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अनुस्वार और
अनुनाजसक
अंक
अंश
संसार
पतंग
शंख
ससंह
यहााँ
कााँच
हाँसना
आाँख
मााँ
सााँप
अनुस्वार
👉 अनुस्वार का अर्थ होता है, स्वर क
े बाद आने वाला ।
👉अनुस्वार की ध्वसन नाक से सनकलती है ।
👉अनुस्वार का प्रयोग सबंदु (.)क
े रूप में सकया जाता है ।
👉 इसका उच्चारण स्वर क
े बाद ही होता है ;
जैसे – अंगूर, अंगद, क
ं कण आसद ।
👉 सहन्दी में सलखते समय इसका प्रयोग सशरोरेखा (-) क
े ऊपर सबंदु
लगाकर सकया जाता है ।
उदहारण – पतंग,अंगूर ,सतरंगा,पंख,नारंगी
.
अनुस्वार का प्रयोग
अनुस्वार (-) का प्रयोग पंचम वणों (ङ,
ञ, ण, न, म ये पंचमाक्षर कहलाए जाते
हैं) क
े स्र्ान पर सकया जाता है ।
उदाहरण - गङ्गा = गंगा
चञ्चल = चंचल
डण्डा = डंडा
गन्दा = गंदा
कम्पन = क
ं पन
क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
अनुस्वार को पंचमाक्षर में बदलने का सनयम
अनुस्वार क
े सचह्न क
े प्रयोग क
े बाद आने वाला वणथ सजस वगथ का होगा अनुस्वार का
सचह्न उसी वगथ क
े पंचम-वणथ का स्र्ान लेगा और उसी की उच्चारण ध्वसन सनकलती है
।
‘क’ वगय क, ख, ग, घ, ङ
‘च’ वगय च, छ, ि, झ, ञ
‘ि’ वगय
ि, ठ, ड, ढ, ण
‘त’ वगय त, थ, द, ध, न
‘प’ वगय प, फ, ब, भ, म
गंगा = गङ्गा
इस जगह पर अनुस्वार (-) क
े सचह्न क
े प्रयोग क
े
बाद ‘क’ वगथ का वणथ ‘ग’ है । अनुस्वार का सचह्न
(-) ‘ङ’ इसका यह अर्थ होता है सक ‘क’ वगथ क
े
पंचम-वणथ का उच्चारण कर रहा है।
डंडा = डण्डा
इस जगह पर अनुस्वार (-) क
े सचह्न क
े प्रयोग क
े बाद
‘ट’ वगथ का वणथ ‘ड’ है । अनुस्वार का सचह्न (-) ‘ण’
इसका यह अर्थ होता है सक ‘ट’ वगथ क
े पंचम-वणथ का
उच्चारण कर रहा है।
य, र, ल, व (अंत:स्र् व्यंजनों) और श, ष, स, ह (ऊष्म व्यंजनों) से पूवथ यसद पंचमाक्षर आए तो
अनुस्वार का ही प्रयोग सकया जाता है;
जैसे- सन्सार- संसार, सन्शय- संशय आसद ।
ध्यान दें - सहंदी को सरल बनाने क
े उद्देश्य से सिन्न-सिन्न नाससक्य ध्वसनयों (ड, ज, ण, न और म) की
जगह सबंदु का प्रयोग सकया जाए । संस्क
ृ त में इनका वही रूप बना रहेगा ।
संस्क
ृ त में अड़क, चञ्चल, ठण्डक, चन्दन, कम्बल ।
सहंदी में अंक, चंचल, ठंडक, चंदन, क
ं बल ।
यसद अनुस्वार क
े बाद य, र, ल, ह आता है तो अनुस्वार का प्रयोग उसक
े मूलरूप में नहीं सकया जाता
है। यसद अनुस्वार की जगह उसका सबंदु रूप प्रयोग होता है तो शब्द अशुद्ध हो जाता है ।
जैसे - शद्ध रूप अशुद्ध रूप
कान्हा कांहा
अन्य अंय
अमान्य अमांय
अनुनाससक
सजन स्वरों क
े उच्चारण में मुख क
े सार्-सार् नाससका की िी सहायता लेनी
पड़ती है, उन्हें अनुनाससक कहते हैं । अनुनाससक क
े उच्चारण में नाक से बहुत
कम सााँस सनकलती है और मुाँह से असिक । इसे सलखते समय सशरोरेखा क
े ऊपर
चंद्रसबंदु लगाकर दशाथया जाता है। जैसे- पााँव, आाँख, गााँव, ठााँव, चााँद, पााँचआसद ।
ध्यान दें – अनुनाससक की जगह अनुस्वार और अनुस्वार की जगह अनुनाससक क
े
प्रयोग से शब्दों क
े अर्थ में अन्तर आ जाता है ।
जैसे – हाँस (हाँसने की सिया) हंस (एक पक्षी) ।
सशरोरेखा से ऊपर लगी मात्राओंवाले शब्दों में अनुनाससक क
े स्र्ान पर अनुस्वार
अर्ाथत् सबंदु का प्रयोग ही होता है । जैसे ---- गोंद , कोंपल जबसक अनुस्वार हर
तरह की मात्राओंवाले शब्दों पर लगाया जा सकता है ।
सही शब्दों क
े सार् सचत्रों का समलान कीसजए
बंदर
चााँद
आाँख
सााँप
पंजा
शंख
सदए गए सचत्रों को पहचानकर उनक
े नाम सलसखए
गसतसवसि-
संक
े तानुसार (ऊपर से नीचे, दााँये से बााँये, सतयथक
् तर्ा सीिे लाइन) अनुस्वार और
अनुनाससक क
े सार्थक शब्दों को छााँटकर सलखें ।
अनुस्वार अनुनासिक
अनुस्वार और अनुनाससक में अंतर
अनुस्वार
• अनुस्वार मूलत: व्यंजन है ।
• अनुस्वार को वणथ में बदला जा
सकता है।
• जैसे-वंदना –वन्दना
• अनुस्वार का उच्चारण नाक से
होता है ।
• अनुस्वार तत्सम शब्दों में लगता
है जैसे-दंत, चंद्र आसद ।
• अनुस्वार का लेखन उच्चारण क
े
पहले वाले वणथ क
े ऊपर सबंदु
लगाकर सकया जाता है । जैसे-
वंश,दंत,पंख आसद ।
अनुनाससक
• अनुनाससक स्वर है ।
• अनुनाससक (चंद्रसबंदु) को पररवसतथत
नहीं सकया जा सकता ।
• चन्द्र सबंदु का उच्चारण नाक और मुख
दोनों से होता है ।
• अनुनाससक का प्रयोग तत्िव शब्दों में
सकया जाता है । जैसे-चााँद ,हाँस
• अनुनाससक सचह्न उसी स्वर या मात्रा क
े
ऊपर लगाया जाता है । जैसे-आाँख
,चााँद
1. सर-सर कर मैं, डोर क
े संग हवा
में उड़ती हाँ । ---------
2. प्यार से रात में लोरी जो सुनाती
वह कहलाती है । ------
3. बीमार नहीं रहती, सिर िी
खाती हाँ गोली । ------
4. आसमान में सदखता हाँ, मामा मैं
कहलाता हं । ------
5. कान्हा का मैं वाद्ययंत्र हाँ । ------
बूझो तो जानें
उसचत स्र्ान पर अनुस्वार और
अनुनाससक का सचह्न लगाकर
मानक रूप सलसखए –
चादनी
हसी
पचम
बदररया
किा
दात
व्यजन
बासुरी
'र’क
े सवसवि रूप
'र' क
े सवसवि रूप- ( ) अपने आकार और प्रयोग की दृसि से र
सहन्दी वणथमाला का सवसशि वणथ है। इसका प्रयोग चार रूपों में होता है।
1. मूल रूप में (लुसण्ठत) – उदाहरण - राम, राजा, राहुल, कमर, गरदन
आसद उपयुथक्त उदाहरणों में र वणथ का प्रयोग मूल रूप में सकया गया है ।
2. संयुक्ताक्षर क
े रूप में (रेि) - स्वररसहत ‘र’ वणथ दूसरे वणों से जुड़ता है
अर्ाथत् स्वररसहत होता है तब रेि ( ) का रूप िारण कर लेता है ।
जैसे - कमथ, अिमथ, शौयथ आसद ।
👉स्वररसहत र को रेि ( ) कहते हैं ।
3. सतरछी पाई ( / ) क
े रूप में (रडार) -जब 'र' व्यंजन अंतपाई और मध्यपाई
वाले वणों से जुड़ता या संयुक्त होता है, तब वह एक सतरछी पाई ( / ) क
े रूप में
होता है । उदाहरण- क
् र म िम
4. उल्टे वी ( ^) क
े रूप में (पदेन) - सबना पाई या गोल पेंदी वाले व्यंजनों से
संयुक्त होने पर पर उस व्यंजन क
े नीचे उल्टे वी (^) क
े रूप में जुड़ता है। जैसे- ट्
र क ( ट्रक, ट्र) ड्र (ड्रम)
सवशेष- संयुक्त व्यंजन क
े उच्चारण में सजस व्यंजन का उच्चारण पहले होता है,
वह आिा अर्ाथत् स्वररसहत होता है। सजस व्यंजन का उच्चारण बाद में होता है, वह
व्यंजन पूणथ अर्ाथत् स्वरससहत होता है । उदाहरण - प्रार्थ+ ना = प्रार्थना
ध्यानपूवथक पढें -
“
महापुण्य राजा सनश्चय ही िमाथनुसार और न्यायपूवथक राज करता है, उसी से ये इतने मीठे हैं। राजा क
े
अिासमथक और अन्यायी होने पर तेल, मिु, शक्कर आसद तर्ा जंगल क
े िल-ि
ू ल सिी कड़वे और
स्वादहीन हो जाते हैं। क
े वल यही नहीं, सारा राष्ट्र ओजरसहत हो जाता है, दूसषत हो जाता है। राजा क
े
िासमथक और न्यायसप्रय होने पर सिी वस्तुएाँ मिुर और शसक्तविथक होती हैं और सारा राष्ट्र
शसक्तशाली तर्ा ओजस्वी बना रहता है।”
गसतसवसि- ऊपर सदए गए अनुच्छेद में रेि का प्रयोग सकन-सकन वणों क
े सार् सकस रूप में प्रयोग
हुआ है, सनदेशानुसार सूची में अंसकत करें-
(/) (रय) (^)
संयुक्त व्यंजन
क्ष त्र ज्ञ श्र
जो व्यंजन दो या दो िे असधक व्यंजनों क
े समलने िे बनते
हैं उन्हें िंयुक्त व्यंजन कहा जाता है।
िंयुक्त व्यंजन एक तरह िे व्यंजन का ही एक प्रकार है।
िंयुक्त व्यंजन में जो पहला व्यंजन होता है वो हमेशा स्वर
रसहत होता है और इिक
े सवपरीत दूिरा व्यंजन हमेशा
स्वरिसहत होता है।
वणथ- सवच्छेद
श् + र् + ई + म् + अ + त् + ई
श्रीमती
श्रंगार श् + ऋ + ङ
् + ग् + आ + र् + अ
सत्रिुज
तृष्णा
त् + र् + इ + ि् + उ + ज् + अ
त् + ऋ + ष् + ण् + आ
संयुक्ताक्षर
संयुक्ताक्षर वणथ- सवच्छेद
दो सिन्न व्यंजनों क
े मेल से संयुक्ताक्षर बनाए जाते हैं। संयुक्ताक्षरों में िी पहला
व्यंजन हमेशा स्वर रसहत होता है और इसक
े सवपरीत दूसरा व्यंजन हमेशा स्वर
ससहत होता है ।
िंयुक्ताक्षर क
े रूप
1. समध्वसन संयुक्ताक्षर 2. सवषमध्वसन संयुक्ताक्षर
जब दो समान रूप वाले व्यंजन
वणथ एक सार् आएाँ, तो उन्हें
समध्वसन संयुक्ताक्षर अर्वा
व्यंजन सित्व कहते हैं ।
जैसे –पक्का, कच्चा, खट्टा
जब दो सवषम व्यंजनों का संयोग
होता है, तो उसे सवषय ध्वसन
संयुक्ताक्षर कहते हैं ।
जैसे –तत्काल, श्मशान,
लग्न,सभ्य
सित्व व्यंजन
• एक वणथ का अपने जैसे वणथ क
े
सार् आना सित्व व्यंजन
कहलाता है।
• इसमें िी पहला व्यंजन हमेशा
स्वर रसहत होता है और इसक
े
सवपरीत दूसरा व्यंजन हमेशा स्वर
ससहत होता है।
• जैसे- कच्चा, पक्का, सबल्ली, पट्टी
ट्+ इ+ क
् + क
् + ई
सटक्की
ब्+अ+च् +च्+आ
बच्चा
प्+अ+ट्+ट्+ई
पट्टी
नोट - कवगथ, चवगथ, टवगथ, तवगथ, पवगथ क
े दूसरे और चौर्े अक्षरों क
े
सित्व नहीं होता अर्ाथत् ख क
े बाद ख, घ क
े बाद घ और ि क
े बाद ि नहीं
आता ।
वगीकरण करो
संयुक्त व्यंजन शब्द संयुक्ताक्षर शब्द सित्व व्यंजन शब्द
क्षसत्रय ,राज्य ,नेत्र ,उत्तर,ज्ञान ,श्रवन ,चक्का ,ज्वाला ,अन्य ,
सशक्षक,स्याही,पत्र,श्रीमान, बच्चा,रक्षा, क
ु म्हार ,ध्वजा
बच्चो, हर ि
ू ल में आिे अक्षर
वाले शब्द सलखे हैं, लेसकन
उसका पहला अक्षर आपको
सलखना है ।बीच वाले ि
ू ल में
से सही अक्षर पहचान कर
शब्दों को पूरा करें ---
सनबंि
सनबंि शब्द बंि (बााँिना) िातु में ‘सन’उपसगथ क
े योग से बना है। इसका
अर्थ है सवचारों या िावों को सुसंबद्ध रूप से बााँिकर प्रकट करना ।
आचायथ रामचंद्र शुक्ल क
े शब्दों में –“
यसद गद्य कसवयों की या लेखकों की
कसौटी है तो सनबंि गद्य की कसौटी है ।”
श्यामसुंदर दास का कहना है सक सनबंि वह लेख है सजसमें सकसी गहन
सवषय पर सवस्तृत और पांसडत्यपूणथ सवचार सकया जाता है।
सनबंि की प्रमुख सवशेषताएाँ –
1. व्यसक्तत्व का सवकास
2. संसक्षप्तता
3. एकसूत्रता
4. असन्वसत
जनबंध जलखने क
े जलए दो बातोंकी आवश्यकता ोती ै –
भाव और भाषा ।
भाव और भाषा को समन्वित करने क
े ढंग को िैली क ते ैं
।
िैली दो प्रकार की ोती ै - प्रसाद िैली और समास िैली ।
सनबंि की शैली
सनबंि क
े अंग
1. िूसमका
2. सवस्तार
3. उपसंहार
सनबंि क
े प्रकार
1. िावात्मक
2. सवचारात्मक
3. वणथनात्मक
1. सनबंि सलखने से पहले ही रूपरेखा बना लेनी चासहए ।
2. सवषय से संबंसित सिी पक्षों पर अच्छे से सवचार कर लेना चासहए ।
3. िाषा में स्पिता, सरलता और प्रवाहमयता होनी चासहए ।
4. प्रसंग क
े अनुसार काव्य पंसक्तयों, सूसक्तयों, महान व्यसक्तत्व क
े उदाहरण
समासहत करने चासहए ।
5. वाक्य सुलझे हुए और संसक्षप्त होने चासहए ।
6. वतथनी शुद्ध होनी चासहए और सवराम सचह्नों का यर्ा स्र्ान प्रयोग करना
चासहए ।
7. सनबंि लेखन में मौसलकता का ध्यान रखना चासहए ।
सनबंि सलखते समय हमें सनम्नसलसखत सबंदुओंपर
ध्यान देना चासहए -
पत्र लेखन
सलसखत असिव्यसक्त की सजतनी िी सविाएाँ हैं, उनमें पत्र-लेखन का सवसशि
स्र्ान है ।
यह एक ऐसी सविा है जो लेखक और पाठक क
े बीच आत्मीय संबंि उत्पन्न करने
में सक्षम है ।
पत्र की सवशेषताएाँ
-
1. सरल िाषा शैली
2. स्पिता
3. संसक्षप्तता और संपूणथता
4. प्रिावोत्पादकता
5. उद्देश्यपूणथता
6. बाह्य आवरण की सुंदरता
पत्र क
े अंग
–
1. प्रारंि ( पते से असिवादन)
2. मध्य (मूल सवषय की प्रस्तुसत
3. अंत (िन्यवाद तर्ा प्रेषक का नाम,पता)
इसे िी जानें –
सजन्हें पत्र सलखा हो
छोटों को
बड़ों को
बराबर वालों को
अपररसचत को
संबोिन
सप्रय, सचरंजीवी,
आयुष्मान
आदरणीय, पूजनीय,
माननीय
समत्रवर, सप्रय
मान्यवर, महोदय,
िवदीय, िवदीया
असिवादन
बहुत-बहुत स्नेह,
प्रसन्न रहो, शुिाशीष
सादर नमस्कार,
चरणस्पशथ
सप्रेम नमस्ते,नमस्कार
प्रायः नहीं होता
समापन
शुिसचंतक,
शुिेच्छ
ु
आज्ञाकारी,
आपका
पुत्र/पुत्री
तुम्हारा सहतैषी
शुिासिलाषी
प्रार्ी, श्रीमान,
पत्र क
े प्रकार
औपचाररक पत्र मुख्य रूप से
तीन प्रकार क
े होते हैं ।
1. प्रार्थना पत्र/आवेदन पत्र
2. सशकायती पत्र
3. व्यावसासयक पत्र
पत्र लेखक का संसक्षप्त पता
सदनांक
पत्र प्राप्तकताथ का संसक्षप्त पता
पत्र का सवषय
संबोिन
पत्र का कलेवर
................ प्रारंि............
................ मध्य.............
.............. समापन..........
समापन सनदेश
पत्र लेखक का नाम
पद
प्रारूप
औपचाररक पत्र अनौपचाररक पत्र
औपचाररक पत्र
अनौपचाररक पत्र मुख्य
रूप से सनम्न प्रकार क
े
होते हैं ।
1. बिाई पत्र
2. शुिकामना पत्र
3. सनवेदन पत्र
4. सनमंत्रण पत्र
5. अनुमसत पत्र
6. संवेदना पत्र
पत्र लेखक का संसक्षप्त पता
सदनांक
संबोिन
असिवादन
सवषयवस्तु
................ प्रारंि............
................ मध्य.............
.............. समापन..........
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Days of the Week.pptx

  • 1. जिला जिक्षा एवं प्रजिक्षण संस्थान,दनकौर, गौतम बुद्ध नगर राष्ट्रीय जिक्षा नीजत -2020 क े आलोक में ज ंदी व्याकरण की अवधारणाओं की समझ जवकजसत करने ेतु उच्च प्राथजमक कक्षाओं में ज ंदी भाषा जिक्षण करने वाले जिक्षकोंका पााँच जदवसीय ऑनलाइन प्रजिक्षण काययक्रम जदनांक-19-12-2022 से 23-12-2022 तक
  • 2. संदभय दाता - मीना भाजिया (स०अ०) प्राथजमक जवद्यालय डाढा ब्लॉक दनकौर गौतम बुद्ध नगर
  • 4. अनुस्वार 👉 अनुस्वार का अर्थ होता है, स्वर क े बाद आने वाला । 👉अनुस्वार की ध्वसन नाक से सनकलती है । 👉अनुस्वार का प्रयोग सबंदु (.)क े रूप में सकया जाता है । 👉 इसका उच्चारण स्वर क े बाद ही होता है ; जैसे – अंगूर, अंगद, क ं कण आसद । 👉 सहन्दी में सलखते समय इसका प्रयोग सशरोरेखा (-) क े ऊपर सबंदु लगाकर सकया जाता है । उदहारण – पतंग,अंगूर ,सतरंगा,पंख,नारंगी .
  • 5. अनुस्वार का प्रयोग अनुस्वार (-) का प्रयोग पंचम वणों (ङ, ञ, ण, न, म ये पंचमाक्षर कहलाए जाते हैं) क े स्र्ान पर सकया जाता है । उदाहरण - गङ्गा = गंगा चञ्चल = चंचल डण्डा = डंडा गन्दा = गंदा कम्पन = क ं पन क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म
  • 6. अनुस्वार को पंचमाक्षर में बदलने का सनयम अनुस्वार क े सचह्न क े प्रयोग क े बाद आने वाला वणथ सजस वगथ का होगा अनुस्वार का सचह्न उसी वगथ क े पंचम-वणथ का स्र्ान लेगा और उसी की उच्चारण ध्वसन सनकलती है । ‘क’ वगय क, ख, ग, घ, ङ ‘च’ वगय च, छ, ि, झ, ञ ‘ि’ वगय ि, ठ, ड, ढ, ण ‘त’ वगय त, थ, द, ध, न ‘प’ वगय प, फ, ब, भ, म गंगा = गङ्गा इस जगह पर अनुस्वार (-) क े सचह्न क े प्रयोग क े बाद ‘क’ वगथ का वणथ ‘ग’ है । अनुस्वार का सचह्न (-) ‘ङ’ इसका यह अर्थ होता है सक ‘क’ वगथ क े पंचम-वणथ का उच्चारण कर रहा है। डंडा = डण्डा इस जगह पर अनुस्वार (-) क े सचह्न क े प्रयोग क े बाद ‘ट’ वगथ का वणथ ‘ड’ है । अनुस्वार का सचह्न (-) ‘ण’ इसका यह अर्थ होता है सक ‘ट’ वगथ क े पंचम-वणथ का उच्चारण कर रहा है।
  • 7. य, र, ल, व (अंत:स्र् व्यंजनों) और श, ष, स, ह (ऊष्म व्यंजनों) से पूवथ यसद पंचमाक्षर आए तो अनुस्वार का ही प्रयोग सकया जाता है; जैसे- सन्सार- संसार, सन्शय- संशय आसद । ध्यान दें - सहंदी को सरल बनाने क े उद्देश्य से सिन्न-सिन्न नाससक्य ध्वसनयों (ड, ज, ण, न और म) की जगह सबंदु का प्रयोग सकया जाए । संस्क ृ त में इनका वही रूप बना रहेगा । संस्क ृ त में अड़क, चञ्चल, ठण्डक, चन्दन, कम्बल । सहंदी में अंक, चंचल, ठंडक, चंदन, क ं बल । यसद अनुस्वार क े बाद य, र, ल, ह आता है तो अनुस्वार का प्रयोग उसक े मूलरूप में नहीं सकया जाता है। यसद अनुस्वार की जगह उसका सबंदु रूप प्रयोग होता है तो शब्द अशुद्ध हो जाता है । जैसे - शद्ध रूप अशुद्ध रूप कान्हा कांहा अन्य अंय अमान्य अमांय
  • 8. अनुनाससक सजन स्वरों क े उच्चारण में मुख क े सार्-सार् नाससका की िी सहायता लेनी पड़ती है, उन्हें अनुनाससक कहते हैं । अनुनाससक क े उच्चारण में नाक से बहुत कम सााँस सनकलती है और मुाँह से असिक । इसे सलखते समय सशरोरेखा क े ऊपर चंद्रसबंदु लगाकर दशाथया जाता है। जैसे- पााँव, आाँख, गााँव, ठााँव, चााँद, पााँचआसद । ध्यान दें – अनुनाससक की जगह अनुस्वार और अनुस्वार की जगह अनुनाससक क े प्रयोग से शब्दों क े अर्थ में अन्तर आ जाता है । जैसे – हाँस (हाँसने की सिया) हंस (एक पक्षी) । सशरोरेखा से ऊपर लगी मात्राओंवाले शब्दों में अनुनाससक क े स्र्ान पर अनुस्वार अर्ाथत् सबंदु का प्रयोग ही होता है । जैसे ---- गोंद , कोंपल जबसक अनुस्वार हर तरह की मात्राओंवाले शब्दों पर लगाया जा सकता है ।
  • 9. सही शब्दों क े सार् सचत्रों का समलान कीसजए बंदर चााँद आाँख सााँप पंजा शंख
  • 10. सदए गए सचत्रों को पहचानकर उनक े नाम सलसखए
  • 11. गसतसवसि- संक े तानुसार (ऊपर से नीचे, दााँये से बााँये, सतयथक ् तर्ा सीिे लाइन) अनुस्वार और अनुनाससक क े सार्थक शब्दों को छााँटकर सलखें । अनुस्वार अनुनासिक
  • 12. अनुस्वार और अनुनाससक में अंतर अनुस्वार • अनुस्वार मूलत: व्यंजन है । • अनुस्वार को वणथ में बदला जा सकता है। • जैसे-वंदना –वन्दना • अनुस्वार का उच्चारण नाक से होता है । • अनुस्वार तत्सम शब्दों में लगता है जैसे-दंत, चंद्र आसद । • अनुस्वार का लेखन उच्चारण क े पहले वाले वणथ क े ऊपर सबंदु लगाकर सकया जाता है । जैसे- वंश,दंत,पंख आसद । अनुनाससक • अनुनाससक स्वर है । • अनुनाससक (चंद्रसबंदु) को पररवसतथत नहीं सकया जा सकता । • चन्द्र सबंदु का उच्चारण नाक और मुख दोनों से होता है । • अनुनाससक का प्रयोग तत्िव शब्दों में सकया जाता है । जैसे-चााँद ,हाँस • अनुनाससक सचह्न उसी स्वर या मात्रा क े ऊपर लगाया जाता है । जैसे-आाँख ,चााँद
  • 13. 1. सर-सर कर मैं, डोर क े संग हवा में उड़ती हाँ । --------- 2. प्यार से रात में लोरी जो सुनाती वह कहलाती है । ------ 3. बीमार नहीं रहती, सिर िी खाती हाँ गोली । ------ 4. आसमान में सदखता हाँ, मामा मैं कहलाता हं । ------ 5. कान्हा का मैं वाद्ययंत्र हाँ । ------ बूझो तो जानें उसचत स्र्ान पर अनुस्वार और अनुनाससक का सचह्न लगाकर मानक रूप सलसखए – चादनी हसी पचम बदररया किा दात व्यजन बासुरी
  • 14. 'र’क े सवसवि रूप 'र' क े सवसवि रूप- ( ) अपने आकार और प्रयोग की दृसि से र सहन्दी वणथमाला का सवसशि वणथ है। इसका प्रयोग चार रूपों में होता है। 1. मूल रूप में (लुसण्ठत) – उदाहरण - राम, राजा, राहुल, कमर, गरदन आसद उपयुथक्त उदाहरणों में र वणथ का प्रयोग मूल रूप में सकया गया है । 2. संयुक्ताक्षर क े रूप में (रेि) - स्वररसहत ‘र’ वणथ दूसरे वणों से जुड़ता है अर्ाथत् स्वररसहत होता है तब रेि ( ) का रूप िारण कर लेता है । जैसे - कमथ, अिमथ, शौयथ आसद । 👉स्वररसहत र को रेि ( ) कहते हैं ।
  • 15. 3. सतरछी पाई ( / ) क े रूप में (रडार) -जब 'र' व्यंजन अंतपाई और मध्यपाई वाले वणों से जुड़ता या संयुक्त होता है, तब वह एक सतरछी पाई ( / ) क े रूप में होता है । उदाहरण- क ् र म िम 4. उल्टे वी ( ^) क े रूप में (पदेन) - सबना पाई या गोल पेंदी वाले व्यंजनों से संयुक्त होने पर पर उस व्यंजन क े नीचे उल्टे वी (^) क े रूप में जुड़ता है। जैसे- ट् र क ( ट्रक, ट्र) ड्र (ड्रम) सवशेष- संयुक्त व्यंजन क े उच्चारण में सजस व्यंजन का उच्चारण पहले होता है, वह आिा अर्ाथत् स्वररसहत होता है। सजस व्यंजन का उच्चारण बाद में होता है, वह व्यंजन पूणथ अर्ाथत् स्वरससहत होता है । उदाहरण - प्रार्थ+ ना = प्रार्थना
  • 16. ध्यानपूवथक पढें - “ महापुण्य राजा सनश्चय ही िमाथनुसार और न्यायपूवथक राज करता है, उसी से ये इतने मीठे हैं। राजा क े अिासमथक और अन्यायी होने पर तेल, मिु, शक्कर आसद तर्ा जंगल क े िल-ि ू ल सिी कड़वे और स्वादहीन हो जाते हैं। क े वल यही नहीं, सारा राष्ट्र ओजरसहत हो जाता है, दूसषत हो जाता है। राजा क े िासमथक और न्यायसप्रय होने पर सिी वस्तुएाँ मिुर और शसक्तविथक होती हैं और सारा राष्ट्र शसक्तशाली तर्ा ओजस्वी बना रहता है।” गसतसवसि- ऊपर सदए गए अनुच्छेद में रेि का प्रयोग सकन-सकन वणों क े सार् सकस रूप में प्रयोग हुआ है, सनदेशानुसार सूची में अंसकत करें- (/) (रय) (^)
  • 17. संयुक्त व्यंजन क्ष त्र ज्ञ श्र जो व्यंजन दो या दो िे असधक व्यंजनों क े समलने िे बनते हैं उन्हें िंयुक्त व्यंजन कहा जाता है। िंयुक्त व्यंजन एक तरह िे व्यंजन का ही एक प्रकार है। िंयुक्त व्यंजन में जो पहला व्यंजन होता है वो हमेशा स्वर रसहत होता है और इिक े सवपरीत दूिरा व्यंजन हमेशा स्वरिसहत होता है।
  • 18. वणथ- सवच्छेद श् + र् + ई + म् + अ + त् + ई श्रीमती श्रंगार श् + ऋ + ङ ् + ग् + आ + र् + अ सत्रिुज तृष्णा त् + र् + इ + ि् + उ + ज् + अ त् + ऋ + ष् + ण् + आ
  • 19. संयुक्ताक्षर संयुक्ताक्षर वणथ- सवच्छेद दो सिन्न व्यंजनों क े मेल से संयुक्ताक्षर बनाए जाते हैं। संयुक्ताक्षरों में िी पहला व्यंजन हमेशा स्वर रसहत होता है और इसक े सवपरीत दूसरा व्यंजन हमेशा स्वर ससहत होता है ।
  • 20. िंयुक्ताक्षर क े रूप 1. समध्वसन संयुक्ताक्षर 2. सवषमध्वसन संयुक्ताक्षर जब दो समान रूप वाले व्यंजन वणथ एक सार् आएाँ, तो उन्हें समध्वसन संयुक्ताक्षर अर्वा व्यंजन सित्व कहते हैं । जैसे –पक्का, कच्चा, खट्टा जब दो सवषम व्यंजनों का संयोग होता है, तो उसे सवषय ध्वसन संयुक्ताक्षर कहते हैं । जैसे –तत्काल, श्मशान, लग्न,सभ्य
  • 21. सित्व व्यंजन • एक वणथ का अपने जैसे वणथ क े सार् आना सित्व व्यंजन कहलाता है। • इसमें िी पहला व्यंजन हमेशा स्वर रसहत होता है और इसक े सवपरीत दूसरा व्यंजन हमेशा स्वर ससहत होता है। • जैसे- कच्चा, पक्का, सबल्ली, पट्टी ट्+ इ+ क ् + क ् + ई सटक्की ब्+अ+च् +च्+आ बच्चा प्+अ+ट्+ट्+ई पट्टी नोट - कवगथ, चवगथ, टवगथ, तवगथ, पवगथ क े दूसरे और चौर्े अक्षरों क े सित्व नहीं होता अर्ाथत् ख क े बाद ख, घ क े बाद घ और ि क े बाद ि नहीं आता ।
  • 22. वगीकरण करो संयुक्त व्यंजन शब्द संयुक्ताक्षर शब्द सित्व व्यंजन शब्द क्षसत्रय ,राज्य ,नेत्र ,उत्तर,ज्ञान ,श्रवन ,चक्का ,ज्वाला ,अन्य , सशक्षक,स्याही,पत्र,श्रीमान, बच्चा,रक्षा, क ु म्हार ,ध्वजा
  • 23. बच्चो, हर ि ू ल में आिे अक्षर वाले शब्द सलखे हैं, लेसकन उसका पहला अक्षर आपको सलखना है ।बीच वाले ि ू ल में से सही अक्षर पहचान कर शब्दों को पूरा करें ---
  • 24. सनबंि सनबंि शब्द बंि (बााँिना) िातु में ‘सन’उपसगथ क े योग से बना है। इसका अर्थ है सवचारों या िावों को सुसंबद्ध रूप से बााँिकर प्रकट करना । आचायथ रामचंद्र शुक्ल क े शब्दों में –“ यसद गद्य कसवयों की या लेखकों की कसौटी है तो सनबंि गद्य की कसौटी है ।” श्यामसुंदर दास का कहना है सक सनबंि वह लेख है सजसमें सकसी गहन सवषय पर सवस्तृत और पांसडत्यपूणथ सवचार सकया जाता है।
  • 25. सनबंि की प्रमुख सवशेषताएाँ – 1. व्यसक्तत्व का सवकास 2. संसक्षप्तता 3. एकसूत्रता 4. असन्वसत जनबंध जलखने क े जलए दो बातोंकी आवश्यकता ोती ै – भाव और भाषा । भाव और भाषा को समन्वित करने क े ढंग को िैली क ते ैं । िैली दो प्रकार की ोती ै - प्रसाद िैली और समास िैली । सनबंि की शैली
  • 26. सनबंि क े अंग 1. िूसमका 2. सवस्तार 3. उपसंहार सनबंि क े प्रकार 1. िावात्मक 2. सवचारात्मक 3. वणथनात्मक
  • 27. 1. सनबंि सलखने से पहले ही रूपरेखा बना लेनी चासहए । 2. सवषय से संबंसित सिी पक्षों पर अच्छे से सवचार कर लेना चासहए । 3. िाषा में स्पिता, सरलता और प्रवाहमयता होनी चासहए । 4. प्रसंग क े अनुसार काव्य पंसक्तयों, सूसक्तयों, महान व्यसक्तत्व क े उदाहरण समासहत करने चासहए । 5. वाक्य सुलझे हुए और संसक्षप्त होने चासहए । 6. वतथनी शुद्ध होनी चासहए और सवराम सचह्नों का यर्ा स्र्ान प्रयोग करना चासहए । 7. सनबंि लेखन में मौसलकता का ध्यान रखना चासहए । सनबंि सलखते समय हमें सनम्नसलसखत सबंदुओंपर ध्यान देना चासहए -
  • 28. पत्र लेखन सलसखत असिव्यसक्त की सजतनी िी सविाएाँ हैं, उनमें पत्र-लेखन का सवसशि स्र्ान है । यह एक ऐसी सविा है जो लेखक और पाठक क े बीच आत्मीय संबंि उत्पन्न करने में सक्षम है । पत्र की सवशेषताएाँ - 1. सरल िाषा शैली 2. स्पिता 3. संसक्षप्तता और संपूणथता 4. प्रिावोत्पादकता 5. उद्देश्यपूणथता 6. बाह्य आवरण की सुंदरता
  • 29. पत्र क े अंग – 1. प्रारंि ( पते से असिवादन) 2. मध्य (मूल सवषय की प्रस्तुसत 3. अंत (िन्यवाद तर्ा प्रेषक का नाम,पता) इसे िी जानें – सजन्हें पत्र सलखा हो छोटों को बड़ों को बराबर वालों को अपररसचत को संबोिन सप्रय, सचरंजीवी, आयुष्मान आदरणीय, पूजनीय, माननीय समत्रवर, सप्रय मान्यवर, महोदय, िवदीय, िवदीया असिवादन बहुत-बहुत स्नेह, प्रसन्न रहो, शुिाशीष सादर नमस्कार, चरणस्पशथ सप्रेम नमस्ते,नमस्कार प्रायः नहीं होता समापन शुिसचंतक, शुिेच्छ ु आज्ञाकारी, आपका पुत्र/पुत्री तुम्हारा सहतैषी शुिासिलाषी प्रार्ी, श्रीमान,
  • 30. पत्र क े प्रकार औपचाररक पत्र मुख्य रूप से तीन प्रकार क े होते हैं । 1. प्रार्थना पत्र/आवेदन पत्र 2. सशकायती पत्र 3. व्यावसासयक पत्र पत्र लेखक का संसक्षप्त पता सदनांक पत्र प्राप्तकताथ का संसक्षप्त पता पत्र का सवषय संबोिन पत्र का कलेवर ................ प्रारंि............ ................ मध्य............. .............. समापन.......... समापन सनदेश पत्र लेखक का नाम पद प्रारूप औपचाररक पत्र अनौपचाररक पत्र औपचाररक पत्र
  • 31. अनौपचाररक पत्र मुख्य रूप से सनम्न प्रकार क े होते हैं । 1. बिाई पत्र 2. शुिकामना पत्र 3. सनवेदन पत्र 4. सनमंत्रण पत्र 5. अनुमसत पत्र 6. संवेदना पत्र पत्र लेखक का संसक्षप्त पता सदनांक संबोिन असिवादन सवषयवस्तु ................ प्रारंि............ ................ मध्य............. .............. समापन.......... समापन सनदेश पत्र लेखक का नाम प्रारूप अनौपचाररक पत्र