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असम का
सांस्कृ तक
Imran poswal, 10th A
असम पूवर्वोत्तर भारत क
े आठ सस्टर राज्यों में से
एक है। अपनी समृद्ध संस्कृ त और व वध
आबादी क
े लए जाना जाता है, असम की संस्कृ त
इंडो बमर्मी, मंगो लयाई और आयर्त प्रभावों का मश्रण
है। यह खूबसूरत भू म, िजसे 'लाल न दयों और
नीली पहा ड़यों की भू म' क
े रूप में जाना जाता है,
एक छोटा सा स्वगर्त है िजसमें अछ
ू ते प्राकृ तक
प रदृश्य हैं जो इसकी प्राचीन सुंदरता क
े लए जाने
लायक हैं। राज्य क
े लोगों को सामू हक रूप से
ए सो मया और भाषा ए सो मया (अस मया)
कहा जाता है जो क सबसे व्यापक रूप से बोली
जाने वाली आ धका रक राज्य भाषा भी है।
अस मया बहुत ही साधारण कपड़े पहनते हैं, और ज्यादातर हाथ से
करघा करते हैं। म हलाएं मो टफ से भरपूर मेखला चादोर या रहा-
मेखला पहनती हैं। पुरुष 'सू रया' या 'धोती' पहनते हैं, और इसक
े
ऊपर, वे 'सेलेंग' क
े नाम से जाना जाने वाला एक चादर लपेटते हैं।
गामोसा असम में लगभग सभी सामािजक-धा मर्तक समारोहों का एक
अ नवायर्त हस्सा है। यह कामरूपी शब्द 'गामासा' (गामा + चादर) से
लया गया है िजसका इस्तेमाल वेदी पर भगवद पुराण को कवर करने
क
े लए कया गया था। इसे शुद् धकरण का कायर्त माना जाता है और
स्नान क
े बाद शरीर को साफ करने क
े लए प्रयोग कया जाता है। यह
कपड़े क
े एक सफ
े द आयताकार टुकड़े की तरह दखता है िजसमें तीन
तरफ लाल बॉडर्तर और चौथे पर बुने हुए रूपांकन होते हैं। अस मया
पुरुष धोती-गमोसा पहनते हैं जो उनकी पारंप रक पोशाक है। बहू
नतर्तक इसे सर क
े चारों ओर लपेटते हैं, और इसे अ सर प्राथर्तना कक्ष
या शास्त्रों में वेदी को ढंकने क
े लए प्रयोग कया जाता है। अन्य चीजें
जैसे तमुल पान और ज़ोराई भी महत्वपूणर्त प्रतीक हैं। पूवर्त को भि त क
े
प्रस्ताव क
े रूप में माना जाता है जब क बाद वाला क
ं टेनर माध्यम क
े
लए इस्तेमाल की जाने वाली घंटी है।
असम की पारंप रक पोशाक
असम त्योहारों से भरा है, िजसमें सबसे महत्वपूणर्त बहू है।
यह एक वा षर्तक चक्रि में एक कसान क
े जीवन क
े महत्वपूणर्त
बंदुओं को चि नत करने क
े लए मनाया जाता है। एक गैर-
धा मर्तक त्योहार जो जा त और पंथ क
े बावजूद मनाया जाता है
। रोंगाली या बोहाग बहू अप्रैल क
े मध्य में वसंत क
े आने और
बुवाई क
े मौसम की शुरुआत क
े साथ मनाया जाता है। इसे
रंगाली बहू ("रंग" का अथर्त है मीरा बनाना) क
े रूप में भी जाना
जाता है। अगला क
ं गाली बहू (क
ं गाली अथर्त गरीब) अ टूबर क
े
मध्य में मनाया जाता है। ऐसा इस लए कहा जाता है यों क
इस समय तक फसल घर ले आती है। माघ बहू जनवरी क
े
मध्य में मनाया जाता है। सामुदा यक दावतें और अलाव होते
हैं जो जगह लेते हैं। भोगाली बहू ("भोग" का अथर्त है आनंद
और दावत) क
े रूप में भी जाना जाता है। रोंगाली बहू क
े पहले
दन को गोरू बहू कहा जाता है जब गायों को नहाने क
े लए
पास क
े तालाबों में ले जाया जाता है।
अली-ऐ- लगांग वसंत त्योहार है, और त्योहार का नाम तीन
शब्दों से बना है- 'अली', जड़ और बीज, 'ऐ' का अथर्त फल और
' लगांग', बोना है।
असम क
े त्यौहार
राजस्थानी
संस्कृ त
राजस्थान, भारत क
े सबसे खूबसूरत राज्यों में से एक है।
यहां की संस्कृ त दु नया भर में मशहूर है। राजस्थान की
संस्कृ त व भन्न समुदायों और शासकों का योगदान है।
आज भी जब कभी राजस्थान का नाम लया जाए तो
हमारी आखों क
े आगे थार रे गस्तान, ऊ
ं ट की सवारी, घूमर
और कालबे लया नृत्य और रंग- बरंगे पारंप रक प रधान
आते हैं।अपने सभ्य स्वभाव और शालीन मेहमाननवाज़ी
क
े लए जाना जाता है ये राज्य। चाहे स्वदेशी हो या वदेशी,
यहां की संस्कृ त तो कसी का भी मन चुट कयों में मोह
लेगी। आ खर कसका मन नहीं करेगा रात क
े व त
रे गस्तान में आग जलाकर कालबे लया नृत्य देखने का।
िजन्होनें राजस्थान की संस्कृ त का अनुभव कया है वो
बहुत खुश नसीब हैं। ले कन जो इससे अंजान हैं उन्हें हम
बताएंगे इस शाही शहर की सरल ले कन आकषर्तक संस्कृ त
क
े बारे में क
ु छ ऐसी दलचस्प बातें िजन्हें जानने क
े बाद
यहां आने क
े लए खुद को रोक नहीं पाएंगे।
राजस्थान
राजस्थान की खूबसूरत जगहे :-ं
राजस्थान क
े त्यौहार
राजस्थान मेलों और उत्सवों की धरती है। यहाँ एक कहावत
प्र सद्ध हैं. सात वार नौ त्योहार. यहाँ क
े मेले और पवर्त राज्य
की संस्कृ त क
े प रचायक हैं. यहाँ लगने वाले पशु मेले व्यि त
और पशुओं क
े बीच की आपसी नभर्तरता को दखाते हैं. राज्य
क
े बड़े मेलों में पुष्कर का का तर्तक मेला[3], परबतसर और
नागौर क
े तेजाजी का मेला को गना जाता हैं. यहाँ तीज का पवर्त
सबसे बड़ा माना गया है श्रावण माह क
े इसी पवर्त क
े साथ
त्योहारों की श्रंखला आर भ होती हैं जो गणगौर तक चलती हैं.
इस स बन्ध में कथन है क तीज त्योहारा बावरी ले डूबी
गणगौर. होली, दीपावली, वजयदशमी, नवरात्र जैसे प्रमख
राष्ट्रीय त्योहारों क
े अलावा अनेक देवी-देवताओं, संतो और
लोकनायकों तथा ना यकाओं क
े जन्म दन मनाए जाते हैं। यहाँ
क
े महत्त्वपूणर्त मेले हैं तीज, गणगौर(जयपुर), जीण माता मेला
(सीकर), बेनेश्वर (डूंगरपुर) का जनजातीय क
ुं भ, श्री महावीर
जी (सवाई माधोपुर मेला), रामदेवरा या रूणेचा(जैसलमेर),
जंभेश्वर जी मेला(मुकाम-बीकानेर), का तर्तक पू णर्तमा और
राजस्थान का व शष्ट नृत्य घूमर है, िजसे उत्सवों क
े अवसर पर क
े वल म हलाओं द्वारा कया जाता है।[2] घेर नृत्य (म हलाओं और
पुरुषों द्वारा कया जाने वाला, प नहारी (म हलाओं का ला लत्यपूणर्त नृत्य), व कच्ची घोड़ी (िजसमें पुरुष नतर्तक बनावटी घोड़ी पर बैठे
होते हैं) भी लोक प्रय है। सबसे प्र सद्ध गीत ‘क
ु जार्त’ है, िजसमें एक स्त्री की कहानी है, जो अपने प त को क
ु जार्त पक्षी क
े माध्यम से संदेश
भेजना चाहती है व उसकी इस सेवा क
े बदले उसे बेशक़ीमती पुरस्कार का वायदा करती है। राजस्थान ने भारतीय कला में अपना
योगदान दया है और यहाँ सा हित्यक पर परा मौजूद है। वशेषकर भाट क वता की। चंदबरदाई का काव्य पृथ्वीराज रासो या चंद रासा,
वशेष उल्लेखनीय है, िजसकी प्रारि भक हस्त ल प 12वीं शताब्दी की है। मनोरंजन का लोक प्रय माध्यम ख़्याल है, जो एक नृत्य-
ना टका है और िजसक
े काव्य की वषय-वस्तु उत्सव, इ तहास या प्रणय प्रसंगों पर आधा रत रहती है। राजस्थान में प्राचीन दुलर्तभ
वस्तुएँ प्रचुर मात्रा में हैं, िजनमें बौद्ध शलालेख, जैन मिन्दर, क़ले, शानदार रयासती महल और मं दर शा मल हैं।
राजस्थान में अपनी अनूठी कला, संस्कृ त और
वास्तुकला की समृद्ध वरासत है। ... राजस्थान में
अत्य धक सुसंस्कृ त संगीत और नृत्य रूपों की
परंपरा है। संगीत सरल है, कच्चा है और गीत
दै नक चत्रण करते है जब क असम व वध
संस्कृ तयों का मलन स्थल है। आकषर्तक राज्य
असम क
े लोग मंगोलॉयड, इंडो-बमर्मीज़, इंडो-
ईरानी और आयर्तन जैसे व भन्न नस्लीय शेयरों का
मश्रण हैं। अस मया संस्कृ त इन सभी जा तयों
की एक समृद्ध और वदेशी टेपेस्ट्री है जो एक लंबी
आत्मसात प्र क्रिया क
े माध्यम से वक सत हुई है।
बुनाई और मट्टी क
े बतर्तन असम क
े मूल
नवा सयों की दो लोक संस्कृ तयाँ हैं। असम क
े
मूल नवा सयों को 'असो मया' कहा जाता है, जो
असम की भाषा भी है। राजस्थान में है
राजस्थान और असम क
े बीच अंतर
और समानताएं

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Cultural of Assam and Rajasthan

  • 1.
  • 3. असम पूवर्वोत्तर भारत क े आठ सस्टर राज्यों में से एक है। अपनी समृद्ध संस्कृ त और व वध आबादी क े लए जाना जाता है, असम की संस्कृ त इंडो बमर्मी, मंगो लयाई और आयर्त प्रभावों का मश्रण है। यह खूबसूरत भू म, िजसे 'लाल न दयों और नीली पहा ड़यों की भू म' क े रूप में जाना जाता है, एक छोटा सा स्वगर्त है िजसमें अछ ू ते प्राकृ तक प रदृश्य हैं जो इसकी प्राचीन सुंदरता क े लए जाने लायक हैं। राज्य क े लोगों को सामू हक रूप से ए सो मया और भाषा ए सो मया (अस मया) कहा जाता है जो क सबसे व्यापक रूप से बोली जाने वाली आ धका रक राज्य भाषा भी है।
  • 4. अस मया बहुत ही साधारण कपड़े पहनते हैं, और ज्यादातर हाथ से करघा करते हैं। म हलाएं मो टफ से भरपूर मेखला चादोर या रहा- मेखला पहनती हैं। पुरुष 'सू रया' या 'धोती' पहनते हैं, और इसक े ऊपर, वे 'सेलेंग' क े नाम से जाना जाने वाला एक चादर लपेटते हैं। गामोसा असम में लगभग सभी सामािजक-धा मर्तक समारोहों का एक अ नवायर्त हस्सा है। यह कामरूपी शब्द 'गामासा' (गामा + चादर) से लया गया है िजसका इस्तेमाल वेदी पर भगवद पुराण को कवर करने क े लए कया गया था। इसे शुद् धकरण का कायर्त माना जाता है और स्नान क े बाद शरीर को साफ करने क े लए प्रयोग कया जाता है। यह कपड़े क े एक सफ े द आयताकार टुकड़े की तरह दखता है िजसमें तीन तरफ लाल बॉडर्तर और चौथे पर बुने हुए रूपांकन होते हैं। अस मया पुरुष धोती-गमोसा पहनते हैं जो उनकी पारंप रक पोशाक है। बहू नतर्तक इसे सर क े चारों ओर लपेटते हैं, और इसे अ सर प्राथर्तना कक्ष या शास्त्रों में वेदी को ढंकने क े लए प्रयोग कया जाता है। अन्य चीजें जैसे तमुल पान और ज़ोराई भी महत्वपूणर्त प्रतीक हैं। पूवर्त को भि त क े प्रस्ताव क े रूप में माना जाता है जब क बाद वाला क ं टेनर माध्यम क े लए इस्तेमाल की जाने वाली घंटी है। असम की पारंप रक पोशाक
  • 5. असम त्योहारों से भरा है, िजसमें सबसे महत्वपूणर्त बहू है। यह एक वा षर्तक चक्रि में एक कसान क े जीवन क े महत्वपूणर्त बंदुओं को चि नत करने क े लए मनाया जाता है। एक गैर- धा मर्तक त्योहार जो जा त और पंथ क े बावजूद मनाया जाता है । रोंगाली या बोहाग बहू अप्रैल क े मध्य में वसंत क े आने और बुवाई क े मौसम की शुरुआत क े साथ मनाया जाता है। इसे रंगाली बहू ("रंग" का अथर्त है मीरा बनाना) क े रूप में भी जाना जाता है। अगला क ं गाली बहू (क ं गाली अथर्त गरीब) अ टूबर क े मध्य में मनाया जाता है। ऐसा इस लए कहा जाता है यों क इस समय तक फसल घर ले आती है। माघ बहू जनवरी क े मध्य में मनाया जाता है। सामुदा यक दावतें और अलाव होते हैं जो जगह लेते हैं। भोगाली बहू ("भोग" का अथर्त है आनंद और दावत) क े रूप में भी जाना जाता है। रोंगाली बहू क े पहले दन को गोरू बहू कहा जाता है जब गायों को नहाने क े लए पास क े तालाबों में ले जाया जाता है। अली-ऐ- लगांग वसंत त्योहार है, और त्योहार का नाम तीन शब्दों से बना है- 'अली', जड़ और बीज, 'ऐ' का अथर्त फल और ' लगांग', बोना है। असम क े त्यौहार
  • 7. राजस्थान, भारत क े सबसे खूबसूरत राज्यों में से एक है। यहां की संस्कृ त दु नया भर में मशहूर है। राजस्थान की संस्कृ त व भन्न समुदायों और शासकों का योगदान है। आज भी जब कभी राजस्थान का नाम लया जाए तो हमारी आखों क े आगे थार रे गस्तान, ऊ ं ट की सवारी, घूमर और कालबे लया नृत्य और रंग- बरंगे पारंप रक प रधान आते हैं।अपने सभ्य स्वभाव और शालीन मेहमाननवाज़ी क े लए जाना जाता है ये राज्य। चाहे स्वदेशी हो या वदेशी, यहां की संस्कृ त तो कसी का भी मन चुट कयों में मोह लेगी। आ खर कसका मन नहीं करेगा रात क े व त रे गस्तान में आग जलाकर कालबे लया नृत्य देखने का। िजन्होनें राजस्थान की संस्कृ त का अनुभव कया है वो बहुत खुश नसीब हैं। ले कन जो इससे अंजान हैं उन्हें हम बताएंगे इस शाही शहर की सरल ले कन आकषर्तक संस्कृ त क े बारे में क ु छ ऐसी दलचस्प बातें िजन्हें जानने क े बाद यहां आने क े लए खुद को रोक नहीं पाएंगे। राजस्थान
  • 9. राजस्थान क े त्यौहार राजस्थान मेलों और उत्सवों की धरती है। यहाँ एक कहावत प्र सद्ध हैं. सात वार नौ त्योहार. यहाँ क े मेले और पवर्त राज्य की संस्कृ त क े प रचायक हैं. यहाँ लगने वाले पशु मेले व्यि त और पशुओं क े बीच की आपसी नभर्तरता को दखाते हैं. राज्य क े बड़े मेलों में पुष्कर का का तर्तक मेला[3], परबतसर और नागौर क े तेजाजी का मेला को गना जाता हैं. यहाँ तीज का पवर्त सबसे बड़ा माना गया है श्रावण माह क े इसी पवर्त क े साथ त्योहारों की श्रंखला आर भ होती हैं जो गणगौर तक चलती हैं. इस स बन्ध में कथन है क तीज त्योहारा बावरी ले डूबी गणगौर. होली, दीपावली, वजयदशमी, नवरात्र जैसे प्रमख राष्ट्रीय त्योहारों क े अलावा अनेक देवी-देवताओं, संतो और लोकनायकों तथा ना यकाओं क े जन्म दन मनाए जाते हैं। यहाँ क े महत्त्वपूणर्त मेले हैं तीज, गणगौर(जयपुर), जीण माता मेला (सीकर), बेनेश्वर (डूंगरपुर) का जनजातीय क ुं भ, श्री महावीर जी (सवाई माधोपुर मेला), रामदेवरा या रूणेचा(जैसलमेर), जंभेश्वर जी मेला(मुकाम-बीकानेर), का तर्तक पू णर्तमा और
  • 10. राजस्थान का व शष्ट नृत्य घूमर है, िजसे उत्सवों क े अवसर पर क े वल म हलाओं द्वारा कया जाता है।[2] घेर नृत्य (म हलाओं और पुरुषों द्वारा कया जाने वाला, प नहारी (म हलाओं का ला लत्यपूणर्त नृत्य), व कच्ची घोड़ी (िजसमें पुरुष नतर्तक बनावटी घोड़ी पर बैठे होते हैं) भी लोक प्रय है। सबसे प्र सद्ध गीत ‘क ु जार्त’ है, िजसमें एक स्त्री की कहानी है, जो अपने प त को क ु जार्त पक्षी क े माध्यम से संदेश भेजना चाहती है व उसकी इस सेवा क े बदले उसे बेशक़ीमती पुरस्कार का वायदा करती है। राजस्थान ने भारतीय कला में अपना योगदान दया है और यहाँ सा हित्यक पर परा मौजूद है। वशेषकर भाट क वता की। चंदबरदाई का काव्य पृथ्वीराज रासो या चंद रासा, वशेष उल्लेखनीय है, िजसकी प्रारि भक हस्त ल प 12वीं शताब्दी की है। मनोरंजन का लोक प्रय माध्यम ख़्याल है, जो एक नृत्य- ना टका है और िजसक े काव्य की वषय-वस्तु उत्सव, इ तहास या प्रणय प्रसंगों पर आधा रत रहती है। राजस्थान में प्राचीन दुलर्तभ वस्तुएँ प्रचुर मात्रा में हैं, िजनमें बौद्ध शलालेख, जैन मिन्दर, क़ले, शानदार रयासती महल और मं दर शा मल हैं।
  • 11. राजस्थान में अपनी अनूठी कला, संस्कृ त और वास्तुकला की समृद्ध वरासत है। ... राजस्थान में अत्य धक सुसंस्कृ त संगीत और नृत्य रूपों की परंपरा है। संगीत सरल है, कच्चा है और गीत दै नक चत्रण करते है जब क असम व वध संस्कृ तयों का मलन स्थल है। आकषर्तक राज्य असम क े लोग मंगोलॉयड, इंडो-बमर्मीज़, इंडो- ईरानी और आयर्तन जैसे व भन्न नस्लीय शेयरों का मश्रण हैं। अस मया संस्कृ त इन सभी जा तयों की एक समृद्ध और वदेशी टेपेस्ट्री है जो एक लंबी आत्मसात प्र क्रिया क े माध्यम से वक सत हुई है। बुनाई और मट्टी क े बतर्तन असम क े मूल नवा सयों की दो लोक संस्कृ तयाँ हैं। असम क े मूल नवा सयों को 'असो मया' कहा जाता है, जो असम की भाषा भी है। राजस्थान में है राजस्थान और असम क े बीच अंतर और समानताएं