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The Untold Enslavement of Courage
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2. 2
साहस की अनकही दासता
(सुप्रिया जैन द्वारा साहस की अनकही दासता की वाणी पर प्रिक्षा (सीख) दी गई दस अमृत कहानी का
अनुपम संकलन है।)
("न कान ं सुनी, न आंख ं देखी " में "ह नी ह य स ह य" क
े साथ यह दकताब संकहलत है। Note- This
book and "Honi Hoy So Hoy" are compiled into one large book- "Na Kanon Suni, Na Aankhon
Dekhi".)
कहानी -क्रम
1. अंतरा की कहानी, मेरी अपनी
जुबानी...............................................................
..3-5
2. एक रेलवे स्टेिन में एक
बैगर.................................................................
..........6-8
3. एक कहानी क प्रिि
की..................................................................
...................9-11
4.ज प्र ंदगी क द गए, व लौटकर वाप्रपस आता जरुर
है.......................................12-13
5. कहानी संघर्ष की
…...................................................................
.......................14-15
6. एक आत्महत्या
पत्र………..............................................................
...................16-19
7. ददष माता-पपता का
....................................................................
......................20-21
8. प्रेम
महामृत्युहै..............................................................
...................................
9. इसी क्षण उत्सव
है...................................................................
........................
10.समाहध समाधान
है...................................................................
......................
3. 3
साहस की अनकही दासता
अंतरा की कहानी ,मेरी अपनी जुबानी
हमारी आज की कहानी अंतरा नाम की एक लड़की हैं। जो,पक भाई क
े साथ अपने चाचा-चाची क
े पास रहती
है।अंतरा अभी बस पााँच साल की है। अंतरा का भाई ररतेश उससे 5 साल बड़ा हैं, पर वह अंतरा से बहुत नफरत
करता है। अब आप सोच रहें होंगे पक भला बच्चा अपनी छोटी बहन से नफ़रत क्यं करता है। ये बात क
ु छ मपहने
पहले पक है, जब ररतेश का जन्मपदन था, और अंतरा अपने मम्मी-पापा क
े साथ ररतेश जन्मपदन का तौफा और
क
े क लेने गई थी, पर उन्हें क्ा पता था,रास्ते में उनकी गाड़ी क
े बरेक फ
े ल हो जाएं गे। जब उनको ये पता चला,
तो अंतरा की मााँ ने अंतरा को नीचे फ
ें क पदया, गाड़ी खाई में पगर गई और ब्लास्ट हो गया। अंतरा ने ये सब जब
अपनी नई आाँखों से देखा,उसक
े पदलों- पदमाग पर इतना गहरा असर हुआ, पक उसने बोलने और सुनने की शक्ति
खो दीं।
जब अंतरा क
े चाचा-चाची को इस घटना का पता चला तो उन्होंने सोचा,पक यहींसही वि जब वो ररतेश को अपने
वश में कर पलया जांए, तापक सारी जायदाद उनक
े नाम हो सक
ें , तो उन्होनें ररतेश से कहा, पक ये सब अंतरा की
वजह से हुआ है। ररतेश ने इस बात को सच मान पलया, और अंतरा से नफरत करने लगा, अंतरा भी इस हादसे
से इतना सहम गई, पक हाँसने- खेलने वाली अंतरा खामोश रहने लगी। धीरे-धीरे ररतेश स्क
य ल जाने लगा, पर वो
अंतरा को अपने साथ लेकर नहीं जाता था। ऐसा करते-करते 2 साल पनकल गए। अंतरा क
े चाचा-चाची ने अंतरा
का स्क
य ल जाना बंद करवा पदया। अंतरा घर का सारा काम करती और पफर अपने कमरे में बैठी रहती, अंतरा
आज भी उस हादसे से उभर नहीं पाई थीं। अंतरा अपने कमरे में बैठी उस हादसे को याद करती रहतीं थीं। अब
अंतरा 12 साल की हो गई।
एक पदन चाचा पक बेटी ने चोरी पक"और आरोप अंतरा पर लगा पदया। चाचा -चाची अंतरा को जब घर से पनकाल
रहे थे, अंतरा को लगा था, पक ररतेश उसे घर से पनकलने नहीं देगा, पर ऐसा क
ु छ नहीं हुआ । अंतरा चार पदन
तक घर क
े बाहर भयखी प्यासी बैठी रही,पर पकसी को भी दया नहीं आई। गली क
े आवारा क
ु त्ों ने अंतरा को काट
पलया। अंतरा ऐसी हालत में दो पदन तक घर क
े बाहर पड़ी रही, पर उसक
े घर वालों को दया नहीं आई क
ु छ
पड़ोपसयों ने जब अंतरा की ये हालात देखी, तो उस हस्पताल में भती करवा पदया। अंतरा क
े पयरे शरीर में इंफ
े क्शन
फ
ै ल गया था। अंतरा एक सप्ताह तक हस्पताल में रहीं, पर उससे कोई भी पमलने नहीं आया। जब डॉक्टर ररचा
को ये पता चला तो उसने सोचा, कोई इतना पनदषयी क
ै से हो सकता है। डाक्टर ररचा अंतरा को अपने घर लेकर
आ गई। और उसे पापा-मम्मी दोनों का प्यार देने लगी। जब उसने देखा, पक अंतरा बहुत अच्छी पेंपटंग करती थी,
तो उसका दाक्तखला पेंपटंग स्क
य ल में करवा पदया।
अब अंतरा 18 साल की हो गई थी, अब अंतरा एक आटष गॅलेरी चलाती हैं, और अब उसकी पेंपटंग पवदेशों में भी
जाती थी वहीं ररतेश को गापड़यों का बहुत शौक था, इसपलए ऑटोमोबाईल की पढाई कर रहा था। पर चाचा-
4. 4
चाची ने जायेदाद क
े पेपर पर ररतेश से करने को हस्ताक्षर करने को कहा तो ररतेश ने सोच कर हस्ताक्षर क
े नाम
क्ा फक
ष पड़ता है, पक जायेदाद पकसक
े नाम पर हैं, हस्ताक्षर होने क
े क
ु छ पदन बात ही ने ररतेश को घर से
पनकाल पदया, और ररतेश की पढाई बंद हो गई और ररतेश कहााँ बड़ेे़ शोरूम क
े मापलक का सपना देख रहा
था,आज गाड़ी क
े गररज में काम करना पड़ा उसक
े सारे सपने टय ट गए।
वहीं एक पदन ररतेश ने पेंपटंग देखीं। पजसमें उसने देखा एक गाड़ी खाई में पगरते हुए पदख रही थी, और एक छोटी
बच्ची रो रही थी। ररतेश को अपने जन्मपदन का पदन याद आ गया। उस पेंपटंग पर अंतरा क
े नाम से हस्ताक्षर देख
ररतेश को उससे पमलने का मन था, ररतेश पहम्मत करने आटष गॅलेरी क
े अंदर चला गया। पर वहााँ पर अंतरा नहीं
थी। पर डॉक्टर ररचा ने देखा, पक ररतेश अंतरा क
े
बारे में क्यं पयछ रहा हैं। डॉक्टर ररचा ने ररतेश से पयछा ,पक वो अंतरा क
े बारे में क्य पयछ रहा है, क्ा वो अंतरा को
जानता हैं, ररतेश को समझ नहीं आ रहा था, वो क्ा जवाब दें, तभी डॉक्टर ररचा ने बार-बार ररतेश से ही सवाल
पयछा, पक वो अंतरा को क
ै से जानता है,"तभी ररतेश ने कहा, वो बहन है मेरी ।
ये सुनते ही डॉक्टर ररचा को बहुत गुस्सा आया, और उन्होंने ररतेश कहा,पक तुम्हें अब याद आ रहा है, पक अंतरा
तुम्हारी बहन हैं। तुम्हें क
ु छ पता भी हैं, उस छोटी-सी बच्ची पर क्ा बीतती है, वो एक सप्ताह तक हस्पताल में
रही, जब उसक
े पयरे शरीर में इंफ
े क्शन फ
ै ल गया था। वो उस समय दरवाजे पर नज़रें लगाएाँ , तुम्हारे आने का
इंतजार कर रही थी,पर कोई नहीं आया। इतना नहीं जब उसको क
ु त्ों ने काटा था, वो दो पदन तुम्हारे घर क
े बाहर
ददष में रो रही थी। पर पकसी ने नहीं देखा, उसका खयन बहता रहा और उसको वहीं मरने क
े पलए छोड़ पदया।
ररतेश
का बहुत बुरा लग रहा था, पर डॉक्टर ररचा ने ने ररतेश को अंतरा से पमलने नहीं पदया। ररतेश अंतरा से पमलना
चाहता था।
इसी उम्मीद में उस गॅलेरी में रोज जाता था। ऐसा करते-करते ररतेश क
े 6 मपहने हो गए। पफर अचानक अंतरा
उसक
े सामने आ जाती हैं। पर उसको पता ही नहीं होता है, पक वो अंतरा है, जब डॉक्टर ररचा अंतरा को उसक
े
नाम से बुलाती है, तब ररतेश को चलता है, वो उसकी वही छोटी-सी, न्नई - सी अंतरा अब बड़ी हो,डॉक्टर ररचा
अंतरा को लेकर घर चली गई। वहााँ पर उसने ररतेश क
े बारे में बताया, उसी समय अंतरा ररतेश से पमलने आटष
गॅलेरी पहुंची। और उसे वहीं पेंपटंग देते हुए कहा, इसे देखो, और रोती रही, तभी ररतेश ने कहा, मुझे माफ कर
दो, मैं समझ नहीं पाया, पर वो रोकर बार- बार माफी मााँगता रहा। तभी अंतरा ने कहा, भाई आपने तो उस पदन
बस मम्मी-पापा को खोया था, पर मैनें तो उस पदन अपना सब खो पदया था। मेरे पास तो उस पदन अपना कहने
क
े पलए कोई नहीं बचा। ररतेश ने कहा, मेरी छोटी बहन मैं समझ सकता हाँ। मैनें तुम्हारे साथ जो पकया वो ठीक
5. 5
नहीं था, पर मैं उसक
े पलए तुम से माफी मााँगता हाँ। और तभी अंतरा ने ररतेश को माफ करते हुए गले से लगा
पलया। और दोनों खुशी-खुशी रहने लगे।
सीख:-
1.) कभी-कभी आाँखों देखा भी सच नहीं होता हैं।
2.) पररवार का काम हैं, मुक्तिलों में एक-दय सरे का साथ देना, ना पक गलत समझ कर साथ छोड़ना।
3.) हमेशा सकारात्मक सोपचए, और पहम्मत बनाएं रक्तखए, क्ा पता भगवान ने आपक
े पलए इसको डॉक्टर ररचा
बना रखा हो,या आपको पकसी का डॉक्टर ररचा बना रखा हों!!
साहस की अनकही दासता
एक रेलवे स्टेशन में एक बैगर (A Bagger in a Railway Station )
एक आदमी था, पजसका नाम रमेश था। उसका काम भीख मांगकर अपना पेट पालना था और ये
काम पीढी दर पीढी करते हुए आ रहा था, पर उसको ये काम करना पसंद नहीं था। इसपलए वो
गाना गाकर भीख मांगता था। हमेशा की तरह नहा-धोकर तैयार हुआ, पफर उसने अपने भीख मांगने
वाले चांदी क
े कटोरे (ये चांदी का कटोरा उसक
े पुरखों की धरोहर था) को चमकाकर साफ कर
पदया और हमेशा पक तरह अपने काम पर चला गया। रमेश ज्यादा पदन तक एक काम करने से
उब जाता हैं, पर वो कर भी क्ा सकता हैं, ये उसका खानदानी पेशा हैं बंद भी तो नहीं कर
सकता हैं, ऐसे ही। यहीं चलता रहा, पदन बीते,साल बीते पर रमेश वहीं स्टेशन पर गाना गाता
और भीख मांगता। हमेशा पक तरह आज भी तैयार हुआ और स्टेशन क
े पलए पनकल गया।रेल आईं
और जैसे ही रुकीं रमेश ने गाना गाना शुरू कर पदया।
6. 6
लोगों को उसका गाना पसंद आता था, वो उसका गाना रुककर सुनते और उसक
े भीख क
े कटोरे
भीख डालने लगें,पक तभी भीड़ में से एक आदमी पनकला और उसने रमेश क
े चांदी क
े कटोरे को
देखा और देखते ही देखते उसने उसमें दो सोने क
े पसक्क
े डाल पदए और रमेश को देखते हुए
वापपस रेल में जाकर बैठ गया,रेल चली गई।अब रमेश को क
ु छ समझ नहीं आ रहा था, पक वो
क्ा करें,पर वो बहुत खुश था। जैसे ही शाम हुई रमेश ने अपना चांदी का कटोरा और हारमोपनयम
उठाया ओर घर क
े पलए चल पदया। नया पदन और नई उमंग क
े साथ रमेश अगले पदन पफर स्टेशन
क
े पलए पनकल गया, पर आज रमेश अपने चांदी क
े कटोरे में दो सोने क
े पसक्क
े लेकर आया था।
ये सोचकर की ये देखकर लोग
उसको ज्यादा भीख देंगे। वहीं स्टेशन पर हमेशा पक तरह रेल आईं और रुकीं ओर रमेश ने गाना
गाना शुरू कर पदया लोगों ने रुककर रमेश का गाना तो सुना पर उसको भीख नहीं दीं।
रमेश को समझ नहीं आ रहा था, पक ऐसा क्यं हो रहा हैं, क
ु छ पदनों तक ऐसा ही चलता
रहा। क
ु छ पदनों बाद पफर से स्टेशन पर रेल रुकीं, रमेश ने गाना गाना शुरू कर पदया। लोगों
की भीड़ इकट्ठा हो गईं। तभी रमेश ने देखा एक आदमी भीड़ से बाहर आ रहा था, और ये क्ा
ये तो वहीं आदमी था, पजसने रमेश को सोने क
े पसक्क
े पदए थे । धीरे -धीरे वो आदमी अपना
हाथ रमेश क
े चांदीं क
े कटोरे की तरफ आगे बढता हैं और पफर एक दम उस आदमी ने वो दोनों
सोने क
े पसक्क
े लें पलए और वहां से जाने लगा। तभी रमेश ने कहा ये मेरे हैं, ये मुझे भीख में
पमलें हैं।इन पर मेरा हक हैं,आप इन्हें लेकर नहीं जा सकते हैं। तभी वहां से एक आवाज आई,"भीख
में पमली हर चीज तुम्हारी नहीं होती, मैंने तुम्हें ये उस पदन संभालने क
े पलए पदए थे"। अगर तुम्हें
सोने क
े पसक्कों का इतना ही शौक हैं, तो मेहनत पकया क्ों, अपने हुनर का इस्तेमाल क्ों।
7. 7
रमेश को उस आदमी की बात पदल पर लगीं,वो पयरें पदन यहीं सोचता रहा, शाम हुई, वो घर आ
गया, पर उसक
े पदमाग में अभी भी उस आदमी की वो बातें चल रही थी, रमेश पयरी रात सोचता
रहा, पक उस आदमी क
े बोलने का क्ा मतलब था। सुबह हुई, रमेश ने क
ु छ पैसे पनकाले,जो
उसने अपने भपवष्य क
े पलए बचा कर रखें थे। रमेश ने अपना चांदी का कटोरा उठाया और स्टेशन
क
े पलए पनकल गया। वहां जाकर उसने क
ु छ पैन-पेंपसल खरीदें और बैठ गया। स्टेशन पर रेल आईं
ओर रुक गई। आज पफर रमेश ने गाना गाया,पर आज वो भीख नहीं मांग रहा था,जो भी उसक
े
कटोरे में पैसे डालता, तो रमेश उनको पैन-पेंपसल देता। ऐसा करते -करते रमेश कई पदन हो गए,
पर अब उसका मन इस काम में भी नहीं लगता था, पफर रमेश ने स्टेशन पर एक दुकान खोल
दीं, और उसकी तरह जो लोग भी भीख मांगते थे, सबको काम दें पदया।
अब उस स्टेशन पर कोई भीख नहीं मांगता था। ऐसा करते -करते रमेश को एक साल होने वाला
था। आज पफर रोज की तरह रमेश तैयार हुआ और स्टेशन क
े पलए पनकल गया,रेल आईं और रेल
में से एक आदमी उसकी तरफ़ बढने लगा, जैसे ही रमेश ने आदमी को देखा, तो बहुत खुश
हुआ और तभी वो आदमी रमेश को देख ही रहा था, पक एक आदमी पीछे से आया और उसने
बोला मेयर साहब
चपलए,रेल जाने वाली हैं और मेयर साहब चले गए। रमेश को क
ु छ समझ नहीं आया। क
ु छ पदन
बाद रमेश को मेयर साहब ने अपने कायाषलय बुलाया। रमेश को समझ में नहीं आ रहा था, पक
मेयर साहब ने उसे क्यं बुलाया हैं, जैसे ही रमेश मेयर साहब क
े कायाषलय पहुंचा।तो मेयर साहब
ने रमेश से कहा, मैंने आज शाम अपने घर पर एक पाटी रखी हैं। मैं वहां तुम्हें पकसी से पमलवाना
चाहता हं। रमेश को समझ नहीं आ रहा था, पक मेयर साहब ने उसे क्यं बुलाया हैं और पकस्से
पमलवाना चाहते हैं।
रमेश क
ु छ बोले इससे पहले मेयर साहब ने कहा उनको पाटी में रमेश का इंतजार रहेगा। यहीं
सोचते -सोचते रमेश कायाषलय से घर आ गया और शाम होने का इंतजार करने लगा। इसी बात
को सोचते -सोचते रमेश पाटी में चला गया। मेयर साहब जैसे रमेश का इंतजार कर ही रहे थे,
पक रमेश आ गया। मेयर साहब ने रमेश से कहा, मेरे साथ आओ, ये मेरी इकलौती बहन हैं। मैं
अपनी बहन की शादी तुमसे करवाना चाहता हं। रमेश को समझ ही नहीं आ रहा था, पक उसक
े
साथ ये क्ा हो रहा हैं। तभी मेयर साहब की बहन ने रमेश से कहा,आप बहुत अच्छा गाना गाते
हैं, क्ा आज आप मेरे जन्मपदन पर, एक गाना गा सकते हैं। रमेश मना करना चाहता था, पर
नहीं कर पाया, तभी रमेश ने गाना गाया, लोगों को रमेश का गाया गाना बहुत पसंद आया। क
ु छ
लोगों ने रमेश से पयछा, पक आप क्ा करते हैं, तभी रमेश ने कहा -------"A Bagger in
a railway station."रमेश और मेयर साहब की बहन की शादी हो गई, आज रमेश एक
गायक हैं और अपनी पजंदगी में बहुत खुश हैं।।
8. 8
सीख:--------हर इंसान को अपनी पजंदगी में मौका पमलता हैं,बस जरूरत हैं, उस मौक
े को
पहचानने की। हमेशा कोपशश करते रपहए और कभी-भी हार मत मापनए।।
साहस की अनकही दासता
एक कहानी क प्रिि की
अपनी पजंदगी में कभी कोपशश करना मत छोड़ो,क्य की पजस पदन कोपशश करना छोड़ पदया ना,
हार उस पदन है,अभी तो बस सेट बैक है।
ये कहानी शुरू होती है एक पमपडल क्लास पररवार से। आप ने सुना तो होगा ही जब बोडष परीक्षा
होती है। तो दो महीने पहले से ही घर का माहोल बदल जाता है।यही हाल मेरे घर का भी था।ये
बात है,आज से करीब 15 साल पहले की।मेरी बहन की बोडष की परीक्षा आने वाली थी। परीक्षा
ऐसा नहीं था,पक मेरी बहन की है। परीक्षा पयरे पररवार की थी,आक्तखरकार 2 साल बाद मेरी भी,तो
बोडष की परीक्षा थी,तो घर का हाल क
ु छ ऐसा था,टेलीपवजन जो पयरे पदन चलता रहता था। अब
बस सुबह-शाम खबारों क
े पलए चलने लगा। मेरे घर क
े आाँगन में पिक
े ट खेलना बंद हो गया। पापा
जी का जोर-जोर से बोलना बंद हो गया था। मम्मी जी का रसोईघर से चाय चापहए,क्ा चाय लेकर
आऊ पयछना बंद हो गया था। दीदी का कमरे से बाहर आना काम हो गया था, हमारा मस्ती करना
बंद हो गया।
आक्तखरकार वो पदन आया,पजस पदन दीदी का पेपर था। पापा जी बोले जा रहे थे,रोल0-न0 ले
पलया (हा पापा) पेन ले पलया ना कही ऐसा ना हो पेपर में बीच में खत्म हो जाए (नहीं पापा ,नए
पेन ले पलए है।) ध्यान से देना पेपर जल्दबाजी मत करना, पहले जो सवाल आए,उसका जवाब
देना और कोई सवाल छोड़कर मत आना (जी पापा)।अब जाओ ध्यान से, (हा पापा) तभी रसोईघर
से आवाज आई,क
य क
य रुक, दही चीनी खाकर जा और में बोले जा रहा था,मम्मी जल्दी करो ना
दीदी की स्क
य ल बस अए गई है। वो हमारे पलए इंतजार नहीं करेगे। जल्दी करो,तभी मम्मी बोली,तय
चुप कर समझा। क
य क
य ध्यान से पेपर करना। और दीदी पेपर देने चली गई। करबीन से सब 1
मपहने तक चलते रहे,आक्तखरकार दीदी क
े पेपर
खत्म हो गए। अब इंतजार था,तो ररजल्ट का जो दो मपहने बाद आने वाला था।
9. 9
मोहल्ले क
े लोग बोल रहे थे,बोडष में टॉप करेगी,आपकी क
य क
य तो। दीदी भी बहुत खुश थी,
आक्तखरकार अब वो कॉलेज जाएगी। अपनी पसंद क
े कपड़े पहनेंगी, बालों को अलग-अलग तरीक
े
से बनाएगी। नई पकताबें,नए दोस्त सब क
ु छ नया व अलग होगा। दीदी को खुश देखकर में भी
बहुत खुश था। आक्तखरकार हमारा पफर से मस्ती करना शुरू हो गया था। मम्मी का रसोईघर से
बोलना चाय चापहए क्ा और मेरा मम्मी को बोलना पकोड़े भी पमलेंगे क्ा। पापा जी का टेपलपवजन
बंद करने क
े पलए बोलना बंद हो गया था। देखते ही देखते वो पदन आ गया, पजस पदन दीदी का
ररजल्ट आने वाला था। पापा जी रात को ही बोलकर सोएं थे, सुबह जल्दी उठकर अखबार ले
आना। क्यंपक उस समय दसवीं कक्षा, बारहवीं
कक्षा का ररजल्ट अखबारों क
े माध्यम से बताया जाता था। जैसे ही सुबह हुई, मैं अखबार लेने चला
गया। जैसे ही मैं अखबार लेकर आया। पापा जी क्ा हुआ,देखा तुने क्ा आया ररजल्ट। मैंने बोला
अभी नहीं देखा पापा जी। पापा जी बोले, तो कब देखेगा। मुहतष पनकलवाना हैं, क्ा,जब देखेगा।
मैंने कहा, नहीं पापा जी देख रहा हं।
मैने दीदी की तरफ देखा तो वो बहुत परेशान देख रही थी।मैने जल्दी से अखबार में दीदी का
रोल.नंबर. देखना शुरु पकया। 01178,01178 मुझे कही नहीं पदख रहा था। मैने बोला,अगले पेज
पर होगा। मैने देखा दीदी का रोल. नंबर। अगले पेज पर भी नहीं था। दीदी की आखों से आाँसु
बहने लगे,मेरा मन तो कर रहा था बोल दय दीदी पास हो गई है,पर म ऐसा नहीं कर सकता था।
तभी मैने सोचा एक बार उस पेज पर भी देख लय ,जहा पर उन स्टय डेंट्स का ररजल्ट था,पजनको
एक-दो पेपर में पास ना होने की वजह से फ
ै ल कर पदए गए है। अब मुझे समझ नहीं अए रहा
था,पक में क्ा बोलय,पक दीदी फ
ै ल हो गई है। मैंने जैसे ही दीदी की ओर देखा तो वो समझ गई
और दीदी अपने कमरे में चली गई। पापा-मम्मी क
ु छ नहीं बोले,पर मेरा मन कर रहा था,में बोल
दय । एक ररजल्ट से पजंदगी थोडे ही खत्म हो गई है,में नहीं बोल पाया।
10. 10
दीदी ने कमरे से बाहर आना बंद कर पदया। पापा-मम्मी ने भी बोलना कम कर पदया। लोगों का
मम्मी को बोलना,क
य क
य क
े बारे सुना ,हमें तो लगा था,वो आपका नाम रोशन करेगी पर ये क्ा।
मेरा तो मन कर रहा था,बोल दय सबको जाकर, पक वो लोग अपने काम से काम क्य नहीं रखते
है।में बस दीदी क
े बारे में सोच कर चुप रह जाता था। दीदी क
े सारे सपने टय ट गए थे और तो
ओर वो अब क
ै से वापपस उसी स्क
य ल म जाएगी,जहा वो बड़े रोब से चलती थी। टेपलपवज़न पर बार-
बार खबर अए रही थी, अच्छा ररजल्ट न आने की वजह से क
ु छ स्टय डेंट्स ने आत्महत्या कर ली।
तभी मैंने टेपलपवज़न बंद कर पदया।
हमने दीदी को अब अक
े ला छोड़ना बंद कर पदया था,अब इस बात को दो महीने होने वाले थे।
धीरे-धीरे दीदी ने कमेरे से बाहर आना स्टाटष कर पदया,पर अभी भी दीदी घर से बाहर नहीं जा
पा रही थी। पापा जी ने स्क
य ल में दीदी का दाक्तखला करवा पदया। मम्मी ने बहुत समझाने क
े बाद
दीदी स्क
य ल की ड
रेस डालकर,अगले पदन तैयार हुई। पापा जी ने मुझसे कहा,पक दीदी को बस तक
छोड़कर अए जाना और समय से लेकर भी आ जाना। पापा जी ने तभी दीदी क
े कान में क
ु छ
कहा। मम्मी ने कहा ,क
य क
य रुक में दही-चीनी लेकर आती ह।
दीदी ने मेरा हाथ पकड़ा और में और दीदी घर से पनकले। आज अचानक मोहलले क
े सभी लोग
घर से बाहर पनकाल कर,मानो बस हमें ही पदख रहे थे,जैसे हमने पकसी का खयन कर पदया है,ओर
अदालत ने हमें पबना सजा पदए छोड़ पदया है। वही जो अंकल हमेशा समय से अपने ऑपफस जाते
थे, आज मानो हमें सजा सुनने क
े पलए रुक
े हो।
दीदी की तरफ देखा तो वो बहुत डरी हुई पदख रही थी,तभी मैने कहा,ये सब पागल है। आप
छोड़ो इनको ये बताओ आज मेरे पलए आते हुए क्ा ले कर आओ गए। क
ु छ खाने को ले कर
आना,पफर साथ में पाटी करेगे हमेशा की तरह पर दीदी क
ु छ नहीं बोली। हम बस का इंतजार कर
ही रहे थे,पक बस आ गई और दीदी बस की अक्तखरी सीट पर जाकर बैठ गई। मुझे समझ म नहीं
आ रहा था,में पकया बोलय। पक तभी बस चल पड़ी। दीदी ने अपनी क्तखड़की खोली और मेरी तरफ
देखते हुए बोली। सुन मम्मी को बोल पदओ,जब तक मेरे गुलक में 1060 रुo है,में कही नहीं जाने
वाली और तय क्ा सोच
रहा है तय बच जाएगा, रक्षाबंधन का पगफ्ट देने से,ऐसा कभी नहीं होने वाला चल शाम को पमलते
है। पाटी में जयस लेकर आ जाना। अब में बहुत खुश था। में मोहल्ले में आया और जोर-जर से
पचल्लाकर- पचल्लाकर बोला,मम्मी में जयस लेने जा रहा ह। पाटी है शाम को आपको भी क
ु छ
माँगवाना है,क्ा मम्मी
मम्मी ने कहा, हा सुन तेरे पापा जी क
े पलए रूसगुल्ले और मेरे और क
य क
य क
े पलए समोसे ले कर
आना। शाम को दीदी आई तो मैने कहा दीदी अच्छा ये तो बताओ पापा जी ने आपको क्ा कहा
था। छोटे पापा जी ने मुझसे कहा था,पक ये हार नहीं है,बस एक समस्या है। हा अगर इससे डरकर
तुमने कोपशश करना छोड़ पदया,तो ये हार है।
11. 11
सीख:-
1.) हमेिा क प्रिि करते रप्रहए,क्यूप्रक आपक आने वाला कल आपक
े आज से बेहतर
ह गा।
2.) एक हार कभी-भी प्र ंदगी का अंत नहीं ह सकता है, व कहते है,प्रक क्या पता
आपक पूरी प्रकताब अच्छी न लगे,पर आखखर क
े द पन् ं में ही जीवन का सार प्रमल जाए।
इसप्रलए क प्रिि करते रप्रहए,सफलता आपक अपने आप प्रमल जाऐगी।
साहस की अनकही दासता
जो पज़ंदगी को दो गए,वो लौटकर वापपस आता जरुर है
ये कहानी एक ऐसे व्यक्ति की हैं,जो बफ
ष की फ
ै क्टरी में ऑपफसर था। वो बहुत शांत स्वभाव का
था। वह अपने काम को पयरी इमानदारी से करता था। एक पदन सबका ऑपफसर से घर जाने का
समय हो रहा था।लोग काम से घर की तरफ जाने लगें। वो आदमी डीप पिज वाले कमरे में क
ु छ
काम से गया,पता नहीं पर क
ै से दरवाजा बंद हो गया और वो अंदर बंद हो गया।लोग काम से घर
जा रहे थे, इसपलए पकसी का ध्यान उस कमरे की तरफ नहीं गया। धीरे-धीरे अब कमरे का तापमान
पगरने लगा।उस आदमी ने सोचा पक वो अब बच नहीं बचेगा। तभी वो भगवान से बोलने लगा,हे
भगवान मुझे मेरी ग़लती क
े पलए माफ कर देना। लगता हैं, ये मेरा आखरी समय हैं। मैं अभी नहीं
मरना चाहता हं,मेरे पररवार का मेरे पसवा कोई नहीं हैं। अगर मुझे क
ु छ हो गया, तो मेरे पररवार
का क्ा होगा। मेरी बीवी और मेरे बच्चों का क्ा होगा।हे भगवान उनका तो मेरे अलावा कोई और
हैं, भी नहीं।
अब वो समझ गया था, पक वो बचने वाला नहीं हैं,पक तभी अचानक दरवाजे क
े खटखटाने की
आवाज आई।तो उसको लगा, वो बच सकता हैं। पकसी ने चाबी क
े साथ दरवाजा खोला और उस
आदमी को उठाकर बैठा पदया और जल्दी से जाकर हीटर लेकर आया। धीरे -धीरे उस आदमी
की तबीयत ठीक होने लगी। उस आदमी ने देखा, वो फ
ै क्टरी का चौकीदार था। उस आदमी को
क
ै से पता चला पक मैं अंदर ह।चौकीदार ने कहा,साहब इस फ
ै क्टर ी में 25 साल से काम कर रहा
हं, पर मुझसे कोई ठीक से बात नहीं करता। एक आप ही हैं।जो रोज सुबह मुझसे नमस्ते लेते हैं
और बड़ी खुशी से मेरा हाल-चाल पयछते हैं। वरना तो मेरे सामने से ऐसे पनकल जाते हैं, जैसे में
हं हीं नहीं या मेरे वहां होने से पकसी को कोई फक
ष पड़ता हैं।पर साहब मेरे पयरे पदन की थकान
जब उत्र जाती हैं। जब आपको शाम को जाते वि देखता हं और आप बोलते हैं।सब ठीक तो
था ना आज ,आप ठीक तो ना, आपक
े चेहरे
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की वो मुझसे बात करते हुए बात करते हुए वो खुशी देखकर सारा ददष खत्म हो जाता हैं।साहब
आज मैं रोज की तरह आपका इंतजार कर रहा, पर आप आए ही नहीं, मुझे लगा आप पकसी
समस्या में तो
नहीं। मैं देखने अंदर आया। उस आदमी को समझ नहीं आ रहा था, पकसी से दो पमनट हॅंसकर,
खुशी से बात करना आज उसकी पजंदगी बचा लेगा। वो कहते हैं,ना साहब आप पजंदगी को जो
दोगें, आक्तखरकार पजंदगी आपको वापपस जरुर देंगी।
सीख:- 1.) सबका सम्मान पकपजए।
2.) हमेशा खुश रपहए और सबको खुश रक्तखए।
3.) पजंदगी का पनडरता से सामना पकपजए।
साहस की अनकही दासता
कहानी संघर्ष की
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एक घर जल रहा था, दय र बैठे बन्दर और पचपड़या ये देख रहे थे। बन्दर हंस रहा था और पचपड़या
घर को जलता देखकर रो रही थी।
तभी अचानक से पचपड़या उड़ गई और अपनी चोंच में पानी भर कर लाती ओर घर पर डालने
लगी। बन्दर ये सब देख रहा था। बन्दर एक बार पचपड़या को देखता ओर पफर जोर-जोर से हंसने
लगता।बन्दर ने पचपड़या से कहा, तुझे क्ा लगता हैं। तेरे इतने से पानी डालने से ये आग बुझ
जाएगी। तभी पचपड़या ने बन्दर से कहा। बन्दर तय मेरी एक बात सुन,जब भी इस घर की बात की
जाएगी।
तेरी पगनती हंसने वालों में और मेरी पगनती मेहनत करने वालों में की जाएगी।
सीख:- हमेशा कोपशश करते रपहए, क्ोंपक कोपशश करने पर ही सफलता पमलती हैं, और हर एक
हार अपने आप को बेहतर बनाने का एक जररया हैं। इसपलए हमेशा कोपशश करते रपहए।।
साहस की अनकही दासता
एक आत्महत्या पत्र
हैलो, क
ै सी है, अरे रो क्ों रही हैं। क्ा हुआ।क्ा सोच रही हैं। अरे से, मत ना। मैं तुझसे दय र कहााँ
गई हाँ। मैं तो हमेशा तेरे साथ हाँ। अपनी आाँखें बंद करक
े देख मैं तो तेरे आस-पास ही हाँ। अच्छा
ये सोच कर रो रही हैं, क्ा मैंने तेरा साथ छोड़ पदया।
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नहीं यार तुझे लगता हैं, मैं तेरा साथ छोड़ सकती हाँ। नहीं यार कभी नहीं। अरे यार मैं तो उस
पदन ही मर गई होती, अगर तय मेरी पजंदगी में नहीं आती। याद हैं, तुझे वो पदन जब मैं मंपदर क
े
बाहर बैठकर भीखं मांग रही थी,अपने भाई को बचाने क
े पलए, वो बच्ची जो "खुद 5 साल की थी,
पजसने एक सप्ताह से खुद क
ु छ नहीं खाया था, पर उसको अपनी पफि नहीं थी। बस पफि थी
तो अपने भाई की पर पता हैं, ना कोई मदद नहीं कर रहा था ।तभी तय आई, अपने बाबा क
े साथ,
तयने मेरी बात सुनी और तभी अपने बाबा से कहा, बाबा भाई को हमारी जरूरत हैं।
बाबा मना करना चाहते थे। पर बाबा भी तेरी मासयपमयत क
े सामने बाबा भी हार गए। तय तभी मेरे
पास आई, और बोली मेरी दोस्त बनोगी। चलो गई मेरे साथ अपने यापन हमारे घर और तुम पिक
मत करो, भाई को क
ु छ नहीं होगा। वो ठीक हो जाऐगा "तभी तुने कहा नाम तो बता दें, यार
अपना। मैनें धीरे-से कहा सलौनी। याद हैं, तुने कहा था। सपना सलौनी का। अरे मेरा नाम हैं
सपना। अब तय सलौनी
हैं, तो सपना भी तो सलौनी की हुई। अच्छा अब ये बता भाई क्ा नाम रखा हैं, तुने। हाहाहाहाहा
मैंने हंसते हुए कहा था, सपना सलौनी का एक पदन आकाश में पदखेगा। अरे यार भाई का नाम
आकाश हैं। हम घर पहुंच गए, क
ु छ पदनों बाद आकाश भी पयरी तरह ठीक हो गया। तुने मेरा
दाक्तखला स्क
य ल में करवा पदया।तेरा हर बात क
े पलए मुझसे पयछना और मेरी इतनी पफि करना
समझ नहीं आ रहा था और ना ही आज तक समझ आया। ऐसा लगता था, जैसे तेरे और बाबा क
े
आने पर मुझे तो पयरा संसार ही पमल गया।अब तो बाबा ने भी सलौनी और आकाश को अपना
पलया था। धीरे-धीरे समय बीतने लगा। आकाश को भी अच्छी पढाई करवाने क
े पलए बाबा ने
पदल्ली भेज पदया।तय पढाई पयरी करने क
े पलए जयपुर चली गई।
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ऐसा नहीं था पक तुने मुझे साथ चलने क
े पलए नहीं समझाया पर मैं बाबा को ऐसी हालत में
छोड़कर नहीं जाना चाहती थी। इसपलए मैं तेरे साथ जयपुर नहीं आईं। क्ोंपक मेरे पलए बाबा की
तबीयत पहले मायने रखती थी बाद में मेरी पढाई।इस तरह दो साल पनकल गए।जब हमने एक-
दय सरे को नहीं देखा था और ना ही पमलें थे। धीरे -धीरे पजम्मेदाररयां बढ गई।अब बाबा ने मेरे पलए
लड़का देखना शुरू कर पदया। शादी भी पक्की हो गई। जब बाबा ने तुझे ये बात बताई तो तय
बहुत खुश हई , इस बात से मैं बहुत खुश थी पक तय मेरी शादी की बात से खुश हैं।पर जब मुझे
पता चला,पक तय मेरी शादी में नहीं आ सकती और ना ही आकाश आ सकता हैं, तो अच्छा नहीं
लग रहा था। परंतु मैं समझती हं, पढाई इन सब से ज्यादा जरुरी हैं।याद हैं, मैंने तुम दोनों से वादा
पलया था, पक तुम दोनों अपने पेपर छोड़कर शादी में नहीं आओगे। मेरे बहुत समझाने क
े बाद माने
थे, तुम दोनों। आक्तखरकार शादी का पदन आ गया। बाबा ने मेरी शादी पर इतना पैसा खचष पकया
था। ओर तो ओर नकद धनरापश भी दे रहे थे। बाबा ने इतने जेवर पदए थे,पक आगे आने वाली
पीढी भी खुश रहें।पर पता हैं, तुझे तेरी सलौनी का देखा सपना सच नहीं हुआ। शादी की पहली
रात को ही ससुराल वालों ने मुझसे सारे जेवर और पैसा ले पलया। ओर तो ओर मैंने पजससे शादी
की थी। उसने मुझसे कहा, ये सब मेरे मां बाप का हैं।तब मैंने कहा आपक
े मां बाप मेरे भी मां
बाप हैं। मुझे क्ा करना हैं इन सब जेवरों और पैसे का, आप रक्तखए। एक-एक करक
े सब चले
गए।
बाहर से शराब पीकर आने क
े बाद जब उन्होंने अपना सारा गुस्सा मुझ पर पनकाला और मुझे बेल्ट
से मारा। उस बेल्ट की मार का ददष इतना नहीं था, पजतना ददष मुझे ये सोचकर हो रहा था,पक
उन्होंने मुझे मारा। अगले पदन मेरी मुंह पदखाई थी। जैसे-तैसे में बाहर गईं। तो मां ने मेरी सारी
सापड़यां अपनी बेपटयों को दे दी थी। पता हैं, तुझे मैं नौकरानी की साड़ी लेकर पहनती थी। जैसे-
तैसे अब मेरी शादी को एक साल होने को आया था, पक एक पदन अचानक बाबा मेरे ससुराल में
पबना बताए आ गए। जब उन्होंने मुझे क्तखड़की से नौकरानी क
े कपड़ों में देखा, तो रोने लगे। तभी
मयंक बाहर से अंदर कमरे में आएं , जहां मैं काम कर रही थी और मुझे बेल्ट से मारने लगे। बाबा
ये सब क्तखड़की से देख रहे थे। उनसे ये सब बदाषश्त नहीं हो रहा था, पर वो वहां से चले गए।घर
जाकर मयंक को फोन पकया और कहा आजकल मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती हैं।
आप सलौनी को भेज दें घर पर मयंक मान गया, ये सोचकर पक घर जाएं गी तो क
ु छ लेकर ही
आएगी। पर उस रात मयंक बहुत ज्यादा शराब पीकर आए। जो उस पदन हुआ, मैं बता भी नहीं
सकतीं पक मैं पकस हाल में थी। जब सुबह मयंक ने कहा, तुम्हारे बाबा क
े घर जाना हैं। मुझे समझ
नहीं आ रहा था पक मैं क
ै से जाऊ
ं गी। क्ोंपक मेरे पयरे बदन पर बेल्ट से मार क
े पनशान थे, और
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घाव से खयन भी पनकल रहा था। मैं अपने घावों को मेकअप से ढककर बाबा से पमलने गईं। तो
बाबा ने मुझसे पयछा, पक मैं क
ै सी हं, मयंक क
ै सा हैं। और वो तेरा ध्यान रखता हैं या नहीं। मैंने
बाबा से कहा मैं और मयंक दोनों ठीक हैं और बाबा मयंक बहुत प्यार करते हैं, मुझसे। वो बहुत
ध्यान रखते हैं।
बाबा छ
य प-छ
य प कर रो रहे थे। तभी मुझसे कहा, मैं कल तेरे ससुराल आया था। मैं अब समझ गई
थी,पक बाबा ने सब देख पलया हैं। बाबा ने जैसे ही मेरे हाथ में अपना हाथ रख, तो इतना ददष हो
रहा था पक मैं क
ु छ बोल नहीं सकती थी। तभी अचानक मेरे हाथ से खयन बहने लगा। बाबा ने
कहा,तय यहीं रुक मैं पचपकत्सक को बुलाता हं। पचपकत्सक घर पर आईं और मेरे बदन क
े घाव
देखकर बाबा से कहने लगी। ये लड़की बहुत ददष में हैं, क
ु छ करो। पचपकत्सक ने बाबा को सब
बता पदया था,पक लड़की को बेल्ट से मारा गया हैं। लड़की का दो बार अवओसन हुआ हैं।
पसगरेट से जलाया गया हैं और उसक
े शरीर पर कई जगह शीशे से काटने क
े भी पनशान और
घाव हैं। यह सब सुन कर बाबा पयरी तरह से टय ट गए थे। बाबा ने फ
ै सला पकया ,पक वो मुझे अब
ससुराल नहीं जाने देंगे। बाबा ने ऐसा ही पकया धीरे-धीरे बाबा की तबीयत खराब होने लगी और
ऐसे ही एक पदन वो हम सब को छोड़ कर चले गए। जब तुम घर आये मैने तुझे और आकाश
को क
ु छ नहीं बताया,पक यहााँ क्ा हुआ। मैं क
ै सी हाँ, ये भी नहीं बताया। मैं नहीं चाहतीं थीं
,पक मेरे ददष की परछाई भी तुम दोनों पैर पड़े।
पर बाबा क
े जाने का ददष मुझे ये पचल्ला- पचल्लाकर बता रहा था,पक इन सब की पजम्मेदार में ही
हाँ। ये सब मेरी वजह से हुआ हैं। बहुत कोपशश की ,पक तेरे साथ अपना ददष साझा करु
ाँ । पर
डर लगता था,अगर मैंने तुझे भी खो पदया तो,मैं क्ा करु
ं गी।इसपलए ये पलखकर जा रही हाँ।
मुझे पता है,मेरे जाने क
े बाद तय आकाश का मुझसे भी ज्यादा धन रखेंगी। और सुन माफ कर दे
यार तेरी दोस्त हार गई। पर तुझे मेरे पलए ,बाबा क
े पलए जीतना ही होगा तुझे जीतना ही होगा।
और मैं कहााँ तुझसे दय र हाँ ,यार में हमेंशा तेरे साथ हाँ।
ये सब पढकर सपना को बहुत गुस्सा आ रहा था। उसने मयंक और उसक
े पररवार पर मुकदमा
कर पदया। पजसमें उसने उनपर दहेज,मार-पीट और जान से मारने का मुकदमा दजष पकया। और
खुद
मुकदमा लड़ा। सपना ने सलौनी को इंसाफ ही नहीं पदलाया,बक्ति ओर पकसी को भी सलौनी
बनने से भी बचा रही हैं।
सपना और आकाश ने एक ऐसी संस्था खोली ,पजसमें वो हर पकसी को सलौनी बनने से बचा रही
हैं और उनक
े पलए मुकदमें लड़ रही है। बस सपना को इस बाद का दुुःख हैं ,पक वो सलौनी
से इतना दय र कब हो गई ,पक सलौनी को अपनी पज़ंदगी छोड़कर जानी पड़ी। पर वही सपना
आकाश में सलौनी को देखती हैं और आकाश की पज़ंदगी में सलौनी की कमी को पयरा करने की
कोपशश कर रही हैं और पकसी लड़की को सलौनी बनने से बचा रही हैं।
सीख :- हमेशा अपनी मासयपमयत बपनए रक्तखए।
इंसान को उसक
े पैसों से नहीं ,उसक
े नजररए से पहचापनए।
दहेज देने से बपचऐ। दहेज लेने वालों क
े क्तखलाफ पुपलस में पशकायत दजष करवाइए।
अपनी बेपटयों क
े पलए समाज को सुरपक्षत बपनए।
पकसी की भी बेटी को सलौनी मत बनने देना चापहए।
मयंक जैसे लोगों और उन पररवारो क
े क्तखलाफ सख्त से सख्त कदम उपठए।
क्ोपक जरुरी नहीं,पक हर लड़की को सपना जैसी दोस्त पमलें।
दहेज एक क
ु प्रथा हैं और इस क
ु प्रथा से लड़ने की हमें सख्त से सख्त जरुरत हैं।
17. 17
दहेज की क
ु िथा क हटना हैं ,समाज में बेप्रटय ं
क सुरप्रक्षत बनाना हैं।
साहस की अनकही दासता
ददष माता-पपता का
18. 18
एक बयढा आदमी जज क
े पास अदालत में जाता हैं। वहााँ जाकर जज से कहता हैं ,पक मुझे
अपने बेटे पर मुकदमा दजष करवाना हैं। जज ये बात सुनकर हैरान हो जाता हैं। जज बयढे आदमी
से पयछता हैं ,पक आपको अपने बेटे पर क्ा मुकदमा दजष करवाना हैं। बयढा आदमी जज से कहता
हैं। साहब मुझे अपने बेटे की आमदनी का क
ु छ पहस्सा हर मपहने खचष क
े रूप में चापहए। जज
बयढे आदमी से कहता हैं। ये आप का अपधकार हैं। ये आप क
े बेटे क
े द्वारा पदया जाना चापहए।
बयढा आदमी जज से कहता हैं। पक ऐसा नहीं हैं पक मेरे पास पैसा नहीं हैं। मैं बहुत मालदार हाँ।
बस मैं ये चाहता हाँ,पक मेरा बेटा अपनी आमदनी का क
ु छ पहस्सा मुझे हर मपहने दें। साहब आप
मेरे बेटे को अदालत में बुलाइए।
जज बयढे आदमी क
े बेटे को अदालत में आने का आदेश देता हैं। बयढे आदमी का बेटा अदालत
में आता हैं। जज उस लड़क
े से कहता हैं ,आपक
े पपता ने आप पर मुकदमा दजष करवाया हैं। वो
चाहते हैं,पक आप उनको मपहने का ख़चाष प्रदान करें। बेटा ये बात सुनकर समझ नहीं पा रहा था।
पक उसक
े पपता जी ने ऐसा क्याँ पकया,क्ोपक उसक
े पपता जी तो बहुत मालदार हैं ,उन्हें उसक
े पैसों
की क्ा जरुरत हैं। तभी जज बयढे आदमी से कहता हैं ,बताइए आपको आपक
े बेटे से हर मपहने
की पकतनी धनरापश चापहए। बयढा आदमी जज से कहता हैं। साहब मुझे अपने बेटे से हर मपहने
100 /- रुपए चापहए। वो पैसे मुझे खुद आकर मेरे हाथों में दें और वो ये पैसे करने म देर न
करें वो हर मपहने की 10 तारीख़ को मुझे पैसे देने जाएं । जज बयढे आदमी क
े बेटे को ये
फ
ै सला सुना देता हैं और उससे बोलता है,पक उसे इस आदेश का पालन करना होगा,वरना उसक
े
साथ उपचत कारषवाई की जाएगी।
19. 19
जज को ये बात समझ नहीं आ रही थीं ,पक बयढे आदमी ने ख़चे क
े रूप में अपने बेटे से
100/- रुपए क्याँ मांगे। जज बयढे आदमी को अपने कमरे में बुलाता हैं। और पयछता हैं आपने ऐसा
क्याँ पकया मुझे समझ नहीं आ रहा हैं। बयढा आदमी जज से कहता हैं साहब वर्ों बीत गए ,मैंने
अपने बेटे को देखा नहीं की। दो घड़ी बैठकर बात तक नहीं की। बस मैं चाहता हाँ,पक वो मुझसे
पमलने आता रहें। जज ने बयढे आदमी से कहा ,बाबा अगर आप मुझे ये बात पहले ही बता देते
तो में उससे ये और अगर वो मना करता तो में उसको सजा देता। बयढा आदमी ने कहा ,में
नहीं चाहता हाँ ,पक मेरे बेटे को कोई भी सजा पमलें। में बस यह चाहता हाँ ,पक वह हमेशा खुश
रहें।
सीख :- बड़ों का सम्मान करों।
माता-पपता का आदर करों।
पजस तरह बचपन में आपको माता-पपता की जरुरत थी,वैसे ही अब माता-पपता को आप
की जरुरत हैं।
एक प्रदन व्हाट्सएप्प पर स्टेटस लगाने से मााँ-बाप
की इज़्जत नहीं ह ती हैं,इज़्ज़त प्रदल से ह ती हैं
और और हम सबक उनकी इज़्ज़त करनी चाप्रहए।
साहस की अनकही दासता
20. 20
मााँ का आशीवाषद
यय ययययय ययय (ययय यय यययययययय यय)।
यययययय यययय ययय ययय यययय ययय यययय यययय यय
बचपन ययय यय ययय और यययय ययय यय ययय कर इस
यययययय यय ययय गए ययय यययय ययय यय ययय ययययय
यय घर पर ययय कर -यययय ययय यययय यययय अब यययय
ययय यय यययययय समय आययय ययय यययय यययययय यय
यययययय और यययय ययय,यययय यययय ययय यययय यययय
यय ययय ययय यययय ययय,पर ययय यययय यययययययय
यययय यययय यय यय यय ययय ययययय यययय ययययय
ययययय ययययययय यय अगर ययय यय ययय ययय यययय
,यय यय यय यययय बन ययययययय
सससससस सस ससस
यययययय यय ययय यय अब यययय ययययय ययय ययय
यययय यययययय यय ययययययय यययय यय ययययय
ययययय ययययय-ययय यययय ययययययय एक शहर यय
ययययय शहर ययय ययययय यययय जब यय ययय यययय
यययय यय ययययय यय यययययययय ययय,यय यय यययय
यय यययय ययय यय यययययययय यययय यय हर यययय यय
यययय ययययय यययय ययय यय आ
ययययययय ययय इस
ययय आजयययय ययय यह सब यययय अब यय ययययय यय यय
यययय ययय यय ययय यय यययययययय रख यययय ययय
अगर ययय ययययय यययययय यय घर यययय ययय,यय ययय
ययययय ययय यय यययययययय ययय यय यययय यययय
यययययय यय यय ययय यययय यय,यययय ययययय ययययय
यय ययययय यययय