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1 | P a g e 
पौŁष ग्रंि Prostate 
मनुष्य के शरीर में पौ�ष ग्रंिथ या प्रोस्टेट ग्रंिथ ही एक मात्र अंग है िजसे पु�षामाना जाता है, क्योंिक पु�ष क� परम श्रे� धातु शुक्र या वीयर् पौ�ष ग्रंिथ में ही बनतीक� सात धातुओं में सातवीं धातु शुक्र अथवा वीयर् सबसे श्रे� मानी ज केवल वीयर् हीशरीर का अनमोल आभूषण है, वीयर् ही शि� ह, वीयर् ही सुन्दरता है। शरीर में वीयर् ही पवस्तु है। वीयर् ही आँखों का तेज, वीयर् ही �ा, वीयर् ही प्रकाश, वीयर् ही वेद हैं और वीर हब्र� । वीयर् का संचय करना ही ब्र�चयर् वीयर् ही एक ऐसा त�व ह, जो शरीर के प्रत्येक अका पोषण करके शरीर को सुन्दर व सु…ढ़ बनाता है। वीयर् ही आन-प्रमोद का सागर है। िजमनुष्य में वीयर् का खजाना है वह दुिनया के सारे आ-प्रमोद मना सकता है और सौ वषर् जी सकता है। वीयर् में नया शरीर पैदा करने क� शिहोती है। जब तक शरीर में वीयर् होतातब तक शत्रु क� ताकत नहीं है िक वह िभड़ , रोग इसे दबा नहीं सकता। भोजन से वीयरबनने क� प्रिक्रया भी बड़ी लम्बी और जि, जो प्रोस्टेट में ही सम्पन्न हो इस बारे मेंश्री सुश्रुताचायर् ने िलख: 
रसाद्र ततो मांसं मांसान्मेदः प्रजाय । 
मेदस्यािस्थः ततो मज्जा मज्: शुक्रसंभ ।। 
कहते हैं िक वीयर् बनने में कर 
30 िदन व 4 घंटे लग जाते हैं। वै�ािनक लोग कहते हैं ि 32 िकलोग्राम भोजन स700 ग्राम रबनता है और 700 ग्राम र� से लगभ20 ग्राम वीयर् बनता है। ग्रीक भाषा में भी प्रोस्टेट का मतलबOne who stands before यािन Protector या Guardian अथार्त यह पूरे शरीर का संर�क या पालनहार है। प्रोस्टेट के बारे में एक महत्बात यह है िक सन् 2002 में फ ेडरल इंटरनेशनल कमेटी ऑन टिमर्नोलोजी ने ि�यों क� पेरायूरीथ्रल ग्लेंड्स या स्केनीज(Female Paraurethral Glands or Skene's Glands) को प्रोस्टेट क� प्रित�प मान िलया है और इसे फ�मेल प्रोसनाम दे िदया है। रित िनष्पि� (Orgasm) के समय ि�यों क� योिन से िनकलने वाले स्खलन क� संरचना भी प्रोस्टेट के स्समान ही होती है। इसमें भी उसी मात्रा मे.एस.ए. और फ्रुक्टभी होते हैं। 
संरचना 
पौ�ष ग्रंिथ अखरोट के 
आकार क� बा�स्र(Exocrine) ग्रंिहोती है जो पु� ष शरीर कमध्य रेखा में मूत्राशय के ठीक िस्थत होती है। इसका वजन लगभग20 ग्राम और लम्ब3 सै.मी., चौड़ाई 4 सै.मी. तथा गहराई 2 सै.मी. होती है। यह ग्रंिजघन संघानक (Pubic Symphysis) के पृ� मे, पेरीिनयल मेम्ब्रेन के , मूत्रा (Urinary Bladder) के नीचे और मलाशय (Rectum) के आगे अविस्थत रहती है। इसका आधारमूत्राशय के सम्पकर् में रहता है और यह नीचे (Apex) पर खत्म होकररेशेदार बा� मूत्रमाग� संकोिचन(Striated External Urethral Sphincter) से िमल जाती है। संकोिचनी एक लम्ब�प पेशी ऊतक से बनी एक नली होती है जो मूत्रन
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और पौ�ष ग्रंिथ को लपेटे रहती 
है। 
पौ�ष ग्रंिथ कोले 
, ऐलािस्टन और िस्नग्ध पेिशयों से बने आवरण में बंद रहती है। य, पीछे और पाष्वर् में तीन अलग अआवरणी (Fascia) से िलपटी रहती है। अग्र और अग्रपाष्व� आ(Anterior and Anterolateral Fascia) इसके खोल से िचपक� रहती है। िशij (Penis) क� गहन पृ� िशरा (Deep Dorsal Vein) और उसक� शाखाएं यहीं से गुजरती है। पाष्वर् आवरणी लेवेटर आवरणी से जुड़ी रहती है। डेट्र�जर पेशी के बाहरी तथा लम्बे रेशे भी खोल के तंतुपेशीय ऊतकों में समा जातेइसका िपछला िहस्सा �रट्रोवेजाइक(Denonvilliers) आवरणी से िचपका रहता है। 
�र 
ट 
्रोवेजाइकल आव 
र 
ण 
(RrectoVesical Fascia) पौ�ष ग्रंिथ क� पृसतह और मलाशय क� अग्र तरह के बीच एक संयऊतक (Connective Tissue) है। यह आवरणी पौ�ष ग्रंिथ और शुक्र पुिटseminal vesicles के पृ� सतह को भी लपेटे रहती है और नीचे जाकर मूत्रनली के नीचे बा� मूत्रमागसंकोिचनी के स्तर पर मीिडयन फाइबर रेफे �प में खत्म हो 
ग्रंिथ के अग्र भाग 
को प् 
य 
ूबाप्रोस्टे 
( 
PuboProstatic Ligaments) और अधो भाग को बा� मूत्रमाग� संकोिचनी तथपेरीिनयल मेम्ब्रेन सहारा देते हैं। प्यूबाप्रोस्टेिटक बंध प्यूबावेजाइकल का ही ि 
पौ�ष ग्रंिथ लेवेटर ऐनाई पेश 
( 
Levator Ani Muscle) के प्यूबोरेक्टल िहस्से से िघरी रहती है। शुक्र पुिटकाएँ मूत्राशय के आनीचे तथा पौ�ष ग्रंिथ के ऊपर अविस्थत रहती हैं6 सै.मी. लम्बी होती हैं। दोनों शुक्र पुिटकाओं क� निल(Ductus Deferens) िमल कर स्खलन निलका(Ejaculatory Duct) बनाती हैं जो पौ�ष ग्रंिथ में प्रवेश करत
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सूàम संरचना 
स 
ूàम संरचना के आधार पर पौ�ष ग्रंिथ को चार खण्डों में वग�कृत िकया गया 
1- अग्र खण(Anterior lobe) क� सीमाओं में मोटे तौर पर अंत�रम मण्डल आता है 
2- पृ� खण्ड(Posterior lobe) प�रधीय मण्डल में फैला रहता है 
3- पाष्वर् खण(Lateral lobes) में सभी मण्डलों में फैला रहता है। 
4- मध्य खण्(Median lobe) लगभग केन्द्रीय मण्डल से सम्बिन्धत 
लेिकन सन् 1968 में ड. मेक नील ने रोग िव�ान क� िĶ से पौ�ष ग्रंिथ को नये तरीके से चार मण्डलों में वग�कृत िकया 
1- अंत�रम मण्डल(Transition zone) 
2- केन्द्रीय मण(Central zone) 
3- प�रधीय मण्डल(Peripheral zone) और 
4- अग्र तंतुपेशीय मण (Anterior Fibromuscular Zone) 
अंत�र 
म 
मण्डल में प्रोस्टेट के गऊतकों (Glandular Tissue) का 10 % िहस्स होता है लेिकन एडीनोकािसर्नोमा में यह ग्रंिथल ऊतको 20 % िहस्सा होता है । पौ�ष ग्रंिथ लगभग 70% ग्रंिथल ऊतक औ30% तंतुपेशीय ऊतक (Fibromuscular 
Stroma) होते हैं। 
अंतåरम मण्ड (Transition zone) 
मूत्र िनस्सारक न(Urethra) पौ�ष ग्रंिथ में मूत्राशय क� ग्रीवा के स्तर से गुजरती ह�ई बाहर िनकलती है। पौ�ष ग्रंििस्थत मूत्र िनस्सारक नली के प्रोस्टेिटक (2.5 सै.मी.) और बाहरी िहस्से को(2 सै.मी.) को मेम्ब्रेनस यूरेथ्रा कहते हैं। दोनों िहस्सों को पृ� मूत्र िनस्सार(Posterior Urethera) कहते हैं। मूत्र िनस्सारक नली का प्रोस्टेिटक भामहत्वपूणर् और फैला ह�आ होता है। प्रोस्टेिटक यूरेथ्रा क� आंतरक परत या(Epithelium) मूत्राशय क� तरह ही अंत�र(Transitional) कोिशकाओं से बनी होती है। िबनाइन प्रोस्टेिटक हाइपरप्लेि(Adenoma) इसी अंत�रम स्थान पर होता ह और यिद यह अितवधर्न काफ� बढ़ जाती है तो मूत्र मागर् में �कावट पैदा करता अंत�रम मण्ड प्रायः दो पाष्वर् ख(Lateral Lobes) और मध्य खण्(Median Lobe) से बनता है। प्रोस्टेिटक यूरेथ्रिपछली सतह के मध्य में मेम्ब्रेनस यूरेथ्रा तक एक लम्ब(Urethral crest) होती है िजन्हें मूत्रमागर् िशखर कह, इसके दोनों तरफ उपवन(Sinus or Grove) होते है, िजनमें अनेक िछद्र िस्थत होते हैं िजनसे वीयर् और अन-स्राव मूत्रनलीप्रवेश करते हैं। यूरीथ्रल क्रेस्ट सेमाइनल कोि(Seminal Colliculus या Verumontanum) पर आकर चौड़ा और उभरा ह�आ हो जाता है, इसे शुक्र पवर्त कहते हैं। सेमाइनल कोिलकुलस के िशखर पर मध्यरेखा में एक िछद्र, िजसे पौ�ष गुहा (Prostatic Utricle) कहते है, िजसके दोनों तरफ छोटे लम्बे िछद्र होते हैं जहाँ स्खलन निलकाएँ खुलती
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के न्द्रीय मण(Central zone) स्खलन निलकाओं के आसपास के �ेत्र को केन्द्रीय मण्डल कहते हैं। ग्रंथ25% भाग इस मण्डल में आता है। लगभ2.5% ऐडीनोकािसर्नोमा कैंसर इस मण्मे उत्पन्न होता , जो बह�त आक्रामक होता है और प्रायः शुक्र पुिको सहज ही िशकार बना लेता है। पåरधीय मण्ड (Peripheral zone) ग्रंथीय ऊतक क70% भाग इस मण्डल में आता है। पौ�ष ग्रंिथ का पृ� और पाष्वर् िहस्सा इसक� सीमाओं में आते हैं।इस मण्डल को अन्तर मलाशय अंगुली प�रस्पश(Per Rectal Examination) द्वारा टटोकर देख सकते हैं। लगभग70% ऐडीनोकािसर्नोमा इसी मण्डल से उत्पन्न होता है। प्रोस्टेट का का िचरकारी(Chronic Prostatitis) भी यहीं होता है। 
अग्र तंतुपेशीय मण Anterior Fibro-muscular Zone (or Stroma) 
इसक� सीमाओं में प्रोस्टेट के आगे तंतुपेशीय (5%िहस्स) आते हैं। इसमें ग्रंथीय ऊतक नहीं होत 
र� कì आपूितर् 
प्रोस्टेट को र� कआपूितर 
् 
मुख्यतः िनम्न म 
ध 
मनी (Inferior Vesical Artery) द्वारा होती , जो आंत�रक श्रोिण धमनया Internal Iliac (Hypogastric) Artery क� अग्र शाखा से िनकलती है िनम्न मूत्राशय धमनी दो मुख्य धमिनयों में िवहोती है, जो मूत्राशय के आध, मूत्रनली के अंितम भाऔर प्रोस्टेट को मुहैया कराती है। 
पह 
ल 
ी शाखा को 
मूत िनस्सारणनली धमनी (Urethral Artery) कहते है, जो प्रोस्टेट तथा मूत्राशय के संगपृ�-पाष्व�य स्थान से यूरेथ्रा के लम्ब�प घड़5 और 7 बजने क� िदशा में मूत्राशय ग्रीवा क� तरफ जातीिफर यह नीचे क� तरफ घूम कर अंत�रम मण्डल को र� देती है। पौ�ष ग्रंिथ के सुदम ऐडीनोम(Benign Prostatic Hyperplasia) को यही धमनी र� उपलब्ध करवाती है। केप्सूलर धमनी दूसरी मुख्य शाखा, यह पौ�ष ग्रंिथ के प- पाष्व�य तल पर केवरनस नाड़ी के साथ िवचरण करती ह�ई लम्बप कोसे ग्रंिथ में प्रवेश कर ग्रंथीय ऊतकों को र� पहँचशुक्र पुिटकाओं और शुक्रनिलयों को ऊध्वर् मूत्र(superior Vesical Artery) क� शाखा निलका धमनी (Artery of the ductus) र� पहँचाती है। र� का िनकास प्रोस्टेट से र� का िनकास िश� कपृिश(Deep Dorsal Vein) में होता ह, जो गहन िशij आवण� के दोनों कोप�रा केवनƒज़ाके बीच जघन संघानक के तोरण से िनकल कर श्रोिण में प्रवेश करती है। िफर यह पेरीिनयल मेम्ब्रेन को पार कर तीनक्रमशः ऊप, दांई और बांई में िवभािजत होती है।
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ऊपरी शाखा प 
् 
यूब 
-प्रोस्टेिटक िलगामेंट्स के बीच िवचरण करती प्रोस्टेट और मूत्राशय ग्रीवा तक प्रवेश करती के पीछे क� वसा में अग्र प्रोस्टेिटक आवण� को छेदते हए पृ� िशरा जाल से िमलती है। पृ� और पाष्वर् िशरा जालों क� मुख्य प्रोस्टेिटक आव(Anterior Prostatic Fascia) और एंडोपेिल्वक आवण�(Endopelvic Fascia) से ढक� रहती है। पाष्वरिशरा जाल पीछे क� तरफ जाकर पुडेंड, ऑब्चुरेटर िशरा और मूत्राशय जाल से िमल जाती, जो अंततः इंटरनल आइिलयक िशरा (Internal Iliac Vein) में सम जाता है। नाड़ी और लिसका िनयंत्र 
प्रोस्टेट क� 
स्वायनािड़याँ सेक् 
(S2 
-S4) से िनकले पेरािसम्पेथेिट, इफरेंट और िप्रगैंिग्लयोिनक तंतुओं से बने पेप्लेक्सस से िनकलती हैं। िसंपेथेिटक नाड़ी तंथोरेकोमंबर (L1-L2) तल से िनकलते हैं। पेिल्वप्लेक्सस मलाशय के दोनो तरफ गुदा द्वार7 सै.मी. ऊपर अविस्थत रहता ह, इसका मध्य तल शुक्र ग्रंके अंितम छोर के स्तर पर होता है। 
पेि 
ल्वक प्लेक्सस से िनकलने वाले नाड़ी तंतु केवनप्लेक्सस से होते ह�ए प्रोस्टेट पह�ँचते हैं। पेरािसंपेनािड़यां ग्रंिथयों का िनयंित्रत करती हैं और स्राव बिलए आदेश देती हैं। िसंपेथेिटक नािड़यां प्रोस्टेट के और स्ट्रोमा क� िस्नग्ध पेिशयों को संकुचन करआदेश देती हैं। 
प 
ुडेन्डल नाड़ी धारीदार संकोिचनी पेिशयों और लेवेटऐनाई का िनयंत्रण करती है। िप्रप्रोस्टेिटक सं(PreProstatic Sphincter) और मत्राशय ग्र(या आंत�रक संकोिचनी) अल्फ-ऐड्रीनिजर्क िनयंत्रण मेंहै। 
प्रोस्टेट का ल 
ि-िनकास ऑब्चुरेटर और लेवेटरवािहकाओं द्वारा होता है। ये बाहरी आइिल, िप्रसेकऔर पेराएओिटर्क लिसका ग्रंिथयों से भी जुड़ी रहती हैं मूत्राश मूत्राशय उदरावरण से बाहर सघन जंघानक और प्यूिबक रेमाई के पीछे एक थैली समान संरचना, जो िस्नग्ध पेिशयों से बहोती है और अन्दर क� सतह पर अंतरम उपकला(Transitional Epithelium) से आच्छािदत रहती है। गुद� से िनकली दोनों मूनिलकाएं मूत्राशय में िमलती हैं और गुद� बनने वाला मूत्र निलकाओं द्वारा यहाँ एकित्रत होता रहता है। मूत्र को भंइसका मुख्य कायर् है। जब यह भर जाता है तो मूत्र िनस्सारक (Urethra) द्वारा मूत्र का िवसजर्न हो जाता है। मूत्राशयक� आपूितर् उध्, मध्य और िनम्न मूत्राशय धमिनयाँ करती हैं। र� का िनकास प्रोस्टेिटक िशरा जाल में होत
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मूत्र िनस्सारक न(Urethra) इसके तीन खण्डों में िवभािजत िकया गया ह प्रोस्टेिटक मूत्र िनस्सा (Prostatic Urethra) यह मूत्र िनस्सारक नली का सबसे िनकटस्थ भा, जो मूत्राशय ग्रीवा में मूत्राशय(Trigone) से प्रोस्टेट का छेदन करते ह�ए यूरोजेनाइटल डायफ्राम के उध्वर् आवरणी प होकर मेम्ब्रेनस यूरेथ्रा में लीन हो जाता है। यह मूत्र िनस का सबसे महत्वपूण, जिटल और फैला ह�आ भाग है। मेम्ब्रेनस मूत्र िनस्सा (Membranous Urethra) यह यूरोजेनाइटल डायफ्राम के उध्वर् आवरणी से ट्रांसवसर् पेरीिनयल पेशी को छेदता ह�ई यूरोजेनाइटल डायफ्राम के िनम्न आवरणी पर खत्म होकर िपनाइल यूरेथ्रा में लीहै। िपनाइल मूत्र िनस्सारक (Penile (Cavernous) Urethra) यह यूरोजेनाइटल डायफ्राम के िनम आवरणी से शु� होकर िशij में प्रवेश करती है और िश� के साथ चल कर अग्रस्थ भाग के िसरे में िस्थत (External Urethral Meatus) पर खत्म होती है। शुक्र पुिटका शुक्र पुिटकाए3 सै. मी. लम्बी होती हैं तथा मूत्राशय के पीछे दोनों तरफ अविस्थत रहती हैं9 सै.मी. लम्बी शुक्र ग्रंिथयाँ रहती हैं। यह वास डेफरेन्स से िमलती है और वहीं से ऐम्पुला स्खलन निलका बन जाती है। इनका मुख्य कायर् शुक्र द्रव शुक्र निलया 
श 
ुक्र निलया30 सै.मी. लम्बी िस्नग्ध पेशी ऊतक से बनी निलयाँ होती हैं जो शुक्राणओं को अिधवृषण से स्खलन निपह�ँचाती हैं। पेशी ऊतक से बनी होने के कारण ये डोरी क� तरह कठोर लगती हैं। इन्हें स्पम�िटक कोडर् भी कहते हैं। इनक� पर िविश� तरह ककोिशकाएँ स्टीरयोसीिलया (Stereocilia) होती हैं। इन्हे चार भागों क्रमशः , आंत�रक, एम्प्यूला औस्खलन निलका में बांटा गया है। शुक्र धमनी इसे र� प्रदान करत नाड़ी िनयंत्र पेरािसम्पेथेिटक– शुक्राणुओं को ऐम्प्यूला तक पह�ँचाने का कायर् करते हैं। पेरािसम्पेथेिटक प्रभाव से शुक्र नली मक� क्रमाकुंचन क� लह(Peristaltic Waves) चलती है िजससे शुक्राणु अिधवृष(Epididymis) से ऐम्प्यूल(Ampulla) तक पह�ँचते है, जहाँ वे स्खलन से पहले थोड़ी देर िवश्राम करते ह िसम्पेथेिटक– शुक्र निलयों में प्रचण्ड क्रमाकुंचन क � लहर उत्पन्न करते हैं िजससे शुक्राणु और वीयर्
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पौŁष ग्रंिथ क� कायर् प्र 
प्रोस्टेट के ग्रंिथ ऊतकों मे 
20 निलकाएँ होती हैं िजनके िसरे पर अंगूर क� शक्ल के प्र(Acini) होते हैं। इन निलकाओंक� भीतरी सतह पर स्रावी कोिशकाएँ होती , जो वीयर् क� ितहाई मात्रा का स्राव करती हैं। ये निलकाएँ और प्रको� प स्पेिसिफक एन्टीज(PSA) नाम का एक एंजाइम बनाते हैं।प्रोस्टेिटक स्पेिसिफक एंट(PSA) को गामा-सेमाइनोप्रोटीन यकेलीक्रे-3 या kallikrein-3 (KLK3) भी कहते हैं। यह एक ग्लाइकोप्रोटीन है िजसका कूटलेखन के-3 जीन (KLK3 gene) द्वारा होता है इसका प्रमुख कायर् वीयर् को तरल बनाये रखना है। पौ�ष ग्रंिथ लैंिगक (Arousal) और रित-िनष्पि या चरमोत्कषर(Orgasm) के परम आनंद को बढ़ाती है। पु�ष में मूत्र िनस्सारण (Urethra) दो कायर् क्रमशः मूत्र िवसजरलैंिगक सम्भोग के अंत में वीयर् स्खलन करती है। लाखों शुक्राणु मूत्र िनस्सारण नली के प्रोस्टेिटक हैं। शुक्राणुओं का िनमार्ण वृषण ग्रंिथयों में होता है। शुक्राणु वृषण से िनकल कर अिधवृषण पह�ँचते हैं और उसक(Coiled) शुक्र निलयों में कुछ िदनों तक िवश्राम करते हैं और प�रपक्व होते हैं तािक सम्भोग के बाद गभार्शय पह�ँच कर िडम्गभार्धान क� प्रिक्रया को सहजता से संपन्न कर सकें। अ(Greek: upon + testicle) मोर के िसर क� कलंगी क� तरह लगता है। यहाँ से शुक्राणु शुक्र(Vas Deferens) द्वारा स्खलन निलका तक पह�ँचते ह सम्भोग के समय जब उ� ेजना चरम अवस्था को प्राकरती है तब शुक्रनली क� पेिशयों में क्रमाकुंचन लहर उत्पन्न होशुक्राणु तीव्र आवेग से शुक्रनली गुजरते ह�ए ऐम(शुक्रनली का फूला ह�आ अंितम िहस) में पह�ँचते हैं। प्रोस्टेट में पेशभी होते हैं और जब शुक्राणु मूत्र िनस्सारण नली के प्रोस्टेिटक संभाग में , तब प्रोस्टेट क� पेिशयों का संकुचन होतािजससे मूत्राशय से िनकलने वाली िनस्सारण नली बंद हो जाती है और शुक्राणुओं का मूत्र से सम्पकर् संभव नहीं हो पाता ह के संकुचन से प्रोस्टेट के स्राव भी मूत्र िनस्सारण नली में आ जाते हैं और वीयर् के स्खलन को भी गित िमलत, शुक्पुिटकाओं और कॉपसर् ग्रंिथ के स्राव िमल कर वीयर् बनाते हैं। जो सम्भोग के अंत में िश� िस्थत मूत्र िनस्सारण कर योिन में प्रवेश कर जाते ह 
वीय 
र् के भौितक गु 
भ 
ौितक गुण 
िवव 
र 
ण 
रंग 
सफेद अ 
ल्-पारदश� 
आपेि�क घनत् 
1.028 
�ारता 
( 
pH) 
7.35-7.50 
आयतन 
3 एमएल 
वीयर् 
के िविभन्न घ 
ग्रंिथ स् 
स्खलन का आयतन 
रासायिनक संरचना 
व 
ृषण और अिधवृषण 
0.15 एमएल (2-5%) 
श 
ुक्राण- लगभग 200-500 िमिलयन 
श 
ुक्र पुिटकाए 
1.5-2 एमएल ( 65-75%) 
फ्रुक् (1.5-6.5 िमली/एमएल),अमाइनो एिसड्स, साइट्र, फोस्फो�रलकोली, अग�थायनीन, ऐस्कोिबर्क एि, फ्लेिवन, प्रोस्टाग्ल, बाइकाब�नेट 
प्रोस् 
0.6-0.9 एमएल (25-30%) 
प्रोस्टेट स्पेिसिफक एंट 
(PSA), स्पम�, साइिट्रक एि, कॉलेस्ट्, फोस्फोिलिप, प्रोिटयोलाइिटक एंजा, फाइिब्रनोलाइि, फाइिब्रनोिजन, िजंक (135±40 माइक्रोग/एमएल) और एिसड फोस्फेटेज प्रोस्टेिटक स्पेिस 
ब 
ल्बोयूरेथ्रल ग 
 0.15 एमएल (1%) 
Ĵेष्म, गेलेक्टो, िप्रऐजाकुल, सायिलक एिसड
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वीयर् 
का एक महत्वपूणर् कायर् शुक्राणुओं के चारो तरफ एक सुर�ात्मक समुद्र बनाना और योिन के तीखे अम्(लेिक्टकएिसड के कारण) से उनक� रा करना भी है। योिन क� अम्लताpH लगभग 4 होती है क्योंिक इतने अम्लीय माध्यम में अिधरोगकारी जीवाणु का जीिवत रहना संभव नहीं होता है। लेिकन शुक्राणु अम्ल के प्रित बह�त संवेदनशील होते हैं। वीयर् �ारीय और सम्भोग के बाद घंटों तक योिन क� अम्लता को िनिष्क्रय करता रहता है। यिद ऐसा नहीं हो तो योिन के अम्लीय माध्यही सेकण्ड में सारे शुक्राणु मर जायेंगे। 
कॉपसर् ग्रंिथ के स्राव का मुख्य काम मूत्र िनस्सारण नली स्ने 
हन करता है। शुक्र पुिटकाओं के स्राव में पयार्�(जो शुक्राणुओं को ऊजार् देती), प्रोस्टाग्लें(जो वसीय अम्ल से बनते ह) और प्रोटीन होते हैं जो � ी कयोिन में वीयर् को जमानमदद करता है। प्रोस्टेट के स्राव में क, साइिट्रक एि, एिसड फोस्फेटे, एलब्यूिम, और प्रोस्टेिटक स्पेिसिफक एन् (PSA) बह�तायत में होते हैं। वीयर् का दूिधयापन प्रोस्टेट के स्राव कारण ही होता है। प्रोस्टेट के स्राव में िजंकहोता है। यह संक्रमणरोधी है और जीवाणुओं के संक्रमण से लड़ने में प्रोस्टेट क� मदद कर पी.एस.ए. एंजाइम उपयु� समय पर शुक्र पुिटकाओं से स्रािवत होने वाले वीयर् को जमने में सहायक ए (Clotting enzyme) को िनिष्क्रय करता है। यह एंजाइम वीयर् को जमा कर ग(gel) रखता है और गभार्शय क� ग्रीवा से िचपका देता है। कुछ िमनतक शुक्राणु इस गाढ़े द्रव्य में सुरि�त रहते .एस.ए. का मुख्य कायर् सेमाइनोजेिलन और फाइब्रोनेिक्टन से बने गाढ़े कोएका द्रवीकरण कर शुक्राणुओं को मु� करना पी.एस.ए. प्रोटीन का िवघटन कर इस िक्रया को अंजाम देता है। प्रोस्पी.एस.ए. िनिष्क्रय �प में रहता है िजसे के-2 (एक अन्य केलीक्रेइन पेप्टा) सिक्रय कर देता है। प्रोस्टेट में िजंक का स्तर शअन्य द्रव्यों क� अपेा दस गुना अिधक होता है। पी.एस.ए. क� सिक्रयता पर दमनकारी या नकारात्मक प्रभाव डालता हालांिक पीएच के बढ़ने पर पी.एस.ए. क� सिक्रयता भी बढ़ती , साथ ही पीएच बढ़ने पर िजंक का दमनकारी असर भी बढ़ता है। स्खलन के15-30 िमनट बाद योिन का पीएच बढ़ कर 6-7 हो जाता है। पीएच के इस स्तर पर िजंक का दमनकारी असर कम होनेके कारण पी.एस.ए. क� कम ह�ई सिक्रयता धी-धीरे बढ़ाने लगती है और पी.एस.ए. कोएगुलम का द्रवीकरण कर देता है और शुक्रमौका पाते ही जल्दी से गभार्शय में चले जाते ह गभार्धान का जीवरसायन शा 
रितक्र�ड़ा के आरंभ में 
िलंगदेव संतानोत्पि� कआशा लेकर 
योिन द्वार परदेता है और कहता है, हे देवी योिन, हे समस् मृत्यु लोक क� जनन , मैं शि�शालीऔर उत्सािहत शुक्राणुओं क� बारात लेकर तुम्हारे द्वार पर आ पहóँचा ह�ँ। मेरेशुक्राणु िकसी भी तरह के शि� परी�ण को तैयार हैं। तुम इन्हें अपने रंग महल मजाकर स्वागत सत्कार क� तैयारयां करो। लेिकन आरंभ में योिन िशविलंग पयाचना को अनदेखा कर देती है। तब िलंगदेव अचेत और शांत पड़ी योिन क� खुशामद करता है, बहलाता है, फुसलाता है, सहलाता है, घषर्ण करता ह, आघात करता है। आिखरकार िशव िलंग के मनुहार और प्रेम िनवेदन से योिन िपघल ही जाती है। और उसक� कामािग्न भड़क उठती, वह उत्सािहतऔर उ� ेिजत हो ही जाती है और रितक्रड़ा शुकर देती है। रित िनष्पि� के साथ ही क्रमाकुंचन कलहर के साथ सारे नाचते नन्हे बाराती दौड़ कर योिन में प्रवेश कर जाते हैं। रितिक्रड़ा का आिखरी आिलंगन लेते ह�ए योिन अपनी पूरी ताकत और सारे युवा शुक्राणुओं को अपने दामन में खींच लेती है। लेिकन इसके बाद भी शुक्राणुओं क� गभार्शय तक क� -पग पर किठनाइयों और बाधाओं से भरी होती है। यह यात्रा अमरनाथ क� यात्रा क� तरह ही एक किठन और रोमांचक यात्रा मानी जासबसे पहले तो योिन में बहती अम्ल क� धाराएं शुक्राणुओं को न� करना चाहत, तो दूसरी तरफ योिन क� भ�ी कोिशकाएं शुक्राणुओं को िवदेशी घुसपेठ समझ कर हमला करना चाहती हैं। इसिलए तुरंत वीयर् गभार्शय ग्रीवा के समीप शुक्राणुओंतरफ एक चक्रव्यूह क� रचना करता, िजसे भेदना अम्लीय धाराओं के बस का काम नहीं है। कुछ ही िमनटों में �ारीय वीयर्
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क� अम्लता 
को िनिष 
् 
क्र 
य 
कर देता है। अम्लता कम होने पर िजंक भी मदद को आगे आ जाता है। इसके प�ात वीयर् में िवद्वीर पी.एस.ए. (Prostate Specific Antigen) वीयर् द्वारा ही बनाये ह�ए चक्रव्यूह को एक ही तीर से ध्वस्त कर देतशुक्राणुओं का कारवां मु� होकर चुपचाप रंग महल में प्रवेश कर जा, जहां िडम्ब वरमाला िलए सबसे शि�शाली और परमवीरशुक्र कुमार क� प्रतीा में खड़ी होती है। रंग महल में संपन्न शि� परीण में जो शुक्र कुमार सबसे ताकतवर साि, उसे िडम्ब कुमारी वरमाला पहनाती है और गंधवर् िववाह करती है। इस तरह दोनों के तेईस क्रोमोजोम से िमल कर िछयक्रोमोजोम का एक स्वस्थ और संपूणर् भ्रूण बनता है। के िलंग िनधार्रण का िनणर्य भी शुक्र कुमार के पास ही होता हके समय उसे Y सेक्स क्रोमोजोम िमलता है तो नर और यिद उX सेक्स क्रोमोजोम िमलता है तो मादा जन्म लेती
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पौŁष ग्रंिथ का कै पौ�ष ग्रंिथ का कैंसर एक दुदर्म अबुर्(Malignant Tumor) जो इसक� कोिशकाओं से उत्पन्न होता है। प्रायः यह धीरे बढ़ताऔर कई वष� तक अपने दायरे में ही िसिमत रहता है। इस अविध में इससे रोगी को कोई िवशेष ल�ण या बाहरी संकेत नहीं होते हलेिकन पौ�ष ग्रंिथ के सभी कैंसर का व्यवहार एक जैसा नहीं होता है। कुछ आक्रामक प्रजाित के कैंसर बड़ी तेजी से फैरोगी के जीवन को आ�यर्जनक ढंग से छोटा और क�प्रद बना देते हैं। इस कैंसर क� आक्रामकता अनुमान ग्लेसन स्कोरपर लगाया जाता है। अनुभवी रोगिव�ानी अबुर्द के नमूनों क� जीवोित जांच के आधार पर ग्लेसन स्कोर गणना करते जब कैंसर बढ़ने लगता है तो कैंसर कोिशकाएं प्रोस्टेट से बाहर िनकल कर आसपास के, अंगो और लिसका पव� में अपनािवस्तार करने लगती हैं। इसका दूरस्थ स्थलांतर प्रायः, यकृत और अिस्थ में होता है। इसका स्मृित सूत्र लम्बू लाल ब(Lungs, Liver and Bones) है। पौ�ष ग्रंिथ का कैंसर पुषों में सबसे व्यापक कैंसर है और फेफड़े के कैंसर के बाद कैंसर से होने वाली मृत्यु का दूसराकारण है। अमे�रकन कैंसर सोसाइटी के आंकड़ों के अनुसार सन2009 में अमे�रका में पौ�ष ग्रंिथ के कैंस192,280 नये रोगी पाये गये और 27,360 रोिगयों क� मृत्यु इस कैंसर के कारण ह�ई। इस कैंसर का जोिखम गोरे लोगो17.6% और अफ्र� कनसके काले लोगों मे20.6% रहता है तथा इस कैंसर से होने वाली मृत्यु दर क्र2.8% और 4.7% रहती है। इन आंकड़ों से स्पहोता है िक आज स्वस्थ जीवन जी रहे अमे�रका के लोगों को इस कैंसर का िकतना खतरा है। आज वहाँ इस कैंस20 लाख रोगी इस गंभीर रोग से लड़ रहे हैं। हाँ िपछले कुछ वष� में इस कैंसर से होने वाली मृत्यु दर में कमी अवश्य आई है। हालांिवषय बह�त िववादास्पद बना हआ है लेिकन िफर भी कई िचिकत्-शा�ी यह मानते हैं िक40 वषर् क� उम्र के बाद इस कैंसरिलए हर व्यि� क� िनयिमत अनुवीण जांच(Screening Test) होनी चािहये। कारण 
िचिकत्सा 
शाि�यों के अनुसार पौ�ष ग्रंिथ का कारण अभी तक अ�ात है और इसका प्रोस्टेट के सुदम अ(Benign Prostatic Hyperplasia) BPH से कोई सम्बन्ध नहीं है। इसके जोिखम घटक वृद्ध, आनुवंिशक, हाम�न और पयार्वरणघटक जैसे टॉिक्सन, रसायन, औद्योिगक अपिश� हैं। इस कैंसर का जोिखम उम्र बढ़ने के साथ बढ़ता जाता है। अतःआघटन 40 वषर् से पहले यह बह�त कम है लेिकन80 वषर् क� उम्र में यह बह�त सामान्य है। कुछ अनुसंधानकतार्ओं के अ80 वषर् से अिधक उम्र के लोगों में 50%-80% इस कैंसर के रोगी िमल जाते हैं। िनदान के समय इस कैंसर 80% से अिधक रोिगयों क� उम65 वषर् से अिधक होती है। प्रोस्टेट कैंसर के रोगी प�रवार दूसरे सदमे इस रोग का जोिखम दो से तीन गुना अिधक रहता है। यिद िपता, ताऊ या बड़े भाई को कम उम्र में यह कैंसर ह�आया प�रवार में एक से अिधक लोग इस कैंसर का िशकार बने हैं तो इस प�रवार के पुषोंइस कैंसर का जोिखमअिधक रहता है। ताजा अध्ययन के अनुसार ऐसे संकेत िमले हैं िक लैंिगक संभोग से फैलने वाले संक्रम प्रोस्टेट कैंसर का जो1.4 गुना बढ़ाते हैं।पु�ष हाम�न टेस्टोस्टीर, जो वृषण में स्रािवत होता, प्रोस्टेट क� स्वस्थ और कैंसर कोिशकाओं संवृिद्ध को पकरता है। इसी िलए ऐसा माना जाता है िक प्रोस्टेट कैंसर क� उत्पिऔर िवकास में टेस्टोस्टीरोन अहम भूिमका िनभाताहाम�न क� भूिमका इस बात से भी सािबत होती है िक इसका स्तर कम करने से कैंसर कोिशकाओं क� संवृिद्ध बािधत होती
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हा 
लांिक अभी तक िसद्ध नहीं हो सका है लेिकन िसगरेट और संत्र� वसा का अत्यिधक सेवन भी इस कैंसर का जोिखम बढ़ामोटापा भी आक्रामक और बड़े कैंसर का जोिखम बढ़ाता है और उपचार के बाद भी फलानुमान अच्छा नहीं रहता है। औदअपिशĶ और वातावरण में व्या� कुछ पदाथर् भी इस कैंसर क� उत्पिके कारक माने गये हैं। इस कैंसर के आघटन में िस्थित क� भूिमका भी महत्व रखती है। मसलन एिशया क� तुलना में उरी अमेरका और स्केंिडनेिवयन देशों में इस कआघटन अिधक है। अभी तक यह िसद्ध नहीं हो सका है िक ज्यादा संभोग करने वाले पु�षों को इस कैंसर के होने का खतरारहता है। ल±ण और संके त प्रारंिभक अवस्था में प्रायः कई वष� तक प्रोस्टेट कैंसर के रोगी को कोई ल�ण नहीं होते हैं। अिधकांश रोिगयों में पपता ही तब चलता है जब िकसी अन्य कारण से रोगी का प.एस.ए. करवाया जाता है तथा उसका स्तर बढ़ा ह�आ आता यािचिकत्सक को रोगी के सामान्य �प से िकये गये अन्तरमलाशय अंगुली प�रस्पशर्Digital (done with the finger) Rectal Examination में प्रोस्टेट , असामान्य और िगल्टीदार महसूस होती है। प्रोस्टेट मलाशय के ठीक आगे अविस्थत होती कालान्तर में जब कैंसर बढ़ने लगता है तो मूत्र िनस्सरण नली पर दबाव पड़ता है और फलस्व� प मूत्र कधार पतली होनेऔर मूत्र िवसजर्न में तकलीफ होती है। रोगी को मूत्र त्यागते समय जलन या में खून भी आ सकता है। यिद अबुरबढ़ जाता है तो मूत्र के प्रवाह को पूरी तरह रोक देत, िजससे असहनीय तथा तीव्र वेदना होती है। मूत्र का िनकास �क जानेकारण मूत्राशय फूल कर बड़ा हो जाता है और तेज ददर् भी करता है। लेिकन ये ल�ण प्रोस्टेट कैंसर क� पुिनहीं, क्योंिक प्रोस्टेट के सुदम अितवधर्न में भी यही ल�ण होते हैं। लेिकन इस िस्थित में कैंसर क� संभावना को ध्यान में परी�ण करवाने चािहये। िवकासशील अवस्था में कैंसर आसपास के ऊतकों और लिसका(श्रोिण यPelvic) में फैलता है। कैंसर का दूरस्थ अं(यकृत, फेफड़ा और हड्डी) में स्थलांतर भी होता है। स्थलान्तर कैंसर के शु�वाती लण ब, थकावट, वजन कम होना आिद होते हैं। अन्तरमलाशय अंगुली प�रस्पशर्न में िचिकत्सक को प्रोस, िस्थर और बढ़ी ह�ई महसूस होती है। दूरस्थ स्थलांसबसे पहले मे�दण्ड के िनचले िहस्से और श्रोिण क� हड्ि(Pelvic Bones) में होता है िजसके कारण पीठ के िनचले िहस्सऔर श्रोिण में ददर् होता है। इसके बाद दूरस्थ स्थलान्तर का यकृत और फेफड़े पर आक्रमण होता है। यकृत में स्थलान्तददर् और पीिलया हो सकता है। फेफड़े में स्थलान्तर होने से छाती ददर् और खांसी होत प्रोस्टेट कैंसर के अनुवी±ण जांच (Screening Tests) 
िकसी 
भी रोग (जैसे प्रोस्टेट कैंसर को ही ले लेत) को प्रारंिभअवस्था में ही पकड़ने के िलए समय पर क� जाने वाली जांको अनुवी�ण जांच (Screening Tests) कहते हैं। इन जांचों कनतीजे सामान्य होना यह दशार्ता हैं िक कोई िचंताजनक बात नहै। लेिकन यिद अनुवी�ण जांच के नतीजे असामान्य औरसंदेहास्पद हों तो अंितम और िनि�त िनदान तक पह�ँचने हेतु अनबड़े परी�ण िकये जाते हैं। प्रोस्टेट कैंसर को शु�वाती अवस्पकड़ने के िलए प्रोस्टेिटक स्पेिसिफक एंट(PSA) और अन्तरमलाशय अंगुली प�रस्पशर(Digital Rectal Examination) िकये जाते हैं। अन्तरमलाशय अंगुली प�रस्पश
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में िचिकत्सक रबर के दस्तानें पहन कर अंगुली को मलद्वार में घुसा कर प्रोस्टेट को टटोलता है। यिद प्रोस्टेट क� अिनयिमत लगे या कोई अबुर्द महसूस हो तो संदेह क� सुई कैंसर क� तरफ इंिगत करती है। िवशेष� सामान्य40 वषर् क� उम्र बाद इस परी�ण करने क� सलाह देते हैं। प्रोस्टेिटक स्पेिसिफक एंट(PSA) 
प्रोस्टेिटक स्पेिसिफक एंट 
( 
PSA) एक सरल और अपे�ाकृत िवĵसनीय र� कजांच है। इसके िलए र� में एक िविश� प्रो (PSA) क� मात्रा को नापा जाता है। यह प्रोटीन प्रोस्टेट में, िजसका थोड़ा अंश र� में भी पह�ँचता है। प्रोस्टेट कैंसर में इसका स्त4 नेनोग्राप्रित िमिललीटर से अिधक होता है। ध्यान रहे लेिकन इसका स्तर प्रक� संवृिद, संक्रमण और प्रदाह में भी बढ़ता 
िवशेष� पी 
.एस.ए. को प्रोस्टेट कैंसर िनदान के िलए महत्वपूणर् अनजांच मानते हैं। हालांिक प.एस.ए. जांच को िववादास्पद माना जाता ह, क्योंिक अनुवी�ण जांच के बाद भी प्रोस्टेट कैंसर से होने वाली मृत्युकोई फकर् नहीं देखा गया है। साथ में अितिनद(Over Diagnosis), अनावश्यक जीवोित जां (Biopsy) और कĶप्रउपचार के झमेले रोगी और िचिकत्सक दोनों को उलझन िचंता में डाल देहैं।अमे� रका किप्रवेंिटव सिवर्सेज टास्क (U.S. Preventive Services Task Force) ने अपनी �रपोटर् जारी क� है िजसमे प्रोस्टेट कैंसर के अनुवी�ण हेत.एस.ए. क� जांच को अनावश्यक और व्यथर् बताया है। िवक�पीिडया में इसका स्प� उल्ल लेिकन िफर भी अिधकांश िवशेष� प्रोस्टेट कैंसर के अनुवीण हेतु िनयिमत जांच करवाने क� देते हैं। अमेरीकन यूरोलोजीकल एसोिसयेशन ने इस सम्बन्ध में स2009 में ताजा िदशा-िनद�श जारी िकये हैं। इन िनद�शों के अनुसार प्रा40 वषर् या अिधक उम्र मे.एस.ए. क� जांच और अन्तरमलाशय अंगुली प�रस्पशर(Digital Rectal Examination) करने क� सलाह दी गई है। इसके बाद िचिकत्सक जोिखम घटक(जैसे नस्, प्रजा, पा�रवारक, आघटन आिद), शु�आती अनुवी�ण जांच के नतीजों और अपने अनुभव के आधार पर समय समय पर जांच करवाता है। जैसे िक व्यि� के प�रवार में यिद िकसी को यह कैहो चुका हो या उसका शु�वाती पी.एस.ए. बढ़ा ह�आ आया हो तो उसक� अनुवी�ण जांच जल्दी जल्द(प्रायः हर स) क� जानी चािहये। अमूमन िवशेष� उन लोगों में अनुवी�ण जांच करने क� सलाह देते हैं जो कम से 10 वषर् औरतो और जीयेंगे। ऐसे लोगोक� प्रायः सालाना जांच होनी चािहये। लेिक75 वषर् क� उम्र के बाद जांच करने का कोई औितच्य नहीं रहता है। पी.एस.ए. का सामान्य स्त4 नैनोग्राम प्रित िमिललीटर माना गया है। आजकल कुछ िवशेष� त.एस.ए. का स्तर2.5 नैनोग्राप्रित िमिललीटर भी हो तो प्रोस्टेट क� जीवोित जांच करने अिभशंसा करने लगे हैं तािक कैंसर को बह�त पहले ही पकजाये तािक इसका पूणर् उपचार संभव हो सके। बायोप्सी के िलए अमेरीकन यूरोलोजीकल एसोिसयेशन ने िनि�त माप दण्ड तय निकये है, लेिकन सलाह दी है िक जोिखम घटकों को ध्यान में रखते ह�ए बायोप्सी का िनणर्य लेना चाि 
पी.एस.ए. गित (PSA velocity) - सबसे अहम और ध्यान रखने योग्य पहलू यह है िक .एस.ए. का स्तर िकस गित(PSA velocity) से बढ़ रहा है। यिद पी.एस.ए. का स्तर4 से 10 नैनोग्राम प्रित िमिललीटर है तो यह संदेह के घेरे(Borderline) आता है। इस िस्थित में रोगी क� , ल�ण, संकेत, पा�रवारक इितहास और पी.एस.ए. के स्तर के आधार पर िनणर्य लेना चािहयेपी.एस.ए. का 10 से ज्यादा होना असामान्य है और प्रोस्टेट कैंसर क� संभावना को इंिगत करता .एस.ए. का स्तर िजतनाअिधक हो कैंसर क� संभावना उतनी ही अिधक रहती है। जब प्रोस्टेट कैंसर फैल कर आसपास के, लिसकापव� या दूरस्थ अंगों में फैलता है तब भी .एस.ए. का स्तर एक दम बढ़ता है। प.एस.ए. का स्तर30 या 40 या अिधक होना कैंसर का स्प� संकेहोता है।
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पी.एस.ए. बढ़ने के अन्य कारण- कई बार पी.एस.ए. का स्तर कैंसर के अलावा अन्य िवकारों के कारण भी बढ़ता है जसुदम प्रोस्टेट अितव, िकसी भी कारण से ह�आ प्रद (Prostatitis) या संक्रमण में भी.एस.ए. स्तर बढ़ सकता है। िविदत रहेिक प्रोस्टेट के अंगुली प�रस्पशर्न या वीयर् स्खलन48 घंटे तक पी.एस.ए. का स्तर बढ़ सकता है। उपरो� िस्थितयों पी.एस.ए. का स्तर प्रा4 से 10 के बीच रहता है, लेिकन 20 से 25 तक भी जा सकता है। इन प�रिस्थितयों में नतीजोंिवष्लेषण बह�त िववेकतापूवर्क िकया जाना चािहये। यह भी ध्यान रखें िक प्रोस्टेट के अलावा अन्य अंगों, भोजन, दवा, धूम्रपान या मिदरापान .एस.ए. के स्तर को प्रभािवत नहीं करते प्रोस्टेट क के िनदान हेतु पी.एस.ए. जांच िवĵसनीय मानी जाती है क्योंिप्रोस्टेट क के अिधकांश रोिगयों में .एस.ए. का स्तर असामान्य या संदेहास्पद सीमा में रहता पी.एस.ए. अनुपात PSA Ratio - हाल ही पी.एस.ए. क� जांच के स्व�प में कुछ संशोधन िकये गये हैं। इनका उद्संदेह सीमा में या बढ़े ह�ए प.एस.ए. के स्तर का बेहतर िवष्लेषण कर, प्रोस्टेट कैंसर का सही आंकलन करना औ.एस.ए. के स्तर को बढ़ाने वाले अन्य िवकारों िचिन्हत करना है। तािक इस जांच क� संवेदनशीलता और िवसनीयता में सुधार इस जांच का एक नया स्व�पपी.एस.ए. अनुपात PSA Ratio है। पी.एस.ए. अनुपात क� गणना र� में प्रवािहत हो रहे मपी.एस.ए. क� मात्रा में प्रोटीन से बं.एस.ए. क� मात्रा का भाग देकर क� जाती है। शोधकतार् मानते हैं िक र� में मुप्रवािहत .एस.ए. का सुदम प्रोस्टेट अितवधर्न से सीधा सम्बन्ध ह, जबिक प्रोटीन से जुड़ा .एस.ए. कैंसर से सम्बिन्होता है। इस तरह पी.एस.ए. अनुपात बढ़ा ह�आ हो तो कैंसर क� संभावना कम रहती है जबिक इस अनुपात का कम होना कैंसर क उपिस्थित को प्रबल बनाता ह पी.एस.ए. का सामान्यस्तर उम्र पर िनभ– 
शोधकतार्ओं ने यह भी देखा है िक जैसे पु�ष 
क� 
उम्र बढ़ती है उसका 
. 
एस 
.ए. भी बढ़ता है भले उसे कैंसर न ह�आ हो। इसिलए प.एस.ए. का सामान्य स्तहर उम्र में अलग होता है। िचिकत्सक क.एस.ए. का िवष्लेषण करते समय ध्यान रखना चािहये िक रोगक� उम्र के िहसाब से .एस.ए. का सामान्य स्तिकतना होना चािहये। उम्र के चौथे दशक में.एस.ए. का सामान्य स्त0 से 2.5, पांचवें दशक मे0 से 3.5, छठे दशक में0-4.5 और 70 वषर् से बड़े पु�षों म0 से 6.5 होता है। उदाहरण के तौर पर पी.एस.ए. का स्तर4 होना तीसरे और चौथे दशक के िलए संदेह सीमा मेंआयेगा लेिकन पांचवे, छठे और सातवें दशक के रोिगयों के िलए यह सामान्य स्तर है 
Age(in years) 
PSA Range (measured in ng/ml) 
40 
0–2.0 
42 
0–2.2 
44 
0–2.3 
46 
0–2.5 
48 
0–2.6 
50 
0–2.8 
52 
0–3.0 
54 
0–3.2 
56 
0–3.4 
58 
0–3.6 
60 
0–3.8 
62 
0–4.1 
64 
0–4.4 
66 
0–4.6 
68 
0–4.9 
70 
0–5.3 
74 
0–6.0 
78 
0-6.8 
पी.एस.ए. गित या स्लोप- पी.एस.ए. क� जांच में एक संशोधन और ह�आ ह, िजसे पी.एस.ए. गित या स्लोप कहते हैं। इसकगणना पी.एस.ए. के स्तर में ह�ई बढ़ोतरी समय का भाग देकर क� जाती है।.एस.ए. गित िजतनी तेज होती है अथार्त प.एस.ए. िजतना जल्दी बढ़ता ह, कैंसर क� संभावना उतनी ही अिधक रहती है। और यिद प.एस.ए. धीरे बढ़ता है तो कैंसर क� संभावनाउतनी ही कम रहती है।
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प्रोस्टेट कैंसर 3 (PCA3) - प्रोस्टेट कैंसर 3 (PCA3) एक नया जीन है िजसके िलए मूत्र का परी�ण िकया जाता है। जी3 (PCA3) अित िविश� जीन है और िसफर् कैंसर प्रोस्टेट में ही उहोता है। प्रोस्टेट के अन्य रोग जैसे िवविधर्त या संक्रमण जीन अनुपिस्थत होता है। प.एस.ए. स्तर के साथ जीन3 क� मूत्र जांप्रोस्टेट कैंसर िनदान हेतु जीवोित जांच करने के िलए बेहतर संकेत देती 
ि 
नदान 
प्रोस्टेट कैंसर का चरण 
िनधार्रण कैंसर कोिशकाओं के प्रोस्टेट औरअन्य िहस्सों में िवस्तार और फैलाव के आधार पर िकया जाता है। जीजांच द्वारा कैंसर का िनदान होने के बाद कई तरह परी�ण िकये जाते, तािक स्प� तौर पर मालूम हो सके िक कैंसर शरीर में कहाँ फैल चुहै। रेिडयोन्युक्लाइड अिस्थ स्- यिद हड्िडयों में कैंसर का स्थलांतर हो चुका है तो रेिडयोन्युक्लाइड स्केन से जाता है। इस जांच में एक रेिडयोधम� पदाथर् शरीर में छोड़ा जाता, जो हड्िडयों में कैंसर ऊतकों को िचिन्हत कर देता है। यिद को िकसी हड्डी में गहरा ददर् , कोई हड्डी टूट गई हो या पी.एस.ए. स्तर बह�त ज्याद(10-20 ng/ml) हो तब यह जांच िवशेष तौर पर क� जाती है। छाती का एक्सरे और सोनोग्रा- छाती के एक्सरे से फेफड़े में कैंसर के स्तलांतर का पता चल जाता है। सोनोग्रामूत्रपथ में आई �कावट के संकेत िमल जाते हैं। प्रोस्टेट के बढ़ जाने से मूत्र िवसजर्न में आई �कावट के कारण मूत्राशमोटाई बढ़ जाती है और मूत्र िवसजर्न करने के बाद भी मूत्राशय में कुछ मूत्र भरा (अवशेष मूत) है। सोनोग्राफ� से ये सारजानकारी भी िमल जाती है। सी.टी. स्केन और ए.आर.आई. - इनके अित� रसी.टी. स्केन और ए.आर.आई. क� जाती है। िजससे मालूम हो जाता है िक कैंसर आसपास के ऊतक, लिसकापव� (Lymph Nodes) और शरीर के अन्य अंगों जैसे मूत्, मलाशय, यकृत या फेफड़े में फैला है या नहीं। कई बार .ई.टी. स्केन भी िकया जाता ह, जो शरीर में कुछ छुपे ह�ए कैंसर के ऊतकों को भी िचिन्हतदेता है। 
मूत्राशयदश� जां(Cystoscopy) - कुछ रोिगयों में मूत्राशयदश� यंत्र द्वारा (Cystoscopy) क� जाती है। इस जांच में एक पतल, लचीली और प्रकाश स्रोत लगी नली को मूत्राशय में डाल कर अन्दर देखा जाता है। इस यंत्र के बाहरकेमरा अविस्थत रहता ह, जो अंदर के �श्यों को बाहर लगे पटल पर प्रदिशर्त करता है। इस जांच से मूत्राशय और मूत्नली का अवलोकन िकया जाता है और कैंसर को िचिन्हत कर िलया जाता है। साथ ही संदेह होने पर जीवोित जांच हेतु मूत्राशयनमूने भी ले िलए जाते हैं।
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चरण िनधार्रण– (Staging) – सं�ेप में िचिकत्सक कैंसर का चरण िनधार्रण प्रोस्टेट तथा अन्य ऊतकों क� जीवोित जांच और छायांकन परपर करते हैं। चरण के आधार पर कैंसर के उपच, फलानुमान और अन्य कई िनणर्य िलए जाते हैं। इस कैंसर को िनम्न चरणवग�कृत िकया गया है। चरण I – इस चरण में अन्तरमलाशय अंगुली परी�ण द्वारा कैंसर के कोई संकेत नहीं िमलते हैं और प्रोस्टेट के बाहर कैसाàय भी नहीं होते हैं। इस चरण का प्रायः अितविधर्त प्रोस्टे-िक्रया के बाद जीवोित जांच में कैंसर का पता चलता ह चरण II – इस चरण में अबुर्द चरI से बड़ा होता है और प्रायः अन्तरमलाशय अंगुली परी�ण से महसूस हो जाता है। प्रोस्टबाहर कैंसर के कोई सा�य भी नहीं होते हैं। यह चरण प्रा.एस.ए. का स्तर बढ़ा होने के कारण क� गई जीवोित जांच से िचिन्हहोता है। चरण III – इस चरण में कैंसर प्रोस्टेट से बाहर िनकल कर आसपास के ऊतकों में फैल चुका हो चरण IV - इस चरण में कैंसर प्रोस्टेट से बाहर िनकल कर आसपास के लिसकापव� और दूरस्थ अंगों में फैल चुका ह आजकल अिधकांश िवशेष� 2002 में बने ट.एन.एम. (Tumor, Node, Metastases) वग�करण पद्धित को प्रयोग करते हैंतीन पहलुओं (T stage) मूल अबुर्द के िवस्त, (N stage) लिसकापव� में कैंसर के फैलाव औ(M stage) दूरस्थ अंगों में कैके स्थलांतर क� िस्थित पर आधारत होता है। प्रोस्टेट कैंसर.एन.एम. वग�करण इस प्रकार है प्राथिमक कैंसर का आंक(T) Tx: प्राथिमक कैंसर देखा नहीं जा सका T0: प्राथिमक कैंसर के कोई सा�य नहीं िमले T1: प्रोस्टेट कैंसरग्रस्त हो चुका है लेिकन अबुर्द को िचिकत्सक�य परीण या छायांकन िवधाओं द्वारा पकड़ना सं T1a: िकसी अन्य कारण से िनकाली गई प्रोस्टेट के ऊतको5% िहस्से में कैंसर का पाया जाना T1b: िकसी अन्य कारण से िनकाली गई प्रोस्टेट के ऊतको5% से अिधक िहस्से में कैंसर का पाया जाना T1c: पी.एस.ए. का स्तर बढ़ने के कारण क� गई जीवोित जांच में कैंसर का पाया जान T2: कैंसर अंगुली प�रस्पशर्ण द्वारा पकड़ना संभव है लेिकन प्रोस्टेट से बाहर नहीं T2a: कैंसर प्रोस्टेट के दोनों तरफ के खण्डों में से िकसी एक खण्ड के आधे या कम िहस्से में उ T2b: कैंसर प्रोस्टेट के िकसी एक खण्ड के आधे से अिधक िहस्से में उप, लेिकन दोनों खण्डों में नह T2c: कैंसर प्रोस्टेट के दोनों खण्डों में उपिस् T3: कैंसर प्रोस्टेट के आवरण को भेद कर बाहर आ चुका T3a: कैंसर एक या दोनों तरफ आवरण को भेद कर बाहर आ चुका है T3b: कैंसर एक या दोनों शुक्र पुिटकाओं पर आक्रमण कर चुका T4: कैंसर आसपास क� संरचनाओं पर आक्रमण कर चुका ह
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ध्यान रहेT2c चरण में ज�री है िक प्रोस्टेट के दोनों खण्डों में प�रस्पशर्ण द्वारा कैंसर को पकड़ा गया हो। यिद दोनोंको प�रस्पशर्ण द्वारा पकड़ पाना संभव नहीं है तोT2c चरण देना गलत होगा भले दोनों खण्डों क� जीवोित जांच में कउपिस्थत हो। स्थानीय लिसकापव का आंकलन (N) NX: स्थानीय लिसकापव� में कैंसर का आंकलन संभव नहीं है N0: स्थानीय लिसकापव� में कैंसर नहीं फैला ह N1: स्थानीय लिसकापव� में कैंसर फैल चुका है दूरस्थ स्थलांतर का आंकलन(M) MX: दूरस्थ अंगों में स्थलांतर का आंकलन संभव नहीं ह M0: दूरस्थ अंगों में स्थलांतर नहीं ह �आ M1: दूरस्थ अंगों में स्थलांतर हो चुका है M1a: कैंसर स्थानीय लिसकापव� से आगे के पर आक्रमण कर चुका है M1b: कैंसर अिस्थयों में फैल चुका ह 
M1c: कैंसर अन्य अंगों में फैल चुक, भले कैंसर अिस्थयों फैला हो या न फैला हो।
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उ 
पचार प्रोस्टेट कैंसर हेतु सही और उपयु� उपचार का चुनाव करना भी किठन कायर् है। क्योंिक आज हमारे पास पहले से कहीं बकई उपचार उपलब्ध है। लेिकन उनके खतरों और फायदों पर पूरी तरह शोध नहीं हो पा, इसिलए िविभन्न उपचार िवधाओंमेंसे रोगी के िलए सही उपचार चुनना मुिश्कल होता है। प्रोस्टेट कैंसर के उपचार हेतु िचिकत्सकों ने कैंसर को इन तीन वग� में बा1- वह स्थानीय कैंसर जो प्रोस्टेट में ही िसि2- स्थानीय िवकिसत कैंस(बड़ा प्रोस्टेट कैंसर या कैंसर िजसका प्रसार आसपास के ऊतकों और लिसकावव� में हो चु3- दूरस्थ स्थलांतर कैंसर। पहले और दूसरे वगर् मे-िक्र, रेिडयेशन, हाम�नल उपचार, क्रायोथेरे, और सतकर्तापूवर्क प्रतआिद उपचार िदये जाते हैं। दुभार्ग्यवश दूरस्थ स्थलांतर कैंसर में रोग का पूणर् उपचार संभ, लेिकन प्रशामक उपचार के � में क�मोथेरेपी और रेिडयोथेरेपी दी जाती है। प्रशामक उपचार का उद्देश्य कैंसर क� संवृिद्ध को धीमा करना और रोगी और कĶ कम करना होता है। शल्-िक्रय मौिलक पौŁष ग्रंिथ उच्छे प्रोस्टेट कैंसर के शल्य उपचार हेतु मौिलक पौ�ष ग्रंिथ उच्छेदन या रेडीकल प्रोस्टेक्टोमी क� जाती है। इस शल्य प्रोस्, शुक्र पुिटकाएं और शुक्रनली के ऐम्प्यूला का उच्छेदन िकया जाता है तथा मूत्राशय के मुख को मेम्ब्रेनस यूरेथ्रजाता है, तािक मूत्र िवसजर्न भली भांित होता रहे। अमे�रका में मौिलक पौ�षग्रंिथ उच्छेदन प्रोस्टेट में ही िसिमत स्थानीय कैंसर और स्थानीय िवकिसत कैंसर काउपचार है। प्रोस्टेट में ही िसिमत स्थानीय कैं36% रोिगयों में यह श-िक्रया क� जाती है। अमे�रकन कैंसर सोसाइटी अनुसार प्रोस्टेट में ही िसिमत स्थानीय कैंसर में यिद प्रोस्टेट पूरी तरह िनकाल दी जाती है तो90% है। इस शल्य क� जिटलताओं में िन�ेतन के खतर, र�स्र, नपुंसकता (30%-70%रोिगयों म) और मूत्र असंयमता(3%-10%रोिगयों म) मुख्य हैं। 
प्रोस्टेट के उच्छेदन क� ज 
िटलताओं को कम करने के िदशा में बह�त प्रगित हई है। पहले क� अपेा आज िनेतन प्रििवकिसत और सुरि�त हई है। आज िचिकत्साशा� ी मूत्र संयमता और पौष ग्रंिथ कसंरचना कायर् प्रणाली को बेहतहैं। और इस कारण शल-िक्रया में कई क्रांितकारी बह�त परवतर्न ह�ए हैं। आज प्रोस्टेट के दोनों तरफ िस्थत स्नायुजह�ए शल्यिक्रया क� जाती है। इस तरह के शल्य से मूत्र अस(Incontinence of Urine) व स्तंभनदोष(Impotence) होने का जोिखम बह�त कम रहता है। 98% रोिगयों को मूत्र असंयमता 60% रोिगयों को लैंिगक संसगर् में कोई परेशानी नहीं आती रोबोिटक मौिलक पौŁषग्रंिथ उच्छे 
मौिलक पौ�षग्रंिथ उच्छेदन खुली शल्य , दूरबीन या यंत्रमानव शल्य द्वारा िकया जाती है। क� सहायता नायाब तकनीक है। आज अमे�रका में70 % पौ�षग्रंिथ उच्छेदा िवंसी यंत्रमानक� मदद से िकये जाते हैं। इस शल्य िक्रयाउदर में पांच छोटे िछद्र िकये जाते, िजनमें छोटे से केमरे समेत शल्य उपकरण पेट में घुसाये जाते हैं। केमरे से ली गई अंदरित्रआया, स्प� औरदस गुनी अिभविधर्त तस्वीरें एक -पटल और रोगीशैया से दूर एक खटोले के पटल पर िदखाई देती हैं।शल्य उपकरण रोबोट के हाथों से जोड़ िदये जाते हैं। रोबोट के सारे िनयंऔर घुिण्डयांखटोले में लगी होती हैं। खटोले में ब
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कर श 
ल्यकम� पटल में देखते ह�ए अपने हाथों से शल्यिक्रया को अंजाम देततस्वीरें ित्रआयामी होने के कारण शल्यकम� कोलगता है जैसे वह रोगी के शरीर भीतर जाकर शल्य कर रहा ह, जबिक वह रोगी से 8 फुट दूर होता है। रोबोट शल्य उपकरणोको सभी िदशाओं में अिधक सू�मता और स्पता से घुमा िफरा सकता है। इसिलए रोबोट क� मदद से जिटल और उत्कृशकरना आसान हो जाता है। स्तंभनदोष के उपचार हेतु िसलडेनािफल(िवयाग्), िशij में ऐल्प्रोस्ट(केवरजेट) क� सुई या िविभन्न तरह के पम्प प्रयोग िजाते हैं। इन सबसे भी काम न चले तो आपका िचिकत्सक अपने िपटारे में कृित्रम िलंग प्रत्यारोपण का सामान भी लेकर बैठा असंयमता प्रायः धी-धीरे ठीक हो जाती है। इसके उपचार हेतु कुछ व्याया, दवाएं भी दी जाती है। कई बार रोगी के शरीर से ही ली गई पेशी या अन्य पदाथर् से कृित्रम संकोिचनी बनानी पड़ती
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रेिडयेशन थेरेपी 
यिद िकसी कार 
णवश रोगी का मौिलक पौ�षग्रंिथ उच्छेदन करना संभव नहीं हो या अबुर्द बहत बड़ा तो रेिडयेशन थेरेपी दोसे दी जाती है। पहली परम्परागत बाहरी िकरणपुण्ज रेिडयोथेरे (Conventional External Beam Radiotherapy EBRT) 6 या 7 हफ्तों तक दी जाती है और दूसरी ब्रेक�थेर(Brachytherapy) िजसमें रेिडयोधम� बीज प्रोस्टेट में रोिपत कर िदये जाते बाहरी िकरणपुण्ज रेिडयोथेरेप में शि�शाली एक्स िकरणें अबुर्द और आसपास के �ेत्र में केिन्द्रत करके उपचार िदयाब्रेक�थेरेपी में अल्ट्रासाउंड के िदशा िनद�श में सुईयों को घुसा कर प्रोस्टेट में रेिडयोधम� बीज रोिपत िदये जाते हैं। बरेिडयोधम� बीज प्रोस्टेट में ही अविस्थत होने कवजह से आसपास के ऊतकों और अंगों रेिडयेशन कुप्रभाव अपहोते हैं। रेिडयेशन के कुप्रभाव से प्रोस्टेट में थोड़े समय के िलए सूजन आ स, िजसके कारण मूत्र पथ में �कावट हो सकती है। यरोगी को िवविधर्त प्रोस्टेट के कारण पहले से ही मूत्र पथ में �कावट के कुछ लण हैं तो वे अचानक बढ़ सकते हैं। त्वचा पीड़ा, बाल झड़ना आिद बाहरी िकरणपुण्ज रेिडयोथेरेप के कुप्रभाव हैं। थक, दस्त लगना और पेशाब में जलन दोनों से हो सकहैं। ये सब ल�ण अस्थाई होते हैं। रेिडयेशन के कारण वष� बाद कुछ दूरगामी कुप्रभाव भी देखे गये हैं जैसे मूत्राशय या मकैंसर। यिद रेिडयेशन उपचार से लाभ नहीं हो तो श-िक्रया क� जा सकती , लेिकन मूत्र संयतता और स्तंभन दोष के आघका खतरा बह�त अिधक रहता है। होमōन उपचार टेस्टोस्टीरोन पु�(Androgenic) होम�न है। यह प्रोस्टेट में कैंसर कोिशकाओं क� संवृिद्ध को प्रोत्सािहत करता है। प्रोस्टेट कैंसर क� संवृिद्ध के िलए ईंधन का काम करता है। हाम�न (औषिध या शल्) का उद्देश्य टेस्टोस्टीरोन द्वारकोिशकाओं के प्रोत्साहन बािधत करना है। टेस्टोस्टीरोन का िनमार्ण वृषLH-RH ल्युिटनाइिजंग �रलीिजंग हामन(Luteinizing Hormone-Releasing Hormone) से संकेत िमलने पर होता है। इसे गोनेडोट्रोिफन �रलीिजंग हाम�न भी कहतहैं। यह हाम�न मिस्तष्क के िनयंत्रण क� में बनता है और रप्रवािहत होकर वृषण पहँचता है और टेस्टोस्टीरोन कउत्प्रे�रत करता ह हाम�न उपचार शल्-िक्रया या दवाओं द्वारा िकया जाता है। शल्य उपचार में दोनों वृषणों का उच्छेदन कर िदया जइस शल्य कोओिकर्येक्टो या वंध्यकरण कहते हैं। अथार्त इस शल्य में टेस्टोस्टीरोन के स्रोत को ही शरीर से िन जाता है। औषधीय हाम�न उपचार में दो श्रेिणयों क� औषिधयां दी जाती हैं। पहली शLH-RH ऐगोिनस्ट कहते हैं। ये मिस्तमेंLH-RH के स्राव को बािधत करती हैं। दूसरी श्रेणी-ऐंड्रोजिनक है। यह पु�ष होमन टेस्टोस्टीरोन के िव�द्ध काम करतअथार्त यह प्रोस्टेट में टेस्टोस्टीरोन के असर को िनिष्क्रय 
आजकल अिधकांश पु�ष शल्-िक्रया क� अपेा औषधीय हामन उपचार पसन्द करते हैं। क्योंिक पु�ष को स्थाई प सवंध्यकरण करवाना मनोवै�ािनक और शारी�रक सुन्दरता दोनों ही � िसे नागवार लगता है। सच्चाई यह भी है िक शल्य वंधऔर औषधीय हाम�न उपचार के प्रभाव और खतरे भी बराबर से ही हैं। दोनों ही तरह के हाम�न उपचार टेस्टोस्टीरोन के अिनिष्क्रय करने में समथर् हैं। लेिकन हारमोन उपचार से प्रोस्टेट के कुछ प्रजाित के कैंसर में कोई फायदा नहीं होता ह- इंिडपेंडेन्ट प्रोस्टेट कैंसर कहते हैं। हारमोन उपचार के प्रमुख कुप्रभाव स्तन(Gynecomastia) और नपुंसकता है। स्तन में अक्सर पीड़ा या शरीर में तमतम(Hot Flashes) होती है। 
LH-RH ऐगोिनस् ल्युप्रोला(Lupron) या गोसरेिलन (Zoladex) के इंजेक्शन हर महीने िदये जाते हैंएन्ट-एन्ड्रोजिदवाएं फ्लुटामाइड(Eulexin) या बाईकेल्युटेमाइड(Casodex) के केप्स्यूल अकेले यLH-RH ऐगोिनस्ट के साथ िदये जाते हैं
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  • 1. 1 | P a g e पौŁष ग्रंि Prostate मनुष्य के शरीर में पौ�ष ग्रंिथ या प्रोस्टेट ग्रंिथ ही एक मात्र अंग है िजसे पु�षामाना जाता है, क्योंिक पु�ष क� परम श्रे� धातु शुक्र या वीयर् पौ�ष ग्रंिथ में ही बनतीक� सात धातुओं में सातवीं धातु शुक्र अथवा वीयर् सबसे श्रे� मानी ज केवल वीयर् हीशरीर का अनमोल आभूषण है, वीयर् ही शि� ह, वीयर् ही सुन्दरता है। शरीर में वीयर् ही पवस्तु है। वीयर् ही आँखों का तेज, वीयर् ही �ा, वीयर् ही प्रकाश, वीयर् ही वेद हैं और वीर हब्र� । वीयर् का संचय करना ही ब्र�चयर् वीयर् ही एक ऐसा त�व ह, जो शरीर के प्रत्येक अका पोषण करके शरीर को सुन्दर व सु…ढ़ बनाता है। वीयर् ही आन-प्रमोद का सागर है। िजमनुष्य में वीयर् का खजाना है वह दुिनया के सारे आ-प्रमोद मना सकता है और सौ वषर् जी सकता है। वीयर् में नया शरीर पैदा करने क� शिहोती है। जब तक शरीर में वीयर् होतातब तक शत्रु क� ताकत नहीं है िक वह िभड़ , रोग इसे दबा नहीं सकता। भोजन से वीयरबनने क� प्रिक्रया भी बड़ी लम्बी और जि, जो प्रोस्टेट में ही सम्पन्न हो इस बारे मेंश्री सुश्रुताचायर् ने िलख: रसाद्र ततो मांसं मांसान्मेदः प्रजाय । मेदस्यािस्थः ततो मज्जा मज्: शुक्रसंभ ।। कहते हैं िक वीयर् बनने में कर 30 िदन व 4 घंटे लग जाते हैं। वै�ािनक लोग कहते हैं ि 32 िकलोग्राम भोजन स700 ग्राम रबनता है और 700 ग्राम र� से लगभ20 ग्राम वीयर् बनता है। ग्रीक भाषा में भी प्रोस्टेट का मतलबOne who stands before यािन Protector या Guardian अथार्त यह पूरे शरीर का संर�क या पालनहार है। प्रोस्टेट के बारे में एक महत्बात यह है िक सन् 2002 में फ ेडरल इंटरनेशनल कमेटी ऑन टिमर्नोलोजी ने ि�यों क� पेरायूरीथ्रल ग्लेंड्स या स्केनीज(Female Paraurethral Glands or Skene's Glands) को प्रोस्टेट क� प्रित�प मान िलया है और इसे फ�मेल प्रोसनाम दे िदया है। रित िनष्पि� (Orgasm) के समय ि�यों क� योिन से िनकलने वाले स्खलन क� संरचना भी प्रोस्टेट के स्समान ही होती है। इसमें भी उसी मात्रा मे.एस.ए. और फ्रुक्टभी होते हैं। संरचना पौ�ष ग्रंिथ अखरोट के आकार क� बा�स्र(Exocrine) ग्रंिहोती है जो पु� ष शरीर कमध्य रेखा में मूत्राशय के ठीक िस्थत होती है। इसका वजन लगभग20 ग्राम और लम्ब3 सै.मी., चौड़ाई 4 सै.मी. तथा गहराई 2 सै.मी. होती है। यह ग्रंिजघन संघानक (Pubic Symphysis) के पृ� मे, पेरीिनयल मेम्ब्रेन के , मूत्रा (Urinary Bladder) के नीचे और मलाशय (Rectum) के आगे अविस्थत रहती है। इसका आधारमूत्राशय के सम्पकर् में रहता है और यह नीचे (Apex) पर खत्म होकररेशेदार बा� मूत्रमाग� संकोिचन(Striated External Urethral Sphincter) से िमल जाती है। संकोिचनी एक लम्ब�प पेशी ऊतक से बनी एक नली होती है जो मूत्रन
  • 2. 2 | P a g e और पौ�ष ग्रंिथ को लपेटे रहती है। पौ�ष ग्रंिथ कोले , ऐलािस्टन और िस्नग्ध पेिशयों से बने आवरण में बंद रहती है। य, पीछे और पाष्वर् में तीन अलग अआवरणी (Fascia) से िलपटी रहती है। अग्र और अग्रपाष्व� आ(Anterior and Anterolateral Fascia) इसके खोल से िचपक� रहती है। िशij (Penis) क� गहन पृ� िशरा (Deep Dorsal Vein) और उसक� शाखाएं यहीं से गुजरती है। पाष्वर् आवरणी लेवेटर आवरणी से जुड़ी रहती है। डेट्र�जर पेशी के बाहरी तथा लम्बे रेशे भी खोल के तंतुपेशीय ऊतकों में समा जातेइसका िपछला िहस्सा �रट्रोवेजाइक(Denonvilliers) आवरणी से िचपका रहता है। �र ट ्रोवेजाइकल आव र ण (RrectoVesical Fascia) पौ�ष ग्रंिथ क� पृसतह और मलाशय क� अग्र तरह के बीच एक संयऊतक (Connective Tissue) है। यह आवरणी पौ�ष ग्रंिथ और शुक्र पुिटseminal vesicles के पृ� सतह को भी लपेटे रहती है और नीचे जाकर मूत्रनली के नीचे बा� मूत्रमागसंकोिचनी के स्तर पर मीिडयन फाइबर रेफे �प में खत्म हो ग्रंिथ के अग्र भाग को प् य ूबाप्रोस्टे ( PuboProstatic Ligaments) और अधो भाग को बा� मूत्रमाग� संकोिचनी तथपेरीिनयल मेम्ब्रेन सहारा देते हैं। प्यूबाप्रोस्टेिटक बंध प्यूबावेजाइकल का ही ि पौ�ष ग्रंिथ लेवेटर ऐनाई पेश ( Levator Ani Muscle) के प्यूबोरेक्टल िहस्से से िघरी रहती है। शुक्र पुिटकाएँ मूत्राशय के आनीचे तथा पौ�ष ग्रंिथ के ऊपर अविस्थत रहती हैं6 सै.मी. लम्बी होती हैं। दोनों शुक्र पुिटकाओं क� निल(Ductus Deferens) िमल कर स्खलन निलका(Ejaculatory Duct) बनाती हैं जो पौ�ष ग्रंिथ में प्रवेश करत
  • 3. 3 | P a g e सूàम संरचना स ूàम संरचना के आधार पर पौ�ष ग्रंिथ को चार खण्डों में वग�कृत िकया गया 1- अग्र खण(Anterior lobe) क� सीमाओं में मोटे तौर पर अंत�रम मण्डल आता है 2- पृ� खण्ड(Posterior lobe) प�रधीय मण्डल में फैला रहता है 3- पाष्वर् खण(Lateral lobes) में सभी मण्डलों में फैला रहता है। 4- मध्य खण्(Median lobe) लगभग केन्द्रीय मण्डल से सम्बिन्धत लेिकन सन् 1968 में ड. मेक नील ने रोग िव�ान क� िĶ से पौ�ष ग्रंिथ को नये तरीके से चार मण्डलों में वग�कृत िकया 1- अंत�रम मण्डल(Transition zone) 2- केन्द्रीय मण(Central zone) 3- प�रधीय मण्डल(Peripheral zone) और 4- अग्र तंतुपेशीय मण (Anterior Fibromuscular Zone) अंत�र म मण्डल में प्रोस्टेट के गऊतकों (Glandular Tissue) का 10 % िहस्स होता है लेिकन एडीनोकािसर्नोमा में यह ग्रंिथल ऊतको 20 % िहस्सा होता है । पौ�ष ग्रंिथ लगभग 70% ग्रंिथल ऊतक औ30% तंतुपेशीय ऊतक (Fibromuscular Stroma) होते हैं। अंतåरम मण्ड (Transition zone) मूत्र िनस्सारक न(Urethra) पौ�ष ग्रंिथ में मूत्राशय क� ग्रीवा के स्तर से गुजरती ह�ई बाहर िनकलती है। पौ�ष ग्रंििस्थत मूत्र िनस्सारक नली के प्रोस्टेिटक (2.5 सै.मी.) और बाहरी िहस्से को(2 सै.मी.) को मेम्ब्रेनस यूरेथ्रा कहते हैं। दोनों िहस्सों को पृ� मूत्र िनस्सार(Posterior Urethera) कहते हैं। मूत्र िनस्सारक नली का प्रोस्टेिटक भामहत्वपूणर् और फैला ह�आ होता है। प्रोस्टेिटक यूरेथ्रा क� आंतरक परत या(Epithelium) मूत्राशय क� तरह ही अंत�र(Transitional) कोिशकाओं से बनी होती है। िबनाइन प्रोस्टेिटक हाइपरप्लेि(Adenoma) इसी अंत�रम स्थान पर होता ह और यिद यह अितवधर्न काफ� बढ़ जाती है तो मूत्र मागर् में �कावट पैदा करता अंत�रम मण्ड प्रायः दो पाष्वर् ख(Lateral Lobes) और मध्य खण्(Median Lobe) से बनता है। प्रोस्टेिटक यूरेथ्रिपछली सतह के मध्य में मेम्ब्रेनस यूरेथ्रा तक एक लम्ब(Urethral crest) होती है िजन्हें मूत्रमागर् िशखर कह, इसके दोनों तरफ उपवन(Sinus or Grove) होते है, िजनमें अनेक िछद्र िस्थत होते हैं िजनसे वीयर् और अन-स्राव मूत्रनलीप्रवेश करते हैं। यूरीथ्रल क्रेस्ट सेमाइनल कोि(Seminal Colliculus या Verumontanum) पर आकर चौड़ा और उभरा ह�आ हो जाता है, इसे शुक्र पवर्त कहते हैं। सेमाइनल कोिलकुलस के िशखर पर मध्यरेखा में एक िछद्र, िजसे पौ�ष गुहा (Prostatic Utricle) कहते है, िजसके दोनों तरफ छोटे लम्बे िछद्र होते हैं जहाँ स्खलन निलकाएँ खुलती
  • 4. 4 | P a g e के न्द्रीय मण(Central zone) स्खलन निलकाओं के आसपास के �ेत्र को केन्द्रीय मण्डल कहते हैं। ग्रंथ25% भाग इस मण्डल में आता है। लगभ2.5% ऐडीनोकािसर्नोमा कैंसर इस मण्मे उत्पन्न होता , जो बह�त आक्रामक होता है और प्रायः शुक्र पुिको सहज ही िशकार बना लेता है। पåरधीय मण्ड (Peripheral zone) ग्रंथीय ऊतक क70% भाग इस मण्डल में आता है। पौ�ष ग्रंिथ का पृ� और पाष्वर् िहस्सा इसक� सीमाओं में आते हैं।इस मण्डल को अन्तर मलाशय अंगुली प�रस्पश(Per Rectal Examination) द्वारा टटोकर देख सकते हैं। लगभग70% ऐडीनोकािसर्नोमा इसी मण्डल से उत्पन्न होता है। प्रोस्टेट का का िचरकारी(Chronic Prostatitis) भी यहीं होता है। अग्र तंतुपेशीय मण Anterior Fibro-muscular Zone (or Stroma) इसक� सीमाओं में प्रोस्टेट के आगे तंतुपेशीय (5%िहस्स) आते हैं। इसमें ग्रंथीय ऊतक नहीं होत र� कì आपूितर् प्रोस्टेट को र� कआपूितर ् मुख्यतः िनम्न म ध मनी (Inferior Vesical Artery) द्वारा होती , जो आंत�रक श्रोिण धमनया Internal Iliac (Hypogastric) Artery क� अग्र शाखा से िनकलती है िनम्न मूत्राशय धमनी दो मुख्य धमिनयों में िवहोती है, जो मूत्राशय के आध, मूत्रनली के अंितम भाऔर प्रोस्टेट को मुहैया कराती है। पह ल ी शाखा को मूत िनस्सारणनली धमनी (Urethral Artery) कहते है, जो प्रोस्टेट तथा मूत्राशय के संगपृ�-पाष्व�य स्थान से यूरेथ्रा के लम्ब�प घड़5 और 7 बजने क� िदशा में मूत्राशय ग्रीवा क� तरफ जातीिफर यह नीचे क� तरफ घूम कर अंत�रम मण्डल को र� देती है। पौ�ष ग्रंिथ के सुदम ऐडीनोम(Benign Prostatic Hyperplasia) को यही धमनी र� उपलब्ध करवाती है। केप्सूलर धमनी दूसरी मुख्य शाखा, यह पौ�ष ग्रंिथ के प- पाष्व�य तल पर केवरनस नाड़ी के साथ िवचरण करती ह�ई लम्बप कोसे ग्रंिथ में प्रवेश कर ग्रंथीय ऊतकों को र� पहँचशुक्र पुिटकाओं और शुक्रनिलयों को ऊध्वर् मूत्र(superior Vesical Artery) क� शाखा निलका धमनी (Artery of the ductus) र� पहँचाती है। र� का िनकास प्रोस्टेट से र� का िनकास िश� कपृिश(Deep Dorsal Vein) में होता ह, जो गहन िशij आवण� के दोनों कोप�रा केवनƒज़ाके बीच जघन संघानक के तोरण से िनकल कर श्रोिण में प्रवेश करती है। िफर यह पेरीिनयल मेम्ब्रेन को पार कर तीनक्रमशः ऊप, दांई और बांई में िवभािजत होती है।
  • 5. 5 | P a g e ऊपरी शाखा प ् यूब -प्रोस्टेिटक िलगामेंट्स के बीच िवचरण करती प्रोस्टेट और मूत्राशय ग्रीवा तक प्रवेश करती के पीछे क� वसा में अग्र प्रोस्टेिटक आवण� को छेदते हए पृ� िशरा जाल से िमलती है। पृ� और पाष्वर् िशरा जालों क� मुख्य प्रोस्टेिटक आव(Anterior Prostatic Fascia) और एंडोपेिल्वक आवण�(Endopelvic Fascia) से ढक� रहती है। पाष्वरिशरा जाल पीछे क� तरफ जाकर पुडेंड, ऑब्चुरेटर िशरा और मूत्राशय जाल से िमल जाती, जो अंततः इंटरनल आइिलयक िशरा (Internal Iliac Vein) में सम जाता है। नाड़ी और लिसका िनयंत्र प्रोस्टेट क� स्वायनािड़याँ सेक् (S2 -S4) से िनकले पेरािसम्पेथेिट, इफरेंट और िप्रगैंिग्लयोिनक तंतुओं से बने पेप्लेक्सस से िनकलती हैं। िसंपेथेिटक नाड़ी तंथोरेकोमंबर (L1-L2) तल से िनकलते हैं। पेिल्वप्लेक्सस मलाशय के दोनो तरफ गुदा द्वार7 सै.मी. ऊपर अविस्थत रहता ह, इसका मध्य तल शुक्र ग्रंके अंितम छोर के स्तर पर होता है। पेि ल्वक प्लेक्सस से िनकलने वाले नाड़ी तंतु केवनप्लेक्सस से होते ह�ए प्रोस्टेट पह�ँचते हैं। पेरािसंपेनािड़यां ग्रंिथयों का िनयंित्रत करती हैं और स्राव बिलए आदेश देती हैं। िसंपेथेिटक नािड़यां प्रोस्टेट के और स्ट्रोमा क� िस्नग्ध पेिशयों को संकुचन करआदेश देती हैं। प ुडेन्डल नाड़ी धारीदार संकोिचनी पेिशयों और लेवेटऐनाई का िनयंत्रण करती है। िप्रप्रोस्टेिटक सं(PreProstatic Sphincter) और मत्राशय ग्र(या आंत�रक संकोिचनी) अल्फ-ऐड्रीनिजर्क िनयंत्रण मेंहै। प्रोस्टेट का ल ि-िनकास ऑब्चुरेटर और लेवेटरवािहकाओं द्वारा होता है। ये बाहरी आइिल, िप्रसेकऔर पेराएओिटर्क लिसका ग्रंिथयों से भी जुड़ी रहती हैं मूत्राश मूत्राशय उदरावरण से बाहर सघन जंघानक और प्यूिबक रेमाई के पीछे एक थैली समान संरचना, जो िस्नग्ध पेिशयों से बहोती है और अन्दर क� सतह पर अंतरम उपकला(Transitional Epithelium) से आच्छािदत रहती है। गुद� से िनकली दोनों मूनिलकाएं मूत्राशय में िमलती हैं और गुद� बनने वाला मूत्र निलकाओं द्वारा यहाँ एकित्रत होता रहता है। मूत्र को भंइसका मुख्य कायर् है। जब यह भर जाता है तो मूत्र िनस्सारक (Urethra) द्वारा मूत्र का िवसजर्न हो जाता है। मूत्राशयक� आपूितर् उध्, मध्य और िनम्न मूत्राशय धमिनयाँ करती हैं। र� का िनकास प्रोस्टेिटक िशरा जाल में होत
  • 6. 6 | P a g e मूत्र िनस्सारक न(Urethra) इसके तीन खण्डों में िवभािजत िकया गया ह प्रोस्टेिटक मूत्र िनस्सा (Prostatic Urethra) यह मूत्र िनस्सारक नली का सबसे िनकटस्थ भा, जो मूत्राशय ग्रीवा में मूत्राशय(Trigone) से प्रोस्टेट का छेदन करते ह�ए यूरोजेनाइटल डायफ्राम के उध्वर् आवरणी प होकर मेम्ब्रेनस यूरेथ्रा में लीन हो जाता है। यह मूत्र िनस का सबसे महत्वपूण, जिटल और फैला ह�आ भाग है। मेम्ब्रेनस मूत्र िनस्सा (Membranous Urethra) यह यूरोजेनाइटल डायफ्राम के उध्वर् आवरणी से ट्रांसवसर् पेरीिनयल पेशी को छेदता ह�ई यूरोजेनाइटल डायफ्राम के िनम्न आवरणी पर खत्म होकर िपनाइल यूरेथ्रा में लीहै। िपनाइल मूत्र िनस्सारक (Penile (Cavernous) Urethra) यह यूरोजेनाइटल डायफ्राम के िनम आवरणी से शु� होकर िशij में प्रवेश करती है और िश� के साथ चल कर अग्रस्थ भाग के िसरे में िस्थत (External Urethral Meatus) पर खत्म होती है। शुक्र पुिटका शुक्र पुिटकाए3 सै. मी. लम्बी होती हैं तथा मूत्राशय के पीछे दोनों तरफ अविस्थत रहती हैं9 सै.मी. लम्बी शुक्र ग्रंिथयाँ रहती हैं। यह वास डेफरेन्स से िमलती है और वहीं से ऐम्पुला स्खलन निलका बन जाती है। इनका मुख्य कायर् शुक्र द्रव शुक्र निलया श ुक्र निलया30 सै.मी. लम्बी िस्नग्ध पेशी ऊतक से बनी निलयाँ होती हैं जो शुक्राणओं को अिधवृषण से स्खलन निपह�ँचाती हैं। पेशी ऊतक से बनी होने के कारण ये डोरी क� तरह कठोर लगती हैं। इन्हें स्पम�िटक कोडर् भी कहते हैं। इनक� पर िविश� तरह ककोिशकाएँ स्टीरयोसीिलया (Stereocilia) होती हैं। इन्हे चार भागों क्रमशः , आंत�रक, एम्प्यूला औस्खलन निलका में बांटा गया है। शुक्र धमनी इसे र� प्रदान करत नाड़ी िनयंत्र पेरािसम्पेथेिटक– शुक्राणुओं को ऐम्प्यूला तक पह�ँचाने का कायर् करते हैं। पेरािसम्पेथेिटक प्रभाव से शुक्र नली मक� क्रमाकुंचन क� लह(Peristaltic Waves) चलती है िजससे शुक्राणु अिधवृष(Epididymis) से ऐम्प्यूल(Ampulla) तक पह�ँचते है, जहाँ वे स्खलन से पहले थोड़ी देर िवश्राम करते ह िसम्पेथेिटक– शुक्र निलयों में प्रचण्ड क्रमाकुंचन क � लहर उत्पन्न करते हैं िजससे शुक्राणु और वीयर्
  • 7. 7 | P a g e पौŁष ग्रंिथ क� कायर् प्र प्रोस्टेट के ग्रंिथ ऊतकों मे 20 निलकाएँ होती हैं िजनके िसरे पर अंगूर क� शक्ल के प्र(Acini) होते हैं। इन निलकाओंक� भीतरी सतह पर स्रावी कोिशकाएँ होती , जो वीयर् क� ितहाई मात्रा का स्राव करती हैं। ये निलकाएँ और प्रको� प स्पेिसिफक एन्टीज(PSA) नाम का एक एंजाइम बनाते हैं।प्रोस्टेिटक स्पेिसिफक एंट(PSA) को गामा-सेमाइनोप्रोटीन यकेलीक्रे-3 या kallikrein-3 (KLK3) भी कहते हैं। यह एक ग्लाइकोप्रोटीन है िजसका कूटलेखन के-3 जीन (KLK3 gene) द्वारा होता है इसका प्रमुख कायर् वीयर् को तरल बनाये रखना है। पौ�ष ग्रंिथ लैंिगक (Arousal) और रित-िनष्पि या चरमोत्कषर(Orgasm) के परम आनंद को बढ़ाती है। पु�ष में मूत्र िनस्सारण (Urethra) दो कायर् क्रमशः मूत्र िवसजरलैंिगक सम्भोग के अंत में वीयर् स्खलन करती है। लाखों शुक्राणु मूत्र िनस्सारण नली के प्रोस्टेिटक हैं। शुक्राणुओं का िनमार्ण वृषण ग्रंिथयों में होता है। शुक्राणु वृषण से िनकल कर अिधवृषण पह�ँचते हैं और उसक(Coiled) शुक्र निलयों में कुछ िदनों तक िवश्राम करते हैं और प�रपक्व होते हैं तािक सम्भोग के बाद गभार्शय पह�ँच कर िडम्गभार्धान क� प्रिक्रया को सहजता से संपन्न कर सकें। अ(Greek: upon + testicle) मोर के िसर क� कलंगी क� तरह लगता है। यहाँ से शुक्राणु शुक्र(Vas Deferens) द्वारा स्खलन निलका तक पह�ँचते ह सम्भोग के समय जब उ� ेजना चरम अवस्था को प्राकरती है तब शुक्रनली क� पेिशयों में क्रमाकुंचन लहर उत्पन्न होशुक्राणु तीव्र आवेग से शुक्रनली गुजरते ह�ए ऐम(शुक्रनली का फूला ह�आ अंितम िहस) में पह�ँचते हैं। प्रोस्टेट में पेशभी होते हैं और जब शुक्राणु मूत्र िनस्सारण नली के प्रोस्टेिटक संभाग में , तब प्रोस्टेट क� पेिशयों का संकुचन होतािजससे मूत्राशय से िनकलने वाली िनस्सारण नली बंद हो जाती है और शुक्राणुओं का मूत्र से सम्पकर् संभव नहीं हो पाता ह के संकुचन से प्रोस्टेट के स्राव भी मूत्र िनस्सारण नली में आ जाते हैं और वीयर् के स्खलन को भी गित िमलत, शुक्पुिटकाओं और कॉपसर् ग्रंिथ के स्राव िमल कर वीयर् बनाते हैं। जो सम्भोग के अंत में िश� िस्थत मूत्र िनस्सारण कर योिन में प्रवेश कर जाते ह वीय र् के भौितक गु भ ौितक गुण िवव र ण रंग सफेद अ ल्-पारदश� आपेि�क घनत् 1.028 �ारता ( pH) 7.35-7.50 आयतन 3 एमएल वीयर् के िविभन्न घ ग्रंिथ स् स्खलन का आयतन रासायिनक संरचना व ृषण और अिधवृषण 0.15 एमएल (2-5%) श ुक्राण- लगभग 200-500 िमिलयन श ुक्र पुिटकाए 1.5-2 एमएल ( 65-75%) फ्रुक् (1.5-6.5 िमली/एमएल),अमाइनो एिसड्स, साइट्र, फोस्फो�रलकोली, अग�थायनीन, ऐस्कोिबर्क एि, फ्लेिवन, प्रोस्टाग्ल, बाइकाब�नेट प्रोस् 0.6-0.9 एमएल (25-30%) प्रोस्टेट स्पेिसिफक एंट (PSA), स्पम�, साइिट्रक एि, कॉलेस्ट्, फोस्फोिलिप, प्रोिटयोलाइिटक एंजा, फाइिब्रनोलाइि, फाइिब्रनोिजन, िजंक (135±40 माइक्रोग/एमएल) और एिसड फोस्फेटेज प्रोस्टेिटक स्पेिस ब ल्बोयूरेथ्रल ग 0.15 एमएल (1%) Ĵेष्म, गेलेक्टो, िप्रऐजाकुल, सायिलक एिसड
  • 8. 8 | P a g e वीयर् का एक महत्वपूणर् कायर् शुक्राणुओं के चारो तरफ एक सुर�ात्मक समुद्र बनाना और योिन के तीखे अम्(लेिक्टकएिसड के कारण) से उनक� रा करना भी है। योिन क� अम्लताpH लगभग 4 होती है क्योंिक इतने अम्लीय माध्यम में अिधरोगकारी जीवाणु का जीिवत रहना संभव नहीं होता है। लेिकन शुक्राणु अम्ल के प्रित बह�त संवेदनशील होते हैं। वीयर् �ारीय और सम्भोग के बाद घंटों तक योिन क� अम्लता को िनिष्क्रय करता रहता है। यिद ऐसा नहीं हो तो योिन के अम्लीय माध्यही सेकण्ड में सारे शुक्राणु मर जायेंगे। कॉपसर् ग्रंिथ के स्राव का मुख्य काम मूत्र िनस्सारण नली स्ने हन करता है। शुक्र पुिटकाओं के स्राव में पयार्�(जो शुक्राणुओं को ऊजार् देती), प्रोस्टाग्लें(जो वसीय अम्ल से बनते ह) और प्रोटीन होते हैं जो � ी कयोिन में वीयर् को जमानमदद करता है। प्रोस्टेट के स्राव में क, साइिट्रक एि, एिसड फोस्फेटे, एलब्यूिम, और प्रोस्टेिटक स्पेिसिफक एन् (PSA) बह�तायत में होते हैं। वीयर् का दूिधयापन प्रोस्टेट के स्राव कारण ही होता है। प्रोस्टेट के स्राव में िजंकहोता है। यह संक्रमणरोधी है और जीवाणुओं के संक्रमण से लड़ने में प्रोस्टेट क� मदद कर पी.एस.ए. एंजाइम उपयु� समय पर शुक्र पुिटकाओं से स्रािवत होने वाले वीयर् को जमने में सहायक ए (Clotting enzyme) को िनिष्क्रय करता है। यह एंजाइम वीयर् को जमा कर ग(gel) रखता है और गभार्शय क� ग्रीवा से िचपका देता है। कुछ िमनतक शुक्राणु इस गाढ़े द्रव्य में सुरि�त रहते .एस.ए. का मुख्य कायर् सेमाइनोजेिलन और फाइब्रोनेिक्टन से बने गाढ़े कोएका द्रवीकरण कर शुक्राणुओं को मु� करना पी.एस.ए. प्रोटीन का िवघटन कर इस िक्रया को अंजाम देता है। प्रोस्पी.एस.ए. िनिष्क्रय �प में रहता है िजसे के-2 (एक अन्य केलीक्रेइन पेप्टा) सिक्रय कर देता है। प्रोस्टेट में िजंक का स्तर शअन्य द्रव्यों क� अपेा दस गुना अिधक होता है। पी.एस.ए. क� सिक्रयता पर दमनकारी या नकारात्मक प्रभाव डालता हालांिक पीएच के बढ़ने पर पी.एस.ए. क� सिक्रयता भी बढ़ती , साथ ही पीएच बढ़ने पर िजंक का दमनकारी असर भी बढ़ता है। स्खलन के15-30 िमनट बाद योिन का पीएच बढ़ कर 6-7 हो जाता है। पीएच के इस स्तर पर िजंक का दमनकारी असर कम होनेके कारण पी.एस.ए. क� कम ह�ई सिक्रयता धी-धीरे बढ़ाने लगती है और पी.एस.ए. कोएगुलम का द्रवीकरण कर देता है और शुक्रमौका पाते ही जल्दी से गभार्शय में चले जाते ह गभार्धान का जीवरसायन शा रितक्र�ड़ा के आरंभ में िलंगदेव संतानोत्पि� कआशा लेकर योिन द्वार परदेता है और कहता है, हे देवी योिन, हे समस् मृत्यु लोक क� जनन , मैं शि�शालीऔर उत्सािहत शुक्राणुओं क� बारात लेकर तुम्हारे द्वार पर आ पहóँचा ह�ँ। मेरेशुक्राणु िकसी भी तरह के शि� परी�ण को तैयार हैं। तुम इन्हें अपने रंग महल मजाकर स्वागत सत्कार क� तैयारयां करो। लेिकन आरंभ में योिन िशविलंग पयाचना को अनदेखा कर देती है। तब िलंगदेव अचेत और शांत पड़ी योिन क� खुशामद करता है, बहलाता है, फुसलाता है, सहलाता है, घषर्ण करता ह, आघात करता है। आिखरकार िशव िलंग के मनुहार और प्रेम िनवेदन से योिन िपघल ही जाती है। और उसक� कामािग्न भड़क उठती, वह उत्सािहतऔर उ� ेिजत हो ही जाती है और रितक्रड़ा शुकर देती है। रित िनष्पि� के साथ ही क्रमाकुंचन कलहर के साथ सारे नाचते नन्हे बाराती दौड़ कर योिन में प्रवेश कर जाते हैं। रितिक्रड़ा का आिखरी आिलंगन लेते ह�ए योिन अपनी पूरी ताकत और सारे युवा शुक्राणुओं को अपने दामन में खींच लेती है। लेिकन इसके बाद भी शुक्राणुओं क� गभार्शय तक क� -पग पर किठनाइयों और बाधाओं से भरी होती है। यह यात्रा अमरनाथ क� यात्रा क� तरह ही एक किठन और रोमांचक यात्रा मानी जासबसे पहले तो योिन में बहती अम्ल क� धाराएं शुक्राणुओं को न� करना चाहत, तो दूसरी तरफ योिन क� भ�ी कोिशकाएं शुक्राणुओं को िवदेशी घुसपेठ समझ कर हमला करना चाहती हैं। इसिलए तुरंत वीयर् गभार्शय ग्रीवा के समीप शुक्राणुओंतरफ एक चक्रव्यूह क� रचना करता, िजसे भेदना अम्लीय धाराओं के बस का काम नहीं है। कुछ ही िमनटों में �ारीय वीयर्
  • 9. 9 | P a g e क� अम्लता को िनिष ् क्र य कर देता है। अम्लता कम होने पर िजंक भी मदद को आगे आ जाता है। इसके प�ात वीयर् में िवद्वीर पी.एस.ए. (Prostate Specific Antigen) वीयर् द्वारा ही बनाये ह�ए चक्रव्यूह को एक ही तीर से ध्वस्त कर देतशुक्राणुओं का कारवां मु� होकर चुपचाप रंग महल में प्रवेश कर जा, जहां िडम्ब वरमाला िलए सबसे शि�शाली और परमवीरशुक्र कुमार क� प्रतीा में खड़ी होती है। रंग महल में संपन्न शि� परीण में जो शुक्र कुमार सबसे ताकतवर साि, उसे िडम्ब कुमारी वरमाला पहनाती है और गंधवर् िववाह करती है। इस तरह दोनों के तेईस क्रोमोजोम से िमल कर िछयक्रोमोजोम का एक स्वस्थ और संपूणर् भ्रूण बनता है। के िलंग िनधार्रण का िनणर्य भी शुक्र कुमार के पास ही होता हके समय उसे Y सेक्स क्रोमोजोम िमलता है तो नर और यिद उX सेक्स क्रोमोजोम िमलता है तो मादा जन्म लेती
  • 10. 10 | P a g e पौŁष ग्रंिथ का कै पौ�ष ग्रंिथ का कैंसर एक दुदर्म अबुर्(Malignant Tumor) जो इसक� कोिशकाओं से उत्पन्न होता है। प्रायः यह धीरे बढ़ताऔर कई वष� तक अपने दायरे में ही िसिमत रहता है। इस अविध में इससे रोगी को कोई िवशेष ल�ण या बाहरी संकेत नहीं होते हलेिकन पौ�ष ग्रंिथ के सभी कैंसर का व्यवहार एक जैसा नहीं होता है। कुछ आक्रामक प्रजाित के कैंसर बड़ी तेजी से फैरोगी के जीवन को आ�यर्जनक ढंग से छोटा और क�प्रद बना देते हैं। इस कैंसर क� आक्रामकता अनुमान ग्लेसन स्कोरपर लगाया जाता है। अनुभवी रोगिव�ानी अबुर्द के नमूनों क� जीवोित जांच के आधार पर ग्लेसन स्कोर गणना करते जब कैंसर बढ़ने लगता है तो कैंसर कोिशकाएं प्रोस्टेट से बाहर िनकल कर आसपास के, अंगो और लिसका पव� में अपनािवस्तार करने लगती हैं। इसका दूरस्थ स्थलांतर प्रायः, यकृत और अिस्थ में होता है। इसका स्मृित सूत्र लम्बू लाल ब(Lungs, Liver and Bones) है। पौ�ष ग्रंिथ का कैंसर पुषों में सबसे व्यापक कैंसर है और फेफड़े के कैंसर के बाद कैंसर से होने वाली मृत्यु का दूसराकारण है। अमे�रकन कैंसर सोसाइटी के आंकड़ों के अनुसार सन2009 में अमे�रका में पौ�ष ग्रंिथ के कैंस192,280 नये रोगी पाये गये और 27,360 रोिगयों क� मृत्यु इस कैंसर के कारण ह�ई। इस कैंसर का जोिखम गोरे लोगो17.6% और अफ्र� कनसके काले लोगों मे20.6% रहता है तथा इस कैंसर से होने वाली मृत्यु दर क्र2.8% और 4.7% रहती है। इन आंकड़ों से स्पहोता है िक आज स्वस्थ जीवन जी रहे अमे�रका के लोगों को इस कैंसर का िकतना खतरा है। आज वहाँ इस कैंस20 लाख रोगी इस गंभीर रोग से लड़ रहे हैं। हाँ िपछले कुछ वष� में इस कैंसर से होने वाली मृत्यु दर में कमी अवश्य आई है। हालांिवषय बह�त िववादास्पद बना हआ है लेिकन िफर भी कई िचिकत्-शा�ी यह मानते हैं िक40 वषर् क� उम्र के बाद इस कैंसरिलए हर व्यि� क� िनयिमत अनुवीण जांच(Screening Test) होनी चािहये। कारण िचिकत्सा शाि�यों के अनुसार पौ�ष ग्रंिथ का कारण अभी तक अ�ात है और इसका प्रोस्टेट के सुदम अ(Benign Prostatic Hyperplasia) BPH से कोई सम्बन्ध नहीं है। इसके जोिखम घटक वृद्ध, आनुवंिशक, हाम�न और पयार्वरणघटक जैसे टॉिक्सन, रसायन, औद्योिगक अपिश� हैं। इस कैंसर का जोिखम उम्र बढ़ने के साथ बढ़ता जाता है। अतःआघटन 40 वषर् से पहले यह बह�त कम है लेिकन80 वषर् क� उम्र में यह बह�त सामान्य है। कुछ अनुसंधानकतार्ओं के अ80 वषर् से अिधक उम्र के लोगों में 50%-80% इस कैंसर के रोगी िमल जाते हैं। िनदान के समय इस कैंसर 80% से अिधक रोिगयों क� उम65 वषर् से अिधक होती है। प्रोस्टेट कैंसर के रोगी प�रवार दूसरे सदमे इस रोग का जोिखम दो से तीन गुना अिधक रहता है। यिद िपता, ताऊ या बड़े भाई को कम उम्र में यह कैंसर ह�आया प�रवार में एक से अिधक लोग इस कैंसर का िशकार बने हैं तो इस प�रवार के पुषोंइस कैंसर का जोिखमअिधक रहता है। ताजा अध्ययन के अनुसार ऐसे संकेत िमले हैं िक लैंिगक संभोग से फैलने वाले संक्रम प्रोस्टेट कैंसर का जो1.4 गुना बढ़ाते हैं।पु�ष हाम�न टेस्टोस्टीर, जो वृषण में स्रािवत होता, प्रोस्टेट क� स्वस्थ और कैंसर कोिशकाओं संवृिद्ध को पकरता है। इसी िलए ऐसा माना जाता है िक प्रोस्टेट कैंसर क� उत्पिऔर िवकास में टेस्टोस्टीरोन अहम भूिमका िनभाताहाम�न क� भूिमका इस बात से भी सािबत होती है िक इसका स्तर कम करने से कैंसर कोिशकाओं क� संवृिद्ध बािधत होती
  • 11. 11 | P a g e हा लांिक अभी तक िसद्ध नहीं हो सका है लेिकन िसगरेट और संत्र� वसा का अत्यिधक सेवन भी इस कैंसर का जोिखम बढ़ामोटापा भी आक्रामक और बड़े कैंसर का जोिखम बढ़ाता है और उपचार के बाद भी फलानुमान अच्छा नहीं रहता है। औदअपिशĶ और वातावरण में व्या� कुछ पदाथर् भी इस कैंसर क� उत्पिके कारक माने गये हैं। इस कैंसर के आघटन में िस्थित क� भूिमका भी महत्व रखती है। मसलन एिशया क� तुलना में उरी अमेरका और स्केंिडनेिवयन देशों में इस कआघटन अिधक है। अभी तक यह िसद्ध नहीं हो सका है िक ज्यादा संभोग करने वाले पु�षों को इस कैंसर के होने का खतरारहता है। ल±ण और संके त प्रारंिभक अवस्था में प्रायः कई वष� तक प्रोस्टेट कैंसर के रोगी को कोई ल�ण नहीं होते हैं। अिधकांश रोिगयों में पपता ही तब चलता है जब िकसी अन्य कारण से रोगी का प.एस.ए. करवाया जाता है तथा उसका स्तर बढ़ा ह�आ आता यािचिकत्सक को रोगी के सामान्य �प से िकये गये अन्तरमलाशय अंगुली प�रस्पशर्Digital (done with the finger) Rectal Examination में प्रोस्टेट , असामान्य और िगल्टीदार महसूस होती है। प्रोस्टेट मलाशय के ठीक आगे अविस्थत होती कालान्तर में जब कैंसर बढ़ने लगता है तो मूत्र िनस्सरण नली पर दबाव पड़ता है और फलस्व� प मूत्र कधार पतली होनेऔर मूत्र िवसजर्न में तकलीफ होती है। रोगी को मूत्र त्यागते समय जलन या में खून भी आ सकता है। यिद अबुरबढ़ जाता है तो मूत्र के प्रवाह को पूरी तरह रोक देत, िजससे असहनीय तथा तीव्र वेदना होती है। मूत्र का िनकास �क जानेकारण मूत्राशय फूल कर बड़ा हो जाता है और तेज ददर् भी करता है। लेिकन ये ल�ण प्रोस्टेट कैंसर क� पुिनहीं, क्योंिक प्रोस्टेट के सुदम अितवधर्न में भी यही ल�ण होते हैं। लेिकन इस िस्थित में कैंसर क� संभावना को ध्यान में परी�ण करवाने चािहये। िवकासशील अवस्था में कैंसर आसपास के ऊतकों और लिसका(श्रोिण यPelvic) में फैलता है। कैंसर का दूरस्थ अं(यकृत, फेफड़ा और हड्डी) में स्थलांतर भी होता है। स्थलान्तर कैंसर के शु�वाती लण ब, थकावट, वजन कम होना आिद होते हैं। अन्तरमलाशय अंगुली प�रस्पशर्न में िचिकत्सक को प्रोस, िस्थर और बढ़ी ह�ई महसूस होती है। दूरस्थ स्थलांसबसे पहले मे�दण्ड के िनचले िहस्से और श्रोिण क� हड्ि(Pelvic Bones) में होता है िजसके कारण पीठ के िनचले िहस्सऔर श्रोिण में ददर् होता है। इसके बाद दूरस्थ स्थलान्तर का यकृत और फेफड़े पर आक्रमण होता है। यकृत में स्थलान्तददर् और पीिलया हो सकता है। फेफड़े में स्थलान्तर होने से छाती ददर् और खांसी होत प्रोस्टेट कैंसर के अनुवी±ण जांच (Screening Tests) िकसी भी रोग (जैसे प्रोस्टेट कैंसर को ही ले लेत) को प्रारंिभअवस्था में ही पकड़ने के िलए समय पर क� जाने वाली जांको अनुवी�ण जांच (Screening Tests) कहते हैं। इन जांचों कनतीजे सामान्य होना यह दशार्ता हैं िक कोई िचंताजनक बात नहै। लेिकन यिद अनुवी�ण जांच के नतीजे असामान्य औरसंदेहास्पद हों तो अंितम और िनि�त िनदान तक पह�ँचने हेतु अनबड़े परी�ण िकये जाते हैं। प्रोस्टेट कैंसर को शु�वाती अवस्पकड़ने के िलए प्रोस्टेिटक स्पेिसिफक एंट(PSA) और अन्तरमलाशय अंगुली प�रस्पशर(Digital Rectal Examination) िकये जाते हैं। अन्तरमलाशय अंगुली प�रस्पश
  • 12. 12 | P a g e में िचिकत्सक रबर के दस्तानें पहन कर अंगुली को मलद्वार में घुसा कर प्रोस्टेट को टटोलता है। यिद प्रोस्टेट क� अिनयिमत लगे या कोई अबुर्द महसूस हो तो संदेह क� सुई कैंसर क� तरफ इंिगत करती है। िवशेष� सामान्य40 वषर् क� उम्र बाद इस परी�ण करने क� सलाह देते हैं। प्रोस्टेिटक स्पेिसिफक एंट(PSA) प्रोस्टेिटक स्पेिसिफक एंट ( PSA) एक सरल और अपे�ाकृत िवĵसनीय र� कजांच है। इसके िलए र� में एक िविश� प्रो (PSA) क� मात्रा को नापा जाता है। यह प्रोटीन प्रोस्टेट में, िजसका थोड़ा अंश र� में भी पह�ँचता है। प्रोस्टेट कैंसर में इसका स्त4 नेनोग्राप्रित िमिललीटर से अिधक होता है। ध्यान रहे लेिकन इसका स्तर प्रक� संवृिद, संक्रमण और प्रदाह में भी बढ़ता िवशेष� पी .एस.ए. को प्रोस्टेट कैंसर िनदान के िलए महत्वपूणर् अनजांच मानते हैं। हालांिक प.एस.ए. जांच को िववादास्पद माना जाता ह, क्योंिक अनुवी�ण जांच के बाद भी प्रोस्टेट कैंसर से होने वाली मृत्युकोई फकर् नहीं देखा गया है। साथ में अितिनद(Over Diagnosis), अनावश्यक जीवोित जां (Biopsy) और कĶप्रउपचार के झमेले रोगी और िचिकत्सक दोनों को उलझन िचंता में डाल देहैं।अमे� रका किप्रवेंिटव सिवर्सेज टास्क (U.S. Preventive Services Task Force) ने अपनी �रपोटर् जारी क� है िजसमे प्रोस्टेट कैंसर के अनुवी�ण हेत.एस.ए. क� जांच को अनावश्यक और व्यथर् बताया है। िवक�पीिडया में इसका स्प� उल्ल लेिकन िफर भी अिधकांश िवशेष� प्रोस्टेट कैंसर के अनुवीण हेतु िनयिमत जांच करवाने क� देते हैं। अमेरीकन यूरोलोजीकल एसोिसयेशन ने इस सम्बन्ध में स2009 में ताजा िदशा-िनद�श जारी िकये हैं। इन िनद�शों के अनुसार प्रा40 वषर् या अिधक उम्र मे.एस.ए. क� जांच और अन्तरमलाशय अंगुली प�रस्पशर(Digital Rectal Examination) करने क� सलाह दी गई है। इसके बाद िचिकत्सक जोिखम घटक(जैसे नस्, प्रजा, पा�रवारक, आघटन आिद), शु�आती अनुवी�ण जांच के नतीजों और अपने अनुभव के आधार पर समय समय पर जांच करवाता है। जैसे िक व्यि� के प�रवार में यिद िकसी को यह कैहो चुका हो या उसका शु�वाती पी.एस.ए. बढ़ा ह�आ आया हो तो उसक� अनुवी�ण जांच जल्दी जल्द(प्रायः हर स) क� जानी चािहये। अमूमन िवशेष� उन लोगों में अनुवी�ण जांच करने क� सलाह देते हैं जो कम से 10 वषर् औरतो और जीयेंगे। ऐसे लोगोक� प्रायः सालाना जांच होनी चािहये। लेिक75 वषर् क� उम्र के बाद जांच करने का कोई औितच्य नहीं रहता है। पी.एस.ए. का सामान्य स्त4 नैनोग्राम प्रित िमिललीटर माना गया है। आजकल कुछ िवशेष� त.एस.ए. का स्तर2.5 नैनोग्राप्रित िमिललीटर भी हो तो प्रोस्टेट क� जीवोित जांच करने अिभशंसा करने लगे हैं तािक कैंसर को बह�त पहले ही पकजाये तािक इसका पूणर् उपचार संभव हो सके। बायोप्सी के िलए अमेरीकन यूरोलोजीकल एसोिसयेशन ने िनि�त माप दण्ड तय निकये है, लेिकन सलाह दी है िक जोिखम घटकों को ध्यान में रखते ह�ए बायोप्सी का िनणर्य लेना चाि पी.एस.ए. गित (PSA velocity) - सबसे अहम और ध्यान रखने योग्य पहलू यह है िक .एस.ए. का स्तर िकस गित(PSA velocity) से बढ़ रहा है। यिद पी.एस.ए. का स्तर4 से 10 नैनोग्राम प्रित िमिललीटर है तो यह संदेह के घेरे(Borderline) आता है। इस िस्थित में रोगी क� , ल�ण, संकेत, पा�रवारक इितहास और पी.एस.ए. के स्तर के आधार पर िनणर्य लेना चािहयेपी.एस.ए. का 10 से ज्यादा होना असामान्य है और प्रोस्टेट कैंसर क� संभावना को इंिगत करता .एस.ए. का स्तर िजतनाअिधक हो कैंसर क� संभावना उतनी ही अिधक रहती है। जब प्रोस्टेट कैंसर फैल कर आसपास के, लिसकापव� या दूरस्थ अंगों में फैलता है तब भी .एस.ए. का स्तर एक दम बढ़ता है। प.एस.ए. का स्तर30 या 40 या अिधक होना कैंसर का स्प� संकेहोता है।
  • 13. 13 | P a g e पी.एस.ए. बढ़ने के अन्य कारण- कई बार पी.एस.ए. का स्तर कैंसर के अलावा अन्य िवकारों के कारण भी बढ़ता है जसुदम प्रोस्टेट अितव, िकसी भी कारण से ह�आ प्रद (Prostatitis) या संक्रमण में भी.एस.ए. स्तर बढ़ सकता है। िविदत रहेिक प्रोस्टेट के अंगुली प�रस्पशर्न या वीयर् स्खलन48 घंटे तक पी.एस.ए. का स्तर बढ़ सकता है। उपरो� िस्थितयों पी.एस.ए. का स्तर प्रा4 से 10 के बीच रहता है, लेिकन 20 से 25 तक भी जा सकता है। इन प�रिस्थितयों में नतीजोंिवष्लेषण बह�त िववेकतापूवर्क िकया जाना चािहये। यह भी ध्यान रखें िक प्रोस्टेट के अलावा अन्य अंगों, भोजन, दवा, धूम्रपान या मिदरापान .एस.ए. के स्तर को प्रभािवत नहीं करते प्रोस्टेट क के िनदान हेतु पी.एस.ए. जांच िवĵसनीय मानी जाती है क्योंिप्रोस्टेट क के अिधकांश रोिगयों में .एस.ए. का स्तर असामान्य या संदेहास्पद सीमा में रहता पी.एस.ए. अनुपात PSA Ratio - हाल ही पी.एस.ए. क� जांच के स्व�प में कुछ संशोधन िकये गये हैं। इनका उद्संदेह सीमा में या बढ़े ह�ए प.एस.ए. के स्तर का बेहतर िवष्लेषण कर, प्रोस्टेट कैंसर का सही आंकलन करना औ.एस.ए. के स्तर को बढ़ाने वाले अन्य िवकारों िचिन्हत करना है। तािक इस जांच क� संवेदनशीलता और िवसनीयता में सुधार इस जांच का एक नया स्व�पपी.एस.ए. अनुपात PSA Ratio है। पी.एस.ए. अनुपात क� गणना र� में प्रवािहत हो रहे मपी.एस.ए. क� मात्रा में प्रोटीन से बं.एस.ए. क� मात्रा का भाग देकर क� जाती है। शोधकतार् मानते हैं िक र� में मुप्रवािहत .एस.ए. का सुदम प्रोस्टेट अितवधर्न से सीधा सम्बन्ध ह, जबिक प्रोटीन से जुड़ा .एस.ए. कैंसर से सम्बिन्होता है। इस तरह पी.एस.ए. अनुपात बढ़ा ह�आ हो तो कैंसर क� संभावना कम रहती है जबिक इस अनुपात का कम होना कैंसर क उपिस्थित को प्रबल बनाता ह पी.एस.ए. का सामान्यस्तर उम्र पर िनभ– शोधकतार्ओं ने यह भी देखा है िक जैसे पु�ष क� उम्र बढ़ती है उसका . एस .ए. भी बढ़ता है भले उसे कैंसर न ह�आ हो। इसिलए प.एस.ए. का सामान्य स्तहर उम्र में अलग होता है। िचिकत्सक क.एस.ए. का िवष्लेषण करते समय ध्यान रखना चािहये िक रोगक� उम्र के िहसाब से .एस.ए. का सामान्य स्तिकतना होना चािहये। उम्र के चौथे दशक में.एस.ए. का सामान्य स्त0 से 2.5, पांचवें दशक मे0 से 3.5, छठे दशक में0-4.5 और 70 वषर् से बड़े पु�षों म0 से 6.5 होता है। उदाहरण के तौर पर पी.एस.ए. का स्तर4 होना तीसरे और चौथे दशक के िलए संदेह सीमा मेंआयेगा लेिकन पांचवे, छठे और सातवें दशक के रोिगयों के िलए यह सामान्य स्तर है Age(in years) PSA Range (measured in ng/ml) 40 0–2.0 42 0–2.2 44 0–2.3 46 0–2.5 48 0–2.6 50 0–2.8 52 0–3.0 54 0–3.2 56 0–3.4 58 0–3.6 60 0–3.8 62 0–4.1 64 0–4.4 66 0–4.6 68 0–4.9 70 0–5.3 74 0–6.0 78 0-6.8 पी.एस.ए. गित या स्लोप- पी.एस.ए. क� जांच में एक संशोधन और ह�आ ह, िजसे पी.एस.ए. गित या स्लोप कहते हैं। इसकगणना पी.एस.ए. के स्तर में ह�ई बढ़ोतरी समय का भाग देकर क� जाती है।.एस.ए. गित िजतनी तेज होती है अथार्त प.एस.ए. िजतना जल्दी बढ़ता ह, कैंसर क� संभावना उतनी ही अिधक रहती है। और यिद प.एस.ए. धीरे बढ़ता है तो कैंसर क� संभावनाउतनी ही कम रहती है।
  • 14. 14 | P a g e प्रोस्टेट कैंसर 3 (PCA3) - प्रोस्टेट कैंसर 3 (PCA3) एक नया जीन है िजसके िलए मूत्र का परी�ण िकया जाता है। जी3 (PCA3) अित िविश� जीन है और िसफर् कैंसर प्रोस्टेट में ही उहोता है। प्रोस्टेट के अन्य रोग जैसे िवविधर्त या संक्रमण जीन अनुपिस्थत होता है। प.एस.ए. स्तर के साथ जीन3 क� मूत्र जांप्रोस्टेट कैंसर िनदान हेतु जीवोित जांच करने के िलए बेहतर संकेत देती ि नदान प्रोस्टेट कैंसर का चरण िनधार्रण कैंसर कोिशकाओं के प्रोस्टेट औरअन्य िहस्सों में िवस्तार और फैलाव के आधार पर िकया जाता है। जीजांच द्वारा कैंसर का िनदान होने के बाद कई तरह परी�ण िकये जाते, तािक स्प� तौर पर मालूम हो सके िक कैंसर शरीर में कहाँ फैल चुहै। रेिडयोन्युक्लाइड अिस्थ स्- यिद हड्िडयों में कैंसर का स्थलांतर हो चुका है तो रेिडयोन्युक्लाइड स्केन से जाता है। इस जांच में एक रेिडयोधम� पदाथर् शरीर में छोड़ा जाता, जो हड्िडयों में कैंसर ऊतकों को िचिन्हत कर देता है। यिद को िकसी हड्डी में गहरा ददर् , कोई हड्डी टूट गई हो या पी.एस.ए. स्तर बह�त ज्याद(10-20 ng/ml) हो तब यह जांच िवशेष तौर पर क� जाती है। छाती का एक्सरे और सोनोग्रा- छाती के एक्सरे से फेफड़े में कैंसर के स्तलांतर का पता चल जाता है। सोनोग्रामूत्रपथ में आई �कावट के संकेत िमल जाते हैं। प्रोस्टेट के बढ़ जाने से मूत्र िवसजर्न में आई �कावट के कारण मूत्राशमोटाई बढ़ जाती है और मूत्र िवसजर्न करने के बाद भी मूत्राशय में कुछ मूत्र भरा (अवशेष मूत) है। सोनोग्राफ� से ये सारजानकारी भी िमल जाती है। सी.टी. स्केन और ए.आर.आई. - इनके अित� रसी.टी. स्केन और ए.आर.आई. क� जाती है। िजससे मालूम हो जाता है िक कैंसर आसपास के ऊतक, लिसकापव� (Lymph Nodes) और शरीर के अन्य अंगों जैसे मूत्, मलाशय, यकृत या फेफड़े में फैला है या नहीं। कई बार .ई.टी. स्केन भी िकया जाता ह, जो शरीर में कुछ छुपे ह�ए कैंसर के ऊतकों को भी िचिन्हतदेता है। मूत्राशयदश� जां(Cystoscopy) - कुछ रोिगयों में मूत्राशयदश� यंत्र द्वारा (Cystoscopy) क� जाती है। इस जांच में एक पतल, लचीली और प्रकाश स्रोत लगी नली को मूत्राशय में डाल कर अन्दर देखा जाता है। इस यंत्र के बाहरकेमरा अविस्थत रहता ह, जो अंदर के �श्यों को बाहर लगे पटल पर प्रदिशर्त करता है। इस जांच से मूत्राशय और मूत्नली का अवलोकन िकया जाता है और कैंसर को िचिन्हत कर िलया जाता है। साथ ही संदेह होने पर जीवोित जांच हेतु मूत्राशयनमूने भी ले िलए जाते हैं।
  • 15. 15 | P a g e चरण िनधार्रण– (Staging) – सं�ेप में िचिकत्सक कैंसर का चरण िनधार्रण प्रोस्टेट तथा अन्य ऊतकों क� जीवोित जांच और छायांकन परपर करते हैं। चरण के आधार पर कैंसर के उपच, फलानुमान और अन्य कई िनणर्य िलए जाते हैं। इस कैंसर को िनम्न चरणवग�कृत िकया गया है। चरण I – इस चरण में अन्तरमलाशय अंगुली परी�ण द्वारा कैंसर के कोई संकेत नहीं िमलते हैं और प्रोस्टेट के बाहर कैसाàय भी नहीं होते हैं। इस चरण का प्रायः अितविधर्त प्रोस्टे-िक्रया के बाद जीवोित जांच में कैंसर का पता चलता ह चरण II – इस चरण में अबुर्द चरI से बड़ा होता है और प्रायः अन्तरमलाशय अंगुली परी�ण से महसूस हो जाता है। प्रोस्टबाहर कैंसर के कोई सा�य भी नहीं होते हैं। यह चरण प्रा.एस.ए. का स्तर बढ़ा होने के कारण क� गई जीवोित जांच से िचिन्हहोता है। चरण III – इस चरण में कैंसर प्रोस्टेट से बाहर िनकल कर आसपास के ऊतकों में फैल चुका हो चरण IV - इस चरण में कैंसर प्रोस्टेट से बाहर िनकल कर आसपास के लिसकापव� और दूरस्थ अंगों में फैल चुका ह आजकल अिधकांश िवशेष� 2002 में बने ट.एन.एम. (Tumor, Node, Metastases) वग�करण पद्धित को प्रयोग करते हैंतीन पहलुओं (T stage) मूल अबुर्द के िवस्त, (N stage) लिसकापव� में कैंसर के फैलाव औ(M stage) दूरस्थ अंगों में कैके स्थलांतर क� िस्थित पर आधारत होता है। प्रोस्टेट कैंसर.एन.एम. वग�करण इस प्रकार है प्राथिमक कैंसर का आंक(T) Tx: प्राथिमक कैंसर देखा नहीं जा सका T0: प्राथिमक कैंसर के कोई सा�य नहीं िमले T1: प्रोस्टेट कैंसरग्रस्त हो चुका है लेिकन अबुर्द को िचिकत्सक�य परीण या छायांकन िवधाओं द्वारा पकड़ना सं T1a: िकसी अन्य कारण से िनकाली गई प्रोस्टेट के ऊतको5% िहस्से में कैंसर का पाया जाना T1b: िकसी अन्य कारण से िनकाली गई प्रोस्टेट के ऊतको5% से अिधक िहस्से में कैंसर का पाया जाना T1c: पी.एस.ए. का स्तर बढ़ने के कारण क� गई जीवोित जांच में कैंसर का पाया जान T2: कैंसर अंगुली प�रस्पशर्ण द्वारा पकड़ना संभव है लेिकन प्रोस्टेट से बाहर नहीं T2a: कैंसर प्रोस्टेट के दोनों तरफ के खण्डों में से िकसी एक खण्ड के आधे या कम िहस्से में उ T2b: कैंसर प्रोस्टेट के िकसी एक खण्ड के आधे से अिधक िहस्से में उप, लेिकन दोनों खण्डों में नह T2c: कैंसर प्रोस्टेट के दोनों खण्डों में उपिस् T3: कैंसर प्रोस्टेट के आवरण को भेद कर बाहर आ चुका T3a: कैंसर एक या दोनों तरफ आवरण को भेद कर बाहर आ चुका है T3b: कैंसर एक या दोनों शुक्र पुिटकाओं पर आक्रमण कर चुका T4: कैंसर आसपास क� संरचनाओं पर आक्रमण कर चुका ह
  • 16. 16 | P a g e ध्यान रहेT2c चरण में ज�री है िक प्रोस्टेट के दोनों खण्डों में प�रस्पशर्ण द्वारा कैंसर को पकड़ा गया हो। यिद दोनोंको प�रस्पशर्ण द्वारा पकड़ पाना संभव नहीं है तोT2c चरण देना गलत होगा भले दोनों खण्डों क� जीवोित जांच में कउपिस्थत हो। स्थानीय लिसकापव का आंकलन (N) NX: स्थानीय लिसकापव� में कैंसर का आंकलन संभव नहीं है N0: स्थानीय लिसकापव� में कैंसर नहीं फैला ह N1: स्थानीय लिसकापव� में कैंसर फैल चुका है दूरस्थ स्थलांतर का आंकलन(M) MX: दूरस्थ अंगों में स्थलांतर का आंकलन संभव नहीं ह M0: दूरस्थ अंगों में स्थलांतर नहीं ह �आ M1: दूरस्थ अंगों में स्थलांतर हो चुका है M1a: कैंसर स्थानीय लिसकापव� से आगे के पर आक्रमण कर चुका है M1b: कैंसर अिस्थयों में फैल चुका ह M1c: कैंसर अन्य अंगों में फैल चुक, भले कैंसर अिस्थयों फैला हो या न फैला हो।
  • 17. 17 | P a g e उ पचार प्रोस्टेट कैंसर हेतु सही और उपयु� उपचार का चुनाव करना भी किठन कायर् है। क्योंिक आज हमारे पास पहले से कहीं बकई उपचार उपलब्ध है। लेिकन उनके खतरों और फायदों पर पूरी तरह शोध नहीं हो पा, इसिलए िविभन्न उपचार िवधाओंमेंसे रोगी के िलए सही उपचार चुनना मुिश्कल होता है। प्रोस्टेट कैंसर के उपचार हेतु िचिकत्सकों ने कैंसर को इन तीन वग� में बा1- वह स्थानीय कैंसर जो प्रोस्टेट में ही िसि2- स्थानीय िवकिसत कैंस(बड़ा प्रोस्टेट कैंसर या कैंसर िजसका प्रसार आसपास के ऊतकों और लिसकावव� में हो चु3- दूरस्थ स्थलांतर कैंसर। पहले और दूसरे वगर् मे-िक्र, रेिडयेशन, हाम�नल उपचार, क्रायोथेरे, और सतकर्तापूवर्क प्रतआिद उपचार िदये जाते हैं। दुभार्ग्यवश दूरस्थ स्थलांतर कैंसर में रोग का पूणर् उपचार संभ, लेिकन प्रशामक उपचार के � में क�मोथेरेपी और रेिडयोथेरेपी दी जाती है। प्रशामक उपचार का उद्देश्य कैंसर क� संवृिद्ध को धीमा करना और रोगी और कĶ कम करना होता है। शल्-िक्रय मौिलक पौŁष ग्रंिथ उच्छे प्रोस्टेट कैंसर के शल्य उपचार हेतु मौिलक पौ�ष ग्रंिथ उच्छेदन या रेडीकल प्रोस्टेक्टोमी क� जाती है। इस शल्य प्रोस्, शुक्र पुिटकाएं और शुक्रनली के ऐम्प्यूला का उच्छेदन िकया जाता है तथा मूत्राशय के मुख को मेम्ब्रेनस यूरेथ्रजाता है, तािक मूत्र िवसजर्न भली भांित होता रहे। अमे�रका में मौिलक पौ�षग्रंिथ उच्छेदन प्रोस्टेट में ही िसिमत स्थानीय कैंसर और स्थानीय िवकिसत कैंसर काउपचार है। प्रोस्टेट में ही िसिमत स्थानीय कैं36% रोिगयों में यह श-िक्रया क� जाती है। अमे�रकन कैंसर सोसाइटी अनुसार प्रोस्टेट में ही िसिमत स्थानीय कैंसर में यिद प्रोस्टेट पूरी तरह िनकाल दी जाती है तो90% है। इस शल्य क� जिटलताओं में िन�ेतन के खतर, र�स्र, नपुंसकता (30%-70%रोिगयों म) और मूत्र असंयमता(3%-10%रोिगयों म) मुख्य हैं। प्रोस्टेट के उच्छेदन क� ज िटलताओं को कम करने के िदशा में बह�त प्रगित हई है। पहले क� अपेा आज िनेतन प्रििवकिसत और सुरि�त हई है। आज िचिकत्साशा� ी मूत्र संयमता और पौष ग्रंिथ कसंरचना कायर् प्रणाली को बेहतहैं। और इस कारण शल-िक्रया में कई क्रांितकारी बह�त परवतर्न ह�ए हैं। आज प्रोस्टेट के दोनों तरफ िस्थत स्नायुजह�ए शल्यिक्रया क� जाती है। इस तरह के शल्य से मूत्र अस(Incontinence of Urine) व स्तंभनदोष(Impotence) होने का जोिखम बह�त कम रहता है। 98% रोिगयों को मूत्र असंयमता 60% रोिगयों को लैंिगक संसगर् में कोई परेशानी नहीं आती रोबोिटक मौिलक पौŁषग्रंिथ उच्छे मौिलक पौ�षग्रंिथ उच्छेदन खुली शल्य , दूरबीन या यंत्रमानव शल्य द्वारा िकया जाती है। क� सहायता नायाब तकनीक है। आज अमे�रका में70 % पौ�षग्रंिथ उच्छेदा िवंसी यंत्रमानक� मदद से िकये जाते हैं। इस शल्य िक्रयाउदर में पांच छोटे िछद्र िकये जाते, िजनमें छोटे से केमरे समेत शल्य उपकरण पेट में घुसाये जाते हैं। केमरे से ली गई अंदरित्रआया, स्प� औरदस गुनी अिभविधर्त तस्वीरें एक -पटल और रोगीशैया से दूर एक खटोले के पटल पर िदखाई देती हैं।शल्य उपकरण रोबोट के हाथों से जोड़ िदये जाते हैं। रोबोट के सारे िनयंऔर घुिण्डयांखटोले में लगी होती हैं। खटोले में ब
  • 18. 18 | P a g e कर श ल्यकम� पटल में देखते ह�ए अपने हाथों से शल्यिक्रया को अंजाम देततस्वीरें ित्रआयामी होने के कारण शल्यकम� कोलगता है जैसे वह रोगी के शरीर भीतर जाकर शल्य कर रहा ह, जबिक वह रोगी से 8 फुट दूर होता है। रोबोट शल्य उपकरणोको सभी िदशाओं में अिधक सू�मता और स्पता से घुमा िफरा सकता है। इसिलए रोबोट क� मदद से जिटल और उत्कृशकरना आसान हो जाता है। स्तंभनदोष के उपचार हेतु िसलडेनािफल(िवयाग्), िशij में ऐल्प्रोस्ट(केवरजेट) क� सुई या िविभन्न तरह के पम्प प्रयोग िजाते हैं। इन सबसे भी काम न चले तो आपका िचिकत्सक अपने िपटारे में कृित्रम िलंग प्रत्यारोपण का सामान भी लेकर बैठा असंयमता प्रायः धी-धीरे ठीक हो जाती है। इसके उपचार हेतु कुछ व्याया, दवाएं भी दी जाती है। कई बार रोगी के शरीर से ही ली गई पेशी या अन्य पदाथर् से कृित्रम संकोिचनी बनानी पड़ती
  • 19. 19 | P a g e रेिडयेशन थेरेपी यिद िकसी कार णवश रोगी का मौिलक पौ�षग्रंिथ उच्छेदन करना संभव नहीं हो या अबुर्द बहत बड़ा तो रेिडयेशन थेरेपी दोसे दी जाती है। पहली परम्परागत बाहरी िकरणपुण्ज रेिडयोथेरे (Conventional External Beam Radiotherapy EBRT) 6 या 7 हफ्तों तक दी जाती है और दूसरी ब्रेक�थेर(Brachytherapy) िजसमें रेिडयोधम� बीज प्रोस्टेट में रोिपत कर िदये जाते बाहरी िकरणपुण्ज रेिडयोथेरेप में शि�शाली एक्स िकरणें अबुर्द और आसपास के �ेत्र में केिन्द्रत करके उपचार िदयाब्रेक�थेरेपी में अल्ट्रासाउंड के िदशा िनद�श में सुईयों को घुसा कर प्रोस्टेट में रेिडयोधम� बीज रोिपत िदये जाते हैं। बरेिडयोधम� बीज प्रोस्टेट में ही अविस्थत होने कवजह से आसपास के ऊतकों और अंगों रेिडयेशन कुप्रभाव अपहोते हैं। रेिडयेशन के कुप्रभाव से प्रोस्टेट में थोड़े समय के िलए सूजन आ स, िजसके कारण मूत्र पथ में �कावट हो सकती है। यरोगी को िवविधर्त प्रोस्टेट के कारण पहले से ही मूत्र पथ में �कावट के कुछ लण हैं तो वे अचानक बढ़ सकते हैं। त्वचा पीड़ा, बाल झड़ना आिद बाहरी िकरणपुण्ज रेिडयोथेरेप के कुप्रभाव हैं। थक, दस्त लगना और पेशाब में जलन दोनों से हो सकहैं। ये सब ल�ण अस्थाई होते हैं। रेिडयेशन के कारण वष� बाद कुछ दूरगामी कुप्रभाव भी देखे गये हैं जैसे मूत्राशय या मकैंसर। यिद रेिडयेशन उपचार से लाभ नहीं हो तो श-िक्रया क� जा सकती , लेिकन मूत्र संयतता और स्तंभन दोष के आघका खतरा बह�त अिधक रहता है। होमōन उपचार टेस्टोस्टीरोन पु�(Androgenic) होम�न है। यह प्रोस्टेट में कैंसर कोिशकाओं क� संवृिद्ध को प्रोत्सािहत करता है। प्रोस्टेट कैंसर क� संवृिद्ध के िलए ईंधन का काम करता है। हाम�न (औषिध या शल्) का उद्देश्य टेस्टोस्टीरोन द्वारकोिशकाओं के प्रोत्साहन बािधत करना है। टेस्टोस्टीरोन का िनमार्ण वृषLH-RH ल्युिटनाइिजंग �रलीिजंग हामन(Luteinizing Hormone-Releasing Hormone) से संकेत िमलने पर होता है। इसे गोनेडोट्रोिफन �रलीिजंग हाम�न भी कहतहैं। यह हाम�न मिस्तष्क के िनयंत्रण क� में बनता है और रप्रवािहत होकर वृषण पहँचता है और टेस्टोस्टीरोन कउत्प्रे�रत करता ह हाम�न उपचार शल्-िक्रया या दवाओं द्वारा िकया जाता है। शल्य उपचार में दोनों वृषणों का उच्छेदन कर िदया जइस शल्य कोओिकर्येक्टो या वंध्यकरण कहते हैं। अथार्त इस शल्य में टेस्टोस्टीरोन के स्रोत को ही शरीर से िन जाता है। औषधीय हाम�न उपचार में दो श्रेिणयों क� औषिधयां दी जाती हैं। पहली शLH-RH ऐगोिनस्ट कहते हैं। ये मिस्तमेंLH-RH के स्राव को बािधत करती हैं। दूसरी श्रेणी-ऐंड्रोजिनक है। यह पु�ष होमन टेस्टोस्टीरोन के िव�द्ध काम करतअथार्त यह प्रोस्टेट में टेस्टोस्टीरोन के असर को िनिष्क्रय आजकल अिधकांश पु�ष शल्-िक्रया क� अपेा औषधीय हामन उपचार पसन्द करते हैं। क्योंिक पु�ष को स्थाई प सवंध्यकरण करवाना मनोवै�ािनक और शारी�रक सुन्दरता दोनों ही � िसे नागवार लगता है। सच्चाई यह भी है िक शल्य वंधऔर औषधीय हाम�न उपचार के प्रभाव और खतरे भी बराबर से ही हैं। दोनों ही तरह के हाम�न उपचार टेस्टोस्टीरोन के अिनिष्क्रय करने में समथर् हैं। लेिकन हारमोन उपचार से प्रोस्टेट के कुछ प्रजाित के कैंसर में कोई फायदा नहीं होता ह- इंिडपेंडेन्ट प्रोस्टेट कैंसर कहते हैं। हारमोन उपचार के प्रमुख कुप्रभाव स्तन(Gynecomastia) और नपुंसकता है। स्तन में अक्सर पीड़ा या शरीर में तमतम(Hot Flashes) होती है। LH-RH ऐगोिनस् ल्युप्रोला(Lupron) या गोसरेिलन (Zoladex) के इंजेक्शन हर महीने िदये जाते हैंएन्ट-एन्ड्रोजिदवाएं फ्लुटामाइड(Eulexin) या बाईकेल्युटेमाइड(Casodex) के केप्स्यूल अकेले यLH-RH ऐगोिनस्ट के साथ िदये जाते हैं