3. स र भूवलय संरचना - भाषा एवं छंद
अंक ल प से अ नब ध कये मूल वण को श द , चरण / पद एवं
लोक म संयोिजत करने पर पुरानी क नड़ भाषा म जो
सा ह य गट होता है वह “च ाण” (चार भाग) छंद का सांग य
प है | इसके अ त र त “बेद ड ” का भी योग इस सा ह य
को और समृ ध बनाता है |को और समृ ध बनाता है |
पूण प य (चार चरण) के बीच बीच म पाद प य (एक चरण)
क शृंखला से इस का य को संयोिजत कया गया है |
पूण प य को “ लोक” एवं पाद प य को “अंतर” लोक भी कहा
गया है |
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4. अ तर / अंतरांतर सा ह य
स र भूवलय के च क अंक ल प को अ नब ध करके जो मूल
वण क खला ा त होती है | उसको श द , पद एवं लोक म
संयोजन करके क नड़ भाषा का का य गट होता है |
इस क नड़ भाषा के का य पर व भ न आनुपूव प ध तय एवंइस क नड़ भाषा के का य पर व भ न आनुपूव प ध तय एवं
व श ट बंध (अ व ग त, नाग बंध / सप ग त आ द) के योग से
जो सा ह य गट होता है उसे अंतर सा ह य कहते ह |
अंतर सा ह य पर व भ न आनुपूव प ध तय एवं व श ट बंध के
योग से जो सा ह य गट होता है उसे अंतरांतर सा ह य कहते ह
|
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5. आनुपूव के भेद
पहले अ र या अंक को लेकर आगे बढ़ना आनुपूव है | िजसका अ भ ाय ‘ मशः
वृ ’ है | आनुपूव के तीन भेद ह :
1. पूवानुपूव 2. प चादानुपूव 3. य त ानुपूव
बांयी ओर से ारंभ होकर दा हनी ओर जो म चलता है वह पूवानुपूव है | जैसे क
अ र को लखने क प ध त |
दा हनी ओर से ारंभ होकर बांयी ओर जो म चलता है वह प चादानुपूव है, िजसेदा हनी ओर से ारंभ होकर बांयी ओर जो म चलता है वह प चादानुपूव है, िजसे
वामग त भी कहते ह | जैसे क अंक को इकाई, दहाई, सैकड़ा, हजार आ द लखने
क प ध त | ( अ कानां वामनो ग तः)
बना कसी म के बढ़ने को य त ानुपूव ( रेखा प ध त ) कहा गया है |
पूवानुपूव प ध त से भूवलय म जैन स धांत गट होता है, प चादानुपूव से भूवलय
म जैनेतर मा यता वाले थ गट होते ह | य त ानुपूव से भूवलय म अनेक
व भ न वषय गट होते ह |
भूवलय म तीन प ध तय को अपनाया गया है – इसी कारण भूवलय वारा सम त
वषय गट होते ह | 5siri-bhoovalaya.org
6. ाकृ त गाथा गट करण
( त भ का य)
स र भूवलय के येक अ याय के थम लोक से शु कर आगे
के पूण प य (चार चरण स हत) के थमा र को म से जोड़ने
से ाकृ त गाथा का आ वभाव होता है | इस व ध से ा त का य
को त भ का य भी कहा जाता है |
उदाहरण : थम अ याय से इस तरह स मवत न न ाकृ त
गाथा ा त होती है :
अ ट वहक म वयला ण टय क जा पण टसंसारा |
द टसयल थ सारा स ध्आ स धम् मम दस तु ||
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7. अ मवत सं कृ त का य
स र भूवलय के येक अ याय के थम लोक से शु कर आगे
के पूण प य के म या र को म से जोड़ने से सं कृ त का य का
आ वभाव होता है |
उदाहरण : थम अ याय से इस तरह स मवत न न ाकृ तउदाहरण : थम अ याय से इस तरह स मवत न न ाकृ त
गाथा ा त होती है :
औंकारम ् ब दु संयु तं न यम ् यायि त यो गनः |
कामदं मो दम् चैव औंकाराय नम नमः ||
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9. मंगल ाभृत के थम अ याय से गट ाकृ त गाथा
एवं सं कृ त लोक
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10. अ व ग त से अंतर सा ह य
1. 12 व अ याय के 26 व प य से आर भ करके 281 व प य
के बीच “ र ध स धगे आ दनाथ ” , “अिजतर गु टुके ”,
“ए ु आनेगलु मु”, द नम ् या वा” ऐसा अ व ग त म
अलग अंतर सा ह य वाह प से 48 लोक गट होते ह |अलग अंतर सा ह य वाह प से 48 लोक गट होते ह |
2. 13 व अ याय के थम प य से 245 व प य से अ वग त
से “साधुगळइहरेरडूवरे वीप द | सा धसुती ...” इस कार 48
लोक का अंतर सा ह य गट होता है |
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11. अंतर अंतरांतर का य
13 व अ याय के अंतर का य से अंतरांतर का य के 48 लोक और नकल आते
ह (िजसम 2169 अ रांक ह) | इस र त से के वल एक ह अ याय म 3 अ याय
बन जाते ह |
13 व अ याय के अंतर का य के थम लोक से 15 व लोक तक के अं तम
अ र को मलाकर च लत भगव गीता के 8 व अ याय के 13 व लोक काअ र को मलाकर च लत भगव गीता के 8 व अ याय के 13 व लोक का
“ओ म या रं म” यह चरण गट होता है | इसी कार 16 व से 29 व लोक
के अं तम अ र से उ त चरण से आगे का वतीय चरण “ याहर मामनु मरन्”
गट होता है | इसी कार आगे भी भगव गीता के लोक गट होते ह |
इस अ याय म ेणीब ध का य के 9477 + अंतर का य के 15984 + अंतरांतर
का य के 2169 = 27630 अ रांक ह |
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12. नाग बंध / सप ग त
भूवलय का य म अनेक बंध ह | इसके अनेक बंध म एक
नाग बंध भी है | एक लाइन म खंड कये हुए तीन-तीन
खंड लोक को अंतर कहते ह | उन खंड लोक का
आ या र लेकर लखते जाएँ तो उससे से जो का य तुतआ या र लेकर लखते जाएँ तो उससे से जो का य तुत
होता है उसे नागब ध कहते ह | इस बंध वारा गत
काल न न ट हुए जैन, वै दक तथा इतर अनेक थ
नकल आते ह – इसे दखाने के लए सप लांछन दया है |
(पृ. 201 )
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13. नाग बंध उदाहरण
12 व अ याय के 277 व पा प य से 6 व पा प य तक के त चरण के
थम अ र को नागब ध म म जोड़ने क या से ा त होने वाले सा ह य
क चचा ‘ स रभूवलयसार’ म हुई है | यह भी मरण रखना चा हए क 19 व
अ याय से पीछे से 12 व अ याय तक यह भाग चल कर आया है |
12 व अ याय [ 277 > 249 ]
ब र त वु अ व र व त क त क् श गे व र अ वा न व म न् ग ल द
12 व अ याय [ 25 > 6 ] अ टम िजनगेर गुवेनु
ब र त वु अ व र व त क त क् श गे व र अ वा न व म न् ग ल द
12 व अ याय [ 25 > 6 ] अ टम िजनगेर गुवेनु
अ ष ् अ म ् अ ज् इ न ् अ ग् ए र् अ ग ् उ व ् ए न ् उ
12 व अ याय [ 50 > 31 ] म गळ पयाय द न
म ् अ न् ग् अ ळ अ प ् अ र् य ् आ य ् अ इ न ् इ त् त ् अ
12 व अ याय [ 82 > 56 ] अ ट गुण गळौल ् ओो दं ि टगे
अ ष ् अ ग् उ ण् अ न ् ग् अ ळ ओो ळ ओो म ् अ म ् स ् र् ष ् इ ग ् ए
अ य उदहारण
13 व अ याय [ 20 > 7 ]
14 व अ याय [ 29 > 6 ]
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14. वषय पुन त अ र का य
स र भूवलय वषय पुन त तथा अ र का य भी है | य द इस थ
का कोई प न ट हो जाये तो नागब ध णाल से उसको पुनः ा त
कया जा सकता है |
उदाहरण: 13 व अ याय के 247, 246, 245, और 244, 243, 242 इस
मानुसार तीन-तीन लोक म येक म य द पढ़ते जाएँ तो इसीमानुसार तीन-तीन लोक म येक म य द पढ़ते जाएँ तो इसी
भूवलय के थम अ याय के 6 व लोक के दूसरे चरण से थमा र
को लेकर मानुसार “ मदोलगेरडु का नू ...” इ या द प का य
दुबारा उपल ध हो जाता है |
अ य उदाहरण : 12 व अ याय म [114 > 88] + [ 82 > 56 ] + [ 50
> 31 ] + [ 25 > 6 ] थम अ याय का थम लोक दुबारा उपल ध
हो जाता है |
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15. ुतावतार खंड का थम अ याय : बहु भाषा का य
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16. ुतावतार खंड के थम अ याय म अ त न हत बहु-भाषीय सा ह य
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17. Persian Language in Siri Bhoovalaya ?
An attempt by
Dr.S.P.Padma Prasad
TUMKUR- Karnataka
Dr. S. P. Padmaprasad has noticed that:
Verses bearing no. 63 & 64 in 20th chapter, areVerses bearing no. 63 & 64 in 20th chapter, are
written in ‘Anuloma-Pratiloma’ kram or, “Descending-
Ascending Order”, by Acharya Kumudendu.
In this method, last letter of the verse is written in
the beginning, penultimate letter next, and so on…….
So, the actual first letter of the verse comes at the
end.
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18. Persian Verses as derived by Dr. S.P. Padmaprasad
YuriAshayut nanajitan harian hara arshak
Jaeeb lamad katash ko ig gamar!
sadgan bhadhar radyaari hikam dhab ladan
baLuOd amlOnu amlO tirap !
(20-63)(20-63)
Gam an aN Sharuk yaj iv mi yen
amrak rathn mahAmad laDan mashi
rurish la mayadhidh riNi vajid kamgarath
sUha matharvAth tadvA yaNi mara !
(20-64)
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