1. ऐ गज़ल खुश �ँ म� दासी तेरी कहलाते �ए,
िज़न्दगी बीती है ज़�ल्फ़� तेरी सुलझाते �ए।
चश्मे बद्दूर न यूँ आइना देखो, देखो,
आइना देख रहा है तुम्ह� शरमाते �ए।
बाल कंघी म� उलझते ह� तो उलझन क्य� है,
नाज़ झाड़� म� चला करते ह� लहराते �ए।
रात रानी तो नह� �फर भी ये खुशबू कैसी,
वो न गुज़रा हो कह� ज़�ल्फ़ को झटकाते �ए।
वो ही इन्सां वो ही भगवान वो ही धोखाधड़ी,
�कतने युग बीत गए ह� िजन्ह� दोहराते �ए।
हर तरफ िबखरी है तहज़ीब क� िज़न्दा लाश�,
फू ल अब शाख� म� िखलते है तो मुरझाते �ए।
उनके आने का भरोसा क�ँ कैसे ‘ज़ेबा’,
वादा करते ह� तो मेरी ये क़सम खाते �ए।
डॉ. ज़ेबा �फ़ज़ा
गज़ल