मनो-भौतिकी की समस्याएं (Problems of Psychophysics)
1. मनो-भौतिकी की समस्याएं
डॉ राजेश वमाा
अतसस्टेंट प्रोफे सर (मनोतवज्ञान)
राजकीय महातवद्यालय आदमपुर, तहसार, हररयाणा
2. अर्ा
मनो-भौतिकी (साइकोतितिक्स) शब्द मनोतिज्ञान और भौतिकी से बना है
अर्ााि मनोतिज्ञान + भौतिकी।
मनोतिज्ञान = एक व्यति के मनोिैज्ञातनक गुण (तिशेष रूप से संिेदना और
प्रत्यक्षण)।
भौतिकी = उद्दीपक के भौतिक गुण
अर्ााि मनोिैज्ञातनक घटना
(phenomenon ) और एक
उद्दीपक के भौतिक गुणों के
बीच संबंध का अध्ययन।
3. पररभाषा
मनोतवज्ञान की वो शाखा जो एक मनोवैज्ञातनक घटना और एक उद्दीपक के भौतिक गुणों
के बीच संबंध का अध्ययन करिी है।
उद्दीपकों और उनसे उत्पन्न होने वाली
संवेदनाओं के बीच संबंध का अध्ययन करने
वाली तवद्याशाखा को मनो-भौतिकी कहा
जािा है (NCERT, XI)।
"एक व्यति के अनुभव या व्यवहार पर
तकसी उद्दीपक के एक या उससे अतधक भौतिक
आयामों पर उसके गुणों में व्यवतस्र्ि रूप से
पररविान के प्रभाव के अध्ययन द्वारा
प्रत्यक्षणात्मक प्रतियाओं का तवश्लेषण "
(Bruce et. Al 1996 quoted by Wikipedia)।
4. मनो-भौतिकी की कु छ समस्याएं
(i) मानतसक तस्र्ति को मात्रा में पररितिाि करना – मानतसक तस्र्ति गुणात्मक
और व्यतिपरक चर होिा है तिसे परीक्षण के तिए मात्रात्मक चर में पररितिाि करने
की आिश्यकिा होिी है। यह िस्िुतनष्ठ रूप में एक चर की तिशेषिाओं के योग से
अतभव्यि तकया िािा है।
(ii) मानतसक तस्र्ति का मापन – तकसी एक चर का पररमाण के
सार्-सार्
िीव्रिा का भी
आकिन।
5. (iii) मापक्रम या पैमाना िैयार करना (स्के तिंग) – एक पैमाने या अबाध क्रम
(Continuum) पर तकसी िस्िु या मनोिैज्ञातनक चर का स्र्ान तनधााररि करना
अर्ााि एक संख्यात्मक मूल्य आिंतटि करना। यह चरों के बीच कारण-प्रभाि संबंध
स्र्ातपि करने में सहायक होिे हैं।
(iv) संिेतदक अनुभि का मापन एिं उनके स्िर का आकिन अर्ााि उन अनुभिों
को एक संख्यात्मक मूल्य (न्यूमेररकि िैल्यू) देना।
6. (v) कायाात्मक संबंधों और उनकी गतणिीय अतभव्यति का तनधाारण – क्योंतक
गतणिीय अतभव्यति या मॉडि तकसी भी प्रणािी के मात्रात्मक व्यिहार का
अनुमान िगाने में अत्यंि सहायक होिा है। िे ज्ञाि भौतिक घटनाओं को समझाने में
मदद करिे हैं और समय रहिे उनके व्यिहार की भतिष्यिाणी करने में सहायक होिे
हैं।
(vi) िोड़-िोड़ या हेर िे र (Manipulation) – एक चर की िीव्रिा या
पररमाण में मात्रात्मक पररििान। शुद्ध पररणाम यानी बाहरी हस्िक्षेप
मुि तनष्कषा पाने
के तिए।
7. (vii) संिेदना का पररमाण या िीव्रिा का िस्िुतनष्ठ मापन – संिेदी अनुभि की
िीव्रिा। िै कनर का तनयम (1860) कहिा है तक संिेदना (बोध) की िीव्रिा
उद्दीपक की िीव्रिा के िघुगणक (Logarithm) के समानुपािी होिी है, इसतिए
िे उद्दीपक िो िीव्रिा, गुणित्ता, दुिाभिा आतद में अतधक प्रासंतगक होिे हैं, िे
व्यतियों द्वारा अच्छी िरह से और कम त्रुतटयों के सार् ग्रहण तकये िािे हैं
(Liutsko & Ral, 201.04)।
8. (viii) मानिीय त्रुतटयों को कम से कम करना िो मुख्यिः िीन प्रकार की होिी हैं:
-
(a) प्रत्यक्षण में,
(b) तनणाय लेने में और
(c) संवेदना में।
(ix) अििोकन संबंधी
त्रुतटयां।
9. सन्दभा:
1. NCERT, XI Psychology Text book.
2. Bruce. V., Green, P. R. & Georgeson, M. A. (1996). Visual
perception (3rd ed.). Psychology Press.
3. Ral, J. M. T. & Liutsko, L. (2014). Human errors: Their
psychophysical bases and the Proprioceptive Diagnosis of
Temperament and Character (DP-TC) as a tool for measuring.
Psychology in Russia: State of the Art 7(2), 48-63.