SlideShare a Scribd company logo
61pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26)
1
ØeOeeve ieJes<ekeâ - [e@. Me$egIveef$ehee"er
pÙeesefle<eefJeYeeie, mebmke=âleefJeÅeeOece&efJe%eevemebkeâeÙe, keâe.efn.efJe.efJe.,
JeejeCemeer
he$e mecevJeÙekeâ - [e@. Me$egIveef$ehee"er
pÙeesefle<eefJeYeeie, mebmke=âleefJeÅeeOece&efJe%eevemebkeâeÙe, keâe.efn.efJe.efJe.,
JeejeCemeer
hee" uesKekeâ - [e@0 jepeerJe kegâceej efceße
ceesoer efJe%eeve SJeb ØeesÅeesefiekeâer efJeÕeefJeÅeeueÙe
ue#ceCeieÌ{, meerkeâj, jepemLeeve
hee" meceer#ekeâ - Øees. jeceÛevõ heeC[sÙe
pÙeesefle<eefJeYeeie, mebmke=âleefJeÅeeOece&efJe%eevemebkeâeÙe, keâe.efn.efJe.efJe.,
JeejeCemeer
lekeâveerkeâer meceer#ekeâ - Øees. mebpeÙe heeC[sÙe
ØeÙegòeâ ieefCele efJeYeeie, YeejleerÙe ØeewÅeesefiekeâer mebmLeeve,
keâe.efn.efJe.efJe.
Yee<eemebheeokeâ - [e@. ßeerke=â<Ce ef$ehee"er
Jewefokeâ oMe&ve efJeYeeie, mebmke=âleefJeÅeeOece&efJe%eevemebkeâeÙe,
keâeMeerefnvotefJeÕeefJeÅeeueÙe, JeejeCemeer
hee"Ÿe›eâce-pÙeesefle<eHeâefuele
hee"Ÿemeece«eer efvecee&Ce
Dee@veueeFve-mveelekeâesòej hee"Ÿe›eâce efJe<eÙemetÛeer
he$e keâe veece - ØeLece (ye=nppeelekeâced)
hee"Ÿe›eâceefveoxMekeâ – [e@. Me$egIveef$ehee"er
hee" – Úyyeerme (दृििफलाध्याय)
)
62pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26)
2
hee"efJeJejCeced
hee"Ÿe›eâce pÙeesefle<eHeâefuele
he$e ØeLece (ye=nppeelekeâced)
hee" Úyyeerme (दृििफलाध्याय)
२६.१ प्रस्तावना
िप्रयच्छात्र ! UGC द्वारा संचािलत काययक्रमान्तागयत SWAYAM के स्नातकोत्तर
स्तरीय पाठ्यक्रम के बृहज्जातक नामक शीषयक के छब्बीसवें पाठ दृििफलाध्याय
में आपका स्वागत है | इस पाठ में आप िविभन्न रािशयों में िस्िित चन्रमा पर
ग्रहों की दृिि फल के बारे में िवस्तार से अध्यययन करेंगे | इसके पूवय पाठ में
आपने ग्रहों के िविभन्न रािशयों में िस्िित वशात् फल के बारे में िवििवत्
अध्यययन ककया। उसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए मेषाकद द्वादश रािशयों में िस्ित
चन्रमा पर सूयायकद ग्रहों की दृिि के फल के बारे में अध्ययन करेंगे।
प्रत्येक ग्रह की चार प्रकार की दृिि होती है १. पूर्य दृिि, २. एक-पाद दृिि, ३.
िद्व-पाद दृिि, व ४. ित्र-पाद दृिि | जन्मकुंडली में िस्ित ग्रह अपने स्िान से
सातवें स्िान या भाव को पूर्य दृिि से देखता है | तीसरे व दशवें स्िान को एक-
पाद दृिि से, पांचवें व नौवें भाव को िद्व-पाद दृिि से तिा चौिे व आठवें भाव को
ित्र-पाद दृिि से देखता है | परन्तु मंगल चौिे व आठवें भाव को, गुरु पांचवें व
नौवें भाव को तिा शिन तीसरे व दशवें भाव को पूर्य दृिि से देखता है |
63pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26)
3
इसको अिोिनर्ददि सारर्ी के माध्यम से स्पितया समझ सकते हैं-
ग्रह एक-पाद दृिि िद्व-पाद दृिि ित्र-पाद दृिि पूर्य दृिि
सूयय ३,१० ९,५ ८,४ ७
चन्र ३,१० ९,५ ८,४ ७
मंगल ३,१० ९,५ ८,४ ४,७,८
बुि ३,१० ९,५ ८,४ ७
बृहस्पित ३,१० ९,५ ८,४ ५,७,९
शुक्र ३,१० ९,५ ८,४ ७
शिन ३,१० ९,५ ८,४ ३,७,१०
इस प्रकार मेषाकद मीन पयंत रािशयों के चन्रमा पर मंगलाकद ग्रहों की दृिि का
पृिक्-पृिक् रूप में शुभाशुभ फल, चन्रमा िजस होरा और िजस रेष्कार् में िस्ित
है उस-उस होरा रेष्कार् रािशयों में सूयायकदक ग्रहों का दृििफल के साि वगोत्तम
रािश गत चन्रमा पर ग्रहों की दृिि से प्राप्त शुभाशुभ फल पूर्य मात्रा में केवल
अपने नवांशगत चन्रमा पर ग्रहों का दृििफल सामान्य रूप में यत्रकुत्रािप और
नवांश गत चन्रमा पर ग्रह दृिि फल अल्प मात्र में होता है इत्याकद का िवस्तार
से अध्ययन करेंगे |
२६.२ उद्देश्य
इस पाठ का िवििवत् अध्ययन करने के उपरांत अध्येतागर् –
 मेषाकद रािशगत चन्रमा पर ग्रहों की दृिि के फल के बारे में जान सकेंगे |
 होरा, रेष्कार् व द्वादशांशिस्ित चन्रमा पर ग्रह-दृिि के फल से अवगत हो
सकेंगे |
64pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26)
4
 मेषाकद नवांश-िस्ित चन्रमा पर सूयायकद ग्रहों के दृििफल को जानने में
समिय हो सकेंगे |
 नवांशगत चन्रमा पर दृिििवशेष के फल से पररिचत हो सकेंगे |
२६.३ मेष वृष िमिुन ककय रािशस्ि चन्रमा पर मंगलाकद ग्रह दृििफल–
चन्रे भूपबुिौ नृपोपमगुर्ी स्तेनोऽिनश्चाजगे
िनिःस्वस्तेननृमान्यभूपििननिः प्रेष्यिः कुजाद्यैगयिव |
नृस्िेऽयोव्यवहाररपार्थिवबुिािभस्तन्तुवायोsिनिः
स्वर्क्षे यौद्िृकिवज्ञभूिमपतयोऽयोजीिवदृग्रोिगर्ौ ||
अन्वय एवं अन्वयािय- अजगेचन्रे =मेष रािशस्ि चन्रमा पर, भौम दृिे = मंगल
की दृिि हो तो, भूप = राजा, बुि दृिे = बुि की दृिि हो तो, बुििः = िवद्वान्, गुरु
दृिे = गुरु की दृिि से, नृपिः = नृप, शुक्रे = शुक्र से, गुर्ी = गुर्ी, शनौ = शिन से,
स्तेन = चोर, सूयय दृिे = सूयय से, अिनिः = िनियन , गिव चन्रे = वृष रािशस्ि
चन्रमा पर, मंगल की दृिि से िनिःस्व = िनियन, बुि की दृिि से स्तेन = चोर, गुरु
से नृमान्यिः = मनुष्यों का मान्य, शुक्र से भूपिः = राजा, शिन से ििननिः = िनी,
सूयय से प्रेष्यिः = सेवक, नृस्िे िमिुन रािशस्ि चन्रमा पर, मंगल की दृिि होने से,
अयोव्यवहारी = लोहे का व्यापारी, बुि से पार्थिविः = राजा, गुरु से बुििः =
िवद्वान्, शुक्र से अभीिः = िनभीक, शिन से तन्तुवायिः = वस्त्र िनमायता, सूयय से
अिनिः = िनियन, स्वर्क्षे चन्रे = ककयस्ि चन्रमा पर मंगल की दृिि होने से यौिक
= युद्ध करने में िनपुर्, बुि से किविः = किव, गुरु की दृिि से ज्ञिः = िवद्वान, शुक्र
से भूिमपतयिः = भूपित,
65pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26)
5
शिन से अयोजीिव = लोहे से आजीिवका चलाने वाला, सूयय से दृग् रोिगर्ौ =
नेत्र रोगी, होता है |
व्याख्या- १. जन्मसमय में मेष रािश िस्ित चन्रमा पर यकद मंगल की दृिि हो तो
जातक राजा होता है, बुि की दृिि हो तो िवद्वान, बृहस्पित की दृिि हो तो राजा
के समान, शुक्र की दृिि हो तो गुर्ी, शिन कक दृिि होने से चोर और सूयय की दृिि
हो तो िनियन होता है |
२. वृष-रािश िस्ित चन्रमा पर यकद मंगल की दृिि हो तो वह िनियन, बुि कक
दृिि होने पर चोर, बृहस्पित देखता हो तो मनुष्य पूज्य, शुक्र की दृिि हो तो
राजा, शिन की दृिि होने से वस्त्र बुनने वाला और सूयय देखता हो तो िनियन |
३. िमिुन रािशस्ि चन्रमा पर मंगल की दृिि हो तो जातक लोहे का व्यापारी,
बुि की दृिि होने से राजा, बृहस्पित की दृिि हो तो िवद्वान्, शुक्र की दृिि हो तो
भयरिहत, शिन कक दृिि हो तो वस्त्र को बुनने वाला और सूयय की दृिि हो तो
िनियन होता है |
४. ककय राशी में िस्ित चन्रमा पर मंगल की दृिि हो तो वह जातक युद्ध करने में
िनपुर्, बुि की दृिि से किव, बृहस्पित की दृिि हो तो िवद्वान्, शुक्र की दृिि हो
तो राजा, शिन कक दृिि होने से वह लोहे के व्यापार से आजीिवका चलने वाला
और सूयय कक दृिि होने से जातक नेत्ररोगी होता है |
२६.४ ससह से वृिश्चक रािश पययन्त िस्ित चन्र बुिाकद ग्रहों का दृििफल -
ज्योितज्ञायढ्यनरेन्रनािपतनृपक्ष्मेशा बुिाद्यैहयरौ
तद्वद्भूपचमूपनैपुर्युतािः षष्ठेऽशुभैिः स््याश्रयािः |
जूके भूपसुवर्यकारविर्जिः शेषेिर्क्षते नैकृती
कीटे युग्मिपता नतश्च रजको व्यङ्गोऽिनौ भूपितिः ||
66pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26)
6
अन्वय एवं अन्वयािय- हरौ चन्रे = ससह रािशस्ि चन्रमा पर बुिाद्यै (बुिदृिे) =
बुि की दृिि हो तो ज्योितज्ञय = ज्योितष शास्त्र का ज्ञाता, गुरुदृिे = गुरु की दृिि
से आढ्यिः = िनी, शुक्रदृिे = शुक्र की दृिि से नरेन्रो = राजा, शिनदृिे = शनै की
दृिि से नािपतिः = नाई, सूयय दृिे = सूयय से नृपिः = नृप, भौम दृिे = मंगल की दृिि
से क्ष्मेशिः = राजा , षष्ठे (कन्या गते) चन्रे = कन्या रािशस्ि चन्रमा पर बुि की
दृिि होने से भूपिः = राजा, गुरु से चमूपिः = सेनापित, शुक्र से नैपुर्युतिः = कायय
िनपुर्, अशुभैिः = अशुभ ग्रहों शिन रिव भौम दृिे = शिन रिव मंगल की दृिि होने
से स्त्री-आश्रयिः = स्त्री के आिश्रत , जूके चन्रे = तुला रािशस्ि चन्रमा पर बुि की
दृिि होने से भूपिः = राजा, गुरु से सुवर्यकारिः = स्वर्यकार, शुक्र से विर्जिः =
व्यापारी, शेषेिर्क्षते = शेषग्रहों, शिन सूयय भौम दृिे = शिन सूयय तिा मंगल की
दृिि होने पर नैकृित = जीव नाशक , कीटे = वृिश्चक रािशस्ि चन्रमा पर बुि की
दृिि होने से युग्मिपता = युगल पुत्रों का िपता, गुरु से ततिः = नम्र, शुक्र से रजकिः
= रजक, शिन की से व्यङ्गिः = अंगहीन, सूयय से अिनिः = िनियन, मंगल से भूपित
= राजा |
व्याख्या- १. ससह रािश में िस्ित चन्रमा पर बुि की दृिि हो तो जातक
ज्योितषशास्त्र का ज्ञाता, बृहस्पित की दृिि हो तो िनी, शुक्र की दृिि हो तो
राजा, शिन कक दृिि हो तो नाई , सूयय की दृिि हो तो राजा और मंगल कक दृिि
हो तो भी राजा होता है |
२. कन्यारािशस्ि चन्रमा पर बुि की दृिि हो तो वह जातक राजा, बृहस्पित की
दृिि हो तो सेनापित, शुक्र की दृिि हो तो चतुर और यकद शिन,सूयय और मंगल के
दृिि हो तो वह जातक स्त्री पर आिश्रत रहने वाला होता है |
67pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26)
7
३. तुला रािशस्ि चन्रमा पर बुि की दृिि हो तो वह जातक राजा, बृहस्पित की
दृिि हो तो स्वर्यकार, शुक्र की दृिि हो तो व्यापारी और शिन सूयय व मंगल की
दृिि हो तो जातक प्रािर्यों का नाशक होता है |
४. वृिश्चक रािशस्ि चन्रमा पर बुि की दृिि हो तो जातक यमल संतित का
िपता, बृहस्पित कक दृिि हो तो िवनम्र स्वभाव का, शुक्र की दृिि हो तो रजक,
शिन की दृिि हो तो अंगहीन, सूयय की दृिि हो तो िनियन और मंगल की दृिि हो
तो जातक राजा होता है |
२६.५ िनु से मीन रािशपययन्त िस्ित चन्र पर बुिाकद ग्रहों कादृििफल
ज्ञातुवीशजनाश्रयश्च तुरगे पापैिः सदंभिः शठिः
अत्युवीशनरेन्रपिडडतिनी रव्योनभूपो मृगे |
भूपो भूपसमोऽन्यदारिनरतिः शेषैश्च कुम्भिस्िते
हास्यज्ञो नृपितबुयिश्च झषगे पापेिर्क्षते ||
अन्वय एवं अन्वयािय- तुरगे = िनुरािशिस्ित चन्रमा पर बुि की दृिि होने से,
ज्ञातीशिः = स्वजनों का भरर् पोषर् करने वाला, बृहस्पित से उवीशिः = राजा,
शुक्र से जनाश्रयश्च = बहुतों को आश्रय देने वाला , पापैिः = पाप ग्रहों ( शिन रिव
भौम दृि) होने पर सदंभिः = पाखडड करने वाला, (और) शठिः = शठ होता है |
मृगे = मकरस्ि चन्र पर बुि की दृिि हो तो अित -उवीशिः = राजाििराजा,
बृहस्पित से नरेन्रिः = राजा, शुक्र से पिडडतिः = िवद्वान्, शिन से िनी = िनी, सूयय
से रव्योनिः = िनहीन, मंगल से भूपो = राजा होता है | कुम्भिस्िते चन्रे =
कुम्भरािशस्ि चन्रमा बुि दृि हो तो भूपो = राजा, बृहस्पित से भूपसमो = राजा
के सदृश, शुक्र से अन्यदारिनरतिः = पराई िस्त्रयों में रत, शेषैश्च = शेष ग्रहों (शिन
सूयय भौम दृिि वशात् ) अन्यदारिनरतिः = परस्त्री गमन करने वाला होता है |
68pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26)
8
झषगे = मीनिस्ित चन्रमा बुि दृि हो तो हास्यज्ञो = हास्यज्ञ, बृहस्पित से
नृपितिः = राजा, शुक्र से बुििः = िवद्वान्, पापेिर्क्षते = पाप ग्रह शिन सूयय और
मंगल से पापबुिद्ध = पाप बुिद्ध वाला होता है |
व्याख्या- १.िनु रािशस्ि चन्रमा पर बुि की दृिि हो तो जातक अपने लोगों का
भरर् पोषर् करने वाला होता है, बृहस्पित से दृि हो तो राजा, शुक्र की दृिि
होने से बहुत लोगों को आश्रय देने वाला तिा शिन,सूयय और मंगल से दृि हो तो
वह पाखडड करने वाला तिा शठ होता है |
२. मकर रािशस्ि चन्रमा पर बुि की दृिि हो तो जातक राजाििराज, बृहस्पित
की दृिि होने से राजा, शुक्र से दृि होने पर िवद्वान्, शिन से दृि होने से िनवान्,
सूयय की दृिि हो तो िनहीन तिा मंगल की दृिि हो तो वह जातक राजा होता है
|
३. कुम्भरािशस्ि चन्रमा पर बुि की दृिि हो तो जातक राजा होता है, बृहस्पित
की दृिि होने पर राजा के सदृश, शुक्र की दृिि हो तो परस्त्री गमन करने वाला
और शिन सूयय तिा मंगल की दृिि हो तो वह परस्त्री गमन करने वाला होताहै |
४. मीन रािश में िस्ित चन्रमा पर बुि की दृिि हो तो जातक हास्य कक्रया को
जानने वाला, बृहस्पित से दृि हो तो राजा, शुक्र की दृिि हो तो िवद्वान् और शिन
सूयय तिा मंगल हो तो जातक पाप बुिद्ध वाला होता है |
२६.६ होरा रेष्कार् व द्वादशांश िस्ित चन्र पर ग्रह दृििफल-
होरेशर्क्षयदलािश्रतैिः शुभकरो दृििः शशी तद्गत
स््यंशे तत्पितिभिः सुहृद्भवनगैवाय वीिर्क्षतिः शस्यते |
यत्प्रोक्तं प्रितरािशवीर्क्षर्फलं तद् द्वादशांशे स्मृतं
सूयायद्यैरवलोककतेऽिप शिशिन ज्ञेयं नवांशेष्वतिः ||
69pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26)
9
अन्वय एवं अन्वयािय- होरेशर्क्षयदलािश्रतैिः = होरेश की होरा में िस्ित ग्रहों से,
शशी दृििः = दृि चन्रमा, शुभकरो = शुभकारक होता है | ्यं शे-तत्पितिभिः =
रेष्कार् के स्वामी ग्रह से, सुहृद्भवनगैवाय = अिवा िमत्रग्रहों की रािश में िस्ित
ग्रहों से, वीिर्क्षतिः = दृि(चन्रमा), शस्यते = शुभकर होता है , यत्प्रोक्तं = पूवोक्त,
प्रितरािशवीर्क्षर्फलं = प्रत्येक रािश में िस्ित चन्र पर ग्रह-दृिि फल, तद् = वही
फल, द्वादशांशे = उस राशी के द्वादशांश में भी, स्मृतं = कहना चािहए , नवांशेषु
= नवांशागत, शिशिन = चन्रमा पर, अवलोककतेऽिप सूयायद्यैिः= सूयायकद ग्रहदृिि
से, फलं = फल, गेयम् = जानना चािहए |
व्याख्या- १. जन्मकाल में चन्रमा िजस होरा में भी िस्ित हो उस होरेश की होरा
में िस्ित ग्रहों से यकद चन्रमा दृि हो तो वह शुभ फल दायक होता है | यिा- सूयय
की होरा में िस्ित चन्रमा पर सूयय होरा में िस्ित ग्रहों की दृिि हो तो शुभफल
होता है | इसीप्रकार चन्र होरा में िस्ित चन्रमा पर चन्र होरा में िस्ित अन्य
ग्रहों की दृिि हो तो भी शुभफल दायक होता है | इसके िवपरीत अशुभफल होता
है | इसीप्रकार लग्न से भी शुभ और अशुभ फल का ज्ञान करना चािहए |
२. चन्रमा िजस ककसी भी रेष्कार् में िस्ित हो उस रेष्कार् का स्वामी कहीं भी
िस्ित होकर चन्रमा को देखता हो तो शुभफल दायक होता है | यकद चन्रमा पर
िमत्र ग्रहों की रािशयों में िस्ित ग्रहों की दृिि हो तो वह भी शुभफल प्रद कही
गयी है |
३. मेषाकद द्वादश रािशयों में गत चन्र पर ग्रहों की दृिि का जो फल कहा गया है
वही फल उस रािश के द्वादशांशों में िस्ित चन्र पर अन्य ग्रहों की दृिि का फल
जानना चािहए |
610pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26)
10
४. चंररािशगत ग्रह दृिि की तरह नवांशगत चन्रमा पर ग्रहों की दृिि से जातक
का शुभफल जानना चािहए |
२६.७ मेषाकद नवांशिस्ित चन्र पर सूयायकद ग्रहों कादृििफल
आरिर्क्षको विरुिचिः कुशलो िनयुद्धे
िूपोऽियवान् कलहकृित्र्क्षितजांशसंस्िे |
मूखोऽन्यदारिनरतिः सुकिविः िशतांशे
सत्काव्यकृत्सुखपरोऽन्यकलत्रगश्च ||
अन्वय एवं अन्वयािय- िर्क्षितजांशस्िे = मेष और वृिश्चक रािश के नवांश में िस्ित,
चन्रमिस = चन्रमा पर, सूयय की दृिि हो तो, आरिर्क्षको = नगर रर्क्षक होता है,
मंगल की दृिि हो तो विरुिचिः = प्रािर्यों का घातक, बुि से िनयुद्धेकुशलिः =
मल्लयुद्ध में कुशल, बृहस्पित से भूपो = राजा, शुक्र से अियवान् = िनी, और शिन
से कलह कृत = कलह करने वाला, भवित = होता है | िसतांशे = वृष व तुला के
नवांश िस्ित चन्रमा को सूयय देखता हो तो मूखयिः = मूखय, मंगल से अन्यदारिनरतिः
= परस्त्री रत, बुि से सुकिविः = सुकिव, बृहस्पित से सत्काव्यकृत = सत्काव्य
करने वाला, शुक्र से सुखपरिः = िवशेष सुखी, और शिन से अन्यकलत्रगश्च =
परस्त्री गमन करने वाला, भवित = होता है |
व्याख्या- १.मेष व वृिश्चक के नवांश में िस्ित चन्रमा पर सूयय की दृिि हो तो
जातक नगर रर्क्षक होता है , मंगल की दृिि हो तो जीवों का घातक, बुि की दृिि
हो तो मल्लयुद्ध में कुशल, बृहस्पित की दृिि हो तो राजा, शुक्र की दृिि हो तो
िनी तिा शिन कक दृिि हो तो जातक कलह करने वाला होता है |
२. वृष तिा तुला के नवांश में िस्ित चन्रमा पर सूयय की दृिि हो तो जातक मूखय,
मंगल की दृिि हो तो पराई िस्त्रयों में रत , बुि की दृिि होने पर उत्तम किव,
611pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26)
11
बृहस्पित की दृिि हो तो सत्काव्य रचने वाला, शुक्र की दृिि हो तो सुखी तिा
शिन की दृिि हो तो पराई िस्त्रयों से रित करने वाला होता है |
२६.८ िमिुन कन्या व ककय रािशस्ि चन्र पर सूयायकद ग्रहों कादृििफल
बौिे िह रङ्गचरचौरकवीन्रमन्त्री
गेयज्ञिशल्पिनपुर्िः शिशिन िस्ितेंऽशे |
स्वान्शेऽल्पगात्रिनलुब्ितपिस्वमुख्यिः
स्त्रीपोष्यकृत्यिनरतश्चिनरीक्ष्यमार्े ||
अन्वय एवं अन्वयािय- बौिे िस्ितेंऽशे = िमिुन व कन्या नवांश िस्ित, शिशिन =
चन्रमा पर, सूयय की दृिि होने से, रङ्गचरिः = मल्लयुद्ध करने वाला, मंगल से
चौर= चोर, बुि से कवीन्र = किवयों में श्रेष्ठ, बृहस्पित से मन्त्री = मंत्री, शुक्र से
गेयज्ञ = गायन िवद्या को जानने वाला, शिन से िशल्पिनपुर्िः = िशल्प िवद्या में
िनपुर्, भवित = होता है | स्वान्शे = ककयनवांश िस्ित चन्रमा पर, िनरीक्ष्यमार्े
= सूयय की दृिि होने पर अल्पगात्र = कृशकाय, मंगल से िनलुब्ि = िन लोलुप,
बुि से तपिस्व = तपस्वी, बृहस्पित से मुख्यिः = प्रमुख, शुक्र से स्त्रीपोष्य= स्त्री
पोिषत, शिन से कृत्यिनरतश्च = कायायसक्त होता है |
व्याख्या- १.िमिुन व कन्या के नवांश में िस्ित चन्रमा पर सूयय की दृिि हो तो
जातक मल्ल युद्ध करने वाला, मंगल की दृिि हो तो चोर, बुि की दृिि हो तो
किवयों में श्रेष्ठ, बृहस्पित की दृिि हो तो मंत्री, शुक्र की दृिि हो तो गायन िवद्या
को जानने वाला तिा शिन की दृिि हो तो िशल्प कायय में िनपुर् होता है |
२. ककय के नवांश में िस्ित चन्रमा पर सूयय की दृिि हो तो जातक कृश शरीर
वाला, मंगल की दृिि हो तो िन लोलुप, बुि की दृिि हो तो तपस्वी, बृहस्पित
612pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26)
12
की दृिि हो तो प्रिान, शुक्र की दृिि हो तो स्त्रीयों से पोिषत तिा शिन की दृिि
हो तो वह जातक कायायसक्त होता है |
२६.९ ससह , िनु व मीन नवांशिस्ित चन्र पर सूयायकद ग्रहों कादृििफल
सक्रोिो नरपितसम्मतो िनिीशिः
ससहांशे प्रभुरसुतोऽितसहस्रकमाय |
जीवांशे प्रिितबलो रर्ोपदेिा
हास्यज्ञिः सिचविवकामवृद्धशीलिः ||
अन्वय एवं अन्वयािय- ससहांशे = ससह नवांश िस्ित चन्रमा पर सूयय की दृिि हो
तो, सक्रोिो = क्रोिी, मंगल की दृिि हो तो नरपितसम्मतो = राजिप्रय, बुि की
दृिि हो तो िनिीशिः = िनिि से प्राप्त संपती का स्वामी, बृहस्पित की दृिि हो तो
प्रभु= उपदेशक, शुक्र की दृिि हो तो असुतो= सुतरिहत,शिन से दृि होने पर
अितसहस्रकमाय= अत्यंत सहसक कमय करने वाला | जीवांशे = िनु व मीन के नवांश
में िस्ित चन्रमा पर सूयय की दृिि हो तो प्रिितबलो = प्रिसद्ध बली, मंगल से
रर्ोपदेिा = युद्ध िवद्या का उपदेशक, बुि से हास्यज्ञिः = हास्यज्ञ, बृहस्पित से
सिचव= मंत्री,शुक्र से िवकाम= कामरिहत नपुंसक,और शिन से वृद्धशीलिः= वृद्ध
के सदृश स्वभाव वाला होता है |
व्याख्या- १. ससह के नवांश में िस्ित चन्रमा पर सूयय की दृिि हो तो जातक
क्रोिी, मंगल की दृिि हो तो राजिप्रय, बुि की दृिि हो तो िनिि से प्राप्त िन का
स्वामी, बृहस्पित की दृिि होने से उपदेश करने वाला, शुक्र की दृिि हो तो
पुत्रहीन तिा शिन की दृिि हो तो अत्यंत सहसक कमय करने वाला होता है |
२. िनु व मीन के नवांश में िस्ित चन्रमा पर सूयय की दृिि हो तो वह जातक
प्रिसद्ध बलवान, मगल की दृिि हो तो युद्ध िवषयक िशर्क्षा देने वाला, बुि की
613pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26)
13
दृिि हो तो हास्य िवद्या का ज्ञाता, बृहस्पित की दृिि हो तो मंत्री, शुक्र की दृिि
हो तो नपुंशक तिा शिन कक दृिि हो तो वृद्धो के सदृश स्वभाव वाला होता है |
२६.१० मकर व कु म्भ नवांशिस्ित चन्र पर सूयायकद ग्रहों कादृििफल
अल्पापत्यो दुिःिखतिः सत्यािप स्वे
मानासक्तिः कमयिर् स्वेऽनुरक्तिः |
दुिस्त्रीििः कृपर्श्चार्दक भागे
चन्रे भानौ तद्वकदन्द्वाकददृिे ||
अन्वय एवं अन्वयािय- आर्दक भागे = मकर व कुम्भ नवांश िस्ित, चन्रे = चन्रमा
पर, भानौ तद्वकदन्द्वाकद दृिे = सूयायकद ग्रहों की दृिि होने पर, अल्पापत्यो =
अल्पसंतित, सत्यािप स्वे दुिःिखतिः = िनी होने पर भी दुिःखी, मानासक्तिः =
अिभमानी, स्व कमयिर् अनुरक्तिः = अपने कुल के अनुरूप काययरत, दुिस्त्रीििः = दुि
स्त्री का िप्रय, कृपर्ाश्च = और कृपर् होता है |
व्याख्या- १. मकर व कुम्भ के नवांश में िस्ित चन्रमा पर सूयय की दृिि हो तो
जातक अल्प संतित वाला, मंगल की दृिि हो तो िन-सम्पित के रहते हुए भी
दुिःखी रहने वाला, बुि की दृिि हो तो अिभमानी, बृहस्पित की दृिि हो तो अपने
कुल के अनुरूप कायय करने वाला, शुक्र की दृिि हो तो दुि स्त्री का िप्रय तिा शिन
की दृिि हो तो वह जातक कृपर् होता है |
२. ककय नवांश के अितररक्त चन्रमा की दृिि अशुभ कही गयी है | चन्रमा से दृि
सूयय का फल भी पूवयवत् जानना चािहए | मेष नवांश िस्ित चन्रमा पर ग्रहों की
दृिि का जो फल होगा वही मेष नवांशस्ि सूयय पर मंगल आकद ग्रहों की दृिि फल
कहना चािहए | मेष नवांशस्ि चन्रमा पर सूयय की दृिि का जो फल होगा वही
मेष नवांश में िस्ित सूयय पर दृिि का फल जानना चािहए |
614pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26)
14
२६.११ नवांशिस्ित दृििफल में िवशेष -
वगोत्तमस्वपरगेषु शुभं युदुक्तं
तत्पुिमध्यलघुताशुभमुत्क्रमे र् |
वीयायिन्वतोऽशकपितर्थनरुर्िद्ध पूवय
राशीर्क्षर्स्य फलमंशफलं ददाित ||
अन्वय एवं अन्वयािय- वगोत्तम-स्व-परगेषु = क्रमशिः वगोत्तम नवांश िस्ित
चन्रमा पर ग्रहों की दृिि वशात्, युदुक्तं शुभं = जो शुभ फल कए गए हैं, तत्पुि =
वह पुि, मघ्य = स्व-नवांश िस्ित चन्रमा पर यकद ग्रहों की दृिि हो तो फल
मध्यम, लघु = यकद पर(अन्य) के नवांश में िस्ित चंरमा पर सूयायकद ग्रहों की दृिि
हो तो फल अल्प होता है | अशुभमुत्क्रमे र् = अशुभफल इसके िवपरीत होता है ,
वीयायिन्वतिः = बलवान्, अं शकपितिः = नवांशेष, पूवं राशीर्क्ष र्स्य = पूवय के रािश
के (होरा रेष्कार् आकद)दृिि फल, िनरुर्िद्ध = रोककर, फलमंशफलं = अंश फल,
ददाित = देता है |
व्याख्या- १. यकद चन्रमा वगोत्तम नवांश का हो तो कहे गए शुभ फलों की वृिद्ध
करता है | यकद चन्रमा अपने नवांश का हो तो फल मध्यम जानना चािहए | यकद
चन्रमा अन्य के नवांश में हो तो अल्प फल कहना चािहए |
२. नवमांश का स्वामी बलवान् हो तो पूवय के रािश के दृििफल को िनरुद्ध कर
नवमांश के दृिि फल को देता है | यकद नवांशेष दुबयल हो तो, नवांश का दृिि फल
और रािश का दृिि फल दोनों का फल होता है |
३. इसप्रकार चन्रमा और लग्न का फल जाना चािहए | सूयय का केवल नवांश का
दृििफल बताना चािहए | तात्पयय यह है कक रािश के अपेर्क्षा नवांश सूक्ष्म है ,
अतिः नवांशेष के बलवान होने से प्रिम नवांश फल ही होता है | इसीप्रकार
615pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26)
15
चन्रमा के िजतने फल कहे गए हैं, उसीप्रकार लग्न के भी कहने चािहए तिा सूयय
के केवल नवांश का फल चन्रमा के समान ही समझना चािहए |
२६.१२ सारांिशका
 मेष के चन्रमा पर मंगल की दृिि से राजा, बुि से िवद्वान्, गुरु से
राजतुल्या, शुक्र से गुर्ी, शिन से चोर और सूयय की दृिि से दररर होता है |
 वृष के चन्रमा पर मंगल की दृिि से िनियन,बुि से चोर, गुरु से समाज
मानी, शुक्र से राजा, शिन से िनी और सूयय से सेवक होता है |
 िमिुनस्ि चन्रमा पर मंगल की दृिि से लोहे के व्यापार से जीिवकोपाजयन
करने वाला, बुि से राजा, गुरु से िवद्वान्, शुक्र से िनडर, शिन से वस्त्र
बनानेवाला और सूयय से िनियन होता है |
 ककय राशी में िस्ित चन्रमा पर मंगल की दृिि होने से युद्ध कुशल, बुि से
किव, गुरु से पंिडत, शुक्र से राजा, शिन से शास्त्रोपजीवक और शिन से
नेत्ररोगी होता है |
 ससह रािश के चन्रमा पर बुि की दृिि से जातक ज्योितर्थवद, गुरु से िनी,
शुक्र से राजा, शिन से नाई, सूयय और मंगल की दृिि होने से राजा होता है |
 कन्या राशी के चन्रमा पर बुि की दृिि से राजा, गुरु से सेनापित, शुक्र से
सभी कायों में िनपुर् तिा शिन सूयय और मंगल की दृिि होने से स्त्री की
आश्रय से जीिवकोपाजयन करने वाला होता है |
 तुला के चन्रमा पर बुि की दृिि से राजा, गुरु से स्वर्यकार,शुक्र से विर्क्
तिा शिन सूयय और मंगल की दृिि से प्रािर्यों का घातक होता है |
616pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26)
16
 वृिश्चक के चन्रमा पर बुि की दृिि होने से यमल संतित का िपता, गुरु से
नम्र, शुक्र से रजक, शिन से अंगहीन, सूयय से िनियन तिा मंगल की दृिि से
राजा होता है |
 िनु रािश में िस्ित चन्रमा पर बुि की दृिि से जातक स्वजनों का पोषक,
गुरु से राजा, शुक्र से समाज को आश्रय देने वाला तिा शिन सूयय और मंगल
की दृिि होने पर आडम्बर युक्त और शठ होता है |
 मकर रािशगत चन्र पर बुि की दृिि से राजाििराजा, गुरु से राजा, शुक्र
से िवद्वान्, शिन से िनी, सूयय से िनियन और मंगल की दृिि से राजा होता
है |
 कुम्भ रािश के चन्रमा पर बुि की दृिि होने से जातक राजा, गुरु से राजा
सदृश तिा शुक्र,शिन,सूयय और मंगल की दृिि होने पर परस्त्री गमन करने
वाला होता है |
 मीन रािशस्ि चन्रमा पर बुि की दृिि होने से हास्यिप्रय, गुरु से राजा,
शुक्र से िवद्वान् तिा शिन सूयय मंगल की दृिि होने से पापी होता है |
 िजस होरा में चन्रमा िस्ित हो उस होरेश कक होरा में िस्ित ग्रहों से यकद
चन्रमा दृि हो तो शुभकारक होता है |
 िजस रेष्कार् में चन्रमा िस्ित हो उस रेष्कार्ेश से चन्रमा दृि हो तो वह
शुभकारक होता है |
 यकद चन्रमा वगोत्तम नवांश का हो तो शुभफल की वृिद्ध करता है |
 यकद चन्रमा स्व-नवांश का हो तो माध्यम फल होता है |
 और यकद चन्रमा अन्य ग्रहों के नवांश में हो तो अल्प-फल होता है |

More Related Content

What's hot

W 35-dhreshkanaadhyay
W 35-dhreshkanaadhyayW 35-dhreshkanaadhyay
W 35-dhreshkanaadhyay
ShatrughnaTripathi1
 
W 37-upsanhaaradhyay
W 37-upsanhaaradhyayW 37-upsanhaaradhyay
W 37-upsanhaaradhyay
ShatrughnaTripathi1
 
W 36-dreshkaanfal (dwitiya bhaag)
W 36-dreshkaanfal (dwitiya bhaag)W 36-dreshkaanfal (dwitiya bhaag)
W 36-dreshkaanfal (dwitiya bhaag)
ShatrughnaTripathi1
 
GURUTVA JYOTISH APRIL-2020 VOL: 2
GURUTVA JYOTISH APRIL-2020 VOL: 2GURUTVA JYOTISH APRIL-2020 VOL: 2
GURUTVA JYOTISH APRIL-2020 VOL: 2
GURUTVAKARYALAY
 
Gurutva jyotish aug 2012
Gurutva jyotish aug 2012Gurutva jyotish aug 2012
Gurutva jyotish aug 2012GURUTVAKARYALAY
 
GURUTVA JYOTISH MARCH-2020
GURUTVA JYOTISH MARCH-2020GURUTVA JYOTISH MARCH-2020
GURUTVA JYOTISH MARCH-2020
GURUTVAKARYALAY
 
1 होमो सेपियन्
1 होमो सेपियन्1 होमो सेपियन्
1 होमो सेपियन्
Sanjiv Gautam
 
Shri brahmramayan
Shri brahmramayanShri brahmramayan
Shri brahmramayangurusewa
 
Gati Margna
Gati MargnaGati Margna
Gati Margna
Jainkosh
 
GURUTVA JYOTISH Apr 2020 vol 1
GURUTVA JYOTISH Apr 2020 vol 1GURUTVA JYOTISH Apr 2020 vol 1
GURUTVA JYOTISH Apr 2020 vol 1
GURUTVAKARYALAY
 
Shri krishnadarshan
Shri krishnadarshanShri krishnadarshan
Shri krishnadarshangurusewa
 
Satsang suman
Satsang sumanSatsang suman
Satsang sumangurusewa
 
GURUTVA JYOTISH SEPTEMBER-2019
GURUTVA JYOTISH SEPTEMBER-2019GURUTVA JYOTISH SEPTEMBER-2019
GURUTVA JYOTISH SEPTEMBER-2019
GURUTVAKARYALAY
 
Indriya Margna
Indriya MargnaIndriya Margna
Indriya Margna
Jainkosh
 
Shri gururamanyan
Shri gururamanyanShri gururamanyan
Shri gururamanyangurusewa
 
Sant avtaran
Sant avtaranSant avtaran
Sant avtarangurusewa
 

What's hot (16)

W 35-dhreshkanaadhyay
W 35-dhreshkanaadhyayW 35-dhreshkanaadhyay
W 35-dhreshkanaadhyay
 
W 37-upsanhaaradhyay
W 37-upsanhaaradhyayW 37-upsanhaaradhyay
W 37-upsanhaaradhyay
 
W 36-dreshkaanfal (dwitiya bhaag)
W 36-dreshkaanfal (dwitiya bhaag)W 36-dreshkaanfal (dwitiya bhaag)
W 36-dreshkaanfal (dwitiya bhaag)
 
GURUTVA JYOTISH APRIL-2020 VOL: 2
GURUTVA JYOTISH APRIL-2020 VOL: 2GURUTVA JYOTISH APRIL-2020 VOL: 2
GURUTVA JYOTISH APRIL-2020 VOL: 2
 
Gurutva jyotish aug 2012
Gurutva jyotish aug 2012Gurutva jyotish aug 2012
Gurutva jyotish aug 2012
 
GURUTVA JYOTISH MARCH-2020
GURUTVA JYOTISH MARCH-2020GURUTVA JYOTISH MARCH-2020
GURUTVA JYOTISH MARCH-2020
 
1 होमो सेपियन्
1 होमो सेपियन्1 होमो सेपियन्
1 होमो सेपियन्
 
Shri brahmramayan
Shri brahmramayanShri brahmramayan
Shri brahmramayan
 
Gati Margna
Gati MargnaGati Margna
Gati Margna
 
GURUTVA JYOTISH Apr 2020 vol 1
GURUTVA JYOTISH Apr 2020 vol 1GURUTVA JYOTISH Apr 2020 vol 1
GURUTVA JYOTISH Apr 2020 vol 1
 
Shri krishnadarshan
Shri krishnadarshanShri krishnadarshan
Shri krishnadarshan
 
Satsang suman
Satsang sumanSatsang suman
Satsang suman
 
GURUTVA JYOTISH SEPTEMBER-2019
GURUTVA JYOTISH SEPTEMBER-2019GURUTVA JYOTISH SEPTEMBER-2019
GURUTVA JYOTISH SEPTEMBER-2019
 
Indriya Margna
Indriya MargnaIndriya Margna
Indriya Margna
 
Shri gururamanyan
Shri gururamanyanShri gururamanyan
Shri gururamanyan
 
Sant avtaran
Sant avtaranSant avtaran
Sant avtaran
 

Similar to W 26-drishtifladhyay

पंचांग क्या हैं.docx
पंचांग क्या हैं.docxपंचांग क्या हैं.docx
पंचांग क्या हैं.docx
RohitSahu899545
 
GURUTVA JYOTISH AUGUST-2014
GURUTVA JYOTISH AUGUST-2014GURUTVA JYOTISH AUGUST-2014
GURUTVA JYOTISH AUGUST-2014GURUTVAKARYALAY
 
Leshaya Margna
Leshaya MargnaLeshaya Margna
Leshaya Margna
Jainkosh
 
Gurutva jyotish dec 2011
Gurutva jyotish dec 2011Gurutva jyotish dec 2011
Gurutva jyotish dec 2011
GURUTVAKARYALAY
 
पञ्चाङ्ग.docx
पञ्चाङ्ग.docxपञ्चाङ्ग.docx
पञ्चाङ्ग.docx
RohitSahu899545
 
W 36-dreshkaanfal (dwitiya bhaag)
W 36-dreshkaanfal (dwitiya bhaag)W 36-dreshkaanfal (dwitiya bhaag)
W 36-dreshkaanfal (dwitiya bhaag)
ShatrughnaTripathi1
 
समास पीपीटी 2.pptx
समास पीपीटी 2.pptxसमास पीपीटी 2.pptx
समास पीपीटी 2.pptx
krissh304
 
Kashyap ( kul ) from google.com
Kashyap (  kul ) from  google.comKashyap (  kul ) from  google.com
Kashyap ( kul ) from google.com
Deepak Somaji Sawant
 
Gurutva jyotish nov 2011
Gurutva jyotish nov 2011Gurutva jyotish nov 2011
Gurutva jyotish nov 2011GURUTVAKARYALAY
 
Leshaya Margna - 2
Leshaya Margna - 2Leshaya Margna - 2
Leshaya Margna - 2
Jainkosh
 
Gurutva jyotish jun 2011
Gurutva jyotish jun 2011Gurutva jyotish jun 2011
Gurutva jyotish jun 2011GURUTVAKARYALAY
 
कालसर्पदोष शांति पूजा
कालसर्पदोष शांति पूजाकालसर्पदोष शांति पूजा
कालसर्पदोष शांति पूजा
purohitsangh guruji
 
सौर सम्प्रदाय
सौर सम्प्रदाय सौर सम्प्रदाय
सौर सम्प्रदाय
Virag Sontakke
 
04_Sundara Kandam_v3.pptx
04_Sundara Kandam_v3.pptx04_Sundara Kandam_v3.pptx
04_Sundara Kandam_v3.pptx
Nanda Mohan Shenoy
 

Similar to W 26-drishtifladhyay (14)

पंचांग क्या हैं.docx
पंचांग क्या हैं.docxपंचांग क्या हैं.docx
पंचांग क्या हैं.docx
 
GURUTVA JYOTISH AUGUST-2014
GURUTVA JYOTISH AUGUST-2014GURUTVA JYOTISH AUGUST-2014
GURUTVA JYOTISH AUGUST-2014
 
Leshaya Margna
Leshaya MargnaLeshaya Margna
Leshaya Margna
 
Gurutva jyotish dec 2011
Gurutva jyotish dec 2011Gurutva jyotish dec 2011
Gurutva jyotish dec 2011
 
पञ्चाङ्ग.docx
पञ्चाङ्ग.docxपञ्चाङ्ग.docx
पञ्चाङ्ग.docx
 
W 36-dreshkaanfal (dwitiya bhaag)
W 36-dreshkaanfal (dwitiya bhaag)W 36-dreshkaanfal (dwitiya bhaag)
W 36-dreshkaanfal (dwitiya bhaag)
 
समास पीपीटी 2.pptx
समास पीपीटी 2.pptxसमास पीपीटी 2.pptx
समास पीपीटी 2.pptx
 
Kashyap ( kul ) from google.com
Kashyap (  kul ) from  google.comKashyap (  kul ) from  google.com
Kashyap ( kul ) from google.com
 
Gurutva jyotish nov 2011
Gurutva jyotish nov 2011Gurutva jyotish nov 2011
Gurutva jyotish nov 2011
 
Leshaya Margna - 2
Leshaya Margna - 2Leshaya Margna - 2
Leshaya Margna - 2
 
Gurutva jyotish jun 2011
Gurutva jyotish jun 2011Gurutva jyotish jun 2011
Gurutva jyotish jun 2011
 
कालसर्पदोष शांति पूजा
कालसर्पदोष शांति पूजाकालसर्पदोष शांति पूजा
कालसर्पदोष शांति पूजा
 
सौर सम्प्रदाय
सौर सम्प्रदाय सौर सम्प्रदाय
सौर सम्प्रदाय
 
04_Sundara Kandam_v3.pptx
04_Sundara Kandam_v3.pptx04_Sundara Kandam_v3.pptx
04_Sundara Kandam_v3.pptx
 

More from ShatrughnaTripathi1

R 40-breehzaatak ki vaishistayam
R 40-breehzaatak ki vaishistayamR 40-breehzaatak ki vaishistayam
R 40-breehzaatak ki vaishistayam
ShatrughnaTripathi1
 
W 40-breehzaatak ki vaishistayam
W 40-breehzaatak ki vaishistayamW 40-breehzaatak ki vaishistayam
W 40-breehzaatak ki vaishistayam
ShatrughnaTripathi1
 
R 39-breehzaatak ki vaighyanikta
R 39-breehzaatak ki vaighyaniktaR 39-breehzaatak ki vaighyanikta
R 39-breehzaatak ki vaighyanikta
ShatrughnaTripathi1
 
W 39-breehzaatak ki vaighyanikta
W 39-breehzaatak ki vaighyaniktaW 39-breehzaatak ki vaighyanikta
W 39-breehzaatak ki vaighyanikta
ShatrughnaTripathi1
 
W 38-breehzaatak ka anay hora grantho se tulnatamak adhyan
W 38-breehzaatak ka anay hora grantho se tulnatamak adhyanW 38-breehzaatak ka anay hora grantho se tulnatamak adhyan
W 38-breehzaatak ka anay hora grantho se tulnatamak adhyan
ShatrughnaTripathi1
 
R 37-upsanhaaradhyay
R 37-upsanhaaradhyayR 37-upsanhaaradhyay
R 37-upsanhaaradhyay
ShatrughnaTripathi1
 
R 36-dreshkaanfal (dwitiya bhaag)
R 36-dreshkaanfal (dwitiya bhaag)R 36-dreshkaanfal (dwitiya bhaag)
R 36-dreshkaanfal (dwitiya bhaag)
ShatrughnaTripathi1
 
R 35-dhreshkanaadhyay
R 35-dhreshkanaadhyayR 35-dhreshkanaadhyay
R 35-dhreshkanaadhyay
ShatrughnaTripathi1
 
R 34-nashtakjaatakvichaar
R 34-nashtakjaatakvichaarR 34-nashtakjaatakvichaar
R 34-nashtakjaatakvichaar
ShatrughnaTripathi1
 
W 34-nashtakjaatakvichaar
W 34-nashtakjaatakvichaarW 34-nashtakjaatakvichaar
W 34-nashtakjaatakvichaar
ShatrughnaTripathi1
 
R 33-naiyarnikadhyay
R 33-naiyarnikadhyayR 33-naiyarnikadhyay
R 33-naiyarnikadhyay
ShatrughnaTripathi1
 
R 32-pati sukhasukh vichar
R 32-pati sukhasukh vicharR 32-pati sukhasukh vichar
R 32-pati sukhasukh vichar
ShatrughnaTripathi1
 
W 32-pati sukhasukh vichar
W 32-pati sukhasukh vicharW 32-pati sukhasukh vichar
W 32-pati sukhasukh vichar
ShatrughnaTripathi1
 
R 31-streejaatak swabhav vichar
R 31-streejaatak swabhav vicharR 31-streejaatak swabhav vichar
R 31-streejaatak swabhav vichar
ShatrughnaTripathi1
 
W 31-streejaatak swabhav vichar
W 31-streejaatak swabhav vicharW 31-streejaatak swabhav vichar
W 31-streejaatak swabhav vichar
ShatrughnaTripathi1
 
R 28-aashryayogvichar
R 28-aashryayogvicharR 28-aashryayogvichar
R 28-aashryayogvichar
ShatrughnaTripathi1
 
R 30-anishta vivechan
R 30-anishta vivechanR 30-anishta vivechan
R 30-anishta vivechan
ShatrughnaTripathi1
 
W 30-anishta vivechan
W 30-anishta vivechanW 30-anishta vivechan
W 30-anishta vivechan
ShatrughnaTripathi1
 
R 29-kaarak vichar awam anishta chhintan
R 29-kaarak vichar awam anishta chhintanR 29-kaarak vichar awam anishta chhintan
R 29-kaarak vichar awam anishta chhintan
ShatrughnaTripathi1
 
W 29-kaarak vichar awam anishta chhintan
W 29-kaarak vichar awam anishta chhintanW 29-kaarak vichar awam anishta chhintan
W 29-kaarak vichar awam anishta chhintan
ShatrughnaTripathi1
 

More from ShatrughnaTripathi1 (20)

R 40-breehzaatak ki vaishistayam
R 40-breehzaatak ki vaishistayamR 40-breehzaatak ki vaishistayam
R 40-breehzaatak ki vaishistayam
 
W 40-breehzaatak ki vaishistayam
W 40-breehzaatak ki vaishistayamW 40-breehzaatak ki vaishistayam
W 40-breehzaatak ki vaishistayam
 
R 39-breehzaatak ki vaighyanikta
R 39-breehzaatak ki vaighyaniktaR 39-breehzaatak ki vaighyanikta
R 39-breehzaatak ki vaighyanikta
 
W 39-breehzaatak ki vaighyanikta
W 39-breehzaatak ki vaighyaniktaW 39-breehzaatak ki vaighyanikta
W 39-breehzaatak ki vaighyanikta
 
W 38-breehzaatak ka anay hora grantho se tulnatamak adhyan
W 38-breehzaatak ka anay hora grantho se tulnatamak adhyanW 38-breehzaatak ka anay hora grantho se tulnatamak adhyan
W 38-breehzaatak ka anay hora grantho se tulnatamak adhyan
 
R 37-upsanhaaradhyay
R 37-upsanhaaradhyayR 37-upsanhaaradhyay
R 37-upsanhaaradhyay
 
R 36-dreshkaanfal (dwitiya bhaag)
R 36-dreshkaanfal (dwitiya bhaag)R 36-dreshkaanfal (dwitiya bhaag)
R 36-dreshkaanfal (dwitiya bhaag)
 
R 35-dhreshkanaadhyay
R 35-dhreshkanaadhyayR 35-dhreshkanaadhyay
R 35-dhreshkanaadhyay
 
R 34-nashtakjaatakvichaar
R 34-nashtakjaatakvichaarR 34-nashtakjaatakvichaar
R 34-nashtakjaatakvichaar
 
W 34-nashtakjaatakvichaar
W 34-nashtakjaatakvichaarW 34-nashtakjaatakvichaar
W 34-nashtakjaatakvichaar
 
R 33-naiyarnikadhyay
R 33-naiyarnikadhyayR 33-naiyarnikadhyay
R 33-naiyarnikadhyay
 
R 32-pati sukhasukh vichar
R 32-pati sukhasukh vicharR 32-pati sukhasukh vichar
R 32-pati sukhasukh vichar
 
W 32-pati sukhasukh vichar
W 32-pati sukhasukh vicharW 32-pati sukhasukh vichar
W 32-pati sukhasukh vichar
 
R 31-streejaatak swabhav vichar
R 31-streejaatak swabhav vicharR 31-streejaatak swabhav vichar
R 31-streejaatak swabhav vichar
 
W 31-streejaatak swabhav vichar
W 31-streejaatak swabhav vicharW 31-streejaatak swabhav vichar
W 31-streejaatak swabhav vichar
 
R 28-aashryayogvichar
R 28-aashryayogvicharR 28-aashryayogvichar
R 28-aashryayogvichar
 
R 30-anishta vivechan
R 30-anishta vivechanR 30-anishta vivechan
R 30-anishta vivechan
 
W 30-anishta vivechan
W 30-anishta vivechanW 30-anishta vivechan
W 30-anishta vivechan
 
R 29-kaarak vichar awam anishta chhintan
R 29-kaarak vichar awam anishta chhintanR 29-kaarak vichar awam anishta chhintan
R 29-kaarak vichar awam anishta chhintan
 
W 29-kaarak vichar awam anishta chhintan
W 29-kaarak vichar awam anishta chhintanW 29-kaarak vichar awam anishta chhintan
W 29-kaarak vichar awam anishta chhintan
 

W 26-drishtifladhyay

  • 1. 61pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26) 1 ØeOeeve ieJes<ekeâ - [e@. Me$egIveef$ehee"er pÙeesefle<eefJeYeeie, mebmke=âleefJeÅeeOece&efJe%eevemebkeâeÙe, keâe.efn.efJe.efJe., JeejeCemeer he$e mecevJeÙekeâ - [e@. Me$egIveef$ehee"er pÙeesefle<eefJeYeeie, mebmke=âleefJeÅeeOece&efJe%eevemebkeâeÙe, keâe.efn.efJe.efJe., JeejeCemeer hee" uesKekeâ - [e@0 jepeerJe kegâceej efceße ceesoer efJe%eeve SJeb ØeesÅeesefiekeâer efJeÕeefJeÅeeueÙe ue#ceCeieÌ{, meerkeâj, jepemLeeve hee" meceer#ekeâ - Øees. jeceÛevõ heeC[sÙe pÙeesefle<eefJeYeeie, mebmke=âleefJeÅeeOece&efJe%eevemebkeâeÙe, keâe.efn.efJe.efJe., JeejeCemeer lekeâveerkeâer meceer#ekeâ - Øees. mebpeÙe heeC[sÙe ØeÙegòeâ ieefCele efJeYeeie, YeejleerÙe ØeewÅeesefiekeâer mebmLeeve, keâe.efn.efJe.efJe. Yee<eemebheeokeâ - [e@. ßeerke=â<Ce ef$ehee"er Jewefokeâ oMe&ve efJeYeeie, mebmke=âleefJeÅeeOece&efJe%eevemebkeâeÙe, keâeMeerefnvotefJeÕeefJeÅeeueÙe, JeejeCemeer hee"Ÿe›eâce-pÙeesefle<eHeâefuele hee"Ÿemeece«eer efvecee&Ce Dee@veueeFve-mveelekeâesòej hee"Ÿe›eâce efJe<eÙemetÛeer he$e keâe veece - ØeLece (ye=nppeelekeâced) hee"Ÿe›eâceefveoxMekeâ – [e@. Me$egIveef$ehee"er hee" – Úyyeerme (दृििफलाध्याय) )
  • 2. 62pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26) 2 hee"efJeJejCeced hee"Ÿe›eâce pÙeesefle<eHeâefuele he$e ØeLece (ye=nppeelekeâced) hee" Úyyeerme (दृििफलाध्याय) २६.१ प्रस्तावना िप्रयच्छात्र ! UGC द्वारा संचािलत काययक्रमान्तागयत SWAYAM के स्नातकोत्तर स्तरीय पाठ्यक्रम के बृहज्जातक नामक शीषयक के छब्बीसवें पाठ दृििफलाध्याय में आपका स्वागत है | इस पाठ में आप िविभन्न रािशयों में िस्िित चन्रमा पर ग्रहों की दृिि फल के बारे में िवस्तार से अध्यययन करेंगे | इसके पूवय पाठ में आपने ग्रहों के िविभन्न रािशयों में िस्िित वशात् फल के बारे में िवििवत् अध्यययन ककया। उसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए मेषाकद द्वादश रािशयों में िस्ित चन्रमा पर सूयायकद ग्रहों की दृिि के फल के बारे में अध्ययन करेंगे। प्रत्येक ग्रह की चार प्रकार की दृिि होती है १. पूर्य दृिि, २. एक-पाद दृिि, ३. िद्व-पाद दृिि, व ४. ित्र-पाद दृिि | जन्मकुंडली में िस्ित ग्रह अपने स्िान से सातवें स्िान या भाव को पूर्य दृिि से देखता है | तीसरे व दशवें स्िान को एक- पाद दृिि से, पांचवें व नौवें भाव को िद्व-पाद दृिि से तिा चौिे व आठवें भाव को ित्र-पाद दृिि से देखता है | परन्तु मंगल चौिे व आठवें भाव को, गुरु पांचवें व नौवें भाव को तिा शिन तीसरे व दशवें भाव को पूर्य दृिि से देखता है |
  • 3. 63pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26) 3 इसको अिोिनर्ददि सारर्ी के माध्यम से स्पितया समझ सकते हैं- ग्रह एक-पाद दृिि िद्व-पाद दृिि ित्र-पाद दृिि पूर्य दृिि सूयय ३,१० ९,५ ८,४ ७ चन्र ३,१० ९,५ ८,४ ७ मंगल ३,१० ९,५ ८,४ ४,७,८ बुि ३,१० ९,५ ८,४ ७ बृहस्पित ३,१० ९,५ ८,४ ५,७,९ शुक्र ३,१० ९,५ ८,४ ७ शिन ३,१० ९,५ ८,४ ३,७,१० इस प्रकार मेषाकद मीन पयंत रािशयों के चन्रमा पर मंगलाकद ग्रहों की दृिि का पृिक्-पृिक् रूप में शुभाशुभ फल, चन्रमा िजस होरा और िजस रेष्कार् में िस्ित है उस-उस होरा रेष्कार् रािशयों में सूयायकदक ग्रहों का दृििफल के साि वगोत्तम रािश गत चन्रमा पर ग्रहों की दृिि से प्राप्त शुभाशुभ फल पूर्य मात्रा में केवल अपने नवांशगत चन्रमा पर ग्रहों का दृििफल सामान्य रूप में यत्रकुत्रािप और नवांश गत चन्रमा पर ग्रह दृिि फल अल्प मात्र में होता है इत्याकद का िवस्तार से अध्ययन करेंगे | २६.२ उद्देश्य इस पाठ का िवििवत् अध्ययन करने के उपरांत अध्येतागर् –  मेषाकद रािशगत चन्रमा पर ग्रहों की दृिि के फल के बारे में जान सकेंगे |  होरा, रेष्कार् व द्वादशांशिस्ित चन्रमा पर ग्रह-दृिि के फल से अवगत हो सकेंगे |
  • 4. 64pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26) 4  मेषाकद नवांश-िस्ित चन्रमा पर सूयायकद ग्रहों के दृििफल को जानने में समिय हो सकेंगे |  नवांशगत चन्रमा पर दृिििवशेष के फल से पररिचत हो सकेंगे | २६.३ मेष वृष िमिुन ककय रािशस्ि चन्रमा पर मंगलाकद ग्रह दृििफल– चन्रे भूपबुिौ नृपोपमगुर्ी स्तेनोऽिनश्चाजगे िनिःस्वस्तेननृमान्यभूपििननिः प्रेष्यिः कुजाद्यैगयिव | नृस्िेऽयोव्यवहाररपार्थिवबुिािभस्तन्तुवायोsिनिः स्वर्क्षे यौद्िृकिवज्ञभूिमपतयोऽयोजीिवदृग्रोिगर्ौ || अन्वय एवं अन्वयािय- अजगेचन्रे =मेष रािशस्ि चन्रमा पर, भौम दृिे = मंगल की दृिि हो तो, भूप = राजा, बुि दृिे = बुि की दृिि हो तो, बुििः = िवद्वान्, गुरु दृिे = गुरु की दृिि से, नृपिः = नृप, शुक्रे = शुक्र से, गुर्ी = गुर्ी, शनौ = शिन से, स्तेन = चोर, सूयय दृिे = सूयय से, अिनिः = िनियन , गिव चन्रे = वृष रािशस्ि चन्रमा पर, मंगल की दृिि से िनिःस्व = िनियन, बुि की दृिि से स्तेन = चोर, गुरु से नृमान्यिः = मनुष्यों का मान्य, शुक्र से भूपिः = राजा, शिन से ििननिः = िनी, सूयय से प्रेष्यिः = सेवक, नृस्िे िमिुन रािशस्ि चन्रमा पर, मंगल की दृिि होने से, अयोव्यवहारी = लोहे का व्यापारी, बुि से पार्थिविः = राजा, गुरु से बुििः = िवद्वान्, शुक्र से अभीिः = िनभीक, शिन से तन्तुवायिः = वस्त्र िनमायता, सूयय से अिनिः = िनियन, स्वर्क्षे चन्रे = ककयस्ि चन्रमा पर मंगल की दृिि होने से यौिक = युद्ध करने में िनपुर्, बुि से किविः = किव, गुरु की दृिि से ज्ञिः = िवद्वान, शुक्र से भूिमपतयिः = भूपित,
  • 5. 65pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26) 5 शिन से अयोजीिव = लोहे से आजीिवका चलाने वाला, सूयय से दृग् रोिगर्ौ = नेत्र रोगी, होता है | व्याख्या- १. जन्मसमय में मेष रािश िस्ित चन्रमा पर यकद मंगल की दृिि हो तो जातक राजा होता है, बुि की दृिि हो तो िवद्वान, बृहस्पित की दृिि हो तो राजा के समान, शुक्र की दृिि हो तो गुर्ी, शिन कक दृिि होने से चोर और सूयय की दृिि हो तो िनियन होता है | २. वृष-रािश िस्ित चन्रमा पर यकद मंगल की दृिि हो तो वह िनियन, बुि कक दृिि होने पर चोर, बृहस्पित देखता हो तो मनुष्य पूज्य, शुक्र की दृिि हो तो राजा, शिन की दृिि होने से वस्त्र बुनने वाला और सूयय देखता हो तो िनियन | ३. िमिुन रािशस्ि चन्रमा पर मंगल की दृिि हो तो जातक लोहे का व्यापारी, बुि की दृिि होने से राजा, बृहस्पित की दृिि हो तो िवद्वान्, शुक्र की दृिि हो तो भयरिहत, शिन कक दृिि हो तो वस्त्र को बुनने वाला और सूयय की दृिि हो तो िनियन होता है | ४. ककय राशी में िस्ित चन्रमा पर मंगल की दृिि हो तो वह जातक युद्ध करने में िनपुर्, बुि की दृिि से किव, बृहस्पित की दृिि हो तो िवद्वान्, शुक्र की दृिि हो तो राजा, शिन कक दृिि होने से वह लोहे के व्यापार से आजीिवका चलने वाला और सूयय कक दृिि होने से जातक नेत्ररोगी होता है | २६.४ ससह से वृिश्चक रािश पययन्त िस्ित चन्र बुिाकद ग्रहों का दृििफल - ज्योितज्ञायढ्यनरेन्रनािपतनृपक्ष्मेशा बुिाद्यैहयरौ तद्वद्भूपचमूपनैपुर्युतािः षष्ठेऽशुभैिः स््याश्रयािः | जूके भूपसुवर्यकारविर्जिः शेषेिर्क्षते नैकृती कीटे युग्मिपता नतश्च रजको व्यङ्गोऽिनौ भूपितिः ||
  • 6. 66pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26) 6 अन्वय एवं अन्वयािय- हरौ चन्रे = ससह रािशस्ि चन्रमा पर बुिाद्यै (बुिदृिे) = बुि की दृिि हो तो ज्योितज्ञय = ज्योितष शास्त्र का ज्ञाता, गुरुदृिे = गुरु की दृिि से आढ्यिः = िनी, शुक्रदृिे = शुक्र की दृिि से नरेन्रो = राजा, शिनदृिे = शनै की दृिि से नािपतिः = नाई, सूयय दृिे = सूयय से नृपिः = नृप, भौम दृिे = मंगल की दृिि से क्ष्मेशिः = राजा , षष्ठे (कन्या गते) चन्रे = कन्या रािशस्ि चन्रमा पर बुि की दृिि होने से भूपिः = राजा, गुरु से चमूपिः = सेनापित, शुक्र से नैपुर्युतिः = कायय िनपुर्, अशुभैिः = अशुभ ग्रहों शिन रिव भौम दृिे = शिन रिव मंगल की दृिि होने से स्त्री-आश्रयिः = स्त्री के आिश्रत , जूके चन्रे = तुला रािशस्ि चन्रमा पर बुि की दृिि होने से भूपिः = राजा, गुरु से सुवर्यकारिः = स्वर्यकार, शुक्र से विर्जिः = व्यापारी, शेषेिर्क्षते = शेषग्रहों, शिन सूयय भौम दृिे = शिन सूयय तिा मंगल की दृिि होने पर नैकृित = जीव नाशक , कीटे = वृिश्चक रािशस्ि चन्रमा पर बुि की दृिि होने से युग्मिपता = युगल पुत्रों का िपता, गुरु से ततिः = नम्र, शुक्र से रजकिः = रजक, शिन की से व्यङ्गिः = अंगहीन, सूयय से अिनिः = िनियन, मंगल से भूपित = राजा | व्याख्या- १. ससह रािश में िस्ित चन्रमा पर बुि की दृिि हो तो जातक ज्योितषशास्त्र का ज्ञाता, बृहस्पित की दृिि हो तो िनी, शुक्र की दृिि हो तो राजा, शिन कक दृिि हो तो नाई , सूयय की दृिि हो तो राजा और मंगल कक दृिि हो तो भी राजा होता है | २. कन्यारािशस्ि चन्रमा पर बुि की दृिि हो तो वह जातक राजा, बृहस्पित की दृिि हो तो सेनापित, शुक्र की दृिि हो तो चतुर और यकद शिन,सूयय और मंगल के दृिि हो तो वह जातक स्त्री पर आिश्रत रहने वाला होता है |
  • 7. 67pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26) 7 ३. तुला रािशस्ि चन्रमा पर बुि की दृिि हो तो वह जातक राजा, बृहस्पित की दृिि हो तो स्वर्यकार, शुक्र की दृिि हो तो व्यापारी और शिन सूयय व मंगल की दृिि हो तो जातक प्रािर्यों का नाशक होता है | ४. वृिश्चक रािशस्ि चन्रमा पर बुि की दृिि हो तो जातक यमल संतित का िपता, बृहस्पित कक दृिि हो तो िवनम्र स्वभाव का, शुक्र की दृिि हो तो रजक, शिन की दृिि हो तो अंगहीन, सूयय की दृिि हो तो िनियन और मंगल की दृिि हो तो जातक राजा होता है | २६.५ िनु से मीन रािशपययन्त िस्ित चन्र पर बुिाकद ग्रहों कादृििफल ज्ञातुवीशजनाश्रयश्च तुरगे पापैिः सदंभिः शठिः अत्युवीशनरेन्रपिडडतिनी रव्योनभूपो मृगे | भूपो भूपसमोऽन्यदारिनरतिः शेषैश्च कुम्भिस्िते हास्यज्ञो नृपितबुयिश्च झषगे पापेिर्क्षते || अन्वय एवं अन्वयािय- तुरगे = िनुरािशिस्ित चन्रमा पर बुि की दृिि होने से, ज्ञातीशिः = स्वजनों का भरर् पोषर् करने वाला, बृहस्पित से उवीशिः = राजा, शुक्र से जनाश्रयश्च = बहुतों को आश्रय देने वाला , पापैिः = पाप ग्रहों ( शिन रिव भौम दृि) होने पर सदंभिः = पाखडड करने वाला, (और) शठिः = शठ होता है | मृगे = मकरस्ि चन्र पर बुि की दृिि हो तो अित -उवीशिः = राजाििराजा, बृहस्पित से नरेन्रिः = राजा, शुक्र से पिडडतिः = िवद्वान्, शिन से िनी = िनी, सूयय से रव्योनिः = िनहीन, मंगल से भूपो = राजा होता है | कुम्भिस्िते चन्रे = कुम्भरािशस्ि चन्रमा बुि दृि हो तो भूपो = राजा, बृहस्पित से भूपसमो = राजा के सदृश, शुक्र से अन्यदारिनरतिः = पराई िस्त्रयों में रत, शेषैश्च = शेष ग्रहों (शिन सूयय भौम दृिि वशात् ) अन्यदारिनरतिः = परस्त्री गमन करने वाला होता है |
  • 8. 68pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26) 8 झषगे = मीनिस्ित चन्रमा बुि दृि हो तो हास्यज्ञो = हास्यज्ञ, बृहस्पित से नृपितिः = राजा, शुक्र से बुििः = िवद्वान्, पापेिर्क्षते = पाप ग्रह शिन सूयय और मंगल से पापबुिद्ध = पाप बुिद्ध वाला होता है | व्याख्या- १.िनु रािशस्ि चन्रमा पर बुि की दृिि हो तो जातक अपने लोगों का भरर् पोषर् करने वाला होता है, बृहस्पित से दृि हो तो राजा, शुक्र की दृिि होने से बहुत लोगों को आश्रय देने वाला तिा शिन,सूयय और मंगल से दृि हो तो वह पाखडड करने वाला तिा शठ होता है | २. मकर रािशस्ि चन्रमा पर बुि की दृिि हो तो जातक राजाििराज, बृहस्पित की दृिि होने से राजा, शुक्र से दृि होने पर िवद्वान्, शिन से दृि होने से िनवान्, सूयय की दृिि हो तो िनहीन तिा मंगल की दृिि हो तो वह जातक राजा होता है | ३. कुम्भरािशस्ि चन्रमा पर बुि की दृिि हो तो जातक राजा होता है, बृहस्पित की दृिि होने पर राजा के सदृश, शुक्र की दृिि हो तो परस्त्री गमन करने वाला और शिन सूयय तिा मंगल की दृिि हो तो वह परस्त्री गमन करने वाला होताहै | ४. मीन रािश में िस्ित चन्रमा पर बुि की दृिि हो तो जातक हास्य कक्रया को जानने वाला, बृहस्पित से दृि हो तो राजा, शुक्र की दृिि हो तो िवद्वान् और शिन सूयय तिा मंगल हो तो जातक पाप बुिद्ध वाला होता है | २६.६ होरा रेष्कार् व द्वादशांश िस्ित चन्र पर ग्रह दृििफल- होरेशर्क्षयदलािश्रतैिः शुभकरो दृििः शशी तद्गत स््यंशे तत्पितिभिः सुहृद्भवनगैवाय वीिर्क्षतिः शस्यते | यत्प्रोक्तं प्रितरािशवीर्क्षर्फलं तद् द्वादशांशे स्मृतं सूयायद्यैरवलोककतेऽिप शिशिन ज्ञेयं नवांशेष्वतिः ||
  • 9. 69pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26) 9 अन्वय एवं अन्वयािय- होरेशर्क्षयदलािश्रतैिः = होरेश की होरा में िस्ित ग्रहों से, शशी दृििः = दृि चन्रमा, शुभकरो = शुभकारक होता है | ्यं शे-तत्पितिभिः = रेष्कार् के स्वामी ग्रह से, सुहृद्भवनगैवाय = अिवा िमत्रग्रहों की रािश में िस्ित ग्रहों से, वीिर्क्षतिः = दृि(चन्रमा), शस्यते = शुभकर होता है , यत्प्रोक्तं = पूवोक्त, प्रितरािशवीर्क्षर्फलं = प्रत्येक रािश में िस्ित चन्र पर ग्रह-दृिि फल, तद् = वही फल, द्वादशांशे = उस राशी के द्वादशांश में भी, स्मृतं = कहना चािहए , नवांशेषु = नवांशागत, शिशिन = चन्रमा पर, अवलोककतेऽिप सूयायद्यैिः= सूयायकद ग्रहदृिि से, फलं = फल, गेयम् = जानना चािहए | व्याख्या- १. जन्मकाल में चन्रमा िजस होरा में भी िस्ित हो उस होरेश की होरा में िस्ित ग्रहों से यकद चन्रमा दृि हो तो वह शुभ फल दायक होता है | यिा- सूयय की होरा में िस्ित चन्रमा पर सूयय होरा में िस्ित ग्रहों की दृिि हो तो शुभफल होता है | इसीप्रकार चन्र होरा में िस्ित चन्रमा पर चन्र होरा में िस्ित अन्य ग्रहों की दृिि हो तो भी शुभफल दायक होता है | इसके िवपरीत अशुभफल होता है | इसीप्रकार लग्न से भी शुभ और अशुभ फल का ज्ञान करना चािहए | २. चन्रमा िजस ककसी भी रेष्कार् में िस्ित हो उस रेष्कार् का स्वामी कहीं भी िस्ित होकर चन्रमा को देखता हो तो शुभफल दायक होता है | यकद चन्रमा पर िमत्र ग्रहों की रािशयों में िस्ित ग्रहों की दृिि हो तो वह भी शुभफल प्रद कही गयी है | ३. मेषाकद द्वादश रािशयों में गत चन्र पर ग्रहों की दृिि का जो फल कहा गया है वही फल उस रािश के द्वादशांशों में िस्ित चन्र पर अन्य ग्रहों की दृिि का फल जानना चािहए |
  • 10. 610pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26) 10 ४. चंररािशगत ग्रह दृिि की तरह नवांशगत चन्रमा पर ग्रहों की दृिि से जातक का शुभफल जानना चािहए | २६.७ मेषाकद नवांशिस्ित चन्र पर सूयायकद ग्रहों कादृििफल आरिर्क्षको विरुिचिः कुशलो िनयुद्धे िूपोऽियवान् कलहकृित्र्क्षितजांशसंस्िे | मूखोऽन्यदारिनरतिः सुकिविः िशतांशे सत्काव्यकृत्सुखपरोऽन्यकलत्रगश्च || अन्वय एवं अन्वयािय- िर्क्षितजांशस्िे = मेष और वृिश्चक रािश के नवांश में िस्ित, चन्रमिस = चन्रमा पर, सूयय की दृिि हो तो, आरिर्क्षको = नगर रर्क्षक होता है, मंगल की दृिि हो तो विरुिचिः = प्रािर्यों का घातक, बुि से िनयुद्धेकुशलिः = मल्लयुद्ध में कुशल, बृहस्पित से भूपो = राजा, शुक्र से अियवान् = िनी, और शिन से कलह कृत = कलह करने वाला, भवित = होता है | िसतांशे = वृष व तुला के नवांश िस्ित चन्रमा को सूयय देखता हो तो मूखयिः = मूखय, मंगल से अन्यदारिनरतिः = परस्त्री रत, बुि से सुकिविः = सुकिव, बृहस्पित से सत्काव्यकृत = सत्काव्य करने वाला, शुक्र से सुखपरिः = िवशेष सुखी, और शिन से अन्यकलत्रगश्च = परस्त्री गमन करने वाला, भवित = होता है | व्याख्या- १.मेष व वृिश्चक के नवांश में िस्ित चन्रमा पर सूयय की दृिि हो तो जातक नगर रर्क्षक होता है , मंगल की दृिि हो तो जीवों का घातक, बुि की दृिि हो तो मल्लयुद्ध में कुशल, बृहस्पित की दृिि हो तो राजा, शुक्र की दृिि हो तो िनी तिा शिन कक दृिि हो तो जातक कलह करने वाला होता है | २. वृष तिा तुला के नवांश में िस्ित चन्रमा पर सूयय की दृिि हो तो जातक मूखय, मंगल की दृिि हो तो पराई िस्त्रयों में रत , बुि की दृिि होने पर उत्तम किव,
  • 11. 611pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26) 11 बृहस्पित की दृिि हो तो सत्काव्य रचने वाला, शुक्र की दृिि हो तो सुखी तिा शिन की दृिि हो तो पराई िस्त्रयों से रित करने वाला होता है | २६.८ िमिुन कन्या व ककय रािशस्ि चन्र पर सूयायकद ग्रहों कादृििफल बौिे िह रङ्गचरचौरकवीन्रमन्त्री गेयज्ञिशल्पिनपुर्िः शिशिन िस्ितेंऽशे | स्वान्शेऽल्पगात्रिनलुब्ितपिस्वमुख्यिः स्त्रीपोष्यकृत्यिनरतश्चिनरीक्ष्यमार्े || अन्वय एवं अन्वयािय- बौिे िस्ितेंऽशे = िमिुन व कन्या नवांश िस्ित, शिशिन = चन्रमा पर, सूयय की दृिि होने से, रङ्गचरिः = मल्लयुद्ध करने वाला, मंगल से चौर= चोर, बुि से कवीन्र = किवयों में श्रेष्ठ, बृहस्पित से मन्त्री = मंत्री, शुक्र से गेयज्ञ = गायन िवद्या को जानने वाला, शिन से िशल्पिनपुर्िः = िशल्प िवद्या में िनपुर्, भवित = होता है | स्वान्शे = ककयनवांश िस्ित चन्रमा पर, िनरीक्ष्यमार्े = सूयय की दृिि होने पर अल्पगात्र = कृशकाय, मंगल से िनलुब्ि = िन लोलुप, बुि से तपिस्व = तपस्वी, बृहस्पित से मुख्यिः = प्रमुख, शुक्र से स्त्रीपोष्य= स्त्री पोिषत, शिन से कृत्यिनरतश्च = कायायसक्त होता है | व्याख्या- १.िमिुन व कन्या के नवांश में िस्ित चन्रमा पर सूयय की दृिि हो तो जातक मल्ल युद्ध करने वाला, मंगल की दृिि हो तो चोर, बुि की दृिि हो तो किवयों में श्रेष्ठ, बृहस्पित की दृिि हो तो मंत्री, शुक्र की दृिि हो तो गायन िवद्या को जानने वाला तिा शिन की दृिि हो तो िशल्प कायय में िनपुर् होता है | २. ककय के नवांश में िस्ित चन्रमा पर सूयय की दृिि हो तो जातक कृश शरीर वाला, मंगल की दृिि हो तो िन लोलुप, बुि की दृिि हो तो तपस्वी, बृहस्पित
  • 12. 612pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26) 12 की दृिि हो तो प्रिान, शुक्र की दृिि हो तो स्त्रीयों से पोिषत तिा शिन की दृिि हो तो वह जातक कायायसक्त होता है | २६.९ ससह , िनु व मीन नवांशिस्ित चन्र पर सूयायकद ग्रहों कादृििफल सक्रोिो नरपितसम्मतो िनिीशिः ससहांशे प्रभुरसुतोऽितसहस्रकमाय | जीवांशे प्रिितबलो रर्ोपदेिा हास्यज्ञिः सिचविवकामवृद्धशीलिः || अन्वय एवं अन्वयािय- ससहांशे = ससह नवांश िस्ित चन्रमा पर सूयय की दृिि हो तो, सक्रोिो = क्रोिी, मंगल की दृिि हो तो नरपितसम्मतो = राजिप्रय, बुि की दृिि हो तो िनिीशिः = िनिि से प्राप्त संपती का स्वामी, बृहस्पित की दृिि हो तो प्रभु= उपदेशक, शुक्र की दृिि हो तो असुतो= सुतरिहत,शिन से दृि होने पर अितसहस्रकमाय= अत्यंत सहसक कमय करने वाला | जीवांशे = िनु व मीन के नवांश में िस्ित चन्रमा पर सूयय की दृिि हो तो प्रिितबलो = प्रिसद्ध बली, मंगल से रर्ोपदेिा = युद्ध िवद्या का उपदेशक, बुि से हास्यज्ञिः = हास्यज्ञ, बृहस्पित से सिचव= मंत्री,शुक्र से िवकाम= कामरिहत नपुंसक,और शिन से वृद्धशीलिः= वृद्ध के सदृश स्वभाव वाला होता है | व्याख्या- १. ससह के नवांश में िस्ित चन्रमा पर सूयय की दृिि हो तो जातक क्रोिी, मंगल की दृिि हो तो राजिप्रय, बुि की दृिि हो तो िनिि से प्राप्त िन का स्वामी, बृहस्पित की दृिि होने से उपदेश करने वाला, शुक्र की दृिि हो तो पुत्रहीन तिा शिन की दृिि हो तो अत्यंत सहसक कमय करने वाला होता है | २. िनु व मीन के नवांश में िस्ित चन्रमा पर सूयय की दृिि हो तो वह जातक प्रिसद्ध बलवान, मगल की दृिि हो तो युद्ध िवषयक िशर्क्षा देने वाला, बुि की
  • 13. 613pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26) 13 दृिि हो तो हास्य िवद्या का ज्ञाता, बृहस्पित की दृिि हो तो मंत्री, शुक्र की दृिि हो तो नपुंशक तिा शिन कक दृिि हो तो वृद्धो के सदृश स्वभाव वाला होता है | २६.१० मकर व कु म्भ नवांशिस्ित चन्र पर सूयायकद ग्रहों कादृििफल अल्पापत्यो दुिःिखतिः सत्यािप स्वे मानासक्तिः कमयिर् स्वेऽनुरक्तिः | दुिस्त्रीििः कृपर्श्चार्दक भागे चन्रे भानौ तद्वकदन्द्वाकददृिे || अन्वय एवं अन्वयािय- आर्दक भागे = मकर व कुम्भ नवांश िस्ित, चन्रे = चन्रमा पर, भानौ तद्वकदन्द्वाकद दृिे = सूयायकद ग्रहों की दृिि होने पर, अल्पापत्यो = अल्पसंतित, सत्यािप स्वे दुिःिखतिः = िनी होने पर भी दुिःखी, मानासक्तिः = अिभमानी, स्व कमयिर् अनुरक्तिः = अपने कुल के अनुरूप काययरत, दुिस्त्रीििः = दुि स्त्री का िप्रय, कृपर्ाश्च = और कृपर् होता है | व्याख्या- १. मकर व कुम्भ के नवांश में िस्ित चन्रमा पर सूयय की दृिि हो तो जातक अल्प संतित वाला, मंगल की दृिि हो तो िन-सम्पित के रहते हुए भी दुिःखी रहने वाला, बुि की दृिि हो तो अिभमानी, बृहस्पित की दृिि हो तो अपने कुल के अनुरूप कायय करने वाला, शुक्र की दृिि हो तो दुि स्त्री का िप्रय तिा शिन की दृिि हो तो वह जातक कृपर् होता है | २. ककय नवांश के अितररक्त चन्रमा की दृिि अशुभ कही गयी है | चन्रमा से दृि सूयय का फल भी पूवयवत् जानना चािहए | मेष नवांश िस्ित चन्रमा पर ग्रहों की दृिि का जो फल होगा वही मेष नवांशस्ि सूयय पर मंगल आकद ग्रहों की दृिि फल कहना चािहए | मेष नवांशस्ि चन्रमा पर सूयय की दृिि का जो फल होगा वही मेष नवांश में िस्ित सूयय पर दृिि का फल जानना चािहए |
  • 14. 614pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26) 14 २६.११ नवांशिस्ित दृििफल में िवशेष - वगोत्तमस्वपरगेषु शुभं युदुक्तं तत्पुिमध्यलघुताशुभमुत्क्रमे र् | वीयायिन्वतोऽशकपितर्थनरुर्िद्ध पूवय राशीर्क्षर्स्य फलमंशफलं ददाित || अन्वय एवं अन्वयािय- वगोत्तम-स्व-परगेषु = क्रमशिः वगोत्तम नवांश िस्ित चन्रमा पर ग्रहों की दृिि वशात्, युदुक्तं शुभं = जो शुभ फल कए गए हैं, तत्पुि = वह पुि, मघ्य = स्व-नवांश िस्ित चन्रमा पर यकद ग्रहों की दृिि हो तो फल मध्यम, लघु = यकद पर(अन्य) के नवांश में िस्ित चंरमा पर सूयायकद ग्रहों की दृिि हो तो फल अल्प होता है | अशुभमुत्क्रमे र् = अशुभफल इसके िवपरीत होता है , वीयायिन्वतिः = बलवान्, अं शकपितिः = नवांशेष, पूवं राशीर्क्ष र्स्य = पूवय के रािश के (होरा रेष्कार् आकद)दृिि फल, िनरुर्िद्ध = रोककर, फलमंशफलं = अंश फल, ददाित = देता है | व्याख्या- १. यकद चन्रमा वगोत्तम नवांश का हो तो कहे गए शुभ फलों की वृिद्ध करता है | यकद चन्रमा अपने नवांश का हो तो फल मध्यम जानना चािहए | यकद चन्रमा अन्य के नवांश में हो तो अल्प फल कहना चािहए | २. नवमांश का स्वामी बलवान् हो तो पूवय के रािश के दृििफल को िनरुद्ध कर नवमांश के दृिि फल को देता है | यकद नवांशेष दुबयल हो तो, नवांश का दृिि फल और रािश का दृिि फल दोनों का फल होता है | ३. इसप्रकार चन्रमा और लग्न का फल जाना चािहए | सूयय का केवल नवांश का दृििफल बताना चािहए | तात्पयय यह है कक रािश के अपेर्क्षा नवांश सूक्ष्म है , अतिः नवांशेष के बलवान होने से प्रिम नवांश फल ही होता है | इसीप्रकार
  • 15. 615pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26) 15 चन्रमा के िजतने फल कहे गए हैं, उसीप्रकार लग्न के भी कहने चािहए तिा सूयय के केवल नवांश का फल चन्रमा के समान ही समझना चािहए | २६.१२ सारांिशका  मेष के चन्रमा पर मंगल की दृिि से राजा, बुि से िवद्वान्, गुरु से राजतुल्या, शुक्र से गुर्ी, शिन से चोर और सूयय की दृिि से दररर होता है |  वृष के चन्रमा पर मंगल की दृिि से िनियन,बुि से चोर, गुरु से समाज मानी, शुक्र से राजा, शिन से िनी और सूयय से सेवक होता है |  िमिुनस्ि चन्रमा पर मंगल की दृिि से लोहे के व्यापार से जीिवकोपाजयन करने वाला, बुि से राजा, गुरु से िवद्वान्, शुक्र से िनडर, शिन से वस्त्र बनानेवाला और सूयय से िनियन होता है |  ककय राशी में िस्ित चन्रमा पर मंगल की दृिि होने से युद्ध कुशल, बुि से किव, गुरु से पंिडत, शुक्र से राजा, शिन से शास्त्रोपजीवक और शिन से नेत्ररोगी होता है |  ससह रािश के चन्रमा पर बुि की दृिि से जातक ज्योितर्थवद, गुरु से िनी, शुक्र से राजा, शिन से नाई, सूयय और मंगल की दृिि होने से राजा होता है |  कन्या राशी के चन्रमा पर बुि की दृिि से राजा, गुरु से सेनापित, शुक्र से सभी कायों में िनपुर् तिा शिन सूयय और मंगल की दृिि होने से स्त्री की आश्रय से जीिवकोपाजयन करने वाला होता है |  तुला के चन्रमा पर बुि की दृिि से राजा, गुरु से स्वर्यकार,शुक्र से विर्क् तिा शिन सूयय और मंगल की दृिि से प्रािर्यों का घातक होता है |
  • 16. 616pÙeesefle<eHeâefuele ye=nppeelekeâced (1) दृििफलाध्याय (26) 16  वृिश्चक के चन्रमा पर बुि की दृिि होने से यमल संतित का िपता, गुरु से नम्र, शुक्र से रजक, शिन से अंगहीन, सूयय से िनियन तिा मंगल की दृिि से राजा होता है |  िनु रािश में िस्ित चन्रमा पर बुि की दृिि से जातक स्वजनों का पोषक, गुरु से राजा, शुक्र से समाज को आश्रय देने वाला तिा शिन सूयय और मंगल की दृिि होने पर आडम्बर युक्त और शठ होता है |  मकर रािशगत चन्र पर बुि की दृिि से राजाििराजा, गुरु से राजा, शुक्र से िवद्वान्, शिन से िनी, सूयय से िनियन और मंगल की दृिि से राजा होता है |  कुम्भ रािश के चन्रमा पर बुि की दृिि होने से जातक राजा, गुरु से राजा सदृश तिा शुक्र,शिन,सूयय और मंगल की दृिि होने पर परस्त्री गमन करने वाला होता है |  मीन रािशस्ि चन्रमा पर बुि की दृिि होने से हास्यिप्रय, गुरु से राजा, शुक्र से िवद्वान् तिा शिन सूयय मंगल की दृिि होने से पापी होता है |  िजस होरा में चन्रमा िस्ित हो उस होरेश कक होरा में िस्ित ग्रहों से यकद चन्रमा दृि हो तो शुभकारक होता है |  िजस रेष्कार् में चन्रमा िस्ित हो उस रेष्कार्ेश से चन्रमा दृि हो तो वह शुभकारक होता है |  यकद चन्रमा वगोत्तम नवांश का हो तो शुभफल की वृिद्ध करता है |  यकद चन्रमा स्व-नवांश का हो तो माध्यम फल होता है |  और यकद चन्रमा अन्य ग्रहों के नवांश में हो तो अल्प-फल होता है |