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खामोश लम्हे ...   1|Page
एक इंसान जिसने नैतिकिा की झििक मे अपने पहले प्यार की आहुिी
दे दी
और िो उम्र भर उस संिाप को गले मे डाले, ररस्िों का फिज तनभािा
चला गया। कभी मााँ-बाप का वात्सल्य,कभी पत्नी का प्यार िो कभी
बच्चो की ममिा         उसक पैरों मे
                         े           बेड़ियााँ बने रहे । मगर
इन सबक बाविद वो
      े    ू              उसे कभी    ना भला सका
                                         ु
िो उसक ददल क ककसी कोने मे
      े     े
सससक      रही     थी। वक़्ि उसकी
िोली    मे ववयोग की
ििप भरिा
रहा………….



                         खामोश लम्हे ...



खामोश लम्हे ...                         2|Page
“कह ाँ आस न है पहली महब्बत को भुल देन
                                         ु
                   बहुत मैंने लहू थूक है घरद री बच ने में”
                                                         -   मुन्नवर राणा

(मैंने अपना ये लघु उपन्यास मशहूर शायर मुन्नवर राणा साहब क इस
                                                         े
शे’र से प्रभाववि होकर सलखा है । िहां एक इंसान अपनी सामाजिक
जिम्मेदाररयों का तनवाजहण करिे करिे अपने पहले प्यार को अिीि की
गहराइयों मे ववलीन होिे दे खिा रहा। मगर उम्र क ढलिी सांि मेन
                                             े
िाकर िब जिम्मेदाररयों से हल्की सी तनिाि समली िो दौि पिा उसे
अिीि क अंधकप से बाहर तनकालने को....
      े    ू

                                                               “विक्रम”

                                       (eMail- akrajput8373@gmail.com)

                                            (WebSite: www.guglwa.com)




खामोश लम्हे ...                        3|Page
राि    अपने परे यौवन पर थी। त्रिवेणी एक्सप्रेस अपने गंिव्य को छने
             ू                                                 ू
सरपट दौि रही थी। सभी यािी अपनी अपनी बथज पे गहरी नींद मे सोये
हुये थे मगर एक अधेि उम्र शख्स की आंखो मे नींद का नामोतनशान िक
नहीं था। चेहरे पर उम्र ने अपने तनशान बना ददये थे। िीवन मे लगभग
पचपन से ज्यादा बसंि दे ख चका तनढाल सा अपनी बथज पे बैठा ट्रे न की
                          ु
झखिकी से बाहर फली चााँदनी राि को दे ख रहा था। िहां दर दर िक
               ै                                    ू  ू
फला सन्नाटा इंिन क शोर से तिलसमला कर कलबला रहा था। आसमान
 ै                े                   ु ु
मे चााँद िारे अपनी हल्की थपककयों से अल्हि चााँदनी को लोररयााँ दे रहे
थे, िो अंधेरे को अपने आगोश मे ले बेपरवाह सी लेटी हुई थी। कभी-कभी
कहीं दर ककसी त्रबिली क बल्ब की हल्की रोशनी पेिों क िरमटों से निर
      ू               े                           े  ु ु
आिी थी। उसकी आंखे दर िक फली चााँदनी क उस पार अपने अिीि को
                   ू     ै           े
िलाश रही थी िो वक़्ि क लंबे अंिराल मे कहीं दफ़न हो चका था। वह
                     े                            ु
बार बार अिीि क उन आधे अधरे दृश्यों को िोिकर एक ससलससलेवार
              े         ू
श्ींखला बनाने की कोसशश करिा मगर वक़्ि क बहुि से दहस्से अपना
                                      े
विूद खो चक थे। इसी उधेिबन मेँ न िाने कब उसक थक चक
            ु े            ु                    े       ु े
मजस्िष्क को नींद ने अपने आगोश मे ले बाहर पसरी चााँदनी से
प्रतिस्पधाज शरू करदी। ट्रे न लोगों को उनकी मंजिल िक पहुाँचाने क सलए
             ु                                                 े
बेरहमी से पटररयों का सीना रोंदिी बेिहाशा भाग रही थी।


खामोश लम्हे ...                    4|Page
बीस वर्षीय भानु अपने बिे भाई क साथ अपने कॉलेि दाझखले क सलए
                              े                       े
अनपगढ़ आया था। पहली बार गााँव से शहर मे पढ़ने आया भानु शहर की
  ु
चहल-पहल से बहुि प्रभाववि हुआ । भानु क बिे भाई का अनपगढ़ मे
                                       े                ु
िबादला हो गया था िो उन्होने भानु को भी अपने पास पढ़ने बला सलया
                                                      ु
। बारहवीं िक गााँव मे पढ़ा भानु आगे की पढ़ाई क सलए शहर आया था ।
                                            े
हालांकक उसक भाई को सरकारी आवास समला था मगर वह भानु क
           े                                        े
कॉलेि से काफी दर होने क कारण, उसक बिे भाई वविय ने उसक
               ू       े         े                   े
कॉलेि से माि एक ककलोमीटर दर रे लवे कॉलोनी मे, अपने एक दोस्ि क
                          ू                                  े
खाली पिे क्वाटज र मे उसक रहने का प्रबंध कर ददया था । दर िक फले
                        े                             ू     ै
रे लवे क दो मंजिला अपाटज मेंट्स में करीब सत्िर ब्लॉक थे और हर ब्लॉक
        े
मे आठ पररवार रह सकिे थे। जिसमे चार ग्राउं डफ्लोर पे पाजक्िबद्ध बने
थे और चार पहली मंजिल पे, जिनक दरवािे सीदढ़यों में एक दसरे क
                             े                       ू    े
आमने सामने खुलिे थे । पहली मंजिल मे दो बैडरूम का मकान उस
अकले क सलए काफी बिा था। पहले ददन भानु ने परे मकान का िायिा
  े   े                                   ू
सलया , रसोई मे खाना बनाने क सलए िरूरी बिजन, स्टोव और कोयले की
                           े
अंगीठी िक का इंििाम था। भानु अपने घर मे मााँ क काम मे हाथ
                                              े
बंटािे बंटािे खाना बनाना सीख गया था। रसोई क आगे बरामदा और
                                           े


खामोश लम्हे ...                   5|Page
बरामदे क दसरे ससरे और मख्य दरवािे क दायें िरफ स्नानघर था
        े ू            ु           े
जिसक नल से दटप दटप टपकिा पानी, टूट कर िलिा हुआ फव्वारा और
      े                                   ू
कोनों मे िमी काई से चचपक कॉकरोच, उसे सरकारी होने का प्रमाणपि दे
                        े
रहे थे।



एक परा ददन भानु को उस मकान को रहने लायक बनाने मे ही लगाना
    ू
पिा। शाम को बािार से दै तनक उपयोग की चीिें खरीद लाया। राि को
दे र िक सभी िरूरी काम तनपटा कर सो गया। पहली राि अिनबी िगह
नींद समय पे और ठीक से नहीं आिी । अगली सबह दे र से उठा ,
                                       ु
हालांकक आि रवववार था , इससलए कॉलेि की भी छट्टी थी।
                                          ु



शयनकक्ष मे बनी झखिकी से सामने दर दर िक रे लवे लाइनों का िाल
                               ू  ू
फला हुआ था। आस पास क क्वाट्जस मे रहने वाले बच्चे, रे लवे लाइन्स
 ै                        े
और अपाटज मेंट्स बीच सामने की िरफ बने पाक मे खेल रहे थे िो भानु
                                        ज
क अपाटज मेंट क ठीक सामने था। बच्चो क शोरगुल को सनकर भानु की
 े            े                     े           ु
आाँख खल गई थी। अपाटज मेंट क दायें और बरगद का पराना पेि बरसों से
      ु                    े                  ु



खामोश लम्हे ...                 6|Page
अपनी ववशाल शाखाओं पर ववसभन्न प्रिाति क अनेकों पक्षक्षयों का
                                      े
आसशयाना बनाए हुआ था। उसकी काली पि चकी छाल उसक बढ़ा होने
                                     ु           े ु
की चगली खा रही थी। बरसाि क ददनों मे उसक चारों िरफ पानी भर
    ु                     े            े
िािा था , जिसमे कछ आवारा पशु कभी कभार िल क्रीडा करने आ
                 ु
धमकिे और उसी दौरान पेि क पक्षी उनकी पीठ पर सवार हो नौकायन
                        े
का लत्फ उठा लेिे थे। पाक मे कछ बिगज भी टहल रहे थे। परी जिंदगी
    ु                   ज    ु  ु ु                 ू
भाग-दौि मे गिारने क बाद बढ़ापे मे बीमाररयााँ चैन से बैठने नहीं दे िी।
            ु      े     ु
मगर कॉलोनी की कछ औरिें आराम से इकट्ठी बैठकर फसजि से बतिया
               ु                             ु
रही थी। उनकी कानाफसी से लगिा था की वो कम से दे श या समाि
                  ू
िैसे गंभीर मद्दो पे िो त्रबलकल बाि नहीं कर रही थी। हफ्िे मे एक संडे
            ु                ु
ही िो समलिा है उनको, अगर उसे भी गंभीर मद्दो मे िाया कर ददया िो
                                       ु
कफर क्या फायदा। बीच बीच मे उनक बच्चे चीखिे चचल्लािे उनक पास
                              े                        े
एक दसरे की सशकायि लेकर आ िािे मगर वो उन्हे एक और धककया
    ू
कर कफर से अपनी कानाफसी
                    ू             मे लग िािी। अपाटज मेंटों क आगे पीछे
                                                            े
और मध्य           बनी सडकों पे अखबार ,सब्िी, और दधवाले अपनी रोिमराज
                                                 ू
की भागदौि मे लगे थे।




खामोश लम्हे ...                       7|Page
भानु ने दै तनक कक्रयायों से तनपट कर अपने सलए चाय बनाई और कप
हाथ मे सलए रसोई और बाथरूम क मध्य बने बरामदे मे आकर खिा हो
                           े
गया। बरामदे मे पीछे की िरफ लोहे की चग्रल लगी थी जिसमे से पीछे
का अपाटज मेंट परा निर आिा था। कोिहलवश वो निर आने वाले हर
               ू                 ू
एक मकान क झखिकी दरवािों से मकान मे रहने वालों को दे ख रहा था।
         े
एक दसरे अपाटज मेंट्स क बीचो-बीच सिक पे बच्चे खेल रहिे थे। ये सिक
    ू                 े                                         े
यािायाि क सलए नही थी इन्हे ससफ अपाटज मेंट्स मे रहने वाले इस्िेमाल
         े                    ज
करिे थे। भानु सलए ये सब नया था। ये मकान, शहर यहााँ क लोग सब
                                                    े
कछ नया था। उसका मकान ऊपर “ए” अपाटज मेंट मे था और ठीक उसक
 ु                                                      े
पीछे “बी” अपाटज मेंट था, उसक पीछे ‘सी’ और इस िरह दस अपाटज मेंट की
                            े
एक शंखला थी और कफर इसी िरह दाईं िरफ दस दस अपाटज मेंट की
अन्य शखलाएाँ थी। नए लोग नया शहर उसक सलए सबकछ अिनबी था।
      ं                            े       ु
बीस वर्षीय भानु आकर्षजक कदकाठी का यवक था। उसक व्यजक्ित्व से
                                   ु         े
किई आभास नहीं होिा था की, ये एक ग्रामीण पररवेश मे पला-बढ़ा
यवक है । भानु चाय की चसककयों क बीच जिज्ञासावश आस पास क
 ु                    ु       े                       े
निारे दे खने लगा। चाय खिम करने क बाद वो वहीं खिा रहा और
                                े
सोचिा रहा की ककिना फक है गााँव और शहर की िीवन शैली में । गााँव
                     ज
मे हम हर एक इंसान को भलीभााँति िानिे है, हर एक घर मे आना िाना


खामोश लम्हे ...                  8|Page
रहिा है । अपने घर से ज्यादा वक़्ि िो गााँव मे घमकर और गााँव क
                                              ू             े
अन्य घरों मे गिरिा है । बहुि अपनापन है गााँव मे। इधर हर कोई अपने
              ु
आप मे िी रहा है। यहााँ सब पक्षक्षयों क भांति अपने अपने घोंसलों मे पिे
                                      े
रहिे हैं। ककसी को ककसी क सख-दख से कोई सरोकार नही। सामने क
                        े ु  ु                           े
अपाटज मेंट मे बने मकानों की खली झखिकीयों और बालकोनी से घर मे
                             ु
रहने वाले         लोग इधर उधर घमिे निर आ रहे थे। अचानक भानु को
                               ु
अहसास हुआ की कोई बार बार उसकी िरफ दे ख रहा है, उसने इसे अपना
भ्रम समिा और ससर को िटक कर दसरी िरफ दे खने लगा। थोिे
                                 ू
अंिराल क बाद उसका शक यकीन में बदल गया की दो आंखे अक्सर उसे
        े
रह रह कर दे ख रही हैं। उसने दो चार बार उििी सी निर डालकर अपने
ववश्वास को मिबि ककया।
              ू



कछ दे र पश्चाि दहम्मि बटोर कर उसने इधर उधर से आश्वस्ि होने क
 ु                                                          े
बाद    निरें उन दो आंखो पे टीका दी िो काफी दे र से उसे घर
                                                        ू    रही थी।
“बी” ब्लॉक मे दायें िरफ ग्राउं डफ्लोर क मकान क खुले दरवािे क
                                       े      े             े
बीचोबीच, दोनों हाथ दरवािे की दीवारों पर दटकाये एक लिकी रह रहकर
उसकी िरफ दे ख रही थी। गौरा रं ग, लंबा छरहरा बदन हल्क नारं गी रं ग
                                                    े



खामोश लम्हे ...                     9|Page
क सलवार सट मे उसका रूप-लावण्य ककसी को भी अपनी और आकवर्षजि
 े       ू
करने की कवि रखिा था। वह कछ पल इधर उधर दे खिी और कफर
         ू               ु
ककसी बहाने से भानु की िरफ त्रबना गदजन को ऊपर उठाए दे खने लगिी
जिस से उसकी बिी बिी आंखे और भी खबसरि निर आने लगिी।
                                ू ू
हालांकक दोनों क दरम्यान करीब िीस मीटर का फासला था मगर कफर भी
               े
एक दसरे क चेहरे को आसानी से पढ़ सकिे थे। भानु भी थोिे थोिे
    ू    े
अंिराल क बाद उसको दे खिा और कफर दसरी िरफ दे खने लगिा।
        े                        ू
लगािार आंखे फािक ककसी लिकी को घरना उसक संस्कारों मे नहीं था।
                े              ु      े
मगर एक िो उम्र      और कफर सामने अल्हि यौवन से भरपर नवयौवना हो
                                                  ू
िो वववशिायेँ बढ़ िािी हैं। इस उम्र में आकर्षजण होना सहि बाि है।
निरों का      परस्पर समलन बद्दस्िर िारी था। मानव शरीर मे उम्र क इस
                                 ू                             े
दौर मे बनने वाले हामोन्स क कारण व्यवहार िक मे अववश्वसनीय
                          े
बदलाव आिे हैं।उसीका निीिा था की दोनों धीरे धीरे एक दसरे से
                                                    ू          एक
अंिान से आकर्षजण से      निरों से परखिे लगे। दोनों ददल एक दसरे मे
                                                           ू
अपने सलए संभावनाएं िलाश रहे थे। भानु ने पहली बार ककसी लिकी की
िरफ इिनी दे र और संिीदगी से दे खा था। िीवन मे पहली बार ऐसे दौर
से गुिरिे दो यवा-ददल अपने अंदर क कौिूहल को दबाने की चेष्टा कर
              ु                 े
रहे थे। धडकनों मे अनायास हुई बढ़ोिरी से नसों में खन का बहाव कछ
                                                 ू          ु


खामोश लम्हे ...                     10 | P a g e
िेि हो गया। ददल बेकाबू हो सीने से बाहर तनकलने को मचल रहा था।
ददमाग और ददल मे अपने अपने वचजस्व लिाई चल रही थी। अचानक
बढ़ी इन हलचलों क सलए यवा ददलों का आकर्षजण जिम्मेदार था। दोनों
               े     ु
उम्र क एक खास दौर से गिर रहे थे जिसमे एक दसरे क प्रति झखंचाव
      े               ु                   ू    े
उत्पन्न होना लािमी है ।

मगर यकायक सबकछ बदल गया। अचानक लिकी ने नाक ससकोडकर
             ु
बरा सा मह बनाया और भानु को चचढ़ाकर घर क अंदर चली गई। भानु
 ु      ु                             े
को िैसे ककसी ने िमाचा मार ददया हो उसे एक पल को सााँप सा संघ
                                                          ू
गया। हड्बिा कर वो िरंि वहााँ से अलग हट गया और कमरे क अंदर
                   ु                                े
िाकर      अपने बेकाबू होिे ददल की धडकनों को काबू मे करने लगा। वो
डर गया था, उसे अपनी हरकि मे गुस्सा आ रहा था। क्यों आि उसने
ऐसी असभ्य हरकि की ? वो सोचने लगा अगर कहीं लिकी अपने
घरवालों से उसकी सशकायि करदे िो क्या होगा ? अिनबी शहर मे उसे
कोई िानिा भी िो नहीं। उसक ददमाग मे अनेकों सवाल उठ रहे थे। वो
                         े
सोचने लगा की अब क्या ककया िाए जिस से इस गलिी को सधारा िा
                                                 ु
सक। अचानक दरवािे पे हुई दस्िक से वो बौखला गया और उसक परे
  े                                                 े ू
शरीर मे ससहरन सी दौि गई। उसने चौंक कर दरवािे की िरफ दे खा।



खामोश लम्हे ...                   11 | P a g e
कछ दे र सोचिा रहा और
 ु                       अंि में मन मे ढे रों संशय सलए धिकिे ददल
से वो दरवािे की िरफ बढ़ गया।

दरवािा खुला सामने एक वयजक्ि हाथ मे एक सलफाफा सलए खिा था।

“आप रमेश बाबू क पररचचि हैं ?“ आगंिक ने पछा
               े                  ु     ू

“िी...िी हााँ , कदहए “ भानु ने हकलािे हुये िवाब ददया । रमेश भानु के
भाई वविय क दोस्ि का नाम था जिसको रे लवे की िरफ से ये क्वाटज र
               े
आवंदटि हुआ था।

“उन्होने ये खि आपको दे ने क ददया था।“ उसने सलफाफा भानु की िरफ
                           े
बढ़ा ददया।

“हम लोग भी यहीं रहिे हैं“ आगंिक ने सामने क दरवािे की िरफ इशारा
                              ु           े
करिे हुये कहा।

“ककसी चीि की िरूरि हो िो बेदहचक कह दे ना” आगंिक ने कहा और
                                              ु
सामने का दरवािा खोलकर घर क अंदर चला गया ।
                          े

भानु ने राहि की सांस ली, दरवािा बंद ककया और अंदर आकर खि
पढ़ने लगा। खि मे त्रबिली पानी से संबजन्धि िरूरी दहदायिों क ससवा
                                                         े


खामोश लम्हे ...                   12 | P a g e
सामने क मकान मे रहने वाले शमाजिी से ककसी भी िरह की मदद क
       े                                                े
सलए समलिे रहने को सलखा था । रमेश का वपछले महीने कछ ददनों क
                                                 ु        े
सलए पास क शहर मे ट्रान्सफर हो गया था । ददनभर
         े                                      भानु उस लिकी
क बारे मे सोच सोच कर बैचन होिा रहा , वह हर आहट पर चौक िािा।
 े                      े



िैसे िैसे करक ददन त्रबिा, भानु ददनभर उस झखिकी की िरफ िािे वक़्ि
             े
अपने आप को छपािा रहा और अगली दोपहर कॉलेि क सलए तनकलने
            ु                             े
से पहले सहसा उसकी निर पीछे क उस दरवािे पे पिी । दरवािा बंद
                            े
दे खकर उसने राहि की   सांस ली। मकान से उसक कॉलेि का रास्िा
                                          े
कॉलेि का पहला ददन माि ओपचाररकिाओं भरा रहा , पढ़ाई क नाम पे
                                                  े
ससफ टाइम-टे बल समला। उसक कॉलेि का समय दोपहर एक से पााँच बिे
   ज                    े
िक था। ददनभर रह रहकर उस लिकी का ख्याल भी उसकी बैचनी
                                                 े
बढ़ािा रहा।



शाम को मकान में आिे ही उस लिकी का ख्याल उसे कफर बैचन करने
                                                   े
लगा। वो सोचिा रहा की आझखर वो ककस बाि पे नाराि हो गई ? क्यों



खामोश लम्हे ...                 13 | P a g e
उसने उसकी िरफ बरा सा मह बनाया ? क्या उसे मेरा उसकी िरफ
               ु      ु
दे खना अच्छा नहीं लगा ? मगर दे ख िो वो रही थी मि। रसोई मे आिे
                                               ु े
िािे भानु उििी सी निर उस दरवािे पे भी डाल रहा था िो बंद पिा था
। त्रबना ककसी काम क रसोई मे चक्कर लगािे लगािे अचानक वह दठठक
                   े
कर रुक गया। दरवािा खुला पिा था, मगर वहााँ कोई नहीं था। भानु की
निरे इधर उधर कछ िलाशने लगी। सहमी सी निरों से वो खुले दरवािे
              ु
को दे ख रहा था। कफर अचानक उसकी निर दरवािे क पास दाईं िरफ
                                           े
बने टीन की शैडनमा िोंपिी पर गई जिसमे एक गाय बंधी थी, और वो
               ु
लिकी उस गाय का दध तनकाल रही थी। भानु कछ दे र दे खिा रहा।
                ू                     ु
हालांकक लिकी की पीठ उसको िरफ थी, इससलए वो थोिा तनजश्चंि था।
साथ साथ वो सामने क बाकी अपाटज मेंट की झखड्ककयों पर उििी सी
                  े
तनगाह डालकर तनजश्चंि होना चाह रहा था की कहीं कोई उसकी इस
हरकि को दे ख िो नहीं रहा। चहुं और से तनजश्चंििा का माहौल समला
िो निरे कफर से उस लिकी पे िाकर ठहर गई िो अभी िक गाय
का दध तनकालने मे व्यस्ि थी। यकायक लिकी उठी और दध का
    ू                                          ू
बरिन हाथ मे ले ससर िकाये अपने दरवािे की िरफ बढ़ी। भानु की
                    ु
निरे उसक चेहरे पे िमी थी। वह सहमा सहमा उसे दरवािे की िरफ
        े
बढ़िे हुये दे खिा रहा। वो आि अपने चेहरे क भावों क माध्यम से उस से
                                        े       े


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कल की गुस्िाखी क सलए क्षमा मांगना चाहिा था। लिकी दरवािे मे
                े
घसी और पलटकर दरवािा बंद करिे हुये एक निर भानु की झखिकी की
 ु
िरफ दे खा। निरों मे वही अिनबी बिाजव िो पहली मलाक़ाि मे था।
                                             ु
भानु उसक इस िरह अचानक दे खने से सकपका गया और उसकी पवज
        े                                          ू
तनयोजिि योिना धरी की धरी रह गई। लिकी को िैसे पवाजभास हो गया
                                              ू
था की भानु उसे दे ख रहा है । निरे समली ! भानु की धिकने अपनी लय
िाल भल गई थी । वह सन्न रह गया था,उसने सोचा भी नहीं था को वो
     ू
अचानक उसकी िरफ दे खेगी। ससफ दो पल ! और कफर लिकी ने
                           ज
तनववजकार     भाव से    दरवािा बंद कर ददया। भानु की निरे उसका पीछा
करिे करिे बंद होिे दरवािे पे िाकर चचपक गई। अंि मे उसने चैन की
एक ठं डी सांस ली और वावपस कमरे मे आकर धिकिे ददल को काबू मे
करने की कोसशश करने लगा। इन दो             हादसों ने उसक यवा ददल मे
                                                       े ु
काफी उथल-पथल मचा दी थी। उसक ददमाग
          ु                े                       मे अनेकों सवाल उठ रहे
थे और उसका ददल उनका िवाब भी          दे रहा था मगर ससलससला अंिहीन
था।   एक नया एहसास उसे अिीब से रोमांच की अनभति से सरोबर ककए
                                           ु ू
िा रहा था।        भानु को अिीब सी कशमकश महसस हो रही थी। बाविूद
                                           ू
इसक बढ़िी हुई बैचनी भी उसक ददल को सकन पहुंचाने मे सहायक ससद्ध
    े            े         े         ु ू
हो रही थी। ये सब अच्छा भी लग रहा था। ददमाग मे ववचारों की बाढ़ सी


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आ गई थी। कभी गंभीर िो कभी मस्करािे भावों वाले ववचार मंथन की
                           ु
चरम सीमा को छ रहे थे। खद क ववचार खद से ही आपस मे उलि कर
             ु         ु  े       ु
लििे िगििे रहे । ददवाने अक्सर ऐसे दौर से गिरिे हैं। खद से बािें
                                          ु          ु
करिे और उमंगों क दहचकोले खािे कब उसकी आाँख लग गई पिा ही
                े
नहीं चला।



अगली सबह िल्दी िल्दी नाश्िा खिम कर वो चाय का कप हाथ मे ले
      ु
अपने चचरपररचचि स्थान पे खिा हो गया। एक दो बार उििी सी निर
उस दरवािे पे डालिा हुआ चाय की चसककयों क बीच आस-पास क
                               ु       े            े
माहौल का िायिा लेने लगा।   लिकी क चेहरे क कल क भाव
                                  े       े     े
संिोर्षिनक थे। वो सायद अब गस्सा नहीं है , या हो सकिा है ये िफान
                           ु                                ू
से पहले की खामोशी हो। इस कशमकश में उसकी उलिने और बढ़िी िा
रही थी और साथ ही इंििार की इंिहा मे उसकी मनोदशा भी कोई खास
अच्छी नहीं कही िा सकिी थी।     अचानक दरवािा खुला! लिकी ने िट
से ऊपर दे खा..., निरें समली..., भानु स्िब्ध रह गया! एक पल को िैसे
सब कछ थम सा गया। मगर दसरे ही पल लिकी ने बाहर से दरवािा
    ु                 ू
बंद ककया और सीने से ककिाबें चचपकाए सिक पे गदज न िकाये हुये एक
                                                 ु



खामोश लम्हे ...                  16 | P a g e
और िािे हुये दर तनकल गई । भानु दे र िक उसे िािे हुये दे खिा रहा ।
              ू
भानु उसक ऐसे अचानक दे खने से थोिा सहम गया रहा था मगर ददल
        े
उसक डर पे हावी हो रहा था। वपछले दो चार ददनों मे उसने जििने भी
   े
अनभव ककए उनका एहसास उसक सलए त्रबलकल नया था। वो चली गई
  ु                    े          ु
मगर भानु क सलए न सलिा सकने वाली पहे ली छोि गई जिसे वो
          े       ु
सलिाने मे लगा था।
 ु



दोपहर अपने कॉलेि क सलए िािे हुये परे रास्िे वो उसी क बारे मे
                   े                ू                 े
सोचिा रहा । कॉलेि पहुाँचकर भी उसका मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था
। िैसे िैसे कॉलेि खिम हुआ और उसको िो िैसे पंख लग गए। िल्दी
से अपने क्वाटज र मे पहुंचा और झखिकी से बाहर िााँककर उसकी मोिदगी
                                                            ू
पिा की। मगर तनराशा ही हाथ लगी । दरवािा बंद था । एक क बाद
                                                    े
एक कई चक्कर लगाने क बाद भी िब दरवािे पे कोई हलचल नई हुई
                     े
िो भानु भारी मन से कमरे मेँ िाकर लेट गया ।




खामोश लम्हे ...                  17 | P a g e
लेककन उसका ददल िो कहीं और था , बैचनी से करवटें बदलिा रहा, और
                                  े
अंि मे झखिकी क पास आकर खिा हो गया। परे मकान मे वही एक
              े                     ू
िगह थी िहां उसकी बैचनी का हल छपा था। वहााँ खिे होकर उसे भख
                    े         ु                          ू
प्यास िक का एहसास नहीं होिा था। अंधा चाहे दो आंखे। कफर
आझखरकार दीदार की घिी आ ही गई। दरवािा खुला... भानु संभला.....
और दरवािे की िरफ उििी सी निर डालकर पिा करने की कोसशश
करने लगा को कौन है । मराद परी हुई। लिकी हाथ मे बाल्टी थामे बाहर
                      ु    ू
आई ... और सीधी दाईं और टीन क शैड मे बंधी गाय का दध तनकालने
                              े                      ू
लगी । भानु आस पास क मकानों की झखिककयों पे सरसरी सी निर
                   े
डालकर कनझखयों से उस लिकी को भी दे खे िा रहा था। भानु को उसे
दे खने की ललक सी लग गई थी, िब िक उसको दे ख नहीं लेिा उसे
कछ खाली खाली सा लगने लगिा। सायद प्यार की कोंपले फटने लगी
 ु                                               ू
थी। लिकी अपनी परी िल्लीनिा से अपने काम मे मग्न थी। कछ समय
               ू                                    ु
पश्चाि लिकी उठी... घमी... और दध की बाल्टी को दोनों हाथो से दोनों
                    ू         ू
घटनो पे
 ु          दटका िट से ऊपर   भानु की िरफ सशकायि भरे लहिे मे ऐसे
दे खने लगी िैसे कह रही ”ददनभर घरने की ससवा कोई काम नहीं क्या?”।
                               ू
भानु िेंप गया, और दसरी िरफ दे खने लगा। लिकी उस िोपिी में अंदर
                   ू
की िरफ ऐसे खिी थी की वहााँ से उसे भानु क ससवा कोई और नहीं दे ख
                                        े


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सकिा था, मगर भानु िहां खिा था वो िगह उिनी सरक्षक्षि नहीं थी की
                                           ु
त्रबना ककसी की निरों मे आए उसे तनजश्चंि होकर तनहार सक। मगर कफर
                                                     े
भी वो परी सावधानी क साथ उसकी िरफ दे ख लेिा था, िहां वो लिकी
       ू           े
उसे अपलक घरे िा रही थी , िैसे कछ तनणजय ले रही हो। उसक चेहरे क
          ू                    ु                     े       े
भावों से लग रह था िैसे कहना चाहिी हो की मेरा पीछा छोि दो।
आझखरकार भानु ने दहम्मि करक उसकी िरफ दे खा .... दे खिा रहा.....
                          े
त्रबना पलक िपकाए ...... उसकी आंखो मे दे खने क बाद वो दीन-दतनया
          ें                                 े            ु
को भलने लगा। अब उसे ककसी क दे खे िाने का त्रबलकल डर नहीं था।
    ू                     े                    ु
लिकी अभी िक उसी अंदाि मे, त्रबना कोई भाव बदले भानु को घर रही
                                                       ू
थी । करीब पााँच समतनट क इस रुक हुये वक़्ि को िब िटका सा लगा
                       े       े
िब लिकी ने कफर से मह त्रबचकाया और अपने दरवािे की िरफ बढ़ गई
                     ु
। भानु घबराया हुआ उसको िािे दे खिा रहा और कफर लिकी ने त्रबना
घमे दरवािा बंद कर ददया। भानु को उम्मीद थी की वो अंदर िािे वक़्ि
 ू
एक बार िरूर पलट कर दे खेगी। दीवाने अक्सर ऐसी उम्मीदों क पल बांध
                                                       े ु
लेिे हैं और कफर उनक टूटने पर आाँसू बहाने लगिे हैं। मगर वो ऐसे बांध
                   े
बनाने और कफर उसक टूटने में भी एक रूहानी एहसास िलाश ही लेिे हैं।
                े




खामोश लम्हे ...                   19 | P a g e
कछ ददनों ससलससला यंू ही चलिा रहा। भानु उहापोह मे फसा हुआ था।
 ु                                                     ं
भानु बाथरूम की झखिकी क टूटे हुये कााँच से बने छे द से आाँख सटाकर ये
                       े
पिा करिा की मेरे झखिकी पे न होनेपर भी क्या वो उसक खिे होने की
                                                 े
िगह की िरफ दे खिी है ? भानु की सोच सही तनकली । वो लिकी
अक्सर उििी सी निर उस झखिकी पर            डालिी और भानु को वहााँ न
पाकर दसरी और दे खने लगिी। ये ससलससला बार बार दोहराया िािा।
      ू
मगर वो छपे हुये भानु को नहीं दे ख पािी थी। भानु उसकी इस हरकि पे
            ु
मस्कराये त्रबना न रहा , अब उसे यकीन हो गया की वो अकला ही बैचन
 ु                                                    े      े
नहीं है , हालाि उस िरफ भी बैचनी भरे है ।
                             े               अब भानु पहले बाथरूम के
होल से दे खिा की वो दरवािे मे खिी है या नहीं, अगर वो खिी होिी िो
वह भी ककसी बहाने िाकर सामने खिा हो िािा । कछ दे र इधर उधर
                                           ु
दे खने का नाटक  करिे हुये वो एक आध तनगाह दरवािे पर भी डाल
लेिा, िहां वो लिकी भी उसी का अनसरण कर रही होिी थी । चारों
                                ु
िरफ से आश्वस्ि होने क बाद भानु ने निरे लिकी क चेहरे पे टीका दी
                     े                       े
। लिकी अनवरि उसे ही दे खे िा रही थी । भावशन्य..ककसी निीिे क
                                          ू                े
इंििार मे ..... दोनो सायद मिबर हो गए थे। ददल और ददमाग की
                             ू
रस्साकसी में ददल का पलिा तनरं िर भरी होिा िा रहा था। बेबस। दो
यवा अपनी िवााँ उमगों क भंवर मे बहे िा रहे थे। अचानक लिकी की
 ु                    े


खामोश लम्हे ...                   20 | P a g e
हल्की सी मस्कराई... िैसे उसने हचथयार डाल ददये हों और कह रही हो
          ु
िम िीिे और में हारी। भानु की िंद्रा टूटी। वो अपने आप को संभालिा
 ु
हुआ उसकी मस्कराहट का िवाब िलाश ही रहा था की, लिकी पलटी
           ु
और िािे िािे एक और मस्कराहट से भानु को दववधा में डाल गई।
                     ु                  ु
दरवािा अब भी खुला हुआ था। भानु क परे शरीर मे रोमांच की लहरें सी
                                े ू
उठने लगी , िीवन क पहले इिहार-ए-इश्क का एहसास उसक ददल में
                  े                                   े
दहचकोले मार रहा था । वो अपने कमरे मे आया और एक ठं डी लंबी सांस
खींचकर ऐसे त्रबस्िर पर लेट गया िैसे कोई योद्धा रणभसम से ववियश्ी
                                                  ू
पाकर लौटा हो। वो लेटे लेटे छि की िरफ दे खकर मस्कराने लगा । आि
                                             ु
उसे अपने आस पास का माहौल कछ ज्यादा ही बदला बदला सा लग रहा
                          ु
था । एक अिीब सा संगीि उसे अपने चारों और सनाई दे रहा था। प्यार
                                         ु
का खमार उसक चेहरे पे साफ िलक रहा था।
    ु      े




दो ददलों मे एक मक सहमिी बन गई थी।
                ू                                अब दोनों अक्सर ऐसे ही
एक दसरे को पलों िाकिे रहिे। हल्की मस्कराहटें और कछ छपे हुये
      ू                                     ु           ु    ु
इशारे ही इनकी भार्षा थे। दोनों दतनयााँ से तछप तछपाकर, ददन मे कम से
                                ु
कम एक दो बार िो अवश्य ही आंखो ही आाँखों मे इिहार-ए-मोहब्बि कर


खामोश लम्हे ...                   21 | P a g e
लेिे। दोनों एक दसरे को िब िक दे ख नहीं लेिे िब िक बढ़ी हुई
                ू
आिरिा ददल मे सलए इधर उधर घमिे रहिे। बस कछ पलों का कछ
     ु                      ू               ु         ु
अंिान सा मोह उन दोनों क दरम्यान पनपने लगा था , सायद उसे ही
                       े
प्रेम या प्यार का नाम दे िे हैं। प्यार होने की कोई ठोस विह नहीं होिी
और ना       ही वक़्ि तनधाजरण होिा है । ये कहना भी मजश्कल है की कब
                                                  ु
और कोनसे पल हुआ ,क्योंकक प्यार मे वक़्ि गवाह नहीं होिा। अंिहीन
ससलससलों और मन क पल पल बदलिे भावों से प्यार का अविरण होिा
                े
है ।



कभी कभार दरवािा दे र िक न खुलने से परे शान भानु अपना दरवािा
खोलकर सीदढ़यों मे      खिा हो िािा । अपने पिोसी पररवार से उसके
सम्बंध अच्छे हो रहे थे। पररवार क मझखया का नाम सशवचरण था िो
                                े ु
उत्िरपरदे श का रहने वाला था । उसक पररवार मे दो बेटे और दो बेदटयााँ
                                 े
थी । दोनों बिे बेटे अपना कोई छोटा मोटा काम-धंधा करिे थे और बिी
बेटी दगाज घर मे मााँ क कम मे हाथ बटािी थी िबकक छोटी लिकी सरोि
      ु               े
स्कल में पढ़िी थी । संयोगवश दगाज की मााँ और भानु का गोि एक ही
   ू                        ु
था एससलए दगाज की मााँ भानु को भाई िैसा मानिी थी मगर दगाज अपने
          ु                                          ु



खामोश लम्हे ...                    22 | P a g e
हमउम्र भानु को मामा का सम्बोधन नहीं दे िी थी । अचानक दगाज बाहर
                                                      ु
आई और छि की िरफ िाने वाली सीदढ़यों पे खिी ही गई । भानु ठीक
उसक उसक सामने नीचे की िरफ िाने वाली सीदढ़यों मे खिा सामने दर
   े   े                                                  ू
दर िक फले रे लवे पटररयों क िाल को दे ख रहा था ।
 ू     ै                  े

“आि आप कॉलेि नहीं गए” , दगाज ने धीरे से पछा ।
                         ु               ू

“नहीं, आि छट्टी है ।”
           ु

“खाना बना सलया ?” , दगाज ने थोिी दे र रुककर कफर सवाल ककया।
                     ु

“हााँ, खा भी सलया। ”

दोनों कछ समय चपचाप खिे रहे । दगाज क हाथों मे कछ गीले कपिे थे ,
       ु      ु               ु    े          ु
उनको वो सायद छि पे सखाने ले िा रही थी।
                    ु                           भानु सीदढ़यों में खिा
िरोखेदार दीवार से सामने सिक पर खेलिे बच्चों को दे ख रहा था। दगाज
                                                             ु
भी कभी भानु िो कभी सामने क बच्चों को दे ख रही थी। वो बाि आगे
                          े
बढ़ाने क सलए उत्सक निर आ रही थी।
       े        ु

“उसका नाम रं िना है ”, अचानक दगाज ने कहा , और भानु क चेहरे क
                              ु                     े       े
भाव पढ़ने की कोसशश करने लगी ।



खामोश लम्हे ...                  23 | P a g e
“ककसका ?” , भानु ने लापरवाही से त्रबना दगाज की िरफ दे खिे हुये पछा
                                        ु                       ू
।

“वही.... िो पीछे “बी” ब्लॉक मे नीचे वाले क्वाटज र मे रहिी है ”, दगाज ने
                                                                 ु
भानु की आखों मे िााँकिे हुये कहा।

“क...कौन...”, भानु चौंकां और पलटकर कर दगाज की िरफ दे खने लगा।
                                       ु

”वो जिनक एक गाय भी है ”, दगाज ने बाि परी की और भानु की आंखो मे
        े                 ु           ू
दे खने लगी।

भानु उसका िवाब सनकर सकपका गया, और हकलािे हुये बोला
                     ु
,”म...मिे िो नहीं पिा, क...कौन रं िना ?, में .....में िो नहीं िानिा।‘
       ु
लेककन मन ही मन वो “रं िना” क बारे मे िानने की जिज्ञासा पाले हुये
                            े
था मगर संकोचवश कछ पछ न सका।
                ु     ू

“वो आपकी िरफ दे खिी रहिी है ना ?”, दगाज ने प्रश्नवाचक तनगाहों से
                                    ु
भानु की िरफ दे खा, ”मैंने दे खा है उसको ऐसा करिे”, दगाज ने कछ दे र
                                                    ु       ु
रुककर कहा।

भानु की िुबान िालु से चचपक गई ।



खामोश लम्हे ...                     24 | P a g e
“वो बस स्टैंड क पास िो मदहला कॉलेि है उसमे पढ़िी है , उसक पापा
               े                                        े
रे लवे में हैं। ये लोग पंिाबी है। ” दगाज ने ससलससलेवार सचना से अवगि
                                     ु                  ू
करािे हुये बाि खत्म   की और प्रतिकक्रया क सलए भानु का चेहरा िाकने
                                         े
लगी।

“अच्छा”, भानु ने ऐसे कहा िैसे उसे इसमे कोई खास ददलचस्पी नहीं है ।
मगर दगाज उसक चेहरे क बदलिे भावों को भाप गई थी, वो भानु को
     ु      े       े
सिबद्ध करक चली गई।
          े

दगाज क इस रहस्योद्घाटन से भानु क चेहरे पे पसीने की बाँदे छलक आई
 ु    े                         े                     ु
थी। उसको लगा िैसे परी कॉलोनी को ये बाि पिा चल गई है और अब
                   ू
सभी उसकी िरफ      दे ख उसपे हं स रहे हैं ।



दगाज और भानु क क्वाटज र साथ साथ थे , उनक मख्य द्वार एक दसरे क
 ु            े                         े ु             ू    े
आमने सामने थे। अंदर से सभी मकान एक ही ड़डिाईन से बने हुये थे।
ऊपर िाने क सलए सीदढ़यााँ कॉमन थी। दगाज ने अपने पीछे वाली झखिकी
          े                       ु
से रं िना को भानु क क्वाटज र की िरफ दे खिे हुये दे ख सलया था।
                   े




खामोश लम्हे ...                      25 | P a g e
ऊपर से मााँ की आवाि सन दगाज िल्दी छि की सीदढ़यााँ चढ़ने लगी और
                     ु  ु
उसक पीछे भानु लटा पीटा सा अपने दरवािे
   े           ू                            की िरफ बढ़ गया । उसने
सपने में भी नहीं सोचा था की, ककसी को उनक बारे मे िरा सा भी इल्म
                                        े
होगा । एक भय सा लग रहा था की , कहीं उस लिकी क पररवार क
                                             े        े
ककसी सदस्य को पिा चल गया िो ककिना हाँ गामा होगा ।



िब कभी खाना बनाने का मड नही होिा था िो भानु शाम को अक्सर
                      ू
बाहर पास क ककसी होटल में खाने क सलए चला िािा था । आि वैसे
          े                    े
भी दगाज ने उसको
    ु              अिीब उलिन में डाल ददया था । खाना खाने क बाद
                                                          े
वो इसी चचंिा में खोया हुआ वावपस अपने मकान मे आ रहा था ।
कॉलोनी में दाझखल होने क बाद वो अपने अपाटज मेंट क सामने वाली सिक
                       े                        े
से गिर रहा था की सामने से आिी “रं िना” को दे ख चौंक पिा । दोनों
    ु
ने एक दसरे को दे खा। तनगाहें टकराई। शरीर मे एक
       ू                                           मीठी-सी ससहरन
दौिने लगी। तनस्िब्ध ! तन:शब्द ! दो ददलों में अचानक धडकनों का एक
ज्वार ठाठे मारने   लगा । उद्वेसलि निरें समली और उलिकर रह गई ।
एक दसरे क बगल से गुिरिे हुये एक दसरे क ददल की धडकनों को
    ू    े                       ू    े




खामोश लम्हे ...                  26 | P a g e
साफ महसस कर रहे थे। िबान अपना कोई हुनर नहीं ददखा पाई।
       ू              ु                                         सब
कछ इिना िल्दी हो गया की िब दोनों संभले िो दर िा चक थे।
 ु                                         ू     ु े



राि मे भानु भववष्य क सपने बनिे बनिे सो गया। वो रािभर उसक
                    े      ु    ु                       े
ख्यालों मे खोया रहा। रं िना को लेकर उसने बहुि से ख्वाब बन सलए थे।
                                                        ु
वह रं िना को लेकर एक कसशश सी महसस करने लगिा। रं िना का
                                         ू
चेहरा हर वक़्ि उसे अपने इदज -चगदज घमिा हुआ सा महसस होिा था।
                                  ू             ू



सबह दरवािे पर होने वाली दस्िक ने उठा ददया। दे खा। उसने दरवािा
 ु
खोला िो सामने दगाज को खिे पाया। ऊपर छि पे िाने वाली सीदढ़यों पे
               ु
दगाज खिी थी। उसने इशारे से भानु को अपने पास बलाया। भानु नीचे
 ु                                           ु
िाने वाली सीदढ़यों मे िाकर खिा हो गया। और प्रश्नवाचक तनगाहों से
दगाज की िरफ दे खने लगा।
 ु

“रं िना ने लैटर मांगा है ”, दगाज ने धीरे से फसफसािे हुये कहा।
                             ु               ु ु

“ऊ ” भानु को िैसे ककसी ने नंगा होने क सलए कह ददया हो।
  ं                                  े



खामोश लम्हे ...                      27 | P a g e
“ककसने ?” , चौंक कर ववस्मय से दगाज की िरफ दे खा ।
                               ु

“उसी ने “ दगाज ने मस्करािे हुये गदज न से “रं िना” क घर की िरफ इशारा
           ु       ु                               े
करक कहा।
    े

भानु क पास कहने को शब्द नहीं थे। झखससयाकर गदज न नीचे िकाली।
      े                                               ु

“मिे दे दे ना मे उसको दे दाँ गी”
  ु                          ू

“.....”

ककसी क कदमों क आहट से दगाज घर क अंदर चली गई ,भानु भी अपने
      े       े        ु       े
कमरे मे आ गया। वो सबसे ज्यादा वक़्ि रसोई और कमरे क बीच आने
                                                 े
िाने मे ही गुिारिा था,क्योंकक इसी आने िाने क दरम्यान वो एक उििी
                                            े
सी निर उसक घर क दरवािे पे भी डाल दे िा था। चचिचोर क समलने
          े    े                                   े
पर वो झखिकी पे आ िािा, और कफर दोनों लोगों की निरों से निरें
बचाकर निरें समला लेिे। रं िना की िरफ से अब प्यार का मक आमंिण
                                                     ू
समलने लगा था। चचढ़ाने और गुस्सा करने की िगह पर अब हल्की
मस्कान ने डेरा िमा सलया था। उसक बाद िो ये दो दीवाने आाँखों ही
 ु                             े
आंखो मे एक दसरे क हो गए थे, बहुि से सपने पाल सलए िो बीििे
            ू     े
वक़्ि क साथ िवां होिे गए।
      े


खामोश लम्हे ...                    28 | P a g e
भानु का ददल करिा था की रं िना से ढे र सारी बािे करे मगर उसका
शसमजला और संकोची स्वभाव उसक आिे आ िािा था। एक ददन उसने
                           े
दहम्मि करक खि सलखने की सोची। उसे ये भी डर था की कहीं वो खि
          े
ककसी क हाथ ना लग िाए। लेककन प्यार पे भला ककसका िोर चलिा है।
      े
वो सलखने बैठ गया। त्रबना ककसी सम्बोधन एक छोटी प्रेम-कवविा सलख
दी । अंि मे अपना नाम िक नहीं सलखा। दसरे ददन चपक से दगाज को दे
                                    ू        ु े    ु
ददया। काफी ददन बीि िाने पर मौका पाकर भानु ने दगाज को रं िना से
                                              ु
भी पि लाने को कहा। दगाज ने उसे भरोसा ददलाया की वो रं िना से भी
                    ु
पि लाकर दे गी । ददन बीििे गए मगर रं िना का पि नहीं समला। दगाज
                                                          ु
का एक ही िवाब समलिा की ,”वो सलखने को कह रही थी”। वक्ि बीििा
गया और दोनों अपने प्रेम को परवान चढ़ािे रहे । ससफ आाँखों मे ही
                                                ज
कसमें वादों की रश्म अदायगी होिी रही। कभी सामना होने पर दोनों
अंिान बन िािे और धिकिे ददलों को संभालने में ही वक़्ि तनकल
िािा। दोनों बहुि कछ कहना चाहिे मगर ददल की धिकने िुबान का
                  ु
गला दबा दे िी।

भानु नहाने क बाद बतनयान और हाफ-पैंट पहले अपने सलए नाश्िा बना
            े
रहा था। दरवािे पे हल्की ठक ठक की आवाि सन भानु ने दरवािा
                                       ु



खामोश लम्हे ...                 29 | P a g e
खोला िो सामने दगाज और रं िना को दे ख चौंक पिा। धिकने बढ़ गई।
               ु
ददल मचलकर हलक मे आ फसा।
                    ाँ

आंखे िपकाना िक भल गया और जिस चेहरे को दे खे त्रबना उिावला सा
                ू
रहिा था वो इस वक़्ि उसक सामने था। वो ही बिी बिी आंखेँ इस वक़्ि
                      े
माि एक कदम दर से उसे दे ख रही थी िो आि से पहले करीब िीस से
            ू
चालीस कदम दर होिी थी। दोनों इस वक्ि एक दसरे की आाँखों मे डूब
           ू                            ू
ददल क दरीचों िक पहुाँचने का िगाि लगा रहे थे। रं िना ठीक दरवािे
     े                       ु
क सामने और दगाज उसक पीछे सीदढ़यों मे खिी थी। भानु सामने खिी
 े            ु        े
रं िना की गरम सााँसो को अपने चेहरे पे अनभव कर रहा था। भानु खि
                                        ु
क इंििार मे डूबा भानु आि रं िना को सामने पाकर बि बन गया था।
 े                                             ु
दोनों िरफ गहन खामोश मगर ददलों क िार िंकि हो उठे । पररजस्थतियां
                               े
अनकल थी मगर ददल बेकाबू हुआ िा रहा था, जिससे आत्मववश्वास की
   ु ू
डोर लगािार हाथ से छट रही थी। अक्सर ख़यालों मे डींगे हााँकने वाली
                   ू
िुबान िालु से िाकर चचपक गई थी। भानु की वो सारी योिनाएाँ पलायन
कर चकी थी िो उसने ख़यालों क पररसर मे बैठकर बनाई थी, की िब
    ु                     े
कभी सामना होगा िो वो ये कहे गी और प्रत्यिर में ऐसा कहुगा...आदद
                                        ु
इत्यादद। रं िना भानु की उन आंखो को दे ख रही थी िो उसे परे शान
ककए हुये थी। रं िना की निरे कभी भानु क चेहरे िो कभी भानु क बाएाँ
                                      े                   े


खामोश लम्हे ...                  30 | P a g e
बािू पे बने उगिे सरि क उस बिे से टै टू को दे ख रही थी जिसक बीचों
                  ू   े                                   े
बीच “भान” सलखा था। दोनों सहे सलयााँ आि सि धि कर कहीं िाने की
        ु
िैयारी मे थी। रं िना क हाथो मे पिा-सामग्री रखी हुई एक थाली और
                      े         ू
दगाज पानी का कलश सलए हुये थी।
 ु

काफी दे र दगाज उन दोनों को दे खिी रही मगर िब दे खा की कोई कछ
           ु                                               ु
बोल नहीं रहा िो उसने रं िना क कधे पे हाथ रखकर भानु की िरफ
                             े ं
दे खिे हुए कहा।

“अब बाि करलो दोनों”, दगाज ने िैसे अपनी जिम्मेदारी तनभािे हुये कहा।
                      ु

 “...ब...बाि...! क्या बाि”, भानु ने शरमािे हुये कहा और अपने आपको
संभालने लगा।

रं िना खामोश मगर त्रबना पलक िपकाए उसे दे खे िा रही थी, जिसने
उसकी रािों की नींद उिा दी थी। दोनों आि आमने सामने खिे होकर भी
वही आाँखों की भार्षा ही बोल रहे थे। दोनों अपने को उसी भार्षा मे सहि
महसस कर रहे थे। उन्हे िुबां पे भरोसा नहीं था।
   ू                                              दगाज एक दसरे को
                                                   ु       ू
दे खे िा रही थी।

“आि कहीं िा रहे हो”, भानु ने रं िना क बिाय दगाज से पछा।
                                     े      ु       ू


खामोश लम्हे ...                   31 | P a g e
रं िना अभी भी भानु क चेहरे और उसक नाम क अनरूप उसक बािू पे
                    े            े     े  ु      े
गुदे सरि क बीच मे सलखे “भान” को दे खे रही थी।
      ू   े                ु

“हााँ, आि रामनवमी है , इससलए सभी मंददर िा रही हैं” बाकी लोग नीचे
हमारा इंििार कर रहे हैं। आप लोगों को िो बािें करनी है िल्दी िल्दी
करलों नहीं िो कोई आ िाएगा।“, दगाज ने िल्दी िल्दी फसफसाकर कहा।
                              ु                   ु ु

मगर िभी ककसी ने नीचे से दगाज को पकारा िो वो घबराकर रं िना का
                         ु       ु
हाथ पकि नीचे िाने लगी। बि बनी रं िना अभी भी बार बार पीछे
                        ू
मिकर भानु को दे ख रही थी। उनक िाने क बाद भानु दे र िक उन्हे
 ु                           े      े
दे खिा रहा। वो आि भी कछ नहीं बोल पाया।
                      ु

वक़्ि बीििा गया। क्वाटज र क आवंटन की अवचध खत्म होने पर भानु को
                          े
दसरा मकान खोिना पिा। जिस रास्िे से भानु कॉलेि िािा था उसी
 ू
रास्िे मे एक मकान समल गया। सयोंग से रं िना भी उसी रास्िे से
कॉलेि िािी थी। रं िना और भानु दोनों क कॉलेि एक ही रास्िे पर थे,
                                     े
मगर समय अलग अलग था। भानु िब कॉलेि िा रहा होिा िो उसी
दरसमयााँ रं िना भी उसी रास्िे से अपनी कछ सहे सलयों क साथ कॉलेि से
                                       ु            े
वावपस आ रही होिी। दोनों चोर निरों से एक दसरे की आंखो में दे खिे
                                         ू
और पास से गिर िािे। रं िना चाहिी थी की भानु कछ कहे और उधर
           ु                                 ु


खामोश लम्हे ...                  32 | P a g e
भानु भी कछ ऐसी ही उम्मीद पाले बैठा था। सहे सलया साथ होने क
         ु                                                े
कारण रं िना भाऊ की िरफ दे ख नहीं सकिी थी मगर प्यार करने वाले
राहें तनकाल लेिे हैं। पास से गुिरिे वक़्ि रं िना सहे सलयों से निरें
बचाकर, त्रबना पीछे मिे अपने हाथ को पीछे करक भानु को बाय बाय कह
                    ु                      े
दे िी। भानु उसक इस इशारे को पाकर प्रफजल्लि हो िािा। प्रेम की कोई
               े                     ु
भार्षा नहीं होिी बस अहसास होिा है। ये दोनों भी उसी अहसास से
सरोबर थे।



वक़्ि अपनी रफ्िार से गिर रहा था और उधर दो प्रेमी चपचाप वक़्ि क
                     ु                           ु          े
ससने पे अपनी प्रेम कहानी सलखे िा रहे थे। दोनों क परीक्षाएाँ
                                                े             आरं भ हो
चकी थी। समय-साररणी अलग अलग होने से मलाकािें भी बाचधि हो
 ु                                  ु
गई। भानु सो रहा होिा उस वक़्ि रं िना कॉलेि क सलए िा रही होिी।
                                           े
भानु क मकान का दरवािा बंद दे ख रं िना मायसी से सहे सलयों क साथ
      े                                  ू                े
आगे बढ़ िािी। दोनों को पिा ही नहीं था की कौन ककस वक़्ि आिा
िािा है ।

एक ददन भानु ने िल्दी उठकर दरवािा खला छोि ददया और खद अंदर
                                  ु               ु
की िरफ दरवािे क सामने चारपाई पे लेट गया। आि वो दे खना चाहिा
               े


खामोश लम्हे ...                     33 | P a g e
था की रं िना ककस वक्ि कॉलेि िािी है । वप्रयिमा क इन्ििार में त्रबछी
                                                े
पलकों को न िाने कब नींद ने अपने आगोश में ले सलया। मगर िब
ददल में चाहि का समन्दर ठांठे मर रहा हो िो इन्ििार करिी आाँखों को
                  ु
रोक पाना मजश्कल होिा है ।
          ु



अचानक नींद से चौंककर उठे भानु की निर खुले दरवािे पे पिी और
िभी रं िना सामने से मस्करािी हुई तनकल गई। भानु क कानों में घंदटयााँ
                     ु                          े
सी बचने लगी, एक नई स्फतिज क साथ वो त्रबस्िर से उठा और िट से
                         ू     े
दरवािे क पास पहुंचा। रं िना आगे नकल गई थी। आि वो अकली थी।
        े                                              े
कछ दर िाकर रं िना ने पीछे मिकर दे खा िो भानु को दरवािे क त्रबच
 ु    ू                      ु                           े
में खिा दे ख मस्कराकर हाथ दहलाया और आगे बढ़ गई।
              ु

मद्दद से बंिर पिी िमीन पे बरसाि की बदों सा अहसास सलए भानु ने
 ु                                  ंू
मस्कराकर रं िना की मस्कराहट का िवाब ददया।
 ु                  ु



आि भानु का आझखरी पेपर था इससलए वो आि रं िना से आमने सामने
बाि करक ही रहे गा. उसने तनणजय कर सलया था की िैसे ही दोपहर ढले
       े


खामोश लम्हे ...                   34 | P a g e
रं िना कॉलेि से वावपस आएगी वो कछ कहने की शरुआि करे गा. आझखर
                               ु          ु
कब िक ऐसे ही चलिा रहे गा. आि का ददन भानु को कछ ज्यादा ही
                                             ु
लंबा महसस हो रह आिा. उसका ददल भी इस तनणजय क बाद कछ ज्याद
        ू                                  े     ु
ही धडकने लगा था. उसने नोमजल होने की बहुि कोसशश की मगर ददल
कलांचे मारने से बाि नहीं आया. ज्यों ज्यों समलन की बेला पास आ रही
 ु
थी उसकी रफ़्िार िोर पकि रही थी. आि सालभर का मक प्यार िुबान
                                            ू
पाने वाला था.



अचानक भानु को अपने सपने टूटिे हुए से महसस हुए. रं िना क साथ
                                          ू             े
आि कफर उसकी दो सहे सलयााँ थी, और वो िानिा था वो और रं िना, इन
सबक होिे हुए कछ नहीं बोल पाएंगे. ददल में उठा ज्वार दम िोिने लगा
    े         ु
था. मगर प्यार भी उफनिे हुए िल प्रपाि की भांति रास्िा तनकाल ही
लेिा है. भानु िानिा था की रं िना की दोनों सहे सलयााँ अगले मोि से
दसरी िरफ चली िायेगी और उसक आगे
 ू                        े               रं िना अकली रहे गी. भानु से
                                                   े
अपनी साईककल तनकाली और िल्दी से पीछे वाली सिक से लंबा चक्कर
लगाकर उस सिक पर पहुाँच गया जिस पर रं िना िा रही थी . उसने
सामने से आिी रं िना को दे खा ! ददल अपनी रफ़्िार बद्द्सस्िर बढ़ाये िा
                                                        ु



खामोश लम्हे ...                   35 | P a g e
रहा था. भानु का ददल और ददमाग दोनों आि बगावि पर उिर आये थे.
भानु आि उन पर काबू नहीं कर पा रहा था. फासला तनरं िर कम होिा
िा रहा था. रं िना ने दे ख सलया था की भानु सामने से आ रहा है. वो
साईककल पर था. तनरं िर कम होिे फासले ने दोनों ददलों की धडकनों में
भचाल सा ददया था. अचानक भानु की निर दगाज क भाई पर पिी िो
 ू                                  ु    े
सामने से आ रहा था. भानु का मजस्िष्क िनिनाकर गया था. भानु नहीं
चाहिा था की दगाज क भाई को उनक प्यार का पिा चले और कफर इस
             ु    े          े
िरह बाि परी कॉलोनी में फ़ल िाये. लेककन आि उसने फसला कर सलया
         ू              ै                      ै
था की रं िना से मखातिब होकर रहे गा. फासला और कम हो गया था.
                 ु
अब वो रं िना को साफ साफ दे ख सकिा था. वो माि २० कदम की दरी
                                                        ु
पर थी. बहुि कम मौक समले उन दोनों को ये फासले कम करने क मगर
                   े                                    े
कभी बाि नहीं हो पाई. आि वो दोनों अपना संकोच िोि दे ना चाहिे थे।
दोनों अपना हाल-ए-ददल कह दे ना चाहिे थे।



रं िना ने अपनी ककिाबों को   कसकर ससने से लगा सलया था िहां उसका
ददल िफान मचाए हुआ था। उसक खुद क कदम आि उसक बस मे नहीं
       ू                      े      े               े
थे। ज्यों ज्यों फासला कम हो रहा था दोनों अपने ददलोददमाग से कट्रोल
                                                            ं



खामोश लम्हे ...                   36 | P a g e
खोिे िा रहे थे। सलभर से ससने मे दबे अरमान आि मचलकर िुबान पे
आना चाहिे थे। भानु रं िना क पास पहुाँचकर साइककल से उिरना चाहिा
                           े
था मगर उधर दगाज का भाई पास आ चका था।
              ु                  ु



“रं िना !”, भानु ने रं िना क पास से गुिरिे हुये धीरे से कपकपािी
                            े                            ं
आवाि मे कहा िाकक दगाज का भाई न सन सक।
                        ु           ु    े

“ऊ” , ‘रं िना ने मस्करािे हुये भानु की िरफ दे खकर कहा।
  ाँ              ु

आि वो भी भानु से बहुि कछ कहने क सलए उददग्न लग रही थी। दोनों
                       ु       े
एक दसरे क मन की बाि अपनी िुबां से कहने और कानो से सनने को
    ू    े                                         ु
लालातयि थे। ददल की बाि िब िबां पे आ िाए िो वो प्यार की पणज
                           ु                            ू
सहमति बन िािी है । ददल क सभी संशय खत्म हो िािे हैं और प्यार मे
                        े
प्रगाढिा आिी है।

आि इिने पास से उन दो िोिी आंखो ने एक दसरे मे िााँककर दे खा
                                      ू
था। मगर पलभर का वो समलन िुरंि िुदाई मे बदल गया था। भानु
अपनी उसी गति से रं िना क पास से गिर गया और उधर रं िना पीछे
                        े        ु




खामोश लम्हे ...                    37 | P a g e
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  • 2. एक इंसान जिसने नैतिकिा की झििक मे अपने पहले प्यार की आहुिी दे दी और िो उम्र भर उस संिाप को गले मे डाले, ररस्िों का फिज तनभािा चला गया। कभी मााँ-बाप का वात्सल्य,कभी पत्नी का प्यार िो कभी बच्चो की ममिा उसक पैरों मे े बेड़ियााँ बने रहे । मगर इन सबक बाविद वो े ू उसे कभी ना भला सका ु िो उसक ददल क ककसी कोने मे े े सससक रही थी। वक़्ि उसकी िोली मे ववयोग की ििप भरिा रहा…………. खामोश लम्हे ... खामोश लम्हे ... 2|Page
  • 3. “कह ाँ आस न है पहली महब्बत को भुल देन ु बहुत मैंने लहू थूक है घरद री बच ने में” - मुन्नवर राणा (मैंने अपना ये लघु उपन्यास मशहूर शायर मुन्नवर राणा साहब क इस े शे’र से प्रभाववि होकर सलखा है । िहां एक इंसान अपनी सामाजिक जिम्मेदाररयों का तनवाजहण करिे करिे अपने पहले प्यार को अिीि की गहराइयों मे ववलीन होिे दे खिा रहा। मगर उम्र क ढलिी सांि मेन े िाकर िब जिम्मेदाररयों से हल्की सी तनिाि समली िो दौि पिा उसे अिीि क अंधकप से बाहर तनकालने को.... े ू “विक्रम” (eMail- akrajput8373@gmail.com) (WebSite: www.guglwa.com) खामोश लम्हे ... 3|Page
  • 4. राि अपने परे यौवन पर थी। त्रिवेणी एक्सप्रेस अपने गंिव्य को छने ू ू सरपट दौि रही थी। सभी यािी अपनी अपनी बथज पे गहरी नींद मे सोये हुये थे मगर एक अधेि उम्र शख्स की आंखो मे नींद का नामोतनशान िक नहीं था। चेहरे पर उम्र ने अपने तनशान बना ददये थे। िीवन मे लगभग पचपन से ज्यादा बसंि दे ख चका तनढाल सा अपनी बथज पे बैठा ट्रे न की ु झखिकी से बाहर फली चााँदनी राि को दे ख रहा था। िहां दर दर िक ै ू ू फला सन्नाटा इंिन क शोर से तिलसमला कर कलबला रहा था। आसमान ै े ु ु मे चााँद िारे अपनी हल्की थपककयों से अल्हि चााँदनी को लोररयााँ दे रहे थे, िो अंधेरे को अपने आगोश मे ले बेपरवाह सी लेटी हुई थी। कभी-कभी कहीं दर ककसी त्रबिली क बल्ब की हल्की रोशनी पेिों क िरमटों से निर ू े े ु ु आिी थी। उसकी आंखे दर िक फली चााँदनी क उस पार अपने अिीि को ू ै े िलाश रही थी िो वक़्ि क लंबे अंिराल मे कहीं दफ़न हो चका था। वह े ु बार बार अिीि क उन आधे अधरे दृश्यों को िोिकर एक ससलससलेवार े ू श्ींखला बनाने की कोसशश करिा मगर वक़्ि क बहुि से दहस्से अपना े विूद खो चक थे। इसी उधेिबन मेँ न िाने कब उसक थक चक ु े ु े ु े मजस्िष्क को नींद ने अपने आगोश मे ले बाहर पसरी चााँदनी से प्रतिस्पधाज शरू करदी। ट्रे न लोगों को उनकी मंजिल िक पहुाँचाने क सलए ु े बेरहमी से पटररयों का सीना रोंदिी बेिहाशा भाग रही थी। खामोश लम्हे ... 4|Page
  • 5. बीस वर्षीय भानु अपने बिे भाई क साथ अपने कॉलेि दाझखले क सलए े े अनपगढ़ आया था। पहली बार गााँव से शहर मे पढ़ने आया भानु शहर की ु चहल-पहल से बहुि प्रभाववि हुआ । भानु क बिे भाई का अनपगढ़ मे े ु िबादला हो गया था िो उन्होने भानु को भी अपने पास पढ़ने बला सलया ु । बारहवीं िक गााँव मे पढ़ा भानु आगे की पढ़ाई क सलए शहर आया था । े हालांकक उसक भाई को सरकारी आवास समला था मगर वह भानु क े े कॉलेि से काफी दर होने क कारण, उसक बिे भाई वविय ने उसक ू े े े कॉलेि से माि एक ककलोमीटर दर रे लवे कॉलोनी मे, अपने एक दोस्ि क ू े खाली पिे क्वाटज र मे उसक रहने का प्रबंध कर ददया था । दर िक फले े ू ै रे लवे क दो मंजिला अपाटज मेंट्स में करीब सत्िर ब्लॉक थे और हर ब्लॉक े मे आठ पररवार रह सकिे थे। जिसमे चार ग्राउं डफ्लोर पे पाजक्िबद्ध बने थे और चार पहली मंजिल पे, जिनक दरवािे सीदढ़यों में एक दसरे क े ू े आमने सामने खुलिे थे । पहली मंजिल मे दो बैडरूम का मकान उस अकले क सलए काफी बिा था। पहले ददन भानु ने परे मकान का िायिा े े ू सलया , रसोई मे खाना बनाने क सलए िरूरी बिजन, स्टोव और कोयले की े अंगीठी िक का इंििाम था। भानु अपने घर मे मााँ क काम मे हाथ े बंटािे बंटािे खाना बनाना सीख गया था। रसोई क आगे बरामदा और े खामोश लम्हे ... 5|Page
  • 6. बरामदे क दसरे ससरे और मख्य दरवािे क दायें िरफ स्नानघर था े ू ु े जिसक नल से दटप दटप टपकिा पानी, टूट कर िलिा हुआ फव्वारा और े ू कोनों मे िमी काई से चचपक कॉकरोच, उसे सरकारी होने का प्रमाणपि दे े रहे थे। एक परा ददन भानु को उस मकान को रहने लायक बनाने मे ही लगाना ू पिा। शाम को बािार से दै तनक उपयोग की चीिें खरीद लाया। राि को दे र िक सभी िरूरी काम तनपटा कर सो गया। पहली राि अिनबी िगह नींद समय पे और ठीक से नहीं आिी । अगली सबह दे र से उठा , ु हालांकक आि रवववार था , इससलए कॉलेि की भी छट्टी थी। ु शयनकक्ष मे बनी झखिकी से सामने दर दर िक रे लवे लाइनों का िाल ू ू फला हुआ था। आस पास क क्वाट्जस मे रहने वाले बच्चे, रे लवे लाइन्स ै े और अपाटज मेंट्स बीच सामने की िरफ बने पाक मे खेल रहे थे िो भानु ज क अपाटज मेंट क ठीक सामने था। बच्चो क शोरगुल को सनकर भानु की े े े ु आाँख खल गई थी। अपाटज मेंट क दायें और बरगद का पराना पेि बरसों से ु े ु खामोश लम्हे ... 6|Page
  • 7. अपनी ववशाल शाखाओं पर ववसभन्न प्रिाति क अनेकों पक्षक्षयों का े आसशयाना बनाए हुआ था। उसकी काली पि चकी छाल उसक बढ़ा होने ु े ु की चगली खा रही थी। बरसाि क ददनों मे उसक चारों िरफ पानी भर ु े े िािा था , जिसमे कछ आवारा पशु कभी कभार िल क्रीडा करने आ ु धमकिे और उसी दौरान पेि क पक्षी उनकी पीठ पर सवार हो नौकायन े का लत्फ उठा लेिे थे। पाक मे कछ बिगज भी टहल रहे थे। परी जिंदगी ु ज ु ु ु ू भाग-दौि मे गिारने क बाद बढ़ापे मे बीमाररयााँ चैन से बैठने नहीं दे िी। ु े ु मगर कॉलोनी की कछ औरिें आराम से इकट्ठी बैठकर फसजि से बतिया ु ु रही थी। उनकी कानाफसी से लगिा था की वो कम से दे श या समाि ू िैसे गंभीर मद्दो पे िो त्रबलकल बाि नहीं कर रही थी। हफ्िे मे एक संडे ु ु ही िो समलिा है उनको, अगर उसे भी गंभीर मद्दो मे िाया कर ददया िो ु कफर क्या फायदा। बीच बीच मे उनक बच्चे चीखिे चचल्लािे उनक पास े े एक दसरे की सशकायि लेकर आ िािे मगर वो उन्हे एक और धककया ू कर कफर से अपनी कानाफसी ू मे लग िािी। अपाटज मेंटों क आगे पीछे े और मध्य बनी सडकों पे अखबार ,सब्िी, और दधवाले अपनी रोिमराज ू की भागदौि मे लगे थे। खामोश लम्हे ... 7|Page
  • 8. भानु ने दै तनक कक्रयायों से तनपट कर अपने सलए चाय बनाई और कप हाथ मे सलए रसोई और बाथरूम क मध्य बने बरामदे मे आकर खिा हो े गया। बरामदे मे पीछे की िरफ लोहे की चग्रल लगी थी जिसमे से पीछे का अपाटज मेंट परा निर आिा था। कोिहलवश वो निर आने वाले हर ू ू एक मकान क झखिकी दरवािों से मकान मे रहने वालों को दे ख रहा था। े एक दसरे अपाटज मेंट्स क बीचो-बीच सिक पे बच्चे खेल रहिे थे। ये सिक ू े े यािायाि क सलए नही थी इन्हे ससफ अपाटज मेंट्स मे रहने वाले इस्िेमाल े ज करिे थे। भानु सलए ये सब नया था। ये मकान, शहर यहााँ क लोग सब े कछ नया था। उसका मकान ऊपर “ए” अपाटज मेंट मे था और ठीक उसक ु े पीछे “बी” अपाटज मेंट था, उसक पीछे ‘सी’ और इस िरह दस अपाटज मेंट की े एक शंखला थी और कफर इसी िरह दाईं िरफ दस दस अपाटज मेंट की अन्य शखलाएाँ थी। नए लोग नया शहर उसक सलए सबकछ अिनबी था। ं े ु बीस वर्षीय भानु आकर्षजक कदकाठी का यवक था। उसक व्यजक्ित्व से ु े किई आभास नहीं होिा था की, ये एक ग्रामीण पररवेश मे पला-बढ़ा यवक है । भानु चाय की चसककयों क बीच जिज्ञासावश आस पास क ु ु े े निारे दे खने लगा। चाय खिम करने क बाद वो वहीं खिा रहा और े सोचिा रहा की ककिना फक है गााँव और शहर की िीवन शैली में । गााँव ज मे हम हर एक इंसान को भलीभााँति िानिे है, हर एक घर मे आना िाना खामोश लम्हे ... 8|Page
  • 9. रहिा है । अपने घर से ज्यादा वक़्ि िो गााँव मे घमकर और गााँव क ू े अन्य घरों मे गिरिा है । बहुि अपनापन है गााँव मे। इधर हर कोई अपने ु आप मे िी रहा है। यहााँ सब पक्षक्षयों क भांति अपने अपने घोंसलों मे पिे े रहिे हैं। ककसी को ककसी क सख-दख से कोई सरोकार नही। सामने क े ु ु े अपाटज मेंट मे बने मकानों की खली झखिकीयों और बालकोनी से घर मे ु रहने वाले लोग इधर उधर घमिे निर आ रहे थे। अचानक भानु को ु अहसास हुआ की कोई बार बार उसकी िरफ दे ख रहा है, उसने इसे अपना भ्रम समिा और ससर को िटक कर दसरी िरफ दे खने लगा। थोिे ू अंिराल क बाद उसका शक यकीन में बदल गया की दो आंखे अक्सर उसे े रह रह कर दे ख रही हैं। उसने दो चार बार उििी सी निर डालकर अपने ववश्वास को मिबि ककया। ू कछ दे र पश्चाि दहम्मि बटोर कर उसने इधर उधर से आश्वस्ि होने क ु े बाद निरें उन दो आंखो पे टीका दी िो काफी दे र से उसे घर ू रही थी। “बी” ब्लॉक मे दायें िरफ ग्राउं डफ्लोर क मकान क खुले दरवािे क े े े बीचोबीच, दोनों हाथ दरवािे की दीवारों पर दटकाये एक लिकी रह रहकर उसकी िरफ दे ख रही थी। गौरा रं ग, लंबा छरहरा बदन हल्क नारं गी रं ग े खामोश लम्हे ... 9|Page
  • 10. क सलवार सट मे उसका रूप-लावण्य ककसी को भी अपनी और आकवर्षजि े ू करने की कवि रखिा था। वह कछ पल इधर उधर दे खिी और कफर ू ु ककसी बहाने से भानु की िरफ त्रबना गदजन को ऊपर उठाए दे खने लगिी जिस से उसकी बिी बिी आंखे और भी खबसरि निर आने लगिी। ू ू हालांकक दोनों क दरम्यान करीब िीस मीटर का फासला था मगर कफर भी े एक दसरे क चेहरे को आसानी से पढ़ सकिे थे। भानु भी थोिे थोिे ू े अंिराल क बाद उसको दे खिा और कफर दसरी िरफ दे खने लगिा। े ू लगािार आंखे फािक ककसी लिकी को घरना उसक संस्कारों मे नहीं था। े ु े मगर एक िो उम्र और कफर सामने अल्हि यौवन से भरपर नवयौवना हो ू िो वववशिायेँ बढ़ िािी हैं। इस उम्र में आकर्षजण होना सहि बाि है। निरों का परस्पर समलन बद्दस्िर िारी था। मानव शरीर मे उम्र क इस ू े दौर मे बनने वाले हामोन्स क कारण व्यवहार िक मे अववश्वसनीय े बदलाव आिे हैं।उसीका निीिा था की दोनों धीरे धीरे एक दसरे से ू एक अंिान से आकर्षजण से निरों से परखिे लगे। दोनों ददल एक दसरे मे ू अपने सलए संभावनाएं िलाश रहे थे। भानु ने पहली बार ककसी लिकी की िरफ इिनी दे र और संिीदगी से दे खा था। िीवन मे पहली बार ऐसे दौर से गुिरिे दो यवा-ददल अपने अंदर क कौिूहल को दबाने की चेष्टा कर ु े रहे थे। धडकनों मे अनायास हुई बढ़ोिरी से नसों में खन का बहाव कछ ू ु खामोश लम्हे ... 10 | P a g e
  • 11. िेि हो गया। ददल बेकाबू हो सीने से बाहर तनकलने को मचल रहा था। ददमाग और ददल मे अपने अपने वचजस्व लिाई चल रही थी। अचानक बढ़ी इन हलचलों क सलए यवा ददलों का आकर्षजण जिम्मेदार था। दोनों े ु उम्र क एक खास दौर से गिर रहे थे जिसमे एक दसरे क प्रति झखंचाव े ु ू े उत्पन्न होना लािमी है । मगर यकायक सबकछ बदल गया। अचानक लिकी ने नाक ससकोडकर ु बरा सा मह बनाया और भानु को चचढ़ाकर घर क अंदर चली गई। भानु ु ु े को िैसे ककसी ने िमाचा मार ददया हो उसे एक पल को सााँप सा संघ ू गया। हड्बिा कर वो िरंि वहााँ से अलग हट गया और कमरे क अंदर ु े िाकर अपने बेकाबू होिे ददल की धडकनों को काबू मे करने लगा। वो डर गया था, उसे अपनी हरकि मे गुस्सा आ रहा था। क्यों आि उसने ऐसी असभ्य हरकि की ? वो सोचने लगा अगर कहीं लिकी अपने घरवालों से उसकी सशकायि करदे िो क्या होगा ? अिनबी शहर मे उसे कोई िानिा भी िो नहीं। उसक ददमाग मे अनेकों सवाल उठ रहे थे। वो े सोचने लगा की अब क्या ककया िाए जिस से इस गलिी को सधारा िा ु सक। अचानक दरवािे पे हुई दस्िक से वो बौखला गया और उसक परे े े ू शरीर मे ससहरन सी दौि गई। उसने चौंक कर दरवािे की िरफ दे खा। खामोश लम्हे ... 11 | P a g e
  • 12. कछ दे र सोचिा रहा और ु अंि में मन मे ढे रों संशय सलए धिकिे ददल से वो दरवािे की िरफ बढ़ गया। दरवािा खुला सामने एक वयजक्ि हाथ मे एक सलफाफा सलए खिा था। “आप रमेश बाबू क पररचचि हैं ?“ आगंिक ने पछा े ु ू “िी...िी हााँ , कदहए “ भानु ने हकलािे हुये िवाब ददया । रमेश भानु के भाई वविय क दोस्ि का नाम था जिसको रे लवे की िरफ से ये क्वाटज र े आवंदटि हुआ था। “उन्होने ये खि आपको दे ने क ददया था।“ उसने सलफाफा भानु की िरफ े बढ़ा ददया। “हम लोग भी यहीं रहिे हैं“ आगंिक ने सामने क दरवािे की िरफ इशारा ु े करिे हुये कहा। “ककसी चीि की िरूरि हो िो बेदहचक कह दे ना” आगंिक ने कहा और ु सामने का दरवािा खोलकर घर क अंदर चला गया । े भानु ने राहि की सांस ली, दरवािा बंद ककया और अंदर आकर खि पढ़ने लगा। खि मे त्रबिली पानी से संबजन्धि िरूरी दहदायिों क ससवा े खामोश लम्हे ... 12 | P a g e
  • 13. सामने क मकान मे रहने वाले शमाजिी से ककसी भी िरह की मदद क े े सलए समलिे रहने को सलखा था । रमेश का वपछले महीने कछ ददनों क ु े सलए पास क शहर मे ट्रान्सफर हो गया था । ददनभर े भानु उस लिकी क बारे मे सोच सोच कर बैचन होिा रहा , वह हर आहट पर चौक िािा। े े िैसे िैसे करक ददन त्रबिा, भानु ददनभर उस झखिकी की िरफ िािे वक़्ि े अपने आप को छपािा रहा और अगली दोपहर कॉलेि क सलए तनकलने ु े से पहले सहसा उसकी निर पीछे क उस दरवािे पे पिी । दरवािा बंद े दे खकर उसने राहि की सांस ली। मकान से उसक कॉलेि का रास्िा े कॉलेि का पहला ददन माि ओपचाररकिाओं भरा रहा , पढ़ाई क नाम पे े ससफ टाइम-टे बल समला। उसक कॉलेि का समय दोपहर एक से पााँच बिे ज े िक था। ददनभर रह रहकर उस लिकी का ख्याल भी उसकी बैचनी े बढ़ािा रहा। शाम को मकान में आिे ही उस लिकी का ख्याल उसे कफर बैचन करने े लगा। वो सोचिा रहा की आझखर वो ककस बाि पे नाराि हो गई ? क्यों खामोश लम्हे ... 13 | P a g e
  • 14. उसने उसकी िरफ बरा सा मह बनाया ? क्या उसे मेरा उसकी िरफ ु ु दे खना अच्छा नहीं लगा ? मगर दे ख िो वो रही थी मि। रसोई मे आिे ु े िािे भानु उििी सी निर उस दरवािे पे भी डाल रहा था िो बंद पिा था । त्रबना ककसी काम क रसोई मे चक्कर लगािे लगािे अचानक वह दठठक े कर रुक गया। दरवािा खुला पिा था, मगर वहााँ कोई नहीं था। भानु की निरे इधर उधर कछ िलाशने लगी। सहमी सी निरों से वो खुले दरवािे ु को दे ख रहा था। कफर अचानक उसकी निर दरवािे क पास दाईं िरफ े बने टीन की शैडनमा िोंपिी पर गई जिसमे एक गाय बंधी थी, और वो ु लिकी उस गाय का दध तनकाल रही थी। भानु कछ दे र दे खिा रहा। ू ु हालांकक लिकी की पीठ उसको िरफ थी, इससलए वो थोिा तनजश्चंि था। साथ साथ वो सामने क बाकी अपाटज मेंट की झखड्ककयों पर उििी सी े तनगाह डालकर तनजश्चंि होना चाह रहा था की कहीं कोई उसकी इस हरकि को दे ख िो नहीं रहा। चहुं और से तनजश्चंििा का माहौल समला िो निरे कफर से उस लिकी पे िाकर ठहर गई िो अभी िक गाय का दध तनकालने मे व्यस्ि थी। यकायक लिकी उठी और दध का ू ू बरिन हाथ मे ले ससर िकाये अपने दरवािे की िरफ बढ़ी। भानु की ु निरे उसक चेहरे पे िमी थी। वह सहमा सहमा उसे दरवािे की िरफ े बढ़िे हुये दे खिा रहा। वो आि अपने चेहरे क भावों क माध्यम से उस से े े खामोश लम्हे ... 14 | P a g e
  • 15. कल की गुस्िाखी क सलए क्षमा मांगना चाहिा था। लिकी दरवािे मे े घसी और पलटकर दरवािा बंद करिे हुये एक निर भानु की झखिकी की ु िरफ दे खा। निरों मे वही अिनबी बिाजव िो पहली मलाक़ाि मे था। ु भानु उसक इस िरह अचानक दे खने से सकपका गया और उसकी पवज े ू तनयोजिि योिना धरी की धरी रह गई। लिकी को िैसे पवाजभास हो गया ू था की भानु उसे दे ख रहा है । निरे समली ! भानु की धिकने अपनी लय िाल भल गई थी । वह सन्न रह गया था,उसने सोचा भी नहीं था को वो ू अचानक उसकी िरफ दे खेगी। ससफ दो पल ! और कफर लिकी ने ज तनववजकार भाव से दरवािा बंद कर ददया। भानु की निरे उसका पीछा करिे करिे बंद होिे दरवािे पे िाकर चचपक गई। अंि मे उसने चैन की एक ठं डी सांस ली और वावपस कमरे मे आकर धिकिे ददल को काबू मे करने की कोसशश करने लगा। इन दो हादसों ने उसक यवा ददल मे े ु काफी उथल-पथल मचा दी थी। उसक ददमाग ु े मे अनेकों सवाल उठ रहे थे और उसका ददल उनका िवाब भी दे रहा था मगर ससलससला अंिहीन था। एक नया एहसास उसे अिीब से रोमांच की अनभति से सरोबर ककए ु ू िा रहा था। भानु को अिीब सी कशमकश महसस हो रही थी। बाविूद ू इसक बढ़िी हुई बैचनी भी उसक ददल को सकन पहुंचाने मे सहायक ससद्ध े े े ु ू हो रही थी। ये सब अच्छा भी लग रहा था। ददमाग मे ववचारों की बाढ़ सी खामोश लम्हे ... 15 | P a g e
  • 16. आ गई थी। कभी गंभीर िो कभी मस्करािे भावों वाले ववचार मंथन की ु चरम सीमा को छ रहे थे। खद क ववचार खद से ही आपस मे उलि कर ु ु े ु लििे िगििे रहे । ददवाने अक्सर ऐसे दौर से गिरिे हैं। खद से बािें ु ु करिे और उमंगों क दहचकोले खािे कब उसकी आाँख लग गई पिा ही े नहीं चला। अगली सबह िल्दी िल्दी नाश्िा खिम कर वो चाय का कप हाथ मे ले ु अपने चचरपररचचि स्थान पे खिा हो गया। एक दो बार उििी सी निर उस दरवािे पे डालिा हुआ चाय की चसककयों क बीच आस-पास क ु े े माहौल का िायिा लेने लगा। लिकी क चेहरे क कल क भाव े े े संिोर्षिनक थे। वो सायद अब गस्सा नहीं है , या हो सकिा है ये िफान ु ू से पहले की खामोशी हो। इस कशमकश में उसकी उलिने और बढ़िी िा रही थी और साथ ही इंििार की इंिहा मे उसकी मनोदशा भी कोई खास अच्छी नहीं कही िा सकिी थी। अचानक दरवािा खुला! लिकी ने िट से ऊपर दे खा..., निरें समली..., भानु स्िब्ध रह गया! एक पल को िैसे सब कछ थम सा गया। मगर दसरे ही पल लिकी ने बाहर से दरवािा ु ू बंद ककया और सीने से ककिाबें चचपकाए सिक पे गदज न िकाये हुये एक ु खामोश लम्हे ... 16 | P a g e
  • 17. और िािे हुये दर तनकल गई । भानु दे र िक उसे िािे हुये दे खिा रहा । ू भानु उसक ऐसे अचानक दे खने से थोिा सहम गया रहा था मगर ददल े उसक डर पे हावी हो रहा था। वपछले दो चार ददनों मे उसने जििने भी े अनभव ककए उनका एहसास उसक सलए त्रबलकल नया था। वो चली गई ु े ु मगर भानु क सलए न सलिा सकने वाली पहे ली छोि गई जिसे वो े ु सलिाने मे लगा था। ु दोपहर अपने कॉलेि क सलए िािे हुये परे रास्िे वो उसी क बारे मे े ू े सोचिा रहा । कॉलेि पहुाँचकर भी उसका मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था । िैसे िैसे कॉलेि खिम हुआ और उसको िो िैसे पंख लग गए। िल्दी से अपने क्वाटज र मे पहुंचा और झखिकी से बाहर िााँककर उसकी मोिदगी ू पिा की। मगर तनराशा ही हाथ लगी । दरवािा बंद था । एक क बाद े एक कई चक्कर लगाने क बाद भी िब दरवािे पे कोई हलचल नई हुई े िो भानु भारी मन से कमरे मेँ िाकर लेट गया । खामोश लम्हे ... 17 | P a g e
  • 18. लेककन उसका ददल िो कहीं और था , बैचनी से करवटें बदलिा रहा, और े अंि मे झखिकी क पास आकर खिा हो गया। परे मकान मे वही एक े ू िगह थी िहां उसकी बैचनी का हल छपा था। वहााँ खिे होकर उसे भख े ु ू प्यास िक का एहसास नहीं होिा था। अंधा चाहे दो आंखे। कफर आझखरकार दीदार की घिी आ ही गई। दरवािा खुला... भानु संभला..... और दरवािे की िरफ उििी सी निर डालकर पिा करने की कोसशश करने लगा को कौन है । मराद परी हुई। लिकी हाथ मे बाल्टी थामे बाहर ु ू आई ... और सीधी दाईं और टीन क शैड मे बंधी गाय का दध तनकालने े ू लगी । भानु आस पास क मकानों की झखिककयों पे सरसरी सी निर े डालकर कनझखयों से उस लिकी को भी दे खे िा रहा था। भानु को उसे दे खने की ललक सी लग गई थी, िब िक उसको दे ख नहीं लेिा उसे कछ खाली खाली सा लगने लगिा। सायद प्यार की कोंपले फटने लगी ु ू थी। लिकी अपनी परी िल्लीनिा से अपने काम मे मग्न थी। कछ समय ू ु पश्चाि लिकी उठी... घमी... और दध की बाल्टी को दोनों हाथो से दोनों ू ू घटनो पे ु दटका िट से ऊपर भानु की िरफ सशकायि भरे लहिे मे ऐसे दे खने लगी िैसे कह रही ”ददनभर घरने की ससवा कोई काम नहीं क्या?”। ू भानु िेंप गया, और दसरी िरफ दे खने लगा। लिकी उस िोपिी में अंदर ू की िरफ ऐसे खिी थी की वहााँ से उसे भानु क ससवा कोई और नहीं दे ख े खामोश लम्हे ... 18 | P a g e
  • 19. सकिा था, मगर भानु िहां खिा था वो िगह उिनी सरक्षक्षि नहीं थी की ु त्रबना ककसी की निरों मे आए उसे तनजश्चंि होकर तनहार सक। मगर कफर े भी वो परी सावधानी क साथ उसकी िरफ दे ख लेिा था, िहां वो लिकी ू े उसे अपलक घरे िा रही थी , िैसे कछ तनणजय ले रही हो। उसक चेहरे क ू ु े े भावों से लग रह था िैसे कहना चाहिी हो की मेरा पीछा छोि दो। आझखरकार भानु ने दहम्मि करक उसकी िरफ दे खा .... दे खिा रहा..... े त्रबना पलक िपकाए ...... उसकी आंखो मे दे खने क बाद वो दीन-दतनया ें े ु को भलने लगा। अब उसे ककसी क दे खे िाने का त्रबलकल डर नहीं था। ू े ु लिकी अभी िक उसी अंदाि मे, त्रबना कोई भाव बदले भानु को घर रही ू थी । करीब पााँच समतनट क इस रुक हुये वक़्ि को िब िटका सा लगा े े िब लिकी ने कफर से मह त्रबचकाया और अपने दरवािे की िरफ बढ़ गई ु । भानु घबराया हुआ उसको िािे दे खिा रहा और कफर लिकी ने त्रबना घमे दरवािा बंद कर ददया। भानु को उम्मीद थी की वो अंदर िािे वक़्ि ू एक बार िरूर पलट कर दे खेगी। दीवाने अक्सर ऐसी उम्मीदों क पल बांध े ु लेिे हैं और कफर उनक टूटने पर आाँसू बहाने लगिे हैं। मगर वो ऐसे बांध े बनाने और कफर उसक टूटने में भी एक रूहानी एहसास िलाश ही लेिे हैं। े खामोश लम्हे ... 19 | P a g e
  • 20. कछ ददनों ससलससला यंू ही चलिा रहा। भानु उहापोह मे फसा हुआ था। ु ं भानु बाथरूम की झखिकी क टूटे हुये कााँच से बने छे द से आाँख सटाकर ये े पिा करिा की मेरे झखिकी पे न होनेपर भी क्या वो उसक खिे होने की े िगह की िरफ दे खिी है ? भानु की सोच सही तनकली । वो लिकी अक्सर उििी सी निर उस झखिकी पर डालिी और भानु को वहााँ न पाकर दसरी और दे खने लगिी। ये ससलससला बार बार दोहराया िािा। ू मगर वो छपे हुये भानु को नहीं दे ख पािी थी। भानु उसकी इस हरकि पे ु मस्कराये त्रबना न रहा , अब उसे यकीन हो गया की वो अकला ही बैचन ु े े नहीं है , हालाि उस िरफ भी बैचनी भरे है । े अब भानु पहले बाथरूम के होल से दे खिा की वो दरवािे मे खिी है या नहीं, अगर वो खिी होिी िो वह भी ककसी बहाने िाकर सामने खिा हो िािा । कछ दे र इधर उधर ु दे खने का नाटक करिे हुये वो एक आध तनगाह दरवािे पर भी डाल लेिा, िहां वो लिकी भी उसी का अनसरण कर रही होिी थी । चारों ु िरफ से आश्वस्ि होने क बाद भानु ने निरे लिकी क चेहरे पे टीका दी े े । लिकी अनवरि उसे ही दे खे िा रही थी । भावशन्य..ककसी निीिे क ू े इंििार मे ..... दोनो सायद मिबर हो गए थे। ददल और ददमाग की ू रस्साकसी में ददल का पलिा तनरं िर भरी होिा िा रहा था। बेबस। दो यवा अपनी िवााँ उमगों क भंवर मे बहे िा रहे थे। अचानक लिकी की ु े खामोश लम्हे ... 20 | P a g e
  • 21. हल्की सी मस्कराई... िैसे उसने हचथयार डाल ददये हों और कह रही हो ु िम िीिे और में हारी। भानु की िंद्रा टूटी। वो अपने आप को संभालिा ु हुआ उसकी मस्कराहट का िवाब िलाश ही रहा था की, लिकी पलटी ु और िािे िािे एक और मस्कराहट से भानु को दववधा में डाल गई। ु ु दरवािा अब भी खुला हुआ था। भानु क परे शरीर मे रोमांच की लहरें सी े ू उठने लगी , िीवन क पहले इिहार-ए-इश्क का एहसास उसक ददल में े े दहचकोले मार रहा था । वो अपने कमरे मे आया और एक ठं डी लंबी सांस खींचकर ऐसे त्रबस्िर पर लेट गया िैसे कोई योद्धा रणभसम से ववियश्ी ू पाकर लौटा हो। वो लेटे लेटे छि की िरफ दे खकर मस्कराने लगा । आि ु उसे अपने आस पास का माहौल कछ ज्यादा ही बदला बदला सा लग रहा ु था । एक अिीब सा संगीि उसे अपने चारों और सनाई दे रहा था। प्यार ु का खमार उसक चेहरे पे साफ िलक रहा था। ु े दो ददलों मे एक मक सहमिी बन गई थी। ू अब दोनों अक्सर ऐसे ही एक दसरे को पलों िाकिे रहिे। हल्की मस्कराहटें और कछ छपे हुये ू ु ु ु इशारे ही इनकी भार्षा थे। दोनों दतनयााँ से तछप तछपाकर, ददन मे कम से ु कम एक दो बार िो अवश्य ही आंखो ही आाँखों मे इिहार-ए-मोहब्बि कर खामोश लम्हे ... 21 | P a g e
  • 22. लेिे। दोनों एक दसरे को िब िक दे ख नहीं लेिे िब िक बढ़ी हुई ू आिरिा ददल मे सलए इधर उधर घमिे रहिे। बस कछ पलों का कछ ु ू ु ु अंिान सा मोह उन दोनों क दरम्यान पनपने लगा था , सायद उसे ही े प्रेम या प्यार का नाम दे िे हैं। प्यार होने की कोई ठोस विह नहीं होिी और ना ही वक़्ि तनधाजरण होिा है । ये कहना भी मजश्कल है की कब ु और कोनसे पल हुआ ,क्योंकक प्यार मे वक़्ि गवाह नहीं होिा। अंिहीन ससलससलों और मन क पल पल बदलिे भावों से प्यार का अविरण होिा े है । कभी कभार दरवािा दे र िक न खुलने से परे शान भानु अपना दरवािा खोलकर सीदढ़यों मे खिा हो िािा । अपने पिोसी पररवार से उसके सम्बंध अच्छे हो रहे थे। पररवार क मझखया का नाम सशवचरण था िो े ु उत्िरपरदे श का रहने वाला था । उसक पररवार मे दो बेटे और दो बेदटयााँ े थी । दोनों बिे बेटे अपना कोई छोटा मोटा काम-धंधा करिे थे और बिी बेटी दगाज घर मे मााँ क कम मे हाथ बटािी थी िबकक छोटी लिकी सरोि ु े स्कल में पढ़िी थी । संयोगवश दगाज की मााँ और भानु का गोि एक ही ू ु था एससलए दगाज की मााँ भानु को भाई िैसा मानिी थी मगर दगाज अपने ु ु खामोश लम्हे ... 22 | P a g e
  • 23. हमउम्र भानु को मामा का सम्बोधन नहीं दे िी थी । अचानक दगाज बाहर ु आई और छि की िरफ िाने वाली सीदढ़यों पे खिी ही गई । भानु ठीक उसक उसक सामने नीचे की िरफ िाने वाली सीदढ़यों मे खिा सामने दर े े ू दर िक फले रे लवे पटररयों क िाल को दे ख रहा था । ू ै े “आि आप कॉलेि नहीं गए” , दगाज ने धीरे से पछा । ु ू “नहीं, आि छट्टी है ।” ु “खाना बना सलया ?” , दगाज ने थोिी दे र रुककर कफर सवाल ककया। ु “हााँ, खा भी सलया। ” दोनों कछ समय चपचाप खिे रहे । दगाज क हाथों मे कछ गीले कपिे थे , ु ु ु े ु उनको वो सायद छि पे सखाने ले िा रही थी। ु भानु सीदढ़यों में खिा िरोखेदार दीवार से सामने सिक पर खेलिे बच्चों को दे ख रहा था। दगाज ु भी कभी भानु िो कभी सामने क बच्चों को दे ख रही थी। वो बाि आगे े बढ़ाने क सलए उत्सक निर आ रही थी। े ु “उसका नाम रं िना है ”, अचानक दगाज ने कहा , और भानु क चेहरे क ु े े भाव पढ़ने की कोसशश करने लगी । खामोश लम्हे ... 23 | P a g e
  • 24. “ककसका ?” , भानु ने लापरवाही से त्रबना दगाज की िरफ दे खिे हुये पछा ु ू । “वही.... िो पीछे “बी” ब्लॉक मे नीचे वाले क्वाटज र मे रहिी है ”, दगाज ने ु भानु की आखों मे िााँकिे हुये कहा। “क...कौन...”, भानु चौंकां और पलटकर कर दगाज की िरफ दे खने लगा। ु ”वो जिनक एक गाय भी है ”, दगाज ने बाि परी की और भानु की आंखो मे े ु ू दे खने लगी। भानु उसका िवाब सनकर सकपका गया, और हकलािे हुये बोला ु ,”म...मिे िो नहीं पिा, क...कौन रं िना ?, में .....में िो नहीं िानिा।‘ ु लेककन मन ही मन वो “रं िना” क बारे मे िानने की जिज्ञासा पाले हुये े था मगर संकोचवश कछ पछ न सका। ु ू “वो आपकी िरफ दे खिी रहिी है ना ?”, दगाज ने प्रश्नवाचक तनगाहों से ु भानु की िरफ दे खा, ”मैंने दे खा है उसको ऐसा करिे”, दगाज ने कछ दे र ु ु रुककर कहा। भानु की िुबान िालु से चचपक गई । खामोश लम्हे ... 24 | P a g e
  • 25. “वो बस स्टैंड क पास िो मदहला कॉलेि है उसमे पढ़िी है , उसक पापा े े रे लवे में हैं। ये लोग पंिाबी है। ” दगाज ने ससलससलेवार सचना से अवगि ु ू करािे हुये बाि खत्म की और प्रतिकक्रया क सलए भानु का चेहरा िाकने े लगी। “अच्छा”, भानु ने ऐसे कहा िैसे उसे इसमे कोई खास ददलचस्पी नहीं है । मगर दगाज उसक चेहरे क बदलिे भावों को भाप गई थी, वो भानु को ु े े सिबद्ध करक चली गई। े दगाज क इस रहस्योद्घाटन से भानु क चेहरे पे पसीने की बाँदे छलक आई ु े े ु थी। उसको लगा िैसे परी कॉलोनी को ये बाि पिा चल गई है और अब ू सभी उसकी िरफ दे ख उसपे हं स रहे हैं । दगाज और भानु क क्वाटज र साथ साथ थे , उनक मख्य द्वार एक दसरे क ु े े ु ू े आमने सामने थे। अंदर से सभी मकान एक ही ड़डिाईन से बने हुये थे। ऊपर िाने क सलए सीदढ़यााँ कॉमन थी। दगाज ने अपने पीछे वाली झखिकी े ु से रं िना को भानु क क्वाटज र की िरफ दे खिे हुये दे ख सलया था। े खामोश लम्हे ... 25 | P a g e
  • 26. ऊपर से मााँ की आवाि सन दगाज िल्दी छि की सीदढ़यााँ चढ़ने लगी और ु ु उसक पीछे भानु लटा पीटा सा अपने दरवािे े ू की िरफ बढ़ गया । उसने सपने में भी नहीं सोचा था की, ककसी को उनक बारे मे िरा सा भी इल्म े होगा । एक भय सा लग रहा था की , कहीं उस लिकी क पररवार क े े ककसी सदस्य को पिा चल गया िो ककिना हाँ गामा होगा । िब कभी खाना बनाने का मड नही होिा था िो भानु शाम को अक्सर ू बाहर पास क ककसी होटल में खाने क सलए चला िािा था । आि वैसे े े भी दगाज ने उसको ु अिीब उलिन में डाल ददया था । खाना खाने क बाद े वो इसी चचंिा में खोया हुआ वावपस अपने मकान मे आ रहा था । कॉलोनी में दाझखल होने क बाद वो अपने अपाटज मेंट क सामने वाली सिक े े से गिर रहा था की सामने से आिी “रं िना” को दे ख चौंक पिा । दोनों ु ने एक दसरे को दे खा। तनगाहें टकराई। शरीर मे एक ू मीठी-सी ससहरन दौिने लगी। तनस्िब्ध ! तन:शब्द ! दो ददलों में अचानक धडकनों का एक ज्वार ठाठे मारने लगा । उद्वेसलि निरें समली और उलिकर रह गई । एक दसरे क बगल से गुिरिे हुये एक दसरे क ददल की धडकनों को ू े ू े खामोश लम्हे ... 26 | P a g e
  • 27. साफ महसस कर रहे थे। िबान अपना कोई हुनर नहीं ददखा पाई। ू ु सब कछ इिना िल्दी हो गया की िब दोनों संभले िो दर िा चक थे। ु ू ु े राि मे भानु भववष्य क सपने बनिे बनिे सो गया। वो रािभर उसक े ु ु े ख्यालों मे खोया रहा। रं िना को लेकर उसने बहुि से ख्वाब बन सलए थे। ु वह रं िना को लेकर एक कसशश सी महसस करने लगिा। रं िना का ू चेहरा हर वक़्ि उसे अपने इदज -चगदज घमिा हुआ सा महसस होिा था। ू ू सबह दरवािे पर होने वाली दस्िक ने उठा ददया। दे खा। उसने दरवािा ु खोला िो सामने दगाज को खिे पाया। ऊपर छि पे िाने वाली सीदढ़यों पे ु दगाज खिी थी। उसने इशारे से भानु को अपने पास बलाया। भानु नीचे ु ु िाने वाली सीदढ़यों मे िाकर खिा हो गया। और प्रश्नवाचक तनगाहों से दगाज की िरफ दे खने लगा। ु “रं िना ने लैटर मांगा है ”, दगाज ने धीरे से फसफसािे हुये कहा। ु ु ु “ऊ ” भानु को िैसे ककसी ने नंगा होने क सलए कह ददया हो। ं े खामोश लम्हे ... 27 | P a g e
  • 28. “ककसने ?” , चौंक कर ववस्मय से दगाज की िरफ दे खा । ु “उसी ने “ दगाज ने मस्करािे हुये गदज न से “रं िना” क घर की िरफ इशारा ु ु े करक कहा। े भानु क पास कहने को शब्द नहीं थे। झखससयाकर गदज न नीचे िकाली। े ु “मिे दे दे ना मे उसको दे दाँ गी” ु ू “.....” ककसी क कदमों क आहट से दगाज घर क अंदर चली गई ,भानु भी अपने े े ु े कमरे मे आ गया। वो सबसे ज्यादा वक़्ि रसोई और कमरे क बीच आने े िाने मे ही गुिारिा था,क्योंकक इसी आने िाने क दरम्यान वो एक उििी े सी निर उसक घर क दरवािे पे भी डाल दे िा था। चचिचोर क समलने े े े पर वो झखिकी पे आ िािा, और कफर दोनों लोगों की निरों से निरें बचाकर निरें समला लेिे। रं िना की िरफ से अब प्यार का मक आमंिण ू समलने लगा था। चचढ़ाने और गुस्सा करने की िगह पर अब हल्की मस्कान ने डेरा िमा सलया था। उसक बाद िो ये दो दीवाने आाँखों ही ु े आंखो मे एक दसरे क हो गए थे, बहुि से सपने पाल सलए िो बीििे ू े वक़्ि क साथ िवां होिे गए। े खामोश लम्हे ... 28 | P a g e
  • 29. भानु का ददल करिा था की रं िना से ढे र सारी बािे करे मगर उसका शसमजला और संकोची स्वभाव उसक आिे आ िािा था। एक ददन उसने े दहम्मि करक खि सलखने की सोची। उसे ये भी डर था की कहीं वो खि े ककसी क हाथ ना लग िाए। लेककन प्यार पे भला ककसका िोर चलिा है। े वो सलखने बैठ गया। त्रबना ककसी सम्बोधन एक छोटी प्रेम-कवविा सलख दी । अंि मे अपना नाम िक नहीं सलखा। दसरे ददन चपक से दगाज को दे ू ु े ु ददया। काफी ददन बीि िाने पर मौका पाकर भानु ने दगाज को रं िना से ु भी पि लाने को कहा। दगाज ने उसे भरोसा ददलाया की वो रं िना से भी ु पि लाकर दे गी । ददन बीििे गए मगर रं िना का पि नहीं समला। दगाज ु का एक ही िवाब समलिा की ,”वो सलखने को कह रही थी”। वक्ि बीििा गया और दोनों अपने प्रेम को परवान चढ़ािे रहे । ससफ आाँखों मे ही ज कसमें वादों की रश्म अदायगी होिी रही। कभी सामना होने पर दोनों अंिान बन िािे और धिकिे ददलों को संभालने में ही वक़्ि तनकल िािा। दोनों बहुि कछ कहना चाहिे मगर ददल की धिकने िुबान का ु गला दबा दे िी। भानु नहाने क बाद बतनयान और हाफ-पैंट पहले अपने सलए नाश्िा बना े रहा था। दरवािे पे हल्की ठक ठक की आवाि सन भानु ने दरवािा ु खामोश लम्हे ... 29 | P a g e
  • 30. खोला िो सामने दगाज और रं िना को दे ख चौंक पिा। धिकने बढ़ गई। ु ददल मचलकर हलक मे आ फसा। ाँ आंखे िपकाना िक भल गया और जिस चेहरे को दे खे त्रबना उिावला सा ू रहिा था वो इस वक़्ि उसक सामने था। वो ही बिी बिी आंखेँ इस वक़्ि े माि एक कदम दर से उसे दे ख रही थी िो आि से पहले करीब िीस से ू चालीस कदम दर होिी थी। दोनों इस वक्ि एक दसरे की आाँखों मे डूब ू ू ददल क दरीचों िक पहुाँचने का िगाि लगा रहे थे। रं िना ठीक दरवािे े ु क सामने और दगाज उसक पीछे सीदढ़यों मे खिी थी। भानु सामने खिी े ु े रं िना की गरम सााँसो को अपने चेहरे पे अनभव कर रहा था। भानु खि ु क इंििार मे डूबा भानु आि रं िना को सामने पाकर बि बन गया था। े ु दोनों िरफ गहन खामोश मगर ददलों क िार िंकि हो उठे । पररजस्थतियां े अनकल थी मगर ददल बेकाबू हुआ िा रहा था, जिससे आत्मववश्वास की ु ू डोर लगािार हाथ से छट रही थी। अक्सर ख़यालों मे डींगे हााँकने वाली ू िुबान िालु से िाकर चचपक गई थी। भानु की वो सारी योिनाएाँ पलायन कर चकी थी िो उसने ख़यालों क पररसर मे बैठकर बनाई थी, की िब ु े कभी सामना होगा िो वो ये कहे गी और प्रत्यिर में ऐसा कहुगा...आदद ु इत्यादद। रं िना भानु की उन आंखो को दे ख रही थी िो उसे परे शान ककए हुये थी। रं िना की निरे कभी भानु क चेहरे िो कभी भानु क बाएाँ े े खामोश लम्हे ... 30 | P a g e
  • 31. बािू पे बने उगिे सरि क उस बिे से टै टू को दे ख रही थी जिसक बीचों ू े े बीच “भान” सलखा था। दोनों सहे सलयााँ आि सि धि कर कहीं िाने की ु िैयारी मे थी। रं िना क हाथो मे पिा-सामग्री रखी हुई एक थाली और े ू दगाज पानी का कलश सलए हुये थी। ु काफी दे र दगाज उन दोनों को दे खिी रही मगर िब दे खा की कोई कछ ु ु बोल नहीं रहा िो उसने रं िना क कधे पे हाथ रखकर भानु की िरफ े ं दे खिे हुए कहा। “अब बाि करलो दोनों”, दगाज ने िैसे अपनी जिम्मेदारी तनभािे हुये कहा। ु “...ब...बाि...! क्या बाि”, भानु ने शरमािे हुये कहा और अपने आपको संभालने लगा। रं िना खामोश मगर त्रबना पलक िपकाए उसे दे खे िा रही थी, जिसने उसकी रािों की नींद उिा दी थी। दोनों आि आमने सामने खिे होकर भी वही आाँखों की भार्षा ही बोल रहे थे। दोनों अपने को उसी भार्षा मे सहि महसस कर रहे थे। उन्हे िुबां पे भरोसा नहीं था। ू दगाज एक दसरे को ु ू दे खे िा रही थी। “आि कहीं िा रहे हो”, भानु ने रं िना क बिाय दगाज से पछा। े ु ू खामोश लम्हे ... 31 | P a g e
  • 32. रं िना अभी भी भानु क चेहरे और उसक नाम क अनरूप उसक बािू पे े े े ु े गुदे सरि क बीच मे सलखे “भान” को दे खे रही थी। ू े ु “हााँ, आि रामनवमी है , इससलए सभी मंददर िा रही हैं” बाकी लोग नीचे हमारा इंििार कर रहे हैं। आप लोगों को िो बािें करनी है िल्दी िल्दी करलों नहीं िो कोई आ िाएगा।“, दगाज ने िल्दी िल्दी फसफसाकर कहा। ु ु ु मगर िभी ककसी ने नीचे से दगाज को पकारा िो वो घबराकर रं िना का ु ु हाथ पकि नीचे िाने लगी। बि बनी रं िना अभी भी बार बार पीछे ू मिकर भानु को दे ख रही थी। उनक िाने क बाद भानु दे र िक उन्हे ु े े दे खिा रहा। वो आि भी कछ नहीं बोल पाया। ु वक़्ि बीििा गया। क्वाटज र क आवंटन की अवचध खत्म होने पर भानु को े दसरा मकान खोिना पिा। जिस रास्िे से भानु कॉलेि िािा था उसी ू रास्िे मे एक मकान समल गया। सयोंग से रं िना भी उसी रास्िे से कॉलेि िािी थी। रं िना और भानु दोनों क कॉलेि एक ही रास्िे पर थे, े मगर समय अलग अलग था। भानु िब कॉलेि िा रहा होिा िो उसी दरसमयााँ रं िना भी उसी रास्िे से अपनी कछ सहे सलयों क साथ कॉलेि से ु े वावपस आ रही होिी। दोनों चोर निरों से एक दसरे की आंखो में दे खिे ू और पास से गिर िािे। रं िना चाहिी थी की भानु कछ कहे और उधर ु ु खामोश लम्हे ... 32 | P a g e
  • 33. भानु भी कछ ऐसी ही उम्मीद पाले बैठा था। सहे सलया साथ होने क ु े कारण रं िना भाऊ की िरफ दे ख नहीं सकिी थी मगर प्यार करने वाले राहें तनकाल लेिे हैं। पास से गुिरिे वक़्ि रं िना सहे सलयों से निरें बचाकर, त्रबना पीछे मिे अपने हाथ को पीछे करक भानु को बाय बाय कह ु े दे िी। भानु उसक इस इशारे को पाकर प्रफजल्लि हो िािा। प्रेम की कोई े ु भार्षा नहीं होिी बस अहसास होिा है। ये दोनों भी उसी अहसास से सरोबर थे। वक़्ि अपनी रफ्िार से गिर रहा था और उधर दो प्रेमी चपचाप वक़्ि क ु ु े ससने पे अपनी प्रेम कहानी सलखे िा रहे थे। दोनों क परीक्षाएाँ े आरं भ हो चकी थी। समय-साररणी अलग अलग होने से मलाकािें भी बाचधि हो ु ु गई। भानु सो रहा होिा उस वक़्ि रं िना कॉलेि क सलए िा रही होिी। े भानु क मकान का दरवािा बंद दे ख रं िना मायसी से सहे सलयों क साथ े ू े आगे बढ़ िािी। दोनों को पिा ही नहीं था की कौन ककस वक़्ि आिा िािा है । एक ददन भानु ने िल्दी उठकर दरवािा खला छोि ददया और खद अंदर ु ु की िरफ दरवािे क सामने चारपाई पे लेट गया। आि वो दे खना चाहिा े खामोश लम्हे ... 33 | P a g e
  • 34. था की रं िना ककस वक्ि कॉलेि िािी है । वप्रयिमा क इन्ििार में त्रबछी े पलकों को न िाने कब नींद ने अपने आगोश में ले सलया। मगर िब ददल में चाहि का समन्दर ठांठे मर रहा हो िो इन्ििार करिी आाँखों को ु रोक पाना मजश्कल होिा है । ु अचानक नींद से चौंककर उठे भानु की निर खुले दरवािे पे पिी और िभी रं िना सामने से मस्करािी हुई तनकल गई। भानु क कानों में घंदटयााँ ु े सी बचने लगी, एक नई स्फतिज क साथ वो त्रबस्िर से उठा और िट से ू े दरवािे क पास पहुंचा। रं िना आगे नकल गई थी। आि वो अकली थी। े े कछ दर िाकर रं िना ने पीछे मिकर दे खा िो भानु को दरवािे क त्रबच ु ू ु े में खिा दे ख मस्कराकर हाथ दहलाया और आगे बढ़ गई। ु मद्दद से बंिर पिी िमीन पे बरसाि की बदों सा अहसास सलए भानु ने ु ंू मस्कराकर रं िना की मस्कराहट का िवाब ददया। ु ु आि भानु का आझखरी पेपर था इससलए वो आि रं िना से आमने सामने बाि करक ही रहे गा. उसने तनणजय कर सलया था की िैसे ही दोपहर ढले े खामोश लम्हे ... 34 | P a g e
  • 35. रं िना कॉलेि से वावपस आएगी वो कछ कहने की शरुआि करे गा. आझखर ु ु कब िक ऐसे ही चलिा रहे गा. आि का ददन भानु को कछ ज्यादा ही ु लंबा महसस हो रह आिा. उसका ददल भी इस तनणजय क बाद कछ ज्याद ू े ु ही धडकने लगा था. उसने नोमजल होने की बहुि कोसशश की मगर ददल कलांचे मारने से बाि नहीं आया. ज्यों ज्यों समलन की बेला पास आ रही ु थी उसकी रफ़्िार िोर पकि रही थी. आि सालभर का मक प्यार िुबान ू पाने वाला था. अचानक भानु को अपने सपने टूटिे हुए से महसस हुए. रं िना क साथ ू े आि कफर उसकी दो सहे सलयााँ थी, और वो िानिा था वो और रं िना, इन सबक होिे हुए कछ नहीं बोल पाएंगे. ददल में उठा ज्वार दम िोिने लगा े ु था. मगर प्यार भी उफनिे हुए िल प्रपाि की भांति रास्िा तनकाल ही लेिा है. भानु िानिा था की रं िना की दोनों सहे सलयााँ अगले मोि से दसरी िरफ चली िायेगी और उसक आगे ू े रं िना अकली रहे गी. भानु से े अपनी साईककल तनकाली और िल्दी से पीछे वाली सिक से लंबा चक्कर लगाकर उस सिक पर पहुाँच गया जिस पर रं िना िा रही थी . उसने सामने से आिी रं िना को दे खा ! ददल अपनी रफ़्िार बद्द्सस्िर बढ़ाये िा ु खामोश लम्हे ... 35 | P a g e
  • 36. रहा था. भानु का ददल और ददमाग दोनों आि बगावि पर उिर आये थे. भानु आि उन पर काबू नहीं कर पा रहा था. फासला तनरं िर कम होिा िा रहा था. रं िना ने दे ख सलया था की भानु सामने से आ रहा है. वो साईककल पर था. तनरं िर कम होिे फासले ने दोनों ददलों की धडकनों में भचाल सा ददया था. अचानक भानु की निर दगाज क भाई पर पिी िो ू ु े सामने से आ रहा था. भानु का मजस्िष्क िनिनाकर गया था. भानु नहीं चाहिा था की दगाज क भाई को उनक प्यार का पिा चले और कफर इस ु े े िरह बाि परी कॉलोनी में फ़ल िाये. लेककन आि उसने फसला कर सलया ू ै ै था की रं िना से मखातिब होकर रहे गा. फासला और कम हो गया था. ु अब वो रं िना को साफ साफ दे ख सकिा था. वो माि २० कदम की दरी ु पर थी. बहुि कम मौक समले उन दोनों को ये फासले कम करने क मगर े े कभी बाि नहीं हो पाई. आि वो दोनों अपना संकोच िोि दे ना चाहिे थे। दोनों अपना हाल-ए-ददल कह दे ना चाहिे थे। रं िना ने अपनी ककिाबों को कसकर ससने से लगा सलया था िहां उसका ददल िफान मचाए हुआ था। उसक खुद क कदम आि उसक बस मे नहीं ू े े े थे। ज्यों ज्यों फासला कम हो रहा था दोनों अपने ददलोददमाग से कट्रोल ं खामोश लम्हे ... 36 | P a g e
  • 37. खोिे िा रहे थे। सलभर से ससने मे दबे अरमान आि मचलकर िुबान पे आना चाहिे थे। भानु रं िना क पास पहुाँचकर साइककल से उिरना चाहिा े था मगर उधर दगाज का भाई पास आ चका था। ु ु “रं िना !”, भानु ने रं िना क पास से गुिरिे हुये धीरे से कपकपािी े ं आवाि मे कहा िाकक दगाज का भाई न सन सक। ु ु े “ऊ” , ‘रं िना ने मस्करािे हुये भानु की िरफ दे खकर कहा। ाँ ु आि वो भी भानु से बहुि कछ कहने क सलए उददग्न लग रही थी। दोनों ु े एक दसरे क मन की बाि अपनी िुबां से कहने और कानो से सनने को ू े ु लालातयि थे। ददल की बाि िब िबां पे आ िाए िो वो प्यार की पणज ु ू सहमति बन िािी है । ददल क सभी संशय खत्म हो िािे हैं और प्यार मे े प्रगाढिा आिी है। आि इिने पास से उन दो िोिी आंखो ने एक दसरे मे िााँककर दे खा ू था। मगर पलभर का वो समलन िुरंि िुदाई मे बदल गया था। भानु अपनी उसी गति से रं िना क पास से गिर गया और उधर रं िना पीछे े ु खामोश लम्हे ... 37 | P a g e