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इच्छा मृत्यु / दया मृत्यु
• 1 मृत्यु शैया पर पडे असाध्य रोग से पीडडत व्यजतत द्वारा या उनक
े ररश्तेदारों,
शुभधचंतकों द्वारा मृत्यु की गुहार लगाना क्मशः इच्छा मृत्यु यह दया मृत्यु कहलाता है
।
• 2 भारतीय दंि संहहता 1860 की धारा 309 क
े अनुसार , स्वयं व्यजतत द्वारा अपनी
मृत्युका प्रयास करना, आत्महत्या क
े प्रयास का अपराध है। जजसक
े ललए 1 विच का
कारावास की सजा का प्रावधान है।
• 3 नीदरलैंि, बेजल्जयम, स्वीटजरलैंि लग्जमबगच एवं अमेररका क
े 3 राज्यों- वॉलशंगटन,
ओरेगन और मोनटेना में इच्छा मृत्यु को अनुमनत प्रदान कर दी गई है ।
• 4 इच्छा मृत्यु क
े कई स्वरूप है
• एजतटव यूथेननलसया
• पैलसव यूथेननलसया
• वॉलंटरी एजतटव यूथेनेलसया
• इंवॉलंटरी एजतटव यूथेनेलसया
• 5 अरुणा शानबाग मामले में माननीय सवोच्च न्यायालय ने अपने ननणचय (माचच 2011)
में पैलसव यूथेनेलसया की अनुमनत कनतपय पररजस्थनतयों एवं शतों क
े अधीन हदए जाने क
े
संक
े त हदए हैं ।
• 6 भारतीय ववधध आयोग की लसफाररशों क
े मद्देनजर अब भारत में भी ऐसे बबरले मामलों
में जब व्यजतत जीवन, पररवार - समाज पर बोझ बन जाए , तो ऐसी जस्थनत में इच्छा
मृत्यु एवं दया मृत्यु अनुमनत देने संबंधी ववधान होना चाहहए ।
इच्छा मृत्यु या दया मृत्यु वतचमान में ऐसे समाजजक- वैधाननक मुद्दे हैं जो हमारे संवैधाननक अधधकार, भारतीय
दंि संहहता माननीय सवोच्च न्यायालय क
े ननणचयों क
े बीच चधचचत रहे हैं। मृत्यु मानव जीवन का अंनतम कडवा
सच है। लेककन हाल ही में चधचचत इच्छा - मृत्यु की अवधारणा एक वैधाननक, सामाजजक, सांस्कृ नतक, धालमचक
एवं राजनीनतक वववाद, मंथन एवं का वविय रहा है । जहां तक इच्छा- मृत्यु की वैधाननकता का प्रश्न है , तो इसे
हम प्राण एवं चेतना क
े अधधकार से जोड कर देख सकते हैं। इस प्राण और चेतना पर ककसका अधधकार हो ?
व्यजतत का
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या राज्य का, यहीं से वववाद शुरू होता है। जो लोग प्राण एवं चेतना पर व्यजततगत अधधकार क
े हामी हैं। वे
इच्छा मृत्यु का समथचन करते हैं और जो इस पर राज्य क
े अधधकार की बात करते हैं वे इच्छा मृत्यु क
े प्रबल
ववरोधी हैं।
इच्छा मृत्यु का आंग्ल में युथेनेलसया कहा जाता है जो मूलतः यूनानी (ग्रीक) शदद
( यू+थोनोतोस) है, जजसका अथच - अच्छी या सहज मौत होता है । दया मृत्यु एवं इच्छा- मृत्यु मूल रूप से एक
समान अवधारणाएाँ हैं। मसी ककललंग को ही ग्रीक में यूथेनेलसया कहते हैं। लेककन क
ु छ ववद्वान इन क
े अलग-
अलग अथच ननकालते हैं । जब कोई असाध्य रोग से पीडडत व्यजतत अपने ललए स्वयं मृत्यु मांगता है, तो इसे
इच्छा मृत्यु कहते हैं । जबकक ककसी अन्य व्यजतत (ररश्तेदार या शुभधचंतक) द्वारा उस मरीज क
े ललए मृत्यु की
गुहार लगाना, दया मृत्यु कहलाता है ।
भारत में इच्छा- मृत्यु एवं दया -मृत्यु दोनों अवैधाननक है । तयोंकक स्वयं अपनी मृत्यु का प्रयास करना,
आत्महत्या का प्रयास कहलाता है जो भारतीय दंि संहहता की धारा 309 क
े तहत दंिनीय अपराध है। ऐसे
अपराध क
े ललए धारा 309 आई.पी.सी में 1 विच तक साधारण कारावास या जुमाचना या दोनों की सजा का
प्रावधान है । लेककन नीदरलैंि, बेजल्जयम, स्वीटजरलैंि, लतजमबगच, ओबाननया और अमेररका की 3 राज्यों-
वालशंगटन, ओरेगन एवं मोंटेना में इच्छा मृत्यु को वैधाननक मान्यता प्रदान कर दी गई है। हमारे माननीय
उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में
अरुणा रामचंद्रन शानबाग नसच क
े मामलों में अप्रत्यक्ष रूप से क
ु छ प्रनतबंध लगाते हुए ननजष्ट्क्य इच्छामृत्यु
अथाचत्( पैलसव यूथेनेलसया) क
े रूप में इच्छा मृत्यु की वैधाननकता क
े दरवाजे खोल हदए हैं ।
इच्छा मृत्यु क
े संदभच में हमारे इनतहास एवं पौराखणक दृष्ट्टांतों पर नजर िालना आवश्यक है । महाभारत काल में
गंगा पुत्र भीष्ट्म वपतामह की इच्छा -मृत्यु, महविच दधीधच का अजस्थदान , जैन धमच में मोक्ष प्राजप्त हेतु संथारा
परंपरा इत्याहद उदाहरण व्यजतत क
े प्राण, चेतना एवं मृत्यु पर व्यजततगत अधधकारों को मान्यता देते हैं ।
संभवतया मृत्यु को जीवन पर ववजय क
े रूप में देखा गया है , तभी तो बाइबबल में मृत्यु को मधुर समाधध क
े रूप
में महहमा मंडित ककया गया है।
मखणपुर की सामाजजक कायचकताच इरोम शलमचला आम्िच फोसेज (स्पेशल पावसच) एतट 1958 क
े ववरोध में 2 नवंबर
2000 से भूख हडताल पर हैं। शलमचला को आत्महत्या क
े प्रयास में अपराध मे बार- बार धगरफ्तार कर न्यानयक
हहरासत में भेज हदया जाता है। उल्लेखनीय है कक ववधध आयोग में अपनी 210 वीं ररपोटच में भारतीय दंि संहहता
की धारा 309 (आत्महत्या का प्रयास) को अवववेक पूणच मानकर समाप्त करने की संस्तुनत की है ।
न्यायमूनतच माक
ं िे्य काटजू एवं न्यायमूनतच ज्ञान सुधा लमश्रा की खंिपीठ ने अरुणा शान बाग नसच क
े मामले में,
यद्यवप उसकी दया मृत्यु याधचका को खाररज कर हदया लेककन , मृत हदमाग एवं जजंदा लाश की जस्थनत में बाई
ओमीशन द्वारा पैलसव यूथेनेलसया को मान्यता प्रदान की है।
माननीय उच्चतम न्यायालय का ननणचय हमारी ववधध- व्यवस्था में सजग मानवीय चेतना का एक उज्ज्वल
प्रमाण है । सकक्य इच्छा मृत्यु (एजतटव यूथेनेलसया) में मरीज को इंजेतशन लगा कर या अन्य तरीक
े से
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धचककत्सकों की मौजूदगी में मौत दी जाती है । यह मरीज या उसक
े ननकट संबंधी की इच्छा पर दी जाती है ।
इसक
े दुरुपयोग की संभावनाओं से इनकार नहीं ककया जा सकता है, जबकक पैलसव यूथेनेलसया में जीववत रहने
की संभावना न बचने पर मरीज से जीवन रक्षक प्रणाली हटा कर प्राकृ नतक तरीक़
े से उसकी जल्दी मृत्यु का मागच
प्रशस्त ककया जाता है ।
इच्छा मृत्यु क
े कई स्वरूप हैं ।
इनमें से प्रमुख स्वरूप ननम्नललखखत हैं -
1 एजतटव यूथेनेलसया - इसमें कोई औिधध या जहर देकर रोगी क
े कष्ट्ट को दूर कर, उसे मृत्यु क
े द्वार तक
पहुंचाया जाता है ।
2 पैलसव यूथेनेलसया - इसक
े अंतगचत रोगी का इलाज बंद करने क
े साथ जीवन रक्षक प्रणाललयााँ हटा दी जाती हैं।
3 वॉलंटरी एजतटव यूथेनेलसया- रोगी की स्वीकृ नत क
े बाद उसे मृत्यु कारक औिधधयााँ दी जाती हैं। यह
बेजल्जयम एवं नीदरलैंि में मान्य है ।
4 इनवॉलंटरी एजतटव यूथेनेलसया - मरीज क
े मानलसक रूप से असमथच होने पर अनैजच्छक रूप से मृत्यु कारक
औिधधयााँ दीं जाती हैं। यह प्रायः सभी देशों में अमान्य है ।
माननीय उच्चतम न्यायालय क
े अनुसार संसद द्वारा कानून बनाए.जाने तक पैलसव यूथेनेलसया की प्रकक्या
उच्च न्यायालयों.की ननगरानी में चलती रहेगी । इच्छा मृत्यु की मांग मरीजों क
े हहत में है या नहीं , इस पर
ववचार करने क
े बाद उच्च न्यायालय ननणचय देगा। उच्च न्यायालय तथा तीन धचककत्सकों तथा सरकार एवं
मरीज क
े ननकट संबंधधयों की राय जानने क
े पश्चात, युजतत युतत रूप से अप्रत्यक्ष इच्छा मृत्यु की अनुमनत दी
जाए अथवा नहीं, इसका ननणचय करेगा ।
इच्छा मृत्यु पर मुख्य रूप से दो ववचार प्रचललत हैं –
• प्रथम , इच्छा मृत्यु क
े ववरोधी जो जीवन को ईश्वर की सुंदर सौगात मानते हैं और इसे
छीनने का अधधकार मनुष्ट्य को नहीं देते।
• द्ववतीय, प्राण एवं दैहहक जीवन क
े मूल अधधकार में इच्छा - मृत्यु क
े अधधकार को भी
मूलभूत अधधकारों की श्रेणी में शालमल मानते हैं । ये मरणासन्न जजंदा लाश पररवार, समाज
एवं देश पर बोझ समझते हैं । तयोंकक इनका जीवन नक
च हो जाता है ।
इच्छा मृत्यु पर असहमनत जताने वालों का मत है कक हमारे देश में सेवा भाव की प्रधानता रही है। पीडडत एवं
बीमार व्यजतत की अंनतम सांस तक सेवा करनी चाहहए। समाज शाजस्त्रयों का मत है कक लोगों की जीवन- रक्षा
राज्य का दानयत्व है । वह ककसी को मारने का फ
ै सला क
ै से ले सकता है ? ववधध में , नैनतकता में एवं सामाजजक -
सांस्कृ नतक मानकों में इसे तय करने का कोई ननजश्चत प्रनतमान नहीं है ।
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अतः इच्छा मृत्यु की वैधाननक मान्यता से पूवच कानूनी ,.नैनतक, सामाजजक, मानवीय मानवशास्त्रीय इत्याहद
सभी पहलुओं को ध्यान में रखा जाए। ऐसे उपाय सुननजश्चत की जाएं कक इसक
े दुरुपयोग की संभावना न रहे।
आज क
े भौनतकवादी आधुननक युग में भ्रष्ट्टाचार- अराजकता क
े साथ पाररवाररक- ववघटन एवं बुजुगों की उपेक्षा
का चलन ब़िा है। पररवाररक एवं घरेलू हहंसा क
े साथ -साथ वृद्धों की संपजत्त हडपने क
े मामले रोज सामने आ रहे
हैं । ऐसी जस्थनत में इच्छा- मृत्यु को वैधाननक मान्यता लमलने पर इसे हधथयार बनाकर इसक
े दुरूपयोग से
जस्थनत अत्यंत भयावह, ववकराल एवं दुष्ट्पररणाम वाली होगी। अतः इस अनतसंवेदनशील मुद्दे पर राष्ट्रीय बहस
एवं व्यापक ववमशच क
े बाद कानून बनाया जाए । ऑस्रेललया पहला देश था जजसने 1995 में इच्छा मृत्यु को
आनन- फानन में अनुमनत दी । और दुरुपयोग क
े पश्चात्दो सालों में ही उसे वापस लेना पडा।
इच्छा- मृत्यु क
े पक्षधरों की दलील है कक प्राण और चेतना पर व्यजतत क
े अधधकार को वरीयता देनी चाहहए ।
जजंदगी जब बोझ बन जाए और उसे उठा पाना मुमककन ना हो तो पररवारजन इसे िोने में तमाम तकलीफ उठाएं
तो ऐसी जस्थनत में मरीज क
े कष्ट्ट को देखते हुए इच्छा मृत्यु की अनुमनत देने में कोई बुराई नहीं है । धचककत्सा
भािा में इसे ऐसा व्यजतत वेजजटेहटव जस्थनत में आ जाता है जो जजंदा लाश की तरह होता है । ऐसी जस्थनत में
स्वयं और उसक
े सभी शुभधचंतक ईश्वर से उसकी मृत्यु की कामना करने लगते हैं । इस अवस्था में इच्छा मृत्यु
या दया मृत्यु मुजतत का मागच प्रशस्त करती है । ऐसे मरीज क
े अंग दूसरे मरीजों क
े काम आ सकते हैं । इच्छा
मृत्यु क
े कानून का दुरुपयोग होने की दलील लचर है, तयोंकक कानून में ऐसे सेफगार्डचस हदए जा सकते हैं ।
भारतीय ववधध आयोग ने भी.अपनी 126 वीं ररपोटच में यह लसफाररश की है कक जो व्यजतत असाध्य रोग से पीडडत
है, जजसकी ज्ञानेंहद्रयां शून्य हो चुकी हैं, ऐसे में उसे इच्छा - मृत्यु की इजाजत न देना उसक
े .और पररवार जनों
क
े साथ क्
ू रता होगी । इसीललए इच्छा मृत्यु को वैधाननक जामा पहनाने की आवश्यकता है । शायद बोझल
जीवन क
े ऐसे हालात क
े बारे में कफराक गोरखपुरी ने यह मौजूं शेर ललखा है-
मौत का इलाज हो शायद,
जजंदगी का कोई इलाज नहीं
अतः इस संदभच में यह ध्यान में रखते हुए कक इच्छा मृत्यु एवं दया मृत्यु ननजी स्वाथों को साधने का हधथयार ना
बने , इसे वैधाननक ठहराने वाले कानूनों की समीक्षा करते हुए लागू ककया जाना चाहहए। इच्छा मृत्यु पर कानून
का ननमाचण बडी सावधानी , सजगता, सतक
च ता, व्यापक ववमशच एवं ववश्लेिण क
े बाद ककया जाना चाहहए ।
तयोंकक आज इच्छा मृत्यु पर सैद्धांनतक तौर पर तो कमोबेश सहमनत है , लेककन इसक
े दुरुपयोग की आशंका से
सभी धचंनतत हैं । अतः इस अनत सिंवेदनशी मुद्दे पर आम सहमनत की दरकार है।

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  • 1. 6 इच्छा मृत्यु / दया मृत्यु • 1 मृत्यु शैया पर पडे असाध्य रोग से पीडडत व्यजतत द्वारा या उनक े ररश्तेदारों, शुभधचंतकों द्वारा मृत्यु की गुहार लगाना क्मशः इच्छा मृत्यु यह दया मृत्यु कहलाता है । • 2 भारतीय दंि संहहता 1860 की धारा 309 क े अनुसार , स्वयं व्यजतत द्वारा अपनी मृत्युका प्रयास करना, आत्महत्या क े प्रयास का अपराध है। जजसक े ललए 1 विच का कारावास की सजा का प्रावधान है। • 3 नीदरलैंि, बेजल्जयम, स्वीटजरलैंि लग्जमबगच एवं अमेररका क े 3 राज्यों- वॉलशंगटन, ओरेगन और मोनटेना में इच्छा मृत्यु को अनुमनत प्रदान कर दी गई है । • 4 इच्छा मृत्यु क े कई स्वरूप है • एजतटव यूथेननलसया • पैलसव यूथेननलसया • वॉलंटरी एजतटव यूथेनेलसया • इंवॉलंटरी एजतटव यूथेनेलसया • 5 अरुणा शानबाग मामले में माननीय सवोच्च न्यायालय ने अपने ननणचय (माचच 2011) में पैलसव यूथेनेलसया की अनुमनत कनतपय पररजस्थनतयों एवं शतों क े अधीन हदए जाने क े संक े त हदए हैं । • 6 भारतीय ववधध आयोग की लसफाररशों क े मद्देनजर अब भारत में भी ऐसे बबरले मामलों में जब व्यजतत जीवन, पररवार - समाज पर बोझ बन जाए , तो ऐसी जस्थनत में इच्छा मृत्यु एवं दया मृत्यु अनुमनत देने संबंधी ववधान होना चाहहए । इच्छा मृत्यु या दया मृत्यु वतचमान में ऐसे समाजजक- वैधाननक मुद्दे हैं जो हमारे संवैधाननक अधधकार, भारतीय दंि संहहता माननीय सवोच्च न्यायालय क े ननणचयों क े बीच चधचचत रहे हैं। मृत्यु मानव जीवन का अंनतम कडवा सच है। लेककन हाल ही में चधचचत इच्छा - मृत्यु की अवधारणा एक वैधाननक, सामाजजक, सांस्कृ नतक, धालमचक एवं राजनीनतक वववाद, मंथन एवं का वविय रहा है । जहां तक इच्छा- मृत्यु की वैधाननकता का प्रश्न है , तो इसे हम प्राण एवं चेतना क े अधधकार से जोड कर देख सकते हैं। इस प्राण और चेतना पर ककसका अधधकार हो ? व्यजतत का
  • 2. 7 या राज्य का, यहीं से वववाद शुरू होता है। जो लोग प्राण एवं चेतना पर व्यजततगत अधधकार क े हामी हैं। वे इच्छा मृत्यु का समथचन करते हैं और जो इस पर राज्य क े अधधकार की बात करते हैं वे इच्छा मृत्यु क े प्रबल ववरोधी हैं। इच्छा मृत्यु का आंग्ल में युथेनेलसया कहा जाता है जो मूलतः यूनानी (ग्रीक) शदद ( यू+थोनोतोस) है, जजसका अथच - अच्छी या सहज मौत होता है । दया मृत्यु एवं इच्छा- मृत्यु मूल रूप से एक समान अवधारणाएाँ हैं। मसी ककललंग को ही ग्रीक में यूथेनेलसया कहते हैं। लेककन क ु छ ववद्वान इन क े अलग- अलग अथच ननकालते हैं । जब कोई असाध्य रोग से पीडडत व्यजतत अपने ललए स्वयं मृत्यु मांगता है, तो इसे इच्छा मृत्यु कहते हैं । जबकक ककसी अन्य व्यजतत (ररश्तेदार या शुभधचंतक) द्वारा उस मरीज क े ललए मृत्यु की गुहार लगाना, दया मृत्यु कहलाता है । भारत में इच्छा- मृत्यु एवं दया -मृत्यु दोनों अवैधाननक है । तयोंकक स्वयं अपनी मृत्यु का प्रयास करना, आत्महत्या का प्रयास कहलाता है जो भारतीय दंि संहहता की धारा 309 क े तहत दंिनीय अपराध है। ऐसे अपराध क े ललए धारा 309 आई.पी.सी में 1 विच तक साधारण कारावास या जुमाचना या दोनों की सजा का प्रावधान है । लेककन नीदरलैंि, बेजल्जयम, स्वीटजरलैंि, लतजमबगच, ओबाननया और अमेररका की 3 राज्यों- वालशंगटन, ओरेगन एवं मोंटेना में इच्छा मृत्यु को वैधाननक मान्यता प्रदान कर दी गई है। हमारे माननीय उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में अरुणा रामचंद्रन शानबाग नसच क े मामलों में अप्रत्यक्ष रूप से क ु छ प्रनतबंध लगाते हुए ननजष्ट्क्य इच्छामृत्यु अथाचत्( पैलसव यूथेनेलसया) क े रूप में इच्छा मृत्यु की वैधाननकता क े दरवाजे खोल हदए हैं । इच्छा मृत्यु क े संदभच में हमारे इनतहास एवं पौराखणक दृष्ट्टांतों पर नजर िालना आवश्यक है । महाभारत काल में गंगा पुत्र भीष्ट्म वपतामह की इच्छा -मृत्यु, महविच दधीधच का अजस्थदान , जैन धमच में मोक्ष प्राजप्त हेतु संथारा परंपरा इत्याहद उदाहरण व्यजतत क े प्राण, चेतना एवं मृत्यु पर व्यजततगत अधधकारों को मान्यता देते हैं । संभवतया मृत्यु को जीवन पर ववजय क े रूप में देखा गया है , तभी तो बाइबबल में मृत्यु को मधुर समाधध क े रूप में महहमा मंडित ककया गया है। मखणपुर की सामाजजक कायचकताच इरोम शलमचला आम्िच फोसेज (स्पेशल पावसच) एतट 1958 क े ववरोध में 2 नवंबर 2000 से भूख हडताल पर हैं। शलमचला को आत्महत्या क े प्रयास में अपराध मे बार- बार धगरफ्तार कर न्यानयक हहरासत में भेज हदया जाता है। उल्लेखनीय है कक ववधध आयोग में अपनी 210 वीं ररपोटच में भारतीय दंि संहहता की धारा 309 (आत्महत्या का प्रयास) को अवववेक पूणच मानकर समाप्त करने की संस्तुनत की है । न्यायमूनतच माक ं िे्य काटजू एवं न्यायमूनतच ज्ञान सुधा लमश्रा की खंिपीठ ने अरुणा शान बाग नसच क े मामले में, यद्यवप उसकी दया मृत्यु याधचका को खाररज कर हदया लेककन , मृत हदमाग एवं जजंदा लाश की जस्थनत में बाई ओमीशन द्वारा पैलसव यूथेनेलसया को मान्यता प्रदान की है। माननीय उच्चतम न्यायालय का ननणचय हमारी ववधध- व्यवस्था में सजग मानवीय चेतना का एक उज्ज्वल प्रमाण है । सकक्य इच्छा मृत्यु (एजतटव यूथेनेलसया) में मरीज को इंजेतशन लगा कर या अन्य तरीक े से
  • 3. 8 धचककत्सकों की मौजूदगी में मौत दी जाती है । यह मरीज या उसक े ननकट संबंधी की इच्छा पर दी जाती है । इसक े दुरुपयोग की संभावनाओं से इनकार नहीं ककया जा सकता है, जबकक पैलसव यूथेनेलसया में जीववत रहने की संभावना न बचने पर मरीज से जीवन रक्षक प्रणाली हटा कर प्राकृ नतक तरीक़ े से उसकी जल्दी मृत्यु का मागच प्रशस्त ककया जाता है । इच्छा मृत्यु क े कई स्वरूप हैं । इनमें से प्रमुख स्वरूप ननम्नललखखत हैं - 1 एजतटव यूथेनेलसया - इसमें कोई औिधध या जहर देकर रोगी क े कष्ट्ट को दूर कर, उसे मृत्यु क े द्वार तक पहुंचाया जाता है । 2 पैलसव यूथेनेलसया - इसक े अंतगचत रोगी का इलाज बंद करने क े साथ जीवन रक्षक प्रणाललयााँ हटा दी जाती हैं। 3 वॉलंटरी एजतटव यूथेनेलसया- रोगी की स्वीकृ नत क े बाद उसे मृत्यु कारक औिधधयााँ दी जाती हैं। यह बेजल्जयम एवं नीदरलैंि में मान्य है । 4 इनवॉलंटरी एजतटव यूथेनेलसया - मरीज क े मानलसक रूप से असमथच होने पर अनैजच्छक रूप से मृत्यु कारक औिधधयााँ दीं जाती हैं। यह प्रायः सभी देशों में अमान्य है । माननीय उच्चतम न्यायालय क े अनुसार संसद द्वारा कानून बनाए.जाने तक पैलसव यूथेनेलसया की प्रकक्या उच्च न्यायालयों.की ननगरानी में चलती रहेगी । इच्छा मृत्यु की मांग मरीजों क े हहत में है या नहीं , इस पर ववचार करने क े बाद उच्च न्यायालय ननणचय देगा। उच्च न्यायालय तथा तीन धचककत्सकों तथा सरकार एवं मरीज क े ननकट संबंधधयों की राय जानने क े पश्चात, युजतत युतत रूप से अप्रत्यक्ष इच्छा मृत्यु की अनुमनत दी जाए अथवा नहीं, इसका ननणचय करेगा । इच्छा मृत्यु पर मुख्य रूप से दो ववचार प्रचललत हैं – • प्रथम , इच्छा मृत्यु क े ववरोधी जो जीवन को ईश्वर की सुंदर सौगात मानते हैं और इसे छीनने का अधधकार मनुष्ट्य को नहीं देते। • द्ववतीय, प्राण एवं दैहहक जीवन क े मूल अधधकार में इच्छा - मृत्यु क े अधधकार को भी मूलभूत अधधकारों की श्रेणी में शालमल मानते हैं । ये मरणासन्न जजंदा लाश पररवार, समाज एवं देश पर बोझ समझते हैं । तयोंकक इनका जीवन नक च हो जाता है । इच्छा मृत्यु पर असहमनत जताने वालों का मत है कक हमारे देश में सेवा भाव की प्रधानता रही है। पीडडत एवं बीमार व्यजतत की अंनतम सांस तक सेवा करनी चाहहए। समाज शाजस्त्रयों का मत है कक लोगों की जीवन- रक्षा राज्य का दानयत्व है । वह ककसी को मारने का फ ै सला क ै से ले सकता है ? ववधध में , नैनतकता में एवं सामाजजक - सांस्कृ नतक मानकों में इसे तय करने का कोई ननजश्चत प्रनतमान नहीं है ।
  • 4. 9 अतः इच्छा मृत्यु की वैधाननक मान्यता से पूवच कानूनी ,.नैनतक, सामाजजक, मानवीय मानवशास्त्रीय इत्याहद सभी पहलुओं को ध्यान में रखा जाए। ऐसे उपाय सुननजश्चत की जाएं कक इसक े दुरुपयोग की संभावना न रहे। आज क े भौनतकवादी आधुननक युग में भ्रष्ट्टाचार- अराजकता क े साथ पाररवाररक- ववघटन एवं बुजुगों की उपेक्षा का चलन ब़िा है। पररवाररक एवं घरेलू हहंसा क े साथ -साथ वृद्धों की संपजत्त हडपने क े मामले रोज सामने आ रहे हैं । ऐसी जस्थनत में इच्छा- मृत्यु को वैधाननक मान्यता लमलने पर इसे हधथयार बनाकर इसक े दुरूपयोग से जस्थनत अत्यंत भयावह, ववकराल एवं दुष्ट्पररणाम वाली होगी। अतः इस अनतसंवेदनशील मुद्दे पर राष्ट्रीय बहस एवं व्यापक ववमशच क े बाद कानून बनाया जाए । ऑस्रेललया पहला देश था जजसने 1995 में इच्छा मृत्यु को आनन- फानन में अनुमनत दी । और दुरुपयोग क े पश्चात्दो सालों में ही उसे वापस लेना पडा। इच्छा- मृत्यु क े पक्षधरों की दलील है कक प्राण और चेतना पर व्यजतत क े अधधकार को वरीयता देनी चाहहए । जजंदगी जब बोझ बन जाए और उसे उठा पाना मुमककन ना हो तो पररवारजन इसे िोने में तमाम तकलीफ उठाएं तो ऐसी जस्थनत में मरीज क े कष्ट्ट को देखते हुए इच्छा मृत्यु की अनुमनत देने में कोई बुराई नहीं है । धचककत्सा भािा में इसे ऐसा व्यजतत वेजजटेहटव जस्थनत में आ जाता है जो जजंदा लाश की तरह होता है । ऐसी जस्थनत में स्वयं और उसक े सभी शुभधचंतक ईश्वर से उसकी मृत्यु की कामना करने लगते हैं । इस अवस्था में इच्छा मृत्यु या दया मृत्यु मुजतत का मागच प्रशस्त करती है । ऐसे मरीज क े अंग दूसरे मरीजों क े काम आ सकते हैं । इच्छा मृत्यु क े कानून का दुरुपयोग होने की दलील लचर है, तयोंकक कानून में ऐसे सेफगार्डचस हदए जा सकते हैं । भारतीय ववधध आयोग ने भी.अपनी 126 वीं ररपोटच में यह लसफाररश की है कक जो व्यजतत असाध्य रोग से पीडडत है, जजसकी ज्ञानेंहद्रयां शून्य हो चुकी हैं, ऐसे में उसे इच्छा - मृत्यु की इजाजत न देना उसक े .और पररवार जनों क े साथ क् ू रता होगी । इसीललए इच्छा मृत्यु को वैधाननक जामा पहनाने की आवश्यकता है । शायद बोझल जीवन क े ऐसे हालात क े बारे में कफराक गोरखपुरी ने यह मौजूं शेर ललखा है- मौत का इलाज हो शायद, जजंदगी का कोई इलाज नहीं अतः इस संदभच में यह ध्यान में रखते हुए कक इच्छा मृत्यु एवं दया मृत्यु ननजी स्वाथों को साधने का हधथयार ना बने , इसे वैधाननक ठहराने वाले कानूनों की समीक्षा करते हुए लागू ककया जाना चाहहए। इच्छा मृत्यु पर कानून का ननमाचण बडी सावधानी , सजगता, सतक च ता, व्यापक ववमशच एवं ववश्लेिण क े बाद ककया जाना चाहहए । तयोंकक आज इच्छा मृत्यु पर सैद्धांनतक तौर पर तो कमोबेश सहमनत है , लेककन इसक े दुरुपयोग की आशंका से सभी धचंनतत हैं । अतः इस अनत सिंवेदनशी मुद्दे पर आम सहमनत की दरकार है।