प्रोस्टेट सुदम अतिवर्धन Benign Prostatic Hyperplasia (BPH)
प्रोस्टेट सुदम अतिवर्धन वयोवृद्ध लोगों का एक सामान्य विकार है, जिसमें प्रोस्टेट ग्रंथि की कोशिकाओं में वृद्धि होने लगती है। इसे अंग्रेजी में बिनाइन प्रोस्टेटिक हाइपरप्लेजिया या Benign Prostatic Hyperplasia (BPH) कहते हैं। कोशिकाओं में वृद्धि के कारण ग्रंथि का आकार धीरे-धीरे बढ़ने लगता है जिसके कारण रोगी को कई मूत्र विसर्जन सम्बन्धी लक्षण पैदा हो जाते हैं। यदि समय पर उपचार नहीं किया जाये तो बढ़ी हुई प्रोस्टेट मूत्र के प्रवाह में आंशिक या पूर्ण रुकावट पैदा कर सकती है जिसके कारण मूत्राशय, मूत्रपथ और वृक्क सम्बन्धी विकार हो सकते हैं। इस रोग का उपचार जीवनशैली में सुधार, जड़ी-बूटियाँ, औषधियाँ और शल्यक्रिया है।
आज उदरदर्शी पित्ताशय-उच्छेदन (Laparoscopic Cholecystectomy) सबसे प्रचलित शल्यक्रिया है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि इस तकनीक ने उदरदर्शी शल्य-चिकित्सा के एक नये युग की शुरूवात की है। इस तकनीक ने शल्य-विज्ञान को एक नई दिशा दी है और शोधकर्ताओं को नई राह बतलाई है। जहां किसी जमाने में पित्ताशय-उच्छेदन एक जोखिम भरी, कष्टदायक और भयभीत कर देने वाली शल्यक्रिया थी वहीं आज यह एक रोमांचकारी अनुभव बन कर रह गयी है। इसके बाद चिकित्सकों ने पित्तपथरी के पुराने जुगाड़ू उपचार जैसे पित्त-लवण, लिथोट्रिप्सी आदि को अपने पिटारे से अलग कर दिया है। (विच्छेदन = चीर-फाड़ करना और उच्छेदन = किसी अंग को काट कर शरीर से अलग करना)
उदरदर्शी पित्ताशय-उच्छेदन के फायदे
• उदरदर्शी तकनीक से की गई पित्ताशय-उच्छेदन शल्यक्रिया में रोगी को कोई वेदना या कष्ट नहीं होता है और सामान्यतः दर्द निवारक दवाओं की आवश्यकता भी नहीं पड़ती है।
• रोगी को लंबे समय तक भरती रहने की जरूरत नहीं होती है। प्रायः शल्यक्रिया के दूसरे दिन उसे घर भेज दिया जाता है और एक सप्ताह बाद वह अपने सारे कार्य सुचारु रूप से करने लगता है।
• इस विधि में पेट में बड़ा चीरा न लगा कर सिर्फ चार छोटे छिद्र किये जाते हैं। जिनके घाव बहुत जल्दी ठीक हो जाते हैं और कुछ हफ्तों में इनके निशान भी पूरी तरह मिट जाते हैं।
• रोगी को टांके पकने, टूटने, पेट फट जाने या हर्निया जैसी तकलीफों से मुक्ति मिल जाती है।
• रोगी के पेट पर घावों के कोई निशान नहीं होने से पेट की सुन्दरता बनी रहती है और स्त्रियों को साड़ी पहनने में कोई शर्म या झिझक नहीं होती है।
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Important links- NOTES- https://mynursingstudents.blogspot.com/
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ANATOMY AND PHYSIOLOGY-https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAPM3VTGVUXIeswKJ3XGaD2p
COMMUNITY HEALTH NURSING- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAPyslPNdIJoVjiXEDTVEDzs
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FUNDAMENTALS OF NURSING- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAPFxu78NDLpGPaxEmK1fTao
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प्रोस्टेट सुदम अतिवर्धन Benign Prostatic Hyperplasia (BPH)
प्रोस्टेट सुदम अतिवर्धन वयोवृद्ध लोगों का एक सामान्य विकार है, जिसमें प्रोस्टेट ग्रंथि की कोशिकाओं में वृद्धि होने लगती है। इसे अंग्रेजी में बिनाइन प्रोस्टेटिक हाइपरप्लेजिया या Benign Prostatic Hyperplasia (BPH) कहते हैं। कोशिकाओं में वृद्धि के कारण ग्रंथि का आकार धीरे-धीरे बढ़ने लगता है जिसके कारण रोगी को कई मूत्र विसर्जन सम्बन्धी लक्षण पैदा हो जाते हैं। यदि समय पर उपचार नहीं किया जाये तो बढ़ी हुई प्रोस्टेट मूत्र के प्रवाह में आंशिक या पूर्ण रुकावट पैदा कर सकती है जिसके कारण मूत्राशय, मूत्रपथ और वृक्क सम्बन्धी विकार हो सकते हैं। इस रोग का उपचार जीवनशैली में सुधार, जड़ी-बूटियाँ, औषधियाँ और शल्यक्रिया है।
गाउट एक सामान्य रोग है जिसमें बार बार जोड़ में संधिशोथ (जोड़ में दर्द, सूजन, लालिमा, उष्णता और अक्षमता) के दौरे पड़ते हैं। अधिकांश रोगियों (लगभग 50%) में पैर के अंगूठे के जोड़ (मेटाटारसल-फेलेंजियल जोड़) में तकलीफ होती है। तब इसे पोडोग्रा भी कहते हैं। लेकिन गाउट का असर एड़ी, घुटना, कलाई और उंगली के जोड़ में भी हो सकता है। जोड़ो में रात को अचानक बहुत तेज दर्द होता है और सूजन आ जाती है। जोड़ लाल और गर्म महसूस होता है। साथ में बुखार और थकावट भी हो सकती है। यह रोग रक्त में यूरिक एसिड का स्तर बढ़ने से होता है। यूरिक एसिड बढ़ने से जोड़, टेन्डन और जोड़ के आपसास जमा हो जाता है। यदि यह गुर्दें में जमा होता है तो पथरी या युरेट नेफ्रोपेथी हो सकती है।
गाउट का दौरा अमूमन 5-7 दिनों में ठीक हो जाता है। 60 रोगियों को साल भर में प्रायः दूसरा दौरा भी पड़ ही जाता है। गाउट के रोगियों को रक्तचाप, डायबिटीज, मेटाबोलिक सिन्ड्रोम, वृक्क रोग और हृदय रोग का खतरा अधिक रहता है। यदि उपचार नहीं किया जाये तो गाउट धीरे-धीरे दीर्घकालीन और स्थाई रोग बन जाता है। जोड़ों की सतह क्षतिग्रस्त होने लगती है। अक्षमता और अपंगता बढ़ती जाती है। साथ ही शरीर में कई जगह (जैसे कान, कोहनी आदि) यूरिक एसिड जमा होने से दर्दहीन गांठें (Tophi) बन जाती हैं। यदि गुर्दे में पथरी बन जाये तो स्थिति और जटिल बन जाती है और वृक्कवात (Kidney Failure) भी हो सकता है।
प्राचीन काल में इसे राजरोग या अमीरों का रोग भी कहा जाता था, क्योंकि मांस-मछली और मदिरा सेवन से इस रोग का सीधा संबंध है। ब्रिटेन के किंग हेनरी को भी गाउट हुआ था। गाउट के निदान हेतु जोड़ में से सायनोवियल द्रव निकाल कर सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा जांच की जाती है, उसमें यूरिक एसिड के क्रिस्टल्स की उपस्थिति से गाउट की पुष्टि हो जाती है। पिछले दो दशकों में गाउट का आ
आज उदरदर्शी पित्ताशय-उच्छेदन (Laparoscopic Cholecystectomy) सबसे प्रचलित शल्यक्रिया है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि इस तकनीक ने उदरदर्शी शल्य-चिकित्सा के एक नये युग की शुरूवात की है। इस तकनीक ने शल्य-विज्ञान को एक नई दिशा दी है और शोधकर्ताओं को नई राह बतलाई है। जहां किसी जमाने में पित्ताशय-उच्छेदन एक जोखिम भरी, कष्टदायक और भयभीत कर देने वाली शल्यक्रिया थी वहीं आज यह एक रोमांचकारी अनुभव बन कर रह गयी है। इसके बाद चिकित्सकों ने पित्तपथरी के पुराने जुगाड़ू उपचार जैसे पित्त-लवण, लिथोट्रिप्सी आदि को अपने पिटारे से अलग कर दिया है। (विच्छेदन = चीर-फाड़ करना और उच्छेदन = किसी अंग को काट कर शरीर से अलग करना)
उदरदर्शी पित्ताशय-उच्छेदन के फायदे
• उदरदर्शी तकनीक से की गई पित्ताशय-उच्छेदन शल्यक्रिया में रोगी को कोई वेदना या कष्ट नहीं होता है और सामान्यतः दर्द निवारक दवाओं की आवश्यकता भी नहीं पड़ती है।
• रोगी को लंबे समय तक भरती रहने की जरूरत नहीं होती है। प्रायः शल्यक्रिया के दूसरे दिन उसे घर भेज दिया जाता है और एक सप्ताह बाद वह अपने सारे कार्य सुचारु रूप से करने लगता है।
• इस विधि में पेट में बड़ा चीरा न लगा कर सिर्फ चार छोटे छिद्र किये जाते हैं। जिनके घाव बहुत जल्दी ठीक हो जाते हैं और कुछ हफ्तों में इनके निशान भी पूरी तरह मिट जाते हैं।
• रोगी को टांके पकने, टूटने, पेट फट जाने या हर्निया जैसी तकलीफों से मुक्ति मिल जाती है।
• रोगी के पेट पर घावों के कोई निशान नहीं होने से पेट की सुन्दरता बनी रहती है और स्त्रियों को साड़ी पहनने में कोई शर्म या झिझक नहीं होती है।
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HCM- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAM7mZ1vZhQBHWbdLnLb-cH9
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प्रोस्टेट सुदम अतिवर्धन Benign Prostatic Hyperplasia (BPH)
प्रोस्टेट सुदम अतिवर्धन वयोवृद्ध लोगों का एक सामान्य विकार है, जिसमें प्रोस्टेट ग्रंथि की कोशिकाओं में वृद्धि होने लगती है। इसे अंग्रेजी में बिनाइन प्रोस्टेटिक हाइपरप्लेजिया या Benign Prostatic Hyperplasia (BPH) कहते हैं। कोशिकाओं में वृद्धि के कारण ग्रंथि का आकार धीरे-धीरे बढ़ने लगता है जिसके कारण रोगी को कई मूत्र विसर्जन सम्बन्धी लक्षण पैदा हो जाते हैं। यदि समय पर उपचार नहीं किया जाये तो बढ़ी हुई प्रोस्टेट मूत्र के प्रवाह में आंशिक या पूर्ण रुकावट पैदा कर सकती है जिसके कारण मूत्राशय, मूत्रपथ और वृक्क सम्बन्धी विकार हो सकते हैं। इस रोग का उपचार जीवनशैली में सुधार, जड़ी-बूटियाँ, औषधियाँ और शल्यक्रिया है।
गाउट एक सामान्य रोग है जिसमें बार बार जोड़ में संधिशोथ (जोड़ में दर्द, सूजन, लालिमा, उष्णता और अक्षमता) के दौरे पड़ते हैं। अधिकांश रोगियों (लगभग 50%) में पैर के अंगूठे के जोड़ (मेटाटारसल-फेलेंजियल जोड़) में तकलीफ होती है। तब इसे पोडोग्रा भी कहते हैं। लेकिन गाउट का असर एड़ी, घुटना, कलाई और उंगली के जोड़ में भी हो सकता है। जोड़ो में रात को अचानक बहुत तेज दर्द होता है और सूजन आ जाती है। जोड़ लाल और गर्म महसूस होता है। साथ में बुखार और थकावट भी हो सकती है। यह रोग रक्त में यूरिक एसिड का स्तर बढ़ने से होता है। यूरिक एसिड बढ़ने से जोड़, टेन्डन और जोड़ के आपसास जमा हो जाता है। यदि यह गुर्दें में जमा होता है तो पथरी या युरेट नेफ्रोपेथी हो सकती है।
गाउट का दौरा अमूमन 5-7 दिनों में ठीक हो जाता है। 60 रोगियों को साल भर में प्रायः दूसरा दौरा भी पड़ ही जाता है। गाउट के रोगियों को रक्तचाप, डायबिटीज, मेटाबोलिक सिन्ड्रोम, वृक्क रोग और हृदय रोग का खतरा अधिक रहता है। यदि उपचार नहीं किया जाये तो गाउट धीरे-धीरे दीर्घकालीन और स्थाई रोग बन जाता है। जोड़ों की सतह क्षतिग्रस्त होने लगती है। अक्षमता और अपंगता बढ़ती जाती है। साथ ही शरीर में कई जगह (जैसे कान, कोहनी आदि) यूरिक एसिड जमा होने से दर्दहीन गांठें (Tophi) बन जाती हैं। यदि गुर्दे में पथरी बन जाये तो स्थिति और जटिल बन जाती है और वृक्कवात (Kidney Failure) भी हो सकता है।
प्राचीन काल में इसे राजरोग या अमीरों का रोग भी कहा जाता था, क्योंकि मांस-मछली और मदिरा सेवन से इस रोग का सीधा संबंध है। ब्रिटेन के किंग हेनरी को भी गाउट हुआ था। गाउट के निदान हेतु जोड़ में से सायनोवियल द्रव निकाल कर सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा जांच की जाती है, उसमें यूरिक एसिड के क्रिस्टल्स की उपस्थिति से गाउट की पुष्टि हो जाती है। पिछले दो दशकों में गाउट का आ
गाउट एक सामान्य रोग है जिसमें बार बार जोड़ में संधिशोथ (जोड़ में दर्द, सूजन, लालिमा, उष्णता और अक्षमता) के दौरे पड़ते हैं। अधिकांश रोगियों (लगभग 50%) में पैर के अंगूठे के जोड़ (मेटाटारसल-फेलेंजियल जोड़) में तकलीफ होती है। तब इसे पोडोग्रा भी कहते हैं। लेकिन गाउट का असर एड़ी, घुटना, कलाई और उंगली के जोड़ में भी हो सकता है। जोड़ो में रात को अचानक बहुत तेज दर्द होता है और सूजन आ जाती है। जोड़ लाल और गर्म महसूस होता है। साथ में बुखार और थकावट भी हो सकती है। यह रोग रक्त में यूरिक एसिड का स्तर बढ़ने से होता है। यूरिक एसिड बढ़ने से जोड़, टेन्डन और जोड़ के आपसास जमा हो जाता है। यदि यह गुर्दें में जमा होता है तो पथरी या युरेट नेफ्रोपेथी हो सकती है।
गाउट का दौरा अमूमन 5-7 दिनों में ठीक हो जाता है। 60 रोगियों को साल भर में प्रायः दूसरा दौरा भी पड़ ही जाता है। गाउट के रोगियों को रक्तचाप, डायबिटीज, मेटाबोलिक सिन्ड्रोम, वृक्क रोग और हृदय रोग का खतरा अधिक रहता है। यदि उपचार नहीं किया जाये तो गाउट धीरे-धीरे दीर्घकालीन और स्थाई रोग बन जाता है। जोड़ों की सतह क्षतिग्रस्त होने लगती है। अक्षमता और अपंगता बढ़ती जाती है। साथ ही शरीर में कई जगह (जैसे कान, कोहनी आदि) यूरिक एसिड जमा होने से दर्दहीन गांठें (Tophi) बन जाती हैं। यदि गुर्दे में पथरी बन जाये तो स्थिति और जटिल बन जाती है और वृक्कवात (Kidney Failure) भी हो सकता है।
प्राचीन काल में इसे राजरोग या अमीरों का रोग भी कहा जाता था, क्योंकि मांस-मछली और मदिरा सेवन से इस रोग का सीधा संबंध है। ब्रिटेन के किंग हेनरी को भी गाउट हुआ था। गाउट के निदान हेतु जोड़ में से सायनोवियल द्रव निकाल कर सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वाराजांच की जाती है, उसमें यूरिक एसिड के क्रिस्टल्स की उपस्थिति से गाउट की पुष्टि हो जाती है। पिछले दो दशकों में गाउट का आघ
Liver fibrosis is when the healthy liver tissue becomes scarred and is unable to function as properly. The initial stage of liver scarring is fibrosis. Cirrhosis of the liver is the term used later if more of the liver is scarred.
गुर्दों की गीता
गुर्दों का आर्थिक और सामाजिक महत्व
गुर्दा या वृक्क शरीर का बहुत मँहगा और दुर्लभ अंग है। आदमी का रौब, रुतबा, शान-शौकत, बाज़ुओं की ताकत सब कुछ गुर्दे के दम से ही होती है। आपके गुर्दे में दम-खम है तो दुनिया डरती है, सलाम करती है। गुर्दे के दम पर कई बिना पढ़े या कम पढ़े लोग भी नेता, मुख्य मंत्री या बड़े-बड़े ओहदों पर पहुँच जाते हैं। फिर गुर्दों की देख-भाल और सुरक्षा में हम कोई कोताही क्यों बरतें। देख लीजियेगा समय आने पर गुर्दे के मामले में सगे-संबन्धी तथा इष्ट-मित्र किनारा कर लेंगे और तन-मन न्यौछावर करने वाली आपकी अंकशायिनी या चाँद-सितारे तोड़ कर लाने वाला आपका बलमा भी धोखा दे जायेगा। गुर्दा खरीदना भी आसान काम नहीं है। बाज़ार में गुर्दे सिमित हैं, कीमतें आसमान को छू रही हैं और खरीदने वालों की कतार बड़ी लम्बी है। भारत गुर्दे के रोगों में भी विश्व की राजधानी है।
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This is a presentation in Hindi. This presentation has major birth defects. It has a in detail description of the defects. I really had a good time in making this presentation as i could learn many things about the defects. I would really thank all the people who helped me in completing this presentation by arranging and editing my presentation to perfection. It contain in detail description.
पीसीओडी या पीसीओएस एक ऐसी स्थिति है जो महिलाओं के अंडाशय को प्रभावित करती है, प्रजनन अंग जो प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्रोजन हार्मोन का उत्पादन करते हैं जो मासिक धर्म चक्र को विनियमित करने में मदद करते हैं और थोड़ी मात्रा में हार्मोन इनहिबिन, रिलैक्सिन और पुरुष हार्मोन का उत्पादन भी करते हैं जिन्हें एण्ड्रोजन कहा जाता है।
फिस्टुला (Fistula Symptoms in Hindi) के लक्षणों को नहीं करें नजरंदाज वर्ना हो...felixhealthcare1
जब गुदा नलिका में किसी कारण इंफेक्शन होती है उसके अंदर बहुत सारी गुदा नलिकाय होती हैं उसे भगन्दर या फिस्टुला कहा जाता है। ज्यादातर फिस्टुला गुदा नली में पस के इकठ्ठा होने से होते हैं। यह पस त्वचा से खुद भी बाहर निकल सकती है या इसके लिए आपरेशन की आवश्यकता भी हो सकती है। फिस्टुला तब होता है जब पस का त्वचा से बाहर आने के लिए बनाया गया रास्ता खुला रह जाता है या वह ठीक नहीं हो पाता। फिस्टुला एक छोटी नली समान होता है
मनुष्य के शरीर में पौरुष ग्रंथि या प्रोस्टेट ग्रंथि ही एक मात्र अंग है जिसे पुरुषार्थ का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि पुरुष की परम श्रेष्ठ धातु शुक्र या वीर्य पौरुष ग्रंथि में ही बनती है। शरीर की सात धातुओं में सातवीं धातु शुक्र अथवा वीर्य सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है। केवल वीर्य ही शरीर का अनमोल आभूषण है, वीर्य ही शक्ति है, वीर्य ही सुन्दरता है। शरीर में वीर्य ही प्रधान वस्तु है। वीर्य ही आँखों का तेज है, वीर्य ही ज्ञान, वीर्य ही प्रकाश है, वीर्य ही वेद हैं और वीर ही ब्रह्म है। वीर्य का संचय करना ही ब्रह्मचर्य है। वीर्य ही एक ऐसा तत्त्व है, जो शरीर के प्रत्येक अंग का पोषण करके शरीर को सुन्दर व सुदृढ़ बनाता है। वीर्य ही आनन्द-प्रमोद का सागर है। जिस मनुष्य में वीर्य का खजाना है वह दुनिया के सारे आनंद-प्रमोद मना सकता है और सौ वर्ष तक जी सकता है। वीर्य में नया शरीर पैदा करने की शक्ति होती है। जब तक शरीर में वीर्य होता है तब तक शत्रु की ताकत नहीं है कि वह भिड़ सके, रोग इसे दबा नहीं सकता। भोजन से वीर्य बनने की प्रक्रिया भी बड़ी लम्बी और जटिल है, जो प्रोस्टेट में ही सम्पन्न होती है।
पिसीओएस (PCOS) या पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम(polycystic ovarian syndrome) अंडाशय को प्रभावित करने वाली एक हार्मोनल (hormonal) स्थिति है। सामान्य मासिक धर्म चक्र(menstural cycle) में, आमतौर पर लगभग 7-8 के आसपास फॉलिकल (follicles) होते हैं जो बढ़ने लगते हैं और इनमें से एक फॉलिकल (follicle) अंडे को छोड़ने के लिए परिपक्व होगा। हालांकि, पीसीओएस से प्रभावित महिला में, एफएसएच (FSH) और एलएच (LH) हार्मोन(hormone) में असंतुलन होता है और एंड्रोजन हार्मोन(androgen hormone) का अधिक उत्पादन होता है, जिसकी वजह से कोई भी अंडा (egg) परिपक्व नहीं होता है, जिससे एनोव्यूलेश(anovulation) के कारण बच्चा ठहरने में मुश्किल आती है ।
पिसीओएस (PCOS) या पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम(polycystic ovarian syndrome) अंडाशय को प्रभावित करने वाली एक हार्मोनल (hormonal) स्थिति है। सामान्य मासिक धर्म चक्र(menstural cycle) में, आमतौर पर लगभग 7-8 के आसपास फॉलिकल (follicles) होते हैं जो बढ़ने लगते हैं और इनमें से एक फॉलिकल (follicle) अंडे को छोड़ने के लिए परिपक्व होगा। हालांकि, पीसीओएस से प्रभावित महिला में, एफएसएच (FSH) और एलएच (LH) हार्मोन(hormone) में असंतुलन होता है और एंड्रोजन हार्मोन(androgen hormone) का अधिक उत्पादन होता है, जिसकी वजह से कोई भी अंडा (egg) परिपक्व नहीं होता है, जिससे एनोव्यूलेश(anovulation) के कारण बच्चा ठहरने में मुश्किल आती है ।
मधुमेह नाड़ीरोग या डायबीटिक न्यूरोपेथी
जैसे ही डायन डायबिटीज शरीर पर अपनी पकड़ मजबूत कर लेती है, उत्पाती और उधमी ग्लूकोज शरीर की नाड़ियों को नुकसान पहुँचाने लगता है। 60-70 प्रतिशत मधुमेही अपने जीवन काल में किसी न किसी प्रकार के नाड़ी-दोष का शिकार हो ही जाते हैं। मधुमेह के कारण नाड़ियों के क्षतिग्रस्त होने को नाड़ीरोग या डायबीटिक न्यूरोपेथी (न्यूरो=नाड़ी और पैथी=रोग) कहते हैं। यह एक गम्भीर रोग है जो मधुमेही के शरीर पर भले देर से हमला करता है परन्तु चुपचाप और दबे पाँव करता है, जैसे-जैसे यह अपने पर फैलाता है रोगी के जीवन को असहनीय कष्ट, वेदना और अपंगता से भर देता है।
रोगी के जीवन में इस रोग में होने वाले लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि शरीर की कौन सी नाड़ियों को क्षति पहुँची है, रोगी को मधुमेह कितने समय से है, रोगी का रक्तशर्करा नियंत्रण कैसा है, क्या वह धूम्रपान व मदिरापान करता है या उसकी जीवनशैली कैसी है। वैसे तो हाथ-पैरों में दर्द, चुभन, जलन तथा स्पंदन, तापमान या स्पर्श की अनुभूति न होना इस रोग के मुख्य लक्षण हैं, पर रोगी को पाचनतंत्र, उत्सर्जन-तंत्र, प्रजनन-तंत्र, हृदय एवम् परिवहन-तंत्र आदि से संबन्धित कोई भी लक्षण हो सकते हैं। नाड़ीरोग में कुछ रोगियों को बहुत मामूली सी तकलीफ होती है तो कई बार लक्षण इतने प्रचण्ड और कष्टदायक होते हैं कि जीवन अपाहिज और असंभव सा लगने लगता है।
आखिर ये नाड़ियाँ क्या होती हैं?
मोटे तौर पर नाड़ियों की तुलना हम बिजली की केबल्स से कर सकते हैं। इनके मध्य में भी एक तार होता है जिसमें संदेश, आदेश या संवेदनाएं प्रवाहित होती हैं। इसे एक्सोन कहते हैं। जिसके बाहर एक रक्षात्मक खोल होता है जिसे माइलिन शीथ कहते हैं। ये नाड़ियाँ हमारे मस्तिष्क, सुषुम्ना (Spinal Cord) और नाड़ी-तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है
these slides are prepared to understand digestive system IN EASY WAY Important links- NOTES- https://mynursingstudents.blogspot.com/ youtube channel https://www.youtube.com/c/MYSTUDENTSU... CHANEL PLAYLIST- ANATOMY AND PHYSIOLOGY-https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAPM3VTGVUXIeswKJ3XGaD2p COMMUNITY HEALTH NURSING- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAPyslPNdIJoVjiXEDTVEDzs CHILD HEALTH NURSING- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gANcslmv0DXg6BWmWN359Gvg FIRST AID- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAMvGqeqH2ZTklzFAZhOrvgP HCM- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAM7mZ1vZhQBHWbdLnLb-cH9 FUNDAMENTALS OF NURSING- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAPFxu78NDLpGPaxEmK1fTao COMMUNICABLE DISEASES- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAOWo4IwNjLU_LCuhRN0ZLeb ENVIRONMENTAL HEALTH- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAPkI6LvfS8Zu1nm6mZi9FK6 MSN- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAOdyoHnDLAoR_o8M6ccqYBm HINDI ONLY- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAN4L-FJ3s_IEXgZCijGUA1A ENGLISH ONLY- https://www.youtube.com/playlist?list=PL93S13oM2gAMYv2a1hFcq4W1nBjTnRkHP facebook profile- https://www.facebook.com/suresh.kr.lrhs/ FACEBOOK PAGE- https://www.facebook.com/My-Student-S... facebook group NURSING NOTES- https://www.facebook.com/groups/24139... FOR MAKING EASY NOTES YOU CAN ALSO VISIT MY BLOG – BLOGGER- https://mynursingstudents.blogspot.com/ Instagram- https://www.instagram.com/mystudentsu... Twitter- https://twitter.com/student_system?s=08
#pancreas, #gallbladder ,#liver ,#BORN,#ASSESSMENT, #APPEARENCE,#PULSE,#GRIMACE,#REFLEX,#RESPIRATION,#RESUSCITATION,#NEWBORN,#BABY,#VIRGINIA, #APGAR, #OXYGEN,#CYANOSIS,#OPTICNERVE, #SARACHNA,#MYSTUDENTSUPPORTSYSTEM, #rashes,#nursingclasses, #communityhealthnursing,#ANM, #GNM, #BSCNURING,#NURSINGSTUDENTS, #WHO,#NURSINGINSTITUTION,#COLLEGEOFNURSING,#nursingofficer,#COMMUNITYHEALTHOFFICER
The most common problem associated with urination is urinary tract infection, also known as urinary tract infection. Although this is a common problem related to urination, people still know very little about it. Lets learn in this post. If you are looking for one, then your search is over! Dr. Saket Narnoli provides best urology services to patients with urology problems. Dr. Saket Narnoli's motto is patient satisfaction is essential.
पौरुष ग्रंथि Prostate
मनुष्य के शरीर में पौरुष ग्रंथि या प्रोस्टेट ग्रंथि ही एक मात्र अंग है जिसे पुरुषार्थ का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि पुरुष की परम श्रेष्ठ धातु शुक्र या वीर्य पौरुष ग्रंथि में ही बनती है। शरीर की सात धातुओं में सातवीं धातु शुक्र अथवा वीर्य सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है। केवल वीर्य ही शरीर का अनमोल आभूषण है, वीर्य ही शक्ति है, वीर्य ही सुन्दरता है। शरीर में वीर्य ही प्रधान वस्तु है। वीर्य ही आँखों का तेज है, वीर्य ही ज्ञान, वीर्य ही प्रकाश है, वीर्य ही वेद हैं और वीर ही ब्रह्म है। वीर्य का संचय करना ही ब्रह्मचर्य है। वीर्य ही एक ऐसा तत्त्व है, जो शरीर के प्रत्येक अंग का पोषण करके शरीर को सुन्दर व सुदृढ़ बनाता है। वीर्य ही आनन्द-प्रमोद का सागर है। जिस मनुष्य में वीर्य का खजाना है वह दुनिया के सारे आनंद-प्रमोद मना सकता है और सौ वर्ष तक जी सकता है। वीर्य में नया शरीर पैदा करने की शक्ति होती है। जब तक शरीर में वीर्य होता है तब तक शत्रु की ताकत नहीं है कि वह भिड़ सके, रोग इसे दबा नहीं सकता। भोजन से वीर्य बनने की प्रक्रिया भी बड़ी लम्बी और जटिल है, जो प्रोस्टेट में ही सम्पन्न होती है। इस बारे में श्री सुश्रुताचार्य ने लिखा है :
रसाद्रक्तं ततो मांसं मांसान्मेदः प्रजायते ।
मेदस्यास्थिः ततो मज्जा मज्जाया: शुक्रसंभवः ।।
कहते हैं कि वीर्य बनने में करीब 30 दिन व 4 घंटे लग जाते हैं। वैज्ञानिक लोग कहते हैं कि 32 किलोग्राम भोजन से 700 ग्राम रक्त बनता है और 700 ग्राम रक्त से लगभग 20 ग्राम वीर्य बनता है। ग्रीक भाषा में भी प्रोस्टेट का मतलब होता है "One who stands before" यानि "Protector" या "Guardian" अर्थात यह पूरे शरीर का संरक्षक या पालनहार है। प्रोस्टेट के बारे में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि सन् 2002 में फेडरल इंटरनेशनल कमेटी ऑन टर्मिनोलोजी ने स्त्रियों की पेरा
Linomel Muesli
“Muesli" should be eaten regularly, prepared as follows:
Put 2 tablespoons of LINOMEL in a glass bowl. Cover this with a layer of fresh fruit in season, (i.e.: berries, cherries, apricots, peaches, grated apples). Now prepare a mixture made with Quark and Flax Seed Oil.
Add 3 tablespoons Flax Seed Oil to 100 - 125 g Quark, a little milk (2 Tblsp) and mix thoroughly until the oil has been totally absorbed. Lastly, add 1 tablespoon honey. In order to give it a new flavor every day, rosehip pulp, buckthorn juice, other fruit juices or ground nuts may be added. Butter is not recommended. Only herb teas should be served, but a cup of black tea is permitted on occasion.
अभी तक हुए 1500 से अधिक शोधों से यह साबित होता है कि नारियल तेल (कोकोस न्युसिफेरा) हमारी धरा पर विद्यमान एक स्वास्थ्यप्रद और उत्कृष्ट तेल है। सेहत से लेकर सुंदरता तक नारियल तेल प्रकृति का नायाब और अनमोल उपहार है। इसके करिश्माई फायदे आपको चौंका देंगे। गर्म करने पर यह खराब नहीं होता। इसकी शैल्फ लाइफ दो वर्ष से अधिक है। हमें अनरिफाइंड, अनहीटेड, ऑर्गेनिक, कॉल्ड-प्रेस्ड और एक्स्ट्रावर्जिन तेल प्रयोग में लेना चाहिए।
विश्वविख्यात फैट और ऑयल्स एक्सपर्ट और जर्मनी के फेडरल इंस्टिट्यूट ऑफ फैट्स रिसर्च की चीफ एक्सपर्ट डॉ जॉहाना बडविग ने साबित किया है कि नारियल तेल फ्राइंग और डीप फ्राइंग के लिए सबसे अच्छा विकल्प है। गर्म करने पर इसमें ट्रांसफैट नहीं बनते। कैंसर के रोगी भी इस तेल को प्रयोग कर सकते हैं।
पौराणिक महत्व
हिंदू धर्म में नारियल एक शुद्ध, सात्विक, पवित्र, फलदायी एवं लक्ष्मी माता से मनुष्य को जोड़ने वाला फल है, इसीलिए इसे संस्कृत में श्रीफल कहते हैं, श्री का अर्थ होता है लक्ष्मी। किसी भी धार्मिक एवं शुभ कार्य में हुई पूजा में नारियल रखने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं और लक्ष्मी की विशेष कृपा बनी रहती है। घर में नारियल रखने से घर के वास्तु दोष दूर होते हैं। मंदिरों में आमतौर पर इसे पूजा के दौरान भगवान की मूर्ति के सामने फोड़ा जाता है। फोड़ने के बाद यह नारियल प्रसाद के रूप में भक्तों में बांटा जाता है।
गाउट एक सामान्य रोग है जिसमें बार बार जोड़ में संधिशोथ (जोड़ में दर्द, सूजन, लालिमा, उष्णता और अक्षमता) के दौरे पड़ते हैं। अधिकांश रोगियों (लगभग 50%) में पैर के अंगूठे के जोड़ (मेटाटारसल-फेलेंजियल जोड़) में तकलीफ होती है। तब इसे पोडोग्रा भी कहते हैं। लेकिन गाउट का असर एड़ी, घुटना, कलाई और उंगली के जोड़ में भी हो सकता है। जोड़ो में रात को अचानक बहुत तेज दर्द होता है और सूजन आ जाती है। जोड़ लाल और गर्म महसूस होता है। साथ में बुखार और थकावट भी हो सकती है। यह रोग रक्त में यूरिक एसिड का स्तर बढ़ने से होता है। यूरिक एसिड बढ़ने से जोड़, टेन्डन और जोड़ के आपसास जमा हो जाता है। यदि यह गुर्दें में जमा होता है तो पथरी या युरेट नेफ्रोपेथी हो सकती है।
गाउट का दौरा अमूमन 5-7 दिनों में ठीक हो जाता है। 60 रोगियों को साल भर में प्रायः दूसरा दौरा भी पड़ ही जाता है। गाउट के रोगियों को रक्तचाप, डायबिटीज, मेटाबोलिक सिन्ड्रोम, वृक्क रोग और हृदय रोग का खतरा अधिक रहता है। यदि उपचार नहीं किया जाये तो गाउट धीरे-धीरे दीर्घकालीन और स्थाई रोग बन जाता है। जोड़ों की सतह क्षतिग्रस्त होने लगती है। अक्षमता और अपंगता बढ़ती जाती है। साथ ही शरीर में कई जगह (जैसे कान, कोहनी आदि) यूरिक एसिड जमा होने से दर्दहीन गांठें (Tophi) बन जाती हैं। यदि गुर्दे में पथरी बन जाये तो स्थिति और जटिल बन जाती है और वृक्कवात (Kidney Failure) भी हो सकता है।
प्राचीन काल में इसे राजरोग या अमीरों का रोग भी कहा जाता था, क्योंकि मांस-मछली और मदिरा सेवन से इस रोग का सीधा संबंध है। ब्रिटेन के किंग हेनरी को भी गाउट हुआ था। गाउट के निदान हेतु जोड़ में से सायनोवियल द्रव निकाल कर सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वाराजांच की जाती है, उसमें यूरिक एसिड के क्रिस्टल्स की उपस्थिति से गाउट की पुष्टि हो जाती है। पिछले दो दशकों में गाउट का आघ
Liver fibrosis is when the healthy liver tissue becomes scarred and is unable to function as properly. The initial stage of liver scarring is fibrosis. Cirrhosis of the liver is the term used later if more of the liver is scarred.
गुर्दों की गीता
गुर्दों का आर्थिक और सामाजिक महत्व
गुर्दा या वृक्क शरीर का बहुत मँहगा और दुर्लभ अंग है। आदमी का रौब, रुतबा, शान-शौकत, बाज़ुओं की ताकत सब कुछ गुर्दे के दम से ही होती है। आपके गुर्दे में दम-खम है तो दुनिया डरती है, सलाम करती है। गुर्दे के दम पर कई बिना पढ़े या कम पढ़े लोग भी नेता, मुख्य मंत्री या बड़े-बड़े ओहदों पर पहुँच जाते हैं। फिर गुर्दों की देख-भाल और सुरक्षा में हम कोई कोताही क्यों बरतें। देख लीजियेगा समय आने पर गुर्दे के मामले में सगे-संबन्धी तथा इष्ट-मित्र किनारा कर लेंगे और तन-मन न्यौछावर करने वाली आपकी अंकशायिनी या चाँद-सितारे तोड़ कर लाने वाला आपका बलमा भी धोखा दे जायेगा। गुर्दा खरीदना भी आसान काम नहीं है। बाज़ार में गुर्दे सिमित हैं, कीमतें आसमान को छू रही हैं और खरीदने वालों की कतार बड़ी लम्बी है। भारत गुर्दे के रोगों में भी विश्व की राजधानी है।
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This is a presentation in Hindi. This presentation has major birth defects. It has a in detail description of the defects. I really had a good time in making this presentation as i could learn many things about the defects. I would really thank all the people who helped me in completing this presentation by arranging and editing my presentation to perfection. It contain in detail description.
पीसीओडी या पीसीओएस एक ऐसी स्थिति है जो महिलाओं के अंडाशय को प्रभावित करती है, प्रजनन अंग जो प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्रोजन हार्मोन का उत्पादन करते हैं जो मासिक धर्म चक्र को विनियमित करने में मदद करते हैं और थोड़ी मात्रा में हार्मोन इनहिबिन, रिलैक्सिन और पुरुष हार्मोन का उत्पादन भी करते हैं जिन्हें एण्ड्रोजन कहा जाता है।
फिस्टुला (Fistula Symptoms in Hindi) के लक्षणों को नहीं करें नजरंदाज वर्ना हो...felixhealthcare1
जब गुदा नलिका में किसी कारण इंफेक्शन होती है उसके अंदर बहुत सारी गुदा नलिकाय होती हैं उसे भगन्दर या फिस्टुला कहा जाता है। ज्यादातर फिस्टुला गुदा नली में पस के इकठ्ठा होने से होते हैं। यह पस त्वचा से खुद भी बाहर निकल सकती है या इसके लिए आपरेशन की आवश्यकता भी हो सकती है। फिस्टुला तब होता है जब पस का त्वचा से बाहर आने के लिए बनाया गया रास्ता खुला रह जाता है या वह ठीक नहीं हो पाता। फिस्टुला एक छोटी नली समान होता है
मनुष्य के शरीर में पौरुष ग्रंथि या प्रोस्टेट ग्रंथि ही एक मात्र अंग है जिसे पुरुषार्थ का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि पुरुष की परम श्रेष्ठ धातु शुक्र या वीर्य पौरुष ग्रंथि में ही बनती है। शरीर की सात धातुओं में सातवीं धातु शुक्र अथवा वीर्य सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है। केवल वीर्य ही शरीर का अनमोल आभूषण है, वीर्य ही शक्ति है, वीर्य ही सुन्दरता है। शरीर में वीर्य ही प्रधान वस्तु है। वीर्य ही आँखों का तेज है, वीर्य ही ज्ञान, वीर्य ही प्रकाश है, वीर्य ही वेद हैं और वीर ही ब्रह्म है। वीर्य का संचय करना ही ब्रह्मचर्य है। वीर्य ही एक ऐसा तत्त्व है, जो शरीर के प्रत्येक अंग का पोषण करके शरीर को सुन्दर व सुदृढ़ बनाता है। वीर्य ही आनन्द-प्रमोद का सागर है। जिस मनुष्य में वीर्य का खजाना है वह दुनिया के सारे आनंद-प्रमोद मना सकता है और सौ वर्ष तक जी सकता है। वीर्य में नया शरीर पैदा करने की शक्ति होती है। जब तक शरीर में वीर्य होता है तब तक शत्रु की ताकत नहीं है कि वह भिड़ सके, रोग इसे दबा नहीं सकता। भोजन से वीर्य बनने की प्रक्रिया भी बड़ी लम्बी और जटिल है, जो प्रोस्टेट में ही सम्पन्न होती है।
पिसीओएस (PCOS) या पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम(polycystic ovarian syndrome) अंडाशय को प्रभावित करने वाली एक हार्मोनल (hormonal) स्थिति है। सामान्य मासिक धर्म चक्र(menstural cycle) में, आमतौर पर लगभग 7-8 के आसपास फॉलिकल (follicles) होते हैं जो बढ़ने लगते हैं और इनमें से एक फॉलिकल (follicle) अंडे को छोड़ने के लिए परिपक्व होगा। हालांकि, पीसीओएस से प्रभावित महिला में, एफएसएच (FSH) और एलएच (LH) हार्मोन(hormone) में असंतुलन होता है और एंड्रोजन हार्मोन(androgen hormone) का अधिक उत्पादन होता है, जिसकी वजह से कोई भी अंडा (egg) परिपक्व नहीं होता है, जिससे एनोव्यूलेश(anovulation) के कारण बच्चा ठहरने में मुश्किल आती है ।
पिसीओएस (PCOS) या पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम(polycystic ovarian syndrome) अंडाशय को प्रभावित करने वाली एक हार्मोनल (hormonal) स्थिति है। सामान्य मासिक धर्म चक्र(menstural cycle) में, आमतौर पर लगभग 7-8 के आसपास फॉलिकल (follicles) होते हैं जो बढ़ने लगते हैं और इनमें से एक फॉलिकल (follicle) अंडे को छोड़ने के लिए परिपक्व होगा। हालांकि, पीसीओएस से प्रभावित महिला में, एफएसएच (FSH) और एलएच (LH) हार्मोन(hormone) में असंतुलन होता है और एंड्रोजन हार्मोन(androgen hormone) का अधिक उत्पादन होता है, जिसकी वजह से कोई भी अंडा (egg) परिपक्व नहीं होता है, जिससे एनोव्यूलेश(anovulation) के कारण बच्चा ठहरने में मुश्किल आती है ।
मधुमेह नाड़ीरोग या डायबीटिक न्यूरोपेथी
जैसे ही डायन डायबिटीज शरीर पर अपनी पकड़ मजबूत कर लेती है, उत्पाती और उधमी ग्लूकोज शरीर की नाड़ियों को नुकसान पहुँचाने लगता है। 60-70 प्रतिशत मधुमेही अपने जीवन काल में किसी न किसी प्रकार के नाड़ी-दोष का शिकार हो ही जाते हैं। मधुमेह के कारण नाड़ियों के क्षतिग्रस्त होने को नाड़ीरोग या डायबीटिक न्यूरोपेथी (न्यूरो=नाड़ी और पैथी=रोग) कहते हैं। यह एक गम्भीर रोग है जो मधुमेही के शरीर पर भले देर से हमला करता है परन्तु चुपचाप और दबे पाँव करता है, जैसे-जैसे यह अपने पर फैलाता है रोगी के जीवन को असहनीय कष्ट, वेदना और अपंगता से भर देता है।
रोगी के जीवन में इस रोग में होने वाले लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि शरीर की कौन सी नाड़ियों को क्षति पहुँची है, रोगी को मधुमेह कितने समय से है, रोगी का रक्तशर्करा नियंत्रण कैसा है, क्या वह धूम्रपान व मदिरापान करता है या उसकी जीवनशैली कैसी है। वैसे तो हाथ-पैरों में दर्द, चुभन, जलन तथा स्पंदन, तापमान या स्पर्श की अनुभूति न होना इस रोग के मुख्य लक्षण हैं, पर रोगी को पाचनतंत्र, उत्सर्जन-तंत्र, प्रजनन-तंत्र, हृदय एवम् परिवहन-तंत्र आदि से संबन्धित कोई भी लक्षण हो सकते हैं। नाड़ीरोग में कुछ रोगियों को बहुत मामूली सी तकलीफ होती है तो कई बार लक्षण इतने प्रचण्ड और कष्टदायक होते हैं कि जीवन अपाहिज और असंभव सा लगने लगता है।
आखिर ये नाड़ियाँ क्या होती हैं?
मोटे तौर पर नाड़ियों की तुलना हम बिजली की केबल्स से कर सकते हैं। इनके मध्य में भी एक तार होता है जिसमें संदेश, आदेश या संवेदनाएं प्रवाहित होती हैं। इसे एक्सोन कहते हैं। जिसके बाहर एक रक्षात्मक खोल होता है जिसे माइलिन शीथ कहते हैं। ये नाड़ियाँ हमारे मस्तिष्क, सुषुम्ना (Spinal Cord) और नाड़ी-तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है
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पौरुष ग्रंथि Prostate
मनुष्य के शरीर में पौरुष ग्रंथि या प्रोस्टेट ग्रंथि ही एक मात्र अंग है जिसे पुरुषार्थ का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि पुरुष की परम श्रेष्ठ धातु शुक्र या वीर्य पौरुष ग्रंथि में ही बनती है। शरीर की सात धातुओं में सातवीं धातु शुक्र अथवा वीर्य सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है। केवल वीर्य ही शरीर का अनमोल आभूषण है, वीर्य ही शक्ति है, वीर्य ही सुन्दरता है। शरीर में वीर्य ही प्रधान वस्तु है। वीर्य ही आँखों का तेज है, वीर्य ही ज्ञान, वीर्य ही प्रकाश है, वीर्य ही वेद हैं और वीर ही ब्रह्म है। वीर्य का संचय करना ही ब्रह्मचर्य है। वीर्य ही एक ऐसा तत्त्व है, जो शरीर के प्रत्येक अंग का पोषण करके शरीर को सुन्दर व सुदृढ़ बनाता है। वीर्य ही आनन्द-प्रमोद का सागर है। जिस मनुष्य में वीर्य का खजाना है वह दुनिया के सारे आनंद-प्रमोद मना सकता है और सौ वर्ष तक जी सकता है। वीर्य में नया शरीर पैदा करने की शक्ति होती है। जब तक शरीर में वीर्य होता है तब तक शत्रु की ताकत नहीं है कि वह भिड़ सके, रोग इसे दबा नहीं सकता। भोजन से वीर्य बनने की प्रक्रिया भी बड़ी लम्बी और जटिल है, जो प्रोस्टेट में ही सम्पन्न होती है। इस बारे में श्री सुश्रुताचार्य ने लिखा है :
रसाद्रक्तं ततो मांसं मांसान्मेदः प्रजायते ।
मेदस्यास्थिः ततो मज्जा मज्जाया: शुक्रसंभवः ।।
कहते हैं कि वीर्य बनने में करीब 30 दिन व 4 घंटे लग जाते हैं। वैज्ञानिक लोग कहते हैं कि 32 किलोग्राम भोजन से 700 ग्राम रक्त बनता है और 700 ग्राम रक्त से लगभग 20 ग्राम वीर्य बनता है। ग्रीक भाषा में भी प्रोस्टेट का मतलब होता है "One who stands before" यानि "Protector" या "Guardian" अर्थात यह पूरे शरीर का संरक्षक या पालनहार है। प्रोस्टेट के बारे में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि सन् 2002 में फेडरल इंटरनेशनल कमेटी ऑन टर्मिनोलोजी ने स्त्रियों की पेरा
Linomel Muesli
“Muesli" should be eaten regularly, prepared as follows:
Put 2 tablespoons of LINOMEL in a glass bowl. Cover this with a layer of fresh fruit in season, (i.e.: berries, cherries, apricots, peaches, grated apples). Now prepare a mixture made with Quark and Flax Seed Oil.
Add 3 tablespoons Flax Seed Oil to 100 - 125 g Quark, a little milk (2 Tblsp) and mix thoroughly until the oil has been totally absorbed. Lastly, add 1 tablespoon honey. In order to give it a new flavor every day, rosehip pulp, buckthorn juice, other fruit juices or ground nuts may be added. Butter is not recommended. Only herb teas should be served, but a cup of black tea is permitted on occasion.
अभी तक हुए 1500 से अधिक शोधों से यह साबित होता है कि नारियल तेल (कोकोस न्युसिफेरा) हमारी धरा पर विद्यमान एक स्वास्थ्यप्रद और उत्कृष्ट तेल है। सेहत से लेकर सुंदरता तक नारियल तेल प्रकृति का नायाब और अनमोल उपहार है। इसके करिश्माई फायदे आपको चौंका देंगे। गर्म करने पर यह खराब नहीं होता। इसकी शैल्फ लाइफ दो वर्ष से अधिक है। हमें अनरिफाइंड, अनहीटेड, ऑर्गेनिक, कॉल्ड-प्रेस्ड और एक्स्ट्रावर्जिन तेल प्रयोग में लेना चाहिए।
विश्वविख्यात फैट और ऑयल्स एक्सपर्ट और जर्मनी के फेडरल इंस्टिट्यूट ऑफ फैट्स रिसर्च की चीफ एक्सपर्ट डॉ जॉहाना बडविग ने साबित किया है कि नारियल तेल फ्राइंग और डीप फ्राइंग के लिए सबसे अच्छा विकल्प है। गर्म करने पर इसमें ट्रांसफैट नहीं बनते। कैंसर के रोगी भी इस तेल को प्रयोग कर सकते हैं।
पौराणिक महत्व
हिंदू धर्म में नारियल एक शुद्ध, सात्विक, पवित्र, फलदायी एवं लक्ष्मी माता से मनुष्य को जोड़ने वाला फल है, इसीलिए इसे संस्कृत में श्रीफल कहते हैं, श्री का अर्थ होता है लक्ष्मी। किसी भी धार्मिक एवं शुभ कार्य में हुई पूजा में नारियल रखने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं और लक्ष्मी की विशेष कृपा बनी रहती है। घर में नारियल रखने से घर के वास्तु दोष दूर होते हैं। मंदिरों में आमतौर पर इसे पूजा के दौरान भगवान की मूर्ति के सामने फोड़ा जाता है। फोड़ने के बाद यह नारियल प्रसाद के रूप में भक्तों में बांटा जाता है।
What is the Black Seed?
Its botanical name is Nigella sativa. It is believed to be indigenous to the Mediterranean region but has been cultivated into other parts of the world including the Arabian peninsula, northern Africa and parts of Asia.
The Black seeds originate from the common fennel flower plant (Nigella sativa) of the buttercup (Ranunculaceae) family. It is sometimes mistakenly confused with the fennel herb plant (Foeniculum vulgare).
The plant has finely divided foliage and pale bluish purple or white flowers. The stalk of the plant reaches a height of twelve to eighteen inches as its fruit, the black seed, matures.
The Black Seed forms a fruit capsule which consists of many white trigonal seeds. Once the fruit capsule has matured, it opens up and the seeds contained within are exposed to the air, becoming black in color.
The Black seeds are small black grains with a rough surface and an oily white interior, similar to onion seeds. The seeds have little bouquet, though when rubbed, their aroma resembles oregano. They have a slightly bitter, peppery flavor and a crunchy texture.
The Black Seed is also known by other names, varying between places. Some call it black caraway, others call it black cumin, onion seeds or even coriander seeds. The plant has no relation to the common kitchen herb, cumin.
Muslims’ use of the Black Seed:
Muslims have been using and promoting the use of the Black Seed for hundreds of years, and hundreds of articles have been written about it. The Black Seed has also been in use worldwide for over 3000 years. It is not only a prophetic herb, but it also holds a unique place in the medicine of the Prophet .
It is unique in that it was not used profusely before the Prophet Muhammad made its use popular. Although there were more than 400 herbs in use before the Prophet Muhammad and recorded in the herbals of Galen and Hippocrates, the Black Seed was not one of the most popular remedies of the time. Because of the way Islam has spread, the usage and popularity of the Black Seed is widely known as a "remedy of the Prophet ." In fact, a large part of this herbal preparation's popularity is based on the teachings of the Prophet .
The Black Seed has become very popular in recent years and is marketed and sold by many Muslim and non-Muslim
Sauerkraut Health Benefits
Professor of Probiotics including rare Lactobacillus Plantarum
Digests everything
High in Vitamin B group and C
Vanishes GERD and IBS
Immunity booster
High in Fabulous Fiber
Fights Cancer
benefits of Cottage Cheese
sulfur containing protein
bonds and carries flax oil into the cells
Makes healthy and electron rich cell wall
Detoxify the body
dextro rotating lactic acid
alkalize the body
Neutralize the killer levo rotating lactic acid
lactoferrin and lactoferricin
anti-bacterial and anti-viral
builds lymphocytes, monocytes & macrophage
boosts immunity
FOCC is mixture of Flax oil and cottage or quark. It is full of electron rich omega-3 fats, has power to attract healing photons from sun and other celestial bodies through resonance. These fats are full of high energy pi-electrons, which attract oxygen into the cells and are capable of healing cell membranes.
As “Om” is divine word and synonym of God in India. According to Hindu mythology, the whole universe is located inside “Om”, so the name Omkhand has been given to this wonderful recipe.
Black Seed – Cures every disease except death Om Verma
Nigella sativa or Black Seed is an annual flowering plant, native to southwest Asia, eastern coastal countries of Mediterranean region and North Africa. Nigella is a derived from Latin word Niger (black). It grows to 20–30 cm tall, with finely divided, linear leaves. The flowers are delicate and usually coloured pale blue and white, with five to ten petals. The fruit is a large and inflated capsule composed of three to seven united follicles, each containing numerous seeds.
The Black seeds are small black grains with a rough surface and an oily white interior, similar to onion seeds. Black seed has a peculiar aromatic and pungent smell, while onion seeds don’t have this smell. Black seeds have a slightly bitter, peppery flavor and a crunchy texture. The seed is used as a spice, medicine, cosmetic and flavoring agent.
Sour cabbage – Professor of Probiotics
The first and most overlooked reason that our digestive tract is crucial to our
health is because 80 percent of our entire immune system is located in your
digestive tract. In addition, our digestive system is the second largest part of our
neurological system, called enteric nervous system or the second brain.
Probiotics are live beneficial bacteria, which hold the master key for healing
digestive issues, better health, stronger immune system, mental and neurological
disorders. Sour cabbage is the best probiotic food (Germans call it Sauerkraut), It
is produced by lacto-fermentation of the cabbage.
Wild Oregano (Origanum Vulgare ) is a perennial herb that has purple flowers and spade-shaped, olive-green leaves. The whole plant has a strong, peculiar, fragrant, balsamic odour and a warm, bitterish, aromatic taste, both of which properties are preserved when the herb is dry. The oregano sold as a spice is either Sweet Marjoram (Origanum majorana) or Mexican Sage.
There are over 40 oregano species, but the most therapeutically beneficial is the wild oregano or Origanum vulgare that's native to Mediterranean mountains. To obtain oregano oil, the dried flowers and leaves of the plant are harvested when the oil content of the plant is at its highest, and then distilled.
Mayo Dressing
This is part of Budwig Protocol proposed to cure cancer developed by Dr. Budwig.
Delicious mayo salad dressing can be prepared by mixing together 2 Tbsp (30 ml) Flax Oil, 2 Tbsp (30 ml) milk, and 2 Tbsp (30 ml) cottage cheese. Then add 2 tablespoons (30 ml) of Lemon juice (or Apple Cider Vinegar) and add some herbs of your choice.
Health Benefits
Ocean of Probiotics including rare
Lactobacillus Plantarum
Digests everything
Very high in B Vitamins and Vitamin C
Vanishes GERD and IBS
Immunity booster
High in Fabulous Fiber
Fights Cancer
Biography of Dr. Johanna Budwig in Health of India (Covery Story)Om Verma
Definitively Budwig Protocol is a miracle cure for cancer with documented 90% success if you follow this treatment perfectly and religiously. This treatment targets on prime cause of cancer. Prime cause of Cancer is oxygen deficiency in the cells. Two factors are essential to attract oxygen in the cells: 1- Sulfur containing protein (found in cottage cheese) and 2- some unknown fat which nobody could identify until 1949 when Dr. Budwig developed paperchromatography technique to identify fats. These fats were Alpha-linolenic acid and linoleic acid found abundantly in FLAX OIL. Thus she developed Cancer therapy based on Flax oil and cottage cheese.
पिछले महीने हमें बॉक्सर प्रजाति का एक श्वेत “पप” प्राप्त हुआ, जिसे हम मिनी बुलाने लगे थे। हम सब बहुत खुश थे। पूरे परिवार में खुशी की लहर थी।
परंतु 4 मई की रात को अचानक मुई बिजली गुल हो गई। मिनी अंधेरे में नीचे उतर गई और नीचे किसी लड़के ने गलती से अपना पैर मिनी के पैर पर रख दिया। बस बेचारी असहाय मिनी की जोर से चीख निकली। हम सब उसकी चीख सुन कर नीचे भागे। वह दर्द के मारे चीखती ही जा रही थी। हमारी समझ में आ चुका था कि मामला अत्यंत गंभीर है और जरूर इसकी फीमर का फ्रेक्चर हुआ है। हमारी सारी श्वेत और उज्वल खुशियों पर यह काली रात कालिख पोत चुकी थी। पूरी रात हम सो भी न सके। कभी मैं, तो कभी मेरी पत्नि उसे गोद में लेकर रात भर बैठे रहे।
सुबह कोटा के कई वेट चिकित्सकों से परामर्श ले लिया गया। कोई ठीक से बता नहीं पा रहा था कि मिनी के पैर का उपचार किस प्रकार होगा, रोड डलेगी, सर्जरी होगी या प्लेटिंग करनी होगी। हमें लगा कि कोटा में समय बर्बाद नहीं करना व्यर्थ है और तुरंत मिनी को जयपुर या दिल्ली के किसी बड़े वेट सर्जन को दिखाना चाहिये।
मैंने मेरे एक मित्र अनिल, जो जयपुर में रहते हैं, से बात की। उन्होंने मुझे पूरा आश्वासन दिया व कहा कि उनके ब्रदर-इन-लॉ विख्यात वेट चिकित्सक हैं और वे सब व्यवस्था करवा देंगे। तब जाकर मन को थोड़ा सकून मिला। 10 मिनट बाद ही उनके ब्रदर-इन-लॉ ड
After the advent of "lipid hypothesis", which linked the consumption of dietary fat with increased risk of heart disease and other health problems, fat was highly defamed by the medical establishment that many people started thinking that the best answer to the "fat problem" is to stay away from it as far as possible. Food processing companies quickly took advantage of this era of “fat phobia”, and soon flooded the market with "low fat" and "no fat" products, promising to put an end to heart disease and obesity, but the incidence of these diseases is still skyrocketing.
The truth is that not all fats are equal. While the consumption of some bad fats (trans-fats) are, really, a risk factor for many health problems, some other fats, including alpha-linolenic acid ALA and linoleic acid LA, are so important for health that they have been termed "essential fatty acids" (EFAs). Our body needs them to perform vitally important functions, but our body is unable to produce them. Therefore, we must get them from our food. That's why any attempt to indiscriminately reduce or eliminate all fats from our diet inevitably leads to an EFA deficiency, which may be very dangerous to health.
For all the good it does, fat is often blamed to cause obesity, because it contains 9 calories per gram, in contrast to carbohydrate and protein which contain only 4 calories. Yet, it's a mistake to relate dietary fat with body fat. You can get fat by eating carbs and protein, even if you eat little dietary fat.
In 1956, Hugh Sinclair, one of the world's greatest researchers in the field of nutrition, suggested that an upsurge in the so-called "diseases of civilization" e.g. coronary heart disease, strokes, type-2 diabetes, arthritis and cancer - was caused by modern diets being extremely poor in essential fatty acids (EFA) and full of processed foods rich in trans-fatty acids. Although Sinclair's opinion was not supported by his pears, and he was even criticized by some of them for his bold hypothesis; later research convincingly showed that he was, indeed, correct. In fact, he is now praised for insights that were far ahead of his time.
Fat gives us beauty, shape and protection. A thin fat layer located under the skin helps to insulate and maintain the proper body temperature. Fat is used as a source of backup energy when carbohydrates are not available. Vitamin A, D, E and K are known as fat-soluble vitamins, need fat in order to be absorbed and stored. Fats are also responsible for making sex hormones, cell membranes and prostaglandins.
आपने पोर्नोग्राफिक वेब साइट्स और सेक्स पत्रिकाओं में जी-स्पॉट के बारे में अक्सर पढ़ा होगा। जहाँ कुछ लोग इसको लेकर बहुत उत्सुक हैं और इसका आनंद भी उठा रहे हैं, वहीं कुछ नकारात्मक विचारधारा वाले लोग इसे महज़ किसी सिरफिरे व्यक्ति के दिमाग की उपज मानते हैं। वे मानते हैं कि जी-स्पॉट नाम की कोई चीज है ही नहीं। जी-स्पॉट पर इतना हल्ला होने के बाद भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। इसलिए मैं आज रहस्य के सारे परदे उठा कर सच्चाई को उजागर कर देना चाहता हूँ। तो चलिए सबसे पहले हम इतिहास के पन्नों को पलटने की कौशिश करते हैं।
1950 के दशक में विख्यात गायनेकोलोजिस्ट डॉ. अर्न्सट ग्रेफनबर्ग ने इंटरनेशनल जरनल ऑफ सेक्सोलोजी में The Role of Urethra in Female Orgasm नाम से एक प्रपत्र प्रकाशित किया था। इन्होंने स्त्रियों की यूरेथ्रा के चारो तरफ कोर्पोरा केवर्नोजा की तरह एक स्पंजी और इरेक्टाइल टिश्यू को चिन्हित किया, जिसे यूरीथ्रल स्पंज कहा जाता है। इसके बाद 1980 के दशक में सेक्स एजूकेटर और काउंसलर बेवर्ली व्हिपल और सायकोलोजिस्ट और सेक्सोलोजिस्ट जॉन पेरी ने डॉ. अर्न्सट ग्रेफनबर्ग की शोध को आगे बढ़ाया और अंततः डॉ. अर्न्सट ग्रेफनबर्ग के नाम पर इस इस रहस्यमय स्पॉट का नाम जी-स्पॉट रखा।
आज हम सभी के लिए खुशी और उल्हास का अवसर है, हमारे कुंवर निशिपाल का परिणय बंधन सौ.कां. निधि के साथ होने जा रहा है। हम सब इनके सुखी और आनंदमय वैवाहिक जीवन की कामना करते हैं। इस अवसर पर मैंने यह सत्यपाल गीता तैयार की है। अलसी के नीले फूलों से सजी यह गीता में हमारे आदरणीय पिताजी ठाकुर सत्यपाल सिंह जी के चरणों में समर्पित करता हूँ।
डाॅ. ओ.पी.वर्मा श्रीमती उषा वर्मा
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प्रोस्टेट सुदितवधर् Benign Prostatic Hyperplasia (BPH)
प्रोस्टेट सुदम अितवधर्न वयोवृद्ध लोगों का एक सामान्य, िजसमें प्रोस्टेट ग्रंिथ क� कोिशकाओं में वृिद्ध होने लगती
अंग्रेजी में िबनाइन प्रोस्टेिटक हाइपरप्लेि Benign Prostatic Hyperplasia (BPH) कहते हैं। कोिशकाओं में वृिद्ध
कारण ग्रंिथ का आकार धी-धीरे बढ़ने लगता है िजसके कारण रोगी को कई मूत्र िवसजर्न सम्बन्धी ल�ण पैदा हो जाते हैं
समय पर उपचार नहीं िकया जाये तो बढ़ी ह�ई प्रोस्टेट मूत्र के प्रवाह में आंिशक या पूणर् �कावट पैदाकर सकती है ि
मूत्रा, मूत्रपथ और वृक्क सम्बन्धी िवकार हो सकते हैं। इस रोग का उपचारजीवनशैली मे, जड़ी-बूिटयाँ, औषिधयाँ और
शल्यिक्रया ह
कारण
प्रोस्टेट अितवधर्न य.एच.पी. क� रोगजनकता में पु�ष हाम�न
Androgens (टेस्टोस्टीरोन तथा अन्य सम्बिन्धत ) एक अहम
कारक है। इसका मतलब यह ह�आ िक शरीर में ऐन्ड्रोजन उपि
होने पर ही प्रोस्टेट अितवधर्न होगा। इसका एक सा�य यह भी है
िजन लड़कों का वंध्यकर( Castration) छोटी उम्र में ही कर िद
जाता है उन्हें प्रोस्टेट अितवधर कभी नहीं होता है। दूसरी तरफ
िजनको टेस्टोस्टीरोन बाहर स(इंजेक्शन या गोिलयों के �प ) िदया
जाता है, उनमें प्रोस्टेट अितवधर्न के जोिखम पर िवशेष अन्त
आता है। डाइहाइड्रो टेस्टोस्टी (DHT), जो टेस्टोस्टीरोन क
चयापचय उत्पाद ह, प्रोस्टेट क� संवृिद्ध में िनणार्यक भूिमका
है। 5α-अल्फा�रडक्टेज टा-2 एंजाइम क� उपिस्थित में प्रोस
ग्रंिथ टेस्टोस्टीरोन के अपघटन से डाइहाइड्रो टेस्टो (DHT)
का िनमार्ण करती है। यह एंजाइम मुख्यतः स्ट्रोमा क� कोिशकाओ
व्या� रहता ह, अतः मुख्यतः ड.एच.टी. का िनमार्ण स्ट्रोमा में ही
है।
डी.एच.टी. हाम�न स्ट्रोमा में स्व( Autocrine) अथवा समीप क� इपीथीिलयल कोिशकाओं में पह�ँच कर परास्रा
(Paracrine) रीित से कायर् करता है। दोनों ही तरह क� कोिशकाओं में.एच.टी. कोिशक�य एंड्रोजन अिभग्रा( Receptors)
से बंध कर संवृिद्ध घटक य Growth Factors (िजन पर इिपथीिलयल और स्ट्रोमल कोिशकाओं क� संवृिद्ध क� िजम्मेदारी
है) को िलप्यंतरण संदे (Transcription Signal) देकर प्रोत्सािहत करता है।.एच.टी. टेस्टोस्टीरोन स10 गुना अिधक प्रब
होता है क्योंिक टेस्टोस्टीरोन क� एंड्रोजन अिभग्राहकों से बंधने क� �मता बह�त कम हो.एच.टी. के प्रभाव से प्रोस्टे
ग्रंिथल अितवधर( Nodular Hyperplasia) होता है। इसिलए जब ग्रंिथल अितवधर्न के रोगी 5 α-�रडक्टेज इिन्हबीटरजैस
िफनािस्टराइड दी जाती है तो प्रोस्टेट म.एच.टी. का स्तर िवशेष �प से कम होता है और फलस्ल�प प्रोस्टेट का आमाप
होता है और ल�णों में राहत िमलतीहै।
प्रोस्टेट अितवधर्न में इस्ट्रोजन भी एक कारक माना गया है। लेिकन प्रोस्टेट क� अिभवृिद्ध से इस्ट्रोजन का सी
बिल्क प्रोस्टेट में इस्ट्रोजन अपघिटत होकर एंड्रोजन में प�रवितर्त होकर प्रोस्टट को बढ़ाता है। पा�ात्य जीवन
2. 2 | P a g e
अितवधर्न का महत्वपूणर् कारण है। यह बात बह�त रहस्यमय बनी ह�ई है िक प्रोस्टेट सुदम अितवधर्न रोग िसफर् मनुष्य और क
होता है जबिक सभी नर स्तन धा�रयों में प्रोस्टेट ग्रंिथ ह
ल�ण और संके त
प्रोस्टेट अितवधर्न में ल�-िवसजर्न या �कावट और मूत्राशय में मूत्र के भराव या Stretching or Irritation (मूत्राश
क� िनिष्क्र) के कारण होते हैं। मू-िवसजर्न सम्बन्धी ल�ण अिधक सामान्, लेिकन भराव सम्बन्धी ल�ण रोगी को ज्या
तकलीफ देते हैं। इस रोग के ल�ण उम्र के साथ बढ़ते हैं40 वषर् या अिधक उम्र 25 % पु�षों में प्रायः प्रोस्टेट अितव
ल�ण उपिस्थत होते हैं। मूत्रपथ में यांित्रक �कावट प्रोस्टेट ग्रंिथ के अितवधर्न के, लेिकन प्रोस्, मूत्र िनस्सा
नली और मूत्राशय ग्रीवा क� िस्नग्ध पेशी के आकुंचन से भी गत( Dynamic) �कावट होती है। यह गत्यात्मक �काव
िसम्पेथेिटक स्नायु तंत्रα-1 एड्रीनो�रसेप्टर के प्रोत्स ाहन के कारण होता है। भंडारण सम्बन्धी ल�ण मूत्र में �कावट
मूत्राशय क� डेट्र�जर पेशी में आई अिस्थरता के कारण होते हैं। मूत्राशय क� िभि�यों (Hypertrophy) और कोलेजन
एकित्रत होना प्रमुख भंडारण सम्बन्धी ल�ण हैं। इ α-1 एड्रीनो�रसेप्टसर् पर शोध चल रही α-1 एड्रीनो�रसेप्टसर् को
उपजाितयों क्रमα 1A और α1D में वग�कृत िकया गया है। α 1A मुख्यतः प्रोस्टेट म α1D मुख्यतः मूत्राशय में स्थ
रहते हैं। इस तरह मूत्र क� �कावट में राहत देने के α 1A को और भंडारण सम्बन्धी ल�ण को ठीक करने के िल α1D
अव�द्ध करना ज�रीहै
िनम्न मूत्रपथ सम्बन्धी ल�ण और लैंिगक िवकारों के आपसी सम्बन्ध को भी समझना ज�री है। क्योंिक इन रोिगय
िवकार होना अित सामान्य है। कामेच्छा में (Poor Libido), स्तंभन दो (Irrectile Dysfunction), स्खलन में कमी या अन
स्खलन दोष प्रमुख लैंिगक िवकार
मूत-िवसजर्न या �कावट सम्बन्धी ल मूत्र के भराव या तनाव सम्बन्धी
• मूत्र क� धार िनकलने में देर ल
• मूत्र क� धार पतली हो
• �क �क कर मूत्र िवसजर्न का हो
• मूत्र िवसजर्न के िलए जोर लगाना प
• मूत्र िवसजर्न अिधक समय लगना
• ऐसा लगे जैसे मूत्राशय पूरी तरह खाली नहीं हो पाया
• मूत्र िवसजर्न के बाद भी मूत्र बूँद बूँद करके टपकता
• बार बार मूत्र िवसजर्न होन
• अचानक मूत्र क� तलब लगन
• मूत्र िवसजर्न पर िनयंत्रण न रख
• रात में मूत्र िवसजर्न के िलए बार
उठना पड़े
जिटलताएँ
मूत्रमें �का
जैसे जैसे प्रोस्टेट बढ़ती है रोगी के ल�णों क� तीवृता और मूत्र में �कावट क� संभावना भी बढ़नेलगती है। मूत्र में
क�दायक िवकार है और िजसके उपचार हेतु मूत्र िनस्सारण न (Urethera) द्वारा या जंघा (Symphysis Pubis) के ऊपर
से मूत्राशय में केथेटर डाल कर छोड़ना पड़ता है। यिद मूत्र �कावट का समय पर उपचार नहीं िकया जाये तो डेट्र�जर पेशी म
और �ित होने लगती है, िजससे उसमें िनिष्क्रयता आ जाती है और मूत्राशय क� मूत्र िवसज(अथार्त मूत्राशय ) कम होने
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लगती है। कालान्तर में मूत्र �कावट ददर् रिहत हो जाता है और �कावट के कारण अन्य िवकार जै-बार मूत्रपथ संक, पथरी
अथवा गुद� का �ितग्रस्त होना स्वाभािवक
इनके अलावा मूत्र असंयमता य Incontinence of Urine (अथार्त मूत्राशय में मूत्र क� मात्रा अपनी नई और बढ़ी ह�ई
अिधक होते ही मूत्र िनकल जा) उत्पन्न हो जातीहै। इस तरह मूत्र अनायास ही िनकल जाता है क्योंिक मूत्र िवसजर्न पर
िनयंत्रण नहीं रहता है। अंितम अवस्था में प्रोस्टेट अितवधर्न के रोगी में कई बार यह पहला ल�ण होता है। इसके अलावा
जाने पर भी मूत्राशय में आंिशक भराव बना रहता है। इसे अवशेष म(Residual Urine) कहते हैं।
िचरकारी मूत्र �काव(Chronic Urinary Retention) में मूत्रपथ में आई �कावट दूर करने के बाद भी ज�री नहीं है िक डे
पेशी पुनः ठीक से कायर् करने लगे। प्रोस्टेट अितवधर्न के समुिचत उपचार के बाद भी इन रोिगयों -बार केथेटर डालने अथवा
मूत्र िनकास क� स्थाई व्यवस्था करने क� आवश्यकता ह, तािक मूत्राशय िनयिमत खाली होता रहे और उच्च मूत(गुद�) को
�ित नहीं पह�ँचे।
बार-बार िनम्न मूत्रपथ संक
िनम्न मूत्रपथ को संक्रमण से बचाने के िलए सबसे आवश्यकयही है िक मूत्र ठीक से िवसिजर्त होता रहे और मूत्र
खाली होता रहे। प्रोस्टेट अितवधर्न में यह व्यवस्था बािधत होजाती है और फलस्व�प मूत्र में �कावट तथा मूत्राशय मे
तथा ठहराव के कारण मूत्राशय में रोगाणुओं को पनपने तथा घरौधे बनाने का अवसर िमल जाता (जो सामान्य अवस्था में मूत्
में ठहर ही नहीं पाते )। इस कारण बार-बार संक्रमण होना सामान्य घटनाक्रम बन जात
मूत्राशय पथर
िवकिसत देशों में मूत्राशय पथरी का सबसे बड़ा कारण प्रोस्टेट अितवधर्न क� वजह से मूत्रपथ में आई �कावट माना जाता
अितवधर्न क� शल्यिक्रया के िलए आये रोिगयों में2 % को मूत्राशय क� पथरी होना सामान्य बात है। पथरी बनने का का
मूत्राशय में मूत्र का भराव तथा ठहराव और मूत्र में( Concentration) के स्तर का बढ़ना है। इससे िवलेय यौिगकों क
अव�ेपण (Crystal Precipitation) हो जाता है । यू�रऐज बनाने वाले रोगाणुओं का िचरकारी संक्रमण भी पथरी का जोिखम बढ़ात
है। कभी-कभी गुद� से आई छोटी पथ�रयां भी मूत्राशय में बसेरा बना लेती हैं और बढ़ने लगती हैं। प्रोस्टेट के रोगी में मूत
होना मूत्रमागर् द्वारा प्रोस्टेट उच्छेदन का स्प, क्योंिक ब-बार पथरी होने का जोिखम बना रहता है।
र�मेह (Hematuria)
प्रोस्टेट अितवधर्न में एि (Acinar) और स्ट्रोमा क� कोिशकाएं बढ़ती है और नई-वािहकाएं भी बनती हैं। ये नई कोमल
वािहकाएं सहज ही टूट-फू ट जाती हैं और र�स्राव का कारण बनती हैं। ऐसा माना जाता है 5-α �रडक्टेज इिन्हबीटर प्रजाित
दवाएं (जैसे Finasteride) नई र�-वािहकाओं के िनमार्ण को बािधत करती ह, इसिलए ये प्रोस्टेट अितवधर्न के कारण ह�ए र�
को रोकने में भी सहायक िसद्ध ह�ई है
मूत्राश(डेट्र�) अिस्थरता (Detrusor Instability)
डेट्र�जर पेशी क15 सैंमी पानी से अिधक संकुचन(यिद मूत्राशय क� अिधकतम भराव �मत300 एमएल होती है ) को मूत्राश
अिस्थरता(Detrusor Instability) कहते हैं। प्रोस्टेट अितवधर्न के संदभर् में मूत्राशय या डेट्र�जर अिस्थरता िवशेष मह
है। लेिकन डेट्र�जर अिस्थरता से कुछ िनम्न मूत्रपथ सम्बन्धी ल�ण पैदा होते हैं।ये ल�ण जैसे अचानक मूत्र , बार
बार मूत्र आ, मूत्र िवसजर्न पर िनयंत्रण न रख, रात में मूत्र िवसजर्न के िलए बार बार उठना पड़े आिद सामान्यतः मूत्र
भराव से सम्बिन्धत होते हैं। प्रोस्टेट अितवधर्न में मूत्रपथ में �कावट और मूत्राशय के संकुचन से डेट्र�जरपेशी में तन
मूत्राशय का गित िव�ान िबगड़ जाताहै। मूत्राशय अिस्थरता के कुछ ल�ण ऐिड्रनो�रसेप्टर में आये बदलाव के कारण भी β-
ऐिड्रनो�रसेप्टर मूत्राशय में मूत्र भरते समय मूत्राशय क� पेिशयों को ढ़ीला करने में मदद करते हैं। कुछ रोिगयों को नोरआ
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डेट्र�जर पेशी का संकुचन होताहै। इस प्रभाव α-1 ऐड्रीनो�रसेप्टर एंटागोिन( α-1 ऐड्रीनो�रसेप्टर िवर) दवा से बािधत
िकया जा सकता है, क्योंिक डेट्र�जर पेशी में α ऐड्रीनो�रसेप्टर होते हैं। इस देखा गया है िक α-ऐड्रीनो�रसेप्टर एंटागोिन
पु�षों में मूत्र के भराव और िवसजर्न सम्बन्धी ल(भले मूत्र �कावट नहीं होती) और ि�यों में मूत्र के भराव सम्
ल�णों में राहत देते हैं। मूत्रा α-ऐड्रीनो�रसेप्टसर् क� दो उपजाितयां कα 1D और α 1A पाई जाती हैं।
गुद� का कमजोर होना
प्रोस्टेट अितवधर्न में मूत्रपथ में आई �कावट के कारण गुद� कमजोर होते हैं। प्रोस्टेट अितवधर्न का 13.6% रोिगयों मे
वृक्कवात के ल�ण देखने को िमलते हैं। यिद िक्रयेिटनीन का स्तर बढ़ा ह�आ हो तो वृक्कवात के िनदान हेतु छायांकन जां
जाती हैं। वृक्कवात के अन्य कारणों को ध्यान में रखना भी ज�री है। यिद ऐसे रोिगयों क� शल्यिक्रया करनी है तो
अिधक रहता है।
परी�ण और िनदान
पूछताछ
िचिकत्सक रोगी से प्रोस्टेट के ल�ण और उसके प�रवार में प्रोस्टेट रोग क� जानकारी लेने के उद्देष्य से िवस्तार में
है। उसके पास प्रोस्टेट अितवधर्न के िनदान हेतु िलए अमे�रकन यूरोलोिजकल एसोिसयेशन द्वारा बनाई गई प्र�ों क� पूरी ि
है।
अन्तरमलाशय अंगुली प�रस्पशर(Digital Rectal Examination)
अन्तरमलाशय अंगुली प�रस्पशर्न में िचिकत्सक रबर के दस्तानें पहन कर अंगुली को मलद्वार में घुसा कर प्रोस्टेट क
इससे वह प्रोस्टेट क� अिभवृिद्ध और कैंसर क� उपिस्थित को महसूस करले
नाड़ी तंत्र परी
नाड़ी तंत्र क� सरसरी जांच से वह िनम्न मूत्रपथ ल�णों क-जिनत कारणों का पता कर लेता है।
मूत्र परी�
यह मूत्र क� सरल जांचहै िजससे मूत्रपथ में संक्रमण और अन्य िवकारों क� जानकारी िमल
प्रोस्टेट स्पेिसिफक एंट(PSA)
प्रोस्टेट अितवधर्न के िनदान हेतु यह जाच प्रायः नहीं क�जाती है। हां प्रोस्टेट स्पेिसिफक एंटीजन का प्रमुख उपयोग
का पता लगाने, श्रेणी िनधार्रण करने और कैंसर रोगी क� मोनीट�रंग करने के िलए िकया जाता है। यह भी सत्य है .एस.ए. का
स्तर सुदम प्रोस्टेट अित, संक्रमण और अन्य िवकारों में भी बढ़ता है। कुछ वै�ािनक िवकासशील प्रोस्टेट अित
पी.एस.ए. को रोग क� तीवृता का बॉयो माकर्र मानते हैं और उपचार सम्बन्धी कई िनणर्य करने में भी मददगार बतातेहैं। जै
पी.एस.ए. 1.5ng/m या अिधक हो तथा प्रोस्टेट भी बह�त बड़ी हो तो रोगी 5 α-�रडक्टेज इिन्हबीटर उपचार से अिधक ला
होगा।
इस जांच का एक नया स्व�प प.एस.ए. अनुपात PSA ratio है। पी.एस.ए. अनुपात क� गणना र� में प्रवािहत हो रहे मु�.एस.ए.
क� मात्रा में प्रोटीन से बं.एस.ए. क� मात्रा का भाग देकर क� जातीहै। शोधकतार् मानते हैं िक र� में मु� �प से प्
पी.एस.ए. का सुदम प्रोस्टेट िववधर्न से सीधा सम्बन्ध ह, जबिक प्रोटीन से जुड़ा .एस.ए. कै ंसर से सम्बिन्धत होता है।
तरह पी.एस.ए. अनुपात बढ़ा ह�आ हो तो कै ंसर क� संभावना कम रहती है जबिक इस अनुपात का कम होना कैंसर क� उपिस्थित
प्रबल बनाताहै
5. 5 | P a g e
मूत्र प्रवाह ज(Urinary Flow Rate)
इस जांच से मूत्र के प्रवाह क� मात्रा और गित को देखा जाता है। यह सरल जांच है और अस्पताल के बा� रोगी िवभाग मे
सकती है। रोगी को मशीन से लगे पात्र में एक या अिधक बार मूत्र िवसजर्न करवाया जाता है। इससे मूत्र �कावट का आ
जाता है और पता चल जाता है िक रोगी में मूत्र क� �कावट बढ़ रही है या सुधर रही है।
मूत्र िवसजर्न प�ात मूत्राशय में अवशेष मूत्र (Post-void Residual Urine Volume)
मूत्र िवसजर्न प�ात मूत्राशय में अवशेष मूत्र क� मात्रा से मूत्राशय के खाली होने क� �मता का मोटे तौर पर आंकलन
लेिकन इससे मूत्र �कावट या डेट्र�जन पेशी क� िनिष्क्रयता में भेद करना मुिश्कल होता है। यिद अ300 एमएल से अिधक
हो तो उच्च मूत्रपथ और वृक्क िवकार का जोिखम रहता है। अवशेष मूत्र क� गणना सोनोग्राफ� द्वारा आसानी से करली
र� में िक्रयेिटन
िक्रयेिटनीन का बढ़ना उच्च मूत्रपथ और वृक्क िवकार क� उपिस्थित को इंिगतकर
उच्च मूत्रपथ छायांकन जा
इस हेतु सोनोग्राफ� और .टी.स्केन अच्छी जांच िवधाएं हैं। यिद मूत्रम, संक्रमण के संकेत िमले , वृक्क िवकार हो या रोगी
को पहले कभी पथरी क� िशकायत रही हो तो उच्च मूत्रपथ क� छायांकन जांच बह�त ज�री हो जाती है। आवश्यकतानु
अंतःिशरा वृक्क िचत्( Intra Venous Pyelography) क� जाती है िजससे वृक्क और मूत्रपथ क� संपूणर् सं त्म और
िक्रयात् जानकारी िमल जाती है।
अन्तरमलाशय सोनोग्राTransrectal Ultrasound Scanning (TRUS)
प्रोस्टेट के आ, आमाप, वृिद्ध या अबुर्द क� उपिस्
हेतु यह जांच बह�त िव�सनीय है। यिद कै ंसर क�
संभावना हो तो इसके साथ ही जीवोित जांच हेतु प्रोस्ट
के नमूने भी ले िलए जाते हैं। बढ़ी ह�ई प्रोस्टेट
आंकलन तथा उपचार सम्बन्धी महत्वपूणर् िनणर्य
हेतु हेतु यह बह�त ज�री जांच है।
यूरोडायनेिमक्स(Urodynamics)
यूरोडायनेिमक्स के अंतगर्त मूत्र िवसजर्न के समय
मूत्रपथ क� सिक्रयता के आंकलन हेतु कई जांचे
जाती हैं। यह जिटल जांचें है िजसमें फ्लोरोस,
वीिडयो �रकोिड�ग, मूत्राशय तथा मलाशय में दबाव
गणना, और मूत्र प्रवाह का आंकलन िकया जाता
िनम्न मूत्रपथ ल�ण के प्रारंिभक िनदान
यूरोडायनेिमक्स जांच क� अवहेलना क� जा सकती ह, िवशेष तौर पर जहां हम उपचार के सस्त, प�रवतर्नीय और सुरि�त िवकल्प
का चयन करते हैं। लेिकन जब हम मंहग, अप�रवतर्नीय और आक्रामक उपचार देने पर िवचार करते हैं तो यह जांच आवश्य
जाती है।
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मूत्रमागर् द्वारा मूत्राश(Cystoscopy also called Urethrocystoscopy)
इस जांच का िनणर्य रोगी के िचिकत्क�य इितहास और संभािवत शल्य उपचार के आधार पर िकया जाता है। यिद रोगी को र�म
क� िशकायत हो तो मूत्राशय के अबुर्द और पथरी के आंकलन हेतु यह जांच करना ज�री हो जाता है। यिद रोगी को भूतकाल में-
िनससारण नली का िसकुड़न या िस्ट्र , मूत्राशय अबुर्द या पूवर् में िनम्न मूत्रपथ शल्य ह�आ हो तो भी यह जांच क�
अन्तरात्मक िनदाDifferential Diagnosis
प्रोस्टेट अितवधर्न का िनदान प्रायः प (Symptom scores), मूत्र प्र (Uroflowmetry), अन्तरमलाशय अंगुली
प�रस्पशर (Prostatic Volume on DRE or TRUS) और पी.एसए. (Biochemical) जांचों के आधार पर िकया जाता है।
लेिकन अंितम िनदान तो जीवोित जांच के आधार पर ही होता है। प्रोस्टेट अितवधर्न के अलावा कई अन्य िवकारों में भी
जुलते िनम्न मूत्रपथ ल�ण होते, िजन्हें परखना और पृथक करना ज�री होताहै। अन्तरात्मक िनदान नीचे सारणी में िदये गये
संक्रमण र कै ंस नाड़ी रोग मूत्रपथ �कावट के अन्य िव
मूत्रपथ संक
प्रोस्टेट सं
मूत्राशय पथ
इंटरस्टीिशयल संक्रमण मूत
मूत्राशय में �य र
प्रोस्टेट क
ट्रोंजीशन सेल कैंसर मू
मूत्र िनस्सारण मली कै
पािक� सन रोग
स्ट्
मल्टीपल िस्क्लरो
सेरीब्रल ऐट्
शाई ड्रेगर िसंड
यूरीथ्रल िस्ट
तीवृ फाईमोिसस
मूत्राशय ग्रीवा िडिस्सन
बा� संकोिचनी िडिस्सनिजर्
उपचार
प्रोस्टेट अितवधर्न के िलए कई तरह के उपचार उपलब्ध हैं। इनमें , जड़ी-बूिटयाँ, शल्-िक्र, न्यूनतम आक्रामक श
उपचार आिद प्रमुख हैं। रोगी के िलए सव��म उपचार का चयन कई पहलुओं जैसे ल�णों क� ती, प्रोस्टेट का आ, रोगी क�
उम, रोगी का स्वास्थ्य आिद के आधार पर -समझ कर िकया जाता है। यिद रोगी को ल�ण बह�त मामूली से हों तो कई बार
सतकर्ता और प्रती�ा क� नीित ही उिचत रहती ह
औषिधयाँ
प्रारंिभक अवस्था में प्रोस्टेट अितवधर्न के उपचार हेतु प्रायः औषिधयों का प्रयोग िकया जाता है। औषधीय उपचार को
में बांटा गया है।
अल्फा ब्लॉक– इस श्रेणी क� औषिधयाँ मूत्राशय ग्रीवा और प्रोस्टेट क� पेिशयों( relax) करती है, िजसके कारण
मूत्र िवसजर्न आसानी से हो जाता है। टेराजो, डोक्साजोिस, टेमसुलािसन, ऐल्फुजोिसन और िसलोडोिसन इस श्रेणी में
हैं। अल्फा ब्लॉकर जल्दी से असर करती हैं। एक या दो िदन में ही मूत्र क� धारा तेज हो जाती ह-बार मूत्र जाने क� ज�र
नहीं पड़ती है। अल्फा ब्लॉकर का एक हािन रिहत पाष्वर् प्रभाव प�गाम( Retrograde Ejaculation) है, िजसमें वीयर
स्खलन िश� मागर् से बाहर न होकर उलटा मूत्राशय में हो जाता
5 अल्फा �रडक्टेज इिन्हबीट– ये दवाएं प्रोस्टेट मे.एच.टी. हाम�न के िनमार्ण को बािधत कर बढ़ी ह�ई प्रोस्टेट के आ
को छोटा करती हैं। फाइनास्ट्राइड और ड्युटास्ट्राइड इस श्रेणी में आती हैं। बह�त बड़ी प्रोस्टेट में इनका प्रयोग
है। ये बह�त धीरे (कई हफ्तों या महीनों ) असर करती हैं। नपुंसकता(स्तंभन दो), संभोग क� इच्छा कम होना और प�गामी
स्खलन(Retrograde Ejaculation) इनके प्रमुख पाष्वर् प्रभा
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संयु� औषधीय उपचार– कई बार उपरा� दोनों श्रेणी क� औषिधयाँ साथ देने से अच्छे प�रणाम िमलते
टाडालािफल – जो फोस्फोडाईस्टीरेज इिन्हबीटसर् श्रेणी में, का प्रयोग नपुंसकत(स्तंभन दो) के उपचार में िकया
जाता है। कुछ िचिकत्सक प्रोस्टेट अितवधर्न के उपचार में भी इसका प्रयोग करते हैं। इसको अल्फा ब्लॉकर औरनाइ
नाइट्रोग्लीसरीन के साथ नहीं िकया जाता ह
Medical Treatment of BHP
Finasteride 5 mg HS Dutasteride 0.5 HS
Tab FINAST
Tab FINCAR
Tab CONTIFLO
Cap DURIZE
Tab VELTRIDE
Terazosin start with 1
mh HS increase up to 10
mg
Tab TERAPRESS
Tab HYTRIN
Tamsulosin 0.4 to 0.8 mg
HS
Tab URIMAX
Cap DYNAPRES
Tab VELTAM
Tab ODCONTIFLO OD F
Cap URIMAX F
Tab VELTAM F
Cap FINAST T
Cap URIMAX F
Tab VELTAM PLUS
Cap DUTAS-T
Alfuzosin 10 mg HS Tab FLOTRAL Tab ALFUSIN D
Doxazosin 1, 2 & 4 mg
Dose 1to 8 mg HS
Tab DOXACARD
Tab DURACARD
Herbal Cap Prostanorm HS = at bed time
शल्य िक्र
यिद औषिधयां काम नहीं करे या रोग के ल�ण गंभीर और क�दायक होने लगे तो कई तरह क� शल-िक्रयाएं क� जाती हैं। स
शल्-िक्रयाओं में मूत्र के प्रवाह में �कावट बन रहे प्रोस्टेट के ऊतकों को िनकाल कर प्रोस्टेट को छोटा िकया
िनस्सारण नली को खोल िदया जाता है। उिचत शल-िक्रया का चुनाव कई पहलुओंजैसे ल�णों क� तीव, प्रोस्टेट का आ,
रोगी क� उम, रोगी का स्वास्थ्य और अन्य उपचार क� उपलब्धता के आधार प-समझ कर िकया जाता है।
सभी शल्-िक्रयाओं के कुछ कुप्रभाव जैसे संभोग के बाद प�गामी स्खल Retrograde Ejaculation (िजसमें वीयर् स्ख
िश� मागर् से बाहर न होकर उलटा मूत्राशय में हो जात), मूत्राशय पर िनयंत्रण न या Incontinence (मूत्र असंयत) और
नपुंसकता (स्तंभन दो) होते हैं।
सामान्य शल-िक्रय
मूत्रमागर् से प्रोस्टेट उच्छेदन टी(TURP)
यह प्रोस्टेट अितवधर्न क� सबसे प्रचिलत और प्रम-िक्रयाहै। इसमें शल्यकम� प्रकाश स्रोत लगे दूरबीन को मूत्
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नली में प्रोस्टेट तक घुसाता है और काटने
िविश� औजार से प्रोस्टेट के ऊतकों
छील कर िनकाल लेता है और उसके बाहरी
खोल को छोड़ देता है। टीयूआरपी के बाद
रोगी को क�दायक ल�णों में बह�त राह
िमलती है और खुल कर मूत्र आना शु� ह
जाता है। लेिकन र� स्राव और संक्
इसके प्रमुख कुप्रभाव हैं। कुछ िदनों क
मूत्र िनस्सारण नली में रबर क� नली ड
जाती है, तािक आराम से मूत्र आता रहे
शल्य के बाद कुछ िदनों तक रोगी को आरा
करने क� सलाह दी जाती है।
मूत्रमागर् से प्रोस्टेट िवच्छ
टीयूआइपी (TUIP or TIP)
यह शल्-िक्रया उन रोिगयों में क� जाती
िजनक� प्रोस्टेट छोटी या मामूली बढ़ी ह�ई होती है और रोगी को कुछ शारी�रक िवकारों के कारण अन्-िक्रया करने में क
खतरा भी होता है। इसमें टीयूआरपी क� तरह ही दूरबीन को मूत्र िनस्सारण नली में प्रोस्टेट तक घुसा कर काटने के िवि
से प्रोस्टेट में एक या दो छोटे चीरे भर लगाये जाते हैं तािक मूत्र मागर् खुल जाये और आसानी से मूत्र आ
खुली प्रोस्टेट उच्छ(Open prostatectomy)
यिद प्रोस्टेट बह�त बढ़ी ह�ई, मूत्राशय भी �ितग्रस्त हो या अन्य िवकार जैसे मूत्राशय में पथरी हो तो-िक्रया करन
उिचत रहता है। इसे खुली शल्-िक्रया इसिलए कहते हैं क्योंिक प्रोस्टेट तक पह�ँचने के िलए उदर के िनचले िहस्से में
लगाया जाता है। बह�त बड़ी प्रोस्टेट के िलए यह सबसे प्रभावी उपचार है लेिकन इसके कई कुप्रभाव और जिटलताएँ भी हैं।
िक्रया के िलए रोगी को कई िदनों तक अस्पताल में भरती रहना पड़ता है और खून चढ़ाने क� भी ज�रत पड़ सकती
न्यूनतम आक्रामक उपच(Minimally invasive treatments)
न्यूनतम आक्रामक उपचार में र� क� हािन बह�त कम होत, और आवश्यता पड़ने पर ही रोगी को भरती करने क� ज�रत होती
है। ददर् िनवारक दवाओं क� भी बह�त कम ज�रत होती है। प्रोस्टेट अितवधर्न के िलए िनम्न न्यूनतम आक्रामक उपचार िदये जा
लेज़र शल्-िचिकत्सा(Laser Surgery)
लेज़र शल्य िचिकत्सा में बढ़ी ह�ई प्रोस्टेट को िनकालने या न� करने के िलए शि�शाली लेज़र िकरणों का प्रयोग िकया ज
लेज़र शल्य िचिकत्सा में रोगी को तुरन्त राहत िमलती है और टीयूआरपी क� तुलना में कुप्रभाव भी बह�त कम होते हैं।
पतला करने क� दवाएं ले रहे रोिगयों मे(जहां अन्य शल-उपचार करना संभव नहीं होता ह) भी लेज़र शल्य िचिकत्सा क� ज
सकती है।
लेज़र शल्य में िविभन्न प्रकार के लेज़र कई तरीकों से प्रयोग िकये ज
अप�रण उपचार (Ablative Procedures) – में मूत्र िनस्सारण नली पर दबाव डाल रहे प्रोस ्टेट के ऊतकों
कर (या वाष्पीकरण द्व) न� कर िदया जाता है और आराम से मूत्र आना शु� हो जाताहै
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समूलोच्छेदन उपचार(Enucleative Procedures) -
यह उपचार खुली प्रोस्टेट उच्छेदन क� तरह
है लेिकन इसमें कुप्रभाव बह�त कम होते है
इस शल्-िक्रया में मूत्र प्रवाह में�का
कर रहे प्रोस्टेट के सारे ऊतकों को िन
िदया जाता है और प्रोस्टेट क� पुनवृर्िद
रोक लगा दी जाती है। इस उपचार का एक
फायदा यह भी है िक िनकाले ह�ए ऊतकों क�
कै ंसर या अन्य रोग सम्बन्धी जांच क�
सकती है।
प्रोस्टेट अितवधर्न हेतु िनम्न लेज़र शल्य
जाते हैं।
• होिल्मयम लेज़र ऐब्लेशन ऑफ द प्रोसHolmium laser ablation of the prostate (HoLAP)
• िवज्वल ऐब्लेशन ऑफ द प्रोसVisual laser ablation of the prostate (VLAP)
• होिल्मयम लेज़र इन्यूिक्लयेशन ऑफ द प्रोHolmium laser enucleation of the prostate (HoLEP)
• फोटोसेलेिक्टव वेपोराइजेशन ऑफ द प्रोस्Photoselective vaporization of the prostate (PVP)
लेज़र उपचार का चयन प्रोस्टेट के आ, संवृिद्ध के स्, उपचार क� उपलब्धत, िचिकत्सक क� अनुशंस और रोगी क�
वरीयता के आधार पर िकया जाता है।
ट्रांसयूरेथ्रल माइक्रोवेव थम�थTransurethral microwave thermotherapy (TUMT)
इसमें िचिकत्सक मूत्रमागर् द्वारा एक िविश� इलेक्ट्रोड प्रोस्टेट तक घुसाता है। इलेक्ट्रोड को माइक्रोवेव तरंगो से
इस ऊष्मा से प्रोस्टेट का अंद�नी िहस्सा जल कर िसकुड़ जाता है और मूत्र प्रवाह क� �कावट दूर कर देता है। इस
कुप्रभाव बह�त कम हैं। लेिकन यह उपचार छोटी प्रोस्टेट के िलए प्रयोग िकया, तािक ज�रत पड़ने पर दोबारा भी उपचार
िकया जा सके।
ट्रांसयूरेथ्रल नीडल ऐब्Transurethral needle ablation (TUNA)
यह शल्य प्रायः बा�रोगी िवभाग में िकया जाता है। इसमें प्रकाश स्रोत लगे दूरबीन को मूत्र िनस्सारण नली में प्रोस्ट
और दूरबीन से देखते ह�ए कुछ सुइयां प्रोस्टेट में स्थािपत कर देता है। िफर इन सुइयों में रेिडयो तरंगें प्रवािहत , िजससे
प्रोस्टेट के ऊतक जल कर न� हो जाते हैं और मूत्र प्रवाह क� �कावट दूर हो जाती है। यह उपचार उन रोिगयों में ठी
िजन्हें -स्राव का जोिखम रहता हो या अन्य गंभीर रोग हो। ट्रांसयूरेथ्रल माइक्रोवेव (TUMT) क� भांित इस उपचार में
भी रोगी को आंिशक लाभ ही िमलता है और राहत िमलने में समय भी लगता है। इस उपचार में नपुंसकत(स्तंभन दो) का
जोिखम बह�त कम होता है।
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प्रोस्टेिटकस्Prostatic stents
प्रोस्टेिटक स्टेंट एक छोटी सी प्लािस्टक या धातु क� नली के समान संरचना, िजसे मूत्र िनस्सारण नली में स्थािप
िदया जाता है, तािक मूत्रमागर् खुला रहे। इसे 4-6 स�ाह में बदलना पड़ता है। इसको स्थािपत करने के बाद शल्य क� ज�रत न
पड़ती है। लेिकन िचिकत्सक इसे लम्बे समय के िलए प्रयोग नहीं करते हैं क्योंिक संक्रमण और मूत्र िवसजर्न के समय
खतरा रहता है। कई बार धातु के स्टेंट को िनकालना मुिश्कल होता है इसिलए इसे िवशेष प�रिस्थितयों में ही डाला जात
प्लािस्टक के स्टेंट को कभी कभी शल्य से पहले डाला जाता है ताि-िक्रया होने तक आराम से मूत्र आता रह
जीवनशैली में सुधार
जीवनशैली में सुधार लाकर भी रोगी अपनी परेशािनयों को कम कर सकताहै
• शाम को पेय पदाथ� का सेवन कम करें। सोने के एक या दो घंटे पहले कोई पेय पदाथर् नहीं पीयें। तािक राित्र में मूत्
के िलए उठना नहीं पड़े।
• कॉफ� या मिदरापान कम करें। क्योंिक इनको पीने से अिधक मूत्र बनता है जो मूत्राशय को (Irritate) करता है
और तकलीफ बढ़ाता है।
• यिद आप डाइयूरेिटक्स ले रहे हैं तो िचिकत्सक से सलाह लेकर इनक� मात्रा कम करें या इन्हें सुबह के समय ले
इन्हें िचिकत्सक से पूछे िबना कभी बंद नहीं कर
• अनावश्यक जुकाम क� दवा(Decongestants or Antihistamines) नहीं लें। ये प्रोस्टेट क� पेिशयों का संकुचन
हैं िजससे मूत्र करने में िदक्कत बढ़ती
• तलब लगते ही मूत्र करने चले जायें। मूत्र को अिधक देर तक रोकने से मूत्राशय का िखंचावबढ़ता है और उसक� प
कमजोर होती है।
• िनयिमत अंतराल पर मूत्र िवसजर्न करते रहें।4-6 घंटें में मूत्र करना उिचत रहता
• स्वयं को सिक्रय , थोड़ा व्याया, योग और भ्रमण करे
• मूत्र िवसजर्न के बाद कुछ �णों बाद पुनः मूत्र
• अिधक ठंड से बचें और शरीर को गमर् रख
• अि�नी मुद्रा में एक योग व्यायाम बढ़ी ह�ई प्रॉस्टेटग्रंिथ के ल�णों के िलएफायदेमं
• इस रोग में कद्दू के (िजंक), पपीता, बी पोलन, हरी चाय, ब्रोकोली आिद बह�त ही लाभदायक ह
वैकिल्पक िचिकत्स
प्रोस्टेट अितवधर्न के उपचार में क-बूिटयां बह�त प्रभावशाली सािबत ह�ई हैं। िनम्न-बूिटयां काफ� महत्वपूणर् मानी गई है
• सा पामेटो (Saw Palmetto) - सबसे प्रमुख सा पामेटोहै जो चीन म
पैदा होने वाले पौधे सेरेनोवा रेपेन्स के फल से तैयार िकया जाता है।
• पाइिजयम – यह एक तेल है जो अफ्रन प्रून के पेड़ के िछलके स
िनकाला जाता है।
• बीटा-साइटोस्टीरोल ऐक्सट्र– यह कई तरह क� घास और पेड़ों से
तैयार िकया जाता है।
• राईग्रास ऐक्सट्(Ryegrass Extract) – यह राईग्रास के पराग स
तैयार होता है।
• िस्टंिगंग नेटल ऐक्सट्र(Stinging Nettle Extract) – यह इस पौधे क� जड़ से तैयार िकया जाता है।
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• बढ़ी ह�ई प्रॉस्टेट ग्रंिथके िलए कुछ उपयोगी आयुव�िदक पूरक गोकशुरादी गु , चन्द्रप्रभ, िशलािजत वटी, गोरखमुंडी
घाना, पुनरनावा घाना, लताकरंज घाना है।
प्रोस्टेट अितवधर्न के उपचार हेतु उपरो�-बूिटयों से बना केप्स्यूल प्रोस्टानोमर् एक उत्कृ�उत्पाद है। सा पामेटो इ
ल�ण और तकलीफों में बह�त राहत देताहै। पाइिजयम में वसा में घुलनशील स्टीरोलऔर फैटी ऐिसड जो प्रदाहरोधी है
के प्रवाह को बढ़ाते , अवशेष मूत्र क� मात्रा को घटाते हैं और राित्र में मूत्र िवसजर्न के आघटन को क
िस्टंिगंग नेटल ऐक्सट्रेक्ट में िलगनेन होता है जो लैंिगक हाम�न्स क� एंड्रोजन अिभग्राहकों से िचपकने क� �म,
िजससे प्रोस्टेट क� कोिशकाओं क� संवृिद्ध बािधत होती है। िजंक प्रोस्टेट के आमाप कोघटाता है। सबके िमले जुले
डाइहाइड्-टेस्टोस्टीरोन क� एंड्रोजन अिभग्राहकों से अनुराग और िचपकने क� �मता कमहोती5-अल्फा �रडक्टेज एंजाइ
क� सिक्रयता बािधत होतीहै। प्रोस्टानोमर् बह�त असरदायक है लेिकन पाष्वर् प्रभाव न