"प्रकृति के नियमों का पालन न होकर उनका सामूहकि उल्लंघन ही प्राकृतिक असंतुलन और आपदाओं का कारण है। विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय वर्तमान की शिक्षा में प्रकृति के नियमों का कोई पाठ और प्रयोग नहीं है। व्यक्ति अज्ञान और अनेकानेक कामनाओं की पूर्ति न होने के कारण तनाव और चिंताग्रस्त होता है। व्यक्तिगत तनाव सामाजिक स्तर पर एक बड़े तनाव का गठन करते हैं और ये सामूहिक तनाव बड़े स्तर पर प्राकृतिक आपदा लाते हैं। इसमें बाढ़, सूखा, भूकम्प, बीमारियाँ, दुर्घटनायें आदि सम्मिलित हैं। एक व्यक्ति द्वारा अपराध कारित किये जाने पर राष्ट्रीय विधान उसे दण्ड देते हैं। कुछ व्यक्तियों द्वारा मिलकर अपराध किये जाने पर अधिक गंभीर दण्ड का प्रावधान है। इसी तरह प्रकृति उसके नियमों के सामूहिक उल्लंघन करने पर आपदाओं के रूप में सामूहिक दण्ड देती है।" यह विचार ब्रह्मलीन महर्षि महेश योगी जी के परम प्रिय तपोनिष्ठ शिष्य ब्रह्मचारी गिरीश जी ने व्यक्त किये।
Prakritik aapadao ka karan prakriti ke niyamo ka ullanghan
1. प्राकृ तिक आपदाओं का कारण-प्रकृ ति के तियम ं का उल्लंघि
"प्रकृ ति के तियम ं का पालि ि ह कर उिका सामूहतक उल्लंघि ही प्राकृ तिक
असंिुलि और आपदाओं का कारण है। तिद्यालय से लेकर तिश्वतिद्यालय
िितमाि की तिक्षा में प्रकृ ति के तियम ं का क ई पाठ और प्रय ग िहींहै। व्यक्ति
अज्ञाि और अिेकािेक कामिाओं की पूतित ि ह िे के कारण ििाि और
त ंिाग्रस्त ह िा है। व्यक्तिगि ििाि सामातिक स्तर पर एक बड़े ििाि का
गठि करिे हैं और ये सामूतहक ििाि बड़े स्तर पर प्राकृ तिक आपदा लािे हैं।
इसमें बाढ़, सूखा, भूकम्प, बीमाररयााँ, दुघतटिायें आतद सक्तितलि हैं। एक व्यक्ति
द्वारा अपराध काररि तकये िािे पर राष्ट्र ीय तिधाि उसे दण्ड देिे हैं। कु छ
व्यक्तिय ं द्वारा तमलकर अपराध तकये िािे पर अतधक गंभीर दण्ड का प्रािधाि
है। इसी िरह प्रकृ ति उसके तियम ं के सामूतहक उल्लंघि करिे पर आपदाओं
के रूप में सामूतहक दण्ड देिी है।" यह ति ार ब्रह्मलीि महतषत महेि य गी िी
के परम तप्रय िप तिष्ठ तिष्य ब्रह्म ारी तगरीि िी िे व्यि तकये।
ब्रह्म ारी तगरीि िी िे आगे कहा तक ’’आि की तिक्षा तिदेि ं से ली गई तिक्षा
प्रणाली है। इसमें कहीं भी माििीयिा का, भारिीय िाश्वि िैतदक ज्ञाि-तिज्ञाि
का समािेि अब िक िहीं तकया गया है। भारि की स्विंत्रिा के पश्चाि अिेक
2. सरकार ं में तिदेि ं से तिक्षा प्राप्त राििेिा थे तिन्हें भारिीय ज्ञाि और तिक्षा
का अिुभि िहींथा। अिः ि तिक्षा उन्ह ंिे ली थी उसी क श्रेष्ठ समझकर स्विंत्र
भारि की तिक्षा प्रणाली बिा दी। स्विंत्र भारि में तिक्षा की िींि ही गलि पड़
गई तिसका दुष्पररणाम भारि आि िक भ ग रहा है।”
एक प्रश्न के उत्तर में उन्ह ंिे प्रश्न पूछा तक ’’हिार ं लाख ं िषत पूित ज्ञाि देिे िाले
ऋतष, महतषत क्या पीए .डी. या एम.बी.ए. थे ? ि ज्ञाि उस समय तदया गया िह
आि भी िीिि के प्रत्येक क्षेत्र में उििा ही प्रासांतगक है तिििा िब था। उसी
िैतदक ज्ञाि के कारण भारि प्रतिभारि, िगिगुरु भारि था। हम आि भी अपिे
राष्ट्र क सिोच्च िक्तििाली, ज्ञाििाि बिा सकिे हैं बििे हम तिक्षा के सभी
तिषय ं और स्तर ं पर भारिीय िैतदक ज्ञाि-तिज्ञाि क सक्तितलि कर दें।"
ब्रह्म ारी तगरीि िी िे यह भी पूछा तक ‘‘आि की आधुतिक तिक्षा प्राप्त करके
क ई ऋतष या ब्रह्मतषत क्य ं िहींह िे? सभी तिक्षातिद् इस िकत से सहमि हैं तकन्तु
दुभातग्यिि क ई इस तदिा में आगे िहीं बढ़िा। सब तकसी और के आगे बढ़िे
की प्रिीक्षा करिे रह िािे हैं। सभी क आगे आिा ह गा और भारिीय ज्ञाि-
तिज्ञाि परक तिक्षा क िितमाि तिक्षा की मुख्य धारा में सक्तितलि करिे के तलये
आिाि उठािी ह गी।"
उल्लेखिीय है तक पमरपूज्य महतषत महेि य गी िी िे सारे तिश्व में हिार ं
िैक्षतणक संस्थाि ं की स्थापिा की तििमें ेििा पर आधाररि तिक्षा, ेििा
तिज्ञाि और िेद तिज्ञाि की तिक्षा प्रदाि की िािी है। भारििषत में महतषत िी िे
महतषत तिद्या मक्तिर तिद्यालय ं की श्रृंखला, इन्स्टीट्यूट्स, महातिद्यालय एिं
तिश्वतिद्यालय ं की स्थापिा की है।
तििय रत्न खरे
तिदेिक - सं ार एिं ििसम्पकत
महतषत तिक्षा संस्थाि