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NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE
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i
शोध , साहित्य और संस्क
ृ ति की माससक वैब पत्रिका
नयी गंज-------.
वर्ष 2023
अंक 1
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ii
संपादक मंडल
प्रमुख संरक्षक
प्रो. देव माथुर
vishvavishvaaynamah.webs1008@gmail.com
मुख्य संपादक
रीमा मािेश्वरी
shuddhi108.webs@gmail.com
संपादक
सशवा ‘स्वयं’
sarvavidhyamagazines@gmail.com
शाखा प्रमुख
ब्रजेश क
ु मार
aryabrijeshsahu24@gmail.com
परामशषदािा
कमल जयंथ
jayanth1kamalnaath@gmail.com
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iii
सम्पादकीय
फलों की िरि बनो
सशवा स्वयं
िँसो, खखलखखलाओ, जैसे फल िोिे िैँ | मुश्श्कलों से क्या घबरािे िो?
श्जंदगी में दो बािों की गगनिी करना छोड़ दो, खुद का दुुःख और दसरों का
सुख | श्जंदगी आसान िो जाएगी...
ककसक
े जीवन में मुश्श्कलें निीं.... िर ककसी क
े जीवन में िैँ | लेककन उनिीं से
जीि जाना िी िो जीवन िै |
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iv
िुम ज़ब उदास िोिे िो, अपने अंदर नकारात्मक भाव ले आिे िो, ये वैसे िी िै
जैसे मुरझाया िुआ फल... क्या आपको पसंद िै मुरझाया िुआ फल... निीं ना |
और कोई निीं पछिा कक क्यों मुरझाया ?
िँसने वाले क
े साथ परा जिाँ िोिा िै, रोने वाले क़ो क
ु छ देर की सिानुभति भी
मुश्श्कल िी समल पािी िै | क्या िम इिने िार गए िैँ कक सिानुभति से जीवन
श्जयें |
जीवन का नाम िी िोिा िै िर हदन का नया संघर्ष.. िमारे िाथ में जो िै
उसकी, उस पल की कीमि िै बिुि..
ये पल सशकवों – सशकायिों में भी बीि सकिे िैँ लेककन आप अगर मुश्श्कलों
में भी खुद क़ो अंदर से अपने सकारात्मक ववचारों की शश्क्ि देिे रिें िो पिझड़
में भी फलों क़ो ला सकिे िैँ आप |
फलों क़ो देखा िै, अपने सुनदर रंगों से, ऐसे मुस्क
ु रा कर खखलने से वो ककिनी
ख़ुशी त्रबखेरिे िैँ िम सब क
े सलए और िम इंसान.... इिना सब क
ु छ िोिा िै
िमारे पास लेककन ज्यादा पाने की इच्छा िमें खुश िोने देिी िी निीं... मुस्क
ु राने
देिी िी निीं...
ये फल.. पत्ते.. पेड़ इनक
े पास जो ख़ुशी िै पिा िै वो क्यों िै ? क्योंकक ये कभी
अपने बारे में निीं सोचिे.. ये क
े वल सबक
े बारे में सोचिे िैँ.. लेिे क
ु छ निीं
क
े वल देिे िैँ.. त्रबना पाने की इच्छा क
े |
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v
और इससलये ये िृप्ि िोिे िैँ क्योंकक ये पर्ष िोिे िैँ |
िम इंसानों की रचना भी उसी ईश्वर ने की श्जसने इन िँसिे मुस्क
ु रािे फलों
क़ो बनाया |
िम अगर अपने चेिरे पर मुस्कान रखें िो िम बिुि खुशी दे सकिे िैँ अपने
अपनों क़ो | फलों की िरि खुद क़ो रख कर िम अपने अपनों क़ो उससे किीं
ज्यादा ख़ुशी दे सकिे िैँ |
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vi
शुभेच्छा
नयी गूंज------. पररवार
परामशषदािा-
प्रश्न िै कक संस्क
ृ ति क्या िै। यं संस्क
ृ ति शब्द सम्+क
ृ ति से बना िै, श्जसका अथष िै अच्छी क
ृ ति। अथाषि्
संस्क
ृ ति वस्िुिुः राष्ट्रीय अश्स्मिा क
े पररचायक उदात्त ित्वों का नाम िै।
भारिीय सनदभष में संस्क
ृ ति व्यश्क्ितनष्ट्ठ न िोकर समश्ष्ट्ितनष्ट्ठ िोिी िै। संस्क
ृ ति की संरचना एक हदन
में न िोकर शिाश्ब्दयों की साधना का सुपररर्ाम िोिा िै। अिुः संस्क
ृ ति सामाससक-सामाश्जक तनगध
िोिी िै। संस्क
ृ ति वैचाररक, मानससक व भावनात्मक उपलश्ब्धयों का समुच्चय िोिी िै। इसमें धमष,
दशषन, कला, संगीि आहद का समावेश िोिा िै। इसी की अपररिायषिा की ओर संक
े ि करिे िुए भिृषिरर ने
सलखा िै कक इसक
े त्रबना मनुष्ट्य घास न खाने वाला पशु िी िोिा िै-
‘‘साहित्यसंगीिकला-वविीनुः
साक्षाि्पशुुः पुच्छववर्ार्िीनुः।।
मुख्य संपादक
उपतनर्द् क
े शब्दों में किें िो संस्क
ृ ति में जीवन क
े दो आयाम श्रेय व प्रेय का सामंजस्य िोिा िै। इनिीं
आधार पर आध्याश्त्मक, वैचाररक व मानससक ववकास िोिा िै और इनिीं क
े आधार पर जीवन-मल्यों व
संस्कारों का तनधाषरर् िोिा िै और यिी जीवन क
े समग्र उत्थान क
े सचक िोिे िैं। सशक्षा-िंि में इनिीं
सांस्क
ृ तिक मल्यों का सशक्षर्-प्रसशक्षर् िोिा िै। विषमान में सशक्षा-व्यवस्था संस्क
ृ ति की अपेक्षा
सम्यिा-तनष्ट्ठ अगधक िै। िात्पयष िै कक विषमान सशक्षा ववचार-प्रधान, गचनिन-प्रधान व मल्यप्रधान की
अपेक्षा ज्ञानाजषन-प्रधान िै। वस्िुिुः इसी का पररर्ाम िै कक सम्प्रति सशक्षा क
े द्वारा बौद्गधक स्िर में
िो असभवृद्गध िुई िै ककनिु संवेदनात्मक या भावनात्मक स्िर घिा िै।
संपादक –
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vii
िमारी सशक्षा में सांस्क
ृ तिक मल्यों क
े स्थान पर पश्श्चमी सभ्यिा-मलक ित्वों को उपादान क
े रूप में
ग्रिर् कर सलया गया िै। िभी िो सशक्षा व समृद्गध क
े पाश्चात्य मानदण्डों को आधार मान सलया िै जो
संस्क
ृ ति-ववरोधी िैं, श्जनमें नैतिक व मानवीय मल्यों का ववशेर् स्थान निीं िै। इसी का पररर्ाम िै कक
बुद्गधमान व गरीब नैतिक व्यश्क्ि सामाश्जक दृश्ष्ट्ि से भी िांससये पर िी रििा िै और नैतिकिा-वविीन,
संवेदनिीन, भ्रष्ट्िाचारी व अपराधी भी सम्पनन, सभ्य, सम्मानय व प्रतिश्ष्ट्ठि िोिा िै। इसी संस्क
ृ ति-
वविीन व्यवस्था क
े कारर् शोर्र्-प्रधान पंजीवादी व्यवस्था िी ग्राह्य िो गई िै, श्जसने रिन-सिन क
े
स्िर को िो उठाया िै, पर इस भोगवादी बाजारवादी व्यवस्था क
े कारर् अथषशास्ि व िकनीककववज्ञान क
े
सामने नैतिकिा व मानवीयिा गौर् िो गई िै। जबकक राधाक
ृ ष्ट्र्न व कोठारी आयोग की मानयिा थी
कक सशक्षा ऐसी िोनी चाहिये जो सामाश्जक, आगथषक व सांस्क
ृ तिक पररविषन का प्रभावी माध्यम बन
सक
े । इस दृश्ष्ट्ि से भारिीय प्रक
ृ ति और संस्क
ृ ति क
े अनुरूप सशक्षा से िी मल्यपरक उदात्त-गुर्ों का
संप्रेर्र् और समग्र व्यश्क्ित्व का तनमाषर् सम्भव िै। इसमें पुराने व नये का त्रबना ववचार ककये जो देश
की अश्स्मिा व समाज क
े हििकर िै, उसी को प्रमुखिा देनी चाहिए।
शाखा प्रमुख की कलम से--
वप्रय पाठकों
संस्थान की पत्रिका नयी गंज क
े पिले अंक का लोकापषर् एक आंिररक सुख की अनुभति करा रिा िै।
मुझे प्रसननिा िै कक शाखा प्रमुख क
े रूप में कायषभार संभालने क
े बाद मुझे आप सभी से नयी गंज क
े
इस अंक क
े माध्यम से रूबरू िोने का मौका समल रिा िै।
िम ककिना भी ववकास कर लें ककनिु यहद समाज में संवेदना िी मर गई िो सब व्यथष िै। इस
संवेदनिीनिा क
े चलिे समाज में नकारात्मक ऊजाष हदन प्रति-हदन बढ़िी जा रिी िै जो तननदनीय भी िै
और ववचारर्ीय भी। आवश्यकिा िै कक िम अववलम्ब इस हदशा में अपने प्रयास आरम्भ कर दें।
वस्िुिुः अपने कमों से िम अपने भाग्य को बनािे और त्रबगाड़िे िैं। यहद गंभीरिा से गचंिन-मनन ककया
जाय िो िमारा कायष-व्यापार िमारे व्यश्क्ित्व क
े अनुसार िी आकार ग्रिर् करिा िै और िमें अपने कमष
क
े आधार पर िी उसका फल प्राप्ि िोिा िै। कमष ससफ
ष शरीर की कियाओं से िी संपनन निीं िोिा अवपिु
मनुष्ट्य क
े ववचारों से एवं भावनाओं से भी कमष संपनन िोिा िै। वस्िुिुः जीवन-भरर् क
े सलए िी ककया
गया कमष िी कमष निीं िै िम जो आचार-व्यविार अपने मािा-वपिा बंधु समि और ररश्िेदार क
े साथ
करिे िैं वि भी कमष की श्रेर्ी में आिा िै। मसलन िम अपने वािावरर् सामाश्जक व्यवस्था, पाररवाररक
समीकरर्ों आहद क
े प्रति श्जिना िी संवेदनशील िोंगे िमारा व्यश्क्ित्व उिनी िी उच्चकोहि की श्रेर्ी में
आयेगा।
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viii
आज क
े जहिल और अति संचारी जीवन-वृवत्त क
े सफल संचालन िेिु सभी का व्यश्क्ित्त्व उच्च आदशों
पर आधाररि िो ऐसी मेरी असभलार्ा िै।
यि ज़रूरी निीं िै कक िर कोई िर ककसी कायष मे पररपर्ष िो, परनिु अपना दातयत्व अपनी परी कोसशश से
तनभाना भी देश की सेवा करने क
े समान िी िै। संपर्ष किषव्यतनष्ट्ठा से ककया िुआ कायष आपको अवश्य
िी कायष-समाश्प्ि की संिुश्ष्ट्ि देगा। कोई भी ककया गया कायष िमारी छाप उस पर अवश्य छोड़ देिा िै
अिएव सदैव अपनी श्रेष्ट्ठिम प्रतिभा से कायष संपनन करें। िर छोिी चयाष को और छोिे-से-छोिे से कायष
क
े िर अंग का आनंद लेकर बढ़िे रिना िी एक अच्छे व्यश्क्ित्व का उदािरर् िै।
यि सवषववहदि िथ्य िै कक नयी गंज एक उच्च स्िरीय पत्रिका िै श्जसमें ववसभनन ववधाओं में
उच्चस्िरीय लेखों का अनठा संग्रि िै
आप सभी पत्रिका का आननद लें एवं अपनी प्रतिकियायें ऑनलाइन या ऑफलाइन भेजें।
नयी गंज क
े माध्यम से िमारा आपका संवाद गतिशील रिेगा। आप सभी अपनी सुनदर व श्रेष्ट्ठ रचनाओं
से नयी गंज को तनरनिर समृद्ध करिे रिेंगे इसी ववश्वास क
े साथ।
अंि में मैं सभी सम्पादक मण्डल क
े सदस्यों एवं रचनाकारों को नयी गंज पत्रिका क
े सफल सम्पादन
एवं प्रकाशन क
े सलए साधुवाद ज्ञावपि करिा िं करिा िँ।
आप सभी को िाहदषक बधाई क
े साथ बिुि-बिुि धनयवाद!!
कासलदास ने काव्य क
े माध्यम से किा िै-
पुरार्समत्येव न साधु सवं
न चावप काव्यं नवसमत्यवद्यम्।
सनिुः परीक्ष्यानयिरद् भजनिे
मढुः परप्रत्ययनेय बुद्गधुः।।
अथाषि्पुरानी िी सभी चीजें श्रेष्ट्ठ निीं िोिी और न नया सब तननदनीय िोिा िै। इससलए बुद्गधमान
व्यश्क्ि परीक्षा करक
े जो हििकर िोिा िै उसी को ग्रिर् करिे िैं जबकक मखष दसरों का िी अनधानुकरर्
करिे िैं।
अस्िु, तनववषवाद रूप से यि सभी स्वीकार करिे िैं कक राष्ट्र की रक्षा, का सकारात्मक पक्ष िोिा िै।
प्रकाशन सामग्री भेजने का पिा
ई-मेलुःgoonjnayi@gmail.com
नयी गंज इंिरनेि पर उपलब्ध िै। www.nayigoonj.com पर श्क्लक करें।
नयी गंज में प्रकासशि लेखाहद पर प्रकाशक का कॉपीराइि िै
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ix
शुल्क दर 40/-
वावर्षक: 400/-
िैवावर्षक: उपयुषक्ि शुल्क-दर का अगग्रम भुगिान 1200/-
को -----------------------------------------द्वारा ककया जाना श्रेयस्कर िै।
तनयम तनदेश
1 रचनाएं यथासंभव िाइप की िुई िों, रचनाकार का परा नाम, पद एवं संपक
ष वववरर् का उल्लेख
अपेक्षक्षि िै।
2 लेखों में शासमल छाया-गचि िथा आँकड़ों से संबंगधि आरेख स्पष्ट्ि िोने चाहिए। प्रयुक्ि भार्ा
सरल, स्पष्ट्ि एवं सुवाच्य हिंदी भार्ा िो।
3 अनुहदि लेखों की प्रामाखर्किा अवश्य सुतनश्श्चि करें। अनुवाद में सिायिा िेिु संस्थान संपादक
मंडल प्रकोष्ट्ठ से संपक
ष कर सकिे िैं।
4 प्रकासशि रचनाओं में तनहिि ववचारों क
े सलए संपादक मंडल प्रकोष्ट्ठ उत्तरदायी निीं िोगा और
इसक
े सलए परी की परी श्जम्मेदारी स्वयं लेखक की िी िोगी।
नई गँज तनयमावली
रचनाएूं goonjnayi@gmail. Com ई-मेल पते पर भेजी जा सकती हैं। रचनाएूं भेजने क
े ललए
नई गूँज क
े साथ लॉग-इन करें, यह वाूंछित है।आप हमारे whatsapp no. 9785837924
पर भी अपनी रचनाएूँ भेज सकते हैँ
वप्रय सागथयों,
नई गँज िेिु आपक
े सियोग क
े सलए आपका िाहदषक धनयवाद। आशा िै कक ये
संबंध आगे भी प्रगति क
े पथ पर अग्रसर रिेंगे। आगामी अंक िेिु आप सबक
े
सकिय सियोग की पुनुः आकांक्षा िै। आप सभी से एक मित्वपर्ष अनुरोध िै
कक आप अपने शोध प्रपि तनम्न प्रारूप क
े ििि िी प्रस्िुि करें श्जससे कक िमें
िकनीकी जहिलिाओं का सामना न करना पड़े -
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x
1.प्रकाशन िेिु आपकी रचना क
े मौसलक िोने का स्वतः सत्यापन रचना प्रेवर्ि
करिे समय "मौसलकिा प्रमार् पि" पर िस्िाक्षर करना अतनवायष िै। इसक
े
त्रबना रचना पर ववचार करना संभव निीं िोगा
2. रचना किीं पर भी पवष में प्रकासशि निीं िोनी चाहिए !
3. आपकी रचनाएूँ एम.एस. ऑकफस में टाइप होना चाहहए
4. फोंि - कृ छतदेव 10, मूंगल यछनकोड
5. रचनाओूं क
े साथ अपना पर्ण पता, मोबाइल नूंबर, ईमेल तथा पासपोटण साइज की
फोटो लगाना अपेक्षित है !
6. आप लेख, कववता, कहानी, ककसी भी ववधा में रचनाएूँ भेज सकते हैँ !
नई गँज रचनाओं क
े प्रेर्र् सम्बंगधि तनयम व शिे :
एक से अधधक रचनायें एक ही वडण-डॉक्यमेंट में भेजें।
रचनायें अपने पूंजीकृ त पेज पर हदए गए ललूंक इस्तेमाल कर प्रेवित करें।
यहद आप हहूंदी में टाइप करना नहीूं जानते हैं, आप गगल द्वारा उपलब्ध
करवायी गयी ललप्यान्तरर् सेवा का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसक
े ललए Google
इनपुट उपकरर् ललूंक पर जाएूँ।
स-आभार
संपादक मंडल
Note:- प्रत्येक रचना लेखक की स्वयं मौसलक िथा सलखखि िै! इसमें लेखक क
े स्वयं
क
े ववचार िैं िथा कोई िुहि िोने पर लेखक स्वयं श्जम्मेदार िोगा!
अनुक्रमाणिका
क्रम
संख्या
णििरणिका लेखक पृष्ठ संख्या
लेख –
1 बदले पररिेश में गांधी और गांधीिाद डॉ घनश्याम
बादल
1 – 3
2 प्रणिकूल पररणथिणि और दृढ़
इच्छाशणि
बृजेश कुमार 4 – 7
3 जो कभी संभि न हो सका डॉ णशिा
धमेजा
8 - 10
कणििा
4 बढ़िी ठंड णप्रया देिांगन 11
5 रौदनाद णगरेंद्र
भदौररया
12 – 17
6 प्रकृणि डॉक्टर अददिी
भारद्वाज
18 – 19
कहानी
7 कानून का डंडा और िदी रमेश मनोहरा 20 - 21
दोहे
8 हमीद के दोहे हमीदकानपुरी 22
लघु किा
9 स्नेहा की जीि णप्रया देिांगन 23 - 24
नारी िुम अबला नहीं सबला हो
10 धाय मााँ गोरा टाक 26 – 27
णनबंध
11 समान नागररक संणहिा 28 - 31
12 ऐणिहाणसक थिल एक नजर
गागरोन का दुगग (राज.)
32 - 34
13 साक्षात्कार- 2022 में आरजेएस
बनी -दाणमनी
35 - 38
नयी गूँज
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डॉ घनश्याम बादल
करमचंद ग ंधी, ब पू, र ष्ट्रपपत और आम आदमी क
े लिए
लिर्
फ ग ंधी ज ने व िे 21 वी िदी क
े चमत्क र पुरुष म ने
गए ग ंधीआज भी बहुत म यने रखते हैं । म यने तो वह
देश क
े लिए भी रखते हैं मगर बदिे हुए पररवेश में अब ग ंधी श यद वह ज्योततपुंज य नहीं रहे
जजनिे भ रत न म क यह देश म गफदशफन एवं रोशनी प कर चित थ ।
70 ि ि तक इि देश को चि ने व िे ग ंधीव दी दि की जैिी दुगफतत हो रही है उिक अिर
ग ंधी की छपव पर भी हुआ है । ह ि ंकक ग ंधी ने आज दी क
े तुरंत ब द ही कह ददय थ कक
अब क ंग्रेि क स्वतंत्र भ रत में कोई ख ि रोि नहीं होन च दहए और उन्होंने क ंग्रेि क
े
पविजफन की इच्छ व्यक्त की थी । िेककन त त्क लिक पररजस्थततयों में िंभवतः है न तो यह
व्यवह ररक थ और नहीं उि िमय क
े क ंग्रेिी नेत ऐि होने देने में अपन कोई ि भ देख रहे
थे इिलिए क ंग्रेि बनी रही । क ंग्रेिबनी ही नहीं रही अपपतु दृढ़त क
े ि थ स्व धीनत आंदोिन
में ककए गए बलिद नों क श्रेय िेते हुए िंबे िमय तक ित्त रूढ़ रही । जब तक नेहरू देश क
े
प्रध नमंत्री रहे तब तक क ंग्रेि क कोई पवकल्प देश को न ददख , न िूझ । श स्त्री जी क
े
छोटे िे क यफक ि में भी कॉन्ग्रेि देश क
े लिए अपररह यफ रही ।
इिक
े ब द पररवतफन क दौर शुरू हुआ और नेहरु की पुत्री इंददर ग ंधी ने कम न िंभ िी ।
ह ि ंकक तब वह क ंग्रेि की वररष्ट्ठतम नेत नहीं थीं और उनिे ऊपर क
े प यद न पर क मत और
मोर रजी देि ई जैिे कई नेत थे िेककन नेहरू ग ंधी पररव र क
े प्रतत तनष्ट्ठ क
े चिते हुए इंददर
ग ंधी प्रध नमंत्री बनीं । बि, यही िे ग ंधीव दी दशफन भी मनम ने ढंग िे अपन य एवं प्रस्तुत
ककय ज ने िग ।
इंददर ग ंधी गजब की वक्त थी, उनक
े व्यजक्तत्व में भी जबरदस्त आकषफण थ , उनकी भ षण
शैिी और आम आदमी में उनक
े प्रतत आकषफण क
े चिते हुए 1971 में उन्होंने ग ंधीव दी
मोहनदास
नयी गूँज
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NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY)
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अदहंिक िोच िे हटते हुए अपने र जनीततक र् यदे क
े लिए प ककस्त न क पवभ जन करव य
और उिक
े िह रे 1972 में चुन व जीतकर पुनः ित्त रूढ़ हुई । 1975 में आप तक ि िग य
और 1977 में ित्त िे ब हर होकर 1980 में कर्र व पि आईं िेककन जजि तरह इंददर ने
अदहंि एवं िोकतंत्र क मज क उड य थ श यद उिी क
े चिते 1984 में उन्हें अपनी ज न भी
गंव नी पडी । तब िे िेकर आज तक गंग -जमुन में जजतन प नी बह है श यद उििे भी
ज्य द पररवतफन ग ंधी दशफन, ग ंधीव दी पवच र ग ंधी की र ष्ट्र की अवध रण ग ंधीव दी र जनीतत,
ित्त िे पवतृष्ट्ण क
े भ व, ि द जीवन उच्च पवच र की आदशफव दी परंपर भी क ि क
े ि थ
ज ती ददख ई दी य नी ि र्गोई क
े ि थ कहें तो अब ग ंधी क
े वि मुखौट म त्र रह गए थे ।
ग ंधी क
े प्रतत आम आदमी की श्रद्ध को चुन वों क
े िमय जमकर भुन य ज त रह िेककन
व्यवह ररक एवं र जनीततक जीवन में ग ंधी कहीं नहीं थे । जजिक
े पररण म स्वरूप देश में भ ई
भतीज व द, पक्षप त, ज ततव द, िंप्रद यव द, िंकीणफ पवच रध र , क्षेत्रीयत व द जैिे अनेक ऐिे
तत्व घुि आए जजन्होंने एक तरह िे ग ंधी एवं ग ंधीव द क गि घोटने में कोई किर ब की
नहीं छोडी । कह िकते हैं कक 1948 में ग ंधी जी की मृत्यु क
े महज 20 - 22 ि ि ब द ही
दहंदुस्त न न म क यह देश क
े वि ददख वे क
े लिए ग ंधीव दी देश थ । यथ थफ में यह ं पर
पूंजीव द ह वी हो चुक थ और पूंजीव द क
े पीछे भ्रष्ट्ट च र क द नव िर्
े दपोश बनकर खड हुआ
थ ।
यह क ि भिे ही भौततक प्रगतत क
े दहि ब िे खर ब न रह हो मगर यदद एक पुनर विोकन
ककय ज ए तो स्पष्ट्ट ददखेग की नैततक पतन क दौर यहीं िे शुरू हुआ और एक ऐिी ब ढ़ यह ं
पर आई जजिमें िच, न्य य, अदहंि , दय , करुण आदद क
े लिए कोई ख ि जगह नहीं बची ।
पवदेशों िे वस्तुओं क प्रव ह भ रत में जबरदस्त बढ़ य नी ग ंधी क
े स्वदेशी क
े िपने को खंड
खंड कर ददय गय ।
ह ि ंकक औद्योगगक क् ंतत, हररतक् ंतत एवं श्वेतक् ंतत देश की जरूरत थी मगर क
ु टीर उद्योगों
क
े नीचे की ज़मीन बहुत ही तरीक
े क
े ि थ पजश्चमी देशों क
े इश रे पर खींच िी गई । क मग र
मज़दूर, छोटे कमफच री िब अब बडे-बडे क रख नों और उद्योगपततयों क
े गुि म बनकर रह गए ।
ग ंधी क क
ु टीर उद्योग क िपन िगभग पूरी तरह धर श ई हो गय । रही िही कमी लशक्ष
में हुए अन प-शन प पररवतफनों ने पूरी कर दी।
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चररत्र तनम फण व नैततक मूल्य तथ भ रत की ि ंस्कृ ततक धरोहर एवं परंपर एं तथ बुतनय दी
लशक्ष क लिद्ध ंत एकदम त्य ग ददय गय । अब ऐि भी नहीं है कक यह ि री ब तें इंददर
क ि में ही हुई यें आज भी ज री हैं ।
भिे ही र ष्ट्रव द एवं र ष्ट्रव दी िरक र क मुिम्म चढ़ ए नय दि ित्त में आय और पपछिे
िगभग एक दशक िे िग त र ित्त में है इििे पहिे भी टुकडों में करीब 7 ि ि र ष्ट्रव दी
िरक र रही मगर ग ंधीव दी मूल्य व पि नहीं आए । न ही अब उनक
े व पि िौटने की कोई
उम्मीद भी है ।
ग ंधी अब एक प्रक र िे करीब-करीब क िप र अथ फत एक्िप यर होने की कग र पर हैं । हर
ग ंधी जयंती पर ग ंधी क
े बुतों पर म ल्य पफण होत है चखे चि ए ज ते हैं र जघ ट और ब पू की
िम गध पर िवफ धमफ प्र थफन एं की ज ती हैं िेककन आज हम जजि दौर में जी रहे हैं वह ं िवफ धमफ
िमभ व खतरे में ददख ई दे रह है ।
आज इि देश क
े दोनों प्रमुख िमुद यों क
े िोग िग त र कठोर एवं कट्टर होते ददख इ पड रहे हैं
य नी दहंदुस्त न की आत्म अब बदि रही है । अब ग ंधी क
े म यने क्य हैं इिे िमझन और
भी मुजश्कि हो गय है और िगत है कक आने व िे िमय में पररवतफन आंधी में ग ंधी को और
भी भुि ददय ज ए तो अचरज न करें।
र जनीततक पवश्िेषकों म नन है यदद क ंग्रेि ने धर ति िे जुड कर जनत क िमथफन ह लिि
नहीं ककय तो आने व िे िमय में ग ंधी ने जो क ंग्रेि की पविजफन की ब त कही थी वह आज
क ंग्रेि की पीठ पर िव र पररव र क
े द्व र पूरी की ज ती ददख ई दे रही है ।
अस्तु कॉन्ग्रेि रहे, न रहे यह अिग ब त है मगर बदिते हुए पररवेश में ग ंधी और भी ज्य द
िमीचीन और जरुरी हो ज एंगे इिमें दो र य नहीं है । ह ं, उनकी नीततयों एवं दशफनों की
व्य ख्य नए तरीक
े िे की ज िकती है जो श यद िमय की जरूरत भी है। ग ंधी व ददयों को भी
यह गचंतन करन होग कक ग ंधी क
े ककन पवच रों को क ि की किौटी पर कि कर आगे
बढ़ न है और ककन नीततयों को छोडकर आगे बढ़न है ।
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बृजेश क
ु मार
इस संसार में मनुष्य जीवन में सुख दुुःख का आना
स्वाभाववक है| सुख दुुःख का जोड़ा है | व्यक्ति क
े जीतन में सुख भी आिा है औऱ दुुःख भी |
इस संसार में ऐसा कोई भी व्यक्ति नह ं है क्जसने खुशशयों क
े साथ मािम ना देखा हो|
यह सुख दुुःख की पररभाषा क
े वल मनुष्य जीवन क
े शलए नह ं है|
अवपिु इस संसार में प्रत्येक जीव क्जसने जन्म शलया है, क
े जीवन में सुख दुुःख का आना
ननक्श्िि है | ज़ब यह बाि है कक जीवन में सुख औऱ दुुःख दोनों का ह भोग करना है िो
दुुःख से अधिक दुुःखी तयों हुआ जाये|
दुुःख सुख मनुष्य जीवन क
े साथ, ज़ब िक प्राण हैं िब िक दुख सुुःख है|
क्जस मनुष्य में दुखो को सहन करने की शक्ति आ जािी है | वह ववपर ि से ववपर ि
पररक्स्थनि में भी घबरािा नह ं है औऱ अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से मुकाबला करिा है|
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वह मनुष्य संसार में सुखी समझा जािा है | रववन्र नाथ टैगोर अपनी कवविा वरदान में कहिे
हैं :-
हे प्रभु ! ि मुझे दुखों से छ
ु ड़ा, ये प्राथथना लेकर मैं, िेरे दर पर नह ं आया, ि मुझे दुखों को
सहन करने की शक्ति दे दे, किर िाहे ककिने भी दुुःख मुझे दें दे|
मलक दास ने बहुि अच्छा कहा है –
जै दुुःखखया संसार में,
खोदो निनका दुुःख,
दशलदार सौंप मलक को,
लोगन द जे सुख|
हे प्रभु !सारे संसार का दुुःख मुझे दे दो,
औऱ मेरे जीवन क
े सारे सुख संसार पर वार दो |
यदद हम अपने जीवन में छोटा सा काम करना िाहिे हैं िो अनेकों आपनियों का सामना करना
पड़िा है | यदद हम आपनियों का सामना करने में सक्षम हैं िो जीि ननक्श्िि है|
आपने देखा होगा कक बहुि मनुष्य अपने जीवन में कोई काम करने क
े शलए िैयार ह नह ं होिे
|वह सोििे हैँ कक इस से दुखों से बि जायेंगे|
ऐसे मनुष्य जीवन में कभी भी प्रगनि औऱ उन्ननि नह ं कर सकिे|
उनका जीवन कीड़े मकोड़े क
े समान है औऱ क
ु छ भी नह ं|
मनुष्य की दृढ़ इच्छाशक्ति की पर क्षा िो प्रनिकल पररक्स्थनि में ह होिी है|
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ववपर ि पररक्स्थनि को देखकर वविशलि होने का स्वभाव मनुष्य का है, लेककन जो िैयथ से
इनका सामना करिे हैँ औऱ ववपर ि पररक्स्थनि को अपने अनुकल बना लेिे हैं | ऐसे व्यक्तियों
को महापुरुष की संज्ञा द जािी हैं |
अगर हम इनिहास को उठा कर देखिे हैं कक महापुरुषों ने ककिनी- ककिनी ववपर ि पररक्स्थनियों
में अपने िैयथ को नह ं त्यागा औऱ प्रसंिा पवथक उनको स्वीकार ककया औऱ अपने जीवन का
दहस्सा मानकर प्रारब्ि ककया |
ऐसे क
ु छ उदाहरण आपक
े सामने रखिे हैं
1. महाराणा प्रिाप घास की रोट खा कर मािृभशम क
े शलए लड़िे रहें लेककन उन्होंने मुगलों की
दास्िां स्वीकार नह ं की |
2. महाभारि में पांडवो ने वनवास को स्वीकार ककया जबकक वे िाहिे िो कौरवों क
े दास बनकर
अपना जीवन व्यिीि कर सकिे थे | ककन्िु उन्होंने ऐसा ना करक
े वनवास स्वीकार ककया, यह
उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति का ह पररणाम था |
3. राजा हररश्िन्र राज्य लोभ से अपने विनों से नह ं किरे | बक्कक डोम क
े घर जाकर पानी
भरने का काम करने लगे | औऱ अपनी पक्त्न को भी बच्िे का दाह संस्कार करने से रोक ददया
|
4. राजा शशवव ने यदद शर र क
े कटने क
े दुुःख से दुुःखी होकर कबिर को बाज़ क
े शलए दे ददया
होिा िो उनका नाम आज कौन जानिा |
5. वन में सीिा का हरण होने पर, राम ननराश नह ं हुए बक्कक वानर जानि क
े लोगों को इकठ्ठा
कर रावण क
े राज्य में ईंट से ईंट बजा द |
6. गुरु गोववन्द शसंह ने अपने िारों बेटों का बशलदान दे ददया लेककन अपने पथ से िननक भी
वविशलि नह ं हुए|
ऐसे अनेकों उदहारण से इनिहास भरे पड़े हैं, ये भी असंख्य मनुष्यों की भांनि काल क
े गाल में
समा जािे लेककन आज भी इनका नाम ज्यों का त्यों जीववि है | इसका एक मात्र कारण है
उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति|
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आज हम देखिे हैँ कक मनुष्य छोट छोट मुक्श्कलें सामने आने पर अपना मानशसक संिुलन खो
बैठिा है, आज क्स्थनि यह है कक व्यक्ति मुसीबि का सामना िथा मुसीबि से बाहर ननकलने क
े
रास्िे खोजने की अपेक्षा अपना अमकय समय िथा शक्ति को घबराने में खिथ करिा है | अब
तया होगा ? तया करुूँ ?कहाूँ जाऊ
ं ? ऐसा सोि कर रोने क
े शसवाय अपनी मानशसक क्स्थनि
को ख़राब कर लेिा है | औऱ छोट छोट मुसीबि का पहाड़ बना देिा है||
अगर व्यक्ति में िैयथ है िो वह बड़ी बड़ी मुसीबि को आसानी से पार कर जािा है | ऐसा इस
संसार में कोई भी जीव नह ं है | क्जस पर मुसीबि नह ं आिी है||
उनमें से क
ु छ िो मुसीबिों से घबरा कर हार मान लेिे हैँ | औऱ क
ु छ लोग उन मुसीबिों से
जीवन में नयी उजाथ का संिार करिे हैं औऱ उनकी िरतकी का रास्िा मुसीबिों से ननकलिा है|
औऱ दृढ़ इच्छा शक्ति क
े कारण मंक्ज़ल को पा लेिे हैँ
वववेकी औऱ अवववेकी की दोनों को ज़रा, मृत्यु औऱ व्यधियां होिीं हैँ परन्िु ज्ञानवान व्यक्ति
अपने कमथ का भोग समझकर दृढ़िा क
े साथ सहन करिा है, औऱ मखथ वविल होकर ववपनियों
को औऱ बढ़ा लेिा है|
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जो कभी संभव नह ं
डॉ शशवा िमेजा
तया है वो ? पुरुषाथथ से, मेहनि से, इच्छाशक्ति से, दृढ़ ननश्िय से ऐसा तया है जो संभव
नह ं.....ऐसा तया है जो पाया नह ं जा सकिा ?
तया उत्तर है आपका ? सब संभव है !अगर शशद्दि से मेहनि की जाये िो आप अपनी िकद र
बदल सकिे हैँ लेककन ऐसा एक कायथ है क्जस पर कभी कोई ववजय ना पा सका|
वो कायथ है बीिे समय क़ो वावपस लें आना...समय बीिा मिलब बीि गया | एक बार क्जस
समय क़ो घड़ी बीिा िुकी ठीक उसी समय, ददन, वार क़ो कभी कोई वावपस न ला सका | िो
तया कोई संशय है आपको कक इस िरिी पर जन्म लेने क
े बाद जो सबसे अमकय शमला है..
मािा – वपिा क
े बाद वो समय क
े शसवाय क
ु छ नह ं|
क्जन्होंने इन अमकय का मकय समझ शलया ये पर दुननया किर उनका मकय समझ लेिी हैँ |
समय क़ो अमकय मानने वाले खुद अनमोल बन जािे हैँ तयोंकक ऐसा व्यक्ति क्जसे इस सत्य का
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बोि है वह समय की एक -एक बूँद क़ो खिथ करिे समय बहुि सोि वविार करेगा और समय
क़ो व्यथथ कभी जाने नह ं देगा|
समय क
े रूप में क्जसे आप खिथ कर रहें होिे हैँ उसे जीवन कहिे हैँ.... बीि जाने वाला समय
जीवन क़ो घटािा जा रहा है.... और हम िरह -िरह से खुद क़ो िृक्ति देने क
े उद्देश्य से
खेलना, बािें करना, मवीज देखना ,ननंदा करना.... आदद आदद करिे रहिे हैँ|
काम क
े काम पर हमार प्रनिकिया ऐसी होिी है – करिे हैँ अभी थोड़ी देर में,
कल पतका , ये कर लेंगे | अभी जकद तया है, टाइम पड़ा है |
टाइम क
े वल िल रहा है, सरज की िरह | उसने पीछे मुड़कर देखना नह ं सीखा | समय का
महत्व हम बिपन से इसे पढ़िे आ रहें हैँ – छोटे होिे हैँ िो एक बार िो इस ववषय पर ननबंि
जरूर शलखा होगा हम सबने ,लेककन बिपन का वो पाठ बड़े होिे -होिे हम भल जािे हैँ|
ऐसा तयों ?
स्कल में हम समय क़ो इिना नह ं गवांिे ,क्जिना बड़े होकर गवािे हैँ| लेककन िब िक हमार
बुद्धि इिनी पररपतव नह ं होिी, क्जिनी हम जैसे- जैसे बड़े होिे हैँ िो होिी िल जािी है|
िो किर ऐसा तयों कक बड़े होने पर हम समय का मोल उिना नह ं समझ पािे....
तयोंकक बिपन में हमें स्कल का काम समय पर ना करने पर डांट पड़िी थी, ट िर की मज़ी
सज़ा भी दे सकिी थीं|
बड़े हो गए िो हम खुद क
े माशलक खुद बन गए | हम अपनी मज़ी से सब क
ु छ करने क़ो हमार
आज़ाद कहने लगे | हमें हमार गलनियों पर ना ट िर क
ु छ बोल सकिी है, ना मािा वपिा|
िो समय क़ो नष्ट करक
े , हमने खुद क
े साथ जो ककया वो न्याय नह ं, अन्याय होिा है | खुद
क़ो काब में ऱखना गलि नह ं, सह होिा है | सह कायथ मज़बर से नह ं, ख़ुशी से ककये जािे हैँ
|
अब िंकक हमें ककसी की डांट नह ं शमलनी िो हम ककसी भी कायथ क़ो कभी िक भी टालने लगे
और समय का महत्व भलने लगे|
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कई- कई महापुरुषों ने हमें िेिाया है, समय क
े महत्व क़ो सुन्दर शब्दों में िो कभी कड़े शब्दों
में समझाया है|
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वप्रया देवांगन
क
ै सा ये मौसम है आया, कभी िप सूँग होिी छाूँव।
बैठे बबस्िर में है सारे, नह ं िरा पर रखिे पाूँव।।
दठठुर रहे हैं लोग यहाूँ पर, ककटककट करिे सब क
े दाूँि।
इक दजे को करे इशारे, नह ं ननकलिी मुूँह से बाि।।
िेज सयथ की ककरणें आिीं, शमलिी है ऊजाथ भरपर।।
िौराहे पर बैठे बैठे, ठंडी को करिे हैं दर।।
स्वेटर मिलर िन को भाये, स्पशथ नह ं करिे हैं नीर।
छोटे बच्िे रोिे रहिे, तया ठंडी में होिी पीर।।
बादल में छ
ु प जािा सरज, और पवन की बहिी िार।
दुबक
े मानव घर क
े अंदर, काम काज से माने हार।।
बहुि बढ़ है ठंड िरा पर, थोड़ा कम कर दो भगवान।
देह बि
थ सी जमिी जािी, कह ं ननकल ना जाये प्राण।।
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धगरेंर शसंह भदौररया
पाखण्ड खक्ण्डनी कवविे ! िावपक राग जगा दे ि।
सारा कलुष सोख ले सरज, ऐसी आग लगा दे ि।।
कवविा सुनने आने वाले, हर श्रोिा का वन्दन है।
लेककन उससे पहले सबसे, मेरा एक ननवेदन है।।
आज मािुर घोल शब्द क
े , रस में न िो डुबोऊ
ूँ गा।
न मैं नाज नखरों से उपजी, मीठी कथा वपरोऊ
ूँ गा।।
न िो निमुखी अशभवादन की, भाषा आज अिर पर है।
न ह अलंकारों से सक्ज्जि, माला मेरे स्वर पर है।।
न मैं शशष्टिावश जीवन की, जीि भुनाने वाला हूँ।
न मैं भशमका बाूँि बाूँि कर, गीि सुनाने वाला हूँ।।
आज िुहलबाक्ज़याूँ नह ं, दुन्दुभी बजाऊ
ूँ गा सुन लो।।
मृत्यु राज की गाज काल भैरवी सुनाऊ
ूँ गा सुन लो।।
आज हृदय की िति बीधथयों, में भीषण गमाथहट है।
तयोंकक देश पर दृक्ष्ट गड़ाए, अरर की आगि आहट है।।
इसीशलए कक
थ श कठोर वाणी का यह ननष्पादन है।
हे
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सुति रति को खौलाने का, आज ववकट सम्पादन है।।
कटे पंख सा वववश पररन्दा, मन क
े भीिर क्जन्दा है।
क
ु छ लोगों क
े कारण भारि, बुर िरह शशमथन्दा है।।
क्जिना खिरा नह ं देश को, दुश्मन क
े हधथयारों से।
उससे ज्यादा भय लगिा है, नछपे हुए गद्दारों से।।
ये इिने मिलब परस्ि हैं, िर लें िन की पेट को।
बदले में धगरबी रख सकिे, हैं माूँ बीवी बेट को।
दाूँव लगे िो िरा िाम, पररवेश बेि सकिे हैं ये।
क्षखणक स्वाथथ क
े शलए स्वगथ सा, देश बेि सकिे हैं ये।।
जाससों की ठण्ड घटाने को, शसगड़ी रख देिे ये।
गुस्िाखों की भख शमटाने को, रबड़ी रख देिे ये।।
देशरोदहयों क
े मुख में मुगी िगड़ी रख देिे ये।
जयिन्दों क
े अशभनन्दन में, झट पगड़ी रख देिे ये।।
क्जनकी सोि समझ पर क
ु ण्ठा, क
े जाले पड़ जािे हों।
राष्र गीि गािे ह अिरों पर िाले पड़ जािे हों।।
क्जनकी शतल देखिे रोट , क
े लाले पड़ जािे हों ।
कौओं की तया कहूँ कबिर, िक काले पड़ जािे हों।।
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क्जनको अन्िर नह ं सझिा, पापड़ और पहाड़ों में।
कौन शक्ति बलबिी सोििे,भों भों और दहाड़ों में।।
उनकी धिन्िा नह ं मुझे वे, सुनें या कक अनसुना करें।
बैठें या किर िले जाूँय, घर पर जाकर शसर िुना करें।।
वह रहे नर नाहर क्जसमें, सुनने का दम गुदाथ हो।
वरना िला जाय मजमें से, क्जन्दा हो या मुदाथ हो।।
मैं आया हूँ वीरों की रग रग में रोश जगाने को।
कायर में ह नह ं नपुंसक, िक में जोश जगाने को।
इिना है ववश्वास कापुरुष, सुन लें मेर वाणी को।
ननश्िय ह िलवार उठा लेंगे कर में ककयाणी को।।
मेर आग भर वाणी से, दहक उठेगी यह दुननया।
ज्वालाएूँ बरसेंगी मुख से, ििक उठेगी यह दुननया।।
क्जन लपटों की लपक देख, थराथिी लोहे की छािी।
वपघल वपघल कर मोम सर खी, पानी पानी हो जािी।।
उसी आग की धिनगार को, बबछा रहा हूँ डग डग में।
कोशशश है भर दूँगा बाूँक
े , वीरों की मैं रग रग में।।
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मैं छन्दों में ढाल िुका हूँ, लावा ज्वालामुखखयों का।
जबरदस्ि आह्वान ककया है, योद्िा सरजमुखखयों का।।
दहम्मि हो िो ह िुम सुनना, वरना जाना भाग कह ं।
कवविा सुनने क
े ितकर में, लगा न लेना आग कह ं।।
छोटे मुंँूँह से बड़ी बाि बेशक िुमको िुटक
ु ला लगे।
या आए इस सुति काल में, प्रलयंकर ज़लज़ला लगे।।
मेर कवविा िुम को िाहे, कला लगे या बला लगे।
यह भारि का रौर नाद है, बुरा लगे या भला लगे।।
कपट मन क
े पेट ददथ की, जड़ी हमारे पास नह ं।
छमन्िर कर देने वाल , छड़ी हमारे पास नह ं।।
िलिा समय रोक ले ऐसी, घड़ी हमारे पास नह ं।
िाल भर छल ववद्या छोट बड़ी, हमारे पास नह ं।।
इसीशलए इस शेष सभा को, काज बिाने आया हूँ।
मैं यौवन क
े स्वणथ काल का, राज बिाने आया हूँ।।
िुम तया हो िुम तयों आये हो ? तया करना मालम नह ं।
क
ै से जीना िुम्हें और क
ै से मरना मालम नह ं।।
इसीशलए इस ज्ञान खण्ड की शशक्षा, बहुि जरूर है।
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जन्म शलया क्जस भ पर उसकी, रक्षा बहुि जरूर है।।
हे बशलवीरो! उठो सुनो िुम जो िाहो कर सकिे हो।
मात्र आत्म बल क
े बल पर िन में पौरुष भर सकिे हो।।
िुम्हें ककसी अदृश्य शक्ति ने जो सामर्थयथ परोसा है।
क्जस क
े बल पर मािृभशम को िुम पर अटल भरोसा है।।
जब िक िुम हो िब िक िय है, दुश्मन सिल नह ं होगा।
जीव जन्िु तया जड़ िेिन का, जीवन ववकल नह ं होगा।।
िुम िाहो िो कण कथीर क
े , क
ं िन कोदहनर कर दो।
िट्टानों को दबा दबा कर, कर से िर- िर कर दो।।
पलक खोलिे ह पल में, पाषाण वपघलने लग जाएूँ।
एक ि
ूँ क में आूँिी तया, ििान मिलने लग जाएूँ।।
पाूँव पटकिे ह पानी की, िार िरा से िट पड़े।
िुम िाहो िो इन्र बज्र सा, साहस अरर पर टट पड़े।।
आत्मबल वीरों को ककं धिि, भय न ककसी खाूँ का होिा।
बीि बैररयों क
े लड़िे हैं, बाल नह ं बाूँका होिा।।
शसर पर किन बाूँि कर िलना, व्रि होिा रणिीरों का।
िभी साथ शमलिा ििानी, आंँूँिी और समीरों का।।
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राष्र यज्ञ में प्राणाहुनि से, बड़ा और बशलदान नह ं।
इससे बढ़कर कीनिथकाम का, कोई भी सम्मान नह ं।।
राबत्र घनी है जंग ठनी है, द पक बनकर जलना है।
अूँधियारों क
े बीि बैठकर, मुख से आग उगलना है।।
सुन लो राष्् प्रेम क
े धिन्िन, का मन्िव्य समझिे जो।
मािृभशम की सेवा को, पहला किथव्य समझिे जो।।
उनसे ह कह सकिा हूँ मैं, मरने शमटने जीने की।
दुश्मन से लोहा लेने की, छक कर पीयष पीने की।।
वीरों को मन से प्रणाम है, मेरा बस इिना कहना।
दुश्मन घाि लगाकर बैठे हैं, िुम िौकन्ने रहना।।
आज नह ं िो कल इन हालािों से पाला पड़ना है।
हमें युद्ि दोगलों और, दुश्मन दोनों से लड़ना है।।
इसीशलए हर प्रहर कमर पर काल बाूँि कदटबद्ि रहो।
तया जाने कब बैर कर दे, हमला िुम सन्नद्ि रहो।।
नयी गूँज
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अब भी वति है…
ए मानुष। गुनाह िो क
ु छ हुए जरूर हैं
प्रकृ नि मां जो आज रूठी सी है
यं ह नह ं रूठिी जननी अपनी जान से
क
ु छ िो अपेक्षाएं टट सी हैं ।
िरिी से जन्मा इंसान शमट्ट ह बन जािा है
भक
ं प हो या ििवाि उसक
े पाप याद ददलािा है
जहां ऋिुएं कहिी थीं खुदा यह ं कह ं आसपास है
वह आसमां आज जिािा उसक
े िोि का एहसास है
ि-ि कर जल रहे सब वन यह बिािे हैं
प्रकृ नि की नैमिों को हम क
ै से जा ा़
र जा ा़
र कर जािे हैं
नयी गूँज
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जो शीिल करिी थी वह पवन ििान बन िुकी है
थपेड़े हो या शीिलहर हर रूप में िन उठी है
वसुिा अश्रु िारा को ननजथल है मखथ करिा रहा
सखने लगे जब आंस िरा क
े तयासा तयासा किरिा रहा
पंिित्व ननशमथि ए देह अब त्रादहमाम तयों कहिी है
पांिों ित्व हैं रुष्ट िुझसे पररक्स्थनि यह कहिी है
अक्षम्य है जरूर अपराि यह िेरे
िहं ओर मौि की िादर बबखर सी है
हे मानुष गुनाह िो क
ु छ हुए जरूर है िुझसे
प्रकृ नि मां जो आज रूठी सी है ।
अददनि भारद्वाज
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कानन का डंडा और वदी
रमेश मनोहरा
हेड साहब इस िौराहे पर अपनी सेवाये दे रहे थे. मुंह में बीडी ठंस रखी है. कोई वाहन
गलि साइड से जािा है. सीट बजाकर सिेि करिे है. इिने पर भी यदद वाहन वाला नह ं
समझिा है. िब अपने हाथ में शलए कानन क
े डंडे का जमकर इस्िेमाल करिे है. और उस पर
अपनी खाकी वदी का रौब भी ददखािे है. जनिा भी उनसे नह ं, उनकी खाकी वदी से भयभीि
रहिी है. तयों कक खाकी वदी में कई कानन नछपे है. बक्कक य कहें क
ु छ कानन िो इन्ह ं क
े
द्वारा बनाए गये है. हेडसाब का डंडा भले ह छोटा था. मगर इसमें कानन की कई ध र एं
समादहि थी. ककसको ककस िारा में क
े स बनाना है. कानन का ये डंडा और वदी अच्छी िरह
जानिी है. अिुः जो भी वाहन उस िौराहे से गुजरिा है. अधिकांश उनसे नज़र बिाकर िुपिाप
ननकल जािे थे. जो उनकी नज़र में पकड़ा जािा था. पहले िो वह उस पर डंडा पेल देिा था.
किर िालान बना देिा था.
अब आप उनका काम जानेंगे. नाम उनका शेर शसंह है. अिुः शेर जैसी बड़ी - बड़ी मुछे है उनकी
जब ककसी वाहन वाले पर वे गुस्सा करिे, िब मुंह क
े साथ उनकी मछे भी बोलिी थी. जब
जनिा को मालम है. आज शेरशसंह की ड्यट िलाने िौराहे पर लगी है. िब वे इस िौराहे पर
आिे ह नह ं तयोंकक कई वाहन का उन्होंने यािायाि का पालन करिे हुए भी िालान काट ददये.
हॉ कोई िधिथि नेिा अथवा गुंडा उिर से गुजरिा है, उनक
े सम्मान में साविान की मुरा में खड़ा
होकर सम्मान देिे है. जब पुशलस अधिकार उिर से गुजरिे है. िब उनको सलाम ठोंकिा है िब
वह अधिकार गाड़ी रोककर कहिा है. शेरशसंह ड्यट बराबर दे रहे हो ?
“हॉ साहब, आपका आशीवाद है. आपका आशीवाद बना रहे. ड्यट क
े मामले में मैं क
ं जसी नह ं
करिा ह साहब, ईमानदार से नौकर करिा ह.”
“ठीक है--- ठीक है.” अनसुना करिा हुआ, वो अधिकार बोला-
“साहब, इस बार मेरा प्रमोशन हो जायेगा.” आखखर अपने लालि की बाि शेर शसंह ने जब कह
द . िब गुस्से से पुशलस अधिकार बोला - िुम्हार बहुि शशकायिे आ रह है. आम जनिा को
बहुि परेशान करिे हो. बेवजह िालान काट देिे हो ?
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“नह ं साहब ये सब झठी शशकायिें है. जो यािायाि का पालन नह ं करिे है न उनका ह िालान
बनािा ह. हेडसाब शेर शसंह ने अपनी सिाई में जब यह कहॉ िब पुशलस अधिकार कहॉ - ड्यट
दो प्रमोशन जब होगा िब हो जायेगा. और पुशलस अधिकार ने अपनी गाड़ी स्टाटथ कर द .”
शेरशसह अपने अधिकार की यह बाि सुनकर भीिर गुस्सा आिा है. प्रमोशन की आशा में
वो ड्यट देकर अधिकार का मन जीिना िाहिा है. मगर हर बार उसकी ड्यट को नकार देिा
है. िब आम जनिा पर उसका डंडा और वदी का रौप और िलने लगिा है. जब एक गाड़ी वाला
गलि रास्िें से ननकल गया. िब उन्होंने सीट बजाकर रोकने का प्रयास ककया. िब िक वह वह
िेज रफ्िार से भाग गया. उन्हें उस पर बहुि गुस्सा आया. जैसे ह हेड साहब पीछे मुड़े. एक
िेज रफ्िार युवक जो गाड़ी िेज िला रहा था. हेड साहब क
े पास आकर ब्रेक लगाकर गाड़ी
रोकी, िब उस युवक पर गुस्से से अपना डंडा बरसािे हुए कहॉ - अंिे कह ं क
े गलि साइड से
गाड़ी िला रहा है. अभी िालान बनािा ह िेरा ?
“मगर साहब, मैं िो सह साइड से िल रहा था.” उस युवक ने कहॉ - किर भी आपने मुझे डंडा
तयो मारा ?
“िुप बे साले, जुबान लड़ािा है, वो भी वदी से. एक िो गलि साइड से िेज रफ्िार से गाड़ी
िला रहा था. अंिा कह ं का.”
“अंिा मैं नह ं आप है. जो दाये - बाये भी आपको नह ं ददख रहा है.”
“तया कहॉ मुझे अंिा कहॉ ?--- िल िालान काटिा ह. िल थाने.”
“क्यों िल थाने, मैं यािायाि क
े ननयम का पालन करिे हुए जा रहा था ?”
“सीिे माजने से िलिा है की नह ं ?” अभी हेड साहब यह बाि कह रहे थे कक युवक गाड़ी स्टाटथ
कर िुका, िलिी गाड़ी से कहॉ - िले मेर जिी.
और क्षणभर में ह वो युवक हवा हो गया. शेरशसंह अपना िोि ददखािे रहे.
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हमीद कानपुर
नफ़रि को शमलिा नह ं, एक भी खर दार।
किर तयूँ िलिा िलिा,नफ़रि कारोबार।
इससे रहकर बेख़बर, कहिा तया संसार।
क्षमिाओं को हर घड़ी, देना है ववस्िार।
ननजी क्ज़न्दगी में कभी, डालो मि व्यविान।
सब को दो सम्मान यदद, पाना है सम्मान।
पर क्षमिा से सदा, कररये हर इक काम।
थकान जब आने लगे, कररये िब आराम।
क
ु दरि ने सबको ददया, इक ववशशष्ट उपहार।
दुननया में है ह नह ं, कोई भी बेकार।
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वप्रया देवांगन
बतफन म ाँजती हुई स्नेह को जब पत चि कक उिकी ि ि उिे न क
े वि घूर रही है,
बजल्क तंज किते क
ु छ िख्त शब्द छोड रही है ; स्नेह िे नहीं रह गय । ह थ धोकर तुरंत उठी।
बोिी- “म ाँ जी आपको हमेश मेरी ही गिती नजर आती है क्य ? जब देखो गैरों की तरह हर
ब त पर मुझे त ने म रती रहती हो।“ स्नेह आग बबूि हो गयी। कह ही रही थी-
“वैिे भी आपक
े बेटे क व्यवह र मेरे प्रतत ठीक नहीं है; अब आप भी....!” कहते हुए स्नेह अपने
कमरे में चिी गयी।
स्नेह अपनी ककस्मत को कोिने िगी। उिकी लिर्
फ इतनी ही गिती थी कक वो एक
गरीब घर की बेटी थी, जो हमेश िच्च ई क ि थ देती थी। जब उिे क
ु छ गित िगत तो बोि
देती थी।
क
ु छ देर ब द िुलमत घर आय । तभी स्नेह की ि ि श्य म िुलमत क
े ि मने
मगरमच्छ क
े आाँिू बह ने िगी। िुलमत िे रह नहीं गय । पूछ - “म ाँ आप रो क्यों रही हैं। क्य
हुआ म ाँ, बत इये तो ?” श्य म ने अपनी गिती पर पद फ ड िते हुए स्नेह को ही दोषी ठहर य ।
िुलमत की त्यौरी चढ़ गयी। बोि - “स्नेह , तुम्ह री इतनी दहम्मत कक तुमने मेरी म ाँ को रूि
ददय ।“ जोर-जोर िे आव ज िग ई- “स्नेह ... स्नेह ... तू कह ाँ मर गयी। ब हर तनकि। जर इधर
तो आ।“
स्नेह दौडते हुए कमरे िे ब हर आयी। िुलमत ने आव देख न त व। उिने स्नेह क
े
ग ि पर एक तम च जड ददय । स्नेह की आाँखों क
े ि मने अाँधेर छ गय । इधर श्य म पीछे
िे मुस्क
ु र रही थी। उिक
े किेजे को थोडी ठंडक लमिी। उिे िग कक स्नेह एक अबि न री की
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तरह है; क
ु छ नहीं कर प येगी। िब बद फश्त कर िेगी। िेककन अब बहुत हो चुक थ । स्नेह भी
ह र म नने व िों में िे नहीं थी। उिने अपने आिप ि क
े िोगों को बुि य । िबक
े ि मने चीख-
चीख कर बोिी- “क्य यही है एक न री क अििी जीवन। क्य पुरुषों क
े शोषण में कमी आ
गयी कक अब न री ही न री क शोषण कर रही है। कभी दहेज क
े लिए तो, कभी म ाँ-ब प पर
ऊ
ाँ गिी उठ कर। अरे आज एक न री दूिरी न री क ददफ नहीं िमझ प रही है, ऐिे न री जीवन
को गधक्क र है। बहू और बेटी में भेद करते हैं। नौकर नी की तरह रखते हैं। क्य वह कभी ककिी
की बहू नहीं थी ? क्य उनकी अपनी बेटी नहीं होती ? आज मेरे ि थ ऐि व्यवह र ककय ज
रह है; जजिे देख कर कि कोई और ककिी क
े ि थ करेंगे।“
िब क
े ि मने स्नेह अपनी ि ि िे पूछने िगी- “म ाँ जी, क्य िच्च ई क ि थ
देन गित ब त है ? मेरे म ाँ-ब प को कोिने िे क्य लमित है आपको ? अगर कोई आपकी
बेटी क
े ि थ ऐि करेंगे तो आपको अच्छ िगेग ? आपक
े ह ाँ में ह ाँ बोिू तभी मैं अच्छी बहू
बनूाँगी ?
इकट्ठे हुए िोग भी स्नेह क ि थ देने िगे। वे िुलमत और श्य म को िमझ ने
िगे। उन्हें अपनी गिती क एहि ि होने िग । दोनों ने बैठक में एकत्रत्रत िोगों क
े िमक्ष स्नेह
िे म र्ी म ाँगे। स्नेह की आत्म को ठेि तो पहुाँची थी; कर्र भी उिने दोनों म ाँ-बेटे को म र् कर
ददय ।
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िाय माूँ गोरा टांक
जस्थान की बशलदानी भशम को अगखणि वीर- वीरांगनाओ ने इस शमट्ट को अपने
खन से सींिा है, इसमें कोई दो राय नह ं है | अगर इनिहास की बाि करें िो अपने
बच्िे को मािृभशम की रक्षा क
े शलए बशलदान करने वाल मां पन्ना िाय का नाम
सवथप्रथम शलया जािा है | लेककन इसी ह मरुभशम में एक और िाय माूँ ‘गोरा टांक’ भी हुई है |
क्जसने मां पन्ना की िरह अपने पुत्र को राजगद्द क
े शलए न्योछावर कर ददया |
सन 1678 ई. में मारवाड़ पर महाराजा जसवंिशसंह का शासन था | उस समय ददकल क
े िख्ि
पर औरंगजेब का शासन था | महाराज जसवंि शसंह औरंगजेब की ओर से काबुल गए हुए थे|
उनक
े साथ मारवाड़ी वीर दुगाथदास, अन्य सहयोगी, ववश्वसनीय िाय माूँ गोरा टांक िथा उनकी
राननयां भी थी |
र
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लेककन एक दुखद घटना ऐसी घट कक 28 नवंबर 1678 ई. को महाराजा जसवंि शसंह का
देहांि हो गया | इस घटना क
े बाद मारवाड़ी वीर िथा उनक
े साथी और गभथविी राननयां सदहि
लाहौर आ गये |
क
ु छ समय पश्िाि महाराज जसवंि शसंह की राननयां जादम जी िथा रानी नरूकी ने 19 िरवर
1679 को पुत्रों को जन्म ददया | रानी जादम जी क
े पुत्र का नाम अजीि शसंह िथा रानी नरुकी
क
े पुत्र का नाम थूँबन था | इनकी देखभाल करने क
े शलए ‘ गोरा टांक’ को ननयुति ककया गया |
इसक
े बाद औरंगजेब क
े द्वारा इन्हें लाहौर से मारवाड़ी वीरो सदहि राननयों को ददकल बुला शलया
गया | क
ु छ सतिाह पश्िाि दल थंबन की मृत्यु हो गई | और मारवाड़ी वीरों ने महाराजा अजीि
शसंह को मारवाड़ का उत्तराधिकार घोवषि करने क
े शलए औरंगजेब से आग्रह ककया | लेककन
औरंगजेब की ननयि में खोट होने क
े कारण उन्होंने अपने सैननकों को आदेश देकर पर हवेल
को घेर शलया, जहां पर मारवाड़ी वीर िथा अजीि शसंह थे |
मारवाड़ी वीर दुगाथ दास िथा उसक
े सहयोगी की सझबझ से महाराजा अजीि शसंह को ददकल
से मारवाड़ ले जाने की योजना बनाई गई | क्जसक
े शलए गोरा टांक को महाराजा अजीि शसंह
को सक
ु शल ददकल की हवेल से बाहर ननकालने का कायथ ददया गया| गोरा टाक ने सिाई वाल
का भेष बनाकर, शसर पर टोकरे में महाराजा अजीि शसंह को शलटाकर हवेल से बहार ले आई |
बाहर सपेरे क
े भेष में खड़े मुक
ुं ददास खींिी को महाराजा अजीि शसंह को दे ददया | और
मुक
ुं ददास महाराजा अजीि शसंह को ददकल से मारवाड़ ले आया | इिर गोरा टांक ने अपने पुत्र
को महाराजा अजीि शसंह क
े कपड़े पहना कर लेटा ददया |
महाराजा अजीि शसंह का लालन-पालन गोरा टांक क
े द्वारा ककया गया | उिर औरंगजेब क
े
सामने गोरा टांक क
े बेटे को ददखाया गया जोकक 1688 ईस्वी में तलेग महामार की िपेट में
आकर मृत्यु को प्राति हो गया |
इनिहास में मां पन्ना क
े बशलदान को पुनुः गोरा टाक ने दोहराया | उसका यह बशलदान मारवाड़
की राजगद्द क
े प्रनि किथव्य ननष्ठा व स्वाशभमान को दशाथिा है कक क्जसने अपने दि मुहे बच्िे
को काल क
े गाल में समादहि कर ददया | 20 मई 1704 को गोरा टांक क
े पनि की मृत्यु होने
पर, गोरा टाक ने अपने पनि क
े साथ अक्नन स्नान कर शलया | उनकी याद में महाराजा
अजीिशसंह ने 6 खंभों की छिर बनवाई | गोरा टांक का यह बशलदान मारवाड़ क
े इनिहास में
स्वणथ अक्षरों से शलखा गया |
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समान नागररक संदहिा
समान नागररक संदहिा अथाथि ् - एक देश एक ननयम -
ये ऐसे ननयम है क्जसे सभी िाशमथक समुदायों पर लाग ककया जाना िादहए |
संवविान क
े अनुच्छेद 44
क
े भाग
4
में को वखणथि ककया गया है
|
भारिीय संवविान का अनुच्छेद 44
कहिा है
-
राज्य भारि क
े परे क्षेत्र में नागररकों क
े
शलए एक
समान नागररक संदहिा सुरहक्षि करने का प्रयास करेगा यानी संवविान द्वारा सरकार को यह
ननदेश ददया गया है कक वह सभी समुदायों को उन मामलों पर एक साथ लाने का ननदेश दे रहा
है, उनक
े संबंधिि व्यक्तिगि काननों द्वारा शाशसि है |
हालांकक संवविान का अनुच्छेद 77
यह स्पष्ट करिा है कक राज्य क
े नीनि ननदेशक ित्व ककसी
भी अदालि क
े द्वारा लाग करने योनय नह ं होंगे |
किर भी वे देश क
े शासन में मौशलक हैं |
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  • 1.
  • 2. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 i शोध , साहित्य और संस्क ृ ति की माससक वैब पत्रिका नयी गंज-------. वर्ष 2023 अंक 1
  • 3. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 ii संपादक मंडल प्रमुख संरक्षक प्रो. देव माथुर vishvavishvaaynamah.webs1008@gmail.com मुख्य संपादक रीमा मािेश्वरी shuddhi108.webs@gmail.com संपादक सशवा ‘स्वयं’ sarvavidhyamagazines@gmail.com शाखा प्रमुख ब्रजेश क ु मार aryabrijeshsahu24@gmail.com परामशषदािा कमल जयंथ jayanth1kamalnaath@gmail.com
  • 4. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 iii सम्पादकीय फलों की िरि बनो सशवा स्वयं िँसो, खखलखखलाओ, जैसे फल िोिे िैँ | मुश्श्कलों से क्या घबरािे िो? श्जंदगी में दो बािों की गगनिी करना छोड़ दो, खुद का दुुःख और दसरों का सुख | श्जंदगी आसान िो जाएगी... ककसक े जीवन में मुश्श्कलें निीं.... िर ककसी क े जीवन में िैँ | लेककन उनिीं से जीि जाना िी िो जीवन िै |
  • 5. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 iv िुम ज़ब उदास िोिे िो, अपने अंदर नकारात्मक भाव ले आिे िो, ये वैसे िी िै जैसे मुरझाया िुआ फल... क्या आपको पसंद िै मुरझाया िुआ फल... निीं ना | और कोई निीं पछिा कक क्यों मुरझाया ? िँसने वाले क े साथ परा जिाँ िोिा िै, रोने वाले क़ो क ु छ देर की सिानुभति भी मुश्श्कल िी समल पािी िै | क्या िम इिने िार गए िैँ कक सिानुभति से जीवन श्जयें | जीवन का नाम िी िोिा िै िर हदन का नया संघर्ष.. िमारे िाथ में जो िै उसकी, उस पल की कीमि िै बिुि.. ये पल सशकवों – सशकायिों में भी बीि सकिे िैँ लेककन आप अगर मुश्श्कलों में भी खुद क़ो अंदर से अपने सकारात्मक ववचारों की शश्क्ि देिे रिें िो पिझड़ में भी फलों क़ो ला सकिे िैँ आप | फलों क़ो देखा िै, अपने सुनदर रंगों से, ऐसे मुस्क ु रा कर खखलने से वो ककिनी ख़ुशी त्रबखेरिे िैँ िम सब क े सलए और िम इंसान.... इिना सब क ु छ िोिा िै िमारे पास लेककन ज्यादा पाने की इच्छा िमें खुश िोने देिी िी निीं... मुस्क ु राने देिी िी निीं... ये फल.. पत्ते.. पेड़ इनक े पास जो ख़ुशी िै पिा िै वो क्यों िै ? क्योंकक ये कभी अपने बारे में निीं सोचिे.. ये क े वल सबक े बारे में सोचिे िैँ.. लेिे क ु छ निीं क े वल देिे िैँ.. त्रबना पाने की इच्छा क े |
  • 6. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 v और इससलये ये िृप्ि िोिे िैँ क्योंकक ये पर्ष िोिे िैँ | िम इंसानों की रचना भी उसी ईश्वर ने की श्जसने इन िँसिे मुस्क ु रािे फलों क़ो बनाया | िम अगर अपने चेिरे पर मुस्कान रखें िो िम बिुि खुशी दे सकिे िैँ अपने अपनों क़ो | फलों की िरि खुद क़ो रख कर िम अपने अपनों क़ो उससे किीं ज्यादा ख़ुशी दे सकिे िैँ |
  • 7. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 vi शुभेच्छा नयी गूंज------. पररवार परामशषदािा- प्रश्न िै कक संस्क ृ ति क्या िै। यं संस्क ृ ति शब्द सम्+क ृ ति से बना िै, श्जसका अथष िै अच्छी क ृ ति। अथाषि् संस्क ृ ति वस्िुिुः राष्ट्रीय अश्स्मिा क े पररचायक उदात्त ित्वों का नाम िै। भारिीय सनदभष में संस्क ृ ति व्यश्क्ितनष्ट्ठ न िोकर समश्ष्ट्ितनष्ट्ठ िोिी िै। संस्क ृ ति की संरचना एक हदन में न िोकर शिाश्ब्दयों की साधना का सुपररर्ाम िोिा िै। अिुः संस्क ृ ति सामाससक-सामाश्जक तनगध िोिी िै। संस्क ृ ति वैचाररक, मानससक व भावनात्मक उपलश्ब्धयों का समुच्चय िोिी िै। इसमें धमष, दशषन, कला, संगीि आहद का समावेश िोिा िै। इसी की अपररिायषिा की ओर संक े ि करिे िुए भिृषिरर ने सलखा िै कक इसक े त्रबना मनुष्ट्य घास न खाने वाला पशु िी िोिा िै- ‘‘साहित्यसंगीिकला-वविीनुः साक्षाि्पशुुः पुच्छववर्ार्िीनुः।। मुख्य संपादक उपतनर्द् क े शब्दों में किें िो संस्क ृ ति में जीवन क े दो आयाम श्रेय व प्रेय का सामंजस्य िोिा िै। इनिीं आधार पर आध्याश्त्मक, वैचाररक व मानससक ववकास िोिा िै और इनिीं क े आधार पर जीवन-मल्यों व संस्कारों का तनधाषरर् िोिा िै और यिी जीवन क े समग्र उत्थान क े सचक िोिे िैं। सशक्षा-िंि में इनिीं सांस्क ृ तिक मल्यों का सशक्षर्-प्रसशक्षर् िोिा िै। विषमान में सशक्षा-व्यवस्था संस्क ृ ति की अपेक्षा सम्यिा-तनष्ट्ठ अगधक िै। िात्पयष िै कक विषमान सशक्षा ववचार-प्रधान, गचनिन-प्रधान व मल्यप्रधान की अपेक्षा ज्ञानाजषन-प्रधान िै। वस्िुिुः इसी का पररर्ाम िै कक सम्प्रति सशक्षा क े द्वारा बौद्गधक स्िर में िो असभवृद्गध िुई िै ककनिु संवेदनात्मक या भावनात्मक स्िर घिा िै। संपादक –
  • 8. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 vii िमारी सशक्षा में सांस्क ृ तिक मल्यों क े स्थान पर पश्श्चमी सभ्यिा-मलक ित्वों को उपादान क े रूप में ग्रिर् कर सलया गया िै। िभी िो सशक्षा व समृद्गध क े पाश्चात्य मानदण्डों को आधार मान सलया िै जो संस्क ृ ति-ववरोधी िैं, श्जनमें नैतिक व मानवीय मल्यों का ववशेर् स्थान निीं िै। इसी का पररर्ाम िै कक बुद्गधमान व गरीब नैतिक व्यश्क्ि सामाश्जक दृश्ष्ट्ि से भी िांससये पर िी रििा िै और नैतिकिा-वविीन, संवेदनिीन, भ्रष्ट्िाचारी व अपराधी भी सम्पनन, सभ्य, सम्मानय व प्रतिश्ष्ट्ठि िोिा िै। इसी संस्क ृ ति- वविीन व्यवस्था क े कारर् शोर्र्-प्रधान पंजीवादी व्यवस्था िी ग्राह्य िो गई िै, श्जसने रिन-सिन क े स्िर को िो उठाया िै, पर इस भोगवादी बाजारवादी व्यवस्था क े कारर् अथषशास्ि व िकनीककववज्ञान क े सामने नैतिकिा व मानवीयिा गौर् िो गई िै। जबकक राधाक ृ ष्ट्र्न व कोठारी आयोग की मानयिा थी कक सशक्षा ऐसी िोनी चाहिये जो सामाश्जक, आगथषक व सांस्क ृ तिक पररविषन का प्रभावी माध्यम बन सक े । इस दृश्ष्ट्ि से भारिीय प्रक ृ ति और संस्क ृ ति क े अनुरूप सशक्षा से िी मल्यपरक उदात्त-गुर्ों का संप्रेर्र् और समग्र व्यश्क्ित्व का तनमाषर् सम्भव िै। इसमें पुराने व नये का त्रबना ववचार ककये जो देश की अश्स्मिा व समाज क े हििकर िै, उसी को प्रमुखिा देनी चाहिए। शाखा प्रमुख की कलम से-- वप्रय पाठकों संस्थान की पत्रिका नयी गंज क े पिले अंक का लोकापषर् एक आंिररक सुख की अनुभति करा रिा िै। मुझे प्रसननिा िै कक शाखा प्रमुख क े रूप में कायषभार संभालने क े बाद मुझे आप सभी से नयी गंज क े इस अंक क े माध्यम से रूबरू िोने का मौका समल रिा िै। िम ककिना भी ववकास कर लें ककनिु यहद समाज में संवेदना िी मर गई िो सब व्यथष िै। इस संवेदनिीनिा क े चलिे समाज में नकारात्मक ऊजाष हदन प्रति-हदन बढ़िी जा रिी िै जो तननदनीय भी िै और ववचारर्ीय भी। आवश्यकिा िै कक िम अववलम्ब इस हदशा में अपने प्रयास आरम्भ कर दें। वस्िुिुः अपने कमों से िम अपने भाग्य को बनािे और त्रबगाड़िे िैं। यहद गंभीरिा से गचंिन-मनन ककया जाय िो िमारा कायष-व्यापार िमारे व्यश्क्ित्व क े अनुसार िी आकार ग्रिर् करिा िै और िमें अपने कमष क े आधार पर िी उसका फल प्राप्ि िोिा िै। कमष ससफ ष शरीर की कियाओं से िी संपनन निीं िोिा अवपिु मनुष्ट्य क े ववचारों से एवं भावनाओं से भी कमष संपनन िोिा िै। वस्िुिुः जीवन-भरर् क े सलए िी ककया गया कमष िी कमष निीं िै िम जो आचार-व्यविार अपने मािा-वपिा बंधु समि और ररश्िेदार क े साथ करिे िैं वि भी कमष की श्रेर्ी में आिा िै। मसलन िम अपने वािावरर् सामाश्जक व्यवस्था, पाररवाररक समीकरर्ों आहद क े प्रति श्जिना िी संवेदनशील िोंगे िमारा व्यश्क्ित्व उिनी िी उच्चकोहि की श्रेर्ी में आयेगा।
  • 9. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 viii आज क े जहिल और अति संचारी जीवन-वृवत्त क े सफल संचालन िेिु सभी का व्यश्क्ित्त्व उच्च आदशों पर आधाररि िो ऐसी मेरी असभलार्ा िै। यि ज़रूरी निीं िै कक िर कोई िर ककसी कायष मे पररपर्ष िो, परनिु अपना दातयत्व अपनी परी कोसशश से तनभाना भी देश की सेवा करने क े समान िी िै। संपर्ष किषव्यतनष्ट्ठा से ककया िुआ कायष आपको अवश्य िी कायष-समाश्प्ि की संिुश्ष्ट्ि देगा। कोई भी ककया गया कायष िमारी छाप उस पर अवश्य छोड़ देिा िै अिएव सदैव अपनी श्रेष्ट्ठिम प्रतिभा से कायष संपनन करें। िर छोिी चयाष को और छोिे-से-छोिे से कायष क े िर अंग का आनंद लेकर बढ़िे रिना िी एक अच्छे व्यश्क्ित्व का उदािरर् िै। यि सवषववहदि िथ्य िै कक नयी गंज एक उच्च स्िरीय पत्रिका िै श्जसमें ववसभनन ववधाओं में उच्चस्िरीय लेखों का अनठा संग्रि िै आप सभी पत्रिका का आननद लें एवं अपनी प्रतिकियायें ऑनलाइन या ऑफलाइन भेजें। नयी गंज क े माध्यम से िमारा आपका संवाद गतिशील रिेगा। आप सभी अपनी सुनदर व श्रेष्ट्ठ रचनाओं से नयी गंज को तनरनिर समृद्ध करिे रिेंगे इसी ववश्वास क े साथ। अंि में मैं सभी सम्पादक मण्डल क े सदस्यों एवं रचनाकारों को नयी गंज पत्रिका क े सफल सम्पादन एवं प्रकाशन क े सलए साधुवाद ज्ञावपि करिा िं करिा िँ। आप सभी को िाहदषक बधाई क े साथ बिुि-बिुि धनयवाद!! कासलदास ने काव्य क े माध्यम से किा िै- पुरार्समत्येव न साधु सवं न चावप काव्यं नवसमत्यवद्यम्। सनिुः परीक्ष्यानयिरद् भजनिे मढुः परप्रत्ययनेय बुद्गधुः।। अथाषि्पुरानी िी सभी चीजें श्रेष्ट्ठ निीं िोिी और न नया सब तननदनीय िोिा िै। इससलए बुद्गधमान व्यश्क्ि परीक्षा करक े जो हििकर िोिा िै उसी को ग्रिर् करिे िैं जबकक मखष दसरों का िी अनधानुकरर् करिे िैं। अस्िु, तनववषवाद रूप से यि सभी स्वीकार करिे िैं कक राष्ट्र की रक्षा, का सकारात्मक पक्ष िोिा िै। प्रकाशन सामग्री भेजने का पिा ई-मेलुःgoonjnayi@gmail.com नयी गंज इंिरनेि पर उपलब्ध िै। www.nayigoonj.com पर श्क्लक करें। नयी गंज में प्रकासशि लेखाहद पर प्रकाशक का कॉपीराइि िै
  • 10. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 ix शुल्क दर 40/- वावर्षक: 400/- िैवावर्षक: उपयुषक्ि शुल्क-दर का अगग्रम भुगिान 1200/- को -----------------------------------------द्वारा ककया जाना श्रेयस्कर िै। तनयम तनदेश 1 रचनाएं यथासंभव िाइप की िुई िों, रचनाकार का परा नाम, पद एवं संपक ष वववरर् का उल्लेख अपेक्षक्षि िै। 2 लेखों में शासमल छाया-गचि िथा आँकड़ों से संबंगधि आरेख स्पष्ट्ि िोने चाहिए। प्रयुक्ि भार्ा सरल, स्पष्ट्ि एवं सुवाच्य हिंदी भार्ा िो। 3 अनुहदि लेखों की प्रामाखर्किा अवश्य सुतनश्श्चि करें। अनुवाद में सिायिा िेिु संस्थान संपादक मंडल प्रकोष्ट्ठ से संपक ष कर सकिे िैं। 4 प्रकासशि रचनाओं में तनहिि ववचारों क े सलए संपादक मंडल प्रकोष्ट्ठ उत्तरदायी निीं िोगा और इसक े सलए परी की परी श्जम्मेदारी स्वयं लेखक की िी िोगी। नई गँज तनयमावली रचनाएूं goonjnayi@gmail. Com ई-मेल पते पर भेजी जा सकती हैं। रचनाएूं भेजने क े ललए नई गूँज क े साथ लॉग-इन करें, यह वाूंछित है।आप हमारे whatsapp no. 9785837924 पर भी अपनी रचनाएूँ भेज सकते हैँ वप्रय सागथयों, नई गँज िेिु आपक े सियोग क े सलए आपका िाहदषक धनयवाद। आशा िै कक ये संबंध आगे भी प्रगति क े पथ पर अग्रसर रिेंगे। आगामी अंक िेिु आप सबक े सकिय सियोग की पुनुः आकांक्षा िै। आप सभी से एक मित्वपर्ष अनुरोध िै कक आप अपने शोध प्रपि तनम्न प्रारूप क े ििि िी प्रस्िुि करें श्जससे कक िमें िकनीकी जहिलिाओं का सामना न करना पड़े -
  • 11. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 x 1.प्रकाशन िेिु आपकी रचना क े मौसलक िोने का स्वतः सत्यापन रचना प्रेवर्ि करिे समय "मौसलकिा प्रमार् पि" पर िस्िाक्षर करना अतनवायष िै। इसक े त्रबना रचना पर ववचार करना संभव निीं िोगा 2. रचना किीं पर भी पवष में प्रकासशि निीं िोनी चाहिए ! 3. आपकी रचनाएूँ एम.एस. ऑकफस में टाइप होना चाहहए 4. फोंि - कृ छतदेव 10, मूंगल यछनकोड 5. रचनाओूं क े साथ अपना पर्ण पता, मोबाइल नूंबर, ईमेल तथा पासपोटण साइज की फोटो लगाना अपेक्षित है ! 6. आप लेख, कववता, कहानी, ककसी भी ववधा में रचनाएूँ भेज सकते हैँ ! नई गँज रचनाओं क े प्रेर्र् सम्बंगधि तनयम व शिे : एक से अधधक रचनायें एक ही वडण-डॉक्यमेंट में भेजें। रचनायें अपने पूंजीकृ त पेज पर हदए गए ललूंक इस्तेमाल कर प्रेवित करें। यहद आप हहूंदी में टाइप करना नहीूं जानते हैं, आप गगल द्वारा उपलब्ध करवायी गयी ललप्यान्तरर् सेवा का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसक े ललए Google इनपुट उपकरर् ललूंक पर जाएूँ। स-आभार संपादक मंडल Note:- प्रत्येक रचना लेखक की स्वयं मौसलक िथा सलखखि िै! इसमें लेखक क े स्वयं क े ववचार िैं िथा कोई िुहि िोने पर लेखक स्वयं श्जम्मेदार िोगा!
  • 12. अनुक्रमाणिका क्रम संख्या णििरणिका लेखक पृष्ठ संख्या लेख – 1 बदले पररिेश में गांधी और गांधीिाद डॉ घनश्याम बादल 1 – 3 2 प्रणिकूल पररणथिणि और दृढ़ इच्छाशणि बृजेश कुमार 4 – 7 3 जो कभी संभि न हो सका डॉ णशिा धमेजा 8 - 10 कणििा 4 बढ़िी ठंड णप्रया देिांगन 11 5 रौदनाद णगरेंद्र भदौररया 12 – 17 6 प्रकृणि डॉक्टर अददिी भारद्वाज 18 – 19 कहानी 7 कानून का डंडा और िदी रमेश मनोहरा 20 - 21 दोहे 8 हमीद के दोहे हमीदकानपुरी 22 लघु किा 9 स्नेहा की जीि णप्रया देिांगन 23 - 24
  • 13. नारी िुम अबला नहीं सबला हो 10 धाय मााँ गोरा टाक 26 – 27 णनबंध 11 समान नागररक संणहिा 28 - 31 12 ऐणिहाणसक थिल एक नजर गागरोन का दुगग (राज.) 32 - 34 13 साक्षात्कार- 2022 में आरजेएस बनी -दाणमनी 35 - 38
  • 14. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 1 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE डॉ घनश्याम बादल करमचंद ग ंधी, ब पू, र ष्ट्रपपत और आम आदमी क े लिए लिर् फ ग ंधी ज ने व िे 21 वी िदी क े चमत्क र पुरुष म ने गए ग ंधीआज भी बहुत म यने रखते हैं । म यने तो वह देश क े लिए भी रखते हैं मगर बदिे हुए पररवेश में अब ग ंधी श यद वह ज्योततपुंज य नहीं रहे जजनिे भ रत न म क यह देश म गफदशफन एवं रोशनी प कर चित थ । 70 ि ि तक इि देश को चि ने व िे ग ंधीव दी दि की जैिी दुगफतत हो रही है उिक अिर ग ंधी की छपव पर भी हुआ है । ह ि ंकक ग ंधी ने आज दी क े तुरंत ब द ही कह ददय थ कक अब क ंग्रेि क स्वतंत्र भ रत में कोई ख ि रोि नहीं होन च दहए और उन्होंने क ंग्रेि क े पविजफन की इच्छ व्यक्त की थी । िेककन त त्क लिक पररजस्थततयों में िंभवतः है न तो यह व्यवह ररक थ और नहीं उि िमय क े क ंग्रेिी नेत ऐि होने देने में अपन कोई ि भ देख रहे थे इिलिए क ंग्रेि बनी रही । क ंग्रेिबनी ही नहीं रही अपपतु दृढ़त क े ि थ स्व धीनत आंदोिन में ककए गए बलिद नों क श्रेय िेते हुए िंबे िमय तक ित्त रूढ़ रही । जब तक नेहरू देश क े प्रध नमंत्री रहे तब तक क ंग्रेि क कोई पवकल्प देश को न ददख , न िूझ । श स्त्री जी क े छोटे िे क यफक ि में भी कॉन्ग्रेि देश क े लिए अपररह यफ रही । इिक े ब द पररवतफन क दौर शुरू हुआ और नेहरु की पुत्री इंददर ग ंधी ने कम न िंभ िी । ह ि ंकक तब वह क ंग्रेि की वररष्ट्ठतम नेत नहीं थीं और उनिे ऊपर क े प यद न पर क मत और मोर रजी देि ई जैिे कई नेत थे िेककन नेहरू ग ंधी पररव र क े प्रतत तनष्ट्ठ क े चिते हुए इंददर ग ंधी प्रध नमंत्री बनीं । बि, यही िे ग ंधीव दी दशफन भी मनम ने ढंग िे अपन य एवं प्रस्तुत ककय ज ने िग । इंददर ग ंधी गजब की वक्त थी, उनक े व्यजक्तत्व में भी जबरदस्त आकषफण थ , उनकी भ षण शैिी और आम आदमी में उनक े प्रतत आकषफण क े चिते हुए 1971 में उन्होंने ग ंधीव दी मोहनदास
  • 15. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 2 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE अदहंिक िोच िे हटते हुए अपने र जनीततक र् यदे क े लिए प ककस्त न क पवभ जन करव य और उिक े िह रे 1972 में चुन व जीतकर पुनः ित्त रूढ़ हुई । 1975 में आप तक ि िग य और 1977 में ित्त िे ब हर होकर 1980 में कर्र व पि आईं िेककन जजि तरह इंददर ने अदहंि एवं िोकतंत्र क मज क उड य थ श यद उिी क े चिते 1984 में उन्हें अपनी ज न भी गंव नी पडी । तब िे िेकर आज तक गंग -जमुन में जजतन प नी बह है श यद उििे भी ज्य द पररवतफन ग ंधी दशफन, ग ंधीव दी पवच र ग ंधी की र ष्ट्र की अवध रण ग ंधीव दी र जनीतत, ित्त िे पवतृष्ट्ण क े भ व, ि द जीवन उच्च पवच र की आदशफव दी परंपर भी क ि क े ि थ ज ती ददख ई दी य नी ि र्गोई क े ि थ कहें तो अब ग ंधी क े वि मुखौट म त्र रह गए थे । ग ंधी क े प्रतत आम आदमी की श्रद्ध को चुन वों क े िमय जमकर भुन य ज त रह िेककन व्यवह ररक एवं र जनीततक जीवन में ग ंधी कहीं नहीं थे । जजिक े पररण म स्वरूप देश में भ ई भतीज व द, पक्षप त, ज ततव द, िंप्रद यव द, िंकीणफ पवच रध र , क्षेत्रीयत व द जैिे अनेक ऐिे तत्व घुि आए जजन्होंने एक तरह िे ग ंधी एवं ग ंधीव द क गि घोटने में कोई किर ब की नहीं छोडी । कह िकते हैं कक 1948 में ग ंधी जी की मृत्यु क े महज 20 - 22 ि ि ब द ही दहंदुस्त न न म क यह देश क े वि ददख वे क े लिए ग ंधीव दी देश थ । यथ थफ में यह ं पर पूंजीव द ह वी हो चुक थ और पूंजीव द क े पीछे भ्रष्ट्ट च र क द नव िर् े दपोश बनकर खड हुआ थ । यह क ि भिे ही भौततक प्रगतत क े दहि ब िे खर ब न रह हो मगर यदद एक पुनर विोकन ककय ज ए तो स्पष्ट्ट ददखेग की नैततक पतन क दौर यहीं िे शुरू हुआ और एक ऐिी ब ढ़ यह ं पर आई जजिमें िच, न्य य, अदहंि , दय , करुण आदद क े लिए कोई ख ि जगह नहीं बची । पवदेशों िे वस्तुओं क प्रव ह भ रत में जबरदस्त बढ़ य नी ग ंधी क े स्वदेशी क े िपने को खंड खंड कर ददय गय । ह ि ंकक औद्योगगक क् ंतत, हररतक् ंतत एवं श्वेतक् ंतत देश की जरूरत थी मगर क ु टीर उद्योगों क े नीचे की ज़मीन बहुत ही तरीक े क े ि थ पजश्चमी देशों क े इश रे पर खींच िी गई । क मग र मज़दूर, छोटे कमफच री िब अब बडे-बडे क रख नों और उद्योगपततयों क े गुि म बनकर रह गए । ग ंधी क क ु टीर उद्योग क िपन िगभग पूरी तरह धर श ई हो गय । रही िही कमी लशक्ष में हुए अन प-शन प पररवतफनों ने पूरी कर दी।
  • 16. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 3 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE चररत्र तनम फण व नैततक मूल्य तथ भ रत की ि ंस्कृ ततक धरोहर एवं परंपर एं तथ बुतनय दी लशक्ष क लिद्ध ंत एकदम त्य ग ददय गय । अब ऐि भी नहीं है कक यह ि री ब तें इंददर क ि में ही हुई यें आज भी ज री हैं । भिे ही र ष्ट्रव द एवं र ष्ट्रव दी िरक र क मुिम्म चढ़ ए नय दि ित्त में आय और पपछिे िगभग एक दशक िे िग त र ित्त में है इििे पहिे भी टुकडों में करीब 7 ि ि र ष्ट्रव दी िरक र रही मगर ग ंधीव दी मूल्य व पि नहीं आए । न ही अब उनक े व पि िौटने की कोई उम्मीद भी है । ग ंधी अब एक प्रक र िे करीब-करीब क िप र अथ फत एक्िप यर होने की कग र पर हैं । हर ग ंधी जयंती पर ग ंधी क े बुतों पर म ल्य पफण होत है चखे चि ए ज ते हैं र जघ ट और ब पू की िम गध पर िवफ धमफ प्र थफन एं की ज ती हैं िेककन आज हम जजि दौर में जी रहे हैं वह ं िवफ धमफ िमभ व खतरे में ददख ई दे रह है । आज इि देश क े दोनों प्रमुख िमुद यों क े िोग िग त र कठोर एवं कट्टर होते ददख इ पड रहे हैं य नी दहंदुस्त न की आत्म अब बदि रही है । अब ग ंधी क े म यने क्य हैं इिे िमझन और भी मुजश्कि हो गय है और िगत है कक आने व िे िमय में पररवतफन आंधी में ग ंधी को और भी भुि ददय ज ए तो अचरज न करें। र जनीततक पवश्िेषकों म नन है यदद क ंग्रेि ने धर ति िे जुड कर जनत क िमथफन ह लिि नहीं ककय तो आने व िे िमय में ग ंधी ने जो क ंग्रेि की पविजफन की ब त कही थी वह आज क ंग्रेि की पीठ पर िव र पररव र क े द्व र पूरी की ज ती ददख ई दे रही है । अस्तु कॉन्ग्रेि रहे, न रहे यह अिग ब त है मगर बदिते हुए पररवेश में ग ंधी और भी ज्य द िमीचीन और जरुरी हो ज एंगे इिमें दो र य नहीं है । ह ं, उनकी नीततयों एवं दशफनों की व्य ख्य नए तरीक े िे की ज िकती है जो श यद िमय की जरूरत भी है। ग ंधी व ददयों को भी यह गचंतन करन होग कक ग ंधी क े ककन पवच रों को क ि की किौटी पर कि कर आगे बढ़ न है और ककन नीततयों को छोडकर आगे बढ़न है ।
  • 17. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 4 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE बृजेश क ु मार इस संसार में मनुष्य जीवन में सुख दुुःख का आना स्वाभाववक है| सुख दुुःख का जोड़ा है | व्यक्ति क े जीतन में सुख भी आिा है औऱ दुुःख भी | इस संसार में ऐसा कोई भी व्यक्ति नह ं है क्जसने खुशशयों क े साथ मािम ना देखा हो| यह सुख दुुःख की पररभाषा क े वल मनुष्य जीवन क े शलए नह ं है| अवपिु इस संसार में प्रत्येक जीव क्जसने जन्म शलया है, क े जीवन में सुख दुुःख का आना ननक्श्िि है | ज़ब यह बाि है कक जीवन में सुख औऱ दुुःख दोनों का ह भोग करना है िो दुुःख से अधिक दुुःखी तयों हुआ जाये| दुुःख सुख मनुष्य जीवन क े साथ, ज़ब िक प्राण हैं िब िक दुख सुुःख है| क्जस मनुष्य में दुखो को सहन करने की शक्ति आ जािी है | वह ववपर ि से ववपर ि पररक्स्थनि में भी घबरािा नह ं है औऱ अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से मुकाबला करिा है|
  • 18. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 5 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE वह मनुष्य संसार में सुखी समझा जािा है | रववन्र नाथ टैगोर अपनी कवविा वरदान में कहिे हैं :- हे प्रभु ! ि मुझे दुखों से छ ु ड़ा, ये प्राथथना लेकर मैं, िेरे दर पर नह ं आया, ि मुझे दुखों को सहन करने की शक्ति दे दे, किर िाहे ककिने भी दुुःख मुझे दें दे| मलक दास ने बहुि अच्छा कहा है – जै दुुःखखया संसार में, खोदो निनका दुुःख, दशलदार सौंप मलक को, लोगन द जे सुख| हे प्रभु !सारे संसार का दुुःख मुझे दे दो, औऱ मेरे जीवन क े सारे सुख संसार पर वार दो | यदद हम अपने जीवन में छोटा सा काम करना िाहिे हैं िो अनेकों आपनियों का सामना करना पड़िा है | यदद हम आपनियों का सामना करने में सक्षम हैं िो जीि ननक्श्िि है| आपने देखा होगा कक बहुि मनुष्य अपने जीवन में कोई काम करने क े शलए िैयार ह नह ं होिे |वह सोििे हैँ कक इस से दुखों से बि जायेंगे| ऐसे मनुष्य जीवन में कभी भी प्रगनि औऱ उन्ननि नह ं कर सकिे| उनका जीवन कीड़े मकोड़े क े समान है औऱ क ु छ भी नह ं| मनुष्य की दृढ़ इच्छाशक्ति की पर क्षा िो प्रनिकल पररक्स्थनि में ह होिी है|
  • 19. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 6 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE ववपर ि पररक्स्थनि को देखकर वविशलि होने का स्वभाव मनुष्य का है, लेककन जो िैयथ से इनका सामना करिे हैँ औऱ ववपर ि पररक्स्थनि को अपने अनुकल बना लेिे हैं | ऐसे व्यक्तियों को महापुरुष की संज्ञा द जािी हैं | अगर हम इनिहास को उठा कर देखिे हैं कक महापुरुषों ने ककिनी- ककिनी ववपर ि पररक्स्थनियों में अपने िैयथ को नह ं त्यागा औऱ प्रसंिा पवथक उनको स्वीकार ककया औऱ अपने जीवन का दहस्सा मानकर प्रारब्ि ककया | ऐसे क ु छ उदाहरण आपक े सामने रखिे हैं 1. महाराणा प्रिाप घास की रोट खा कर मािृभशम क े शलए लड़िे रहें लेककन उन्होंने मुगलों की दास्िां स्वीकार नह ं की | 2. महाभारि में पांडवो ने वनवास को स्वीकार ककया जबकक वे िाहिे िो कौरवों क े दास बनकर अपना जीवन व्यिीि कर सकिे थे | ककन्िु उन्होंने ऐसा ना करक े वनवास स्वीकार ककया, यह उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति का ह पररणाम था | 3. राजा हररश्िन्र राज्य लोभ से अपने विनों से नह ं किरे | बक्कक डोम क े घर जाकर पानी भरने का काम करने लगे | औऱ अपनी पक्त्न को भी बच्िे का दाह संस्कार करने से रोक ददया | 4. राजा शशवव ने यदद शर र क े कटने क े दुुःख से दुुःखी होकर कबिर को बाज़ क े शलए दे ददया होिा िो उनका नाम आज कौन जानिा | 5. वन में सीिा का हरण होने पर, राम ननराश नह ं हुए बक्कक वानर जानि क े लोगों को इकठ्ठा कर रावण क े राज्य में ईंट से ईंट बजा द | 6. गुरु गोववन्द शसंह ने अपने िारों बेटों का बशलदान दे ददया लेककन अपने पथ से िननक भी वविशलि नह ं हुए| ऐसे अनेकों उदहारण से इनिहास भरे पड़े हैं, ये भी असंख्य मनुष्यों की भांनि काल क े गाल में समा जािे लेककन आज भी इनका नाम ज्यों का त्यों जीववि है | इसका एक मात्र कारण है उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति|
  • 20. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 7 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE आज हम देखिे हैँ कक मनुष्य छोट छोट मुक्श्कलें सामने आने पर अपना मानशसक संिुलन खो बैठिा है, आज क्स्थनि यह है कक व्यक्ति मुसीबि का सामना िथा मुसीबि से बाहर ननकलने क े रास्िे खोजने की अपेक्षा अपना अमकय समय िथा शक्ति को घबराने में खिथ करिा है | अब तया होगा ? तया करुूँ ?कहाूँ जाऊ ं ? ऐसा सोि कर रोने क े शसवाय अपनी मानशसक क्स्थनि को ख़राब कर लेिा है | औऱ छोट छोट मुसीबि का पहाड़ बना देिा है|| अगर व्यक्ति में िैयथ है िो वह बड़ी बड़ी मुसीबि को आसानी से पार कर जािा है | ऐसा इस संसार में कोई भी जीव नह ं है | क्जस पर मुसीबि नह ं आिी है|| उनमें से क ु छ िो मुसीबिों से घबरा कर हार मान लेिे हैँ | औऱ क ु छ लोग उन मुसीबिों से जीवन में नयी उजाथ का संिार करिे हैं औऱ उनकी िरतकी का रास्िा मुसीबिों से ननकलिा है| औऱ दृढ़ इच्छा शक्ति क े कारण मंक्ज़ल को पा लेिे हैँ वववेकी औऱ अवववेकी की दोनों को ज़रा, मृत्यु औऱ व्यधियां होिीं हैँ परन्िु ज्ञानवान व्यक्ति अपने कमथ का भोग समझकर दृढ़िा क े साथ सहन करिा है, औऱ मखथ वविल होकर ववपनियों को औऱ बढ़ा लेिा है|
  • 21. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 8 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE जो कभी संभव नह ं डॉ शशवा िमेजा तया है वो ? पुरुषाथथ से, मेहनि से, इच्छाशक्ति से, दृढ़ ननश्िय से ऐसा तया है जो संभव नह ं.....ऐसा तया है जो पाया नह ं जा सकिा ? तया उत्तर है आपका ? सब संभव है !अगर शशद्दि से मेहनि की जाये िो आप अपनी िकद र बदल सकिे हैँ लेककन ऐसा एक कायथ है क्जस पर कभी कोई ववजय ना पा सका| वो कायथ है बीिे समय क़ो वावपस लें आना...समय बीिा मिलब बीि गया | एक बार क्जस समय क़ो घड़ी बीिा िुकी ठीक उसी समय, ददन, वार क़ो कभी कोई वावपस न ला सका | िो तया कोई संशय है आपको कक इस िरिी पर जन्म लेने क े बाद जो सबसे अमकय शमला है.. मािा – वपिा क े बाद वो समय क े शसवाय क ु छ नह ं| क्जन्होंने इन अमकय का मकय समझ शलया ये पर दुननया किर उनका मकय समझ लेिी हैँ | समय क़ो अमकय मानने वाले खुद अनमोल बन जािे हैँ तयोंकक ऐसा व्यक्ति क्जसे इस सत्य का
  • 22. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 9 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE बोि है वह समय की एक -एक बूँद क़ो खिथ करिे समय बहुि सोि वविार करेगा और समय क़ो व्यथथ कभी जाने नह ं देगा| समय क े रूप में क्जसे आप खिथ कर रहें होिे हैँ उसे जीवन कहिे हैँ.... बीि जाने वाला समय जीवन क़ो घटािा जा रहा है.... और हम िरह -िरह से खुद क़ो िृक्ति देने क े उद्देश्य से खेलना, बािें करना, मवीज देखना ,ननंदा करना.... आदद आदद करिे रहिे हैँ| काम क े काम पर हमार प्रनिकिया ऐसी होिी है – करिे हैँ अभी थोड़ी देर में, कल पतका , ये कर लेंगे | अभी जकद तया है, टाइम पड़ा है | टाइम क े वल िल रहा है, सरज की िरह | उसने पीछे मुड़कर देखना नह ं सीखा | समय का महत्व हम बिपन से इसे पढ़िे आ रहें हैँ – छोटे होिे हैँ िो एक बार िो इस ववषय पर ननबंि जरूर शलखा होगा हम सबने ,लेककन बिपन का वो पाठ बड़े होिे -होिे हम भल जािे हैँ| ऐसा तयों ? स्कल में हम समय क़ो इिना नह ं गवांिे ,क्जिना बड़े होकर गवािे हैँ| लेककन िब िक हमार बुद्धि इिनी पररपतव नह ं होिी, क्जिनी हम जैसे- जैसे बड़े होिे हैँ िो होिी िल जािी है| िो किर ऐसा तयों कक बड़े होने पर हम समय का मोल उिना नह ं समझ पािे.... तयोंकक बिपन में हमें स्कल का काम समय पर ना करने पर डांट पड़िी थी, ट िर की मज़ी सज़ा भी दे सकिी थीं| बड़े हो गए िो हम खुद क े माशलक खुद बन गए | हम अपनी मज़ी से सब क ु छ करने क़ो हमार आज़ाद कहने लगे | हमें हमार गलनियों पर ना ट िर क ु छ बोल सकिी है, ना मािा वपिा| िो समय क़ो नष्ट करक े , हमने खुद क े साथ जो ककया वो न्याय नह ं, अन्याय होिा है | खुद क़ो काब में ऱखना गलि नह ं, सह होिा है | सह कायथ मज़बर से नह ं, ख़ुशी से ककये जािे हैँ | अब िंकक हमें ककसी की डांट नह ं शमलनी िो हम ककसी भी कायथ क़ो कभी िक भी टालने लगे और समय का महत्व भलने लगे|
  • 23. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 10 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE कई- कई महापुरुषों ने हमें िेिाया है, समय क े महत्व क़ो सुन्दर शब्दों में िो कभी कड़े शब्दों में समझाया है|
  • 24. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 11 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE वप्रया देवांगन क ै सा ये मौसम है आया, कभी िप सूँग होिी छाूँव। बैठे बबस्िर में है सारे, नह ं िरा पर रखिे पाूँव।। दठठुर रहे हैं लोग यहाूँ पर, ककटककट करिे सब क े दाूँि। इक दजे को करे इशारे, नह ं ननकलिी मुूँह से बाि।। िेज सयथ की ककरणें आिीं, शमलिी है ऊजाथ भरपर।। िौराहे पर बैठे बैठे, ठंडी को करिे हैं दर।। स्वेटर मिलर िन को भाये, स्पशथ नह ं करिे हैं नीर। छोटे बच्िे रोिे रहिे, तया ठंडी में होिी पीर।। बादल में छ ु प जािा सरज, और पवन की बहिी िार। दुबक े मानव घर क े अंदर, काम काज से माने हार।। बहुि बढ़ है ठंड िरा पर, थोड़ा कम कर दो भगवान। देह बि थ सी जमिी जािी, कह ं ननकल ना जाये प्राण।।
  • 25. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 12 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE धगरेंर शसंह भदौररया पाखण्ड खक्ण्डनी कवविे ! िावपक राग जगा दे ि। सारा कलुष सोख ले सरज, ऐसी आग लगा दे ि।। कवविा सुनने आने वाले, हर श्रोिा का वन्दन है। लेककन उससे पहले सबसे, मेरा एक ननवेदन है।। आज मािुर घोल शब्द क े , रस में न िो डुबोऊ ूँ गा। न मैं नाज नखरों से उपजी, मीठी कथा वपरोऊ ूँ गा।। न िो निमुखी अशभवादन की, भाषा आज अिर पर है। न ह अलंकारों से सक्ज्जि, माला मेरे स्वर पर है।। न मैं शशष्टिावश जीवन की, जीि भुनाने वाला हूँ। न मैं भशमका बाूँि बाूँि कर, गीि सुनाने वाला हूँ।। आज िुहलबाक्ज़याूँ नह ं, दुन्दुभी बजाऊ ूँ गा सुन लो।। मृत्यु राज की गाज काल भैरवी सुनाऊ ूँ गा सुन लो।। आज हृदय की िति बीधथयों, में भीषण गमाथहट है। तयोंकक देश पर दृक्ष्ट गड़ाए, अरर की आगि आहट है।। इसीशलए कक थ श कठोर वाणी का यह ननष्पादन है। हे
  • 26. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 13 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE सुति रति को खौलाने का, आज ववकट सम्पादन है।। कटे पंख सा वववश पररन्दा, मन क े भीिर क्जन्दा है। क ु छ लोगों क े कारण भारि, बुर िरह शशमथन्दा है।। क्जिना खिरा नह ं देश को, दुश्मन क े हधथयारों से। उससे ज्यादा भय लगिा है, नछपे हुए गद्दारों से।। ये इिने मिलब परस्ि हैं, िर लें िन की पेट को। बदले में धगरबी रख सकिे, हैं माूँ बीवी बेट को। दाूँव लगे िो िरा िाम, पररवेश बेि सकिे हैं ये। क्षखणक स्वाथथ क े शलए स्वगथ सा, देश बेि सकिे हैं ये।। जाससों की ठण्ड घटाने को, शसगड़ी रख देिे ये। गुस्िाखों की भख शमटाने को, रबड़ी रख देिे ये।। देशरोदहयों क े मुख में मुगी िगड़ी रख देिे ये। जयिन्दों क े अशभनन्दन में, झट पगड़ी रख देिे ये।। क्जनकी सोि समझ पर क ु ण्ठा, क े जाले पड़ जािे हों। राष्र गीि गािे ह अिरों पर िाले पड़ जािे हों।। क्जनकी शतल देखिे रोट , क े लाले पड़ जािे हों । कौओं की तया कहूँ कबिर, िक काले पड़ जािे हों।।
  • 27. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 14 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE क्जनको अन्िर नह ं सझिा, पापड़ और पहाड़ों में। कौन शक्ति बलबिी सोििे,भों भों और दहाड़ों में।। उनकी धिन्िा नह ं मुझे वे, सुनें या कक अनसुना करें। बैठें या किर िले जाूँय, घर पर जाकर शसर िुना करें।। वह रहे नर नाहर क्जसमें, सुनने का दम गुदाथ हो। वरना िला जाय मजमें से, क्जन्दा हो या मुदाथ हो।। मैं आया हूँ वीरों की रग रग में रोश जगाने को। कायर में ह नह ं नपुंसक, िक में जोश जगाने को। इिना है ववश्वास कापुरुष, सुन लें मेर वाणी को। ननश्िय ह िलवार उठा लेंगे कर में ककयाणी को।। मेर आग भर वाणी से, दहक उठेगी यह दुननया। ज्वालाएूँ बरसेंगी मुख से, ििक उठेगी यह दुननया।। क्जन लपटों की लपक देख, थराथिी लोहे की छािी। वपघल वपघल कर मोम सर खी, पानी पानी हो जािी।। उसी आग की धिनगार को, बबछा रहा हूँ डग डग में। कोशशश है भर दूँगा बाूँक े , वीरों की मैं रग रग में।।
  • 28. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 15 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE मैं छन्दों में ढाल िुका हूँ, लावा ज्वालामुखखयों का। जबरदस्ि आह्वान ककया है, योद्िा सरजमुखखयों का।। दहम्मि हो िो ह िुम सुनना, वरना जाना भाग कह ं। कवविा सुनने क े ितकर में, लगा न लेना आग कह ं।। छोटे मुंँूँह से बड़ी बाि बेशक िुमको िुटक ु ला लगे। या आए इस सुति काल में, प्रलयंकर ज़लज़ला लगे।। मेर कवविा िुम को िाहे, कला लगे या बला लगे। यह भारि का रौर नाद है, बुरा लगे या भला लगे।। कपट मन क े पेट ददथ की, जड़ी हमारे पास नह ं। छमन्िर कर देने वाल , छड़ी हमारे पास नह ं।। िलिा समय रोक ले ऐसी, घड़ी हमारे पास नह ं। िाल भर छल ववद्या छोट बड़ी, हमारे पास नह ं।। इसीशलए इस शेष सभा को, काज बिाने आया हूँ। मैं यौवन क े स्वणथ काल का, राज बिाने आया हूँ।। िुम तया हो िुम तयों आये हो ? तया करना मालम नह ं। क ै से जीना िुम्हें और क ै से मरना मालम नह ं।। इसीशलए इस ज्ञान खण्ड की शशक्षा, बहुि जरूर है।
  • 29. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 16 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE जन्म शलया क्जस भ पर उसकी, रक्षा बहुि जरूर है।। हे बशलवीरो! उठो सुनो िुम जो िाहो कर सकिे हो। मात्र आत्म बल क े बल पर िन में पौरुष भर सकिे हो।। िुम्हें ककसी अदृश्य शक्ति ने जो सामर्थयथ परोसा है। क्जस क े बल पर मािृभशम को िुम पर अटल भरोसा है।। जब िक िुम हो िब िक िय है, दुश्मन सिल नह ं होगा। जीव जन्िु तया जड़ िेिन का, जीवन ववकल नह ं होगा।। िुम िाहो िो कण कथीर क े , क ं िन कोदहनर कर दो। िट्टानों को दबा दबा कर, कर से िर- िर कर दो।। पलक खोलिे ह पल में, पाषाण वपघलने लग जाएूँ। एक ि ूँ क में आूँिी तया, ििान मिलने लग जाएूँ।। पाूँव पटकिे ह पानी की, िार िरा से िट पड़े। िुम िाहो िो इन्र बज्र सा, साहस अरर पर टट पड़े।। आत्मबल वीरों को ककं धिि, भय न ककसी खाूँ का होिा। बीि बैररयों क े लड़िे हैं, बाल नह ं बाूँका होिा।। शसर पर किन बाूँि कर िलना, व्रि होिा रणिीरों का। िभी साथ शमलिा ििानी, आंँूँिी और समीरों का।।
  • 30. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 17 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE राष्र यज्ञ में प्राणाहुनि से, बड़ा और बशलदान नह ं। इससे बढ़कर कीनिथकाम का, कोई भी सम्मान नह ं।। राबत्र घनी है जंग ठनी है, द पक बनकर जलना है। अूँधियारों क े बीि बैठकर, मुख से आग उगलना है।। सुन लो राष्् प्रेम क े धिन्िन, का मन्िव्य समझिे जो। मािृभशम की सेवा को, पहला किथव्य समझिे जो।। उनसे ह कह सकिा हूँ मैं, मरने शमटने जीने की। दुश्मन से लोहा लेने की, छक कर पीयष पीने की।। वीरों को मन से प्रणाम है, मेरा बस इिना कहना। दुश्मन घाि लगाकर बैठे हैं, िुम िौकन्ने रहना।। आज नह ं िो कल इन हालािों से पाला पड़ना है। हमें युद्ि दोगलों और, दुश्मन दोनों से लड़ना है।। इसीशलए हर प्रहर कमर पर काल बाूँि कदटबद्ि रहो। तया जाने कब बैर कर दे, हमला िुम सन्नद्ि रहो।।
  • 31. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 18 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE अब भी वति है… ए मानुष। गुनाह िो क ु छ हुए जरूर हैं प्रकृ नि मां जो आज रूठी सी है यं ह नह ं रूठिी जननी अपनी जान से क ु छ िो अपेक्षाएं टट सी हैं । िरिी से जन्मा इंसान शमट्ट ह बन जािा है भक ं प हो या ििवाि उसक े पाप याद ददलािा है जहां ऋिुएं कहिी थीं खुदा यह ं कह ं आसपास है वह आसमां आज जिािा उसक े िोि का एहसास है ि-ि कर जल रहे सब वन यह बिािे हैं प्रकृ नि की नैमिों को हम क ै से जा ा़ र जा ा़ र कर जािे हैं
  • 32. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 19 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE जो शीिल करिी थी वह पवन ििान बन िुकी है थपेड़े हो या शीिलहर हर रूप में िन उठी है वसुिा अश्रु िारा को ननजथल है मखथ करिा रहा सखने लगे जब आंस िरा क े तयासा तयासा किरिा रहा पंिित्व ननशमथि ए देह अब त्रादहमाम तयों कहिी है पांिों ित्व हैं रुष्ट िुझसे पररक्स्थनि यह कहिी है अक्षम्य है जरूर अपराि यह िेरे िहं ओर मौि की िादर बबखर सी है हे मानुष गुनाह िो क ु छ हुए जरूर है िुझसे प्रकृ नि मां जो आज रूठी सी है । अददनि भारद्वाज
  • 33. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 20 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE कानन का डंडा और वदी रमेश मनोहरा हेड साहब इस िौराहे पर अपनी सेवाये दे रहे थे. मुंह में बीडी ठंस रखी है. कोई वाहन गलि साइड से जािा है. सीट बजाकर सिेि करिे है. इिने पर भी यदद वाहन वाला नह ं समझिा है. िब अपने हाथ में शलए कानन क े डंडे का जमकर इस्िेमाल करिे है. और उस पर अपनी खाकी वदी का रौब भी ददखािे है. जनिा भी उनसे नह ं, उनकी खाकी वदी से भयभीि रहिी है. तयों कक खाकी वदी में कई कानन नछपे है. बक्कक य कहें क ु छ कानन िो इन्ह ं क े द्वारा बनाए गये है. हेडसाब का डंडा भले ह छोटा था. मगर इसमें कानन की कई ध र एं समादहि थी. ककसको ककस िारा में क े स बनाना है. कानन का ये डंडा और वदी अच्छी िरह जानिी है. अिुः जो भी वाहन उस िौराहे से गुजरिा है. अधिकांश उनसे नज़र बिाकर िुपिाप ननकल जािे थे. जो उनकी नज़र में पकड़ा जािा था. पहले िो वह उस पर डंडा पेल देिा था. किर िालान बना देिा था. अब आप उनका काम जानेंगे. नाम उनका शेर शसंह है. अिुः शेर जैसी बड़ी - बड़ी मुछे है उनकी जब ककसी वाहन वाले पर वे गुस्सा करिे, िब मुंह क े साथ उनकी मछे भी बोलिी थी. जब जनिा को मालम है. आज शेरशसंह की ड्यट िलाने िौराहे पर लगी है. िब वे इस िौराहे पर आिे ह नह ं तयोंकक कई वाहन का उन्होंने यािायाि का पालन करिे हुए भी िालान काट ददये. हॉ कोई िधिथि नेिा अथवा गुंडा उिर से गुजरिा है, उनक े सम्मान में साविान की मुरा में खड़ा होकर सम्मान देिे है. जब पुशलस अधिकार उिर से गुजरिे है. िब उनको सलाम ठोंकिा है िब वह अधिकार गाड़ी रोककर कहिा है. शेरशसंह ड्यट बराबर दे रहे हो ? “हॉ साहब, आपका आशीवाद है. आपका आशीवाद बना रहे. ड्यट क े मामले में मैं क ं जसी नह ं करिा ह साहब, ईमानदार से नौकर करिा ह.” “ठीक है--- ठीक है.” अनसुना करिा हुआ, वो अधिकार बोला- “साहब, इस बार मेरा प्रमोशन हो जायेगा.” आखखर अपने लालि की बाि शेर शसंह ने जब कह द . िब गुस्से से पुशलस अधिकार बोला - िुम्हार बहुि शशकायिे आ रह है. आम जनिा को बहुि परेशान करिे हो. बेवजह िालान काट देिे हो ?
  • 34. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 21 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE “नह ं साहब ये सब झठी शशकायिें है. जो यािायाि का पालन नह ं करिे है न उनका ह िालान बनािा ह. हेडसाब शेर शसंह ने अपनी सिाई में जब यह कहॉ िब पुशलस अधिकार कहॉ - ड्यट दो प्रमोशन जब होगा िब हो जायेगा. और पुशलस अधिकार ने अपनी गाड़ी स्टाटथ कर द .” शेरशसह अपने अधिकार की यह बाि सुनकर भीिर गुस्सा आिा है. प्रमोशन की आशा में वो ड्यट देकर अधिकार का मन जीिना िाहिा है. मगर हर बार उसकी ड्यट को नकार देिा है. िब आम जनिा पर उसका डंडा और वदी का रौप और िलने लगिा है. जब एक गाड़ी वाला गलि रास्िें से ननकल गया. िब उन्होंने सीट बजाकर रोकने का प्रयास ककया. िब िक वह वह िेज रफ्िार से भाग गया. उन्हें उस पर बहुि गुस्सा आया. जैसे ह हेड साहब पीछे मुड़े. एक िेज रफ्िार युवक जो गाड़ी िेज िला रहा था. हेड साहब क े पास आकर ब्रेक लगाकर गाड़ी रोकी, िब उस युवक पर गुस्से से अपना डंडा बरसािे हुए कहॉ - अंिे कह ं क े गलि साइड से गाड़ी िला रहा है. अभी िालान बनािा ह िेरा ? “मगर साहब, मैं िो सह साइड से िल रहा था.” उस युवक ने कहॉ - किर भी आपने मुझे डंडा तयो मारा ? “िुप बे साले, जुबान लड़ािा है, वो भी वदी से. एक िो गलि साइड से िेज रफ्िार से गाड़ी िला रहा था. अंिा कह ं का.” “अंिा मैं नह ं आप है. जो दाये - बाये भी आपको नह ं ददख रहा है.” “तया कहॉ मुझे अंिा कहॉ ?--- िल िालान काटिा ह. िल थाने.” “क्यों िल थाने, मैं यािायाि क े ननयम का पालन करिे हुए जा रहा था ?” “सीिे माजने से िलिा है की नह ं ?” अभी हेड साहब यह बाि कह रहे थे कक युवक गाड़ी स्टाटथ कर िुका, िलिी गाड़ी से कहॉ - िले मेर जिी. और क्षणभर में ह वो युवक हवा हो गया. शेरशसंह अपना िोि ददखािे रहे.
  • 35. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 22 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE हमीद कानपुर नफ़रि को शमलिा नह ं, एक भी खर दार। किर तयूँ िलिा िलिा,नफ़रि कारोबार। इससे रहकर बेख़बर, कहिा तया संसार। क्षमिाओं को हर घड़ी, देना है ववस्िार। ननजी क्ज़न्दगी में कभी, डालो मि व्यविान। सब को दो सम्मान यदद, पाना है सम्मान। पर क्षमिा से सदा, कररये हर इक काम। थकान जब आने लगे, कररये िब आराम। क ु दरि ने सबको ददया, इक ववशशष्ट उपहार। दुननया में है ह नह ं, कोई भी बेकार।
  • 36. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 23 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE वप्रया देवांगन बतफन म ाँजती हुई स्नेह को जब पत चि कक उिकी ि ि उिे न क े वि घूर रही है, बजल्क तंज किते क ु छ िख्त शब्द छोड रही है ; स्नेह िे नहीं रह गय । ह थ धोकर तुरंत उठी। बोिी- “म ाँ जी आपको हमेश मेरी ही गिती नजर आती है क्य ? जब देखो गैरों की तरह हर ब त पर मुझे त ने म रती रहती हो।“ स्नेह आग बबूि हो गयी। कह ही रही थी- “वैिे भी आपक े बेटे क व्यवह र मेरे प्रतत ठीक नहीं है; अब आप भी....!” कहते हुए स्नेह अपने कमरे में चिी गयी। स्नेह अपनी ककस्मत को कोिने िगी। उिकी लिर् फ इतनी ही गिती थी कक वो एक गरीब घर की बेटी थी, जो हमेश िच्च ई क ि थ देती थी। जब उिे क ु छ गित िगत तो बोि देती थी। क ु छ देर ब द िुलमत घर आय । तभी स्नेह की ि ि श्य म िुलमत क े ि मने मगरमच्छ क े आाँिू बह ने िगी। िुलमत िे रह नहीं गय । पूछ - “म ाँ आप रो क्यों रही हैं। क्य हुआ म ाँ, बत इये तो ?” श्य म ने अपनी गिती पर पद फ ड िते हुए स्नेह को ही दोषी ठहर य । िुलमत की त्यौरी चढ़ गयी। बोि - “स्नेह , तुम्ह री इतनी दहम्मत कक तुमने मेरी म ाँ को रूि ददय ।“ जोर-जोर िे आव ज िग ई- “स्नेह ... स्नेह ... तू कह ाँ मर गयी। ब हर तनकि। जर इधर तो आ।“ स्नेह दौडते हुए कमरे िे ब हर आयी। िुलमत ने आव देख न त व। उिने स्नेह क े ग ि पर एक तम च जड ददय । स्नेह की आाँखों क े ि मने अाँधेर छ गय । इधर श्य म पीछे िे मुस्क ु र रही थी। उिक े किेजे को थोडी ठंडक लमिी। उिे िग कक स्नेह एक अबि न री की
  • 37. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 24 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE तरह है; क ु छ नहीं कर प येगी। िब बद फश्त कर िेगी। िेककन अब बहुत हो चुक थ । स्नेह भी ह र म नने व िों में िे नहीं थी। उिने अपने आिप ि क े िोगों को बुि य । िबक े ि मने चीख- चीख कर बोिी- “क्य यही है एक न री क अििी जीवन। क्य पुरुषों क े शोषण में कमी आ गयी कक अब न री ही न री क शोषण कर रही है। कभी दहेज क े लिए तो, कभी म ाँ-ब प पर ऊ ाँ गिी उठ कर। अरे आज एक न री दूिरी न री क ददफ नहीं िमझ प रही है, ऐिे न री जीवन को गधक्क र है। बहू और बेटी में भेद करते हैं। नौकर नी की तरह रखते हैं। क्य वह कभी ककिी की बहू नहीं थी ? क्य उनकी अपनी बेटी नहीं होती ? आज मेरे ि थ ऐि व्यवह र ककय ज रह है; जजिे देख कर कि कोई और ककिी क े ि थ करेंगे।“ िब क े ि मने स्नेह अपनी ि ि िे पूछने िगी- “म ाँ जी, क्य िच्च ई क ि थ देन गित ब त है ? मेरे म ाँ-ब प को कोिने िे क्य लमित है आपको ? अगर कोई आपकी बेटी क े ि थ ऐि करेंगे तो आपको अच्छ िगेग ? आपक े ह ाँ में ह ाँ बोिू तभी मैं अच्छी बहू बनूाँगी ? इकट्ठे हुए िोग भी स्नेह क ि थ देने िगे। वे िुलमत और श्य म को िमझ ने िगे। उन्हें अपनी गिती क एहि ि होने िग । दोनों ने बैठक में एकत्रत्रत िोगों क े िमक्ष स्नेह िे म र्ी म ाँगे। स्नेह की आत्म को ठेि तो पहुाँची थी; कर्र भी उिने दोनों म ाँ-बेटे को म र् कर ददय ।
  • 38. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 25 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE िाय माूँ गोरा टांक जस्थान की बशलदानी भशम को अगखणि वीर- वीरांगनाओ ने इस शमट्ट को अपने खन से सींिा है, इसमें कोई दो राय नह ं है | अगर इनिहास की बाि करें िो अपने बच्िे को मािृभशम की रक्षा क े शलए बशलदान करने वाल मां पन्ना िाय का नाम सवथप्रथम शलया जािा है | लेककन इसी ह मरुभशम में एक और िाय माूँ ‘गोरा टांक’ भी हुई है | क्जसने मां पन्ना की िरह अपने पुत्र को राजगद्द क े शलए न्योछावर कर ददया | सन 1678 ई. में मारवाड़ पर महाराजा जसवंिशसंह का शासन था | उस समय ददकल क े िख्ि पर औरंगजेब का शासन था | महाराज जसवंि शसंह औरंगजेब की ओर से काबुल गए हुए थे| उनक े साथ मारवाड़ी वीर दुगाथदास, अन्य सहयोगी, ववश्वसनीय िाय माूँ गोरा टांक िथा उनकी राननयां भी थी | र
  • 39. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 26 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE लेककन एक दुखद घटना ऐसी घट कक 28 नवंबर 1678 ई. को महाराजा जसवंि शसंह का देहांि हो गया | इस घटना क े बाद मारवाड़ी वीर िथा उनक े साथी और गभथविी राननयां सदहि लाहौर आ गये | क ु छ समय पश्िाि महाराज जसवंि शसंह की राननयां जादम जी िथा रानी नरूकी ने 19 िरवर 1679 को पुत्रों को जन्म ददया | रानी जादम जी क े पुत्र का नाम अजीि शसंह िथा रानी नरुकी क े पुत्र का नाम थूँबन था | इनकी देखभाल करने क े शलए ‘ गोरा टांक’ को ननयुति ककया गया | इसक े बाद औरंगजेब क े द्वारा इन्हें लाहौर से मारवाड़ी वीरो सदहि राननयों को ददकल बुला शलया गया | क ु छ सतिाह पश्िाि दल थंबन की मृत्यु हो गई | और मारवाड़ी वीरों ने महाराजा अजीि शसंह को मारवाड़ का उत्तराधिकार घोवषि करने क े शलए औरंगजेब से आग्रह ककया | लेककन औरंगजेब की ननयि में खोट होने क े कारण उन्होंने अपने सैननकों को आदेश देकर पर हवेल को घेर शलया, जहां पर मारवाड़ी वीर िथा अजीि शसंह थे | मारवाड़ी वीर दुगाथ दास िथा उसक े सहयोगी की सझबझ से महाराजा अजीि शसंह को ददकल से मारवाड़ ले जाने की योजना बनाई गई | क्जसक े शलए गोरा टांक को महाराजा अजीि शसंह को सक ु शल ददकल की हवेल से बाहर ननकालने का कायथ ददया गया| गोरा टाक ने सिाई वाल का भेष बनाकर, शसर पर टोकरे में महाराजा अजीि शसंह को शलटाकर हवेल से बहार ले आई | बाहर सपेरे क े भेष में खड़े मुक ुं ददास खींिी को महाराजा अजीि शसंह को दे ददया | और मुक ुं ददास महाराजा अजीि शसंह को ददकल से मारवाड़ ले आया | इिर गोरा टांक ने अपने पुत्र को महाराजा अजीि शसंह क े कपड़े पहना कर लेटा ददया | महाराजा अजीि शसंह का लालन-पालन गोरा टांक क े द्वारा ककया गया | उिर औरंगजेब क े सामने गोरा टांक क े बेटे को ददखाया गया जोकक 1688 ईस्वी में तलेग महामार की िपेट में आकर मृत्यु को प्राति हो गया | इनिहास में मां पन्ना क े बशलदान को पुनुः गोरा टाक ने दोहराया | उसका यह बशलदान मारवाड़ की राजगद्द क े प्रनि किथव्य ननष्ठा व स्वाशभमान को दशाथिा है कक क्जसने अपने दि मुहे बच्िे को काल क े गाल में समादहि कर ददया | 20 मई 1704 को गोरा टांक क े पनि की मृत्यु होने पर, गोरा टाक ने अपने पनि क े साथ अक्नन स्नान कर शलया | उनकी याद में महाराजा अजीिशसंह ने 6 खंभों की छिर बनवाई | गोरा टांक का यह बशलदान मारवाड़ क े इनिहास में स्वणथ अक्षरों से शलखा गया |
  • 40. नयी गूँज WEBSITE- nayigoonj.com Email address - goonjnayi@gmail.com WHATSAPP NO. 91-9785837924 27 NAYI GOONJ – SHODH, SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE समान नागररक संदहिा समान नागररक संदहिा अथाथि ् - एक देश एक ननयम - ये ऐसे ननयम है क्जसे सभी िाशमथक समुदायों पर लाग ककया जाना िादहए | संवविान क े अनुच्छेद 44 क े भाग 4 में को वखणथि ककया गया है | भारिीय संवविान का अनुच्छेद 44 कहिा है - राज्य भारि क े परे क्षेत्र में नागररकों क े शलए एक समान नागररक संदहिा सुरहक्षि करने का प्रयास करेगा यानी संवविान द्वारा सरकार को यह ननदेश ददया गया है कक वह सभी समुदायों को उन मामलों पर एक साथ लाने का ननदेश दे रहा है, उनक े संबंधिि व्यक्तिगि काननों द्वारा शाशसि है | हालांकक संवविान का अनुच्छेद 77 यह स्पष्ट करिा है कक राज्य क े नीनि ननदेशक ित्व ककसी भी अदालि क े द्वारा लाग करने योनय नह ं होंगे | किर भी वे देश क े शासन में मौशलक हैं |