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अस्तित्ववाद
[ Existentialism]
https://www.slideserve.com/vin/existentialism
द्वारा - डॉ . ममता उपाध्याय
प्रो . , राजनीति विज्ञान
क
े . एम . कॉलेज , बादलपुर
गौतमबुद्ध नगर , उत्तर प्रदेश
उद्देश्य -
● अस्तित्व वादी दर्शन का ज्ञान
● समसामयिक दौर मे आस्तित्ववादी दर्शन की प्रासंगिकता का ज्ञान
● मानव जीवन क
े प्रति सकारात्मक चिंतन की प्रवृत्ति का विकास
मुख्य शब्द -
अस्तित्व , डेजन , ओवरमेन , दास नैतिकता ,चयन की स्वतंत्रता ,मानववादी
, धर्म , विज्ञान , दर्शन
अस्तित्ववाद दो विश्व युद्धों क
े मध्य विकसित एक दार्शनिक प्रवृत्ति , विचार एवं
बौद्धिक आंदोलन है, जिसका लक्ष्य मानवीय जीवन क
े अस्तित्व की तलाश और
उसे सार्थकता प्रदान करना है। यह एक मानव क
ें द्रित धारणा है जो इस मूल विचार
पर आधारित है कि पृथ्वी क
े समस्त प्राणियों में मनुष्य अपनी चयन की स्वतंत्रता
क
े कारण अनोखा है और इसी कारण वह अपने जीवन की सार्थकता सिद्ध कर
सकता है। यह धारणा ईश्वरीय सत्ता में विश्वास न करक
े मनुष्य की सत्ता में
विश्वास व्यक्त करती है । वास्तव में यह मानव जीवन को उसक
े मूल रूप में
समझने का प्रयत्न है एवं प्रत्येक मनुष्य को एक विशिष्ट पहचान क
े साथ जीवन
जीने क
े लिए प्रेरित करती है। यद्यपि यह एक जटिल ,अस्पष्ट एवं विरोधाभास से
युक्त अवधारणा है और इसीलिए सर्वाधिक विवादास्पद भी है। डेनमार्क क
े विचारक
सोरेन किर्क गार्ड को अस्तित्ववाद का जनक माना जाता है। अन्य प्रमुख
अस्तित्ववादी विचारक है- मार्टिन हाइडेगर, ज्यां पाल सार्त्र, कार्ल जैस्पर्स , मार्शल
विक्टर फ्र
ैं कल,अल्बर्ट कामू, नीट्जे आदि।
अर्थ एवं परिभाषा-
अस्तित्ववाद अंग्रेजी क
े ‘ Existentialism’ शब्द का हिंदी रूपांतर है, जो
‘Existence’ शब्द से बना है जिसका तात्पर्य है- होना या अलग दिखना। अस्तित्व
वादियों क
े अनुसार क
े वल मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो हर्षोल्लास से परे पृथक दिखने
की क्षमता रखता है। उनक
े अनुसार पृथ्वी पर मनुष्य की उपस्थिति क
े दो चरण हैं।
प्रथम चरण में वह रक्त और मांस से बने एक सजीव व्यक्ति क
े रूप में जन्म लेता है
जिसे हेड़ेगार ने ‘ डेजन’ कहा है। इस चरण में मनुष्य का क
े वल भौतिक अस्तित्व
होता है। दूसरे चरण में जब व्यक्ति को अपनी क्षमता, संभावना और सत्ता का ज्ञान
होता है तो यही अस्तित्व की स्थिति है। अस्तित्व एक जागृत अवस्था है जिसमें
मनुष्य अपनी क्षमताओं और संभावनाओं को पहचान कर आगे बढ़ता है। हेडेगर ने
इन दोनों चरणों में मनुष्य की स्थिति को ‘ स्वयं’ एवं ‘ स्वयं क
े लिए’ कहा है।
मनुष्य जीवन अत्यंत जटिल है और मनुष्य अपने जीवन का अधिकांश समय
अस्तित्व को पहचानने में निकाल देता है।
प्रोफ
े सर ब्लैक होम ने अस्तित्ववाद को सत्ता वाद का दर्शन माना है।
डॉक्टर गणपति चंद्रगुप्त क
े अनुसार ‘’ अस्तित्ववाद एक दृष्टिकोण है। यह
परंपरागत तर्क पर आधारित दार्शनिक विचारों क
े विरुद्ध एक विद्रोह है जो विचारों
एवं भौतिक जगत की तार्कि क व्याख्या करते हैं तथा मानवीय सत्ता की समस्या की
उपेक्षा करते हैं।’
सारत्र ने अस्तित्ववाद को मानववाद माना है।
प्रभा खेतान क
े अनुसार, ‘’ अस्तित्व का अर्थ है सतत प्रकट होते रहना और अनुभूति
क
े साथ उभरते रहना। इस अर्थ में क
े वल मनुष्य ही अस्तित्ववाद होता है और उसे
ही अनुभूति होती रहती है कि वह अपनी परिस्थितियों का अतिक्रमण कर रहा है।
अतः इस विचार क
े क
ें द्र में व्यक्ति स्वयं है।’’
ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी क
े अनुसार, ‘’ अस्तित्ववाद एक दार्शनिक सिद्धांत
अथवा दृष्टिकोण है जो एक स्वतंत्र ,उत्तरदाई व्यक्ति क
े अस्तित्व पर जोर देता है
और मनुष्य को अपनी इच्छा एवं कार्य क
े अनुसार अपने विकास क
े लिए उत्तरदाई
मानता है। ‘’
ब्रिटानिका विश्वकोश क
े अनुसार, ‘’ अस्तित्ववाद यूरोप में 1930 से बीसवीं
शताब्दी क
े मध्य तक विकसित वह दर्शन है जो दुनिया में मनुष्य क
े अस्तित्व की
व्याख्या करता है एवं जीवन क
े ठोस मूल्य तथा उसक
े चुनौतीपूर्ण होने की विशेषता
पर प्रकाश डालता है ‘’
इतिहास-
अस्तित्ववाद की जड़े प्राचीन यूनान में परमैनिटज व हेराक्लिट्ज़् क
े विचारों में
मिलती है। मध्य युग में धर्म वैज्ञानिक मेस्टर एकहार्ट एवं संत अगस्टाइन क
े
दर्शन में भी अस्तित्व वादी विचार मिलते हैं। भारत में बौद्ध दर्शन अस्तित्व वादी
धारणा का एक परिपक्व रूप प्रस्तुत करता है ।
अस्तित्ववाद क
े उदय क
े पीछे अनेक कारण उत्तरदाई थे।
प्राचीन यूनानी दर्शन में प्लेटो, अरस्तु और सुकरात क
े द्वारा आदर्श राज्य की
धारणा का प्रतिपादन कर राज्य क
े महत्व को सम्मुख लाया गया । यूरोप का दर्शन,
फ्रांसीसी क्रांति, रूसी क्रांति, औद्योगिक क्रांति, विज्ञान और तकनीक का बढ़ता हुआ
महत्व, विश्व युद्ध की विभीषिका तथा तानाशाही व्यवस्था, पूंजीवाद, साम्राज्यवाद
,आदर्शवाद और विवेकवाद आदि ने मिलकर अस्तित्ववाद क
े जन्म क
े कारण
उपस्थित किए। दो विश्वयुद्धों की त्रासदी ने लोगों में निराशा, दीनता, पीड़ा और
क
ुं ठा को जन्म दिया जिसक
े कारण ईश्वर, धर्म और मानवता से लोगों का विश्वास
उठ गया। विज्ञान और तकनीक क
े विकास ने एक ओर मनुष्य की जीवन शैली को
सुखमय एवं सुविधाजनक बनाया, सृष्टि एवं प्रकृ ति क
े अनेक रहस्यों से पर्दा
उठाया तो दूसरी ओर मानवीय मूल्यों और प्राकृ तिक पर्यावरण को क्षति पहुंचाई
और युद्ध की परिस्थितियों को जन्म दिया। इन सभी परिस्थितियों, विचारों और
मान्यताओं में मनुष्य की उपेक्षा हुई, अतः अस्तित्ववाद उन सभी वैज्ञानिक,
राजनीतिक, सामाजिक, ऐतिहासिक, आध्यात्मिक मान्यताओं का विरोध करता है
जो व्यक्ति को गौण स्थान प्रदान करते हैं।
अस्तित्ववाद की प्रमुख मान्यताएं या सिद्धांत
1. ईश्वरीय सत्ता क
े स्थान पर मानव सत्ता में विश्वास-
अस्तित्ववाद इस दार्शनिक धारणा क
े विरुद्ध है कि सृष्टि का निर्माण किसी
ईश्वर ने किया है तथा सृष्टि उसक
े नियमानुसार ही संचालित होती है। वे ईश्वर
की सत्ता को काल्पनिक बताते हुए मनुष्य की सत्ता को वास्तविक बताते हैं और यह
मानते हैं कि यह मनुष्य ही है जो अपने अस्तित्व की अनुभूति करते हुए दुनिया
क
े विकास में अपना योगदान देता रहा है। अपने अस्तित्व को पहचानना मानव
जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है। यह भारतीय दर्शन क
े इस सिद्धांत क
े विपरीत है जो
यह मानता है कि मानव जीवन का लक्ष्य मोक्ष अर्थात जीवन -मरण क
े चक्र से
मुक्ति है। सारत्र ने अपने व्याख्यान में कहा था कि’ अस्तित्ववाद मानववाद है।
मनुष्य पहले अस्तित्व में आता है, उसका टकराव स्वयं से होता है, दुनिया में आगे
बढ़ता है और उसक
े बाद स्वयं को परिभाषित करता है। ........ मनुष्य एक अच्छा
इंसान बनने क
े रास्ते की तलाश करता है न कि क्र
ू र इंसान बनने क
े ।’’ नीटजे
मनुष्य द्वारा भीड़ का अनुसरण किए जाने की प्रवृत्ति क
े विरोधी है और इसे ‘ दास
नैतिकता’ [ Slave Morality ] की संज्ञा देते हैं और एक ऐसे ‘ओवरमैन’ की
कल्पना करते हैं जिसक
े अंदर जीवन की क्र
ू र चुनौतियों का सामना करने का साहस
हो और जिसने दासता पर आधारित पारंपरिक मूल्यों पर विजय प्राप्त कर ली हो
तथा जिसमें अपने जीवन को स्वयं आकार देने तथा अपने मौलिक रूप में बने रहने
की शक्ति हो। ‘’
2. मनुष्य क
े वैचारिक अस्तित्व की तुलना में भौतिक अस्तित्व को प्राथमिकता
प्रदान करना-
अस्तित्ववाद विचारक उस दर्शन क
े भी विरुद्ध है जो विचार तत्व, आत्म तत्व या
सार तत्व को मनुष्य क
े भौतिक अस्तित्व से ज्यादा महत्वपूर्ण बताते हैं।
हीगल और ग्रीन क
े चिंतन में मौजूद विश्वात्मा या शाश्वत चेतना की धारणा
अथवा हिंदू दर्शन में आत्मा- परमात्मा का विचार इस मान्यता पर आधारित है कि
सार तत्व भौतिक अस्तित्व से पहले और प्रमुख है। अस्तित्व वादी इसक
े विपरीत
मनुष्य क
े भौतिक अस्तित्व को प्राथमिक बताते हैं और यह मानते हैं कि मनुष्य
अपने बारे में जैसा सोचता है, वैसा नहीं होता, बल्कि वैसा होता है जैसा वह संकल्प
करता है। ‘’
3. चयन की स्वतंत्रता क
े कारण मनुष्य क
े लिए अपने अस्तित्व को पहचानना संभव
-
अस्तित्व वादी विचारकों की एक प्रमुख मान्यता यह है कि संसार क
े सभी प्राणियों
में मनुष्य ही अपने अस्तित्व को पहचानने और जीवन की सार्थकता सिद्ध करने
की योग्यता रखता है क्योंकि सिर्फ उसी क
े पास विभिन्न विषयों एवं परिस्थितियों
का चयन करने की स्वतंत्रता है। विज्ञान और तर्क जनित विभिन्न सामाजिक-
आर्थिक परिस्थितियों ने मनुष्य क
े सामने जीवन क
े अनेक रास्ते विकल्प क
े रूप में
प्रस्तुत किए हैं। यह मनुष्य का कार्य है कि वह इन रास्तों में से अपने लिए ऐसे
विकल्प चुने जिसक
े माध्यम से वह अपने जीवन की सार्थकता सिद्ध कर सक
े ।
मानव अस्तित्व की सार्थकता इस बात में है कि वह मानवीय मूल्यों पर आधारित
जीवन जीने में कितना सक्षम हो पाता है । अपनी पुस्तक ‘’ बीइंग एंड नथिंगनेस’’
मे सारत्र ने यह प्रतिपादित किया कि उसी मनुष्य का जीवन प्रामाणिक है जो
अपनी स्वतंत्रता का उपभोग करते हुए जीता है।
4. अस्तित्व की पहचान अनुभूति का विषय है, न कि तर्क का-
अस्तित्व वादी विज्ञानवाद में निहित तार्कि कता का खंडन करते हैं और यह मानते
हैं कि मनुष्य अपने वास्तविक अस्तित्व की पहचान जीवन की सामाजिक-
राजनीतिक -आर्थिक परिस्थितियों क
े अनुभव से कर सकता है, न की किसी तार्कि क
विश्लेषण क
े माध्यम से।
5. दुख एवं निराशा क
े क्षणों में ही अस्तित्व की अनुभूति संभव-
अस्तित्ववादी यह भी मानते हैं कि सांसारिक जगत की चकाचौंध में अक्सर मनुष्य
अपने अस्तित्व को भूल जाता है, किं तु जब वह दुख, निराशा और अक
े ले पन क
े
क्षणों में होता है तो उसे अपने अस्तित्व का एहसास होता है और वह इस मरणशील
जीवन में क
ु छ सार्थक करने क
े लिए सोचता है।
6. आधुनिक सभ्यता और विज्ञान का विरोध-
विज्ञान वस्तुनिष्ठता क
े विचार पर आधारित है और आधुनिक सभ्यता
उपभोक्तावादी संस्कृ ति को प्रोत्साहित करती है। इसक
े विपरीत अस्तित्ववाद
व्यक्तिनिष्ठ होने क
े कारण व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थक है। इसीलिए
अस्तित्ववाद को स्वतंत्रता का दर्शन भी कहा जाता है। चूंकि आधुनिक सभ्यता -
संस्कृ ति और विज्ञान मनुष्य की स्वतंत्रता को सीमित करते हैं,इसलिए अस्तित्ववाद
उनका विरोधी है।
7. समस्याओं क
े समाधान क
े बजाय उनक
े निदान में विश्वास-
अस्तित्ववाद मानव जीवन क
े समक्ष विद्यमान नाना समस्याओं क
े समाधान में
विश्वास नहीं रखता बल्कि यह मानता है कि समस्याएं और चुनौतियां तो जीवन का
अंग है, अतः आवश्यकता उनक
े समाधान की नहीं , बल्कि निदान की है। अर्थात
मनुष्य को समस्याओं का सामना करने का कौशल सीखना चाहिए, न कि उन्हें पूरी
तरह समाप्त करने क
े प्रयास में संलग्न होना चाहिए।
8. संपूर्ण विश्व क
े साथ समन्वित होकर ही अस्तित्व की प्राप्ति संभव -
मनुष्य अपने अस्तित्व की प्राप्ति संसार क
े अन्य प्राणियों से अलग रहकर नहीं
कर सकता, क्योंकि इन सभी में एक साहचर्य का संबंध है। जब तक मनुष्य सभी क
े
प्रति संवेदनशील बनकर स्वतंत्रता का उपभोग करते हुए अपने कार्यों में संलग्न नहीं
होगा, तब तक वह प्राणियों क
े लिए क
ु छ सार्थक करने में सक्षम नहीं होगा। सारत्र ने
इसे ‘LOOK’ कहा है । अर्थात मनुष्य का जीवन क
े प्रति ऐसा दृष्टिकोण जिसक
े
अंतर्गत वह अपने ही समान दूसरों की स्वतंत्रता क
े महत्व का भी अनुभव करता है।
यह एक प्रकार से मनुष्य की अपनी स्वतंत्रता पर एक सीमा भी है जो इस आधुनिक
दृष्टिकोण क
े समान है कि हमारी स्वतंत्रता का मूल्य वहीं तक है जहां तक दूसरे की
स्वतंत्रता बाधित नहीं होती।वस्तुतः नाजी जर्मनी द्वारा फ़्रांस पर अधिकार किए
जाने की घटना और स्वयं युद्ध क
ै दी क
े रूप में सारत्र क
े अनुभवों ने उन्हें
समूहवादी बना दिया और वे यह कहने को बाध्य हुए कि वे एक ऐसे समाज क
े
निर्माण क
े प्रति संवेदनशील है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति पूर्ण स्वतंत्र और समाज क
े
प्रति पूर्णतः प्रतिबद्ध हो ।
मूल्यांकन
मानवीय मूल्यों की स्थापना पर बल देने क
े कारण जहां एक ओर अस्तित्ववाद की
प्रशंसा की गई, वहीं दूसरी ओर आलोचक इस दर्शन में निम्नांकित कमियां देखते हैं-
1. अस्तित्ववाद एक निराशावादी दर्शन है, जिसमें दुख संताप ,पीड़ा , वेदना आदि
को मनुष्य क
े अस्तित्व की अनुभूति क
े लिए आवश्यक माना गया है।
अस्तित्ववादी यह मानते हैं कि समस्याएं, संताप और विसंगतियां मानव जीवन
का हिस्सा है जिन से मुक्त हो पाना संभव नहीं है।
2. ईश्वर की सत्ता, तर्क वाद और विज्ञान आदि में अविश्वास भी इस दर्शन को
नकारात्मक बना देता है, जिसक
े कारण अराजकता की स्थिति उत्पन्न होने की
संभावना दिखाई देती है। स्पष्ट है कि अराजकता की स्थिति में किसी प्रकार का
विकास संभव नहीं है।
3. रामविलास शर्मा अस्तित्ववाद में विरोधाभास की स्थिति देखते हैं। एक तरफ
तो अस्तित्ववादी व्यक्ति की आत्मनिष्ठता में विश्वास रखते हैं, वहीं दूसरी ओर
मूल्य आधारित समाज की स्थापना की बात करते हैं। व्यक्ति निष्ठा और
समाजनिष्ठा यह दोनों विरोधाभासी है।
4. अस्तित्ववाद को कोरे व्यक्तिवादी, अहंकार वादी , विद्रोही और उत्पाती दर्शन
क
े रूप में देखा गया और सभी नकारात्मक क्रियाकलापों एवं आंदोलनों पर इसका
प्रभाव देखा गया।
5. हर्बर्ट मारक्यूस ने सारत्र की पुस्तक ‘ बीइंग एण्ड नथिनगनेस’ की यह कहकर
आलोचना की कि इसने जीवन मे चिंता एवं दुख को प्रचारित किया तथा जीवन की
निरर्थकता का विचार प्रस्तुत किया जिसक
े कारण निराशावाद मे वृद्धि हुई ।
किन्तु डॉ. शिव प्रसाद सिंह ने अस्तित्ववाद क
े महत्व
को स्वीकार करते हुए इसे प्रत्येक दर्शन का प्रस्थान बिंदु माना है।उनक
े शब्दों में,’’
अस्तित्ववाद की सबसे बड़ी देन यह है कि उसने आज क
े वातावरण में मनुष्य क
े
अपने और समाज से हुए अलगाव को रेखांकित किया। .... अस्तित्ववाद इस कारण
प्रत्येक दर्शन का प्रस्थान बिंदु बन जाता है क्योंकि वह अस्तित्व दर्शन से संबंधित
प्रश्नों को इस ढंग से सामने रखता है कि पहले क
े समाधान बेकार और व्यर्थ लगने
लगते हैं ।’’ अस्तित्ववादी दर्शन ने ड्रामा, आर्ट, साहित्य और मनोविज्ञान आदि
सभी विधाओं को प्रभावित किया। फ्रांस में उत्तर संरचनावाद का सिद्धांत
अस्तित्ववादी दर्शन से प्रभावित है। अस्तित्ववादियों ने समसामयिक युग में
तुलनात्मक पर्यावरण वादी दर्शन को भी प्रभावित किया।
REFERENCES &SUGGESTED READINGS
1. Barrett,William,Irrational Man;A Study in Existential
Philosophy
2. Camus, The Rebel
3. Encyclopaedia Britannica
4. Heidegger,Letter on Humanism
5. Kierkgard,Soren,Fear and Trembling
6. Marino,Gordon,ed.[ 2004]Basic Writings of
Existentialism,New York,Modern Library
7. Oxford Dictionary
8. Sartre,The Roads to Freedom
9. Stanford Encyclopaedia of Philosophy,plato.stanford.edu
प्रश्न- निबंधात्मक
1. अस्तित्ववादी दर्शन पर एक निबंध लिखें.
2. अस्तित्ववाद मनुष्य क
े अस्तित्व को परिभाषित करने वाला दर्शन है, विवेचना
कीजिए.
3. अस्तित्ववाद क
े प्रमुख सिद्धांतों अथवा मान्यताओं की विवेचना कीजिए.
वस्तुनिष्ठ-
1. निम्नांकित में से कौन एक अस्तित्ववादी विचारक नहीं है?
[ अ ] मार्टिन हाइडेगर [ ब ] ज्यां पाल सार्त्र [ स ] अल्बर्ट कामू [ द ] रॉबर्ट
नोजिक
2. अस्तित्ववाद का जनक किसे कहा जाता है?
[ अ ] सोरेन किर्क गार्ड [ ब ] नीट्जे [ स ] अल्बर्ट कामू [ द ] कार्ल jजैस्पर्स
3. ‘Being And Nothingness’ नामक पुस्तक का लेखक कौन है?
[ अ ] ज्यां पाल सार्त्र [ ब ] हाइडेगर [ स ] माइकल फोकाल्ट [ द ] डेरिडा
4. अस्तित्ववाद क
े विषय में सत्य कथन का चयन कीजिए।
[ अ ] अस्तित्ववाद विज्ञान एवं तर्क का विरोधी है।
[ ब ] यह धार्मिक मान्यताओं का विरोधी है।
[ स ] यह मनुष्य को स्वयं उसक
े जीवन का निर्माता मानता है।
[ द ] उपर्युक्त सभी सत्य है।
5. मनुष्य क
े अस्तित्व को ओवरमैन क
े रूप में किसने परिभाषित किया है?
[ अ ] नीट्जे [ ब ] ज्यां पाल सार्त्र [ स ] हाइडेगर [ द ]
उत्तर - 1. 2.अ 3. अ 4. द 5. अ द

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  • 1. अस्तित्ववाद [ Existentialism] https://www.slideserve.com/vin/existentialism द्वारा - डॉ . ममता उपाध्याय प्रो . , राजनीति विज्ञान क े . एम . कॉलेज , बादलपुर गौतमबुद्ध नगर , उत्तर प्रदेश उद्देश्य - ● अस्तित्व वादी दर्शन का ज्ञान ● समसामयिक दौर मे आस्तित्ववादी दर्शन की प्रासंगिकता का ज्ञान ● मानव जीवन क े प्रति सकारात्मक चिंतन की प्रवृत्ति का विकास
  • 2. मुख्य शब्द - अस्तित्व , डेजन , ओवरमेन , दास नैतिकता ,चयन की स्वतंत्रता ,मानववादी , धर्म , विज्ञान , दर्शन अस्तित्ववाद दो विश्व युद्धों क े मध्य विकसित एक दार्शनिक प्रवृत्ति , विचार एवं बौद्धिक आंदोलन है, जिसका लक्ष्य मानवीय जीवन क े अस्तित्व की तलाश और उसे सार्थकता प्रदान करना है। यह एक मानव क ें द्रित धारणा है जो इस मूल विचार पर आधारित है कि पृथ्वी क े समस्त प्राणियों में मनुष्य अपनी चयन की स्वतंत्रता क े कारण अनोखा है और इसी कारण वह अपने जीवन की सार्थकता सिद्ध कर सकता है। यह धारणा ईश्वरीय सत्ता में विश्वास न करक े मनुष्य की सत्ता में विश्वास व्यक्त करती है । वास्तव में यह मानव जीवन को उसक े मूल रूप में समझने का प्रयत्न है एवं प्रत्येक मनुष्य को एक विशिष्ट पहचान क े साथ जीवन जीने क े लिए प्रेरित करती है। यद्यपि यह एक जटिल ,अस्पष्ट एवं विरोधाभास से युक्त अवधारणा है और इसीलिए सर्वाधिक विवादास्पद भी है। डेनमार्क क े विचारक सोरेन किर्क गार्ड को अस्तित्ववाद का जनक माना जाता है। अन्य प्रमुख अस्तित्ववादी विचारक है- मार्टिन हाइडेगर, ज्यां पाल सार्त्र, कार्ल जैस्पर्स , मार्शल विक्टर फ्र ैं कल,अल्बर्ट कामू, नीट्जे आदि। अर्थ एवं परिभाषा- अस्तित्ववाद अंग्रेजी क े ‘ Existentialism’ शब्द का हिंदी रूपांतर है, जो ‘Existence’ शब्द से बना है जिसका तात्पर्य है- होना या अलग दिखना। अस्तित्व वादियों क े अनुसार क े वल मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो हर्षोल्लास से परे पृथक दिखने की क्षमता रखता है। उनक े अनुसार पृथ्वी पर मनुष्य की उपस्थिति क े दो चरण हैं। प्रथम चरण में वह रक्त और मांस से बने एक सजीव व्यक्ति क े रूप में जन्म लेता है जिसे हेड़ेगार ने ‘ डेजन’ कहा है। इस चरण में मनुष्य का क े वल भौतिक अस्तित्व होता है। दूसरे चरण में जब व्यक्ति को अपनी क्षमता, संभावना और सत्ता का ज्ञान होता है तो यही अस्तित्व की स्थिति है। अस्तित्व एक जागृत अवस्था है जिसमें मनुष्य अपनी क्षमताओं और संभावनाओं को पहचान कर आगे बढ़ता है। हेडेगर ने इन दोनों चरणों में मनुष्य की स्थिति को ‘ स्वयं’ एवं ‘ स्वयं क े लिए’ कहा है। मनुष्य जीवन अत्यंत जटिल है और मनुष्य अपने जीवन का अधिकांश समय अस्तित्व को पहचानने में निकाल देता है। प्रोफ े सर ब्लैक होम ने अस्तित्ववाद को सत्ता वाद का दर्शन माना है।
  • 3. डॉक्टर गणपति चंद्रगुप्त क े अनुसार ‘’ अस्तित्ववाद एक दृष्टिकोण है। यह परंपरागत तर्क पर आधारित दार्शनिक विचारों क े विरुद्ध एक विद्रोह है जो विचारों एवं भौतिक जगत की तार्कि क व्याख्या करते हैं तथा मानवीय सत्ता की समस्या की उपेक्षा करते हैं।’ सारत्र ने अस्तित्ववाद को मानववाद माना है। प्रभा खेतान क े अनुसार, ‘’ अस्तित्व का अर्थ है सतत प्रकट होते रहना और अनुभूति क े साथ उभरते रहना। इस अर्थ में क े वल मनुष्य ही अस्तित्ववाद होता है और उसे ही अनुभूति होती रहती है कि वह अपनी परिस्थितियों का अतिक्रमण कर रहा है। अतः इस विचार क े क ें द्र में व्यक्ति स्वयं है।’’ ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी क े अनुसार, ‘’ अस्तित्ववाद एक दार्शनिक सिद्धांत अथवा दृष्टिकोण है जो एक स्वतंत्र ,उत्तरदाई व्यक्ति क े अस्तित्व पर जोर देता है और मनुष्य को अपनी इच्छा एवं कार्य क े अनुसार अपने विकास क े लिए उत्तरदाई मानता है। ‘’ ब्रिटानिका विश्वकोश क े अनुसार, ‘’ अस्तित्ववाद यूरोप में 1930 से बीसवीं शताब्दी क े मध्य तक विकसित वह दर्शन है जो दुनिया में मनुष्य क े अस्तित्व की व्याख्या करता है एवं जीवन क े ठोस मूल्य तथा उसक े चुनौतीपूर्ण होने की विशेषता पर प्रकाश डालता है ‘’ इतिहास- अस्तित्ववाद की जड़े प्राचीन यूनान में परमैनिटज व हेराक्लिट्ज़् क े विचारों में मिलती है। मध्य युग में धर्म वैज्ञानिक मेस्टर एकहार्ट एवं संत अगस्टाइन क े दर्शन में भी अस्तित्व वादी विचार मिलते हैं। भारत में बौद्ध दर्शन अस्तित्व वादी धारणा का एक परिपक्व रूप प्रस्तुत करता है । अस्तित्ववाद क े उदय क े पीछे अनेक कारण उत्तरदाई थे। प्राचीन यूनानी दर्शन में प्लेटो, अरस्तु और सुकरात क े द्वारा आदर्श राज्य की धारणा का प्रतिपादन कर राज्य क े महत्व को सम्मुख लाया गया । यूरोप का दर्शन, फ्रांसीसी क्रांति, रूसी क्रांति, औद्योगिक क्रांति, विज्ञान और तकनीक का बढ़ता हुआ महत्व, विश्व युद्ध की विभीषिका तथा तानाशाही व्यवस्था, पूंजीवाद, साम्राज्यवाद ,आदर्शवाद और विवेकवाद आदि ने मिलकर अस्तित्ववाद क े जन्म क े कारण उपस्थित किए। दो विश्वयुद्धों की त्रासदी ने लोगों में निराशा, दीनता, पीड़ा और
  • 4. क ुं ठा को जन्म दिया जिसक े कारण ईश्वर, धर्म और मानवता से लोगों का विश्वास उठ गया। विज्ञान और तकनीक क े विकास ने एक ओर मनुष्य की जीवन शैली को सुखमय एवं सुविधाजनक बनाया, सृष्टि एवं प्रकृ ति क े अनेक रहस्यों से पर्दा उठाया तो दूसरी ओर मानवीय मूल्यों और प्राकृ तिक पर्यावरण को क्षति पहुंचाई और युद्ध की परिस्थितियों को जन्म दिया। इन सभी परिस्थितियों, विचारों और मान्यताओं में मनुष्य की उपेक्षा हुई, अतः अस्तित्ववाद उन सभी वैज्ञानिक, राजनीतिक, सामाजिक, ऐतिहासिक, आध्यात्मिक मान्यताओं का विरोध करता है जो व्यक्ति को गौण स्थान प्रदान करते हैं। अस्तित्ववाद की प्रमुख मान्यताएं या सिद्धांत 1. ईश्वरीय सत्ता क े स्थान पर मानव सत्ता में विश्वास- अस्तित्ववाद इस दार्शनिक धारणा क े विरुद्ध है कि सृष्टि का निर्माण किसी ईश्वर ने किया है तथा सृष्टि उसक े नियमानुसार ही संचालित होती है। वे ईश्वर की सत्ता को काल्पनिक बताते हुए मनुष्य की सत्ता को वास्तविक बताते हैं और यह मानते हैं कि यह मनुष्य ही है जो अपने अस्तित्व की अनुभूति करते हुए दुनिया क े विकास में अपना योगदान देता रहा है। अपने अस्तित्व को पहचानना मानव जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है। यह भारतीय दर्शन क े इस सिद्धांत क े विपरीत है जो यह मानता है कि मानव जीवन का लक्ष्य मोक्ष अर्थात जीवन -मरण क े चक्र से मुक्ति है। सारत्र ने अपने व्याख्यान में कहा था कि’ अस्तित्ववाद मानववाद है। मनुष्य पहले अस्तित्व में आता है, उसका टकराव स्वयं से होता है, दुनिया में आगे बढ़ता है और उसक े बाद स्वयं को परिभाषित करता है। ........ मनुष्य एक अच्छा इंसान बनने क े रास्ते की तलाश करता है न कि क्र ू र इंसान बनने क े ।’’ नीटजे मनुष्य द्वारा भीड़ का अनुसरण किए जाने की प्रवृत्ति क े विरोधी है और इसे ‘ दास नैतिकता’ [ Slave Morality ] की संज्ञा देते हैं और एक ऐसे ‘ओवरमैन’ की कल्पना करते हैं जिसक े अंदर जीवन की क्र ू र चुनौतियों का सामना करने का साहस हो और जिसने दासता पर आधारित पारंपरिक मूल्यों पर विजय प्राप्त कर ली हो तथा जिसमें अपने जीवन को स्वयं आकार देने तथा अपने मौलिक रूप में बने रहने की शक्ति हो। ‘’ 2. मनुष्य क े वैचारिक अस्तित्व की तुलना में भौतिक अस्तित्व को प्राथमिकता प्रदान करना-
  • 5. अस्तित्ववाद विचारक उस दर्शन क े भी विरुद्ध है जो विचार तत्व, आत्म तत्व या सार तत्व को मनुष्य क े भौतिक अस्तित्व से ज्यादा महत्वपूर्ण बताते हैं। हीगल और ग्रीन क े चिंतन में मौजूद विश्वात्मा या शाश्वत चेतना की धारणा अथवा हिंदू दर्शन में आत्मा- परमात्मा का विचार इस मान्यता पर आधारित है कि सार तत्व भौतिक अस्तित्व से पहले और प्रमुख है। अस्तित्व वादी इसक े विपरीत मनुष्य क े भौतिक अस्तित्व को प्राथमिक बताते हैं और यह मानते हैं कि मनुष्य अपने बारे में जैसा सोचता है, वैसा नहीं होता, बल्कि वैसा होता है जैसा वह संकल्प करता है। ‘’ 3. चयन की स्वतंत्रता क े कारण मनुष्य क े लिए अपने अस्तित्व को पहचानना संभव - अस्तित्व वादी विचारकों की एक प्रमुख मान्यता यह है कि संसार क े सभी प्राणियों में मनुष्य ही अपने अस्तित्व को पहचानने और जीवन की सार्थकता सिद्ध करने की योग्यता रखता है क्योंकि सिर्फ उसी क े पास विभिन्न विषयों एवं परिस्थितियों का चयन करने की स्वतंत्रता है। विज्ञान और तर्क जनित विभिन्न सामाजिक- आर्थिक परिस्थितियों ने मनुष्य क े सामने जीवन क े अनेक रास्ते विकल्प क े रूप में प्रस्तुत किए हैं। यह मनुष्य का कार्य है कि वह इन रास्तों में से अपने लिए ऐसे विकल्प चुने जिसक े माध्यम से वह अपने जीवन की सार्थकता सिद्ध कर सक े । मानव अस्तित्व की सार्थकता इस बात में है कि वह मानवीय मूल्यों पर आधारित जीवन जीने में कितना सक्षम हो पाता है । अपनी पुस्तक ‘’ बीइंग एंड नथिंगनेस’’ मे सारत्र ने यह प्रतिपादित किया कि उसी मनुष्य का जीवन प्रामाणिक है जो अपनी स्वतंत्रता का उपभोग करते हुए जीता है। 4. अस्तित्व की पहचान अनुभूति का विषय है, न कि तर्क का- अस्तित्व वादी विज्ञानवाद में निहित तार्कि कता का खंडन करते हैं और यह मानते हैं कि मनुष्य अपने वास्तविक अस्तित्व की पहचान जीवन की सामाजिक- राजनीतिक -आर्थिक परिस्थितियों क े अनुभव से कर सकता है, न की किसी तार्कि क विश्लेषण क े माध्यम से। 5. दुख एवं निराशा क े क्षणों में ही अस्तित्व की अनुभूति संभव-
  • 6. अस्तित्ववादी यह भी मानते हैं कि सांसारिक जगत की चकाचौंध में अक्सर मनुष्य अपने अस्तित्व को भूल जाता है, किं तु जब वह दुख, निराशा और अक े ले पन क े क्षणों में होता है तो उसे अपने अस्तित्व का एहसास होता है और वह इस मरणशील जीवन में क ु छ सार्थक करने क े लिए सोचता है। 6. आधुनिक सभ्यता और विज्ञान का विरोध- विज्ञान वस्तुनिष्ठता क े विचार पर आधारित है और आधुनिक सभ्यता उपभोक्तावादी संस्कृ ति को प्रोत्साहित करती है। इसक े विपरीत अस्तित्ववाद व्यक्तिनिष्ठ होने क े कारण व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थक है। इसीलिए अस्तित्ववाद को स्वतंत्रता का दर्शन भी कहा जाता है। चूंकि आधुनिक सभ्यता - संस्कृ ति और विज्ञान मनुष्य की स्वतंत्रता को सीमित करते हैं,इसलिए अस्तित्ववाद उनका विरोधी है। 7. समस्याओं क े समाधान क े बजाय उनक े निदान में विश्वास- अस्तित्ववाद मानव जीवन क े समक्ष विद्यमान नाना समस्याओं क े समाधान में विश्वास नहीं रखता बल्कि यह मानता है कि समस्याएं और चुनौतियां तो जीवन का अंग है, अतः आवश्यकता उनक े समाधान की नहीं , बल्कि निदान की है। अर्थात मनुष्य को समस्याओं का सामना करने का कौशल सीखना चाहिए, न कि उन्हें पूरी तरह समाप्त करने क े प्रयास में संलग्न होना चाहिए। 8. संपूर्ण विश्व क े साथ समन्वित होकर ही अस्तित्व की प्राप्ति संभव - मनुष्य अपने अस्तित्व की प्राप्ति संसार क े अन्य प्राणियों से अलग रहकर नहीं कर सकता, क्योंकि इन सभी में एक साहचर्य का संबंध है। जब तक मनुष्य सभी क े प्रति संवेदनशील बनकर स्वतंत्रता का उपभोग करते हुए अपने कार्यों में संलग्न नहीं होगा, तब तक वह प्राणियों क े लिए क ु छ सार्थक करने में सक्षम नहीं होगा। सारत्र ने इसे ‘LOOK’ कहा है । अर्थात मनुष्य का जीवन क े प्रति ऐसा दृष्टिकोण जिसक े अंतर्गत वह अपने ही समान दूसरों की स्वतंत्रता क े महत्व का भी अनुभव करता है। यह एक प्रकार से मनुष्य की अपनी स्वतंत्रता पर एक सीमा भी है जो इस आधुनिक दृष्टिकोण क े समान है कि हमारी स्वतंत्रता का मूल्य वहीं तक है जहां तक दूसरे की
  • 7. स्वतंत्रता बाधित नहीं होती।वस्तुतः नाजी जर्मनी द्वारा फ़्रांस पर अधिकार किए जाने की घटना और स्वयं युद्ध क ै दी क े रूप में सारत्र क े अनुभवों ने उन्हें समूहवादी बना दिया और वे यह कहने को बाध्य हुए कि वे एक ऐसे समाज क े निर्माण क े प्रति संवेदनशील है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति पूर्ण स्वतंत्र और समाज क े प्रति पूर्णतः प्रतिबद्ध हो । मूल्यांकन मानवीय मूल्यों की स्थापना पर बल देने क े कारण जहां एक ओर अस्तित्ववाद की प्रशंसा की गई, वहीं दूसरी ओर आलोचक इस दर्शन में निम्नांकित कमियां देखते हैं- 1. अस्तित्ववाद एक निराशावादी दर्शन है, जिसमें दुख संताप ,पीड़ा , वेदना आदि को मनुष्य क े अस्तित्व की अनुभूति क े लिए आवश्यक माना गया है। अस्तित्ववादी यह मानते हैं कि समस्याएं, संताप और विसंगतियां मानव जीवन का हिस्सा है जिन से मुक्त हो पाना संभव नहीं है। 2. ईश्वर की सत्ता, तर्क वाद और विज्ञान आदि में अविश्वास भी इस दर्शन को नकारात्मक बना देता है, जिसक े कारण अराजकता की स्थिति उत्पन्न होने की संभावना दिखाई देती है। स्पष्ट है कि अराजकता की स्थिति में किसी प्रकार का विकास संभव नहीं है। 3. रामविलास शर्मा अस्तित्ववाद में विरोधाभास की स्थिति देखते हैं। एक तरफ तो अस्तित्ववादी व्यक्ति की आत्मनिष्ठता में विश्वास रखते हैं, वहीं दूसरी ओर मूल्य आधारित समाज की स्थापना की बात करते हैं। व्यक्ति निष्ठा और समाजनिष्ठा यह दोनों विरोधाभासी है। 4. अस्तित्ववाद को कोरे व्यक्तिवादी, अहंकार वादी , विद्रोही और उत्पाती दर्शन क े रूप में देखा गया और सभी नकारात्मक क्रियाकलापों एवं आंदोलनों पर इसका प्रभाव देखा गया। 5. हर्बर्ट मारक्यूस ने सारत्र की पुस्तक ‘ बीइंग एण्ड नथिनगनेस’ की यह कहकर आलोचना की कि इसने जीवन मे चिंता एवं दुख को प्रचारित किया तथा जीवन की निरर्थकता का विचार प्रस्तुत किया जिसक े कारण निराशावाद मे वृद्धि हुई ।
  • 8. किन्तु डॉ. शिव प्रसाद सिंह ने अस्तित्ववाद क े महत्व को स्वीकार करते हुए इसे प्रत्येक दर्शन का प्रस्थान बिंदु माना है।उनक े शब्दों में,’’ अस्तित्ववाद की सबसे बड़ी देन यह है कि उसने आज क े वातावरण में मनुष्य क े अपने और समाज से हुए अलगाव को रेखांकित किया। .... अस्तित्ववाद इस कारण प्रत्येक दर्शन का प्रस्थान बिंदु बन जाता है क्योंकि वह अस्तित्व दर्शन से संबंधित प्रश्नों को इस ढंग से सामने रखता है कि पहले क े समाधान बेकार और व्यर्थ लगने लगते हैं ।’’ अस्तित्ववादी दर्शन ने ड्रामा, आर्ट, साहित्य और मनोविज्ञान आदि सभी विधाओं को प्रभावित किया। फ्रांस में उत्तर संरचनावाद का सिद्धांत अस्तित्ववादी दर्शन से प्रभावित है। अस्तित्ववादियों ने समसामयिक युग में तुलनात्मक पर्यावरण वादी दर्शन को भी प्रभावित किया। REFERENCES &SUGGESTED READINGS 1. Barrett,William,Irrational Man;A Study in Existential Philosophy 2. Camus, The Rebel 3. Encyclopaedia Britannica 4. Heidegger,Letter on Humanism 5. Kierkgard,Soren,Fear and Trembling 6. Marino,Gordon,ed.[ 2004]Basic Writings of Existentialism,New York,Modern Library 7. Oxford Dictionary 8. Sartre,The Roads to Freedom 9. Stanford Encyclopaedia of Philosophy,plato.stanford.edu प्रश्न- निबंधात्मक 1. अस्तित्ववादी दर्शन पर एक निबंध लिखें. 2. अस्तित्ववाद मनुष्य क े अस्तित्व को परिभाषित करने वाला दर्शन है, विवेचना कीजिए. 3. अस्तित्ववाद क े प्रमुख सिद्धांतों अथवा मान्यताओं की विवेचना कीजिए.
  • 9. वस्तुनिष्ठ- 1. निम्नांकित में से कौन एक अस्तित्ववादी विचारक नहीं है? [ अ ] मार्टिन हाइडेगर [ ब ] ज्यां पाल सार्त्र [ स ] अल्बर्ट कामू [ द ] रॉबर्ट नोजिक 2. अस्तित्ववाद का जनक किसे कहा जाता है? [ अ ] सोरेन किर्क गार्ड [ ब ] नीट्जे [ स ] अल्बर्ट कामू [ द ] कार्ल jजैस्पर्स 3. ‘Being And Nothingness’ नामक पुस्तक का लेखक कौन है? [ अ ] ज्यां पाल सार्त्र [ ब ] हाइडेगर [ स ] माइकल फोकाल्ट [ द ] डेरिडा 4. अस्तित्ववाद क े विषय में सत्य कथन का चयन कीजिए। [ अ ] अस्तित्ववाद विज्ञान एवं तर्क का विरोधी है। [ ब ] यह धार्मिक मान्यताओं का विरोधी है। [ स ] यह मनुष्य को स्वयं उसक े जीवन का निर्माता मानता है। [ द ] उपर्युक्त सभी सत्य है। 5. मनुष्य क े अस्तित्व को ओवरमैन क े रूप में किसने परिभाषित किया है? [ अ ] नीट्जे [ ब ] ज्यां पाल सार्त्र [ स ] हाइडेगर [ द ] उत्तर - 1. 2.अ 3. अ 4. द 5. अ द