Mahabharat is one of the most important historical evidence for the Hindu religion.
here I have to try to inculcate some parts of it because it is not possible for me to include all of them as it is so big.
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3. जीिनी
नाम – सिंि कबीरदास (Kabir Das)
जन्म – 1398
जन्म स्थान – ल रिारा िाल, काशी
मृत्यु – 1518
मृत्यु स्थान – मग र, उत्तर प्रदेश
मािा का नाम – नीमा
वििा का नाम – नीरू
ित्नी का नाम – लोई
िुत्र का नाम – कमाल
िुत्री का नाम – कमाली
कमम भूमम – काशी, बनारस
कायम क्षेत्र – समाज सुधारक, कपव, सूि काटकर
किडा बनाना
मुख्य रचनाएं – साखी, सबद, रमैनी
भाषा – अवधी, सधुतकडी, ििंचमेल खखचडी
मिक्षा – ननरक्षर
नागररकिा – भारिीय
भक्तिकाल के कपव - डॉ. मे फ्लावर के ए - सेन मेररस कॉलेज
4. जानि न िूछो साधू की िूछ लीक्जए ज्ञान ।
मोल करो िरवार को िडा र न दो म्यान ॥
अर्थ: सच्चा साधु सब प्रकार के भेदभावों से ऊिर
उठ जािा ै. उससे य न िूछो की व ककस जानि
का ै साधु ककिना ज्ञानी ै य जानना म त्विूर्थ
ै. साधु की जानि म्यान के समान ै और उसका
ज्ञान िलवार की धार के समान ै. िलवार की धार
ी उसका मूल्य ै – उसकी म्यान िलवार के मूल्य
को न ीिं बढािी I
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6. ,
नाम सूरदास (Surdas)
जन्म
सिंवि् 1535 पवक्रमी (स्िष्ट
न ीिं ै)
जन्मस्थान रुनकिा
वििा का नाम रामदास सारस्वि
गुरु बल्लभाचायथ
ित्नी का नाम आजीवन अपववाह ि
मृत्यु
सिंवि् 1642 पवक्रमी (स्िष्ट
न ीिं ै)
कायमक्षेत्र कपव
रचनायें
सूरसागर, सूरसारावली,साह त्य-
ल री, नल-दमयन्िी, ब्या लो
संि सूरदास की भक्तििूिमक जीिनी
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7. “चरन कमल बिंदौ रर राई
जाकी कृ िा ििंगु गगरर लिंघै आिंधर कों सब कछु
दरसाई॥
बह रो सुनै मूक िुनन बोलै रिंक चले ससर छि
धराई
सूरदास स्वामी करुनामय बार-बार बिंदौं िेह िा”
अथम: इस दो े में सूरदास ने श्री कृ ष्र् की मह मा का वर्थन ककया ै। व क िे ैं कक श्री
कृ ष्र् की मह मा ऐसी ै कक लिंगडा भी िवथि को िार कर लेिा ै, अिंधे लोगों को सब कु छ
हदखने लगिा ै। ब रे व्यक्ति को सब सुनाई देने लगिा ै गूिंगा व्यक्ति बोलने लग जािा
ै। गरीब व्यक्ति अमीर बन जािा ै सूरदास क िे ैं कक प्रभु के चरर्ों में मैं बार-बार
नमन करिा ूिं।
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9. जन्म
रामबोला
1511 ई०
सोरों शूकरक्षेि, कासगिंज , उत्तर प्रदेश, भारि
मृत्यु
1623 ई०
वारार्सी
गुरु/मिक्षक नर ररदास
दिमन वैष्र्व
खििाब/सम्मान गोस्वामी, असभनववाल्मीकक, इत्याहद
साहिक्त्यक कायम
रामचररिमानस, पवनयित्रिका, दो ावली,
कपविावली, नुमान चालीसा, वैराग्य
सन्दीिनी, जानकी मिंगल, िावथिी मिंगल,
इत्याहद
कथन
सीयराममय सब जग जानी।
करउँ प्रनाम जोरर जुग िानी ॥
(रामचररिमानस १.८.२)
धमम ह न्दू
दिमन वैष्र्व
गोस्िामी िुलसीदास जीिनी
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10. िुलसी मीठे बचन िे सुख उिजि च ुँ ओर |
बसीकरन इक मिंि ै िरर रू बचन कठोर ||
अर्थ: िुलसीदासजी क िे ैं कक मीठे वचन सब ओर सुख फै लािे ैं
|ककसी को भी वश में करने का ये एक मन्ि ोिे ैं इससलए मानव
को चाह ए कक कठोर वचन छोडकर मीठा बोलने का प्रयास करे |
नामु राम को कलििरु कसल कल्यान ननवासु |
जो ससमरि भयो भाँग िे िुलसी िुलसीदास ||
अर्थ: राम का नाम कल्ििरु (मनचा ा िदार्थ देनेवाला
)और कल्यार् का ननवास (मुक्ति का घर ) ै,क्जसको
स्मरर् करने से भाँग सा (ननकृ ष्ट) िुलसीदास भी
िुलसी के समान िपवि ो गया |
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