SlideShare a Scribd company logo
जीवन 
आर्यभर्यभट: 
आर्यभर्यभट: भारतीयभ गणिणित और भारतीयभ खगणोल िवज्ञान की 
शास्त्रीयभ यभुगण के महान गणिणितज्ञ खगणोलिवदों की पंक्तिक्ति में अग्रणिी 
है। आर्यभर्यभट्ट िहदू-अरबी अंक्तक प्रणिाली के जनक हैं जो आर्ज 
सावर्यलौकिकक बन गणयभी है। उनके सवार्यिधिक प्रिसद्ध कायभर्य हैं (( 
499 ई. 23 वष र्य की आर्यभु) म ेंआर्यभर्यभटीयभ और आर्यभर्य -िसद्धातंक्त .
जीवनी 
 हालांकिकि आर्यभर्यभट्ट किे किे जन्म किे वष र्य किा आर्यभर्यभटीयभ में स्पष्ट उल्लेख है, पर उनकिे जन्म किा वास्तविवकि स्थान 
िवद्वानों किे मध्यभ िववाद किा िवष यभ बना हुआर् है। किुछ िवद्वानों किा तवकिर्य है िकि आर्यभर्यभट्टकिुसुमपुर में पैदा हुए थे, 
जबिकि अन्यभ यभह तवकिर्य देतवे हैं िकि आर्यभर्यभट्ट किेरल[1] से थे। किुछ मानतवे हैं िकि वे नमर्यदा और गोदावरी किे मध्यभ िस्थतव 
क्षेत्र में पैदा हुए थे, िजसे अशमाकिा (Ashmaka) किे रूप में जाना जातवा था और वे अशमाकिा किी पहचान मध्यभ 
भारतव किे रूप में देतवे हैं िजसमे महाराष और मध्यभ प्रदेश शािमल है, हालाँकिकि आर्रंकिभकि बौद्ध ग्रन्थ अशमाकिा किो 
दिक्षण में, दिक्षणापथ यभा डेक्कन(Deccan) किे रूप में विणतव किरतवे हैं, जबिकि अन्यभ ग्रन्थ विणतव किरतवे हैं िकि 
अशमाकिा (Alexander) किे लोग अलेक्जेंडर से लड़े होंगे िजससे वे उत्तर िदशा में और आर्गे बढ़ गए होंगे.[2] 
हाल ही में उनकिे किायभों किे खगोलीयभ आर्ंककिडों पर आर्धािरतव िवद्वानों किे एकि अध्यभयभन में आर्यभर्यभट्ट किे स्थान किो 
किुन्नामकिुलम (Kunnamkulam), किेरल.[3] किे रूप में उल्लेिखतव िकियभा गयभा है। 
 तवथािप, यभह स्पष्ट तवौर पर िनिश्चितव है िकि िकिसी समयभ उच्च अध्यभयभन किे िलए वे किुसुमपुर गए थे और किुछ समयभ 
किे िलए यभहाँक रहे थे।[4]भास्किर प्रथम (Bhāskara I) (629ई.) द्वारा किुसुमपुर किो पाटिलपुत्र (आर्धुिनकि पटना) किे रूप 
में पहचाना गयभा है। गुप्त साम्राज्यभ किे अिन्तवम िदनों में वे वहांक रहा किरतवे थे, यभह वह समयभ था िजसे भारतव किे 
स्वणर्य यभुग किे रूप में जाना जातवा है, जब िवष्णुगुप्त(Vishnugupta) किे पूर्वर्य बुद्धगुप्त (Buddhagupta) और 
किुछ छोटे राजाओं किे साम्राज्यभ किे दौरान उत्तर पूर्वर्य में हुण (Hun) किा आर्क्रमण हुआर् था।
किायभर्य 
 आर्यभर्यभट्ट गिणतव और खगोल िवज्ञान पर अनेकि ग्रंकथों किे लेखकि है, िजनमे से किुछ खो गए हैं। उनकिी प्रमुख किृतितव, 
गिणतव और खगोल िवज्ञान किा एकि संकग्रह, आर्यभर्यभटीयभ था, िजसे भारतवीयभ गिणतवीयभ सािहत्यभ में बड़े पैमाने पर 
उद्धतव िकियभा गयभा है और जो आर्धुिनकि समयभ में अिस्तवत्व में है। आर्यभर्यभटीयभ किे गिणतवीयभ भाग में अंककिगिणतव, 
बीजगिणतव, सरल ित्रकिोणिमितव और गोलीयभ ित्रकिोणिमितव शािमल है। इसमे िनरंकतवर िभन्न, िद्वघातव समीकिरण, 
घातव श्रृतंकखला किे यभोग और जीवाओं किी एकि तवािलकिा शािमल हैं। 
 खगोलीयभ गणनाओं पर खोयभी हुई एकि किृतितव, आर्यभर्य िसद्धांकतव, आर्यभर्यभट्ट किे समकिालीन वराहिमिहर किे लखेन से 
और इसकिे साथ-साथ बाद किे गिणतवज्ञों और िटप्पणीकिारों किे माध्यभम से जानी जातवी है िजनमे ब्रह्मगुप्त और 
भास्किर प्रथम (Bhaskara I) शािमल है। यभह किृतितव प्राचीन सूर्यभर्य िसद्धांकतव किे आर्धार पर प्रतवीतव होतवी है 
और आर्यभर्यभटीयभ किे सूर्यभोदयभ किे िवपरीतव आर्धी रातव िदन-गणना किा उपयभोग किरतवी है। इसमे अनेकि खगोलीयभ 
उपकिरणों, शंककिु (gnomon) (शंककिु-यभन्त्र), एकि परछाई यभन्त्र (छायभा-यभन्त्र), संकभवतवः किोण मापी उपकिरण, अधर्य 
वृतत्त और वृतत्त आर्किार (धनुर-यभन्त्र / चक्र-यभन्त्र), एकि बेलनाकिार छड़ी यभस्तवी-यभन्त्र, एकि छत्र-आर्किर किे उपकिरण 
िजसे चतवरा- यभन्त्र और किम से किम दो प्रकिार, धनुष  और बेलनाकिार आर्किार किी जल घड़ी (water clock) किा 
वणर्यन है।[2] 
 एकि तवीसरा ग्रन्थ जो अरबी अनवुाद किे रूप में अिस्तवत्व म ेंहै, अल न्त्फ यभा अल नन्फ ह,ै आर्यभर्यभट्ट किे एकि 
अनुवाद किे रूप में दावा प्रस्तवुतव किरतवा है, परन्तवु इसकिा संकस्किृततव नाम अज्ञातव है। संकभवतवः ९ वी सदी किे 
अिभलेखन में, यभह फारसी िवद्वान और भारतवीयभ इितवहासकिार अबूर् रेहान अल-बिबरूनी ( 
Abū Rayhān al-Bīrūnī).[2] द्वारा उल्लेिखतव िकियभा गयभा है।
गणिणित 
 सथान मान पणिाली और शूनय 
 पहले ३ री सदी की बख्शाली पाण्डुलिलिप (में उनके कायों में सथान-मूल्य अंक पणिाली, सपष्ट िविद्यमान थी। उनहोंने िनिश्चित 
रूप से इस पतीक का उपयोगण नहीं िकया परनतुल फ्रांसीसी गणिणितज्ञ जाजर्ज इफ्रह की दलील है िक िरक्त गणुलणिांक के साथ, दस की 
घात के िलए एक सथान धारक के रूप में शूनय का ज्ञान आर्यर्जभट्ट के सथान-मूल्य अंक पणिाली में िनिहत था।[6] 
 हालांिक, आर्यर्जभट्ट ने ब्राह्मी अंकों का पयोगण नहीं िकया था; विैिदक काल से चली आर् रही संसकृत परंपरा जारी रखते हुए 
उनहोंने संख्या को िनरूिपत करने के िलए विणिर्जमाला के अक्षरों का उपयोगण िकया, मात्राओं को व्यक्त करना (जैसे जीविाओं ( 
sines) की तािलका) एक समारक पारूप. 
 तकर्जहीन के रूप में पाइ (विृत की पिरिध और व्यास का अनुलपात) 
 आर्यर्जभट्ट ने पाइ (Pi) के िलए सिन्निकटन के आर्धार पर कायर्ज िकया और यह नहीं समझ पाए िक यह तकर्जहीन है। आर्यर्जभितयम 
के दूसरे भागण (गणीतापद 10) में, विे िलखते है: 
 चतुलरािधकम सतमासअगणुल अमदासास इसतथा सहसं 
अयुलतादविायािविसकमभाषयसन्निोविृतापरी अहा. 
"१०० में चार जोड़ें, आर्ठ से गणुलणिा करें और िफिर ६२००० जोड़ें. इस िनयम से २०००० पिरिध के एक विृत का व्यास ज्ञात 
िकया जा सकता है। " 
 आर्यर्जभट्ट ने आर्सन्निा (िनकट पहुंचना), शब्द की व्याख्या की, िबल्कुलल िपछले शब्द के पूविर्ज आर्ने विाला, जैसे यह कहना िक यह न 
केविल एक सिन्निकटन है, परनतुल यह िक मूल्य अतुललनीय है (या तकर्जहीन(irrational)).यिद यह सही है, तो यह एक अत्यनत 
पिरषकृत दृिष्टकोणि है, क्योंिक लाम्बटर्ज (Lambert)) दारा पाइ की तकर्जहीनता 1761 में ही यूरोप में िसद्ध कर दी गणयी थी। . 
 
आर्यर्जभटीय के अरबी में अनुलविाद के बाद (पूविर्ज. ८२० इसविी पश्चिात) बीजगणिणित पर अल ख्विािरज्मी की पुलसतक में इस 
सिन्निकटन का उल्लेख िकया गणया था।
गणिणित 
 सथान मान पणिाली और शूनय 
 पहले ३ री सदी की बख्शाली पाण्डुलिलिप (में उनके कायों में सथान-मूल्य अंक पणिाली, सपष्ट िविद्यमान थी। उनहोंने िनिश्चित 
रूप से इस पतीक का उपयोगण नहीं िकया परनतुल फ्रांसीसी गणिणितज्ञ जाजर्ज इफ्रह की दलील है िक िरक्त गणुलणिांक के साथ, दस की 
घात के िलए एक सथान धारक के रूप में शूनय का ज्ञान आर्यर्जभट्ट के सथान-मूल्य अंक पणिाली में िनिहत था।[6] 
 हालांिक, आर्यर्जभट्ट ने ब्राह्मी अंकों का पयोगण नहीं िकया था; विैिदक काल से चली आर् रही संसकृत परंपरा जारी रखते हुए 
उनहोंने संख्या को िनरूिपत करने के िलए विणिर्जमाला के अक्षरों का उपयोगण िकया, मात्राओं को व्यक्त करना (जैसे जीविाओं ( 
sines) की तािलका) एक समारक पारूप. 
 तकर्जहीन के रूप में पाइ (वितृ की पिरिध और व्यास का अनुलपात) 
 आर्यर्जभट्ट ने पाइ (Pi) के िलए सिन्निकटन के आर्धार पर कायर्ज िकया और यह नहीं समझ पाए िक यह तकर्जहीन है। आर्यर्जभितयम 
के दूसरे भागण (गणीतापद 10) में, विे िलखते है: 
 चतुलरािधकम सतमासअगणुल अमदासास इसतथा सहसं 
अयुलतादविायािविसकमभाषयसन्निोविृतापरी अहा. 
"१०० में चार जोड़ें, आर्ठ से गणुलणिा करें और िफिर ६२००० जोड़ें. इस िनयम से २०००० पिरिध के एक विृत का व्यास ज्ञात 
िकया जा सकता है। " 
 आर्यर्जभट्ट ने आर्सन्निा (िनकट पहुंचना), शब्द की व्याख्या की, िबल्कुलल िपछले शब्द के पूविर्ज आर्ने विाला, जैसे यह कहना िक यह न 
केविल एक सिन्निकटन है, परनतुल यह िक मूल्य अतुललनीय है (या तकर्जहीन(irrational)).यिद यह सही है, तो यह एक अत्यनत 
पिरषकृत दृिष्टकोणि है, क्योंिक लाम्बटर्ज (Lambert)) दारा पाइ की तकर्जहीनता 1761 में ही यूरोप में िसद्ध कर दी गणयी थी। . 
 
आर्यर्जभटीय के अरबी में अनुलविाद के बाद (पूविर्ज. ८२० इसविी पश्चिात) बीजगणिणित पर अल ख्विािरज्मी की पुलसतक में इस 
सिन्निकटन का उल्लेख िकया गणया था।

More Related Content

What's hot

सर्वनाम
सर्वनामसर्वनाम
सर्वनाम
hardyverma2001
 
Chronology of indian mathematicians
Chronology of indian mathematiciansChronology of indian mathematicians
Chronology of indian mathematiciansMeeran Banday
 
Shakuntala devi – the human computer
Shakuntala devi – the human computerShakuntala devi – the human computer
Shakuntala devi – the human computer
Parkavi Elangovan
 
Ppt
PptPpt
ppt on visheshan
ppt on visheshanppt on visheshan
ppt on visheshan
Tanmay Kataria
 
Indian Mathematicians
Indian MathematiciansIndian Mathematicians
Indian Mathematicians
geronimo101
 
Srinivasa ramanujan a great indian mathematician
Srinivasa ramanujan a great indian  mathematicianSrinivasa ramanujan a great indian  mathematician
Srinivasa ramanujan a great indian mathematician
KavyaBhatia4
 
5 indian mathematicians
5 indian mathematicians5 indian mathematicians
5 indian mathematicians
Rohit Kumar
 
Aryabhatta
AryabhattaAryabhatta
Aryabhatta
VisheshV
 
ऊर्जा के अनवीकरणीय स्त्रोत
ऊर्जा के अनवीकरणीय स्त्रोत ऊर्जा के अनवीकरणीय स्त्रोत
ऊर्जा के अनवीकरणीय स्त्रोत
krishna mishra
 
Brahmagupta
BrahmaguptaBrahmagupta
Brahmagupta
SijiSS
 
Bhartiya kala project
Bhartiya kala projectBhartiya kala project
Bhartiya kala project
DhwaniRaman
 
Sandhi and its types PPT in Hindi
Sandhi and its types PPT in Hindi Sandhi and its types PPT in Hindi
Sandhi and its types PPT in Hindi
Ruturaj Pandav
 
Pronouns
PronounsPronouns
Pronouns
mumthazmaharoof
 
Ras in hindi PPT
Ras in hindi PPTRas in hindi PPT
Ras in hindi PPT
Deepak Yadav
 
हिंदी सर्वनाम
हिंदी सर्वनामहिंदी सर्वनाम
हिंदी सर्वनाम
ashishkv22
 
Mathematicians
MathematiciansMathematicians
Mathematicians
devasishreddy22
 

What's hot (20)

सर्वनाम
सर्वनामसर्वनाम
सर्वनाम
 
Chronology of indian mathematicians
Chronology of indian mathematiciansChronology of indian mathematicians
Chronology of indian mathematicians
 
Shakuntala devi – the human computer
Shakuntala devi – the human computerShakuntala devi – the human computer
Shakuntala devi – the human computer
 
Alankar (hindi)
Alankar (hindi)Alankar (hindi)
Alankar (hindi)
 
Ppt
PptPpt
Ppt
 
ppt on visheshan
ppt on visheshanppt on visheshan
ppt on visheshan
 
Indian Mathematicians
Indian MathematiciansIndian Mathematicians
Indian Mathematicians
 
Srinivasa ramanujan a great indian mathematician
Srinivasa ramanujan a great indian  mathematicianSrinivasa ramanujan a great indian  mathematician
Srinivasa ramanujan a great indian mathematician
 
5 indian mathematicians
5 indian mathematicians5 indian mathematicians
5 indian mathematicians
 
Aryabhatta
AryabhattaAryabhatta
Aryabhatta
 
ऊर्जा के अनवीकरणीय स्त्रोत
ऊर्जा के अनवीकरणीय स्त्रोत ऊर्जा के अनवीकरणीय स्त्रोत
ऊर्जा के अनवीकरणीय स्त्रोत
 
Brahmagupta
BrahmaguptaBrahmagupta
Brahmagupta
 
Bhartiya kala project
Bhartiya kala projectBhartiya kala project
Bhartiya kala project
 
Kriya
KriyaKriya
Kriya
 
Sandhi and its types PPT in Hindi
Sandhi and its types PPT in Hindi Sandhi and its types PPT in Hindi
Sandhi and its types PPT in Hindi
 
Pronouns
PronounsPronouns
Pronouns
 
samas
samassamas
samas
 
Ras in hindi PPT
Ras in hindi PPTRas in hindi PPT
Ras in hindi PPT
 
हिंदी सर्वनाम
हिंदी सर्वनामहिंदी सर्वनाम
हिंदी सर्वनाम
 
Mathematicians
MathematiciansMathematicians
Mathematicians
 

Similar to आर्यभट

Bhrugu shilp samhita
Bhrugu shilp samhitaBhrugu shilp samhita
Bhrugu shilp samhita
Ashok Nene
 
अवतारवाद
अवतारवाद  अवतारवाद
अवतारवाद
Virag Sontakke
 
पञ्चाङ्ग.docx
पञ्चाङ्ग.docxपञ्चाङ्ग.docx
पञ्चाङ्ग.docx
RohitSahu899545
 
Development of geographical thought in ancient periods
Development of geographical thought in ancient periodsDevelopment of geographical thought in ancient periods
Development of geographical thought in ancient periods
Durgeshkurmi3
 
मन्दिर वास्तुकला उद्गम, विकास एवं प्रकृति रवि कोटिया.pptx
मन्दिर वास्तुकला उद्गम, विकास एवं प्रकृति  रवि कोटिया.pptxमन्दिर वास्तुकला उद्गम, विकास एवं प्रकृति  रवि कोटिया.pptx
मन्दिर वास्तुकला उद्गम, विकास एवं प्रकृति रवि कोटिया.pptx
JIWAJI UNIVERSITY
 
वैदिक संस्कृति pdf
वैदिक संस्कृति pdf वैदिक संस्कृति pdf
वैदिक संस्कृति pdf
sachin vats
 
Indian Numeral and Number System
Indian Numeral and Number SystemIndian Numeral and Number System
Indian Numeral and Number System
ijtsrd
 
Introduction Yug Parivartan
Introduction Yug ParivartanIntroduction Yug Parivartan
Introduction Yug Parivartan
Ankur Saxena
 
यशोवर्मन.pptx
यशोवर्मन.pptxयशोवर्मन.pptx
यशोवर्मन.pptx
Virag Sontakke
 
पोवार.pdf
पोवार.pdfपोवार.pdf
पोवार.pdf
HistoryResearch1
 
Powar
PowarPowar
Powar
PowarPowar
Glorious ancient Indian science
Glorious ancient Indian scienceGlorious ancient Indian science
Glorious ancient Indian science
Dr. Vijil Kumar
 
Hin concept of human developmet
Hin concept of human developmetHin concept of human developmet
Hin concept of human developmet
Rajesh Verma
 

Similar to आर्यभट (14)

Bhrugu shilp samhita
Bhrugu shilp samhitaBhrugu shilp samhita
Bhrugu shilp samhita
 
अवतारवाद
अवतारवाद  अवतारवाद
अवतारवाद
 
पञ्चाङ्ग.docx
पञ्चाङ्ग.docxपञ्चाङ्ग.docx
पञ्चाङ्ग.docx
 
Development of geographical thought in ancient periods
Development of geographical thought in ancient periodsDevelopment of geographical thought in ancient periods
Development of geographical thought in ancient periods
 
मन्दिर वास्तुकला उद्गम, विकास एवं प्रकृति रवि कोटिया.pptx
मन्दिर वास्तुकला उद्गम, विकास एवं प्रकृति  रवि कोटिया.pptxमन्दिर वास्तुकला उद्गम, विकास एवं प्रकृति  रवि कोटिया.pptx
मन्दिर वास्तुकला उद्गम, विकास एवं प्रकृति रवि कोटिया.pptx
 
वैदिक संस्कृति pdf
वैदिक संस्कृति pdf वैदिक संस्कृति pdf
वैदिक संस्कृति pdf
 
Indian Numeral and Number System
Indian Numeral and Number SystemIndian Numeral and Number System
Indian Numeral and Number System
 
Introduction Yug Parivartan
Introduction Yug ParivartanIntroduction Yug Parivartan
Introduction Yug Parivartan
 
यशोवर्मन.pptx
यशोवर्मन.pptxयशोवर्मन.pptx
यशोवर्मन.pptx
 
पोवार.pdf
पोवार.pdfपोवार.pdf
पोवार.pdf
 
Powar
PowarPowar
Powar
 
Powar
PowarPowar
Powar
 
Glorious ancient Indian science
Glorious ancient Indian scienceGlorious ancient Indian science
Glorious ancient Indian science
 
Hin concept of human developmet
Hin concept of human developmetHin concept of human developmet
Hin concept of human developmet
 

आर्यभट

  • 1.
  • 2. जीवन आर्यभर्यभट: आर्यभर्यभट: भारतीयभ गणिणित और भारतीयभ खगणोल िवज्ञान की शास्त्रीयभ यभुगण के महान गणिणितज्ञ खगणोलिवदों की पंक्तिक्ति में अग्रणिी है। आर्यभर्यभट्ट िहदू-अरबी अंक्तक प्रणिाली के जनक हैं जो आर्ज सावर्यलौकिकक बन गणयभी है। उनके सवार्यिधिक प्रिसद्ध कायभर्य हैं (( 499 ई. 23 वष र्य की आर्यभु) म ेंआर्यभर्यभटीयभ और आर्यभर्य -िसद्धातंक्त .
  • 3. जीवनी  हालांकिकि आर्यभर्यभट्ट किे किे जन्म किे वष र्य किा आर्यभर्यभटीयभ में स्पष्ट उल्लेख है, पर उनकिे जन्म किा वास्तविवकि स्थान िवद्वानों किे मध्यभ िववाद किा िवष यभ बना हुआर् है। किुछ िवद्वानों किा तवकिर्य है िकि आर्यभर्यभट्टकिुसुमपुर में पैदा हुए थे, जबिकि अन्यभ यभह तवकिर्य देतवे हैं िकि आर्यभर्यभट्ट किेरल[1] से थे। किुछ मानतवे हैं िकि वे नमर्यदा और गोदावरी किे मध्यभ िस्थतव क्षेत्र में पैदा हुए थे, िजसे अशमाकिा (Ashmaka) किे रूप में जाना जातवा था और वे अशमाकिा किी पहचान मध्यभ भारतव किे रूप में देतवे हैं िजसमे महाराष और मध्यभ प्रदेश शािमल है, हालाँकिकि आर्रंकिभकि बौद्ध ग्रन्थ अशमाकिा किो दिक्षण में, दिक्षणापथ यभा डेक्कन(Deccan) किे रूप में विणतव किरतवे हैं, जबिकि अन्यभ ग्रन्थ विणतव किरतवे हैं िकि अशमाकिा (Alexander) किे लोग अलेक्जेंडर से लड़े होंगे िजससे वे उत्तर िदशा में और आर्गे बढ़ गए होंगे.[2] हाल ही में उनकिे किायभों किे खगोलीयभ आर्ंककिडों पर आर्धािरतव िवद्वानों किे एकि अध्यभयभन में आर्यभर्यभट्ट किे स्थान किो किुन्नामकिुलम (Kunnamkulam), किेरल.[3] किे रूप में उल्लेिखतव िकियभा गयभा है।  तवथािप, यभह स्पष्ट तवौर पर िनिश्चितव है िकि िकिसी समयभ उच्च अध्यभयभन किे िलए वे किुसुमपुर गए थे और किुछ समयभ किे िलए यभहाँक रहे थे।[4]भास्किर प्रथम (Bhāskara I) (629ई.) द्वारा किुसुमपुर किो पाटिलपुत्र (आर्धुिनकि पटना) किे रूप में पहचाना गयभा है। गुप्त साम्राज्यभ किे अिन्तवम िदनों में वे वहांक रहा किरतवे थे, यभह वह समयभ था िजसे भारतव किे स्वणर्य यभुग किे रूप में जाना जातवा है, जब िवष्णुगुप्त(Vishnugupta) किे पूर्वर्य बुद्धगुप्त (Buddhagupta) और किुछ छोटे राजाओं किे साम्राज्यभ किे दौरान उत्तर पूर्वर्य में हुण (Hun) किा आर्क्रमण हुआर् था।
  • 4. किायभर्य  आर्यभर्यभट्ट गिणतव और खगोल िवज्ञान पर अनेकि ग्रंकथों किे लेखकि है, िजनमे से किुछ खो गए हैं। उनकिी प्रमुख किृतितव, गिणतव और खगोल िवज्ञान किा एकि संकग्रह, आर्यभर्यभटीयभ था, िजसे भारतवीयभ गिणतवीयभ सािहत्यभ में बड़े पैमाने पर उद्धतव िकियभा गयभा है और जो आर्धुिनकि समयभ में अिस्तवत्व में है। आर्यभर्यभटीयभ किे गिणतवीयभ भाग में अंककिगिणतव, बीजगिणतव, सरल ित्रकिोणिमितव और गोलीयभ ित्रकिोणिमितव शािमल है। इसमे िनरंकतवर िभन्न, िद्वघातव समीकिरण, घातव श्रृतंकखला किे यभोग और जीवाओं किी एकि तवािलकिा शािमल हैं।  खगोलीयभ गणनाओं पर खोयभी हुई एकि किृतितव, आर्यभर्य िसद्धांकतव, आर्यभर्यभट्ट किे समकिालीन वराहिमिहर किे लखेन से और इसकिे साथ-साथ बाद किे गिणतवज्ञों और िटप्पणीकिारों किे माध्यभम से जानी जातवी है िजनमे ब्रह्मगुप्त और भास्किर प्रथम (Bhaskara I) शािमल है। यभह किृतितव प्राचीन सूर्यभर्य िसद्धांकतव किे आर्धार पर प्रतवीतव होतवी है और आर्यभर्यभटीयभ किे सूर्यभोदयभ किे िवपरीतव आर्धी रातव िदन-गणना किा उपयभोग किरतवी है। इसमे अनेकि खगोलीयभ उपकिरणों, शंककिु (gnomon) (शंककिु-यभन्त्र), एकि परछाई यभन्त्र (छायभा-यभन्त्र), संकभवतवः किोण मापी उपकिरण, अधर्य वृतत्त और वृतत्त आर्किार (धनुर-यभन्त्र / चक्र-यभन्त्र), एकि बेलनाकिार छड़ी यभस्तवी-यभन्त्र, एकि छत्र-आर्किर किे उपकिरण िजसे चतवरा- यभन्त्र और किम से किम दो प्रकिार, धनुष और बेलनाकिार आर्किार किी जल घड़ी (water clock) किा वणर्यन है।[2]  एकि तवीसरा ग्रन्थ जो अरबी अनवुाद किे रूप में अिस्तवत्व म ेंहै, अल न्त्फ यभा अल नन्फ ह,ै आर्यभर्यभट्ट किे एकि अनुवाद किे रूप में दावा प्रस्तवुतव किरतवा है, परन्तवु इसकिा संकस्किृततव नाम अज्ञातव है। संकभवतवः ९ वी सदी किे अिभलेखन में, यभह फारसी िवद्वान और भारतवीयभ इितवहासकिार अबूर् रेहान अल-बिबरूनी ( Abū Rayhān al-Bīrūnī).[2] द्वारा उल्लेिखतव िकियभा गयभा है।
  • 5. गणिणित  सथान मान पणिाली और शूनय  पहले ३ री सदी की बख्शाली पाण्डुलिलिप (में उनके कायों में सथान-मूल्य अंक पणिाली, सपष्ट िविद्यमान थी। उनहोंने िनिश्चित रूप से इस पतीक का उपयोगण नहीं िकया परनतुल फ्रांसीसी गणिणितज्ञ जाजर्ज इफ्रह की दलील है िक िरक्त गणुलणिांक के साथ, दस की घात के िलए एक सथान धारक के रूप में शूनय का ज्ञान आर्यर्जभट्ट के सथान-मूल्य अंक पणिाली में िनिहत था।[6]  हालांिक, आर्यर्जभट्ट ने ब्राह्मी अंकों का पयोगण नहीं िकया था; विैिदक काल से चली आर् रही संसकृत परंपरा जारी रखते हुए उनहोंने संख्या को िनरूिपत करने के िलए विणिर्जमाला के अक्षरों का उपयोगण िकया, मात्राओं को व्यक्त करना (जैसे जीविाओं ( sines) की तािलका) एक समारक पारूप.  तकर्जहीन के रूप में पाइ (विृत की पिरिध और व्यास का अनुलपात)  आर्यर्जभट्ट ने पाइ (Pi) के िलए सिन्निकटन के आर्धार पर कायर्ज िकया और यह नहीं समझ पाए िक यह तकर्जहीन है। आर्यर्जभितयम के दूसरे भागण (गणीतापद 10) में, विे िलखते है:  चतुलरािधकम सतमासअगणुल अमदासास इसतथा सहसं अयुलतादविायािविसकमभाषयसन्निोविृतापरी अहा. "१०० में चार जोड़ें, आर्ठ से गणुलणिा करें और िफिर ६२००० जोड़ें. इस िनयम से २०००० पिरिध के एक विृत का व्यास ज्ञात िकया जा सकता है। "  आर्यर्जभट्ट ने आर्सन्निा (िनकट पहुंचना), शब्द की व्याख्या की, िबल्कुलल िपछले शब्द के पूविर्ज आर्ने विाला, जैसे यह कहना िक यह न केविल एक सिन्निकटन है, परनतुल यह िक मूल्य अतुललनीय है (या तकर्जहीन(irrational)).यिद यह सही है, तो यह एक अत्यनत पिरषकृत दृिष्टकोणि है, क्योंिक लाम्बटर्ज (Lambert)) दारा पाइ की तकर्जहीनता 1761 में ही यूरोप में िसद्ध कर दी गणयी थी। .  आर्यर्जभटीय के अरबी में अनुलविाद के बाद (पूविर्ज. ८२० इसविी पश्चिात) बीजगणिणित पर अल ख्विािरज्मी की पुलसतक में इस सिन्निकटन का उल्लेख िकया गणया था।
  • 6. गणिणित  सथान मान पणिाली और शूनय  पहले ३ री सदी की बख्शाली पाण्डुलिलिप (में उनके कायों में सथान-मूल्य अंक पणिाली, सपष्ट िविद्यमान थी। उनहोंने िनिश्चित रूप से इस पतीक का उपयोगण नहीं िकया परनतुल फ्रांसीसी गणिणितज्ञ जाजर्ज इफ्रह की दलील है िक िरक्त गणुलणिांक के साथ, दस की घात के िलए एक सथान धारक के रूप में शूनय का ज्ञान आर्यर्जभट्ट के सथान-मूल्य अंक पणिाली में िनिहत था।[6]  हालांिक, आर्यर्जभट्ट ने ब्राह्मी अंकों का पयोगण नहीं िकया था; विैिदक काल से चली आर् रही संसकृत परंपरा जारी रखते हुए उनहोंने संख्या को िनरूिपत करने के िलए विणिर्जमाला के अक्षरों का उपयोगण िकया, मात्राओं को व्यक्त करना (जैसे जीविाओं ( sines) की तािलका) एक समारक पारूप.  तकर्जहीन के रूप में पाइ (वितृ की पिरिध और व्यास का अनुलपात)  आर्यर्जभट्ट ने पाइ (Pi) के िलए सिन्निकटन के आर्धार पर कायर्ज िकया और यह नहीं समझ पाए िक यह तकर्जहीन है। आर्यर्जभितयम के दूसरे भागण (गणीतापद 10) में, विे िलखते है:  चतुलरािधकम सतमासअगणुल अमदासास इसतथा सहसं अयुलतादविायािविसकमभाषयसन्निोविृतापरी अहा. "१०० में चार जोड़ें, आर्ठ से गणुलणिा करें और िफिर ६२००० जोड़ें. इस िनयम से २०००० पिरिध के एक विृत का व्यास ज्ञात िकया जा सकता है। "  आर्यर्जभट्ट ने आर्सन्निा (िनकट पहुंचना), शब्द की व्याख्या की, िबल्कुलल िपछले शब्द के पूविर्ज आर्ने विाला, जैसे यह कहना िक यह न केविल एक सिन्निकटन है, परनतुल यह िक मूल्य अतुललनीय है (या तकर्जहीन(irrational)).यिद यह सही है, तो यह एक अत्यनत पिरषकृत दृिष्टकोणि है, क्योंिक लाम्बटर्ज (Lambert)) दारा पाइ की तकर्जहीनता 1761 में ही यूरोप में िसद्ध कर दी गणयी थी। .  आर्यर्जभटीय के अरबी में अनुलविाद के बाद (पूविर्ज. ८२० इसविी पश्चिात) बीजगणिणित पर अल ख्विािरज्मी की पुलसतक में इस सिन्निकटन का उल्लेख िकया गणया था।