1. Another of my father’s exhaustive and unique research works. Forever the sensitive poet , the
meticulous researcher, the ideal teacher , the quintessential artist , my father, my guru
Prof (Dr ) Arun Shanker Narain
3. अरुण शक
ं र
नरायण
अरुण शक
ं र नरायण
✜ ✜
चित्र में कचिता
डा० ए० एस० नारायण
कविता विचार ं की अविव्यक्ति क
े विये संिितः एक जविि माध्यम है। इसे अविक अविगम्य बनाने हेतु चाक्षुष सािन ं का
प्रय ग प्रिािशािी ह सकता है। कविता तथा वचत्र मूितः तुल्य किायें हैं इस का अनुिि सिवप्रथम ईसा से िगिग ५०० िषव पूिव हुआ जब
विचारक साइम नाइड्स ने यह विचार व्यि वकया वक वचत्र एकन कविता और कविता एक मुखर वचत्र है। तद परान्त, अन्य महान
विचारक ं एिं किाकार ं क
े समथवन स्वरूप वचत्र एिं कविता में सादृश्य की िारणा प्रबि ह ती गई और ११िींशताब्दी तक पूणव रूप से
सिवमान्य ह गई। िास्ति में उत्क
ृ ष्ट ि सूक्ष्मदृष्टा कवि एिं वचत्रकार द न ं एक दू सरे क समझते हैं। वचत्रकार कविता की विषयिस्तु एिं
आन्तररक िक्षण ं, विशेषतयः उस में वनवहत िाि ं ि प्रतीक ं,क देख सकता है और कवि िी वचत्र क
े इन्ींगुण ं क पढ़ सकता है।
कविता क वचत्र में रूपान्तररत करने की बात करें त संसार क
े श्रेष्ठतम महाकाव्य ं, जैसे संस्क
ृ त क
े रामायण ि महािारत तथा
यूनान क
े इवियड िओवडसी, में उक्तिक्तखत िगिग सिी मुख्य घिनाओं क
े वचत्र उपिब्ध हैं।
इस सन्दिव में एक उिेखनीय वचत्रकार हैं राजा रवि िमाव वजन् ं ने रामायण ि महािारत में
उक्तिक्तखत अनेक घिनाओं ि कथानक ं का वचत्रण अत्यन्त सजीि रूप में वकया है; जैसे सीता-हरण ि रािण-जिायु युद्ध (वचत्र १)। साथ
ही, इन् ंने श्रीक
ृ ष्ण क
े जीिन क
े विविन्न रूप ंका िणवन करते अनेक प्रवसद्ध काव्य-ग्रन् ं,जैसे जयदेि का गीता-ग विन्द, में उक्तिक्तखत
क
ृ ष्णिीिाओंक िी अत्यन्त सुुँदर वचत्र ंमें ढािा है; जैसे बािक क
ृ ष्ण का श्रुँगार करती माता यश दा (वचत्र २)।
चित्र १ चित्र २
क्रमशः
4. अरुण शक
ं र नरायण
अरुण शक
ं र नरायण
क्रमशः
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✜
इसी प्रकार शेक्सवपयर क
े नािक ं क
े िगिग सिी मुख्य दृश्य ं का िी
वचत्र ं में रूपान्तरण ह चुका है; जैसे फ़ डव
मैडौक्स ब्राउन क
ृ त र वमय जूवियि नािक क
े
उस विख्यात दृश्य का वचत्र (वचत्र ३) वजस में
नावयका जूवियि क
े प्रेम में अुँिा नायक
र वमय नावयका क
े कक्ष की बािकनी पर चढ़
कर उस से वमिने जाता है।
अन्य विख्यात कविय ं की उत्क
ृ ष्ट रचनाओं का वचत्रीय वनरूपण
िी वकया जा चुका है। विशेष रूप से उमर
ख़य्याम की िगिग सिी रुबाइयाुँ, वजन् ं ने
संसार क
े अनेक वचत्रकार ं क प्रेररत वकया है;
उदाहरणाथव, सावक
व स काचाड ररयान द्वारा वचत्र
में रूपान्तररत (वचत्र ४) िह सिवख्यावतप्राप्त
रुबाई वजस में कवि कहता है वक यवद पेड़ की
छाुँि तिे उस क
े पास बस एक पुस्तक, एक
सुरापात्र ि एक र िी ह और पास में गीत गा
रही प्रेवमका बैठी ह त बीहड़ िी स्वगव समान
है ।
रागमािा क
े रूप में िारतीय कविता का
वचत्रकिा एिं संगीत क
े साथ एक अन खे संगम का उद्भि हुआ ।
इस में िारतीय शास्त्रीय संगीत क
े प्रत्येक मुख्य राग क नायक
ि उस की प्रेवमका (रावगनी) क नावयका मानते हुये इन क
े
प्रेम-प्रसंग ंपर सम्बक्तित राग ं पर गाये जाने िािे गीत ं क
वचत्र ं द्वारा दशावया गया; उदाहरणतयः िह रागमािा वचत्र
(वचत्र ५) वजस में राग िैरि पर गाये जाने िािे उस गीत का वचत्रण
है , वजस में िैरि की रावगनी मािश्री अपने नायक क
े विये शैया पर
कमि- दि वबछा रही है,अथिा िह वचत्र वचत्र ६) वजस में राग
मािकौंस पर गाये जाने िािे उस गीत का वचत्रण है वजस में
मािकौंस की प्रतीक्षा में उस की रावगनी की व्याक
ु िता का िणवन
वकया गया है ।
१६ि ीं शताब्द
चित्र ४
चित्र ३
चित्र ५ चित्र ६
5. वनश्चय ही, हर कविता में एक वचत्र वछपा रहता है वजसे वचत्रकार अपनी सूक्ष्म दृवष्ट से पहचान कर वचत्रफिक पर उिार देता है।
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वििरण प्रिान कविता की तुिना में वनश्चय ही िाि/विचार प्रिान कविता क वचत्र में रूपान्तररत करना
अविक जविि ि कवठन है; यह कविता क
े विचार ं/िाि ं क अनआच्छावदत रखते हुये उसे शारीररक आिरण देने जैसा
कवठन कायव है ज असािारण कल्पनात्मक क्षमता माुँगता है। वफर िी वचत्रकार ं ने इस प्रकार की कविताओं क िी
सफितापूिवक वचत्रपिि पर उतारा है; उदाहरणाथव रिीन्द्रनाथ ठाक
ु र की वनम्नविक्तखत कविताओं और उन में वनवहत िाि ं
क उजागर करते हािैण्ड की इमेल्डा आमक्तिस्ट क
े यह तैि-वचत्र (वचत्र७; वचत्र८) ।
वचत्र ७
वचत्र ८
बहुत क
ु छ था िह
ज मैं ने जीिन में नहीं पाया
क् ंवक
िह मेरी पहुुँच से बाहर था
उस से िी अविक ख या
क् ंवक
मैंने अपनी हथेवियाुँ नहीं ख िीं
हाय!
वफर िी हमें
छ ड़ देना ह ता है
उन सब क
और िह
चिे जाते हैं
❋