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५ जुलाई २०१५
नागपुर, महाराष्ट्र
श्री नरेन्द्र दामोदरदास जी मोदी
प्रधानमन्त्री , भारत सरकार
प्रधानमंत्री कायार्लय
साउथ ब्लॉक
रायसीना िहल
नयी िदल्ली ११००११
माननीय प्रधानमन्त्री जी
भारत एक ऐसी भूिम है िजसने सबको स्वीकारा है, भारत को हम राष्ट्र से ज्यादा "माता" मानते हैं क्योंिक माँ
कभी िकसी का ितरस्कार नहीं करती। आजादी के बीते ६८ सालों में अनेकानेक िवषयों ने इस बात को सािबत
भी िकया है, भारत ने "माँ" बनकर सबको स्वीकारा है।
भारत की आज़ादी के बाद एक बहुत बड़ा घटनाक्रम हमें देखने को िमला, जहाँ पािकस्तान से अलग होकर
बांग्लादेश बना, पर बांग्लादेश बनने के पहले पूवीर् पािकस्तान ( आज का बांग्लादेश) में बड़ी िहंसा का मौहाल
था, इसी िहंसा से बचने के िलए अनेक पिरवार वषर् १९५६ से १९७५ तक शरणाथीर् के रूप में बांग्लादेश से भारत
आये थे। भारत इसी के आस पास पािकस्तान के साथ युद्ध में था एवं उस युद्ध ने बांग्लादेश में गृह युद्ध जैसे
िस्थित पैदा कर दी थी, पंथों के बीच आपसी संघषर् से अनेक िहन्दू पिरवार बांग्लादेश ( उस समय पािकस्तान) से
बचकर भारत आ गए थे। पूरे भारत में उनको बसाया गया था, यह भारत सरकार के िलए साधुवाद का िवषय है,
और भारत के िलए गवर् का क्योंिक िबगड़ते हालातों में मानवीय सेवा की गयी। ऐसे ही शरणािथर् यों की एक
बस्ती सरकार ने बैतूल िजले में शाहपुर ब्लॉक के चोपना ग्राम में भी बसाई गयी थी। बीते माह २१ जून से २५
जून के मध्य आनंद ही आनंद के भारत पदयात्रा के दौरान, मैं िकसानों एवं ग्रामीणों के िलए इस चेतना पद यात्रा
के अंतगर्त में बैतूल िजले में गया था, जहाँ मेरा िमलना बांग्लादेश से आये हुए शरणािथर् यों से भी हुआ। मैंने उन्हें
व्यिक्तगत रूप से सुना एवं पाया िक वो आज भी समस्याओं से जूझ रहे हैं।
शरणाथीर् का जीवन बड़ा संघषर्मय होता है, वे अपने पिरवेश से िबछड़े हुए होतें हैं, एक आतंिरक पीड़ा,
सामािजक, धािमर्क अिस्थरता उन्हें पलायन के िलये मजबूर करती है, मैंने व्यिक्तगत रूप से उनकी पीड़ा को
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53 BD DE LA TOUR D’AUVERGNE, RENNES, FRANCE, 35000
यूरोप में महसूस िकया है, यह पीड़ा मन मिस्तष्क के िलए और कहीं मनुष्य के समस्त अिस्तत्व को प्रभािवत
करती है।
मैंने उनकी पीड़ा को बैतूल िजले में करीब से देखा, इस िजले में अंितम शरणाथीर् १९७५ में आये थे तबसे लेकर
आज तक उनकी समस्यायें जस की तस है, आज भी कई पिरवार भूिम से जुड़े हुए पट्टों के बगैर खेती कर रहे हैं,
उन्हें यह पट्टा ४० वषोर्ं पूवर् ही िमल जाना था पर ऐसा हो न सका, पट्टे के बगैर खेती करने के कारण कई बार
िववाद की िस्थित बन जाती है, शरणाथीर् जब आये थे तब उन्हें भारत सरकार ने ५ एकड़ जमीन प्रित पिरवार दी
थी, पर अब यह जमीन िकसी भी पिरवार के िलए पूरी नहीं पड़ती। यह इलाका आिदवासी बहुल है िजससे वो
जमीन खरीद भी नहीं सकते, सरकारी जमीन िमलने के कारण हस्तांतिरत भी नहीं होती। इस इलाके में मैंने यह
एक ऐसा गाँव भी देखा जहाँ ४० वषोर्ं से िबजली भी नहीं है, जबिक कें द्रीय सरकार ने स्वयं वह जमीन शरणाथीर्यों
के िलए आवंिटत की थी। यहाँ शरणाथीर् बड़ी पीड़ा में है, चहुंओर समस्या ही समस्या है, मुझे लगता है अब वो
समय है जब हम िवस्थापन और शरणािथर् यों के मूल अिधकार के प्रित एक सकारात्मक िवचार रख के कोई
कायर् हो, बीती सरकारों का आत्मबल इस समस्या से िनपटने का नहीं था, यह हालत लगभग सारे शरणािथर् यों
की होगी मैंने तो के वल एक उदाहरण िदया है, बैतूल का। कहा जाता है की बांग्लादेश के िवभाजन के पहले,
लगभग ६ लाख लोग जो िक िहन्दू मूल के थे पलायन कर भारत आये ।उनमें से के वल १००००-१५००० लोग
बैतूल िजले में भेजे गए थे, अब आप अनुमान लगा सकते हैं की बाकी लोग जो अन्य जगहों पर गए उनके क्या
हालात क्या होंगे।
शरणाथीर् की समस्या पूरे िवश्व की है, जब भी िवश्व में अशांित होती है, पलायन होता है। यूरोप में पलायन और
शरणािथर् यों के साथ िकये जाने वाले व्यवहार से हम सब पिरिचत हैं, भारत को आज िवश्व के िलए एक नया
मागर् देना होगा, इस िवषय पर अपनी सोच और प्रयोग में कायर्क्रम बना के पुरे िवश्व का नेतृत्व करना होगा,
भारत मानवीय मूल्यों का श्रोत है और यहाँ हमें अंतमर्न से नेतृत्व देकर एक नया आधार और मानक तैयार करना
होगा। इसी क्रम में मैं आपका ध्यान खींचना चाहता हूँ िक इन शरणािथर् यों को समस्या को गंभीरता से आपकी
सरकार ले और रचनात्मक रूप से इसे समाप्त करे, यह पूरे यूरोप और अमरीका के िलए एक िवषय होगा जहाँ
वो हमसे मानवीय मूल्यों को व्यवस्था में लाने का आधार सीख सकें गे । हम शरणाथीर् आयोग का गठन करें, और
यह आयोग के वल बांग्लादेश से आये हुए शरणाथीर् के िलये ही नहीं बिल्क समस्त िवस्थािपतों के िलए कायर् करे,
क्योंिक भारत में आज भी कई लोग िविभन्न िवषयों के कारण िवस्थािपत होकर दयनीय जीवन जीने को मजबूर
हैं।
आपसे अपेक्षा है इस िवषय पर आपका ध्यान आएगा, और नेतृत्व के आधार से िनणर्य का स्वरुप बैतूल िजले
एवं अन्य िजलों में बसे शरणाथीर्यों के िलए िवकास का दीया बनेगा।
आपका
िववेक जी
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  • 1. ५ जुलाई २०१५ नागपुर, महाराष्ट्र श्री नरेन्द्र दामोदरदास जी मोदी प्रधानमन्त्री , भारत सरकार प्रधानमंत्री कायार्लय साउथ ब्लॉक रायसीना िहल नयी िदल्ली ११००११ माननीय प्रधानमन्त्री जी भारत एक ऐसी भूिम है िजसने सबको स्वीकारा है, भारत को हम राष्ट्र से ज्यादा "माता" मानते हैं क्योंिक माँ कभी िकसी का ितरस्कार नहीं करती। आजादी के बीते ६८ सालों में अनेकानेक िवषयों ने इस बात को सािबत भी िकया है, भारत ने "माँ" बनकर सबको स्वीकारा है। भारत की आज़ादी के बाद एक बहुत बड़ा घटनाक्रम हमें देखने को िमला, जहाँ पािकस्तान से अलग होकर बांग्लादेश बना, पर बांग्लादेश बनने के पहले पूवीर् पािकस्तान ( आज का बांग्लादेश) में बड़ी िहंसा का मौहाल था, इसी िहंसा से बचने के िलए अनेक पिरवार वषर् १९५६ से १९७५ तक शरणाथीर् के रूप में बांग्लादेश से भारत आये थे। भारत इसी के आस पास पािकस्तान के साथ युद्ध में था एवं उस युद्ध ने बांग्लादेश में गृह युद्ध जैसे िस्थित पैदा कर दी थी, पंथों के बीच आपसी संघषर् से अनेक िहन्दू पिरवार बांग्लादेश ( उस समय पािकस्तान) से बचकर भारत आ गए थे। पूरे भारत में उनको बसाया गया था, यह भारत सरकार के िलए साधुवाद का िवषय है, और भारत के िलए गवर् का क्योंिक िबगड़ते हालातों में मानवीय सेवा की गयी। ऐसे ही शरणािथर् यों की एक बस्ती सरकार ने बैतूल िजले में शाहपुर ब्लॉक के चोपना ग्राम में भी बसाई गयी थी। बीते माह २१ जून से २५ जून के मध्य आनंद ही आनंद के भारत पदयात्रा के दौरान, मैं िकसानों एवं ग्रामीणों के िलए इस चेतना पद यात्रा के अंतगर्त में बैतूल िजले में गया था, जहाँ मेरा िमलना बांग्लादेश से आये हुए शरणािथर् यों से भी हुआ। मैंने उन्हें व्यिक्तगत रूप से सुना एवं पाया िक वो आज भी समस्याओं से जूझ रहे हैं। शरणाथीर् का जीवन बड़ा संघषर्मय होता है, वे अपने पिरवेश से िबछड़े हुए होतें हैं, एक आतंिरक पीड़ा, सामािजक, धािमर्क अिस्थरता उन्हें पलायन के िलये मजबूर करती है, मैंने व्यिक्तगत रूप से उनकी पीड़ा को 1 ,p 27, b .202 pk, , g , 440003 53 BD DE LA TOUR D’AUVERGNE, RENNES, FRANCE, 35000
  • 2. यूरोप में महसूस िकया है, यह पीड़ा मन मिस्तष्क के िलए और कहीं मनुष्य के समस्त अिस्तत्व को प्रभािवत करती है। मैंने उनकी पीड़ा को बैतूल िजले में करीब से देखा, इस िजले में अंितम शरणाथीर् १९७५ में आये थे तबसे लेकर आज तक उनकी समस्यायें जस की तस है, आज भी कई पिरवार भूिम से जुड़े हुए पट्टों के बगैर खेती कर रहे हैं, उन्हें यह पट्टा ४० वषोर्ं पूवर् ही िमल जाना था पर ऐसा हो न सका, पट्टे के बगैर खेती करने के कारण कई बार िववाद की िस्थित बन जाती है, शरणाथीर् जब आये थे तब उन्हें भारत सरकार ने ५ एकड़ जमीन प्रित पिरवार दी थी, पर अब यह जमीन िकसी भी पिरवार के िलए पूरी नहीं पड़ती। यह इलाका आिदवासी बहुल है िजससे वो जमीन खरीद भी नहीं सकते, सरकारी जमीन िमलने के कारण हस्तांतिरत भी नहीं होती। इस इलाके में मैंने यह एक ऐसा गाँव भी देखा जहाँ ४० वषोर्ं से िबजली भी नहीं है, जबिक कें द्रीय सरकार ने स्वयं वह जमीन शरणाथीर्यों के िलए आवंिटत की थी। यहाँ शरणाथीर् बड़ी पीड़ा में है, चहुंओर समस्या ही समस्या है, मुझे लगता है अब वो समय है जब हम िवस्थापन और शरणािथर् यों के मूल अिधकार के प्रित एक सकारात्मक िवचार रख के कोई कायर् हो, बीती सरकारों का आत्मबल इस समस्या से िनपटने का नहीं था, यह हालत लगभग सारे शरणािथर् यों की होगी मैंने तो के वल एक उदाहरण िदया है, बैतूल का। कहा जाता है की बांग्लादेश के िवभाजन के पहले, लगभग ६ लाख लोग जो िक िहन्दू मूल के थे पलायन कर भारत आये ।उनमें से के वल १००००-१५००० लोग बैतूल िजले में भेजे गए थे, अब आप अनुमान लगा सकते हैं की बाकी लोग जो अन्य जगहों पर गए उनके क्या हालात क्या होंगे। शरणाथीर् की समस्या पूरे िवश्व की है, जब भी िवश्व में अशांित होती है, पलायन होता है। यूरोप में पलायन और शरणािथर् यों के साथ िकये जाने वाले व्यवहार से हम सब पिरिचत हैं, भारत को आज िवश्व के िलए एक नया मागर् देना होगा, इस िवषय पर अपनी सोच और प्रयोग में कायर्क्रम बना के पुरे िवश्व का नेतृत्व करना होगा, भारत मानवीय मूल्यों का श्रोत है और यहाँ हमें अंतमर्न से नेतृत्व देकर एक नया आधार और मानक तैयार करना होगा। इसी क्रम में मैं आपका ध्यान खींचना चाहता हूँ िक इन शरणािथर् यों को समस्या को गंभीरता से आपकी सरकार ले और रचनात्मक रूप से इसे समाप्त करे, यह पूरे यूरोप और अमरीका के िलए एक िवषय होगा जहाँ वो हमसे मानवीय मूल्यों को व्यवस्था में लाने का आधार सीख सकें गे । हम शरणाथीर् आयोग का गठन करें, और यह आयोग के वल बांग्लादेश से आये हुए शरणाथीर् के िलये ही नहीं बिल्क समस्त िवस्थािपतों के िलए कायर् करे, क्योंिक भारत में आज भी कई लोग िविभन्न िवषयों के कारण िवस्थािपत होकर दयनीय जीवन जीने को मजबूर हैं। आपसे अपेक्षा है इस िवषय पर आपका ध्यान आएगा, और नेतृत्व के आधार से िनणर्य का स्वरुप बैतूल िजले एवं अन्य िजलों में बसे शरणाथीर्यों के िलए िवकास का दीया बनेगा। आपका िववेक जी 2 ,p 27, b .202 pk, , g , 440003 53 BD DE LA TOUR D’AUVERGNE, RENNES, FRANCE, 35000