3. 3
प रचय
िकताब का नाम :
----------------- ------------------------ सदक़ा-ए-िफ़
लेखक का नाम :-------- काज़ी-उल-क़ु ज़ात मसीहे िम लत मुह मद
अनवर आलम
वािलद का नाम :
--------- -----------------मुह मद अ बास आलम अशरफ
िख़लाफत :
---------------- -------- -----------------------सलािसले अरबा
रहाइश :
---- ----------------------------मीरा रोड मुंबई ठाणे महारा भारत
मु कमल िडज़ाइन--सूफ शमशाद आलम--- -
) जानशीने हज़ूर मसीहे िम लत(
िहंदी टाइिपंग :
--- ------------------------------- अली अकबर (सु तानपुर)
काशक :----- ---दा ल उलूम फैज़ाने मु तफा एजूके ल ट ,मीरा रोड मुंबई
तबाअत:-----फैज़ाने मु तफा अके डमी,मकज़ुल )मराक ज़ बाबुल इ म जनरल
लाइ ेरी
छपाई :
------- ------- -
) 05/03/2021 -20-रजबुल मुर जब -1442-िहजरी (
सहायक :--सै यद ताहा िच ती, मोलाना मुनीम,हािफज अली अकबर,फरदीन
कादरी,अ दुल रहमान,
4. 4
मुक़ मा
अलह दु-िल लाह आज मने िजस मौज़ू पे क़लम
उठाया है हम उ मीद करते ह िक तमाम िज़ मेदारान
एदारा इ लािमया और िज़ मेदारान मसािजद और
खानक़ाह और कुल उ मते मुि लमा मेरी इन तमाम
बात पे गौरो िफ़ के साथ अमल भी कर |
िक सदक़ा-ए-िफ़ से मुताि लक़ जो हमारे समाज म
अपने तौर पर बरस से लोग या अमीर या ग़रीब
सभी िसफ़ गेहं क क मत लगाकर सदक़ा-ए-िफ़ अदा
करते ह इसी वजह से इस जािनब तव जह मबज़ूल
कराने क कोिशश कर रहा हँ िजस पर मेरी तहक़ क़
चंद कोिशशात से जो हािसल है उसे जमा िकया और
इस िकताब का नाम सदक़ा-ए-िफ़ रखा तािक हर
खासो आम को सदक़ा-ए-िफ़ क सही मालूमात हो
िक सदक़ा-ए-िफ़ क िमक़दार िकस िकस को और
5. 5
कहाँ कहाँ देनी है अ लाह इस िकताब को उ मते
मुि लमा के िलए मशअले राह बनाए ||
आमीन िबजाहे सै यदुल मुरसलीन व
आिलिह ैि यबीन व तािहरीन व औलािदही अजमईन |
फ़क़त.............................. मोह मद अनवर आलम |
6. 6
िबि म लािहरहमािनरहीम
अल-ह दु िल लािह रि बल आलमीन व सलातु
व सलामु अला निबि यल करीम व अला
आिलही व औलािदही वअसहािबही अजमईन ||
सदक़ा-ए-िफ़ क
े फज़ाएल,
मसाएल और अहकाम
ज़कात क दो िक़ म ह :-
ज़कातुल माल :- यानी माल क ज़कात, जो माल क
एक ख़ास िमक़दार पर फ़ज़ है |
ज़कातुल िफ़ :- यानी बदन क ज़कात, उसको
सदक़ा-ए-िफ़ कहा जाता है |
7. 7
सदक़ा-ए-िफ़ या है ?
िफ़ का माना रोज़ा खोलना या रोज़ा ना रखने के ह |
शरई इि तलाह म उस सदक़ा का नाम सदक़ा-ए-िफ़
है| जो माहे रमज़ान के ख़ म होने पर रोज़ा खुल जाने क
ख़ुशी और शुि या के तौर पर अदा िकया जाता है |
नेज़ सदक़ा-ए-िफ़ रमज़ान क कोतािहय और
ग़लितय का क फारा भी बनता है |
जैसा िक हज़रत अ दु लाह िबन अ बास रज़ी अ लाह
अ ह से रवायत है िक रसूल स ल लाह ताला अलैिह
व आिलिह व औलािदही व बा रक व सि लम ने
इरशाद फरमाया :- सदक़ा-ए-िफ़ रोज़ा दार क बेकार
बात और फहश गोई से रोज़े को पाक करने के िलए
और मसाक न को खाना िखलाने के िलए मुक़ रर है ||
(अबु-दाउद हािशया 6061, इ ने माजा हािशया 2781)
सदक़ा-ए-िफ़ मुक़ रर होने क वजह
8. 8
ईद-उल-िफ़ म सदक़ा इस वा ते मुक़रर िकया गया है
िक उसम रोज़ादार के िलए गुनाह से पाक ज़गी और
उनके रोज क तकमील है | नेज़ मालदार के घर म तो
उस रोज़ ईद होती है, मु तिलफ़ िक़ म के पकवान
पकते ह, अछे कपड़े पहने जाते ह | जबिक ग़रीब के
घर म बेवजह ग़ुरबत इसी तरह रोज़ा क श ल मौजूद
होती ह | िलहाज़ा अ लाह ताला ने मालदार और
अ छे खाते पीते लोग पर लािज़म ठहराया िक ग़रीब
को ईद से पहले सदक़ा-ए-िफ़ दे द | तािक वह भी
खुिशय म शरीक हो सक, वह भी अ छा खा-पी सक
और अ छा पहन सक | सदक़ा-ए-िफ़ का वजूब
(वािजब होना) :- मुताि द अहादीस से सदक़ा-ए-िफ़
सािबत है इि तयार के म े नज़र तीन अहादीस पर
ए े फ़ा कर रहा हँ | रवायत म है िक रसूले अकरम
स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही अजमईन
व बा रक वसि लम ने सदक़ा-ए-िफ़ मुसलमान पर
9. 9
वािजब क़रार िदया है वाह वह गुलाम हो या आज़ाद
मद हो या औरत छोटा हो या बड़ा | (बुखारी और
मुि लम)
हज़रत अ दु लाह िबन अ बास रज़ी अ लाह अ हमा
फरमाते ह िक रसूले अकरम स ल लाह ताला अलैिह
वािलही व औलािदही व बा रक व सि लम ने रमज़ान
के आिखर म इरशाद फरमाया िक अपने रोज का
सदक़ा िनकालो || (अबु-दाउद)
इसी तरह हदीस म है िक रसूले अकरम स ल लाह
ताला अलैिह व आिलही व औलािदही वबा रक
वसि लम ने म का मुकरमा क गिलय म एक मुनादी
को एलान करने के िलए भेजा िक सदक़ा-ए-िफ़ हर
मुसलमान पर वािजब है वाह वह मद हो या औरत,
आज़ाद हो या गुलाम, छोटा हो या बड़ा || (ितरिमज़ी)
10. 10
सदक़ा-ए-िफ़ िकस पर वािजब है ?
इमाम आज़म अबु हनीफ़ा क राए के मुतािबक़ जो
मुसलमान इतना मालदार हो िक ज़ रीयात से ज़ाएद
उसके पास उतनी क़ मत का माल और असबाब मौजूद
हो िजतनी क़ मत पर ज़कात वािजब होती है तो उस पर
ईद-उल-िफ़ के िदन सदक़ा-ए-िफ़ वािजब होगा |
चाहे वह माल और असबाब ितजारत के िलए हो या ना
हो चाहे उस पर साल गुज़रे या नह | गज़ यह िक
सदक़ा-ए-िफ़ के वजूब (वािजब होने) के िलए ज़कात
के फ़ज़ होने क तमाम शराएत का पाया जाना ज़ री
नह है | दीगर ओलमा के नज़दीक सदक़ा-ए-िफ़ के
वजूब के िलए िनसाबे ज़कात का मािलक होना भी शत
नह यानी िजसके पास एक िदन और एक रात से ज़ाएद
क खुराक अपने और ज़ेरे कफालत लोग के िलए हो
तो अपनी तरफ से और अपने अहलो अयाल क तरफ
से सदक़ा-ए-िफ़ अदा कर ||
11. 11
सदक़ा-ए-िफ़ के वािजब होने का व त
ईद-उल-िफ़ के िदन सुबह होते यह सदक़ा वािजब हो
जाता है | िलहाज़ा जो श स सुबह होने से पहले ही
इ तेक़ाल कर गया तो उस पर सदक़ा-ए-िफ़ वािजब
नह हआ और जो ब चा सुबह से पहले पैदा हआ तो
उसक तरफ से सदक़ा-ए-िफ अदा िकया जाएगा ||
12. 12
सदक़ा-ए-िफ़ क अदाएगी का व त
सदक़ा-ए-िफ़ क अदाएगी का अ ल व त ईद-उल-
िफ़ के िदन नमाज़े ईद से पहले है अलब ा रमज़ान के
आिख़र म िकसी भी व त अदा िकया जा सकता है |
रवायत म है िक रसूले अकरम स ल लाह ताला
अलैिह व आिलिह वऔलािदही व बा रक व सि लम
ने ह म िदया िक सदक़ा-ए-िफ़ नमाज़ के िलए जाने से
पहले अदा कर िदया जाए || (बुखारी और मुि लम)
हज़रत नाफे से रवायत है िक हज़रत अ दु लाह िबन
उमर रज़ी अ लाह अ हमा घर के छोटे बड़े तमाम
अफराद क तरफ से सदक़ा-ए-िफ़ देते थे | ह ा के मेरे
बेट क तरफ से भी देते थे और ईद-उल-िफ़ से एक
या दो िदन पहले ही अदा कर देते थे || (बुखारी)
नमाज़े ईद-उल-िफ़ क अदाएगी तक सदक़ा-ए-िफ़
अदा ना करने क सूरत म नमाज़े ईद के बाद भी क़ज़ा
13. 13
के तौर पर दे सकते ह लेिकन इतनी ताखीर (लेट) करना
िबलकुल मुनािसब नह है | य िक इससे सदक़ा-ए-
िफ़ का मक़सूद और मतलूब दोन ही फौत हो जाता
है| हज़रत अ दु लाह िबन अ बास रज़ी अ लाह
अ हमा क हदीस के अलफ़ाज़ ह िक िजसने उसे नमाज़े
ईद से पहले अदा कर िदया तो वह िसफ सदक़ात म से
एक सदक़ा ही है || (अबु-दाउद)
िलहाज़ा सदक़ा-ए-िफ़ नमाज़े ईद से
क़ ल ही अदा कर ||
सदक़ा-ए-िफ़ क िमक़दार
खजूर और िकशिमश को सदक़ा-ए-िफ़ म देने क
सूरत म ओलमा-ए-उ मत का इ ेफ़ाक़ है िक उसमे एक
साए (नबी-ए-अकरम सला लाह अलैिह वािलही
वऔलािदही व बा रक व सि लम के ज़माने का एक
पैमाना) सदक़ा-ए-िफ़ अदा करना है |
14. 14
अलब ा गेहं को सदक़ा-ए-िफ़ म देने क सूरत म
उसक िमक़दार के मुताि लक़ ओलमा-ए-उ मत म
ज़माना-ए-क़दीम से इि तलाफ चला आ रहा है |
अ सर ओलमा क राए है िक गेहं म आधा साअ
सदक़ा-ए-िफ़ म अदा िकया जाए |
िह दु तान और पािक तान के ओलमा भी मंदाजा ज़ेल
अहादीस क रौशनी म फरमाते ह िक सदक़ा-ए-िफ़ म
गेहं आधा साअ है यही राए अ ाफ़ क है ||
15. 15
सदक़ा-ए-िफ़ म आधा साअ (एक
तरह का वज़न है) गेहं क
े दलाएल
हज़रत अबु-सईद खुदरी फरमाते ह िक हम जौ या खजूर
या िकशिमश से एक साअ सदक़ा-ए-िफ़ िदया करते थे
| मुि लम क सबसे यादा मशहर और मा फ शरह
िलखने वाले, रयाज़-उस- वािलहीन के मुसि नफ़
इमाम नववी मुि लम क शरह म तहरीक करते ह िक
इसी हदीस क बुिनयाद पर अ ाफ और दीगर फोक़हा
ने गेहं से आधे साअ का फैसला या है | नबी-ए-
अकरम स ल लाह ताला अलैिह व आिलिह व
औलािदही व बा रक व सि लम ने इरशाद फरमाया :-
गेहं के एक साअ से दो आदिमय का सदक़ा-ए-िफ़ म
अदा करो | खजूर और जौ के एक साअ से एक आदमी
का सदक़ा-ए-िफ़ अदा करो ||
(दारे कुतना, मसनदे अहमद)
16. 16
रवायत म नबी-ए-अकरम स ल लाह ताला अलैिह व
आिलिह व औलािदही व बा रक व सि लम ने सदक़ा-
ए-िफ़ म एक साअ खजूर या एक साअ जौ ज़ री
क़रार दी | सहाबा-ए-कराम ने गेहं के आधे साअ को
उसके बराबर क़रार िदया.............(बुख़ारी और मुि लम)
एक रवायत म है िक सदक़ा-ए-िफ़ हर छोटे बड़े और
आज़ाद गुलाम पर गेहं का आधा साअ और खजूर और
जौ का एक साअ ज़ री है.......(अ जा अ दुल र ज़ाक़)
हज़रते अ मा रज़ी अ लाह अ हा सदक़ा-ए-िफ़ म
गेहं का आधा साअ और खुजूर और जौ का एक साअ
अदा करती थ |............................(अ जे इ ने शैबा)
ग़ज़ यह िक अ सर ओलमा के क़ौल के मुतािबक़ जौ
या खजूर या िकशिमश का एक साअ (तक़रीबन साढ़े
तीन िकलो) या गेहं का िन फ़ साअ (तक़रीबन पौने दो
िकलो) या उसक क़ मत सदक़ा-ए-िफ़ म अदा करनी
17. 17
चािहए, ग़ज़ यह िक हर श स अपनी हैिसयत के
मुतािबक़ अदा कर दे |
18. 18
या ग ला और अनाज क
े बदले क़ मत
दी जा सकती है ?
ओलमा-ए-अ ाफ़ ने तहरीर िकया है िक ग ला और
अनाज क क़ मत भी सदक़ा-ए-िफ़ म दी जा सकती है
| ज़माना क ज़ रत को देखते हए अब तक़रीबन तमाम
ही मकाितबे िफ़ का इ ेफ़ाक़ है िक अ े हािज़र म
ग़ ला और अनाज के बदले क़ मत भी दी जा सकती है
| सदक़ा-ए-िफ़ म गेहं क क़ मत देने वाले हज़रात
तक़रीबन पौने दो िकलो गेहं क क़ मत बाज़ार के भाव
के एतेबार से अदा कर और जो मालदार हज़रात खजूर
या िकशिमश से सदक़ा-ए-िफ़ अदा करना चाह तो वह
एक साअ यानी तक़रीबन साढ़े तीन िकलो क क़ मत
अदा कर उसम ग़रीब का फ़ाएदा है |
19. 19
सदक़ा-ए-िफ़ के मुसतिहक़ कौन ह ?
सदक़ा-ए-िफ़ ग़रीबो फ़क़ र मसाक न को िदया जाए
जैसा िक हज़रत अ दु लाह िबन अ बास रज़ी अ लाह
अ हमा क हदीस म गुज़रा )
ﻠﻤﺴﺎﮐﲔ ﻃﻌﻤﺔ
(
सदक़ा-ए-िफ़ से मुताअि लक़ चंद मसाएल :- एक
शहर से दूसरे शहर म सदक़ा-ए-िफ़ भेजना मक ह है |
(यानी जहाँ आप रह रहे ह मसलन रयाज़ म तो वही
सदक़ा-ए-िफ़ अदा कर)
हाँ अगर दूसरे शहर या दूसरे मु क म ग़रीब र ता दार
रहते ह या वहां के लोग यादा मुसतिहक़ ह तो उनको
भेज िदया तो मक ह नह है |
एक आदमी का सदक़ा-ए-िफ़ कई फ़क़ र को और
कई आदिमय का सदक़ा-ए-िफ़ एक फ़क़ र को िदया
जा सकता है | िजस श स ने िकसी वजह से रमज़ान-
20. 20
उल-मुबारक के रोज़े नह रखे उसे भी सदक़ा-ए-िफ़
अदा करनी चािहए | आज कल जो नौकर चाकर उजरत
पर काम करते ह उनक तरफ से सदक़ा-ए-िफ़ अदा
करना मािलक पर वािजब नह है | वज़ाहत :- बुख़ारी
और मुि लम म हदीस है िक :- नबी-ए-अकरम
स ल लाह ताला अलैिह व आिलिह व औलािदही व
बा रक व सि लम ने फ़रमाया िक सदक़ा-ए-िफ़ म
एक साअ जौ या एक साअ खजूर या एक साअ
िकशिमश या एक साअ पनीर या एक साअ खाने क
अिशया (चीज़ ) से िदया जाए और खाने क अिशया
(चीज़ ) से मुराद जौ या खजूर या पनीर या िकशिमश है
जैसा िक इस हदीस के रावी सहाबी-ए-रसूल हज़रत
अबु-सईद खुदरी रज़ी अ लाह अ ह ने हदीस के
आिखर म वज़ाहत क है | लेिकन उसम िकसी भी
जगह गेहं का तज़िकरा नह है ग़ज़ यह िक नबी-ए-
अकरम स ल लाह ताला अलैिह व आिलिह व
21. 21
औलािदही व बा रक व सि लम के अक़वाल म िकसी
भी जगह भी मज़कूर नह है िक गेहं से एक साअ िदया
जाए हाँ हदीस क हर मशहर और मा फ़ िकताब ह ा
के बुख़ारी और मुि लम म मौजूद है िक सदक़ा-ए-िफ़
म गेहं देने क सूरत म सहाबा-ए-कराम आधा साअ
(यानी तक़रीबन पौने दो िकलो ाम) गेहं िदया करते थे
जैसा िक मंदजा बाला अहादीस म मज़कू र है |
22. 22
सदक़ा-ए-िफ़ से मुताि लक़ चंद
ज़ री मालूमात
सदक़ा-ए-िफ़ के बारे म नबी-ए-करीम स ल लाह
ताला अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक व
सि लम का इशादे गरामी है :-
"
ﺷﻌﲑ ﺻﺎعاوﲤﺮ ﺻﺎعاﻟﻔﻄﺮﺻﺪﻗﺔ
وﺣﺮوﮐﺒﲑوﺻﻐﲑﰻ ﺣﻨﻄﺔ اوﻣﺪان
ﻋﺒﺪ
"
(“खुजा अल-दार क़ुतनी व इ ने जोज़ी िफल-तहक़ क़”
“अन-अ दु लाह िबन उमर”)
23. 23
हदीस पाक का मतलब यह है िक इ तेताअत रखने
वाले अफराद को हसबे ज़ेल चार अजनास म से
सदक़ा-ए-िफ़ क अदाएगी उ ह िमक़दार करनी
चािहए||
िजनक सराहत ख़ुसूसी तौर पर हदीस म िमलती है और
वह यह है :-
(1) खजूर :- एक साअ (4 िकलो 90 ाम)
(2) जौ :- एक साअ (4 िकलो 90 ाम)
(3) िकशिमश (मुन का) :- एक साअ (2 िकलो
45 ाम)
(4) गेहं (आंटा) :- िन फ़ साअ (2 िकलो 45
ाम)
(5) बाज़ जगह पनीर के बारे म भी एक साअ क
िमक़दार के साथ िनकालने का एि तयार
िमलता है | दा ल इ ता और इ लामी एदार
क जािनब से लैटर-पैड जारी करने वाले
24. 24
ओलमा-ए-कराम और अइ मा-ए-मसािजद
क बारगाह म गुज़ा रश है िक : सदक़ा-ए-
िफ़ का एलान करते व त गेहं के अलावा
दीगर अजनास (चीज़) जैसे : खजूर,
िकशिमश, मुन का और जौ को भी साफ़
ल ज़ म बयान फरमा िदया कर |
आप हज़रात अपने एलान नाम म िजस तरह गेहं या
आंटा क क़ मत के एतेबार से सदक़ा-ए-िफ़ क रक़म
दज करते ह | इसी तरह बिक़या चीज़ के मौजूदा वज़न
और माकट रेट भी दज फरमा द तािक हर श स अपने
अपने माली के हालत के पेशे नज़र सदक़ा-ए-िफ़
िनकाल चुनानचः अ लामा गुलाम रसूल सईदी
रहमतु लाह अलैिह नेअमतुल बारी शरह सही बुख़ारी
िज द 3 म िलखते ह :- िजस तरह क़ुबानी के जानवर
म तनूअ है और उनक कई अक़साम ह ||
25. 25
इसी तरह सदक़ा-ए-िफ़ म भी तनू है और उसक कई
अक़साम ह और जो लोग िजस हैिसयत के मािलक ह,
वह इसी हैिसयत से सदक़ा-ए-िफ़ अदा कर | मसलन
जो करोड़पित लोग ह ||
वह चार िकलो पनीर के िहसाब से सदक़ा-ए-िफ़ अदा
कर | जो लोग लखपित ह वह चार िकलो िकशिमश के
िहसाब से सदक़ा-ए-िफ़ अदा कर और जो हज़ार
िपय क आमदनी वाले ह वह दो िकलो गंदुम (गह)
के िहसाब से सदक़ा-ए-िफ़ अदा कर ||
26. 26
सदक़ा-ए-िफ़ क अदाएगी गेहं से
ही य ?
अ लामा गुलाम रसूल सईदी रहमतु लाह िलखते ह :-
िजस तरह क़ुबानी के जानवर म तनू है और उनक कई
अक़साम ह |
इसी तरह सदक़ा-ए-िफ़ म भी तनू है और उसक कई
अक़साम ह और जो लोग िजस हैिसयत के मािलक ह
वह उसी हैिसयत से सदक़ा-ए-िफ़ अदा कर | मसलन
जो करोड़पित लोग ह वह चार िकलो पनीर के िहसाब
से सदक़ा-ए-िफ़ अदा कर |
जो लोग लखपित ह वह चार िकलो िकशिमश के
िहसाब से सदक़ा-ए-िफ़ अदा कर और जो हज़ार
िपय क आमदनी वाले ह, वह 4 िकलो 90 ाम
खजूर के िहसाब से सदक़ा-ए-िफ़ अदा कर और जो
27. 27
सैकड़ क आमदनी वाले ह वह 2 िकलो गंदुम (गेहं)
के िहसाब से सदक़ा-ए-िफ़ अदा कर ||
लेिकन हम देखते ह िक आज कल करोड़पित ह या
सकड़ो क आमदनी वाले ह सब दो िकलो गंदुम के
िहसाब से सदक़ा-ए-िफ़ अदा करते ह और तनू पर
अमल नह करते | जबिक क़ुबानी के जानवर म लोग
तनू पर अमल करते ह और करोड़-पित लोग कई कई
लाख के बैल खरीद कर और मुताअि द क़ मती और
महंगे दु बे और बकरे खरीद कर उनक क़ुबानी करते
ह||
28. 28
इसक या वजह है ?
हम अपना जाएज़ा ल कह इसक यह वजह तो नह है
िक क़ुबानी के महंगे और क़ मती जानवर खरीद कर
उ ह अपनी शानो शौक़त और इमारत िदखाने का मौक़ा
िमलता है | हम बड़े फ़ से वह क़ मती जानवर अपने
अज़ीज़ को िदखाते ह और नुमाइश करते ह | और
सदक़ा-ए-िफ़ िकसी ग़रीब आदमी के हाथ पर रख कर
िदया जाता है उसमे िदखाने और सुनाने और अपनी
इमारत जताने के मौक़े नह ह | इस िलए करोड़ पित से
लेकर आम आदमी तक सब दो िकलो गंदुम के िहसाब
से सदक़ा-ए-िफ़ करते ह ||
29. 29
ग़ौर कर हम या कर रहे ह ?
कह ऐसा नह हो िक क़यामत के िदन यह सारी
क़ुरबािनयां रयाकारी क़रार देकर हमारे मुंह पर मार दी
जाएँ | रसूल लाह स ल लाह ताला अलैिह व
आिलिह व औलािदही व बा रक व सि लम ने क़ुबानी
के जानवर क मुताअि द िक़ म इसी िलए बयान क
ह िक हर तबक़े के लोग अपनी हैिसयत के िलहाज़ से
क़ुबानी के जानवर का तअ युन कर | इसी तरह आपने
सदक़ा-ए-िफ़ क मुताअि द अक़साम भी इसी िलए
बयान क ह िक हर तबक़ा के लोग अपनी हैिसयत के
िलहाज़ से सदक़ा-ए-िफ़ अदा कर | सो िजस तरह हम
अपनी हैिसयत के िलहाज़ से क़ुरबानी के जानवर का
तअ युन करते ह ||
इसी तरह हम अपनी हैिसयत के िलहाज़ से सदक़ा-ए-
िफ़ क िक़ म का तअ युन भी करना चािहए और
30. 30
तमाम तबक़ात के लोग को िसफ दो िकलो गंदुम के
िहसाब से सदक़ा-ए-िफ़ पर ही नह इ े फ़ा करनी
चािहए ||
बहवाला :- नेमत-उल-बारी शरह सही बुख़ारी, िज द नंबर 3
31. 31
एक इ लाह
सदक़ा-ए-िफ़ ज़ रत मंद तक पहँचाएँ ग़रीब, यतीम,
िम क न, वग़ैरह अगर हर कोई खुद बांटने लगे तो
िकसी को यादा और िकसी िकसी को कम और िकसी
िकसी को िबलकुल िमलने क उ मीद नह है |
इसिलए अब इलाक़े के जवादारे या मसािजद या तंज़ीम
ह वहीँ एक जगह जमा कर और िफर उस एदारे या
िज़ मेदारान मसािजद या मबराने तंज़ीम के साथ िमल
कर उसके मु तःक़ न क ली ट तै यार कर और चाँद
रात से पहले पहले उनके घर तक पहंचाएं तो कोई भी
मह म नह ह गे |
और इ ेहाद इ ेफाक़ क िमसाल भी क़ाएम हो जाएँगी
और यह काम ईमानदार लोग का है |
32. 32
नोट :- मदा रसे इ लािमया का भी भरपूर ख़याल रख
उसी म खैर है | बाक़ आप अपने अपने इलाक़े के
माहौल के िहसाब से कर ||
यह तो सलाह थी........................अ लाह करीम है ||
तािलबे दुआ........................सूफ शमशाद आलम ||