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NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE
WEBSITE- nayigoonj.com
Email address goonjnayi@gmail.com -
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शोध , साहित्य और संस्क
ृ ति की माससक वैब पत्रिका
नयी गंज-------.
वर्ष 2022
अंक 1
i
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संपादक मंडल
प्रमुख संरक्षक
प्रो. देव माथुर
vishvavishvaaynamah.webs1008@gmail.com
मुख्य संपादक
रीमा मािेश्वरी
shuddhi108.webs@gmail.com
संपादक
सशवा ‘स्वयं’
sarvavidhyamagazines@gmail.com
शाखा प्रमुख
ब्रजेश क
ु मार
aryabrijeshsahu24@gmail.com
परामशषदािा
कमल जयंथ
jayanth1kamalnaath@gmail.com
ii
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संपादकीय
सशवा ‘स्वयं’
अपनी जन्मभसम को नमन करने,
िम शब्दों की भेंट लाये िैं !
पपरो हदया िै स्यािी में अंिमषन की ज्वाला को,
िम पावन अपनी धरिी मााँ का
वंदन करने आये िैं
अपने आप को पाने क
े सलए िी िो सारी जद्दोजिद िै ! जीवन का सदुपयोग िो
सक
े , िम वो बन सक
े जैसा बन कर लगे कक िााँ, अब अंदर सुकन िै ! पर ऐसा िो
क
ु छ भी करक
े िोिा निीं ! मृग िृष्णा िै भीिर, बस क
े वल बढ़िी िी जािी िै !
समट्टी से अब खुश्ब आिी निीं िै, घरों में माबषल सजा कर उसमें से खुश्ब अनुभव
करने की कोसशश कर रिे िैं िम सब !
ऐसा भी किीं िोिा िै ?
क्योंकक िम वस्िुओ से खुद को भर कर, वास्िव में खाली कर रिे िैं ! भरना िै िो
पवचारों को भरो, जो िमें एक हदन परा िो करेंगे ! निीं िो संभविः िमारी पंजी में
िीरे मोिी निीं क
ं कड़ पत्थर िी रि जायेंगे !
एक पपवि प्रेरणा का िाथ पकड़ कर चलो जो इस िरि साथ िोिी िै जैसे मााँ की
ऊ
ाँ गली थाम कर चलना, वो जो िमेशा कोमल रास्िो पर चलना निीं ससखािी, वो िो
उबड़ खाबड़ रास्िों का तनमाषण खुद िी करिी िै कक उसक
े बच्चे को उन रास्िों पर
iii
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चलना आ जाये ! वो ससखािी िै कक िज़ार बार भी गगरो िो कोई बाि निीं मगर
िौसला एक बार भी गगरने मि देना !
वो भरोसा ससखािी िै,
अवगुणों से भरे िम, यहद जीवन में गुण जोड़ लें िो यि गचरस्थाई संपपि िोगी,
जजससे सच्चा श्ृंगार सम्भव िो जािा िै !
िम बिुि मेिनि से कमािे िैँ, अपने जीवन कों सजािे िैँ अच्छे कपड़ो से, बड़ी
गाड़ी से, मिंगे समानों औऱ आलीशान घरों से ! कमाई एक िो बािर क
े सलए िोिी
िै जो जीवन का बािरी रंग सुन्दर कर देिी िै लेककन इस बािर कों सजाने की
दौड़ में अंदर से सुंदरिा िो दर की बाि िै अंदर की िो गन्दगी िक साफ निीं िो
पािी –
ककसी गायक की किी पंजक्ियााँ िैँ कक -
क्यों पानी में मल मल नहाये
मन की मैल उतार ओ प्राणी..
हदन राि पररश्म करक
े िम चमकने वाली चीज़े िो खरीद लेिे िैँ लेककन व्यजक्ित्व
क
े रंग को िो काला िी कर देिे िैँ - घृणा, प्रतिस्पधाष, जलन, लोभ इिने पवकार भर
जािे िैँ िम में औऱ िम उनको अपने अंदर की क
ु रूपिा निीं मानिे बजकक िम इन
पवकारों क
े साथ जीने क
े इिने आहद िो जािे िैँ कक व्यजक्ित्व में इन सब बािों
को िम सिज़ मानने लगिे िैँ !
समझना िो इस बाि को पड़ेगा कक जजस िरि ऊपर से चमकने क
े सलए क
ु छ देर
क
े सलए मेकअप ककया जा सकिा िै लेककन स्थाई चमक क
े सलए अच्छा स्वास््य
चाहिए उसी िरि अपने भीिर स्वस्थ पवचारों को रख कर िी िम स्वयं अपने
पवस्िार को पा सकिे िैँ, अन्यथा निीं !’इसी उद्देश्य की प्राजति की ओर यि पिला
कदम....
iv
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शुभेच्छा
नयी गूंज------. पररवार
परामशषदािा-
प्रश्न िै कक संस्क
ृ ति क्या िै। यं संस्क
ृ ति शब्द सम्+क
ृ ति से बना िै, जजसका अथष िै अच्छी क
ृ ति। अथाषि्
संस्क
ृ ति वस्िुिः राष्रीय अजस्मिा क
े पररचायक उदाि ित्वों का नाम िै।
भारिीय सन्दभष में संस्क
ृ ति व्यजक्ितनष्ठ न िोकर समजष्टतनष्ठ िोिी िै। संस्क
ृ ति की संरचना एक हदन में
न िोकर शिाजब्दयों की साधना का सुपररणाम िोिा िै। अिः संस्क
ृ ति सामाससक-सामाजजक तनगध िोिी िै।
संस्क
ृ ति वैचाररक, मानससक व भावनात्मक उपलजब्धयों का समुच्चय िोिी िै। इसमें धमष, दशषन, कला,
संगीि आहद का समावेश िोिा िै। इसी की अपररिायषिा की ओर संक
े ि करिे िुए भिृषिरर ने सलखा िै कक
इसक
े त्रबना मनुष्य घास न खाने वाला पशु िी िोिा िै-
‘‘साहित्यसंगीिकला-पविीनः
साक्षाि्पशुः पुच्छपवर्ाणिीनः।।
मुख्य संपादक
उपतनर्द् क
े शब्दों में किें िो संस्क
ृ ति में जीवन क
े दो आयाम श्ेय व प्रेय का सामंजस्य िोिा िै। इन्िीं
आधार पर आध्याजत्मक, वैचाररक व मानससक पवकास िोिा िै और इन्िीं क
े आधार पर जीवन-मकयों व
संस्कारों का तनधाषरण िोिा िै और यिी जीवन क
े समग्र उत्थान क
े सचक िोिे िैं। सशक्षा-िंि में इन्िीं
सांस्क
ृ तिक मकयों का सशक्षण-प्रसशक्षण िोिा िै। विषमान में सशक्षा-व्यवस्था संस्क
ृ ति की अपेक्षा सम्यिा-
तनष्ठ अगधक िै। िात्पयष िै कक विषमान सशक्षा पवचार-प्रधान, गचन्िन-प्रधान व मकयप्रधान की अपेक्षा
ज्ञानाजषन-प्रधान िै। वस्िुिः इसी का पररणाम िै कक सम्प्रति सशक्षा क
े द्वारा बौद्गधक स्िर में िो
असभवृद्गध िुई िै ककन्िु संवेदनात्मक या भावनात्मक स्िर घटा िै।
v
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संपादक –
िमारी सशक्षा में सांस्क
ृ तिक मकयों क
े स्थान पर पजश्चमी सभ्यिा-मलक ित्वों को उपादान क
े रूप में ग्रिण
कर सलया गया िै। िभी िो सशक्षा व समृद्गध क
े पाश्चात्य मानदण्डों को आधार मान सलया िै जो संस्क
ृ ति-
पवरोधी िैं, जजनमें नैतिक व मानवीय मकयों का पवशेर् स्थान निीं िै। इसी का पररणाम िै कक बुद्गधमान व
गरीब नैतिक व्यजक्ि सामाजजक दृजष्ट से भी िांससये पर िी रििा िै और नैतिकिा-पविीन, संवेदनिीन,
भ्रष्टाचारी व अपराधी भी सम्पन्न, सभ्य, सम्मान्य व प्रतिजष्ठि िोिा िै। इसी संस्क
ृ ति-पविीन व्यवस्था क
े
कारण शोर्ण-प्रधान पंजीवादी व्यवस्था िी ग्राह्य िो गई िै, जजसने रिन-सिन क
े स्िर को िो उठाया िै, पर
इस भोगवादी बाजारवादी व्यवस्था क
े कारण अथषशास्ि व िकनीककपवज्ञान क
े सामने नैतिकिा व
मानवीयिा गौण िो गई िै। जबकक राधाक
ृ ष्णन व कोठारी आयोग की मान्यिा थी कक सशक्षा ऐसी िोनी
चाहिये जो सामाजजक, आगथषक व सांस्क
ृ तिक पररविषन का प्रभावी माध्यम बन सक
े । इस दृजष्ट से भारिीय
प्रक
ृ ति और संस्क
ृ ति क
े अनुरूप सशक्षा से िी मकयपरक उदाि-गुणों का संप्रेर्ण और समग्र व्यजक्ित्व का
तनमाषण सम्भव िै। इसमें पुराने व नये का त्रबना पवचार ककये जो देश की अजस्मिा व समाज क
े हििकर िै,
उसी को प्रमुखिा देनी चाहिए।
शाखा प्रमुख की कलम से--
पप्रय पाठकों
संस्थान की पत्रिका नयी गंज क
े पिले अंक का लोकापषण एक आंिररक सुख की अनुभति करा रिा िै।
मुझे प्रसन्निा िै कक शाखा प्रमुख क
े रूप में कायषभार संभालने क
े बाद मुझे आप सभी से नयी गंज क
े इस
अंक क
े माध्यम से रूबरू िोने का मौका समल रिा िै।
िम ककिना भी पवकास कर लें ककन्िु यहद समाज में संवेदना िी मर गई िो सब व्यथष िै। इस संवेदनिीनिा
क
े चलिे समाज में नकारात्मक ऊजाष हदन प्रति-हदन बढ़िी जा रिी िै जो तनन्दनीय भी िै और पवचारणीय
भी। आवश्यकिा िै कक िम अपवलम्ब इस हदशा में अपने प्रयास आरम्भ कर दें।
वस्िुिः अपने कमों से िम अपने भाग्य को बनािे और त्रबगाड़िे िैं। यहद गंभीरिा से गचंिन-मनन ककया
जाय िो िमारा कायष-व्यापार िमारे व्यजक्ित्व क
े अनुसार िी आकार ग्रिण करिा िै और िमें अपने कमष क
े
आधार पर िी उसका फल प्राति िोिा िै। कमष ससफ
ष शरीर की कियाओं से िी संपन्न निीं िोिा अपपिु मनुष्य
क
े पवचारों से एवं भावनाओं से भी कमष संपन्न िोिा िै। वस्िुिः जीवन-भरण क
े सलए िी ककया गया कमष िी
vi
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कमष निीं िै िम जो आचार-व्यविार अपने मािा-पपिा बंधु समि और ररश्िेदार क
े साथ करिे िैं वि भी कमष
की श्ेणी में आिा िै। मसलन िम अपने वािावरण सामाजजक व्यवस्था, पाररवाररक
समीकरणों आहद क
े प्रति जजिना िी संवेदनशील िोंगे िमारा व्यजक्ित्व उिनी िी उच्चकोहट की श्ेणी में
आयेगा।
आज क
े जहटल और अति संचारी जीवन-वृपि क
े सफल संचालन िेिु सभी का व्यजक्ित्त्व उच्च आदशों पर
आधाररि िो ऐसी मेरी असभलार्ा िै।
यि ज़रूरी निीं िै कक िर कोई िर ककसी कायष मे पररपणष िो, परन्िु अपना दातयत्व अपनी परी कोसशश से
तनभाना भी देश की सेवा करने क
े समान िी िै। संपणष किषव्यतनष्ठा से ककया िुआ कायष आपको अवश्य िी
कायष-समाजति की संिुजष्ट देगा। कोई भी ककया गया कायष िमारी छाप उस पर अवश्य छोड़ देिा िै अिएव
सदैव अपनी श्ेष्ठिम प्रतिभा से कायष संपन्न करें। िर छोटी चयाष को और छोटे-से-छोटे से कायष क
े िर अंग
का आनंद लेकर बढ़िे रिना िी एक अच्छे व्यजक्ित्व का उदािरण िै।
यि सवषपवहदि ि्य िै कक नयी गंज एक उच्च स्िरीय पत्रिका िै जजसमें पवसभन्न पवधाओं में उच्चस्िरीय
लेखों का अनठा संग्रि िै
आप सभी पत्रिका का आनन्द लें एवं अपनी प्रतिकियायें ऑनलाइन या ऑफलाइन भेजें।
नयी गंज क
े माध्यम से िमारा आपका संवाद गतिशील रिेगा। आप सभी अपनी सुन्दर व श्ेष्ठ रचनाओं से
नयी गंज को तनरन्िर समृद्ध करिे रिेंगे इसी पवश्वास क
े साथ।
अंि में मैं सभी सम्पादक मण्डल क
े सदस्यों एवं रचनाकारों को नयी गंज पत्रिका क
े सफल सम्पादन एवं
प्रकाशन क
े सलए साधुवाद ज्ञापपि करिा िं करिा िाँ।
आप सभी को िाहदषक बधाई क
े साथ बिुि-बिुि धन्यवाद!!
कासलदास ने काव्य क
े माध्यम से किा िै-
पुराणसमत्येव न साधु सवं
न चापप काव्यं नवसमत्यवद्यम्।
सन्िः परीक्ष्यान्यिरद् भजन्िे
मढः परप्रत्ययनेय बुद्गधः।।
अथाषि्पुरानी िी सभी चीजें श्ेष्ठ निीं िोिी और न नया सब तनन्दनीय िोिा िै। इससलए बुद्गधमान व्यजक्ि
परीक्षा करक
े जो हििकर िोिा िै उसी को ग्रिण करिे िैं जबकक मखष दसरों का िी अन्धानुकरण करिे िैं।
अस्िु, तनपवषवाद रूप से यि सभी स्वीकार करिे िैं कक राष्र की रक्षा, का सकारात्मक पक्ष िोिा िै।
vii
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प्रकाशन सामग्री भेजने का पिा
ई-मेलःgoonjnayi@gmail.com
नयी गंज इंटरनेट पर उपलब्ध िै। www.nayigoonj.com पर जक्लक करें।
नयी गंज.में प्रकासशि लेखाहद पर प्रकाशक का कॉपीराइट िै
शुकक दर 40/-
वापर्षक: 400/-
िैवापर्षक: उपयुषक्ि शुकक-दर का अगग्रम भुगिान 1200/-
को -----------------------------------------द्वारा ककया जाना श्ेयस्कर िै।
तनयम तनदेश
1 रचनाएं यथासंभव टाइप की िुई िों, रचनाकार का परा नाम, पद एवं संपक
ष पववरण का उकलेख
अपेक्षक्षि िै।
2 लेखों में शासमल छाया-गचि िथा आाँकड़ों से संबंगधि आरेख स्पष्ट िोने चाहिए। प्रयुक्ि भार्ा सरल,
स्पष्ट एवं सुवाच्य हिंदी भार्ा िो।
3 अनुहदि लेखों की प्रामाणणकिा अवश्य सुतनजश्चि करें। अनुवाद में सिायिा िेिु संस्थान संपादक
मंडल प्रकोष्ठ से संपक
ष कर सकिे िैं।
4 प्रकासशि रचनाओं में तनहिि पवचारों क
े सलए संपादक मंडल प्रकोष्ठ उिरदायी निीं िोगा और इसक
े
सलए परी की परी जजम्मेदारी स्वयं लेखक की िी िोगी।
नई गाँज तनयमावली
रचनाएं goonjnayi@gmail. Com ई-मेल पिे पर भेजी जा सकिी िैं। रचनाएं भेजने
क
े सलए नई गाँज क
े साथ लॉग-इन करें, यि वांतछि िै।
आप िमारे whatsapp no. 9785837924 पर भी अपनी रचनाएाँ भेज सकिे िैँ
viii
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पप्रय सागथयों,
नई गाँज िेिु आपक
े सियोग क
े सलए आपका िाहदषक धन्यवाद। आशा िै कक ये संबंध आगे भी
प्रगति क
े पथ पर अग्रसर रिेंगे। आगामी अंक िेिु आप सबक
े सकिय सियोग की पुनः आकांक्षा
िै। आप सभी से एक मित्वपणष अनुरोध िै कक आप अपने शोध प्रपि तनम्न प्रारूप क
े ििि िी
प्रस्िुि करें जजससे कक िमें िकनीकी जहटलिाओं का सामना न करना पड़े -
1.प्रकाशन िेिु आपकी रचना क
े मौसलक िोने का स्विः सत्यापन रचना प्रेपर्ि करिे समय
"मौसलकिा प्रमाण पि" पर िस्िाक्षर करना अतनवायष िै। इसक
े त्रबना रचना पर पवचार करना
संभव निीं िोगा
2. रचना किीं पर भी पवष में प्रकासशि निीं िोनी चाहिए !
3. आपकी रचनाएाँ एम.एस. ऑकफस में टाइप िोना चाहिए
4. फोंट - कृ तिदेव 10, मंगल यतनकोड
5. रचनाओं क
े साथ अपना पणष पिा, मोबाइल नंबर, ईमेल िथा पासपोटष साइज की फोटो लगाना
अपेक्षक्षि िै !
6. आप लेख, कपविा, किानी, ककसी भी पवधा में रचनाएाँ भेज सकिे िैँ !
नई गाँज रचनाओं क
े प्रेर्ण सम्बंगधि तनयम व शिे :
 एक से अगधक रचनायें एक िी वडष-डॉक्यमेंट में भेजें।
 रचनायें अपने पंजीकृ ि पेज पर हदए गए सलंक इस्िेमाल कर प्रेपर्ि
करें।
 यहद आप हिंदी में टाइप करना निीं जानिे िैं, आप गगल द्वारा
उपलब्ध करवायी गयी सलतयान्िरण सेवा का इस्िेमाल कर सकिे िैं।
इसक
े सलए Google इनपुट उपकरण सलंक पर जाएाँ।
स-आभार
संपादक मंडल
ix
क्रम
संख्या
वििरविका पृष्ठ संख्या
लेख – लेखक पृष्ठ संख्या
1 मानि जीिन में विक्षक का महत्ि बृजेि कुमार 1 - 5
2 भारत मेरा भारत दुर्ाा माहेश्वरी 6 -10
3 मुखौटे के पीछे कौन डॉ वििा धमेजा 11 -14
कविता
4 नीड़ का वनमााि फिर फिर हररिंि राय
बच्चन
15 -17
5 ितामान व्यिस्था की सच्चाई विनोद मानिी 18 - 21
6 कृष्ि अजुान संिाद बृजेि कुमार 22 - 26
7 मेरी प्यारी मााँ ( नन्ही कलम से ) अंजली साहू 27
कहानी
8 सुनिाई अलका प्रमोद 28 – 32
9 सौ बरस के वलए ईश्वर डॉ वििा धमेजा 33 – 36
10 पहचान आिा िैली 37 – 48
11 र्ीत – लाि कंधे पर वलए कब तक अिोक रक्ताले 49 – 50
12 लोक कथा – मााँ पन्ना धाय का त्यार् 51 – 56
13 आलेख – वहन्दू ह्रदय सम्राट – महाराजा
सूरजमल
बृजेि कुमार 57 – 66
14 ऐवतहावसक स्थल एक नजर – वचत्तौडर्ढ़
(राजस्थान )
67– 72
15 सावहत्य अकादमी पुरस्कार के बारे में
जावनए
73 - 76
अनुक्रमाविका
साक्षात्कार
16 साक्षात्कार – सावहत्य (बोहती ढांडा ) 77 - 84
17 साक्षात्कार – आर. जे. एस.
(पुलफकत िमाा )
85 - 90
मानव जीवन में
शिक्षक का महत्व
1
“शिक्षक”
दीपक की भाांति होिा है शिक्षक,
स्वयां जलकर प्रकाि फ
ै लािा है शिक्षक,
उन्नति का मार्ग ददखािा है शिक्षक,
ज्ञान की र्ांर्ा में नहलािा है शिक्षक,
इसशलए िो शिक्षक साधारण नहीां होिा,
शमट्टी को सोना बनािा है शिक्षक!
2
रतीय संस्कृ तत में शिक्षक क
े शिए गुरु िब्द का प्रयोग ककया
गया है! जिसका अर्थ होता है- ज्ञान देने वािा अर्ाथत अंधकार
से प्रकाि की ओर िे िाने वािा! बच्चों की जिंदगी में मां क
े
बाद शिक्षक की बहुत बडी भूशमका होती है! वह बच्चे को ककस
तरह ढ़ािता है, यह तनभथर करता है उसकी योग्यता पर! अगर शिक्षक का िाजब्दक
अर्थ देखे तो पता चिता है कक शिक्षण का कायथ करने वािा अर्ाथत अध्ययन-
अध्यापन कराने वािा!
“जजस प्रकार एक क
ु म्भकार शमट्टी को िरह-िरह की
आकृ ति में ढ़ाल देिा है उसी प्रकार बच्चे क
े भववष्य का
तनमागिा उसका शिक्षक ही है!”
अनेक िेखकों ने शिक्षक िब्द की अिग-अिग व्याख्या की है –
“शिष्य क
े मन में सीखने की इच्छा जार्ृि करने वाला – शिक्षक!”
“कमजोरी को दूर कर शिखर िक ले जाने वाला – शिक्षक!”
यह सब का अपना एक मत है िेककन सच यह है कक शिक्षक ही बच्चे का
भववष्य तनमाथता होता है! प्राचीन काि हो या वतथमान, भारतीय संस्कृ तत में शिक्षक/
गुरु का पद ईश्वर क
े समकक्ष बताया गया है! िैसे ईश्वर सवथिजततमान होने पर
भी कभी गित नहीं करता है, वैसे ही शिक्षक अपने शिष्य का कभी बुरा नहीं सोच
सकता! शिक्षक ही है िो बच्चे क
े मन में प्रगतत, उन्नतत तर्ा सपनों को साकार
करने की भावना पैदा करता है! शिक्षक की शिक्षा ही है िो हमारे िीवन को सही
ददिा तनदेि देती है और हमें सफिता क
े मागथ पर आगे िे िाती है! यदद शिक्षक
ने होते तो िायद हमारा समाि या यह कहे पूरा ववश्व इतना आगे नहीं बढ़ा होता!
सीखना एक अिग प्रकिया है िेककन सीख कर सीखना एक अिग चीि है! िरूरी
नहीं कक सीखने वािा वही चीि दूसरे को शसखा सक
े ! माता-वपता तर्ा भगवान क
े
बाद शिक्षक की होता है िो बच्चे का भववष्य तय करता है!
भा
3
स्वामी ववरिानंद सरस्वती िैसे आचायथ ने इस समाि का राष्र को िो अमूल्य
शिष्य दयानन्द सरस्वती ददया है! जिसने अपने राष्र की धरोहर वेद ज्ञान तर्ा
गुरुक
ु ि शिक्षा को पुन स्र्ावपत करने का प्रयास ककया! समाि में फ
ै िी क
ु रीततयों
तर्ा आडंबरो का पुरिोर ववरोध ककया! अपना पूरा िीवन राष्र तर्ा समाि की
सेवा क
े शिए तनछावर कर ददया! यह अपने आप में एक अद्भुत कायथ है!
यह प्रततज्ञा आचायथ चाणतय ने अपनी शिष्य चंद्रगुप्त का तनमाथण कर पूरी की और
अपनी योग्यता क
े बि पर चंद्रगुप्त िैसे तनधथन और गरीब बािक को चिवती
सम्राट बना ददया! यह होती है शिक्षक की भूशमका!
शिक्षक क
े ववषय में महापुरुषों क
े ववचार –
“अच्छा शिक्षक वह है जो जीवन पयंि ववद्यार्थी बना रहिा है और इस प्रक्रिया में
वह क
े वल क्रकिाबों से नहीां अवपिु ववद्यार्र्थगयों से भी सीखिा है!”
- डॉक्टर सवगपल्ली राधाकृ ष्णन
“मैं शिक्षक हूां, यदद मेरी शिक्षा में सामर्थयग है, िो अपना पोषण करने वाले सम्राटों
का तनमागण मैं स्वयां कर लूांर्ा” – चाणक्य
“एक सभ्य घर जैसा कोई स्क
ू ल नहीां है और एक भद्र अशभभावक जैसा कोई
शिक्षक नहीां है” - महात्मा र्ाांधी
“क
े वल एक चीज जो मुझे सीखने में हस्िक्षेप करिी है, वो है मेरी शिक्षा”
– अल्बटग आइांस्टीन
“मैंने जो क
ु छ भी सीखा है, क्रकिाबों से सीखा है”
– अब्राहन शलांकन
“शिक्षा की जडे कडवी होिी हैं, मर्र फल मीठा होिा है”
- अरस्िु
आचायग चाणक्य ने घनानांद को चुनौिी देिे हुए कहा क्रक –
“घनानांद शिक्षक साधारण नहीां होिा, तनमागण और प्रलय उसकी र्ोद में पलिे
हैं! अर्र मुझ में सामर्थयग है, िो मैं अपने पोषण करने वाले सम्राटों का
तनमागण कर लूांर्ा!”
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“शिक्षक समाज क
े दपगण को स्वच्छ रखने का वह कायग करिा है जजस में आने
वाली पीदढ़याां अपने अच्छे एवां र्लि ववचार रूपी मुांह को देखने में भली भाांति
सक्षम हो पािी है! हम जैसे हैं उसमें हमारे पूवग शिक्षकों का अिुल्य योर्दान है,
भववष्य में जो व्यजक्ि होंर्े उसमें हमारी भूशमका भी प्रमुखिा से शलखी जाएर्ी,
अिः सावधान होकर अपने किगव्य का पालन करें”
– अज्ञात
िेककन प्राचीन काि और वतथमान क
े शिक्षक मैं उनकी कर्नी और करनी में बहुत
अंतर आ गया है! अब शिक्षा व्यापार बन कर रह गई है! आि शिक्षक की जस्र्तत
वेतन भोगी क
े शसवाय क
ु छ नहीं है! इसशिए आि की जस्र्तत को देखकर ककसी
ने कहा है –
िबकक शिक्षक इस राष्र तर्ा समाि की िडे हैं! जिस प्रकार िड क
े दहि िाने पर
पेड गगर िाता है, उसी प्रकार एक उत्तम शिक्षक क
े बबना शिष्य का तनमाथण नहीं हो
सकता है! अतः शिक्षक को अपने कतथव्य को समझ कर, बच्चों को िारीररक
मानशसक बौद्गधक रूप से तैयार करना चादहए! तयोंकक छोटे बच्चे शमट्टी की तरह
है, िैसा शिक्षक डािेगा, बस वैसे ही ढि िाएंगे! आि शिक्षक और शिष्य क
े बीच
दूरी बनती िा रही है, वे भी समाप्त होगी! तभी हम सही अर्थ में कह सक
ें गे कक
शिक्षक ही अपने शिष्य का सच्चा सही पर् प्रदिथक है!
र्ुरु लोभी चेला लालची, दोनों खेल दाव!
भवसार्र में डूबिे, बैठ पत्र्थर की नाव!!
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बृजेि क
ु मार
यह एक अप्रिय तथ्य है कक सन् 1947 में भारत द्वारा स्वतन्त्रता िाप्तत क
े
अवसर पर भारत का प्रवभाजन धमम क
े आधार पर ककया गया | पृथक राष्ट्र इस
मान्त्यता क
े आधार पर हहन्त्दू और इस्लाममक दो राष्ट्रों की पररकल्पना को मौन
स्वीकृ तत िदान करते हुए भारतमाता का अंग – भंग ककया गया था उसी क्षण
हमारे कणमधारों क
े मन में यह बात बैठ गई कक धमम को राजनीतत से पृथक रखना
चाहहए ! अपने इस संकल्प को साकार करने क
े प्रवचार से उन्त्होंने भारत क
े
संप्रवधान में भारत को एक धममतनरपेक्ष राज्य ( Secular State ) घोप्रित ककया!
धमम का अथम
धमम को सामान्त्यतः अंग्रेजी क
े शब्द Religion क
े अथम में ियोग ककया जाता है और
उसको मत, पंथ, मजहब आहद क
े रूप में ग्रहण ककया जाता है | ररलीजन (
Religion ) की अवधारणा अलौककक प्रवश्वासों तथा अतत िाकृ ततक शप्ततयों से
सम्बद्ध है , जबकक धमम भावना में ककसी िकार क
े अलौककक क
े ितत प्रवश्वास क
े
मलए कोई स्थान नहीं है हमको यह जानकर आश्चयम नहीं करना चाहहए कक धमम
ग्रन्त्थों एवं आचार संहहताओं में जहााँ धमम क
े लक्षण बताए गए हैं | वहााँ आत्मा ,
परमात्मा अथवा ककसी अतत िाकृ त एवं अधध - िाकृ त की चचाम नहीं की गई है |
भारत मेरा भारत
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यथा- धारण करने क
े कारण ही धमम कहलाता है, धमम िजा को धारण करता है-
(महाभारत )
डॉ . राधाकृ ष्ट्णन ने धमम की भारतीय अवधारा को स्पष्ट्ट करते हुए मलखा है कक
"प्जन मसद्धान्त्तों क
े अनुसार हम अपना दैतनक जीवन व्यतीत करते हैं तथा
प्जनक
े द्वारा हमारे सामाप्जक सम्बन्त्धों की स्थापना होती है , वे सब धमम है धमम
जीवन का सत्य है और हमारी िकृ तत को तनधामररत करने वाली शप्तत है" इस
दृप्ष्ट्ट से धमम कर्त्मव्य भावना का वाचक ठहरता है ।
महाभारतकार ने सामाप्जक स्वास्थ्य को दृप्ष्ट्टगत करक
े नागररकों को आदेश हदया
है । कक "सावधान होकर धमम का वास्तप्रवक अथम सुनो और उसी क
े अनुसार
आचरण करो जो क
ु छ तुम अपने मलए हातनिद और दुःखदायी समझते हो , वह
दूसरे क
े साथ मत करो” |
पाश्चात्य धचन्त्तन में भी हमको कर्त्मव्यपरक धमम की अवधारणा ममल जाती है |
जममनी क
े दाशमतनक कप्रव गेटे का कथन है कक
"सच्चा धमम हमें आधितों का सम्मान करना मसखाता है और मानवता, तनधमनता,
मुसीबत , पीडा एवं मृत्यु को ईश्वरीय देन मानता है !
प्रवश्ववन्त्य पूज्य महात्मा गांधी िायः यह कहा करते थे " मेरा प्रवश्वास है कक बबना
धमम का जीवन बबना मसद्धान्त्त का जीवन होता है और बबना मसद्धान्त्त का जीवन
वैसा ही है जैसा कक बबना पतवार का जहाज | प्जस तरह बबना पतवार का जहाज
धैयम , क्षमा , दम , अस्तेय , शौच , इप्न्त्िय - तनग्रह , तत्वज्ञान ,
आत्मज्ञान , सत्य और आक्रोध ये दस धमम क
े लक्षण हैं | ( मनुस्मृतत )
7
मारा - मारा किरेगा , उसी तरह धममहीन मनुष्ट्य भी संसार - सागर में इधर -
उधर मारा - मारा किरेगा और अपने अभीष्ट्ट स्थान तक नहीं पहुाँचेगा !
चूाँकक राजनीतत हमारे जीवन का अमभन्त्न अंग है | अतः उसका भी धमम होना
चाहहए अथामत् वह भी कततपय मान्त्यताओं पर आधाररत होनी चाहहए | धममप्रवहीन
राजनीतत असामाप्जक होगी और वह हमारे मलए हहतकर नहीं है |
धमम और राजनीतत का सम्बन्त्ध
भारत में धमम को राजनीतत का मागमदशमक माना गया है और इसी दृप्ष्ट्ट से राजा
क
े धमम का राजा क
े कर्त्मव्य का स्वरूप - तनधामरण ककया गया है- " राजा यहद
आलस्य छोडकर दण्ड देने लायक अपराधी को दण्ड न दे तो बलवान दुबमलों को
लोहे क
े कॉ ं
टे में पकडी हुई मछमलयों की तरह खा डालें " तथा " राजा शास्र क
े
अनुसार मंबरयों द्वारा िजा से वाप्रिमक कर वसूल करे और अपनी िजा क
े साथ
प्रपता क
े समान व्यवहार करे | " ( मनुस्मृतत )
इस आदशम का पालन करने वाले राजा क
े ितत ककसी को प्रवरोध नहीं होता है
आधुतनक संदभम में यहद कोई राजनेता उतत आदशम का अनुसरण करता तो – “न
राजनेता से प्रवरोध हो सकता है और न ही राजनेताओं का तनमामण करने वाली
राजनीतत से |” तो ककसी को ककसी से भी मशकायत नहीं होगी |
कालान्त्तर में धमम क
े मनमाने अथम लगाकर शासक धमम क
े नाम पर िजा पर
अत्याचार करने लगे अथवा जनता का शोिण करने लगे | तब से राजनीतत क
े क्षेर
में 'ररलीजन' को अछ
ू त समझा जाने लगा | लोग धमम क
े मूल अथम को भूल गए
और ररलीजन क
े समकक्ष धमम को मानकर धमम से परहेज करने लगे | राजनीतत क
े
संदभम में धमम और ररलीजन का एक ही अथम में ियोग ककया जाने लगा है |
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राजनीतत का धमम हो
धमम क
े नाम पर राजनीतत क
े अमभशतत बन जाने का मुख्य कारण यह है कक
स्वाथमपरता क
े कारण हम लोगों ने धमम क
े वास्तप्रवक अथम को भुला हदया है तथा
गांधीवादी जीवनदशमन को अस्वीकार कर हदया है |
धमम वस्तुतः मानवता एवं नैततकता का पयायम है | इस दृप्ष्ट्ट से मानवमार का धमम
क
े वल एक धमम , मानव धमम ठहरता है | संप्रवधान में यहद भारत का धमम मानव
धमम मान मलया गया होता , अथवा मान मलया जाए , तो धमम क
े नाम पर उत्पन्त्न
उन्त्माद एवं आतंक को सहज ही तनयंबरत कर मलया जाए , तयोंकक तब हम
मजहवी कट्टरता को बुरा - भला कहेंगे , न कक धमम से उत्पन्त्न काल्पतनक
संकीणमता पर आाँसू बहाना चाहेंगे |
महात्मा गांधी धमम और ररलीजन क
े भेद को समझते थे | उन्त्होंने राजनीतत में धमम
भावना अथवा नैततकता का समावेश करक
े प्रवश्व को सत्य एवं अहहंसा का संदेश
हदया था | सत्य का व्यावहाररक रूप अहहंसा है और धमम नैततकता का पयामय है |
राजनीतत में नैततकता का समावेश करक
े गांधीजी ने राजनीतत का शुद्धधकरण
ककया और धमम क पर राजनीतत करने वालों को अलग - थलग करने का ियास
ककया | उनका मत सवमथा स्पष्ट्ट था कक "जो चीज प्रवकार को ममटा सक
े , राग -
द्वेि को कम कर सक
े , प्जस चीज क
े उपयोग में मन सूली पर चढ़ते समय भी
सत्य पर डटा रहे, वही धमम की मशक्षा है, मैं इस बात से सहमत नहीं हूाँ कक धमम
का राजनीतत से कोई सम्बन्त्ध नहीं है, धमम से प्रवलय राजनीतत मृत शरीर क
े तुल्य
है, जो क
े वल जला देने योग्य है"
देश की जो राजनीततक मान्त्यताएं हैं , उनका अनुसरण करना और देश क
े
संप्रवधान क
े अनुसार देश क
े जो राजनीततक उद्देश्य हैं | उनकी पूततम करना , यही
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राजनीतत का धमम होना चाहहए भारत जैसे प्रवशाल देश में अपने संप्रवधान की
सीमाओं में कायम करना राजनीतत का धमम होना चाहहए | इसक
े बाहर जाने का अथम
होगा राजनीतत क
े धमम का उल्लंघन, इस दृप्ष्ट्ट से संप्रवधान में संशोधन करने क
े
पूवम खूब सोच - समझ लेना चाहहए | जहााँ तक सम्भव हो यथाप्स्थतत वाली नीतत
अपनाई जानी चाहहए , तयोंकक एक बार छ
ू ट हो जाने पर छ
ू ट का अन्त्त नहीं होता
है | भारत इसका ज्वलन्त्त उदाहरण है | िततविम औसतन दो संशोधन करक
े
संप्रवधान को अपना अनुगामी बनाकर तया हम राजनीतत में धमम को अलग नहीं
बता रहे हैं |
दुगाम माहेश्वरी
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मुखौटे क
े पीछे
कौन ?
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ही तो हूँ, वो ! जो कभी ककस रंग में तो कभी ककस रंग में ! वो
कौनसा रंग है जो मेरा है, इन सब में से ! कोई नहीं !
इंसान ककतनी बखबी छछपा लेता है असललयत को, ऐसी कमाल की
प्रछतभा क
े वल हम मनुष्यों में ही तो होती है !
शेर, शेर ही दिखता है , वो कभी दहरन जैसा दिखने या होने का प्रयास नहीं करता !
सांप, सांप ही दिखता है, हम उससे संभल कर चल सकते हैँ ! अगर सांप में खुि
पर चींटी का मुखौटा लगाने की क्षमता आ जाती तो सोचचये ककतने डंक जीवन में
हमें लग जाते! लेककन सांप ककतना भी जहरीला क्यों न हो वो अपने जहर को ढक
कर याछन छछपा कर नहीं रखता! इसललये उसकी यह सबसे बड़ी ख़बसरती है कक
वो सांप है पर सच्चा है, बबना मुखौटे क
े है ! बबल्ली शेर बनकर डराती नहीं ! औऱ
शेर बबल्ली का रूप बनाकर हमारे आस पास रह सकता नहीं !
ककतना सच्चा है सब जानवरों क
े जंगलों में, हम इंसानों क
े जंगलों में ककस चेहरे
क
े पीछे कौनसा चेहरा छछपा है – ये सच कभी कोई नहीं जान सकता !
सबको पता होता है शेर दहंसक जानवर है, इससे बच कर रहना है, नहीं तो खा
जायेगा !
मगर ये इंसान ? जजसको कोई नहीं जानता कक कब यह ककस रूप में होगा?
जो दहंसक भी हो तो हम बेखबर होते हैँ औऱ वो कब हमें खा जाता है, पता ही नहीं
चलता ! औऱ कोई दहंसक ना हो, बहुत स्नेदहल भी हो तो हम उससे डरने लगते हैँ,
उस पर शक करने लगते हैँ ! सोचते हैँ कक बनता तो अच्छा है ऊपर से, असली में
ऐसा नहीं होगा !
मैं
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क्यों ? क्योंकक शेर ने मुखौटे तो नहीं लगाए औऱ हम बड़े क
ु शल हैँ –‘तरह -
तरह क
े मुखौटे लगा लेते हैँ !
इसललये लसनेमा जगत में भी एक गाना बहुत प्रचललत हुआ –
“एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैँ लोग !”
इस कायय में इतने पारंगत होते हैँ हम कक एक ही समय में कई भलमकाओं को
छनभा लेते हैँ !
इंसानी बुजदि का बड़ा गैर काननी प्रयोग है ये ! जजसकी कोई सजा नहीं ! सजा तो
क्योंकक तब हो सकती है ज़ब अपराध साबबत हो !
मुखौटे लगाकर जीने को कोई अपराध ही नहीं मानता ! इंसान ने डडचियों से बुद्चध
को इतना ववकलसत कर ललया है कक ककतने भी खबसरत ढंग से अपनी बिसरती
को छछपाने में सफल हो जाता है !
काश कक बहुरुवपया इंसान, जानवरों की तरह उसी रंग का होता, जो उसका अपना
व्यजक्तत्व होता, चाहे अच्छा होता या बुरा ! चाहे काला होता या सफ़
े ि ! चाहे वो
“सच्चे पर शक औऱ झठे पर ववश्वास ! तभी तो यहाूँ
इंसानों क
े जंगलों में कोई ककसी का नहीं, ककतनी भी
सावधानी बरतो, हम लशकार हो ही जाते हैँ – धोखे लमल ही
जाते हैँ औऱ जानवरों क
े जंगलो में सावधानी बरत कर
खुले शेर से भी बच कर हम सही सलामत आ जाते हैँ !”
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आजस्तक होता या नाजस्तक ! जैसा होता बस वैसा होता ! सबसे सुन्िर उसका
असली रूप होता ! तब वो क
ु रूप होकर भी आकर्यक लगता !
वो पुराने जमाने जैसा होता कक सीधा, सच्चा ! चाहे उसकी अलमाररयों में जीत क
े
प्रमाण कई मैडल ना होते लेककन कई अबोले, अव्यक्त, पुण्य कमों से उसक
े खाते
भरे होते !
अपने चेहरे पर से िसरे चेहरे को उतार फ
ें क
े तो हम वो पाक – पववत्र – साफ चेहरा
पा लेंगें, जो ईश्वर की भेंट है – हम स्वयं !
हम स्वयं, स्वयं क
े पास औऱ सबक
े साथ एक जैसे, सच्चे रूप में !
डॉ. शिवा धमेजा
लेखक
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नीड़ का ननर्ााण फिर-फिर,
हररवंश राय बच्चन
नीड़ का ननर्ााण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!
वह उठी आँधी फक नभ र्ें
छा गया सहसा अँधेरा,
धूलि धूसर बादिों ने
भूलर् को इस भाँनि घेरा,
राि-सा ददन हो गया, फिर
राि आई और कािी,
िग रहा था अब न होगा
इस ननशा का फिर सवेरा,
राि क
े उत्पाि-भय से
भीि जन-जन, भीि कण-कण
फकं िु प्राची से उषा की
र्ोदहनी र्ुस्कान फिर-फिर!
15
नीड़ का ननर्ााण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!
वह चिे झोंक
े फक काँपे
भीर् कायावान भूधर,
जड़ सर्ेि उखड़-पुखड़कर
गगर पड़े, टूटे ववटप वर,
हाय, निनकों से ववननलर्ाि
घोंसिो पर क्या न बीिी,
डगर्गाए जबफक क
ं कड़,
ईंट, पत्थर क
े र्हि-घर;
बोि आशा क
े ववहंगर्,
फकस जगह पर िू नछपा था,
जो गगन पर चढ़ उठािा
गवा से ननज िान फिर-फिर!
16
नीड़ का ननर्ााण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!
क्र
ु द्ध नभ क
े वज्र दंिों
र्ें उषा है र्ुसकरािी,
घोर गजानर्य गगन क
े
क
ं ठ र्ें खग पंक्क्ि गािी;
एक गचडड़या चोंच र्ें निनका
लिए जो जा रही है,
वह सहज र्ें ही पवन
उंचास को नीचा ददखािी!
नाश क
े दुख से कभी
दबिा नहीं ननर्ााण का सुख
प्रिय की ननस्िब्धिा से
सृक्टट का नव गान फिर-फिर!
नीड़ का ननर्ााण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!
17
वर्तमान व्यवस्था की सच्चाई
आज करें हम बार् देश की
देश हमारा बबगडा है।
नेर्ाओं ने मंत्री बंन कर
देश हमारा ररगडा है ॥
पुलिस हमारी अत्याचारी
चारधाम हैं थाने जी ।
बबन पैसे क
े काम करे ना
थानेदार ना माने जी ॥
स्क
ू िों की हािर् देखो
टीचर मस्र्ी मार रहे
बच्चे गुटखा -जदात खावे
बच्चों को ना डांट रहे ,
18
कहा बर्ाऊ बार् देश की
गंदगी हम फ
ै िार्े हैं।
क
ु त्ता -बबल्िी मरे सडक पर
उनको ना दफनार्े हैं ॥
कहे मानवी सुन मेरे भाई
बार् समझ में ना आई
बेटा हमने 4 करें हैं ।
बेटी हमने मरवाई
बेटी बचाओ , बेटी पढाओ
यही हमारा नारा है ॥
देश क
े सैननक वीर बहादुर
दुश्मन को ििकारा है।
19
भगर् लसंह की र्रह देश में
र्ुम भी ऐसा काम करो
गांधीजी क
े सपनों की खानर्र
भारर् मां से प्यार करो
वर्तमान की बार् करें हम
हम र्ो वह सुल्र्ान हैं ॥
भारर् मां को अमरीका में
लमिर्ा अब सम्मान हैं ।
िेककन बच्चों सुनो कहानी
भक्र् देश का बनना है ॥
अब्दुि ( किाम ) क
े सपनों को
साकार र्ुम्ही को करना है ।
20
अमेररका -जापान ,चीन हो
अब ना र्ुम को डरना है ॥
िाि ककिे की प्राचीर से
भारर् मां की गररमा है।
वंदे मार्रम ् -वंदे मार्रम ् ,जय हहंद!
ववनोद मानवी
21
कृ ष्ण-अर्जुन यजद्ध संवाद
कर्ुण्येवाधधकारस्ते र्ा फलेषज कदाचन ।
र्ा कर्ुफलहेतजर्जुर्ाु ते संगोऽस््वकर्ुणण ॥
22
र्ब श्री कृ ष्ण ने शांतत प्रस्ताव र्ें पांडवों क
े ललए पांच गााँव देने की बात कही, तब दजयोधन ने एक
इंच र्र्ीन देने से र्ना कर ददया! तब र्हार्ारत क
े यजद्ध का द्वार खजल गया और क
ज रु सेना ,
पांडवों की सेना क
ज रुक्षेत्र र्ें आ गई । यजद्ध की दोनों ओर से शंख तथा दजंदर्ी बर्ने लगी ! तब
अर्जुन अपना गाण्डीव हाथ से धगरा देता है । तब श्री कृ ष्ण पाथु को र्ो कहते हैं , उससे आगे
कववता शजरू होती है-
हे पाथु उठो! अब यजद्ध करो ,
कायरता नपजंसक का गहना है,
गाण्डीव उठा गर्ुन कर डालो ,
सर्र र्ूलर् र्ें हलचल कर डालो ,
पााँचर्न्य को फ
ूं का रण र्ें ,
इसकी अब तजर् लार् बचा लो ।
शोक तजम्हें न शोर्ा देता ,
रण र्ें क
े वल योद्धा होता ,
ररश्ते - नाते ना होते रण र्ें ,
वीरों को ना रोते देखा ,
क
े वल रक्त पात होता है ,
ववर्यश्री का लक्ष्य होता है ।
23
जर्नको तजर् अब देख रहे हो ,
क
े वल यह अधर्ी योद्धा हैं ,
र्ो चजप बैठे थे रार्सर्ा र्ें ,
चौसर होते देख रहे थे ,
आयों की र्याुदाओं को खंड-खंड करक
े ,
सब पर पानी फ
े र रहे थे !
लसंह नाद की र्गह ,
श्रगाली आवाज़ सजनाई देती है ,
पजत्र र्ोह क
े आगे रार्न
र्र्बूर ददखाई देते हैं ,
नारी का चीर हरण होने पर ,
शस्त्र ना जर्नक
े उठते हैं ,
र्ानो अब खून नहीं वीरों का ,
बजर्ददल बनकर बैठे हैं !
ऐसे इन अधर्ी लोगों का ,
लर्ट र्ाना ही अच्छा है ,
24
हे पाथु सजनो , इस धर्ु यजद्ध र्ें ,
शस्त्र उठाना अच्छा है ,
जर्ससे वीरों की शोर्ा हो ,
धर्ु ध्वर्ा आगे को बढे ।
इतना सजनकर पाथु बोला ,
हे क
े शव! क
ै से बाण चला दूाँ र्ैं ,
ववर्यश्री क
े ललए
अपनों को र्ार धगरा दूाँ र्ैं ,
इन्हीं हाथों ने बचपन र्ें ,
सबक
े ही पैर दबाये हैं ,
र्ीष्र् वपतार्ह ने लसर को ,
चूर् चूर् कर
हर्को र्ी लाड लडाए हैं ,
अगर बाण की नॉक करू
ाँ र्ैं ,
25
लज्र्ा र्जझको आती है ,
है क
े शव! अब र्ृ्यज दे दो ,
यही सीख सजहाती है ।
यह सजनकर क
े शव र्जस्काये ,
र्गत गजरु ने उपदेश सजनाये ,
र्न्र् र्ृ्यज क
े बंधन का ,
गीता ज्ञान सजनाते हैं ,
सजख- दजुःख से आगे बढने का ,
स्य र्ागु बतलाते हैं ,
इतना सजनकर पाथु ने
गाण्डीव हाथ र्ें उठा ललया ,
कौरव सेना पर टूट पडे ,
हाहाकार र्चा ददया ।
- बृर्ेश क
ज र्ार
26
मेरी प्यारी मााँ
मााँ हमको लगती प्यारी है,
मााँ की ममता ही न्यारी है!
पहले तो मााँ दुलारती है,
दुलार कर हमें जगाती है!
विद्यालय क
े ललए फिर मााँ ही,
करती सारी तैयारी है!
विद्यालय से िापस आते,
मााँ को मुस्क
ु राते ही पाते!
हमको मुस्क
ु राते देखती तो,
मााँ जाती बारी-बारी है!
मााँ ही गंगा की धारा है,
मााँ ही मेरी ि
ु लिारी है!
मेरी मााँ सबसे प्यारी है!!
अंजली साहू
कक्षा-7th
बाल भारती विद्यालय (अलिर)
अलवर
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कनिका िे घड़ी देखी रात के ग्यारह बज गये थे पर निनति अभी तक िही आया था ,कनिका को निन्ता होिे लगी
।निनति उसकी आँखों का तारा था क्षण भर भी उसे उदास देखिा उन्हे गवारा ि था।तभी द्वार की घंटी बजी ,कनिका
दौड़ कर दरवाजा खेालिे गई ।उसिे सोि नलया था नक आज निनति से कह देगी नक कल से वह उसके नलये दरवाजा
खोलिे के नलये इतिी रात तक िही जागेगी। अगर दस बजे के बाद घर में पांव रखा तो ि तो खािा नमलेगा ि मैं बात
कर
ं गी ।
द्वार खोलते ही सामिे खाकी वदी वाले को देख कर कनिका का हदय काँप उटा। कहीं निनति के साथ तो कु छ िही हुआ
इस आशंका िे उसकी सुध बुध नबसरा दी। इसके पूवव नक वह कु छ पूछती पुनलस वाले िे कहा ‘‘ यह निनति का घर है
’’?
“जी हां बताइये मैं उसकी माँ हँ वह ठीक तो है ि ’’?
“पहले आप उसे बुलाइये तब में बताऊ
ँ गा नक वह ठीक है नक िहीं ’’।
“मतलब ?’’
“आपके बेटे के नवरुद्ध अरेस्ट वारेंट है ’’।
कनिका मािो आसमाि से नगरी हो उसिे कहा ‘‘ देनखये आपको कोई गलतफहमी हुई है यह निनति गुलाटी का
घर है निनति मेरा बेटा यूनिवसवटी में बी एस सी का छात्र है, कोई िोर उिक्का िहीं है ’’।
“जी हाँ मैं उसी निनति गुलाटी की बात कर रहा हँ जो यूनिवसवल कालेज में बी एस सी कर रहा है और इसी घर में रहता
है ’’।
“ क्यों क्या नकया है मेरे बेटे िे ?’’कनिका को अभी भी नवश्वास था नक पुनलस वाले को धोखा हुआ है ,वह नकसी
और निनति के भ्रम में उसे बेटे को पूछ रहा है।
उस पुनलस वाले िे कहा ‘‘ आपके बेटे पर बलात्कार का आरोप है” ।
कनिका के पाँव तले जमीि नखसक गई। ‘‘ िहीं िहीं मेरा बेटा ऐसा िहीं कर सकता वह शरीफ घर का बेटा है ।”
“देनखये वो कै से घर का बेटा है मुझे उससे कु छ लेिा देिा िहीं है पर नजस लड़की के साथ उसिे नखलवाड़ नकया है
उसिे उसी का िाम नलया है ’’ दरोगा िे घर का िप्पा िप्पा छाि डाला नफर निनति को ि पा कर नफर आिे की धमकी दे
सुनवाई
28
कर िला गया । वो तो घर में सब कु छ उलट पलट कर िला गया पर कनिका के मि में जो झंझावत उत्पन्ि कर गया
उसके समक्ष उलट पलट कु छ ि थी।
कनिका को नवश्वास था नक नकसी दुश्मिी में उस लड़की िे ऐसा कहा होगा ।उसिे उस लड़की से नमलिा तय नकया। रात
नकसी तरह कटी पर सुबह ही वह थािे पहुँि गई । वहाँ वह लड़की और उसके घर के लोग ,नमत्र और कु छ तमाशा देखिे
वाली भीड़ उपनस्थत थी। कनिका को देखते ही नकसी िे कहा ‘‘ अरे यह ही तो है उस बलात्कारी की माँ ’’ सब उसे घूर
घूर कर देखिे लगे , ।
लोगों िे उसे घेर नलया कोई बोला‘‘ इसी को अगवा कर लो तब तो बच्िू हाथ आएंगे।’’कु छ लोग तो उसे
अपशब्द भी कहिे से बाज ि आये, नजन्हें सुिकर कनिका लज्जा से गड़ गई ,अपमाि से उसका िेहरा लाल हो गया। वो
तो पुनलस के नसपाही िे उसके अन्दर जािे का रास्ता बिाया अन्यथा पता िही कनिका उसके साथ भीड़ क्या करती।
अन्दर वह लड़की बैठी थी उसकी सूजी आँखें ,िेहरे का आक्रोश और अस्त व्यस्त नस्थनत उसकी सच्िाई के साक्षी थे
।संभवतः पूरी रात वह और उसका पररवार कोतवाली में ही रहे थे, नफर भी कनिका का मि ि मािा ,उसिे उस लड़की
से पूछा ‘‘ क्या जो बयाि तुमिे नदया है वह सि है ’’?
मािवी नबफर पड़ी ‘‘ आप क्या समझती हैं मुझे अपिा तमाशा बिािे का शौक है जो मैं यह कोतवाली ,लोगों के उल्टे
सीधे प्रश्नों और मेडकल िेकअप की यातिा सह रही हँ”!
कनिका सकपका गई, अपिे को संयत करते हुए शान्त स्वर में उसिे पूछा ‘‘ िहीं मेरा मतलब है नक क्या तुम श्योर हो नक
तुम्हारे साथ अिािार करिे वाला निनति गुलाटी ही था ’’?
“जी हाँ वि हन्रेड वि परसेंट श्योर हँ ’’ उसिे कनिका को घूरते हुए कहा।
तभी मािवी की माँ ि उसे उपेक्षा से देखते हुए कहा ‘‘ आपको क्या पता एक बेटी की इज्जत क्या होती है ,आपके बेटा
है ि ,तो दे दी उसे खुली छूट नक जाओ बेटा जो मि में आये करो आनखर मदव हो। ’’
पीछे से मािवी के नपता श्री रंजि बोले ‘‘ आप अपिे बेटे को िाहे लाख नछपा लें, नजतिे िाहें जोर लगा लें पर वह
बिेगा िही कािूि के हाथ बहुत लम्बे हैं”!
कनिका पर व्यंग्य के वार पे वार हो रहे थे कोई माििे को तैयार िहीं था नक उसे िहीं पता नक निनति कहाँ है। उसे
िेताविी दे दी गई थी नक वह कहीं बाहर िही जाएगी।
नकसी प्रकार आघातों से क्षत नवक्षत वह घर आकर कटे पेड़ के समाि ढह गई । कालेज में नशनक्षका कनिका का
इतिा अपमाि तो जीवि में कभी ि हुआ था। कनिका मनहला कालेज में पढ़ाती है और स्त्री वादी बातों में बढ़ िढ़ कर
नहस्सा लेती रही है, पर आज उसकी बड़ी-बड़ी बातों की धनज्जयाँ उड़ गई थीं, वह भी उसके अपिे बेटे के कारण और
29
वह प्रश्नों के कटघरे में खड़ी थी। अिािक उसे ध्याि आया नक निनति होगा कहाँ ,हो सकता है बेटा अपराधी ही हो पर है
तो उसके हदय का टुकड़ा।उसके बारे में सोिते ही वह काँप उठी ‘ हे भगवाि मेरे बेटे को बिा लो’
तभी उसके अन्तमवि िे उसे टकोहा मारा ‘‘ अच्छा अगर मािवी तेरी बेटी होती तो भी क्या तू यही कहती?’’
उसिे स्वयं से तकव नकया ‘‘ क्या पता मािवी झूठ बोल रही हो ’’ उसकी हालत देखिे के बाद ऐसा माििे को मि िहीं
कर रहा था।पर अपिे बेटे पर ऐसे आरोप पर भी उसे नवश्वास िहीं हो रहा था। उसे याद है नक उसिे निनति के पापा िवीि
के जािे के बाद अके ले ही नकतिे लाड़ प्यार से उसे पाला है। जीवि में आये संघर्षों की तनिक भी आँि उसिे निनति पर
िहीं पड़िे दी। स्वयं सारे दुख झेल कर उसे अपिे आंिल की ओट में सुख के साये में नछपाए रखा।
निनति लगभग दस वर्षव का रहा होगा जब उसिे हठ ठाि नलया था नक उसके सारे दोस्त कार से स्कू ल आते हैं वह बस से
िहीं जाएगा, तब कनिका िे अपिे आनफस से अनिम धि ले कर एक सेकें ड हैंड कार खरीद ली थी। जब कार घर पर
आई तो निनति मारे खुशी के उसके गले लग गया था और उसको ढेर सारी नकस्सी दे डाली थी। निनति की प्रसन्िता देख
कर कनिका भूल गई थी नक इस अनिम की कटौती के नलये उसे कहाँ-कहाँ अपिी आवश्यकताओं में कटौती करिी
पड़ेगी। एक निनति ही तो उसके जीिे का सहारा था, उसकी हर इच्छा पूरी करके मािो वह अपिी इच्छाएं पूरी करती थी।
निनति बड़ा होता गया साथ ही उसकी फरमाइशें भी । कभी कभी कनिका उसकी इच्छाएं पूरी करते-करते हाँफ जाती थी
पर निनति उसकी कमजोरी था उसके मुख पर उदासी वह देख ि पाती।
पर आज जो हुआ उसकी तो उसिे कल्पिा भी िहीं की थी। उसके मि अभी भी िहीं माि रहा था नक उसका बेटा,
अपिा खूि ऐसा कर सकता है।क्या उससे कहीं संस्कार देिे में िूक हुई है ,पर वह तो सदा उसे बिपि में अच्छी बातें ही
बताती थी । उसके मि िे उसे आश्वासि देिा िाहा , क्या पता नकसी के दबाव में या निनति से शत्रुता में नकसी और का
दोर्ष निनति पर मढ़ रही हो? उसका बेटा ऐसा िहीं कर सकता ।इस तकव में उसे एक आस की नकरण नदखाई दी, वह व्यि
हो गई निनति से नमलिे को। निनति का फोि नमल िहीं रहा था उसके सभी दोस्तों को वह काल कर िुकी थी। उसे समझ
िहीं आ रहा था नक उसे कै से ढूँढे।वह तो पुनलस का सहारा भी िही ले सकती थी पुनलस तो उसे स्वयं ही ढूँढ रही है और
भगवाि करे वह पुनलस को ि नमले ,िहीं तो भले वह अपराधी हो या ि हो पुनलस उसका पता िहीं क्या हाल करेगी।
उसिे टीवी खोला उस पर भी यही समािार आ रहा था। वह नकससे कहे क्या कहे। उसिे एक दो अपिे पररनितों को
सहायता के नलये कॉल नकया, पर सबिे उसकी सहायता तो दूर सहािुभूनत नदखािा भी उनित िहीं समझा। अगले नदि
समािारों में भी इसी काले समािार से पन्िे रंगे थे। उसमें अपिे कालेज जािे का साहस ि था। उसिे फोि पर अपिी
अस्वस्थता को बहािा करिे हेतु फोि नकया पर उधर से सुििे को नमला उसिे उसके पैरों तले जमीि नहला दी। उसकी
प्रधािािायाव िे कहा ‘‘ देनखये नमसेज कनिका गुलाटी आपके बेटे की इस हरकत के बाद हम आपको अपिे गल्सव
कालेज में रख कर अपिी बदिामी िहीं करवा सकते ।”
30
‘‘ पर इसमें मेरा क्या दोर्ष?’’ कनिका िे कहा तो उधर से आवाज आई ‘‘ संताि को संस्कार मां बाप ही देते
हैं।’’
मािवी िे बताया था नक काफी नदिों से निनति उसके पीछे पड़ा था पर मािवी टालती रही । उस नदि वह पीछे पड़ गया
उसके साथ काफी पीिे िलिे के नलये । निनति के अनधक हठ करिे पर मािवी िे उसे नझड़क नदया निनति को यह रास ि
आया । मािवी प्रायः कक्षा के बाद लायब्रेरी में बैठ कर पढ़ती थी।दूसरे नदि जब मािवी की सहेनलयाँ िली गई ंऔर वह
लायब्रेरी में पढ़ रही थी ,तो निनति िे उसे नकसी से झूठा संदेश नभजवाया नक मािवी को के नमस्री की रंजिा मैडम लैब में
बुला रही हैं। यद्यनप कालेज समाप्त हो िुका था पर मािवी िे सोिा, होगा कोई काम अतः वह िली गई।लैब में जब
मािवी पहुँिी तो वहाँ कोई ि था ,वह इसे नकसी का मजाक समझ कर लौटिे को हुई नक वहाँ नछपे निनति िे दरवाजा
बन्द कर नलया और उसके साथ व्यनभिार नकया। लैब थोड़ा दूर था और कालेज का समय समाप्त हो िुका था अतः
मािवी की िीख कोई सुि िहीं पाया। कनिका मि ही मि नवश्लेर्षण कर रही थी नक ऐसा क्यों हुआ । भले उसिे बेटे को
गलत बातें िहीं नसखायीं पर शायद उसकी हर इच्छा को पूरी करके उसे निरंकु श बिा नदया। उसिे जो िाहा वो पाया इसी
नलये तो वह मािवी की ‘ि’ को सह िहीं पाया।मािवी का अभी तक घर ि आिा उसे दोर्षी नसद्ध कर रहा था।
काश! वह बेटे के प्यार में अंधी ि होती ,उसके नक्रया कलापों ,उसकी हठी प्रकृ नत को देख पाती ,काश! वह थोड़ी सी
कठोर बि करे निनति को संयम का पाठ भी पढ़ा पाती।अब बहुत देर हो िुकी थी कनिका फफक-फफक कर रो पड़ी
।उसे मािवी के बारे में सोि कर ही स्वयं से घृणा होिे लगी। भले ही मािवी तथा अन्य लोग उसे िफरत से देख रहे थे पर
वह भी एक स्त्री होिे के िाते मािवी की पीड़ा को अिुभव कर पा रही थी और कोई समय होता तो वह अब तक िारी
वाद का झंडा उठा कर निकल िुकी होती पर यहाँ तो दुश्मि उसका अपिा बेटा था ।
तभी बाहर घंटी बजी वह बाहर गई तो पुनलस के नसपाही िे बताया नक निनति पकड़ा गया और उसे थािे बुलाया गया है
कनिका उसी हालत में थािे की ओर िल दी।
पुिः भीड़ के आक्रोश और व्यंग्य का तीर सहते कोतवाली पहुँिी। निनति िे उसे देख कर िैि की साँस ली बोला ‘‘
मम्मा मैं आपका ही इन्तजार कर रहा था। देखो मुझे बिाओ कोई बड़ा वकील करके मेरी जमाित कराओ”!
“बेटा जो आरोप तुझ पर लगा है क्या वह सि है ?’’ कनिका िे पूछा।
‘‘मम्मी अब कम से कम आप मेरी इन्क्वायरी ि करो, नकसी तरह मुझे बाहर निकालो।’’
निनति के इस उत्तर िे उसकी रही सही आशा भी समाप्त कर दी। कनिका के ति बदि में आग लग गई वह भूल गई नक
निनति उसका बेटा है उसिे निनति को कई झापड़ जड़ नदये और कहा ‘‘तूिे ऐसा िीि काम क्यों नकया?’’
निनति िे निढ़ कर कहा ‘‘ मम्मी आप मेरी मम्मी हैं नक उस लड़की की?’’
31
कनिका िे कहा ‘‘यही तो दुख है नक मैं तेरी माँ हँ, तूिे दुष्कमव भले मािवी के साथ नकया है पर इज्जत मेरी लुट गई है
कोई अन्तर िहीं है मेरी और उसकी पीड़ा में । उसकी कम से कम सुिवाई तो है पर मेरी तो कोई सुिवाई भी िहीं है”!यह
कह कर कनिका वहीं धरती पर नगरकर मुँह ढाप कर नबलख पड़ी।
अलका प्रमोद
32
कितने मंदिर, मस्जिि, गुरूद्वारे, कितनी पूिाएँ, ववधि-वविान, सबिा एि लक्ष्य, ईश्वर
ममल िाये तो िीवन िन्य हो !
िीवन तो िन्य ही है, हम ही आँखों पर पट्टी लगाये हुए हैं ! िभी- िभी हम उस
चीि िी तलाश िर रहें होते हैं, िो हमारे ही पास होती है ! ईश्वर िी तलाश भी
ि
ु छ ऐसी ही है ! वो शक्ल सूरत िारण िरि
े हमारे साथ उठते बैठते हैं, बात िरते
हैं, यहाँ ति कि हमारे मलए बहुत प्यार से खाना बनाते हैं, किर प्यार से अपने हाथों
से हमें खखला ते भी हैं !
सौ बरस ि
े मलए ईश्वर
डॉ. मशवा िमेिा
33
ईश्वर सब बच्चों ि
े पास होते हैं 100 बरस ि
े मलए औऱ उतने ही बरस हम उनसे
भागने, उनसे िूर िाने में लगा िेते हैं ! िो ईश्वर 100 बरस साथ रहते हैं! वो घर
में अि
े ले होते हैं, औऱ हम उन्हीं िो ढूंढ़ने मंदिर िी लाइनों में िािर लग िाते हैं !
कितनी ववधचत्र है प्रभु िी माया !
िरअसल िीवन िा सबसे बड़ा सत्य है कि िो वजतु स्ितनी सहि आपिो ममल
िाती है, उतनी ही उसिी िीमत धगर िाती है! माता- वपता भी ऐसे ही हैँ, उनि
े
प्रेम पर इतना अटूट भरोसा होता है हमें कि हम सौ प्रततशत िानते हैं कि अपमान
िी िोई भी सीमा, उनि
े मन से हमारे मलए बुरे भावों िो िन्म ति िेने में सिल
नहीं हो पायेगी ! वो किर भी हज़ारों हज़ार आशीवााि ही िेंगे !”
मैं बस यूँ ही मन में भावों िो आिार िेती हूँ, हाथों में िभी सिाई ि
े मलए झाड़ू,
िभी बतानों में गीले हाथ, िलम हाथ में लें सि
ूँ ऐसा वक़्त ममलता नहीं! इन सब
दिनचयाा ि
े िामों में लेकिं न मन ि
े अंिर जयाही से शब्ि बनते – बबखरते ही रहते
हैं !
अभी अभी आँख खुली औऱ मैं रोज़ िी तरह सबसे पहले किचन िी तरि गई, िहीं मम्मी
मुझसे पहले िग िर िाम में तो नहीं लग गई !
अपने सपनों िो िबािर, छ
ु पािर मुजि
ु राते हुए, मैं िाम में लग गई बबल्ि
ु ल यँत्रवत !
किचन िी जलैप साि िी, झूठे बतान इिठ्ठा किये ! िचरे िी थैली बनाई ! गाय ि
े खाने
िो अलग थैली में डाला, बाहर रखने गई तो रोज़ िी तरह इंतज़ार िरते िरवािे ि
े बाहर
खड़े गली ि
े तीन ि
ु त्ते, उनिो तोष डाले, धचड़ड़यों िा पानी बिला ! बाहर रखी िूि िी
थेमलयां लेिर मैं अंिर आ गई !
मम्मी अभी िगिर किचन ि
े बाहर ति आई थी ! चाय बनाई सुबह ि
े 7 बिे थे ¡ ि
ु छ
बबस्जिट्स, नमिीन स्िसि
े बबना चाय पीने िी आित ही नहीं मुझे !
”दिमाग़ में िववता, लेखन औऱ चाय पीते – पीते मम्मी हर सुबह िी तरह ऐसे बोलती ही
चली िा रहीं थी मुझसे िैसे िुतनया भर िी सब बातें एि साथ ही मुझ पर उडेल िें !”
धचराग आया था, ऐसा हुआ.... वैसा हुआ !
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SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE - जनवरी-2022.pdf

  • 1.
  • 2. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com - WHATSAPP NO. 91-9785837924 शोध , साहित्य और संस्क ृ ति की माससक वैब पत्रिका नयी गंज-------. वर्ष 2022 अंक 1 i
  • 3. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com - WHATSAPP NO. 91-9785837924 संपादक मंडल प्रमुख संरक्षक प्रो. देव माथुर vishvavishvaaynamah.webs1008@gmail.com मुख्य संपादक रीमा मािेश्वरी shuddhi108.webs@gmail.com संपादक सशवा ‘स्वयं’ sarvavidhyamagazines@gmail.com शाखा प्रमुख ब्रजेश क ु मार aryabrijeshsahu24@gmail.com परामशषदािा कमल जयंथ jayanth1kamalnaath@gmail.com ii
  • 4. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com - WHATSAPP NO. 91-9785837924 संपादकीय सशवा ‘स्वयं’ अपनी जन्मभसम को नमन करने, िम शब्दों की भेंट लाये िैं ! पपरो हदया िै स्यािी में अंिमषन की ज्वाला को, िम पावन अपनी धरिी मााँ का वंदन करने आये िैं अपने आप को पाने क े सलए िी िो सारी जद्दोजिद िै ! जीवन का सदुपयोग िो सक े , िम वो बन सक े जैसा बन कर लगे कक िााँ, अब अंदर सुकन िै ! पर ऐसा िो क ु छ भी करक े िोिा निीं ! मृग िृष्णा िै भीिर, बस क े वल बढ़िी िी जािी िै ! समट्टी से अब खुश्ब आिी निीं िै, घरों में माबषल सजा कर उसमें से खुश्ब अनुभव करने की कोसशश कर रिे िैं िम सब ! ऐसा भी किीं िोिा िै ? क्योंकक िम वस्िुओ से खुद को भर कर, वास्िव में खाली कर रिे िैं ! भरना िै िो पवचारों को भरो, जो िमें एक हदन परा िो करेंगे ! निीं िो संभविः िमारी पंजी में िीरे मोिी निीं क ं कड़ पत्थर िी रि जायेंगे ! एक पपवि प्रेरणा का िाथ पकड़ कर चलो जो इस िरि साथ िोिी िै जैसे मााँ की ऊ ाँ गली थाम कर चलना, वो जो िमेशा कोमल रास्िो पर चलना निीं ससखािी, वो िो उबड़ खाबड़ रास्िों का तनमाषण खुद िी करिी िै कक उसक े बच्चे को उन रास्िों पर iii
  • 5. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com - WHATSAPP NO. 91-9785837924 चलना आ जाये ! वो ससखािी िै कक िज़ार बार भी गगरो िो कोई बाि निीं मगर िौसला एक बार भी गगरने मि देना ! वो भरोसा ससखािी िै, अवगुणों से भरे िम, यहद जीवन में गुण जोड़ लें िो यि गचरस्थाई संपपि िोगी, जजससे सच्चा श्ृंगार सम्भव िो जािा िै ! िम बिुि मेिनि से कमािे िैँ, अपने जीवन कों सजािे िैँ अच्छे कपड़ो से, बड़ी गाड़ी से, मिंगे समानों औऱ आलीशान घरों से ! कमाई एक िो बािर क े सलए िोिी िै जो जीवन का बािरी रंग सुन्दर कर देिी िै लेककन इस बािर कों सजाने की दौड़ में अंदर से सुंदरिा िो दर की बाि िै अंदर की िो गन्दगी िक साफ निीं िो पािी – ककसी गायक की किी पंजक्ियााँ िैँ कक - क्यों पानी में मल मल नहाये मन की मैल उतार ओ प्राणी.. हदन राि पररश्म करक े िम चमकने वाली चीज़े िो खरीद लेिे िैँ लेककन व्यजक्ित्व क े रंग को िो काला िी कर देिे िैँ - घृणा, प्रतिस्पधाष, जलन, लोभ इिने पवकार भर जािे िैँ िम में औऱ िम उनको अपने अंदर की क ु रूपिा निीं मानिे बजकक िम इन पवकारों क े साथ जीने क े इिने आहद िो जािे िैँ कक व्यजक्ित्व में इन सब बािों को िम सिज़ मानने लगिे िैँ ! समझना िो इस बाि को पड़ेगा कक जजस िरि ऊपर से चमकने क े सलए क ु छ देर क े सलए मेकअप ककया जा सकिा िै लेककन स्थाई चमक क े सलए अच्छा स्वास््य चाहिए उसी िरि अपने भीिर स्वस्थ पवचारों को रख कर िी िम स्वयं अपने पवस्िार को पा सकिे िैँ, अन्यथा निीं !’इसी उद्देश्य की प्राजति की ओर यि पिला कदम.... iv
  • 6. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com - WHATSAPP NO. 91-9785837924 शुभेच्छा नयी गूंज------. पररवार परामशषदािा- प्रश्न िै कक संस्क ृ ति क्या िै। यं संस्क ृ ति शब्द सम्+क ृ ति से बना िै, जजसका अथष िै अच्छी क ृ ति। अथाषि् संस्क ृ ति वस्िुिः राष्रीय अजस्मिा क े पररचायक उदाि ित्वों का नाम िै। भारिीय सन्दभष में संस्क ृ ति व्यजक्ितनष्ठ न िोकर समजष्टतनष्ठ िोिी िै। संस्क ृ ति की संरचना एक हदन में न िोकर शिाजब्दयों की साधना का सुपररणाम िोिा िै। अिः संस्क ृ ति सामाससक-सामाजजक तनगध िोिी िै। संस्क ृ ति वैचाररक, मानससक व भावनात्मक उपलजब्धयों का समुच्चय िोिी िै। इसमें धमष, दशषन, कला, संगीि आहद का समावेश िोिा िै। इसी की अपररिायषिा की ओर संक े ि करिे िुए भिृषिरर ने सलखा िै कक इसक े त्रबना मनुष्य घास न खाने वाला पशु िी िोिा िै- ‘‘साहित्यसंगीिकला-पविीनः साक्षाि्पशुः पुच्छपवर्ाणिीनः।। मुख्य संपादक उपतनर्द् क े शब्दों में किें िो संस्क ृ ति में जीवन क े दो आयाम श्ेय व प्रेय का सामंजस्य िोिा िै। इन्िीं आधार पर आध्याजत्मक, वैचाररक व मानससक पवकास िोिा िै और इन्िीं क े आधार पर जीवन-मकयों व संस्कारों का तनधाषरण िोिा िै और यिी जीवन क े समग्र उत्थान क े सचक िोिे िैं। सशक्षा-िंि में इन्िीं सांस्क ृ तिक मकयों का सशक्षण-प्रसशक्षण िोिा िै। विषमान में सशक्षा-व्यवस्था संस्क ृ ति की अपेक्षा सम्यिा- तनष्ठ अगधक िै। िात्पयष िै कक विषमान सशक्षा पवचार-प्रधान, गचन्िन-प्रधान व मकयप्रधान की अपेक्षा ज्ञानाजषन-प्रधान िै। वस्िुिः इसी का पररणाम िै कक सम्प्रति सशक्षा क े द्वारा बौद्गधक स्िर में िो असभवृद्गध िुई िै ककन्िु संवेदनात्मक या भावनात्मक स्िर घटा िै। v
  • 7. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com - WHATSAPP NO. 91-9785837924 संपादक – िमारी सशक्षा में सांस्क ृ तिक मकयों क े स्थान पर पजश्चमी सभ्यिा-मलक ित्वों को उपादान क े रूप में ग्रिण कर सलया गया िै। िभी िो सशक्षा व समृद्गध क े पाश्चात्य मानदण्डों को आधार मान सलया िै जो संस्क ृ ति- पवरोधी िैं, जजनमें नैतिक व मानवीय मकयों का पवशेर् स्थान निीं िै। इसी का पररणाम िै कक बुद्गधमान व गरीब नैतिक व्यजक्ि सामाजजक दृजष्ट से भी िांससये पर िी रििा िै और नैतिकिा-पविीन, संवेदनिीन, भ्रष्टाचारी व अपराधी भी सम्पन्न, सभ्य, सम्मान्य व प्रतिजष्ठि िोिा िै। इसी संस्क ृ ति-पविीन व्यवस्था क े कारण शोर्ण-प्रधान पंजीवादी व्यवस्था िी ग्राह्य िो गई िै, जजसने रिन-सिन क े स्िर को िो उठाया िै, पर इस भोगवादी बाजारवादी व्यवस्था क े कारण अथषशास्ि व िकनीककपवज्ञान क े सामने नैतिकिा व मानवीयिा गौण िो गई िै। जबकक राधाक ृ ष्णन व कोठारी आयोग की मान्यिा थी कक सशक्षा ऐसी िोनी चाहिये जो सामाजजक, आगथषक व सांस्क ृ तिक पररविषन का प्रभावी माध्यम बन सक े । इस दृजष्ट से भारिीय प्रक ृ ति और संस्क ृ ति क े अनुरूप सशक्षा से िी मकयपरक उदाि-गुणों का संप्रेर्ण और समग्र व्यजक्ित्व का तनमाषण सम्भव िै। इसमें पुराने व नये का त्रबना पवचार ककये जो देश की अजस्मिा व समाज क े हििकर िै, उसी को प्रमुखिा देनी चाहिए। शाखा प्रमुख की कलम से-- पप्रय पाठकों संस्थान की पत्रिका नयी गंज क े पिले अंक का लोकापषण एक आंिररक सुख की अनुभति करा रिा िै। मुझे प्रसन्निा िै कक शाखा प्रमुख क े रूप में कायषभार संभालने क े बाद मुझे आप सभी से नयी गंज क े इस अंक क े माध्यम से रूबरू िोने का मौका समल रिा िै। िम ककिना भी पवकास कर लें ककन्िु यहद समाज में संवेदना िी मर गई िो सब व्यथष िै। इस संवेदनिीनिा क े चलिे समाज में नकारात्मक ऊजाष हदन प्रति-हदन बढ़िी जा रिी िै जो तनन्दनीय भी िै और पवचारणीय भी। आवश्यकिा िै कक िम अपवलम्ब इस हदशा में अपने प्रयास आरम्भ कर दें। वस्िुिः अपने कमों से िम अपने भाग्य को बनािे और त्रबगाड़िे िैं। यहद गंभीरिा से गचंिन-मनन ककया जाय िो िमारा कायष-व्यापार िमारे व्यजक्ित्व क े अनुसार िी आकार ग्रिण करिा िै और िमें अपने कमष क े आधार पर िी उसका फल प्राति िोिा िै। कमष ससफ ष शरीर की कियाओं से िी संपन्न निीं िोिा अपपिु मनुष्य क े पवचारों से एवं भावनाओं से भी कमष संपन्न िोिा िै। वस्िुिः जीवन-भरण क े सलए िी ककया गया कमष िी vi
  • 8. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com - WHATSAPP NO. 91-9785837924 कमष निीं िै िम जो आचार-व्यविार अपने मािा-पपिा बंधु समि और ररश्िेदार क े साथ करिे िैं वि भी कमष की श्ेणी में आिा िै। मसलन िम अपने वािावरण सामाजजक व्यवस्था, पाररवाररक समीकरणों आहद क े प्रति जजिना िी संवेदनशील िोंगे िमारा व्यजक्ित्व उिनी िी उच्चकोहट की श्ेणी में आयेगा। आज क े जहटल और अति संचारी जीवन-वृपि क े सफल संचालन िेिु सभी का व्यजक्ित्त्व उच्च आदशों पर आधाररि िो ऐसी मेरी असभलार्ा िै। यि ज़रूरी निीं िै कक िर कोई िर ककसी कायष मे पररपणष िो, परन्िु अपना दातयत्व अपनी परी कोसशश से तनभाना भी देश की सेवा करने क े समान िी िै। संपणष किषव्यतनष्ठा से ककया िुआ कायष आपको अवश्य िी कायष-समाजति की संिुजष्ट देगा। कोई भी ककया गया कायष िमारी छाप उस पर अवश्य छोड़ देिा िै अिएव सदैव अपनी श्ेष्ठिम प्रतिभा से कायष संपन्न करें। िर छोटी चयाष को और छोटे-से-छोटे से कायष क े िर अंग का आनंद लेकर बढ़िे रिना िी एक अच्छे व्यजक्ित्व का उदािरण िै। यि सवषपवहदि ि्य िै कक नयी गंज एक उच्च स्िरीय पत्रिका िै जजसमें पवसभन्न पवधाओं में उच्चस्िरीय लेखों का अनठा संग्रि िै आप सभी पत्रिका का आनन्द लें एवं अपनी प्रतिकियायें ऑनलाइन या ऑफलाइन भेजें। नयी गंज क े माध्यम से िमारा आपका संवाद गतिशील रिेगा। आप सभी अपनी सुन्दर व श्ेष्ठ रचनाओं से नयी गंज को तनरन्िर समृद्ध करिे रिेंगे इसी पवश्वास क े साथ। अंि में मैं सभी सम्पादक मण्डल क े सदस्यों एवं रचनाकारों को नयी गंज पत्रिका क े सफल सम्पादन एवं प्रकाशन क े सलए साधुवाद ज्ञापपि करिा िं करिा िाँ। आप सभी को िाहदषक बधाई क े साथ बिुि-बिुि धन्यवाद!! कासलदास ने काव्य क े माध्यम से किा िै- पुराणसमत्येव न साधु सवं न चापप काव्यं नवसमत्यवद्यम्। सन्िः परीक्ष्यान्यिरद् भजन्िे मढः परप्रत्ययनेय बुद्गधः।। अथाषि्पुरानी िी सभी चीजें श्ेष्ठ निीं िोिी और न नया सब तनन्दनीय िोिा िै। इससलए बुद्गधमान व्यजक्ि परीक्षा करक े जो हििकर िोिा िै उसी को ग्रिण करिे िैं जबकक मखष दसरों का िी अन्धानुकरण करिे िैं। अस्िु, तनपवषवाद रूप से यि सभी स्वीकार करिे िैं कक राष्र की रक्षा, का सकारात्मक पक्ष िोिा िै। vii
  • 9. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com - WHATSAPP NO. 91-9785837924 प्रकाशन सामग्री भेजने का पिा ई-मेलःgoonjnayi@gmail.com नयी गंज इंटरनेट पर उपलब्ध िै। www.nayigoonj.com पर जक्लक करें। नयी गंज.में प्रकासशि लेखाहद पर प्रकाशक का कॉपीराइट िै शुकक दर 40/- वापर्षक: 400/- िैवापर्षक: उपयुषक्ि शुकक-दर का अगग्रम भुगिान 1200/- को -----------------------------------------द्वारा ककया जाना श्ेयस्कर िै। तनयम तनदेश 1 रचनाएं यथासंभव टाइप की िुई िों, रचनाकार का परा नाम, पद एवं संपक ष पववरण का उकलेख अपेक्षक्षि िै। 2 लेखों में शासमल छाया-गचि िथा आाँकड़ों से संबंगधि आरेख स्पष्ट िोने चाहिए। प्रयुक्ि भार्ा सरल, स्पष्ट एवं सुवाच्य हिंदी भार्ा िो। 3 अनुहदि लेखों की प्रामाणणकिा अवश्य सुतनजश्चि करें। अनुवाद में सिायिा िेिु संस्थान संपादक मंडल प्रकोष्ठ से संपक ष कर सकिे िैं। 4 प्रकासशि रचनाओं में तनहिि पवचारों क े सलए संपादक मंडल प्रकोष्ठ उिरदायी निीं िोगा और इसक े सलए परी की परी जजम्मेदारी स्वयं लेखक की िी िोगी। नई गाँज तनयमावली रचनाएं goonjnayi@gmail. Com ई-मेल पिे पर भेजी जा सकिी िैं। रचनाएं भेजने क े सलए नई गाँज क े साथ लॉग-इन करें, यि वांतछि िै। आप िमारे whatsapp no. 9785837924 पर भी अपनी रचनाएाँ भेज सकिे िैँ viii
  • 10. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com - WHATSAPP NO. 91-9785837924 पप्रय सागथयों, नई गाँज िेिु आपक े सियोग क े सलए आपका िाहदषक धन्यवाद। आशा िै कक ये संबंध आगे भी प्रगति क े पथ पर अग्रसर रिेंगे। आगामी अंक िेिु आप सबक े सकिय सियोग की पुनः आकांक्षा िै। आप सभी से एक मित्वपणष अनुरोध िै कक आप अपने शोध प्रपि तनम्न प्रारूप क े ििि िी प्रस्िुि करें जजससे कक िमें िकनीकी जहटलिाओं का सामना न करना पड़े - 1.प्रकाशन िेिु आपकी रचना क े मौसलक िोने का स्विः सत्यापन रचना प्रेपर्ि करिे समय "मौसलकिा प्रमाण पि" पर िस्िाक्षर करना अतनवायष िै। इसक े त्रबना रचना पर पवचार करना संभव निीं िोगा 2. रचना किीं पर भी पवष में प्रकासशि निीं िोनी चाहिए ! 3. आपकी रचनाएाँ एम.एस. ऑकफस में टाइप िोना चाहिए 4. फोंट - कृ तिदेव 10, मंगल यतनकोड 5. रचनाओं क े साथ अपना पणष पिा, मोबाइल नंबर, ईमेल िथा पासपोटष साइज की फोटो लगाना अपेक्षक्षि िै ! 6. आप लेख, कपविा, किानी, ककसी भी पवधा में रचनाएाँ भेज सकिे िैँ ! नई गाँज रचनाओं क े प्रेर्ण सम्बंगधि तनयम व शिे :  एक से अगधक रचनायें एक िी वडष-डॉक्यमेंट में भेजें।  रचनायें अपने पंजीकृ ि पेज पर हदए गए सलंक इस्िेमाल कर प्रेपर्ि करें।  यहद आप हिंदी में टाइप करना निीं जानिे िैं, आप गगल द्वारा उपलब्ध करवायी गयी सलतयान्िरण सेवा का इस्िेमाल कर सकिे िैं। इसक े सलए Google इनपुट उपकरण सलंक पर जाएाँ। स-आभार संपादक मंडल ix
  • 11. क्रम संख्या वििरविका पृष्ठ संख्या लेख – लेखक पृष्ठ संख्या 1 मानि जीिन में विक्षक का महत्ि बृजेि कुमार 1 - 5 2 भारत मेरा भारत दुर्ाा माहेश्वरी 6 -10 3 मुखौटे के पीछे कौन डॉ वििा धमेजा 11 -14 कविता 4 नीड़ का वनमााि फिर फिर हररिंि राय बच्चन 15 -17 5 ितामान व्यिस्था की सच्चाई विनोद मानिी 18 - 21 6 कृष्ि अजुान संिाद बृजेि कुमार 22 - 26 7 मेरी प्यारी मााँ ( नन्ही कलम से ) अंजली साहू 27 कहानी 8 सुनिाई अलका प्रमोद 28 – 32 9 सौ बरस के वलए ईश्वर डॉ वििा धमेजा 33 – 36 10 पहचान आिा िैली 37 – 48 11 र्ीत – लाि कंधे पर वलए कब तक अिोक रक्ताले 49 – 50 12 लोक कथा – मााँ पन्ना धाय का त्यार् 51 – 56 13 आलेख – वहन्दू ह्रदय सम्राट – महाराजा सूरजमल बृजेि कुमार 57 – 66 14 ऐवतहावसक स्थल एक नजर – वचत्तौडर्ढ़ (राजस्थान ) 67– 72 15 सावहत्य अकादमी पुरस्कार के बारे में जावनए 73 - 76 अनुक्रमाविका
  • 12. साक्षात्कार 16 साक्षात्कार – सावहत्य (बोहती ढांडा ) 77 - 84 17 साक्षात्कार – आर. जे. एस. (पुलफकत िमाा ) 85 - 90
  • 14. “शिक्षक” दीपक की भाांति होिा है शिक्षक, स्वयां जलकर प्रकाि फ ै लािा है शिक्षक, उन्नति का मार्ग ददखािा है शिक्षक, ज्ञान की र्ांर्ा में नहलािा है शिक्षक, इसशलए िो शिक्षक साधारण नहीां होिा, शमट्टी को सोना बनािा है शिक्षक! 2
  • 15. रतीय संस्कृ तत में शिक्षक क े शिए गुरु िब्द का प्रयोग ककया गया है! जिसका अर्थ होता है- ज्ञान देने वािा अर्ाथत अंधकार से प्रकाि की ओर िे िाने वािा! बच्चों की जिंदगी में मां क े बाद शिक्षक की बहुत बडी भूशमका होती है! वह बच्चे को ककस तरह ढ़ािता है, यह तनभथर करता है उसकी योग्यता पर! अगर शिक्षक का िाजब्दक अर्थ देखे तो पता चिता है कक शिक्षण का कायथ करने वािा अर्ाथत अध्ययन- अध्यापन कराने वािा! “जजस प्रकार एक क ु म्भकार शमट्टी को िरह-िरह की आकृ ति में ढ़ाल देिा है उसी प्रकार बच्चे क े भववष्य का तनमागिा उसका शिक्षक ही है!” अनेक िेखकों ने शिक्षक िब्द की अिग-अिग व्याख्या की है – “शिष्य क े मन में सीखने की इच्छा जार्ृि करने वाला – शिक्षक!” “कमजोरी को दूर कर शिखर िक ले जाने वाला – शिक्षक!” यह सब का अपना एक मत है िेककन सच यह है कक शिक्षक ही बच्चे का भववष्य तनमाथता होता है! प्राचीन काि हो या वतथमान, भारतीय संस्कृ तत में शिक्षक/ गुरु का पद ईश्वर क े समकक्ष बताया गया है! िैसे ईश्वर सवथिजततमान होने पर भी कभी गित नहीं करता है, वैसे ही शिक्षक अपने शिष्य का कभी बुरा नहीं सोच सकता! शिक्षक ही है िो बच्चे क े मन में प्रगतत, उन्नतत तर्ा सपनों को साकार करने की भावना पैदा करता है! शिक्षक की शिक्षा ही है िो हमारे िीवन को सही ददिा तनदेि देती है और हमें सफिता क े मागथ पर आगे िे िाती है! यदद शिक्षक ने होते तो िायद हमारा समाि या यह कहे पूरा ववश्व इतना आगे नहीं बढ़ा होता! सीखना एक अिग प्रकिया है िेककन सीख कर सीखना एक अिग चीि है! िरूरी नहीं कक सीखने वािा वही चीि दूसरे को शसखा सक े ! माता-वपता तर्ा भगवान क े बाद शिक्षक की होता है िो बच्चे का भववष्य तय करता है! भा 3
  • 16. स्वामी ववरिानंद सरस्वती िैसे आचायथ ने इस समाि का राष्र को िो अमूल्य शिष्य दयानन्द सरस्वती ददया है! जिसने अपने राष्र की धरोहर वेद ज्ञान तर्ा गुरुक ु ि शिक्षा को पुन स्र्ावपत करने का प्रयास ककया! समाि में फ ै िी क ु रीततयों तर्ा आडंबरो का पुरिोर ववरोध ककया! अपना पूरा िीवन राष्र तर्ा समाि की सेवा क े शिए तनछावर कर ददया! यह अपने आप में एक अद्भुत कायथ है! यह प्रततज्ञा आचायथ चाणतय ने अपनी शिष्य चंद्रगुप्त का तनमाथण कर पूरी की और अपनी योग्यता क े बि पर चंद्रगुप्त िैसे तनधथन और गरीब बािक को चिवती सम्राट बना ददया! यह होती है शिक्षक की भूशमका! शिक्षक क े ववषय में महापुरुषों क े ववचार – “अच्छा शिक्षक वह है जो जीवन पयंि ववद्यार्थी बना रहिा है और इस प्रक्रिया में वह क े वल क्रकिाबों से नहीां अवपिु ववद्यार्र्थगयों से भी सीखिा है!” - डॉक्टर सवगपल्ली राधाकृ ष्णन “मैं शिक्षक हूां, यदद मेरी शिक्षा में सामर्थयग है, िो अपना पोषण करने वाले सम्राटों का तनमागण मैं स्वयां कर लूांर्ा” – चाणक्य “एक सभ्य घर जैसा कोई स्क ू ल नहीां है और एक भद्र अशभभावक जैसा कोई शिक्षक नहीां है” - महात्मा र्ाांधी “क े वल एक चीज जो मुझे सीखने में हस्िक्षेप करिी है, वो है मेरी शिक्षा” – अल्बटग आइांस्टीन “मैंने जो क ु छ भी सीखा है, क्रकिाबों से सीखा है” – अब्राहन शलांकन “शिक्षा की जडे कडवी होिी हैं, मर्र फल मीठा होिा है” - अरस्िु आचायग चाणक्य ने घनानांद को चुनौिी देिे हुए कहा क्रक – “घनानांद शिक्षक साधारण नहीां होिा, तनमागण और प्रलय उसकी र्ोद में पलिे हैं! अर्र मुझ में सामर्थयग है, िो मैं अपने पोषण करने वाले सम्राटों का तनमागण कर लूांर्ा!” 4
  • 17. “शिक्षक समाज क े दपगण को स्वच्छ रखने का वह कायग करिा है जजस में आने वाली पीदढ़याां अपने अच्छे एवां र्लि ववचार रूपी मुांह को देखने में भली भाांति सक्षम हो पािी है! हम जैसे हैं उसमें हमारे पूवग शिक्षकों का अिुल्य योर्दान है, भववष्य में जो व्यजक्ि होंर्े उसमें हमारी भूशमका भी प्रमुखिा से शलखी जाएर्ी, अिः सावधान होकर अपने किगव्य का पालन करें” – अज्ञात िेककन प्राचीन काि और वतथमान क े शिक्षक मैं उनकी कर्नी और करनी में बहुत अंतर आ गया है! अब शिक्षा व्यापार बन कर रह गई है! आि शिक्षक की जस्र्तत वेतन भोगी क े शसवाय क ु छ नहीं है! इसशिए आि की जस्र्तत को देखकर ककसी ने कहा है – िबकक शिक्षक इस राष्र तर्ा समाि की िडे हैं! जिस प्रकार िड क े दहि िाने पर पेड गगर िाता है, उसी प्रकार एक उत्तम शिक्षक क े बबना शिष्य का तनमाथण नहीं हो सकता है! अतः शिक्षक को अपने कतथव्य को समझ कर, बच्चों को िारीररक मानशसक बौद्गधक रूप से तैयार करना चादहए! तयोंकक छोटे बच्चे शमट्टी की तरह है, िैसा शिक्षक डािेगा, बस वैसे ही ढि िाएंगे! आि शिक्षक और शिष्य क े बीच दूरी बनती िा रही है, वे भी समाप्त होगी! तभी हम सही अर्थ में कह सक ें गे कक शिक्षक ही अपने शिष्य का सच्चा सही पर् प्रदिथक है! र्ुरु लोभी चेला लालची, दोनों खेल दाव! भवसार्र में डूबिे, बैठ पत्र्थर की नाव!! 5 बृजेि क ु मार
  • 18. यह एक अप्रिय तथ्य है कक सन् 1947 में भारत द्वारा स्वतन्त्रता िाप्तत क े अवसर पर भारत का प्रवभाजन धमम क े आधार पर ककया गया | पृथक राष्ट्र इस मान्त्यता क े आधार पर हहन्त्दू और इस्लाममक दो राष्ट्रों की पररकल्पना को मौन स्वीकृ तत िदान करते हुए भारतमाता का अंग – भंग ककया गया था उसी क्षण हमारे कणमधारों क े मन में यह बात बैठ गई कक धमम को राजनीतत से पृथक रखना चाहहए ! अपने इस संकल्प को साकार करने क े प्रवचार से उन्त्होंने भारत क े संप्रवधान में भारत को एक धममतनरपेक्ष राज्य ( Secular State ) घोप्रित ककया! धमम का अथम धमम को सामान्त्यतः अंग्रेजी क े शब्द Religion क े अथम में ियोग ककया जाता है और उसको मत, पंथ, मजहब आहद क े रूप में ग्रहण ककया जाता है | ररलीजन ( Religion ) की अवधारणा अलौककक प्रवश्वासों तथा अतत िाकृ ततक शप्ततयों से सम्बद्ध है , जबकक धमम भावना में ककसी िकार क े अलौककक क े ितत प्रवश्वास क े मलए कोई स्थान नहीं है हमको यह जानकर आश्चयम नहीं करना चाहहए कक धमम ग्रन्त्थों एवं आचार संहहताओं में जहााँ धमम क े लक्षण बताए गए हैं | वहााँ आत्मा , परमात्मा अथवा ककसी अतत िाकृ त एवं अधध - िाकृ त की चचाम नहीं की गई है | भारत मेरा भारत 6
  • 19. यथा- धारण करने क े कारण ही धमम कहलाता है, धमम िजा को धारण करता है- (महाभारत ) डॉ . राधाकृ ष्ट्णन ने धमम की भारतीय अवधारा को स्पष्ट्ट करते हुए मलखा है कक "प्जन मसद्धान्त्तों क े अनुसार हम अपना दैतनक जीवन व्यतीत करते हैं तथा प्जनक े द्वारा हमारे सामाप्जक सम्बन्त्धों की स्थापना होती है , वे सब धमम है धमम जीवन का सत्य है और हमारी िकृ तत को तनधामररत करने वाली शप्तत है" इस दृप्ष्ट्ट से धमम कर्त्मव्य भावना का वाचक ठहरता है । महाभारतकार ने सामाप्जक स्वास्थ्य को दृप्ष्ट्टगत करक े नागररकों को आदेश हदया है । कक "सावधान होकर धमम का वास्तप्रवक अथम सुनो और उसी क े अनुसार आचरण करो जो क ु छ तुम अपने मलए हातनिद और दुःखदायी समझते हो , वह दूसरे क े साथ मत करो” | पाश्चात्य धचन्त्तन में भी हमको कर्त्मव्यपरक धमम की अवधारणा ममल जाती है | जममनी क े दाशमतनक कप्रव गेटे का कथन है कक "सच्चा धमम हमें आधितों का सम्मान करना मसखाता है और मानवता, तनधमनता, मुसीबत , पीडा एवं मृत्यु को ईश्वरीय देन मानता है ! प्रवश्ववन्त्य पूज्य महात्मा गांधी िायः यह कहा करते थे " मेरा प्रवश्वास है कक बबना धमम का जीवन बबना मसद्धान्त्त का जीवन होता है और बबना मसद्धान्त्त का जीवन वैसा ही है जैसा कक बबना पतवार का जहाज | प्जस तरह बबना पतवार का जहाज धैयम , क्षमा , दम , अस्तेय , शौच , इप्न्त्िय - तनग्रह , तत्वज्ञान , आत्मज्ञान , सत्य और आक्रोध ये दस धमम क े लक्षण हैं | ( मनुस्मृतत ) 7
  • 20. मारा - मारा किरेगा , उसी तरह धममहीन मनुष्ट्य भी संसार - सागर में इधर - उधर मारा - मारा किरेगा और अपने अभीष्ट्ट स्थान तक नहीं पहुाँचेगा ! चूाँकक राजनीतत हमारे जीवन का अमभन्त्न अंग है | अतः उसका भी धमम होना चाहहए अथामत् वह भी कततपय मान्त्यताओं पर आधाररत होनी चाहहए | धममप्रवहीन राजनीतत असामाप्जक होगी और वह हमारे मलए हहतकर नहीं है | धमम और राजनीतत का सम्बन्त्ध भारत में धमम को राजनीतत का मागमदशमक माना गया है और इसी दृप्ष्ट्ट से राजा क े धमम का राजा क े कर्त्मव्य का स्वरूप - तनधामरण ककया गया है- " राजा यहद आलस्य छोडकर दण्ड देने लायक अपराधी को दण्ड न दे तो बलवान दुबमलों को लोहे क े कॉ ं टे में पकडी हुई मछमलयों की तरह खा डालें " तथा " राजा शास्र क े अनुसार मंबरयों द्वारा िजा से वाप्रिमक कर वसूल करे और अपनी िजा क े साथ प्रपता क े समान व्यवहार करे | " ( मनुस्मृतत ) इस आदशम का पालन करने वाले राजा क े ितत ककसी को प्रवरोध नहीं होता है आधुतनक संदभम में यहद कोई राजनेता उतत आदशम का अनुसरण करता तो – “न राजनेता से प्रवरोध हो सकता है और न ही राजनेताओं का तनमामण करने वाली राजनीतत से |” तो ककसी को ककसी से भी मशकायत नहीं होगी | कालान्त्तर में धमम क े मनमाने अथम लगाकर शासक धमम क े नाम पर िजा पर अत्याचार करने लगे अथवा जनता का शोिण करने लगे | तब से राजनीतत क े क्षेर में 'ररलीजन' को अछ ू त समझा जाने लगा | लोग धमम क े मूल अथम को भूल गए और ररलीजन क े समकक्ष धमम को मानकर धमम से परहेज करने लगे | राजनीतत क े संदभम में धमम और ररलीजन का एक ही अथम में ियोग ककया जाने लगा है | 8
  • 21. राजनीतत का धमम हो धमम क े नाम पर राजनीतत क े अमभशतत बन जाने का मुख्य कारण यह है कक स्वाथमपरता क े कारण हम लोगों ने धमम क े वास्तप्रवक अथम को भुला हदया है तथा गांधीवादी जीवनदशमन को अस्वीकार कर हदया है | धमम वस्तुतः मानवता एवं नैततकता का पयायम है | इस दृप्ष्ट्ट से मानवमार का धमम क े वल एक धमम , मानव धमम ठहरता है | संप्रवधान में यहद भारत का धमम मानव धमम मान मलया गया होता , अथवा मान मलया जाए , तो धमम क े नाम पर उत्पन्त्न उन्त्माद एवं आतंक को सहज ही तनयंबरत कर मलया जाए , तयोंकक तब हम मजहवी कट्टरता को बुरा - भला कहेंगे , न कक धमम से उत्पन्त्न काल्पतनक संकीणमता पर आाँसू बहाना चाहेंगे | महात्मा गांधी धमम और ररलीजन क े भेद को समझते थे | उन्त्होंने राजनीतत में धमम भावना अथवा नैततकता का समावेश करक े प्रवश्व को सत्य एवं अहहंसा का संदेश हदया था | सत्य का व्यावहाररक रूप अहहंसा है और धमम नैततकता का पयामय है | राजनीतत में नैततकता का समावेश करक े गांधीजी ने राजनीतत का शुद्धधकरण ककया और धमम क पर राजनीतत करने वालों को अलग - थलग करने का ियास ककया | उनका मत सवमथा स्पष्ट्ट था कक "जो चीज प्रवकार को ममटा सक े , राग - द्वेि को कम कर सक े , प्जस चीज क े उपयोग में मन सूली पर चढ़ते समय भी सत्य पर डटा रहे, वही धमम की मशक्षा है, मैं इस बात से सहमत नहीं हूाँ कक धमम का राजनीतत से कोई सम्बन्त्ध नहीं है, धमम से प्रवलय राजनीतत मृत शरीर क े तुल्य है, जो क े वल जला देने योग्य है" देश की जो राजनीततक मान्त्यताएं हैं , उनका अनुसरण करना और देश क े संप्रवधान क े अनुसार देश क े जो राजनीततक उद्देश्य हैं | उनकी पूततम करना , यही 9
  • 22. राजनीतत का धमम होना चाहहए भारत जैसे प्रवशाल देश में अपने संप्रवधान की सीमाओं में कायम करना राजनीतत का धमम होना चाहहए | इसक े बाहर जाने का अथम होगा राजनीतत क े धमम का उल्लंघन, इस दृप्ष्ट्ट से संप्रवधान में संशोधन करने क े पूवम खूब सोच - समझ लेना चाहहए | जहााँ तक सम्भव हो यथाप्स्थतत वाली नीतत अपनाई जानी चाहहए , तयोंकक एक बार छ ू ट हो जाने पर छ ू ट का अन्त्त नहीं होता है | भारत इसका ज्वलन्त्त उदाहरण है | िततविम औसतन दो संशोधन करक े संप्रवधान को अपना अनुगामी बनाकर तया हम राजनीतत में धमम को अलग नहीं बता रहे हैं | दुगाम माहेश्वरी 10
  • 24. ही तो हूँ, वो ! जो कभी ककस रंग में तो कभी ककस रंग में ! वो कौनसा रंग है जो मेरा है, इन सब में से ! कोई नहीं ! इंसान ककतनी बखबी छछपा लेता है असललयत को, ऐसी कमाल की प्रछतभा क े वल हम मनुष्यों में ही तो होती है ! शेर, शेर ही दिखता है , वो कभी दहरन जैसा दिखने या होने का प्रयास नहीं करता ! सांप, सांप ही दिखता है, हम उससे संभल कर चल सकते हैँ ! अगर सांप में खुि पर चींटी का मुखौटा लगाने की क्षमता आ जाती तो सोचचये ककतने डंक जीवन में हमें लग जाते! लेककन सांप ककतना भी जहरीला क्यों न हो वो अपने जहर को ढक कर याछन छछपा कर नहीं रखता! इसललये उसकी यह सबसे बड़ी ख़बसरती है कक वो सांप है पर सच्चा है, बबना मुखौटे क े है ! बबल्ली शेर बनकर डराती नहीं ! औऱ शेर बबल्ली का रूप बनाकर हमारे आस पास रह सकता नहीं ! ककतना सच्चा है सब जानवरों क े जंगलों में, हम इंसानों क े जंगलों में ककस चेहरे क े पीछे कौनसा चेहरा छछपा है – ये सच कभी कोई नहीं जान सकता ! सबको पता होता है शेर दहंसक जानवर है, इससे बच कर रहना है, नहीं तो खा जायेगा ! मगर ये इंसान ? जजसको कोई नहीं जानता कक कब यह ककस रूप में होगा? जो दहंसक भी हो तो हम बेखबर होते हैँ औऱ वो कब हमें खा जाता है, पता ही नहीं चलता ! औऱ कोई दहंसक ना हो, बहुत स्नेदहल भी हो तो हम उससे डरने लगते हैँ, उस पर शक करने लगते हैँ ! सोचते हैँ कक बनता तो अच्छा है ऊपर से, असली में ऐसा नहीं होगा ! मैं 12
  • 25. क्यों ? क्योंकक शेर ने मुखौटे तो नहीं लगाए औऱ हम बड़े क ु शल हैँ –‘तरह - तरह क े मुखौटे लगा लेते हैँ ! इसललये लसनेमा जगत में भी एक गाना बहुत प्रचललत हुआ – “एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैँ लोग !” इस कायय में इतने पारंगत होते हैँ हम कक एक ही समय में कई भलमकाओं को छनभा लेते हैँ ! इंसानी बुजदि का बड़ा गैर काननी प्रयोग है ये ! जजसकी कोई सजा नहीं ! सजा तो क्योंकक तब हो सकती है ज़ब अपराध साबबत हो ! मुखौटे लगाकर जीने को कोई अपराध ही नहीं मानता ! इंसान ने डडचियों से बुद्चध को इतना ववकलसत कर ललया है कक ककतने भी खबसरत ढंग से अपनी बिसरती को छछपाने में सफल हो जाता है ! काश कक बहुरुवपया इंसान, जानवरों की तरह उसी रंग का होता, जो उसका अपना व्यजक्तत्व होता, चाहे अच्छा होता या बुरा ! चाहे काला होता या सफ़ े ि ! चाहे वो “सच्चे पर शक औऱ झठे पर ववश्वास ! तभी तो यहाूँ इंसानों क े जंगलों में कोई ककसी का नहीं, ककतनी भी सावधानी बरतो, हम लशकार हो ही जाते हैँ – धोखे लमल ही जाते हैँ औऱ जानवरों क े जंगलो में सावधानी बरत कर खुले शेर से भी बच कर हम सही सलामत आ जाते हैँ !” 13
  • 26. आजस्तक होता या नाजस्तक ! जैसा होता बस वैसा होता ! सबसे सुन्िर उसका असली रूप होता ! तब वो क ु रूप होकर भी आकर्यक लगता ! वो पुराने जमाने जैसा होता कक सीधा, सच्चा ! चाहे उसकी अलमाररयों में जीत क े प्रमाण कई मैडल ना होते लेककन कई अबोले, अव्यक्त, पुण्य कमों से उसक े खाते भरे होते ! अपने चेहरे पर से िसरे चेहरे को उतार फ ें क े तो हम वो पाक – पववत्र – साफ चेहरा पा लेंगें, जो ईश्वर की भेंट है – हम स्वयं ! हम स्वयं, स्वयं क े पास औऱ सबक े साथ एक जैसे, सच्चे रूप में ! डॉ. शिवा धमेजा लेखक 14
  • 27. नीड़ का ननर्ााण फिर-फिर, हररवंश राय बच्चन नीड़ का ननर्ााण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर! वह उठी आँधी फक नभ र्ें छा गया सहसा अँधेरा, धूलि धूसर बादिों ने भूलर् को इस भाँनि घेरा, राि-सा ददन हो गया, फिर राि आई और कािी, िग रहा था अब न होगा इस ननशा का फिर सवेरा, राि क े उत्पाि-भय से भीि जन-जन, भीि कण-कण फकं िु प्राची से उषा की र्ोदहनी र्ुस्कान फिर-फिर! 15
  • 28. नीड़ का ननर्ााण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर! वह चिे झोंक े फक काँपे भीर् कायावान भूधर, जड़ सर्ेि उखड़-पुखड़कर गगर पड़े, टूटे ववटप वर, हाय, निनकों से ववननलर्ाि घोंसिो पर क्या न बीिी, डगर्गाए जबफक क ं कड़, ईंट, पत्थर क े र्हि-घर; बोि आशा क े ववहंगर्, फकस जगह पर िू नछपा था, जो गगन पर चढ़ उठािा गवा से ननज िान फिर-फिर! 16
  • 29. नीड़ का ननर्ााण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर! क्र ु द्ध नभ क े वज्र दंिों र्ें उषा है र्ुसकरािी, घोर गजानर्य गगन क े क ं ठ र्ें खग पंक्क्ि गािी; एक गचडड़या चोंच र्ें निनका लिए जो जा रही है, वह सहज र्ें ही पवन उंचास को नीचा ददखािी! नाश क े दुख से कभी दबिा नहीं ननर्ााण का सुख प्रिय की ननस्िब्धिा से सृक्टट का नव गान फिर-फिर! नीड़ का ननर्ााण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर! 17
  • 30. वर्तमान व्यवस्था की सच्चाई आज करें हम बार् देश की देश हमारा बबगडा है। नेर्ाओं ने मंत्री बंन कर देश हमारा ररगडा है ॥ पुलिस हमारी अत्याचारी चारधाम हैं थाने जी । बबन पैसे क े काम करे ना थानेदार ना माने जी ॥ स्क ू िों की हािर् देखो टीचर मस्र्ी मार रहे बच्चे गुटखा -जदात खावे बच्चों को ना डांट रहे , 18
  • 31. कहा बर्ाऊ बार् देश की गंदगी हम फ ै िार्े हैं। क ु त्ता -बबल्िी मरे सडक पर उनको ना दफनार्े हैं ॥ कहे मानवी सुन मेरे भाई बार् समझ में ना आई बेटा हमने 4 करें हैं । बेटी हमने मरवाई बेटी बचाओ , बेटी पढाओ यही हमारा नारा है ॥ देश क े सैननक वीर बहादुर दुश्मन को ििकारा है। 19
  • 32. भगर् लसंह की र्रह देश में र्ुम भी ऐसा काम करो गांधीजी क े सपनों की खानर्र भारर् मां से प्यार करो वर्तमान की बार् करें हम हम र्ो वह सुल्र्ान हैं ॥ भारर् मां को अमरीका में लमिर्ा अब सम्मान हैं । िेककन बच्चों सुनो कहानी भक्र् देश का बनना है ॥ अब्दुि ( किाम ) क े सपनों को साकार र्ुम्ही को करना है । 20
  • 33. अमेररका -जापान ,चीन हो अब ना र्ुम को डरना है ॥ िाि ककिे की प्राचीर से भारर् मां की गररमा है। वंदे मार्रम ् -वंदे मार्रम ् ,जय हहंद! ववनोद मानवी 21
  • 34. कृ ष्ण-अर्जुन यजद्ध संवाद कर्ुण्येवाधधकारस्ते र्ा फलेषज कदाचन । र्ा कर्ुफलहेतजर्जुर्ाु ते संगोऽस््वकर्ुणण ॥ 22
  • 35. र्ब श्री कृ ष्ण ने शांतत प्रस्ताव र्ें पांडवों क े ललए पांच गााँव देने की बात कही, तब दजयोधन ने एक इंच र्र्ीन देने से र्ना कर ददया! तब र्हार्ारत क े यजद्ध का द्वार खजल गया और क ज रु सेना , पांडवों की सेना क ज रुक्षेत्र र्ें आ गई । यजद्ध की दोनों ओर से शंख तथा दजंदर्ी बर्ने लगी ! तब अर्जुन अपना गाण्डीव हाथ से धगरा देता है । तब श्री कृ ष्ण पाथु को र्ो कहते हैं , उससे आगे कववता शजरू होती है- हे पाथु उठो! अब यजद्ध करो , कायरता नपजंसक का गहना है, गाण्डीव उठा गर्ुन कर डालो , सर्र र्ूलर् र्ें हलचल कर डालो , पााँचर्न्य को फ ूं का रण र्ें , इसकी अब तजर् लार् बचा लो । शोक तजम्हें न शोर्ा देता , रण र्ें क े वल योद्धा होता , ररश्ते - नाते ना होते रण र्ें , वीरों को ना रोते देखा , क े वल रक्त पात होता है , ववर्यश्री का लक्ष्य होता है । 23
  • 36. जर्नको तजर् अब देख रहे हो , क े वल यह अधर्ी योद्धा हैं , र्ो चजप बैठे थे रार्सर्ा र्ें , चौसर होते देख रहे थे , आयों की र्याुदाओं को खंड-खंड करक े , सब पर पानी फ े र रहे थे ! लसंह नाद की र्गह , श्रगाली आवाज़ सजनाई देती है , पजत्र र्ोह क े आगे रार्न र्र्बूर ददखाई देते हैं , नारी का चीर हरण होने पर , शस्त्र ना जर्नक े उठते हैं , र्ानो अब खून नहीं वीरों का , बजर्ददल बनकर बैठे हैं ! ऐसे इन अधर्ी लोगों का , लर्ट र्ाना ही अच्छा है , 24
  • 37. हे पाथु सजनो , इस धर्ु यजद्ध र्ें , शस्त्र उठाना अच्छा है , जर्ससे वीरों की शोर्ा हो , धर्ु ध्वर्ा आगे को बढे । इतना सजनकर पाथु बोला , हे क े शव! क ै से बाण चला दूाँ र्ैं , ववर्यश्री क े ललए अपनों को र्ार धगरा दूाँ र्ैं , इन्हीं हाथों ने बचपन र्ें , सबक े ही पैर दबाये हैं , र्ीष्र् वपतार्ह ने लसर को , चूर् चूर् कर हर्को र्ी लाड लडाए हैं , अगर बाण की नॉक करू ाँ र्ैं , 25
  • 38. लज्र्ा र्जझको आती है , है क े शव! अब र्ृ्यज दे दो , यही सीख सजहाती है । यह सजनकर क े शव र्जस्काये , र्गत गजरु ने उपदेश सजनाये , र्न्र् र्ृ्यज क े बंधन का , गीता ज्ञान सजनाते हैं , सजख- दजुःख से आगे बढने का , स्य र्ागु बतलाते हैं , इतना सजनकर पाथु ने गाण्डीव हाथ र्ें उठा ललया , कौरव सेना पर टूट पडे , हाहाकार र्चा ददया । - बृर्ेश क ज र्ार 26
  • 39. मेरी प्यारी मााँ मााँ हमको लगती प्यारी है, मााँ की ममता ही न्यारी है! पहले तो मााँ दुलारती है, दुलार कर हमें जगाती है! विद्यालय क े ललए फिर मााँ ही, करती सारी तैयारी है! विद्यालय से िापस आते, मााँ को मुस्क ु राते ही पाते! हमको मुस्क ु राते देखती तो, मााँ जाती बारी-बारी है! मााँ ही गंगा की धारा है, मााँ ही मेरी ि ु लिारी है! मेरी मााँ सबसे प्यारी है!! अंजली साहू कक्षा-7th बाल भारती विद्यालय (अलिर) अलवर 27
  • 40. कनिका िे घड़ी देखी रात के ग्यारह बज गये थे पर निनति अभी तक िही आया था ,कनिका को निन्ता होिे लगी ।निनति उसकी आँखों का तारा था क्षण भर भी उसे उदास देखिा उन्हे गवारा ि था।तभी द्वार की घंटी बजी ,कनिका दौड़ कर दरवाजा खेालिे गई ।उसिे सोि नलया था नक आज निनति से कह देगी नक कल से वह उसके नलये दरवाजा खोलिे के नलये इतिी रात तक िही जागेगी। अगर दस बजे के बाद घर में पांव रखा तो ि तो खािा नमलेगा ि मैं बात कर ं गी । द्वार खोलते ही सामिे खाकी वदी वाले को देख कर कनिका का हदय काँप उटा। कहीं निनति के साथ तो कु छ िही हुआ इस आशंका िे उसकी सुध बुध नबसरा दी। इसके पूवव नक वह कु छ पूछती पुनलस वाले िे कहा ‘‘ यह निनति का घर है ’’? “जी हां बताइये मैं उसकी माँ हँ वह ठीक तो है ि ’’? “पहले आप उसे बुलाइये तब में बताऊ ँ गा नक वह ठीक है नक िहीं ’’। “मतलब ?’’ “आपके बेटे के नवरुद्ध अरेस्ट वारेंट है ’’। कनिका मािो आसमाि से नगरी हो उसिे कहा ‘‘ देनखये आपको कोई गलतफहमी हुई है यह निनति गुलाटी का घर है निनति मेरा बेटा यूनिवसवटी में बी एस सी का छात्र है, कोई िोर उिक्का िहीं है ’’। “जी हाँ मैं उसी निनति गुलाटी की बात कर रहा हँ जो यूनिवसवल कालेज में बी एस सी कर रहा है और इसी घर में रहता है ’’। “ क्यों क्या नकया है मेरे बेटे िे ?’’कनिका को अभी भी नवश्वास था नक पुनलस वाले को धोखा हुआ है ,वह नकसी और निनति के भ्रम में उसे बेटे को पूछ रहा है। उस पुनलस वाले िे कहा ‘‘ आपके बेटे पर बलात्कार का आरोप है” । कनिका के पाँव तले जमीि नखसक गई। ‘‘ िहीं िहीं मेरा बेटा ऐसा िहीं कर सकता वह शरीफ घर का बेटा है ।” “देनखये वो कै से घर का बेटा है मुझे उससे कु छ लेिा देिा िहीं है पर नजस लड़की के साथ उसिे नखलवाड़ नकया है उसिे उसी का िाम नलया है ’’ दरोगा िे घर का िप्पा िप्पा छाि डाला नफर निनति को ि पा कर नफर आिे की धमकी दे सुनवाई 28
  • 41. कर िला गया । वो तो घर में सब कु छ उलट पलट कर िला गया पर कनिका के मि में जो झंझावत उत्पन्ि कर गया उसके समक्ष उलट पलट कु छ ि थी। कनिका को नवश्वास था नक नकसी दुश्मिी में उस लड़की िे ऐसा कहा होगा ।उसिे उस लड़की से नमलिा तय नकया। रात नकसी तरह कटी पर सुबह ही वह थािे पहुँि गई । वहाँ वह लड़की और उसके घर के लोग ,नमत्र और कु छ तमाशा देखिे वाली भीड़ उपनस्थत थी। कनिका को देखते ही नकसी िे कहा ‘‘ अरे यह ही तो है उस बलात्कारी की माँ ’’ सब उसे घूर घूर कर देखिे लगे , । लोगों िे उसे घेर नलया कोई बोला‘‘ इसी को अगवा कर लो तब तो बच्िू हाथ आएंगे।’’कु छ लोग तो उसे अपशब्द भी कहिे से बाज ि आये, नजन्हें सुिकर कनिका लज्जा से गड़ गई ,अपमाि से उसका िेहरा लाल हो गया। वो तो पुनलस के नसपाही िे उसके अन्दर जािे का रास्ता बिाया अन्यथा पता िही कनिका उसके साथ भीड़ क्या करती। अन्दर वह लड़की बैठी थी उसकी सूजी आँखें ,िेहरे का आक्रोश और अस्त व्यस्त नस्थनत उसकी सच्िाई के साक्षी थे ।संभवतः पूरी रात वह और उसका पररवार कोतवाली में ही रहे थे, नफर भी कनिका का मि ि मािा ,उसिे उस लड़की से पूछा ‘‘ क्या जो बयाि तुमिे नदया है वह सि है ’’? मािवी नबफर पड़ी ‘‘ आप क्या समझती हैं मुझे अपिा तमाशा बिािे का शौक है जो मैं यह कोतवाली ,लोगों के उल्टे सीधे प्रश्नों और मेडकल िेकअप की यातिा सह रही हँ”! कनिका सकपका गई, अपिे को संयत करते हुए शान्त स्वर में उसिे पूछा ‘‘ िहीं मेरा मतलब है नक क्या तुम श्योर हो नक तुम्हारे साथ अिािार करिे वाला निनति गुलाटी ही था ’’? “जी हाँ वि हन्रेड वि परसेंट श्योर हँ ’’ उसिे कनिका को घूरते हुए कहा। तभी मािवी की माँ ि उसे उपेक्षा से देखते हुए कहा ‘‘ आपको क्या पता एक बेटी की इज्जत क्या होती है ,आपके बेटा है ि ,तो दे दी उसे खुली छूट नक जाओ बेटा जो मि में आये करो आनखर मदव हो। ’’ पीछे से मािवी के नपता श्री रंजि बोले ‘‘ आप अपिे बेटे को िाहे लाख नछपा लें, नजतिे िाहें जोर लगा लें पर वह बिेगा िही कािूि के हाथ बहुत लम्बे हैं”! कनिका पर व्यंग्य के वार पे वार हो रहे थे कोई माििे को तैयार िहीं था नक उसे िहीं पता नक निनति कहाँ है। उसे िेताविी दे दी गई थी नक वह कहीं बाहर िही जाएगी। नकसी प्रकार आघातों से क्षत नवक्षत वह घर आकर कटे पेड़ के समाि ढह गई । कालेज में नशनक्षका कनिका का इतिा अपमाि तो जीवि में कभी ि हुआ था। कनिका मनहला कालेज में पढ़ाती है और स्त्री वादी बातों में बढ़ िढ़ कर नहस्सा लेती रही है, पर आज उसकी बड़ी-बड़ी बातों की धनज्जयाँ उड़ गई थीं, वह भी उसके अपिे बेटे के कारण और 29
  • 42. वह प्रश्नों के कटघरे में खड़ी थी। अिािक उसे ध्याि आया नक निनति होगा कहाँ ,हो सकता है बेटा अपराधी ही हो पर है तो उसके हदय का टुकड़ा।उसके बारे में सोिते ही वह काँप उठी ‘ हे भगवाि मेरे बेटे को बिा लो’ तभी उसके अन्तमवि िे उसे टकोहा मारा ‘‘ अच्छा अगर मािवी तेरी बेटी होती तो भी क्या तू यही कहती?’’ उसिे स्वयं से तकव नकया ‘‘ क्या पता मािवी झूठ बोल रही हो ’’ उसकी हालत देखिे के बाद ऐसा माििे को मि िहीं कर रहा था।पर अपिे बेटे पर ऐसे आरोप पर भी उसे नवश्वास िहीं हो रहा था। उसे याद है नक उसिे निनति के पापा िवीि के जािे के बाद अके ले ही नकतिे लाड़ प्यार से उसे पाला है। जीवि में आये संघर्षों की तनिक भी आँि उसिे निनति पर िहीं पड़िे दी। स्वयं सारे दुख झेल कर उसे अपिे आंिल की ओट में सुख के साये में नछपाए रखा। निनति लगभग दस वर्षव का रहा होगा जब उसिे हठ ठाि नलया था नक उसके सारे दोस्त कार से स्कू ल आते हैं वह बस से िहीं जाएगा, तब कनिका िे अपिे आनफस से अनिम धि ले कर एक सेकें ड हैंड कार खरीद ली थी। जब कार घर पर आई तो निनति मारे खुशी के उसके गले लग गया था और उसको ढेर सारी नकस्सी दे डाली थी। निनति की प्रसन्िता देख कर कनिका भूल गई थी नक इस अनिम की कटौती के नलये उसे कहाँ-कहाँ अपिी आवश्यकताओं में कटौती करिी पड़ेगी। एक निनति ही तो उसके जीिे का सहारा था, उसकी हर इच्छा पूरी करके मािो वह अपिी इच्छाएं पूरी करती थी। निनति बड़ा होता गया साथ ही उसकी फरमाइशें भी । कभी कभी कनिका उसकी इच्छाएं पूरी करते-करते हाँफ जाती थी पर निनति उसकी कमजोरी था उसके मुख पर उदासी वह देख ि पाती। पर आज जो हुआ उसकी तो उसिे कल्पिा भी िहीं की थी। उसके मि अभी भी िहीं माि रहा था नक उसका बेटा, अपिा खूि ऐसा कर सकता है।क्या उससे कहीं संस्कार देिे में िूक हुई है ,पर वह तो सदा उसे बिपि में अच्छी बातें ही बताती थी । उसके मि िे उसे आश्वासि देिा िाहा , क्या पता नकसी के दबाव में या निनति से शत्रुता में नकसी और का दोर्ष निनति पर मढ़ रही हो? उसका बेटा ऐसा िहीं कर सकता ।इस तकव में उसे एक आस की नकरण नदखाई दी, वह व्यि हो गई निनति से नमलिे को। निनति का फोि नमल िहीं रहा था उसके सभी दोस्तों को वह काल कर िुकी थी। उसे समझ िहीं आ रहा था नक उसे कै से ढूँढे।वह तो पुनलस का सहारा भी िही ले सकती थी पुनलस तो उसे स्वयं ही ढूँढ रही है और भगवाि करे वह पुनलस को ि नमले ,िहीं तो भले वह अपराधी हो या ि हो पुनलस उसका पता िहीं क्या हाल करेगी। उसिे टीवी खोला उस पर भी यही समािार आ रहा था। वह नकससे कहे क्या कहे। उसिे एक दो अपिे पररनितों को सहायता के नलये कॉल नकया, पर सबिे उसकी सहायता तो दूर सहािुभूनत नदखािा भी उनित िहीं समझा। अगले नदि समािारों में भी इसी काले समािार से पन्िे रंगे थे। उसमें अपिे कालेज जािे का साहस ि था। उसिे फोि पर अपिी अस्वस्थता को बहािा करिे हेतु फोि नकया पर उधर से सुििे को नमला उसिे उसके पैरों तले जमीि नहला दी। उसकी प्रधािािायाव िे कहा ‘‘ देनखये नमसेज कनिका गुलाटी आपके बेटे की इस हरकत के बाद हम आपको अपिे गल्सव कालेज में रख कर अपिी बदिामी िहीं करवा सकते ।” 30
  • 43. ‘‘ पर इसमें मेरा क्या दोर्ष?’’ कनिका िे कहा तो उधर से आवाज आई ‘‘ संताि को संस्कार मां बाप ही देते हैं।’’ मािवी िे बताया था नक काफी नदिों से निनति उसके पीछे पड़ा था पर मािवी टालती रही । उस नदि वह पीछे पड़ गया उसके साथ काफी पीिे िलिे के नलये । निनति के अनधक हठ करिे पर मािवी िे उसे नझड़क नदया निनति को यह रास ि आया । मािवी प्रायः कक्षा के बाद लायब्रेरी में बैठ कर पढ़ती थी।दूसरे नदि जब मािवी की सहेनलयाँ िली गई ंऔर वह लायब्रेरी में पढ़ रही थी ,तो निनति िे उसे नकसी से झूठा संदेश नभजवाया नक मािवी को के नमस्री की रंजिा मैडम लैब में बुला रही हैं। यद्यनप कालेज समाप्त हो िुका था पर मािवी िे सोिा, होगा कोई काम अतः वह िली गई।लैब में जब मािवी पहुँिी तो वहाँ कोई ि था ,वह इसे नकसी का मजाक समझ कर लौटिे को हुई नक वहाँ नछपे निनति िे दरवाजा बन्द कर नलया और उसके साथ व्यनभिार नकया। लैब थोड़ा दूर था और कालेज का समय समाप्त हो िुका था अतः मािवी की िीख कोई सुि िहीं पाया। कनिका मि ही मि नवश्लेर्षण कर रही थी नक ऐसा क्यों हुआ । भले उसिे बेटे को गलत बातें िहीं नसखायीं पर शायद उसकी हर इच्छा को पूरी करके उसे निरंकु श बिा नदया। उसिे जो िाहा वो पाया इसी नलये तो वह मािवी की ‘ि’ को सह िहीं पाया।मािवी का अभी तक घर ि आिा उसे दोर्षी नसद्ध कर रहा था। काश! वह बेटे के प्यार में अंधी ि होती ,उसके नक्रया कलापों ,उसकी हठी प्रकृ नत को देख पाती ,काश! वह थोड़ी सी कठोर बि करे निनति को संयम का पाठ भी पढ़ा पाती।अब बहुत देर हो िुकी थी कनिका फफक-फफक कर रो पड़ी ।उसे मािवी के बारे में सोि कर ही स्वयं से घृणा होिे लगी। भले ही मािवी तथा अन्य लोग उसे िफरत से देख रहे थे पर वह भी एक स्त्री होिे के िाते मािवी की पीड़ा को अिुभव कर पा रही थी और कोई समय होता तो वह अब तक िारी वाद का झंडा उठा कर निकल िुकी होती पर यहाँ तो दुश्मि उसका अपिा बेटा था । तभी बाहर घंटी बजी वह बाहर गई तो पुनलस के नसपाही िे बताया नक निनति पकड़ा गया और उसे थािे बुलाया गया है कनिका उसी हालत में थािे की ओर िल दी। पुिः भीड़ के आक्रोश और व्यंग्य का तीर सहते कोतवाली पहुँिी। निनति िे उसे देख कर िैि की साँस ली बोला ‘‘ मम्मा मैं आपका ही इन्तजार कर रहा था। देखो मुझे बिाओ कोई बड़ा वकील करके मेरी जमाित कराओ”! “बेटा जो आरोप तुझ पर लगा है क्या वह सि है ?’’ कनिका िे पूछा। ‘‘मम्मी अब कम से कम आप मेरी इन्क्वायरी ि करो, नकसी तरह मुझे बाहर निकालो।’’ निनति के इस उत्तर िे उसकी रही सही आशा भी समाप्त कर दी। कनिका के ति बदि में आग लग गई वह भूल गई नक निनति उसका बेटा है उसिे निनति को कई झापड़ जड़ नदये और कहा ‘‘तूिे ऐसा िीि काम क्यों नकया?’’ निनति िे निढ़ कर कहा ‘‘ मम्मी आप मेरी मम्मी हैं नक उस लड़की की?’’ 31
  • 44. कनिका िे कहा ‘‘यही तो दुख है नक मैं तेरी माँ हँ, तूिे दुष्कमव भले मािवी के साथ नकया है पर इज्जत मेरी लुट गई है कोई अन्तर िहीं है मेरी और उसकी पीड़ा में । उसकी कम से कम सुिवाई तो है पर मेरी तो कोई सुिवाई भी िहीं है”!यह कह कर कनिका वहीं धरती पर नगरकर मुँह ढाप कर नबलख पड़ी। अलका प्रमोद 32
  • 45. कितने मंदिर, मस्जिि, गुरूद्वारे, कितनी पूिाएँ, ववधि-वविान, सबिा एि लक्ष्य, ईश्वर ममल िाये तो िीवन िन्य हो ! िीवन तो िन्य ही है, हम ही आँखों पर पट्टी लगाये हुए हैं ! िभी- िभी हम उस चीि िी तलाश िर रहें होते हैं, िो हमारे ही पास होती है ! ईश्वर िी तलाश भी ि ु छ ऐसी ही है ! वो शक्ल सूरत िारण िरि े हमारे साथ उठते बैठते हैं, बात िरते हैं, यहाँ ति कि हमारे मलए बहुत प्यार से खाना बनाते हैं, किर प्यार से अपने हाथों से हमें खखला ते भी हैं ! सौ बरस ि े मलए ईश्वर डॉ. मशवा िमेिा 33
  • 46. ईश्वर सब बच्चों ि े पास होते हैं 100 बरस ि े मलए औऱ उतने ही बरस हम उनसे भागने, उनसे िूर िाने में लगा िेते हैं ! िो ईश्वर 100 बरस साथ रहते हैं! वो घर में अि े ले होते हैं, औऱ हम उन्हीं िो ढूंढ़ने मंदिर िी लाइनों में िािर लग िाते हैं ! कितनी ववधचत्र है प्रभु िी माया ! िरअसल िीवन िा सबसे बड़ा सत्य है कि िो वजतु स्ितनी सहि आपिो ममल िाती है, उतनी ही उसिी िीमत धगर िाती है! माता- वपता भी ऐसे ही हैँ, उनि े प्रेम पर इतना अटूट भरोसा होता है हमें कि हम सौ प्रततशत िानते हैं कि अपमान िी िोई भी सीमा, उनि े मन से हमारे मलए बुरे भावों िो िन्म ति िेने में सिल नहीं हो पायेगी ! वो किर भी हज़ारों हज़ार आशीवााि ही िेंगे !” मैं बस यूँ ही मन में भावों िो आिार िेती हूँ, हाथों में िभी सिाई ि े मलए झाड़ू, िभी बतानों में गीले हाथ, िलम हाथ में लें सि ूँ ऐसा वक़्त ममलता नहीं! इन सब दिनचयाा ि े िामों में लेकिं न मन ि े अंिर जयाही से शब्ि बनते – बबखरते ही रहते हैं ! अभी अभी आँख खुली औऱ मैं रोज़ िी तरह सबसे पहले किचन िी तरि गई, िहीं मम्मी मुझसे पहले िग िर िाम में तो नहीं लग गई ! अपने सपनों िो िबािर, छ ु पािर मुजि ु राते हुए, मैं िाम में लग गई बबल्ि ु ल यँत्रवत ! किचन िी जलैप साि िी, झूठे बतान इिठ्ठा किये ! िचरे िी थैली बनाई ! गाय ि े खाने िो अलग थैली में डाला, बाहर रखने गई तो रोज़ िी तरह इंतज़ार िरते िरवािे ि े बाहर खड़े गली ि े तीन ि ु त्ते, उनिो तोष डाले, धचड़ड़यों िा पानी बिला ! बाहर रखी िूि िी थेमलयां लेिर मैं अंिर आ गई ! मम्मी अभी िगिर किचन ि े बाहर ति आई थी ! चाय बनाई सुबह ि े 7 बिे थे ¡ ि ु छ बबस्जिट्स, नमिीन स्िसि े बबना चाय पीने िी आित ही नहीं मुझे ! ”दिमाग़ में िववता, लेखन औऱ चाय पीते – पीते मम्मी हर सुबह िी तरह ऐसे बोलती ही चली िा रहीं थी मुझसे िैसे िुतनया भर िी सब बातें एि साथ ही मुझ पर उडेल िें !” धचराग आया था, ऐसा हुआ.... वैसा हुआ ! 34