Ram Lakshman Parshuram Samvad PPT Poem Class 10 CBSEOne Time Forever
This is a PPT Based on the Poem of Class 10 CBSE Ram-Lakshman-Parshuram Samvad Including It's Summary, Word Meaning, Question-Answers, Each Paragraph Explanation Along With Some Pictures. Hopefully It Helps You. Thank You.
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तुलसीदास जी राम कथा की महिमा बताते हुये कहते हैं -
रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
(बा.35)
वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन
Jaishankar prasad (Gunda Kahaani) Hindi LiteratureSuraj Rawat
This ppt is dedicated to Jaishankar Prasad(hindi Writer) whose works very important in hindi literature history whether in novels, story, essay. This ppt contains valuable information about story lineup also individual slide Of Prasad's story "Gunda
sundar kand pdf download in hindi, Sundarkand PDF DownloadLucent GK Today
In our SundarKand PDF you will find the special importance of Sundar Kand in various events described in Ramayana. The Ramayana, one of the most revered and ancient of the Indian epics, describes the life and adventures of Lord Rama, an incarnation of the Hindu god Vishnu, his wife Sita and his faithful companion Hanuman.
What is Sundarkand (Sundarkand PDF)?
Sundar Kand is the fifth book of Ramayana written by the ancient sage Valmiki. It is considered the heart of the epic, focusing primarily on the heroic deeds of the powerful monkey god Hanuman.
तुलसीदास जी राम कथा की महिमा बताते हुये कहते हैं -
रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
(बा.35)
वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन्द्रियग्राह्य है,
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तुलसीदास जी राम कथा की महिमा बताते हुये कहते हैं -
रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
(बा.35)
वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन
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Sundar Kand is the fifth book of Ramayana written by the ancient sage Valmiki. It is considered the heart of the epic, focusing primarily on the heroic deeds of the powerful monkey god Hanuman.
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रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
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वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन्द्रियग्राह्य है,
Lord Hanuman is a famous god of the earth and he is one of the most powerful Gods in Hinduism. Hanuman Chalisa App come with very large collection of hanuman bhajan & Hanuman chalisa.
Download Hanuman Chalisa App
Android App
https://play.google.com/store/apps/details?id=com.keyideasinfotech.aarti_bhakti_bhajan_chalisa_mantra_hindi
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रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
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रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
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वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
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वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन
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रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
(बा.35)
वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन
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रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
(बा.35)
वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
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मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन
2. राम लक्ष्मण परशुराम संवाद
तुलसीदास
नाथ संभुधनु भंजननहारा। होइनह क
े उ एक दास तुम्हारा॥
आयेसु काह कनहअ नकन मोही। सुनन ररसाइ बोले मुनन कोही॥
सेवक
ु सो जो करै सेवकाई। अररकरनी करर कररअ लराई॥
इन पंक्तिय ं में श्री राम परशुराम जी से कि रिे िैं पक – िे नाथ! पशिजी क
े धनुष क त ड़ने की शक्ति त क
े िल आपक
े
दास में िी ि सकती िै। इसपलए िि आपका क ई दास िी ि गा, पजसने इस धनुष क त डा िै। क्या आज्ञा िै? मुझे
आदेश दें। यि सुनकर परशुराम जी और क्र पधत ि जाते िैं और किते िैं पक सेिक ििी ि सकता िै, ज सेिक ं जैसा
काम करे। यि धनुष त ड़कर उसने शत्रुता का काम पकया िै और इसका पररणाम युद्ध िी िै। उसने इस धनुष क
त ड़कर मुझे युद्ध क
े पलए ललकारा िै, इसपलए ि मेरे सामने आए।
सुनहु राम जेनह नसवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो ररपु मोरा॥
सो नबलगाउ नबहाइ समाजा। न त मारे जैहनहं सब राजा॥
सुनन मुननबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरनह अवमाने॥
बहु धनुही तोरी लररकाईं। कबहुुँ न अनस ररस नकन्हि गोसाई
ुँ ॥
येही धनु पर ममता क
े नह हेतू। सुनी ररसाइ कह भृगुक
ु लक
े तू॥
3. परशुराम जी श्री राम से किते िैं, पजसने भी पशिजी क
े धनुष क त डा िै, िि इस स्वयंिर क छ ड़कर अलग
खड़ा ि जाए, निींत इस दरबार में उपक्तथथत सारे राजाओं क अपनी जान से िाथ ध ना पड़ सकता िै। परशुराम
क
े क्र ध से भरे स्वर क सुनकर लक्ष्मण उनका मज़ाक उड़ाते हुए किते िैं पक िे मुपनिर! िम बचपन में खेल-खेल
में ऐसे कई धनुष त ड़ चुक
े िैं, तब त आप क्र पधत निींहुए। परन्तु यि धनुष आपक इतना पिय क्य ं िै? ज इसक
े
टू ट जाने पर आप इतना क्र पधत ि उठे िैं और पजसने यि धनुष त डा िै, उससे युद्ध करने क
े पलए तैयार ि गए
िैं।
रे नृपबालक कालबस बोलत तोनह न सुँभार्।
धनुही सम निपुराररधनु नबनदत सकल संसार॥
परशुराम जी किते िैं, िे राजपूत (राजा क
े बेटे) तुम काल क
े िश में ि , अथाात तुम में अिंकार समाया हुआ िै
और इसी कारणिश तुम्हें यि निींपता चल पा रिा िै पक तुम क्या ब ल रिे ि । क्या तुम्हें बचपन में त ड़े गए धनुष
एिं पशिजी क
े इस धनुष में क ई अंतर निींपदख रिा? ज तुम इनकी तुलना आपस में कर रिे ि ?
लखन कहा हनस हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना॥
का छनत लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन क
े भोरें।।
छुअत टू ट रघुपनतहु न दोसू। मुनन नबनु काज कररअ कत रोसू॥
परशुराम की बात सुनने क
े उपरांत लक्ष्मण मुस्क
ु राते हुए व्यंगपूिाक उनसे किते िैं पक, िमें त सारे धनुष एक
जैसे िी पदखाई देते िैं, पकसी में क ई फक
ा नजर निींआता। पफर इस पुराने धनुष क
े टू ट जाने पर ऐसी क्या आफ़त
आ गई िै? ज आप इतना क्र पधत ि उठे िैं। जब लक्ष्मण परशुराम जी से यि बात कि रिे थे, तब उन्हें श्री राम
पतरछी आँख ं से चुप रिने का इशारा कर रिे थे। आगे लक्ष्मण किते िैं, इस धनुष क
े टू टने में श्री रा
4. बोले नचतै परसु की ओरा। रे सठ सुनेनह सुभाउ न मोरा॥
बालक
ु बोनल बध ंननह तोही। क
े वल मुनन जड़ जाननह मोही।।
बाल ब्रह्म्चारी अनत कोही। नबस्वनबनदत क्षनियक
ु ल द्रोही॥
भुजबल भूनम भूप नबनु कीिी। नबपुल बार मनहदेवि दीिी॥
सहसबाहुभुज छेदननहारा। परसु नबलोक
ु महीपक
ु मारा
परशुराम, लक्ष्मण जी की इन व्यंग से भरी बात ं क सुनकर और भी ज्यादा क्र पधत ि जाते िैं। िे अपने फ़रसे की
तरफ देखते हुए ब लते िैं, िे मूखा लक्ष्मण! लगता िै, तुझे मेरे व्यक्तित्व क
े बारे में निींपता। मैं अभी तक बालक
समझकर तुझे क्षमा कर रिा था। परन्तु तू मुझे एक साधारण मुनी समझ बैठा िै।
मैं बचपन से िी ब्रह्मचारी हँ। सारा संसार मेरे क्र ध क अच्छी तरि से पिचानता िै। मैं क्षपत्रय ं का सबसे बड़ा शत्रु
हँ। अपने बाजुओं क
े बल पर मैंने कई बार इस पृथ्वी से क्षपत्रय ं का सिानाश पकया िै और इस पृथ्वी क जीतकर
ब्राह्मण ं क दान में पदया िै। इसपलए िे राजक
ु मार लक्ष्मण! मेरे फरसे क तुम ध्यान से देख ल , यिी िि फरसा िै,
पजससे मैंने सिस्त्रबाहु का संिार पकया था।
मातु नपतनह जनन सोचबस करनस महीसनकसोर।
गभभि क
े अभभक दलन परसु मोर अनत घोर॥
िे राजक
ु मार बालक! तुम मुझसे पभड़कर अपने माता-पपता क पचंता में मत डाल , अथाात अपनी मृत्यु क न्यौता
मत द । मेरे िाथ में ििी फरसा िै, पजसकी गजाना सुनकर गभा में पल रिे बच्चे का भी नाश ि जाता िै।
5. क
ु छ सवाल
पकसकी नजर ं में सारे धनुष एक समान िै
क) राम
ख) लक्ष्मण
घ) सीता
ड़) परशुराम
रामजी ने धनुष क क
ै सा समझा था
क) कमज र
ख) पुराना
घ) नया
ड़) मजबूत
6. "रे सठ सूनेिी सुभाउ न म रा" पकसने किा था
क) लक्ष्मण ने
ख) राम ने
घ) मुपन ने
ड़) इनमें से पकसी ने निीं
मुपन क्षपत्रय क
ु ल क
े क्या थे
क) द्र िी
ख) गुरु
घ) राजा
ड़) सिय गी
परशुराम क्र ध में क्य ं थे
क) सम्मान ना ि ने क
े कारण
ख) पशि धनुष टू टने क
े कारण
घ) अज्ञानता क
े कारण
ड़) ऊपर क
े सारे
7. परशुराम पकन चीज ं क
े पलए जाने जाते थे?
क)अपनी भुजाओं से पृथ्वी क राजाओं से रपित करने से
ख) शांत स्वभाि क
े पलए
ग) अपनी बुक्तद्धमानी क
े पलए
घ) इनमें से क ई निीं
पकसक
े द्वारा धनुष त ड़ा गया ?
क) राम द्वारा
ख)लक्षण द्वारा
ग)परशुराम द्वारा
घ) इनमें से क ई निीं
धनुष क त ड़ने पर पकस क क्र ध आ गया ?
क) राम
ख)लक्षण
ग)परशुराम
घ) इनमें से क ई निीं
8. पकसक
े कारण पृथ्वी रपित ि गई थी?
क) राम
ख)लक्षण
ग)परशुराम
घ )इनमें से क ई निीं
पकसका फरशा बहुत भयानक िै?
क) राम
ख)लक्षण
ग)परशुराम
घ) इनमें से क ई निीं
परशुराम ने ( गापधसूनु) का िय ग पकसक
े पलए पकया िै?
क) रुियं क
े पलए
ख) गुरु िापशष्ट क
े पलए
ग) पिश्वापम क
े पलए
घ)लक्षमण क
े पलए
9. शूरिीर क अपनी शूरता िदपशात करनी चापिए।
क) रुियंिर क
े समय
ख) अपने क और से बडा बताने क
े समय
ग) युद्ध भूपम मे
घ) राजभिन मे
तुम तौ कालु िाँक जनु लािा ' पंक्ति मे पनपित अलंकार ___?
क) उपमा
ख) उत्प्रेक्षा
ग) रुपक
घ) श्रलेष
परशुराम क
े िचन पकसक
े समान कठ र िैं?
क) िज्र क
े
ख) ल िे क
े
ग) पत्थर क
े
घ) पिात क
े
10. इस पाठ का लेखक कौन िैं?1
क) तुलसीदास
ख) पगररराजक
ु मार माथुर
ग) सूरदास
घ) नागाजुान
परशुराम पशि क क्या मानते िैं?
क) पपता
ख) ईश्वर
ग) गुरू
घ) सेिक
परशुराम का स्वभाि क
ै सा िै?
क) उदार
ख) शील
ग) क्र धी
घ) चंचल
11. मुपन क
े िचन सुनकर लक्ष्मण जी नए क्या पकया?
क) िि क्र पधत ि गए
ख) िि उदास ि गए
ग) िि भािुक ि गए
घ) िि मुस्क
ु राए
'अयमय खाडँ न ऊखमय ' पंक्ति मे अलंकार िै?
क) श्रलेष
ख)रुपक
ग) उत्षेक्षा
घ) अनुषास
राम -लक्षमण-परशुराम संिाद मे पकस छं द का िय ग हुआ िै?
क)सिैया
ख) चौपाई
ग) द िा
घ)चौपाई ि द िा द न
12. धन्यवाद!
दल द क
े सदस्य िैं : -
पृषा शमाा
मयंक सागर
आराध्या चौिान
ईशान ित्स
मानशी शमाा