9. विर्श्यना ध्यान साधना
विर्श्यना का अभिप्राय है की जो िस्तु सचमुच जैसी हो, उसे उसी प्रकार जान लेना |
आत्म-ननरीक्षण द्िारा मन को ननमपल करते-करते ऐसा होने ही लगता है |
• विर्श्यना िारत की एक अत्यंत र्ुरातन साधना-विधध है |
• भिविर के दौरान ननम्न िीलों का र्ालन अननिायप है:-
– जीि-हत्या से विरत रहेंगे,
– चोरी से विरत रहेंगे,
– अब्रह्मचयप (मैथुन) से विरत रहेंगे,
– असत्य-िाषण से विरत रहेंगे,
– निे के सेिन से विरत रहेंगे,
– श्ांगार-प्रसाधन एिं मनोरंजन से विरत रहेंगे,
– उाँची आरामदेह विलासी िय्या के प्रयोग से विरत रहेंगे,
– पुराने साधक - दोर्हर-बाद (विकाल) िोजन से विरत रहेंगे | िे सायाँ 5 बजे के िल नींबू की
भिकं जी लेंगे, जबकक नए साधक दूध/चाय, फल ले सकें गे | रोग आदद की विभिष्ठ अिस्था मे
र्ुराने साधको को फलाहार की छू ट आचायप की अनुमनत से ही दी जा सके गी |
10. विर्श्यना साधना
• आर्य-मौन: भिविर आरंि होने से लेकर दसिें ददन
सुबह दस बजे तक साधक अयपमौन अथापत िचन
ि िरीर से िी मौन का र्ालन करेंगे |
• ददन की िुरुआत सुबह चार बजे जगने की घंटी
से होती है और साधना रात को नौ बजे तक
चलती है। ददन में लगिग दस घंटे ध्यान करना
होता है लेककन बीच में र्यापप्त अिकाि एिं
विश्ाम के भलए समय ददया जाता है।
http://www.dhammakalyana.org/parichay.htm