आज सेलफोन हमारे दैनिक जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुका है। आज बिना सेलफोन के जीवन की कल्पना करना भी मुश्किल लगता है। जिधर देखो उधर आपको लोग हाथ में सेलफोन थामें दिखाई देंगे, ठीक वैसे ही जैसे द्वापर युग में श्री कृष्ण अपनी अंगुली में सुदर्शन चक्र धारण करके घूमा करते थे। देखते ही देखते पिछले 15 वर्षों में सेलफोन के जाल ने पूरे विश्व को जकड़ लिया है। किशोर लड़के और लड़कियाँ तो सेलफोन के दीवाने हो चुके हैं, सुबह से लेकर रात तक सेलफोन से ही चिपके रहते हैं। भारत में सेलफोन की क्रांति लाने में अंबानी बंधुओं का भी बहुत बड़ा हाथ है। "कर लो दुनिया मुट्ठी में" के नारे का सहारा लेकर इन्होंने खूब मोबाइल रूपी मौत का कारोबार किया। लोग तो दुनिया को शायद अपनी मुट्ठी में नहीं कर सके लेकिन अंबानी बन्धु जरूर टाटा, बिरला आदि सभी अमीरों को पीछे छोड़ कर भारत के सबसे अमीर आदमी बन बैठे।
बाजार में शौकीन लोगों के लिए कई कम्पनियाँ हीरे-जवाहरात जड़े नित नये मंहगे और नायाब सेलफोन भी बेचने लगी हैं। 2009 में स्टुअर्ट ह्यूजेस कम्पनी ने दुनिया का सबसे मंहगा गोल्डस्ट्राइकर आईफोन बाजार में उतारा था। इस फोन को बनाने में 271 ग्राम सोना और 200 हीरे काम में लिए गये हैं। 53 खूबसूरत रत्नों से ऐपल का लोगो बनाया है और होम बटन पर 7.1 केरेट का बड़ा हीरा जड़ा गया है। इसकी कीमत 3.2 मिलियन डॉलर (लगभग 15 करोड़ रुपये) रखी गई है। लेकिन इतना मंहगा होने पर भी यह है तो मौत का ही सामान।
आज पूरे विश्व में 5.6 बिलियन सेलफोन उपभोक्ता हैं। भारत विश्व में दूसरे नम्बर पर आता है। ताजा आंकड़ों के अनुसार नवम्बर, 2011 में हमारे यहाँ 881,400,578 सेलफोन उपभोक्ता थे। यानि हमारे 73.27% लोग सेलफोन रखते हैं। एक अनुमान के अनुसार 2014 तक यह संख्या एक अरब हो जायेगी। लेकिन मुद्दे की बात यह है कि सरकारी संस्थाओं नें बिना सोचे-समझे
15 food drink trends for 2015 (follow up)Sean Davey
Earlier this year we made some predictions for food and drink trends that we thought would be interesting and relevant to the FMCG industry. This is our follow up to see how accurate those predicitions were (so far!)
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मधुमेह नाड़ीरोग या डायबीटिक न्यूरोपेथी
जैसे ही डायन डायबिटीज शरीर पर अपनी पकड़ मजबूत कर लेती है, उत्पाती और उधमी ग्लूकोज शरीर की नाड़ियों को नुकसान पहुँचाने लगता है। 60-70 प्रतिशत मधुमेही अपने जीवन काल में किसी न किसी प्रकार के नाड़ी-दोष का शिकार हो ही जाते हैं। मधुमेह के कारण नाड़ियों के क्षतिग्रस्त होने को नाड़ीरोग या डायबीटिक न्यूरोपेथी (न्यूरो=नाड़ी और पैथी=रोग) कहते हैं। यह एक गम्भीर रोग है जो मधुमेही के शरीर पर भले देर से हमला करता है परन्तु चुपचाप और दबे पाँव करता है, जैसे-जैसे यह अपने पर फैलाता है रोगी के जीवन को असहनीय कष्ट, वेदना और अपंगता से भर देता है।
रोगी के जीवन में इस रोग में होने वाले लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि शरीर की कौन सी नाड़ियों को क्षति पहुँची है, रोगी को मधुमेह कितने समय से है, रोगी का रक्तशर्करा नियंत्रण कैसा है, क्या वह धूम्रपान व मदिरापान करता है या उसकी जीवनशैली कैसी है। वैसे तो हाथ-पैरों में दर्द, चुभन, जलन तथा स्पंदन, तापमान या स्पर्श की अनुभूति न होना इस रोग के मुख्य लक्षण हैं, पर रोगी को पाचनतंत्र, उत्सर्जन-तंत्र, प्रजनन-तंत्र, हृदय एवम् परिवहन-तंत्र आदि से संबन्धित कोई भी लक्षण हो सकते हैं। नाड़ीरोग में कुछ रोगियों को बहुत मामूली सी तकलीफ होती है तो कई बार लक्षण इतने प्रचण्ड और कष्टदायक होते हैं कि जीवन अपाहिज और असंभव सा लगने लगता है।
आखिर ये नाड़ियाँ क्या होती हैं?
मोटे तौर पर नाड़ियों की तुलना हम बिजली की केबल्स से कर सकते हैं। इनके मध्य में भी एक तार होता है जिसमें संदेश, आदेश या संवेदनाएं प्रवाहित होती हैं। इसे एक्सोन कहते हैं। जिसके बाहर एक रक्षात्मक खोल होता है जिसे माइलिन शीथ कहते हैं। ये नाड़ियाँ हमारे मस्तिष्क, सुषुम्ना (Spinal Cord) और नाड़ी-तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है
टूथपेस्ट या टॉक्सिक-वेस्ट
तबस्सुम या मुस्कुराहट – खुशी की अभिव्यक्ति
क्या है यह मुस्कुराहट जो एक पल में ढेर सी खुशियां बिखेर देती है, किसी को जीवन भर के लिए अपना बना देती है, कोई लुट जाता है या कोई हार जाता है। मुझे तो यह एक गुलाबी झरोखे की तरह लगता है, जिसमें मोतियों की लड़ियां लटकी हों। और इस मुस्कुराहट का आधार है मोती जैसे चमचमाते सफेद दांत, तभी तो हम सुबह उठते ही सबसे पहले टूथपेस्ट से अपने दांत चमकाते हैं।
एक शोध के मुताबिक मुस्कुराकर कहा गया काम हो या फरमाइश, उसके पूरा होने की संभावना 50 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। बोस्टन यूनिवर्सिटी के सामाजिक विज्ञान के प्रोफेसर डी. क्लचर ने 10,000 लोगों को पर सर्वेक्षण किया। उनमें से 85 प्रतिशत का मानना है कि उनके जीवन में कई ऐसे मौके आए जब मुस्कुराकर बात करने से उनका बिगड़ता हुआ काम भी बन गया।
मुस्कुराहट पर तो कवियों और शायरों ने बहुत कुछ लिखा है। जैसे
याद आती है जब तेरे तबस्सुम की हमें,
दिल में देर तक चरागों का समाँ रहता है।
नरेश कुमार 'शाद'
यह दिलफरेब तबस्सुम, यह मस्त मस्त नजर,
तुम्हारे दम से चमन में बहार बाकी है।
-वाहिद प्रेमी
अनाड़ी फिल्म का राज कपूर साहब का ये गीत हमे आज भी याद है।
किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार,
किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार,
किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार,
जीना इसी का नाम है।
दुनिया भर के टूथपेस्ट बड़े-बड़े दावे करते हैं कि उनका टूथपेस्ट दांतों के कोने-कोने में घुस कर सफाई करता है, साँसों की बदबू दूर करता है और दाँतों की सड़न को दूर करता है। तो मेरे मन में विचार आया कि जरा गूगल मैया से पूछें तो सही कि क्या यह टूथपेस्ट हमारे दांतो के लिए इतना सचमुच इतना लाभदायक और सुरक्षित है। लेकिन मैया ने तो सारे राज ही खोल कर रख डाले। कहने लगी ये तो आपके लिए मल्ट
क्या होता है स्ट्रोक या दौरा या ब्रेन अटेक?
मस्तिष्क और नाड़ियों को जीवित और सक्रिय रहने के लिए भरपूर ऑक्सीजन और पौषक तत्वों की निरंतर आवश्यकता रहती है जो रक्त द्वारा प्राप्त होते हैं। मस्तिष्क और नाड़ी-तंत्र के सभी हिस्सों में विभिन्न रक्त-वाहिकाऐं निरंतर रक्त पहुँचाती है। जब भी इनमें से कोई रक्त-वाहिका क्षतिग्रस्थ या अवरुद्ध हो जाती है तो मस्तिष्क के कुछ हिस्से को रक्त मिलना बन्द हो जाता है। यदि मस्तिष्क के किसी हिस्से को 3-4 मिनट से ज्यादा रक्त की आपूर्ति बन्द हो जाये तो मस्तिष्क का वह भाग ऑक्सीजन व पौषक तत्वों के अभाव में नष्ट होने लगता है, इसे ही स्ट्रोक या दौरा कहते हैं।
सबसे अच्छी बात यह है कि चिकित्सा-विज्ञान ने इस रोग के उपचार में बहुत तरक्की कर ली है और आज हमारे न्यूरोलोजिस्ट पूरा ताम-झाम लेकर बैठे हैं और उनके पिटारे में इस रोग के बचाव और उपचार के लिए क्या कुछ नहीं है। इसीलिए पिछले कई वर्षों में स्ट्रोक से मरने वाले रोगियों का प्रतिशत बहुत कम हुआ है। बस यह जरुरी है कि रोगी बिना व्यर्थ समय गंवाये तुरन्त अच्छे चिकित्सा-कैंन्द्र पहुँचे ताकि उसका उपचार जितना जल्दी संभव हो सके शुरू हो सके। समय पर उपचार शुरू हो जाने से मस्तिष्क में होने वाली क्षति और दुष्प्रभावों को काफी हद तक रोका जा सकता है।
Marc uro 5 – India’s No. 1 Ayurvedic medicine for kidney stone removal
किडनी स्टोन की समस्या अब एक बहुत ही कॉमन प्रॉब्लम बन चुकी है लेकिन इससे पूरी तरह छुटकारा पाना इतना भी आसान नहीं होता।
मार्क यूरो 5:
इन सारी बातों का ध्यान रखते हुए भारत सरकार, मिनिस्ट्री ऑफ़ साइंस एवं टेक्नोलॉजी के अंतर्गत CSIR-NBRI के वैज्ञानिकों ने 5 वर्षों के गहन अध्ययन से 5 प्राकृतिक जड़ी बूटियां - गोक्षरु, भुइँअमला, पाषाणभेद, दारुहरिद्रा और अमृता के अनोखे मेल से मार्क यूरो 5 तैयार किया है।
मार्क यूरो 5 . की सामग्री:
1. दारुहरिद्रा • एंटीऑक्सीडेंट, • सूजनरोधी • हेपेटोप्रोटेक्टिव 2. पाशनभेद - (बर्गेनिया लिगुलाटा) • प्रकंद मूत्र पथरी का इलाज करते हैं। • मूत्र उत्पादन बढ़ाता है • पथरी को आसानी से हटाने में मदद करता है 3. गोखरु • मूत्र विकारों का प्रबंधन करता है • पुरुषों में यौन रोग में सुधार करता है 4. अमृता • प्रतिरक्षा बढ़ाने के लिए आयुर्वेद में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। • एफ्लाटॉक्सिन-प्रेरित नेफ्रोटॉक्सिसिटी से गुर्दे की रक्षा करता है। 5. भुइयामाला • जिगर विकारों का इलाज करता है। • पित्ताशय की पथरी को साफ करता है।
भारत की नंबर 1 किडनी स्टोन रिमूवल मेडिसिन, 100% आयुर्वेदिक और कॉस्ट इफेक्टिव मार्क यूरो 5 के कोई भी साइड इफ़ेक्ट नहीं है। मार्क यूरो 5 लगभग हर प्रकार के स्टोन को गलाकर यूरिन के रास्ते बहार निकलता है।
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किडनी स्टोन की समस्या अब एक बहुत ही कॉमन प्रॉब्लम बन चुकी है लेकिन इससे पूरी तरह छुटकारा पाना इतना भी आसान नहीं होता।
फुफ्फुस कर्कट रोग ( Lung Cancer)
फुफ्फुस या फेफड़ें का कैंसर एक आक्रामक, व्यापक, कठोर, कुटिल और घातक रोग है जिसमें फेफड़े के ऊतकों की अनियंत्रित संवृद्धि होती है। 90%-95% फेफड़े के कैंसर छोटी और बड़ी श्वास नलिकाओं (bronchi and bronchioles) के इपिथीलियल कोशिकाओं से उत्पन्न होते हैं। इसीलिए इसे ब्रोंकोजेनिक कारसिनोमा भी कहते हैं। फुफ्फुसावरण (प्लूरा) से उत्पन्न होने वाले कैंसर को मीजोथालियोमा कहते हैं। फेफड़े के कैंसर का स्थलान्तर बहुत तेजी होता है यानि यह बहुत जल्दी फैलता है। हालांकि यह शरीर के किसी भी अंग में फैल सकता है। यह बहुत जानलेवा रोग माना जाता है। इसका उपचार भी बहुत मुश्किल है।
Linomel Muesli
“Muesli" should be eaten regularly, prepared as follows:
Put 2 tablespoons of LINOMEL in a glass bowl. Cover this with a layer of fresh fruit in season, (i.e.: berries, cherries, apricots, peaches, grated apples). Now prepare a mixture made with Quark and Flax Seed Oil.
Add 3 tablespoons Flax Seed Oil to 100 - 125 g Quark, a little milk (2 Tblsp) and mix thoroughly until the oil has been totally absorbed. Lastly, add 1 tablespoon honey. In order to give it a new flavor every day, rosehip pulp, buckthorn juice, other fruit juices or ground nuts may be added. Butter is not recommended. Only herb teas should be served, but a cup of black tea is permitted on occasion.
अभी तक हुए 1500 से अधिक शोधों से यह साबित होता है कि नारियल तेल (कोकोस न्युसिफेरा) हमारी धरा पर विद्यमान एक स्वास्थ्यप्रद और उत्कृष्ट तेल है। सेहत से लेकर सुंदरता तक नारियल तेल प्रकृति का नायाब और अनमोल उपहार है। इसके करिश्माई फायदे आपको चौंका देंगे। गर्म करने पर यह खराब नहीं होता। इसकी शैल्फ लाइफ दो वर्ष से अधिक है। हमें अनरिफाइंड, अनहीटेड, ऑर्गेनिक, कॉल्ड-प्रेस्ड और एक्स्ट्रावर्जिन तेल प्रयोग में लेना चाहिए।
विश्वविख्यात फैट और ऑयल्स एक्सपर्ट और जर्मनी के फेडरल इंस्टिट्यूट ऑफ फैट्स रिसर्च की चीफ एक्सपर्ट डॉ जॉहाना बडविग ने साबित किया है कि नारियल तेल फ्राइंग और डीप फ्राइंग के लिए सबसे अच्छा विकल्प है। गर्म करने पर इसमें ट्रांसफैट नहीं बनते। कैंसर के रोगी भी इस तेल को प्रयोग कर सकते हैं।
पौराणिक महत्व
हिंदू धर्म में नारियल एक शुद्ध, सात्विक, पवित्र, फलदायी एवं लक्ष्मी माता से मनुष्य को जोड़ने वाला फल है, इसीलिए इसे संस्कृत में श्रीफल कहते हैं, श्री का अर्थ होता है लक्ष्मी। किसी भी धार्मिक एवं शुभ कार्य में हुई पूजा में नारियल रखने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं और लक्ष्मी की विशेष कृपा बनी रहती है। घर में नारियल रखने से घर के वास्तु दोष दूर होते हैं। मंदिरों में आमतौर पर इसे पूजा के दौरान भगवान की मूर्ति के सामने फोड़ा जाता है। फोड़ने के बाद यह नारियल प्रसाद के रूप में भक्तों में बांटा जाता है।
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मधुमेह नाड़ीरोग या डायबीटिक न्यूरोपेथी
जैसे ही डायन डायबिटीज शरीर पर अपनी पकड़ मजबूत कर लेती है, उत्पाती और उधमी ग्लूकोज शरीर की नाड़ियों को नुकसान पहुँचाने लगता है। 60-70 प्रतिशत मधुमेही अपने जीवन काल में किसी न किसी प्रकार के नाड़ी-दोष का शिकार हो ही जाते हैं। मधुमेह के कारण नाड़ियों के क्षतिग्रस्त होने को नाड़ीरोग या डायबीटिक न्यूरोपेथी (न्यूरो=नाड़ी और पैथी=रोग) कहते हैं। यह एक गम्भीर रोग है जो मधुमेही के शरीर पर भले देर से हमला करता है परन्तु चुपचाप और दबे पाँव करता है, जैसे-जैसे यह अपने पर फैलाता है रोगी के जीवन को असहनीय कष्ट, वेदना और अपंगता से भर देता है।
रोगी के जीवन में इस रोग में होने वाले लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि शरीर की कौन सी नाड़ियों को क्षति पहुँची है, रोगी को मधुमेह कितने समय से है, रोगी का रक्तशर्करा नियंत्रण कैसा है, क्या वह धूम्रपान व मदिरापान करता है या उसकी जीवनशैली कैसी है। वैसे तो हाथ-पैरों में दर्द, चुभन, जलन तथा स्पंदन, तापमान या स्पर्श की अनुभूति न होना इस रोग के मुख्य लक्षण हैं, पर रोगी को पाचनतंत्र, उत्सर्जन-तंत्र, प्रजनन-तंत्र, हृदय एवम् परिवहन-तंत्र आदि से संबन्धित कोई भी लक्षण हो सकते हैं। नाड़ीरोग में कुछ रोगियों को बहुत मामूली सी तकलीफ होती है तो कई बार लक्षण इतने प्रचण्ड और कष्टदायक होते हैं कि जीवन अपाहिज और असंभव सा लगने लगता है।
आखिर ये नाड़ियाँ क्या होती हैं?
मोटे तौर पर नाड़ियों की तुलना हम बिजली की केबल्स से कर सकते हैं। इनके मध्य में भी एक तार होता है जिसमें संदेश, आदेश या संवेदनाएं प्रवाहित होती हैं। इसे एक्सोन कहते हैं। जिसके बाहर एक रक्षात्मक खोल होता है जिसे माइलिन शीथ कहते हैं। ये नाड़ियाँ हमारे मस्तिष्क, सुषुम्ना (Spinal Cord) और नाड़ी-तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है
टूथपेस्ट या टॉक्सिक-वेस्ट
तबस्सुम या मुस्कुराहट – खुशी की अभिव्यक्ति
क्या है यह मुस्कुराहट जो एक पल में ढेर सी खुशियां बिखेर देती है, किसी को जीवन भर के लिए अपना बना देती है, कोई लुट जाता है या कोई हार जाता है। मुझे तो यह एक गुलाबी झरोखे की तरह लगता है, जिसमें मोतियों की लड़ियां लटकी हों। और इस मुस्कुराहट का आधार है मोती जैसे चमचमाते सफेद दांत, तभी तो हम सुबह उठते ही सबसे पहले टूथपेस्ट से अपने दांत चमकाते हैं।
एक शोध के मुताबिक मुस्कुराकर कहा गया काम हो या फरमाइश, उसके पूरा होने की संभावना 50 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। बोस्टन यूनिवर्सिटी के सामाजिक विज्ञान के प्रोफेसर डी. क्लचर ने 10,000 लोगों को पर सर्वेक्षण किया। उनमें से 85 प्रतिशत का मानना है कि उनके जीवन में कई ऐसे मौके आए जब मुस्कुराकर बात करने से उनका बिगड़ता हुआ काम भी बन गया।
मुस्कुराहट पर तो कवियों और शायरों ने बहुत कुछ लिखा है। जैसे
याद आती है जब तेरे तबस्सुम की हमें,
दिल में देर तक चरागों का समाँ रहता है।
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यह दिलफरेब तबस्सुम, यह मस्त मस्त नजर,
तुम्हारे दम से चमन में बहार बाकी है।
-वाहिद प्रेमी
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किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार,
किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार,
किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार,
जीना इसी का नाम है।
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इन सारी बातों का ध्यान रखते हुए भारत सरकार, मिनिस्ट्री ऑफ़ साइंस एवं टेक्नोलॉजी के अंतर्गत CSIR-NBRI के वैज्ञानिकों ने 5 वर्षों के गहन अध्ययन से 5 प्राकृतिक जड़ी बूटियां - गोक्षरु, भुइँअमला, पाषाणभेद, दारुहरिद्रा और अमृता के अनोखे मेल से मार्क यूरो 5 तैयार किया है।
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1. दारुहरिद्रा • एंटीऑक्सीडेंट, • सूजनरोधी • हेपेटोप्रोटेक्टिव 2. पाशनभेद - (बर्गेनिया लिगुलाटा) • प्रकंद मूत्र पथरी का इलाज करते हैं। • मूत्र उत्पादन बढ़ाता है • पथरी को आसानी से हटाने में मदद करता है 3. गोखरु • मूत्र विकारों का प्रबंधन करता है • पुरुषों में यौन रोग में सुधार करता है 4. अमृता • प्रतिरक्षा बढ़ाने के लिए आयुर्वेद में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। • एफ्लाटॉक्सिन-प्रेरित नेफ्रोटॉक्सिसिटी से गुर्दे की रक्षा करता है। 5. भुइयामाला • जिगर विकारों का इलाज करता है। • पित्ताशय की पथरी को साफ करता है।
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फुफ्फुस कर्कट रोग ( Lung Cancer)
फुफ्फुस या फेफड़ें का कैंसर एक आक्रामक, व्यापक, कठोर, कुटिल और घातक रोग है जिसमें फेफड़े के ऊतकों की अनियंत्रित संवृद्धि होती है। 90%-95% फेफड़े के कैंसर छोटी और बड़ी श्वास नलिकाओं (bronchi and bronchioles) के इपिथीलियल कोशिकाओं से उत्पन्न होते हैं। इसीलिए इसे ब्रोंकोजेनिक कारसिनोमा भी कहते हैं। फुफ्फुसावरण (प्लूरा) से उत्पन्न होने वाले कैंसर को मीजोथालियोमा कहते हैं। फेफड़े के कैंसर का स्थलान्तर बहुत तेजी होता है यानि यह बहुत जल्दी फैलता है। हालांकि यह शरीर के किसी भी अंग में फैल सकता है। यह बहुत जानलेवा रोग माना जाता है। इसका उपचार भी बहुत मुश्किल है।
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“Muesli" should be eaten regularly, prepared as follows:
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अभी तक हुए 1500 से अधिक शोधों से यह साबित होता है कि नारियल तेल (कोकोस न्युसिफेरा) हमारी धरा पर विद्यमान एक स्वास्थ्यप्रद और उत्कृष्ट तेल है। सेहत से लेकर सुंदरता तक नारियल तेल प्रकृति का नायाब और अनमोल उपहार है। इसके करिश्माई फायदे आपको चौंका देंगे। गर्म करने पर यह खराब नहीं होता। इसकी शैल्फ लाइफ दो वर्ष से अधिक है। हमें अनरिफाइंड, अनहीटेड, ऑर्गेनिक, कॉल्ड-प्रेस्ड और एक्स्ट्रावर्जिन तेल प्रयोग में लेना चाहिए।
विश्वविख्यात फैट और ऑयल्स एक्सपर्ट और जर्मनी के फेडरल इंस्टिट्यूट ऑफ फैट्स रिसर्च की चीफ एक्सपर्ट डॉ जॉहाना बडविग ने साबित किया है कि नारियल तेल फ्राइंग और डीप फ्राइंग के लिए सबसे अच्छा विकल्प है। गर्म करने पर इसमें ट्रांसफैट नहीं बनते। कैंसर के रोगी भी इस तेल को प्रयोग कर सकते हैं।
पौराणिक महत्व
हिंदू धर्म में नारियल एक शुद्ध, सात्विक, पवित्र, फलदायी एवं लक्ष्मी माता से मनुष्य को जोड़ने वाला फल है, इसीलिए इसे संस्कृत में श्रीफल कहते हैं, श्री का अर्थ होता है लक्ष्मी। किसी भी धार्मिक एवं शुभ कार्य में हुई पूजा में नारियल रखने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं और लक्ष्मी की विशेष कृपा बनी रहती है। घर में नारियल रखने से घर के वास्तु दोष दूर होते हैं। मंदिरों में आमतौर पर इसे पूजा के दौरान भगवान की मूर्ति के सामने फोड़ा जाता है। फोड़ने के बाद यह नारियल प्रसाद के रूप में भक्तों में बांटा जाता है।
What is the Black Seed?
Its botanical name is Nigella sativa. It is believed to be indigenous to the Mediterranean region but has been cultivated into other parts of the world including the Arabian peninsula, northern Africa and parts of Asia.
The Black seeds originate from the common fennel flower plant (Nigella sativa) of the buttercup (Ranunculaceae) family. It is sometimes mistakenly confused with the fennel herb plant (Foeniculum vulgare).
The plant has finely divided foliage and pale bluish purple or white flowers. The stalk of the plant reaches a height of twelve to eighteen inches as its fruit, the black seed, matures.
The Black Seed forms a fruit capsule which consists of many white trigonal seeds. Once the fruit capsule has matured, it opens up and the seeds contained within are exposed to the air, becoming black in color.
The Black seeds are small black grains with a rough surface and an oily white interior, similar to onion seeds. The seeds have little bouquet, though when rubbed, their aroma resembles oregano. They have a slightly bitter, peppery flavor and a crunchy texture.
The Black Seed is also known by other names, varying between places. Some call it black caraway, others call it black cumin, onion seeds or even coriander seeds. The plant has no relation to the common kitchen herb, cumin.
Muslims’ use of the Black Seed:
Muslims have been using and promoting the use of the Black Seed for hundreds of years, and hundreds of articles have been written about it. The Black Seed has also been in use worldwide for over 3000 years. It is not only a prophetic herb, but it also holds a unique place in the medicine of the Prophet .
It is unique in that it was not used profusely before the Prophet Muhammad made its use popular. Although there were more than 400 herbs in use before the Prophet Muhammad and recorded in the herbals of Galen and Hippocrates, the Black Seed was not one of the most popular remedies of the time. Because of the way Islam has spread, the usage and popularity of the Black Seed is widely known as a "remedy of the Prophet ." In fact, a large part of this herbal preparation's popularity is based on the teachings of the Prophet .
The Black Seed has become very popular in recent years and is marketed and sold by many Muslim and non-Muslim
Sauerkraut Health Benefits
Professor of Probiotics including rare Lactobacillus Plantarum
Digests everything
High in Vitamin B group and C
Vanishes GERD and IBS
Immunity booster
High in Fabulous Fiber
Fights Cancer
benefits of Cottage Cheese
sulfur containing protein
bonds and carries flax oil into the cells
Makes healthy and electron rich cell wall
Detoxify the body
dextro rotating lactic acid
alkalize the body
Neutralize the killer levo rotating lactic acid
lactoferrin and lactoferricin
anti-bacterial and anti-viral
builds lymphocytes, monocytes & macrophage
boosts immunity
FOCC is mixture of Flax oil and cottage or quark. It is full of electron rich omega-3 fats, has power to attract healing photons from sun and other celestial bodies through resonance. These fats are full of high energy pi-electrons, which attract oxygen into the cells and are capable of healing cell membranes.
As “Om” is divine word and synonym of God in India. According to Hindu mythology, the whole universe is located inside “Om”, so the name Omkhand has been given to this wonderful recipe.
Black Seed – Cures every disease except death Om Verma
Nigella sativa or Black Seed is an annual flowering plant, native to southwest Asia, eastern coastal countries of Mediterranean region and North Africa. Nigella is a derived from Latin word Niger (black). It grows to 20–30 cm tall, with finely divided, linear leaves. The flowers are delicate and usually coloured pale blue and white, with five to ten petals. The fruit is a large and inflated capsule composed of three to seven united follicles, each containing numerous seeds.
The Black seeds are small black grains with a rough surface and an oily white interior, similar to onion seeds. Black seed has a peculiar aromatic and pungent smell, while onion seeds don’t have this smell. Black seeds have a slightly bitter, peppery flavor and a crunchy texture. The seed is used as a spice, medicine, cosmetic and flavoring agent.
Sour cabbage – Professor of Probiotics
The first and most overlooked reason that our digestive tract is crucial to our
health is because 80 percent of our entire immune system is located in your
digestive tract. In addition, our digestive system is the second largest part of our
neurological system, called enteric nervous system or the second brain.
Probiotics are live beneficial bacteria, which hold the master key for healing
digestive issues, better health, stronger immune system, mental and neurological
disorders. Sour cabbage is the best probiotic food (Germans call it Sauerkraut), It
is produced by lacto-fermentation of the cabbage.
Wild Oregano (Origanum Vulgare ) is a perennial herb that has purple flowers and spade-shaped, olive-green leaves. The whole plant has a strong, peculiar, fragrant, balsamic odour and a warm, bitterish, aromatic taste, both of which properties are preserved when the herb is dry. The oregano sold as a spice is either Sweet Marjoram (Origanum majorana) or Mexican Sage.
There are over 40 oregano species, but the most therapeutically beneficial is the wild oregano or Origanum vulgare that's native to Mediterranean mountains. To obtain oregano oil, the dried flowers and leaves of the plant are harvested when the oil content of the plant is at its highest, and then distilled.
Mayo Dressing
This is part of Budwig Protocol proposed to cure cancer developed by Dr. Budwig.
Delicious mayo salad dressing can be prepared by mixing together 2 Tbsp (30 ml) Flax Oil, 2 Tbsp (30 ml) milk, and 2 Tbsp (30 ml) cottage cheese. Then add 2 tablespoons (30 ml) of Lemon juice (or Apple Cider Vinegar) and add some herbs of your choice.
Health Benefits
Ocean of Probiotics including rare
Lactobacillus Plantarum
Digests everything
Very high in B Vitamins and Vitamin C
Vanishes GERD and IBS
Immunity booster
High in Fabulous Fiber
Fights Cancer
Biography of Dr. Johanna Budwig in Health of India (Covery Story)Om Verma
Definitively Budwig Protocol is a miracle cure for cancer with documented 90% success if you follow this treatment perfectly and religiously. This treatment targets on prime cause of cancer. Prime cause of Cancer is oxygen deficiency in the cells. Two factors are essential to attract oxygen in the cells: 1- Sulfur containing protein (found in cottage cheese) and 2- some unknown fat which nobody could identify until 1949 when Dr. Budwig developed paperchromatography technique to identify fats. These fats were Alpha-linolenic acid and linoleic acid found abundantly in FLAX OIL. Thus she developed Cancer therapy based on Flax oil and cottage cheese.
पिछले महीने हमें बॉक्सर प्रजाति का एक श्वेत “पप” प्राप्त हुआ, जिसे हम मिनी बुलाने लगे थे। हम सब बहुत खुश थे। पूरे परिवार में खुशी की लहर थी।
परंतु 4 मई की रात को अचानक मुई बिजली गुल हो गई। मिनी अंधेरे में नीचे उतर गई और नीचे किसी लड़के ने गलती से अपना पैर मिनी के पैर पर रख दिया। बस बेचारी असहाय मिनी की जोर से चीख निकली। हम सब उसकी चीख सुन कर नीचे भागे। वह दर्द के मारे चीखती ही जा रही थी। हमारी समझ में आ चुका था कि मामला अत्यंत गंभीर है और जरूर इसकी फीमर का फ्रेक्चर हुआ है। हमारी सारी श्वेत और उज्वल खुशियों पर यह काली रात कालिख पोत चुकी थी। पूरी रात हम सो भी न सके। कभी मैं, तो कभी मेरी पत्नि उसे गोद में लेकर रात भर बैठे रहे।
सुबह कोटा के कई वेट चिकित्सकों से परामर्श ले लिया गया। कोई ठीक से बता नहीं पा रहा था कि मिनी के पैर का उपचार किस प्रकार होगा, रोड डलेगी, सर्जरी होगी या प्लेटिंग करनी होगी। हमें लगा कि कोटा में समय बर्बाद नहीं करना व्यर्थ है और तुरंत मिनी को जयपुर या दिल्ली के किसी बड़े वेट सर्जन को दिखाना चाहिये।
मैंने मेरे एक मित्र अनिल, जो जयपुर में रहते हैं, से बात की। उन्होंने मुझे पूरा आश्वासन दिया व कहा कि उनके ब्रदर-इन-लॉ विख्यात वेट चिकित्सक हैं और वे सब व्यवस्था करवा देंगे। तब जाकर मन को थोड़ा सकून मिला। 10 मिनट बाद ही उनके ब्रदर-इन-लॉ ड
After the advent of "lipid hypothesis", which linked the consumption of dietary fat with increased risk of heart disease and other health problems, fat was highly defamed by the medical establishment that many people started thinking that the best answer to the "fat problem" is to stay away from it as far as possible. Food processing companies quickly took advantage of this era of “fat phobia”, and soon flooded the market with "low fat" and "no fat" products, promising to put an end to heart disease and obesity, but the incidence of these diseases is still skyrocketing.
The truth is that not all fats are equal. While the consumption of some bad fats (trans-fats) are, really, a risk factor for many health problems, some other fats, including alpha-linolenic acid ALA and linoleic acid LA, are so important for health that they have been termed "essential fatty acids" (EFAs). Our body needs them to perform vitally important functions, but our body is unable to produce them. Therefore, we must get them from our food. That's why any attempt to indiscriminately reduce or eliminate all fats from our diet inevitably leads to an EFA deficiency, which may be very dangerous to health.
For all the good it does, fat is often blamed to cause obesity, because it contains 9 calories per gram, in contrast to carbohydrate and protein which contain only 4 calories. Yet, it's a mistake to relate dietary fat with body fat. You can get fat by eating carbs and protein, even if you eat little dietary fat.
In 1956, Hugh Sinclair, one of the world's greatest researchers in the field of nutrition, suggested that an upsurge in the so-called "diseases of civilization" e.g. coronary heart disease, strokes, type-2 diabetes, arthritis and cancer - was caused by modern diets being extremely poor in essential fatty acids (EFA) and full of processed foods rich in trans-fatty acids. Although Sinclair's opinion was not supported by his pears, and he was even criticized by some of them for his bold hypothesis; later research convincingly showed that he was, indeed, correct. In fact, he is now praised for insights that were far ahead of his time.
Fat gives us beauty, shape and protection. A thin fat layer located under the skin helps to insulate and maintain the proper body temperature. Fat is used as a source of backup energy when carbohydrates are not available. Vitamin A, D, E and K are known as fat-soluble vitamins, need fat in order to be absorbed and stored. Fats are also responsible for making sex hormones, cell membranes and prostaglandins.
आपने पोर्नोग्राफिक वेब साइट्स और सेक्स पत्रिकाओं में जी-स्पॉट के बारे में अक्सर पढ़ा होगा। जहाँ कुछ लोग इसको लेकर बहुत उत्सुक हैं और इसका आनंद भी उठा रहे हैं, वहीं कुछ नकारात्मक विचारधारा वाले लोग इसे महज़ किसी सिरफिरे व्यक्ति के दिमाग की उपज मानते हैं। वे मानते हैं कि जी-स्पॉट नाम की कोई चीज है ही नहीं। जी-स्पॉट पर इतना हल्ला होने के बाद भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। इसलिए मैं आज रहस्य के सारे परदे उठा कर सच्चाई को उजागर कर देना चाहता हूँ। तो चलिए सबसे पहले हम इतिहास के पन्नों को पलटने की कौशिश करते हैं।
1950 के दशक में विख्यात गायनेकोलोजिस्ट डॉ. अर्न्सट ग्रेफनबर्ग ने इंटरनेशनल जरनल ऑफ सेक्सोलोजी में The Role of Urethra in Female Orgasm नाम से एक प्रपत्र प्रकाशित किया था। इन्होंने स्त्रियों की यूरेथ्रा के चारो तरफ कोर्पोरा केवर्नोजा की तरह एक स्पंजी और इरेक्टाइल टिश्यू को चिन्हित किया, जिसे यूरीथ्रल स्पंज कहा जाता है। इसके बाद 1980 के दशक में सेक्स एजूकेटर और काउंसलर बेवर्ली व्हिपल और सायकोलोजिस्ट और सेक्सोलोजिस्ट जॉन पेरी ने डॉ. अर्न्सट ग्रेफनबर्ग की शोध को आगे बढ़ाया और अंततः डॉ. अर्न्सट ग्रेफनबर्ग के नाम पर इस इस रहस्यमय स्पॉट का नाम जी-स्पॉट रखा।
आज हम सभी के लिए खुशी और उल्हास का अवसर है, हमारे कुंवर निशिपाल का परिणय बंधन सौ.कां. निधि के साथ होने जा रहा है। हम सब इनके सुखी और आनंदमय वैवाहिक जीवन की कामना करते हैं। इस अवसर पर मैंने यह सत्यपाल गीता तैयार की है। अलसी के नीले फूलों से सजी यह गीता में हमारे आदरणीय पिताजी ठाकुर सत्यपाल सिंह जी के चरणों में समर्पित करता हूँ।
डाॅ. ओ.पी.वर्मा श्रीमती उषा वर्मा
Dangers of Cell phones सेलफोन – फ्रैंडली पिजन या ब्रेन बग
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सेलफोन – फ् रैंडली िपजन या ब्र
(मेघदूत जन जमदूत)
डॉ. ओ.पी.वमार
अध्य, अलसी चेतना यात्
7-बी-43, महावीर नगर ततीय
ृ
कोटा राज.
http://flaxindia.blogspot.com
+919460816360
आज सेलफोन हमारे दैिनक जीवन का एक अिभन्न अंग बन ुका है। िबना सेलफोन क आजकल जीवन क� कल्पना करना भी
च
मिु श्कललगता है। िजधर देखो उधर आपको लोग हाथ में सेलफोन थामें िदखाई दे, ठीक वैसे ही जैसे द्वापर युग में श्री कृष्ण
अंगली में सुदशर्न चक्र धारण करके घूमा करते थे। देखते ही देखते िप15 वष� में सेलफोन के जाल ने पूरे िव� को जकड़
ु
िलया है। िकशोर लड़के और लड़िकयाँ तो सेलफोन के इतने दीवाने हो चके है, सबह से लेकर रात तक सेलफोन से ही िचपके
ु
ु
रहते है । भारत में सेलफोन क� क्रांित लाने में अंबानी बंध का भी बह�त बड़ा हाथ है। "कर लो दिु नया मट्ठी " के नारे का सहारा
ु
लेकर इन्होंने खूब मोबाइल �पी मौत का कारोबार िकया। लोग तो दुिनया को शायद अपनी मुट्ठी में नहीं कर सके लेिकन अ
बन्धु ज�र टाट, िबरला आिद सभी अमीरों को पीछे छोड़ कर भारत के सबसे अमीर आदमी बन गये
बाजार में शौक�न लोगों के िलए कई कम्पिनयाँ ह-जवाहरात जड़े िनत नये मंहगे और
नायाब सेलफोन भी बेचने में लगी हैं।2009 में स्टुअटर् �ूजेस कम्पनी ने दुिनया का सब
मंहगा गोल्डस्ट्राइकर आईफोन बाजार में उतारा था। इस फोन को बनान271 ग्राम सोन
और 200 हीरे काम में िलए गय है। 53 खूबसूरत रत्नों से ऐपका लोगो बनाया है और होम
बटन पर 7.1 के रेट का बड़ा हीरा जड़ा गया है। इसक� क�मत 3.2 िमिलयन डॉलर (लगभग
15 करोड़ �पये) रखी गई है। लेिकन इतना मंहगा होने पर भी यह है तो मौत का ही सामान।
आज पूरे िव� में5.6 िबिलयन सेलफोन उपभो�ा हैं। भारत िव� में दूसरे नम्बर पर आता है। ताजा आंकड़ों के अनुसार आज हम
यहाँ 881,400,578 सेलफोन उपभो�ा हैं। यािन हमारे 73.27% लोग सेलफोन रखते हैं। एक अनुमान के अनुसार201 3 तक यह
संख्या एक अरब से अिधक हो जायेगी। लेिकन मद्दे क� बात यह है ि सरकारी संस्थाओं नें िबना सो-समझे िनमार ्ताओं को
ु
सेलफोन बेचने क� स्वीकृित दे दी, यह नहीं सोचा िक इससे िनकलने वाली इलेक्ट्रोमागनेिटक तरंगे हमारे स्वास्थ्य के ि
खतरा तो नहीं बन जायेंगी। अफसोस इस बात का है िक इसक� सुर�ा को लेकर कोई शोध ही नहीं गई और हर आदमी को यह
खतरे का झनझना पकड़ा िदया। चिलये आज हम सं�ेप में सेलफोन के खतरों से �ब होते है और उनसे बचने के तरीकों पर भी
ु ु
स्प� और िनष्प� चचाकरते हैं
2. 2|Page
इितहास
चल दरभाष यािन तारयु� टेलीफोन
ू
पहले हम फोन और सेलफोन के इितहास क� जानकारी हािसल करते है । सचमच सन् 1876 िव� के
ु
इितहास में बह�त अहम थ , क्योंिक इसी वष एिडनबगर , स्कॉटलै, िब्रटेन के एलेक्जेंडर ग्राह (3
माचर , 1847 – 2 अगस् , 1922) ने टेलीफोन का आिवष्कार िकया था। यह एक महान आिवष्कार थ
उनके इस क्रांितकारी आिवष्कार ने पूरे िव� को समेट कर वैि�क गांव बना िदया था। इसके एक
साल बाद ही सन् 1877 में उन्होंने बेल टेलीफोन कम्पनी बना ल । इसी वषर ् उन्होंने मबेल गािडर
हबडर ् से िववाह रचाया और एक साल क� लम्बी हनीमू मनाने के िलए यूरोप क� यात्रा पिनकल पड़े ।
कालान्तर मेउनके दो पिु त्रयां एल्सी और मै�रएन पैदा ह�ई।
28 जनवरी, 1882 का िदन भारत के इितहास में रेड लेटर डे के नाम से अंिकत ह, क्यों इस िदन भारत में पहली बार टेलीफोन
सेवाएं जो शु� ह�ई थी। कलक�ा, मद्रास और बम्बई में टेलीफोन एक्सचेंज बनाये ग93 उपभो�ाओं को टेलीफोन कनेक्शन
िदये गये थे।
अचल दूरभाष यािन सेलफोन
लगभग आधी सदी तक िजन तारों ने हमारे टेलीफोन्स ही नहीं बिल्क हम
िदलों को भी जोड़ कर रखा थ, उन्हें मािटर्न कू(जन् - 26 िदसंबर, 1928
िशकागो, इिलनोइस, अमरीका ) ने सन् 1973 में कुतर डाला और
इलेक्ट्रोमागनेिटक तरंगो पर आधा�रत दूरसंचार क� नई टेक्नोलोजी िवक
क�। इस तरह उन्हों सेलफोन का आिवष्कार िकया था । तब ये मोटोरोला
कम्पनी के उपाध्य� थे। बाद में इन्होंने ऐरे कोम नामक कम्पनी बनाई।
मोबाइल फोन का िपता भी कहा जाता है। एक दशक के बाद 1983 में जाकर
मोटोरोला कम्पनी ने अमे�रका में पहली बार सेलफोन सेवाएं शु� क� थी
लेिकन भारत में पहली मोबाइल फोन सेवाएं पि�मी बंगाल में मोदी टेलस्ट्रा मोबाइलनेट कम्प31 जलाई, 1995 के शु� क�
ु
और इसका िविधवत उद्टन यहाँ के मख्य मंत्री ने िकया था
ु
सेलफोन के खतरे
सेलफोन या मोबाइल फोन एक माइक्रोवेव ट्रांसमीटर है। माइक्रोवेव तरंगें रेिडयो वेव य-चुम्बक�य तरंगे होती ह, जो प्रका
क� गित (186 ,282 मील प्रित सैकण्ड) से चलती है।
CDMA सेलफोन 869–894, GSM900 सेलफोन 935–960,
GSM1800 सेलफोन 1810–1880 और 3G सेलफोन 2110–2170 मेगाहट्र ्स आवृि� पर काम करते हैं इन तरंगों क� आवृि�
(Frequency) सामान्यतः1900 Mega Hertz (MHz) होती है अथार ्त य एक सैकण्ड में लाखो करोड़ों बार कंपन्न करती
सेलफोन हमारी आवाज क� तरंगों के छोट-छोटे पिु लंदे ( Packets) बना कर रेिडयो तरंगों पर लाद कर एक स्थान से दूसरे स्थ
तक भेजता है, यािन रेिडयो तरंगं वाहन के �प में कायर् करती ह आधिु नक युग में टेलीिवज , इंटरनेट, सेलफोन या टेलीफोन
े
संदशों के प्रस में माइक्रोवेव तरंगों क� मदद ली जाती सेल्यूलर बायोकेिमस्ट्री के जरनल के अनुसार ये तरंगे हमार.एन.ए.
े
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तथा उसका जीण�द्धार करने वाले तंत्र को �ितग्रस्त करती हैं
के पेसमेकर क� कायर ्प्रणाली को बािधत कर सकती हैं। माइक्रोव
कुप्रभाव से हमारी कोिशकाएं जल्दी जीणर्ता को प्रा� होती है। वाि
िव�िवद्यालय के प्रध्या. हेनरी लाइ ने स्प� कहा है िक माइक्रोव
तरंगे अमे�रकन सरकार द्वारा तय मानक के काफ� कम मात्रा मे
मिस्तष्क को �ित पह�ँचाती हैं
दशकों पहले कई वै�ािनकों ने बतला िदया था िक माइक्रोवेव से क
होने क� संभावना रहती है। शायद आपको याद होगा िक शीत युद्ध क
समय �स ने मास्को िस्थत अमे�रकन दूतावास में गु� �प से माइक्र
ट्रांसमीटर लगा िदया , िजससे अमेरीका के दो राजदूत ल्यूक�िमया के िशकार बने और कई अन्य कमर्चारी भी कैंसर से पी
ह�ए।
सामान्य िवकार
शरीर के पास मोबाइल रखने से िविकरण के ऊष्मी प्रभाव हो सकते है ऊष्मा के कारण आं, मिस्तष, �दय, उदर आिद अंगों
के आसपास का द्रव सूखने लगता है। मोबाइल से िनकलने वाली रेिडयो तरंगो से िनम्न सामान्य िवकार हो सकते
• इसके कुछ अन्य गैर ऊष्मीय प्रभाव जैसे िसर क� त्वचा प , लािलमा, खाज-खजली, फुंिसयां, त्वचा में अबु,
ु
िसहरन या चक�े बन जाना प्रमुख है
• साथ ही थकान, अिनद्, चक्कर आन, कानों मेआवाज आना या घंिटयां बजना, प्रितिक्रया देने में व�, एकाग्रत
में कम, स्मृि-ह्र, िसरददर, सूंघने क� शि� कम होना, भूख न लगना, उबकाई, पाचन तंत्र में गड़, िदल क� धड़कन
बढ़ना, जोड़ों में द, मांस-पेिशयों में जकड़न और हाथ पैर मकं पकं पी इत्यािदल�ण हो सकते हैं।
• कुछ को स्नायु िवकार जैसे िसर में गुंजन हो, बैचेनी, घबराहट, अपस्मा, लकवा, स्ट्, मनोिवकृित आिद ल�ण हो
सकते हैं।
• �ेत र�-कणों क� संख् और कायर ्�मता कम हो जाती है। मास्ट कोिशकाएँ ज्यादा िहस्टेमीन बनाने लगती हैं ि
�ासक� या अस्थमा हो जाता है।
• वै�ािनक कहते हैं िक सेलफोन गभर्वती ि�यों के पेट में पल रहे भ्रूण को नुकसान पह�ँचा स, इसिलए वे सावधान
रहें और सेलफोन का प्रयोग नहीं कर
• आँखों में मोितयािब, आँखों में कैंसर और -पटल �ितग्रस्त होता ह
कणर्�वेड या �रंग्जाइट(Tinnitus or “Ringxiety”) कई सेलफोन उपभो�ा को फोन क� घंटी सनाई देती है भले फोन बजा ही नहीं हो। िदन रात सेलफोन प्रयोग करने वालों में
ु
बड़ा सामान्य िवकार है। इसे िटनाइटस या �रंग्जाइटी कहा जाता है। क-कभी तो यह िवकार इतना बढ़ जाता है िक रोगी का
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सनना, काम करना या सोना भी मिु श्कल हो जाता है। आगे चल कर आंत�रक कणर् क� नाजुक िक-प्रणाली बािधत होने लगती ह
ु
और स्थाई बहरापन भी हो सकता है
मिस्तष्क और कैं
सेलफोन खोपड़ी क� नािड़यों को �ित पह�ँचाते हैं रेिडयो तरंगे मिस्तष्क को र� पह�ँचाने वाले -मागर ् क� बाधाये (Blood Brain
Barrier) खोल देती हैं िजससे िवषाण, ऐल्ब्युिमऔर दिू षत तत्व मिस्तष्क में घुस जाते हैं। सेलफोन से िनकलने व.एम. तरंगे
मेलाटोिनन का स्तर भी कम करता है। मेलाटोिनन एक शि�शाली एंटीऑक्सीडे, एंटीिडप्रेसेन्ट तथा र�ाप्रणाली संवधर्क
हमारे शरीर क� जीवन-घड़ी ( Circadian Rhythm) को भी िनयंित्रत करता है यह हमे एल्झाइम, पािक� सन्स रोग और कैंसर स
बचाता है। इसका स्तर कम होने से कैं, कई िनद्-िवकार, गभर ्पा, थकावट, आथ्र ार्इ, डी.एन.ए. क� िवकृित, आँखों में तन
और अवसाद होने का जोिखम बढ़ जाता है। इसक� कमी से वक्, �दय, प्रजनन या स्नायु तंत्र सम्बन्धी रोग भी हो स
ृ
डॉ. कोल� के अनसार जीिवत ऊतक को रेिडयो या िवद्य-चुम्बक�य तरंगों से इतना खतरा नहीं हैं। असली दुष्मन तो ध्विन या
ु
से बनी िद्वतीयक तरंगे , िजनक� आविृ � Hertz में होती है और िजसे हमारी कोिशकायें पहचानने में स होती हैं। हमारे ऊतक
इन तरंगों को आतंकवादी हमले के �प में लेते हैं और सुर�ा हेतु समुिचत जीवरसायिनक कदम उठाते हैं। जैसे कोिशकायें
को चयापचय के िलए खचर ् न करके सुर�ा पर खचर् करने लगती हैं। िभि�यां कड़ी हो जाती, िजससे पोषक तत्व कोिशका के बाहर
ही और अपिश� उत्पाद अंदर ही बने रहते हैं। िजससे कोिशका में -कण बनने लगते हैं और ड.एन.ए. का जीण�द्ध-तंत्र तथ
कोिशक�य िक्रयाएं बािधत होने लगती हैं। फलस्व�प कोिशकाएं मरना शु� हो जात, टूटे ह�ए डी.एन.ए. से माइक्रोन्यूिक्ल
(Micronuclei ) बाहर िनकल जाते हैं और उन्मु� होकर िवभािजत और नई कोिशकाएं बनाने लगते हैं। कोल� इसी प्रिक्
कै ंसर का कारक मानते हैं। साथ ही कोिशकाओं में प्रभी �ितग्रस्त हो जाता
िजससे अन्तरकोिशक�य संवादऔर संकेतन प्रणालबंद हो जाता है, फलस्व�प
शरीर के कई कायर ् बािधत हो जाते हैं
मिस्तष्क में कई तरह के कैंसर जैसे ऐकॉिस्टक न्, ग्लायोम, मेिननिजयोमा,
ब्रेन िलम्फ, न्यूरोईिपथीिलयल ट्यूमर आिद बड़े खत नाक माने जाते हैं।
1975 के बाद अमे�रका में मिस्तष्क के कैंसर क� दर25 % का इजाफा ह�आ
है। अमे�रका में सन्2001 में185,000 लोगों को िकसी न िकसी तरह का
मिस्तष्क कैंसर ह�आ। मिस्तष्क में अंगूर के दाने बराबर कैंसर क� गाँठ म
महीने में बढ़ कर टेिनस क� गैंद के बराबर हो जाती है। मिस्तष्क कैंसर सामा
बह�त घातक होता है, तेजी से बढ़ता है और रोगी क� 6-12 महीने में मृत्यु हो जात
है।
अग्न्या, थायरॉयड, अण्डाशय और ृषण(Testes) आिद
व
ग्रंिथयों संबन्धी िवकार हो जाते हैं। पैंट क� जेब में मोबाइल रखने से शुक
संख्य और गितशीलता 30 % तक कम हो जाती है, शुक्रा भी �ितग्रस्त हो
लगते है और सेलफोन प्रयो�स्थाई पचअसकता को प्रा� हो जाता है।
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बच्चे और िकशोर ज्यादा संवेदनशील
बच्चों और िकशोरों के िलए सेलफोन का प्रयोग बेहद खतरनाक हो सकता है। कुछ यूरोप के देशों ने अिभभावकों को कड़े
जारी िदये हैं िक वे अपने बच्चो को सेलफोन से दूर रखें। यूटा िव�िवद्यालय के अनुसंधानकतार् मानते हैं िक बच्चा िजत
होगा, वह उतना ही ज्यादा िविकरण का अवशोषण करेगा, क्योंिक उनक� खोपड़ी क� हड्िडयां पतली होती , मिस्तष्क छो,
कोमल तथा िवकासशील होता हैं और माइिलन खोल बन रहा होता है। स्पेन के अनुसंधानकतार् बतलाते हैं िक सेलफोन बच्च
मिस्तष्क क� िवद्युत गितिविध को कुप्रभािवत क, िजससे उनमें मनोदशा( Mood) तथा व्यवहा संबन्धी िवकार होते ह,
िचढ़िचढ़ापन आता है और स्मरणशि� का ह्रास होता ह
कार में खतरा ज्यादा
बंद कार मेंटॉवर से पयार ्� िसगनल न िमलने के कारणसेलफोन को टावर से समिु चत संपक् बनाये रखने के िलए सेलफोन को बह�त
र
तेज रेिडयो तरंगे छोड़नी पड़ती है। इसिलए कार में माइक्रोवेव रेिडयेशन क� मात्रा बह�त ज्यादा बढ़ जाती है। इसीिलए यूर
मशह�र और िजम्मेदार कार िनमार्ता वोल्कसवेगन अपने खरीदारों को स्प� िनद�श देता है िक कार में सेलफोन का प्रयोग बह
सािबत हो सकता है क्योंिक सेलफोन कार में बेहद खतरनाक मात्रा में इलेक्ट्रोमेगनेिटक रेिडयेशन िनका
रेिडयो तरंगों के प्रदूषण से -जन्तु और पे-पौधे बुरी तरह प्रभाि
रेिडयो तरंगों के प्रदूषण से -जन्तु और पे-पौधे भी बच नहीं सके हैं। सेल टॉवर के आसपास क� गाय और भैंसें कम दूध द
लगी हैं। बक�रया, कु�े, िबिल्लया, खरगोश आिद भी प्रभािवत ह�ए हैं। इन जानवरों में गभर्पात और अन्य रोग बढ़ रहे हैं। स
के आसपास के इलाकों में ितत, मधमक्ख, कबूतर, हंस, सारस, गौरैया आिद का िदखना बन्द सा हो गया है।
ु
भारत में .एम. रेिडयेशन क� िस्थित िचंताजनक
भारत क� िस्थितबह�त गंभीर है। जयपर को ही लीिजये, यहाँ आिदनाथ मागर ् िनवासी जैम पैलेस के संचालक दो भाइयों को तीन मा
ु
के अंतराल में ही ब्रेन कैंसर हो गया। बड़े 55 वष�य संजय कासलीवाल लाखों �पए खचर् कर आठ माह बाद अमे�रका से लौट
ही थे िक इसी बीच उनके 52 वष�य छोटे भाई प्रमोद कासलीवाल को ब्रेन कैंसर होने का पता चला। तीन महीने पहले उनके प
कु�े के पेट में कैंसर क� गांठ हो गई थी। इसका कारण मोबाइल फोन का प्रयोग और इलाके में लगी तीन सेलफोन टावर थ
भारी मात्रा में इलेक्ट्रोमैग्नेिटक तरंगे चौबीसउगल रही हैं
प्रोफेसर िगरीश कुम, िवद्युत अिभयांित्रक� ि, आई.आई.टी. पवई, मम्ब
ु
सेलफोन टावसर् के खतरों पर भारत के महान अनुसंधानकत
प्रोफेसर िगरीश कुम , िवद्युत अिभयांित्रक� ि , आई.आई.टी. पवई, मुम्बई तीन दशकों से एंटीना के �ेत्र में शोध कर रह
इन्हों "ब्रॉडबैंड माइक्रोिचप एं " नामक पस्तक िलखी है और150 शोधपत्र िविभन्न राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय
ु
प्रकािशत िकये हैं। इन्ह1000 तरह के एंटीना िवकिसत िकये हैं। ये सेलफोन और सेलफोन टॉवसर् के खतरों पर भी दस वषर्
शोध कर रहे हैं। इन्हों 27 माचर ् को िदल्ली में सेलफोल और टॉवसर् के खतरों क� समी�ा हेतु आयोिजत एक गोल मेज सम्मेलन
6. 6|Page
अपना एक प्रितवेददूरसंचार मंत्री श्री किपल िसब्बल का प्रस्तुत िकया ह ASSOCHAM के अिधकारी भी उपिस्थत थे।
अब देखना है िक सरकार क्या कदम उठाती है। इस प्रितवेदन को बनाने इनक� अपनी पत्री नेहा कुमार ने भी मदद क� है इन्होंन
ु
अन्ना युनीविसर्टी से इंडिस्ट बायॉटेक्नोलोज में बी.टेक.िकया है और ये माबाइल टावर रेिडयेशन के बायोलोजीकल इफे क्ट्स
पर शोध कर रही हैं। ये नेसा रिडयेशन सोल्यूशन्स क� िनद�शक ह
प्रोफेसर . कुमार ने बताया िक भारत में टेलीकोम कम्पिनयां प्रित के�20
वाट रेिडयेशन छोड़ती हैं। एक ऑपरेटर को कई के�रयर िफ्रक्वे (2 to 6)
आवंिटत क� जाती हैं और पैसे बचाने के िलए एक ही छत या टॉवर पर3-4
ऑपरेटसर ् अपने एन्टीना लगा लेते हैं। इस तरह सारे एंटीना िमला 100 से
400 वाट तक रेिडयेशन छोड़ते है, जो बह�त ज्यादा है। जबिक घने �रहायशी
इलाकों में ऑपरेटर क2 वाट से अिधक रेिडयेशन नहीं छोड़ना चािहये। इसके
अलावा ये डायरेक्शनल एंटीना भी प्रयोग करते, िजनका गेन भी 17 dB तक
बढ़ा देते है। प्रोफेसर .कुमार आइ.सी.एन.आई.आर.पी. के मौजूदा मानकों
(जी.एस.एम. 1800 के िलए 92 लाख माइक्रोवाट प्रित वगर्) से सहमत
नहीं हैं। बायो इिनिशयेिटव �रपोटर् और उनक� शोध के अनुसार रेिडयेशन घन
0.0001 वाट प्रित वगर् मीटर से अिधक नहीं होना चािहये क्योंिक सेल
24 घंटे रेिडयेशन छोड़ते हैं और इनके समीप रहने वाले लोग आजीवन इस
रेिडयेशन को झेलते हैं। इस तरह आ.सी.एन.आई.आर.पी. के मानकों का
1/10th और 1/100th िहस्सा अथार्त .एस.एम. 1800 के िलए 9.2 और
0.92 लाख माइक्रोवाट प्रित वगर् मीटर भी बह�त अिधक है। उन्हें खेद है िक ज.एच.ओ. ने 31 माचर , 2011 में माबाइल फोन
को कै ंसर का कारक मान िलया ह, लेिकन सेल टॉवसर ् को छोड़ िदया है जब िक यह तो24 घंटे खतरनाक रेिडयेशन उगलता रहता
है।
प्. जी. कुमार ने कहा है िक भारत में5 लाख सेलफोन टॉवसर ् हैं िजनमें 2 लाख घने �रहायशी इलाकों में लगी हैं। ये भारी मात्र
सातों िदन और चौबीसों घंटे खतरनाक.एम. रेिडयेशन उगलती रहती हैं। इनके िनकट रहने वाले लोग लगातार .एम. रेिडयेशन
सोख रहे हैं और इनको कैंसर तथा कई अन्य रोगों का जोिखम बना ह�आ
यिद ऑपटर ्सर् कम शि� के एंटीना या ट्रांसमीटर लगाये तो बह�त अ
सेलफोन टावसर ् लगाने होंगे एक टॉवर का खचार ्15 लाख �पये आता है। यिद
5 लाख नये टॉवर लगाने पड़ें तो 75,000 करोड़ �पये अित�र� खचर ् होंगे। यह
खचार ् बचाने के िलए ऑपरेटसर् सरकार के कड़े मापदण्ड तय करने का िवर
करते हैं।
इन्होंने बतलाया है िक मुम्बई के आवासीय इलाकों में सेलफोन टॉवस
िनकलने वाला ई.एम.रेिडयेशन सरि�त सीमा से बह�त ज्याद है। ई.एम.रेिडयेशन
ु
क� मात्र100 माइक्रव्हाट प्रित वगर्मीटर से ज्यादा नहीं होन , जबिक
कई जगह यह 1000 माइक्रव्हाट से भी ज्यादा है और लोगों के स्वास्थ्य
बह�त बड़ा खतरा बना ह�आ है। इन इलाकों में लोगों को िचढ़िचढ़ , थकावट,
िसरददर, उबकाई, बेचैनी, िनद्-िवकार, �ि�-दोष, एकाग्रता में , अवसाद,
स्मृि-ह्र, चक्क, नपसकता, कामेच्छा में क, िशशु में पैदायशी दो आिद
ुं
तकलीफे ं हो रही हैं। ि�यों को तकलीफ
दा होती है। प्रोफेसर िगरी
7. 7|Page
इसे "धीमा और अ�श्य काित" क� सं�ा देते हैं
मुम्बई में जसलोक हॉस्पीटल के पास पेडर रोड पर िस्थत ऊषा िकरण इमारत क� पांच से दसवीं मंिजल में हाल ही छः लो
कै ंसर ह�आ ह, क्योंिक इस इमारत के ठीक सामने िवजय अपाटर्मेंट क�(जो इन मंिजलों के ठीक सामने पड़ती ह) पर कई
कम्पिनयों के सेलफोन एंटीना लगे है
प्. कुमार ने बतलाया है िक हमारे यहां कं पिनयों के दबाव में रेिडएशन मानक �स 460 गना और आिस्ट्रया 10 लाख गना
ु
ु
ज्यादा रखा है।यह कािबले गौर है िक दिु नया में सबसे खराब मानक हमारे देश ने तय कर रखे हैं। जबिक अन्य देशों के मानक हम
यहाँ से बह�त ही कम हैं। �, इटली और पोलेंड आिद देशों के मान0.1 वाट प्रित वगर् मीटर है। िस्वटजरलैंड के कई संवेद
इलाकों में रेिडयेशन मान0.042 और 0.095 वाट प्रित वगर् मीटर हैं। भ
सरकार ने इंटरनेशनल कमीशन फॉर नॉनआयोनाइिजंग रेिडएशन प्रोटेक्शन के मानकों को अपने िहसाब से-मरोड़कर रेिडएशन मानक 92 लाख माइक्रोवाट प्रित वग.
कर रखे है। ऐसे में दूर संचार िवभाग क� मोबाइल कंपिनयों पर मेहरबानी पर सवाल उठने लगे हैं िक इस नीित के पीछे भी 2-जी
स्पेक्ट्रम जैसी कोई सािजश तो नहीं िछ?
डॉ. जी. कुमार कहते हैं िक सेलफोन उद्योग उन्नीसवीं सदी में शु� ह�ए िसगरेट उद्योग का इितहास दोहरा रहा है। पूरी एक
िसगरेट िनमार ्ता िचल्-िचल्ला कर दलील देते रहे िक िसगरेट मानव के िलए नुकसान दायक नहीं , लेिकन आप जानते हैं िक
आज िसगरेट के कारण लाखों करोड़ों लोग मर रहे हैं। सेलफोन उद्योग आज येन केन प्रकारेन सेलफोन को मानव िहतैषी
करने में जुटा है। हमें सेलफोन त्रासदी से हर हाल में बचना
सेलफोन टॉवसर् के रेिडयेशन को कम करने हेतु प्रोफेसर. कुमार के सुझाव
• सेलफोन ऑपरेटसर के िलए सरकार को मानव जाित, प�रन्द, जानवर और पेड़-पौधों क� सुर�ा को प्राथिमकता देते ह
नये कठोर मानक तथा िनयम बनाने होंगे और उनक� गितिविधयों पर नजर भी रखनी होगी
• ऑपरेटसर को प्रित के�रयर रेिडयेशन क� मात(खास तौर पर घनी आबादी वाले इलाकों म) मौजूदा 20 वाट प्रित के�रय
से घटा कर 1 या 2 वाट करनी चािहये। यह करना उनके िलए किठन काम नहीं है। इसके िलए िसफर् उन्हें प
एिम्प्लफायर हटाना पड़ेगा या उसका गेन कम करना पड़ेगा। इसके उन्हें कुछ फायदे भी होगे जैसे एिम्प्लफायर का
करने के िलए एयर कं डीशनर लगाने क� ज�रत नहीं होगी और पावर क� खपत कम होने के कारण डीज़ल क� जगह सौर
ऊजार ् से चलने वाले जनरेटर से काम चल सकता है। यह ह�रत टेलीकॉम पयार्वरण क� �ि� से भी यह उिचत रहेगा
लेिकन इससे एक नकसान यह होगा िक टॉवर से दर रहने वाले उपभो�ाओं को िसगनल कमजोर िमलेगा और ऑपरेटसर ्
ु
ू
को ज्यादा टावसर् /या �रपीटसर ् लगाने पड़ें, िजससे िलए उन्हें अिधक धनरािश भी खचर् करनी पड़ेग
• आवासीय इलाको, स्कू, ऑिफस, अस्पताल आिद जगहों पर स-समय पर रेिडयेशन क� मात्रा को नापा जान
चािहये। यिद िफर भी रेिडयेशन अिधक है तो सेल टॉवर को अन्य जगह लगाया जाना चािहये।
• सेलफोन टॉवसर ् के अलावा मोबाइल फो, कोडर ्लेस फो, कम्प्यू, टी.वी.टॉवर, एफ.एम.टॉवर, माइक्रोवेव ऑवन आि
भी बड़ी मात्रा में रेिडयेशन छोड़ते हैं और हमें सबके घातक प�रणाम भुगतने पड़ते
• अब समय आ गया है जब सेलफोन कम्पिनयों को पुराना रवैया छोड़ कर खुल कर स्वीकार कर लेना चािहये िक सेलफ
रेिडयेशन मानव समेत समस्त प्र, वनस्पित जगत और पयार्वरण के िलए बह�त बड़ा खतरा है। तभी हम िमल कर इसस
बचने के तरीके ढ़�ँढ़ पायेंगे।
8. 8|Page
डॉ. काल� महान अनसधानकतार
ु ं
डॉ. जॉजर ् काल� पीए.डी., एम.एस., जे.डी.
वै�ािनक, सलाहकार, अिभव�ा, अनसंधान और िवकास िनद�शक,
ु
संस्थाप, साइंस एण्ड पिब्लक पॉिलसी इंिस् टट्
पूवर् अध्, सेल्यूलर टेलीफोन इंडस्ट्री ऐसोिसय(CTIA)
अध्य, वायरलेस टेक्नोलोजी �रसचर् प्रो(WTR)
टी.वी. कायर ्क्- सी.बी.एस. न्यू, सी.एन.एन., फोक्स न्य,
वल्डर् न्यूज टून, एम.एस.एन.बी.सी.
1992 में फ्लो�रडा के उद्योगपित डेिवड रेनाडर33 वष�य पित्न सुज़ान ऐलेन क�
एस्ट्रोसाइटोमा नामक मिस्तष्क कैंसर से मृत्यु हो गई थी और उन्होंने सेलफोन
एन.ई.सी. और जी.टी.ए. मोबाइलनेट के िव�द्ध अदालत में दावा ठोक िदया थ21
जनवरी, 1993 को डेिवड ने लैरी िकं ग लाइव शो नामक टी.वी. कायर ्क्रम में सेल
कम्पनी को जम कर कोसा और लोगों को सुजान के एक्सरे िदखाये िजसमें कान
पास कै ंसर क� गांठ साफ िदखाई दे रही थ, जहाँ फोन लगा कर सजान रोजाना घन्टो
ु
बात िकया करती थी। दूसरे िदन इस के स को लेकर मीिडया में काफ� हल्ला ह�आ औ
सेलफोन कम्पिनयों के शेयरों में भारी िगरभी देखी गई। बेहताश सेल्यूलर टेलीफोन
इंडस्ट्री ऐसोिसये( CTIA) ने आनन-फानन में अपने बचाव हेतु झूंठा बयान जारी
कर िदया िक सेलफोन के खतरों पर काफ� शोध ह�ई है और सेलफोन पूरी तरह
सरि�त माने गये हैं तभी सरकार ने सेल फो को मंजूरी दी है। उस समय अमे�रका में
ु
सेलफोन के डेढ़ करोड़ उपभो�ा थे और मीिडया शोध क� �रपोटर ् सावर्िजक करने क
मांग उठा रहा था, लेिकन वास्तिवकता यह थी िक कोई शोध ह�ई ही नहीं थी। आिखरकार मीिडया के भारी दबाव के कारण
सी.टी.आई.ए. ( CTIA) को सेलफोन के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले खतरों और उनसे बचने के उपायों को खोजने हेतु वाय
टेक्नोलोजी �रसचर् प्रो( WTR) गिठत करना पड़ा और इसके िलए सेलफोन कम्पिनयों न2.85 करोड़ डॉलर क� धनरािश देने
क� बात कही। बह�चिचर ्त ड. जॉजर ् काल� को इस प�रयोजना का अध्य� बनाया गया
डॉ. काल� स्वतंत्र संस्थाओं द्वारा क� जा रही शोध पर भी नजर बनाये ह�ए थे। शु� में तो-ठाक रहा लेिकन जब उन्हें ऐस
संकेत िमले िक सेलफोन से ब्रेन कैंसर का खतरा बह�त है तो उन्होंने कई सेलफोन कम्पिनयों को पत्र िलखे और ,
लेिकन कम्पिनयां ये सब बातें दबा देना चाहती थी। कोई उनके सुझावों को मानना ही नहीं चाहता था इस कारण कम्पिनयों स
उनके �रश्ते भी खराब होने लगे। एक बार सेलफोन कम्पिनयों ने उन्हे कई महीनों तक पैसा ही नहीं िदया और उलटा उन्हे
करना शु� कर िदया िक उनके मन में कुछ पाप है तथा वे शोध को आगे नहीं बढ़ा रहे हैं। इस तरह कई पंगे ह�ए और उनके िखल
कई षड़यंत्र रचे गये। आिखरकार फरवर1999 में काल� FDA और CTIA के अिधका�रयों से िमल, उन्हे CTIA द्वारा क� ग
9. 9|Page
िनष्प� शोध के बारे में बतलाया औCTIA के वािषर ्क सम्मेलन में सेलफोन से होने वाले मिस्तष्क कैंसर और अन्य खतरों
में अपना प्रितवेदन पढ़ कर सबकों चौंका िदया। काल� ने िनम्न िबन्दुओं पर सबका ध्यान आकिषर्
• सेलफोन को कान से लगा कर बात करने वालों में मिस्तष्क कैंसर के कारण मृत्युदर उन प्रयो�ाओं से अिधक पाई ग
सेलफोन को िसर से दूर रख कर बात करते थे यािन हेडसेट या स्पीकर फोन से बात करते थे।
• सेलफोन के एंटीना के चारों ओर7-8 इंच के दायरे में तीव्र िवद्युत चुम्बक�य तरंगें कोमल और संवेदनशील मिस
टॉिक्स, म� कण, घातक रसायन, जीवाणु, िवषाणु आिद क� घुसपेठ को रोकने के
िलए बने चुंगी नाके ( Blood Brain
ु
Barrier) को खोल देती है, और टॉिक्सन और घातक मु-कण (Free Radicals) मिस्तष्क में प्रवेश करने लगत
• 6 वषर ् या ज्यादा समय तक सेलफोन का उपभोग करने वाले व्यि�यों में एकॉिस्टक न्(श्रवण नाड़ी क� गा) का जोिखम
50% से अिधक पाया गया है।
• सेलफोन प्रयो�ाओं में मिस्तष्क के बाहरी िहस्से में दुलर्भ न्यूरोइपीथीिलयोमा ट्यूमर 50% अिधक पाया गया है।
डॉ. कोल� ने इस बात जोर देकर कहा िक सेलफोन कम्पिनयों ने आरंभ से ही उपभो�ाओं क� सुर�ा के िलए समुिचत कदम नह
उठाये है। कोल� ने बतलाया िक कम्पिनयों को सेलफोन के संभािवत खतरों के बारे में-बार आगाह करने पर भी वे उन्हें अनदेख
करती रही, राजनीित करती रही, लोगों के गुमराह करती रह, झूंटे दावे करती रही िक सेलफोन बच्चों समेत सभी उपभो�ाओं क
िलए पूणर्तया सुरि�त है और यह कहते रहे िक िफर भी लोगों क� सुर�ा हेतु वे अनुसंधान जारी रखेंगे
काल� ने मानवता के िलए अपना फजर ् पूरा करते ह�ए िनभ�कतापूवर्क सच्चाई दुिनया के सामने , लेिकन इसके बदले में सेलफोन
कम्पिनयोद्वा उन्हें धमकाया ग, उन पर गुंडों द्वारा हमला करव, उन्हें बदनाम िकया गया और रहस्यमय ढंग से उनका
घर फायर-िब्रगेड द्वारा जला कर खाक कर िदया गया। ये घटनाएं उस देश में घटी जो खुद को दुिनया का सबसे बड़ा लोकता
देश बतलाता है और अपने माथे पर स्टेचू ऑफ िलबट� का टेटू िचपका कर घूमता है। मझ पर िव�ास न हो तो गूगल के गिलयारों मे
ु
झांक लीिजये आपको सारे सा�य िमल जायेंगे।
इसके बाद कोल� ने “सेलफोन् इनिविजबल हेजाड् र ्स ऑफ द वायरलेस ऐ ” नामक पस्तक प्रकािशत, िजसमें उन्होंने अप
ु
कटु अनभवों और सेलफोन के खतरों के बारे में िलखा है। काल� ने अमरीक� सरकार को अपनी �रपोटर् भी पेश क� थी िज
ु
उन्होंने िलखा था ि2010 में सेलफोन के कारण500,000 अमरीक� मिस्तष्
कै ंसर से पीिड़त होंगे औ2014 में25% आबादी कै ंसर क� िगरफ्त में होगी। यूरोप
कई अनसंधानकतार ् भी काल� से सहमत थे।
ु
एल. लॉयड मोरगन अमे�रका क� बायोइलेक्ट्रोमेग्नेिटक्स सोसाइटी के सेवाि
इलेक्ट्रोिनक इंिजिनयर ह1995 में इन्हें इलेक्ट्रोमेगनिे टक रेिडयेशन के कार
ट् यूमर हो गया था। इलाज पूरा होते ही िज�ासा वश इन्होंने.एम. रेिडयेशन पर
इलेिक्ट्रक पावर �र सचर् इिन्स्टट्यूट द्वारा क� गई शोध का ध्यान से अध
और जाना िक इससे मिस्तष्क कैंसर और ल्यूक�िमया का जोिखम बह�त रहता
इसके बाद इन्होंनसेलफोन के खतरों पर अनुसंधान करना ही जीवन क� ध्येय बन
िलया और न्यूरो ओंकोलोजी सोसाइट, अमे�रकन ऐके डेमी ऑफ एनवायरमेंटल
मेडीिसन और ब्रेन ट्यूमर इपीडेिमयोलोजी कन्सोिटर्यम संस्थाओं से जुड़े रह
10. 10 | P a g e
इन्टरफोन स्टड- पूरी दाल ही काली है
इन्टरफोन स्टडी मिस्तष्क कैंसर और सेलफोन के बारे में दुिनया का सबसे बड़ा अध, िजसमें1999 से 2004 तक सेलफोन
से ब्रेन ट्यूमर के खतरों पर शोध ह�ई है। इसमें सेलफोन कम्पिनयों3 करोड़ डॉलर से ज्यादा खचर् ह�आ है औ48 वै�ािनकों
ने 13 देशों (Australia,Canada, Denmark, Finland, France, Germany, Israel, Italy, Japan, New Zealand,
Norway, Sweden और UK) के 14,000 व्यि�यों पर शोध क� है। आँकड़े एकित्रत करने का काम2004 में पूरा हो गया था
लेिकन इसक� �रपोटर ् जारी करने में जानबूझ कर देरी क� जा रही थी और यूरोप के देशों द्वारा भारी दबाव डालने पर बड़ी मुिश्
कुछ समय पहले ही 2010 में इसक� �रपोटर् जारी क� है
बात करते समय उसे िसर से 2.5 सै.मी. दर रखें।
ू
�रपोटर ् के नतीजों में मुख्य बात यह है िक सेलफोन हमें मि
कै ंसर से बचाता है। लेिकन यह बात िकसी के भी गले नहीं उत
रही है। सेलफोन कम्पिनयों द्वारा डेनमाकर् में करवाई गई ह
इन्टरफोन स्टडी के नतीजे भी यही कह रहे थे िक सेलफोन क
प्रयोग हमें ब्रेन कैंसर से बचाता है। इनके अलावा अन्य िज
अध्ययन सेलफोन कम्पिनयों द्वारा करवाय, उन सभी के नतीजे
यही कह रहे थे िक सेलफोन से ब्रेन कैंसर का कोई खतरा नहीं
क्या यह मात्र संयोग ??? यिद यह सत्य है िक सेलफोन हमें ब्
कै ंसर से बचाता है तो नोिकय, मोटोरोला और ब्लेकबैरी जैसी
कम्पिनयां अपने मेनुअल में यह क्यों िलखती हैं िक सेलफो
इसिलए एल. लॉयड मोरगन ने अपने सहयोगी अनसंधानकतार ्ओं के साथ िमल कर जब इन्टरफोन स्टडी द्वारा जारी �रपोटर् क
ु
बारीक� से अध्ययन िकया तो उन्हें लगा िक इस शोध में ज�र कोई भारी गड़बड़ है। इन्होंने अपने कुछ सहयोिगयों के साथ
पूरा अनसंधान करके सेलफोन और मिस्तष्क कैंसर के संबन्ध में एक महत्वपूणर् प्रितवेदन जारी िकया है। इसम15 अहम
ु
िचंताजनक पहलओ ं को उजागर िकया है, िजन्हें सरक, मीिडया तथा आम जनता को समझना चािहये और समिु चत कदम उठाने
ु
चािहये। इसमें इन्होंने दूरसंचार उद्योग और स्वतंत्र संस्थाओं द्वारा क� गई शोध के प�रणामों क� भी व्याख्या क� है।
मख्य उद्देश्य पत्रकारों और सरकार को स्वतंत्र संस्थाओं द्वारा क� गई शोध से सामने आये सेलफोन के खतरों और
ु
के प्रा�प में स्वाथर्वश जानबूझ कर रखी गई खािमयों के बारे में आगाह, िजससे मिस्तष्क कैंसर के जोिखम का स
आंकलन नहीं हो सका।
स्वतंत्र संस्थाओं द्वारा क� ग
दसरी तरफ स्वतंत्र और िनष्प� संस्थाओं द्वारा िजतनी भी शोध ह�ई है सबके नतीजे कुछ और कहानी कह रहे हैं। जै
ू
• सेलफोन का कुल प्रयोग िजतने अिधक घन्टे िकया जाता है कैंसर का खतरा उतना ही अिधक रहता
• सेलफोन िजतने ज्यादा वष� तक प्रयोग में िलया जाता है खतरा उतना ही ज्यादा होता
• सेलफोन से िनकलने वाले िविकरण क� मात्रा िजतनी अिधक होती है खतरा उतना ही ज्यादा होता ह
• सेलफोन का प्रयोग िजतनी कम उम्र में शु� होगा खतरा उतना ही ज्यादा होता है। जो िकशोरावस्था या उससे प
सेलफोन प्रयोग करना शु� कर देते हैं उन्हें कैंसर का420% तक बढ़ जाता है।
11. 11 | P a g e
इन्टरफोन स्टडी के मूल प्रा�प में ही थी अनेक खा
आिखर कुछ सोच-समझ कर ही सेलफोन कम्पिनयों ने इन्टरफोन स्टडी के िलए इतनी अपा-रािश उपलब्ध करवाई थी। वे
चाहती थी िक शोध के नतीजे ऐसे हों िक उनके दाग भी धुल जायें और उनके व्यवसाय पर कोई बुरा प्रभाव भी नहीं पड़े। उ
शोध का मूल प्रा�(Protocol) में जान बूझ कर बड़ी चतुराई से ऐसी खािमयां रखी िक शोध के नतीजे वैसे ही हो जैसे वे चाहते हैं
कुछ मख्य खािमयां िनम्न है
ु
• लॉयड मोरगन ने अपने प्रितवेदन में स्प� िलखा है िक इन्टरफोन स्टडी में िसफर् तीन तरह के ब्रेन कैंसर ऐकॉि,
ग्लायोमा और मेिनिन्जयोमा शािमल िकये गये जबिक अन्य कैंसर जैसे ब्रेन ि, न्यूरोईिपथीिलयल ट्यूमर आिद को शोध
के दायरे से बाहर रखा गया।
• वे लोग भी अध्ययन से बाहर रखे गये जो ब्रेन कैंसर से मर गये थे या बह�त बीमार होने के कारण सा�ातकार में शािमल नह
सकते थे। बच्च, िकशोरों और बूढ़ों को इस शोध से बाहर रखा गया था जब िक इन्हें कैंसर का खतरा सबसे ज्यादा रहत
• इस अध्ययन में ग्रामीण �े त्र के लोगों को भी शािमल नहीं िकया गया जबिक कमजोर िसगनल होने के कारण वहाँ
ज्यादा तेज रेिडयेशन छोड़ते हैं
• जो लोग 6 महीने या ज्यादा अविध तक स�ाह में िसफर् एक बार सेलफोन सेलफोन करते हैं उन्हे सेलफोन प्रयो�ा के
प�रभािषत िकया गया जबिक सेलफोन प्रयोग नहीं करने वाले व्यि� अनएक्सपोज्ड माने गये भले वे कोडर्लेस फोन प्
करते हो, िविदत रहे िक कोडर ्लेस भी सेलफोन क� तरह ही .एम. रेिडयेशन के द्वारा कायर् करता ह
• शोध में रेिडयेशन एक्सपोजर क� अिधकतम अवि10 वषर ् रखी गई है जब िक ब्रेन कैंसर होने में अक्सर इससे भी
समय लगता है।
शोध के प्रा�प में रखी गई किमयों को पढ़ कर आप कम्पिनयों क� नीयत समझ गये आिखर मोबाइल का यह मैला व्यवयाय
आिखर चालीस खरब डॉलर (4 Trillion Dollars) का है। क्या करेगंदा है पर धंधा है ये।
सेलफोन के खतरों से बचने के उपा
यहाँ मैं आपको सेलफोन रेिडयेशन से बचने के कुछ उपाय बतलाता ह�ँ।
• जब आप सेलफोन पर बात करें तो तारयु� हैडसेट का प्रयोग करें या सफोन मोड पर बात करें। जहाँ संभव हो लघु संदेश सेवा( SMS) से काम चलायें।
बेतार हैडसेट जैसे ब्ल-टू थ भी खतरे से भरा है। कई अनसंधानकतार ् तो ता-यु�
ु
हैडसेट को भी सही महीं मानते हैं। वे कहते हैं िक एयरट्यूब वाला हैडसेट प्
करे, इसमें तारयु� हैडफोन से स्टेथोस्कोप जैसी ट्यूब्स जुड़ी रहती है
रेिडयेशन का खतरा बह�त कम हो जाता है।
• जब काम में नहीं आ रहा हो तो सेलफोन को शरीर से दूर रखें जैसे शटर् क�,
पसर ् में या बैल्ट में लगा कर रखें। पैंट क� जेब में कभी , शरीर का िनचले
िहस्सा ज्यादा संवेदनशील होता है।
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• कार, बस, ट्र, बड़ी इमारतों या ग्रामीण �ेत्र में जहाँ िसगनल कमजोर हों सेलफोन का प्रयोग नहीं करे
प�रिस्थितयों में सेलफोन बह�त तेज रेिडयेशन छोड़ता ह
• जब भी संभव हो या आप घर पर हों तो लैंडलाइन फोन का प्रयोग करें। अपने कम्प्यूटर या लेपटॉप में इन्टरने
वाई-फाई क� जगह तारयु� ब्रॉडबैंड कनेक्शन लें। कोडर्लेस फ
प्रयोग नहीं करें।-फाई और कोडर ्लेस फोन भी रेिडयो तरंगो द्वारा
काम करता है। व्यवसाय या प्यार क� लम्बी बातें तो लैंडलाइन
पर करने का आनंद ही कुछ और है। आपको टेलीफोन पर गाया गया
“मेरे िपया गये रंगून िकया है वहाँ से टेलीफोन तुम्हारी याद सताती है
िजया में आग लगाती ह ” या िदलीप कुमार और वैजंती माला पर
िफल्माया गया लीडर िफल्म के इस मधुर गीत ”आजकल शौक-एदीदार है क्या क�ँ आपसे प्यार ” को सनने में आज भी िकतना
ु
आनंद आता है।
• बच्चो और िकशोरों को तिकये के नीचे या िबस्तर में सेलफोन रख कर सोने से मना करें। वनार् रात भर सेलफोन
िवद्य-प्रदूष(Electro-Polution) देता रहेगा। सेलफोन का प्रयोग गाने सुन, मूवी देखने या गेम्स खेलने के िलए नही
करना चािहये।
• 18 वषर ् से छोटे लड़कों को िसफर् आपातकालीन प�रिस्थितयों में ही सेलफोन प्रयोग क
• मोबाइल में रेिडएशन रोधी कवर लगवाएं
• मोबाइल खरीदते समय इस बात का िवशेष ख्याल रखें िक का S.A.R. (स्पेिसिफक एब्सॉप्शन ) कम हो तािक
आपका मोबाइल कम रेिडयेशन छोड़े। एस.ए.आर. एक िकलो ऊतक द्वारा अवशोिषत क� जाने वाले रेिडयन क� मात्रा ,
बशत� आप मोबाइस को रोज िसफ्6 िमनट ही काम में लेते है भारत में ए.ए.आर. क� अिधकतम सीमा 2 वाट /िकलो
र
रखी गई है। अमे�रका में यह1.6 वाट/िकलो है। यिद हम 3-4 वाट/िकलो S.A.R. को भी सरि�त मान लें तो भी हमे
ु
मोबाइल का प्रयोग रोजान18-24 िमनट से अिधक नहीं करना चािहये। लेिकन यह बात उपभो�ा को नहीं बतलाई जात
है।
सरकार के िलए लॉयड मोरगन और सहयोिगयों द्वारा जारी िदशािन
• सेलफोन िनमार ्ताओं को कड़े िनद�श देना चािहये िक वे सेलफोन में स्पी
और माइक लगायें ही नहीं और उपभो�ाओं को एक बिढ़या और सुरि�
हैडसेट (संभवतः एयर ट् यूब वाला) दे दें। इससे सेलफोन क�मत पर भी फकर
नहीं पड़ेगा
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• लोगो को सेलफोन के रेिडयेशन से बचने हेतु जाग�कता अिभयान कायर ्क्रमों के िलए धन मुहैया करना चािह
• सेलफोन कम्पिनयों को सेलफोन बेचने क� अनुमित देने के पहले उपभा�ाओं क� सुर�ा हेतु बीमा करवाना और उसक
सा�य प्रस्तुत करना अिनवायर् होना चाि
• सेलफोन पर संवैधािनक चेतावनी िलखी होनी चािहये िक इसके प्रयोग स
ब्रेन कैंसर हो सकता ह
• रेिडयेशन मानक नये िसरे से िनधार ्�रत करने चािहये।
• सेलफोन रेिडयेशन के दूरगामी खतरों पर अनुसंधान हेतु िनष्प� औ
स्वतंत्र संस्थाएं गिठत करना चािहये और पयार्� धन उपलब्ध क
चािहये।
• सरकार को िवद्युत चुम्बक�य िविकरण क� मात्रा और िस् बारे मे हर
साल प्रितवेदन जारी करना चािहये
• प्रदेश में उच्च वोल्टेज िबजली क� , सेलफोन टॉवर, टेलीफोन और
रेिडयो के एंटीना से िनकलने वाले रेिडयेशन को दशार ्ने वाले नक्शे जार
करने चािहये। ।
• बच्चों को सेलफोन बेचने हेतु बने लुभावने िव�ापन तुरन्त प्रितबंिधत
चािहये।
• स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को सेलफोन के खतरों से बचाने हेतु कड़ें िनद�श जारी करने चािहये िक बच्चे स्कूल मे
लेकर नहीं आय । सेलफोन , वाई-फाई, माइक्रोवेव ओवन आ के खतरों के बारे में उन्हें पढ़ाया जाना चािहये
जाग�कता हेतु स्कूल में बेनर लगावाने चािहये। सेलफोन टॉवर भी स्कूल से दूर लगाये जाने के िनद�श िदयें जा
• वायरलेस टेक्नोलोजी �रसचर् प्रो(WTR) को िनद�श देना चािहये िक वे इंटरसेलफोन स्टडी में रही किमयों को दूर,
एकित्रत आंकड़ों का नये िसरे से िव�ेषण करें और िनष्प� प्रितवेदन जारी
http://nehawilcom.blogspot.in/2012/01/blogpost.html?showComment=1339433566847#c1091
752892557178834
http://mtgf.blogspot.in/2010/02/biological-effects-of-electromagnetic.html
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रेिडयेशन से होने वाले रोग में बह�त कारगर है अलस
2002 में ऐडीले, दि�णी आस्ट्रेिलया क� सुश्री ऐलेक्स सीले अपनी इमारत क� छत पर अक्स
करती थी जहाँ मोबाइल क� टावर लगी ह�ई थी। बस वहीं वह रेिडयेशन क� चपेट में आ गई। इससे उस
हमेशा िसर में ददर् और जलन रहने लगा। उसे ऐसा लगता था जैस िकसी ने उसके िसर में िकसी ने जलती
ह�ई वेिल्डंग क� रोडघुसा दी हो। यिद वह दो िमनट भी मोबाइल पर बात करती या माइक्रोवेव ऑवन के पा
जाती तो तकलीफ और बढ़ जाती थी। आस्ट्रेिलया के डाक्टर उसका उपचार नहीं कर पा रहे थे। लगत
उनके पास इस रोग का कोई उपचार था ही नहीं। िफर िकसी ने उसे बतलाया क� अलसी के तेल का प्रय
करने से उनके ठीक हो सकती है। अलसी के तेल को शु� के दो स�ाह में तो उसक� तकलीफ बढ़ी लेिकन
िफर धीरे – धीरे आराम आने लगा। साथ में उसने ऐलोवेरा ज्यूस भी लेना शु� कर िदया था। यह प्रिति
स्वयं ऐलेक्(सेंड़) ने यूट् यूब पर मेरे वीिडयो पर दी है, िजसक� िलंक है।
http://www.youtube.com/watch?v=4uDd_dh90tA&feature=g-all-u
ऐसी चमत्कारी है
। अलसी मां।