समय की सीख समय पर ले लेनी चाहिए, ऐसा वयोवृद्ध और ज्ञानी महापुरुषों का मार्गदर्शन है।
कहते हैं समय बहुत बलवान होता है, अपने-अपने समय के बड़े-बड़े सूरमाओं का आज नामोनिशान नहीं है।
अतः पहली बात यह कि अपने जीवन के कर्तव्यों को ऐसा निभाया जाये कि करने को कुछ शेष कभी भी न रह जाये। जब बुलावा आये, चल पड़े।
दूसरी आवश्यक बात यह है कि सदा सत्कर्म ही करें।
तीसरी बात समय से अपने जीवन का अंकेक्षण कराना सीख लें। जीवन में कौन हमारा सबसे निकट है, कौन दूर है, कौन शत्रु है और कौन हितशत्रु हैं यह हमें समय ही सिखाता है।
समय की सीख समय पर ले लेनी चाहिए, ऐसा वयोवृद्ध और ज्ञानी महापुरुषों का मार्गदर्शन है।
कहते हैं समय बहुत बलवान होता है, अपने-अपने समय के बड़े-बड़े सूरमाओं का आज नामोनिशान नहीं है।
अतः पहली बात यह कि अपने जीवन के कर्तव्यों को ऐसा निभाया जाये कि करने को कुछ शेष कभी भी न रह जाये। जब बुलावा आये, चल पड़े।
दूसरी आवश्यक बात यह है कि सदा सत्कर्म ही करें।
तीसरी बात समय से अपने जीवन का अंकेक्षण कराना सीख लें। जीवन में कौन हमारा सबसे निकट है, कौन दूर है, कौन शत्रु है और कौन हितशत्रु हैं यह हमें समय ही सिखाता है।
March-2020 Free Monthly Hindi Astrology Magazines, You can read in Monthly GURUTVA JYOTISH Magazines Astrology, Numerology, Vastu, Gems Stone, Mantra, Yantra, Tantra, Kawach & ETC Related Article absolutely free of cost.
GURUTVA JYOTISH MONTHLY E-MAGAZINE MARCH-2020
गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका मार्च-2020 में प्रकशित लेख
चैत्र नवरात्र विशेष विशेष
ब्रह्मचारी गिरीश
कुलाधिपति, महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय
एवं महानिदेशक, महर्षि विश्व शांति की वैश्विक राजधानी
भारत का ब्रह्मस्थान, करौंदी, जिला कटनी (पूर्व में जबलपुर), मध्य प्रदेश
March-2020 Free Monthly Hindi Astrology Magazines, You can read in Monthly GURUTVA JYOTISH Magazines Astrology, Numerology, Vastu, Gems Stone, Mantra, Yantra, Tantra, Kawach & ETC Related Article absolutely free of cost.
GURUTVA JYOTISH MONTHLY E-MAGAZINE MARCH-2020
गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका मार्च-2020 में प्रकशित लेख
चैत्र नवरात्र विशेष विशेष
ब्रह्मचारी गिरीश
कुलाधिपति, महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय
एवं महानिदेशक, महर्षि विश्व शांति की वैश्विक राजधानी
भारत का ब्रह्मस्थान, करौंदी, जिला कटनी (पूर्व में जबलपुर), मध्य प्रदेश
Designing cross-platform mobile user interface (UI) is a nightmare. Even if the three main OS speak almost the same language, they actually speak three different lingos.
Enhancers will showcase an optimal workflow – starting with Android Material – to minimize effort and variations, keeping the user experience (UX) great along all platforms.
And in the sixth month the angel Gabriel was sent from God unto a city of Galilee, named Nazareth, To a virgin espoused to a man whose name was Joseph, of the house of David; and the virgin's name was Mary. And the angel came in unto her, and said, Hail, thou that art highly favoured, the Lord is with thee: blessed art thou among women. And when she saw him, she was troubled at his saying, and cast in her mind what manner of salutation this should be. And the angel said unto her, Fear not, Mary: for thou hast found favour with God. And, behold, thou shalt conceive in thy womb, and bring forth a son, and shalt call his name JESUS. He shall be great, and shall be called the Son of the Highest: and the Lord God shall give unto him the throne of his father David: And he shall reign over the house of Jacob for ever; and of his kingdom there shall be no end. LUKE 1:26-33
1. भृतहरी कृ त शतक काव्यानाां नीततगत कथनानाां
सामाजिक व्यवहारे प्रभावम् एवां उपादेयता
,
श्री ककशन गोपाल मीना
आचायय (सांस्कृ त साहहत्य) ववद्या तनधि, नेट
सांस्कृ त शशक्षक
के न्द्रीय ववद्यालय सवाई मािोपुर (रािस्थान)
मानव सांसािन मांत्रालय भारत सरकार
भर्त्यहरेेः शतकातन सामाजिक िीवने उपादेयता
2. भत्हयररववरधचतातन त्रीणि शतक काव्यान्द्यावपश्रेष्ठ्मुक्तकरुपेन ववद्जव्द: स्वीकियते |एषु शतक काव्येषु
ववषयववभािनम् ववववि प्रकरिेषु कृ तमजस्त |तात्काशलक-लोकिीवनेन सांबधिता: काव्य िारा भर्त्यहररिा
अत्र समाचररता|
भर्त्यहरेेः रचनासु पयायप्ता िान्द्तदवषयता ववद्यते |भौततकआध्याजत्मक िीवनयो: यथाथं धचत्रतयतुां कवीनाां
ववशेष:प्रयासो ववहहत:|प्रत्येक पदे –पदे सद्व्यव्हारां,तनततज्ञानां,परहहतां ,सामाजिक व्यवहारां इत्यादीनाां
गुिानाां सांपुट;सवयत्र दृश्यते |
को न यातत वशां लोके मुखे वपण्डेन पूररतेः l
मृदङ्गो मुखलेपेन करोतत मिुरध्वतनम ् ll
सामाजिक शिष्टाचार अक्सर हम दोस्तों, ररश्तेदारों, या व्यापार संपकों को खुि करने के शिए छोटे उपहार देने की
आवश्यकता है। हम का दौरा कर रहे िोगों के युवा बच्चे हैं, हम सदा ही उनके शिए कु छ शमठाई या चॉकिेट िे।
यह उन िोगों के साथ दोस्त बनाने के शिए एक आसान तरीका है।
बच्चे अक्सर अपने दोस्तों के साथ अपने िंच बॉक्स साझा करें, या उन िोगों के साथ वे दोस्तों के साथ बनाना
चाहते हैं। यहां तक कक वयस्कों के रात के खाने के शिए एक व्यक्ति को आमंत्रित कर उसके साथ एक अच्छे संबंध
स्थापितपत करने के शिए सबसे आसान तरीका है कक िगता है।
ककसी को ऋणी आप मदद करने के शिए, या अपने दृपितष्टकोण से सहमत करने के शिए उसे प्रोत्साहहत करती है।
उद्यमेन हह शसध्यजतत कायााणण न मनोरथैैः l
न हह सुप्तस्य शसंहस्य प्रपितविजतत मुखे मृगाैः ll
अजस्मन् श्लोके कायााणण प्रतत सिगतया कवय:कथयजतत च पितवना पररश्र्मेन कोऽपितप काया संभवं नाजस्त
पितवना उद्येमेन िीवन कदापितप सामाजिके व्यवहारे संपतनैः न िात |
मानव व्यवहारे इदं श्लोकानां प्रभावं चमत्कारं सामाजिक िीवने ऊहपोहैः सरिं िात| सभ्य समािे
तनमााणे श्लोकानां योगदानं अतत महत्त्वपूणं |
अज्ञैः सुखमाराध्यैः सुखतरमाराध्यते पितविेषज्ञैः ।
ज्ञानिवदुपितवादग्धं ब्रह्मापितप नरं न रञ्ियतत ॥
3. एक मुखा व्यक्ति को समझाना आसान है, एक बुपितिमान व्यक्ति को समझाना उससे भी आसान है, िेककन एक अधूरे
ज्ञान से भरे व्यक्ति को भगवान ब्रम्हा भी नहीं समझा सकते, क्यूंकक अधूरा ज्ञान मनुष्य को घमंडी और तका के प्रतत
अँधा बना देता है।
िभेत शसकतासु तैिमपितप यत्नतैः पीडयत्
पितपबेच्च मृगतृजष्णकासु सशििं पितपपासाहदातैः ।
कदाचचदपितप पयाटञ्छिपितवषाणमासादयेत्
न तु प्रतततनपितवष्टमूखािनचचत्तमाराधयेत् ॥
अपनों के प्रतत कत्ताव्य परायणता और दातयत्व का तनवााह करना, अपररचचतों के प्रतत दयािुता का भाव रखना, दुष्टों से
सदा सावधानी बरतना, अच्छे िोगों के साथ अच्छाई से पेि आना, रािाओ ं से व्यव्हार कु ििता से पेि आना,
पितवद्वानों के साथ सच्चाई से पेि आना, ििुओ ं से बहादुरी से पेि आना, गुरुिनों से नम्रता से पेि आना, महहिाओ ं के
साथ के साथ समझदारी से पेि आना ; इन गुणों या ऐसे गुणों में माहहर िोगों पर ही सामाजिक प्रततष्ठा तनभार
करती है।
अथक प्रयास करने पर रेत से भी तेि तनकिा िा सकता है तथा मृग मरीचचका से भी िि ग्रहण
ककया िा सकता हैं। यहाँ तक की हम सींघ वािे खरगोिों को भी दुतनया में पितवचरण करते
देख सकते है; िेककन एक पूवााग्रही मुखा को सही बात का बोध कराना असंभव है।
इन गुणों में माहहर होकर आप भी सामाजिक प्रततष्ठा हाशसि कर सकते हैं - भतृाहरर नीतत
दाक्षक्षण्यां स्विने, दया परिने, शाट्यां सदा दुियने
प्रीततेः सािुिने, नयो नृपिने, ववद्वज्िनेऽप्याियवम् ।
शौयं शत्रुिने, क्षमा गुरुिने, नारीिने िूतयता
4. ये चैवां पुरुषाेः कलासु कु शलास्तेष्वेव लोकजस्थततेः ॥
अपनों के प्रतत कत्ताव्य परायणता और दातयत्व का तनवााह करना, अपररचचतों के प्रतत दयािुता का भाव रखना, दुष्टों से
सदा सावधानी बरतना, अच्छे िोगों के साथ अच्छाई से पेि आना, रािाओ ं से व्यव्हार कु ििता से पेि आना,
पितवद्वानों के साथ सच्चाई से पेि आना, ििुओ ं से बहादुरी से पेि आना, गुरुिनों से नम्रता से पेि आना, महहिाओ ं के
साथ के साथ समझदारी से पेि आना ; इन गुणों या ऐसे गुणों में माहहर िोगों पर ही सामाजिक प्रततष्ठा तनभार
करती है।
ववद्या नाम नरस्य रूपमधिकां प्रच्छन्द्नगुप्तां िनां
ववद्या भोगकारी यशेःसुखकारी ववद्या गुरूिाां गुरुेः ।
ववद्या बन्द्िुिनो ववदेशगमने ववद्या परा देवता
ववद्या रािसु पूजिता न तु िनां ववद्याववहीनेः पशुेः ॥
वास्तव में के वि ज्ञान ही मनुष्य को सुिोशभत करता है, यह ऐसा अद्भुत खिाना है िो हमेिा सुरक्षित और तछपा
रहता है, इसी के माध्यम से हमें गौरव और सुख शमिता है। ज्ञान ही सभी शििकों को शििक है। पितवदेिों में
पितवद्या हमारे बंधुओ ं और शमिो की भूशमका तनभाती है। ज्ञान ही सवोच्च सत्ता है। रािा - महारािा भी ज्ञान को ही
पूिते व ् सम्मातनत करते हैं न की धन को। पितवद्या और ज्ञान के त्रबना मनुष्य के वि एक पिु के समान है।
5. अधिगतपरमाथायन्द्पजण्डतान्द्मावमांस्था
स्तृिशमव लघुलक्ष्मीनैव तान्द्सांरुिवि ।
अशभनवमदलेखाश्यामगण्डस्थलानाां
न भवतत बबसतन्द्तुवररिां वारिानाम् ॥[17]
ककसी भी ज्ञानी व्यक्ति को कभी काम नहीं आंकना चाहहए और न ही उनका अपमान करना चाहहए क्यूंकक भौततक
सांसाररक धन सम्पदा उनके शिए तुक्ष्य घास से समान है। जिस तरह एक मदमस्त हाथी को कमि की पंखुक्तियों से
तनयंत्रित नहीं ककया िा सकता ठीक उसी प्रकार धन दौित से ज्ञातनयों को वि में करना असंभव है !
येषां न पितवद्या न तपो न दानं
ज्ञानं न िीिं न गुणो न धमाैः ।
ते मत्यािोके भुपितव भारभूता
मनुष्यरूपेण मृगाश्चरजतत ॥
जिन िोगों ने न तो पितवद्या-अिान ककया है, न ही तपस्या में िीन रहे हैं, न ही दान के कायों में िगे हैं न ही ज्ञान
अजिात ककया है, न ही अच्छा आचरण करते हैं, न ही गुणों को अजिात ककया है और न ही धाशमाक अनुष्ठान ककये हैं,
वैसे िोग इस मृत्युिोक में मनुष्य के रूप में मृगों की तरह भटकते रहते हैं और ऐसे िोग इस धरती पर भार
की तरह।
कृ शमकु लधचतां लालाजललन्द्नां ववगजन्द्ि िुगुजप्सतां
तनरुपमरसां प्रीत्या खादन्द्नराजस्थ तनराशमषम् ।
सुरपततमवप श्वा पाश्वयस्थां ववलोलय न शङ्कते
न हह गियतत क्षुरो िन्द्तुेः पररग्रहफल्गुताम् ॥
6. जिस तरह एक कु त्ता स्वगा के रािा इंद्र की उपजस्थतत में भी
उतहें अनदेखा कर मनुष्य की हड्क्तडयों को िो बेस्वाद, कीिों
मकोिों से भरे, दुगातध युि और िार में सने होते हैं, बिे चाव
से चबाता रहता है, उसी तरह िोभी व्यक्ति भी दूसरों से तुक्ष्य
िाभ भी पाने में त्रबिकु ि भी नहीं कतराते हैं।
व्यािं बािमृणाितततुशभरसौ रोिुं समुज्िृम्भते
छेत्तुं वज्रमणीजञ्छरीषकु सुमप्राततेन सतनह्यते ।
माधुयं मधुत्रबतदुना रचतयतुं िाराम्बुधेरीहते
नेतुं वाञ्छतत यैः खिातपचथ सतां सूिै ैः सुधास्यजतदशभैः ॥
अपनी शििाप्रद मीठी बातों से दुस्ट पुरुषों को सतमागा पर िाने का प्रयास करना उसी प्रकार है िैसे एक मतवािे
हाथी को कमि कक पंखुक्तियों से बस मे करना, या किर हीरे को शिरीिा फू ि से काटना अथवा खारे पानी से भरे
समुद्र को एक बूंद िहद से मीठा कर देना।
प्रहस्य मणणमुिरेतमकरवक्रदंष्ट्राततरात्
समुद्रमपितप सततरेत्प्रचिदूशमामािाकु िम् ।
भुिङ्गमपितप कोपितपतं शिरशस पुष्पविारये
तन तु प्रतततनपितवष्टमूखािनचचत्तमाराधयेत् ॥
7. अगर हम चाहें तो मगरमच्छ के दांतों में फसे मोती को भी
तनकाि सकते हैं, साहस के बि पर हम बिी-बिी िहरों वािे
समुद्र को भी पार कर सकते हैं, यहाँ तक कक हम गुस्सैि सपा
को भी फू िों की मािा तरह अपने गिे में पहन सकते हैं; िेककन
एक मुखा को सही बात समझाना असम्भव है।
उत्साहो बलवानायय नास्त्युत्साहात्परां बलम्।
सोत्साहस्य च लोके षु न ककां धचदवप दुलयभम्॥
उत्साह श्रेष्ठ पुरुषों का बि है, उत्साह से बढ़कर और कोई बि नहीं है। उत्साहहत व्यक्ति के शिए इस िोक में कु छ
भी दुिाभ नहीं है॥
के यूरा न ववभूषयजन्द्त पुरुषां हारा न चन्द्रोज्ज्वला
न स्नानां न ववलेपनां न कु सुमां नालङ्कृ ता मूियिाेः ।
वाण्येका समलांकरोतत पुरुषां या सांस्कृ ता िाययते
क्षीयते खलु भूषिातन सततां वाग्भूषिां भूषिम् ॥
8. कं गन मनुष्य की िोभा नहीं बढ़ाते, न ही चतद्रमा की तरह चमकते हार, न ही सुगजतधत िि से स्नान ; देह पर
सुगजतधत उबटन िगाने से भी मनुष्य की िोभा नहीं बढ़ती और न ही फू िों से सिे बाि ही मनुष्य की िोभा
बढ़ाते हैं। के वि सुसंस्कृ त और सुसजज्ित वाणी ही मनुष्य की िोभा बढाती है।
वरं पवातदुगेषु भ्राततं वनचरैैः सह ।
न मूखािनसम्पका ैः सुरेतद्रभवनेष्वपितप ॥[14]
हहंसक पिुओ ं के साथ िंगि में और दुगाम पहािों पर पितवचरण करना कहीं बेहतर है परततु मूखािन के साथ स्वगा
में रहना भी श्रेष्ठ नहीं है !
स्वायत्तमेकाततगुणं पितवधािा पितवतनशमातं छादानमज्ञतायाैः ।
पितविेषतैः सवापितवदां समािे पितवभूषणं मौनमपजडडतानाम् ॥
अपनी मूखाता तछपाने के शिये भगवान ने मूखों को मौन धारण करने का एक अद्भुत सुरिा कवच हदया है, िो उनके
अधीन भी है। पितवद्वानो से भरी सभा मे "मौन रहना" मूखो के शिये आभूषण से कम नहीं है।
व्यािं बािमृणाितततुशभरसौ रोिुं समुज्िृम्भते
छेत्तुं वज्रमणीजञ्छरीषकु सुमप्राततेन सतनह्यते ।
माधुयं मधुत्रबतदुना रचतयतुं िाराम्बुधेरीहते
नेतुं वाञ्छतत यैः खिातपचथ सतां सूिै ैः सुधास्यजतदशभैः ॥
9. अपनी शििाप्रद मीठी बातों से दुस्ट पुरुषों को सतमागा पर िाने का प्रयास करना उसी प्रकार है िैसे एक मतवािे
हाथी को कमि कक पंखुक्तियों से बस मे करना, या किर हीरे को शिरीिा फू ि से काटना अथवा खारे पानी से भरे
समुद्र को एक बूंद िहद से मीठा कर देना।
संदशभात श्लोकशभ;ज्ञानम ् प्राप्यते यहद वयं प्रततहदनं सामाजिक िीवने भत्ताहररणा रचचत श्लोका :समग्र िीवनस्य सारं
प्रकटयते |पितवद्याहीना मानवाैः पिव:समाना:,सामाजिक कायााणण प्रतत समरसता पितववेकता आहद भावं िीवने सु
मानवस्य गुणा:सुिीवनस्य आधारं |
संदशभात ग्रतथा:सूची --------
1 –भत्ताहरर ितकं िक्ष्मी प्रकािन ४७३४,बल्िी मारान हदल्िी -६
2 –अमरुक ितकं (अिुानदेव कृ त हटका)
3-चाणक्य सूिं