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गुरुत्व कामाारम द्राया प्रस्तुत भाससक ई-ऩत्रिका                       पयवयी- 2013




                           NON PROFIT PUBLICATION
FREE
        E CIRCULAR
गुरुत्व ज्मोसतष ऩत्रिका                       ई- जन्भ ऩत्रिका
पयवयी 2013

                                    अत्माधुसनक ज्मोसतष ऩद्धसत द्राया
सॊऩादक
सिॊतन जोशी
सॊऩका
गुरुत्व ज्मोसतष त्रवबाग               उत्कृ ष्ट बत्रवष्मवाणी क साथ
                                                              े
गुरुत्व कामाारम
92/3. BANK COLONY,
BRAHMESHWAR PATNA,
BHUBNESWAR-751018,
                                           १००+ ऩेज भं प्रस्तुत
(ORISSA) INDIA

पोन
91+9338213418,
91+9238328785,                            E HOROSCOPE
ईभेर
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ऩत्रिका प्रस्तुसत
                                         Excellent Prediction
सिॊतन जोशी,                                  100+ Pages
स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
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                                         फहॊ दी/ English भं भूल्म भाि 750/-
सिॊतन जोशी, स्वस्स्तक आटा
हभाये भुख्म सहमोगी                           GURUTVA KARYALAY
स्वस्स्तक.ऎन.जोशी (स्वस्स्तक
                                        BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA
                                       Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785
सोफ्टे क इस्न्डमा सर)                     Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in,
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अनुक्रभ
त्रवसबन्न कवि से काभना ऩूसता                     7    भहा सुदशान कवि                                               24
अभोघ भहाभृत्मुॊजम कवि                            7    त्रिशूर फीसा कवि                                             24
श्री घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध प्रद कवि        8    स्वप्न बम सनवायण कवि                                         25
सकर ससत्रद्ध प्रद गामिी कवि                      9    सकर सम्भान प्रासद्ऱ कवि                                      25
दस भहा त्रवद्या कवि                             10    आकषाण वृत्रद्ध कवि                                           25
नवदगाा शत्रि कवि
   ु                                            11    वशीकयण नाशक कवि                                              26
ऩॊिदे व शत्रि कवि                               12    यसामन ससत्रद्ध कवि                                           26
सुवणा रक्ष्भी कवि                               13    काभना ऩूसता हे तु हभाये त्रवशेष कवि                          27
स्वणााकषाण बैयव कवि                             13    सवा कामा ससत्रद्ध कवि                                        27
श्रीदगाा फीसा कवि
     ु                                          14    याज याजेश्वयी कवि                                            27
अष्ट त्रवनामक कवि                               15    सवाजन वशीकयण कवि                                             28
ससत्रद्ध त्रवनामक कवि                           15    अष्ट रक्ष्भी कवि                                             28
त्रवष्णु फीसा कवि                               16    शिु त्रवजम कवि                                               29
याभबद्र फीसा कवि                                17    ऩयदे श गभन औय राब प्रासद्ऱ कवि                               29
स्वस्स्तक फीसा कवि                              17    बूसभराब कवि                                                  30
सयस्वती कवि                                     18    आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ कवि                                     30
हॊ स फीसा कवि                                   18    ऩदौन्नसत कवि                                                 30
कफेय फीसा कवि
 ु                                              19    तॊि यऺा कवि                                                  30
नवााण फीसा कवि                                  20    ऋण भुत्रि कवि                                                31
गरुड फीसा कवि                                   20    योजगाय प्रासद्ऱ कवि                                          31
ससॊह फीसा कवि                                   20    ग्रह शाॊसत हे तु त्रवशेष कवि                                 32
सॊकट भोसिनी कासरका ससत्रद्ध कवि                 21    कारसऩा शाॊसत कवि                                             32
याभ यऺा कवि                                     22    शसन साड़े साती औय ढ़ै मा कष्ट सनवायण कवि                       33
हनुभान कवि                                      22    श्रात्रऩत मोग सनवायण कवि                                     33
बैयव यऺा कवि                                    23    िॊडार मोग सनवायण कवि                                         34
इष्ट ससत्रद्ध कवि                               23    ग्रहण मोग सनवायण कवि                                         35
त्रवरऺण सकर याज वशीकयण कवि                      23    भाॊगसरक मोग सनवायण कवि                                       36
सुदशान फीसा कवि                                 24    ससद्ध सूम, िॊद्र, भॊगर, फुध, गुरु, शुक्र, शसन, याहु, कतु कवि 36-37
                                                               ा                                            े

                                            स्थामी औय अन्म रेख
सॊऩादकीम                                         4    दै सनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका                           66

पयवयी 2013 भाससक यासश पर                         55   फदन-यात क िौघफडमे
                                                               े                                                   67

पयवयी 2013 भाससक ऩॊिाॊग                          59   फदन-यात फक होया - सूमोदम से सूमाास्त तक                      68

पयवयी 2013 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय                61   ग्रह िरन पयवयी 2013                                          69

पयवयी 2013-त्रवशेष मोग                           66   हभाया उद्दे श्म                                              79
त्रप्रम आस्त्भम

          फॊध/ फफहन
             ु

                       जम गुरुदे व

       साभान्म बाषा भं कवि शब्द का अथा होता हं यऺा/फिाव कयने वारा होता हं । ऩौयास्णक ग्रॊथं क अध्ममन से
                                                                                             े
हभं ऻात होता हं की मोद्धा जफ मुद्ध कयने क सरए जाते थे तो अऩने त्रवयोसध मा प्रसतद्रॊ द्री ऩऺ क अस्त्र-शस्त्रं क घात-
                                         े                                                   े                े
प्रसतघात से शयीय की यऺा क सरए रोहे से फना त्रवशेष रुऩ का कवि धायण कयते थे। स्जससे मुद्ध क दौयान उनका
                         े                                                               े
शयीय असधक दे य तक सुयस्ऺत यहता था। त्रवसबन्न दे वी दे वताओॊ क कवि बी इसी प्रकाय से कामा कयते हं , एक कवि
                                                             े
वह हं जो भॊि एवॊ स्त्रोत क स्वरुऩ होता हं स्जसक ऩाठ-ऩठन से साधक का यऺण होता हं दसया होता हं दे वी-दे वता क
                          े                    े                                ू                         े
भॊि, मॊि आफद द्राया त्रवशेष रुऩ से सनसभात फकमे गमे कवि स्जसको धायण कय धायण कताा की त्रवसबन्न असबराषाऐ
ऩूणा होती हं । त्रवसबन्न दे वी-दे वताओॊ क भॊि, मॊि आफद द्राया सनसभात कवि क प्रबाव से धायण कताा की यऺा होने का
                                         े                                े
उल्रेख हभाये धभाशास्त्रं भं सभरता हं ,

ब्रह्म वैवता ऩुयाण भं वस्णात प्रसॊग 1:

       ब्रह्म वैवता ऩुयाण भं गणऩसत खण्ड अध्माम 30 भं उल्रेख हं की ऩयशुयाभ ने कातावीमा को भायने की प्रसतऻा को
ऩूया कयने क सरए सशवजी से अऩना असबप्राम प्रकट कयते हं , स्जसे सुनकय दे वी बगवती क्रोसधत हो जाती हं औय
           े
सशवजी से अऩनी मािना कयने आमे ऩयशुयाभ की सनॊदा कयते हुवे उनकी बत्साना कयती हं । तफ ऩयशुयाभ दे वी
जगदम्फा क क्रोसधत विनं को सुनकय जोय-जोय से योने रगते हं औय अऩने प्राण-त्मागने क सरए तैमाय हो जाते हं ।
         े                                                                     े
तफ बोरेनाथ ने ब्राह्मण फारक को योते दे ख, स्नेह औय त्रवनम ऩूवक दे वी बगवती क क्रोध को शाॊत फकम औय
                                                             ा              े
ऩयशुयाभ से कहाॊ "हे वत्स !         आज से तुभ भेये सरमे ऩुि क सभान हो, भं तुम्हं एसा गूढ़ भॊि प्रदान करुॉ गा जो
                                                            े
त्रिरोकं भं अत्मॊत दरब हं । इसी प्रकाय एक एसा ऩयभ दरब एवॊ अद्द्भत कवि प्रदान करुॉ गा स्जसे धायण कयक तुभ
                    ु ा                            ु ा          ु                                  े
भेयी कृ ऩा से कातावीमा का वध कयंगे। वत्स ! तुभ इक्कीस फाय ऩृथ्वी को ऺत्रिम-त्रवहीन कयने भं सभथा हंगे औय साये
जगत भं तुम्हायी कीसता व्माद्ऱ होगी इसभं जयाबी सॊशम नहीॊ हं ।

       फपय सशवजीने ऩयशुयाभ से कहाॉ ! वत्स "िैरोक्मत्रवज" नाभक कवि, जो ऩयभ दरब औय अनोखा हं
                                                                           ु ा                                 भैने
तुम्हं फतरा फदमा हं । भैने इसे श्रीकृ ष्ण क भुख से श्रवण फकमा हं , इस सरमे इसे स्जस फकसी को नहीॊ फतराना िाफहए।
                                           े
जो ऩूणा त्रवसध-त्रवधान से गुरु ऩूजन कयक इस कवि को गरे भं मा अऩनी दाफहनी बुजा ऩय धायण कयता हं , वह
                                       े
त्रवष्णु-तुल्म हो जाता हं , इसभं सॊशम नहीॊ हं । वह जहाॉ यहता हं , वहाॉ रक्ष्भी औय सयस्वती सनवास कयती हं । मफद कोई
इस कवि को ससत्रद्ध कयरे तो वह प्राणी जीवन भुि हो जाता हं औय कयोड़ं वषं की ऩूजा का पर उसे प्राद्ऱ हो जाता
हं । क्मोकी, हजायं याजसूम, अश्वभेध आफद सॊऩूणा भहादान इस िैरोक्मत्रवजम कवि की सोरहवीॊ करा की बी सभानता
                         ा
नहीॊ कय सकते। हजायं सैकड़ं व्रत-उऩवास, तऩस्मा, तीथा स्नान आफद सबी ऩूण्म कभा इसकी करा को नहीॊ ऩा सकते।

       इस सरए वत्स ! इस कवि को धायण कय तुभ आनन्दऩूवक सनस्िॊत हो कय इक्कीस फाय ऩृथ्वी को ऺत्रिम-
                                                   ा
त्रवहीन कयने का अऩना प्रण ऩूया कयं!

       रेफकन ऩुि ! प्राण सॊकट भं हो तो याज्म स्जमा जा सकता हं , ससय कटामा जा सकता हं औय प्राणं को
ऩरयत्माग बी फकमा जा सकता हं , रेफकन एसे दरब कवि का दान नहीॊ कयना िाफहए।
                                         ु ा

इस प्रकाय सशव कृ ऩा से ऩयशुयाभ ने 21 फाय ऩृथ्वी को ऺत्रिम-त्रवहीन कय फदमा (हय फाय फकसी कायणं से ऺत्रिमं की
ऩस्िमाॉ जीत्रवत यहीॊ औय नई ऩीढ़ी को जन्भ फदमा) औय ऩाॉि झीरं को यि से बय फदमा। अॊत भं त्रऩतयं की
आकाशवाणी सुनकय उन्हंने ऺत्रिमं से मुद्ध कयना छोड़कय तऩस्मा भं रग गमे। एसा वणान धभाग्रथं भं सभरता हं ।
                                                                                    ॊ

ब्रह्म वैवता ऩुयाण भं वस्णात प्रसॊग 2:

       ब्रह्म वैवता ऩुयाण भं गणऩसत खण्ड अध्माम 35 भं उल्रेख हं की ऩयशुयाभ ने याजा भत्स्मयाज से उसका सुयऺा
कवि भाॊगकय उसका वध फकमा। भत्स्मयाज क गरे भं ऋत्रष दवाासा द्राया फदमा गमा सशवजी का फदव्म कवि फॉधा था
                                    े              ु
! मुद्ध क दौयान आकाशवाणी हुई, मह कवि याजा को प्राण-प्रदान कयने वारा था इस सरए याजा से प्राण-प्रदान कयने
         े
वारे कवि को भाॉग कय उसका वध कयं।

       तफ ऩयशुयाभ ने सॊन्मासी का वेष धायण कयक याजा से कवि की मािना की। याजा भत्स्मयाज ने प्राण-प्रदान
                                             े
कयने वारे "ब्राह्मण-त्रवजम" नाभक उत्तभ कवि को उन्हं दे फदमा। उस कवि को रेकय ऩयशुयाभ नं त्रिशूर से प्रहाय से
िॊद्रवॊश भं उत्ऩन्न, गुणवान औय भहाफरी, स्जसक भुख की काॊसत सैकड़ं िन्द्रभाओॊ क सभान थी, वह बूतर ऩय सगय
                                            े                               े
गमा। याजा से उसका कवि दान भं भाॉगकय उसका वध फकमा।

ब्रह्म वैवता ऩुयाण भं वस्णात प्रसॊग 3:

       ब्रह्म वैवता ऩुयाण भं गणऩसत खण्ड अध्माम 38 भं उल्रेख हं की ऩयशुयाभ का सुिन्द्र-ऩुि ऩुष्कयाऺ का मुद्ध के
दौयान ऩाशुऩत शस्त्र को छोड़ने का उद्यत कयते सभम ऩयशुयाभक ऩास बगवान हरय वृद्ध ब्राह्मण वेश भं आकय, उन्हं
                                                       े
सभझामा की वत्स बागाव ! तुभ तो भहाऻासन हो फपय भ्रभव्सह, क्रोधावेश भं आकय तुभ भनुष्म का वध कयने क सरमे
                                                                                               े
ऩाशुऩत का प्रमोग क्मं कय यहे हो? इस ऩाशुऩत से तत्ऺण साया त्रवश्व बस्भ हो सकता हं , क्मोफक मह शस्त्र बगवान
श्रीकृ ष्ण क असतरयि औय सफका त्रवनाशक हं । इस ऩाशुऩत को जीतने की शत्रि तो सुदशान िक्र औय श्रीहरय भं ही हं ,
            े
मह दोनं तीनं रोकं भं सभस्त अस्त्रं भं प्रधान हं । इससरए हे वत्स! तुभ ऩाशुऩतास्त्र को यख दं औय भेयी फात सुनं।
सुिन्द्र-ऩुि ऩुष्कयाऺ क गरे भं भहारक्ष्भी कवि कवि हं जो तीनं रोकं भं दरब हं , स्जसे ऩुष्कयाऺ नं बत्रिऩूवक
                       े                                              ु ा                               ा
त्रवसध-त्रवधान से अऩने गरे भं धायण कय यखा हं औय ऩुष्कयाऺ क ऩुि नं आद्यशत्रि दे वी दगाा का ऩयभ दरब एवॊ
                                                          े                        ु           ु ा
उत्तभ कवि अऩने दाफहनी बुजा ऩय फाॉधा हुवा हं ।। स्जसक प्रबाव से वह दोनं ऩयभैश्वमा सम्ऩन्न औय त्रिरोकत्रवजमी
                                                    े
हुवे हं । इस कवि को धायण फकमे हुवे को कौन जीत सकता हं । इससरए वत्स ! भं तुम्हायी प्रसतऻा को सपर कयने के
सरए उन दोनं क सॊसनकट जाकय उनसे कवि की मािना करुॉ गा।
             े

       ब्राह्मण वेशधायी बगवान त्रवष्णु की फात सुनकय ऩयशुयाभ ने बमसबत हो कय वृद्ध ब्राह्मण से ऩूछा "भहाप्रऻ"
ब्राह्मणरुऩधायी आऩ कौन हं , भं मह नहीॊ जान ऩा यहा हूॉ, अत् आऩ भुझ अनजान को शीघ्र ही अऩना ऩरयिम दीस्जमे ,
तफ बगवान त्रवष्णु ने हॉ स कय कहाॉ भं त्रवष्णु हूॉ।

       फपय बगवान त्रवष्णु ने त्रवप्र रूऩधायण कय अऩनी भामा से भोफहत कय ऩुष्कयाऺ से भहारक्ष्भी औय उसक ऩुि से
                                                                                                   े
दगाा कवि को दान रूऩ भं प्राद्ऱ कयसरमा। फपय ऩयशुयाभ ने याजा का वध कय फदमा। इस प्रकाय कवि क अद्द्भत
 ु                                                                                       े      ु
प्रबावं क भफहभा से हभाये धभा ग्रॊथ आफद अनेकं शास्त्र भं बये ऩड़े हं ।
         े

इस अॊक भं प्रकासशत कवि से सॊफॊसधत जानकायीमं क त्रवषम भं साधक एवॊ त्रवद्रान ऩाठको से अनुयोध हं , मफद दशाामे
                                             े
गए कवि क राब, प्रबाव इत्मादी क सॊकरन, प्रभाण ऩढ़ने, सॊऩादन भं, फडजाईन भं, टाईऩीॊग भं, त्रप्रॊफटॊ ग भं, प्रकाशन
        े                     े
भं कोई िुफट यह गई हो, तो उसे स्वमॊ सुधाय रं मा फकसी मोग्म ज्मोसतषी, गुरु मा त्रवद्रान से सराह त्रवभशा कय रे ।
क्मोफक त्रवद्रान ज्मोसतषी, गुरुजनो एवॊ साधको क सनजी अनुबव त्रवसबन्न कविो की सनभााण ऩद्धसत एवॊ प्रबावं का
                                              े
वणान कयने भं बेद होने ऩय कवि की, ऩूजन त्रवसध एवॊ उसक प्रबावं भं सबन्नता सॊबव हं ।
                                                    े

                                                                                            सिॊतन जोशी
6                                पयवयी 2013




                  ***** कवि त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत सूिना *****
 ऩत्रिका भं प्रकासशत कवि त्रवशेषाॊक गुरुत्व कामाारम क असधकायं क साथ ही आयस्ऺत हं ।
                                                      े         े
 कवि त्रवशेषाॊक भं वस्णात रेखं को नास्स्तक/अत्रवश्वासु व्मत्रि भाि ऩठन साभग्री सभझ सकते हं ।
 कवि का त्रवषम आध्मात्भ से सॊफॊसधत होने क कायण बायसतम धभा शास्त्रं से प्रेरयत होकय प्रस्तुत
                                          े
   फकमा हं ।
 कवि त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत त्रवषमो फक सत्मता अथवा प्राभास्णकता ऩय फकसी बी प्रकाय की
   स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हं ।
 कवि से सॊफॊसधत सबी जानकायीकी प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव की स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक
   की नहीॊ हं औय ना हीॊ प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव की स्जन्भेदायी क फाये भं जानकायी दे ने हे तु
                                                                े
   कामाारम मा सॊऩादक फकसी बी प्रकाय से फाध्म हं ।
 कवि त्रवशेषाॊक भं वस्णात
 कवि त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत रेखो भं ऩाठक का अऩना त्रवश्वास होना आवश्मक हं । फकसी बी व्मत्रि
   त्रवशेष को फकसी बी प्रकाय से इन त्रवषमो भं त्रवश्वास कयने ना कयने का अॊसतभ सनणाम स्वमॊ का
   होगा।
 कवि त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत फकसी बी प्रकाय की आऩत्ती स्वीकामा नहीॊ होगी।
 कवि त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत रेख हभाये वषो क अनुबव एवॊ अनुशॊधान क आधाय ऩय फदए गमे हं ।
                                           े                    े
   हभ फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष द्राया प्रमोग फकमे जाने वारे कवि, भॊि- मॊि मा अन्म प्रमोग मा
   उऩामोकी स्जन्भेदायी नफहॊ रेते हं । मह स्जन्भेदायी कवि, भॊि-मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोको
   कयने वारे व्मत्रि फक स्वमॊ फक होगी। क्मोफक इन त्रवषमो भं नैसतक भानदॊ डं, साभास्जक, कानूनी
   सनमभं क स्खराप कोई व्मत्रि मफद नीजी स्वाथा ऩूसता हे तु प्रमोग कताा हं अथवा प्रमोग क कयने भे
          े                                                                           े
   िुफट होने ऩय प्रसतकर ऩरयणाभ सॊबव हं ।
                      ू
 कवि त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत जानकायी को भाननने से प्राद्ऱ होने वारे राब, राब की हानी मा हानी
   की स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक की नहीॊ हं ।
 हभाये द्राया ऩोस्ट फकमे गमे सबी कवि एवॊ भॊि-मॊि मा उऩाम हभने सैकडोफाय स्वमॊ ऩय एवॊ अन्म
   हभाये फॊधगण ऩय प्रमोग फकमे हं स्जस्से हभे हय प्रमोग मा कवि, भॊि-मॊि मा उऩामो द्राया सनस्ित
            ु
   सपरता प्राद्ऱ हुई हं ।
   असधक जानकायी हे तु आऩ कामाारम भं सॊऩक कय सकते हं ।
                                        ा

                            (सबी त्रववादो कसरमे कवर बुवनेश्वय न्मामारम ही भान्म होगा।)
                                           े     े
7                                   पयवयी 2013




                           त्रवसबन्न कवि से काभना ऩूसता
                                                                                          सिॊतन जोशी
अभोघ भहाभृत्मुॊजम कवि
Amogh Mahamrutyunjay Kawach
                                     मफद जन्भ कडरी भं भृत्मु का मोग फन यहा हो, भायक ग्रहं की दशा
                                               ुॊ
                                     क दौयान प्राणबम, शिुआफद क कायण प्राणबम, आकस्स्भक कण्डरी भं
                                      े                       े                        ु
                                     दघटनाओॊ क मोग फन यहे हो, फाय-फाय स्वास्थ्म सॊफॊसधत सभस्माएॊ
                                      ु ा     े
                                     कष्ट दे यफह हो, औषसधमं का प्रबाव रेशभाि हो यहा हो आफद सबी
                                     कायण स्जससे प्राण सॊकट भं हो तफ शास्त्रोि भतानुशाय अभोघ
                                     भहाभृत्मुॊजम कवि सवाश्रष्ठ उऩाम भाना जाता हं ।
                                                            े
                                     शास्त्रं भं वस्णात हं की एक फाय दे वी बगवती ने बगवान सशव से ऩूछा
                                     फक प्रबू अकार भृत्मु से यऺा कयने औय सबी प्रकाय क अशुबं से यऺा
                                                                                     े
                                     का कोई सयर उऩाम फताइए। तफ बगवान सशव ने भहाभृत्मुॊजम कवि
                                     क फाये भं फतामा। भहाभृॊत्मुजम कवि को धायण कयक भनुष्म का
                                      े                                           े
                                     सबी प्रकाय क असनष्ट से फि होता हं औय अकार भृत्मु को बी टार
                                                 े
                                     सकता हं ।
                                     अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम कवि व उल्रेस्खत अन्म साभग्रीमं को शास्त्रोि
                                     त्रवसध-त्रवधान से त्रवद्रान ब्राह्मणो द्राया सवा राख भहाभृत्मुॊजम भॊि जऩ
                                     एवॊ दशाॊश हवन द्राया सनसभात फकमा जाता हं इस सरए कवि अत्मॊत
                                     प्रबावशारी होता हं ।
                                                                                         भूल्म भाि: 10900



                               भॊि ससद्ध दरब साभग्री
                                          ु ा
 हत्था जोडी- Rs- 370            घोडे की नार- Rs.351                   भामा जार- Rs- 251
 ससमाय ससॊगी- Rs- 370           दस्ऺणावतॉ शॊख- Rs- 550                इन्द्र जार- Rs- 251
 त्रफल्री नार- Rs- 370          भोसत शॊख- Rs- 550                     धन वृत्रद्ध हकीक सेट Rs-251
                                 GURUTVA KARYALAY
                          Call Us: 91 + 9338213418, 91 + 9238328785,
               Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
8                                       पयवयी 2013



श्री घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध प्रद कवि
Shri Ghantakarn Mahavir Sarv Siddhi Prad Kawach
                                                          श्री घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध प्रद कवि को धायण
                                                  कयने से धायण कताा की सकर भनोकाभनाएॊ ऩूणा होती हं ।
                                                  धायण कताा का सबी प्रकाय क बूत-प्रेत आफद उऩद्रव से यऺण
                                                                           े
                                                  होता हं । दष्ट व असुयी शत्रिमं से उत्ऩन्न होने वारे सबी
                                                             ु
                                                  प्रकाय क बम श्री घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध प्रद कवि क
                                                          े                                              े
                                                  प्रबाव से दय हो जाते हं ।
                                                             ू
                                                          श्री घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध प्रद कवि को धायण
                                                  कयने से साधक को धन, सुख, सभृत्रद्ध, ऎश्वमा, सॊतत्रत्त-सॊऩत्रत्त
                                                  आफद की प्रासद्ऱ होती हं । कवि को धायण कयने से शीघ्र ही
                                                  साधक की सबी प्रकाय की सास्त्वक इच्छाओॊ की ऩूसता होती हं ।
                                                          मफद फकसी व्मत्रि ऩय वशीकयण, भायण, उच्िाटन
                                                  इत्माफद जाद-टोने वारे प्रमोग फकमे गमं होतो इस श्री घॊटाकणा
                                                             ू
                                                  भहावीय सवा ससत्रद्ध प्रद कवि क प्रबाव से स्वत् नष्ट हो जाते
                                                                                े
                                                  हं औय बत्रवष्म भं मफद कोई प्रमोग कयता हं तो यऺण होता
                                                  हं ।
                                                          कवि धायण कताा को मफद कोई इषाा, रोब, भोह मा
                                                  शिुतावश मफद अनुसित कभा कयक फकसी बी उद्दे श्म से साधक
                                                                            े
                                                  को ऩये शान कयने का प्रमास कयता हं तो कवि क प्रबाव से
                                                                                            े
                                                  साधक का यऺण तो होता ही हं , कबी-कबी शिु क द्राया फकमा
                                                                                           े
                                                  गमा अनुसित कभा शिु ऩय ही उऩय उरट वाय हो जाते हं ।
                                                                                                   भूल्म भाि: 6400



                                     बाग्म रक्ष्भी फदब्फी
                    सुख-शास्न्त-सभृत्रद्ध की प्रासद्ऱ क सरमे बाग्म रक्ष्भी फदब्फी :- स्जस्से धन प्रसद्ऱ, त्रववाह मोग,
                                                       े
                    व्माऩाय वृत्रद्ध, वशीकयण, कोटा किेयी क कामा, बूतप्रेत फाधा, भायण, सम्भोहन, तास्न्िक
                                                          े
                    फाधा, शिु बम, िोय बम जेसी अनेक ऩये शासनमो से यऺा होसत है औय घय भे सुख सभृत्रद्ध
                    फक प्रासद्ऱ होसत है , बाग्म रक्ष्भी फदब्फी भे रघु श्री फ़र, हस्तजोडी (हाथा जोडी), ससमाय
                    ससन्गी, त्रफस्ल्र नार, शॊख, कारी-सफ़द-रार गुॊजा, इन्द्र जार, भाम जार, ऩातार तुभडी
                                                       े
                    जेसी अनेक दरब साभग्री होती है ।
                               ु ा
                                               भूल्म:- Rs. 1250, 1900, 2800, 5500, 7300, 10900 भं उप्रब्द्ध
                           गुरुत्व कामाारम सॊऩक : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785
                                               ा
                                                       c
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सकर ससत्रद्ध प्रद गामिी कवि
Sakal Siddhi Prad Gayatri Kawach
                                                          वेदं भं उल्रेख हं की दे वी गामिी सबी प्रकाय के
                                                          ऻान औय त्रवऻान की जननी हं , दे वी गामिी की
                                                          उऩासना कयने से दे वी गामिी का आसशवााद प्राद्ऱ
                                                          कय साधक 84 कराओॊ का ऻाता हो जाता हं । भाना
                                                          जाता हं की ससद्ध की हुई गामिी काभधेनु क सभान
                                                                                                 े
                                                          हं । स्जस प्रकाय गॊगा शयीय क ऩाऩं को सनभार
                                                                                      े
                                                          कयती हं , उसी प्रकाय गामिी रूऩी ब्रह्म गॊगा से
                                                          आत्भा ऩत्रवि होती हं ।
                                                          स्जस प्रकाय दे वी गामिी ऩाऩं का नाश कयने वारी
                                                          हं , सभस्त साॊसारयक औय ऩायरौफकक सुखं को
                                                          प्रदान कयने वारी हं । उसी प्रकाय सकर ससत्रद्ध प्रद
                                                          गामिी कवि को धायण कयने से साधक क सभस्त
                                                                                          े
                                                          योग-शोक-बम, बूत-प्रेत, तॊि फाधा, िोट, भायण,
                                                          भोहन, उच्िाटन, वशीकयण, स्तॊबन, काभण-टू भण,
                                                          इत्माफद उऩद्रवं का नाश होता हं । साधक को धभा,
                                                          अथा, काभ औय भोऺ की प्रासद्ऱ बी सॊबॊव हं !
                                                          सकर ससत्रद्ध प्रद गामिी कवि को धायण कयने से
                                                          भूखा से भूखा औय जड़ से जड़ व्मत्रि बी त्रवद्रान होने
                                                          भं सभथा हो सकता हं !
धायण कताा को असाध्म योग एवॊ ऩये शानीमं से भुत्रि सभर सकती हं !
सकर ससत्रद्ध प्रद गामिी कवि क प्रबाव से फदन-प्रसतफदन धायण कताा की धन-सॊऩत्रत्त की वृत्रद्ध एवॊ यऺा होती हं ।
                             े
सकर ससत्रद्ध प्रद गामिी कवि क प्रबाव से ग्रह जसनत ऩीड़ाओॊ से बी यऺा होती।
                             े
धायण कताा को अऩने कामं भं अभूत सपरतामं सभर जाती हं । सकर ससत्रद्ध प्रद गामिी कवि को धायण कयने से
धायण कताा का सित्त शुद्ध होता हं औय रृदम भं सनभारता आती हं । शयीय नीयोग यहता हं , स्वबाव भं नम्रता आती
हं , फुत्रद्ध सूक्ष्भ होने से साधक की दयदसशाता फढ़ती हं औय स्भयण शत्रि का त्रवकास होता हं । अनुसित काभ कयने
                                       ू
      े ु            े               ू
वारं क दा गुण गामिी क कायण सयरता से छट सकते हं ।
                                                                                           भूल्म भाि: 6400
10                                      पयवयी 2013



दस भहा त्रवद्या कवि
Dus Mahavidya Kawach
                                                          दस भहा त्रवद्या कवि को दे वी दस भहा त्रवद्या की
                                                          शत्रिमं से सॊऩन्न अत्मॊत प्रबावशारी औय दरब कवि
                                                                                                  ु ा
                                                          भाना गमा हं ।
                                                          इस कवि क भाध्मभ से साधक को दसो भहात्रवद्याओॊ
                                                                  े
                                                          आसशवााद प्राद्ऱ हो सकता हं । दस भहा त्रवद्या कवि को
                                                          धायण कयने से साधक की सबी भनोकाभनाओॊ की
                                                          ऩूसता होती हं ।
                                                          दस भहा त्रवद्या कवि साधक की सभस्त इच्छाओॊ की
                                                          ऩूसता कयने भं सभथा हं । दस भहा त्रवद्या कवि धायण
                                                          कताा को शत्रिसॊऩन्न एवॊ बूसभवान फनाने भं सभथा हं ।
                                                          दस भहा त्रवद्या कवि को श्रद्धाऩूवक धायण कयने से
                                                                                           ा
                                                          शीघ्र दे वी कृ ऩा प्राद्ऱ होती हं औय धायण कताा को दस
                                                          भहा त्रवद्या दे वीमं की कृ ऩा से सॊसाय की सभस्त
                                                          ससत्रद्धमं की प्रासद्ऱ सॊबव हं । दे वी दस भहा त्रवद्या की
                                                          कृ ऩा से साधक को धभा, अथा, काभ व ् भोऺ ितुत्रवाध
                                                          ऩुरुषाथं की प्रासद्ऱ हो सकती हं । दस भहा त्रवद्या कवि
                                                          भं भाॉ दगाा क दस अवतायं का आशीवााद सभाफहत
                                                                  ु    े
                                                          होता हं , इस सरए दस भहा त्रवद्या कवि को धायण कय
                                                          क धायण कयक व्मत्रि अऩने जीवन को सनयॊ तय असधक
                                                           े        े
से असधक साथाक एवॊ सपर फना सकता हं ।
दश भहात्रवद्या को शास्त्रं भं आद्या बगवती क दस बेद कहे गमे हं , जो क्रभश् (1) कारी, (2) ताया, (3) षोडशी,
                                           े
(4) बुवनेश्वयी, (5) बैयवी, (6) सछन्नभस्ता, (7) धूभावती, (8) फगरा, (9) भातॊगी एवॊ (10) कभास्त्भका। इस
सबी दे वी स्वरुऩं को, सस्म्भसरत रुऩ भं दशभहात्रवद्या क नाभ से जाना जाता हं ।
                                                      े
                                                                                                 भूल्म भाि: 6400



                                           यि एवॊ उऩयि
 हभाये महाॊ सबी प्रकाय क यि एवॊ उऩयि व्माऩायी भूल्म ऩय उऩरब्ध हं । ज्मोसतष कामा से जुडे़ फधु/फहन व यि
                        े

 व्मवसाम से जुडे रोगो क सरमे त्रवशेष भूल्म ऩय यि व अन्म साभग्रीमा व अन्म सुत्रवधाएॊ उऩरब्ध हं ।
                       े

                    गुरुत्व कामाारम सॊऩक : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785.
                                        ा
11                                          पयवयी 2013



नवदगाा शत्रि कवि
   ु
Navdurga Shakiti Kawach

                                                                       भाॊ दगाा क नवरुऩ क्रभश्
                                                                            ु    े
                                                                       1. शैरऩुिी
                                                                       2. ब्रह्मिारयणी
                                                                       3. िन्द्रघण्टा
                                                                       4. कष्भाण्डा
                                                                           ू
                                                                       5. स्कन्दभाता
                                                                       6. कात्मामनी
                                                                       7. कारयात्रि
                                                                       8. भहागौयी
                                                                       9. ससत्रद्धदािी हं ।
                                                                       नौदे वीमं क कविं को एक साथ भं सभराकय
                                                                                  े
                                                                       फनाकय नवदगाा कवि का सनभााण फकमा जाता हं ।
                                                                                ु
                                                                       स्जससे धायण कताा को नौ दे वीमं का आसशवााद एक
                                                                       साथ प्राद्ऱ हो जाता हं ।
                                                                       नौ दे वीमं क कवि का भहत्व क्रभश् आऩक
                                                                                   े                       े
                                                                       भागादशान हे तु महाॉ प्रस्तुत हं ।


                                                                       दे वी शैरऩुिी का कवि धायण कयने वारा व्मत्रि सदा
                                                                       धन-धान्म से सॊऩन्न यहता हं । अथाात उसे स्जवन भं
                                                                       धन एवॊ अन्म सुख साधनो की कभी भहसुस नहीॊ
होतीॊ। व्मत्रि को अनेक प्रकाय की ससत्रद्धमाॊ एवॊ उऩरस्ब्धमाॊ प्राद्ऱ होती हं ।
दे वी ब्रह्मिारयणी का कवि धायण कयने वारे व्मत्रि को अनॊत पर की प्रासद्ऱ होती हं । कवि क प्रबाव से व्मत्रि भं तऩ,
                                                                                       े
त्माग, सदािाय, सॊमभ जैसे सद् गुणं फक वृत्रद्ध होती हं ।
दे वी िन्द्रघण्टा का कवि धायण कयने से व्मत्रि को सबी ऩाऩं से भुत्रि सभरती हं उसे सभस्त साॊसारयक आसध-व्मासध
से भुत्रि सभरती हं । इसक उऩयाॊत व्मत्रि को सियामु, आयोग्म, सुखी औय सॊऩन्नता प्राद्ऱ होती हं । कवि क प्रबाव से
                        े                                                                          े
व्मत्रि क साहस एव त्रवयता भं वृत्रद्ध होती हं । व्मत्रि क स्वय भं सभठास आती हं उसक आकषाण भं बी वृत्रद्ध होती हं ।
         े                                               े                        े
क्मोफक, िन्द्रघण्टा को ऻान की दे वी बी भाना गमा हं ।
दे वी कष्भाण्डा क कवि को धायण कयने वारे व्मत्रि को सबी प्रकाय क योग, शोक औय क्रेश से भुत्रि सभरती हं , उसे
       ू         े                                             े
आमुष्म, मश, फर औय फुत्रद्ध प्राद्ऱ होती हं ।
दे वी स्कदभाता क कवि को धायण कयने से व्मत्रि की सभस्त इच्छाओॊ की ऩूसता होती हं एवॊ जीवन भं ऩयभ सुख एवॊ
         ॊ      े
शाॊसत प्राद्ऱ होती हं ।
12                                   पयवयी 2013



दे वी कात्मामनी का कवि धायण कयने से व्मत्रि को सबी प्रकाय क योग, शोक, बम से भुत्रि सभरती हं । कात्मामनी
                                                           े
दे वी को वैफदक मुग भं मे ऋत्रष-भुसनमं को कष्ट दे ने वारे यऺ-दानव, ऩाऩी जीव को अऩने तेज से ही नष्ट कय दे ने वारी
भाना गमा हं ।
दे वी कारयात्रि का कवि धायण कयने से अस्ग्न बम, आकाश बम, बूत त्रऩशाि इत्मादी शत्रिमाॊ कारयात्रि दे वी के
स्भयण भाि से ही बाग जाते हं , कारयात्रि शिु एवॊ दष्टं का सॊहाय कयने वारी दे वी हं ।
                                                 ु
               े                             े               ु
दे वी भहागौयी क कवि को धायण कयने से व्मत्रि क सभस्त ऩाऩं से छटकाया सभरता हं । मह भाॊ अन्नऩूणाा क सभान,
                                                                                                े
धन, वैबव औय सुख-शाॊसत प्रदान कयने वारी एवॊ सॊकट से भुत्रि फदराने वारी दे वी भहागौयी का कवि हं ।
दे वी ससत्रद्धदािी क कवि को धायण कयने से व्मत्रि फक सभस्त काभनाओॊ फक ऩूसता होती हं उसे ऋत्रद्ध-ससत्रद्ध की प्रासद्ऱ
                    े
होती हं । कवि क प्रबाव से व्मत्रि क मश, फर औय धन की प्रासद्ऱ आफद कामो भं हो यहे फाधा-त्रवध्न सभाद्ऱ हो जाते
               े                   े
हं । व्मत्रि को मश, फर औय धन की प्रासद्ऱ हो कय उसे भाॊ की कृ ऩा से धभा, अथा, काभ औय भोऺ फक बी प्रासद्ऱ स्वत्
हो जाती हं ।
                                                                                                 भूल्म भाि: 6400
ऩॊिदे व शत्रि कवि
Pancha Dev Shakti Kawach
ऩॊिदे व फहन्द ू धभा क ऩाॉि प्रधान दे वताओॊ को कहाॉ जाता हं , इन ऩॊिदे वताओॊ की ऩूजा-उऩासना आफद फहन्द ू धभा भं
                     े
त्रवशेष रुऩ से प्रिसरत हं । फहन्द ू धभा भं फकसी बी शुब औय भाॊगसरक कामा भं ऩॊिदे वताओॊ की ऩूजा को असनवामा भाना
गमा हं ।
इन ऩाॉि दे वताओॊ क रुऩ भं बगवान श्रीगणेश, सशव, त्रवष्णु, दगाा औय सूमा की आयाधना फक जाती हं ।
                  े                                       ु
त्रवद्रानं ने अऩने अनुबवं क आधाय से मह ऩामा हं की इन ऩॊिदे व अथाात श्री गणेश, सशव, त्रवष्णु, दगाा औय सूमा की
                           े                                                                  ु
सॊमुि कृ ऩा से जीवन भं बौसतक सुख-साधनं की प्रासद्ऱ व आसशवााद प्राद्ऱ कयने का उत्तभ भाध्मभ ऩॊिदे व शत्रि कवि
हं । ऩॊिदे व शत्रि कवि को धायण कयने से व्मत्रि को सुख-सौबाग्म एवॊ ऐश्वमा की प्रासद्ऱ होती हं । ऩॊिदे व शत्रि कवि
को धायण कयने से धायण कताा क सकर भनोयथ शीघ्र ससद्ध होने रगते हं औय उसक जीवन से सबी प्रकाय क द्ख,
                           े                                         े                    े ु
योग, शोक एवॊ त्रवघ्न-फाधाओॊ का स्वत् नाश होता हं ।
                                                                                                 भूल्म भाि: 6400



                                         शादी सॊफॊसधत सभस्मा
 क्मा आऩक रडक-रडकी फक आऩकी शादी भं अनावश्मक रूऩ से त्रवरम्फ हो यहा हं मा उनक वैवाफहक
         े   े                                                              े
 जीवन भं खुसशमाॊ कभ होती जायही हं औय सभस्मा असधक फढती जायही हं । एसी स्स्थती होने ऩय
 अऩने रडक-रडकी फक कडरी का अध्ममन अवश्म कयवारे औय उनक वैवाफहक सुख को कभ कयने
         े         ॊु                               े
 वारे दोषं क सनवायण क उऩामो क फाय भं त्रवस्ताय से जनकायी प्राद्ऱ कयं ।
            े        े       े
                                     GURUTVA KARYALAY
                               Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785
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13                                    पयवयी 2013



सुवणा रक्ष्भी कवि
Suvarn Lakshmi Kawach
                                                      सुवणा रक्ष्भी कवि को धायण कयने से धन-सॊऩत्रत्त, यि-
                                                      आबूषण आफद की वृत्रद्ध होती हं । सुवणा रक्ष्भी कवि को
                                                      धायण कयने से धायणकताा को सुवणा से सॊफॊसधत कामं भं
                                                      त्रवशेष राब की प्रासद्ऱ होती हं । त्रवसबन्न स्त्रोत से आसथाक
                                                      राब सभरने क मोग फनते हं । सुवणा रक्ष्भी कवि क
                                                                 े                                 े
                                                      प्रबाव से धायणकताा की सुवणा से सॊफॊसधत सबी असबराषाएॊ
                                                      शीघ्र ही ऩूणा होने की प्रफर सॊबावनाएॊ फनती हं ।
                                                                                               भूल्म भाि: 4600
                                                      स्वणााकषाण बैयव कवि
                                                      Swarnakarshan Bhairav Kawach
                                                      फहन्द ू धभा भं बैयव जी को बगवान सशव क द्रादश स्वरूऩ
                                                                                           े
                                                      क रुऩ भं ऩूजा जाता हं । बैयवजी को भुख्म रुऩ से तीन
                                                       े
                                                      स्वरुऩ फटु क बैयव, भहाकार बैयव औय स्वणााकषाण बैयव
                                                      क रुऩ भं जाना जाता हं । त्रवद्रानं ने स्वणााकषाण-बैयव को
                                                       े
                                                      धन-धान्म औय सम्ऩत्रत्त क दे वता भाना हं । धभाग्रॊथं भं
                                                                              े
                                                      उल्रेख सभरता हं की स्जस भनुष्म की आसथाक स्स्थती
                                                      फदन-प्रसतफदन खयाफ होती जा यही हो, उस ऩय कजा का
                                                      फोझ फढ़ता जा यहा हो, सभस्मा क सभाधान हे तु व्मत्रि
                                                                                  े
                                                      को कोई यास्ता न फदखाई दे यहा हो, व्मत्रि को सबी प्रकाय
क ऩूजा ऩाठ, भॊि, मॊि, तॊि, मऻ, हवन, साधना आफद से कोई त्रवशेष राब की प्रासद्ऱ न हो यही हो, तफ स्वणााकषाण
 े
बैयव जी का भॊि, मॊि, साधना इत्माफद का आश्रम रेना िाफहए।
जो व्मत्रि स्वणााकषाण बैयव की साधना, भॊि जऩ आफद को कयने भं असभथा हो वह रोग स्वणााकषाण बैयव कवि को
धायण कय त्रवशेषा राब प्राद्ऱ कय सकते हं । स्वणााकषाण बैयव कवि को धन प्रासद्ऱ क सरए अिूक औय अत्मॊत
                                                                              े
प्रबावशारी भाना जाता हं ।
स्वणााकषाण बैयव कवि को धायण कयने से मह भनुष्म की सबी प्रकाय की आसथाक सभस्माओॊ को सभाद्ऱ कयने भं
सभथा हं । स्जसभं जया बी सॊदेह नहीॊ हं । इस करमुग भं स्जस प्रकाय भृत्मु बम क सनवायण हे तु भहाभृत्मुॊजम कवि
                                                                           े
अभोघ हं उसी प्रकाय आसथाक सभस्माओॊ क सभाधान हे तु स्वणााकषाण बैयव कवि अभोघ भाना गमा हं । धासभाक
                                   े
भान्मताओॊ क अनुशाय ऐसा भाना जाता हं की बैयवजी की ऩूजा-उऩासना श्रीगणेश, त्रवष्णु, िॊद्रभा, कफेय आफद दे वताओॊ
           े                                                                               ु
ने बी फक थी, बैयव उऩासना क प्रबाव से बगवान त्रवष्णु रक्ष्भीऩसत फने थे, त्रवसबन्न अप्सयाओॊ को सौबाग्म सभरने का
                          े
उल्रेख धभाग्रॊथो भं सभरता हं । मफह कायण हं की स्वणााकषाण बैयव कवि आसथाक सभस्माओॊ क सभाधान हे तु अत्मॊत
                                                                                  े
राबप्रद हं । इस कवि को धायण कयने से सबी प्रकाय से आसथाक राब की प्रासद्ऱ होने रगती हं ।
                                                                                               भूल्म भाि: 4600
14                               पयवयी 2013



श्रीदगाा फीसा कवि
     ु
Durga Visha Kawach
                                          श्रीदगाा फीसा कवि साधक को बत्रि क साथ सभस्त साॊसारयक सुखं
                                               ु                           े
                                          को प्रदान कयने वारा सवाससत्रद्धप्रद कवि हं । श्रीदगाा फीसा कवि को
                                                                                            ु
                                          धायण कयने से साधक को धभा, अथा, काभ औय भोऺ इन िाय की
                                          प्रासद्ऱ भं बी सहामता प्राद्ऱ होती हं ।
                                          शास्त्रोि वणान हं की भाॉ दगाा का श्रीदगाा फीसा कवि को धायण कयने
                                                                    ु           ु
                                          से दे वी प्रसन्न होकय, शीघ्र ही साधक की असबष्ट इच्छाएॊ ऩूणा कयती
                                          हं । भाॉ दगाा अऩने बि की स्वमॊ यऺा कय उन ऩय कृ ऩा दृष्टी कयती हं ।
                                                    ु
                                          श्रीदगाा फीसा कवि धायण कयने से भाॉ दगाा की कृ ऩा से नौकयी
                                               ु                              ु
                                          व्मवसाम भं साधक को उन्नसत क सशखय ऩय जाने का भागा प्रसस्त
                                                                     े
                                          होता हं ।
                                          श्रीदगाा फीसा कवि क प्रबाव से धायण कताा को धन-धान्म, सुख-
                                               ु             े
                                          सॊऩत्रत्त, सॊतान का सुख प्राद्ऱ होता हं औय शिु ऩय त्रवजम, ऋण-योग
                                          आफद ऩीडा़ से भुत्रि प्राद्ऱ होती हं औय साधक को जीवन भं सॊऩूणा
                                          सुखं की प्रासद्ऱ होती हं । जीवन भं फकसी बी प्रकाय क सॊकट मा फाधा
                                                                                             े
                                          की आशॊका होने ऩय श्रीदगाा फीसा कवि को श्रद्धाऩूवक धायण कयने से
                                                                ु                         ा
                                          साधक को सबी प्रकाय की फाधा से भुत्रि सभरती हं औय धन-धान्म
                                          की प्रासद्ऱ हो सकती हं ।
                                                                                           भूल्म भाि: 1900




                              ऩसत-ऩिी भं करह सनवायण हे तु
  मफद ऩरयवायं भं सुख-सुत्रवधा क सभस्त साधान होते हुए बी छोटी-छोटी फातो भं ऩसत-ऩिी क त्रफि भे करह
                               े                                                   े
  होता यहता हं , तो घय क स्जतने सदस्म हो उन सफक नाभ से गुरुत्व कामाारत द्राया शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान
                        े                      े
  से भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रष्ठत ऩूणा िैतन्म मुि वशीकयण कवि एवॊ गृह करह नाशक फडब्फी फनवारे एवॊ
  उसे अऩने घय भं त्रफना फकसी ऩूजा, त्रवसध-त्रवधान से आऩ त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं । मफद आऩ भॊि
  ससद्ध ऩसत वशीकयण मा ऩिी वशीकयण एवॊ गृह करह नाशक फडब्फी फनवाना िाहते हं , तो सॊऩक आऩ
                                                                                  ा
  कय सकते हं ।

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15                                      पयवयी 2013



अष्ट त्रवनामक कवि
Asht Vinayak Kawach
                                                    त्रवद्रानं का कथ हं की बगवान श्री गणेश क इन आठ
                                                                                            े
                                                    अवतायं भं सृत्रष्ट क सुख की कल्ऩना का आधाय भाना जाता
                                                                        े
                                                    हं । इससरए अष्ट त्रवनामक कवि को श्रीगणेश क आठ प्रभुख
                                                                                              े
                                                    रूऩं की कृ ऩा प्रासद्ऱ हे तु धायण फकमा जाता हं । अष्ट त्रवनामक
                                                    कवि सकर त्रवघ्न-फाधाओॊ का नाश कयने औय इस्च्छत
                                                    कामं भं सपरता की प्रासद्ऱ हे तु उत्तभ हं ।
                                                                                                 भूल्म भाि: 1900


                                                    ससत्रद्ध त्रवनामक कवि
                                                    Siddhi Vinayak Ganapati Kawach
                                                    ससत्रद्ध त्रवनामक कवि को बगवान श्री गणेश को प्रसन्न
                                                    कयने क सरए धायण फकमा जाता हं । ससत्रद्ध त्रवनामक कवि
                                                          े
                                                    को त्रवशेष शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से तैमाय फकमा जाता हं ,
                                                    स्जससे ससत्रद्ध त्रवनामक कवि क प्रबाव से धायण कताा क
                                                                                  े                     े
                                                    सबी प्रकाय क त्रवघ्न-फाधाओॊ का नाश हो जामे। ससत्रद्ध
                                                                े
                                                    त्रवनामक कवि क प्रबाव से धायण कताा व्मत्रि को इस्च्छत
                                                                  े
                                                    कामं भं शीध्र सपरता की प्रासद्ऱ हो सक।
                                                                                         े
                                                    ससत्रद्ध त्रवनामक कवि को धायण कयने से श्री गणेशजी के
                                                    आसशवााद से धायण कताा को सबी शुब कामं भं सयरता से
                                                    ससत्रद्ध प्राद्ऱ हो सकती हं औय धायण कताा को सबी प्रकाय से
                                                    सुख प्राद्ऱ हो जाते हं । गणेशजी की कृ ऩा से धायण कताा को
                                                    त्रवद्या-फुत्रद्ध की प्रासद्ऱ होती हं ।
                                                    शास्त्रं भं बगवान श्री गणेश को सभस्त ससत्रद्धमं को दे ने
वारा भाना गमा हं । इस सरए सबी ससत्रद्धमाॉ बगवान गणेश भं वास कयती हं । बगवान श्री गणेश अऩने बिो के
सभस्त त्रवघ्न फाधाओॊ को दय कयने वारे त्रवनामक हं । ससत्रद्ध त्रवनामक कवि को श्रीगणेशजी की कृ ऩा प्रासद्ऱ हे तु
                         ू
धायण कयना अत्मॊत राबप्रद भाना गमा हं ।
                                                                                                 भूल्म भाि: 1450
16                                      पयवयी 2013



त्रवष्णु फीसा कवि
Vishnu Visha Kawach
                               त्रवष्णु फीसा कवि को धन, मश, सपरता औय उन्नसत की प्रासद्ऱ हे तु उत्तभ भाना
                               जाता हं । त्रवष्णु फीसा कवि को बगवान श्री त्रवष्णु को प्रसन्न कयने औय उनका
                               आसशवााद प्राद्ऱ कयने क सरए धायण फकमा जाता हं । फहन्द ू धभाग्रॊथं भं वस्णात हं
                                                     े
                               की जहाॉ बगवान त्रवष्णु सनवास कयते हं , उस स्थान ऩय भाॉ भहारक्ष्भी का बी
                               सनवास होता हं । स्जस बि ऩय बगवान त्रवष्णु प्रसन्न होते, कृ ऩा कयते हं , उस
                               बि ऩय दे वी भहारक्ष्भी बी स्वत् प्रसन्न होती हं औय अऩनी कृ ऩा व आशीवााद
                               दे ती हं । त्रवष्णु फीसा कवि को धायण कयने से व्मत्रि को कामं भं ससत्रद्ध व
                               सपरता की प्रासद्ऱ, स्वास्थ्म औय साॊसारयक सुखं भं वृत्रद्ध होती हं ।
                               त्रवद्रानं का अनुबव यहा हं की श्री त्रवष्णु फीसा कवि को धायण कयने से शीघ्र ही
                               धायणकताा क घय-ऩरयवाय भं सुख-सभृत्रद्ध-ऐश्वमा भं वृत्रद्ध होने रगती हं । त्रवष्णु फीसा
                                         े
                               कवि को धायण कयने से व्मत्रि भं सकायात्भक ऊजाा का सॊिाय होता हं । त्रवष्णु
                               फीसा कवि क प्रबाव से उसक रुक हुवे कामा सॊऩन्न होने रगते हं । कामाऺेि भं
                                         े             े   े
                               सुधाय होने रगता हं । शिु, योग आफद नाना प्रकाय क बमं का सनवायण हो जाता
                                                                              े
                               हं औय जीवन ऩयभ सुखी हो जाता हं ।
                                                                                                 भूल्म भाि: 1900




                                           भॊि ससद्ध मॊि
   गुरुत्व कामाारम द्राया त्रवसबन्न प्रकाय क मॊि कोऩय ताम्र ऩि, ससरवय (िाॊदी) ओय गोल्ड (सोने) भे
                                            े
   त्रवसबन्न प्रकाय की सभस्मा क अनुसाय फनवा क भॊि ससद्ध ऩूणा प्राणप्रसतत्रष्ठत एवॊ िैतन्म मुि फकमे
                               े             े
   जाते है . स्जसे साधायण (जो ऩूजा-ऩाठ नही जानते मा नही कसकते) व्मत्रि त्रफना फकसी ऩूजा अिाना-
   त्रवसध त्रवधान त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते है . स्जस भे प्रसिन मॊिो सफहत हभाये वषो क अनुसॊधान द्राया
                                                                                       े
   फनाए गमे मॊि बी सभाफहत है . इसक अरवा आऩकी आवश्मकता अनुशाय मॊि फनवाए जाते है . गुरुत्व
                                  े
   कामाारम द्राया उऩरब्ध कयामे गमे सबी मॊि अखॊफडत एवॊ २२ गेज शुद्ध कोऩय(ताम्र ऩि)- 99.99 टि
   शुद्ध ससरवय (िाॊदी) एवॊ 22 कये ट गोल्ड (सोने) भे फनवाए जाते है . मॊि क त्रवषम भे असधक जानकायी क
                               े                                         े                        े
   सरमे हे तु सम्ऩक कये
                   ा
                                  GURUTVA KARYALAY
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17                                           पयवयी 2013



याभबद्र फीसा कवि
Ramabhadra Visha Kawach
                                                 याभबद्र फीसा कवि को बगवान श्री याभ को प्रसन्न कयने औय उनका
                                                 आसशवााद प्राद्ऱ कयने क सरए धायण फकमा जाता हं । याभबद्र फीसा कवि को
                                                                       े
                                                 धायण कयने से भनुष्म क सफ कामा ससद्ध होने रगते हं । कवि को धायण
                                                                      े
                                                 कयने से व्मत्रि क सबी प्रकाय क सॊशम, बम, फॊधनो का नाश होता हं ।
                                                                  े            े
                                                 स्जससे व्मत्रि सनबाम होकय अऩने कामा ऺेि भं आगे फढ़ता हं व सपरता
                                                 क सशखय ऩहुॊि सकता हं । सनातन धभा भं याभ शब्द को धभा का भूर
                                                  े
                                                 भाना गमा हं । इस कसरमुग भं सभम क अबाव भं स्जस व्मत्रि क ऩास
                                                                                 े                      े
                                                 जऩ, तऩ, मऻ आफद धासभाक कामा कयने का सभम नहीॊ होता, ऐसे भं याभ
                                                 का नाभ ही एक भाि सहाया हं , क्मोकी, जो रोग कसरमुग क इस कार भं
                                                                                                    े
                                                 श्रीयाभ की शयण रेते हं , उन्हं कसरमुग भं कोई फाधा नहीॊ ऩहुॊिाता। याभबद्र
                                                 फीसा कवि श्री याभजी की कृ ऩा प्राद्ऱ कयने का का सयर भाध्मभ हं ।
                                                                                                                     भूल्म भाि: 1900
                                                 स्वस्स्तक फीसा कवि
                                                 Swastik Visha Kawach
                                                 स्वस्स्तक फीसा कवि को धायण कयने से इष्ट कृ ऩा से व्मत्रि की सभस्त
                                                 भनिाही इच्छाओॊ की ऩूसता हो सकती हं । त्रवद्रानं का अनुबव यहा हं की इस
                                                 कवि को त्रवसध-त्रवधान से सनभााण कय धायण कयने से धन-धान्म, उत्तभ
                                                 सॊतान आफद की प्रासद्ऱ होती हं । स्वस्स्तक फीसा कवि क प्रबाव से फकसी
                                                                                                     े
बी प्रकय से आशाहीन, असहाम, सनयाश व्मत्रि हो उसकी सबी आशा औय आशमऩूणा हो जाते हं । धायण कताा क सबी
                                                                                            े
प्रकाय क भनोयथ ससद्ध होते हं । कवि क प्रबाव से सुख, सौबाग्म भं वृत्रद्ध होती हं , औय धायण कताा का सबी प्रकाय से
        े                           े
कल्माण होता हं ।
                                                                                                                     भूल्म भाि: 1050



                                    क्मा आऩ फकसी सभस्मा से ग्रस्त हं ?
                             ु
   आऩक ऩास अऩनी सभस्माओॊ से छटकाया ऩाने हे तु ऩूजा-अिाना, साधना, भॊि जाऩ इत्माफद कयने का सभम नहीॊ
      े
   हं ? अफ आऩ अऩनी सभस्माओॊ से फीना फकसी त्रवशेष ऩूजा-अिाना, त्रवसध-त्रवधान क आऩको अऩने कामा भं
                                                                             े
   सपरता प्राद्ऱ कय सक एवॊ आऩको अऩने जीवन क सभस्त सुखो को प्राद्ऱ कयने का भागा प्राद्ऱ हो सक इस सरमे
                      े                    े                                                े
   गुरुत्व कामाारत द्राया हभाया उद्दे श्म शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशष्ट तेजस्वी भॊिो द्राया ससद्ध प्राण-प्रसतत्रष्ठत ऩूणा िैतन्म
   मुि त्रवसबन्न प्रकाय क मन्ि- कवि एवॊ शुब परदामी ग्रह यि एवॊ उऩयि आऩक घय तक ऩहोिाने का है ।
                         े                                             े
                              गुरुत्व कामाारम: Bhubaneswar- 751 018, (ORISSA) INDIA,
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  • 1. Font Help >> http://gurutvajyotish.blogspot.com गुरुत्व कामाारम द्राया प्रस्तुत भाससक ई-ऩत्रिका पयवयी- 2013 NON PROFIT PUBLICATION
  • 2. FREE E CIRCULAR गुरुत्व ज्मोसतष ऩत्रिका ई- जन्भ ऩत्रिका पयवयी 2013 अत्माधुसनक ज्मोसतष ऩद्धसत द्राया सॊऩादक सिॊतन जोशी सॊऩका गुरुत्व ज्मोसतष त्रवबाग उत्कृ ष्ट बत्रवष्मवाणी क साथ े गुरुत्व कामाारम 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, १००+ ऩेज भं प्रस्तुत (ORISSA) INDIA पोन 91+9338213418, 91+9238328785, E HOROSCOPE ईभेर gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in, Create By Advanced वेफ www.gurutvakaryalay.com http://gk.yolasite.com/ Astrology www.gurutvakaryalay.blogspot.com/ ऩत्रिका प्रस्तुसत Excellent Prediction सिॊतन जोशी, 100+ Pages स्वस्स्तक.ऎन.जोशी पोटो ग्राफपक्स फहॊ दी/ English भं भूल्म भाि 750/- सिॊतन जोशी, स्वस्स्तक आटा हभाये भुख्म सहमोगी GURUTVA KARYALAY स्वस्स्तक.ऎन.जोशी (स्वस्स्तक BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 सोफ्टे क इस्न्डमा सर) Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
  • 3. अनुक्रभ त्रवसबन्न कवि से काभना ऩूसता 7 भहा सुदशान कवि 24 अभोघ भहाभृत्मुॊजम कवि 7 त्रिशूर फीसा कवि 24 श्री घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध प्रद कवि 8 स्वप्न बम सनवायण कवि 25 सकर ससत्रद्ध प्रद गामिी कवि 9 सकर सम्भान प्रासद्ऱ कवि 25 दस भहा त्रवद्या कवि 10 आकषाण वृत्रद्ध कवि 25 नवदगाा शत्रि कवि ु 11 वशीकयण नाशक कवि 26 ऩॊिदे व शत्रि कवि 12 यसामन ससत्रद्ध कवि 26 सुवणा रक्ष्भी कवि 13 काभना ऩूसता हे तु हभाये त्रवशेष कवि 27 स्वणााकषाण बैयव कवि 13 सवा कामा ससत्रद्ध कवि 27 श्रीदगाा फीसा कवि ु 14 याज याजेश्वयी कवि 27 अष्ट त्रवनामक कवि 15 सवाजन वशीकयण कवि 28 ससत्रद्ध त्रवनामक कवि 15 अष्ट रक्ष्भी कवि 28 त्रवष्णु फीसा कवि 16 शिु त्रवजम कवि 29 याभबद्र फीसा कवि 17 ऩयदे श गभन औय राब प्रासद्ऱ कवि 29 स्वस्स्तक फीसा कवि 17 बूसभराब कवि 30 सयस्वती कवि 18 आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ कवि 30 हॊ स फीसा कवि 18 ऩदौन्नसत कवि 30 कफेय फीसा कवि ु 19 तॊि यऺा कवि 30 नवााण फीसा कवि 20 ऋण भुत्रि कवि 31 गरुड फीसा कवि 20 योजगाय प्रासद्ऱ कवि 31 ससॊह फीसा कवि 20 ग्रह शाॊसत हे तु त्रवशेष कवि 32 सॊकट भोसिनी कासरका ससत्रद्ध कवि 21 कारसऩा शाॊसत कवि 32 याभ यऺा कवि 22 शसन साड़े साती औय ढ़ै मा कष्ट सनवायण कवि 33 हनुभान कवि 22 श्रात्रऩत मोग सनवायण कवि 33 बैयव यऺा कवि 23 िॊडार मोग सनवायण कवि 34 इष्ट ससत्रद्ध कवि 23 ग्रहण मोग सनवायण कवि 35 त्रवरऺण सकर याज वशीकयण कवि 23 भाॊगसरक मोग सनवायण कवि 36 सुदशान फीसा कवि 24 ससद्ध सूम, िॊद्र, भॊगर, फुध, गुरु, शुक्र, शसन, याहु, कतु कवि 36-37 ा े स्थामी औय अन्म रेख सॊऩादकीम 4 दै सनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका 66 पयवयी 2013 भाससक यासश पर 55 फदन-यात क िौघफडमे े 67 पयवयी 2013 भाससक ऩॊिाॊग 59 फदन-यात फक होया - सूमोदम से सूमाास्त तक 68 पयवयी 2013 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय 61 ग्रह िरन पयवयी 2013 69 पयवयी 2013-त्रवशेष मोग 66 हभाया उद्दे श्म 79
  • 4. त्रप्रम आस्त्भम फॊध/ फफहन ु जम गुरुदे व साभान्म बाषा भं कवि शब्द का अथा होता हं यऺा/फिाव कयने वारा होता हं । ऩौयास्णक ग्रॊथं क अध्ममन से े हभं ऻात होता हं की मोद्धा जफ मुद्ध कयने क सरए जाते थे तो अऩने त्रवयोसध मा प्रसतद्रॊ द्री ऩऺ क अस्त्र-शस्त्रं क घात- े े े प्रसतघात से शयीय की यऺा क सरए रोहे से फना त्रवशेष रुऩ का कवि धायण कयते थे। स्जससे मुद्ध क दौयान उनका े े शयीय असधक दे य तक सुयस्ऺत यहता था। त्रवसबन्न दे वी दे वताओॊ क कवि बी इसी प्रकाय से कामा कयते हं , एक कवि े वह हं जो भॊि एवॊ स्त्रोत क स्वरुऩ होता हं स्जसक ऩाठ-ऩठन से साधक का यऺण होता हं दसया होता हं दे वी-दे वता क े े ू े भॊि, मॊि आफद द्राया त्रवशेष रुऩ से सनसभात फकमे गमे कवि स्जसको धायण कय धायण कताा की त्रवसबन्न असबराषाऐ ऩूणा होती हं । त्रवसबन्न दे वी-दे वताओॊ क भॊि, मॊि आफद द्राया सनसभात कवि क प्रबाव से धायण कताा की यऺा होने का े े उल्रेख हभाये धभाशास्त्रं भं सभरता हं , ब्रह्म वैवता ऩुयाण भं वस्णात प्रसॊग 1: ब्रह्म वैवता ऩुयाण भं गणऩसत खण्ड अध्माम 30 भं उल्रेख हं की ऩयशुयाभ ने कातावीमा को भायने की प्रसतऻा को ऩूया कयने क सरए सशवजी से अऩना असबप्राम प्रकट कयते हं , स्जसे सुनकय दे वी बगवती क्रोसधत हो जाती हं औय े सशवजी से अऩनी मािना कयने आमे ऩयशुयाभ की सनॊदा कयते हुवे उनकी बत्साना कयती हं । तफ ऩयशुयाभ दे वी जगदम्फा क क्रोसधत विनं को सुनकय जोय-जोय से योने रगते हं औय अऩने प्राण-त्मागने क सरए तैमाय हो जाते हं । े े तफ बोरेनाथ ने ब्राह्मण फारक को योते दे ख, स्नेह औय त्रवनम ऩूवक दे वी बगवती क क्रोध को शाॊत फकम औय ा े ऩयशुयाभ से कहाॊ "हे वत्स ! आज से तुभ भेये सरमे ऩुि क सभान हो, भं तुम्हं एसा गूढ़ भॊि प्रदान करुॉ गा जो े त्रिरोकं भं अत्मॊत दरब हं । इसी प्रकाय एक एसा ऩयभ दरब एवॊ अद्द्भत कवि प्रदान करुॉ गा स्जसे धायण कयक तुभ ु ा ु ा ु े भेयी कृ ऩा से कातावीमा का वध कयंगे। वत्स ! तुभ इक्कीस फाय ऩृथ्वी को ऺत्रिम-त्रवहीन कयने भं सभथा हंगे औय साये जगत भं तुम्हायी कीसता व्माद्ऱ होगी इसभं जयाबी सॊशम नहीॊ हं । फपय सशवजीने ऩयशुयाभ से कहाॉ ! वत्स "िैरोक्मत्रवज" नाभक कवि, जो ऩयभ दरब औय अनोखा हं ु ा भैने तुम्हं फतरा फदमा हं । भैने इसे श्रीकृ ष्ण क भुख से श्रवण फकमा हं , इस सरमे इसे स्जस फकसी को नहीॊ फतराना िाफहए। े जो ऩूणा त्रवसध-त्रवधान से गुरु ऩूजन कयक इस कवि को गरे भं मा अऩनी दाफहनी बुजा ऩय धायण कयता हं , वह े त्रवष्णु-तुल्म हो जाता हं , इसभं सॊशम नहीॊ हं । वह जहाॉ यहता हं , वहाॉ रक्ष्भी औय सयस्वती सनवास कयती हं । मफद कोई इस कवि को ससत्रद्ध कयरे तो वह प्राणी जीवन भुि हो जाता हं औय कयोड़ं वषं की ऩूजा का पर उसे प्राद्ऱ हो जाता हं । क्मोकी, हजायं याजसूम, अश्वभेध आफद सॊऩूणा भहादान इस िैरोक्मत्रवजम कवि की सोरहवीॊ करा की बी सभानता ा नहीॊ कय सकते। हजायं सैकड़ं व्रत-उऩवास, तऩस्मा, तीथा स्नान आफद सबी ऩूण्म कभा इसकी करा को नहीॊ ऩा सकते। इस सरए वत्स ! इस कवि को धायण कय तुभ आनन्दऩूवक सनस्िॊत हो कय इक्कीस फाय ऩृथ्वी को ऺत्रिम- ा त्रवहीन कयने का अऩना प्रण ऩूया कयं! रेफकन ऩुि ! प्राण सॊकट भं हो तो याज्म स्जमा जा सकता हं , ससय कटामा जा सकता हं औय प्राणं को ऩरयत्माग बी फकमा जा सकता हं , रेफकन एसे दरब कवि का दान नहीॊ कयना िाफहए। ु ा इस प्रकाय सशव कृ ऩा से ऩयशुयाभ ने 21 फाय ऩृथ्वी को ऺत्रिम-त्रवहीन कय फदमा (हय फाय फकसी कायणं से ऺत्रिमं की ऩस्िमाॉ जीत्रवत यहीॊ औय नई ऩीढ़ी को जन्भ फदमा) औय ऩाॉि झीरं को यि से बय फदमा। अॊत भं त्रऩतयं की
  • 5. आकाशवाणी सुनकय उन्हंने ऺत्रिमं से मुद्ध कयना छोड़कय तऩस्मा भं रग गमे। एसा वणान धभाग्रथं भं सभरता हं । ॊ ब्रह्म वैवता ऩुयाण भं वस्णात प्रसॊग 2: ब्रह्म वैवता ऩुयाण भं गणऩसत खण्ड अध्माम 35 भं उल्रेख हं की ऩयशुयाभ ने याजा भत्स्मयाज से उसका सुयऺा कवि भाॊगकय उसका वध फकमा। भत्स्मयाज क गरे भं ऋत्रष दवाासा द्राया फदमा गमा सशवजी का फदव्म कवि फॉधा था े ु ! मुद्ध क दौयान आकाशवाणी हुई, मह कवि याजा को प्राण-प्रदान कयने वारा था इस सरए याजा से प्राण-प्रदान कयने े वारे कवि को भाॉग कय उसका वध कयं। तफ ऩयशुयाभ ने सॊन्मासी का वेष धायण कयक याजा से कवि की मािना की। याजा भत्स्मयाज ने प्राण-प्रदान े कयने वारे "ब्राह्मण-त्रवजम" नाभक उत्तभ कवि को उन्हं दे फदमा। उस कवि को रेकय ऩयशुयाभ नं त्रिशूर से प्रहाय से िॊद्रवॊश भं उत्ऩन्न, गुणवान औय भहाफरी, स्जसक भुख की काॊसत सैकड़ं िन्द्रभाओॊ क सभान थी, वह बूतर ऩय सगय े े गमा। याजा से उसका कवि दान भं भाॉगकय उसका वध फकमा। ब्रह्म वैवता ऩुयाण भं वस्णात प्रसॊग 3: ब्रह्म वैवता ऩुयाण भं गणऩसत खण्ड अध्माम 38 भं उल्रेख हं की ऩयशुयाभ का सुिन्द्र-ऩुि ऩुष्कयाऺ का मुद्ध के दौयान ऩाशुऩत शस्त्र को छोड़ने का उद्यत कयते सभम ऩयशुयाभक ऩास बगवान हरय वृद्ध ब्राह्मण वेश भं आकय, उन्हं े सभझामा की वत्स बागाव ! तुभ तो भहाऻासन हो फपय भ्रभव्सह, क्रोधावेश भं आकय तुभ भनुष्म का वध कयने क सरमे े ऩाशुऩत का प्रमोग क्मं कय यहे हो? इस ऩाशुऩत से तत्ऺण साया त्रवश्व बस्भ हो सकता हं , क्मोफक मह शस्त्र बगवान श्रीकृ ष्ण क असतरयि औय सफका त्रवनाशक हं । इस ऩाशुऩत को जीतने की शत्रि तो सुदशान िक्र औय श्रीहरय भं ही हं , े मह दोनं तीनं रोकं भं सभस्त अस्त्रं भं प्रधान हं । इससरए हे वत्स! तुभ ऩाशुऩतास्त्र को यख दं औय भेयी फात सुनं। सुिन्द्र-ऩुि ऩुष्कयाऺ क गरे भं भहारक्ष्भी कवि कवि हं जो तीनं रोकं भं दरब हं , स्जसे ऩुष्कयाऺ नं बत्रिऩूवक े ु ा ा त्रवसध-त्रवधान से अऩने गरे भं धायण कय यखा हं औय ऩुष्कयाऺ क ऩुि नं आद्यशत्रि दे वी दगाा का ऩयभ दरब एवॊ े ु ु ा उत्तभ कवि अऩने दाफहनी बुजा ऩय फाॉधा हुवा हं ।। स्जसक प्रबाव से वह दोनं ऩयभैश्वमा सम्ऩन्न औय त्रिरोकत्रवजमी े हुवे हं । इस कवि को धायण फकमे हुवे को कौन जीत सकता हं । इससरए वत्स ! भं तुम्हायी प्रसतऻा को सपर कयने के सरए उन दोनं क सॊसनकट जाकय उनसे कवि की मािना करुॉ गा। े ब्राह्मण वेशधायी बगवान त्रवष्णु की फात सुनकय ऩयशुयाभ ने बमसबत हो कय वृद्ध ब्राह्मण से ऩूछा "भहाप्रऻ" ब्राह्मणरुऩधायी आऩ कौन हं , भं मह नहीॊ जान ऩा यहा हूॉ, अत् आऩ भुझ अनजान को शीघ्र ही अऩना ऩरयिम दीस्जमे , तफ बगवान त्रवष्णु ने हॉ स कय कहाॉ भं त्रवष्णु हूॉ। फपय बगवान त्रवष्णु ने त्रवप्र रूऩधायण कय अऩनी भामा से भोफहत कय ऩुष्कयाऺ से भहारक्ष्भी औय उसक ऩुि से े दगाा कवि को दान रूऩ भं प्राद्ऱ कयसरमा। फपय ऩयशुयाभ ने याजा का वध कय फदमा। इस प्रकाय कवि क अद्द्भत ु े ु प्रबावं क भफहभा से हभाये धभा ग्रॊथ आफद अनेकं शास्त्र भं बये ऩड़े हं । े इस अॊक भं प्रकासशत कवि से सॊफॊसधत जानकायीमं क त्रवषम भं साधक एवॊ त्रवद्रान ऩाठको से अनुयोध हं , मफद दशाामे े गए कवि क राब, प्रबाव इत्मादी क सॊकरन, प्रभाण ऩढ़ने, सॊऩादन भं, फडजाईन भं, टाईऩीॊग भं, त्रप्रॊफटॊ ग भं, प्रकाशन े े भं कोई िुफट यह गई हो, तो उसे स्वमॊ सुधाय रं मा फकसी मोग्म ज्मोसतषी, गुरु मा त्रवद्रान से सराह त्रवभशा कय रे । क्मोफक त्रवद्रान ज्मोसतषी, गुरुजनो एवॊ साधको क सनजी अनुबव त्रवसबन्न कविो की सनभााण ऩद्धसत एवॊ प्रबावं का े वणान कयने भं बेद होने ऩय कवि की, ऩूजन त्रवसध एवॊ उसक प्रबावं भं सबन्नता सॊबव हं । े सिॊतन जोशी
  • 6. 6 पयवयी 2013 ***** कवि त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत सूिना *****  ऩत्रिका भं प्रकासशत कवि त्रवशेषाॊक गुरुत्व कामाारम क असधकायं क साथ ही आयस्ऺत हं । े े  कवि त्रवशेषाॊक भं वस्णात रेखं को नास्स्तक/अत्रवश्वासु व्मत्रि भाि ऩठन साभग्री सभझ सकते हं ।  कवि का त्रवषम आध्मात्भ से सॊफॊसधत होने क कायण बायसतम धभा शास्त्रं से प्रेरयत होकय प्रस्तुत े फकमा हं ।  कवि त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत त्रवषमो फक सत्मता अथवा प्राभास्णकता ऩय फकसी बी प्रकाय की स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हं ।  कवि से सॊफॊसधत सबी जानकायीकी प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव की स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक की नहीॊ हं औय ना हीॊ प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव की स्जन्भेदायी क फाये भं जानकायी दे ने हे तु े कामाारम मा सॊऩादक फकसी बी प्रकाय से फाध्म हं ।  कवि त्रवशेषाॊक भं वस्णात  कवि त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत रेखो भं ऩाठक का अऩना त्रवश्वास होना आवश्मक हं । फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष को फकसी बी प्रकाय से इन त्रवषमो भं त्रवश्वास कयने ना कयने का अॊसतभ सनणाम स्वमॊ का होगा।  कवि त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत फकसी बी प्रकाय की आऩत्ती स्वीकामा नहीॊ होगी।  कवि त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत रेख हभाये वषो क अनुबव एवॊ अनुशॊधान क आधाय ऩय फदए गमे हं । े े हभ फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष द्राया प्रमोग फकमे जाने वारे कवि, भॊि- मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोकी स्जन्भेदायी नफहॊ रेते हं । मह स्जन्भेदायी कवि, भॊि-मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोको कयने वारे व्मत्रि फक स्वमॊ फक होगी। क्मोफक इन त्रवषमो भं नैसतक भानदॊ डं, साभास्जक, कानूनी सनमभं क स्खराप कोई व्मत्रि मफद नीजी स्वाथा ऩूसता हे तु प्रमोग कताा हं अथवा प्रमोग क कयने भे े े िुफट होने ऩय प्रसतकर ऩरयणाभ सॊबव हं । ू  कवि त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत जानकायी को भाननने से प्राद्ऱ होने वारे राब, राब की हानी मा हानी की स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक की नहीॊ हं ।  हभाये द्राया ऩोस्ट फकमे गमे सबी कवि एवॊ भॊि-मॊि मा उऩाम हभने सैकडोफाय स्वमॊ ऩय एवॊ अन्म हभाये फॊधगण ऩय प्रमोग फकमे हं स्जस्से हभे हय प्रमोग मा कवि, भॊि-मॊि मा उऩामो द्राया सनस्ित ु सपरता प्राद्ऱ हुई हं । असधक जानकायी हे तु आऩ कामाारम भं सॊऩक कय सकते हं । ा (सबी त्रववादो कसरमे कवर बुवनेश्वय न्मामारम ही भान्म होगा।) े े
  • 7. 7 पयवयी 2013 त्रवसबन्न कवि से काभना ऩूसता  सिॊतन जोशी अभोघ भहाभृत्मुॊजम कवि Amogh Mahamrutyunjay Kawach मफद जन्भ कडरी भं भृत्मु का मोग फन यहा हो, भायक ग्रहं की दशा ुॊ क दौयान प्राणबम, शिुआफद क कायण प्राणबम, आकस्स्भक कण्डरी भं े े ु दघटनाओॊ क मोग फन यहे हो, फाय-फाय स्वास्थ्म सॊफॊसधत सभस्माएॊ ु ा े कष्ट दे यफह हो, औषसधमं का प्रबाव रेशभाि हो यहा हो आफद सबी कायण स्जससे प्राण सॊकट भं हो तफ शास्त्रोि भतानुशाय अभोघ भहाभृत्मुॊजम कवि सवाश्रष्ठ उऩाम भाना जाता हं । े शास्त्रं भं वस्णात हं की एक फाय दे वी बगवती ने बगवान सशव से ऩूछा फक प्रबू अकार भृत्मु से यऺा कयने औय सबी प्रकाय क अशुबं से यऺा े का कोई सयर उऩाम फताइए। तफ बगवान सशव ने भहाभृत्मुॊजम कवि क फाये भं फतामा। भहाभृॊत्मुजम कवि को धायण कयक भनुष्म का े े सबी प्रकाय क असनष्ट से फि होता हं औय अकार भृत्मु को बी टार े सकता हं । अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम कवि व उल्रेस्खत अन्म साभग्रीमं को शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवद्रान ब्राह्मणो द्राया सवा राख भहाभृत्मुॊजम भॊि जऩ एवॊ दशाॊश हवन द्राया सनसभात फकमा जाता हं इस सरए कवि अत्मॊत प्रबावशारी होता हं । भूल्म भाि: 10900 भॊि ससद्ध दरब साभग्री ु ा हत्था जोडी- Rs- 370 घोडे की नार- Rs.351 भामा जार- Rs- 251 ससमाय ससॊगी- Rs- 370 दस्ऺणावतॉ शॊख- Rs- 550 इन्द्र जार- Rs- 251 त्रफल्री नार- Rs- 370 भोसत शॊख- Rs- 550 धन वृत्रद्ध हकीक सेट Rs-251 GURUTVA KARYALAY Call Us: 91 + 9338213418, 91 + 9238328785, Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
  • 8. 8 पयवयी 2013 श्री घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध प्रद कवि Shri Ghantakarn Mahavir Sarv Siddhi Prad Kawach श्री घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध प्रद कवि को धायण कयने से धायण कताा की सकर भनोकाभनाएॊ ऩूणा होती हं । धायण कताा का सबी प्रकाय क बूत-प्रेत आफद उऩद्रव से यऺण े होता हं । दष्ट व असुयी शत्रिमं से उत्ऩन्न होने वारे सबी ु प्रकाय क बम श्री घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध प्रद कवि क े े प्रबाव से दय हो जाते हं । ू श्री घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध प्रद कवि को धायण कयने से साधक को धन, सुख, सभृत्रद्ध, ऎश्वमा, सॊतत्रत्त-सॊऩत्रत्त आफद की प्रासद्ऱ होती हं । कवि को धायण कयने से शीघ्र ही साधक की सबी प्रकाय की सास्त्वक इच्छाओॊ की ऩूसता होती हं । मफद फकसी व्मत्रि ऩय वशीकयण, भायण, उच्िाटन इत्माफद जाद-टोने वारे प्रमोग फकमे गमं होतो इस श्री घॊटाकणा ू भहावीय सवा ससत्रद्ध प्रद कवि क प्रबाव से स्वत् नष्ट हो जाते े हं औय बत्रवष्म भं मफद कोई प्रमोग कयता हं तो यऺण होता हं । कवि धायण कताा को मफद कोई इषाा, रोब, भोह मा शिुतावश मफद अनुसित कभा कयक फकसी बी उद्दे श्म से साधक े को ऩये शान कयने का प्रमास कयता हं तो कवि क प्रबाव से े साधक का यऺण तो होता ही हं , कबी-कबी शिु क द्राया फकमा े गमा अनुसित कभा शिु ऩय ही उऩय उरट वाय हो जाते हं । भूल्म भाि: 6400 बाग्म रक्ष्भी फदब्फी सुख-शास्न्त-सभृत्रद्ध की प्रासद्ऱ क सरमे बाग्म रक्ष्भी फदब्फी :- स्जस्से धन प्रसद्ऱ, त्रववाह मोग, े व्माऩाय वृत्रद्ध, वशीकयण, कोटा किेयी क कामा, बूतप्रेत फाधा, भायण, सम्भोहन, तास्न्िक े फाधा, शिु बम, िोय बम जेसी अनेक ऩये शासनमो से यऺा होसत है औय घय भे सुख सभृत्रद्ध फक प्रासद्ऱ होसत है , बाग्म रक्ष्भी फदब्फी भे रघु श्री फ़र, हस्तजोडी (हाथा जोडी), ससमाय ससन्गी, त्रफस्ल्र नार, शॊख, कारी-सफ़द-रार गुॊजा, इन्द्र जार, भाम जार, ऩातार तुभडी े जेसी अनेक दरब साभग्री होती है । ु ा भूल्म:- Rs. 1250, 1900, 2800, 5500, 7300, 10900 भं उप्रब्द्ध गुरुत्व कामाारम सॊऩक : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785 ा c
  • 9. 9 पयवयी 2013 सकर ससत्रद्ध प्रद गामिी कवि Sakal Siddhi Prad Gayatri Kawach वेदं भं उल्रेख हं की दे वी गामिी सबी प्रकाय के ऻान औय त्रवऻान की जननी हं , दे वी गामिी की उऩासना कयने से दे वी गामिी का आसशवााद प्राद्ऱ कय साधक 84 कराओॊ का ऻाता हो जाता हं । भाना जाता हं की ससद्ध की हुई गामिी काभधेनु क सभान े हं । स्जस प्रकाय गॊगा शयीय क ऩाऩं को सनभार े कयती हं , उसी प्रकाय गामिी रूऩी ब्रह्म गॊगा से आत्भा ऩत्रवि होती हं । स्जस प्रकाय दे वी गामिी ऩाऩं का नाश कयने वारी हं , सभस्त साॊसारयक औय ऩायरौफकक सुखं को प्रदान कयने वारी हं । उसी प्रकाय सकर ससत्रद्ध प्रद गामिी कवि को धायण कयने से साधक क सभस्त े योग-शोक-बम, बूत-प्रेत, तॊि फाधा, िोट, भायण, भोहन, उच्िाटन, वशीकयण, स्तॊबन, काभण-टू भण, इत्माफद उऩद्रवं का नाश होता हं । साधक को धभा, अथा, काभ औय भोऺ की प्रासद्ऱ बी सॊबॊव हं ! सकर ससत्रद्ध प्रद गामिी कवि को धायण कयने से भूखा से भूखा औय जड़ से जड़ व्मत्रि बी त्रवद्रान होने भं सभथा हो सकता हं ! धायण कताा को असाध्म योग एवॊ ऩये शानीमं से भुत्रि सभर सकती हं ! सकर ससत्रद्ध प्रद गामिी कवि क प्रबाव से फदन-प्रसतफदन धायण कताा की धन-सॊऩत्रत्त की वृत्रद्ध एवॊ यऺा होती हं । े सकर ससत्रद्ध प्रद गामिी कवि क प्रबाव से ग्रह जसनत ऩीड़ाओॊ से बी यऺा होती। े धायण कताा को अऩने कामं भं अभूत सपरतामं सभर जाती हं । सकर ससत्रद्ध प्रद गामिी कवि को धायण कयने से धायण कताा का सित्त शुद्ध होता हं औय रृदम भं सनभारता आती हं । शयीय नीयोग यहता हं , स्वबाव भं नम्रता आती हं , फुत्रद्ध सूक्ष्भ होने से साधक की दयदसशाता फढ़ती हं औय स्भयण शत्रि का त्रवकास होता हं । अनुसित काभ कयने ू े ु े ू वारं क दा गुण गामिी क कायण सयरता से छट सकते हं । भूल्म भाि: 6400
  • 10. 10 पयवयी 2013 दस भहा त्रवद्या कवि Dus Mahavidya Kawach दस भहा त्रवद्या कवि को दे वी दस भहा त्रवद्या की शत्रिमं से सॊऩन्न अत्मॊत प्रबावशारी औय दरब कवि ु ा भाना गमा हं । इस कवि क भाध्मभ से साधक को दसो भहात्रवद्याओॊ े आसशवााद प्राद्ऱ हो सकता हं । दस भहा त्रवद्या कवि को धायण कयने से साधक की सबी भनोकाभनाओॊ की ऩूसता होती हं । दस भहा त्रवद्या कवि साधक की सभस्त इच्छाओॊ की ऩूसता कयने भं सभथा हं । दस भहा त्रवद्या कवि धायण कताा को शत्रिसॊऩन्न एवॊ बूसभवान फनाने भं सभथा हं । दस भहा त्रवद्या कवि को श्रद्धाऩूवक धायण कयने से ा शीघ्र दे वी कृ ऩा प्राद्ऱ होती हं औय धायण कताा को दस भहा त्रवद्या दे वीमं की कृ ऩा से सॊसाय की सभस्त ससत्रद्धमं की प्रासद्ऱ सॊबव हं । दे वी दस भहा त्रवद्या की कृ ऩा से साधक को धभा, अथा, काभ व ् भोऺ ितुत्रवाध ऩुरुषाथं की प्रासद्ऱ हो सकती हं । दस भहा त्रवद्या कवि भं भाॉ दगाा क दस अवतायं का आशीवााद सभाफहत ु े होता हं , इस सरए दस भहा त्रवद्या कवि को धायण कय क धायण कयक व्मत्रि अऩने जीवन को सनयॊ तय असधक े े से असधक साथाक एवॊ सपर फना सकता हं । दश भहात्रवद्या को शास्त्रं भं आद्या बगवती क दस बेद कहे गमे हं , जो क्रभश् (1) कारी, (2) ताया, (3) षोडशी, े (4) बुवनेश्वयी, (5) बैयवी, (6) सछन्नभस्ता, (7) धूभावती, (8) फगरा, (9) भातॊगी एवॊ (10) कभास्त्भका। इस सबी दे वी स्वरुऩं को, सस्म्भसरत रुऩ भं दशभहात्रवद्या क नाभ से जाना जाता हं । े भूल्म भाि: 6400 यि एवॊ उऩयि हभाये महाॊ सबी प्रकाय क यि एवॊ उऩयि व्माऩायी भूल्म ऩय उऩरब्ध हं । ज्मोसतष कामा से जुडे़ फधु/फहन व यि े व्मवसाम से जुडे रोगो क सरमे त्रवशेष भूल्म ऩय यि व अन्म साभग्रीमा व अन्म सुत्रवधाएॊ उऩरब्ध हं । े गुरुत्व कामाारम सॊऩक : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785. ा
  • 11. 11 पयवयी 2013 नवदगाा शत्रि कवि ु Navdurga Shakiti Kawach भाॊ दगाा क नवरुऩ क्रभश् ु े 1. शैरऩुिी 2. ब्रह्मिारयणी 3. िन्द्रघण्टा 4. कष्भाण्डा ू 5. स्कन्दभाता 6. कात्मामनी 7. कारयात्रि 8. भहागौयी 9. ससत्रद्धदािी हं । नौदे वीमं क कविं को एक साथ भं सभराकय े फनाकय नवदगाा कवि का सनभााण फकमा जाता हं । ु स्जससे धायण कताा को नौ दे वीमं का आसशवााद एक साथ प्राद्ऱ हो जाता हं । नौ दे वीमं क कवि का भहत्व क्रभश् आऩक े े भागादशान हे तु महाॉ प्रस्तुत हं । दे वी शैरऩुिी का कवि धायण कयने वारा व्मत्रि सदा धन-धान्म से सॊऩन्न यहता हं । अथाात उसे स्जवन भं धन एवॊ अन्म सुख साधनो की कभी भहसुस नहीॊ होतीॊ। व्मत्रि को अनेक प्रकाय की ससत्रद्धमाॊ एवॊ उऩरस्ब्धमाॊ प्राद्ऱ होती हं । दे वी ब्रह्मिारयणी का कवि धायण कयने वारे व्मत्रि को अनॊत पर की प्रासद्ऱ होती हं । कवि क प्रबाव से व्मत्रि भं तऩ, े त्माग, सदािाय, सॊमभ जैसे सद् गुणं फक वृत्रद्ध होती हं । दे वी िन्द्रघण्टा का कवि धायण कयने से व्मत्रि को सबी ऩाऩं से भुत्रि सभरती हं उसे सभस्त साॊसारयक आसध-व्मासध से भुत्रि सभरती हं । इसक उऩयाॊत व्मत्रि को सियामु, आयोग्म, सुखी औय सॊऩन्नता प्राद्ऱ होती हं । कवि क प्रबाव से े े व्मत्रि क साहस एव त्रवयता भं वृत्रद्ध होती हं । व्मत्रि क स्वय भं सभठास आती हं उसक आकषाण भं बी वृत्रद्ध होती हं । े े े क्मोफक, िन्द्रघण्टा को ऻान की दे वी बी भाना गमा हं । दे वी कष्भाण्डा क कवि को धायण कयने वारे व्मत्रि को सबी प्रकाय क योग, शोक औय क्रेश से भुत्रि सभरती हं , उसे ू े े आमुष्म, मश, फर औय फुत्रद्ध प्राद्ऱ होती हं । दे वी स्कदभाता क कवि को धायण कयने से व्मत्रि की सभस्त इच्छाओॊ की ऩूसता होती हं एवॊ जीवन भं ऩयभ सुख एवॊ ॊ े शाॊसत प्राद्ऱ होती हं ।
  • 12. 12 पयवयी 2013 दे वी कात्मामनी का कवि धायण कयने से व्मत्रि को सबी प्रकाय क योग, शोक, बम से भुत्रि सभरती हं । कात्मामनी े दे वी को वैफदक मुग भं मे ऋत्रष-भुसनमं को कष्ट दे ने वारे यऺ-दानव, ऩाऩी जीव को अऩने तेज से ही नष्ट कय दे ने वारी भाना गमा हं । दे वी कारयात्रि का कवि धायण कयने से अस्ग्न बम, आकाश बम, बूत त्रऩशाि इत्मादी शत्रिमाॊ कारयात्रि दे वी के स्भयण भाि से ही बाग जाते हं , कारयात्रि शिु एवॊ दष्टं का सॊहाय कयने वारी दे वी हं । ु े े ु दे वी भहागौयी क कवि को धायण कयने से व्मत्रि क सभस्त ऩाऩं से छटकाया सभरता हं । मह भाॊ अन्नऩूणाा क सभान, े धन, वैबव औय सुख-शाॊसत प्रदान कयने वारी एवॊ सॊकट से भुत्रि फदराने वारी दे वी भहागौयी का कवि हं । दे वी ससत्रद्धदािी क कवि को धायण कयने से व्मत्रि फक सभस्त काभनाओॊ फक ऩूसता होती हं उसे ऋत्रद्ध-ससत्रद्ध की प्रासद्ऱ े होती हं । कवि क प्रबाव से व्मत्रि क मश, फर औय धन की प्रासद्ऱ आफद कामो भं हो यहे फाधा-त्रवध्न सभाद्ऱ हो जाते े े हं । व्मत्रि को मश, फर औय धन की प्रासद्ऱ हो कय उसे भाॊ की कृ ऩा से धभा, अथा, काभ औय भोऺ फक बी प्रासद्ऱ स्वत् हो जाती हं । भूल्म भाि: 6400 ऩॊिदे व शत्रि कवि Pancha Dev Shakti Kawach ऩॊिदे व फहन्द ू धभा क ऩाॉि प्रधान दे वताओॊ को कहाॉ जाता हं , इन ऩॊिदे वताओॊ की ऩूजा-उऩासना आफद फहन्द ू धभा भं े त्रवशेष रुऩ से प्रिसरत हं । फहन्द ू धभा भं फकसी बी शुब औय भाॊगसरक कामा भं ऩॊिदे वताओॊ की ऩूजा को असनवामा भाना गमा हं । इन ऩाॉि दे वताओॊ क रुऩ भं बगवान श्रीगणेश, सशव, त्रवष्णु, दगाा औय सूमा की आयाधना फक जाती हं । े ु त्रवद्रानं ने अऩने अनुबवं क आधाय से मह ऩामा हं की इन ऩॊिदे व अथाात श्री गणेश, सशव, त्रवष्णु, दगाा औय सूमा की े ु सॊमुि कृ ऩा से जीवन भं बौसतक सुख-साधनं की प्रासद्ऱ व आसशवााद प्राद्ऱ कयने का उत्तभ भाध्मभ ऩॊिदे व शत्रि कवि हं । ऩॊिदे व शत्रि कवि को धायण कयने से व्मत्रि को सुख-सौबाग्म एवॊ ऐश्वमा की प्रासद्ऱ होती हं । ऩॊिदे व शत्रि कवि को धायण कयने से धायण कताा क सकर भनोयथ शीघ्र ससद्ध होने रगते हं औय उसक जीवन से सबी प्रकाय क द्ख, े े े ु योग, शोक एवॊ त्रवघ्न-फाधाओॊ का स्वत् नाश होता हं । भूल्म भाि: 6400 शादी सॊफॊसधत सभस्मा क्मा आऩक रडक-रडकी फक आऩकी शादी भं अनावश्मक रूऩ से त्रवरम्फ हो यहा हं मा उनक वैवाफहक े े े जीवन भं खुसशमाॊ कभ होती जायही हं औय सभस्मा असधक फढती जायही हं । एसी स्स्थती होने ऩय अऩने रडक-रडकी फक कडरी का अध्ममन अवश्म कयवारे औय उनक वैवाफहक सुख को कभ कयने े ॊु े वारे दोषं क सनवायण क उऩामो क फाय भं त्रवस्ताय से जनकायी प्राद्ऱ कयं । े े े GURUTVA KARYALAY Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
  • 13. 13 पयवयी 2013 सुवणा रक्ष्भी कवि Suvarn Lakshmi Kawach सुवणा रक्ष्भी कवि को धायण कयने से धन-सॊऩत्रत्त, यि- आबूषण आफद की वृत्रद्ध होती हं । सुवणा रक्ष्भी कवि को धायण कयने से धायणकताा को सुवणा से सॊफॊसधत कामं भं त्रवशेष राब की प्रासद्ऱ होती हं । त्रवसबन्न स्त्रोत से आसथाक राब सभरने क मोग फनते हं । सुवणा रक्ष्भी कवि क े े प्रबाव से धायणकताा की सुवणा से सॊफॊसधत सबी असबराषाएॊ शीघ्र ही ऩूणा होने की प्रफर सॊबावनाएॊ फनती हं । भूल्म भाि: 4600 स्वणााकषाण बैयव कवि Swarnakarshan Bhairav Kawach फहन्द ू धभा भं बैयव जी को बगवान सशव क द्रादश स्वरूऩ े क रुऩ भं ऩूजा जाता हं । बैयवजी को भुख्म रुऩ से तीन े स्वरुऩ फटु क बैयव, भहाकार बैयव औय स्वणााकषाण बैयव क रुऩ भं जाना जाता हं । त्रवद्रानं ने स्वणााकषाण-बैयव को े धन-धान्म औय सम्ऩत्रत्त क दे वता भाना हं । धभाग्रॊथं भं े उल्रेख सभरता हं की स्जस भनुष्म की आसथाक स्स्थती फदन-प्रसतफदन खयाफ होती जा यही हो, उस ऩय कजा का फोझ फढ़ता जा यहा हो, सभस्मा क सभाधान हे तु व्मत्रि े को कोई यास्ता न फदखाई दे यहा हो, व्मत्रि को सबी प्रकाय क ऩूजा ऩाठ, भॊि, मॊि, तॊि, मऻ, हवन, साधना आफद से कोई त्रवशेष राब की प्रासद्ऱ न हो यही हो, तफ स्वणााकषाण े बैयव जी का भॊि, मॊि, साधना इत्माफद का आश्रम रेना िाफहए। जो व्मत्रि स्वणााकषाण बैयव की साधना, भॊि जऩ आफद को कयने भं असभथा हो वह रोग स्वणााकषाण बैयव कवि को धायण कय त्रवशेषा राब प्राद्ऱ कय सकते हं । स्वणााकषाण बैयव कवि को धन प्रासद्ऱ क सरए अिूक औय अत्मॊत े प्रबावशारी भाना जाता हं । स्वणााकषाण बैयव कवि को धायण कयने से मह भनुष्म की सबी प्रकाय की आसथाक सभस्माओॊ को सभाद्ऱ कयने भं सभथा हं । स्जसभं जया बी सॊदेह नहीॊ हं । इस करमुग भं स्जस प्रकाय भृत्मु बम क सनवायण हे तु भहाभृत्मुॊजम कवि े अभोघ हं उसी प्रकाय आसथाक सभस्माओॊ क सभाधान हे तु स्वणााकषाण बैयव कवि अभोघ भाना गमा हं । धासभाक े भान्मताओॊ क अनुशाय ऐसा भाना जाता हं की बैयवजी की ऩूजा-उऩासना श्रीगणेश, त्रवष्णु, िॊद्रभा, कफेय आफद दे वताओॊ े ु ने बी फक थी, बैयव उऩासना क प्रबाव से बगवान त्रवष्णु रक्ष्भीऩसत फने थे, त्रवसबन्न अप्सयाओॊ को सौबाग्म सभरने का े उल्रेख धभाग्रॊथो भं सभरता हं । मफह कायण हं की स्वणााकषाण बैयव कवि आसथाक सभस्माओॊ क सभाधान हे तु अत्मॊत े राबप्रद हं । इस कवि को धायण कयने से सबी प्रकाय से आसथाक राब की प्रासद्ऱ होने रगती हं । भूल्म भाि: 4600
  • 14. 14 पयवयी 2013 श्रीदगाा फीसा कवि ु Durga Visha Kawach श्रीदगाा फीसा कवि साधक को बत्रि क साथ सभस्त साॊसारयक सुखं ु े को प्रदान कयने वारा सवाससत्रद्धप्रद कवि हं । श्रीदगाा फीसा कवि को ु धायण कयने से साधक को धभा, अथा, काभ औय भोऺ इन िाय की प्रासद्ऱ भं बी सहामता प्राद्ऱ होती हं । शास्त्रोि वणान हं की भाॉ दगाा का श्रीदगाा फीसा कवि को धायण कयने ु ु से दे वी प्रसन्न होकय, शीघ्र ही साधक की असबष्ट इच्छाएॊ ऩूणा कयती हं । भाॉ दगाा अऩने बि की स्वमॊ यऺा कय उन ऩय कृ ऩा दृष्टी कयती हं । ु श्रीदगाा फीसा कवि धायण कयने से भाॉ दगाा की कृ ऩा से नौकयी ु ु व्मवसाम भं साधक को उन्नसत क सशखय ऩय जाने का भागा प्रसस्त े होता हं । श्रीदगाा फीसा कवि क प्रबाव से धायण कताा को धन-धान्म, सुख- ु े सॊऩत्रत्त, सॊतान का सुख प्राद्ऱ होता हं औय शिु ऩय त्रवजम, ऋण-योग आफद ऩीडा़ से भुत्रि प्राद्ऱ होती हं औय साधक को जीवन भं सॊऩूणा सुखं की प्रासद्ऱ होती हं । जीवन भं फकसी बी प्रकाय क सॊकट मा फाधा े की आशॊका होने ऩय श्रीदगाा फीसा कवि को श्रद्धाऩूवक धायण कयने से ु ा साधक को सबी प्रकाय की फाधा से भुत्रि सभरती हं औय धन-धान्म की प्रासद्ऱ हो सकती हं । भूल्म भाि: 1900 ऩसत-ऩिी भं करह सनवायण हे तु मफद ऩरयवायं भं सुख-सुत्रवधा क सभस्त साधान होते हुए बी छोटी-छोटी फातो भं ऩसत-ऩिी क त्रफि भे करह े े होता यहता हं , तो घय क स्जतने सदस्म हो उन सफक नाभ से गुरुत्व कामाारत द्राया शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान े े से भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रष्ठत ऩूणा िैतन्म मुि वशीकयण कवि एवॊ गृह करह नाशक फडब्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भं त्रफना फकसी ऩूजा, त्रवसध-त्रवधान से आऩ त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं । मफद आऩ भॊि ससद्ध ऩसत वशीकयण मा ऩिी वशीकयण एवॊ गृह करह नाशक फडब्फी फनवाना िाहते हं , तो सॊऩक आऩ ा कय सकते हं । GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
  • 15. 15 पयवयी 2013 अष्ट त्रवनामक कवि Asht Vinayak Kawach त्रवद्रानं का कथ हं की बगवान श्री गणेश क इन आठ े अवतायं भं सृत्रष्ट क सुख की कल्ऩना का आधाय भाना जाता े हं । इससरए अष्ट त्रवनामक कवि को श्रीगणेश क आठ प्रभुख े रूऩं की कृ ऩा प्रासद्ऱ हे तु धायण फकमा जाता हं । अष्ट त्रवनामक कवि सकर त्रवघ्न-फाधाओॊ का नाश कयने औय इस्च्छत कामं भं सपरता की प्रासद्ऱ हे तु उत्तभ हं । भूल्म भाि: 1900 ससत्रद्ध त्रवनामक कवि Siddhi Vinayak Ganapati Kawach ससत्रद्ध त्रवनामक कवि को बगवान श्री गणेश को प्रसन्न कयने क सरए धायण फकमा जाता हं । ससत्रद्ध त्रवनामक कवि े को त्रवशेष शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से तैमाय फकमा जाता हं , स्जससे ससत्रद्ध त्रवनामक कवि क प्रबाव से धायण कताा क े े सबी प्रकाय क त्रवघ्न-फाधाओॊ का नाश हो जामे। ससत्रद्ध े त्रवनामक कवि क प्रबाव से धायण कताा व्मत्रि को इस्च्छत े कामं भं शीध्र सपरता की प्रासद्ऱ हो सक। े ससत्रद्ध त्रवनामक कवि को धायण कयने से श्री गणेशजी के आसशवााद से धायण कताा को सबी शुब कामं भं सयरता से ससत्रद्ध प्राद्ऱ हो सकती हं औय धायण कताा को सबी प्रकाय से सुख प्राद्ऱ हो जाते हं । गणेशजी की कृ ऩा से धायण कताा को त्रवद्या-फुत्रद्ध की प्रासद्ऱ होती हं । शास्त्रं भं बगवान श्री गणेश को सभस्त ससत्रद्धमं को दे ने वारा भाना गमा हं । इस सरए सबी ससत्रद्धमाॉ बगवान गणेश भं वास कयती हं । बगवान श्री गणेश अऩने बिो के सभस्त त्रवघ्न फाधाओॊ को दय कयने वारे त्रवनामक हं । ससत्रद्ध त्रवनामक कवि को श्रीगणेशजी की कृ ऩा प्रासद्ऱ हे तु ू धायण कयना अत्मॊत राबप्रद भाना गमा हं । भूल्म भाि: 1450
  • 16. 16 पयवयी 2013 त्रवष्णु फीसा कवि Vishnu Visha Kawach त्रवष्णु फीसा कवि को धन, मश, सपरता औय उन्नसत की प्रासद्ऱ हे तु उत्तभ भाना जाता हं । त्रवष्णु फीसा कवि को बगवान श्री त्रवष्णु को प्रसन्न कयने औय उनका आसशवााद प्राद्ऱ कयने क सरए धायण फकमा जाता हं । फहन्द ू धभाग्रॊथं भं वस्णात हं े की जहाॉ बगवान त्रवष्णु सनवास कयते हं , उस स्थान ऩय भाॉ भहारक्ष्भी का बी सनवास होता हं । स्जस बि ऩय बगवान त्रवष्णु प्रसन्न होते, कृ ऩा कयते हं , उस बि ऩय दे वी भहारक्ष्भी बी स्वत् प्रसन्न होती हं औय अऩनी कृ ऩा व आशीवााद दे ती हं । त्रवष्णु फीसा कवि को धायण कयने से व्मत्रि को कामं भं ससत्रद्ध व सपरता की प्रासद्ऱ, स्वास्थ्म औय साॊसारयक सुखं भं वृत्रद्ध होती हं । त्रवद्रानं का अनुबव यहा हं की श्री त्रवष्णु फीसा कवि को धायण कयने से शीघ्र ही धायणकताा क घय-ऩरयवाय भं सुख-सभृत्रद्ध-ऐश्वमा भं वृत्रद्ध होने रगती हं । त्रवष्णु फीसा े कवि को धायण कयने से व्मत्रि भं सकायात्भक ऊजाा का सॊिाय होता हं । त्रवष्णु फीसा कवि क प्रबाव से उसक रुक हुवे कामा सॊऩन्न होने रगते हं । कामाऺेि भं े े े सुधाय होने रगता हं । शिु, योग आफद नाना प्रकाय क बमं का सनवायण हो जाता े हं औय जीवन ऩयभ सुखी हो जाता हं । भूल्म भाि: 1900 भॊि ससद्ध मॊि गुरुत्व कामाारम द्राया त्रवसबन्न प्रकाय क मॊि कोऩय ताम्र ऩि, ससरवय (िाॊदी) ओय गोल्ड (सोने) भे े त्रवसबन्न प्रकाय की सभस्मा क अनुसाय फनवा क भॊि ससद्ध ऩूणा प्राणप्रसतत्रष्ठत एवॊ िैतन्म मुि फकमे े े जाते है . स्जसे साधायण (जो ऩूजा-ऩाठ नही जानते मा नही कसकते) व्मत्रि त्रफना फकसी ऩूजा अिाना- त्रवसध त्रवधान त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते है . स्जस भे प्रसिन मॊिो सफहत हभाये वषो क अनुसॊधान द्राया े फनाए गमे मॊि बी सभाफहत है . इसक अरवा आऩकी आवश्मकता अनुशाय मॊि फनवाए जाते है . गुरुत्व े कामाारम द्राया उऩरब्ध कयामे गमे सबी मॊि अखॊफडत एवॊ २२ गेज शुद्ध कोऩय(ताम्र ऩि)- 99.99 टि शुद्ध ससरवय (िाॊदी) एवॊ 22 कये ट गोल्ड (सोने) भे फनवाए जाते है . मॊि क त्रवषम भे असधक जानकायी क े े े सरमे हे तु सम्ऩक कये ा GURUTVA KARYALAY Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in, Visit Us: www.gurutvakaryalay.com
  • 17. 17 पयवयी 2013 याभबद्र फीसा कवि Ramabhadra Visha Kawach याभबद्र फीसा कवि को बगवान श्री याभ को प्रसन्न कयने औय उनका आसशवााद प्राद्ऱ कयने क सरए धायण फकमा जाता हं । याभबद्र फीसा कवि को े धायण कयने से भनुष्म क सफ कामा ससद्ध होने रगते हं । कवि को धायण े कयने से व्मत्रि क सबी प्रकाय क सॊशम, बम, फॊधनो का नाश होता हं । े े स्जससे व्मत्रि सनबाम होकय अऩने कामा ऺेि भं आगे फढ़ता हं व सपरता क सशखय ऩहुॊि सकता हं । सनातन धभा भं याभ शब्द को धभा का भूर े भाना गमा हं । इस कसरमुग भं सभम क अबाव भं स्जस व्मत्रि क ऩास े े जऩ, तऩ, मऻ आफद धासभाक कामा कयने का सभम नहीॊ होता, ऐसे भं याभ का नाभ ही एक भाि सहाया हं , क्मोकी, जो रोग कसरमुग क इस कार भं े श्रीयाभ की शयण रेते हं , उन्हं कसरमुग भं कोई फाधा नहीॊ ऩहुॊिाता। याभबद्र फीसा कवि श्री याभजी की कृ ऩा प्राद्ऱ कयने का का सयर भाध्मभ हं । भूल्म भाि: 1900 स्वस्स्तक फीसा कवि Swastik Visha Kawach स्वस्स्तक फीसा कवि को धायण कयने से इष्ट कृ ऩा से व्मत्रि की सभस्त भनिाही इच्छाओॊ की ऩूसता हो सकती हं । त्रवद्रानं का अनुबव यहा हं की इस कवि को त्रवसध-त्रवधान से सनभााण कय धायण कयने से धन-धान्म, उत्तभ सॊतान आफद की प्रासद्ऱ होती हं । स्वस्स्तक फीसा कवि क प्रबाव से फकसी े बी प्रकय से आशाहीन, असहाम, सनयाश व्मत्रि हो उसकी सबी आशा औय आशमऩूणा हो जाते हं । धायण कताा क सबी े प्रकाय क भनोयथ ससद्ध होते हं । कवि क प्रबाव से सुख, सौबाग्म भं वृत्रद्ध होती हं , औय धायण कताा का सबी प्रकाय से े े कल्माण होता हं । भूल्म भाि: 1050 क्मा आऩ फकसी सभस्मा से ग्रस्त हं ? ु आऩक ऩास अऩनी सभस्माओॊ से छटकाया ऩाने हे तु ऩूजा-अिाना, साधना, भॊि जाऩ इत्माफद कयने का सभम नहीॊ े हं ? अफ आऩ अऩनी सभस्माओॊ से फीना फकसी त्रवशेष ऩूजा-अिाना, त्रवसध-त्रवधान क आऩको अऩने कामा भं े सपरता प्राद्ऱ कय सक एवॊ आऩको अऩने जीवन क सभस्त सुखो को प्राद्ऱ कयने का भागा प्राद्ऱ हो सक इस सरमे े े े गुरुत्व कामाारत द्राया हभाया उद्दे श्म शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशष्ट तेजस्वी भॊिो द्राया ससद्ध प्राण-प्रसतत्रष्ठत ऩूणा िैतन्म मुि त्रवसबन्न प्रकाय क मन्ि- कवि एवॊ शुब परदामी ग्रह यि एवॊ उऩयि आऩक घय तक ऩहोिाने का है । े े गुरुत्व कामाारम: Bhubaneswar- 751 018, (ORISSA) INDIA, Call Us : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785,