2.
प्रदेश भूगोल में एक गणितीय संकल्पना है| यह सक्रिय,
परिवततनात्मक, गत्यात्मक अवधाििा है| भूगोल का सबसे
अधधक शास्त्रीय साहहत्य प्रादेशशक ग्रंथों का है| पपछले बीस
वर्षों में भूगोल में प्रदेशों क
े अध्ययन, प्रदेशों क
े वगीकिि
की पवधध औि प्रदेशों क
े पवश्लेर्षि- संश्लेर्षि पि
अधधकाधधक बल हदया जा िहा है|
प्रदेश का अर्थ:
पृथवी तल का वह इकाई क्षेर जो अपने पवशशष्ट
अशभलक्षिों क
े कािि अपने समीपवती अन्य इकाई क्षेरों से
शभन्न समझा जाता है, प्रदेश कहलाता है| यह अन्य क्षेरों से
सेवा लेता भी है औि सेवा देता भी है|
परिचय
3.
हार्थशोर्थ क
े शब्दों में “प्रदेश एक ऐसा क्षेर होता है जजसकी
पवशशष्ट अवजस्त्थतत होती है जो क्रकसी प्रकाि दूसिे क्षेरों से
प्रभेदक होता है तथा जो उतनी ही दूिी तक फ
ै ला होता है
जजतनी दूिी तक वह प्रभेद व्याप्त होता है|”
विडाल डी ला ब्लाश “ऐसी समिसता का क्षेर है जहां
प्राकृ ततक एवं सांस्त्कृ ततक दृश्य- वस्त्तुओं अथवा घटनाएं
समांगी बनी होती है|”
प्रदेश की परिभार्षा
4.
1 हरबर्थसर् क
े अनुसाि
हिबटतसन ने पवश्व- धिातल को जलवायपवक
पवशेर्षताओं क
े आधाि पि बड़े प्राकृ ततक प्रदेशों में पवभक्त
क्रकया| ये प्रदेश तनयाततवाहदता से ही जुड़े थे| लघु मापक पि
भूगोलवेताओं ने व्यजक्तगत पवशशष्टता क
े प्रदेशों क
े पहचान
की, जो तनजी गुिों पि आधारित थे| लघु भौगोशलक प्रदेशों में
चाहे सवंगीि समानता न हो पिन्तु उनका पवशशष्ट व्यजक्त
वहां की संिचना, जलवायु, शमट्टी,वनस्त्पतत, कृ पर्ष, खतनज,
औधोधगक संसाधन, अधधवास औि जनसंख्या- पवतिि में
प्रकट बना है|
विभिन्र् विद्िार्ों द्िारा प्रदेश की संकल्पर्ा पर
मत:
5.
2 हार्थशोर्थ क
े अनुसाि:
भूगोल का मुख्य अध्ययन उद्देश्य पृथ्वी की सतत क
े
परिवततनशील स्त्वरूप का यथाथतमूलक, िमबद्ध औि
तक
त संगत पवविि तथा तनवतचन किना है| अथातत भूगोलवेत्ता
का प्रधान ध्यान यह है की पृथ्वी की सतह पि दृश्य- वस्त्तुएं
क्रकस भांतत पवतरित बनी है| क्षेरों की प्राकृ ततक व सांस्त्कृ ततक
आकृ ततयााँ क्रकस भांतत कहां समान अथवा असमान है|
पवशभन्न स्त्थानों पि दृश्य सामग्री शभन्न- शभन्न क
ै से बन उठी
है औि सामान्यजन क
े शलए इन सब पवभेदों व् समानताओं
का क्या अथत है|
विभिन्र् विद्िार्ों द्िारा प्रदेश की संकल्पर्ा पर मत
6.
3 विर्टर्लसी क
े अनुसाि:
प्रदेश क्रकसी क्षेर क
े व्यापकीकिि अथवा
सामान्यीकिि का माध्यम है| वह “पवभेद बना पृथ्वी की
सतह का एक खंड है|”
पवशभन्न पवद्वानों क
े मतों से सपष्ट होता है की प्रदेशों की
संख्या अनेक हो सकती है| ये शभन्न- शभन्न प्रकाि क
े
उद्देश्यों पि आधारित अनेक प्रकाि क
े हो सकते हैं| इनक
े
क
ु छ समान लक्षि होते हैं जजनसे उस प्रदेश को पहचाना
जाता है|
विभिन्र् विद्िार्ों द्िारा प्रदेश की संकल्पर्ा पर मत
8.
अिस्थर्तत: प्रदेश अवजस्त्थतत धािि होते हैं औि वे अपनी
जस्त्थतत की संज्ञा से भी संबोधधत क्रकए जा सकते हैं, उदाहििाथत:
मध्य- पूवत अमेरिका, दक्षक्षि- पूवत एशशया आहद|
थर्ातर्क विथतार: प्रदेशों का स्त्थातनक पवस्त्ताि होता है| जैसे:
थाि मरुस्त्थल, लैहटन अमेरिका आहद| ऐसे प्रदेश प्रसुप्त नहीं
होते है| इनका धिातल पि अजस्त्तत्व होता है|
सीमा: प्रदेशों की तनधातरित सीमा होती है| यह प्रदेश का बाह्य
छोि है जहां वह अपना गुि त्याग देता है अथवा जहां उसका
प्रभुत्व समाप्त होता है| उद्धािनाथत : हहमालय शशवाशलक अपना
पवततीय गुि त्याग कि जहां गंगा- शसंधु क
े मैदान से जा शमला
है, वः उसकी सीमा है|
प्रदेशों क
े लक्षण
9.
औपचाररक या कायथपरक प्रदेश: प्रदेश औपचारिक या कायतपिक हो
सकते है| औपचारिक प्रदेश सवतर एक समान गुि का बोध किाते हैं|
जैसे: भूमध्य िेखीय प्रदेश, मानसून प्रदेश आहद- आहद| भार्षा, धमत,
प्रजातत आहद क
े आधािों पि भी तनधातरित प्रदेश औपचारिक है|
कायतपिक प्रदेश सक्रिय एवं जीवंत है| इनमें घहटत अंतक्रि
त याएं औि
इनक
े आस- पास क
े क्षेरों से जुड़ाव व इन्हें गततशील व परिवततनात्मक
बनाएं िखा है| कायत प्रदेश का एक अच्छा उद्धािि नगि प्रदेश है|
पदार्ुकमीय व्यिथर्ा: प्रदेशों का एक लक्षि उनकी पदानुिमीय
व्यवस्त्था है| वे एक लघुस्त्ति से आगे क
े ऊ
ाँ चे पद िमों से जुड़ते हुए
पदानुकमीय व्यवस्त्था में पाएं जाते हैं|
परिती (पररितथर्शील) सीमाएं: प्रदेशों की तनजश्चत सीमाएं नहीं होती
है| वे घटती- बढती िहती है| क
ु छ तो एक दूसिे पि आिोपपत होते हुए
भी देखी जा सकती है| इन्हें अंक्रकत कि मानधचर में पहचाना जा
सकता है|
प्रदेशों क
े लक्षण
10.
अतः प्रदेश की संकल्पना मनावबुद्धध की िचना है| वस्त्तुतः
धिातल पि प्रदेशों का सीमा- तनधातिि नहीं है| यह उद्देश्य
पवशेर्ष की पूततत क
े शलए िची मानशसक संकल्पना है| यह
स्त्थातनक एकरूपता पि आधारित है| प्रदेश की अपनी एक
पवशशष्ट पहचान होती है| जो उसे अपने साथ लगे पवशभन्न
क्षेरों से अलग किता है|
तर्ष्कर्थ: