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2. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE
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शोध , साहित्य और संस्क
ृ ति की माससक वैब पत्रिका
नयी गंज-------.
वर्ष 2022
अंक 2
i
3. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE
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संपादक मंडल
प्रमुख संरक्षक
प्रो. देव माथुर
vishvavishvaaynamah.webs1008@gmail.com
मुख्य संपादक
रीमा मािेश्वरी
shuddhi108.webs@gmail.com
संपादक
सशवा ‘स्वयं’
sarvavidhyamagazines@gmail.com
शाखा प्रमुख
ब्रजेश क
ु मार
aryabrijeshsahu24@gmail.com
परामशषदािा
कमल जयंथ
jayanth1kamalnaath@gmail.com
ii
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संपादकीय
सशवा ‘स्वयं’
अपनी जन्मभसम को नमन करने,
िम शब्दों की भेंट लाये िैं !
पपरो हदया िै स्यािी में अंिमषन की ज्वाला को,
िम पावन अपनी धरिी मााँ का
वंदन करने आये िैं
अपने आप को पाने क
े सलए िी िो सारी जद्दोजिद िै ! जीवन का सदुपयोग
िो सक
े , िम वो बन सक
े जैसा बन कर लगे कक िााँ, अब अंदर सुकन िै ! पर
ऐसा िो क
ु छ भी करक
े िोिा निीं ! मृग िृष्णा िै भीिर, बस क
े वल बढ़िी िी
जािी िै !
समट्टी से अब खुश्ब आिी निीं िै, घरों में माबषल सजा कर उसमें से खुश्ब
अनुभव करने की कोसशश कर रिे िैं िम सब !
ऐसा भी किीं िोिा िै ?
क्योंकक िम वस्िुओ से खुद को भर कर, वास्िव में खाली कर रिे िैं ! भरना िै
िो पवचारों को भरो, जो िमें एक हदन परा िो करेंगे ! निीं िो संभविः िमारी
पंजी में िीरे मोिी निीं क
ं कड़ पत्थर िी रि जायेंगे !
एक पपवि प्रेरणा का िाथ पकड़ कर चलो जो इस िरि साथ िोिी िै जैसे मााँ
की ऊ
ाँ गली थाम कर चलना, वो जो िमेशा कोमल रास्िो पर चलना निीं
ससखािी, वो िो उबड़ खाबड़ रास्िों का तनमाषण खुद िी करिी िै कक उसक
े बच्चे
को उन रास्िों पर
iii
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चलना आ जाये ! वो ससखािी िै कक िज़ार बार भी गगरो िो कोई बाि निीं
मगर िौसला एक बार भी गगरने मि देना !
वो भरोसा ससखािी िै,
अवगुणों से भरे िम, यहद जीवन में गुण जोड़ लें िो यि गचरस्थाई संपपि िोगी,
जजससे सच्चा श्ृंगार सम्भव िो जािा िै !
िम बिुि मेिनि से कमािे िैँ, अपने जीवन कों सजािे िैँ अच्छे कपड़ो से, बड़ी
गाड़ी से, मिंगे समानों औऱ आलीशान घरों से ! कमाई एक िो बािर क
े सलए
िोिी िै जो जीवन का बािरी रंग सुन्दर कर देिी िै लेककन इस बािर कों सजाने
की दौड़ में अंदर से सुंदरिा िो दर की बाि िै अंदर की िो गन्दगी िक साफ
निीं िो पािी –
ककसी गायक की किी पंजक्ियााँ िैँ कक -
क्यों पानी में मल मल नहाये
मन की मैल उतार ओ प्राणी..
हदन राि पररश्म करक
े िम चमकने वाली चीज़े िो खरीद लेिे िैँ लेककन
व्यजक्ित्व क
े रंग को िो काला िी कर देिे िैँ - घृणा, प्रतिस्पधाष, जलन, लोभ
इिने पवकार भर जािे िैँ िम में औऱ िम उनको अपने अंदर की क
ु रूपिा निीं
मानिे बजकक िम इन पवकारों क
े साथ जीने क
े इिने आहद िो जािे िैँ कक
व्यजक्ित्व में इन सब बािों को िम सिज़ मानने लगिे िैँ !
समझना िो इस बाि को पड़ेगा कक जजस िरि ऊपर से चमकने क
े सलए क
ु छ
देर क
े सलए मेकअप ककया जा सकिा िै लेककन स्थाई चमक क
े सलए अच्छा
स्वास््य चाहिए उसी िरि अपने भीिर स्वस्थ पवचारों को रख कर िी िम स्वयं
अपने
पवस्िार को पा सकिे िैँ, अन्यथा निीं !’इसी उद्देश्य की प्राजति की ओर यि
पिला कदम....
iv
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शुभेच्छा
नयी गूंज------. पररवार
परामशषदािा-
प्रश्न िै कक संस्क
ृ ति क्या िै। यं संस्क
ृ ति शब्द सम्+क
ृ ति से बना िै, जजसका अथष िै अच्छी क
ृ ति। अथाषि्
संस्क
ृ ति वस्िुिः राष्रीय अजस्मिा क
े पररचायक उदाि ित्वों का नाम िै।
भारिीय सन्दभष में संस्क
ृ ति व्यजक्ितनष्ठ न िोकर समजष्टतनष्ठ िोिी िै। संस्क
ृ ति की संरचना एक हदन
में न िोकर शिाजब्दयों की साधना का सुपररणाम िोिा िै। अिः संस्क
ृ ति सामाससक-सामाजजक तनगध
िोिी िै। संस्क
ृ ति वैचाररक, मानससक व भावनात्मक उपलजब्धयों का समुच्चय िोिी िै। इसमें धमष,
दशषन, कला, संगीि आहद का समावेश िोिा िै। इसी की अपररिायषिा की ओर संक
े ि करिे िुए भिृषिरर ने
सलखा िै कक इसक
े त्रबना मनुष्य घास न खाने वाला पशु िी िोिा िै-
‘‘साहित्यसंगीिकला-पविीनः
साक्षाि्पशुः पुच्छपवर्ाणिीनः।।
मुख्य संपादक
उपतनर्द् क
े शब्दों में किें िो संस्क
ृ ति में जीवन क
े दो आयाम श्ेय व प्रेय का सामंजस्य िोिा िै। इन्िीं
आधार पर आध्याजत्मक, वैचाररक व मानससक पवकास िोिा िै और इन्िीं क
े आधार पर जीवन-मकयों व
संस्कारों का तनधाषरण िोिा िै और यिी जीवन क
े समग्र उत्थान क
े सचक िोिे िैं। सशक्षा-िंि में इन्िीं
सांस्क
ृ तिक मकयों का सशक्षण-प्रसशक्षण िोिा िै। विषमान में सशक्षा-व्यवस्था संस्क
ृ ति की अपेक्षा
सम्यिा-तनष्ठ अगधक िै। िात्पयष िै कक विषमान सशक्षा पवचार-प्रधान, गचन्िन-प्रधान व मकयप्रधान की
अपेक्षा ज्ञानाजषन-प्रधान िै। वस्िुिः इसी का पररणाम िै कक सम्प्रति सशक्षा क
े द्वारा बौद्गधक स्िर में
िो असभवृद्गध िुई िै ककन्िु संवेदनात्मक या भावनात्मक स्िर घटा िै।
संपादक –
िमारी सशक्षा में सांस्क
ृ तिक मकयों क
े स्थान पर पजश्चमी सभ्यिा-मलक ित्वों को उपादान क
े रूप में
v
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ग्रिण कर सलया गया िै। िभी िो सशक्षा व समृद्गध क
े पाश्चात्य मानदण्डों को आधार मान सलया िै जो
संस्क
ृ ति-पवरोधी िैं, जजनमें नैतिक व मानवीय मकयों का पवशेर् स्थान निीं िै। इसी का पररणाम िै कक
बुद्गधमान व गरीब नैतिक व्यजक्ि सामाजजक दृजष्ट से भी िांससये पर िी रििा िै और नैतिकिा-पविीन,
संवेदनिीन, भ्रष्टाचारी व अपराधी भी सम्पन्न, सभ्य, सम्मान्य व प्रतिजष्ठि िोिा िै। इसी संस्क
ृ ति-
पविीन व्यवस्था क
े कारण शोर्ण-प्रधान पंजीवादी व्यवस्था िी ग्राह्य िो गई िै, जजसने रिन-सिन क
े
स्िर को िो उठाया िै, पर इस भोगवादी बाजारवादी व्यवस्था क
े कारण अथषशास्ि व िकनीककपवज्ञान क
े
सामने नैतिकिा व मानवीयिा गौण िो गई िै। जबकक राधाक
ृ ष्णन व कोठारी आयोग की मान्यिा थी
कक सशक्षा ऐसी िोनी चाहिये जो सामाजजक, आगथषक व सांस्क
ृ तिक पररविषन का प्रभावी माध्यम बन
सक
े । इस दृजष्ट से भारिीय प्रक
ृ ति और संस्क
ृ ति क
े अनुरूप सशक्षा से िी मकयपरक उदाि-गुणों का
संप्रेर्ण और समग्र व्यजक्ित्व का तनमाषण सम्भव िै। इसमें पुराने व नये का त्रबना पवचार ककये जो देश
की अजस्मिा व समाज क
े हििकर िै, उसी को प्रमुखिा देनी चाहिए।
शाखा प्रमुख की कलम से--
पप्रय पाठकों
संस्थान की पत्रिका नयी गंज क
े पिले अंक का लोकापषण एक आंिररक सुख की अनुभति करा रिा िै।
मुझे प्रसन्निा िै कक शाखा प्रमुख क
े रूप में कायषभार संभालने क
े बाद मुझे आप सभी से नयी गंज क
े
इस अंक क
े माध्यम से रूबरू िोने का मौका समल रिा िै।
िम ककिना भी पवकास कर लें ककन्िु यहद समाज में संवेदना िी मर गई िो सब व्यथष िै। इस
संवेदनिीनिा क
े चलिे समाज में नकारात्मक ऊजाष हदन प्रति-हदन बढ़िी जा रिी िै जो तनन्दनीय भी िै
और पवचारणीय भी। आवश्यकिा िै कक िम अपवलम्ब इस हदशा में अपने प्रयास आरम्भ कर दें।
वस्िुिः अपने कमों से िम अपने भाग्य को बनािे और त्रबगाड़िे िैं। यहद गंभीरिा से गचंिन-मनन ककया
जाय िो िमारा कायष-व्यापार िमारे व्यजक्ित्व क
े अनुसार िी आकार ग्रिण करिा िै और िमें अपने कमष
क
े आधार पर िी उसका फल प्राति िोिा िै। कमष ससफ
ष शरीर की कियाओं से िी संपन्न निीं िोिा अपपिु
मनुष्य क
े पवचारों से एवं भावनाओं से भी कमष संपन्न िोिा िै। वस्िुिः जीवन-भरण क
े सलए िी ककया
गया कमष िी कमष निीं िै िम जो आचार-व्यविार अपने मािा-पपिा बंधु समि और ररश्िेदार क
े साथ
करिे िैं वि भी कमष की श्ेणी में आिा िै। मसलन िम अपने वािावरण सामाजजक व्यवस्था, पाररवाररक
समीकरणों आहद क
े प्रति जजिना िी संवेदनशील िोंगे िमारा व्यजक्ित्व उिनी िी उच्चकोहट की श्ेणी में
आयेगा।
आज क
े जहटल और अति संचारी जीवन-वृपि क
े सफल संचालन िेिु सभी का व्यजक्ित्त्व उच्च आदशों
पर आधाररि िो ऐसी मेरी असभलार्ा िै।
vi
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यि ज़रूरी निीं िै कक िर कोई िर ककसी कायष मे पररपणष िो, परन्िु अपना दातयत्व अपनी परी कोसशश से
तनभाना भी देश की सेवा करने क
े समान िी िै। संपणष किषव्यतनष्ठा से ककया िुआ कायष आपको अवश्य
िी कायष-समाजति की संिुजष्ट देगा। कोई भी ककया गया कायष िमारी छाप उस पर अवश्य छोड़ देिा िै
अिएव सदैव अपनी श्ेष्ठिम प्रतिभा से कायष संपन्न करें। िर छोटी चयाष को और छोटे-से-छोटे से कायष
क
े िर अंग का आनंद लेकर बढ़िे रिना िी एक अच्छे व्यजक्ित्व का उदािरण िै।
यि सवषपवहदि ि्य िै कक नयी गंज एक उच्च स्िरीय पत्रिका िै जजसमें पवसभन्न पवधाओं में
उच्चस्िरीय लेखों का अनठा संग्रि िै
आप सभी पत्रिका का आनन्द लें एवं अपनी प्रतिकियायें ऑनलाइन या ऑफलाइन भेजें।
नयी गंज क
े माध्यम से िमारा आपका संवाद गतिशील रिेगा। आप सभी अपनी सुन्दर व श्ेष्ठ रचनाओं
से नयी गंज को तनरन्िर समृद्ध करिे रिेंगे इसी पवश्वास क
े साथ।
अंि में मैं सभी सम्पादक मण्डल क
े सदस्यों एवं रचनाकारों को नयी गंज पत्रिका क
े सफल सम्पादन
एवं प्रकाशन क
े सलए साधुवाद ज्ञापपि करिा िं करिा िाँ।
आप सभी को िाहदषक बधाई क
े साथ बिुि-बिुि धन्यवाद!!
कासलदास ने काव्य क
े माध्यम से किा िै-
पुराणसमत्येव न साधु सवं
न चापप काव्यं नवसमत्यवद्यम्।
सन्िः परीक्ष्यान्यिरद् भजन्िे
मढः परप्रत्ययनेय बुद्गधः।।
अथाषि्पुरानी िी सभी चीजें श्ेष्ठ निीं िोिी और न नया सब तनन्दनीय िोिा िै। इससलए बुद्गधमान
व्यजक्ि परीक्षा करक
े जो हििकर िोिा िै उसी को ग्रिण करिे िैं जबकक मखष दसरों का िी अन्धानुकरण
करिे िैं।
अस्िु, तनपवषवाद रूप से यि सभी स्वीकार करिे िैं कक राष्र की रक्षा, का सकारात्मक पक्ष िोिा िै।
प्रकाशन सामग्री भेजने का पिा
ई-मेलःgoonjnayi@gmail.com
नयी गंज इंटरनेट पर उपलब्ध िै। www.nayigoonj.com पर जक्लक करें।
नयी गंज में प्रकासशि लेखाहद पर प्रकाशक का कॉपीराइट िै
शुकक दर 40/-
वापर्षक: 400/-
vii
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िैवापर्षक: उपयुषक्ि शुकक-दर का अगग्रम भुगिान 1200/-
को -----------------------------------------द्वारा ककया जाना श्ेयस्कर िै।
तनयम तनदेश
1 रचनाएं यथासंभव टाइप की िुई िों, रचनाकार का परा नाम, पद एवं संपक
ष पववरण का उकलेख
अपेक्षक्षि िै।
2 लेखों में शासमल छाया-गचि िथा आाँकड़ों से संबंगधि आरेख स्पष्ट िोने चाहिए। प्रयुक्ि भार्ा
सरल, स्पष्ट एवं सुवाच्य हिंदी भार्ा िो।
3 अनुहदि लेखों की प्रामाणणकिा अवश्य सुतनजश्चि करें। अनुवाद में सिायिा िेिु संस्थान संपादक
मंडल प्रकोष्ठ से संपक
ष कर सकिे िैं।
4 प्रकासशि रचनाओं में तनहिि पवचारों क
े सलए संपादक मंडल प्रकोष्ठ उिरदायी निीं िोगा और
इसक
े सलए परी की परी जजम्मेदारी स्वयं लेखक की िी िोगी।
नई गाँज तनयमावली
रचनाएूं goonjnayi@gmail. Com ई-मेल पते पर भेजी जा सकती हैं। रचनाएूं भेजने क
े ललए
नई गूँज क
े साथ लॉग-इन करें, यह वाूंछित है।आप हमारे whatsapp no. 9785837924
पर भी अपनी रचनाएूँ भेज सकते हैँ
पप्रय सागथयों,
नई गाँज िेिु आपक
े सियोग क
े सलए आपका िाहदषक धन्यवाद। आशा िै कक ये
संबंध आगे भी प्रगति क
े पथ पर अग्रसर रिेंगे। आगामी अंक िेिु आप सबक
े
सकिय सियोग की पुनः आकांक्षा िै। आप सभी से एक मित्वपणष अनुरोध िै
कक आप अपने शोध प्रपि तनम्न प्रारूप क
े ििि िी प्रस्िुि करें जजससे कक िमें
िकनीकी जहटलिाओं का सामना न करना पड़े -
1.प्रकाशन िेिु आपकी रचना क
े मौसलक िोने का स्वतः सत्यापन रचना प्रेपर्ि
करिे समय "मौसलकिा प्रमाण पि" पर िस्िाक्षर करना अतनवायष िै। इसक
े
त्रबना रचना पर पवचार करना संभव निीं िोगा
viii
10. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE
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2. रचना किीं पर भी पवष में प्रकासशि निीं िोनी चाहिए !
3. आपकी रचनाएूँ एम.एस. ऑकफस में टाइप होना चाहहए
4. फोंट - कृ छतदेव 10, मूंगल यछनकोड
5. रचनाओूं क
े साथ अपना पणण पता, मोबाइल नूंबर, ईमेल तथा पासपोटण साइज की
फोटो लगाना अपेक्षित है !
6. आप लेख, कववता, कहानी, ककसी भी ववधा में रचनाएूँ भेज सकते हैँ !
नई गाँज रचनाओं क
े प्रेर्ण सम्बंगधि तनयम व शिे :
एक से अधधक रचनायें एक ही वडण-डॉक्यमेंट में भेजें।
रचनायें अपने पूंजीकृ त पेज पर हदए गए ललूंक इस्तेमाल कर प्रेवित करें।
यहद आप हहूंदी में टाइप करना नहीूं जानते हैं, आप गगल द्वारा उपलब्ध
करवायी गयी ललप्यान्तरण सेवा का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसक
े ललए Google
इनपुट उपकरण ललूंक पर जाएूँ।
स-आभार
संपादक मंडल
ix
Note:- प्रत्येक रचना लेखक की स्वयं मौसलक िथा सलणखि
िै! इसमें लेखक क
े स्वयं क
े पवचार िैं िथा कोई िुहट िोने
पर लेखक स्वयं जजम्मेदार िोगा!
11.
12. अनुक्रमाणिका
क्रम
संख्या
णििरणिका पृष्ठ संख्या
लेख – लेखक पृष्ठ संख्या
1 मैं हार से भी सीख लेता हं! ब्रजेश कुमार 1 – 4
2 िो रामगढ़ था ये लालगढ़ तारकेश
कुमार
ओझा
5 – 6
3 पैसा बोलता है! डॉ णशिा धमेजा 7 – 11
कणिता
4 कदम णमलाकर चलना होगा अटल णिहारी
िाजपेयी
12 – 14
5 चचता अमरेंद्र सुमन 15 – 17
6 उदास ककताबें ऋणि चसह 18 – 19
7 णशि प्राथथना देि दीपक 20 - 21
8 प्यासी प्रिीि भंडारी 22-24
कहानी
9 अधूरे सपने बृजेश कुमार 25-31
10 स्माटथ फोन डॉ णिजय कुमार
पुरी
32 – 43
गीत
11 पैराडी गीत – छात्र बेचारे इंजी.
पशुपणतनाथ
44 - 46
लोक कथा –
13. 12 छत्रपणत महाराज णशिाजी की उदारता 47 – 49
नारी तुम अबला नहीं सबला हो
13 कल्पना चािला 50 – 53
आलेख –
14 क्या अणनिायथ णमणलट्री सेिा में सेना का
णहत होगा? पक्ष / णिपक्ष
डॉ चंद्रकांत
णतिारी
54 - 65
15 ऐणतहाणसक स्थल एक नजर – कुम्भलगढ़
(राज.)
66 - 71
साणहत्य पुरस्कार के बारे में जाणनए
16 ज्ञानपीठ पुरस्कार 72 – 74
17 आयुिेद – जीिन अमृत 75 – 77
साक्षात्कार
18 साक्षात्कार – साणहत्य 78 – 85
19 साक्षात्कार - आर. जे. एस. 86 - 91
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मैं हार से भी सीख लेता हूँ !
ठोकरें खाऊ
ूँ गा पर शान से चलूंगा,
खुले आसमान क
े नीचे रहता हूं
सीना तान क
े चलूंगा,
मुश्ककलें तो आती रहेंगी श् ूंदगी में,
लडूंगा हर मुसीबत से
मैं ये ही ठान क
े चलूंगा!
(अज्ञात)
यह कविता की पंक्ततयां इस बात की ओर संक
े त करती है कक प्रत्येक मनुष्य
क
े जीिन में क
ु छ ना क
ु छ संघर्ष होते हैं! हो सकता है ककसी क
े यहां ज्यादा हो
और ककसी क
े यहां कम! लेककन इसका मतलब यह तो नह ं कक हम संघर्ष से
घबराकर, हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाये! श् ूंदगी सूंघर्ष का नाम है! इसमें जीत
भी ममलती है और हार भी! यदद आप जीत जाते हो तो विजेता कहलाते हो तथा
हार जाते हो तो अपने साथ अनुभिों तथा कामयाबी क
े रास्तों से पररचित हो
जाते हो! क्जससे आप थोडी और मेहनत करक
े अपनी मंक्जल को प्राप्त कर
लोगे!
क्जस व्यक्तत ने अपने जीिन काल में कभी हार ना देखी हो, उस व्यक्तत को
तया पता हार तया होती है अथाषत संघर्षपूर्ष जीिन तया होता है! उस व्यक्तत
क
े जीिन में थोडी मुसीबत आने पर ह टूट जाता है और अपने जीिन को
बबखेरने में ज्यादा समय नह ं लगाता! इसका कारर् यह है कक उसने अपनी
क्जंदगी में कभी मुसीबतों का सामना ककया ह नह ं! क्जसक
े कारर् ना ह िह
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उनसे लड पाता है! तथा क्जस व्यक्तत का जीिन संघर्ष में पला बडा हो, िह
व्यक्तत पहाडों क
े समान मुसीबत आने पर भी आसानी से झेल लेता है और
उनका अपनी बुद्चिमता से समािान ननकाल लेता है!
“ ो मनुष्य अपनी हर कोशशश से, अपने हर प्रयास से क
ु छ ना क
ु छ
सीखता है, वही सकारात्मक होता है! और अपनी मूंश् ल की ओर ते ी
से बढ़ता है, लेककन ो अपनी हर असफल कोशशश को नकारात्मक
तरीक
े से देखता है, उसक
े कारण ननराश होता है – वह अपने लक्ष्य
की ओर कभी नहीूं बढ़ पाता!”
अनेक महापुरुर्ों क
े जीिन काल को देखें तो उन्हें सािारर् मनुष्य से महापुरुर्
बनने में ककतनी बार अपने जीिन में हार का सामना करना पडा होगा! लेककन
उन्होंने अपने जीिन काल में हार से समझौता नह ं ककया! बक्कक उसे अपने
जीिन का हार अथाषत (आभर्ण) मानकर पहन मलया! और अपने रास्ते पर
ननरंतर बढ़ते ह िले गए! आज उनका जीिन ह हमारे मलए प्रेरर्ा का स्रोत
बन गया! आज क्जसे हम भगिान राम कहते हैं उनक
े जीिन में पल पल पर
असफलताएं ममलने पर भी कभी समझौता नह ं ककया बक्कक िे हर बार एक नई
उम्मीद क
े साथ आगे बढ़ते गए! उनक
े जीिन में अनेक घटनाएं घट ! जब सीता
का हरर् हुआ तब िह यह सोि कर घर िापस नह ं आए! कक इतने शक्ततशाल
रािर् से कौन युद्ि करेगा? और िह यह भी जानते थे कक बाल ने रािर् को
कई बार युद्ि में परास्त कर रखा है कफर भी ना ह उन्होंने बाल से सहायता
मांगी! बक्कक उन्होंने अपनी शक्तत को संजोया और लंकापनत रािर् को सदा
क
े मलए समाप्त कर ददया! उनका संपूर्ष जीिन संघर्ष और िुनौनतयों से भरा
रहा कफर भी उनक
े िेहरे पर एक मसकन मात्र भी नह ं थी! यह कारर् है कक
आज भी लोगों उन्हें मयाषदा पुरुर्ोत्तम राम क
े नाम से जानते हैं!
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ऐसे महापुरुर् श् न्होंने अपने ीवन काल में परा य को ही वव य
का मागष बनाया –
मैं हर कदम पर हारा हूं, न्मा क
े वल ीत क
े शलए हूँ! - एमरसन
इतने कम ोर मत बनो कक कोई आप को तोड़ सक
े बश्कक इतना म बत
बनो की आप को तोड़ने वाला खुद ही टट ाए – आचायष चाणक्य
ववफलता का मौसम सफलता क
े बी बोने का सवषश्रेष्ठ समय है -
परमहूंस योगानूंद
प्रयत्न करने से कभी ना चक
े , हहम्मत नहीूं तो पहचान नहीूं, ववरोधी नहीूं
तो प्रगनत नहीूं – अज्ञात
विद्िान व्यक्तत यह मानते हैं कक विजय क
े बीज हार की खाद ममट्ट में ह
पलते बढ़ते हैं! इन बीजों को पनपने में समय लग सकता है, लेककन क्जतना
समय इन बीजों को हार की खाद ममट्ट से जूझते हुए पनपने में लगता है,
उतने ह ये मजबूत होते हैं और क्जतना कम समय इन बीजों को पनपने में
लगता है, उतने ह ये कमजोर होते हैं!
इसमलए ककसी कवि ने अपनी कविता क
े माध्यम से हार से भी ना घबराकर
उससे सीखने तथा अनुभि प्राप्त करने क
े मलए ननरंतर प्रयासरत रहना िादहए
अथाषत् इन पंक्ततयों क
े माध्यम से यह संक
े त ददया है कक -
कोई भी कोशशश कभी नाकाम यूँ होती नहीूं !
मूंश्िले न भी शमली, तो फासले घट ायेंगे !
व्यक्तत जीिन में अचिक संघर्ष करता हुआ, पराजय को सहता हुआ, उसक
े द्िारा
उत्पन्न अनुभिों से आखखर विजय तक पहुुँि ह जाता है ! औऱ उसकी यह
पराजय अंत में विजय में बदल जाती है !
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मैं हारा नहीूं अब भी, मैं हारा नहीूं तब भी
बहुत शमले झूंझावात मुझे,
मैं श् तना लड़ा उनसे, श् तना भी आहत हुआ,
उतना ही मिबत हुआ, कोई हरा नहीूं पाया,
हर हार ने, अगली ीत दी मुझे
मैं हारा नहीूं अब भी, मैं हारा नहीूं तब भी!
बृ ेश क
ु मार
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िो रामगढ़ था ये लालगढ़ ....!!
यादों क
े जनरल स्टोर में क
ु छ स्मृनतयां स्पैम फोकडर में पडे रह कर समय क
े
साथ अपने – आप डडल ट हो जाती है, लेककन क
ु छ यादें बेताल की तरह हमेशा
मसर पर सिार रहती है, मानो िीख – िीख कर कह रह हो मेरा क्जक्र ककए
बगैर तुम्हार क्जंदगी की ककताब पूर नह ं हो सकती। ककस्सा 2008 क
े मध्य
का है! तब मेरे ह क्जले पश्कचम मेहदनीपुर क
े जंगल महल क
े दुगषम लालगढ़
में माओिाददयों का दुस्साहस िरम पर था! अपने शीर्ष कमांडर ककशनजी की
तमाम विध्िंसात्मक कारगुजाररयों क
े बीि माओिादयों ने स्थानीय थाने पर
ताला जड रखा था! भार उहापोह क
े बीि िहां पुमलस और अिष सैननक बलों
की संयुतत फोसष ने लालगढ़ मे आपरेशन शुरू ककया! कर ब छह ककमी लंबे
खझटका जंगल में कोबरा िादहनी क
े प्रिेश क
े साथ अमभयान शुरू हुआ! इसक
े
बाद सैकडों की संख्या में सुरक्षा जिानों क
े साथ हम शहर को लौटने लगे!
दजषनों गाडडयों में सिार सुरक्षा जिान लैंडमाइंस से बिते हुए आगे बढ़ रहे थे !
दो बाइकों में सिार हम िार पत्रकार क
ु छ ज्यादा ह जोश में शहर की ओर बढ़
रहे थे! स्टोर फाइल करने की हडबडी में हमें अंदाजा भी नह ं था कक आगे भार
विपवत्त हमारे इंतजार में खडी है! वपंडराक
ु ल क
े नजद क अिानक जोर क
े
िमाक
े क
े साथ सबसे आगे िल रहा पुमलस महकमे का सफ
े द रंग का टाटा
सूमो खड्ड में जा िंसा और बबकक
ु ल कफकमी अंदाज में गोमलयों की तडतडाहट
क
े साथ यूं भगदड मिी कक शोले कफकम का रामगढ़ याद आ गया! िैसे एक
रामगढ़ लालगढ़ में भी है, जो घटनास्थल से क
ु छ ह दूर पर था ! अिानक हुई
गोमलयाुँ की बरसात से सुरक्षा जिानों ने तो पोजीशन लेकर जिाबी फायररंग
शुरू कर द ! लेककन हम कलमकार तया करें समझ में नह ं आ रहा था....
अिानक कह ं से आिाज आई खेतों में लेट जाइए! हमने ऐसा ह ककया! दोनों
ओर से बराबर गोमलयाुँ िलती रह ! मौत हमारे मसर पर खडी थी कक तयोंकक
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शाम होने को था! अपनी मांद में लाशें बबछाना माओिाददयों क
े मलए कोई
बडी बात नह ं थी! कफर अिानक जाने तया हुआ....गोशलयों की आिाजें थम गई!
शाम क
े हकक
े अंचियारे क
े बीि फोसष का काक़िला कफर मुख्यालय लौटने की
तैयाररयों में जुटा! अपडेट क
े मलए हम अमभयान का नेतृत्ि कर रहे िर य
पुमलस अचिकार क
े पास पहुंिे! हमें देखते ह अचिकार िीखा... प्रेस िाले
पुमलस की गाडडयों से दूर रहें .... आप लोग बबलक
ु ल पीछे जाइए ..... घने
जंगल में अंिेरे में रास्ता तलाशते हुए जैसे – तैसे शहर लौटे और ड्यटी परी
की ! दूसरे ददन अखबारों में मुठभेड की खबर छपी थी , क्जसमें राज्य सरकार
क
े आला अचिकार का बयान भी था क्जसमें माओिाद प्रभावित इलाकों में
मीडडया कममषयों से पुमलस की गाडी क
े पीछे नह ं िलने की अपील की गई
थी, बाद क
े दौरों में हमने साििानी बरतने की भरसक कोमशश की.... इस
तरह कभी न भूलने िाला यह िाकया जीिन का सबक बन गया!
तारक
े श क
ु मार ओझा
ीवन की हर समस्या ट्रैकफक की लाल बत्ती की तरह होती है,
यहद हम थोड़ी देर प्रतीक्षा कर लें,
तो वह हरी हो ाती है,
धैयष रखें ,
प्रयास करें
,
समय बदलता ही हैस
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ये पैसा बोलता है
ककतनी अच्छी और ककतनी सच्िी बातें करते हैँ हम, लेककन इनकी
ताकत क
े आगे सब क
ु छ ढेर हो जाता है !
ये पैसा बोलता है.... ये पैसा बोलता है.....
अब तो बहुत आदद है जीिन, ऐसे जीिन का ! खुद आप 2 जोडी
कपडों में खुश हो तब भी दुननया आप की इस खुशी से खुश नह ं
होगी,
िो तो आप की अलमार में सौ जोडी महंगे कपडे भरिा ह देगी.. िाहे
आपका पसषनल विर्य है ये, जीिन तो आखखर आपका है, आपकी मर्ज़ी
कक आप क
ै से जीकर संतुष्ट हैँ ! लेककन हम में से अस्सी फीसद
जीिन, िो जीिन जी रह है, जैसा दुननया ने अपेक्षा की है उनसे !
’
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गाडी और घर खुद क
े सुख से ज्यादा दुननया क
े देखें जाने क
े मलए
बनाये जाते हैँ तयोंकक देखने िाला तो आपका घर, गाडी, कपडे, रहन
सहन देख कर अंदार्ज़ लगा लेगा ककतना कमाया आपने... िो ददखाने
का सरल सािन......
सबसे पहले पैसा आया तो घर िनाएंगे कफर क
ु छ साल में गाडी.... कफर
बच्िों क
े मलए अच्छे स्क
ू ल, कॉलेज.... आदद आदद...
ये ददखािा कमाते कमाते उम्र की कीमत खिष हो जाती है लेककन
ददखािे का पेट भरता ह नह ं, क्जतना खखलाओ िो खाल ह रहता है
!
’
हम सच्िी बातें करते हैँ, बडी बातें करते हैँ, लेककन उन पर अमल नह ं
कर पाते ऐसी ताकत होती हम में तो सबक
े बच्िों को इंक्ललश
मीडडयम स्क
ू लों में जाते देख कर भी अपने बच्िे को िैददक स्क
ू ल में
डालने की दहम्मत करते..... लेककन हकीकत का िरातल हमसे िो ह
करिाता है जो र नत िल आ रह है..... ये पैसा बोलता है...........
तभी तो भीड है इंक्ललश मेडडयम स्क
ू लों में, इसमलये नह ं कक अच्छा
पढ़ायेंगे... इसमलये कक बच्िे ने िहाुँ से पढ़ाई की... इस बात की मोहर
लग जाएगी !
आदमी िमष कम कमा ले तो उसे याद भी नह ं रहता लेककन िन कम
कमा ले तो िलता नह ं! , पैसा अब रोट , कपडा, मकान क
े मलए नह ं
कमाना होता, पैसा अब िाह िाह पाने क
े मलए ज़्यादा कमाना पडता है
!,
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कल शोरूम से नई गाड़ी ननकलवाई, पड़ोसी, ररकतेरदार सबने देखी बहुत
खुश होकर बधाई दी.... थोड़ा समय बीता... थोड़ा और
अरे ! भाई कब तक इस खटारा से काम चलाओगे, अब तो गाड़ी बदल
लो, नई ले लो.... इतना पैसा तो होगा बैंक में... नहीूं तो लोन पर ले
लो...
साूँसों को बेच कर कागिो क
े ढेर पर बैठ ाते हैँ हम, और हर कोई
ये कागिो की सीट सामने वाले से ऊ
ूँ ची ही वनाना चाहता है वो भी
वो, ो सीट भी स्थाई नहीूं, हमेशा ही टेम्पररी रहतीूं है , वो तो ट्राूंसफर
होती रहतीूं है !
लगातार चलती इस प्रनतयोगगता क
े हम सब भागीदार हैँ, हमें उस
बैलेंस को बनाना है, ो अपना कभी हो नहीूं पाता और उस बैलेंस को
खो देते हैँ, ो अपना होता है ! लेककन ये पैसा बोलता है.........
मैं बाहर ही कागि छापती रही, कलेक्टर बन कर देश सेवा क
े साथ
क
ु सी का रुतबा भी शमलता रहा, इसक
े पीछे क्या रह गया, कभी पता
नहीूं चल पाया... ो बीतती गई वो साूँसे थीूं, ो स्थाई नहीूं कफर भी
कोई बात नहीूं........ बढ़े हो गए वो... और हम बड़े... बड़े आदमी !
हम देख न पाए कोई सुख दुुःख उनका....! हम बड़े आदमी हो गए !
हर चीि कीमती है मगर वो मकय से आूँकी ाती है अब उपयोगगता
से नहीूं ! अब कीमती वो है श् सका मकय अगधक है वो नहीूं ो गुणी
अगधक !
आ कल सम्मान व्यश्क्त का नहीूं होता कोई ककसी का सम्मान
उसकी प्रनतभाओूं क
े शलए नहीूं करता, वो ककतना धनी है इसशलये
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करता है ! आप बड़ी आशलशान गाड़ी में ककसी, दोस्त या ररकतेदार से
शमलने ाइये कफर देखखये........ ये पैसा क
ै से बोलता है ! तब ना
आपक
े शलए नसीहते होंगी, ना आपमें कोई बुराई होगी ! हमारी गाड़ी,
हमारे सारे अवगुण नछपा लेगी और लोग अनायास ही हमारी प्रशूंसा
करने लगेंगे !
धन हमारी अवकयकताओूं को परा करने और क
ु छ भववष्य क
े शलए
ोड़ने श् तना होना चाहहए! उतना श् तना हमारे आ और कल दोनों
को सूंवार सक
ें !
इसक
े बल पर ो भी हमें शमल रहा है अगर वो मान सम्मान भी है
तो उसे अपना ना समझो क्योंकक वो तो उस पैसे का है,
कल अगर हम बड़ी गाड़ी की गह बस में उन्हीूं सबसे शमलने चले
ाएूं तो कई नसीहते और हमारी कशमयाूँ सब अच्छी तरह बोलने
लगेंगे ! सम्मान कहीूं छ – मूंतर हो ाता है !
आप क
ै से है, ये आ कोई महत्व नहीूं रखता ! आप ककतने पैसे वाले
हैँ ये महत्व रखता है !
इस कड़वे सच को हम सब ानते हैँ और कफर भी समा या पररवार
क
े अच्छे बुरे व्यवहार से प्रभाववत होते हैँ ! अपना मकयाूंकन, उनक
े
अनुसार करने लगते हैँ !
’
उनका मकयाूंकन क
े वल तब तक ऐसा है िब तक हम ने पैसा नहीूं
कमाया ! यानन वे हमें अगर सम्मान भी देंगे वो भी वास्तव में हमारा
नहीूं होगा ! तो कफर खुद पर प्रभाव क्यों आने हदया ाये ?
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पैसा इसशलये कमाएूं कक हम आत्मननभषर हों, अपनी और पररवार क़ी
हर आवकयकता परी कर सक
ें ! इसक
े कम या ज्यादा होने से लोगों
की प्रनतकिया पर ध्यान ना दें ! क्योंकक
ये पैसा बोलता है...............
यूँ िमीन पर बैठकर क्यों आसमान
देखता है !
पूँखों को खोलकर देख, माना उड़ान
देखता है!
शशवा धमे ा
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कदम शमलाकर चलना होगा
अटल बबहारी वा पेई
क़दम शमला कर चलना होगा
बािाएुँ आती हैं आएुँ
नघरें प्रलय की घोर घटाएूँ,
पािों क
े नीिे अंगारे,
शसर पर बरसें यहद ज्वालाएूँ,
ननज हाथों में हुँसते-हुँसते,
आग लगाकर लना होगास
क़दम ममलाकर िलना होगा।
हास्य-रूदन में, तफानों में,
अगर असंख्यक बमलदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
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अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओूं में पलना होगास
क़दम ममलाकर िलना होगा।
उश् यारे में, अूंधकार में,
कल कहार में, बीि िार में,
घोर घृणा में, पत प्यार में,
क्षखर्क जीत में, द घष हार में,
ीवन क
े शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
क़दम शमलाकर चलना होगास
सम्मुख फ
ै ला अगर ध्येय पथ,
प्रगनत चिरंतन क
ै सा इनत अब,
सुश्स्मत हवर्षत क
ै सा श्रम कलथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
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सब क
ु छ देकर क
ु छ न माूंगते,
पािस बनकर ढलना होगा।
क़दम शमलाकर चलना होगास
क
ु छ काूँटों से सश्ज् त ीवन,
प्रखर प्यार से िंचित यौिन,
नीरवता से मुखररत मधुबन,
परदहत अवपषत अपना तन-मन,
ीवन को शत-शत आहुनत में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम शमलाकर चलना होगास
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गचन्ता
ीवन में और भी कई रास्ते हैं
सहुशलयत क
े साथ सूंघर्ष करते हुए रोटी कमाने क
े
दो मरे, चार घायल में ही कफर परी श् ूंदगी मग मारी क्यों ?
ढूंढ़ क्यों नहीूं लेते कोई दसरी नौकरी ?
खुद का ही खुद से कोई
रो गार खड़ा क्यों नहीूं कर लेते ?
ककतना कहठन है
टुकड़े-टुकड़े की कमाई से
घर-पररवार चलाना ानते हुए भी....... ?
बीच-बीच में
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बबना मौसम क
े बाररस की तरह
टपक पड़ने वाले लोगों की सेवा अलग से ?
ऑन लाईन ऑडषर पर
सुईगी से वपज् ा, बगषर
कफलपकाटष से लेगगन्स, सरारा
और चेतन भगत की पुस्तक
ें अमे न से
दसरों की नकल करते इन बच्चों को भला कौन समझाए !
इन गहनों की खुशशयाूँ तो देखो
वर्ों से आलमारी की दरा में पड़े
हूँसे ा रहे तुम्हारी बेवककफयों पर ो बड़े इश्त्मनान से !
सुना है बड़ी ठाक
ु रबाड़ी में बडी भीड़ रहती है इन हदनों
क
ु ण्डली देख समाधान बताया करते हैं ज्योवर् ी ी महारा !
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दीदी कह रही थीूं
यहीूं क्यों नहीूं आ ाती
कोई तो व्यवस्था बनेगी हीस
नया वर्ष
शायद शुभ हो !
सुन रहे हो न
तुम्हें ही कह रही हूँ ?
सुबह से देर शाम तक काम की थकान क
े बाद
नरम – नरम हाथों से बबस्तर मेरा सर सहलाती पत्नी
खामोशशयों क
े रेगगस्तान में बेसुध हो कब सो गई मुझे भी
पता नहीूं स
(अमरेंद्र सुमन)
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उदास ककताबें
िुबाूँ खामोश थी, श् स्म पे कई राि समेटे थी,
िक़्त का हर अक़िार्ज़, िो पन्नो में लपेटे थी,
बीती सहदयाूं श् कद उसपे चढ़ा गयीूं क
ु छ ऐसे,
और मसखा गयीं हर ककसी को अनेकों ़िलस़ि
े ,
उसमे प्रेम है, ज़्बा है, ककस्से हैं बहादुरी क
े ,
मसयासत है,मतकार है और ररश्ते है मजबूर क
े ,
वो गखणत की ादगर है, ववग्यान की पहेशलयाूँ,
भार्ाओं की ज्ञाता, है कृ ष्र् की अठखेमलयां,
गीता क
े वचन वही और क
ु रान की आयतें हैं,
नानी की कहानी और क्र्ज़न्दगी की कक़िायतें हैं,
पर ना ाने ये दौर कौन सा आया है,
खुद में मसमटे हैं और मोबाइल हाथ आया है,
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शशव प्राथषना
हे महादेव शूंभो हे क
े दार
आ पहुूंचा हूं तेरे द्वार
शरणागत हूं इन चरणों में
अब तो कर दो मेरा उद्धार
हे नीलक
ूं ठ तुम स्वामी मेरे
तुम ही हो छाया तुम ही सूंसार
मैं अज्ञानी हूं अब तेरे भरोसे
अब तो कर दो मेरा उद्धार
हे पशुपनतनाथ हे क
ै लाशी
आपकी महहमा है अपरम्पार
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मैं चिव्यह में फसा हुआ हूं
अब तो कर दो मेरा उद्धार
हे मूंगलकारी हे बिनेिधारी
तुम सब गुणों क
े हो भूंडार
मेरे सब अवगुण नाश करो
अब तो कर दो मेरा उद्धार
हे त्र्यूंबक
े कवर हे महाकाल
हे ववकवनाथ हे पालनहार
नष्ट करो सूंताप ीव का
अब तो कर दो मेरा उद्धार
देव दीपक
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प्यासी
आूँखों में आूंस, चेहरे में हूंसी लेकर
खड़ी वो दरवािे में रोि
उसे खोि ननकले ह ा ा़
रों लोग रोि
दबोचने क
े शलए परी करने लगे कसर
बे-असर सी हो गई है अब
बैठी मरत-सी वो कफर तैयार हुई उसक
े ाने क
े बाद
न शशकायत ककसी से, न है कोई फररयाद
अपनी लालसा बचा क
े करती है लोगों की कसर परी
कोई समझे इसे चाहत तो कोई मिबरी
बेबुननयादी बातों से खा ाती है अपना ही सर
अक
े ले ही ीती है अक
े ले ही ाना है मर
ना कर सकती सपने परे, इस समाि में रह कर
आूँखों में आूंस, चेहरे में हूंसी लेकर
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खड़ी वो दरवािे में रोि
उसे खोि ननकले ह ा ा़
रों लोग रोि
कफर भी वो पागल-सी सुध-बुध खोए बैठी है उसी समा रूपी
काूंच में
क्योंकक लता है चकहा उसका उसी समा की आूंच में
रोती आूँखों में उसक
े एक खुशनुमा बचपन हदखाई देता है
छोटी-सी गुडड़या को सपने में रा क
ु मार हदखाई देता है
दौड़ क
े ो आता था घोड़ो में अक्सर
वो अब उसे रोि नन्गे बदन हदखाई देता है
छोटे-से कमरें में श्िन्दगी ी गई
समाि क
े खानतर वो हर पी गई
इज्ित देकर भी ना शमलती इज्ित इधर
बबना हदए ही बरन लेली ाती है
हुस्न क
े बािार में, पैसों से कीमत लगाई ाती है
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स ती है श् सक
े शलए वहीूं उसे रौंद आता है
हवस क
े नन्गे नाच में उसे अक
े ला ढक
े ल ाता है
वो बुरी है तो बुरा है वो हर एक आदमी भी
ो उसक
े हुस्न का लवा बबखेर-कर खा ाता है
प्रवीण भूंडारी
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अधरे सपने
शीतकालीन सूंध्या काल का समय था! पशु पक्षी अपने घरों की ओर लौट रहे
थे! साय-साय करती ठूंडी ठूंडी हवाएूं चल रही थी! कपकपाती सदी में नतवारी ी
क
ूं बल ओढ़ कर आूंच क
े पास बैठक में बैठे हुए थे! तभी अचानक नतवारी ी का
बेटा रा ेश गचकलाता है कक वपता ी कमला को अस्पताल ले ाना पड़ेगा!
कमला को प्रसव पीड़ा अगधक बढ़ती ही ा रही है!
नतवारी ी पुराने ववचारों की व्यश्क्त थे, उन्होंने कहा कक अस्पताल नहीूं चलेंगे!
रा ेश ाओ -
अपने घर की अगली गली से दाईमाूँ को बुला कर लाओ!
रा ेश वपता ी की बात सुनकर भागकर ाता है और दाई माूं को बुला कर
लाता है! राबि क
े 10:00 ब े कमला क
े घर तीसरी सूंतान का न्म होता है!
कमला क
े पहले दो लड़क
े थे- ध्रुव और नूंदन!
बस एक ही कमी थी कक उनक
े घर में पुिी नहीूं थी!
कमला दाईमाूं से पछती है!
दाई माूँ हमारे घर पुिी का ही न्म हुआ है ना!
दाई माूं स्तब्ध हो ाती है और कोई वाब नहीूं देती है!
कमला कफर से पछती है दाई माूँ, आपने मेरे प्रकन का उत्तर नहीूं हदया!
इतना सुनकर दाई माूँ ने मौन स्वीकृ नत देते हुए अपने सर को हहलाया और
कहा हाूं!
दाई माूं बच्चे को कपड़े में लपेटकर कमला क
े पास शलटा देती है और कमरे से
बाहर आ ाती है!
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बाहर इूंत ार कर रहे नतवारी ी और उनका बेटा रा ेश दाई माूँ से पछता है
कक हमारे घर पुिी का ही न्म हुआ है ना!
दाई माूं अशाूंत और मुरझाए चेहरे से कहती है कक आपक
े यहाूं पुिी का ही
न्म हुआ है!
लेककन-----?
नतवारी ी लेककन---
लेककन वह पुिी ककन्नर है!
इतना सुनते ही नतवारी ी को एक सदमा सा लगता है! रा ेश तुरूंत नतवारी
ी को पकड़ता है और उन्हें खहटया पर लेटा देता है!
नतवारी ी क
े चेहरे पर समा का भय साफ हदखाई दे रहा था उन्हें अपने
ब्राह्मण समा में ो प्रनतष्ठा बना रखी थी वह धशमल होती हदखाई दे रही थी!
उन्होंने तुरूंत दाई माूं से कहा!
यह लो दस ह ार रूपये ! ककसी को भी नहीूं बताना कक हमारे घर क
े अूंदर
ककन्नर लड़की का न्म हुआ है!
इधर कमला क
े मन में अपनी बच्ची क
े प्रनत ममता क
े भाव हदन पर हदन
बढ़ते ही ा रहे थे! दसरी तरफ रा ेश और नतवारी ी का क
ूं ठ का थक सखे
ही ा रहा था! प्यार से कमला अपनी बेटी को वूंदना कहकर पुकारती है! यही
उसका नाम पड़ ाता है! अब घर क
े सब लोग भी वूंदना ही कहते हैं!
ब बूंदना 5 वर्ष की हुई तो कमला ने रा ेश से कहा-
कक बूंदना का नाम ववद्यालय में दाखखल करा दीश् ए!
रा ेश ने नतवारी ी से वूंदना को ववद्यालय में दाखखल कराने की बात कही
तो नतवारी ी ने भी हाूं कह कर स्वीकृ नत दे दी!
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बूंदना का ववद्यालय में दाखखला हो ाता है! इस तरह बूंदना भी सभी बच्चों
की तरह ववद्यालय ाती और पढ़ाई करती!
ैसे- ैसे समय गु रता गया और बूंदना बड़ी होती गयी तो उसक
े हाव-भाव,
चाल -ढाल में पररवतषन होने लगा!
क्लास क
े बच्चे बूंदना को अभद्र शब्दों से सूंबोगधत करते! श् ससे बूंदना बड़ी
दुखी होती!
वूंदना ने ननकचय कर शलया कक वह ववद्यालय क
े बच्चों की तरह तरह की
हटप्पणी को अपनी माूं कमला को बतायेगी!
बूंदना ववद्यालय से घर आते ही, माूं कहाूं पर हो गचकलाती है –
हाूं बूंदना! मैं यही हूं, अूंदर वाले कमरे में कमला ने कहा!
माूं मुझे ववद्यालय में बच्चे छक्का, हह ड़ा आहद शब्द कहते हैं!
ैसे ही बूंदना ने यह शब्द कहे, कमला अपने अूंदर आूंसुओूं की सागर को
दबाती हुई बोली बेटा वे गूंदे बच्चे हैं ो इस तरह से बोलते हैं! तुम उनकी
बातों पर ध्यान मत हदया करो! और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो! पता है ना
तुम्हें! तुमने मुझसे कहा है कक तुम डॉक्टर बनोगी!
कमला ने अपनी बेटी बूंदना को समझाते हुए कहा कक बेटी समा में सभी
तरह क
े लोग होते हैं श् न का कायष बच्चों पर टीका- हटप्पणी करना होता है!
अगर तुम इन लोगों से परेशान होगी तो अपनी पढ़ाई क
ै से करोगी!
बूंदना रोते हुए बोली, माूं क्या यह बात सच है कक मैं ककन्नर, हह ड़ा, छक्का
हूं!
कमला नहीूं बेटा! यह ककसने कह हदया तुझसे! तुम मेरी बेटी हो! कमला,
बूंदना को अपने सीने से लगा लेती है!
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और कहती है कक आ क
े बाद यह सोचना भी मत कक लोग क्या कह रहे हैं!
तुम एक साधारण हम ैसे इूंसान हो! लोग क
ु छ भी कहें, क्या तुम उसे सच
मान कर बैठ ाओगी!
क
ु छ वर्ष बाद वूंदना ने माध्यशमक परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीणष की! और बूंदना
की आूंखों में क
े वल एक ही सपना था कक मुझे डॉक्टर बनना है!
और इधर नतवारी ी और रा ेश को बूंदना की गचूंता हदन पर हदन सताने
लगी!
नतवारी ी चाहते थे कक बूंदना की अब पढाई बूंद करा देनी चाहहए, क्योंकक
अब तो मोहकले और पड़ोस क
े लोग भी तरह तरह की बात बनाने लगे थे!
लेककन रा ेश क
े ववचारों से मेल नहीूं खाते थे! रा ेश चाहता था कक अगर
बूंदना आगे पढ ाएगी तो अपने पैरों पर खड़ी हो ाएगी!
दसरी तरफ रा ेश और कमला को बूंदना क
े भववष्य की गचूंता में लते ही
रहते थे!
कमला रात रात भर रो रोकर रात गु ार देती थी कक ववधाता मेरी बेटी ने
ऐसा क्या ककया कक उसे आपने उसे ऐसी स ा दी है! ो कक खत्म होने का
नाम ही नहीूं ले रही है!
नतवारी ी ब समा में बूंदना क
े ववर्य में टीका हटप्पणी सुनते तो उन्हें
लगता कक बूंदना को इस घर से ननकल ाना ही चाहहए!
लेककन बूंदना पढ़ाई में होशशयार होने क
े कारण, उसकी आूंखों में पल रहे सपने
को परा करने क
े शलए हदन रात पढ़ाई करती कक उसे डॉक्टरी कॉले में दाखखला
शमल सक
े !
एक हदन रात को रा ेश और कमला आपस में बूंदना क
े वववाह क
े बारे में
बातें कर रहे थे! कक बूंदना से वववाह कौन करेगा, और यह बात हम समा से
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कब तक छ
ु पा पाएूंगे कक बूंदना एक ककन्नर है! इतना कहते ही कमला क
े आूंस
ननकल आते हैं!
इधर बूंदना सोई हुई नहीूं थी! उसने अपने माता-वपता की बातों को सुन शलया!
मन ही मन शससक-शससक कर रोने लगी कक माूं ने मुझसे झठ कहा था कक मैं
ककन्नर नहीूं हूं!
सुबह उठते ही बूंदना अपनी माूं कमला से शलपट ाती है और उनसे सच्चाई
ानने का साहस करती है! लेककन वह पछ नहीूं पा रही थी!
बूंदना क
े हाव भावों को देखकर कमला ने कहा-
बूंदना क्या बात है बेटा! तुम इस तरह परेशान क्यों हो रही हो!
वूंदना, माूं मैं ----
कमला क्या मैं, मैं......लगा रखा है!
बूंदना बोलो कमला ने कहा –
माूं मैं ककन्नर हूं ना! बूंदना फट-फट कर रोने लगती है! आ आप मुझसे झठ
नहीूं बोल सकते, मैंने आपकी और पापा की सारी बातों को सुन शलया है और
ो समा में लोग मुझसे छक्का, हह ड़ा, ककन्नर कहते हैं वह सही है ना!
कमला, बूंदना को अपने गले से लगा लेती है और दोनों फट-फट कर रोने
लगती है!
बेटा बूंदना ऐसा मत सोच! तुम मेरी बेटी हो, मैंने तुम्हें न्म हदया है! तुम
मेरे कले े का टुकड़ा हो!
हाूं बेटा अगर तुम ककन्नर हो तो क्या हुआ! हो तो इूंसान ही ना!
इधर नतवारी ी और रा ेश समा क
े भय क
े कारण समा में यह भी नहीूं
कह पा रहे थे कक उनकी बेटी बूंदना ककन्नर है!
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नतवारी ी ने रा ेश से हठ पकड़ ली! अब बूंदना को आगे नहीूं पढ़ाएूंगे! और
उसे अब घर की बूंहदशों क
े अूंदर ही रहना होगा!
अब रा ेश ने भी नतवारी ी की बातों का अनुसरण करना प्रारूंभ कर हदया
था! क्योंकक उसे वूंदना को लेकर क
ु छ समझ ही नहीूं आ रहा था!
लेककन बूंदना का ो डॉक्टर बनने का सपना था वह अब दर हदखाई देने लग
रहा था!
क्योंकक पररवार क
े सभी सदस्य बूंदना को लेकर गचूंता में डबे रहते थे! अब घर
क
े लोगों ने सामाश् क रीनत कायषिमों में भी ाना बूंद कर हदया था!
क्योंकक वह हाूं भी ाते वहाूं बूंदना क
े ववर्य में तरह-तरह की बातें सुनते!
यह सारा दृकय होते देख बूंदना अब घर क
े लोगों क
े शलए बूंधन बनना शुरू हो
गई थी! अब घर क
े प्रत्येक सदस्य को बूंदना न र नहीूं आती थी क
े वल और
क
े वल बूंधन ही हदखाई देते थे!
बस एक कमला ही थी ो बूंदना को अपने से दर नहीूं होने देना चाहती थी!
इधर बूंदना का सपना अब सपना ही प्रतीत होने लगा! वूंदना को अपने आप
से ही नफरत होने लगी! वह घर क
े एक कोने में बैठी रहती और अपने ीवन
क
े शलए ववधाता को कोसती रहती!
उसक
े शलए ककन्नर हो ना अशभशाप सा बन गया था! श् समें उसका कोई दोर्
नहीूं था! यह उसी की स ा पा रही थी!
आखखर कार बूंदना रात क
े अूंधेरे में एक पि शलखकर हमेशा क
े शलए घर
छोड़कर ननकल गई! उसे इस सभ्य समा क
े ववचारों मे गूंदगी की ब आ रही
थी!
वप्रय माूँ,
मैं पररवार क
े सभी सदस्यों को दुखी नहीूं देख सकती! इसशलए मैं इस
समा को छोड़कर अपने ककन्नर समा में ा रही हूं! माूं पापा मुझे माफ
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करना! मैं इस समा क
े तानों से थक चुकी हूं और अपने सपने को अधरा छोड़
कर ा रही हूं! मुझे माफ करना! ये समा मुझे वहीीँ ीने देगा, हाूँ क
े शलए
बनी हूँ मैं ! मेरा सपना मेरे भीतर ही रहेगा ! लेककन इस समा से मैं यही
गु ाररश करुूँगी हमें भी सामान्य इूंसानों की तरह ीने का हक शमलना चाहहए !
शरीर की कमी इूंसान की योग्यता से कोई सम्बन्ध नहीूं रखती !
आपकी बूंदना
इस तरह समा क
े ताने-बाने ने बूंदना क
े ीवन को बूंधन समझकर उसक
े
ीवन क
े सपनों को बीच में छोड़कर ाने क
े शलए वववश कर हदया!
बृ ेश क
ु मार
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स्माटषफोन”
ववभागीय आदेशानुसार शमड डे मील यो ना क
े चावल ववतररत करने थेस राक
े श
ने सभी पेरेंट्स को दो हदन पहले ही मैसे भे हदया थास साथ ही उसने श् न
बच्चों का होमवक
ष चैक करना था उन्हें भी घर पर ही रुकने को कहा था ताकक
वह समय ननकालकर बच्चों की प्रोग्रेस भी ान सक
े स अशभभावकों को चावल
ववतररत ककए, लेखा ोखा बनाकर अलमारी में रख हदयास स्कल बूंद ककया और
चल पड़ा बच्चों क
े पास उनक
े घरस दुआ सलाम हुईस बाूंक
े लाल क
े घर तीन
चार बच्चे आए हुए थेस उनक
े बच्चों से वपछले हदनों हदए हुए काम को चैक
करते हुए देखा कक रमेश का लड़का आयषन चुपचाप उदास सा खड़ा थास
“आयषन! क्या बात है बेटास“ राक
े श ने पछास
“गुरु ी क
ु छ नहीूं, क
ु छ भी तो नहीूंस“ धीमे स्वर में आयषन बोलास
“क
ु छ न क
ु छ बात तो अवकय हैस डरो मत, साफ साफ बताओस“ शसर पर हाथ
फ
े रते हुए राक
े श बोलास
गुरु ी क
े इस स्नेहहल व्यवहार से आयषन में थोड़ी सी हहम्मत आई और
हकलाते हुए बोला “वो ....वो न सर ी, कल ो आपने हैं.... है न.... आपने
काम.....घर का काम हदया था न..... मैं नहीूं कर पायास“
“पर क्यों? क्यों नहीूं कर पाए?”
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“सर ी ये आयषन है न कल से क
ु छ उदास हो गया थास शगुन बीच में बोल
पड़ीस
“अरे! इसमें उदास होने वाली क्या बात है? क
े वल गाय पर ही तो ननबूंध
शलखना थास“ राक
े श ने पुचकारते हुए कहास
“पर गुरु ी इन्होंने तो अपनी गाय ही बेच दी नस“ शगुन बोलीस
“सर ी, आपको पता हैस“ थोड़ी देर खामोशी छा ाती हैस
“ है न सर ी, आयषन क
े घर दो हदन से खाना भी नहीूं बनास रक्षा चाची बस
रोए ही ा रही थीूंस“
“ओह!” राक
े श ने आयषन को गोदी में उठाकर शसर पर स्नेह से हाथ फ
े रते हुए
कहा “कोई बात नहीूं, नहीूं ककया काम तो यहाूं कर लेंगेस पर यह तो बताओ
गाय क्यों बेची?”
“आूं... आूं ..... क्योंकक पैसे नहीूं थे न इसशलएस“ और आयषन फफक फफक कर
रो पड़ा और रोते रोते बताने लगास “....पापा मम्मी से कह..कह रहे थे... लाला
का वपछला... पुराना उधार भी न... नहीूं ... चुका पाए हैं....स उन्होंने ...न
...सौदा सुकफा देने से मना कर हदया है और बच्चों को क
ु छ और कावपयाूँ भी
तो लेनी हैंस“ बात करते करते आयषन वहाूं से बाहर चला गयास
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राक
े श बाूंक
े लाल ी की तरफ मुखानतब हुएस बाूंक
े लाल ने बच्चों को खाना
खाने भे हदयास बच्चों क
े ाते ही उसने कथा का सि पकड़ शलयास
“बहुत ददष भरी कहानी है गुरु ीस अब क्या बताएूं? बस इतना ही कक परे
पररवार की हालत बड़ी खराबस“ चाय की प्याली टेबल पर रखी और कहने लगे
“न खाणे खाण न मूं े बाणस क्या बणगा?”
“हैं....!” राक
े श हक्का बक्का रह गयास
* * * * * * * *
रक्षा की आूँखों से आूंस बह रहे थेस वहीूं टटी दीवार से पीठ सटा दी और बोली
“हे भगवान! अब क्या होंगा? बड़ा माड़ा वक्त है ीस दो हदन से बच्चों को
थोड़ा बहुत ो क
ु छ बचा था, बनाकर खखला हदया और रात को दध पीकर
गु ारा हो रहा हैस है न... पर बच्चों को भरपेट भो न चाहहए ही चाहहए, नहीूं
तो ताकत कहाूं से आएगीस“
रक्षा की बात सुनकर रमेश भी कराह उठा – “सही बोल रही है रक्षा तस भखे
भ न न होय गोपालास“ क
ु छ अूंतराल क
े बाद रमेश ने चुप्पी तोड़ी – “क्यों न
हम गौरी को बेच देंस चार पैसे आ ाएूंगेस“
इतना सुनना था कक बच्चे ोर से चीख पड़े – “नहीूं बेचनी हमने गौरी गाय,
नहीूं बेचनी बस.....स“
बच्चों की चीखो पुकार व रक्षा की शससककयों क
े पकचात वातावरण में मरघटी
सन्नाटा पसर गयास उदाशसयों से नघरे रमेश की आूँखों क
े सामने सारा दृकय
शसनेमा रील क
े माकफक घमने लगास गौरी ो छुः वर्ष पहले हमारी घरपण गाय
मोराूं ने नी थीस सारा पररवार खुशी से झम उठा थास दोनों भाई-बहनों का वही
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खखलौना थीस उन्हीूं क
े साथ उछलती कदती थीस उसे ब वे छ
ु पकर आवा
लगाते तो दोनों कान खड़े कर सुनतीस न शमलने पर रूंभाती, गुस्सा करती और
वे दोनों सामने आते तो गौरी भी झठ मठ रूठ ातीस वे पुचकारते तो मुूंडी
हहला कर बात करने से मना कर देतीस उनक
े तो प्राण बसते थे उस परस बच्चे
रो उसे एक एक टुकड़ा रोटी का देतेस अगर ककसी हदन भल ाएूं तो याद
हदलाने क
े शलए आवा लगाती, अपना शसर हहलाती और गले में बूंधी घूंटी ब
उठतीस बच्चों को याद आतास वे दौड़ ाते उसक
े पासस वहाूं देखते तो उसने चारे
को छ
ु आ नहीूं होतास यह बच्चों और बनछया का मक स्नेह थास धीरे-धीरे समय
गु रता गयास बच्चे बड़े हो स्कल ाने लगे और गौरी भी बनछया से गाय बन
गईस दध देने लगीस घर की आई-चलाई में सहयोग करने लगीस
* * * * *
रक्षा और रमेश बहुत मेहनती थेस सुबह-शाम दोनों खेतों में काम करते, कफर
हाूं काम शमलता रमेश वहाूँ हदहाड़ी लगा लेता और रक्षा मनरेगा मेंस अच्छा
गु र बसर हो रहा थास मतलब दो वक्त की रोटी और पररवार में खुशशयाूं ही
खुशशयाूंस बच्चे अपनी दुननया में मस्त हो ाते और अपनी गौरी क
े साथ
चरागाह में चले ातेस खेलते-कदते, उछलते-गाते और कभी मन करता तो पढ़
भी लेतेस
सब क
ु छ सही चल रहा था कक चीन क
े बुहान शहर से वायरस
ननकलास वायरस से परे ववकव में महामारी फ
ै लना शुरू हो गईस शुरू शुरू में तो
लगा कक यह बीमारी अभी बाहर क
े देशों में ही रहेगी पर सब को धत्ता बताते
हुए धीरे-धीरे अपने देश क
े बड़े शहरों में उसने पाूंव पसारना शुरू कर हदएस वहाूं
से छोटे छोटे नगरों, कस्बों और गाूँवों की ओर रफ़्तार पकड़ने लगीस अब