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क
े न्द्रीय वद्यालय
संगठन,जयपुर
संभाग
आरोह
भाग-1
कक्षा -11 हन्दी (आधार)
पाठ-नमक का दारोगा
लेखक-प्रेमचंद
प्रस्तुतकतार्थ
क
ै लाश चन्द रैगर
स्नातकोत्तर शक्षक ( हन्दी)
क
े न्द्रीय वद्यालय क्रमांक-2
वायुसेना ,
जोधपुर
प्रेमचन्द प रचय
⚫ प्रेमचन्द (धनपत राय)
⚫ जन्म-सन 1880,लमही
गाँव (उत्तर प्रदेश)
⚫ रचनाएँ- नमर्थला, गबन,
प्रेमा म, रंगभू म,
कमर्थभू म, कायाक प,
प्र तज्ञा, वरदान, गोदान
⚫ प्रेमचंद की सभी कहा नयाँ
मानसरोवर क
े आठ भागों
में संक लत है।
नमक का दारोगा कहानी क
े प्रमुख पात्र
⚫ वंशीधर–दारोगा
⚫ बूढ़े मुंशी जी–वंशीधर क
े
पता
⚫ हवलदार बदलू संह
⚫ पं डत आलो पदीन
⚫ वकील
⚫ जज
⚫ वंशीधर की माँ और पत्नी
नमक का दारोगा कहानी का भाव
⚫ नमक का दारोगा कहानी का प्रथम प्रकशन 1914 में हुआ था ।
⚫ यह प्रेमचंद की बहुच चर्थत कहानी है िजसे आदश न्मुख यथाथर्थवाद का अच्छा
उदाहरण कहा जा सकता है ।
⚫ यह धन क
े ऊपर धमर्थ की जीत की कहानी है ।
⚫ धन पर धमर्थ की ,असत्य पर सत्य की और बुराई पर अच्छाई की जीत भी कह
सकते हैं ।
⚫ यह कहानी प्रशास नक और न्याय क व्यवस्था में व्याप्त ष्टाचार और उसकी
व्यापक सामािजक स्वीकायर्थता को अत्यंत साह सक तरीक
े से हमारे सामने
उजागर करती है ।
⚫ ईमानदार व्यि त क
े अ भमन्यु क
े समान नहत्थे और अक
े ले पड़ते जाने की
यथाथर्थ तस्वीर इस कहानी की बहुत बड़ी खूबी है ।
⚫ प्रेमचंद इस कहानी को यथाथर्थ क
े धरातल पर नहीं छोड़ना चाहते थे यों क
उनका मानना था क इससे समाज में नराशावाद पनप सकता है ।
⚫ मानव-च रत्र पर से हमारा वश्वास उठ जाता और चारों तरफ बुराई-ही-बुराई
नज़र आने लगती ।
⚫ इस लए कहानी का अंत सत्य की जीत क
े साथ होता है ।
नमक का दारोगा कहानी का सार
⚫ कहानी में प्र त न धत्व क्रमश: प डत अलोपीदीन और मुंशी
वंशीधर नामक पात्रों ने कया है।
⚫ ईमानदार कमर्थयोगी मुंशी वंशीधर को खरीदने में असफल रहने
क
े बाद पं डत अलोपीदीन अपने धन की म हमा का उपयोग कर
उन्हें नौकरी से हटवा देते हैं, ले कन अंत: सत्य क
े आगे उनका
सर झुक जाता है।
⚫ वे सरकारी वभाग से बखार्थस्त वंशीधर को बहुत ऊ
ँ चे वेतन और
भत्ते क
े साथ अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर नयु त
करते हैं और गहरे अपराध-बोध से भरी हुई वाणी में नवेदन
करते हैं –
⚫ ‘‘ परमात्मा से यही प्राथर्थना है क वह आपको सदैव वही नदी क
े
कनारे वाला बेमुरौवत, उद्दंड, कं तु धमर्थ नष्ठ दारोगा बनाए
नमक का दारोगा
❖ कहानी आजादी से पहले की है।
नमक का नया वभाग बना।
वभाग में ऊपरी कमाई बहुत
यादा थी इस लए सभी व्यि त
इस वभाग में काम करने को
उत्सुक थे।
❖ उस दौर में फारसी का बोलबाला
था और उच्च ज्ञान क
े बजाय
क
े वल फारसी की प्रेम-कथाएँ
और शृंगार रस क
े काव्य पढ़कर
ही लोग उच्च पदों पर पहुँच
जाते थे।
❖ मुंशी वंशीधर ने भी फारसी पढ़ी
और रोजगार की खोज में
नकल पड़े। उनक
े घर की
आ थर्थक दशा खराब थी।
वंशीधर क
े पता सलाह देते हुए
❖ बेटा!घर की दुदर्थशा देख रहे हो ।
ऋण क
े बोझ से दबे हुए हैं।
लड़ कयाँ हैं,वह घास-फ
ू स की तरह
बढ़ती चली जाती हैं ।
❖ मैं कगारे पर का वृक्ष हो रहा हूँ न
मालूम कब गर पड़ूँ ।
❖ नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान
मत देना,यह तो पीर का मज़ार है ।
नगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी
चा हए ।
❖ उनक
े पता ने घर से नकलते
समय उन्हें बहुत समझाया,
िजसका सार यह था क ऐसी
नौकरी करना िजसमें ऊपरी कमाई
हो और आदमी तथा अवसर
देखकर घूस ज र लेना।
वंशीधर पता का आशीवार्थद लेकर जाते हुए
❖ वे कहते हैं क मा सक वेतन
तो पूणर्थमासी का चाँद है जो एक
दन दखाई देता है और घटते-
घटते लुप्त हो जाता है।
❖ ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है
िजससे सदैव प्यास बुझती है।
आवश्यकता व अवसर देखकर
ववेक से काम करो।
⚫ वंशीधर पता से आशीवार्थद
लेकर नौकरी की तलाश में
नकल जाते हैं।
⚫ भाग्य से नमक वभाग क
े
दारोग पद की नौकरी मली
जाती है िजसमें वेतन अच्छा
था साथ ही ऊपरी कमाई भी
यादा थी।
⚫ यह खबर जब पता को पता
चली तो वह बहुत खुश हुए।
⚫ मुंशी वंशीधर ने छः महीने में
अपनी कायर्थक
ु शलता और
अच्छे आचरण से सभी
अ धका रयों को मो हत कर
लया।
वंशीधर की दारोगा पद पर नयुि त
दारोगा का नमक की गा ड़यों को रोकना
❖ जाड़े क
े समय एक रात वंशीधर अपने
दफ़्तर में सो रहे थे।
❖ गा ड़यों की आवाज़ और म लाहों की
कोलाहल से उनकी नींद खुली। बंदूक जेब
में रखी और घोड़े पर बैठकर पुल पर पहुँचे,
वहाँ गा ड़यों की एक लंबी कतार पुल पार
कर रही थीं।
❖ उन्होंने पूछा कसकी गा ड़याँ हैं तो पता
चला, पं डत अलोपीदीन की हैं। मुंशी
वंशीधर च क पड़े।
❖ पं डत अलोपीदीन इलाक
े क
े सबसे
प्र तिष्ठत जमींदार थे। लाखों रुपयों का
व्यापार था।
❖ वंशीधर ने जब जाँच की तब पता चला क
गा ड़यों में नमक क
े ढेले क
े बोरे हैं। उन्होंने
गा ड़याँ रोक लीं।
पं डत अलोपीदीन की दारोगा से मुलाक़ात
❖ पं डत अलोपीदीन अपने सजीले
रथ में ऊ
ँ घते हुए जा रहे थे तभी
गाड़ी वालों ने गा ड़याँ रोकने की
खबर दी।
❖ पं डत सारे संसार में लक्ष्मी को
प्रमुख मानते थे।
❖ न्याय, नी त सब लक्ष्मी क
े
खलौने हैं। उसी घमंड में निश्चत
होकर दारोगा क
े पास पहुँचे।
❖ उन्होंने दारोगा कहा क हमारी
सरकार तो आप ही है । हमारा और
आपका तो घर का मामला है ,हम
कभी आपसे बाहर हो सकते है ?
मेरी सरकार तो आप ही हैं। आपने
व्यथर्थ ही कष्ट उठाया।
पं डत अलोपीदीन ने दारोगा से रश्वत की पेशकस
⚫ पं डतजी ने वंशीधर को रश्वत
देकर गा ड़यों को छोड़ने को
कहा, परन्तु वंशीधर अपने
कतर्थव्य पर अ डग रहे और
पं डतजी को गरफ़्तार करने का
हु म दे दया।
⚫ पं डतजी आश्चयर्थच कत रह गए
। पं डतजी ने रश्वत को बढ़ाया
भी परन्तु वंशीधर नहीं माने
और पं डतजी को गरफ्तार कर
लया गया।
न्यायालय में गवाह और कमर्थचारी
⚫ अगले दन यह खबर हर तरफ
फ
ै ल गयी। पं डत अलोपीदीन क
े
हाथों में हथक ड़याँ डालकर
अदालत में लाया गया।
⚫ हृदय में ग्ला न और क्षोभ और
ल जा से उनकी गदर्थन झुकी हुई
थी।
⚫ सभी लोग च कत थे क
पं डतजी कानून की पकड़ में
क
ै से आ गए।
⚫ सारे वकील और गवाहा
पं डतजी क
े पक्ष में थे, वंशीधर
क
े पास क
े वल सत्य का बल था।
मुकदमे का फ
ै सला
⚫ न्याय की अदालत में पक्षपात चल
रहा था। मुकदमा तुरन्त समाप्त हो
गया।
⚫ पं डत अलोपीदीन को सबूतों क
े
अभाव में रहा कर दया गया ।
⚫ वंशीधर की उद्दण्डता और
वचारहीनता क
े बतार्थव पर अदालत
ने दुःख जताया िजसक
े कारण एक
अच्छे व्यि त को कष्ट झेलना पड़ा।
⚫ भ वष्य में उसे अ धक हो शयार
रहने को कहा गया।
⚫ पं डत अलोपीदीन मुस्कराते हुए
बाहर नकले। रुपये बाँटे गए।
⚫ वंशीधर को व्यंग्यबाणों को सहना
पड़ा। एक सप्ताह क
े अंदर
कतर्थव्य नष्ठा का दंड मला और
नौकरी से हटा दया गया।
वंशीधर का अपने घर पहुँचना
⚫ परािजत हृदय, शोक और
खेद से व्य थत बंशीधर
अपने घर की ओर चल पड़े।
⚫ घर पहुँचे तो पताजी ने
कड़वीं बातें सुनाई।
⚫ वृद्धा माता को भी दुःख
हुआ।
⚫ पत्नी ने कई दनों तक सीधे
मुँह बात नहीं की।
⚫ एक सप्ताह बीत गया।
संध्या का समय था।
पं डत अलो पदीन का वंशीधर क
े घर आना
⚫ वंशीधर क
े पता राम-नाम की
माला जप रहे थे। तभी वहाँ सजा
हुआ एक रथ आकर रुका।
⚫ पता ने देखा पं डत अलोपीदीन
हैं। झुककर उन्हें दंडवत कया
और चापलूसी भरी बातें करने
लगे, साथ ही अपने बेटे को
कोसा भी।
⚫ पं डतजी ने बताया क उन्होंने
कई रईसों और अ धका रयों को
देखा और सबको अपने धनबल
का गुलाम बनाया।
⚫ ऐसा पहली बार हुआ जब कसी
व्यि त ने अपनी कतर्थव्य नष्ठा
द्वारा उन्हें हराया हो।
वंशीधर क
े सामने अलो पदीन द्वारा मैनेजरी का प्रस्ताव
❖ वंशीधर ने जब पं डतजी को देखा तो
स्वा भमान स हत उनका सत्कार कया।
उन्हें लगा की पं डतजी उन्हें लि जत
करने आए हैं। परन्तु पं डतजी की बातें
सुनकर उनक
े मन का मैल मट गया।
❖ उन्होंने पं डतजी को कहा क उनका जो
हु म होगा वे करने को तैयार हैं। इस
बात पर पं डतजी ने स्टाम्प लगा हुआ
एक पत्र नकला और उनसे प्राथर्थना
स्वीकार करने को कहा ।
❖ वंशीधर ने जब कागज़ पढ़ा तो उसमें
पं डतजी ने उसे अपनी सारी जायदाद
का स्थायी मैनेजर नयु त कया करने
की बात लखी थी ।
❖ कृ तज्ञता से वंशीधर की आँखों में आँसू
आ गए और उन्होंने कहा क वे इस पद
क
े योग्य नहीं हैं। इसपर पं डतजी ने
मुस्कराते हुए कहा क उन्हें अयोग्य
व्यि त ही चा हए। ।
वंशीधर का अलोपीदीन क
े मैनेजर क
े पद को स्वीकार कर लेना
वंशीधर ने कहा क उनमें
इतनी बुद् ध नहीं की वह यह
कायर्थ कर सक
ें ।
पं डतजी ने वंशीधर को कलम
देते हुए कहा क उन्हें
वद्यवान नहीं चा हए बि क
धमर्थ नष्ठ व्यि त चा हए।
वंशीधर ने काँपते हुए मैनेजरी
क
े कागज़ पर दस्तखत कर
दए।
पं डत अलोपीदीन ने वंशीधर
को ख़ुशी से गले लगा लया
क ठन शब्दाथर्थ
⚫ दारोगा
⚫ ईश्वर-प्रदत्त
⚫ नषेध
⚫ छल-प्रपंच
⚫ पौ-बारह होना
⚫ बरक
ं दाजी
⚫ फारसीदां
⚫ मुअत्तली
⚫ तजवीज़
⚫ अरदली
⚫ मु तार
⚫ लहाफ़
⚫ ओहदा
⚫ शक
ु न
⚫ ओहदेदार
⚫ ठक
ु र-सुहाती
⚫ बेमुरौवत
⚫ थानेदार,इंसपे टर
⚫ भगवान का दया हुआ
⚫ मनाही
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⚫ आनंद होना
⚫ चौकीदारी,बंदूक लेकर चलने वाला सपाही
⚫ फारसी जानने वाला
⚫ नौकरी से नकालना
⚫ राय, नणर्थय
⚫ अफसर का नजी चपरासी
⚫ सहायक कमर्थचारी
⚫ रजाई
⚫ पदवी
⚫ लक्षण
⚫ ऊ
ँ चे पद वाला
⚫ स्वामी को अच्छ लगने वाली बातें
⚫ बना लहाज़
मू यांकन प्रश्न
⚫ ईश्वर प्रदत्त वस्तु या हैं?
⚫ ओहद को पीर की मज़ार यों कहा गया है?
⚫ वेतन को पूणर्थमासी का चाँद यों कहा गया है?
⚫ वंशीधर की स्खाई का या कारण था?
⚫ ‘घाट क
े देवता को भेंट चढ़ाने’ से या तात्पयर्थ हैं?
⚫ ‘दु नया सोती थी, पर दु नया की जीभ जगती थी।’ से या तात्पयर्थ हैं?
⚫ देवताओं की तरह गरदनें चलाने का या मतलब है?
⚫ कचहरी की अगाध वन यों कहा गया?
⚫ ‘घर में औधरा, मिस्जद में दीया अवश्य जलाएँगे। ‘—इस उि त में कस पर या
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⚫ ‘नमक का दरोगा’ कहानी में पं डत अलोपीदीन क
े व्यि तत्व क
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(पक्ष) उभरकर आते हैं?
⚫ ‘पढ़ना- लखना सब अकारथ गया।’ वृद्ध मुंशी जी दवारा यह बात एक व शष्ट
संदभर्थ में कही गई थी। अपने नजी अनुभवों क
े आधार पर बताइए-
⚫ ‘लड़ कयाँ हैं, वह घास-फ
ू स की तरह बढ़ती चली जाती हैं।’ वा य समाज में
लड़ कयों की िस्थ त की कस वास्त वकता को प्रकट करता है?
धन्यवाद
प्रस्तुतकतार्थ
क
ै लाश चन्द रैगर
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े न्द्रीय वद्यालय क्रमांक-2 वायुसेना,
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  • 1. क े न्द्रीय वद्यालय संगठन,जयपुर संभाग आरोह भाग-1 कक्षा -11 हन्दी (आधार) पाठ-नमक का दारोगा लेखक-प्रेमचंद प्रस्तुतकतार्थ क ै लाश चन्द रैगर स्नातकोत्तर शक्षक ( हन्दी) क े न्द्रीय वद्यालय क्रमांक-2 वायुसेना , जोधपुर
  • 2. प्रेमचन्द प रचय ⚫ प्रेमचन्द (धनपत राय) ⚫ जन्म-सन 1880,लमही गाँव (उत्तर प्रदेश) ⚫ रचनाएँ- नमर्थला, गबन, प्रेमा म, रंगभू म, कमर्थभू म, कायाक प, प्र तज्ञा, वरदान, गोदान ⚫ प्रेमचंद की सभी कहा नयाँ मानसरोवर क े आठ भागों में संक लत है।
  • 3. नमक का दारोगा कहानी क े प्रमुख पात्र ⚫ वंशीधर–दारोगा ⚫ बूढ़े मुंशी जी–वंशीधर क े पता ⚫ हवलदार बदलू संह ⚫ पं डत आलो पदीन ⚫ वकील ⚫ जज ⚫ वंशीधर की माँ और पत्नी
  • 4. नमक का दारोगा कहानी का भाव ⚫ नमक का दारोगा कहानी का प्रथम प्रकशन 1914 में हुआ था । ⚫ यह प्रेमचंद की बहुच चर्थत कहानी है िजसे आदश न्मुख यथाथर्थवाद का अच्छा उदाहरण कहा जा सकता है । ⚫ यह धन क े ऊपर धमर्थ की जीत की कहानी है । ⚫ धन पर धमर्थ की ,असत्य पर सत्य की और बुराई पर अच्छाई की जीत भी कह सकते हैं । ⚫ यह कहानी प्रशास नक और न्याय क व्यवस्था में व्याप्त ष्टाचार और उसकी व्यापक सामािजक स्वीकायर्थता को अत्यंत साह सक तरीक े से हमारे सामने उजागर करती है । ⚫ ईमानदार व्यि त क े अ भमन्यु क े समान नहत्थे और अक े ले पड़ते जाने की यथाथर्थ तस्वीर इस कहानी की बहुत बड़ी खूबी है । ⚫ प्रेमचंद इस कहानी को यथाथर्थ क े धरातल पर नहीं छोड़ना चाहते थे यों क उनका मानना था क इससे समाज में नराशावाद पनप सकता है । ⚫ मानव-च रत्र पर से हमारा वश्वास उठ जाता और चारों तरफ बुराई-ही-बुराई नज़र आने लगती । ⚫ इस लए कहानी का अंत सत्य की जीत क े साथ होता है ।
  • 5. नमक का दारोगा कहानी का सार ⚫ कहानी में प्र त न धत्व क्रमश: प डत अलोपीदीन और मुंशी वंशीधर नामक पात्रों ने कया है। ⚫ ईमानदार कमर्थयोगी मुंशी वंशीधर को खरीदने में असफल रहने क े बाद पं डत अलोपीदीन अपने धन की म हमा का उपयोग कर उन्हें नौकरी से हटवा देते हैं, ले कन अंत: सत्य क े आगे उनका सर झुक जाता है। ⚫ वे सरकारी वभाग से बखार्थस्त वंशीधर को बहुत ऊ ँ चे वेतन और भत्ते क े साथ अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर नयु त करते हैं और गहरे अपराध-बोध से भरी हुई वाणी में नवेदन करते हैं – ⚫ ‘‘ परमात्मा से यही प्राथर्थना है क वह आपको सदैव वही नदी क े कनारे वाला बेमुरौवत, उद्दंड, कं तु धमर्थ नष्ठ दारोगा बनाए
  • 6. नमक का दारोगा ❖ कहानी आजादी से पहले की है। नमक का नया वभाग बना। वभाग में ऊपरी कमाई बहुत यादा थी इस लए सभी व्यि त इस वभाग में काम करने को उत्सुक थे। ❖ उस दौर में फारसी का बोलबाला था और उच्च ज्ञान क े बजाय क े वल फारसी की प्रेम-कथाएँ और शृंगार रस क े काव्य पढ़कर ही लोग उच्च पदों पर पहुँच जाते थे। ❖ मुंशी वंशीधर ने भी फारसी पढ़ी और रोजगार की खोज में नकल पड़े। उनक े घर की आ थर्थक दशा खराब थी।
  • 7. वंशीधर क े पता सलाह देते हुए ❖ बेटा!घर की दुदर्थशा देख रहे हो । ऋण क े बोझ से दबे हुए हैं। लड़ कयाँ हैं,वह घास-फ ू स की तरह बढ़ती चली जाती हैं । ❖ मैं कगारे पर का वृक्ष हो रहा हूँ न मालूम कब गर पड़ूँ । ❖ नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना,यह तो पीर का मज़ार है । नगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चा हए । ❖ उनक े पता ने घर से नकलते समय उन्हें बहुत समझाया, िजसका सार यह था क ऐसी नौकरी करना िजसमें ऊपरी कमाई हो और आदमी तथा अवसर देखकर घूस ज र लेना।
  • 8. वंशीधर पता का आशीवार्थद लेकर जाते हुए ❖ वे कहते हैं क मा सक वेतन तो पूणर्थमासी का चाँद है जो एक दन दखाई देता है और घटते- घटते लुप्त हो जाता है। ❖ ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है िजससे सदैव प्यास बुझती है। आवश्यकता व अवसर देखकर ववेक से काम करो। ⚫ वंशीधर पता से आशीवार्थद लेकर नौकरी की तलाश में नकल जाते हैं।
  • 9. ⚫ भाग्य से नमक वभाग क े दारोग पद की नौकरी मली जाती है िजसमें वेतन अच्छा था साथ ही ऊपरी कमाई भी यादा थी। ⚫ यह खबर जब पता को पता चली तो वह बहुत खुश हुए। ⚫ मुंशी वंशीधर ने छः महीने में अपनी कायर्थक ु शलता और अच्छे आचरण से सभी अ धका रयों को मो हत कर लया। वंशीधर की दारोगा पद पर नयुि त
  • 10. दारोगा का नमक की गा ड़यों को रोकना ❖ जाड़े क े समय एक रात वंशीधर अपने दफ़्तर में सो रहे थे। ❖ गा ड़यों की आवाज़ और म लाहों की कोलाहल से उनकी नींद खुली। बंदूक जेब में रखी और घोड़े पर बैठकर पुल पर पहुँचे, वहाँ गा ड़यों की एक लंबी कतार पुल पार कर रही थीं। ❖ उन्होंने पूछा कसकी गा ड़याँ हैं तो पता चला, पं डत अलोपीदीन की हैं। मुंशी वंशीधर च क पड़े। ❖ पं डत अलोपीदीन इलाक े क े सबसे प्र तिष्ठत जमींदार थे। लाखों रुपयों का व्यापार था। ❖ वंशीधर ने जब जाँच की तब पता चला क गा ड़यों में नमक क े ढेले क े बोरे हैं। उन्होंने गा ड़याँ रोक लीं।
  • 11. पं डत अलोपीदीन की दारोगा से मुलाक़ात ❖ पं डत अलोपीदीन अपने सजीले रथ में ऊ ँ घते हुए जा रहे थे तभी गाड़ी वालों ने गा ड़याँ रोकने की खबर दी। ❖ पं डत सारे संसार में लक्ष्मी को प्रमुख मानते थे। ❖ न्याय, नी त सब लक्ष्मी क े खलौने हैं। उसी घमंड में निश्चत होकर दारोगा क े पास पहुँचे। ❖ उन्होंने दारोगा कहा क हमारी सरकार तो आप ही है । हमारा और आपका तो घर का मामला है ,हम कभी आपसे बाहर हो सकते है ? मेरी सरकार तो आप ही हैं। आपने व्यथर्थ ही कष्ट उठाया।
  • 12. पं डत अलोपीदीन ने दारोगा से रश्वत की पेशकस ⚫ पं डतजी ने वंशीधर को रश्वत देकर गा ड़यों को छोड़ने को कहा, परन्तु वंशीधर अपने कतर्थव्य पर अ डग रहे और पं डतजी को गरफ़्तार करने का हु म दे दया। ⚫ पं डतजी आश्चयर्थच कत रह गए । पं डतजी ने रश्वत को बढ़ाया भी परन्तु वंशीधर नहीं माने और पं डतजी को गरफ्तार कर लया गया।
  • 13. न्यायालय में गवाह और कमर्थचारी ⚫ अगले दन यह खबर हर तरफ फ ै ल गयी। पं डत अलोपीदीन क े हाथों में हथक ड़याँ डालकर अदालत में लाया गया। ⚫ हृदय में ग्ला न और क्षोभ और ल जा से उनकी गदर्थन झुकी हुई थी। ⚫ सभी लोग च कत थे क पं डतजी कानून की पकड़ में क ै से आ गए। ⚫ सारे वकील और गवाहा पं डतजी क े पक्ष में थे, वंशीधर क े पास क े वल सत्य का बल था।
  • 14. मुकदमे का फ ै सला ⚫ न्याय की अदालत में पक्षपात चल रहा था। मुकदमा तुरन्त समाप्त हो गया। ⚫ पं डत अलोपीदीन को सबूतों क े अभाव में रहा कर दया गया । ⚫ वंशीधर की उद्दण्डता और वचारहीनता क े बतार्थव पर अदालत ने दुःख जताया िजसक े कारण एक अच्छे व्यि त को कष्ट झेलना पड़ा। ⚫ भ वष्य में उसे अ धक हो शयार रहने को कहा गया। ⚫ पं डत अलोपीदीन मुस्कराते हुए बाहर नकले। रुपये बाँटे गए। ⚫ वंशीधर को व्यंग्यबाणों को सहना पड़ा। एक सप्ताह क े अंदर कतर्थव्य नष्ठा का दंड मला और नौकरी से हटा दया गया।
  • 15. वंशीधर का अपने घर पहुँचना ⚫ परािजत हृदय, शोक और खेद से व्य थत बंशीधर अपने घर की ओर चल पड़े। ⚫ घर पहुँचे तो पताजी ने कड़वीं बातें सुनाई। ⚫ वृद्धा माता को भी दुःख हुआ। ⚫ पत्नी ने कई दनों तक सीधे मुँह बात नहीं की। ⚫ एक सप्ताह बीत गया। संध्या का समय था।
  • 16. पं डत अलो पदीन का वंशीधर क े घर आना ⚫ वंशीधर क े पता राम-नाम की माला जप रहे थे। तभी वहाँ सजा हुआ एक रथ आकर रुका। ⚫ पता ने देखा पं डत अलोपीदीन हैं। झुककर उन्हें दंडवत कया और चापलूसी भरी बातें करने लगे, साथ ही अपने बेटे को कोसा भी। ⚫ पं डतजी ने बताया क उन्होंने कई रईसों और अ धका रयों को देखा और सबको अपने धनबल का गुलाम बनाया। ⚫ ऐसा पहली बार हुआ जब कसी व्यि त ने अपनी कतर्थव्य नष्ठा द्वारा उन्हें हराया हो।
  • 17. वंशीधर क े सामने अलो पदीन द्वारा मैनेजरी का प्रस्ताव ❖ वंशीधर ने जब पं डतजी को देखा तो स्वा भमान स हत उनका सत्कार कया। उन्हें लगा की पं डतजी उन्हें लि जत करने आए हैं। परन्तु पं डतजी की बातें सुनकर उनक े मन का मैल मट गया। ❖ उन्होंने पं डतजी को कहा क उनका जो हु म होगा वे करने को तैयार हैं। इस बात पर पं डतजी ने स्टाम्प लगा हुआ एक पत्र नकला और उनसे प्राथर्थना स्वीकार करने को कहा । ❖ वंशीधर ने जब कागज़ पढ़ा तो उसमें पं डतजी ने उसे अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर नयु त कया करने की बात लखी थी । ❖ कृ तज्ञता से वंशीधर की आँखों में आँसू आ गए और उन्होंने कहा क वे इस पद क े योग्य नहीं हैं। इसपर पं डतजी ने मुस्कराते हुए कहा क उन्हें अयोग्य व्यि त ही चा हए। ।
  • 18. वंशीधर का अलोपीदीन क े मैनेजर क े पद को स्वीकार कर लेना वंशीधर ने कहा क उनमें इतनी बुद् ध नहीं की वह यह कायर्थ कर सक ें । पं डतजी ने वंशीधर को कलम देते हुए कहा क उन्हें वद्यवान नहीं चा हए बि क धमर्थ नष्ठ व्यि त चा हए। वंशीधर ने काँपते हुए मैनेजरी क े कागज़ पर दस्तखत कर दए। पं डत अलोपीदीन ने वंशीधर को ख़ुशी से गले लगा लया
  • 19. क ठन शब्दाथर्थ ⚫ दारोगा ⚫ ईश्वर-प्रदत्त ⚫ नषेध ⚫ छल-प्रपंच ⚫ पौ-बारह होना ⚫ बरक ं दाजी ⚫ फारसीदां ⚫ मुअत्तली ⚫ तजवीज़ ⚫ अरदली ⚫ मु तार ⚫ लहाफ़ ⚫ ओहदा ⚫ शक ु न ⚫ ओहदेदार ⚫ ठक ु र-सुहाती ⚫ बेमुरौवत ⚫ थानेदार,इंसपे टर ⚫ भगवान का दया हुआ ⚫ मनाही ⚫ धोखा म कारी ⚫ आनंद होना ⚫ चौकीदारी,बंदूक लेकर चलने वाला सपाही ⚫ फारसी जानने वाला ⚫ नौकरी से नकालना ⚫ राय, नणर्थय ⚫ अफसर का नजी चपरासी ⚫ सहायक कमर्थचारी ⚫ रजाई ⚫ पदवी ⚫ लक्षण ⚫ ऊ ँ चे पद वाला ⚫ स्वामी को अच्छ लगने वाली बातें ⚫ बना लहाज़
  • 20. मू यांकन प्रश्न ⚫ ईश्वर प्रदत्त वस्तु या हैं? ⚫ ओहद को पीर की मज़ार यों कहा गया है? ⚫ वेतन को पूणर्थमासी का चाँद यों कहा गया है? ⚫ वंशीधर की स्खाई का या कारण था? ⚫ ‘घाट क े देवता को भेंट चढ़ाने’ से या तात्पयर्थ हैं? ⚫ ‘दु नया सोती थी, पर दु नया की जीभ जगती थी।’ से या तात्पयर्थ हैं? ⚫ देवताओं की तरह गरदनें चलाने का या मतलब है? ⚫ कचहरी की अगाध वन यों कहा गया? ⚫ ‘घर में औधरा, मिस्जद में दीया अवश्य जलाएँगे। ‘—इस उि त में कस पर या व्यग्य हैं? ⚫ ‘नमक का दरोगा’ कहानी में पं डत अलोपीदीन क े व्यि तत्व क े कौन-से दो पहलू (पक्ष) उभरकर आते हैं? ⚫ ‘पढ़ना- लखना सब अकारथ गया।’ वृद्ध मुंशी जी दवारा यह बात एक व शष्ट संदभर्थ में कही गई थी। अपने नजी अनुभवों क े आधार पर बताइए- ⚫ ‘लड़ कयाँ हैं, वह घास-फ ू स की तरह बढ़ती चली जाती हैं।’ वा य समाज में लड़ कयों की िस्थ त की कस वास्त वकता को प्रकट करता है?
  • 21. धन्यवाद प्रस्तुतकतार्थ क ै लाश चन्द रैगर स्नातकोत्तर शक्षक ( हन्दी) क े न्द्रीय वद्यालय क्रमांक-2 वायुसेना, जोधपुर