3. 3
प रचय
िकताब का नाम :------------------------------------------------------चाँद
लेखक का नाम : --काज़ी-उल-क़ु ज़ात मसीहे िम लत मुह मद अनवर आलम
वािलद का नाम : --------------------------मुह मद अ बास आलम (मरहम)
खािलफत ------------------------------------------------सलािसले अरबा
मु कमल िडज़ाइन --सूफ शमशाद आलम --(जानशीन हज़ूर मसीहे िम लत)
रहाइश :---------------------------------मीरा रोड मुंबई ठाणे महारा भारत
िहंदी टाइिपंग:-------------------------------------अली अकबर सु तानपुरी
काशक:--------दा ल उलूम फैज़ाने मु तफा एजूके ल ट, मीरा रोड मुंबई
तबाअत: फैज़ाने मु तफा अके डमी,मकज़ुल मराक ज़ बाबुल इ म जनरल लाइ ेरी
सहायक :------------------------------ मुह मद मुिनम (किटहार िबहार)
4. 4
मुक़ मा
अ ह दु-िल लाही रि बल आलमीन
व सलातु व सलामु अला मुह मिदन
सै यदुल अंिबया वलमुरसलीन व
आिलिह ैि यबीन वतािहरीन
वऔलािदही अजमईन व बा रक
वसि लम ।।
दौरे हािज़र के बढ़ते हए िफतने के साथ साथ
बेदीनी भी आम होते जा रही है । अवाम तो
अवाम नाम िनहाद ओलमा-ए-कराम दीन
और शरीयत से अलग अपनी दुिनया बना रहे
ह । जो चाहे बोलते ह जो जी म आए वह
5. 5
िलखते ह । ना अ लाह का ख़ौफ ना शरमे
नबी ना राय ना मशवरा बस जब चाहा जो
चाहा िकया | हद तो यह है िक शोशल
मीिडया म चांद भी िनकाल देते ह जनाब को
यह भी एहसास नही िकतने लोग का रोज़ा म
बबाद कर रहा हं | ख़ुद के आमाल का तो पता
नह दूसर का रोज़ा भी खा गए सबसे पहले
मसाइले शरीया को समझो िफर ग़ौरो िफ
करो िफर भी एहितयात से काम लो अपने बड़
से मशवरा करो । िफर सभी क राय से जो
नतीजा िनकले उसे अवाम के सामने लाव
उसी हालत के पेशे नज़र म कुछ मसाइल को
िकताब से अख़ज़ िकया | मौलाना मुनीम-
उल-क़ादरी साहब के सवालात के जवाबात
6. 6
को एक िकताबी श ल िदया ।। और इस
िकताब का नाम.......चांद.......रखा अ लाह
क़ािवश (मेहनत) को क़ुबूल फरमाए आमीन
िबजाहे सै यदुल मुसलीन ।।
7. 7
फक़त मोह मद अनवर अशरफ़
क़ादरी (हज़ूर मसीहे िम लत)
एक नज़र
इस िकताब म चांद के मुताि लक़ मौलाना
मुनीम-उल-क़ादरी साहब राघौल िज़ला
किटहार िबहार के सवालात ह |
और अल-इ लाम इंटरनेशनल दा ल क़ुज़ा
के क़ाज़ी-उल-क़ुज़ात मोह मद अनवर आलम
(हज़ूर मसीहे िम लत) साहब के जवाबात ह
मुझे उ मीद है िक इस िकताब के पढ़ने से
उ मते मुसिलमा को चांद देखने और
इ लािमक योहार मनाने म आसािनयां हो
8. 8
जाएंगी । बशत इस पर अमल हो य िक लोग
अमल से कोस दूर नज़र आते ह ।
अ लाह ताला हम सबको अमल करने
क तौफ क़ अता फरमाए ।।
आमीन िबजाहे सै यदुल मुसलीन व
आिलिह ैि यबीन वतािहरीन वअ हािबहील
मुकरमीन ।।
मोह मद सूफ़ शमशाद आलम ||
9. 9
चांद देखने का बयान
सवाल न० 1
चांद देखने के िलए ह मे शरई या
है?
जवाब :- पांच महीन का चांद देखना
वािजबे कफाया है । ब ती म एक दो
आदिमय ने देख िलया तो सब बरी-ए-िज़ मा
हो गए । और िकसी ने भी ना देखा तो सब
गुनाहगार ह गे ।।
वह पांच महीने यह है :-
(1) शाबान
10. 10
(2) रमज़ान
(3) श वाल
(4) िज़ल-क़ादा
(5) िज़ल-िह जा
शाबान का इसिलए अगर रमज़ान का चांद
देखते व त अ या ग़ुबार हो तो 30 िदन पूरे
करके रमज़ान शु कर द । रमज़ान का रोज़ा
रखने के िलए श वाल का रोज़ा ख़ म करने के
िलए । िज़ल-क़ादा का िज़ल-िह जा के िलए
(िक वह हज का ख़ास महीना है) और िज़ल-
िह जा का बक़रा ईद के िलए ।।
11. 11
सवाल न० 2
रमज़ान का रोज़ा कब से रखना शु
कर ?
जवाब :- शाबान क उनतीस (29) को शाम
के व त चाँद देख | िदखाई दे तो कल से रोज़ा
रख | वरना शाबान के तीस (30) िदन पूरे
करके रमज़ान शु कर | और रोज़ा रख |
हदीस शरीफ म है चाँद देख कर रोज़ा रखना
शु करो और चाँद देख कर इ तार करो
(यानी रोज़े पूरे करके ईद-उल-िफ़ मनाओ)
और अगर अ हो तो शाबान क िगनती तीस
(30) पूरी कर लो ||
12. 12
सवाल न० 3
चाँद क
े होने ना होने म इ मे है यत
का एतेबार है या नह ?
जवाब :- जो श स इ मे है यत जानता है
उसका अपना इ मे है यत (नजूम वगैरा) के
ज़ रया से कह देना क आज चाँद हआ या
नह यह कब होगा | यह कोई चीज़ नह |
अगरच: वह आिदल, दीनदार, क़ािबले
एतेमाद हो अगरच: कई श स ऐसा कहता हो
िक शु म चंद देखने या गवाही से सबूत का
एतेबार हो िकसी और चीज़ पर नह है ||
(आलमगीरी वग़ैरह)
13. 13
मसलन वह उनतीस (29) शाबान को कह
आज ज़ र इ यत होगी कल पहली रमज़ान
है | शाम को अ हो गया इ यत (चेहरा) क
खबर मोअतेबर ना आई हम हरिगज़ रमज़ान
क़रार ना दगे | बि क वही योमु शक ठहरेगा |
या वह कह आज इ यत (चेहरा) नह हो
सकती कल यक़ नन 30 शाबान है | िफर
आज ही इ यत (चेहरा) पर मोअतेबर
गवाही गुज़री | बात वही िक हम तो ह मे
शराअ पर अमल फ़ज़ है ||
14. 14
सवाल न० 4
रमज़ान का सबूत शरई तरीक़ा या
है ?
जवाब :- अ ो गुबार म रमज़ान का सबूत
एक मुलसमान आिक़ल, बािलग़, दीनदार,
आिदल या म तूर क गवाही से हो जाता है |
वाह मद हो या औरत और अ म रमज़ान
के चाँद क गवाही म यह कहने क ज़ रत
नह िक म गवाही देता हँ (जबिक हर गवाही
म यह कहना ज़ री है) इतना कह देना काफ
है | देख ली मने अपनी आँख से इस रमज़ान
15. 15
का चाँद आज या कल फलां िदन देखा है ||
(मु तार आलमगीरी)
16. 16
सवाल न० 5
आिदल और म तूर क
े या माना है
?
जवाब :- आिदल होने के माना यह ह िक
कम से कम मु क़ हो यानी गुनाहे कबीरा से
बचता हो और सगीरा पर असरार ना करता हो
| और ऐसा काम ना करता हो जो मुर वत के
िखलाफ हो | मसलन बाज़ार म खाना |
सरे आम पेशाब करना या बाज़ार और आम
जगह पर िसफ बिनयान और तहब द पहन
कर िफरना || (दुर मु तार, रदाउल मु तार
वगैरह)
17. 17
और म तूर वह मुसलमान है िजसका ज़ािहर
हाल शु के मुतािबक़ है मगर बाितन का हाल
मालूम नह ऐसे मुसलमान क गवाही
रमज़ानुल मुबारक के अलावह िकसी और
जगह मक़बूल नह || (दुर मु तार)
18. 18
सवाल न० 6
फ़ािसक़ क गवाही मक़बूल है या
नह ?
जवाब :- फ़ािसक़ अगरच: रमज़ानुल
मुबारक के चाँद क गवाही दे उसक गवाही
क़ािबले क़ुबूल नह |
रहाया िक उसक
े िज़ मा गवाही
लािज़म है या नह ?
अगर उ मीद है िक उसक गवाही क़ाज़ी
क़ुबूल कर लेगा | तो उसे लािज़म है िक
गवाही दे | (दुर मु तार) िक एक एक करके
19. 19
अगर गवाह क तादाद ज मे ग़फ र (कसीर
मजमा) को पहँच जाए तो यह भी सबूत
रमज़ान का ज़ रया है |
20. 20
सवाल न० 7
चाँद देख कर गवाही देना लािज़म
हा या नह ?
जवाब :- अगर उसक गवाही पर रमज़ानुल
मुबारक का सबूत मवि क़फ़ है िक (बग़ैर)
उसक गवाही के काम ना चलेगा तो िजस
आिदल श स ने रमज़ान का चाँद देखा | उस
पर वािजब है िक उसी रात म शहादत अदा
करे | यहाँ तक िक पदा नशीन खातून ने चाँद
देखा और उस पर गवाही देने के िलए उसी
रात जाना वािजब है और उसके िलए शौहर से
इजाज़त लेने क भी ज़ रत नह | (दुर मु तार)
21. 21
सवाल न० 8
गवाही देने वाले से कु रेद कु रेद कर
सवाल करना क
ै सा है ?
जवाब :- िजसके पास रमज़ान के चाँद क
शहादत गुज़री उसे यह ज़ री नह िक गवाह
से यह द रया त करे तुमने कहाँ से देखा और
िकस तरफ था और िकतने ऊ
ं चे पर था वगैरह
वगैरह ?
(आलमगीरी वगैरह)
मगर जबिक उसके बयान म शहादत पैदा हो
तो सवालात कर | खुसूसन ईद म कई लोग
22. 22
वाह म वाह उसका चाँद देख लेते ह |
(बहारे शरीयत)
23. 23
सवाल न० 9
मतला (आसमान) साफ़ हो तो
गवाही का िमयार या हो ?
जवाब :- अगर मतला साफ़ हो तो जब तक
बहत से लोग शाहदत (गवाही) ना द चाँद का
सबूत नह हो सकता |
रहा यह िक उसके िलए िकतने लोग चािहए ?
यह क़ाज़ी के मुताि लक़ है िजतने गवाह से
उसे गुमान ग़ािलब हो जाए ह म दे िदया
जाएगा | (दुर मु तार)
24. 24
सवाल न० 10
मतला (आसमान) साफ़ होने क
हालत म एक गवाही कब मोअतेबर
है ?
जवाब :- ऐसी हालत म जबिक मतला
(आसमान) साफ़ था एक श स बी न शहर
या बुलंद जगह से चाँद देखना बयान करता है
| और उसका ज़ािहर हाल मुतािबक़े शरा है तो
उसका क़ौल भी रमज़ान के चाँद म क़ुबूल कर
िलया जाएगा | (मु तार वगैरह)
25. 25
सवाल न० 11
गाँव म चाँद क गवाही िकसक
े -
ब दी जाए ?
जवाब :- अगर िकसी ने गाँव म चाँद देखा
और वहां कोई ऐसा नह िजसके पास गवाही
दे तो गाँव वाल को जमा करके शहादत अदा
कर | अब अगर यह आिदल है यानी मु क़
दीनदार और हक़ पर त है गुनाह से दूर
भागता है तो उन लोग पर रोज़ा रखना
लािज़म है ||
26. 26
सवाल न० 12
अगर लोग िकसी जगह आकर चाँद
होने क खबर द तो मोअतेबर है या
नह ?
जवाब :- अगर कह से कुछ लोग आकर
यह कह िक फलां जगह चाँद हो गया है |
बि क यह कह िक हम गवाही देते ह िक फलां
फलां ने चाँद देखा है बि क यह शहादत द िक
फलां जगह के क़ाज़ी ने रोज़ा रखने या रोज़ा
छोड़ देने और ईद मनाने के िलए लोग से यह
कहा यह सब तरीक़े काफ नह है ||
27. 27
(दुर मु तार)
साफ़ बात यह है िक अगर खुद अपना चाँद
देखना बयान कर तो गवाही मोअतेबर है वरना
नह ||
28. 28
सवाल न० 13
तनहा बादशाहे इ लाम या क़ाज़ी ने
चाँद देखा तो या ह म है ?
जवाब :- तनहा बादशाहे इ लाम या क़ाज़ी
या मु ती-ए-दीन ने चाँद देखा तो उसे
इि तयार है वाह खुद ही रोज़ा रखने का
ह म दे या िकसी और को शहादत लेने के
िलए मुक़रर करे | और उसके पास शहादत
अदा करे लेिकन अगर तनहा उनम से िकसी ने
ईद का चाँद देखा तो उ ह ईद करना या ईद का
ह म देना नह || (आलमगीरी, दुर मु तार)
29. 29
सवाल न० 14
गाँव म दो श स ने ईद का चाँद
देखा तो उनके िलए या ह म है ?
जवाब :- गाँव म दो श स ने ईद का चाँद
देखा और मतला (आसमान) अ आलूद
यानी अ और गुबार के बाइस साफ़ ना था |
और वहां कोई ऐसा नह िजसके पास यह
शहादत द तो गाँव वाल को जमा करके उनसे
यह कह िक हम गवाही देते ह िक हमने ईद का
चाँद देखा है यह आिदल हो तो लोग ईद कर
ल वरना नह || (आलमगीरी)
30. 30
मतला (आसमान) अगर
साफ़ ना हो ?
सवाल न० 15
रमज़ान के अलावा और महीन म
िकतने गवाह दरकार ह ?
जवाब :- मतला (आसमान) अगर साफ़ ना
हो यानी अ और गुबार अलूदा हो तो
अलावा रमज़ान के श वाल और िज़ल-िह जा
बि क तमाम महीन के िलए दो मद या एक
मद और दो औरत गवाही द |
31. 31
और सब आिदल ह और आज़ाद ह और
उनम िकसी पर तोहमत, ज़ेना क हद जारी ना
क गई हो अगरच: तो यह कर चुका हो तो
उनक गवाही इ यते हेलाल (यानी चाँद
देखने) के हक़ म क़ुबूल कर ली जायेगी |
और यह भी शत है िक गवाह गवाही देते व त
यह ल ज़ कह “म गवाही देता हँ या देती हँ” ||
(कुतुब आमा)
32. 32
सवाल न० 16
िदन म चाँद िदखाई िदया तो वह
िकस रात का माना जाएगा?
जवाब :- िदन म हेलाल (चाँद) िदखाई
िदया, ज़वाल से पहले या ज़वाल के बाद
बहेर-हाल वह आइंदा रात का क़रार िदया
जाएगा |
यानी जो रात आएगी उससे महीना शु होगा
तो अगर तीसव रमज़ान के िदन म चाँद देखा
गया तो यह िदन रमज़ान ही का है श वाल का
नह और रोज़ा पूरा करना फ़ज़ है |
33. 33
और अगर शाबान क तीसव तारीख के िदन
म देखा तो िदन शाबान का है रमज़ान का नह
| िलहाज़ा आज का रोज़ा फ़ज़ नह है ||
(दुर मु तार)
34. 34
अगर उनतीस शाबान को
चाँद नज़र ना आए तो या
कर ?
सवाल न० 17
अगर उनतीस शाबान को चाँद नज़र
ना आए तो तीसव तारीख को रोज़ा
रखना जाएज़ है या नह ?
जवाब :- अगर 29 शाबान को मतला
(आसमान) साफ़ हो और चाँद नज़र ना आए
35. 35
तो ना खवास रोज़ा रख ना अवाम || (फतावा
रज़िवया)
और अगर मतला (आसमान) पर अ और
गुबार हो तो मु ती साहब को चािहए िक
अवाम को ज़ह-ए-कुबरा यानी िन फुि नहार
शरई तक इंतज़ार का ह म द | िक उस व त
तक ना कुछ खाएं ना िपएं ना रोज़े क िनयत
कर | िबला िनयत रोज़ा, िम ले रोज़ा रह इस
बीच म अगर सबूत शरई से इ यत सािबत
हो जाए तो सब रोज़े क िनयत कर ल | रोज़ा-
ए-रमज़ान हो जाएगा िक अदा-ए-रमज़ान के
िलए िनयत का व त ज़ह-ए-कुबरा तक है |
और अगर यह व त गुज़र जाए कह से सबूत
36. 36
ना आए तो मु ती साहब अवाम को ह म दे
िक खाएं िपएं | और मसला-ए-शरई से
वािक़िफ़यत रखने वाले के यौमु शक म इस
तरह रोज़ा रखा जाता है तू रोज़े क िनयत कर
ल || (दुर मु तार, फतावा रज़िवया वग़ैरह)
37. 37
अगर कोई िकसी ख़ास िदन
रोज़ा क
े आदी हो?
सवाल न० 18
एक श स िकसी ख़ास िदन रोज़े
रखने का आदी हो और वह िदन
यौमु शक यानी शाबान क तीसव
को पड़े तो उसके िलए या ह म है
?
जवाब :- जो श स िकसी िदन के रोज़े का
आदी हो और वह िदन इस तारीख को आन
38. 38
पड़े तो वह अपने उसी न ली रोज़े क िनयत
कर सकता है |
बि क उसे उस िदन रोज़ा रखना अफज़ल है |
मसलन एक श स है पीर या जुमेरात का रोज़ा
रखा करता है |
और तीसव उसी िदन पड़ी तो वह रोज़ा ना
छोड़ और उस मुबारक िदन के रोज़े का सवाब
हाथ से ना जाने द |
39. 39
सवाल न० 19
चाँद देखने क गवाही िजसक
क़ु बूल ना हई तो वह रोज़ा रखे या
नह ?
जवाब :- िकसी ने रमज़ान या ईद का चाँद
देखा मगर उसक गवाही िकसी वजहे शरई से
रद कर दी गई |
मसलन फािसक़ है तो उसे ह म है िक रोज़ा
रखे अगरच: अपने आप उसने ईद का चाँद
देख िलया है |
40. 40
और उस सूरत म अगर रमज़ान का चाँद था
और उसने अपने िहसाब तीस रोज़े पूरे कर
िलए मगर ईद के चाँद के व त िफर अ और
गुबार है और इ यत सािबत ना हई तो उसे
भी एक िदन और रोज़ा रखने का ह म है |
(आलमगीरी, दुर मु तार)
तािक मुसलमान के साथ मवािफक़त का
बदला उसके नामा-ए-आमाल म दज हो और
यह आम इ लामी िबरादरी से अलग थलग ना
रह पाए िक यह बड़ी मह मी क बात है |
41. 41
सवाल न० 20
फािसक़ ने चाँद देख कर रोज़ा रखा
िफर तोड़ िदया तो उसके िलए या
ह म है ?
जवाब :- उसक दो सूरत ह हर सूरत का
ह म अलािहदा है :-
(1) अगर उसने चाँद देख कर रोज़ा रखा
िफर तोड़ िदया या क़ाज़ी के यहाँ
गवाही भी दी थी लेिकन क़ाज़ी ने
उसक गवाही पर रोज़ा रखने का
अवामु नास (लोग ) को ह म नह
42. 42
िदया था िक उसने रोज़ा तोड़ िदया तो
िसफ उस रोज़े क क़ज़ा दे | क फारा
उस पर लािज़म नह |
(2) और अगर चाँद देख कर रोज़ा रखा
और क़ाज़ी ने उसक गवाही भी
क़ुबूल कर ली तो उसके बाद उसने
रोज़ा तोड़ िदया तो िफर उस पर
क फारा भी लािज़म है अगरच: यह
फ़ािसक़ हो || (दुर मु तार)
43. 43
सवाल न० 21
एक जगह चाँद का सबूत, दूसरी
जगह के िलए मोअतेबर है या नह ?
जवाब :- एक जगह चाँद हो तो िसफ वह
के िलए नह बि क तमाम जहां के िलए मगर
दूसरी जगह के िलए उसका ह म उस व त है
िक उनके नज़दीक उस िदन तारीख़ म चाँद
होना शरई सबूत से सािबत हो जाए |
44. 44
सवाल न० 22
दूसरी जगह के िलए चाँद होने क
े
िलए चाँद होने क शरई सबूत का
या तरीक़ा है ?
जवाब :- इ यते हेलाल (चाँद का चेहरा)
के सबूत के िलए शरा म सात तरीक़े ह :-
(1) खुद शहादते इ यत यानी चाँद
देखने वाल क गवाही |
(2) शहादते अली-उ शहादत यानी
गवाह ने चाँद खुद ना देखा बि क
देखने वाल ने उनके सामने गवाही
45. 45
दी और अपनी गवाही पर उ ह गवाह
िकया | उ ह ने इस गवाही क गवाही
दी यह वहाँ है िक गवाहाने अ ल,
हाज़री से माज़ूर हँ |
(3) शहादते अली-उल-क़ुज़ा यानी दूसरे
िकसी इ लामी शहर म हािकमे
इ लाम के यहाँ इ यते हेलाल पर
(चाँद के चेहरे पर) शहादत गुज़र
और उसने सबूत हेलाल (चाँद) का
ह म िदया और दो आिदल गवाह ने
जो उस गवाही के व त मौजूद थे |
उ ह ने दूसरे मक़ाम पर उस क़ाज़ी-ए-
इ लाम के ब गवाही गुज़रने और
क़ाज़ी के ह म पर गवाही दी ||
46. 46
(4) िकताब-उल-क़ाज़ी इलल-क़ाज़ी
यानी क़ाज़ी-ए-शरा िजसे सु ताने
इ लाम ने मुक़ मात का इ लामी
फैसला करने के िलए मुक़रर िकया
हो||
वह दूसरे शहर के क़ाज़ी को
गवािहयाँ गुज़रने क शरई तौर पर
इ ेला द ||
(5) इ तेफाज़ा यानी िकसी इ लामी शहर
से मुताअि द जमात आई ंऔर सब
यक ज़बान अपने इ म से खबर द िक
वहाँ फलां िदन इ यते हेलाल (चाँद
के चेहरे) क िबना पर रोज़ा हो या ईद
क गई |
47. 47
(6) अ माले मु त यानी एक महीने के
जब तीस िदन कािमल हो जाएँ तो
दूसरे माह का हेलाल (चाँद) आपका
ही सािबत हो जाए तो दूसरे माह का
हेलाल (चाँद) आप ही सािबत हो
जाएगा तीस से ज़ायेद का ना होना
यक़ नी है ||
(7) इ लामी शहर म हािकमे शरा के
ह म से उनतीस (29) क शाम को
मसलन तोप दाग़ी गई या फाएर हए
तो ख़ास उस शहर वाल या उस
शहर के इद िगद देहात वाल के
48. 48
वा ते तोप क आवाज़ सुनना भी
सबूते हेलाल (चाँद) के ज़ रय म से
एक ज़ रया है |
लेिकन (2) से (5) नंबर तक चार तरीक़
म बड़ी त सीलात है | जो िफ़ ह क बड़ी
िकताब म मज़कूरा (चचा) ह |
अल-ग़रज़ ह मु लाह और रसूल के िलए
और ह मे शरई क़ाएदा-ए-शरीया ही के
तौर पर ही सािबत हो सकता है |
उसके मुक़ािबल तमाम क़यासात,
िहसाबात और क़रीने जो िक अवाम म
मशहर ह शरअन बाितल ह और ना
क़ािबले एतेबार | (फतावा रज़िवया)
49. 49
सवाल न० 23
तार और टेलीफोन इ यते
हेलाल (चाँद का चेहरा) सािबत
हो सकती है या नह ?
जवाब :- तार या टेलीफोन से इ यत
सािबत नह हो सकती |
ना बाज़ारी अफवाह और जंत रय या
अखबार म छपा होना कोई सबूत है |
आज कल अमूमन देखा जाता है िक उनतीस
रमज़ान को बकसरत एक जगह से दूसरी जगह
50. 50
तार भेजे जाते ह | िक चाँद हआ िक नह हआ
||
अगर कह से तार आ गया िक हाँ यहाँ चाँद
हो गया है बस लो ईद आ गई | यह महज़
नाजाइज़ और हराम है |
और िबल-खुसूस तार म तो ऐसी बहत से
वजह ह जो उसके एतेबार को खोती ह | हाँ का
नह और नह का हाँ हो जाना तो मामूली बात
है |
और माना िक िबलकुल सही बात पहंचा तो
यह महेज़ एक खबर है ना क शाहदत |
(शहादत उसे कहते है जो खुद आकर कहे |)
51. 51
फोक़हां-ए-कराम ने ख़त का तो एतेबार ही ना
िकया अगरच: मकतूबे इलै या यानी िजससे
ख़त पहंचा काितब के द तख़त और तहरीर
को पहँचता हो और उस पर उसक मोहर भी
हो िक ख़त, ख़त के मुशाबह (िमलता जुलता)
होता है मोहर, मोहर के कुजा तार |
यूँ ही टेलीफोन करने वाला, सुनने वाले के पेशे
नज़र, ब , आमने सामने नह होता तो
अमूरे शरी या म इसका कुछ एतेबार नह |
अगरच: आवाज़ पहचानी जाए िक एक
आवाज़ दूसरी आवाज़ से मुशाबह (िमलती
जुलती) होती है अगर वह कोई शहादत दे
मोअतेबर ना होगी |
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अगर िकसी बात का इक़रार करे तो सुनने
वाले को उस पर गवाही देने क इजाज़त नह |
(बहारे शरीयत, फतावा रज़िवया)
हैरत यह है िक िमजाज़ी हािकम क
कचह रय म तार टेलीफोन पर गवाही
मोअतेबर नह और अमूरे शरीया म क़ुबूल कर
ली जाए ईमानी भी आिखर कोई चीज़ है |
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सवाल न० 24
लोग म चाँद के बारे म कु छ
क़ाएदे मशहर ह शरअन उनके बारे
म या ह म है ?
जवाब :- इ मे िहसाब के मािहरीन क बात
जो अवाम म फ़ै ल गई ह या तहरीर म आ
चुक ह |
इ यते हेलाल (चाँद के चेहरे) के बारे म
उनका कोई एतेबार नह | मसलन च दव का
चाँद सूरज डूबने से पहले िनकलता है | और
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पंदरव का बैठ कर यह दोन बात इ यत के
सबूत म ना मोअतेबर ह |
यह कहते ह िक हमेशा रजब क चौथी,
रमज़ान क पहली होती है | यह ग़लत है यूँ ही
रमज़ान क पहली िज़ल-िह जा क दसव
होना ज़ री नह | यह तजुबा म आया है िक
अ सर अगले रमज़ान क पांचव इस रमज़ान
क पहली होती है | लेिकन शरा म उस पर
एतेमाद नह िक यह िसफ एक तजुबा है |
ह मे शरई नह िजस पर एहकामे शरी या क
िबना हो सके | यूँ ही तजुबा है िक बराबर चार
महीन से यादा के नह होते |
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लेिकन इ यत का दारो-मदार उस पर भी नह
बहत लोग चाँद ऊ
ं चा देख कर भी ऐसी ही
इंटकल दौड़ाते ह |
बाज़ कहते ह अगर 29 का होता तो इतना ना
ठहरता यह सब भी वैसे ही अवहाम ह िजन पर
शु म इ ेफात नह |
इस िक़ म के िहसाबात को हज़ूर स ल लाह
अलैिह वा आिलही व औलािदही वा बा रक़
वसि लम एक लखते सािक़त कर िदया साफ़
इरशाद फरमात ह हम उ मी उ मत ह ना िलख
ना िहसाब कर |
दोन उँगिलयाँ तीन बार उठाकर फरमाया
महीना यूँ और यूँ और यूँ होता है तीसरी दफा
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म अंगूठा बंद कर िलया यानी उनतीस और
महीन और यूँ यूँ होता है हर बार सब उँगिलयाँ
खुली रख यानी तीस |
हम िबह दी िल लािह ताला अपने नबी उ मी
स ल लाह ताला अलैिह व आिलही व
औलािदही व बारीक़ वसि लम के उ मी
उ मत ह |
हम िकसी के िहसाबो िकताब से या काम है
! जब तक इ यत सािबत ना होगी ना िकसी
का िहसाब सुन ना तहरीर मान ना क़रीने देख
ना अंदाज़ा जान | (फतावा रज़िवया)
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सवाल न० 25
चाँद देख कर या करना चािहए
?
जवाब :- हेलाल (चाँद) देख कर उसक
तरफ इशारा ना कर िक मक ह है अगरच:
दूसरे के बताने के िलए हो ना हेलाल
(चाँद) देख कर मुंह फेर और यह जािहल
म मशहर है िक फलां चाँद, तलवार पर
देख, फलां आईने पर यह सब जेहालत
और िहमाक़त है बि क हदीस म जो दुआएं
फरमाएं वह पढ़नी काफ़ है ||
मसलन यह दुआ पढ़ :-
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ता सुर (मज़े क बात)
वाह रे चाँद यह कै सी बे वफाई है िक एक ही
मु क का रहने वाला कोई तुझे तो देख लेता है
और दूसरे लोग नह देख पाते ?
या वाक़ई तू िकसी एक के िलए है या िफर
सबके िलए ?
अगर सबके िलए है तो कोई एक तेरा एलान
य नह कर देता ?
और िहमाक़त क बात तो यह है िक एक शहर
के िलए एलान कर िदया जाता है | और ऐ
चाँद मुझे उ मीद है िक तू जब भी िदखाया
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िदखता है, या िदखेगा तो ज़ र अ सरीयत
को ना िक अि लय को |
अ ल वाले हज़रात मज़हब के िलबास का
फायेदा उठाते हए अना म गुम होकर अपने
क़ुब -जवार तक तुझे महदूद कर देता है जबिक
तू िकसी भेद-भाव के िकसी मज़हबो िम लत
क तफरीक़ के सबको व त और तारीख
बताता है |
तो कोई य कर िकसी एक छोटा सा शहर के
िलए एलान करे चाँद के भी मु तिलफ़ मताला
ज़ र ह एक मतला म िजस व त वह िदखेगा
उस व त अमूमी तौर पर िदखेगा ना िक
खुसूसी तौर पर चाँद के मु तिलफ़ मताला
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और औक़ात होने क वजह से उसक इ यत
और ग़ैर इ यत के कुछ इमकानात ह |
िजनक वजह से मने चंद सवालात क़ाज़ी-
उल-क़ुज़ात हज़ूर मसीहे िम लत क बारगाह
म रखा और उ ह ने दलाएल के साथ मुक मल
तस ली ब श जवाब इनायत िकए अ लाह
र बुल इ ज़त क बारगाह म दुआ है िक वह
हम सबक मेहनत को क़ुबूल
फरमाए...........आमीन िबजाहे सै यदुल
मुरसलीन ||
तािलबे दुआ..............मोह मद मुनीम
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