Uttarakhand's folk music and dance embody traditional tribal art, reflecting landscapes, life, and beliefs. Vibrant songs like "Chhanna-Juna" and dances like "Chopat" echo indigenous culture's essence.
होली 2024: भारत के विभिन्न राज्यों में होली के अनोखे रीति-रिवाज.pdfZoop india
वसंत ऋतु आते ही हवाओं में खुशबू और रंगों की उमंग घुल जाती है। फाल्गुन मास में मनाया जाने वाला Holi, रंगों का त्योहार, न सिर्फ वसंत का स्वागत करता है, बल्कि बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न भी मनाता है। यह त्योहार भारत में विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है, जो विभिन्न क्षेत्रों की संस्कृति और परंपराओं को दर्शाता है।
होली 2024: भारत के विभिन्न राज्यों में होली के अनोखे रीति-रिवाज.pdfZoop india
वसंत ऋतु आते ही हवाओं में खुशबू और रंगों की उमंग घुल जाती है। फाल्गुन मास में मनाया जाने वाला Holi, रंगों का त्योहार, न सिर्फ वसंत का स्वागत करता है, बल्कि बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न भी मनाता है। यह त्योहार भारत में विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है, जो विभिन्न क्षेत्रों की संस्कृति और परंपराओं को दर्शाता है।
1. उत्तराखंड की लोक संगीत और नृत्य: परंपरागत आदिवासी कला की
दिसाल
उत्तराखंड, दििालय की गोिी िें बसा, न क
े वल अपनी प्राक
ृ दतक स ंियय से बल्कि अपनी सिृद्ध सांस्क
ृ दतक
धरोिर क
े रूप िें भी लोक संगीत और नृत्य क
े िाध्यि से उजागर करता िै। ये परंपरागत कलाएँ उत्तराखंड
क
े आदिवासी सिुिायों की सांस्क
ृ दतक धरोिर को सजीव रूप िें दिखाती िैं और उनकी भाषा, आदिवासी
संस्क
ृ दत और जीवनशैली को अदितीयता से झलकती िैं।
"छन्ना-जुना," "लांछी," "छोँदलया," "जागर" आदि लोकदप्रय गीत उत्तराखंड की भूदि क
े दवदवधता को प्रकट
करते िैं। ये गीत जीवन क
े दवदभन्न पिलुओं को छ
ू ने वाली िास्तादनकता से भरपूर िैं और सिाज की भाषा िें
उनक
े सांस्क
ृ दतक संिेशों को पहँचाते िैं।
लोक नृत्यों िें "चोपात" और "ठाउ" उत्क
ृ ष्टता का प्रतीक िैं। ये नृत्य आदिवासी सिुिायों की जीवनशैली,
क
ृ दष और प्राक
ृ दतक संसाधनों क
े साथ जुडे िैं और उनकी सांस्क
ृ दतक पिचान को अदितीयता से प्रकट
करते िैं।
उत्तराखंड की लोक संगीत और नृत्य कलाएँ न क
े वल एक कला की प्रदतष्ठा रखती िैं, बल्कि वे सिृद्ध
सांस्क
ृ दतक धरोिर का अदितीय अंग िैं, जो आज भी दवकदसत िोते हए भी उत्तराखंड की प्राचीनता और
दवदवधता का संिभय प्रिान करती िैं।
उत्तराखंड, दििालय की गोिी िें बसा, न क
े वल अपनी प्राक
ृ दतक स ंियय से बल्कि अपनी सिृद्ध सांस्क
ृ दतक
धरोिर क
े रूप िें भी लोक संगीत और नृत्य क
े िाध्यि से उजागर करता िै। ये परंपरागत कलाएँ उत्तराखंड
क
े आदिवासी सिुिायों की सांस्क
ृ दतक धरोिर को सजीव रूप िें दिखाती िैं और उनकी भाषा, आदिवासी
संस्क
ृ दत और जीवनशैली को अदितीयता से झलकती िैं।
"छन्ना-जुना," "लांछी," "छोँदलया," "जागर" आदि लोकदप्रय गीत उत्तराखंड की भूदि क
े दवदवधता को प्रकट
करते िैं। ये गीत जीवन क
े दवदभन्न पिलुओं को छ
ू ने वाली िास्तादनकता से भरपूर िैं और सिाज की भाषा िें
उनक
े सांस्क
ृ दतक संिेशों को पहँचाते िैं।
लोक नृत्यों िें "चोपात" और "ठाउ" उत्क
ृ ष्टता का प्रतीक िैं। ये नृत्य आदिवासी सिुिायों की जीवनशैली,
क
ृ दष और प्राक
ृ दतक संसाधनों क
े साथ जुडे िैं और उनकी सांस्क
ृ दतक पिचान को अदितीयता से प्रकट
करते िैं।
उत्तराखंड की लोक संगीत और नृत्य कलाएँ न क
े वल एक कला की प्रदतष्ठा रखती िैं, बल्कि वे
सिृद्ध सांस्क
ृ दतक धरोिर का अदितीय अंग िैं, जो आज भी दवकदसत िोते हए भी उत्तराखंड
की प्राचीनता और दवदवधता का संिभय प्रिान करती िैं।