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1-मनोरंजन उद्योग: विकास एंि सरोकार
∑ मनोरंजन का बाज़ार
भारतीय मीडिया उद्योग और मनोरंजन उद्योग की वृद्धि दर अर्थव्यवस्र्ा की ववकास दर से भी अधिक लगभग दोगुनी है। उसका मुनाफा
उससे भी तेज गतत से बढ़ रहा है। आश्चयथ नह ं कक इन ददनों चढ़ते हुए शेयर बाजार में मीडिया और मनोरंजन उद्योग से जुडी हुई कं पतनयों
के शेयर देशी-ववदेशी तनवेशकों के लािले बने हुए हैं। बडे देशी कारपोरेट समूहों( जैसे अतनल अंबानी का ररलायंस समूह, टाटा समूह आदद )के
सार्-सार् दुतनया भर से बहुराष्ट्र य मीडिया कं पतनयां तेजी से फै लते-बढ़ते भारतीय मीडिया और मनोरंजन उद्योग( आगे से मीडिया
उद्योग )में अपनी दहस्सेदार और जगह बनाने के ललए खींची चल आ रह हैं।
जादहर है कक मीडिया उद्योग में कारोबार गततववधियां और हलचलें बहुत तेज हैं। नए ट वी चैनल खुल रहे हैं, चालू अखबारों के नए संस्करण
और कु छ नए अखबार शुरू हो रह हैं, एफएम रेडियो चैनलों के स्टेशन नए शहरों में पहुंच रहे हैं और इंटरनेट की लोकवियता छोटे शहरों और
जजला मुख्यालयों तक पहुंच गयी है। इन सब कारणों से अपनी सुर्खथयों के ललए मशहूर मीडिया उद्योग खुद खबरों की सुर्खथयों में है। इसका
कु छ अंदाजा आप इन तथ्यों और अनुमानों से लगा सकते हैं:
ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना( २००७-१२ )के दृजष्ट्टकोण पत्र के अनुसार, मीडिया उद्योग अर्थव्यवस्र्ा का एक ऐसा क्षेत्र है जजसने अर्थव्यवस्र्ा
की ववकास( जीिीपी )दर की तुलना में लगातार बेहतर िदशथन ककया है। योजना आयोग का अनुमान है कक यह उद्योग २०१० तक १९ िततशत
की कं पाउंि औसत वावर्षथक वृद्धि दर( सीएजीआर )से बढ़ेगा। आयोग के मुताबबक, इनमें से टेल ववजन उद्योग ४२ िततशत, िेस ३१ फीसद ,
कफल्म १९ िततशत, ववज्ञापन ३ िततशत, संगीत और लाइव मनोरंजन २ िततशत और रेडियो उद्योग एक िततशत की वृद्धि दर से आगे
बढ़ेगा। आयोग का कहना है कक मीडिया उद्योग एक ऐसा क्षेत्र है जहां मांग, आय की तुलना में ज्यादा तेजी से बढ रह है।
अंतराथष्ट्र य तनवेश, शोि और सलाहकार कं पनी िाइसवाटर हाउस कू पसथ की भारतीय मीडिया उद्योग पर जार एक ररपोटथ के अनुसार वर्षथ
२००४ में इस उद्योग का संपूणथ आकार ७ अरब िालर( लगभग ३३६ रुपए )र्ा। ररपोटथ का अनुमान है कक यह उद्योग १४ फीसद की कं पाउंि
सालाना औसत वृद्धि दर के सार् २००९ तक १३ अरब िालर( लगभग ६०० अरब रूपये )का हो जाएगा। कू पसथ की ररपोटथ के मुताबबक २०१५
तक वैजश्वक मीडिया और मनोरंजन उद्योग १.८ खरब िालर के चकरा देनेवाल उंचाई पर पहुंच जाएगा और उसका के न्द्र िीरे-िीरे एलशया की
ओर झुकने लगेगा। भारत के मीडिया उद्योग में यह संभावना है कक वह वैजश्वक मीडिया उद्योग का एक दहस्सा लगभग २०० अरब िालर
(१०००० अरब रुपए )अपने कब्जे में ले ले।
भारतीय तनवेश सलाहकार और क्रे डिट रेदटंग एजेंसी कक्रलसल की एक ररपोटथ के मुताबबक, मीडिया उद्योग के कु ल राजस्व में औसतन सालाना
१५.६ िततशत की दर से वृद्धि होगी और यह वर्षथ २००५ के ३६१ अरब रूपए से बढ़कर २०१० तक ७४४ अरब रूपए का हो जाएगा। एक और
अंतराथष्ट्र य तनवेश और शोि कं पनी जेपी मागथन की भारतीय मीडिया उद्योग पर जार एक ररपोटथ के अनुसार अके ले मनोरंजन उद्योग( िेस,
इंटरनेट और आउटिोर को छोडकर )औसतन सालाना १८ िततशत की वृद्धि दर से २००९ तक ४५४.५ अरब का राजस्व कमाने लगेगा। इस
ररपोटथ के अनुसार अगले तीन वर्षों में कु ल ववज्ञापन आय का ५० िततशत ट वी के दहस्से में चला जाएगा। इसके कारण अगले तीन वर्षों में
१०० और ट वी चैनल शुरू हो सकते हैं। अभी उपलब्ि ट वी चैनलों की संख्या लगभग १६० है।
इन तथ्यों से स्पष्ट्ट है कक भारतीय मीडिया उद्योग अब अपनी कु ट र और लघु उद्योग की छवव से बाहर आ रहा है। वह न लसफथ तेजी से बढ़
और फल-फू ल रहा है बजल्क बडी पूंजी भी उसकी ओर आकवर्षथत हो रह है। इसके सार् ह मीडिया उद्योग एक ववभाजजत, ववखंडित और
असंगदित कारोबार से तनकलकर कारपोरेट करण की ओर बढ़ रहा है। चाहे वह िेस हो या लसनेमा, रेडियो हो या ट वी या कफर इंटरनेट-हर
मीडिया में देशी-ववदेशी बडी पूंजी आ रह है और अपने सार् िबंिन, तकनीक, अंतवथस्तु, सांगितनक संरचना, िस्तुतत और माके दटंग के नए
तौर-तर के ले आ रह है।
इस िकक्रया में मीडिया उद्योग में कई नए और सफल उद्यमी उभर कर सामने आए हैं, कु छ पुराने उद्यमी संकट में हैं और कु छ ने मैदान
छोडकर हट जाना ह बेहतर समझा है। वे पुराने मीडिया घराने जो आज भी व्यावसातयक होड में बने हुए हैं, उनका िबंिकीय और संगितनक
ढांचा न लसफथ बहुत बदला है बजल्क वे भी कारपोरेट करण की राह पर है। कहने की जरूरत नह ं है कक १९९१ में शुरू हुए आधर्थक सुिारों के सार्
जजस तरह अर्थव्यवस्र्ा के अन्द्य क्षेत्रों में व्यापक बदलाव हुए हैं, उसी तरह मीडिया उद्योग भी वपछले िेढ़ दशक में एक व्यापक बदलाव से
गुजरा है। चेहरे के सार्-सार् उसके चररत्र में भी पररवतथन आया है। अपनी स्र्ानीय ववशेर्षताओ ं के सार् अब वह एक व्यापक वैजश्वक मीडिया
और मनोरंजन उद्योग का दहस्सा है।
तनश्चय ह , भारतीय मीडिया उद्योग और कारोबार में वपछले िेढ़ दशक में कई नई िवृवियां उभर हैं। मीडिया उद्योग का कोई क्षेत्र इस
पररवतथन से अछू ता नह ं बचा है। मीडिया उद्योग में उभर रह इन नयी िवृवियों की पहचान और पडताल के सार् उद्योग के ववलभन्द्न क्षेत्रों में
हुए बदलाव और ववकासक्रम को देखना ददलचस्प होगा।
मनोरंजन एंि मीडिया के अंत:संबंध / मीडिया उद्योग: प्रभाि एंि शमता / भूमंिलीकरण एंि िैश्विक पूूँजी
नब्बे के दशक में कदम रखने के सार् ह भारतीय मीडिया को बहुत बडी हद तक बदल हुई दुतनया का साक्षात्कार करना पडा। इस पररवतथन
के कें र में 1990-91 की तीन पररघटनाएँ र्ीं : मण्िल आयोग की लसफाररशों से तनकल राजनीतत, मंददर आंदोलन की राजनीतत
और भूमण्िल करण के तहत होने वाले आधर्थक सुिार।  इन तीनों ने लमल कर सावथजतनक जीवन के वामोन्द्मुख रुझानों को नेपथ्य में िके ल
ददया और दक्षक्षणपंर्ी लहजा मंच पर आ गया।  यह वह क्षण र्ा जब सरकार ने िसारण के क्षेत्र में 'खुला आकाश' की नीतत अपनानी शुरू की।
नब्बे के दशक में उसने न के वल िसार भारती तनगम बना कर आकाशवाणी और दूरदशथन को एक हद तक स्वायिता द , बजल्क स्वदेशी तनजी
पूँजी और ववदेशी पूँजी को िसारण के क्षेत्र में कदम रखने की अनुमतत भी द । विंट मीडिया में ववदेशी पूँजी को िवेश करने का रास्ता खोलने
में उसे कु छ वक्त लगा लेककन इक्कीसवीं सद के पहले दशक में उसने यह फै सला भी ले ललया। मीडिया अब पहले की तरह ‘लसंगल-सेक्टर’
यानी मुरण-ििान नह ं रह गया। उपभोक्ता-क्रांतत के कारण ववज्ञापन से होने वाल आमदनी में कई गुना बढ़ोतर हुई जजससे हर तरह के
मीडिया के ललए ववस्तार हेतु पूँजी की कोई कमी नह ं रह गयी। सेटेलाइट ट वी पहले के बबल ट वी के माध्यम से दशथकों तक पहुँचा जो
िौद्योधगकी और उद्यमशीलता की दृजष्ट्ट से स्र्ानीय पहलकदमी और िततभा का असािारण नमूना र्ा। इसके बाद आयी िीट एच
िौद्योधगकी जजसने समाचार िसारण और मनोरंजन की दुतनया को पूर तरह से बदल िाला। एफएम रेडियो चैनलों की कामयाबी से रेडियो का
माध्यम मोटर वाहनों से आक्रांत नागर संस्कृ तत का एक पयाथय बन गया। 1995 में भारत में इंटरनेट की शुरुआत हुई और इक्कीसवीं सद के
पहले दशक के अंत तक बडी संख्या में लोगों के तनजी और व्यावसातयक जीवन का एक अहम दहस्सा नेट के जररये संसाधित होने लगा। नयी
मीडिया िौद्योधगककयों ने अपने उपभोक्ताओ ं को ‘कनवजेंस’ का उपहार ददया जो जादू की डिबबया की तरह हार् में र्मे मोबाइल फोनके
जररये उन तक पहुँचने लगा। इन तमाम पहलुओ ं ने लमल कर मीडिया का दायरा इतना बडा और ववववि बना ददया कक उसके आगोश में
सावथजतनक जीवन के अधिकतर आयाम आ गये। इसे ‘मीडियास्फे यर’ जैसी जस्र्तत का नाम ददया गया। 
रेडियो ,वप्रंट और टेललविज़न
विंट मीडिया में ववदेशी पूँजी को इजाजत लमलने का पहला असर यह पडा कक ररयूतर, सीएनयेन और बीबीसी जैसे ववदेशी मीडिया संगिन
भारतीय मीडियास्फे यर की तरफ आकवर्षथत होने लगे। उन्द्होंने देखा कक भारत में श्रम का बाजार बहुत सस्ता है और अंतराष्ट्र य मानकों के
मुकाबले यहाँ वेतन पर अधिक से अधिक एक-चौर्ाई ह ख़चथ करना पडता है।  इसललए इन ग्लोबल संस्र्ाओ ं ने भारत को अपने मीडिया
िोजेक्टों के ललए आउटसोलसिंग का कें र बनाया भारतीय बाजार में मौजूद मीडिया के ववशाल और असािारण टेलेंट-पूल का ग्लोबल बाजार के
ललए दोहन होने लगा। दूसर तरफ भारत की िमुख मीडिया कम्पतनयाँ( टाइम्स ग्रुप, आनंद बाजार पबत्रका, जागरण, भास्कर, दहंदुस्तान
टाइम्स )वाल स्र ट जरनल, बीबीसी, फाइनेंलसयल टाइम्स, इंडिपेंिेंट न्द्यूज ऐंि मीडिया और ऑस्रेललयाई िकाशनों के सार् सहयोग-समझौते
करती नजर आयीं। घराना-संचाललत कम्पतनयों पर आिाररत मीडिया बबजनेस ने पूँजी बाजार में जा कर अपने-अपने इनीलशयल पजब्लक
ऑफररंग्स अर्ाथत ् आईपीओ िस्ताव जार करने शुरू कर ददये। इनकी शुरुआत पहले एनिीट वी, ट वी टुिे, जी टेललकफल्म्स जैसे दृश्य-मीडिया
ने की। इलेक्रॉतनक मीडिया के तजथ पर विंट-मीडिया ने भी पूँजी बाजार में छलाँग लगायी और अपने ववस्तार के ललए तनवेश हालसल करने में
जुट गया। ऐसा पहला ियास ‘द िेकन क्रॉतनकल’ ने ककया जजसकी सफलता ने विंट-मीडिया के ललए पूँजी का संकट काफी-कु छ हल कर ददया।
दूसर तरफ बाजारवाद के बढ़ते हुए िभाव और उपभोक्ता क्रांतत में आये उछाल के पररणामस्वरूप ववज्ञापन-जगत में ददन-दूनी-रात-चौगुनी
बढ़ोतर हुई। चाल स के दशक की शुरुआत में ववज्ञापन एजेंलसयों की संख्या चौदह से बीस के आस-पास रह होगी। 1979-80 में न्द्यूजपेपर
सोसाइट ( आईएनएस )की मान्द्यता िाप्त एजेंलसयों की संख्या के वल 168 तक ह बढ़ सकी र्ी। लेककन, भूमण्िल करण की िकक्रया ने अगले
दो दशकों में उनकी संख्या 750 कर द जो चार सौ करोड रुपये सालाना का िंिा कर रह र्ीं। 1997-98 में सबसे बडी पंरह ववज्ञापन
एजेंलसयों ने ह कु ल 4,105.58 करोड रुपये के बबल काटे। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कक उपभोक्ता-क्रांतत का चक्का ककतनी तेजी से
घूम रहा र्ा। ववज्ञापन की रंगीन और मोहक हवाओ ं पर सवार हो कर दूर-दूर तक फै लते उपभोग के संदेशों ने उच्च वगथ, उच्च-मध्यम वगथ,
समूचे मध्य वगथ और मजदूर वगथ के ख़ुशहाल होते हुए महत्त्वाकांक्षी दहस्से को अपनी बाँहों में समेट ललया। मीडिया का ववस्तार ववज्ञापनों में
हुई जबरदस्त बढ़ोतर के बबना सम्भव नह ं र्ा।
वप्रंट-मीडिया और रेडियो ववज्ञापनों को उतना असरदार कभी नह ं बना सकता र्ा जजतना ट वी ने बनाया। ट वी का िसार भारत में देर से
अवश्य हुआ, लेककन एक बार शुरुआत होने पर उसने मीडिया की दुतनया में पहले से स्र्ावपत मुदरत-माध्यम को जल्द ह व्यावसातयक रूप से
असुरक्षाग्रस्त कर ददया। इस िकक्रया में के बबल और िीट एच के योगदान का उल्लेख करना आवश्यक है। के बबल ट वी का िसार और सफलता
भारतीयों की उद्यमी िततभा का जोरदार नमूना है। सरकार के पास चूँकक ककसी सुसंगत संचार नीतत का अभाव र्ा इसललए नब्बे के दशक की
शुरुआत में बहुमंजजल इमारतों में रहने वाल मध्यवगीय और तनम्न-मध्यवगीय आबाददयों में कु छ उत्साह और चतुर लोगों ने अपनी तनजी
पहलकदमी पर क्लोज सरककट टेललववजन िसारण का िबन्द्ि ककया जजसका कें र एक सेंरल कं रोल रूम हुआ करता र्ा। इन लोगों ने वीडियो
प्लेयरों के जररये भारतीय और ववदेशी कफल्में ददखाने की शुरुआत की। सार् में दशथकों को मनोरंजन की चौबीस घंटे चलने वाल खुराक देने
वाले ववदेशी-देशी सेटेलाइट चैनल भी देखने को लमलते र्े। जनवर , 1992 में के बबल नेटवकथ के पास के वल 41 लाख ग्राहक र्े। लेककन के वल
चार साल के भीतर 1996 में यह संख्या बानवे लाख हो गयी। अगले साल तक पूरे देश में ट वी वाले घरों में से 31 िततशत घरों में के बबल
िसारण देखा जा रहा र्ा। सद के अंत तक बडे आकार के गाँवों और कस्बों के ट वी दशथकों तक के बबल की पहुँच हो चुकी र्ी। के बबल और
उपग्रह य ट वी चैनलों की लोकवियता देख कर िमुख मीडिया कम्पतनयों ने ट वी कायथक्रम-तनमाथण के व्यापार में छलाँग लगा द । वे पजब्लक
और िाइवेट ट वी चैनलों को कायथक्रमों की सप्लाई करने लगे।
स्पष्ट्ट है कक के बबल और िीट एच के कदम तभी जम सकते र्े, जब पहले पजब्लक( सरकार )और िाइवेट( तनजी पूँजी के स्वालमत्व में )
टेललववजन िसारण में हुई वृद्धि ने जमीन बना द हो। 1982 में ददल्ल एलशयाि के माफथ त रंगीन ट वी के कदम पडते ह भारत में ट वी
रांसमीटरों की संख्या तेजी से बढ़ । पजब्लक ट वी के िसारण नेटवकथ दूरदशथन ने नौ सौ रांसमीटरों और तीन ववलभन्द्न सेटेलाइटों की मदद से
देश के 70 िततशत भौगोललक क्षेत्र को और 87 % आबाद को अपने दायरे में ले ललया( पंरह साल में 230 फीसद की वृद्धि)। उसका मुख्य
चैनल िीिी-वन तीस करोड लोगों( यानी अमेररका की आबाद से भी अधिक )तक पहुँचने का दावा करने लगा। िाइवेट ट वी िसारण के बबल
और िीट एच के द्वारा अपनी पहुँच लगातार बढ़ा रहा है। लगभग सभी ग्लोबल ट वी नेटवकथ अपनी बल पर या स्र्ानीय पाटथनरों के सार्
अपने िसारण का ववस्तार कर रहे हैं। भारतीय चैनल भी पीछे नह ं हैं और उनके सार् रात-ददन िततयोधगता में लगे हुए हैं। अंग्रेजी और दहंद
के चैनलों के सार्-सार् क्षेत्रीय भार्षाओ ं( ववशेर्षकर दक्षक्षण भारतीय )के मनोरंजन और न्द्यूज चैनलों की लोकवियता और व्यावसातयक
कामयाबी भी उल्लेखनीय है। सरकार की दूरसंचार नीतत इन मीडिया कम्पतनयों को इजाजत देती है कक वे सेटेलाइट के सार् सीिे अपललंककं ग
करके िसारण कर सकते हैं। अब उन्द्हें अपनी सामग्री ववदेश संचार तनगम( वीएसएनयेल )के रास्ते लाने की मजबूर का सामना नह ं करना
पडता। 
इन्टरनेट
अगस्त, 1995 से नवम्बर, 1998 के बीच सरकार संस्र्ा ववदेश संचार तनगम लललमटेि (वीएसएनयेल )द्वारा ह इंटरनेट सेवाएँ मुहैया करायी
जाती र्ीं। यह संस्र्ा कलकिा, बम्बई, मरास और नयी ददल्ल जस्र्त चार इंटरनैशनल टेललकम्युतनके शन गेटवेज के माध्यम से काम करती
र्ी। नैशनल इंफोमेदटक्स सेंटर (एनआईसीनेट )और एजुके शनल ऐंि ररसचथ नेटवकथ ऑफ द डिपाटथमेंट ऑफ इलेक्रॉतनक्स( ईआरएनयीट )
कु छ ववशेर्ष िकार के 'क्लोज़्ि यूजर ग्रुप्स' को ये सेवाएँ िदान करते र्े। ददसम्बर, 1998 में दूरसंचार ववभाग ने बीस िाइवेट ऑपरेटरों को
आईएसपी लाइसेंस िदान करके इस क्षेत्र का तनजीकरण कर ददया। 1999 तक सरकार के तहत चलने वाले महानगर टेललफोन तनगम सदहत
116 आईएसपी कम्पतनयाँ सकक्रय हो चुकी र्ीं। के बबल सववथस देने वाले भी इंटरनेट उपलब्ि करा रहे र्े।
जैसे-जैसे बीएसएनएल ने अपना शुल्क घटाया, इंटरनेट सेवाएँ सस्ती होती चल गयीं। देश भर में इंटरनेट कै फे ददखने लगे। जुलाई, 1999 तक
भारत में 114,062 इंटरनेट होस््स की पहचान हो चुकी र्ी। इनकी संख्या में 94 िततशत की दर से बढ़ोतर दजथ की गयी। नयी सद में कदम
रखते ह सारे देश में कम्प्यूटर बूम की आहटें सुनी जाने लगीं। पसथनल कम्प्यूटरों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी और सार् ह इंटरनेट
ियोक्ताओ ं की संख्या भी। ई-कॉमसथ की भूलम तैयार होने लगी और बैंकों ने उसे िोत्सादहत करना शुरू ककया। देश के िमुख अख़बार ऑन
लाइन संस्करण िकालशत करने लगे। ववज्ञापन एजेंलसयाँ भी अपने उत्पादों को नेट पर बेचने लगीं। नेट ने व्यजक्तगत जीवन की क्वाललट में
एक नये आयाम का समावेश ककया। रेलवे और हवाई जहाज के दटकट बुक कराने से लेकर घर में ल क होती छत को दुरुस्त करने के ललए नेट
की मदद ल जाने लगी। नौकर ददलाने वाल और शाद-ब्याह संबंिी वेबसाइ्स अत्यंत लोकविय साबबत हुईं। वर-विु खोजने में इंटरनेट एक
बडा मददगार साबबत हुआ। सोशल नेटवककिं ग साइ्स के सहारे नेट आिाररत तनजी ररश्तों की दुतनया में नये रूपों का समावेश हुआ।
मीडिया एंि उद्योग(संक्षिप्त आंकड़े)
भारत में मीडिया और मनोरंजन उद्योग में टेललववजन ,विंट ,एंव कफल्म ,तो शालमल है सार् ह यह अलग अलग रूपों में भी यह जुडता रहा
है |जैसा की इसमें रेडियो ,संगीत ,आउटिोर ववज्ञापन एसोलशएसन ,एनीमेशन ,गेलमंग ,ववजुअल इफे क्ट ,और इन्द्टरनेट ववज्ञापन जैसे खंि
शालमल है |भारत के मनोरंजन उद्योग ने वपछले दो दशकों में बहोत तेजी से बढोतर की है |एक राज्ये के स्वालमत्व वाले चैनल से दूरदशथन
0991के दशक में 011 से अधिक सकक्रय चैनल रहे है |9002 में ववश्व आधर्थक जस्तधर् में भती उपभोक्ताओ ं की बहुत महत्वपूणथ भूलमका रह
है |9002-9002 में ववश्व जहाँ आधर्थक मंद से जूझ रहा र्ा वाह भारत मंद से िभाववत नह ं र्ा |गत वर्षथ अधिक ववकास का िदशथन हुआ और
ये एक स्वास्थ्य गतत से जार रहा |तनजी सेक्टर और ववदेशी मीडिया एंव मनोरंजन से तनवेश की बढती दर से व्रद्धि मनोरंजन उद्योग के
बुतनयाद ढांचे में सुिार हुआ|
िाइस वाटरहाउस कू पसथ (CwP) की ताजा ररपोटथ के अनुसार भारततयों को अपने ियोज्य आय में लगातार व्रद्धि के अनुसार आने वाले वर्षो में
मनोरंजन पर बहुत अधिक खचथ करने की सम्भावना है |GPCK एंव IFPPF के सयुंक्त सवेक्षण के अनुसार भारत में मनोरंजन उद्योग में हर
साल 01% की बढ़ोतर हो रह है |9002 में 19.01 अरब िोलर का उद्योद जो की 0119 में 1515 रुपयों का र्ा और 0111 में ये 5151 अरब
रुवपयों का र्ा |भती ववज्ञापन उद्योग 0100 में 1011 करोड की बढ़ोतर के सार् 50011 करोड तक पहुंचा |जजसमे 0101 लसतम्बर तक 51%
तक बढ़ोतर हुए है |
मीडिया एंव समाज के बीच ववकास का तनरंतर सम्बन्द्ि वपछले 0 दशकों से बना हुआ है जजसके फलस्वरूप आज मीडिया और समाज के बीच
मनोरंजन उद्योग ने भी अपना अजस्तत्व बनाने में सफल हुआ है यह कारण है की वतथमान पररपेक्ष्य में उद्योग की भूलमका तनरंतर आगे
बढ़ते हुए जरूरत बन गयी है जैसे जैसे तकनीक का ववकास होता जा रहा है मीडिया का सवरूप बदलता जा रहा है |मनोरंजन की शैललयाँ बदल
गयी है इन्द्ह बदलती हुई मनोरंजन कक शैललयाँ ने मनोरंजन उद्योग को जनम ददया है |कनवजेंट मीडिया की ओर आज का युवा तेजी से
अग्रसर हो रहा है |वतथमान सवरूप में यह कहना गलत नह ं होगा के आज मीडिया एंव मनोरंजन उद्योग ने समाज को नए आयाम तक
पहुँचाया हैं|
आज मीडिया बाजार को लेकर भी भ्रम की जस्र्तत है। मीडिया उत्पाद, उपभोक्ता और ववज्ञापन उद्योग के संबंि अभी स्र्ातयत्व के स्तर पर
नह ं पहुंचे हैं। आज भले भी मीडिया के बाजार के ितत कोई साफ सुर्र सोच ववकलसत नह ं हो पायी है लेककन अभी एक बाजार है, इसे मापने
के जो पैमाने हैं ववज्ञापन उद्योग इससे ह िभाववत होता है। इस बाजार को हधर्याने की होड में इंफोटेंनमेंट नाम के नए मीडिया उत्पाद का
जन्द्म हुआ है जजसमें सूचना के स्र्ान पर मनोरंजन को िार्लमकता लमलती है। इसके तहत सूचना की ववर्षयवस्तु बौद्धिक स्तर पर इतनी
हल्की और मनोरंजक बना द जाती है कक वह एक ववशाल जनसमुदाय को आकृ ष्ट्ट कर सके । अनेक अवसरों पर इस तरह के समाचार और
समाचार कायथक्रम पेश ककये जाते है कक वो लोगों का ध्यान खींच सकें भले ह साख और ववश्वसनीयता के स्तर पर वो कायथक्रम खरे ना उतरें।
इसके सार् ह 'पॉललदटकॉनटेंमेंट' की अविारणा का भी उदय हुआ है जजसमें राजनीतत और राजनीततक जीवन पर मनोरंजन उद्योग हावी हो
रहा है। राजनीतत और राजनीततक जीवन के ववर्षयों का चयन, इनकी व्याख्या और िस्तुतीकरण पर मनोरंजन के तत्व हावी होते चले जा रहे
हैं। कई मौकों पर बडे राजनीततक ववर्षयों को सतह रूप से और एक तमाशे के रूप में पेश ककया जाता है और आलोचनात्मक होने का आभास
भर पैदा कर वास्तववक आलोचना ककनारे कर द जाती है। कई अवसरों पर टेल ववजन के परदों पर िततद्वंद राजनीततज्ञों की बहसों का इस
दृजष्ट्ट से मूल्यांकन करें तो यह तमाशा ह अधिक नजर आता है। इन बहसों में वास्तववक ववर्षयों और ववलभन्द्न राष्ट्र य पररपेक्ष्य नदारद रहते
हैं। इस तरह के कायथक्रम बुतनयाद राजनीततक मदभेदों के स्र्ान पर तूतू-मैंमैं के मनोरंजन की ओर ह अधिक झुके होते हैं। इससे अनेक
बुतनयाद सवाल पैदा होते हैं और राजनीतत के इस सहतीकरण और एक हद तक ववकृ तीकरण से लोकतंत्र के ह्रास का आकलन करना जरुर
हो जाता है। राजनीतत और राजनीततक जीवन के सतह करण की इस िककया का सबसे बडा हधर्यार सेलेबिट संस्कृ तत का उदय है।
सेलेबिट ज का राजनीतत में िवेश हो रहा है जजससे राजनीततज्ञ सेलेबिट ज बन रहे हैं। सेलेबिट संस्कृ तत की वजह से राजनीततक ववमशथ के
संदभथ में एक नए टेल ववजन का उदय हुआ है। राष्ट्र य सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दों पर एक बडा कफल्मस्टार टेल ववजन के पदे पर आिे घंटे तक
यह बताता है कक क्या करना चादहए तो दूसर ओर राष्ट्र य पाटी का एक बडा नेता सेलेबिट बनने के ललए इसी राष्ट्र य सुरक्षा से संबद्ि ववर्षय
को इस तरह पेश करता है कक देखने वालों को मजा आ जाए और वह ववर्षय की तह में कम जाता है।
मुंबई पर आतंकवाद हमलों के उपरांत गंभीर समाचारों, राष्ट्र य सुरक्षा से संबद्ि ववर्षयों पर इस तरह का रुझान स्पष्ट्ट रूप से देखने को
लमला र्ा। आतंकवाद से देश ककस तरह लडे -इस बात की नसीहत वो लोग टेल ववजन पदे पर दे रहे र्े जजनका न तो सुरक्षा और न ह
आतंकवाद जैसे ववर्षयों पर ककसी तरह की समझ का कोई ररकॉिथ है ना इन ववर्षयों पर कभी कोई योगदान ददया है। इस तरह हम कह सकते हैं
कक एक नरम ( सॉफ्ट )मीडिया का उदय हुआ है जो कडे-किोर ववर्षयों का नरमी से पेश कर लोगों को ररझाना चाहता है और कु ल लमलाकर
इस तरह गंभीर राजनीततक ववमशथ का ह्रास हो रहा है। इसी दौरान लोकतांबत्रत राजनीतत के चररत्र में ह भार बुतनयाद पररवतथन आए और
इसी के अनुरूप मीडिया तंत्र के सार् इसके संबंि पुनरभावर्षत हुए। दूसरा ववश्वभर में आधर्थक ववकास से उपभोक्ताओ ं की नयी पीढ ी़का उदय
हुआ। इससे मीडिया के ललए नए बाजार पैदा हुए और इस बाजार में अधिक से अधिक दहस्सा पाने के ललए एक नई तरह की बाजार होड पैदा
हुई। इस बाजार होड के कारण मीडिया उन उत्पादों की ओर झुकने लगा जो व्यापक जनसमुदाय को आकृ ष्ट्ट कर सकें ।
ऐसा नह ं है कक समाचारों में मनोरंजन का तत्व पहले नह ं रहा है। समाचारों को रुधचकर बनाने के ललए इनमें हमेशा ह नाटकीयता के तत्वों
का समावेश ककया जाता रहा है। लेककन अधिकाधिक उपभोक्ताओ ं को आकृ ष्ट्ट करने की होड में समाचारों को मनोरंजन के तत्वों का ववस्तार
होता चला गया। तीसरा मीडिया के जबदथस्त ववस्तार और चौबीसों घंटे चलने वाले चैनलों के कारण भी समाचारों की मांग बेहद बढ़ गयी
जजसकी वजह से ऐसी अनेक घटनाएं भी समाचार बनने लगी जो मुख्यिारा की पत्रकाररता की कसौट पर खर नह ं उतरती र्ी। चौिा पहले
ववचारिारात्मक राजनीततक संघर्षथ , स्वतंत्रता और उसके बाद ववकास की आकांक्षा के दौर में मुख्यिारा समाचारों में लोगों की ददलचस्पी
होती र्ी। ववकास की गतत बढ़ने से ऐसे सामाजजक तबकों का उदय हुआ जो उन तमाम मुद्दों के ितत उदासीन होते चले गए जो इससे पहले
तक ज्वलंत माने जाते र्े। इसी के समानांतर अततररक्त क्रय शजक्त के समाजजक तबके के ववस्तार के कारण माडिया के व्यापार करण का
दौर भी शुरु हुआ। नए अततररक्त क्रय शजक्त वाला तबका ह बाजार र्ा और इस बाजार ने एक नया सामाजजक माहौल पैदा ककया जजसमें
'ज्वलंत' समाचार 'ज्वलंत' नह ं रह गए और एक तरह की अराजनीततकरण की िककया शुरु हुई। अराजनीततकरण की यह िककया समाचारों के
चयन को िभाववत करने लगी।
समाज के संपन्द्न तबकों में राजनीतत के ितत उदासीनता कोई नयी बात नह ं है। ववकास का एक स्तर हालसल करने के बाद इस तबके को इस
बात से कोई फकथ नह ं पडता कक सिा की बागिोर ककसके हार् में है जबतक कक राजनीतत ककसी बडे पररवतथन की ओर उन्द्मुख ना हो। इस
कारण भी समाचारों का मूल स्वाभाव और चररत्र िभाववत हुआ और व्यापार करण की गतत तेज हुई। लेककन व्यापार करण की इस िककया के
िभाव और पररणामों के संदभथ में ववकलसत और ववकासशील देशों के बीच एक बडा बुतनयाद अंतर है। ववकलसत देशों में व्यापार करण की यह
िककया तब शुरु हो गयी जब लगभग पूरा समाज ह ववकास का एक स्तर हालसल कर चुका र्ा। लेककन ववकासशील देशों में ववकास की यह
िककया तभी शुरु हो गयी जब समाज का एक छोटा सा तबका ह ववकलसत की श्रेणी में आ पाया र्ा। ववकासशील देशों में ववकसाशीलता के
दौर में मीडिया से सहभागी होने की अपेक्षा की जाती र्ी जो संभव नह ं हो पायी और व्यापार करण के कारण ववकास का एजेंिा काफी हद तक
ककनारे हो गया। ववकसशील समाज पर व्यापार करण की इस िककया के िभाव और पररणामों का सह मूल्यांकन कर पाना अभी संभव नह ं
ददखता लेककन इतना अवश्य कहा जा सकता है कक इसके नकारात्मक पररणाम सकारात्मक पररणामों की तुलना में कह ं अधिक व्यापक और
गहरे होने जा रहे हैं। अपेक्षतया बौद्धिक रूप से कु शल उपभोक्ता-नागररक और एक ववकासशील समाज के एक 'आम' नागररक पर एक ह
तरह के मीडिया उत्पाद का िभाव लभन्द्न होगा-कह ं यह मनोरंजन-रोमांच पैदा कर सकता है तो अंयत्र यह वैज्ञातनक सोच पर कु िाराघात कर
अंिववश्वास की जडों को गहरा कर सकता है।
मीडिया और मनोरंजन का ररश्ता भले ह नया नह ं है लेककन नया यह है कक इततहास में मीडिया इतना शजक्तशाल कभी नह ं र्ा और
मनोरंजन के उत्पाद लोकविय संस्कृ तत से उपजते र्े। आज शजक्तशाल मीडिया लोकविय संस्कृ तत के कु छ खास बबंदुओ ं के आिार पर
मनोरंजन की नई अविारणाएं पैदा कर रहा है और इनसे लोकविय संस्कृ तत के चररत्र और स्वरूप को बदलने में सक्षम हो गया है। यह िककया
आज इतनी तेज हो चुकी है कक यह कहना मुजश्कल हो गया है कक 'लोकविय' क्या है और 'संस्कृ तत' क्या है? यह कहना भी मुजश्कल हो गया है
कक इनका सृजन कहां से होता है और कौन करता है ? पर कफर भी अगर हम लोकविय संस्कृ तत को उसी रूप में स्वाकार कर लें जजस रूप में
हम इसे जानते र्े तो हम यह कह सकते हैं कक आज लोकविय संस्कृ तत समाचार और सामाचारों पर आिाररत कायथक्रमों पर हावी हो चुकी है
और गंभीर और सार्थक ववमशथ का स्र्ान संकु धचत हो गया है। इस िककया से तथ्य और कल्पना का एक घालमेल सा पैदा हो गया है जजससे
पैदा होने वाला समाचार उत्पाद अपने मूल स्वभाव से ह समाचार की अविारणा से भटका हुआ ददखायी पडता है।
नब्बे के दशक में एक नव-उदारवाद अर्थव्यवस्र्ा के उपरांत एक उपभोक्ता की राजनीतत और एक उपभोक्तावाद संस्कृ तत का उदय हुआ
और इसका सीिा असर समाचारों पर पडा। नव-उदारवाद अर्थव्यवस्र्ा में नए-नए उपभोक्ता उत्पाद बाजार में आए और इनको बेचने के ललए
नई-नई मीडिया तकनीककयों का इसतेमाल ककया गया जजसके पररणामस्वरूप 'सेलेबिट लाइफस्टाइल ' त्रकाररता का उदय हुआ। एक नया
मेरो बाजार का उदय हुआ और इसके अनुरूप नए-नए उपभोक्ता उत्पादों की बाढ़ सी आ गयी लेककन देर सवेर इस बाजार और इस बाजार की
मांग में िहराव आना स्वाभाववक है। इस जस्र्तत में बाजार और समाचार के संबंद्ि भी िभाववत होंगे। मेरो बाजार को हधर्याने की होड में
बाकी देश की अनदेखी की और एक हद तक तो स्वयं मेरो मध्यमवगथ की संवेदनाओ ं को भी िेस पहुंचायी। इस कारण एक राष्ट्र य पररपेक्ष्य में
समाचार एक तरह से स्वाभाववक स्र्ान से ववस्र्ावपत होकर शरणार्ी बन गए जजनका कोई पता-दिकाना नह ं बचा। समाचारों के ववर्षय
चयन, समाचार या घटनाओ ं को परखने की इनकी सोच और दृजष्ट्टकोण के पैमाने और मानदंि बेमानी हो गए इसके पररणामस्वरूप आज
ककसी एक खास ददन एक उपभोक्त-नागररक को इस बात का भ्रम होता है कक देश-दुतनया की महत्वपूणथ घटनाएं कौन सी है? परंपरागत रूप
से मीडिया एक ऐसा बौद्धित माध्यम होता र्ा जो लोगों को यह भी बताता र्ा कक कौन सी घटनाएं उनके जीवन से सरोकार रखती हैं और
उनके ललए महत्वपूणथ है। तब समाचारों को नापने-परखने के कु छ सवथमान्द्य मानक होते र्े जो आज काफी हद तक ववलुप्त से हो गए हैं और
एक उपभोक्ता-नागररक समाचारों के समुर में गोते खाकर कभी िफु जल्लत होता है, कभी तनराश होता है और कभी इतना भ्रलमत होता है कक
समझ ह नह ं पाता कक आर्खर हो क्या रहा है ?
2-मनोरंजन उद्योग के शेत्र
रेडियो
रेडियो िसारण की शुरुआत
रेडियो शब्द की उत्पवि लैदटन शब्द रेडियस से हुई है जजसका अर्थ 'रे' इस शब्द को 02 वीं शताब्द में अन्द्य वायरलेस तकनीक
से रेडियो को अलग करने के ललए उपयोग में लाया गया।
24 ददसंबर 1906 की शाम कनािाई वैज्ञातनक रेधगनाल्ि फे सेंिेन ने जब अपना वॉयललन बजाया और अटलांदटक महासागर में तैर
रहे तमाम जहाजों के रेडियो ऑपरेटरों ने उस संगीत को अपने रेडियो सेट पर सुना, वह दुतनया में रेडियो िसारण की शुरुआत
र्ी। इससे पहले जगद श चन्द्र बसु ने भारत में तर्ा गुल्येल्मो माकोनी ने सन 1900में इंग्लैंि से अमर का बेतार संदेश भेजकर
व्यजक्तगत रेडियो संदेश भेजने की शुरुआत कर द र्ी, पर एक से अधिक व्यजक्तयों को एकसार् संदेश भेजने या िॉिकाजस्टंग
की शुरुआत 1906 में फे सेंिेन के सार् हुई। ल द फोरेस्ट और चाल्सथ हेरॉल्ि जैसे लोगों ने इसके बाद रेडियो िसारण के ियोग
करने शुरु ककए। तब तक रेडियो का ियोग लसफथ नौसेना तक ह सीलमत र्ा। 1917 में िर्म ववश्व युद्ि की शुरुआत के बाद
ककसी भी गैर फौजी के ललये रेडियो का ियोग तनवर्षद्ि कर ददया गया।
भारत में रेडियो
1927 तक भारत में भी ढेरों रेडियो क्लबों की स्र्ापना हो चुकी र्ी। 1936 में भारत में सरकार ‘इम्पेररयल रेडियो ऑफ
इंडिया’ की शुरुआत हुई जो आजाद के बाद ऑल इंडिया रेडियो या आकाशवाणी बन गया। 1939 में द्ववतीय ववश्व युद्ि की
शुरुआत होने पर भारत में भी रेडियो के सारे लाइसेंस रद्द कर ददए गए और रांसमीटरों को सरकार के पास जमा करने के
आदेश दे ददए गए। नर मन विंटर उन ददनों बॉम्बे टेजक्नकल इंस्ट ्यूट बायकु ला के विंलसपल र्े। उन्द्होंने रेडियो इंजीतनयररंग की
लशक्षा पाई र्ी। लाइसेंस रद्द होने की ख़बर सुनते ह उन्द्होंने अपने रेडियो रांसमीटर को खोल ददया और उसके पुजे अलग अलग
जगह पर छु पा ददए। इस बीच गांिी जी ने अंग्रेजों भारत छोिो का नारा ददया। गांिी जी समेत तमाम नेता 9 अगस्त 1942 को
धगरफ़्तार कर ललए गए और रेडियो पर पाबंद लगा द गई। कांग्रेस के कु छ नेताओ ं के अनुरोि पर नर मन विंटर ने अपने
रांसमीटर के पुजे कफर से एकजुट ककया। माइक जैसे कु छ सामान की कमी र्ी जो लशकागो रेडियो के माललक नानक मोटवानी
की दुकान से लमल गई और मुंबई के चौपाट इलाक़ से 27 अगस्त 1942 को नेशनल कांग्रेस रेडियो का िसारण शुरु हो गया।
रेडियो का ववकास एवं सामाजजक दातयत्व
सामाजजक दातयत्व और जन सेवा िसारण रेडियो की ववशेर्षताएं रह हैं। रेडियो स्टेशनों के सार् -सार् िाइमर चैनल द्वारा िदान
की जाने वाल सेवाएं देश के जनमानस का एक महत्वपूणथ अंग बन चुकी हैं। रेडियो ज्ञानवघथन के सार् मनोरंजन भी िदान करता
है और लोगों की जीवन शैल को समृद्ि बनाने के ललए जानकार उपलब्घ कराता है तर्ा अपनी सेवाओ ं में ववलशष्ट्ट तर्ा
सामान्द्य दोनों ह िकार के वगों के दहतों को घ्यान में रखने का ियास करता है।
ऐसा माना जा रहा र्ा कक स्वतंत्रता िाजप्त के बाद ववकास का चक्का तेजी से घूमने लगेगा और सभी को समान अवसर िाप्त हो
सकें गे, जजसमें रेडियो की महत्वपूणथ भूलमका सामने आती है जजसके तहत रेडियो को ये जजम्मेदार द जाती है की वह ववलभन्द्न
सरकार , गैर सरकार एवं सावथजतनक दहत से जुडे तथ्यों, नीतत एवं योजनाओ ं के बारे में जानकार जनता तक पहुंचाने का
महत्वपूणथ कायथ करेंगा। इस तरह से लोकतांबत्रक व्यवस्र्ा में आम लोगों की भागीदार सुतनजश्चत हो सके गी और जनता अपने
अधिकारों के ितत सचेत होने लगेगी ।
सामाजजक वपछडेपन का सबसे बडा कारण सूचना एवं जानकार का अभाव होता है। यह कारण है कक ज्ञान को शजक्त माना गया
है। रेडियो सूचना एवं समाचार िसार का माध्यम बनकर जागरुकता का िचार -िसार करता है और इस तरह से सामाजजक मुद्दो
को लेकर रेडियो की महत्वपूणथ जजम्मेदार सामने आती है ।
यह बात स्र्ावपत की गई है कक भारत गांवों में बसता है और देश की कु ल 70 िततशत आबाद ग्रामीण इलाकों में रहती है
। आिुतनक संचार माध्यमों की जब कु ल पहुंच की आकाशवाणी .है आता पहले सबसे जजक्र का रेडियो तब-तब है होती चचाथ जब-
के जनसंख्या 99.18 िततशत तक है. इस ललहाज से तमाम जनसंचार माध्यमों का दायरा बढ़ने के बादजूद ग्रामीण श्रोताओ ं तक
रेडियो की पहुंच अधिक है और उसे सुना जाता है तीन लसफथ ललए के इलाकों ग्रामीण में वर्षथभर ने आकाशवाणी भी कफर मगर .
औसतन आिाररत गांव यानी कायथक्रम 0.57 फीसद िोग्राम िसाररत ककए ।
वपछले कु छ वर्षों में रेडियो के क्षेत्र में तनजी एफएम चैनलों का ववस्तार हुआ हैहै वगथ श्रोता अपना इनका ., जो शहरों में रहता है .
वह की देश में ऐसे .आती नह ं आबाद ग्रामीण में दायरे के चैनलों एफएम इन 70 फीसद जनसंख्या जो गांवों में रहती है
उसकी सूचना को लेकर तनभथरता रेडियो आक(ााशवाणी रूप के िसारक कलो राष्ट्र य से ललहाज इस .है जाती बढ़ पर )
में रेडियो सभी वगथ के लोगों को सशक्त बनाने के ललए जजम्मेदार है, मगर यह तभी मुमककन है जब सामाजजक दातयत्व को
ध्यान में रखकर रेडियो अपनेिसाररत ककए जाने वाले कायथक्रमों को तैयार करे. चूंकक इसकी पहुंच देश की अधिकतम आबाद तक
है,
ऐसे में बतौर रेडियो इसकी तस्वीर अपने कायथक्रमों के जररए देशभर में मौजूद सभी समुदायों, समूहों, जाततयों एवं वगीय स्तर
पर ववभाजजत समाज के अलभव्यजक्त की बननी चादहए. मगर ऐसा हो नह ं रहा है. ‘बहुजन दहताय, बहुजन सुखाय’ के तहत
आकाशवाणी जो कायथक्रम िसाररत कर रहा है, वह लक्ष्यों को हालसल करने के ललए नाकाफी हैं.।
रेडियो सामाजजक कायथक्रमों का पररचय एवं रूपरेखा
िमुख रेडियो िसारक आकाशवाणी की होम सववथस में 299 चैनल हैं, जो 23 भार्षाओ ं और 146 बोललयों में कायथक्रम िसाररत
करते हैं. एक सवेक्षण में आकाशवाणी के समाचार िभाग का जायजा ललया गया कक वह जजन ववर्षय वस्तुओ ं पर कायथक्रम तैयार
कर रहा है, उससे लोकतांबत्रक उद्देश्यों को पूरा कर पाना मुमककन है की नह ं । इसको लेकर जो सवाल पैदा हुआ वह यह
की ककसान, दललत, आददवासी, वपछडे और अल्पसंख्यक जैसे वंधचत समाजों के मसलों पर ककतने कायथक्रम बनते और िसाररत
होते हैं, जवाब लसफऱ है. रेडियो के कायथक्रमों का अवलोकन करें तो इसकी अनुपजस्र्तत साफ नजर आती है । आकाशवाणी में
आयोजजत कायथक्रमों के ववर्षय वस्तुओ ं में ककसान, दललत और आददवासी-वपछडे व अल्पसंख्यक समाज के सवालों का अभाव
ददखता है, जबकक िसार भारती बहुजन श्रोता की दहतैर्षी होने का दावा पेश करती है । बहरहाल, ऑल इंडिया रेडियो ने 2011 के
दौरान सामतयकी, स्पॉटलाइट, न्द्यूज एनालललसस, मनी टॉक, समाचार चचाथ, कं र वाइि और करेंट अफे यसथ के तहत 527 कायथक्रम
िसाररत ककएनवंबर सात पर मुद्दे के जातत अनुसूधचत इनमें मगर . 2011 को लसफथ एक कायथक्रम ‘सरकार नौकररयों में बढ़ती
दललत आददवासी अधिकाररयों की संख्या’ को िस्तुत ककया गया2 औसतन को वगथ इस मतलब ..91 तरजीह के लायक समझा
गया ।इसी तरह आकाशवाणी के कायथक्रम तैयार करने वालों को आददवासी सवाल नह ं सूझे, जबकक यह समाज देश में सबसे
संकटग्रस्त समाज है जो अपने अजस्तत्व पर चौतरफा हमले का सामना कर रहा है लेकर को समस्या आददवासी ने आकाशवाणी .
धचं की उत्र्ान के मदहलाओ ं अलावा इसके । ककए नह ं िसाररत कायथक्रम कोईताओ ं को लेकर वर्षथ 2011 के दौरान महज आि
कायथक्रम िस्तुत ककए गएऔसतन संबंधित से मदहलाओ ं यानी . 1.5फीसद कायथक्रम िसाररत ककए गए में कायथक्रमों इन .
। है ददखा जोर ज्यादा का आकाशवाणी पर आरक्षण ललए उनके और सुरक्षा की मदहलाओ ं चचाथओ में के वल शहर मदहलाओ ं की
सुरक्षा के ितत धचंता होती है, ग्रामीण मदहलाएं इस दायरे में नह ं आतीं जजसका उदाहरण अभी हाल के ददनों में दालमनी मुद्दे पर
रेडियो के समाचार या िोग्राम में साफ पता चलता है । इसी तरह सामाजजक न्द्याय और शोर्षण से संबंधित 12 िोग्राम पेश ककए
गएऔर मजदूर खेततहर . श्रलमक वगथ के कायथक्रमों को एक श्रेणी में रखा गया और उनके ललए सात कायथक्रम पेश ककए गए ये .
संबंधित से लशक्षा । हैं आते नजर धगदथ-इदथ के योजनाओ ं सरकार होकर न कें दरत पर श्रलमकों सीिे कायथक्रम 12कायथक्रम िसाररत
ककए गए, लेककन इन कायथक्रमों का रुख लशक्षक्षत और सझदार भरा समाज बनाने के बजाय कु शल कामागार तैयार करने का है .
ढांच के पढ़ाई तकनीकी तय द्वारा सरकार में कायथक्रमों ज्यादातर पर बातचीत िसाररत की गई है ।
आधर्थक 163 30.93
पयाथवरण 25 4.74
लशक्षा 14 2.65
िदेश 22 4.17
अंतरराष्ट्र य मसले 97 18.40
स्वास्थ्य 24 4.55
ग्रामीण इलाके 03 0.57
दललत 01 0.19
आददवासी 00 00
वपछडा 00 00
अल्पसंख्यक 03 0.57
श्रलमक/खेततहर मजदूर 07 1.32
मदहला 08 1.52
युवा 05 0.95
खेल 12 2.28
राजनीतत 89 16.88
सामाजजक न्द्याय 12 2.28
ववज्ञान/िोद्यौधगकी 24 4.55
अन्द्य 18 3.04
कु ल 527 100
उपयुथक्त आंकडों के आिार पे यह स्पष्ट्ट हो जाता है की रेडियो समाज के ितत तर्ा उनके उिरदातयत्व के ितत ककतना सचेत है
। इस आकिे की सारणी पे अगर ध्यान दें तो देखेंगे की समाज के गंभीर ववर्षयों
जैसे आधर्थक,राजनैततक, लशक्षा, बेरोजगार , सामाजजक न्द्याय आदद मुद्दो को लेकर रेडियो जो की संचार के माध्यमों में सबसे
मजबूत एवं पुराना माध्यम है वह अपने अब तक के सफर में ककतना खरा उतरा या ककतना सफल हो पाया । हा यहाँ यह जरूर
ददखता है की रेडियो ने इन सामाजजक मुद्दो को अपना ववर्षय जरूर बनाया परंतु यह लसफथ ववर्षय या िस्तुतत तक ह सीलमत रहा
इसने ककसी बदलाव की चेष्ट्िा नह ं की और जो की भी तो वह आंलसक रूप से, मैं इसके द्वारा ककए बृहद ववकास को आंलसक
कहने की िृष्ट्िता इस ललए कर पाया क्यूंकक इसने अपनी क्षमता के अनुरूप या कह सकते है की सबसे बडे श्रोता समूह का
फायदा उिाने में सफल नह ं हो पाया । इन सब के बाद भी रेडियो ने अपने कु छ सामाजजक योगदान के बल पे अपने अमरता
को िमार्णत ककया है जो संचार के क्षेत्र का सबसे अहम मीडियम बन के उभरा । रेडियो ने जजन क्षेत्रों में अपने योगदान को
अववष्ट्मणी बनाया वह इस िकार है ।
कृ वर्ष का क्षेत्र – इस क्षेत्र में रेडियो ने सबसे ज्यादा तर्ा महत्व पूणथ योगदान ददया । चुकक रेडियो के आगमन के समय सबसे
जादा संकट खाद्य पैदावार तर्ा संरक्षण को लेकर र्ी याइसे में इसकी जजम्मेदार बनती र्ी की वो समाज को कृ वर्ष से संबजन्द्ित
समस्याओ ं से अवगत कराकर उनसे तनजात पाने का उपाय बताएं । इन मुद्दो को लेकर रेडियो ने अनेक चचाथओ ं एवं नाटकों के
जररये लोगों को जागरूक ककया जजसमें कृ वर्ष संध्या, खेत खललहान, ककसान भैया, ककसान की समस्या आदद कु छ िोग्राम
महत्वपूणथ रहे जजसने ककसानों की समस्या को वाकई दूर ककया ।
रोजगार – सन र्ी रहती हहापोह सी अजीब एक में लोगों लेकर को रोजगार पहले से 9112 जजसका मुख्य कारण जानकार का
आभाव र्ा जजसे रेडियो ने समझा ह नह बजल्क इससे लोगों को काफी हद तक तनजात भी ददलाया । अर्ाथत रेडियो के द्वारा
यह संभव हो पाया की लोग अपने पसंद की पढ़ाई पढ़ सकें और उससे जुडे रोजगार की जानकार पा सकें ।
मदहला ववमशथ – मदहलाओ ं की जस्र्तत को लेकर रेडियो ने काफी ददलचस्पी ददखाई और इसके उत्र्ान के ललए अनेक कायथ ककए ।
रेडियो ने मदहलाओ ं की तात्काललक जस्र्तत को लेकर हमेशा तत्परता एवं गंभीरता ददखते हुये समाज की उन मदहलाओ ं को
सजम्मललत करके एक बहस करता र्ा और उन मुद्दो पर मदहलाओ ं को उपाय भी बताने का काम रेडियो बखूबी तनभाता रहा ।
मनोरंजन – रेडियो अगर समाज के गंभीर मुद्दों को उिाता है तो वह ं समाज को मनोरंजजत करने के भी सारे उपाय करता है
जजसके तहत अनेक रेडियो के कायथक्रम चलना शुरू ककया र्ा जजसमें भूले बबसरे गीत, सखी सहेल ,हैलो फरमाइस, आदद गीतों के
िोग्राम के द्वारा रेडियो ने समाज के ितत अपने जजम्मेदार को बखूबी तनभाया ।
अर्ाथत इन सब आिार पे जब हम देखते हैं तो पता चलता है कक जहां रेडियो ने समाज के गंभीर से गंभीर मुद्दो को उिाया तो
वह ं समाज को एवं अपने श्रोताओ ं को मनोरंजजत करने के जजम्मेदार को भी बखूबी तनभाया ।
तनष्ट्कर्षथ
आज ववश्व भर में 1 लाख से अधिक रेडियो स्टेशन हैं और आने वाले ददनों में इसमें और ववस्तार की संभावना है। एफएम
रेडियो के तीसरे फे ज की मंजूर के बाद इसके ववस्तार की संभावना और भी बढ़ गई है।
एफएम के आने के बाद एक तरफ जहां रेडियो का व्यावसातयकरण ज्यादा हो
गया है तो वह ं यह सूचना एवं मनोरंजन का भी मजबूत माध्यम बनकर उभरा है। अधिक से अधिक रेडियो स्टेशनों की स्र्ापना
की जा रह है और इसके माध्यम से श्रोताओ ं को समाचारों के सार्नने को लमल रहा है। अब सार् संगीत एवं अन्द्य कायथक्रम सु-
नए कायथक्रमों के माध्यम से श्रोताओ ं को बांिे रखते हैं। हाल तो यहां तक आ पहुंचा है कक आप कह ं अपनी -रेडियो जॉकी नए
गाडी से जा रहे हैं और रास्ते में यातायात जाम है यातन कक रैकफक की समस्याहै तो ववलभन्द्न एफएम रेडियो के माध्यम से
आपको इसकी सूचना लमल जायेगी कक फलां रास्ते से आज रैकफक जाम है या उस रास्ते को िायवटथ कर ददया गया है। यातन कक
आपके मनोरंजन के सार्सार् सामुदातयक -सार् आपकी यात्रा को भी यह आसान बना देता है। अब तो एफएम रेडियो के सार्-
रेडियो का जमाना आ गया है और सरकार भी इसके िचारिसार के ललए हर स्तर पर सहयोग कर रह है।-क्योंकक आज भी दूर-
दराज के क्षेत्र में रेडियो ह एकमात्र सािन है जजससे समाचार और मनोरंजन के सार् सार् सामाजजक सरोकार की जरूरतों को
पूरा ककया जा सकता है । अर्ाथत इन सब आिार पर जब हम रेडियो और उसके सामाजजक दातयत्व पर ववचार करते हैं तो हम
देखते हैं कक अन्द्य संचार माध्यम की अपेक्षा रेडियो ज्यादा िभावी है तर्ा इसकी ज्यादा लोगों तक पहुँच भी है जो इसको और
भी जजम्मेदार का आभास कराता है और इस जजम्मेदार को तनभाने में रेडियो ने अब तक अपनी महती भूलमका तनभाई है ।
लेककन कु छ और सुिार के सार् रेडियो को और ववकास का मौका देना चादहए जजससे एक स्वक्ष समाज का तनमाथण हो सके ।
फिल्म
लसनेमा देखने का शौक़ लगभग सभी को होता है । हर वगथ और समुदाय के लोग लसनेमा देखते हैं। यूँ तो समूचे ववश्व में यह
लोकविय है लेककन हमारे देश में तो यह ववशेर्ष रूप से िचललत इसललए भी है कक एक ओर तो यह कई दशक तक मनोरंजन का
सबसे सस्ता सािन रहा है, दूसर ओर कर्ाओ ं के ितत लगाव हमारे यहाँ पुरातन काल से चला आ रहा है । अतः स्वाभाववक ह
र्ा कक जब पुस्तकों में वर्णथत कर्ाएं चलती -कफरती तसवीरों के रूप में पदे पर आईं तो भारतीय जनता ने उन्द्हें हार्ोंहार् ललया ।
आज हमारे यहाँ लसनेमा ह नह ं, लसनेमा का संगीत तर्ा उसके कलाकार भी इस जस्र्तत में हैं कक उनकी लोकवियता को कोई भी
चुनौती नह ं दे सकता है ।
हजारों लोगों को रोजगार देने वाला उद्योग होने के बावजूद यह भारतीय लसनेमा का दुभाथग्य ह कहा जाएगा कक इसे औपचाररक
रूप से उद्योग का दजाथ लमलने में दशकों लग गए । यह एक पररयोजना आिाररत उद्योग है क्योंकक ित्येक चलधचत्र (कफल्म)
अपने आप में एक पृर्क पररयोजना(िोजेक्ट)होता है । कफल्म-तनमाथण में य ाोगदान दे रहे सभी व्यजक्त िायः कई पररयोजनाओ ं
(कफल्मों)पर एक सार् काम कर रहे होते हैं । कफल्म का तनमाथता ह उसके नफे-नुकसान का भागी होता है । अन्द्य सभी लोग
अपना-अपना पाररश्रलमक लेकर अलग हो जाते हैं ।
कफल्म -तनमाथण की िकक्रया को तनम्नललर्खत चरणों में बांटक र समझा जा सकता है :
अ .ककानक एिं फएल्मांकन :
चूंकक हमारे यहाँ ढाई -तीन घंटे लंबी कफल्में बनती हैं जजन्द्हें फीचर कफल्में कहा जाता है , इसललए उनकी रूपरेखा एक कर्ानक पर
आिाररत होती है जजसका एक िारम्भ, ववकास तर्ा चरम (क्लाइमेक्स)होता है । कर्ानक का आिार कोई पुस्तक भी हो सकती
है और कोई संक्षक्षप्त ववचार (आइडिया)भी । लेककन पूर लंबाई की कफल्म बनाने के ललए मूल ववचार का ववस्तार अर्वा पुस्तक
की कहानी का यर्ेष्ट्ट अनुकू लन(एिेप्टेशन)आवश्यक होता है। इस उद्देश्य से कहानी का दृश्यों में बांटकर पुनलेखन ककया जाता
है । ऐसी कहानी को तकनीकी शब्दावल में पटकर्ा (स्क्रीनप्ले)कहते हैं । पटकर्ा के ववलभन्द्न दृश्यों को भी कफल्मांकन हेतु
बहुत-से भागों(शॉ्स)में ववभाजजत कर ददया जाता है तर्ा ित्येक दृश्य तर्ा ित्येक शॉट को एक ववलशष्ट्ट क्रम संख्या द जाती
है ।
कफल्मांकन को बोलचाल की भार्षा में शूदटंग कहते हैं जजसमें कफल्म का कला -तनदेशक(आटथ िायरेक्टर) , अलभनय करने वाले
कलाकार, छायाकार (कै मरामैन अर्वा लसनेमेटोग्राफर)तर्ा इन सबके हपर कफल्म का मुख्य तनदेशक सजम्मललत होते हैं ।
कफल्म का तनदेशक उसके तनमाथण -दल(यूतनट)का सवाथधिक महत्वपूर ा्ण अंग होता है जो पदे पर िस्तुत होने जा रह कफल्म के
ित्येक भाग तर्ा पहलू की अधग्रम कल्पना (ववजुअलाइज)कर लेता है तर्ा अपनी इस कल्पना के आिार पर ह कफल्म के एक-
एक दृश्य को मूतथरूप देता है । कफल्म की रचना से जुडी हर बात में उसका ित्यक्ष या परोक्ष हस ्तक्षेप होता है । पटकर्ा के
आिार पर कलाकार कर्ानक के पात्रों का अलभनय करते हैं जजसका छायांकन कफल्म का छायाकार अपने मूवी -कै मरे से तनदेशक
के आदेशों के अनुरूप करता है । िायः दृश्य की पृष्ट्िभूलम के अनुरूप स्टूडियो में सैट लगाकर शूदटंग की जाती है । यह कायथ
कफला्म के कला -तनदेशक द्वारा ककया जाता है । भारत में कफल्म-तनमाथण के दो िमुख कें र मुंबई तर्ा चेन्द्नई हैं जहाँ अनेक
स्टूडियो बने हुए हैं । कई बार कफल्म के बहुत-से भाग की शूदटंग बाहर स्र्लों(आउटिोर लोके शन्द्स)पर भी होती है ।
शूदटंग हर शॉट की अलग की जाती है तर्ा वह ककस शॉट की है, इसका ध्यान रखने के ललए दृश्य संख्या तर्ा शॉट संख्या को
एक प्ट पर ललखकर पहले उसे शूट ककया जाता है जजसे तकनीकी शब्दावल में क्लैप देना कहते हैं । जब तक तनदेशक
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मीडिया एंव मनोरंजन उद्योग

  • 1. 1-मनोरंजन उद्योग: विकास एंि सरोकार ∑ मनोरंजन का बाज़ार भारतीय मीडिया उद्योग और मनोरंजन उद्योग की वृद्धि दर अर्थव्यवस्र्ा की ववकास दर से भी अधिक लगभग दोगुनी है। उसका मुनाफा उससे भी तेज गतत से बढ़ रहा है। आश्चयथ नह ं कक इन ददनों चढ़ते हुए शेयर बाजार में मीडिया और मनोरंजन उद्योग से जुडी हुई कं पतनयों के शेयर देशी-ववदेशी तनवेशकों के लािले बने हुए हैं। बडे देशी कारपोरेट समूहों( जैसे अतनल अंबानी का ररलायंस समूह, टाटा समूह आदद )के सार्-सार् दुतनया भर से बहुराष्ट्र य मीडिया कं पतनयां तेजी से फै लते-बढ़ते भारतीय मीडिया और मनोरंजन उद्योग( आगे से मीडिया उद्योग )में अपनी दहस्सेदार और जगह बनाने के ललए खींची चल आ रह हैं। जादहर है कक मीडिया उद्योग में कारोबार गततववधियां और हलचलें बहुत तेज हैं। नए ट वी चैनल खुल रहे हैं, चालू अखबारों के नए संस्करण और कु छ नए अखबार शुरू हो रह हैं, एफएम रेडियो चैनलों के स्टेशन नए शहरों में पहुंच रहे हैं और इंटरनेट की लोकवियता छोटे शहरों और जजला मुख्यालयों तक पहुंच गयी है। इन सब कारणों से अपनी सुर्खथयों के ललए मशहूर मीडिया उद्योग खुद खबरों की सुर्खथयों में है। इसका कु छ अंदाजा आप इन तथ्यों और अनुमानों से लगा सकते हैं: ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना( २००७-१२ )के दृजष्ट्टकोण पत्र के अनुसार, मीडिया उद्योग अर्थव्यवस्र्ा का एक ऐसा क्षेत्र है जजसने अर्थव्यवस्र्ा की ववकास( जीिीपी )दर की तुलना में लगातार बेहतर िदशथन ककया है। योजना आयोग का अनुमान है कक यह उद्योग २०१० तक १९ िततशत की कं पाउंि औसत वावर्षथक वृद्धि दर( सीएजीआर )से बढ़ेगा। आयोग के मुताबबक, इनमें से टेल ववजन उद्योग ४२ िततशत, िेस ३१ फीसद , कफल्म १९ िततशत, ववज्ञापन ३ िततशत, संगीत और लाइव मनोरंजन २ िततशत और रेडियो उद्योग एक िततशत की वृद्धि दर से आगे बढ़ेगा। आयोग का कहना है कक मीडिया उद्योग एक ऐसा क्षेत्र है जहां मांग, आय की तुलना में ज्यादा तेजी से बढ रह है। अंतराथष्ट्र य तनवेश, शोि और सलाहकार कं पनी िाइसवाटर हाउस कू पसथ की भारतीय मीडिया उद्योग पर जार एक ररपोटथ के अनुसार वर्षथ २००४ में इस उद्योग का संपूणथ आकार ७ अरब िालर( लगभग ३३६ रुपए )र्ा। ररपोटथ का अनुमान है कक यह उद्योग १४ फीसद की कं पाउंि सालाना औसत वृद्धि दर के सार् २००९ तक १३ अरब िालर( लगभग ६०० अरब रूपये )का हो जाएगा। कू पसथ की ररपोटथ के मुताबबक २०१५ तक वैजश्वक मीडिया और मनोरंजन उद्योग १.८ खरब िालर के चकरा देनेवाल उंचाई पर पहुंच जाएगा और उसका के न्द्र िीरे-िीरे एलशया की ओर झुकने लगेगा। भारत के मीडिया उद्योग में यह संभावना है कक वह वैजश्वक मीडिया उद्योग का एक दहस्सा लगभग २०० अरब िालर (१०००० अरब रुपए )अपने कब्जे में ले ले। भारतीय तनवेश सलाहकार और क्रे डिट रेदटंग एजेंसी कक्रलसल की एक ररपोटथ के मुताबबक, मीडिया उद्योग के कु ल राजस्व में औसतन सालाना १५.६ िततशत की दर से वृद्धि होगी और यह वर्षथ २००५ के ३६१ अरब रूपए से बढ़कर २०१० तक ७४४ अरब रूपए का हो जाएगा। एक और अंतराथष्ट्र य तनवेश और शोि कं पनी जेपी मागथन की भारतीय मीडिया उद्योग पर जार एक ररपोटथ के अनुसार अके ले मनोरंजन उद्योग( िेस, इंटरनेट और आउटिोर को छोडकर )औसतन सालाना १८ िततशत की वृद्धि दर से २००९ तक ४५४.५ अरब का राजस्व कमाने लगेगा। इस ररपोटथ के अनुसार अगले तीन वर्षों में कु ल ववज्ञापन आय का ५० िततशत ट वी के दहस्से में चला जाएगा। इसके कारण अगले तीन वर्षों में १०० और ट वी चैनल शुरू हो सकते हैं। अभी उपलब्ि ट वी चैनलों की संख्या लगभग १६० है। इन तथ्यों से स्पष्ट्ट है कक भारतीय मीडिया उद्योग अब अपनी कु ट र और लघु उद्योग की छवव से बाहर आ रहा है। वह न लसफथ तेजी से बढ़ और फल-फू ल रहा है बजल्क बडी पूंजी भी उसकी ओर आकवर्षथत हो रह है। इसके सार् ह मीडिया उद्योग एक ववभाजजत, ववखंडित और असंगदित कारोबार से तनकलकर कारपोरेट करण की ओर बढ़ रहा है। चाहे वह िेस हो या लसनेमा, रेडियो हो या ट वी या कफर इंटरनेट-हर मीडिया में देशी-ववदेशी बडी पूंजी आ रह है और अपने सार् िबंिन, तकनीक, अंतवथस्तु, सांगितनक संरचना, िस्तुतत और माके दटंग के नए तौर-तर के ले आ रह है। इस िकक्रया में मीडिया उद्योग में कई नए और सफल उद्यमी उभर कर सामने आए हैं, कु छ पुराने उद्यमी संकट में हैं और कु छ ने मैदान छोडकर हट जाना ह बेहतर समझा है। वे पुराने मीडिया घराने जो आज भी व्यावसातयक होड में बने हुए हैं, उनका िबंिकीय और संगितनक ढांचा न लसफथ बहुत बदला है बजल्क वे भी कारपोरेट करण की राह पर है। कहने की जरूरत नह ं है कक १९९१ में शुरू हुए आधर्थक सुिारों के सार् जजस तरह अर्थव्यवस्र्ा के अन्द्य क्षेत्रों में व्यापक बदलाव हुए हैं, उसी तरह मीडिया उद्योग भी वपछले िेढ़ दशक में एक व्यापक बदलाव से गुजरा है। चेहरे के सार्-सार् उसके चररत्र में भी पररवतथन आया है। अपनी स्र्ानीय ववशेर्षताओ ं के सार् अब वह एक व्यापक वैजश्वक मीडिया और मनोरंजन उद्योग का दहस्सा है। तनश्चय ह , भारतीय मीडिया उद्योग और कारोबार में वपछले िेढ़ दशक में कई नई िवृवियां उभर हैं। मीडिया उद्योग का कोई क्षेत्र इस पररवतथन से अछू ता नह ं बचा है। मीडिया उद्योग में उभर रह इन नयी िवृवियों की पहचान और पडताल के सार् उद्योग के ववलभन्द्न क्षेत्रों में हुए बदलाव और ववकासक्रम को देखना ददलचस्प होगा। मनोरंजन एंि मीडिया के अंत:संबंध / मीडिया उद्योग: प्रभाि एंि शमता / भूमंिलीकरण एंि िैश्विक पूूँजी
  • 2. नब्बे के दशक में कदम रखने के सार् ह भारतीय मीडिया को बहुत बडी हद तक बदल हुई दुतनया का साक्षात्कार करना पडा। इस पररवतथन के कें र में 1990-91 की तीन पररघटनाएँ र्ीं : मण्िल आयोग की लसफाररशों से तनकल राजनीतत, मंददर आंदोलन की राजनीतत और भूमण्िल करण के तहत होने वाले आधर्थक सुिार।  इन तीनों ने लमल कर सावथजतनक जीवन के वामोन्द्मुख रुझानों को नेपथ्य में िके ल ददया और दक्षक्षणपंर्ी लहजा मंच पर आ गया।  यह वह क्षण र्ा जब सरकार ने िसारण के क्षेत्र में 'खुला आकाश' की नीतत अपनानी शुरू की। नब्बे के दशक में उसने न के वल िसार भारती तनगम बना कर आकाशवाणी और दूरदशथन को एक हद तक स्वायिता द , बजल्क स्वदेशी तनजी पूँजी और ववदेशी पूँजी को िसारण के क्षेत्र में कदम रखने की अनुमतत भी द । विंट मीडिया में ववदेशी पूँजी को िवेश करने का रास्ता खोलने में उसे कु छ वक्त लगा लेककन इक्कीसवीं सद के पहले दशक में उसने यह फै सला भी ले ललया। मीडिया अब पहले की तरह ‘लसंगल-सेक्टर’ यानी मुरण-ििान नह ं रह गया। उपभोक्ता-क्रांतत के कारण ववज्ञापन से होने वाल आमदनी में कई गुना बढ़ोतर हुई जजससे हर तरह के मीडिया के ललए ववस्तार हेतु पूँजी की कोई कमी नह ं रह गयी। सेटेलाइट ट वी पहले के बबल ट वी के माध्यम से दशथकों तक पहुँचा जो िौद्योधगकी और उद्यमशीलता की दृजष्ट्ट से स्र्ानीय पहलकदमी और िततभा का असािारण नमूना र्ा। इसके बाद आयी िीट एच िौद्योधगकी जजसने समाचार िसारण और मनोरंजन की दुतनया को पूर तरह से बदल िाला। एफएम रेडियो चैनलों की कामयाबी से रेडियो का माध्यम मोटर वाहनों से आक्रांत नागर संस्कृ तत का एक पयाथय बन गया। 1995 में भारत में इंटरनेट की शुरुआत हुई और इक्कीसवीं सद के पहले दशक के अंत तक बडी संख्या में लोगों के तनजी और व्यावसातयक जीवन का एक अहम दहस्सा नेट के जररये संसाधित होने लगा। नयी मीडिया िौद्योधगककयों ने अपने उपभोक्ताओ ं को ‘कनवजेंस’ का उपहार ददया जो जादू की डिबबया की तरह हार् में र्मे मोबाइल फोनके जररये उन तक पहुँचने लगा। इन तमाम पहलुओ ं ने लमल कर मीडिया का दायरा इतना बडा और ववववि बना ददया कक उसके आगोश में सावथजतनक जीवन के अधिकतर आयाम आ गये। इसे ‘मीडियास्फे यर’ जैसी जस्र्तत का नाम ददया गया।  रेडियो ,वप्रंट और टेललविज़न विंट मीडिया में ववदेशी पूँजी को इजाजत लमलने का पहला असर यह पडा कक ररयूतर, सीएनयेन और बीबीसी जैसे ववदेशी मीडिया संगिन भारतीय मीडियास्फे यर की तरफ आकवर्षथत होने लगे। उन्द्होंने देखा कक भारत में श्रम का बाजार बहुत सस्ता है और अंतराष्ट्र य मानकों के मुकाबले यहाँ वेतन पर अधिक से अधिक एक-चौर्ाई ह ख़चथ करना पडता है।  इसललए इन ग्लोबल संस्र्ाओ ं ने भारत को अपने मीडिया िोजेक्टों के ललए आउटसोलसिंग का कें र बनाया भारतीय बाजार में मौजूद मीडिया के ववशाल और असािारण टेलेंट-पूल का ग्लोबल बाजार के ललए दोहन होने लगा। दूसर तरफ भारत की िमुख मीडिया कम्पतनयाँ( टाइम्स ग्रुप, आनंद बाजार पबत्रका, जागरण, भास्कर, दहंदुस्तान टाइम्स )वाल स्र ट जरनल, बीबीसी, फाइनेंलसयल टाइम्स, इंडिपेंिेंट न्द्यूज ऐंि मीडिया और ऑस्रेललयाई िकाशनों के सार् सहयोग-समझौते करती नजर आयीं। घराना-संचाललत कम्पतनयों पर आिाररत मीडिया बबजनेस ने पूँजी बाजार में जा कर अपने-अपने इनीलशयल पजब्लक ऑफररंग्स अर्ाथत ् आईपीओ िस्ताव जार करने शुरू कर ददये। इनकी शुरुआत पहले एनिीट वी, ट वी टुिे, जी टेललकफल्म्स जैसे दृश्य-मीडिया ने की। इलेक्रॉतनक मीडिया के तजथ पर विंट-मीडिया ने भी पूँजी बाजार में छलाँग लगायी और अपने ववस्तार के ललए तनवेश हालसल करने में जुट गया। ऐसा पहला ियास ‘द िेकन क्रॉतनकल’ ने ककया जजसकी सफलता ने विंट-मीडिया के ललए पूँजी का संकट काफी-कु छ हल कर ददया। दूसर तरफ बाजारवाद के बढ़ते हुए िभाव और उपभोक्ता क्रांतत में आये उछाल के पररणामस्वरूप ववज्ञापन-जगत में ददन-दूनी-रात-चौगुनी बढ़ोतर हुई। चाल स के दशक की शुरुआत में ववज्ञापन एजेंलसयों की संख्या चौदह से बीस के आस-पास रह होगी। 1979-80 में न्द्यूजपेपर सोसाइट ( आईएनएस )की मान्द्यता िाप्त एजेंलसयों की संख्या के वल 168 तक ह बढ़ सकी र्ी। लेककन, भूमण्िल करण की िकक्रया ने अगले दो दशकों में उनकी संख्या 750 कर द जो चार सौ करोड रुपये सालाना का िंिा कर रह र्ीं। 1997-98 में सबसे बडी पंरह ववज्ञापन एजेंलसयों ने ह कु ल 4,105.58 करोड रुपये के बबल काटे। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कक उपभोक्ता-क्रांतत का चक्का ककतनी तेजी से घूम रहा र्ा। ववज्ञापन की रंगीन और मोहक हवाओ ं पर सवार हो कर दूर-दूर तक फै लते उपभोग के संदेशों ने उच्च वगथ, उच्च-मध्यम वगथ, समूचे मध्य वगथ और मजदूर वगथ के ख़ुशहाल होते हुए महत्त्वाकांक्षी दहस्से को अपनी बाँहों में समेट ललया। मीडिया का ववस्तार ववज्ञापनों में हुई जबरदस्त बढ़ोतर के बबना सम्भव नह ं र्ा। वप्रंट-मीडिया और रेडियो ववज्ञापनों को उतना असरदार कभी नह ं बना सकता र्ा जजतना ट वी ने बनाया। ट वी का िसार भारत में देर से अवश्य हुआ, लेककन एक बार शुरुआत होने पर उसने मीडिया की दुतनया में पहले से स्र्ावपत मुदरत-माध्यम को जल्द ह व्यावसातयक रूप से असुरक्षाग्रस्त कर ददया। इस िकक्रया में के बबल और िीट एच के योगदान का उल्लेख करना आवश्यक है। के बबल ट वी का िसार और सफलता भारतीयों की उद्यमी िततभा का जोरदार नमूना है। सरकार के पास चूँकक ककसी सुसंगत संचार नीतत का अभाव र्ा इसललए नब्बे के दशक की शुरुआत में बहुमंजजल इमारतों में रहने वाल मध्यवगीय और तनम्न-मध्यवगीय आबाददयों में कु छ उत्साह और चतुर लोगों ने अपनी तनजी पहलकदमी पर क्लोज सरककट टेललववजन िसारण का िबन्द्ि ककया जजसका कें र एक सेंरल कं रोल रूम हुआ करता र्ा। इन लोगों ने वीडियो प्लेयरों के जररये भारतीय और ववदेशी कफल्में ददखाने की शुरुआत की। सार् में दशथकों को मनोरंजन की चौबीस घंटे चलने वाल खुराक देने
  • 3. वाले ववदेशी-देशी सेटेलाइट चैनल भी देखने को लमलते र्े। जनवर , 1992 में के बबल नेटवकथ के पास के वल 41 लाख ग्राहक र्े। लेककन के वल चार साल के भीतर 1996 में यह संख्या बानवे लाख हो गयी। अगले साल तक पूरे देश में ट वी वाले घरों में से 31 िततशत घरों में के बबल िसारण देखा जा रहा र्ा। सद के अंत तक बडे आकार के गाँवों और कस्बों के ट वी दशथकों तक के बबल की पहुँच हो चुकी र्ी। के बबल और उपग्रह य ट वी चैनलों की लोकवियता देख कर िमुख मीडिया कम्पतनयों ने ट वी कायथक्रम-तनमाथण के व्यापार में छलाँग लगा द । वे पजब्लक और िाइवेट ट वी चैनलों को कायथक्रमों की सप्लाई करने लगे। स्पष्ट्ट है कक के बबल और िीट एच के कदम तभी जम सकते र्े, जब पहले पजब्लक( सरकार )और िाइवेट( तनजी पूँजी के स्वालमत्व में ) टेललववजन िसारण में हुई वृद्धि ने जमीन बना द हो। 1982 में ददल्ल एलशयाि के माफथ त रंगीन ट वी के कदम पडते ह भारत में ट वी रांसमीटरों की संख्या तेजी से बढ़ । पजब्लक ट वी के िसारण नेटवकथ दूरदशथन ने नौ सौ रांसमीटरों और तीन ववलभन्द्न सेटेलाइटों की मदद से देश के 70 िततशत भौगोललक क्षेत्र को और 87 % आबाद को अपने दायरे में ले ललया( पंरह साल में 230 फीसद की वृद्धि)। उसका मुख्य चैनल िीिी-वन तीस करोड लोगों( यानी अमेररका की आबाद से भी अधिक )तक पहुँचने का दावा करने लगा। िाइवेट ट वी िसारण के बबल और िीट एच के द्वारा अपनी पहुँच लगातार बढ़ा रहा है। लगभग सभी ग्लोबल ट वी नेटवकथ अपनी बल पर या स्र्ानीय पाटथनरों के सार् अपने िसारण का ववस्तार कर रहे हैं। भारतीय चैनल भी पीछे नह ं हैं और उनके सार् रात-ददन िततयोधगता में लगे हुए हैं। अंग्रेजी और दहंद के चैनलों के सार्-सार् क्षेत्रीय भार्षाओ ं( ववशेर्षकर दक्षक्षण भारतीय )के मनोरंजन और न्द्यूज चैनलों की लोकवियता और व्यावसातयक कामयाबी भी उल्लेखनीय है। सरकार की दूरसंचार नीतत इन मीडिया कम्पतनयों को इजाजत देती है कक वे सेटेलाइट के सार् सीिे अपललंककं ग करके िसारण कर सकते हैं। अब उन्द्हें अपनी सामग्री ववदेश संचार तनगम( वीएसएनयेल )के रास्ते लाने की मजबूर का सामना नह ं करना पडता।  इन्टरनेट अगस्त, 1995 से नवम्बर, 1998 के बीच सरकार संस्र्ा ववदेश संचार तनगम लललमटेि (वीएसएनयेल )द्वारा ह इंटरनेट सेवाएँ मुहैया करायी जाती र्ीं। यह संस्र्ा कलकिा, बम्बई, मरास और नयी ददल्ल जस्र्त चार इंटरनैशनल टेललकम्युतनके शन गेटवेज के माध्यम से काम करती र्ी। नैशनल इंफोमेदटक्स सेंटर (एनआईसीनेट )और एजुके शनल ऐंि ररसचथ नेटवकथ ऑफ द डिपाटथमेंट ऑफ इलेक्रॉतनक्स( ईआरएनयीट ) कु छ ववशेर्ष िकार के 'क्लोज़्ि यूजर ग्रुप्स' को ये सेवाएँ िदान करते र्े। ददसम्बर, 1998 में दूरसंचार ववभाग ने बीस िाइवेट ऑपरेटरों को आईएसपी लाइसेंस िदान करके इस क्षेत्र का तनजीकरण कर ददया। 1999 तक सरकार के तहत चलने वाले महानगर टेललफोन तनगम सदहत 116 आईएसपी कम्पतनयाँ सकक्रय हो चुकी र्ीं। के बबल सववथस देने वाले भी इंटरनेट उपलब्ि करा रहे र्े। जैसे-जैसे बीएसएनएल ने अपना शुल्क घटाया, इंटरनेट सेवाएँ सस्ती होती चल गयीं। देश भर में इंटरनेट कै फे ददखने लगे। जुलाई, 1999 तक भारत में 114,062 इंटरनेट होस््स की पहचान हो चुकी र्ी। इनकी संख्या में 94 िततशत की दर से बढ़ोतर दजथ की गयी। नयी सद में कदम रखते ह सारे देश में कम्प्यूटर बूम की आहटें सुनी जाने लगीं। पसथनल कम्प्यूटरों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी और सार् ह इंटरनेट ियोक्ताओ ं की संख्या भी। ई-कॉमसथ की भूलम तैयार होने लगी और बैंकों ने उसे िोत्सादहत करना शुरू ककया। देश के िमुख अख़बार ऑन लाइन संस्करण िकालशत करने लगे। ववज्ञापन एजेंलसयाँ भी अपने उत्पादों को नेट पर बेचने लगीं। नेट ने व्यजक्तगत जीवन की क्वाललट में एक नये आयाम का समावेश ककया। रेलवे और हवाई जहाज के दटकट बुक कराने से लेकर घर में ल क होती छत को दुरुस्त करने के ललए नेट की मदद ल जाने लगी। नौकर ददलाने वाल और शाद-ब्याह संबंिी वेबसाइ्स अत्यंत लोकविय साबबत हुईं। वर-विु खोजने में इंटरनेट एक बडा मददगार साबबत हुआ। सोशल नेटवककिं ग साइ्स के सहारे नेट आिाररत तनजी ररश्तों की दुतनया में नये रूपों का समावेश हुआ। मीडिया एंि उद्योग(संक्षिप्त आंकड़े) भारत में मीडिया और मनोरंजन उद्योग में टेललववजन ,विंट ,एंव कफल्म ,तो शालमल है सार् ह यह अलग अलग रूपों में भी यह जुडता रहा है |जैसा की इसमें रेडियो ,संगीत ,आउटिोर ववज्ञापन एसोलशएसन ,एनीमेशन ,गेलमंग ,ववजुअल इफे क्ट ,और इन्द्टरनेट ववज्ञापन जैसे खंि शालमल है |भारत के मनोरंजन उद्योग ने वपछले दो दशकों में बहोत तेजी से बढोतर की है |एक राज्ये के स्वालमत्व वाले चैनल से दूरदशथन 0991के दशक में 011 से अधिक सकक्रय चैनल रहे है |9002 में ववश्व आधर्थक जस्तधर् में भती उपभोक्ताओ ं की बहुत महत्वपूणथ भूलमका रह है |9002-9002 में ववश्व जहाँ आधर्थक मंद से जूझ रहा र्ा वाह भारत मंद से िभाववत नह ं र्ा |गत वर्षथ अधिक ववकास का िदशथन हुआ और ये एक स्वास्थ्य गतत से जार रहा |तनजी सेक्टर और ववदेशी मीडिया एंव मनोरंजन से तनवेश की बढती दर से व्रद्धि मनोरंजन उद्योग के बुतनयाद ढांचे में सुिार हुआ| िाइस वाटरहाउस कू पसथ (CwP) की ताजा ररपोटथ के अनुसार भारततयों को अपने ियोज्य आय में लगातार व्रद्धि के अनुसार आने वाले वर्षो में मनोरंजन पर बहुत अधिक खचथ करने की सम्भावना है |GPCK एंव IFPPF के सयुंक्त सवेक्षण के अनुसार भारत में मनोरंजन उद्योग में हर
  • 4. साल 01% की बढ़ोतर हो रह है |9002 में 19.01 अरब िोलर का उद्योद जो की 0119 में 1515 रुपयों का र्ा और 0111 में ये 5151 अरब रुवपयों का र्ा |भती ववज्ञापन उद्योग 0100 में 1011 करोड की बढ़ोतर के सार् 50011 करोड तक पहुंचा |जजसमे 0101 लसतम्बर तक 51% तक बढ़ोतर हुए है | मीडिया एंव समाज के बीच ववकास का तनरंतर सम्बन्द्ि वपछले 0 दशकों से बना हुआ है जजसके फलस्वरूप आज मीडिया और समाज के बीच मनोरंजन उद्योग ने भी अपना अजस्तत्व बनाने में सफल हुआ है यह कारण है की वतथमान पररपेक्ष्य में उद्योग की भूलमका तनरंतर आगे बढ़ते हुए जरूरत बन गयी है जैसे जैसे तकनीक का ववकास होता जा रहा है मीडिया का सवरूप बदलता जा रहा है |मनोरंजन की शैललयाँ बदल गयी है इन्द्ह बदलती हुई मनोरंजन कक शैललयाँ ने मनोरंजन उद्योग को जनम ददया है |कनवजेंट मीडिया की ओर आज का युवा तेजी से अग्रसर हो रहा है |वतथमान सवरूप में यह कहना गलत नह ं होगा के आज मीडिया एंव मनोरंजन उद्योग ने समाज को नए आयाम तक पहुँचाया हैं| आज मीडिया बाजार को लेकर भी भ्रम की जस्र्तत है। मीडिया उत्पाद, उपभोक्ता और ववज्ञापन उद्योग के संबंि अभी स्र्ातयत्व के स्तर पर नह ं पहुंचे हैं। आज भले भी मीडिया के बाजार के ितत कोई साफ सुर्र सोच ववकलसत नह ं हो पायी है लेककन अभी एक बाजार है, इसे मापने के जो पैमाने हैं ववज्ञापन उद्योग इससे ह िभाववत होता है। इस बाजार को हधर्याने की होड में इंफोटेंनमेंट नाम के नए मीडिया उत्पाद का जन्द्म हुआ है जजसमें सूचना के स्र्ान पर मनोरंजन को िार्लमकता लमलती है। इसके तहत सूचना की ववर्षयवस्तु बौद्धिक स्तर पर इतनी हल्की और मनोरंजक बना द जाती है कक वह एक ववशाल जनसमुदाय को आकृ ष्ट्ट कर सके । अनेक अवसरों पर इस तरह के समाचार और समाचार कायथक्रम पेश ककये जाते है कक वो लोगों का ध्यान खींच सकें भले ह साख और ववश्वसनीयता के स्तर पर वो कायथक्रम खरे ना उतरें। इसके सार् ह 'पॉललदटकॉनटेंमेंट' की अविारणा का भी उदय हुआ है जजसमें राजनीतत और राजनीततक जीवन पर मनोरंजन उद्योग हावी हो रहा है। राजनीतत और राजनीततक जीवन के ववर्षयों का चयन, इनकी व्याख्या और िस्तुतीकरण पर मनोरंजन के तत्व हावी होते चले जा रहे हैं। कई मौकों पर बडे राजनीततक ववर्षयों को सतह रूप से और एक तमाशे के रूप में पेश ककया जाता है और आलोचनात्मक होने का आभास भर पैदा कर वास्तववक आलोचना ककनारे कर द जाती है। कई अवसरों पर टेल ववजन के परदों पर िततद्वंद राजनीततज्ञों की बहसों का इस दृजष्ट्ट से मूल्यांकन करें तो यह तमाशा ह अधिक नजर आता है। इन बहसों में वास्तववक ववर्षयों और ववलभन्द्न राष्ट्र य पररपेक्ष्य नदारद रहते हैं। इस तरह के कायथक्रम बुतनयाद राजनीततक मदभेदों के स्र्ान पर तूतू-मैंमैं के मनोरंजन की ओर ह अधिक झुके होते हैं। इससे अनेक बुतनयाद सवाल पैदा होते हैं और राजनीतत के इस सहतीकरण और एक हद तक ववकृ तीकरण से लोकतंत्र के ह्रास का आकलन करना जरुर हो जाता है। राजनीतत और राजनीततक जीवन के सतह करण की इस िककया का सबसे बडा हधर्यार सेलेबिट संस्कृ तत का उदय है। सेलेबिट ज का राजनीतत में िवेश हो रहा है जजससे राजनीततज्ञ सेलेबिट ज बन रहे हैं। सेलेबिट संस्कृ तत की वजह से राजनीततक ववमशथ के संदभथ में एक नए टेल ववजन का उदय हुआ है। राष्ट्र य सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दों पर एक बडा कफल्मस्टार टेल ववजन के पदे पर आिे घंटे तक यह बताता है कक क्या करना चादहए तो दूसर ओर राष्ट्र य पाटी का एक बडा नेता सेलेबिट बनने के ललए इसी राष्ट्र य सुरक्षा से संबद्ि ववर्षय को इस तरह पेश करता है कक देखने वालों को मजा आ जाए और वह ववर्षय की तह में कम जाता है। मुंबई पर आतंकवाद हमलों के उपरांत गंभीर समाचारों, राष्ट्र य सुरक्षा से संबद्ि ववर्षयों पर इस तरह का रुझान स्पष्ट्ट रूप से देखने को लमला र्ा। आतंकवाद से देश ककस तरह लडे -इस बात की नसीहत वो लोग टेल ववजन पदे पर दे रहे र्े जजनका न तो सुरक्षा और न ह आतंकवाद जैसे ववर्षयों पर ककसी तरह की समझ का कोई ररकॉिथ है ना इन ववर्षयों पर कभी कोई योगदान ददया है। इस तरह हम कह सकते हैं कक एक नरम ( सॉफ्ट )मीडिया का उदय हुआ है जो कडे-किोर ववर्षयों का नरमी से पेश कर लोगों को ररझाना चाहता है और कु ल लमलाकर इस तरह गंभीर राजनीततक ववमशथ का ह्रास हो रहा है। इसी दौरान लोकतांबत्रत राजनीतत के चररत्र में ह भार बुतनयाद पररवतथन आए और इसी के अनुरूप मीडिया तंत्र के सार् इसके संबंि पुनरभावर्षत हुए। दूसरा ववश्वभर में आधर्थक ववकास से उपभोक्ताओ ं की नयी पीढ ी़का उदय हुआ। इससे मीडिया के ललए नए बाजार पैदा हुए और इस बाजार में अधिक से अधिक दहस्सा पाने के ललए एक नई तरह की बाजार होड पैदा हुई। इस बाजार होड के कारण मीडिया उन उत्पादों की ओर झुकने लगा जो व्यापक जनसमुदाय को आकृ ष्ट्ट कर सकें । ऐसा नह ं है कक समाचारों में मनोरंजन का तत्व पहले नह ं रहा है। समाचारों को रुधचकर बनाने के ललए इनमें हमेशा ह नाटकीयता के तत्वों का समावेश ककया जाता रहा है। लेककन अधिकाधिक उपभोक्ताओ ं को आकृ ष्ट्ट करने की होड में समाचारों को मनोरंजन के तत्वों का ववस्तार होता चला गया। तीसरा मीडिया के जबदथस्त ववस्तार और चौबीसों घंटे चलने वाले चैनलों के कारण भी समाचारों की मांग बेहद बढ़ गयी जजसकी वजह से ऐसी अनेक घटनाएं भी समाचार बनने लगी जो मुख्यिारा की पत्रकाररता की कसौट पर खर नह ं उतरती र्ी। चौिा पहले ववचारिारात्मक राजनीततक संघर्षथ , स्वतंत्रता और उसके बाद ववकास की आकांक्षा के दौर में मुख्यिारा समाचारों में लोगों की ददलचस्पी होती र्ी। ववकास की गतत बढ़ने से ऐसे सामाजजक तबकों का उदय हुआ जो उन तमाम मुद्दों के ितत उदासीन होते चले गए जो इससे पहले तक ज्वलंत माने जाते र्े। इसी के समानांतर अततररक्त क्रय शजक्त के समाजजक तबके के ववस्तार के कारण माडिया के व्यापार करण का दौर भी शुरु हुआ। नए अततररक्त क्रय शजक्त वाला तबका ह बाजार र्ा और इस बाजार ने एक नया सामाजजक माहौल पैदा ककया जजसमें
  • 5. 'ज्वलंत' समाचार 'ज्वलंत' नह ं रह गए और एक तरह की अराजनीततकरण की िककया शुरु हुई। अराजनीततकरण की यह िककया समाचारों के चयन को िभाववत करने लगी। समाज के संपन्द्न तबकों में राजनीतत के ितत उदासीनता कोई नयी बात नह ं है। ववकास का एक स्तर हालसल करने के बाद इस तबके को इस बात से कोई फकथ नह ं पडता कक सिा की बागिोर ककसके हार् में है जबतक कक राजनीतत ककसी बडे पररवतथन की ओर उन्द्मुख ना हो। इस कारण भी समाचारों का मूल स्वाभाव और चररत्र िभाववत हुआ और व्यापार करण की गतत तेज हुई। लेककन व्यापार करण की इस िककया के िभाव और पररणामों के संदभथ में ववकलसत और ववकासशील देशों के बीच एक बडा बुतनयाद अंतर है। ववकलसत देशों में व्यापार करण की यह िककया तब शुरु हो गयी जब लगभग पूरा समाज ह ववकास का एक स्तर हालसल कर चुका र्ा। लेककन ववकासशील देशों में ववकास की यह िककया तभी शुरु हो गयी जब समाज का एक छोटा सा तबका ह ववकलसत की श्रेणी में आ पाया र्ा। ववकासशील देशों में ववकसाशीलता के दौर में मीडिया से सहभागी होने की अपेक्षा की जाती र्ी जो संभव नह ं हो पायी और व्यापार करण के कारण ववकास का एजेंिा काफी हद तक ककनारे हो गया। ववकसशील समाज पर व्यापार करण की इस िककया के िभाव और पररणामों का सह मूल्यांकन कर पाना अभी संभव नह ं ददखता लेककन इतना अवश्य कहा जा सकता है कक इसके नकारात्मक पररणाम सकारात्मक पररणामों की तुलना में कह ं अधिक व्यापक और गहरे होने जा रहे हैं। अपेक्षतया बौद्धिक रूप से कु शल उपभोक्ता-नागररक और एक ववकासशील समाज के एक 'आम' नागररक पर एक ह तरह के मीडिया उत्पाद का िभाव लभन्द्न होगा-कह ं यह मनोरंजन-रोमांच पैदा कर सकता है तो अंयत्र यह वैज्ञातनक सोच पर कु िाराघात कर अंिववश्वास की जडों को गहरा कर सकता है। मीडिया और मनोरंजन का ररश्ता भले ह नया नह ं है लेककन नया यह है कक इततहास में मीडिया इतना शजक्तशाल कभी नह ं र्ा और मनोरंजन के उत्पाद लोकविय संस्कृ तत से उपजते र्े। आज शजक्तशाल मीडिया लोकविय संस्कृ तत के कु छ खास बबंदुओ ं के आिार पर मनोरंजन की नई अविारणाएं पैदा कर रहा है और इनसे लोकविय संस्कृ तत के चररत्र और स्वरूप को बदलने में सक्षम हो गया है। यह िककया आज इतनी तेज हो चुकी है कक यह कहना मुजश्कल हो गया है कक 'लोकविय' क्या है और 'संस्कृ तत' क्या है? यह कहना भी मुजश्कल हो गया है कक इनका सृजन कहां से होता है और कौन करता है ? पर कफर भी अगर हम लोकविय संस्कृ तत को उसी रूप में स्वाकार कर लें जजस रूप में हम इसे जानते र्े तो हम यह कह सकते हैं कक आज लोकविय संस्कृ तत समाचार और सामाचारों पर आिाररत कायथक्रमों पर हावी हो चुकी है और गंभीर और सार्थक ववमशथ का स्र्ान संकु धचत हो गया है। इस िककया से तथ्य और कल्पना का एक घालमेल सा पैदा हो गया है जजससे पैदा होने वाला समाचार उत्पाद अपने मूल स्वभाव से ह समाचार की अविारणा से भटका हुआ ददखायी पडता है। नब्बे के दशक में एक नव-उदारवाद अर्थव्यवस्र्ा के उपरांत एक उपभोक्ता की राजनीतत और एक उपभोक्तावाद संस्कृ तत का उदय हुआ और इसका सीिा असर समाचारों पर पडा। नव-उदारवाद अर्थव्यवस्र्ा में नए-नए उपभोक्ता उत्पाद बाजार में आए और इनको बेचने के ललए नई-नई मीडिया तकनीककयों का इसतेमाल ककया गया जजसके पररणामस्वरूप 'सेलेबिट लाइफस्टाइल ' त्रकाररता का उदय हुआ। एक नया मेरो बाजार का उदय हुआ और इसके अनुरूप नए-नए उपभोक्ता उत्पादों की बाढ़ सी आ गयी लेककन देर सवेर इस बाजार और इस बाजार की मांग में िहराव आना स्वाभाववक है। इस जस्र्तत में बाजार और समाचार के संबंद्ि भी िभाववत होंगे। मेरो बाजार को हधर्याने की होड में बाकी देश की अनदेखी की और एक हद तक तो स्वयं मेरो मध्यमवगथ की संवेदनाओ ं को भी िेस पहुंचायी। इस कारण एक राष्ट्र य पररपेक्ष्य में समाचार एक तरह से स्वाभाववक स्र्ान से ववस्र्ावपत होकर शरणार्ी बन गए जजनका कोई पता-दिकाना नह ं बचा। समाचारों के ववर्षय चयन, समाचार या घटनाओ ं को परखने की इनकी सोच और दृजष्ट्टकोण के पैमाने और मानदंि बेमानी हो गए इसके पररणामस्वरूप आज ककसी एक खास ददन एक उपभोक्त-नागररक को इस बात का भ्रम होता है कक देश-दुतनया की महत्वपूणथ घटनाएं कौन सी है? परंपरागत रूप से मीडिया एक ऐसा बौद्धित माध्यम होता र्ा जो लोगों को यह भी बताता र्ा कक कौन सी घटनाएं उनके जीवन से सरोकार रखती हैं और उनके ललए महत्वपूणथ है। तब समाचारों को नापने-परखने के कु छ सवथमान्द्य मानक होते र्े जो आज काफी हद तक ववलुप्त से हो गए हैं और एक उपभोक्ता-नागररक समाचारों के समुर में गोते खाकर कभी िफु जल्लत होता है, कभी तनराश होता है और कभी इतना भ्रलमत होता है कक समझ ह नह ं पाता कक आर्खर हो क्या रहा है ?
  • 6. 2-मनोरंजन उद्योग के शेत्र रेडियो रेडियो िसारण की शुरुआत रेडियो शब्द की उत्पवि लैदटन शब्द रेडियस से हुई है जजसका अर्थ 'रे' इस शब्द को 02 वीं शताब्द में अन्द्य वायरलेस तकनीक से रेडियो को अलग करने के ललए उपयोग में लाया गया। 24 ददसंबर 1906 की शाम कनािाई वैज्ञातनक रेधगनाल्ि फे सेंिेन ने जब अपना वॉयललन बजाया और अटलांदटक महासागर में तैर रहे तमाम जहाजों के रेडियो ऑपरेटरों ने उस संगीत को अपने रेडियो सेट पर सुना, वह दुतनया में रेडियो िसारण की शुरुआत र्ी। इससे पहले जगद श चन्द्र बसु ने भारत में तर्ा गुल्येल्मो माकोनी ने सन 1900में इंग्लैंि से अमर का बेतार संदेश भेजकर व्यजक्तगत रेडियो संदेश भेजने की शुरुआत कर द र्ी, पर एक से अधिक व्यजक्तयों को एकसार् संदेश भेजने या िॉिकाजस्टंग की शुरुआत 1906 में फे सेंिेन के सार् हुई। ल द फोरेस्ट और चाल्सथ हेरॉल्ि जैसे लोगों ने इसके बाद रेडियो िसारण के ियोग करने शुरु ककए। तब तक रेडियो का ियोग लसफथ नौसेना तक ह सीलमत र्ा। 1917 में िर्म ववश्व युद्ि की शुरुआत के बाद ककसी भी गैर फौजी के ललये रेडियो का ियोग तनवर्षद्ि कर ददया गया। भारत में रेडियो 1927 तक भारत में भी ढेरों रेडियो क्लबों की स्र्ापना हो चुकी र्ी। 1936 में भारत में सरकार ‘इम्पेररयल रेडियो ऑफ इंडिया’ की शुरुआत हुई जो आजाद के बाद ऑल इंडिया रेडियो या आकाशवाणी बन गया। 1939 में द्ववतीय ववश्व युद्ि की शुरुआत होने पर भारत में भी रेडियो के सारे लाइसेंस रद्द कर ददए गए और रांसमीटरों को सरकार के पास जमा करने के आदेश दे ददए गए। नर मन विंटर उन ददनों बॉम्बे टेजक्नकल इंस्ट ्यूट बायकु ला के विंलसपल र्े। उन्द्होंने रेडियो इंजीतनयररंग की लशक्षा पाई र्ी। लाइसेंस रद्द होने की ख़बर सुनते ह उन्द्होंने अपने रेडियो रांसमीटर को खोल ददया और उसके पुजे अलग अलग जगह पर छु पा ददए। इस बीच गांिी जी ने अंग्रेजों भारत छोिो का नारा ददया। गांिी जी समेत तमाम नेता 9 अगस्त 1942 को धगरफ़्तार कर ललए गए और रेडियो पर पाबंद लगा द गई। कांग्रेस के कु छ नेताओ ं के अनुरोि पर नर मन विंटर ने अपने रांसमीटर के पुजे कफर से एकजुट ककया। माइक जैसे कु छ सामान की कमी र्ी जो लशकागो रेडियो के माललक नानक मोटवानी की दुकान से लमल गई और मुंबई के चौपाट इलाक़ से 27 अगस्त 1942 को नेशनल कांग्रेस रेडियो का िसारण शुरु हो गया। रेडियो का ववकास एवं सामाजजक दातयत्व सामाजजक दातयत्व और जन सेवा िसारण रेडियो की ववशेर्षताएं रह हैं। रेडियो स्टेशनों के सार् -सार् िाइमर चैनल द्वारा िदान की जाने वाल सेवाएं देश के जनमानस का एक महत्वपूणथ अंग बन चुकी हैं। रेडियो ज्ञानवघथन के सार् मनोरंजन भी िदान करता है और लोगों की जीवन शैल को समृद्ि बनाने के ललए जानकार उपलब्घ कराता है तर्ा अपनी सेवाओ ं में ववलशष्ट्ट तर्ा सामान्द्य दोनों ह िकार के वगों के दहतों को घ्यान में रखने का ियास करता है। ऐसा माना जा रहा र्ा कक स्वतंत्रता िाजप्त के बाद ववकास का चक्का तेजी से घूमने लगेगा और सभी को समान अवसर िाप्त हो सकें गे, जजसमें रेडियो की महत्वपूणथ भूलमका सामने आती है जजसके तहत रेडियो को ये जजम्मेदार द जाती है की वह ववलभन्द्न सरकार , गैर सरकार एवं सावथजतनक दहत से जुडे तथ्यों, नीतत एवं योजनाओ ं के बारे में जानकार जनता तक पहुंचाने का महत्वपूणथ कायथ करेंगा। इस तरह से लोकतांबत्रक व्यवस्र्ा में आम लोगों की भागीदार सुतनजश्चत हो सके गी और जनता अपने अधिकारों के ितत सचेत होने लगेगी । सामाजजक वपछडेपन का सबसे बडा कारण सूचना एवं जानकार का अभाव होता है। यह कारण है कक ज्ञान को शजक्त माना गया है। रेडियो सूचना एवं समाचार िसार का माध्यम बनकर जागरुकता का िचार -िसार करता है और इस तरह से सामाजजक मुद्दो को लेकर रेडियो की महत्वपूणथ जजम्मेदार सामने आती है । यह बात स्र्ावपत की गई है कक भारत गांवों में बसता है और देश की कु ल 70 िततशत आबाद ग्रामीण इलाकों में रहती है । आिुतनक संचार माध्यमों की जब कु ल पहुंच की आकाशवाणी .है आता पहले सबसे जजक्र का रेडियो तब-तब है होती चचाथ जब- के जनसंख्या 99.18 िततशत तक है. इस ललहाज से तमाम जनसंचार माध्यमों का दायरा बढ़ने के बादजूद ग्रामीण श्रोताओ ं तक रेडियो की पहुंच अधिक है और उसे सुना जाता है तीन लसफथ ललए के इलाकों ग्रामीण में वर्षथभर ने आकाशवाणी भी कफर मगर . औसतन आिाररत गांव यानी कायथक्रम 0.57 फीसद िोग्राम िसाररत ककए ।
  • 7. वपछले कु छ वर्षों में रेडियो के क्षेत्र में तनजी एफएम चैनलों का ववस्तार हुआ हैहै वगथ श्रोता अपना इनका ., जो शहरों में रहता है . वह की देश में ऐसे .आती नह ं आबाद ग्रामीण में दायरे के चैनलों एफएम इन 70 फीसद जनसंख्या जो गांवों में रहती है उसकी सूचना को लेकर तनभथरता रेडियो आक(ााशवाणी रूप के िसारक कलो राष्ट्र य से ललहाज इस .है जाती बढ़ पर ) में रेडियो सभी वगथ के लोगों को सशक्त बनाने के ललए जजम्मेदार है, मगर यह तभी मुमककन है जब सामाजजक दातयत्व को ध्यान में रखकर रेडियो अपनेिसाररत ककए जाने वाले कायथक्रमों को तैयार करे. चूंकक इसकी पहुंच देश की अधिकतम आबाद तक है, ऐसे में बतौर रेडियो इसकी तस्वीर अपने कायथक्रमों के जररए देशभर में मौजूद सभी समुदायों, समूहों, जाततयों एवं वगीय स्तर पर ववभाजजत समाज के अलभव्यजक्त की बननी चादहए. मगर ऐसा हो नह ं रहा है. ‘बहुजन दहताय, बहुजन सुखाय’ के तहत आकाशवाणी जो कायथक्रम िसाररत कर रहा है, वह लक्ष्यों को हालसल करने के ललए नाकाफी हैं.। रेडियो सामाजजक कायथक्रमों का पररचय एवं रूपरेखा िमुख रेडियो िसारक आकाशवाणी की होम सववथस में 299 चैनल हैं, जो 23 भार्षाओ ं और 146 बोललयों में कायथक्रम िसाररत करते हैं. एक सवेक्षण में आकाशवाणी के समाचार िभाग का जायजा ललया गया कक वह जजन ववर्षय वस्तुओ ं पर कायथक्रम तैयार कर रहा है, उससे लोकतांबत्रक उद्देश्यों को पूरा कर पाना मुमककन है की नह ं । इसको लेकर जो सवाल पैदा हुआ वह यह की ककसान, दललत, आददवासी, वपछडे और अल्पसंख्यक जैसे वंधचत समाजों के मसलों पर ककतने कायथक्रम बनते और िसाररत होते हैं, जवाब लसफऱ है. रेडियो के कायथक्रमों का अवलोकन करें तो इसकी अनुपजस्र्तत साफ नजर आती है । आकाशवाणी में आयोजजत कायथक्रमों के ववर्षय वस्तुओ ं में ककसान, दललत और आददवासी-वपछडे व अल्पसंख्यक समाज के सवालों का अभाव ददखता है, जबकक िसार भारती बहुजन श्रोता की दहतैर्षी होने का दावा पेश करती है । बहरहाल, ऑल इंडिया रेडियो ने 2011 के दौरान सामतयकी, स्पॉटलाइट, न्द्यूज एनालललसस, मनी टॉक, समाचार चचाथ, कं र वाइि और करेंट अफे यसथ के तहत 527 कायथक्रम िसाररत ककएनवंबर सात पर मुद्दे के जातत अनुसूधचत इनमें मगर . 2011 को लसफथ एक कायथक्रम ‘सरकार नौकररयों में बढ़ती दललत आददवासी अधिकाररयों की संख्या’ को िस्तुत ककया गया2 औसतन को वगथ इस मतलब ..91 तरजीह के लायक समझा गया ।इसी तरह आकाशवाणी के कायथक्रम तैयार करने वालों को आददवासी सवाल नह ं सूझे, जबकक यह समाज देश में सबसे संकटग्रस्त समाज है जो अपने अजस्तत्व पर चौतरफा हमले का सामना कर रहा है लेकर को समस्या आददवासी ने आकाशवाणी . धचं की उत्र्ान के मदहलाओ ं अलावा इसके । ककए नह ं िसाररत कायथक्रम कोईताओ ं को लेकर वर्षथ 2011 के दौरान महज आि कायथक्रम िस्तुत ककए गएऔसतन संबंधित से मदहलाओ ं यानी . 1.5फीसद कायथक्रम िसाररत ककए गए में कायथक्रमों इन . । है ददखा जोर ज्यादा का आकाशवाणी पर आरक्षण ललए उनके और सुरक्षा की मदहलाओ ं चचाथओ में के वल शहर मदहलाओ ं की सुरक्षा के ितत धचंता होती है, ग्रामीण मदहलाएं इस दायरे में नह ं आतीं जजसका उदाहरण अभी हाल के ददनों में दालमनी मुद्दे पर रेडियो के समाचार या िोग्राम में साफ पता चलता है । इसी तरह सामाजजक न्द्याय और शोर्षण से संबंधित 12 िोग्राम पेश ककए गएऔर मजदूर खेततहर . श्रलमक वगथ के कायथक्रमों को एक श्रेणी में रखा गया और उनके ललए सात कायथक्रम पेश ककए गए ये . संबंधित से लशक्षा । हैं आते नजर धगदथ-इदथ के योजनाओ ं सरकार होकर न कें दरत पर श्रलमकों सीिे कायथक्रम 12कायथक्रम िसाररत ककए गए, लेककन इन कायथक्रमों का रुख लशक्षक्षत और सझदार भरा समाज बनाने के बजाय कु शल कामागार तैयार करने का है . ढांच के पढ़ाई तकनीकी तय द्वारा सरकार में कायथक्रमों ज्यादातर पर बातचीत िसाररत की गई है । आधर्थक 163 30.93 पयाथवरण 25 4.74 लशक्षा 14 2.65 िदेश 22 4.17 अंतरराष्ट्र य मसले 97 18.40 स्वास्थ्य 24 4.55 ग्रामीण इलाके 03 0.57 दललत 01 0.19 आददवासी 00 00 वपछडा 00 00
  • 8. अल्पसंख्यक 03 0.57 श्रलमक/खेततहर मजदूर 07 1.32 मदहला 08 1.52 युवा 05 0.95 खेल 12 2.28 राजनीतत 89 16.88 सामाजजक न्द्याय 12 2.28 ववज्ञान/िोद्यौधगकी 24 4.55 अन्द्य 18 3.04 कु ल 527 100 उपयुथक्त आंकडों के आिार पे यह स्पष्ट्ट हो जाता है की रेडियो समाज के ितत तर्ा उनके उिरदातयत्व के ितत ककतना सचेत है । इस आकिे की सारणी पे अगर ध्यान दें तो देखेंगे की समाज के गंभीर ववर्षयों जैसे आधर्थक,राजनैततक, लशक्षा, बेरोजगार , सामाजजक न्द्याय आदद मुद्दो को लेकर रेडियो जो की संचार के माध्यमों में सबसे मजबूत एवं पुराना माध्यम है वह अपने अब तक के सफर में ककतना खरा उतरा या ककतना सफल हो पाया । हा यहाँ यह जरूर ददखता है की रेडियो ने इन सामाजजक मुद्दो को अपना ववर्षय जरूर बनाया परंतु यह लसफथ ववर्षय या िस्तुतत तक ह सीलमत रहा इसने ककसी बदलाव की चेष्ट्िा नह ं की और जो की भी तो वह आंलसक रूप से, मैं इसके द्वारा ककए बृहद ववकास को आंलसक कहने की िृष्ट्िता इस ललए कर पाया क्यूंकक इसने अपनी क्षमता के अनुरूप या कह सकते है की सबसे बडे श्रोता समूह का फायदा उिाने में सफल नह ं हो पाया । इन सब के बाद भी रेडियो ने अपने कु छ सामाजजक योगदान के बल पे अपने अमरता को िमार्णत ककया है जो संचार के क्षेत्र का सबसे अहम मीडियम बन के उभरा । रेडियो ने जजन क्षेत्रों में अपने योगदान को अववष्ट्मणी बनाया वह इस िकार है । कृ वर्ष का क्षेत्र – इस क्षेत्र में रेडियो ने सबसे ज्यादा तर्ा महत्व पूणथ योगदान ददया । चुकक रेडियो के आगमन के समय सबसे जादा संकट खाद्य पैदावार तर्ा संरक्षण को लेकर र्ी याइसे में इसकी जजम्मेदार बनती र्ी की वो समाज को कृ वर्ष से संबजन्द्ित समस्याओ ं से अवगत कराकर उनसे तनजात पाने का उपाय बताएं । इन मुद्दो को लेकर रेडियो ने अनेक चचाथओ ं एवं नाटकों के जररये लोगों को जागरूक ककया जजसमें कृ वर्ष संध्या, खेत खललहान, ककसान भैया, ककसान की समस्या आदद कु छ िोग्राम महत्वपूणथ रहे जजसने ककसानों की समस्या को वाकई दूर ककया । रोजगार – सन र्ी रहती हहापोह सी अजीब एक में लोगों लेकर को रोजगार पहले से 9112 जजसका मुख्य कारण जानकार का आभाव र्ा जजसे रेडियो ने समझा ह नह बजल्क इससे लोगों को काफी हद तक तनजात भी ददलाया । अर्ाथत रेडियो के द्वारा यह संभव हो पाया की लोग अपने पसंद की पढ़ाई पढ़ सकें और उससे जुडे रोजगार की जानकार पा सकें । मदहला ववमशथ – मदहलाओ ं की जस्र्तत को लेकर रेडियो ने काफी ददलचस्पी ददखाई और इसके उत्र्ान के ललए अनेक कायथ ककए । रेडियो ने मदहलाओ ं की तात्काललक जस्र्तत को लेकर हमेशा तत्परता एवं गंभीरता ददखते हुये समाज की उन मदहलाओ ं को सजम्मललत करके एक बहस करता र्ा और उन मुद्दो पर मदहलाओ ं को उपाय भी बताने का काम रेडियो बखूबी तनभाता रहा । मनोरंजन – रेडियो अगर समाज के गंभीर मुद्दों को उिाता है तो वह ं समाज को मनोरंजजत करने के भी सारे उपाय करता है जजसके तहत अनेक रेडियो के कायथक्रम चलना शुरू ककया र्ा जजसमें भूले बबसरे गीत, सखी सहेल ,हैलो फरमाइस, आदद गीतों के िोग्राम के द्वारा रेडियो ने समाज के ितत अपने जजम्मेदार को बखूबी तनभाया । अर्ाथत इन सब आिार पे जब हम देखते हैं तो पता चलता है कक जहां रेडियो ने समाज के गंभीर से गंभीर मुद्दो को उिाया तो वह ं समाज को एवं अपने श्रोताओ ं को मनोरंजजत करने के जजम्मेदार को भी बखूबी तनभाया । तनष्ट्कर्षथ आज ववश्व भर में 1 लाख से अधिक रेडियो स्टेशन हैं और आने वाले ददनों में इसमें और ववस्तार की संभावना है। एफएम रेडियो के तीसरे फे ज की मंजूर के बाद इसके ववस्तार की संभावना और भी बढ़ गई है। एफएम के आने के बाद एक तरफ जहां रेडियो का व्यावसातयकरण ज्यादा हो गया है तो वह ं यह सूचना एवं मनोरंजन का भी मजबूत माध्यम बनकर उभरा है। अधिक से अधिक रेडियो स्टेशनों की स्र्ापना
  • 9. की जा रह है और इसके माध्यम से श्रोताओ ं को समाचारों के सार्नने को लमल रहा है। अब सार् संगीत एवं अन्द्य कायथक्रम सु- नए कायथक्रमों के माध्यम से श्रोताओ ं को बांिे रखते हैं। हाल तो यहां तक आ पहुंचा है कक आप कह ं अपनी -रेडियो जॉकी नए गाडी से जा रहे हैं और रास्ते में यातायात जाम है यातन कक रैकफक की समस्याहै तो ववलभन्द्न एफएम रेडियो के माध्यम से आपको इसकी सूचना लमल जायेगी कक फलां रास्ते से आज रैकफक जाम है या उस रास्ते को िायवटथ कर ददया गया है। यातन कक आपके मनोरंजन के सार्सार् सामुदातयक -सार् आपकी यात्रा को भी यह आसान बना देता है। अब तो एफएम रेडियो के सार्- रेडियो का जमाना आ गया है और सरकार भी इसके िचारिसार के ललए हर स्तर पर सहयोग कर रह है।-क्योंकक आज भी दूर- दराज के क्षेत्र में रेडियो ह एकमात्र सािन है जजससे समाचार और मनोरंजन के सार् सार् सामाजजक सरोकार की जरूरतों को पूरा ककया जा सकता है । अर्ाथत इन सब आिार पर जब हम रेडियो और उसके सामाजजक दातयत्व पर ववचार करते हैं तो हम देखते हैं कक अन्द्य संचार माध्यम की अपेक्षा रेडियो ज्यादा िभावी है तर्ा इसकी ज्यादा लोगों तक पहुँच भी है जो इसको और भी जजम्मेदार का आभास कराता है और इस जजम्मेदार को तनभाने में रेडियो ने अब तक अपनी महती भूलमका तनभाई है । लेककन कु छ और सुिार के सार् रेडियो को और ववकास का मौका देना चादहए जजससे एक स्वक्ष समाज का तनमाथण हो सके । फिल्म लसनेमा देखने का शौक़ लगभग सभी को होता है । हर वगथ और समुदाय के लोग लसनेमा देखते हैं। यूँ तो समूचे ववश्व में यह लोकविय है लेककन हमारे देश में तो यह ववशेर्ष रूप से िचललत इसललए भी है कक एक ओर तो यह कई दशक तक मनोरंजन का सबसे सस्ता सािन रहा है, दूसर ओर कर्ाओ ं के ितत लगाव हमारे यहाँ पुरातन काल से चला आ रहा है । अतः स्वाभाववक ह र्ा कक जब पुस्तकों में वर्णथत कर्ाएं चलती -कफरती तसवीरों के रूप में पदे पर आईं तो भारतीय जनता ने उन्द्हें हार्ोंहार् ललया । आज हमारे यहाँ लसनेमा ह नह ं, लसनेमा का संगीत तर्ा उसके कलाकार भी इस जस्र्तत में हैं कक उनकी लोकवियता को कोई भी चुनौती नह ं दे सकता है । हजारों लोगों को रोजगार देने वाला उद्योग होने के बावजूद यह भारतीय लसनेमा का दुभाथग्य ह कहा जाएगा कक इसे औपचाररक रूप से उद्योग का दजाथ लमलने में दशकों लग गए । यह एक पररयोजना आिाररत उद्योग है क्योंकक ित्येक चलधचत्र (कफल्म) अपने आप में एक पृर्क पररयोजना(िोजेक्ट)होता है । कफल्म-तनमाथण में य ाोगदान दे रहे सभी व्यजक्त िायः कई पररयोजनाओ ं (कफल्मों)पर एक सार् काम कर रहे होते हैं । कफल्म का तनमाथता ह उसके नफे-नुकसान का भागी होता है । अन्द्य सभी लोग अपना-अपना पाररश्रलमक लेकर अलग हो जाते हैं । कफल्म -तनमाथण की िकक्रया को तनम्नललर्खत चरणों में बांटक र समझा जा सकता है : अ .ककानक एिं फएल्मांकन : चूंकक हमारे यहाँ ढाई -तीन घंटे लंबी कफल्में बनती हैं जजन्द्हें फीचर कफल्में कहा जाता है , इसललए उनकी रूपरेखा एक कर्ानक पर आिाररत होती है जजसका एक िारम्भ, ववकास तर्ा चरम (क्लाइमेक्स)होता है । कर्ानक का आिार कोई पुस्तक भी हो सकती है और कोई संक्षक्षप्त ववचार (आइडिया)भी । लेककन पूर लंबाई की कफल्म बनाने के ललए मूल ववचार का ववस्तार अर्वा पुस्तक की कहानी का यर्ेष्ट्ट अनुकू लन(एिेप्टेशन)आवश्यक होता है। इस उद्देश्य से कहानी का दृश्यों में बांटकर पुनलेखन ककया जाता है । ऐसी कहानी को तकनीकी शब्दावल में पटकर्ा (स्क्रीनप्ले)कहते हैं । पटकर्ा के ववलभन्द्न दृश्यों को भी कफल्मांकन हेतु बहुत-से भागों(शॉ्स)में ववभाजजत कर ददया जाता है तर्ा ित्येक दृश्य तर्ा ित्येक शॉट को एक ववलशष्ट्ट क्रम संख्या द जाती है । कफल्मांकन को बोलचाल की भार्षा में शूदटंग कहते हैं जजसमें कफल्म का कला -तनदेशक(आटथ िायरेक्टर) , अलभनय करने वाले कलाकार, छायाकार (कै मरामैन अर्वा लसनेमेटोग्राफर)तर्ा इन सबके हपर कफल्म का मुख्य तनदेशक सजम्मललत होते हैं । कफल्म का तनदेशक उसके तनमाथण -दल(यूतनट)का सवाथधिक महत्वपूर ा्ण अंग होता है जो पदे पर िस्तुत होने जा रह कफल्म के ित्येक भाग तर्ा पहलू की अधग्रम कल्पना (ववजुअलाइज)कर लेता है तर्ा अपनी इस कल्पना के आिार पर ह कफल्म के एक- एक दृश्य को मूतथरूप देता है । कफल्म की रचना से जुडी हर बात में उसका ित्यक्ष या परोक्ष हस ्तक्षेप होता है । पटकर्ा के आिार पर कलाकार कर्ानक के पात्रों का अलभनय करते हैं जजसका छायांकन कफल्म का छायाकार अपने मूवी -कै मरे से तनदेशक के आदेशों के अनुरूप करता है । िायः दृश्य की पृष्ट्िभूलम के अनुरूप स्टूडियो में सैट लगाकर शूदटंग की जाती है । यह कायथ कफला्म के कला -तनदेशक द्वारा ककया जाता है । भारत में कफल्म-तनमाथण के दो िमुख कें र मुंबई तर्ा चेन्द्नई हैं जहाँ अनेक स्टूडियो बने हुए हैं । कई बार कफल्म के बहुत-से भाग की शूदटंग बाहर स्र्लों(आउटिोर लोके शन्द्स)पर भी होती है । शूदटंग हर शॉट की अलग की जाती है तर्ा वह ककस शॉट की है, इसका ध्यान रखने के ललए दृश्य संख्या तर्ा शॉट संख्या को एक प्ट पर ललखकर पहले उसे शूट ककया जाता है जजसे तकनीकी शब्दावल में क्लैप देना कहते हैं । जब तक तनदेशक