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ब्रजभाषा का साहिहयिक भाषा के रूप में हिकास, स्नातकोत्तर हििंदी cc1 िेतु
मििंक भार्गि
अहसस्टेंट प्रोफेसर
एम एल टी कॉलेज, सिरसा
ब्रजभाषा का साहिहयिक भाषा के रूप में हिकास
11िीं शती में मध्ि देश की जन भाषा के रूप में ब्रजभाषा का हिकास िुआ | प्रारिंहभक अिस्था
में िी ब्रजभाषा उत्तर भारत की प्रमुख सािंस्कृहतक साहिहयिक भाषा के रूप में प्रहतहित िो र्ई |
भहि आिंदोलन के माध्िम से इसका रूप अहखल भारतीि िो र्िा | भाषा िैज्ञाहनकों के अनुसार
उत्तर प्रदेश के मथुरा, अलीर्ढ़, आर्रा, बुलिंदशिर, एटा, मैनपुरी, बदाििं, बरेली आहद हजलों ,
िररिाणा के र्ुड़र्ािंि हजले की पिी पट्टी, राजस्थान के भरतपुर, धौलपुर करौली, जिपुर के पिी
भार् और मध्िप्रदेश में ग्िाहलिर के पहिमी भार् में िि भाषा बोली जाती थी | डॉक्टर धीरेंद्र
िमाग कन्नौजी को भी ब्रजभाषा के अिंतर्गत रखते िैं हजससे उसका क्षेत्र और भी हिस्तृत िो जाता
िै | इस भाषा का नामकरण 'ब्रजभाषा' 18 िीं शताब्दी में िुआ | इसके पिग िि 'हपिंर्ल' तथा
'भाखा' के नाम से प्रहसद्ध थी | बतािा जाता िै हक आरिंहभक काल में ब्रजभाषा के दो रूप थे -
एक िि जो प्राकृत पैंर्लम, रणमल छिंद, रासो ग्रिंथों और कुछ हपिंर्ल कृहतिों में हमलता िै और
दसरा िि जो उहि रचनाओिं िथा 'उहि व्िहि प्रकरण' बालािबोध उहि रयनाकर आहद में
सुरहक्षत िै | ऐहतिाहसक हिकास की दृहि से ब्रज भाषा का सिंबिंध भाषा िैज्ञाहनकों द्वारा शौरसेनी
अपभ्रिंश से माना र्िा िै | सरदास ब्रजभाषा काव्ि परिंपरा के प्रथम मिान कहि िैं हजनके पदों
को रामचिंद्र शुक्ल ने चलती िुई ब्रज भाषा में सबसे पिली साहिहयिक रचना मानते िुए भी किा
हक िि रचना इतनी प्रर्ल्भ और काव्ि पणग िै हक आर्े िोने िाले कहििों की शृिंर्ार और
िायसल्ि की उहििााँ सरदास की जठी सी मालम पड़ती िै | डॉक्टर हशि प्रसाद हसिंि ने सरदास
के पिले की ब्रजभाषा के सिंबिंध में हलखा िै हक ब्रजभाषा के हिकास के पीछे सैकड़ों िषों की
परिंपरा हछपी िै पर इस परिंपरा के हिकास में आिग -अनािग, कोल - द्रहिड़ और ना जाने हकतने
प्रकार के प्रभाि घुले - हमले िैं | आिग भाषा को प्राचीन से निीन तक हिकहसत िोने में हजतने
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सोपानपार करने पड़े िैंउन सब की कुछ न कुछहिशेषतािै| इन सब का सिंतुहलत और आिश्िक
दाि ब्रजभाषा को प्राप्त िुआ उनके हनरिंतर हिकासशील तयि इस भाषा के ढािंचे में प्रहतहित िुए |
1000 ईसिी के आसपास शौरसेनी अपभ्रिंश की अपनी जन्मभहम में ब्रजभाषा का उदि िुआ |
उस समि उसके हसर पर साहिहयिक अपभ्रिंश की छािा थी और रि में शौरसेनी भाषाओिं की
परिंपरा और अन्ि सामाहजक तथा सािंस्कृहतक तयिों का ओज और बल | पहिमी अपभ्रिंश को
एक प्रकार से ब्रजभाषा और हििंदुस्तानी की उसके पिले की पिगज किना उहचत िै | िेमचिंद्र के
व्िाकरण में भी ब्रज भाषा के प्रिोर् को भाषा िैज्ञाहनकों ने पिचाना िै | डॉक्टर धीरेंद्र िमाग के
अनुसार 'पृथ्िीराज रासो' मध्िकालीन ब्रजभाषा में िी हलखा र्िा िै | र्ोरखनाथ की भाषा में
खड़ी बोली के पिग रूपों की प्रधानता िै पर उसमें पिंजाबी, राजस्थानी तथा ब्रज के कुछ रूप
हमहित िैं |
चौदििीं शताब्दी के उत्तराधग से ब्रज भाषा में स्ितिंत्र साहियि हमलने लर्ता िै | सुधीर अग्रिाल
की रचना 'प्रद्युम्न चररत' ( 1354) को सबसे पुराना ग्रिंथ ब्रजभाषा का माना जाता िै | जाख
मणिार का 'िर चिंद पुराण' राजा िररििंद्र की कथा पर आधाररत िै | उस िुर् के सिगिेि कहि
हिष्णु दास की चार रचनाएिं प्रकाश में आई िै - मिाभारत कथा, स्िर्ागरोिण, रुकमणी मिंर्ल और
सनेि लीला | लक्ष्मण सेन पद्मािती कथा के रचहिता दामों कहि की भाषा राजस्थानी हमहित
ब्रजभाषा िै | लर्भर् 1500 में चतुभुगज दास ने मधुमालती िाताग नामक प्रेम काव्ि की रचना
ब्रज भाषा में की | नारािण दास की 'हछताई िाताग' पणगतः ब्रज भाषा में िै | र्ुरु ग्रिंथ सािब में भी
ब्रजभाषा में रहचत र्ुरुओिं की रचना सिंकहलत िै | नानक देि, अिंर्द, रामदास, अमरदास के
अहतररि ििािं सिंकहलत नामदेि, कबीर, हत्रलोचन, साधना, बेनी, रामानिंद, पीपा, सेन, रैदास
आहद भिों की िाणी ब्रजभाषा में िै | र्ुरु नानक देि की भाषा के दो रूप िैं - कुछ पद ऐसे िैं
हजनमें पिंजाबी, राजस्थानी आहद भाषाएिं ब्रजभाषा के साथ हमल र्ई िै और कुछ में शुद्ध ब्रजभाषा
िै | िरदेि बािरी के अनुसार सर पिग काव्ि भाषा में छिंद में िणों की र्णना करने पर लर्ता िै
हक अक्षर के अिंत में 'अ' का उच्चारण िोता था, जैसे सिंस्कृत में िोता िै | िि 'अ' प्रयिेक व्ििंजन
के परे रूप में हनहित िै | बाद की ब्रजभाषा में िि 'अ' मक िो र्िा | ब्रज भाषा के साहिहयिक
प्रचार प्रसार का कृष्ण भहि आिंदोलन से र्िरा सिंबिंध िै | 15 िी शताब्दी के अिंत तक का िुर्
3
ब्रजभाषा का हनमागण काल किा जाता िै | डॉक्टर धीरेंद्र िमाग के अनुसार हजस समि िी मिाप्रभु
िल्लभाचािग को ब्रज जाकर र्ोकुल तथा र्ोिधगन को अपना केंद्र बनाने की प्रेरणा िुई उसी हदन
से ब्रज की प्रादेहशक बोहलिों के भाग्ि पलट र्ए | िल्लभाचािग के पुत्र हिट्ठलनाथ ने अिछाप
की स्थापना की हजनमें सरदास भी शाहमल थे | सरदास एििं अन्ि कृष्ण भि कहििों ने ब्रजभाषा
में प्रचुर काव्ि हलखा | तयकालीन कृष्ण भहि काव्ि ब्रज भाषा में हलखा र्िा िै। इस काल में
काव्ि भाषा के रूप में ब्रजभाषा शीषग स्थान पर पिुिंची और बनी रिी | इस सिंबिंध में डॉ ब्रजेश्वर
िमाग के अनुसार सरदास के समकालीन और उनके अनुिती कृष्ण भि ब्रजभाषा कहििों की
जैसी सिंपन्न और व्िापक परिंपरा 16 िीं से बीसिीं सदी के आरिंभ तक चलती रिी उसकी हमसाल
निीं हमलती | सरदास और अन्ि कृष्ण भि कहििों ने हिहिध छिंदों में पदों की रचना की | कृष्ण
भहिकाव्ि की सजगनायमकभाषा की एक हिशेषतािैहकउस मेंहिहभन्न बोली- क्षेत्रों की ग्रामीण
शब्दािली और भाहषक प्रिोर् भी काव्ि भाषा के अिंर् बन र्ए | साहियि सजगन की भाषा क्षेत्रीि
सीमाओिंसे ऊपर उठती िै तभी तो उसमें अिंतर क्षेत्रीिता िै | काव्ि भाषा में इसी र्ुण के कारण
काव्ि में ब्रज भाषा के प्रिोर् का हिस्तार पिग में असम से लेकर पहिम में र्ुजरात और कच्छ
तक िो र्िा। अिछाप के कहििों में सरदास, निंददास और परमानिंददास की काव्ि भाषा उच्च
कोहट की िै | इन्िोंने ब्रजभाषा का जो ढािंचा हनहित हकिा उसे बाद के कहििों ने भी आदशग
माना | अिछाप के बािर के कृष्ण भि कहििों में र्दाधर भट्ट, मीराबाई, स्िामी िररदास, हित
िररििंश, िी भट्ट, रसखान, ध्रुि दास आहद प्रहसद्ध िै | इन सभी भि कहििों ने ब्रजभाषा में िी
अपनी रचनाएिं की | साहिहयिक भाषा के उयकषग की दृहि से मीराबाई और रसखान का हिशेष
मियि िै | मीराबाई के कुछ पद राजस्थानी हमहित भाषा में िै और कुछ हिशुद्ध साहिहयिक
ब्रजभाषा में | हजस समि अिछाप के कहि ब्रज में कृष्ण लीला का र्ान कर रिे थे उस समि
अिध और काशी क्षेत्र में र्ोस्िामी तुलसीदास राम भहि की र्िंर्ा बिा रिे थे | र्ोस्िामी जी ने
अिधी में काव्ि रचना की परिंतु ब्रजभाषा पर भी उनका उतना िी अहधकार था | उनकी हिनि
पहत्रका, कहितािली, र्ीतािली, कृष्ण र्ीतािली आहद रचनाओिं में ब्रजभाषा का साहिहयिक
सौंदिग देखने िोग्ि िै | के शिदास मध्ि िुर् के हिहशि कहि तथा आचािग िैं| सिंस्कृत के प्रकािंड
पिंहडत िोते िुए भी उन्िोंने ब्रजभाषा में रचना की | ब्रज भाषा को प्रशस्त करने में र्ीतकार कहििों
का भी मियिपणग िोर्दान रिा िै | पदों की र्यिायमकता और लिायमकता का सिंतुलन सिंर्ीत
4
द्वारा सिंभि िुआ | भहि भाि से भरा िुआ अपार साहियि हनयि नए ढिंर् से साँिरता रिा और
इसकी साँिार की सिंर्ीत ने | िि भरा परा भिंडार ध्रुपद, ख्िाल , टप्पा, दादरा, ठुमरी और लािणी
से भरपर िै | इस क्रम में बैज बािरा का नाम उल्लेखनीि िै | रीहतकाल के बाद भी कृष्ण भहि
काव्ि धारा प्रिाहित िोती रिी और परिंपरा से इस की काव्ि भाषा ब्रजभाषा बनी रिी | 18िीं
शती तक आते-आते ब्रज भाषा का साहियि स्िरूप हनहित िो र्िा था | ब्रजभाषा के साथ-
साथ खड़ी बोली का प्रचलन भी बढ़ र्िा था | भारतेंदु िुर् तथा हद्विेदी िुर् में भी ब्रजभाषा
प्रहतहित रिी , साथ िी ‘खड़ी बोली’ का भी प्रभाि भी पढ़ने लर्ा | इस िुर् में िृिंदािन देि,
घनानिंद, नार्री दास, प्रेम दास, िृिंदािन दास , भारतेंदु आहद ने ब्रज भाषा का िी प्रिोर् हकिा
| कैलाश चिंद्र भाहटिा के शब्दों में हद्विेदी िुर् में भी ब्रजभाषा प्रहतहित रिी | साथ में खड़ी बोली
को जमाने के प्रियन िोते रिे | हद्विेदी िुर् में िीधर पाठक की ब्रजभाषा रचनाओिं में 'स्िर्ीि
िीणा', 'काश्मीर सुषमा' 'देिरादन' के अहतररि र्ोहपका र्ीत और 'भारत र्ीत र्ीहतकाव्ि 'थे
| 'ऊजड़ ग्राम' भी र्ोल्ड हस्मथ की 'हडजटेड हिलेज' का ब्रजभाषा अनुिाद िै | आधुहनक काल
में जर्न्नाथ दास रयनाकर ब्रजभाषा के एकहनि कहि रिे | उनकी रचनाओिं में उद्धि शतक', '
र्िंर्ाितरण', 'िररििंद्र हििंडोला', उल्लेखनीि िैं | लाला भर्िानदीन ने 'अलिंकार मिंजषा' और
'हिद्याथी मिंजषा' से रीहतबद्ध कहििों की परिंपरा को आर्े बढ़ािा | आधुहनक काल में ब्रजभाषा
में जिािं भ्रमरर्ीत परिंपरा, सतसई परिंपरा, लक्षण ग्रिंथों की रचना, समस्िा पहतग काव्ि हलखे र्ए
ििीं निीन प्रिोर्ायमक प्रिास भी िुए हजनमें हििोर्ी िरर के 'िीर सतसई' को हलिा जा सकता
िै | हद्विेदी जी ने स्िििं अिोध्िा का हिलाप' की रचना की | सामाहजक चेतना के हलए भी
ब्रजभाषा में हिपुल काव्ि रचनाएिं िुई | शिंकर की समस्िा पहतगिािं इसी भाि से हलखी र्ई |
आधुहनक ब्रजभाषा कहििों में र्ोहििंद चतुिेदी, रामलला, सुमनेश, कैलाश चिंद्र कृष्ण, हिष्णु
दत्त शमाग आहद प्रमुख िै | िरदेि बािरी ने हलखा िै हक रीहतकाल का अिंत िोते-िोते ब्रजभाषा
रूढ़, एकरूप , एकरस और जड़ीभत िो र्ई | हिषि की सिंकीणगता के कारण भाषा की व्िापकता
और सामथ्िग समाप्त िो र्ई | आधुहनक िुर् में भारतेंदु िररििंद्र और जर्न्नाथ दास रयनाकर ने सुर
और हबिारी की भाषा में सामिंजस्ि स्थाहपत करके उसका पुनरुद्धार करने का प्रियन हकिा परिंतु
खड़ी बोली की िोड़ में ब्रजभाषा िार र्ई | र्ोपाल राि के शब्दों में काव्ि भाषा के रूप में
ब्रजभाषा का उयकषग और पतन इहतिास देिता का एक अनोखा हखलिाड़ िै |

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  • 1. 1 ब्रजभाषा का साहिहयिक भाषा के रूप में हिकास, स्नातकोत्तर हििंदी cc1 िेतु मििंक भार्गि अहसस्टेंट प्रोफेसर एम एल टी कॉलेज, सिरसा ब्रजभाषा का साहिहयिक भाषा के रूप में हिकास 11िीं शती में मध्ि देश की जन भाषा के रूप में ब्रजभाषा का हिकास िुआ | प्रारिंहभक अिस्था में िी ब्रजभाषा उत्तर भारत की प्रमुख सािंस्कृहतक साहिहयिक भाषा के रूप में प्रहतहित िो र्ई | भहि आिंदोलन के माध्िम से इसका रूप अहखल भारतीि िो र्िा | भाषा िैज्ञाहनकों के अनुसार उत्तर प्रदेश के मथुरा, अलीर्ढ़, आर्रा, बुलिंदशिर, एटा, मैनपुरी, बदाििं, बरेली आहद हजलों , िररिाणा के र्ुड़र्ािंि हजले की पिी पट्टी, राजस्थान के भरतपुर, धौलपुर करौली, जिपुर के पिी भार् और मध्िप्रदेश में ग्िाहलिर के पहिमी भार् में िि भाषा बोली जाती थी | डॉक्टर धीरेंद्र िमाग कन्नौजी को भी ब्रजभाषा के अिंतर्गत रखते िैं हजससे उसका क्षेत्र और भी हिस्तृत िो जाता िै | इस भाषा का नामकरण 'ब्रजभाषा' 18 िीं शताब्दी में िुआ | इसके पिग िि 'हपिंर्ल' तथा 'भाखा' के नाम से प्रहसद्ध थी | बतािा जाता िै हक आरिंहभक काल में ब्रजभाषा के दो रूप थे - एक िि जो प्राकृत पैंर्लम, रणमल छिंद, रासो ग्रिंथों और कुछ हपिंर्ल कृहतिों में हमलता िै और दसरा िि जो उहि रचनाओिं िथा 'उहि व्िहि प्रकरण' बालािबोध उहि रयनाकर आहद में सुरहक्षत िै | ऐहतिाहसक हिकास की दृहि से ब्रज भाषा का सिंबिंध भाषा िैज्ञाहनकों द्वारा शौरसेनी अपभ्रिंश से माना र्िा िै | सरदास ब्रजभाषा काव्ि परिंपरा के प्रथम मिान कहि िैं हजनके पदों को रामचिंद्र शुक्ल ने चलती िुई ब्रज भाषा में सबसे पिली साहिहयिक रचना मानते िुए भी किा हक िि रचना इतनी प्रर्ल्भ और काव्ि पणग िै हक आर्े िोने िाले कहििों की शृिंर्ार और िायसल्ि की उहििााँ सरदास की जठी सी मालम पड़ती िै | डॉक्टर हशि प्रसाद हसिंि ने सरदास के पिले की ब्रजभाषा के सिंबिंध में हलखा िै हक ब्रजभाषा के हिकास के पीछे सैकड़ों िषों की परिंपरा हछपी िै पर इस परिंपरा के हिकास में आिग -अनािग, कोल - द्रहिड़ और ना जाने हकतने प्रकार के प्रभाि घुले - हमले िैं | आिग भाषा को प्राचीन से निीन तक हिकहसत िोने में हजतने
  • 2. 2 सोपानपार करने पड़े िैंउन सब की कुछ न कुछहिशेषतािै| इन सब का सिंतुहलत और आिश्िक दाि ब्रजभाषा को प्राप्त िुआ उनके हनरिंतर हिकासशील तयि इस भाषा के ढािंचे में प्रहतहित िुए | 1000 ईसिी के आसपास शौरसेनी अपभ्रिंश की अपनी जन्मभहम में ब्रजभाषा का उदि िुआ | उस समि उसके हसर पर साहिहयिक अपभ्रिंश की छािा थी और रि में शौरसेनी भाषाओिं की परिंपरा और अन्ि सामाहजक तथा सािंस्कृहतक तयिों का ओज और बल | पहिमी अपभ्रिंश को एक प्रकार से ब्रजभाषा और हििंदुस्तानी की उसके पिले की पिगज किना उहचत िै | िेमचिंद्र के व्िाकरण में भी ब्रज भाषा के प्रिोर् को भाषा िैज्ञाहनकों ने पिचाना िै | डॉक्टर धीरेंद्र िमाग के अनुसार 'पृथ्िीराज रासो' मध्िकालीन ब्रजभाषा में िी हलखा र्िा िै | र्ोरखनाथ की भाषा में खड़ी बोली के पिग रूपों की प्रधानता िै पर उसमें पिंजाबी, राजस्थानी तथा ब्रज के कुछ रूप हमहित िैं | चौदििीं शताब्दी के उत्तराधग से ब्रज भाषा में स्ितिंत्र साहियि हमलने लर्ता िै | सुधीर अग्रिाल की रचना 'प्रद्युम्न चररत' ( 1354) को सबसे पुराना ग्रिंथ ब्रजभाषा का माना जाता िै | जाख मणिार का 'िर चिंद पुराण' राजा िररििंद्र की कथा पर आधाररत िै | उस िुर् के सिगिेि कहि हिष्णु दास की चार रचनाएिं प्रकाश में आई िै - मिाभारत कथा, स्िर्ागरोिण, रुकमणी मिंर्ल और सनेि लीला | लक्ष्मण सेन पद्मािती कथा के रचहिता दामों कहि की भाषा राजस्थानी हमहित ब्रजभाषा िै | लर्भर् 1500 में चतुभुगज दास ने मधुमालती िाताग नामक प्रेम काव्ि की रचना ब्रज भाषा में की | नारािण दास की 'हछताई िाताग' पणगतः ब्रज भाषा में िै | र्ुरु ग्रिंथ सािब में भी ब्रजभाषा में रहचत र्ुरुओिं की रचना सिंकहलत िै | नानक देि, अिंर्द, रामदास, अमरदास के अहतररि ििािं सिंकहलत नामदेि, कबीर, हत्रलोचन, साधना, बेनी, रामानिंद, पीपा, सेन, रैदास आहद भिों की िाणी ब्रजभाषा में िै | र्ुरु नानक देि की भाषा के दो रूप िैं - कुछ पद ऐसे िैं हजनमें पिंजाबी, राजस्थानी आहद भाषाएिं ब्रजभाषा के साथ हमल र्ई िै और कुछ में शुद्ध ब्रजभाषा िै | िरदेि बािरी के अनुसार सर पिग काव्ि भाषा में छिंद में िणों की र्णना करने पर लर्ता िै हक अक्षर के अिंत में 'अ' का उच्चारण िोता था, जैसे सिंस्कृत में िोता िै | िि 'अ' प्रयिेक व्ििंजन के परे रूप में हनहित िै | बाद की ब्रजभाषा में िि 'अ' मक िो र्िा | ब्रज भाषा के साहिहयिक प्रचार प्रसार का कृष्ण भहि आिंदोलन से र्िरा सिंबिंध िै | 15 िी शताब्दी के अिंत तक का िुर्
  • 3. 3 ब्रजभाषा का हनमागण काल किा जाता िै | डॉक्टर धीरेंद्र िमाग के अनुसार हजस समि िी मिाप्रभु िल्लभाचािग को ब्रज जाकर र्ोकुल तथा र्ोिधगन को अपना केंद्र बनाने की प्रेरणा िुई उसी हदन से ब्रज की प्रादेहशक बोहलिों के भाग्ि पलट र्ए | िल्लभाचािग के पुत्र हिट्ठलनाथ ने अिछाप की स्थापना की हजनमें सरदास भी शाहमल थे | सरदास एििं अन्ि कृष्ण भि कहििों ने ब्रजभाषा में प्रचुर काव्ि हलखा | तयकालीन कृष्ण भहि काव्ि ब्रज भाषा में हलखा र्िा िै। इस काल में काव्ि भाषा के रूप में ब्रजभाषा शीषग स्थान पर पिुिंची और बनी रिी | इस सिंबिंध में डॉ ब्रजेश्वर िमाग के अनुसार सरदास के समकालीन और उनके अनुिती कृष्ण भि ब्रजभाषा कहििों की जैसी सिंपन्न और व्िापक परिंपरा 16 िीं से बीसिीं सदी के आरिंभ तक चलती रिी उसकी हमसाल निीं हमलती | सरदास और अन्ि कृष्ण भि कहििों ने हिहिध छिंदों में पदों की रचना की | कृष्ण भहिकाव्ि की सजगनायमकभाषा की एक हिशेषतािैहकउस मेंहिहभन्न बोली- क्षेत्रों की ग्रामीण शब्दािली और भाहषक प्रिोर् भी काव्ि भाषा के अिंर् बन र्ए | साहियि सजगन की भाषा क्षेत्रीि सीमाओिंसे ऊपर उठती िै तभी तो उसमें अिंतर क्षेत्रीिता िै | काव्ि भाषा में इसी र्ुण के कारण काव्ि में ब्रज भाषा के प्रिोर् का हिस्तार पिग में असम से लेकर पहिम में र्ुजरात और कच्छ तक िो र्िा। अिछाप के कहििों में सरदास, निंददास और परमानिंददास की काव्ि भाषा उच्च कोहट की िै | इन्िोंने ब्रजभाषा का जो ढािंचा हनहित हकिा उसे बाद के कहििों ने भी आदशग माना | अिछाप के बािर के कृष्ण भि कहििों में र्दाधर भट्ट, मीराबाई, स्िामी िररदास, हित िररििंश, िी भट्ट, रसखान, ध्रुि दास आहद प्रहसद्ध िै | इन सभी भि कहििों ने ब्रजभाषा में िी अपनी रचनाएिं की | साहिहयिक भाषा के उयकषग की दृहि से मीराबाई और रसखान का हिशेष मियि िै | मीराबाई के कुछ पद राजस्थानी हमहित भाषा में िै और कुछ हिशुद्ध साहिहयिक ब्रजभाषा में | हजस समि अिछाप के कहि ब्रज में कृष्ण लीला का र्ान कर रिे थे उस समि अिध और काशी क्षेत्र में र्ोस्िामी तुलसीदास राम भहि की र्िंर्ा बिा रिे थे | र्ोस्िामी जी ने अिधी में काव्ि रचना की परिंतु ब्रजभाषा पर भी उनका उतना िी अहधकार था | उनकी हिनि पहत्रका, कहितािली, र्ीतािली, कृष्ण र्ीतािली आहद रचनाओिं में ब्रजभाषा का साहिहयिक सौंदिग देखने िोग्ि िै | के शिदास मध्ि िुर् के हिहशि कहि तथा आचािग िैं| सिंस्कृत के प्रकािंड पिंहडत िोते िुए भी उन्िोंने ब्रजभाषा में रचना की | ब्रज भाषा को प्रशस्त करने में र्ीतकार कहििों का भी मियिपणग िोर्दान रिा िै | पदों की र्यिायमकता और लिायमकता का सिंतुलन सिंर्ीत
  • 4. 4 द्वारा सिंभि िुआ | भहि भाि से भरा िुआ अपार साहियि हनयि नए ढिंर् से साँिरता रिा और इसकी साँिार की सिंर्ीत ने | िि भरा परा भिंडार ध्रुपद, ख्िाल , टप्पा, दादरा, ठुमरी और लािणी से भरपर िै | इस क्रम में बैज बािरा का नाम उल्लेखनीि िै | रीहतकाल के बाद भी कृष्ण भहि काव्ि धारा प्रिाहित िोती रिी और परिंपरा से इस की काव्ि भाषा ब्रजभाषा बनी रिी | 18िीं शती तक आते-आते ब्रज भाषा का साहियि स्िरूप हनहित िो र्िा था | ब्रजभाषा के साथ- साथ खड़ी बोली का प्रचलन भी बढ़ र्िा था | भारतेंदु िुर् तथा हद्विेदी िुर् में भी ब्रजभाषा प्रहतहित रिी , साथ िी ‘खड़ी बोली’ का भी प्रभाि भी पढ़ने लर्ा | इस िुर् में िृिंदािन देि, घनानिंद, नार्री दास, प्रेम दास, िृिंदािन दास , भारतेंदु आहद ने ब्रज भाषा का िी प्रिोर् हकिा | कैलाश चिंद्र भाहटिा के शब्दों में हद्विेदी िुर् में भी ब्रजभाषा प्रहतहित रिी | साथ में खड़ी बोली को जमाने के प्रियन िोते रिे | हद्विेदी िुर् में िीधर पाठक की ब्रजभाषा रचनाओिं में 'स्िर्ीि िीणा', 'काश्मीर सुषमा' 'देिरादन' के अहतररि र्ोहपका र्ीत और 'भारत र्ीत र्ीहतकाव्ि 'थे | 'ऊजड़ ग्राम' भी र्ोल्ड हस्मथ की 'हडजटेड हिलेज' का ब्रजभाषा अनुिाद िै | आधुहनक काल में जर्न्नाथ दास रयनाकर ब्रजभाषा के एकहनि कहि रिे | उनकी रचनाओिं में उद्धि शतक', ' र्िंर्ाितरण', 'िररििंद्र हििंडोला', उल्लेखनीि िैं | लाला भर्िानदीन ने 'अलिंकार मिंजषा' और 'हिद्याथी मिंजषा' से रीहतबद्ध कहििों की परिंपरा को आर्े बढ़ािा | आधुहनक काल में ब्रजभाषा में जिािं भ्रमरर्ीत परिंपरा, सतसई परिंपरा, लक्षण ग्रिंथों की रचना, समस्िा पहतग काव्ि हलखे र्ए ििीं निीन प्रिोर्ायमक प्रिास भी िुए हजनमें हििोर्ी िरर के 'िीर सतसई' को हलिा जा सकता िै | हद्विेदी जी ने स्िििं अिोध्िा का हिलाप' की रचना की | सामाहजक चेतना के हलए भी ब्रजभाषा में हिपुल काव्ि रचनाएिं िुई | शिंकर की समस्िा पहतगिािं इसी भाि से हलखी र्ई | आधुहनक ब्रजभाषा कहििों में र्ोहििंद चतुिेदी, रामलला, सुमनेश, कैलाश चिंद्र कृष्ण, हिष्णु दत्त शमाग आहद प्रमुख िै | िरदेि बािरी ने हलखा िै हक रीहतकाल का अिंत िोते-िोते ब्रजभाषा रूढ़, एकरूप , एकरस और जड़ीभत िो र्ई | हिषि की सिंकीणगता के कारण भाषा की व्िापकता और सामथ्िग समाप्त िो र्ई | आधुहनक िुर् में भारतेंदु िररििंद्र और जर्न्नाथ दास रयनाकर ने सुर और हबिारी की भाषा में सामिंजस्ि स्थाहपत करके उसका पुनरुद्धार करने का प्रियन हकिा परिंतु खड़ी बोली की िोड़ में ब्रजभाषा िार र्ई | र्ोपाल राि के शब्दों में काव्ि भाषा के रूप में ब्रजभाषा का उयकषग और पतन इहतिास देिता का एक अनोखा हखलिाड़ िै |