SlideShare a Scribd company logo
सा ह य ो साहन सं थान,
मनकापुर(उ र देश) ारा कािशत
जुलाई 2014 अंक -11 वष -2
सं थापक : धीरज ीवा तव
धान संपादक : कर म पठान 'अनमोल'
मु य संपादक : ीित 'अ ात'
सलीमा ( ह द उप यास): अनवर सुहैल
भाग- 4
द यूट ए ड द बी ट
सलीमा को कू ल का माहौल अ छा
न लगता और ख़ासकर गंगाराम सर
तो एकदम भी नह ं। गंगाराम सर
नगर के खाते-पीते घर के ब च क
तरफ यादा यान दया करते।
ग़र ब ब च का मज़ाक उड़ाया करते
थे। सलीमा ग़र ब थी, पढ़ाई म
कमज़ोर थी और मुसलमान भी थी यानी तीन दगुण से भरपूर थी सलीमा।ु
क ा म सबसे पीछे वाली सीट पर बैठने वाली सलीमा। अ सर गंगाराम सर
पछली बच के ब च को खड़ा कर क ठन-क ठन पूछा करते और ज़ा हर
है क ऐसे क ठन के जवाब न िमल पाते। नतीजतन गंगाराम सर छड़
मार-मार कर उनके हाथ लाल कर देते थे।
सलीमा अ सर उनसे पटती थी। कभी-कभी गंगाराम सर छड़ से न मार
कर हाथ से उसे मारते। बाद म उसने जाना क गंगाराम सर पीटने के बहाने
उसक पीठ, कं धे और बांह क थाह िलया करते ह। अंदाज़ लगाते ह क
कतनी जान है सलीमा म। फर उसे लगता क हो सकता है यह उसका वहम
हो।
वह कसी से कु छ न कहती।
सलीमा के बगल म बैठती थी मुमताज बानो। मुमताज के अ बू ऑटो-चालक
थे। उनक अपनी ऑटो थी। मुमताज क आिथक दशा सलीमा से बेहतर थी।
उसके कपड़े ठ क-ठाक रहते और वह थोड़ा टाईल भी मारती। मु लम होने
के कारण वह सलीमा के साथ बैठा करती थी।
सलीमा नेह क भूखी थी।
मुमताज़ बानो थी तो खाते-पीते घर क , ले कन उसके दमाग म गोबर भरा
था। हां, सलीमा क तुलना म वह साफ-सुथरे कपड़े पहन कर आया करती
थी। बाल कर ने से काढ़े हए रहते। उसके बदन पर मैल न होता और न हु
गाल पर म छर काटने के िनशानात।
सलीमा ठहर अपने लाचार-बेज़ार अ बू क ब टया।
अ मी होतीं तो या उसके बाल यूं ल टयाए रहते, दांत मैले रहते और चेहरा
बेनूर होता!
जब देखो तब सलीमा अपने खे बाल को खबर-खबर खजुआते रहती।
​ ​
लड़ कयां उससे दर रहतीं क कह ं उनके िसर म भी जूएं न पड़ जाएं।ू
एक दन जब गंगाराम सर ने ग णत के लाभ-हािन वाले पाठ का एक सवाल
उससे पूछा तो वह आदतन कु छ बता न पाई। गंगाराम सर ने छड़ से मार-
मार कर उसक हथेली लाल कर द । सलीमा को उस मार के दद से कोई
तकलीफ़ न हईु , ले कन घर म पढ़ने के िलए थोड़ा भी व न िनकाल पाने क
मजबूर से उसे दख हआ। वह रोने लगी।ु ु
फर उसे अपनी अ मी क याद आई।
वह होतीं तो शायद ऐसे बुरे दन न देखने होते। अ मी उसका तिनक भी
याल रखतीं तो या वह ऐसी मैली-कु चैली दखती।
तब हो सकता है क क ा के ब चे और िश क उससे नफ़रत न करते। वह
भी घर म पढ़ती तो रोज़ाना क इस मार-डांट से बची तो रहा करती। और
वह हच कयां ले-लेकर रोने लगी।
बगल म बैठ मुमताज़ नह ं जानती थी क इस हालत म सलीमा को कै से चुप
कराया जाए।
सलीमा टेसुए बहाती रह तो गंगाराम सर िचंितत हए।ु
वह पास आए और यार से उसके बाल पर हाथ फे रते हए कहाु - ‘‘छु ट होने
पर तुम टाफ- म म आकर मुझसे िमलना।’’
गंगाराम सर ने जो उसके िसर पर हाथ फे रा उससे उसे कु छ सां वना िमली।
मुमताज़ ने उसके हाथ को अपने हाथ म लेकर सहलाया।
सलीमा क सुब कयां कम ह ।ु
छु ट होने पर ब ता समेट सलीमा क ा से बाहर िनकली। उसके दमाग म
गंगाराम सर क बात घूम रह थी क तुम टाफ- म म आकर मुझसे
िमलो। सलीमा के क़दम वतः टाफ- म क तरफ उठे।
हेडमा टर साहब के ऑ फस के बाहर चपरासन बैठ वेटर बुन रह थी।
ऑ फस के बगल म लाई ेर थी फर उसके बाद टाफ- म।
सलीमा ने परदे क झ रय से कमरे के अंदर ताका। गंगाराम सर बैठे हएु
थे।
जैसे वह सलीमा का इंतज़ार कर रहे ह ।
सलीमा परदा हटाकर खड़ हो गई। गंगाराम सर ने उसे अंदर बुलाया और
जब वह उनके पास पहंची तो उसक िनगाह झुक रह ं।ु
गंगाराम सर ने उससे कहा- ‘‘मेर तरफ देखो, म तु ह मारता इसिलए नह ं
क म तु हारा द मन हं। मुझे हमेशा यह लगता है क तु ह पढ़नाु ू -िलखना
चा हए। ले कन म तु हार मजबूर समझता हं। तुम िच ता न करो। मू
तु हारे बाप को जानता हं। बचारा ग़र ब मजदर है। च क मू ू
काम कर कसी तरह ब च का लालन-पालन करता है। तु हारे बाप से बात
क ं गा क वह तु ह मेरे घर पढ़ने भेज दया कर। म तु ह अलग से पढ़ा दया
क ं गा। ऐसा पढ़ा दंगा क एक दमू ‘फ ट- लास’ पास हो जाओगी।’’
सलीमा िच -िल खत-सी उनक बात सुनती रह । फर उ ह नम कार कर
कमरे से बाहर िनकल आई।
गंगाराम सर ने उससे कहा क र ववार के दन अपने घर का काम-काज
िनपटा कर सलीमा उनके घर आ जाया करे। दपहर म अपने आराम करने केु
समय पर वह उसे एक-डेढ़ घ टे पढ़ा दया करगे।
सलीमा ने घर आकर अ बू को कू ल क बात बताई।
अंधे को या चा हए, दो आंख!
अ बू गंगाराम सर को जानते थे। उ होन सोचा शायद इस तरह ब टया पढ़-
िलख जाए।
उ ह ने सलीमा को इजाज़त दे द ।
र ववार का दन।
गंगाराम सर के घर सलीमा को पढ़ने जाना था। ज द -ज द उसने घर के
काम-काज िनपटाए। उसके बाद उसने सोचा क अ छे से साफ-सुथरा हो
लेना चा हए। इसिलए सलीमा नहाने के िलए आंगन के कोने म बने
गुसलखाने म चली गई।
टाट-बोरे के टुकड़े, चटाई, बांस क खप चयां आ द से जोड़-तोड़ कर बनाया
गया बना छत का गुसलखाना। जसके अंदर प थर क एक बड़ पंचकोना
चीप बछ हई थी।ु
इतना बड़ा प थर का टुकड़ा क एक आदमी आसानी से बैठ कर नहा सके
और कपड़े भी धो-फ ंच ले।
चीप के पास ह एक कोने पर आधा कटा म का टुकड़ा रखा था।
उस म म सुबह-सुबह सलीमा या फर कै या बाहर चांपाकल से पानी लाकर
भर दया करती थीं।
उसी से घर का िन तार चलता।
उसके बाद य द उसम पानी घटता तो त काल बाहर से पानी लाना पड़◌़ता
था। गुसलखाना के साथ वह िघर हई पददार जगह पेशाबु -घर का भी काम
करती थी। मुसलमान म पेशाब करने के बाद पानी इ तेमाल करना ज़ र
होता है, वरना ज म म नापाक बनी रहती है। इसिलए म म पानी हमेशा
उपल ध रहता।
अ मी ने बे टय को पाक-साफ रहना सीखाया था। अ मी कहा करती थीं क
हमेशा ‘इ तंजे’ से रहा करो, जाने अ लाह-पाक कब और कस हालत म
इंसान क ह क ज़ कर ले!
हां, मह ने के उन ख़ास दन को छोड़कर जब कसी औरत को नापाक रहना
ह पड़ता है, बा क दन ज म को पाक-साफ रखा जाए।
अ मी बताया करती थीं क इस नामुराद घर म उनक शाद से पहले
गुसुलखाना जैसी चीज़ नह ं थी। बड़े जा हल थे सब ससुराल वाले।
अ मी बताया करतीं क तेरे अ बू और दादा बाहर खुले म नहाया करते थे।
औरत को नहाना होता तो चारपाईय क ओट बनाकर अ थाई गुसलखाना
बना िलया जाता था।
बड़ा अजीब लगता था उ ह।
अ मी ने जब देखा क ये लोग नह ं बदलगे, तब उ ह ने वयं टूट -फू ट चीज़
जोड़-जाड़ कर आंगन के कोने को गुसुलखाने क श ल द थी।
अ मी हमेशा अपनी ससुराल को कोसा करतीं। अपने भाईय और भौजाईय
क लापरवा हय का रोना रोतीं, ज ह ने उनक शाद इन कं गाल म करके
अपने िसर से बला टाली थी।
कभी वह अपनी क मत को फू टा हआ बतातीं। अ लाहु -तआला ने उनक
तकद र इतनी बुर य िलखी, इस सवाल का जवाब अ मी हमेशा
परवर दगार से पूछा करतीं।
सलीमा क अ मी बताया करती थीं क उनके मां-बाप अ छे खाते-पीते लोग
थे।
सन् 47 म वभाजन के समय उनके मां-बाप बां लादेश चले गए। अ मी तब
ब ची थीं और बड़े मामू के पास ह रहती थीं। बड़े मामू कलक ा क जूट-
िमल म िम ी का काम करते थे। अ छ आमदनी थी उनक । ख दरपुर क
सीमा पर उ ह ने एक क ठा ज़मीन खर द कर वहां मकान भी बना िलया था।
अ मी बतातीं क उनके बड़े भाई बहत रहम दल इंसान थे ले कन भाभी जैसेु
कड़वा-करैला। ऐसी ज़हर बुझी बात कहतीं क बस कलेजा जल जाता। फर
भी दन ठ क ह गुज़र रहे थे।
तभी बड़े मामू को ट .बी. के कारण मौत हो गई और उनके घर के हालात
बदतर होते चले गए। मुमानी के अ याचार बढ़ने लगे तो अ मी के छोटे भाई
उ ह अपने साथ बलासपुर लेते आए। वह बलासपुर म रे वे इं जन चालक के
पद पर कायरत थे।
उ ह ने जैसे-तैसे अ मी क शाद इ ाह मपुरा म तय कर द । तब अ मी मा
तेरह या चौदह बरस क थीं।
ब ची ह तो थीं, जब उन पर ़ज मेदा रय का बोझ आन पड़ा था। अ मी
को अपने पूरे माईके वाल से और अपने ससुराल वाल क ग़र बी और
जहालत से स त िचढ़ थी। इसीिलए अ मी जब तक इस घर म रह ं बेगाना
बन कर रह ं। उ ह घर क कसी भी चीज़ से भावना मक लगाव न था। यहां
तक क अपनी ब चय से भी नह ं। और एक दन ऐसा भी आया क घर के
सभी सद य को अच भत छोड़ कर अ मी जाने कहां चली ग ।
अ मी तो अ मी आ खर अ मी थीं....उनक गैर-मौजूदगी म सलीमा उ ह
याद कर आंख नम कर िलया करती। अ मी के ज़माने म गुसलखाने म रखा
ये म बहत तबे वाला हआ करता था।ु ु
घरेलू-इ तेमाल के िलए अ बू जैसे-तैसे बाहर से पानी लाकर उस म म भरा
करते थे, तब कह ं जाकर उ ह हाजी जी क च क म यूट बजाने का ह मु
हआ करता था।ु
अ बू अ मी से डरते बहत थे।ु
स दय म धूप क करन गुसलखाने के म पर सीधे पड़ा करतीं। यह करन
गीज़र का काम करतीं। सलीमा और सुरैया चांपाकल से पानी लाकर उस म
म डाल देती जो दपहर होतेु -होते कु नकु ना-गम हो जाता।
सलीमा ने पानी छू कर देखा....पानी अब उतना ठ डा नह ं था.... क बदन पर
पड़े तो िसहरन हो।
सलीमा नहाने के िलए िसफ समीज पहने प थर क चीप पर बैठ गई और
सबसे पहले अपने पैर क सफाई करने लगी। ए ड़य पर मैल क मोट परत
जमकर स त हो चुक थी। बना प थर से रगड़े मैल न छू टता। उसने मैल
छु ड़ाने वाले प थर के टुकड़े से ए ड़य का मैल िनकाला।
साबुन के नाम पर कपड़ा धोने वाला साबुन था वहां। ना रयल का बूच था
जससे बदन का मैल रगड़ कर कर साफ कया जाता था। सलीमा ने कपड़े
धोने वाले साबुन को िसर पर मला। िसर से इतना मैल िनकला क पूरा
गुसलखाना काला हो गया।
वह चाहती थी क सारे बदन क रगड़-रगड़ कर सफाई करे, ले कन
गुसलखाना बना छत का था। उनके गुसलखाने से हाजी रफ क छत
दखलाई देती थी। हाजी साहब का नौकर ईद अ सर छत पर आकरू
गुसलखाने क टोह िलया करता।
सलीमा ने एहितयातन हाजी रफ साहब क छत पर िनगाह डाली और अपने
बदन को खुद से छु पाते हए अ छ तरह पूरे बदन पर साबुन मल िलया। फरु
ना रयल के बूच पर साबुन मल कर झाग बनाया और हाथ-कु हनी के मैल धो
डाले।
जब वह नहा कर फु सत पाई, तो गम के कारण कु छ ह देर बाद बाल को
छोड़ बदन का पानी सूख गया। कपड़े धोने के साबुन के कारण ज म क
चमड़ खु क हो गई थी। ऐसा लगने लगा जैसे चमड़ म खंचाव आ रहा हो।
बदन खुजलाने लगा।
जब उसने हाथ खुजलाया तो हाथ क चमड़ पर सफे द लक र खंच आ ।
उसने त काल रसोई घर जाकर सरस का तेल हथेिलय पर लेकर पूरे बदन
पर लगाया, तब जाकर उसे राहत िमली।
फर उसने अ मी क पेट खोलकर ईद वाला सलवार-सूट िनकाला। महद
रंग का वह सूट सलीमा पर खूब फबता था। कै या और सुरैया उसे सजते हएु
बटुर- बटुर ताक रह थीं। उसने सुरैया को समझाया क वह एक-डेढ़ घ टे म
आ जाएगी।
वह यूशन पढ़ने जा रह है। उसके पीछे वे दोन शैतानी न कर। लड़ाई-
झगड़ा न कर। रसोई क देगची म चावल-दाल बचा हआ है। भूख लगे तोु
वह भकोस ल। कह ं बाहर खेलने न जाएं और न ह कसी को घर म घुसने
दगी।
इतना समझा, कताब-कॉपी लेकर सलीमा गंगाराम सर के घर क तरफ
िनकल पड़ ।
बस- टड के पीछे नद क तरफ जाने वाले रा ते म सेठ करोड़ मल के
नौकर का आवास और गाय-भस वाली खटाल थी। नद के कनारे क
ज़मीन, जो क िन त है क सरकार ह होगी। उस ज़मीन पर सेठ
करोड़ मल ने अवैध क़ ज़ा जमा कर लगभग बीस मकान का एक बाड़ा
बनाया हआ था।ु
दो-दो कमरे के पं ब मकान।
पानी के िलए कुं आ और कुं आ के इद-िगद औरत और मद के नहाने के िलए
अलग-अलग गुसलखाने। ट ट के िलए उस बाड़े म कोई यव था न थी।
इसीिलए करोड़ मल के कराएदार ी-पु ष सुबह-सुबह हाथ म लोटा या
ला टक क बोतल या ड बा िलए नाले क तरफ िनकल जाते। ब चे सड़क
कनारे कचराघर के पीछे या नाली के कनारे लाईन लगा कर बैठ जाते।
आस-पास सुअर और कु े घूमते रहते। ये नाली गंगाराम सर के मकान के
सामने से गुजरने वाली नद पर जाकर खतम होती थी।
गंगाराम सर का मकान नद के छोर पर था। नद नगर क वभाजन-रेखा
है। नद के इस तरफ एक धड़कता हआ जीताु -जागता नगर और नद क
दसर तरफ खेतू -खिलहान और िनजन से गांव।
कहते ह क न दय के कनारे ह दिनया क स यताएं वकिसत हई ह।ु ु
आ ़खर ह भी य न! अब इसी नद को ह ले लो। बस- टड बना तो नद
के तट पर क या य , बस-चालक , क ड टर आ द को िन तार के िलए
कह ं भटकना न पड़े। नद के कनारे दैिनक- या से फ़ा रग भी हो िलए,
कपड़े साफ कर िलए और नहा िलए।
पूरा नगर ह नद के साथ-साथ बल खाते हए व तार पाया है।ु
नद के इद-िगद धड़ाधड़ मकान बन रहे ह। जो भी इस नगर म एक बार
आया यह ं का होकर रह गया। इसी कारण मारवा ड़य , जैिनय , िस ख ,
इसाईय और मुसलमान के कई-कई पूजा- थल यहां बन गए। मं दर तो
अनिगनत ह गे।
जब सारे भगवान के िलए अपने अलग-अलग, कई-कई मं दर बन गए तो
उसके बाद नगरवािसय ने िशरड़ वाले सा बाबा का मं दर बनाना शु कर
दया है। एक और भगवान डेरा स चा सौदा वाले राम-रह म बाबा। जाने कै से
उनके भी ढेर सारे भ इस नगर म ह और नगर के बाहर बै रयर के उस पार
चार एकड़ म एक आ म बन रहा है जसके बाहर बोड लगा है- ‘‘डेरा स चा
सौदा’’।
मुसलमान म धम और यवसाय के घाल-मेल को समझने वाल ने भी नगर
के बाहर इलाके ़ म एक मज़ार का तस वुर कर िलया। पहले जहां घोड़े और
ख चर वाले आबाद थे उनक सीमा पर अब वहां पर एक प क मज़ार है।
आस-पास चादर-फू ल-शीरनी वाल क दकान खुल गई ह। दोु -तीन गुम टय
म चाय-ना ते क दकान ह। हर साल वहां उस का मेला भरता है। नागपुरु ,
बनारस जैसी जगह से क़ वाल बुलाए जाते ह। ढेर चादर चढ़ती ह।
राम-लीला, य , रास-लीला जैसे आयोजन बड़े धूम-धाम से कए जाते ह।
सेठ करोड़ मल के बाड़ा और गंगाराम सर के मकान के बीच क खाली जगह
पर एक भ य िशव-मं दर का िनमाण-काय चल रहा है। नद के इस इलाके म
सलीमा बहत कम आई थी। जब पानी क क लत होती थी तब सलीमाु
अपनी अ मी के साथ इस नद पर कपड़े धोने और नहाने आया करती थी।
नद आगे जाकर मुड़ गई है। जहां पर नद मुड़ती
है, नद क धार मंद होती है उस जगह को ‘दहरा’ कहा जाता है।
सलीमा ने ‘दहरा’ का अथ ऐसी जगह से िलया जहां पानी कु छ गहरा हो।
वाकई ‘दहरा’ पर पानी चुर मा ा म साल भर रहता है। ‘दहरा’ के कनारे
ेनाइ टक च टान ह। उन च टान पर लोग कपड़े धोते ह।
सलीमा को इस ‘दहरे’ पर नहाना बहत अ छा लगता था। हांु , गिमय म जब
वे नहा-धो कर घर वापस आतीं तो धूप िसर चढ़ आती थी और पूरा बदन
पसीना-पसीना होकर दबारा नहाने क मांग करता था।ु
सलीमा जस समय गंगाराम सर के मकान पहंचीु , आसमान क ऊं चाईय पर
सूरज दमक रहा था। मकान के दरवाज़े पर नेम लेट लगी थी। िलखा
था-‘‘गंगाराम, या याता’’
सलीमा थोड़ देर क रह , य क घर का दरवाज़ा अधखुला था।
उसने अंदर झांका।
पहला कमरा बैठक क तरह का था, जसम चार ला टक क कु िसयां और
एक त त था। त त पर सलीके से ग ा-त कया बछा था। थोड़ा और अंदर
तक यान से देखने पर उसने पाया क अंदर वाले कमरे म गंगाराम सर
क छा-बिनयान पहने बैठे ह। के रािसन तेल वाले ेशर- टोव
के जलने क आवाज़ आ रह है।
सलमा ने झझकते हए सांकल बजाई।ु
गंगाराम सर ‘हां जी’ क आवाज़ िनकालते बाहर आ गए।
उनके हाथ पर आटा िचपका था। शायद आटा गूंथने क तैयार कर रहे हो या
फर रोट बना रहे हो।
सलीमा को सर क ये हालत देख हंसी आई ले कन संकोच के कारण वह हंसी
नह ं। गंगाराम सर ने उसे अंदर आने को कहा।
‘‘ह ह ह, का क ं , ब चे ह नह ं, सो खुदै रोट पका रहा था।’’ गंगाराम सर
ने बात बना ।
सलीमा से रहा न गया।
उसने कहा क सलीमा के रहते सर रोट बनाएं वह कै से बदा त करेगी।
इसिलए आप दसरे काम िनपटा ल तब तक सलीमा रोट बना देगी। गंगारामू
सर ने कहा क ये तो रोज़ाना का काम है। होटल का खाना बदन को ‘सूट’
नह ं करता इसिलए जैसा भी क चा-प का बनता है, बना लेते ह।
अंदर के कमरे म एक तरफ कचन थी।
वाकई गंगाराम सर आटा गूंथने क तैयार म थे। तभी तो ट ल क परात म
आटा पड़ा था और जग म पानी।
सलीमा बैठ गई और आटा गूंथने लगी। गंगाराम सर उसके पास बैठ गए
और सलीमा को आटा गूंथते देखते रहे। सलीमा ने आटा गूंथने के बाद आटे
क छोट -छोट लोईयां बना । गंगाराम सर उन लोईय को बेलने लगे तो
सलीमा ने उनसे बेलन-चौक छ न ली और कहा क आप बैठ कर रोट सक
द। सलीमा रोट बेलने लगी।
गंगाराम सर तवे पर रोट सकने लगे। सलीमा को संकोच तो हो रहा था,
ले कन क ा म बुर तरह पीटने वाले गंगाराम सर क इस दयनीय हालत से
वह वत हो गई थी।
घर म कतने सीधे-सादे ह गंगाराम सर, सलीमा को यह अ छा लग रहा
था।
दस-बारह रो टयां बना उसने। फर वह अंदर आंगन म आकर हाथ धोने
लगी। उसने सोचा क व तो ऐसे ह गुज़र गया। पता नह ं कब सर पढ़ाएंगे
और फर उसे वापस घर भी तो लौटना है।
सलीमा हाथ धोकर बैठक म आ गई और ज़मीन पर चटाई बछाकर कताब
खोल कर पढ़ने लगी।
गंगाराम सर भी वहां चले आए। उनके हाथ म दो थािलयां थीं। एक खुद के
िलए और दजी थाली सलीमा के िलए। सलीमा ने बताया क वह तो खानाू
खाकर आ रह है।
गंगाराम सर ने कहा-‘‘का हआु , जो खा कर आई हो। अरे, इहां का भी तो
चख कर देखो...!’’
सलीमा को भूख तो लग आई थी, ले कन संकोच के कारण वह िनणय नह ं ले
पा रह थी, क खाना खाए या न खाए। देखा क उसक थाली म दो रो टयां
ह। उसने एक रोट उठाकर गंगाराम सर क थाली म डाल द और सकु चाते
हए रोट के छोटेु -छोटे कौर बनाने लगी।
सर भी उसके पास चटाई पर बैठ कर रोट खाने लगे।
एक रोट के तीन कौर बनाकर चपर-चपर क आवाज़ के साथ गंगाराम सर
खाना खाने लगे। सलीमा को चप-चप क आवाज़ से िचढ़ है। बहन को तो
वह टोक देती थी, ले कन सर को कै से मना करे।
उसने कसी तरह रो टयां कं ठ के नीचे उतार और चुप-चाप बैठ रह ।
गंगाराम सर ने लगभग आठ रो टयां खाई ह गी फर एक लोटा पानी पीकर
उ ह ने बड़ तेज़ डकार ली। सर ने थाली म ह हाथ धोया और सलीमा से भी
कहा क वह थाली म हाथ धो ले।
सलीमा क अ मी ने यह सब तो िसखाया था क हाथ उस थाली म कभी न
धोइए, जसम आपने खाना खाया हो।
सलीमा उठते हए सर क जूठ थाली उठाने लगी तो सर ने उसका हाथ पकड़ु
िलया और कहा-‘‘अरे, ये का कर रह हो। बाई आएगी तो बतन धोएगी।’’
सलीमा ने थाली उठाकर हाथ म ले ली और आंगन म आ गई।
एक तरफ बतन-कपड़े धोने के िलए जगह बनी थी। उसने जूठ थािलयां वह ं
रख द ं और थोड़े से पानी से हाथ धो िलए। खाना खाकर गंगाराम सर क
त द उभर आई थी। वे चटाई पर बैठ कर एक ड बे से त बाखू-चूना-सुपार
का गुटखा बनाने लगे।
सलीमा भी उनके पास बैठ गई और कताब खोलने लगी। खैनी खाकर
गंगाराम सर थूकने के िलए बाहर िनकले और फर वापस आकर तखत पर
पसर गए। फर उ ह ने सलीमा को तखत के पास वाली कु स पर बैठने का
इशारा कया।
सलीमा चटाई पर ह बैठ रह तो सर फु त से उठे और सलीमा को उठा
अपने पास तखत पर बठा िलया।
सलीमा अचकचा गई।
जो ट चर कू ल म इतना स त हो क पीट-पीट कर हाथ लाल कर दे, वह
घर म इतना मुह बती होगा, सलीमा को यक न न हआ।ु
मछली आसानी से नह ं फं सती, ब क पानी म बंसी डाल, बड़े धैय से नद -
तट पर बैठा जाता है।
ज़ र नह ं क हर बार चारे क लालच म मछली फं स ह जाए। मछली का
िशकार करने वाले बड़े आशावाद होते ह। हार नह ं मानते।
ये जानते ह क क मत ठ क होगी तो मछली जाएगी कहां, फं सेगी ज़ र!
नह ं फं सी तो बुरा या मानना, टाईम तो पास हआ।ु
सलीमा ने उस दन जान िलया क गंगाराम सर उसे एक मछली समझ रहे
ह। सुहानुभूित और सहयोग के प म उसके सामने लुभावना चारा डाल रहे
ह। उस चारे के अंदर कांटा है ये सलीमा जानती है।
ले कन या करे सलीमा, वह एक न ह मछली जो ठहर । जल म रहकर
अठखेिलयां करना तो सभी मछिलयां सीख जाती ह, ले कन जाल म फं से हएु ,
पानी से बाहर आकर तड़पने क कला मछिलयां तभी सीखती ह, जब उनका
अंितम समय आता है।
ये सलीमा जैसी मछिलय क बड बना होती है जो वे पानी को छोड़, गम-
तपती रेत पर जीने का हनर सीखना चाहती ह।ु
गंगाराम सर ने उसे उस दन जो पहला सबक िसखाया वह ग णत वषय का
तो क़तई न था।
वह जैसा भी अनुभव था, बाहर दिनया से सलीमा का थम सा ा कार था।ु
सलीमा ने उस अनुभव से दिनया को समझने का यास कया था। पता नह ंु
उसके दल म हकू -सी उठ और खूब रोने क इ छा हई।ु
वह रोने लगी।
गंगाराम सर एक अबोध बालक बनकर उसके आंसू प छने लगे। वह उसे चुप
कराने का भगीरथ यास कर रहे थे।
तब सलीमा ने जाना क आदमी क ज़ात उतनी डरावनी नह ं होती, जतना
उसे समझा जाता है। इतनी ताकत, इतने अहंकार, इतनी मता रखने वाला
आदमी कतना बेवकू फ़ और डरपोक होता है!
अपनी देह क दौलत और प के जाद से अनजान औरत ह मदज़ात से डरतीू
ह। वरना मद तो ऐसे पालतू बन जाएं क उनके गले म प टा डाल कर उ ह
औरत आराम से टहलाती फर। उनके एक इशारे पर ह म बजाने को तैयारु
खड़े रह।
सलीमा रोए जा रह थी और गंगाराम सर प बदल-बदलकर उसे चुप कराने
का यास कर रहे थे। वह उसे लोभन भी दे रहे थे।
सलीमा फर भी चुप न हई तो वह उठे और आलमार खोलकर उसम से कु छु
पए िनकाले। फर उ ह ने पचास पए के दो नोट सलीमा के हाथ म रखा
क वह रोए नह ं।
सलीमा ने पए नीचे फक दए।
गंगाराम सर पए उठाकर उसके हाथ म पुनः पकड़ाते हए बोलेु -‘‘इसे रख
लो।
अपना समझकर दे रहा हं। इंकार न करो। अब तुम से मेरा र ता भी तोू
बदल गया है। तु ह कोई भी दख होु , तकलीफ़ हो। कै सी भी ज़ रत हो, मुझे
याद कर लेना।’’
सलीमा जानती थी क उसके जीवन म पए क या क़ मत है?
सलीमा उस दन ये भी जान गई क आठ-दस घ टे क हाड़-तोड़ मेहनत के
बाद भी अ बू को हाजी जी इतनी पगार नह ं देते जतनी सलीमा ने गंगाराम
सर के हाथ कमाए थे। अ बू को चालीस पए रोज़ क दर से वेतन िमलती
है। जस दन काम पर न जाएं उस दन नागा मान िलया जाता है। य द कोई
ग़लती हो जाए तो वेतन से कटौती क जाती है।
और इस मामूली सी ‘ए सरसाईज़’ के िलए गंगाराम सर ने उसे या भुगतान
कया-‘‘एक सौ पए!’’
बाप रे बाप!
सलमा ने ़ज दगी के अभाव को दर करने काू ‘शाटकट’ जान िलया था।
जसने क शरम...
सलीमा ने पाया क गंगाराम सर के यवहार म कठोरता क जगह कोमलता
ने ले ली है। गंगाराम सर उसक तरफ़ अित र यान देने लगे ह। उसक
पसंद-नापसंद को तव जो देने लगे ह। देखते रहते ह क सलीमा परेशान तो
नह ं।
क ा म पढ़ाते समय, आंख ह आंख उसका हाल-चाल लेते।
मुठभेड़ हो जाने पर उसे रोक कर ‘सुखम-दखमु ’ ज़ र कर िलया करते।
मुठभेड़ हो जाने पर उसे रोक कर ‘सुखम-दखमु ’ ज़ र कर िलया करते।
सलीमा के अंदर पैठ झझक अब धीरे-धीरे ख़ म होती जा रह थी। झझक
जो एक साधन- वह न, िनधन, दबल और मजबूर य के अ त व परु
जबरन लादा गया एक आभूषण होती है।
झझक जो य को कभी कसी से नज़र िमलाने या उठाने से रोकती है।
झझक जो आदमी को ऊं ची आवाज़ म बोलने नह देती। झझक जो बड़े
लोग के बराबर बैठना जुम मानती है। झझक जो अ छे कपड़े पहनकर घर
से िनकलने नह ं देती। झझक से िसत य फटे-पुराने कपड़ म खुद को
वाभा वक पाता है। झझक जो बेशम होकर कसी से कु छ भी मांगने नह ं
देती, जब क मांगना एक कला है...सरकार तक व ड-बक से मांगती ह,
अमर का से मांगती ह... वािसय से अपे ा रखती ह क वे अपने देश म
‘इ वे ट’ कर...ये भी एक तरह का मांगना ह है।
इस झझक पी आभूषण को पहनकर अिधकांश लोग ताउ कु नमुनाते-
सकु चाते रहते ह।
सरकार जानती ह क इसे धारण करने वाल क जमात को आसानी से वोट
म बदला जा सकता है। इ ह ‘मैनेज’ करना आसान होता है।
ये लोग ायः व नजीवी होते ह और आसानी से वा जाल म फं स जाते ह।
यह ऐसे लोग का समूह है जसे ‘वोट-बक’ के नाम से जाना जाता है।
सरकार जानती ह क ये जो आबा दयां ह...ये जो झझकती रहती ह....ये
अपनी कमज़ो रय से कभी उबरती नह ं ह।
ये लोग स दय आस लगाए बैठे रह सकते ह क कोई न कोई ज़ र आएगा
और पूव ज म के इस झझक पी अिभशाप से उ ह मु कराएगा।
इसी झझक को कु छ लोग कछु ए के खोल क तरह ओढ़ लेते ह। इस खोल से
फर वे बाहर िनकलना नह ं चाहते। इ ह ं लोग को गांधीवाद ‘पं का
आ खर आदमी’ कहते थे।
इ ह ं लोग के िलए द नदयाल उपा याय ने ‘अं योदय’ का नारा दया था।
यह वो समुदाय है जो कु पोषण, अिश ा, बीमार , बेरोजगार जैसी
सम याओं से िसत रहता है। यह वो लोग ह जनके उ थान के िलए
सरकार योजनाएं बनाती ह। ये लोग न रह तो सरकार करोड़ पय क हेरा-
फे र न कर पाएं।
झझकने क बीमार से उबरने वाले चंद लोग का अ त कायांतरण होता है।ु
सरकार योजनाओं और मजबूर क फौज के बीच जो दलाल वग पैदा होता
है, उसक सबसे िनचली कड़ होते ह ये लोग। तभी तो बड़े अफसर , नेताओं,
उ ोगपितय के अलावा बाबुओं, चपरािसय के यहां भी अकू त दौलत िमल
जाती है, य क ये छोटे लोग धन कमाने के िलए झझकते नह ं।
ये वो होते ह, जो जान जाते ह- ‘‘ जसने क शरम, उसके फू टे करम!’’
ये न झझकने वाले लोग ह बेशरम लोग ह जनके योगदान से सरकार
कू ल बंद होने के कगार म ह और आए दन कु कु रमु क तरह एक से
बढ़कर एक िनजी कू ल-कॉलेज खुलते जा रहे ह। इन नव-दौलितय के
कारण िसनेमा हॉल क जगह म ट ले स ने ले ली है।
इन नव-कु बेर के कारण डपाटमटल- टोर क जगह एक से बढ़कर एक
शॉ पंग-मॉल खुलते जा रहे ह।
इन नव-धनपशुओं के उ व से ड पस रय क जगह मंहगे निसग-होम और
पंच-िसतारा हॉ पीटल क ृंखला देश म वकिसत हो रह है।
इन बेशरम ाचा रय के हाथ म मोबाईल, ीफके स म लेपटोप, जेब म
डॉलर, वैलेट म कसी बाबा क फोटो के साथ तीन-चार े डट-काड होते ह।
ये ा डेड कपड़े पहनते ह।
घ ़डयां, टाई, पर यूम, जूते, मोजे....सब ा डेड पहनते ह। यहां तक क
इनक च डयां भी ा डेड होती ह।
एक तबका ऐसा है क जसके घर म दनभर खुदाई क जाए तब भी एक सौ
पए का नोट बरामद न हो पाए और दसरा तबका ऐसा है जसे करोड़ खचू
करने के बाद भी हसाब रखने क ज़ रत नह ं पड़ती।
सलीमा या करती?
ज़माने के चलन ने उसे मजबूर कया और उसने झझक का दामन छोड़कर
बेहयाई क उंगली थाम ली।
- अनवर सुहैल
Facebook social plugin
Also post on Facebook
Posting as Anwar Suhail (Change) Comment
Add a comment...

More Related Content

What's hot

Bilauti
Bilauti Bilauti
Bilauti
ANWAR SUHAIL
 
Sona hirni
Sona hirniSona hirni
Sona hirni
Arti Maggo
 
Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 028
Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 028Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 028
Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 028
sinfome.com
 
Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 030
Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 030Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 030
Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 030
sinfome.com
 
Gaban
GabanGaban
अकेली मन्नू भंडारी
अकेली   मन्नू भंडारीअकेली   मन्नू भंडारी
अकेली मन्नू भंडारी
GautamKumar930756
 
Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 023
Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 023Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 023
Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 023
sinfome.com
 
प्रेम में परमेश्वर
प्रेम में परमेश्वरप्रेम में परमेश्वर
प्रेम में परमेश्वर
Mayank Sharma
 
Khamosh lamhe 2
Khamosh lamhe 2Khamosh lamhe 2
Khamosh lamhe 2Ak Rajput
 
CLASS V HINDI
CLASS V HINDI CLASS V HINDI
CLASS V HINDI
Rc Os
 
Jageshwar dham yatra
Jageshwar dham yatra Jageshwar dham yatra
Jageshwar dham yatra
vipinanudhiman007
 
Whatsapp status sad shayari
Whatsapp status sad shayariWhatsapp status sad shayari
Whatsapp status sad shayari
nehadubey93
 
Motivational story in hindi - two students wants to become businessman
Motivational story in hindi - two students wants to become businessman Motivational story in hindi - two students wants to become businessman
Motivational story in hindi - two students wants to become businessman
Ban sharma
 
Hindi poetry based on the movie 'The Stoning of Soraya M'
Hindi poetry based on the movie 'The Stoning of Soraya M' Hindi poetry based on the movie 'The Stoning of Soraya M'
Hindi poetry based on the movie 'The Stoning of Soraya M'
Life Coach Medhavi Jain
 
Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 019
Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 019Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 019
Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 019
sinfome.com
 
Latest bollywood news navrang
Latest bollywood news  navrang Latest bollywood news  navrang
Latest bollywood news navrang
Reena Singh
 
Bhagat singh
Bhagat singhBhagat singh
Bhagat singh
junglleee
 

What's hot (20)

Pahchaan
PahchaanPahchaan
Pahchaan
 
Bilauti
Bilauti Bilauti
Bilauti
 
Sona hirni
Sona hirniSona hirni
Sona hirni
 
Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 028
Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 028Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 028
Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 028
 
Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 030
Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 030Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 030
Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 030
 
Gaban
GabanGaban
Gaban
 
Gaban
GabanGaban
Gaban
 
अकेली मन्नू भंडारी
अकेली   मन्नू भंडारीअकेली   मन्नू भंडारी
अकेली मन्नू भंडारी
 
Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 023
Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 023Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 023
Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 023
 
प्रेम में परमेश्वर
प्रेम में परमेश्वरप्रेम में परमेश्वर
प्रेम में परमेश्वर
 
Khamosh lamhe 2
Khamosh lamhe 2Khamosh lamhe 2
Khamosh lamhe 2
 
CLASS V HINDI
CLASS V HINDI CLASS V HINDI
CLASS V HINDI
 
Kahani Sankalan ten
Kahani Sankalan tenKahani Sankalan ten
Kahani Sankalan ten
 
Jageshwar dham yatra
Jageshwar dham yatra Jageshwar dham yatra
Jageshwar dham yatra
 
Whatsapp status sad shayari
Whatsapp status sad shayariWhatsapp status sad shayari
Whatsapp status sad shayari
 
Motivational story in hindi - two students wants to become businessman
Motivational story in hindi - two students wants to become businessman Motivational story in hindi - two students wants to become businessman
Motivational story in hindi - two students wants to become businessman
 
Hindi poetry based on the movie 'The Stoning of Soraya M'
Hindi poetry based on the movie 'The Stoning of Soraya M' Hindi poetry based on the movie 'The Stoning of Soraya M'
Hindi poetry based on the movie 'The Stoning of Soraya M'
 
Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 019
Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 019Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 019
Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 019
 
Latest bollywood news navrang
Latest bollywood news  navrang Latest bollywood news  navrang
Latest bollywood news navrang
 
Bhagat singh
Bhagat singhBhagat singh
Bhagat singh
 

Similar to Salima

हिन्दी भाषा 221400030008-1.pptx
हिन्दी भाषा 221400030008-1.pptxहिन्दी भाषा 221400030008-1.pptx
हिन्दी भाषा 221400030008-1.pptx
Ayazkhanpathan7
 
हिन्दी भाषा 221400030008.pptx
हिन्दी भाषा 221400030008.pptxहिन्दी भाषा 221400030008.pptx
हिन्दी भाषा 221400030008.pptx
Ayazkhanpathan7
 
Hindi portfolio for students of 10th class
Hindi portfolio for students of 10th classHindi portfolio for students of 10th class
Hindi portfolio for students of 10th class
AbhishekMaurya386956
 
मेरे संग की औरतें.pptx
मेरे संग की औरतें.pptxमेरे संग की औरतें.pptx
मेरे संग की औरतें.pptx
ForJunk2
 
inspirational stories of famous people
inspirational stories of famous peopleinspirational stories of famous people
inspirational stories of famous people
leenadaga
 
The Untold Enslavement of Courage.docx
The Untold Enslavement of Courage.docxThe Untold Enslavement of Courage.docx
The Untold Enslavement of Courage.docx
supriyajain46
 
Dhartimata kisannarayan
Dhartimata kisannarayanDhartimata kisannarayan
Dhartimata kisannarayanDeepak Sharma
 
surdas ke pad (1) i am here to complete.pptx
surdas ke pad (1) i am here to complete.pptxsurdas ke pad (1) i am here to complete.pptx
surdas ke pad (1) i am here to complete.pptx
radhajnvuna
 
The Hidden Hindu PART 1 of 3 The Hidden Hindu PART 1 of 3
The Hidden Hindu PART 1 of  3 The Hidden Hindu PART 1 of  3The Hidden Hindu PART 1 of  3 The Hidden Hindu PART 1 of  3
The Hidden Hindu PART 1 of 3 The Hidden Hindu PART 1 of 3
shreegore9
 
The_Hidden.pdf part 1 by arash gupta mumbai
The_Hidden.pdf part 1 by arash gupta mumbaiThe_Hidden.pdf part 1 by arash gupta mumbai
The_Hidden.pdf part 1 by arash gupta mumbai
sanjubarcelona99
 
GABAN
GABANGABAN
GABAN
Home
 
Premchand gaban
Premchand gabanPremchand gaban
Premchand gaban
Shraddha Mishra
 
झुंझुरका बाल इ मासिक फेब्रुवारी 2023-1.pdf
झुंझुरका बाल इ मासिक फेब्रुवारी 2023-1.pdfझुंझुरका बाल इ मासिक फेब्रुवारी 2023-1.pdf
झुंझुरका बाल इ मासिक फेब्रुवारी 2023-1.pdf
Kshtriya Powar
 
अमर प्रेम की एक कहानी
अमर प्रेम की एक कहानीअमर प्रेम की एक कहानी
अमर प्रेम की एक कहानी
SoulvedaHindi
 
10 short motivational stories
10 short motivational stories10 short motivational stories
10 short motivational stories
PhoolBabuChaudhary
 
megh-aaye.ppt
megh-aaye.pptmegh-aaye.ppt
megh-aaye.ppt
SakshiPandey513661
 

Similar to Salima (16)

हिन्दी भाषा 221400030008-1.pptx
हिन्दी भाषा 221400030008-1.pptxहिन्दी भाषा 221400030008-1.pptx
हिन्दी भाषा 221400030008-1.pptx
 
हिन्दी भाषा 221400030008.pptx
हिन्दी भाषा 221400030008.pptxहिन्दी भाषा 221400030008.pptx
हिन्दी भाषा 221400030008.pptx
 
Hindi portfolio for students of 10th class
Hindi portfolio for students of 10th classHindi portfolio for students of 10th class
Hindi portfolio for students of 10th class
 
मेरे संग की औरतें.pptx
मेरे संग की औरतें.pptxमेरे संग की औरतें.pptx
मेरे संग की औरतें.pptx
 
inspirational stories of famous people
inspirational stories of famous peopleinspirational stories of famous people
inspirational stories of famous people
 
The Untold Enslavement of Courage.docx
The Untold Enslavement of Courage.docxThe Untold Enslavement of Courage.docx
The Untold Enslavement of Courage.docx
 
Dhartimata kisannarayan
Dhartimata kisannarayanDhartimata kisannarayan
Dhartimata kisannarayan
 
surdas ke pad (1) i am here to complete.pptx
surdas ke pad (1) i am here to complete.pptxsurdas ke pad (1) i am here to complete.pptx
surdas ke pad (1) i am here to complete.pptx
 
The Hidden Hindu PART 1 of 3 The Hidden Hindu PART 1 of 3
The Hidden Hindu PART 1 of  3 The Hidden Hindu PART 1 of  3The Hidden Hindu PART 1 of  3 The Hidden Hindu PART 1 of  3
The Hidden Hindu PART 1 of 3 The Hidden Hindu PART 1 of 3
 
The_Hidden.pdf part 1 by arash gupta mumbai
The_Hidden.pdf part 1 by arash gupta mumbaiThe_Hidden.pdf part 1 by arash gupta mumbai
The_Hidden.pdf part 1 by arash gupta mumbai
 
GABAN
GABANGABAN
GABAN
 
Premchand gaban
Premchand gabanPremchand gaban
Premchand gaban
 
झुंझुरका बाल इ मासिक फेब्रुवारी 2023-1.pdf
झुंझुरका बाल इ मासिक फेब्रुवारी 2023-1.pdfझुंझुरका बाल इ मासिक फेब्रुवारी 2023-1.pdf
झुंझुरका बाल इ मासिक फेब्रुवारी 2023-1.pdf
 
अमर प्रेम की एक कहानी
अमर प्रेम की एक कहानीअमर प्रेम की एक कहानी
अमर प्रेम की एक कहानी
 
10 short motivational stories
10 short motivational stories10 short motivational stories
10 short motivational stories
 
megh-aaye.ppt
megh-aaye.pptmegh-aaye.ppt
megh-aaye.ppt
 

Salima

  • 1. सा ह य ो साहन सं थान, मनकापुर(उ र देश) ारा कािशत जुलाई 2014 अंक -11 वष -2 सं थापक : धीरज ीवा तव धान संपादक : कर म पठान 'अनमोल' मु य संपादक : ीित 'अ ात' सलीमा ( ह द उप यास): अनवर सुहैल भाग- 4 द यूट ए ड द बी ट सलीमा को कू ल का माहौल अ छा न लगता और ख़ासकर गंगाराम सर तो एकदम भी नह ं। गंगाराम सर नगर के खाते-पीते घर के ब च क तरफ यादा यान दया करते। ग़र ब ब च का मज़ाक उड़ाया करते थे। सलीमा ग़र ब थी, पढ़ाई म कमज़ोर थी और मुसलमान भी थी यानी तीन दगुण से भरपूर थी सलीमा।ु क ा म सबसे पीछे वाली सीट पर बैठने वाली सलीमा। अ सर गंगाराम सर पछली बच के ब च को खड़ा कर क ठन-क ठन पूछा करते और ज़ा हर है क ऐसे क ठन के जवाब न िमल पाते। नतीजतन गंगाराम सर छड़ मार-मार कर उनके हाथ लाल कर देते थे। सलीमा अ सर उनसे पटती थी। कभी-कभी गंगाराम सर छड़ से न मार कर हाथ से उसे मारते। बाद म उसने जाना क गंगाराम सर पीटने के बहाने उसक पीठ, कं धे और बांह क थाह िलया करते ह। अंदाज़ लगाते ह क कतनी जान है सलीमा म। फर उसे लगता क हो सकता है यह उसका वहम हो। वह कसी से कु छ न कहती। सलीमा के बगल म बैठती थी मुमताज बानो। मुमताज के अ बू ऑटो-चालक थे। उनक अपनी ऑटो थी। मुमताज क आिथक दशा सलीमा से बेहतर थी। उसके कपड़े ठ क-ठाक रहते और वह थोड़ा टाईल भी मारती। मु लम होने के कारण वह सलीमा के साथ बैठा करती थी। सलीमा नेह क भूखी थी। मुमताज़ बानो थी तो खाते-पीते घर क , ले कन उसके दमाग म गोबर भरा था। हां, सलीमा क तुलना म वह साफ-सुथरे कपड़े पहन कर आया करती थी। बाल कर ने से काढ़े हए रहते। उसके बदन पर मैल न होता और न हु गाल पर म छर काटने के िनशानात। सलीमा ठहर अपने लाचार-बेज़ार अ बू क ब टया। अ मी होतीं तो या उसके बाल यूं ल टयाए रहते, दांत मैले रहते और चेहरा बेनूर होता! जब देखो तब सलीमा अपने खे बाल को खबर-खबर खजुआते रहती। ​ ​
  • 2. लड़ कयां उससे दर रहतीं क कह ं उनके िसर म भी जूएं न पड़ जाएं।ू एक दन जब गंगाराम सर ने ग णत के लाभ-हािन वाले पाठ का एक सवाल उससे पूछा तो वह आदतन कु छ बता न पाई। गंगाराम सर ने छड़ से मार- मार कर उसक हथेली लाल कर द । सलीमा को उस मार के दद से कोई तकलीफ़ न हईु , ले कन घर म पढ़ने के िलए थोड़ा भी व न िनकाल पाने क मजबूर से उसे दख हआ। वह रोने लगी।ु ु फर उसे अपनी अ मी क याद आई। वह होतीं तो शायद ऐसे बुरे दन न देखने होते। अ मी उसका तिनक भी याल रखतीं तो या वह ऐसी मैली-कु चैली दखती। तब हो सकता है क क ा के ब चे और िश क उससे नफ़रत न करते। वह भी घर म पढ़ती तो रोज़ाना क इस मार-डांट से बची तो रहा करती। और वह हच कयां ले-लेकर रोने लगी। बगल म बैठ मुमताज़ नह ं जानती थी क इस हालत म सलीमा को कै से चुप कराया जाए। सलीमा टेसुए बहाती रह तो गंगाराम सर िचंितत हए।ु वह पास आए और यार से उसके बाल पर हाथ फे रते हए कहाु - ‘‘छु ट होने पर तुम टाफ- म म आकर मुझसे िमलना।’’ गंगाराम सर ने जो उसके िसर पर हाथ फे रा उससे उसे कु छ सां वना िमली। मुमताज़ ने उसके हाथ को अपने हाथ म लेकर सहलाया। सलीमा क सुब कयां कम ह ।ु छु ट होने पर ब ता समेट सलीमा क ा से बाहर िनकली। उसके दमाग म गंगाराम सर क बात घूम रह थी क तुम टाफ- म म आकर मुझसे िमलो। सलीमा के क़दम वतः टाफ- म क तरफ उठे। हेडमा टर साहब के ऑ फस के बाहर चपरासन बैठ वेटर बुन रह थी। ऑ फस के बगल म लाई ेर थी फर उसके बाद टाफ- म। सलीमा ने परदे क झ रय से कमरे के अंदर ताका। गंगाराम सर बैठे हएु थे। जैसे वह सलीमा का इंतज़ार कर रहे ह । सलीमा परदा हटाकर खड़ हो गई। गंगाराम सर ने उसे अंदर बुलाया और जब वह उनके पास पहंची तो उसक िनगाह झुक रह ं।ु गंगाराम सर ने उससे कहा- ‘‘मेर तरफ देखो, म तु ह मारता इसिलए नह ं क म तु हारा द मन हं। मुझे हमेशा यह लगता है क तु ह पढ़नाु ू -िलखना चा हए। ले कन म तु हार मजबूर समझता हं। तुम िच ता न करो। मू तु हारे बाप को जानता हं। बचारा ग़र ब मजदर है। च क मू ू काम कर कसी तरह ब च का लालन-पालन करता है। तु हारे बाप से बात क ं गा क वह तु ह मेरे घर पढ़ने भेज दया कर। म तु ह अलग से पढ़ा दया क ं गा। ऐसा पढ़ा दंगा क एक दमू ‘फ ट- लास’ पास हो जाओगी।’’ सलीमा िच -िल खत-सी उनक बात सुनती रह । फर उ ह नम कार कर कमरे से बाहर िनकल आई। गंगाराम सर ने उससे कहा क र ववार के दन अपने घर का काम-काज िनपटा कर सलीमा उनके घर आ जाया करे। दपहर म अपने आराम करने केु समय पर वह उसे एक-डेढ़ घ टे पढ़ा दया करगे। सलीमा ने घर आकर अ बू को कू ल क बात बताई। अंधे को या चा हए, दो आंख! अ बू गंगाराम सर को जानते थे। उ होन सोचा शायद इस तरह ब टया पढ़- िलख जाए।
  • 3. उ ह ने सलीमा को इजाज़त दे द । र ववार का दन। गंगाराम सर के घर सलीमा को पढ़ने जाना था। ज द -ज द उसने घर के काम-काज िनपटाए। उसके बाद उसने सोचा क अ छे से साफ-सुथरा हो लेना चा हए। इसिलए सलीमा नहाने के िलए आंगन के कोने म बने गुसलखाने म चली गई। टाट-बोरे के टुकड़े, चटाई, बांस क खप चयां आ द से जोड़-तोड़ कर बनाया गया बना छत का गुसलखाना। जसके अंदर प थर क एक बड़ पंचकोना चीप बछ हई थी।ु इतना बड़ा प थर का टुकड़ा क एक आदमी आसानी से बैठ कर नहा सके और कपड़े भी धो-फ ंच ले। चीप के पास ह एक कोने पर आधा कटा म का टुकड़ा रखा था। उस म म सुबह-सुबह सलीमा या फर कै या बाहर चांपाकल से पानी लाकर भर दया करती थीं। उसी से घर का िन तार चलता। उसके बाद य द उसम पानी घटता तो त काल बाहर से पानी लाना पड़◌़ता था। गुसलखाना के साथ वह िघर हई पददार जगह पेशाबु -घर का भी काम करती थी। मुसलमान म पेशाब करने के बाद पानी इ तेमाल करना ज़ र होता है, वरना ज म म नापाक बनी रहती है। इसिलए म म पानी हमेशा उपल ध रहता। अ मी ने बे टय को पाक-साफ रहना सीखाया था। अ मी कहा करती थीं क हमेशा ‘इ तंजे’ से रहा करो, जाने अ लाह-पाक कब और कस हालत म इंसान क ह क ज़ कर ले! हां, मह ने के उन ख़ास दन को छोड़कर जब कसी औरत को नापाक रहना ह पड़ता है, बा क दन ज म को पाक-साफ रखा जाए। अ मी बताया करती थीं क इस नामुराद घर म उनक शाद से पहले गुसुलखाना जैसी चीज़ नह ं थी। बड़े जा हल थे सब ससुराल वाले। अ मी बताया करतीं क तेरे अ बू और दादा बाहर खुले म नहाया करते थे। औरत को नहाना होता तो चारपाईय क ओट बनाकर अ थाई गुसलखाना बना िलया जाता था। बड़ा अजीब लगता था उ ह। अ मी ने जब देखा क ये लोग नह ं बदलगे, तब उ ह ने वयं टूट -फू ट चीज़ जोड़-जाड़ कर आंगन के कोने को गुसुलखाने क श ल द थी। अ मी हमेशा अपनी ससुराल को कोसा करतीं। अपने भाईय और भौजाईय क लापरवा हय का रोना रोतीं, ज ह ने उनक शाद इन कं गाल म करके अपने िसर से बला टाली थी। कभी वह अपनी क मत को फू टा हआ बतातीं। अ लाहु -तआला ने उनक तकद र इतनी बुर य िलखी, इस सवाल का जवाब अ मी हमेशा परवर दगार से पूछा करतीं।
  • 4. सलीमा क अ मी बताया करती थीं क उनके मां-बाप अ छे खाते-पीते लोग थे। सन् 47 म वभाजन के समय उनके मां-बाप बां लादेश चले गए। अ मी तब ब ची थीं और बड़े मामू के पास ह रहती थीं। बड़े मामू कलक ा क जूट- िमल म िम ी का काम करते थे। अ छ आमदनी थी उनक । ख दरपुर क सीमा पर उ ह ने एक क ठा ज़मीन खर द कर वहां मकान भी बना िलया था। अ मी बतातीं क उनके बड़े भाई बहत रहम दल इंसान थे ले कन भाभी जैसेु कड़वा-करैला। ऐसी ज़हर बुझी बात कहतीं क बस कलेजा जल जाता। फर भी दन ठ क ह गुज़र रहे थे। तभी बड़े मामू को ट .बी. के कारण मौत हो गई और उनके घर के हालात बदतर होते चले गए। मुमानी के अ याचार बढ़ने लगे तो अ मी के छोटे भाई उ ह अपने साथ बलासपुर लेते आए। वह बलासपुर म रे वे इं जन चालक के पद पर कायरत थे। उ ह ने जैसे-तैसे अ मी क शाद इ ाह मपुरा म तय कर द । तब अ मी मा तेरह या चौदह बरस क थीं। ब ची ह तो थीं, जब उन पर ़ज मेदा रय का बोझ आन पड़ा था। अ मी को अपने पूरे माईके वाल से और अपने ससुराल वाल क ग़र बी और जहालत से स त िचढ़ थी। इसीिलए अ मी जब तक इस घर म रह ं बेगाना बन कर रह ं। उ ह घर क कसी भी चीज़ से भावना मक लगाव न था। यहां तक क अपनी ब चय से भी नह ं। और एक दन ऐसा भी आया क घर के सभी सद य को अच भत छोड़ कर अ मी जाने कहां चली ग । अ मी तो अ मी आ खर अ मी थीं....उनक गैर-मौजूदगी म सलीमा उ ह याद कर आंख नम कर िलया करती। अ मी के ज़माने म गुसलखाने म रखा ये म बहत तबे वाला हआ करता था।ु ु घरेलू-इ तेमाल के िलए अ बू जैसे-तैसे बाहर से पानी लाकर उस म म भरा करते थे, तब कह ं जाकर उ ह हाजी जी क च क म यूट बजाने का ह मु हआ करता था।ु अ बू अ मी से डरते बहत थे।ु स दय म धूप क करन गुसलखाने के म पर सीधे पड़ा करतीं। यह करन गीज़र का काम करतीं। सलीमा और सुरैया चांपाकल से पानी लाकर उस म म डाल देती जो दपहर होतेु -होते कु नकु ना-गम हो जाता। सलीमा ने पानी छू कर देखा....पानी अब उतना ठ डा नह ं था.... क बदन पर पड़े तो िसहरन हो। सलीमा नहाने के िलए िसफ समीज पहने प थर क चीप पर बैठ गई और सबसे पहले अपने पैर क सफाई करने लगी। ए ड़य पर मैल क मोट परत जमकर स त हो चुक थी। बना प थर से रगड़े मैल न छू टता। उसने मैल छु ड़ाने वाले प थर के टुकड़े से ए ड़य का मैल िनकाला। साबुन के नाम पर कपड़ा धोने वाला साबुन था वहां। ना रयल का बूच था जससे बदन का मैल रगड़ कर कर साफ कया जाता था। सलीमा ने कपड़े धोने वाले साबुन को िसर पर मला। िसर से इतना मैल िनकला क पूरा गुसलखाना काला हो गया। वह चाहती थी क सारे बदन क रगड़-रगड़ कर सफाई करे, ले कन गुसलखाना बना छत का था। उनके गुसलखाने से हाजी रफ क छत दखलाई देती थी। हाजी साहब का नौकर ईद अ सर छत पर आकरू
  • 5. गुसलखाने क टोह िलया करता। सलीमा ने एहितयातन हाजी रफ साहब क छत पर िनगाह डाली और अपने बदन को खुद से छु पाते हए अ छ तरह पूरे बदन पर साबुन मल िलया। फरु ना रयल के बूच पर साबुन मल कर झाग बनाया और हाथ-कु हनी के मैल धो डाले। जब वह नहा कर फु सत पाई, तो गम के कारण कु छ ह देर बाद बाल को छोड़ बदन का पानी सूख गया। कपड़े धोने के साबुन के कारण ज म क चमड़ खु क हो गई थी। ऐसा लगने लगा जैसे चमड़ म खंचाव आ रहा हो। बदन खुजलाने लगा। जब उसने हाथ खुजलाया तो हाथ क चमड़ पर सफे द लक र खंच आ । उसने त काल रसोई घर जाकर सरस का तेल हथेिलय पर लेकर पूरे बदन पर लगाया, तब जाकर उसे राहत िमली। फर उसने अ मी क पेट खोलकर ईद वाला सलवार-सूट िनकाला। महद रंग का वह सूट सलीमा पर खूब फबता था। कै या और सुरैया उसे सजते हएु बटुर- बटुर ताक रह थीं। उसने सुरैया को समझाया क वह एक-डेढ़ घ टे म आ जाएगी। वह यूशन पढ़ने जा रह है। उसके पीछे वे दोन शैतानी न कर। लड़ाई- झगड़ा न कर। रसोई क देगची म चावल-दाल बचा हआ है। भूख लगे तोु वह भकोस ल। कह ं बाहर खेलने न जाएं और न ह कसी को घर म घुसने दगी। इतना समझा, कताब-कॉपी लेकर सलीमा गंगाराम सर के घर क तरफ िनकल पड़ । बस- टड के पीछे नद क तरफ जाने वाले रा ते म सेठ करोड़ मल के नौकर का आवास और गाय-भस वाली खटाल थी। नद के कनारे क ज़मीन, जो क िन त है क सरकार ह होगी। उस ज़मीन पर सेठ करोड़ मल ने अवैध क़ ज़ा जमा कर लगभग बीस मकान का एक बाड़ा बनाया हआ था।ु दो-दो कमरे के पं ब मकान। पानी के िलए कुं आ और कुं आ के इद-िगद औरत और मद के नहाने के िलए अलग-अलग गुसलखाने। ट ट के िलए उस बाड़े म कोई यव था न थी। इसीिलए करोड़ मल के कराएदार ी-पु ष सुबह-सुबह हाथ म लोटा या ला टक क बोतल या ड बा िलए नाले क तरफ िनकल जाते। ब चे सड़क कनारे कचराघर के पीछे या नाली के कनारे लाईन लगा कर बैठ जाते। आस-पास सुअर और कु े घूमते रहते। ये नाली गंगाराम सर के मकान के सामने से गुजरने वाली नद पर जाकर खतम होती थी। गंगाराम सर का मकान नद के छोर पर था। नद नगर क वभाजन-रेखा है। नद के इस तरफ एक धड़कता हआ जीताु -जागता नगर और नद क दसर तरफ खेतू -खिलहान और िनजन से गांव। कहते ह क न दय के कनारे ह दिनया क स यताएं वकिसत हई ह।ु ु आ ़खर ह भी य न! अब इसी नद को ह ले लो। बस- टड बना तो नद के तट पर क या य , बस-चालक , क ड टर आ द को िन तार के िलए
  • 6. कह ं भटकना न पड़े। नद के कनारे दैिनक- या से फ़ा रग भी हो िलए, कपड़े साफ कर िलए और नहा िलए। पूरा नगर ह नद के साथ-साथ बल खाते हए व तार पाया है।ु नद के इद-िगद धड़ाधड़ मकान बन रहे ह। जो भी इस नगर म एक बार आया यह ं का होकर रह गया। इसी कारण मारवा ड़य , जैिनय , िस ख , इसाईय और मुसलमान के कई-कई पूजा- थल यहां बन गए। मं दर तो अनिगनत ह गे। जब सारे भगवान के िलए अपने अलग-अलग, कई-कई मं दर बन गए तो उसके बाद नगरवािसय ने िशरड़ वाले सा बाबा का मं दर बनाना शु कर दया है। एक और भगवान डेरा स चा सौदा वाले राम-रह म बाबा। जाने कै से उनके भी ढेर सारे भ इस नगर म ह और नगर के बाहर बै रयर के उस पार चार एकड़ म एक आ म बन रहा है जसके बाहर बोड लगा है- ‘‘डेरा स चा सौदा’’। मुसलमान म धम और यवसाय के घाल-मेल को समझने वाल ने भी नगर के बाहर इलाके ़ म एक मज़ार का तस वुर कर िलया। पहले जहां घोड़े और ख चर वाले आबाद थे उनक सीमा पर अब वहां पर एक प क मज़ार है। आस-पास चादर-फू ल-शीरनी वाल क दकान खुल गई ह। दोु -तीन गुम टय म चाय-ना ते क दकान ह। हर साल वहां उस का मेला भरता है। नागपुरु , बनारस जैसी जगह से क़ वाल बुलाए जाते ह। ढेर चादर चढ़ती ह। राम-लीला, य , रास-लीला जैसे आयोजन बड़े धूम-धाम से कए जाते ह। सेठ करोड़ मल के बाड़ा और गंगाराम सर के मकान के बीच क खाली जगह पर एक भ य िशव-मं दर का िनमाण-काय चल रहा है। नद के इस इलाके म सलीमा बहत कम आई थी। जब पानी क क लत होती थी तब सलीमाु अपनी अ मी के साथ इस नद पर कपड़े धोने और नहाने आया करती थी। नद आगे जाकर मुड़ गई है। जहां पर नद मुड़ती है, नद क धार मंद होती है उस जगह को ‘दहरा’ कहा जाता है। सलीमा ने ‘दहरा’ का अथ ऐसी जगह से िलया जहां पानी कु छ गहरा हो। वाकई ‘दहरा’ पर पानी चुर मा ा म साल भर रहता है। ‘दहरा’ के कनारे ेनाइ टक च टान ह। उन च टान पर लोग कपड़े धोते ह। सलीमा को इस ‘दहरे’ पर नहाना बहत अ छा लगता था। हांु , गिमय म जब वे नहा-धो कर घर वापस आतीं तो धूप िसर चढ़ आती थी और पूरा बदन पसीना-पसीना होकर दबारा नहाने क मांग करता था।ु सलीमा जस समय गंगाराम सर के मकान पहंचीु , आसमान क ऊं चाईय पर सूरज दमक रहा था। मकान के दरवाज़े पर नेम लेट लगी थी। िलखा था-‘‘गंगाराम, या याता’’ सलीमा थोड़ देर क रह , य क घर का दरवाज़ा अधखुला था। उसने अंदर झांका। पहला कमरा बैठक क तरह का था, जसम चार ला टक क कु िसयां और एक त त था। त त पर सलीके से ग ा-त कया बछा था। थोड़ा और अंदर तक यान से देखने पर उसने पाया क अंदर वाले कमरे म गंगाराम सर क छा-बिनयान पहने बैठे ह। के रािसन तेल वाले ेशर- टोव के जलने क आवाज़ आ रह है। सलमा ने झझकते हए सांकल बजाई।ु गंगाराम सर ‘हां जी’ क आवाज़ िनकालते बाहर आ गए।
  • 7. उनके हाथ पर आटा िचपका था। शायद आटा गूंथने क तैयार कर रहे हो या फर रोट बना रहे हो। सलीमा को सर क ये हालत देख हंसी आई ले कन संकोच के कारण वह हंसी नह ं। गंगाराम सर ने उसे अंदर आने को कहा। ‘‘ह ह ह, का क ं , ब चे ह नह ं, सो खुदै रोट पका रहा था।’’ गंगाराम सर ने बात बना । सलीमा से रहा न गया। उसने कहा क सलीमा के रहते सर रोट बनाएं वह कै से बदा त करेगी। इसिलए आप दसरे काम िनपटा ल तब तक सलीमा रोट बना देगी। गंगारामू सर ने कहा क ये तो रोज़ाना का काम है। होटल का खाना बदन को ‘सूट’ नह ं करता इसिलए जैसा भी क चा-प का बनता है, बना लेते ह। अंदर के कमरे म एक तरफ कचन थी। वाकई गंगाराम सर आटा गूंथने क तैयार म थे। तभी तो ट ल क परात म आटा पड़ा था और जग म पानी। सलीमा बैठ गई और आटा गूंथने लगी। गंगाराम सर उसके पास बैठ गए और सलीमा को आटा गूंथते देखते रहे। सलीमा ने आटा गूंथने के बाद आटे क छोट -छोट लोईयां बना । गंगाराम सर उन लोईय को बेलने लगे तो सलीमा ने उनसे बेलन-चौक छ न ली और कहा क आप बैठ कर रोट सक द। सलीमा रोट बेलने लगी। गंगाराम सर तवे पर रोट सकने लगे। सलीमा को संकोच तो हो रहा था, ले कन क ा म बुर तरह पीटने वाले गंगाराम सर क इस दयनीय हालत से वह वत हो गई थी। घर म कतने सीधे-सादे ह गंगाराम सर, सलीमा को यह अ छा लग रहा था। दस-बारह रो टयां बना उसने। फर वह अंदर आंगन म आकर हाथ धोने लगी। उसने सोचा क व तो ऐसे ह गुज़र गया। पता नह ं कब सर पढ़ाएंगे और फर उसे वापस घर भी तो लौटना है। सलीमा हाथ धोकर बैठक म आ गई और ज़मीन पर चटाई बछाकर कताब खोल कर पढ़ने लगी। गंगाराम सर भी वहां चले आए। उनके हाथ म दो थािलयां थीं। एक खुद के िलए और दजी थाली सलीमा के िलए। सलीमा ने बताया क वह तो खानाू खाकर आ रह है। गंगाराम सर ने कहा-‘‘का हआु , जो खा कर आई हो। अरे, इहां का भी तो चख कर देखो...!’’ सलीमा को भूख तो लग आई थी, ले कन संकोच के कारण वह िनणय नह ं ले पा रह थी, क खाना खाए या न खाए। देखा क उसक थाली म दो रो टयां ह। उसने एक रोट उठाकर गंगाराम सर क थाली म डाल द और सकु चाते हए रोट के छोटेु -छोटे कौर बनाने लगी। सर भी उसके पास चटाई पर बैठ कर रोट खाने लगे। एक रोट के तीन कौर बनाकर चपर-चपर क आवाज़ के साथ गंगाराम सर खाना खाने लगे। सलीमा को चप-चप क आवाज़ से िचढ़ है। बहन को तो वह टोक देती थी, ले कन सर को कै से मना करे। उसने कसी तरह रो टयां कं ठ के नीचे उतार और चुप-चाप बैठ रह । गंगाराम सर ने लगभग आठ रो टयां खाई ह गी फर एक लोटा पानी पीकर उ ह ने बड़ तेज़ डकार ली। सर ने थाली म ह हाथ धोया और सलीमा से भी कहा क वह थाली म हाथ धो ले।
  • 8. सलीमा क अ मी ने यह सब तो िसखाया था क हाथ उस थाली म कभी न धोइए, जसम आपने खाना खाया हो। सलीमा उठते हए सर क जूठ थाली उठाने लगी तो सर ने उसका हाथ पकड़ु िलया और कहा-‘‘अरे, ये का कर रह हो। बाई आएगी तो बतन धोएगी।’’ सलीमा ने थाली उठाकर हाथ म ले ली और आंगन म आ गई। एक तरफ बतन-कपड़े धोने के िलए जगह बनी थी। उसने जूठ थािलयां वह ं रख द ं और थोड़े से पानी से हाथ धो िलए। खाना खाकर गंगाराम सर क त द उभर आई थी। वे चटाई पर बैठ कर एक ड बे से त बाखू-चूना-सुपार का गुटखा बनाने लगे। सलीमा भी उनके पास बैठ गई और कताब खोलने लगी। खैनी खाकर गंगाराम सर थूकने के िलए बाहर िनकले और फर वापस आकर तखत पर पसर गए। फर उ ह ने सलीमा को तखत के पास वाली कु स पर बैठने का इशारा कया। सलीमा चटाई पर ह बैठ रह तो सर फु त से उठे और सलीमा को उठा अपने पास तखत पर बठा िलया। सलीमा अचकचा गई। जो ट चर कू ल म इतना स त हो क पीट-पीट कर हाथ लाल कर दे, वह घर म इतना मुह बती होगा, सलीमा को यक न न हआ।ु मछली आसानी से नह ं फं सती, ब क पानी म बंसी डाल, बड़े धैय से नद - तट पर बैठा जाता है। ज़ र नह ं क हर बार चारे क लालच म मछली फं स ह जाए। मछली का िशकार करने वाले बड़े आशावाद होते ह। हार नह ं मानते। ये जानते ह क क मत ठ क होगी तो मछली जाएगी कहां, फं सेगी ज़ र! नह ं फं सी तो बुरा या मानना, टाईम तो पास हआ।ु सलीमा ने उस दन जान िलया क गंगाराम सर उसे एक मछली समझ रहे ह। सुहानुभूित और सहयोग के प म उसके सामने लुभावना चारा डाल रहे ह। उस चारे के अंदर कांटा है ये सलीमा जानती है। ले कन या करे सलीमा, वह एक न ह मछली जो ठहर । जल म रहकर अठखेिलयां करना तो सभी मछिलयां सीख जाती ह, ले कन जाल म फं से हएु , पानी से बाहर आकर तड़पने क कला मछिलयां तभी सीखती ह, जब उनका अंितम समय आता है। ये सलीमा जैसी मछिलय क बड बना होती है जो वे पानी को छोड़, गम- तपती रेत पर जीने का हनर सीखना चाहती ह।ु गंगाराम सर ने उसे उस दन जो पहला सबक िसखाया वह ग णत वषय का तो क़तई न था। वह जैसा भी अनुभव था, बाहर दिनया से सलीमा का थम सा ा कार था।ु सलीमा ने उस अनुभव से दिनया को समझने का यास कया था। पता नह ंु उसके दल म हकू -सी उठ और खूब रोने क इ छा हई।ु वह रोने लगी। गंगाराम सर एक अबोध बालक बनकर उसके आंसू प छने लगे। वह उसे चुप कराने का भगीरथ यास कर रहे थे। तब सलीमा ने जाना क आदमी क ज़ात उतनी डरावनी नह ं होती, जतना
  • 9. उसे समझा जाता है। इतनी ताकत, इतने अहंकार, इतनी मता रखने वाला आदमी कतना बेवकू फ़ और डरपोक होता है! अपनी देह क दौलत और प के जाद से अनजान औरत ह मदज़ात से डरतीू ह। वरना मद तो ऐसे पालतू बन जाएं क उनके गले म प टा डाल कर उ ह औरत आराम से टहलाती फर। उनके एक इशारे पर ह म बजाने को तैयारु खड़े रह। सलीमा रोए जा रह थी और गंगाराम सर प बदल-बदलकर उसे चुप कराने का यास कर रहे थे। वह उसे लोभन भी दे रहे थे। सलीमा फर भी चुप न हई तो वह उठे और आलमार खोलकर उसम से कु छु पए िनकाले। फर उ ह ने पचास पए के दो नोट सलीमा के हाथ म रखा क वह रोए नह ं। सलीमा ने पए नीचे फक दए। गंगाराम सर पए उठाकर उसके हाथ म पुनः पकड़ाते हए बोलेु -‘‘इसे रख लो। अपना समझकर दे रहा हं। इंकार न करो। अब तुम से मेरा र ता भी तोू बदल गया है। तु ह कोई भी दख होु , तकलीफ़ हो। कै सी भी ज़ रत हो, मुझे याद कर लेना।’’ सलीमा जानती थी क उसके जीवन म पए क या क़ मत है? सलीमा उस दन ये भी जान गई क आठ-दस घ टे क हाड़-तोड़ मेहनत के बाद भी अ बू को हाजी जी इतनी पगार नह ं देते जतनी सलीमा ने गंगाराम सर के हाथ कमाए थे। अ बू को चालीस पए रोज़ क दर से वेतन िमलती है। जस दन काम पर न जाएं उस दन नागा मान िलया जाता है। य द कोई ग़लती हो जाए तो वेतन से कटौती क जाती है। और इस मामूली सी ‘ए सरसाईज़’ के िलए गंगाराम सर ने उसे या भुगतान कया-‘‘एक सौ पए!’’ बाप रे बाप! सलमा ने ़ज दगी के अभाव को दर करने काू ‘शाटकट’ जान िलया था। जसने क शरम... सलीमा ने पाया क गंगाराम सर के यवहार म कठोरता क जगह कोमलता ने ले ली है। गंगाराम सर उसक तरफ़ अित र यान देने लगे ह। उसक पसंद-नापसंद को तव जो देने लगे ह। देखते रहते ह क सलीमा परेशान तो नह ं। क ा म पढ़ाते समय, आंख ह आंख उसका हाल-चाल लेते। मुठभेड़ हो जाने पर उसे रोक कर ‘सुखम-दखमु ’ ज़ र कर िलया करते।
  • 10. मुठभेड़ हो जाने पर उसे रोक कर ‘सुखम-दखमु ’ ज़ र कर िलया करते। सलीमा के अंदर पैठ झझक अब धीरे-धीरे ख़ म होती जा रह थी। झझक जो एक साधन- वह न, िनधन, दबल और मजबूर य के अ त व परु जबरन लादा गया एक आभूषण होती है। झझक जो य को कभी कसी से नज़र िमलाने या उठाने से रोकती है। झझक जो आदमी को ऊं ची आवाज़ म बोलने नह देती। झझक जो बड़े लोग के बराबर बैठना जुम मानती है। झझक जो अ छे कपड़े पहनकर घर से िनकलने नह ं देती। झझक से िसत य फटे-पुराने कपड़ म खुद को वाभा वक पाता है। झझक जो बेशम होकर कसी से कु छ भी मांगने नह ं देती, जब क मांगना एक कला है...सरकार तक व ड-बक से मांगती ह, अमर का से मांगती ह... वािसय से अपे ा रखती ह क वे अपने देश म ‘इ वे ट’ कर...ये भी एक तरह का मांगना ह है। इस झझक पी आभूषण को पहनकर अिधकांश लोग ताउ कु नमुनाते- सकु चाते रहते ह। सरकार जानती ह क इसे धारण करने वाल क जमात को आसानी से वोट म बदला जा सकता है। इ ह ‘मैनेज’ करना आसान होता है। ये लोग ायः व नजीवी होते ह और आसानी से वा जाल म फं स जाते ह। यह ऐसे लोग का समूह है जसे ‘वोट-बक’ के नाम से जाना जाता है। सरकार जानती ह क ये जो आबा दयां ह...ये जो झझकती रहती ह....ये अपनी कमज़ो रय से कभी उबरती नह ं ह। ये लोग स दय आस लगाए बैठे रह सकते ह क कोई न कोई ज़ र आएगा और पूव ज म के इस झझक पी अिभशाप से उ ह मु कराएगा। इसी झझक को कु छ लोग कछु ए के खोल क तरह ओढ़ लेते ह। इस खोल से फर वे बाहर िनकलना नह ं चाहते। इ ह ं लोग को गांधीवाद ‘पं का आ खर आदमी’ कहते थे। इ ह ं लोग के िलए द नदयाल उपा याय ने ‘अं योदय’ का नारा दया था। यह वो समुदाय है जो कु पोषण, अिश ा, बीमार , बेरोजगार जैसी सम याओं से िसत रहता है। यह वो लोग ह जनके उ थान के िलए सरकार योजनाएं बनाती ह। ये लोग न रह तो सरकार करोड़ पय क हेरा- फे र न कर पाएं। झझकने क बीमार से उबरने वाले चंद लोग का अ त कायांतरण होता है।ु सरकार योजनाओं और मजबूर क फौज के बीच जो दलाल वग पैदा होता है, उसक सबसे िनचली कड़ होते ह ये लोग। तभी तो बड़े अफसर , नेताओं, उ ोगपितय के अलावा बाबुओं, चपरािसय के यहां भी अकू त दौलत िमल जाती है, य क ये छोटे लोग धन कमाने के िलए झझकते नह ं। ये वो होते ह, जो जान जाते ह- ‘‘ जसने क शरम, उसके फू टे करम!’’ ये न झझकने वाले लोग ह बेशरम लोग ह जनके योगदान से सरकार कू ल बंद होने के कगार म ह और आए दन कु कु रमु क तरह एक से बढ़कर एक िनजी कू ल-कॉलेज खुलते जा रहे ह। इन नव-दौलितय के कारण िसनेमा हॉल क जगह म ट ले स ने ले ली है। इन नव-कु बेर के कारण डपाटमटल- टोर क जगह एक से बढ़कर एक शॉ पंग-मॉल खुलते जा रहे ह। इन नव-धनपशुओं के उ व से ड पस रय क जगह मंहगे निसग-होम और पंच-िसतारा हॉ पीटल क ृंखला देश म वकिसत हो रह है। इन बेशरम ाचा रय के हाथ म मोबाईल, ीफके स म लेपटोप, जेब म
  • 11. डॉलर, वैलेट म कसी बाबा क फोटो के साथ तीन-चार े डट-काड होते ह। ये ा डेड कपड़े पहनते ह। घ ़डयां, टाई, पर यूम, जूते, मोजे....सब ा डेड पहनते ह। यहां तक क इनक च डयां भी ा डेड होती ह। एक तबका ऐसा है क जसके घर म दनभर खुदाई क जाए तब भी एक सौ पए का नोट बरामद न हो पाए और दसरा तबका ऐसा है जसे करोड़ खचू करने के बाद भी हसाब रखने क ज़ रत नह ं पड़ती। सलीमा या करती? ज़माने के चलन ने उसे मजबूर कया और उसने झझक का दामन छोड़कर बेहयाई क उंगली थाम ली। - अनवर सुहैल Facebook social plugin Also post on Facebook Posting as Anwar Suhail (Change) Comment Add a comment...