This Presentation Is about the 2 movements of Gandhi (Champaran, Kheeda satyagrah And Quit india Movement )
And this presentation is Made IN hindi Language .
This Presentation Is about the 2 movements of Gandhi (Champaran, Kheeda satyagrah And Quit india Movement )
And this presentation is Made IN hindi Language .
नेताजी सुभाष चंġ बोस कȧ िजतनी चचा[उनकȧ जयंती कȧ नहȣं होती उससेकहȣंअͬधक चचा[उनकȧ पुÖयǓतͬथ कȧ होती है। नेताजी के Ĝाइवर कन[ल Ǔनजामुɮदȣन दावा करतेहɇͩक सुभाष चंġ बोस कȧ मौत ͪवमान दुघ[टना मɅनहȣं हुई। न ͧसफ[ वह बिãक तमाम और लोग भी सुभाष चंġ बोस को लेकर अलग-अलग दावा करतेहɇ, आज उनकȧ जयंती पर हम उÛहȣंकुछ दावɉ पर बात करɅगे।
चमचों की विभिन्न किस्में
बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के जीवनकाल में उनको केवल कांग्रेस और अनुसूचित जातियों के चमचों से ही निपटना पड़ा था। बाबासाहब के परिनिर्वाण के बाद अनेक नई-नई किस्मों के चमचों के उभर आने से स्थिति और खराब हो गई। उनके जाने के बाद, कांग्रेस के अलावा अन्य दलों को भी, केवल अनुसूचित जातियों से नहीं बल्कि अन्य समुदायों के बीच से भी, अपने चमचे बनाने की जरूरत महसूस हुई। इस तरह, भारी पैमाने पर चमचों की विभिन्न किस्में उभर कर सामने आईं।
(क) विभिन्न जातियों और समुदायों के चमचे
भारत की कुल जनसंख्या में लगभग 85% पीड़ित और शोषितलोग हैं, और उनका कोई नेता नहीं है। वास्तव में ऊंची जातियों के हिंदू उनमें नेतृत्वहीनता की स्थिति पैदा करने में सफल हुए हैं। यह स्थिति इन जातियों और समुदायों में चमचे बनाने की दृष्टि से अत्यंत सहायक है। विभिन्न जातियों और समुदायों के अनुसार चमचों की निम्नलिखित श्रेणियाँ गिनाई जा सकती हैं।
1.अनुसूचित जातियां-अनिच्छुक चमचे
बीसवीं शताब्दी के दौरान अनुसूचित जातियों का समूचा संघर्ष यह इंगित करता है कि वे उज्जवल युग में प्रवेश का प्रयास कर रहे थे किंतु गांधी जी और कांग्रेस ने उन्हें चमचा युग में धकेल दिया । वे उस दबाव में अभी भी कराह रहे हैं, वे वर्तमान स्थिति को स्वीकार नहीं कर पाए हैं और उस से निकल ही नहीं पा रहे हैं इसलिए उन्हें अनिच्छुक चमचे कहा जा सकता है।
2.अनुसूचित जनजातियां - नव दीक्षित चमचे
अनुसूचित जनजातियां भारत के संवैधानिक और आधुनिक विकास के दौरान संघर्ष के लिए नहीं जानी जातीं। 1940 के दशक में उन्हे भी अनुसूचित जातियों के साथ मान्यता और अधिकार मिलने लगे। भारत के संविधान के अनुसार 26 जनवरी 1950 के बाद उन्हें अनुसूचित जातियों के समान ही मान्यता और अधिकार मिले। यह सब उन्हें अनुसूचित जातियों के संघर्ष के परिणाम स्वरूप मिला, जिसके चलते राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मत उत्पीड़ित और शोषित भारतीयों के पक्ष में हो गया था।
आज तक उन्हें भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल में कभी प्रतिनिधित्व नहीं मिलता। फिर भी उन्हें जो कुछ मिल पाता है, वे उसी से संतुष्ट दिखाई पड़ते हैं, इससे भी खराब बात यह है कि वह अभी भी किसी मुगालते में हैं कि उनका उत्पीड़क और शोषक ही उनका हितैषी है। इस तरह उन्हें नवदीक्षित चमचे कहा जा सकता है क्योंकि उन्हें सीधे - सीधे चमचा युग में दीक्षित किया गया है।
3.अन्य पिछड़ी जातियां - महत्वाकांक्षी चमचे
लंबे समय तक चले संघर्ष के बाद अनुसूचित जातियों के साथ अनुसूचित जनजातियों को मान्यता और अधिकार मिले। इसके परिणाम स्वरूप उन लोगों ने अपनी सामर्थ्य और क्षमताओं से भी बहुत आगे निकल कर अपनी संभावनाओं को बेहतर कर लिया है। यह बेहतरी शिक्षा, सरकारी नौकरियों और राजनीति के क्षेत्रों में सबसे अधिक दिखाई देती है।
अनुसूचित जातियों और जनजातियों में इस तरह की बेहतरी ने अन्य पिछड़ी जातियों की महत्वाकांक्षाओं को जगा दिया है। अभी तक तो वे इस महत्वाकांक्षा को पूरा करने में सफल नहीं हुए हैं। पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने हर दरवाजे पर दस्तक दी उनके लिए कोई दरवाजा नहीं खुला। अभी जून 1982 में हरियाणा में हुए चुनाव में हमें उन्हें निकट से देखने का मौका मिला।
अन्य पिछड़ी जातियों के तथाकथित छोटे नेता टिकट के लिए हर एक दरवाजा रहे थे अंत में हमने देखा कि वे हरियाणा की 90 सीटों में से एक टिकट कांग्रेस(आई) से और एक टिकट लोक दल से ले पाये। आज हरियाणा विधानसभा में अन्य पिछड़ी जाति का केवल एक विधायक है।
Shri Guru Teg Bahadur Sahib Ji Shaheedi - 099asinfome.com
http://spiritualworld.co.in श्री गुरु तेग बहादर जी की शहीदी:
औरंगजेब एक कट्टर मुसलमान था| जो कि अपनी राजनीतिक व धार्मिक उन्नति चाहता था| इसके किए उसने हिंदुओं पर अधिक से अधिक अत्याचार किए| कई प्रकार के लालच व भय देकर हिंदुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनाया| उसने अपने जरनैलो को भी आज्ञा दे दी हिंदुओं को किसी तरह भी मुसलमान बनाओ| जो इस बात के लिए इंकार करे उनका क़त्ल कर दिया जाए|
औरंगजेब के हुकम के अनुसार कश्मीर के जरनैल अफगान खां ने कश्मीर के पंडितो और हिंदुओं को कहा कि आप मुसलमान हो जाओ| अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो क़त्ल कर दिया जायेगा| कश्मीरी पंडित भयभीत हो गए| उन्होंने अपना अन्न जल त्याग दिया और प्रार्थना करने लगे| कुछ दिन के बाद उन्हें आकाशवाणी के द्वारा अनुभव हुआ कि इस समय धर्म की रक्षा करने वाले श्री गुरु तेग बहादर जी हैं| आप पंजाब जाकर अपनी व्यथा बताओ| वह आपकी सहायता करने में समर्थ हैं|
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नेताजी सुभाष चंġ बोस कȧ िजतनी चचा[उनकȧ जयंती कȧ नहȣं होती उससेकहȣंअͬधक चचा[उनकȧ पुÖयǓतͬथ कȧ होती है। नेताजी के Ĝाइवर कन[ल Ǔनजामुɮदȣन दावा करतेहɇͩक सुभाष चंġ बोस कȧ मौत ͪवमान दुघ[टना मɅनहȣं हुई। न ͧसफ[ वह बिãक तमाम और लोग भी सुभाष चंġ बोस को लेकर अलग-अलग दावा करतेहɇ, आज उनकȧ जयंती पर हम उÛहȣंकुछ दावɉ पर बात करɅगे।
चमचों की विभिन्न किस्में
बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के जीवनकाल में उनको केवल कांग्रेस और अनुसूचित जातियों के चमचों से ही निपटना पड़ा था। बाबासाहब के परिनिर्वाण के बाद अनेक नई-नई किस्मों के चमचों के उभर आने से स्थिति और खराब हो गई। उनके जाने के बाद, कांग्रेस के अलावा अन्य दलों को भी, केवल अनुसूचित जातियों से नहीं बल्कि अन्य समुदायों के बीच से भी, अपने चमचे बनाने की जरूरत महसूस हुई। इस तरह, भारी पैमाने पर चमचों की विभिन्न किस्में उभर कर सामने आईं।
(क) विभिन्न जातियों और समुदायों के चमचे
भारत की कुल जनसंख्या में लगभग 85% पीड़ित और शोषितलोग हैं, और उनका कोई नेता नहीं है। वास्तव में ऊंची जातियों के हिंदू उनमें नेतृत्वहीनता की स्थिति पैदा करने में सफल हुए हैं। यह स्थिति इन जातियों और समुदायों में चमचे बनाने की दृष्टि से अत्यंत सहायक है। विभिन्न जातियों और समुदायों के अनुसार चमचों की निम्नलिखित श्रेणियाँ गिनाई जा सकती हैं।
1.अनुसूचित जातियां-अनिच्छुक चमचे
बीसवीं शताब्दी के दौरान अनुसूचित जातियों का समूचा संघर्ष यह इंगित करता है कि वे उज्जवल युग में प्रवेश का प्रयास कर रहे थे किंतु गांधी जी और कांग्रेस ने उन्हें चमचा युग में धकेल दिया । वे उस दबाव में अभी भी कराह रहे हैं, वे वर्तमान स्थिति को स्वीकार नहीं कर पाए हैं और उस से निकल ही नहीं पा रहे हैं इसलिए उन्हें अनिच्छुक चमचे कहा जा सकता है।
2.अनुसूचित जनजातियां - नव दीक्षित चमचे
अनुसूचित जनजातियां भारत के संवैधानिक और आधुनिक विकास के दौरान संघर्ष के लिए नहीं जानी जातीं। 1940 के दशक में उन्हे भी अनुसूचित जातियों के साथ मान्यता और अधिकार मिलने लगे। भारत के संविधान के अनुसार 26 जनवरी 1950 के बाद उन्हें अनुसूचित जातियों के समान ही मान्यता और अधिकार मिले। यह सब उन्हें अनुसूचित जातियों के संघर्ष के परिणाम स्वरूप मिला, जिसके चलते राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मत उत्पीड़ित और शोषित भारतीयों के पक्ष में हो गया था।
आज तक उन्हें भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल में कभी प्रतिनिधित्व नहीं मिलता। फिर भी उन्हें जो कुछ मिल पाता है, वे उसी से संतुष्ट दिखाई पड़ते हैं, इससे भी खराब बात यह है कि वह अभी भी किसी मुगालते में हैं कि उनका उत्पीड़क और शोषक ही उनका हितैषी है। इस तरह उन्हें नवदीक्षित चमचे कहा जा सकता है क्योंकि उन्हें सीधे - सीधे चमचा युग में दीक्षित किया गया है।
3.अन्य पिछड़ी जातियां - महत्वाकांक्षी चमचे
लंबे समय तक चले संघर्ष के बाद अनुसूचित जातियों के साथ अनुसूचित जनजातियों को मान्यता और अधिकार मिले। इसके परिणाम स्वरूप उन लोगों ने अपनी सामर्थ्य और क्षमताओं से भी बहुत आगे निकल कर अपनी संभावनाओं को बेहतर कर लिया है। यह बेहतरी शिक्षा, सरकारी नौकरियों और राजनीति के क्षेत्रों में सबसे अधिक दिखाई देती है।
अनुसूचित जातियों और जनजातियों में इस तरह की बेहतरी ने अन्य पिछड़ी जातियों की महत्वाकांक्षाओं को जगा दिया है। अभी तक तो वे इस महत्वाकांक्षा को पूरा करने में सफल नहीं हुए हैं। पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने हर दरवाजे पर दस्तक दी उनके लिए कोई दरवाजा नहीं खुला। अभी जून 1982 में हरियाणा में हुए चुनाव में हमें उन्हें निकट से देखने का मौका मिला।
अन्य पिछड़ी जातियों के तथाकथित छोटे नेता टिकट के लिए हर एक दरवाजा रहे थे अंत में हमने देखा कि वे हरियाणा की 90 सीटों में से एक टिकट कांग्रेस(आई) से और एक टिकट लोक दल से ले पाये। आज हरियाणा विधानसभा में अन्य पिछड़ी जाति का केवल एक विधायक है।
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http://spiritualworld.co.in श्री गुरु तेग बहादर जी की शहीदी:
औरंगजेब एक कट्टर मुसलमान था| जो कि अपनी राजनीतिक व धार्मिक उन्नति चाहता था| इसके किए उसने हिंदुओं पर अधिक से अधिक अत्याचार किए| कई प्रकार के लालच व भय देकर हिंदुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनाया| उसने अपने जरनैलो को भी आज्ञा दे दी हिंदुओं को किसी तरह भी मुसलमान बनाओ| जो इस बात के लिए इंकार करे उनका क़त्ल कर दिया जाए|
औरंगजेब के हुकम के अनुसार कश्मीर के जरनैल अफगान खां ने कश्मीर के पंडितो और हिंदुओं को कहा कि आप मुसलमान हो जाओ| अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो क़त्ल कर दिया जायेगा| कश्मीरी पंडित भयभीत हो गए| उन्होंने अपना अन्न जल त्याग दिया और प्रार्थना करने लगे| कुछ दिन के बाद उन्हें आकाशवाणी के द्वारा अनुभव हुआ कि इस समय धर्म की रक्षा करने वाले श्री गुरु तेग बहादर जी हैं| आप पंजाब जाकर अपनी व्यथा बताओ| वह आपकी सहायता करने में समर्थ हैं|
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3. 3
मयहनदास करमचन्द गाांधी जन्म 2 अक्टू बर 1869 पयरबन्दर गाांव में हुआ
था | जजन्हें महात्मा गाांधी क
े नाम से भी जाना जाता है, भारत एवां भारतीय
स्वतन्त्रता आन्दयलन क
े एक प्रमुख राजनैजतक एवां आध्यात्मत्मक नेता थे।
वे सत्याग्रह (व्यापक सजवनय अवज्ञा) क
े माध्यम से अत्याचार क
े प्रजतकार
क
े अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नीांव सम्पूणण अजहांसा क
े
जसद्धान्त पर रखी गयी थी जजसने भारत कय भारतीय स्वतन्त्रता सांग्राम
जदलाकर पूरे जवश्व में जनता क
े नागररक अजधकारयां एवां स्वतन्त्रता क
े प्रजत
आन्दयलन क
े जलये प्रेररत जकया। उन्हें सांसार में साधारण जनता महात्मा
गाांधी क
े नाम से जानती है।
एक स्मारक जबड़ला हाउस (अब गाांधी स्मृजत), नई जदल्ली में उस स्थान कय
जचत्मन्हत करता है, जहाां 30 जनवरी 1948 कय शाम 5:17.30 बजे महात्मा
गाांधी की हत्या की गई थी।
गााँधी का पररचय
4. 4
महात्मा गााँधी ने अजहांसा की जवचारधारा का पालन जकया
जजस पर उनक
े सभी आांदयलन आधाररत थे। गााँधी जी
स्वतांत्रता आांदयलनयां क
े माध्यम से,असहययग आांदयलन,
सजवनय अवज्ञा आांदयलन या चांपारण जैसे आांदयलनयांमें हमेशा
मानव-अजधकारयांक
े जलए खड़े रहे।
महात्मा गाांधी ने औपजनवेजशक शासन (अांग्रेजयां क
े शासन) क
े
चांगुल से भारत कय आजाद कराने क
े जलए अपना खून-पसीना
बहाया। लाखयां भारतीययां क
े सहययग क
े साथ, महात्मा गाांधी ने
आत्मखरकार सफलता की ओर अपना कदम बढाते हुए भारत
क
े स्वतांत्रता आांदयलन में भाग जलया।
गाांधी जी, जपछली पीजढययां क
े जलए और आने वाली पीजढययां क
े
जलए अजहांसा, सजहष्णुता, सच्चाई और सामाजजक कल्याण पर
अपने जवचारयांक
े जलए, एक सच्ची प्रेरणा रहे हैं।
5. 5
⚫ *चांपारण आांदयलन (1917)*
भारतीय स्वतांत्रता सांग्राम क
े जलए जबहार में चांपारण आांदयलन महात्मा गाांधी की पहली सजक्रय
भागीदारी थी। जब गाांधी जी 1915 में भारत लौटे, तय उस समय देश अत्याचारी अांग्रेजयां क
े
शासन क
े अधीन था। अांग्रेजयां ने जकसानयां कय उनकी उपजाऊ भूजम पर नील और अन्य
नकदी फसलयां कय उगाने क
े जलए मजबूर जकया और जफर इन फसलयां कय बहुत सस्ती कीमत
पर बेच जदया। मौसम की बदहाल त्मस्थजत और अजधक करयां की वजह से जकसानयां कय
अत्यजधक गरीबी का सामना करना पड़ा जजसक
े कारण जकसानयां की त्मस्थजत अजधक दयनीय
हय गई।
चांपारण में जकसानयां की दयनीय त्मस्थजत क
े बारे में सुनकर, गाांधी जी ने तुरांत अप्रैल 1917 में
इस जजले का दौरा करने का जनणणय जलया। गााँधी जी ने सजवनय अवज्ञा आांदयलन क
े दृजिकयण
कय अपनाया और प्रदशणन शुरू जकया और अांग्रेज जमीांदारयां क
े त्मखलाफ हड़ताल करक
े उन्हें
झुकने पर मजबूर कर जदया। इसक
े पररणामस्वरूप, अांग्रेजयां ने एक समझौते पर हस्ताक्षर
जकए जजसमें उन्हयांने जकसानयां कय जनयांत्रण और क्षजतपूजतण प्रदान की और राजस्व और सांग्रह में
वृत्मद्ध कय रद्द कर जदया था। इस आांदयलन की सफलता से गाांधी जी कय महात्मा की उपाजध
प्राप्त हुई।
6. 6
⚫ *त्मखलाफत आांदयलन* (1919)
प्रथम जवश्व युद्ध क
े बाद, खलीफा और तुक
ण साम्राज्य पर कई अपमानजनक आरयप
लगाए गए। मुत्मिम अपने खलीफा की सुरक्षा क
े जलए काफी भयभीत हय गए और तुकी
में खलीफा की दयनीय त्मस्थजत कय सुधारने और अांग्रेज सरकार क
े त्मखलाफ लड़ने क
े
जलए गाांधी जी क
े नेतृत्व में त्मखलाफत आांदयलन शुरू जकया। गााँधी जी ने 1919 में भारतीय
स्वतांत्रता सांग्राम में अपने राजनीजतक समथणन क
े जलए मुत्मिम समुदाय से सांपक
ण जकया
और बदले में मुत्मिम समुदाय कय त्मखलाफत आांदयलन शुरू करने में सहययग जकया।
महात्मा गााँधी अत्मखल भारतीय मुत्मिम सम्मेलन क
े एक उल्लेखनीय प्रवता बने और
दजक्षण अफ्रीका में जिजटश साम्राज्य से प्राप्त हुए पदकयां कय वापस कर जदया। इस
आांदयलन की सफलता ने महात्मा गााँधी कय क
ु छ ही समय में रािरीय नेता बना जदया।
7. 7
⚫ *असहययग आांदयलन* (1920)
1920 में असहययग आांदयलन क
े शुरू करने क
े पीछे जजलयावालाां बाग हत्याकाांड
एकमात्र कारण था। इस हत्याकाांड ने गाांधी जी की अांतरात्मा कय झकझयर कर रख
जदया उनकय यह महसूस हुआ जक अांग्रेज भारतीययां पर अपना प्रभुत्व स्थाजपत करने
में सफल हय रहे हैं जफर यही वह समय था जब उन्हयांने एक असहययग आांदयलन शुरू
करने का फ
ै सला जलया था। काांग्रेस और उनकी अजेय भावना क
े समथणन क
े साथ,
वह उन लयगयां कय जवश्वास जदलाने में सफल रहे जय यह जानते थे जक शाांजतपूणण तरीक
े
से असहययग आांदयलन का पालन करना ही स्वतांत्रता प्राप्त करने की क
ुां जी है। इसक
े
बाद, गाांधी ने स्वराज की अवधारणा तैयार की और तब से यह भारतीय स्वतांत्रता
सांग्राम का मुख्य जहस्सा बन गए। इस आांदयलन ने रफ्तार पकड़ ली और शीघ्र ही
लयगयां ने अांग्रेजयां द्वारा सांचाजलत सांस्थानय जैसे स्क
ू लयां, कॉलेजयां और सरकारी
कायाणलययां का बजहष्कार करना शुरू कर जदया। इस आांदयलन कय शीघ्र ही स्वयां
गाांधी जी द्वारा समाप्त कर जदया गया था। इसक
े बाद चौरी-चौरा की घटना हुई
जजसमें 23 पुजलस अजधकारी मारे गए थे।
8. 8
⚫ *भारत छयड़य आांदयलन*(1942)
भारत छयड़य आांदयलन महात्मा गााँधी द्वारा जद्वतीय जवश्व युद्ध क
े दौरान 8 अगस्त 1942 कय
भारत से जिजटश साम्राज्य कय समाप्त करने क
े जलए चलाया गया था। गाांधी जी क
े आग्रह
करने क
े कारण भारतीय काांग्रेस सजमजत ने भारत की ओर से बड़े पैमाने पर अांग्रेजयां से भारत
छयड़ने क
े तकाजे और गााँधी जी ने “करय या मरय” का नारा जदया। इसक
े पररणामस्वरूप,
अांग्रेज अजधकाररययां ने भारतीय रािरीय काांग्रेस क
े सभी सदस्यां कय तुरांत जगरफ्तार कर जलया
और जााँच जकए जबना उन्हें जेल में डाल जदया। लेजकन देश भर में जवरयध -प्रदशणन जारी रहा।
अांग्रेज भले ही भारत छयड़य आांदयलन कय रयकने में जकसी भी तरह से सफल रहे हयां लेजकन
जल्द ही उन्हें यह महसूस हय गया था जक भारत में शासन करने क
े उनक
े जदन समाप्त हय
चुक
े हैं। जद्वतीय जवश्व युद्ध क
े अांत तक, अांग्रेजयां ने भारत कय सभी अजधकार सौांपने क
े स्पि
सांक
े त जदए। आत्मखरकार, गाांधी जी कय यह आांदयलन समाप्त करना पड़ा जजसक
े
पररणामस्वरूप हजारयां क
ै जदययां की ररहाई हुई।
9. 9
⚫ *सजवनय अवज्ञा आांदयलन: दाांडी माचण और गाांधी-इरजवन समझौता*
सजवनय अवज्ञा आांदयलन सत्तारूढ औपजनवेजशक सरकार क
े त्मखलाफ महात्मा गाांधी क
े नेतृत्व में
भारतीय स्वतांत्रता सांग्राम का एक महत्वपूणण जहस्सा था।
माचण 1930 में यांग इांजडया क
े अख़बार में देश कय सांबयजधत करते हुए गाांधी जी ने यजद, उनकी ग्यारह माांगें
सरकार द्वारा स्वीकार की जाती हैं तय, आांदयलन कय स्थजगत करने की अपनी इच्छा व्यत की थी। लेजकन
लॉडण इरजवन की सरकार ने उन्हें इसका कयई जवाब नहीां जदया। जजसक
े पररणामस्वरूप, उन्हयांने इस
आांदयलन कय पूरे उत्साह क
े साथ शुरू जकया।
यह आांदयलन दाांडी माचण क
े साथ शुरू हुआ जजसका नेतृत्व गाांधी जी ने 12 माचण 1930 कय गुजरात क
े
साबरमती आश्रम से दाांडी गााँव तक जकया था। दाांडी पहुांचने क
े बाद, गाांधी और उनक
े समथणकयां ने समुद्र
क
े नमकीन पानी से नमक बनाकर नमक पर कर लगाने वाले कानून का उल्लांघन जकया। इसक
े बाद,
अांग्रेजयां क
े कानून कय तयड़ पाना भारत में एक व्यापक घटना बन गई। लयगयां ने धारा 144 का उल्लांघन
करने क
े जलए प्रजतबांजधत राजनीजतक प्रचार पुत्मस्तकाओां की जबक्री शुरू कर दी। गाांधीजी ने भारतीय
मजहलाओां से कताई शुरू करने का आग्रह जकया और जल्द ही लयगयां ने सरकारी कायाणलययां और जवदेशी
सामान बेंचने वाली दुकानयां क
े सामने जवरयध-प्रदशणन करना शुरू कर जदया। भारतीय मजहलाओां ने
भारतीय स्वतांत्रता सांग्राम में भाग लेना शुरू कर जदया। इस आांदयलन क
े दौरान सरयजजनी नायड
ू प्रमुख
रूप से आगे आईां थी। उत्तर-पजिम में, सबसे लयकजप्रय नेता अब्दुल गफ्फर खान थे, जजन्हें अक्सर
“फ्र
ां जटयर गाांधी” कहा जाता था।
लॉडण इरजवन की सरकार ने 1930 में लांदन में एक गयल मेज सम्मेलन की माांग की और भारतीय रािरीय
काांग्रेस ने इसका जहस्सा बनने से इनकार कर जदया। यह सुजनजित करने क
े जलए जक काांग्रेस दू सरे दौर क
े
सम्मेलन में भाग ले रही है, लॉडण इरजवन ने 1931 में गाांधी क
े साथ समझौते पर हस्ताक्षर कर जदए। इसे
गाांधी-इरजवन समझौता कहा जाता था। इस समझौते में सभी राजनीजतक क
ै जदययां कय ररहा करने और
सभी दमनकारी कानूनयांकय रद्द करने की बात कही गई।
10. 10
गााँधी जी ने देश क
े जलए
अनेक बजलदान जदए , जफर
ऐसा क्ा हुआ जय की
नाथूराम गयडसे कय उनकी
हत्या करनी पड़ी ?
13. 13
गयडसे क
े अनुसार गााँधी वध क
े दय प्रमुख कारण थे
: -
⚫ गााँधी जी ने देश कय छलकर देश क
े टुकड़े जकए , क्यांजक
ऐसा न्यायालय या कानून नहीां था । जजसक
े आधार पर ऐसा
अपराधी कय दांड जदया जा सकता , इसजलए मैंने गााँधी जी कय
गयली मारी । उनकय दांड देने का क
े वल यही एक तरीका रह
गया था ।
⚫भारत सरकार ने गााँधी क
े अनशन क
े कारण पाजकस्तान कय
55 करयड़ रुपए न देने का अपना जनणणय बदल जदया । XXX तब
मुझे यह जवश्वास हय गया की गााँधी जी की पाजकस्तान परस्ती क
े
आगे जनता क
े मत का कयई महत्व नहीां।
14. 14
वास्तव में मेरा जीवन का उसी समय अांत हय गया था , जब मैंने गाांधी पर गयली चलाई
थी । उसक
े पिात मैं मानय समाजध में हां और अनासत जीवन जबता रहा हां ।
मैं मानता हां जक गाांधीजी ने देश क
े जलए बहुत कि उठाए , जजसक
े कारण मैं उनकी
सेवा क
े प्रजत एवां उनक
े प्रजत नतमस्तक हां । जक
ां तु देश की इस सेवक कय जनता कय
धयखा देकर मातृभूजम क
े जवभाजन का अजधकार ना था ।
मैं जकसी प्रकार की दया नहीांचाहता हां । मैं यह भी नहीांचाहता हां जक मेरी ओर से कयई
दया की याचना करें ।
अपने देश क
े प्रजत भत्मत भाव रखना यजद पाप है तय मैं स्वीकार करता हां जक वह पाप
मैंने जकया है । यजद वह पुण्य है तय उससे जजनत पुण्य पद पर मेरा नम्र अजधकार है ।
मेरा जवश्वास अजडग है जक मेरा कायण नीजत की दृजि से पूणणतया उजचत है । मुझे इस बात
में लेश मात्र भी सांदेह नहीां है जक भजवष्य में जकसी समय सच्चे इजतहासकार इजतहास
जलखेंगे तय वे मेरे कायण कय उजचत ठहराएां गे ।
--- नाथूराम जवनायक गयडसे