1. # यकीनन, कमाऱ करती हो...
तुम जो भी हो,
जैसे हुआ करती हो,
जजसकी जजद करती हो,
वजूद से जूझती फिरती हो,
2. अपने सही होने से ज्यादा
उनके गऱत होने की बेवजह,
नारेबाजजयाां बुऱांद करती हो,
क्या चाहहये से ज्यादा,
क्या नहीां होना चाहहए,
की वकाऱत करती फिरती हो,
अपनी जमीन बुऱांद भी हो मगर,
उनके महऱों को ममटा देने की,
नीम-आरजूएां आबाद रखती हो,
मांजजऱों की मुरादों से इतर,
राहें अपने नाम करने की,
मसिाररश करती रहती हो...।
... तुम जो भी हो,
जैसे भी हुआ करती हो,
बहुत अच्छी हदखती हो,
सचमुच कमाऱ करती हो,
जब अल्िाज़ गुनहगार खड़े हैं,
3. एक तुम्ही हो जो सवाऱ करती हो...
यकीनन, ऱाजवाब हो, कमाऱ करती हो!