल (Total)
ग्रामीण क्षेत्र 6.4 8.0 6.8
शहरी क्षेत्र 5.1 9.1 5.8
क
ु ल 6.1 8.2 6.6
[ Source : National Sample Survey Organisation's Report, 20110 (66th Round) ]
संगठित क्षेत्र में रोजगार
वर्ष 2011 में सार्वजनिक व निजी दोनों ही क्षेत्रों क
े संगठित क्षेत्रों में रोजगार वृद्धि दर 1% थी। वर्ष 2011
में सार्वजनिक क्षेत्र में रोजगार 1.8% की दर से कम हुआ है, जबकि इसी अवधि में निजी क्षेत्र में रोजगार
5.6% से बढ़ा है। वर्ष 1994 से 2011 की समय अवधि में संगठित क्षेत्र का रोजगार सृजन में लगभग
20.5% योगदान था।
असंगठित क्षेत्र में रोजगार
NSSO सर्वे क
े अनुसार, भारत में वर्ष 2009-10 में संगठित व असंगठित क्षेत्र में क
ु ल रोजगार 40.09
करोड़ था। इसमें से 37.28 करोड़ व्यक्ति असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं। असंगठित क्षेत्र में से 51 प्रतिशत
व्यक्ति स्वरोजगारी हैं। अधिकतर लोग कृ षि क्षेत्र, निर्माण कार्य, छोटे उद्योगों, फ
ु टकर व्यापार आदि में
कार्यरत हैं।
धर्म क
े आधार पर बेरोजगारी
NSSO क
े आँकड़ों क
े अनुसार मार्च 2007 में सर्वाधिक बेरोजगारी ईसाइयों में थी जहाँ तक ग्रामीणों में
बेरोजगारी का प्रश्न है ईसाइयों, मुस्लिमों एवं हिन्दुओं में बेरोजगारी क्रमश: 4.4, 2.3 एवं 1.5 प्रतिशत
है। अर्थात्ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे कम बेरोजगारी हिन्दू सम्प्रदाय में है।
बेरोजगारी दर में क्षेत्रीय अन्तर
श्रम ब्यूरो शिमला द्वारा जारी एक रिपोर्ट क
े अनुसार वर्ष 2011-12 में भारत में बेरोजगारी की दर 3.8%
थी, देश क
े प्रमुख राज्यों में बेरोजगारी की दरें निम्न प्रकार हैं-
सारणी : राज्य बेरोजगारी दर (2011-12)
भारत
मिजोरम
गुजरात
हिमांचल-प्रदेश
राजस्थान
मध्य-प्रदेश
तमिलनाडु
उत्तर-प्रदेश
कर्नाटक
ओडिशा
महराष्ट्र
3.8%
0.3%
0.9%
1.3%
1.4%
2.1%
2.1%
2.2%
2.4%
2.4%
2.6%

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  • 1. बेरोजगारी का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, एवं भारत में बेरोजगारी की विशेषताएं byPravin •March 22, 2023 0 बेरोजगारी हमारे सामने एक भयंकर स्वरूप में उपस्थित है। अतः इसे राष्ट्र की एक महत्वपूर्ण समस्या माना जा सकता है। हम राजनैतिक दृष्टिकोण से अवश्य स्वतन्त्र हो गये हैं किन्तु आर्थिक दृष्टिकोण से हम अभी भी काफी पीछे हैं। इस आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने क े लिए शासन सतत्प्रयास कर रहा है किन्तु बेरोजगारी में कमी नहीं हुई है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली को बेरोजगारी बढ़ाने में अत्यधिक जिम्मेदार माना जाता है, क्योंकि यह क े वल छोटे कार्य करने वालों का ही निर्माण करती है। इस प्रकार अशिक्षा हमारे राष्ट्र में बेरोजगारी की समस्या का एक प्रधान कारण है। पंचवर्षीय योजनाओं में शिक्षा को समुचित स्तर पर महत्व नहीं दिया गया है। जिसक े कारण नवयुवकों का गुणात्मक विकास नहीं हो पाया है। इसक े अतिरिक्त कला-कौशल का भी सम्पूर्ण विकास नहीं हो सका है। शिक्षण संस्थाओं की तुलना में उद्योगों का विकास समुचित रूप से नहीं हो पाया है, जिसक े फलस्वरूप शिक्षित बेरोजगारी का जन्म हुआ है। यह भी पढ़ें-
  • 2. ​ वैश्वीकरण क्या है - अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता एवं प्रभाव ​ उदारीकरण क्या है ? अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, उद्देश्य, आवश्यकता एवं लाभ-हानि ​ निजीकरण क्या है निजीकरण का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, घटक, एवं लाभ-हानि ​ राष्ट्रीय आय क्या है अर्थ, परिभाषा, एवं विभिन्न धारणाओं की व्याख्या कीजिए बेरोजगारी का अर्थ एवं परिभाषाएँ बेरोजगारी से आशय रोजगार क े अवसरों की तुलना में मानव श्रमशक्ति क े आधिक्य से है अर्थात्ऐसी मानव शक्ति जो चालू मजदूरी दरों पर कार्य करने की इच्छा, योग्यता एवं सामर्थ्य रखते हुए भी सम्बन्धित कार्य से वंचित रहती है, बेरोजगारी कहलाती है। बेरोजगारी को परिभाषित करते हुए कीन्स ने लिखा है कि "स्वैच्छिक बेरोजगारी एक ऐसी स्थिति है, जिसमें मुदा मजदूरी की अपेक्षा वस्तु मजदूरी में अपेक्षाकृ त वृद्धि होने पर श्रम की सामूहिक पूर्ति चालू मुद्रा मजदूरी एवं क ु ल माँग की तुलना में वर्तमान रोजगार की मात्रा अधिक होगी।" विलियम बेवरिज क े शब्दों में : "पूर्ण रोजगार का अर्थ है बेरोजगार व्यक्तियों की तुलना में अधिक रिक्त स्थान रखना। इसका अर्थ यह है कि नौकरी उचित मजदूरी पर उपलब्ध है और वह इस प्रकार की है, जो ऐसे स्थानों पर क े न्द्रित है कि बेरोजगार व्यक्ति उन्हें सरलता से प्राप्त करने की आशा रख सकता है।" उपर्युक्त परिभाषाओं क े आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रचलित मजदूरी पर जो श्रमिक कार्य करने को तत्पर हो जाते हों तो उसे पूर्ण रोजगार कहा जाता है। यदि कोई व्यक्ति प्रचलित मजदूरी दरों पर कार्य करने को तैयार न हो तो उसे बेरोजगार नहीं कहा जा सकता है। क े वल वही व्यक्ति बेरोजगार माने जायेंगे जो अनिच्छा से बेरोजगार हैं, जो व्यक्ति प्रचलित मजदूरी दरों पर कार्य करने को तत्पर हों, पर उन्हें काम न मिले तो उसे बेरोजगार की श्रेणी में रखा जायेगा।
  • 3. बेरोजगारी क े प्रकार या स्वरूप सैद्धान्तिक आधार पर बेरोजगारी क े अनेक प्रकार या स्वरूप होते हैं। इसमें से क ु छ विशेष प्रकार की बेरोजगारी विकसित देशों में पायी जाती है तो क ु छ अन्य प्रकार की भारत जैसे विकासशील देशों में पायी जाती है। बेरोजगारी क े स्वरूप या प्रकारों को संक्षेप में निम्न प्रकार से स्पष्ट कर सकते हैं- संरचनात्मक बेरोजगारी जब किसी अर्थव्यवस्था क े संरचनात्मक ढाँचे में परिवर्तन होता है और परिणामस्वरूप एक क्षेत्र विशेष में कार्य करने वाले श्रमिक दूसरे क्षेत्र या उद्योग क े लिए उपयुक्त नहीं रहते हैं, तब इस प्रकार की बेरोजगारी उत्पन्न होती है। ऐसी बेरोजगारी को संरचनात्मक बेरोजगारी कहा जाता है। चक्रीय बेरोजगारी चक्रीय बेरोजगारी मुख्यत: विकसित पूँजीवादी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में पायी जाती है। इन देशों में मंदीकाल क े समय में वस्तुओं की पूर्ति, माँग की तुलना में अधिक होने पर स्टॉक बढ़ जाता है। इससे हानि उठाने वाले उद्योग बन्द हो जाते हैं और बेरोजगारी फ ै ल जाती है। तेजी आने पर ये उद्योग पुनः उत्पादन प्रारम्भ करते हैं और बेरोजगारी कम हो जाती है। तेजी एवं मंदी की यह स्थिति एक निश्चित चक्र में आती है। अतः इस प्रकार उत्पन्न होने वाली बेरोजगारी को चक्रीय बेरोजगारी कहा जाता है। तकनीकी बेरोजगारी तकनीकी बेरोजगारी स्वचालित मशीनों क े अधिकाधिक प्रयोग से उत्पन्न होती है। इस प्रकार की स्थिति कृ षि, उद्योग एवं यातायात आदि किसी भी क्षेत्र में उत्पन्न हो सकती है। उदाहरण क े लिए, कृ षि में यन्त्रीकरण से तथा उद्योगों में आधुनिकीकरण करने से तकनीकी बेरोजगारी उत्पन्न हो जाती है। अर्द्ध-बेरोजगारी
  • 4. अर्द्ध-बेरोजगारी का अर्थ योग्य तथा काम करने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को कम समय का तथा योग्यता से कम काम मिलता है। भारत जैसे विकासशील देशों में ग्रामीण अल्प रोजगार की समस्या सबसे अधिक गम्भीर रूप से पायी जाती है। भूमिहीन श्रमिक, छोटे किसान, कारीगर आदि ऐसे लोग हैं जिन्हें क ु छ महीनों तक बेकार बैठे रहना पड़ता है। मौसमी बेरोजगारी क ु छ उद्योग ऐसे होते हैं, जो वर्ष में क ु छ विशेष दिनों में ही चलते हैं तथा शेष समय में बन्द रहते हैं। उदाहरण क े तौर पर चीनी उद्योग क े वल शरद ऋतु में ही चलता है। ऐसे मौसमी व्यवसाय जब बंद हो जाते हैं तो श्रमिक बेरोजगार हो जाते हैं। इस प्रकार की बेरोजगारी मौसमी बेरोजगारी कहलाती है। शिक्षित बेरोजगारी शहरी या नगरीय क्षेत्रों में शिक्षित व्यक्तियों को भी रोजगार क े पर्याप्त अवसर न मिलने से बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न होती है। विकासशील देशों में यह एक जटिल एवं गम्भीर समस्या है। ग्रामीण बेरोजगारी ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक प्रकार की बेरोजगारी पायी जाती है; जैसे अर्द्ध-बेरोजगारी, अदृश्य बेरोजगारी एवं मौसमी बेरोजगारी आदि। कृ षि प्रधान देशों में ग्रामीण बेरोजगारी की समस्या अत्यन्त भयावह है। अदृश्य बेरोजगारी अदृश्य बेरोजगारी उस स्थिति में होती है. जबकि किसी कार्य में आवश्यकता से अधिक श्रमिक कार्यरत हों। ग्रामीण क्षेत्रों में एक अनुमान क े अनुसार लगभग पाँच करोड़ व्यक्ति अदृश्य रूप से बेरोजगार हैं। यह व्यक्ति काम पर लगे हुए प्रतीत होते हैं परन्तु इनका उत्पादन में योगदान शून्य क े बराबर होता है। इसीलिए इसे अदृश्य बेरोजगारी कहते हैं।
  • 5. यह भी पढ़ें- ​ विश्व व्यापार संगठन - आशय, उद्देश्य, विशेषतायें, कार्य, संगठन की संरचना एवं समझौता ​ विनियोग क्या है || अर्थ, परिभाषा, महत्व, प्रकार, तत्व एवं भारत में विनियोग निर्धारण भारत में बेरोजगारी की विशेषताएँ भारत में बेरोजगारी की विशेषताओं का अध्ययन हम निम्नलिखित शीर्षकों क े अन्तर्गत कर सकते हैं- श्रम या श्रमिक शक्ति की भागीदारी की कम दर सम्पूर्ण जनसंख्या में श्रम शक्ति क े अनुपात को ही श्रम-शक्ति की भागीदारी दर कहा जाता है। क ु ल श्रम-शक्ति की आयु 15-59 वर्ष गिनी जाती है। भारत में यह दर 43% प्रतिशत है। इसक े विपरीत श्रम-शक्ति की भागीदारी जापान, अमेरिका, कनाडा आदि देशों में 55% से अधिक है। इसका अर्थ यह है कि भारत में श्रम-शक्ति को आश्रितों का बड़ा भार वहन करना पड़ता है। अर्थात्हमारे देश में निर्भरता अनुपात ऊ ँ चा है। बेरोजगार श्रम शक्ति भारत में बेरोजगार श्रम शक्ति से सम्बन्धित आँकड़े अग्रलिखित सारणी में दिये गये हैं- सारणी: रोजगार तथा बेरोजगारी से सम्बंधित आंकड़े (करोड़ में) वर्ष (Year) जनसंख्या (Population ) श्रम बल (Labour Force) रोजगार (Employe d) बेरोजगार (Unemploye d) बेरोजगारी की दर (%) (Unemployment Rate) 2001-2002 102.90 37.82 34.34 3.48 9.21
  • 6. 2004-2005 109.28 41.72 38.28 3.44 8.28 2009-2010 117.00 42.89 40.08 2.81 6.60 2011-2012 120.80 44.4 41.57 2.47 5.60 2016-2017 (अनुमानित) 128.32 52.41 51.82 0.59 1.12 Source: NSSO Report,2011, Eleventh Five Year Plan Document and Economic Survey 2014-15. उपर्युक्त सारणी से स्पष्ट है कि 2011-12 में क ु ल श्रम शक्ति 44.04 करोड़ थी। इस श्रम शक्ति में से 41.57 करोड़ लोगों क े पास रोजगार था अतः बेरोजगारों की संख्या 2011-12 में 2.47 करोड़ थी। बेरोजगारी दरें भारत की वर्तमान बेरोजगारी और ग्रामीण तथा शहरी बेरोजगारी दर की स्थिति को नीचे सारणी में दर्शाया गया है- सारणी: बेरोजगारी दर का अनुमान (2009-10) अनुमान ग्रामीण शहरी क ु ल सामान्य प्रमुख आधार (UPS) 1.6 3.4 2.0 वर्तमान साप्ताहिक आधार (CWS) 3.3 4.2 3.6 वर्तमान दैनिक आधार (CDS) 6.8 5.8 6.6 उपर्युक्त सारणी क े अंकों से स्पष्ट होता है कि- (i) साप्ताहिक प्रस्थिति और सामान्य प्रस्थिति की विधि की तुलना में CDS विधि क े अनुसार उच्च बेरोजगारी दरें उच्च आवर्ती बेरोजगारी की द्योतक है।
  • 7. (ii) शहरी बेरोजगारी UPS और CWS दोनों क े तहत अधिक थी लेकिन ग्रामीण बेरोजगारी CDS विधि क े अन्तर्गत अधिक थी। यह सम्भवतः शहरी इलाकों क े मुकाबले ग्रामीण इलाकों में अधिक आवर्ती या मौसमी बेरोजगारी का संक े त है, यह क ु छ ऐसा है जिस पर मनरेगा जैसे रोजगार सृजन की योजनाओं को ध्यान देना चाहिये। पुरुष और महिलाओं में बेरोजगारी जैसा कि नीचे सारणी में दर्शाया गया है वर्ष 2010 में ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों में बेरोजगारी दर 6.4% व महिलाओं में बेरोजगारी दर 8.0% थी। शहरी क्षेत्रों में वर्ष 2010 में पुरुषों में बेरोजगारी दर 5.1% तथा महिलाओं में यह 9.1 प्रतिशत थी। वर्ष 2009-10 में ही अनपढ़ वर्ग में बेरोजगारी दर क े वल 0.2 प्रतिशत तथा ग्रेजुएट एवं इससे अधिक शिक्षित लोगों में बेरोजगारी को दर 9 प्रतिशत थी। सारणी: पुरुष और महिला में बेरोजगारी क्षेत्र (Area) पुरुष (Male) महिलायें (Females) क ु ल (Total) ग्रामीण क्षेत्र 6.4 8.0 6.8 शहरी क्षेत्र 5.1 9.1 5.8 क ु ल 6.1 8.2 6.6 [ Source : National Sample Survey Organisation's Report, 20110 (66th Round) ] संगठित क्षेत्र में रोजगार वर्ष 2011 में सार्वजनिक व निजी दोनों ही क्षेत्रों क े संगठित क्षेत्रों में रोजगार वृद्धि दर 1% थी। वर्ष 2011 में सार्वजनिक क्षेत्र में रोजगार 1.8% की दर से कम हुआ है, जबकि इसी अवधि में निजी क्षेत्र में रोजगार 5.6% से बढ़ा है। वर्ष 1994 से 2011 की समय अवधि में संगठित क्षेत्र का रोजगार सृजन में लगभग 20.5% योगदान था।
  • 8. असंगठित क्षेत्र में रोजगार NSSO सर्वे क े अनुसार, भारत में वर्ष 2009-10 में संगठित व असंगठित क्षेत्र में क ु ल रोजगार 40.09 करोड़ था। इसमें से 37.28 करोड़ व्यक्ति असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं। असंगठित क्षेत्र में से 51 प्रतिशत व्यक्ति स्वरोजगारी हैं। अधिकतर लोग कृ षि क्षेत्र, निर्माण कार्य, छोटे उद्योगों, फ ु टकर व्यापार आदि में कार्यरत हैं। धर्म क े आधार पर बेरोजगारी NSSO क े आँकड़ों क े अनुसार मार्च 2007 में सर्वाधिक बेरोजगारी ईसाइयों में थी जहाँ तक ग्रामीणों में बेरोजगारी का प्रश्न है ईसाइयों, मुस्लिमों एवं हिन्दुओं में बेरोजगारी क्रमश: 4.4, 2.3 एवं 1.5 प्रतिशत है। अर्थात्ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे कम बेरोजगारी हिन्दू सम्प्रदाय में है। बेरोजगारी दर में क्षेत्रीय अन्तर श्रम ब्यूरो शिमला द्वारा जारी एक रिपोर्ट क े अनुसार वर्ष 2011-12 में भारत में बेरोजगारी की दर 3.8% थी, देश क े प्रमुख राज्यों में बेरोजगारी की दरें निम्न प्रकार हैं- सारणी : राज्य बेरोजगारी दर (2011-12)