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‘’एक शिक्षक के विचार, प्रयोग और अनुभि’’
एक शिक्षक के रूप में यह जानना जरूरी समझता हूँ कक बच्चे क्या सोचते हैं, कै से सोचते हैं और उनकी मदद कै से
की जा सकती है? जब कोई बच्चा स्कल में आता है तो कोरा कागज नहीीं होता है और न ही िह खाली है जजसे हम
ज्ञान से भर दें। बजकक िह एक समझ के साथ स्कल आता है। मुझे ऐसी विधि अपनानी चाहहए जजसमें बच्चों को
सीखने के अिसर अधिक शमलें। इसमें मुझे सफलता तब शमल सकती है जब मैं बच्चों को समझूँ, उनकी रूधच और
जरूरत को समझूँ। उनके पररिेि, आधथिक और सामाजजक जस्थतत को ध्यान में रखते हुए उन्हें अधिक से अधिक
सीखने के अिसर उपलब्ि करा सकूँ । साथ ही उनके कौिल और जजज्ञासाओीं को समझकर ऐसी गततविधियाूँ तैयार
करूूँ जजन ्हें बच्चे पढ़ाई का बोझ न समझकर खेल-खेल में समझ आिाररत शिक्षा ग्रहण करने के अिसर प्राप्त करें।
मैं चाहता हूँ कक बच्चों को ऐसे अिसर प्रदान करूूँ जजससे बच्चों में िैज्ञातनक दृजटिकोण पैदा हो। िे ककसी भी बात को
तकि की कसौिी पर कसने के बाद ही उसे स्िीकार करें। िे अपने समाज की शमथ्या िारणाओीं का पररत्याग करें। मैं
चाहता हूँ कक शिक्षा ऐसी हो जो अच्छे नागररक तैयार करे, जो समाज को नए नजररए से देखे। िे अपने साधथयों,
अशभभािकों, अध्यापकों के सामने अपनी जजज्ञासा रखें, उन्हें समझें और तकि के आिार पर अपनी समझ बनाएूँ। िे
शिक्षा इसशलए ग्रहण नहीीं कर रहे हैं कक उन्हें नौकरी शमले बजकक िे शिक्षा इसशलए ग्रहण करें कक उनमें सामाजजक
सरोकार का गठन हो। िे काम को छोिा या बडा न समझें।
शिक्षक और छात्र सम्बन्ध-
मैंने महसस ककया कक जब बच्चे स्कल आते हैं तो उसके मन में डर होता है और िे बोलने में सींकोच करते हैं। अतः
मैंने यह तय ककया कक आते ही मैं बच्चों को अक्षर ज्ञान की घुट्िी न वपलाकर पहले उनकी िींका और झझझक दर
करूूँ ।
ऐसा माहौल तैयार ककया जाए कक बच्चे जब स्कल आएूँ तो उन ्हें अजनबीपन नहीीं लगे। हम उनके साथ उनके
पररिार, पडोस, गाूँि के बारे में बातें करें, उनके अनुभि सुनें, उनकी बातों को आगे बढ़ाने में सहयोग करें। हम स्ियीं
को उनके स्तर तक ले जाकर ऐसा ररि ्ता बनाएूँ कक िो हमें अध्यापक न समझकर अपना दोस्त समझें और बबना
झझझक अपनी बात हमसे कह सकें । यह नया ररि ्ता आने िाले समय में कक्षा में होने िाली गततविधियों के दौरान
साथ-साथ काम करने के शलए एक मजबत आिार दे सके । घर में बच ्चे का यह ररि ्ता स्िाभाविक रूप से माूँ-बाप के
साथ बन जाता है। इसशलए एक शिक्षक को इस आपसी ररि ्ते और विि ्िास को बनाने और बढ़ािा देने का काम एक
जजम्मेदारी के साथ करना चाहहए।
तो मैं भी िुरुआत इसी तरह करता हूँ। उनका नाम, घर, अडोस-पडोस के बारे में बातें करता हूँ। उत्साह िििन करता
हूँ। स्ियीं को बच्चों के स्तर तक ले जाकर उनसे सम्िाद स्थावपत करता हूँ। मैं कहता हूँ, कक अच्छा बच्चों मोर कै से
बोलता है? बच्चे कहते हैं म्याऊूँ -म्याऊूँ । कफर बकरी की, कफर तोते की आिाज तनकालने के शलए कहता हूँ और कभी
कहता हूँ - अरे सारे गाूँि के तोते यहीीं आ गए क्या? बच्चे हूँसते हैं। उनसे िेर की आिाज तनकालने के शलए कहता हूँ।
जब बच्चे िेर की आिाज तनकालते हैं और मैं डरकर धगरने का अशभनय करता हूँ, तो सारे बच्चे झखलझखलाकर हूँस
पडते हैं। इसमें बच्चों के साथ मुझे भी आनन्द आता है। इस सम्िाद में मैं उनकी भाषा बोलने का प्रयास करता हूँ
ताकक मैं उन्हें समझ सकूँ और िे मुझे। मैं उनकी ककपनािजक्त के पींख लगाने के शलए और कुछ हहन्दी िब्दों को
शसखाने के शलए कविताओीं, गीतों और दोहों के माध्यम से उनकी भाषा का सम्मान करते हुए हहन्दी भाषा के िब्दों
का उच्चारण करिाकर खेल-खेल में हहन्दी भाषा से जुडाि करने का प्रयास करता हूँ।
पढ़ने का मनोविज्ञान
मैं समझता हूँ, सभी बच्चे एक से नहीीं होते। कुछ बच्चे स्ियीं कक्षा के अन्दर या बाहर सीख जाते हैं, कुछ जकदी
सीखते हैं, कुछ देर से। लेककन सभी बच्चे तब पढ़ते हैं , जब िे इसके शलए तैयार हों। पढ़ने का तरीका भी सभी का
अलग-अलग होता है। यहद सीखने की हदिा सकारात्मक हो तो ककसी भी प्रकार की चीज़ शिक्षण सामग्री
के रूप में कायि कर सकती है । कुछ कविताओीं को याद करके पढ़ना सीखते हैं, कुछ पढ़ा गया सुनकर पढ़ने
लगते हैं, कुछ दीिारों पर शलखे नारों से पढ़ना सीख जाते हैं।
कहानी / कविता का प्रभाि-
जब मैं कक्षा में कविता सत्र का प्रारम्भ करता हूँ, तो पाता हूँ कक बच्चों में बहुत जोि और उत्साह होता है। हर बच्चा
अपनी कविता सुनाने के शलए आतुर, िो भी पणि हाि-भाि के साथ। मैं देखता हूँ कक कोई भी बच्चा कोई एक कविता
से बूँिा नहीीं रहता है। िह हर हदन नई कविता बोलना चाहता है। मैं स्ितींत्र रूप से बच्चों को अपनी कविता बोलने
और अगले हदन नई कविता बोलने के शलए कहकर उन्हें नई-नई कविताएूँ याद करने का अिसर देता हूँ। जब बच्चे
घर जाकर उस अन्दाज में कविताएूँ सुनाते हैं तो उनके अशभभािक अशभभत हो उठते हैं। बीच-बीच में कविताओीं से
सम ्बजन्ित प्रि ्नों के माध्यम से चचाि करके उन्हें उनकी समझ को विस्तार देने और खेल-खेल में प्रि ्नों के उत्तर
देने की कला सीखने के अिसर प्रदान करता हूँ।
कविता बुलिाना एक अनौपचाररक कायि है, लेककन इस अनौपचाररक कायि के माध्यम से बच्चों को अपनी मातृभाषा
के साथ-साथ हहन्दी की तरफ ले जाना और प्रि ्नोत ्तर ि चचाि के द्िारा समझ विकशसत कर बच्चों में
सृजनात्मकता की क्षमता का विकास आसानी से ककया जा सकता है। इसका प्रभाि मैं अनुभि कर चुका हूँ। मैं
चाहूँगा कक मेरे शिक्षक साथी भी इनका प्रयोग करें। मैंने महसस ककया कक बच्चे हहन्दी के साथ अूँग्रेजी कविता भी
उसी उत्साह से सीखते हैं। इनके माध्यम से हम अूँग्रेजी िब्दों का सही उच्चारण करने का अिसर प्रदान कर आसानी
से अूँग्रेजी को मातृभाषा तथा हहन ्दी की तरह समझने का अिसर प्रदान कर सकते हैं।
मैंने अनुभि ककया कक जब बच्चों को ज्यादातर रिा-रिाया शलखना होता है, इसशलए उन्हें काफी हदक्कत होती है,
इस प्रकिया में शलखने के प्रतत उनका आत्म-विि ्िास एकदम काफर हो जाता है। इसशलए मैंने सोचा की बच्चों को
शलखना शसखाने के प्रतत उत्साह जागृत करने के शलए ऐसी विधि अपनाई जाए जजसमें बच्चे रोचकता और
रचनात्मकता के साथ शलखने के प्रतत आकवषित हों। मैंने पाया कक शलखना शसखाने हेतु पहली कक्षा की पुस्तक में
आडी-ततरछी रेखाएूँ खीींचने के शलए तनदेशित ककया गया है। अतः एक हदन मेरे हदमाग में आया कक क्यों न बच्चों से
धचत्र बनिाए जाएूँ। मैंने आरम्भ में बच्चों को अपनी पसन्द के अनुसार धचत्र बनाने के शलए कहा। मैंने देखा कक बच्चे
िुरू में झझझक रहे थे।
लेककन मैंने स्ियीं बोडि पर तीन-चार धचत्र (बाकिी, मछली, िमािर, आम, सेब, पेड, फल, मोर आहद) एक-एक करके
बनाए और कफर बच्चों से बनाने के शलए कहा । कफर क्या था, बच्चे उत्साहपििक धचत्र बनाकर हदखाने लगे। मैंने
उनका उत्साह बढ़ाया, तो िे परी तकलीनता के साथ धचत्र बनाने लगे और कफर उनका उत्साह इतना बढ़ गया कक
ज्यों ही प्राथिना समाप्त होती, एक साथ पाूँच-पाूँच के समह में चाक के िुकडे लेकर धचत्र बनाने लगते। मैंने पाया कक
िे घर पर नए-नए धचत्र बनाने का प्रयास करते और दसरे हदन बोडि पर आकर अपनी आकृ तत उके रकर अपनी प्रततभा
का प्रदििन करते। मैं उन्हें उत्साहहत करता और इस तरह उनका हाथ शलखने के शलए तैयार हो गया। मैंने सबसे
पहले क िब्द शलखना शसखाया, िो भी रोचक तरीके से, खेल-खेल में।
प्रथम संस्था मेरी गुरु-
कहते हैं सींगत का असर मन पर पडता है। लगातार एक सी सींगत में बैठने पर व्यजक्त का व्यजक्तत्ि भी उसी तरह
का हो जाता है। मन को सींस्काररत करने के शलए अच्छी चचािओीं में और अच्छी सींगत में भाग लेना जरूरी है।इसी
तरह मुझे ‘’प्रथम सींस्था’’ ने प्रभावित ककया | निाचार करने के विचार मन में उपजे।
मैं ऐसी विधियों पर विचार करने लगा जो बच्चों को पढ़ना शलखना शसखाने हेतु उन्हें प्रेररत करें। एक हदन मेरे
हदमाग में आया कक क्यों न इन्हें अध्यापक की भशमका में कायि करने का अिसर प्रदान करूूँ । अगले हदन मैंने उन्हें
एक गुरु और एक चेला के रूप में दो दो लोगों को एक साथ बैठकर पढ़ने का अिसर हदया।मैंने देखा कक बच्चे
,बच्चों को पढ़ाने और पढ़ने में व्यस्त और बच्चों को बार-बार याद करिा रहे थे। मैं इस गततविधि पर नजर रख
रहा था और जहाूँ कहीीं कोई बच्चा पढ़ाने में अिकता मैं उसको बताकर उसकी झझझक दर कर रहा था।
इस तरह दो-तीन हदन तक चला। कफर मैंने उनसे सुनाने को कहा। बच्चे अिक-अिक कर हहज्जे के साथ पढ़ने लग
गए थे।
ककताबों में से छोिे-छोिे प्रि ्न पछकर उनको जिाब देने के शलए प्रेररत भी करता जा रहा था। इस तरह िे सहज
होकर प्रि ्नों के उत ्तर देना भी सीख रहे थे। । इसके साथिक पररणाम आए। मेरी खुिी का हठकाना नहीीं रहा, क्योंकक
मेरी सकारात्मक सोच को सफलता शमल रही थी | मुझे इस विधि के सफल होने का आभास तब हो गया था जब
बच्चे पोषाहार खाते ही अहाते में आ बैठते, जहाूँ मैं बैठता था और पुस्तक में िब्द के हहज्जे करने लगते और नहीीं
आने पर एक-दसरे से या मुझसे पछते। इस तरह मैंने पाया कक -
हर मुजककल का हल होता है,
आज नहीीं तो कल होता है ।
‘’प्रथम’’ के माध्यम से ही मेरी मगज बृद्धि हुई । जजससे मै विशभन्न गततविधियों के बारे में सोच पाता हूँ
और बच्चों के ज़रुरत के मुताविक सकारात्मक प्रयोग करता हूँ ।
प्रथम के आलािा मैंने कभी यह सोचा भी नहीीं था की मैं ऐसा भी करने की क्षमताएीं रखता हूँ । जो आज मैं बच्चों को समझने के साथ -
साथ उनको शसखाने हेतु शभन्न - शभन्न गततविधियों की खोज भी करने की क्षमताओ ींका सरताज़ बना बैठा हूँ ।

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एक शिक्षक के विचार

  • 1. ‘’एक शिक्षक के विचार, प्रयोग और अनुभि’’ एक शिक्षक के रूप में यह जानना जरूरी समझता हूँ कक बच्चे क्या सोचते हैं, कै से सोचते हैं और उनकी मदद कै से की जा सकती है? जब कोई बच्चा स्कल में आता है तो कोरा कागज नहीीं होता है और न ही िह खाली है जजसे हम ज्ञान से भर दें। बजकक िह एक समझ के साथ स्कल आता है। मुझे ऐसी विधि अपनानी चाहहए जजसमें बच्चों को सीखने के अिसर अधिक शमलें। इसमें मुझे सफलता तब शमल सकती है जब मैं बच्चों को समझूँ, उनकी रूधच और जरूरत को समझूँ। उनके पररिेि, आधथिक और सामाजजक जस्थतत को ध्यान में रखते हुए उन्हें अधिक से अधिक सीखने के अिसर उपलब्ि करा सकूँ । साथ ही उनके कौिल और जजज्ञासाओीं को समझकर ऐसी गततविधियाूँ तैयार करूूँ जजन ्हें बच्चे पढ़ाई का बोझ न समझकर खेल-खेल में समझ आिाररत शिक्षा ग्रहण करने के अिसर प्राप्त करें। मैं चाहता हूँ कक बच्चों को ऐसे अिसर प्रदान करूूँ जजससे बच्चों में िैज्ञातनक दृजटिकोण पैदा हो। िे ककसी भी बात को तकि की कसौिी पर कसने के बाद ही उसे स्िीकार करें। िे अपने समाज की शमथ्या िारणाओीं का पररत्याग करें। मैं चाहता हूँ कक शिक्षा ऐसी हो जो अच्छे नागररक तैयार करे, जो समाज को नए नजररए से देखे। िे अपने साधथयों, अशभभािकों, अध्यापकों के सामने अपनी जजज्ञासा रखें, उन्हें समझें और तकि के आिार पर अपनी समझ बनाएूँ। िे शिक्षा इसशलए ग्रहण नहीीं कर रहे हैं कक उन्हें नौकरी शमले बजकक िे शिक्षा इसशलए ग्रहण करें कक उनमें सामाजजक सरोकार का गठन हो। िे काम को छोिा या बडा न समझें। शिक्षक और छात्र सम्बन्ध- मैंने महसस ककया कक जब बच्चे स्कल आते हैं तो उसके मन में डर होता है और िे बोलने में सींकोच करते हैं। अतः मैंने यह तय ककया कक आते ही मैं बच्चों को अक्षर ज्ञान की घुट्िी न वपलाकर पहले उनकी िींका और झझझक दर करूूँ । ऐसा माहौल तैयार ककया जाए कक बच्चे जब स्कल आएूँ तो उन ्हें अजनबीपन नहीीं लगे। हम उनके साथ उनके पररिार, पडोस, गाूँि के बारे में बातें करें, उनके अनुभि सुनें, उनकी बातों को आगे बढ़ाने में सहयोग करें। हम स्ियीं को उनके स्तर तक ले जाकर ऐसा ररि ्ता बनाएूँ कक िो हमें अध्यापक न समझकर अपना दोस्त समझें और बबना झझझक अपनी बात हमसे कह सकें । यह नया ररि ्ता आने िाले समय में कक्षा में होने िाली गततविधियों के दौरान साथ-साथ काम करने के शलए एक मजबत आिार दे सके । घर में बच ्चे का यह ररि ्ता स्िाभाविक रूप से माूँ-बाप के साथ बन जाता है। इसशलए एक शिक्षक को इस आपसी ररि ्ते और विि ्िास को बनाने और बढ़ािा देने का काम एक जजम्मेदारी के साथ करना चाहहए। तो मैं भी िुरुआत इसी तरह करता हूँ। उनका नाम, घर, अडोस-पडोस के बारे में बातें करता हूँ। उत्साह िििन करता हूँ। स्ियीं को बच्चों के स्तर तक ले जाकर उनसे सम्िाद स्थावपत करता हूँ। मैं कहता हूँ, कक अच्छा बच्चों मोर कै से बोलता है? बच्चे कहते हैं म्याऊूँ -म्याऊूँ । कफर बकरी की, कफर तोते की आिाज तनकालने के शलए कहता हूँ और कभी कहता हूँ - अरे सारे गाूँि के तोते यहीीं आ गए क्या? बच्चे हूँसते हैं। उनसे िेर की आिाज तनकालने के शलए कहता हूँ। जब बच्चे िेर की आिाज तनकालते हैं और मैं डरकर धगरने का अशभनय करता हूँ, तो सारे बच्चे झखलझखलाकर हूँस पडते हैं। इसमें बच्चों के साथ मुझे भी आनन्द आता है। इस सम्िाद में मैं उनकी भाषा बोलने का प्रयास करता हूँ ताकक मैं उन्हें समझ सकूँ और िे मुझे। मैं उनकी ककपनािजक्त के पींख लगाने के शलए और कुछ हहन्दी िब्दों को शसखाने के शलए कविताओीं, गीतों और दोहों के माध्यम से उनकी भाषा का सम्मान करते हुए हहन्दी भाषा के िब्दों का उच्चारण करिाकर खेल-खेल में हहन्दी भाषा से जुडाि करने का प्रयास करता हूँ। पढ़ने का मनोविज्ञान
  • 2. मैं समझता हूँ, सभी बच्चे एक से नहीीं होते। कुछ बच्चे स्ियीं कक्षा के अन्दर या बाहर सीख जाते हैं, कुछ जकदी सीखते हैं, कुछ देर से। लेककन सभी बच्चे तब पढ़ते हैं , जब िे इसके शलए तैयार हों। पढ़ने का तरीका भी सभी का अलग-अलग होता है। यहद सीखने की हदिा सकारात्मक हो तो ककसी भी प्रकार की चीज़ शिक्षण सामग्री के रूप में कायि कर सकती है । कुछ कविताओीं को याद करके पढ़ना सीखते हैं, कुछ पढ़ा गया सुनकर पढ़ने लगते हैं, कुछ दीिारों पर शलखे नारों से पढ़ना सीख जाते हैं। कहानी / कविता का प्रभाि- जब मैं कक्षा में कविता सत्र का प्रारम्भ करता हूँ, तो पाता हूँ कक बच्चों में बहुत जोि और उत्साह होता है। हर बच्चा अपनी कविता सुनाने के शलए आतुर, िो भी पणि हाि-भाि के साथ। मैं देखता हूँ कक कोई भी बच्चा कोई एक कविता से बूँिा नहीीं रहता है। िह हर हदन नई कविता बोलना चाहता है। मैं स्ितींत्र रूप से बच्चों को अपनी कविता बोलने और अगले हदन नई कविता बोलने के शलए कहकर उन्हें नई-नई कविताएूँ याद करने का अिसर देता हूँ। जब बच्चे घर जाकर उस अन्दाज में कविताएूँ सुनाते हैं तो उनके अशभभािक अशभभत हो उठते हैं। बीच-बीच में कविताओीं से सम ्बजन्ित प्रि ्नों के माध्यम से चचाि करके उन्हें उनकी समझ को विस्तार देने और खेल-खेल में प्रि ्नों के उत्तर देने की कला सीखने के अिसर प्रदान करता हूँ। कविता बुलिाना एक अनौपचाररक कायि है, लेककन इस अनौपचाररक कायि के माध्यम से बच्चों को अपनी मातृभाषा के साथ-साथ हहन्दी की तरफ ले जाना और प्रि ्नोत ्तर ि चचाि के द्िारा समझ विकशसत कर बच्चों में सृजनात्मकता की क्षमता का विकास आसानी से ककया जा सकता है। इसका प्रभाि मैं अनुभि कर चुका हूँ। मैं चाहूँगा कक मेरे शिक्षक साथी भी इनका प्रयोग करें। मैंने महसस ककया कक बच्चे हहन्दी के साथ अूँग्रेजी कविता भी उसी उत्साह से सीखते हैं। इनके माध्यम से हम अूँग्रेजी िब्दों का सही उच्चारण करने का अिसर प्रदान कर आसानी से अूँग्रेजी को मातृभाषा तथा हहन ्दी की तरह समझने का अिसर प्रदान कर सकते हैं। मैंने अनुभि ककया कक जब बच्चों को ज्यादातर रिा-रिाया शलखना होता है, इसशलए उन्हें काफी हदक्कत होती है, इस प्रकिया में शलखने के प्रतत उनका आत्म-विि ्िास एकदम काफर हो जाता है। इसशलए मैंने सोचा की बच्चों को शलखना शसखाने के प्रतत उत्साह जागृत करने के शलए ऐसी विधि अपनाई जाए जजसमें बच्चे रोचकता और रचनात्मकता के साथ शलखने के प्रतत आकवषित हों। मैंने पाया कक शलखना शसखाने हेतु पहली कक्षा की पुस्तक में आडी-ततरछी रेखाएूँ खीींचने के शलए तनदेशित ककया गया है। अतः एक हदन मेरे हदमाग में आया कक क्यों न बच्चों से धचत्र बनिाए जाएूँ। मैंने आरम्भ में बच्चों को अपनी पसन्द के अनुसार धचत्र बनाने के शलए कहा। मैंने देखा कक बच्चे िुरू में झझझक रहे थे। लेककन मैंने स्ियीं बोडि पर तीन-चार धचत्र (बाकिी, मछली, िमािर, आम, सेब, पेड, फल, मोर आहद) एक-एक करके बनाए और कफर बच्चों से बनाने के शलए कहा । कफर क्या था, बच्चे उत्साहपििक धचत्र बनाकर हदखाने लगे। मैंने उनका उत्साह बढ़ाया, तो िे परी तकलीनता के साथ धचत्र बनाने लगे और कफर उनका उत्साह इतना बढ़ गया कक ज्यों ही प्राथिना समाप्त होती, एक साथ पाूँच-पाूँच के समह में चाक के िुकडे लेकर धचत्र बनाने लगते। मैंने पाया कक िे घर पर नए-नए धचत्र बनाने का प्रयास करते और दसरे हदन बोडि पर आकर अपनी आकृ तत उके रकर अपनी प्रततभा का प्रदििन करते। मैं उन्हें उत्साहहत करता और इस तरह उनका हाथ शलखने के शलए तैयार हो गया। मैंने सबसे पहले क िब्द शलखना शसखाया, िो भी रोचक तरीके से, खेल-खेल में। प्रथम संस्था मेरी गुरु-
  • 3. कहते हैं सींगत का असर मन पर पडता है। लगातार एक सी सींगत में बैठने पर व्यजक्त का व्यजक्तत्ि भी उसी तरह का हो जाता है। मन को सींस्काररत करने के शलए अच्छी चचािओीं में और अच्छी सींगत में भाग लेना जरूरी है।इसी तरह मुझे ‘’प्रथम सींस्था’’ ने प्रभावित ककया | निाचार करने के विचार मन में उपजे। मैं ऐसी विधियों पर विचार करने लगा जो बच्चों को पढ़ना शलखना शसखाने हेतु उन्हें प्रेररत करें। एक हदन मेरे हदमाग में आया कक क्यों न इन्हें अध्यापक की भशमका में कायि करने का अिसर प्रदान करूूँ । अगले हदन मैंने उन्हें एक गुरु और एक चेला के रूप में दो दो लोगों को एक साथ बैठकर पढ़ने का अिसर हदया।मैंने देखा कक बच्चे ,बच्चों को पढ़ाने और पढ़ने में व्यस्त और बच्चों को बार-बार याद करिा रहे थे। मैं इस गततविधि पर नजर रख रहा था और जहाूँ कहीीं कोई बच्चा पढ़ाने में अिकता मैं उसको बताकर उसकी झझझक दर कर रहा था। इस तरह दो-तीन हदन तक चला। कफर मैंने उनसे सुनाने को कहा। बच्चे अिक-अिक कर हहज्जे के साथ पढ़ने लग गए थे। ककताबों में से छोिे-छोिे प्रि ्न पछकर उनको जिाब देने के शलए प्रेररत भी करता जा रहा था। इस तरह िे सहज होकर प्रि ्नों के उत ्तर देना भी सीख रहे थे। । इसके साथिक पररणाम आए। मेरी खुिी का हठकाना नहीीं रहा, क्योंकक मेरी सकारात्मक सोच को सफलता शमल रही थी | मुझे इस विधि के सफल होने का आभास तब हो गया था जब बच्चे पोषाहार खाते ही अहाते में आ बैठते, जहाूँ मैं बैठता था और पुस्तक में िब्द के हहज्जे करने लगते और नहीीं आने पर एक-दसरे से या मुझसे पछते। इस तरह मैंने पाया कक - हर मुजककल का हल होता है, आज नहीीं तो कल होता है । ‘’प्रथम’’ के माध्यम से ही मेरी मगज बृद्धि हुई । जजससे मै विशभन्न गततविधियों के बारे में सोच पाता हूँ और बच्चों के ज़रुरत के मुताविक सकारात्मक प्रयोग करता हूँ । प्रथम के आलािा मैंने कभी यह सोचा भी नहीीं था की मैं ऐसा भी करने की क्षमताएीं रखता हूँ । जो आज मैं बच्चों को समझने के साथ - साथ उनको शसखाने हेतु शभन्न - शभन्न गततविधियों की खोज भी करने की क्षमताओ ींका सरताज़ बना बैठा हूँ ।