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अध्याय 1
याक
ू ब आरू परिवाि क
े िऽ बच्चा िाहेल क
े िऽ बािहवााँ
बेटा बेंजामिन दार्शमनक आरू पिोपकािी बनी जाय छै
।
1 मबन्यािीनक वचनक प्रमिमलमप जे ओ अपन पुत्र सभ
क
ेाँ एक सय पच्चीस वर्शक जीवनक बाद पालन
किबाक आज्ञा देलमन।
2 ओ हुनका सभ क
ेाँ चुम्मा लेलमन आ कहलमन,
“जमहना इसहाकक जन्म अब्राहि साँ बुढािी िे भेल
छलमन, िमहना हि याक
ू ब साँ सेहो भेलहुाँ।
3 जमहया साँ हिि िाय िाहेल हििा प्रसव किैि िरि
गेलीह, हििा दू ध नमह छल। िेाँ हििा हुनकि दासी
मबल्हा दू ध मपला देलक।
4 िाहेल यूसुफक जन्मक बाद बािह वर्श धरि बंजि
िहलीह। बािह मदनक उपवास कऽ प्रभु साँ प्रार्शना
कयलमन आ गभशविी भऽ हििा जन्म देलमन।
5 हिि मपिा िाहेल साँ बहुि प्रेि किैि छलाह आ
प्रार्शना किैि छलाह जे हुनका साँ दू टा बेटाक जन्म
भेमट जाय।
6 िेाँ हििा मबन्यािीन कहल गेल, अर्ाशि् मदन भरिक
बेटा।
7 जखन हि मिस्र िे यूसुफ लग गेलहुाँ आ हिि भाय
हििा मचन्हलमन, िखन ओ हििा कहलमन, “हििा
बेचैि काल ओ सभ हिि मपिा क
ेाँ की कहलक?
8 हि ओकिा कहमलयमन, “ओ सभ िोहि कोट क
ेाँ खून
साँ लऽ कऽ पठा देलक आ कहलक जे, “ई जामन मलअ
जे ई िोहि बेटाक कोट अमछ की नमह।”
9 ओ हििा कहलमर्न, “एहने भाइ, जखन ओ सभ
हिि कोट उिारि लेलक िखन ओ सभ हििा
इश्माएल सभ क
ेाँ दऽ देलक, आ ओ सभ हििा
कििक कपडा दऽ देलक आ हििा कोडा िारि
देलक आ हििा दौडय लेल कहलक।
10 ओमह िे साँ एक गोटे जे हििा लाठी साँ िारि देने
छल, से मसंह ओकिा साँ भेंट कऽ कऽ िारि देलक।
11 िेाँ हुनकि संगी सभ भयभीि भऽ गेलाह।
12 िेाँ, हिि बच्चा सभ, अहााँ सभ सेहो स् वगश आ पृर््
वीक प्रभु पििेर्् वि साँ प्रेि करू आ नीक आ पमवत्र
िनुर्् य यूसुफक उदाहिणक अनुसिण किैि हुनकि
आज्ञा सभक पालन करू।
13 अहााँ सभ जेना हििा जनैि छी िमहना अहााँ सभक
िन नीक मदस िहू। मकएक िाँ जे िन ठीक साँ स्नान
किैि अमछ, से सभ बाि क
ेाँ ठीक साँ देखैि अमछ।
14 प्रभु साँ डेिाउ आ अपन पडोसी साँ प्रेि करू। आ
भले ही बेमलयाि क
े आत्मा िोिा सब क
े हि बुिाई स
पीमडि किै क
े दावा किै छै, लेमकन िोिा पि ओकिो
अमधकाि नै होिै, जेना मक हिि भाई यूसुफ पि नै
छे लै।,
15 किेक लोक हुनका िािय चाहैि छल, आ पििेर््
वि हुनका ढाल बनौलमन!
16 मकएक िाँ जे पििेर्् वि साँ डेिाइि अमछ आ अपन
पडोसी साँ प्रेि किैि अमछ, से पििेर्् विक भय साँ
परििमिि भऽ सक
ै ि अमछ।
17 आ ने िनुर्् यक वा जानविक र्ड्यंत्र द्वािा ओकिा
पि िाज कयल जा सक
ै ि अमछ, मकएक िाँ ओकिा
अपन पडोसीक प्रमि जे प्रेि अमछ, िामह द्वािा प्रभुक
सहायिा भेटैि छै क।
18 यूसुफ हििा सभक मपिा साँ सेहो मवनिी किैि
छलाह जे ओ अपन भाय सभक लेल प्रार्शना किमर् जे
प्रभु हुनका सभ क
ेाँ पाप नमह िानमर्।
19 एमह ििहेाँ याक
ू ब मचमचया उठलाह, “हिि नीक
बच्चा, अहााँ अपन मपिा याक
ू बक आंि पि मवजय प्राप्त
कएलहुाँ।”
20 ओ ओकिा गला लगा कऽ दू घंटा धरि चुम्मा
लेलक।
21 अहााँ िे पििेर्् विक िेिना आ संसािक
उद्धािकिाशक मवर्य िे स् वगशक भमवष्यवाणी पूिा
होयि आ मनदोर् क
ेाँ अधिशक लेल सौंपल जायि आ
मनदोर् अभक्त लोकक लेल वाचाक खून िे िरि जायि ,
गैि-यहूदी आ इस्राएलक उद्धािक लेल, आ बेमलयाि
आ ओकि सेवक सभ क
ेाँ नष्ट कऽ देि।
22 िेाँ हे हिि सन्तान सभ, अहााँ सभ नीक लोकक अंि
देखैि छी?
23 िेाँ नीक िोन साँ हुनकि करुणाक अनुयायी बनू,
जामह साँ अहााँ सभ सेहो िमहिाक िुक
ु ट पमहिब।
24 मकएक िाँ नीक लोकक आाँखख कािी नमह होइि
छै क। मकएक िाँ ओ सभ लोक पि दया किैि छमर्,
भले ओ सभ पापी होमर्।”
25 ओ सभ भले ओ सभ अधलाह नीयि साँ योजना बना
िहल अमछ। हुनका मवर्य िे नीक काज कऽ कऽ ओ
अधलाह पि मवजय प्राप्त किैि अमछ, पििेर्् विक
परििमिि भऽ जाइि अमछ। आ धिी लोक क
ेाँ अपन
प्राण जकााँ प्रेि किैि अमछ।
26 जाँ ककिो िमहिा होइि छै क िाँ ओकिा साँ ईष्याश
नमह होइि छैक। जाँ क
े ओ सिृद्ध होइि अमछ िाँ
ओकिा ईष्याश नमह होइि छैक। जाँ क
े ओ वीि अमछ िाँ
ओकि प्रर्ंसा किैि अमछ। सद् गुणी आदिी क
े प्रर्ंसा
किै छै । गिीब पि ओ दया किैि अमछ। किजोि पि
ओकिा दया होइि छै क। पििेर्् विक स्तुमि गाबैि
छमर्।
27 जेकिा नीक आि् िाक क
ृ पा भेटैि छै क, िकिा ओ
अपन प्राण जकााँ प्रेि किैि अमछ।
28 िेाँ जाँ अहााँ सभक सेहो नीक मवचाि अमछ िाँ दुनू दुर््
ट लोक अहााँ सभक संग र्ाखन्त िे िहि आ उचमड वला
लोक सभ अहााँ सभक आदि किि आ नीक मदस घुरि
जायि। लोभी लोकमन अपन अमिर्य इच्छा साँ िऽ नमह
रुमक जेिाह, अमपिु अपन लोभक वस्तु सेहो पीमडि
लोकमन क
ेाँ दऽ देिाह।
29 जाँ अहााँ सभ नीक काज किब िाँ अर्ुद्ध आि् िा
सेहो अहााँ सभ साँ भामग जायि। जानवि सभ अहााँ सभ
साँ डेिा जायि।
30 मकएक िाँ जिऽ नीक काजक प्रमि आदि आ िनिे
इजोि होइि अमछ, ओिऽ अन् हाि सेहो हुनकासाँ दूि
भऽ जाइि अमछ।
31 जाँ क
े ओ पमवत्र िनुर्् यक संग महंसा किैि अमछ िाँ
ओ पश्चािाप किैि अमछ। मकएक िाँ पमवत्र लोक अपन
मनन्दा कियवला पि दया किैि अमछ आ चुप िहैि
अमछ।
32 जाँ क
े ओ कोनो धिी क
ेाँ धोखा दैि अमछ िाँ धिी लोक
प्रार्शना किैि अमछ।
33 नीक लोकक झुकाव बेमलयािक आि् िाक छलक
सािर््श य िे नमह अमछ, मकएक िाँ र्ाखन्तक स् वगशदूि
ओकि आि् िाक िागशदर्शन किैि अमछ।
34 ओ नार् भऽ जायवला वस्तु सभ क
ेाँ उत्सुकिा साँ
नमह िक
ै ि अमछ आ ने भोगक इच्छा साँ धन-सम्पमि
जिा किैि अमछ।
35 ओ भोग िे आनखन्दि नमह होइि अमछ, अपन
पडोसी क
ेाँ दुखी नमह किैि अमछ, मवलामसिा साँ अपना
क
ेाँ िृप्त नमह किैि अमछ, आाँखखक उत्थान िे नमह
भटक
ै ि अमछ, कािण प्रभु ओकि भाग छमर्।
36 नीक प्रवृमि क
ेाँ िनुर्् य साँ कोनो ििहक गौिव वा
अपिान नमह भेटैि छै क, आ ओ कोनो छल-प्रपंच वा
झूठ, वा लडाइ-झगडा वा गारि-गिौबमल नमह जनैि
अमछ। मकएक िाँ प्रभु हुनका िे िहैि छमर् आ हुनकि
प्राण क
ेाँ िोर्न किैि छमर् आ सभ िनुर्् य सभक प्रमि
समदखन आनखन्दि िहैि छमर्।
37 नीक िनक दू टा भार्ा नमह होइि छैक, आर्ीवाशद
आ श्राप, अपिान आ आदि, र्ोक आ आनन्द,
र्ान्तिा आ भ्रि, पाखंड आ सत्य, गिीबी आ धनक।
िुदा एकि सभ िनुर्् यक प्रमि एक
े टा स्वभाव अमछ,
जे अमवनार्ी आ र्ुद्ध अमछ।
38 एकि ने दोगुना दृमष्ट होइि छै क आ ने दुगुना सुनबा
िे अबैि छै क। मकएक िाँ ओ जे मकछु किैि अमछ, वा
बजैि अमछ, वा देखैि अमछ, िामह िे ओ जनैि अमछ
जे प्रभु ओकि आि् िा मदस िक
ै ि अमछ।
39 ओ अपन िन क
ेाँ र्ुद्ध किैि छमर् जामह साँ हुनका
पििेर्् वि जकााँ िनुर्् य द्वािा दोर्ी नमह ठहिाओल
जाय।
40 िमहना बेमलयािक काज दू ििहक अमछ, आ ओमह
िे कोनो एकिा नमह अमछ।
41 िेाँ हे हिि सन्तान सभ, हि अहााँ सभ क
ेाँ कहैि छी
जे, बेमलयािक दुभाशवना साँ पलायन करू। मकएक िाँ
ओ अपन आज्ञा िानमनहाि सभ क
ेाँ िलवाि दऽ दैि
छमर्न।”
42 आ िलवाि सािटा अधलाहक िाय अमछ। पमहने
िन बेमलयाि द्वािा गभशधािण किैि अमछ, आ पमहने
खून-खिाबा होइि अमछ। दोसि बबाशदी; िेसि, क्लेर्;
चारिि, मनवाशसन; पााँचि, अभाव; छठि, घबिाहट;
सािि, मवनार्।
43 ‘एमह लेल क
ै न क
ेाँ पििेर्् वि द्वािा साि टा
प्रमिर्ोधक लेल सौंपल गेलमन, मकएक िाँ पििेर्् वि
हुनका पि एक-एकटा मवपमि अनैि छलाह।
44 जखन ओ दू सय वर्शक भेलाह िखन हुनका कष्ट
होबय लगलाह आ नौ सय वर्श िे हुनकि नार् भऽ
गेलमन।
45 मकएक िाँ ओकि भाइ हामबल क
े ि कािणेाँ ओकि
न्याय भेलैक, िुदा लािेक पि सिरि गुना साि।
46 मकएक िाँ जे सभ क
ै न जकााँ भाइ सभक प्रमि ईष्याश
आ घृणा किैि छमर्, िकिा सभ क
ेाँ सदा-सदा लेल
ओमहना दण्ड देल जायि।
अध्याय 2
श्लोक 3 िे घिकपनक एकटा हडिाली उदाहिण
अमछ--िइयो एमह प्राचीन क
ु लपमि लोकमनक
आलंकारिक जीवंििा।
1 हिि सन्तान सभ, अहााँ सभ अधलाह काज, ईष्याश
आ भाइ सभक घृणा साँ पलायन करू आ भलाई आ
प्रेि साँ मचपकल िहू।
2 जे प्रेि िे र्ुद्ध िोन िखैि अमछ, ओ व्यमभचािक लेल
स् त्री क
ेाँ नमह देखैि अमछ। मकएक िाँ ओकि हृदय िे
कोनो अर्ुद्धिा नमह छै क, मकएक िाँ पििेर्् विक
आि् िा ओकिा पि मटकल अमछ।
3 जेना िौद गोबि आ दलदल पि चिमक कऽ अर्ुद्ध
नमह होइि अमछ, बल् मक दुनू क
ेाँ सुखा दैि अमछ आ
दुगशन्ध क
ेाँ भगा दैि अमछ। िमहना र्ुद्ध िन पृथ्वीक
अर्ुद्धिा साँ घेिल िमहिो ओकिा र्ुद्ध किैि अमछ आ
स्वयं अर्ुद्ध नमह होइि अमछ।
4 हििा मवश्वास अमछ जे अहााँ सभक बीच धिाशत्मा
हनोकक वचन सभ साँ दुष्किश सेहो होयि, जे अहााँ सभ
सदोिक व्यमभचािक संग व्यमभचाि किब आ मकछु
गोटे क
ेाँ छोमड सभ गोटे नार् भऽ जायब आ स् त्रीगण
सभक संग बेहूदा काज किब ; पििेर्् विक िाज् य
अहााँ सभक बीच नमह िहि, मकएक िाँ ओ िुिन्त
ओकिा छीन लेिाह।”
5 िैयो पििेर्् विक िन् मदि अहााँ सभक भाग िे िहि
आ अंमिि िन् मदि पमहल िन् मदि साँ बेसी
िमहिािंमडि होयि।
6 बािह गोत्र आ सभ गैि-यहूदी लोक सभ ओिऽ जिा
िहि जाबि धरि पििेर्् वि एकटा एकिात्र प्रवक
्
िाक िुक
् मि िे अपन उद्धाि नमह पठौिाह।
7 ओ पमहल िन् मदि िे प्रवेर् कििाह आ ओिमह
पििेर्् वि क
ेाँ आक्रोमर्ि कयल जायि आ ओ गाछ
पि उठाओल जायि।
8 िखन्दिक पदाश फामट जायि आ पििेर्् विक आि्
िा गैि-यहूदी सभ िे ओमहना पहुाँचि जेना आमग बहैि
अमछ।
9 ओ पािाल साँ चढिाह आ पृर्् वी साँ स् वगश िे चमल
जेिाह।
10 हि जनैि छी जे ओ पृर्् वी पि किेक नीच हेिाह
आ स् वगश िे किेक गौिवर्ाली हेिाह।
11 जखन यूसुफ मिस्र िे छलाह िखन हि हुनकि
आक
ृ मि आ हुनकि चेहिाक रूप देखबाक लेल
ििसैि छलहुाँ। आ हिि मपिा याक
ू बक प्रार्शनाक
िाध्यिे हि हुनका मदन िे जागल िहैि देखलहुाँ, एिय
िक मक हुनकि पूिा आक
ृ मि ठीक ओमहना जेना ओ
छल।
12 जखन ओ ई बाि सभ कहलमर्न, िखन ओ हुनका
सभ क
ेाँ कहलमर्न, “हे हिि बच्चा सभ, अहााँ सभ ई
जामन मलअ जे हि िरि िहल छी।”
13 िेाँ अहााँ सभ एक-एक गोटे अपन पडोसीक प्रमि
सि् य िाखू आ प्रभुक मनयि आ हुनकि आज्ञाक
पालन करू।
14 हि अहााँ सभ क
ेाँ उििामधकािक बदला िे ई सभ
बाि छोमड िहल छी।
15 िेाँ अहााँ सभ सेहो ओकिा सभ क
ेाँ अपन संिान क
ेाँ
अनन्त सम्पमिक रूप िे दऽ मदयौक। मकएक िाँ
अब्राहि, इसहाक आ याक
ू ब दुनू गोटे एहने छलाह।
16 ई सभ बाि ओ सभ हििा सभ क
ेाँ उििामधकािक
रूप िे देलमन, ई कहैि जे, पििेर्् विक आज्ञा सभक
पालन करू, जाबि धरि प्रभु सभ गैि-यहूदी सभक
सािने अपन उद्धाि नमह प्रगट नमह कििाह।
17 िखन अहााँ सभ हनोक, नूह, र्ेि, अब्राहि,
इसहाक आ याक
ू ब क
ेाँ प्रसन्निापूवशक दमहना काि
उठै ि देखब।
18 िखन हि सभ अपन-अपन गोत्रक ऊपि उमठ कऽ
स् वगशक िाजाक आिाधना किब जे पृर्् वी पि
मवनम्रिापूवशक िनुखक रूप िे प्रकट भेलाह।
19 पृर्् वी पि जे सभ हुनका पि मवर्् वास किैि छमर्,
हुनका संग आनखन्दि हेिाह।
20 िखन सभ लोक उठि, मकयो िमहिा िे आ मकछु
लज्जा िे।
21 पििेर्् वि इस्राएल सभक अधिशक कािणेाँ पमहने
इस्राएलक न् याय कििाह। कािण जखन ओ हुनका
सभ क
ेाँ उद्धाि किबाक लेल र्िीि िे पििेर्् विक
रूप िे प्रकट भेलाह िखन ओ सभ हुनका पि मवर््
वास नमह कयलमन।
22 िखन ओ सभ गैि-यहूदी सभक न्याय कििाह, जे
सभ हुनका पि मवर्् वास नमह क
े ने छलाह जखन ओ
पृर्् वी पि प्रकट भेलाह।
23 ओ गैि-यहूदी सभक चुनल लोक सभक द्वािा
इस्राएल क
ेाँ दोर्ी ठहिौिाह, जेना ओ मिद्यानी सभक
िाध्यिे एसाव क
ेाँ डााँमट देलमन, जे सभ अपन भाय सभ
क
ेाँ धोखा देलक, जामह साँ ओ सभ व्यमभचाि आ
िूमिशपूजा िे पमड गेलाह। ओ सभ पििेर्् वि साँ मविक्त
भऽ गेलाह, िेाँ प्रभुक भयभीि कियवला सभक भाग िे
संिान बमन गेलाह।
24 हिि सन्तान, जाँ अहााँ सभ पििेर्् विक आज्ञाक
अनुसाि पमवत्रिा िे चलब िाँ फ
े ि हििा संग सुिमिि
िहब आ सिस्त इस्राएल पििेर्् विक सिि जिा भऽ
जायि।
25 आब अहााँ सभक मवनार्क कािणेाँ हििा खिखि
भेमडया नमह कहल जायि, बल् मक प्रभुक काज
कियवला जे नीक काज कियवला सभ क
ेाँ भोजन बााँमट
िहल छी।
26 बादक मदन िे प्रभुक मप्रय, यहूदा आ लेवीक गोत्र
िे साँ एक गोटे उठि, जे अपन िुंह िे अपन प्रसन्निाक
पालन कियवला, नव ज्ञानक संग गैि-यहूदी सभ क
ेाँ
प्रबुद्ध किि।
27 युगक सिापन धरि ओ गैि-यहूदी सभक सभाघि
िे आ ओकि सभक र्ासक सभक बीच िे िहिाह,
जेना सभ लोकक िुाँह िे संगीिक वादन होइि अमछ।
28 ओ अपन काज आ ओकि वचन दुनू पमवत्र पुस्तक
िे अंमकि िहि, आ ओ समदखन पििेर्् विक चुनल
लोक िहि।
29 हुनका सभक िाध्यिे ओ हिि मपिा याक
ू ब जकााँ
एम्हि-ओम्हि घुिैि िहिाह, “ओ अहााँक गोत्र िे जे
किी अमछ िकिा पूिा किि।”
30 ई बाि कमह कऽ ओ अपन पएि पसारि लेलमन।
31 ओ सुन्दि आ नीक नींद िे िरि गेलाह।
32 हुनकि पुत्र सभ हुनकि आज्ञानुसाि कयलमन आ
हुनकि र्व क
ेाँ उठा कऽ हुनकि पूवशज सभक संग
हेब्रोन िे गामड देलमन।
33 हुनकि जीवनक संख्या एक सय पच्चीस वर्श
छलमन।

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  • 1.
  • 2. अध्याय 1 याक ू ब आरू परिवाि क े िऽ बच्चा िाहेल क े िऽ बािहवााँ बेटा बेंजामिन दार्शमनक आरू पिोपकािी बनी जाय छै । 1 मबन्यािीनक वचनक प्रमिमलमप जे ओ अपन पुत्र सभ क ेाँ एक सय पच्चीस वर्शक जीवनक बाद पालन किबाक आज्ञा देलमन। 2 ओ हुनका सभ क ेाँ चुम्मा लेलमन आ कहलमन, “जमहना इसहाकक जन्म अब्राहि साँ बुढािी िे भेल छलमन, िमहना हि याक ू ब साँ सेहो भेलहुाँ। 3 जमहया साँ हिि िाय िाहेल हििा प्रसव किैि िरि गेलीह, हििा दू ध नमह छल। िेाँ हििा हुनकि दासी मबल्हा दू ध मपला देलक। 4 िाहेल यूसुफक जन्मक बाद बािह वर्श धरि बंजि िहलीह। बािह मदनक उपवास कऽ प्रभु साँ प्रार्शना कयलमन आ गभशविी भऽ हििा जन्म देलमन। 5 हिि मपिा िाहेल साँ बहुि प्रेि किैि छलाह आ प्रार्शना किैि छलाह जे हुनका साँ दू टा बेटाक जन्म भेमट जाय। 6 िेाँ हििा मबन्यािीन कहल गेल, अर्ाशि् मदन भरिक बेटा। 7 जखन हि मिस्र िे यूसुफ लग गेलहुाँ आ हिि भाय हििा मचन्हलमन, िखन ओ हििा कहलमन, “हििा बेचैि काल ओ सभ हिि मपिा क ेाँ की कहलक? 8 हि ओकिा कहमलयमन, “ओ सभ िोहि कोट क ेाँ खून साँ लऽ कऽ पठा देलक आ कहलक जे, “ई जामन मलअ जे ई िोहि बेटाक कोट अमछ की नमह।” 9 ओ हििा कहलमर्न, “एहने भाइ, जखन ओ सभ हिि कोट उिारि लेलक िखन ओ सभ हििा इश्माएल सभ क ेाँ दऽ देलक, आ ओ सभ हििा कििक कपडा दऽ देलक आ हििा कोडा िारि देलक आ हििा दौडय लेल कहलक। 10 ओमह िे साँ एक गोटे जे हििा लाठी साँ िारि देने छल, से मसंह ओकिा साँ भेंट कऽ कऽ िारि देलक। 11 िेाँ हुनकि संगी सभ भयभीि भऽ गेलाह। 12 िेाँ, हिि बच्चा सभ, अहााँ सभ सेहो स् वगश आ पृर्् वीक प्रभु पििेर्् वि साँ प्रेि करू आ नीक आ पमवत्र िनुर्् य यूसुफक उदाहिणक अनुसिण किैि हुनकि आज्ञा सभक पालन करू। 13 अहााँ सभ जेना हििा जनैि छी िमहना अहााँ सभक िन नीक मदस िहू। मकएक िाँ जे िन ठीक साँ स्नान किैि अमछ, से सभ बाि क ेाँ ठीक साँ देखैि अमछ। 14 प्रभु साँ डेिाउ आ अपन पडोसी साँ प्रेि करू। आ भले ही बेमलयाि क े आत्मा िोिा सब क े हि बुिाई स पीमडि किै क े दावा किै छै, लेमकन िोिा पि ओकिो अमधकाि नै होिै, जेना मक हिि भाई यूसुफ पि नै छे लै।, 15 किेक लोक हुनका िािय चाहैि छल, आ पििेर्् वि हुनका ढाल बनौलमन! 16 मकएक िाँ जे पििेर्् वि साँ डेिाइि अमछ आ अपन पडोसी साँ प्रेि किैि अमछ, से पििेर्् विक भय साँ परििमिि भऽ सक ै ि अमछ। 17 आ ने िनुर्् यक वा जानविक र्ड्यंत्र द्वािा ओकिा पि िाज कयल जा सक ै ि अमछ, मकएक िाँ ओकिा अपन पडोसीक प्रमि जे प्रेि अमछ, िामह द्वािा प्रभुक सहायिा भेटैि छै क। 18 यूसुफ हििा सभक मपिा साँ सेहो मवनिी किैि छलाह जे ओ अपन भाय सभक लेल प्रार्शना किमर् जे प्रभु हुनका सभ क ेाँ पाप नमह िानमर्। 19 एमह ििहेाँ याक ू ब मचमचया उठलाह, “हिि नीक बच्चा, अहााँ अपन मपिा याक ू बक आंि पि मवजय प्राप्त कएलहुाँ।” 20 ओ ओकिा गला लगा कऽ दू घंटा धरि चुम्मा लेलक। 21 अहााँ िे पििेर्् विक िेिना आ संसािक उद्धािकिाशक मवर्य िे स् वगशक भमवष्यवाणी पूिा होयि आ मनदोर् क ेाँ अधिशक लेल सौंपल जायि आ मनदोर् अभक्त लोकक लेल वाचाक खून िे िरि जायि , गैि-यहूदी आ इस्राएलक उद्धािक लेल, आ बेमलयाि आ ओकि सेवक सभ क ेाँ नष्ट कऽ देि।
  • 3. 22 िेाँ हे हिि सन्तान सभ, अहााँ सभ नीक लोकक अंि देखैि छी? 23 िेाँ नीक िोन साँ हुनकि करुणाक अनुयायी बनू, जामह साँ अहााँ सभ सेहो िमहिाक िुक ु ट पमहिब। 24 मकएक िाँ नीक लोकक आाँखख कािी नमह होइि छै क। मकएक िाँ ओ सभ लोक पि दया किैि छमर्, भले ओ सभ पापी होमर्।” 25 ओ सभ भले ओ सभ अधलाह नीयि साँ योजना बना िहल अमछ। हुनका मवर्य िे नीक काज कऽ कऽ ओ अधलाह पि मवजय प्राप्त किैि अमछ, पििेर्् विक परििमिि भऽ जाइि अमछ। आ धिी लोक क ेाँ अपन प्राण जकााँ प्रेि किैि अमछ। 26 जाँ ककिो िमहिा होइि छै क िाँ ओकिा साँ ईष्याश नमह होइि छैक। जाँ क े ओ सिृद्ध होइि अमछ िाँ ओकिा ईष्याश नमह होइि छैक। जाँ क े ओ वीि अमछ िाँ ओकि प्रर्ंसा किैि अमछ। सद् गुणी आदिी क े प्रर्ंसा किै छै । गिीब पि ओ दया किैि अमछ। किजोि पि ओकिा दया होइि छै क। पििेर्् विक स्तुमि गाबैि छमर्। 27 जेकिा नीक आि् िाक क ृ पा भेटैि छै क, िकिा ओ अपन प्राण जकााँ प्रेि किैि अमछ। 28 िेाँ जाँ अहााँ सभक सेहो नीक मवचाि अमछ िाँ दुनू दुर्् ट लोक अहााँ सभक संग र्ाखन्त िे िहि आ उचमड वला लोक सभ अहााँ सभक आदि किि आ नीक मदस घुरि जायि। लोभी लोकमन अपन अमिर्य इच्छा साँ िऽ नमह रुमक जेिाह, अमपिु अपन लोभक वस्तु सेहो पीमडि लोकमन क ेाँ दऽ देिाह। 29 जाँ अहााँ सभ नीक काज किब िाँ अर्ुद्ध आि् िा सेहो अहााँ सभ साँ भामग जायि। जानवि सभ अहााँ सभ साँ डेिा जायि। 30 मकएक िाँ जिऽ नीक काजक प्रमि आदि आ िनिे इजोि होइि अमछ, ओिऽ अन् हाि सेहो हुनकासाँ दूि भऽ जाइि अमछ। 31 जाँ क े ओ पमवत्र िनुर्् यक संग महंसा किैि अमछ िाँ ओ पश्चािाप किैि अमछ। मकएक िाँ पमवत्र लोक अपन मनन्दा कियवला पि दया किैि अमछ आ चुप िहैि अमछ। 32 जाँ क े ओ कोनो धिी क ेाँ धोखा दैि अमछ िाँ धिी लोक प्रार्शना किैि अमछ। 33 नीक लोकक झुकाव बेमलयािक आि् िाक छलक सािर््श य िे नमह अमछ, मकएक िाँ र्ाखन्तक स् वगशदूि ओकि आि् िाक िागशदर्शन किैि अमछ। 34 ओ नार् भऽ जायवला वस्तु सभ क ेाँ उत्सुकिा साँ नमह िक ै ि अमछ आ ने भोगक इच्छा साँ धन-सम्पमि जिा किैि अमछ। 35 ओ भोग िे आनखन्दि नमह होइि अमछ, अपन पडोसी क ेाँ दुखी नमह किैि अमछ, मवलामसिा साँ अपना क ेाँ िृप्त नमह किैि अमछ, आाँखखक उत्थान िे नमह भटक ै ि अमछ, कािण प्रभु ओकि भाग छमर्। 36 नीक प्रवृमि क ेाँ िनुर्् य साँ कोनो ििहक गौिव वा अपिान नमह भेटैि छै क, आ ओ कोनो छल-प्रपंच वा झूठ, वा लडाइ-झगडा वा गारि-गिौबमल नमह जनैि अमछ। मकएक िाँ प्रभु हुनका िे िहैि छमर् आ हुनकि प्राण क ेाँ िोर्न किैि छमर् आ सभ िनुर्् य सभक प्रमि समदखन आनखन्दि िहैि छमर्। 37 नीक िनक दू टा भार्ा नमह होइि छैक, आर्ीवाशद आ श्राप, अपिान आ आदि, र्ोक आ आनन्द, र्ान्तिा आ भ्रि, पाखंड आ सत्य, गिीबी आ धनक। िुदा एकि सभ िनुर्् यक प्रमि एक े टा स्वभाव अमछ, जे अमवनार्ी आ र्ुद्ध अमछ। 38 एकि ने दोगुना दृमष्ट होइि छै क आ ने दुगुना सुनबा िे अबैि छै क। मकएक िाँ ओ जे मकछु किैि अमछ, वा बजैि अमछ, वा देखैि अमछ, िामह िे ओ जनैि अमछ जे प्रभु ओकि आि् िा मदस िक ै ि अमछ। 39 ओ अपन िन क ेाँ र्ुद्ध किैि छमर् जामह साँ हुनका पििेर्् वि जकााँ िनुर्् य द्वािा दोर्ी नमह ठहिाओल जाय। 40 िमहना बेमलयािक काज दू ििहक अमछ, आ ओमह िे कोनो एकिा नमह अमछ। 41 िेाँ हे हिि सन्तान सभ, हि अहााँ सभ क ेाँ कहैि छी जे, बेमलयािक दुभाशवना साँ पलायन करू। मकएक िाँ
  • 4. ओ अपन आज्ञा िानमनहाि सभ क ेाँ िलवाि दऽ दैि छमर्न।” 42 आ िलवाि सािटा अधलाहक िाय अमछ। पमहने िन बेमलयाि द्वािा गभशधािण किैि अमछ, आ पमहने खून-खिाबा होइि अमछ। दोसि बबाशदी; िेसि, क्लेर्; चारिि, मनवाशसन; पााँचि, अभाव; छठि, घबिाहट; सािि, मवनार्। 43 ‘एमह लेल क ै न क ेाँ पििेर्् वि द्वािा साि टा प्रमिर्ोधक लेल सौंपल गेलमन, मकएक िाँ पििेर्् वि हुनका पि एक-एकटा मवपमि अनैि छलाह। 44 जखन ओ दू सय वर्शक भेलाह िखन हुनका कष्ट होबय लगलाह आ नौ सय वर्श िे हुनकि नार् भऽ गेलमन। 45 मकएक िाँ ओकि भाइ हामबल क े ि कािणेाँ ओकि न्याय भेलैक, िुदा लािेक पि सिरि गुना साि। 46 मकएक िाँ जे सभ क ै न जकााँ भाइ सभक प्रमि ईष्याश आ घृणा किैि छमर्, िकिा सभ क ेाँ सदा-सदा लेल ओमहना दण्ड देल जायि। अध्याय 2 श्लोक 3 िे घिकपनक एकटा हडिाली उदाहिण अमछ--िइयो एमह प्राचीन क ु लपमि लोकमनक आलंकारिक जीवंििा। 1 हिि सन्तान सभ, अहााँ सभ अधलाह काज, ईष्याश आ भाइ सभक घृणा साँ पलायन करू आ भलाई आ प्रेि साँ मचपकल िहू। 2 जे प्रेि िे र्ुद्ध िोन िखैि अमछ, ओ व्यमभचािक लेल स् त्री क ेाँ नमह देखैि अमछ। मकएक िाँ ओकि हृदय िे कोनो अर्ुद्धिा नमह छै क, मकएक िाँ पििेर्् विक आि् िा ओकिा पि मटकल अमछ। 3 जेना िौद गोबि आ दलदल पि चिमक कऽ अर्ुद्ध नमह होइि अमछ, बल् मक दुनू क ेाँ सुखा दैि अमछ आ दुगशन्ध क ेाँ भगा दैि अमछ। िमहना र्ुद्ध िन पृथ्वीक अर्ुद्धिा साँ घेिल िमहिो ओकिा र्ुद्ध किैि अमछ आ स्वयं अर्ुद्ध नमह होइि अमछ। 4 हििा मवश्वास अमछ जे अहााँ सभक बीच धिाशत्मा हनोकक वचन सभ साँ दुष्किश सेहो होयि, जे अहााँ सभ सदोिक व्यमभचािक संग व्यमभचाि किब आ मकछु गोटे क ेाँ छोमड सभ गोटे नार् भऽ जायब आ स् त्रीगण सभक संग बेहूदा काज किब ; पििेर्् विक िाज् य अहााँ सभक बीच नमह िहि, मकएक िाँ ओ िुिन्त ओकिा छीन लेिाह।” 5 िैयो पििेर्् विक िन् मदि अहााँ सभक भाग िे िहि आ अंमिि िन् मदि पमहल िन् मदि साँ बेसी िमहिािंमडि होयि। 6 बािह गोत्र आ सभ गैि-यहूदी लोक सभ ओिऽ जिा िहि जाबि धरि पििेर्् वि एकटा एकिात्र प्रवक ् िाक िुक ् मि िे अपन उद्धाि नमह पठौिाह। 7 ओ पमहल िन् मदि िे प्रवेर् कििाह आ ओिमह पििेर्् वि क ेाँ आक्रोमर्ि कयल जायि आ ओ गाछ पि उठाओल जायि। 8 िखन्दिक पदाश फामट जायि आ पििेर्् विक आि् िा गैि-यहूदी सभ िे ओमहना पहुाँचि जेना आमग बहैि अमछ। 9 ओ पािाल साँ चढिाह आ पृर्् वी साँ स् वगश िे चमल जेिाह। 10 हि जनैि छी जे ओ पृर्् वी पि किेक नीच हेिाह आ स् वगश िे किेक गौिवर्ाली हेिाह। 11 जखन यूसुफ मिस्र िे छलाह िखन हि हुनकि आक ृ मि आ हुनकि चेहिाक रूप देखबाक लेल ििसैि छलहुाँ। आ हिि मपिा याक ू बक प्रार्शनाक िाध्यिे हि हुनका मदन िे जागल िहैि देखलहुाँ, एिय िक मक हुनकि पूिा आक ृ मि ठीक ओमहना जेना ओ छल। 12 जखन ओ ई बाि सभ कहलमर्न, िखन ओ हुनका सभ क ेाँ कहलमर्न, “हे हिि बच्चा सभ, अहााँ सभ ई जामन मलअ जे हि िरि िहल छी।” 13 िेाँ अहााँ सभ एक-एक गोटे अपन पडोसीक प्रमि सि् य िाखू आ प्रभुक मनयि आ हुनकि आज्ञाक पालन करू।
  • 5. 14 हि अहााँ सभ क ेाँ उििामधकािक बदला िे ई सभ बाि छोमड िहल छी। 15 िेाँ अहााँ सभ सेहो ओकिा सभ क ेाँ अपन संिान क ेाँ अनन्त सम्पमिक रूप िे दऽ मदयौक। मकएक िाँ अब्राहि, इसहाक आ याक ू ब दुनू गोटे एहने छलाह। 16 ई सभ बाि ओ सभ हििा सभ क ेाँ उििामधकािक रूप िे देलमन, ई कहैि जे, पििेर्् विक आज्ञा सभक पालन करू, जाबि धरि प्रभु सभ गैि-यहूदी सभक सािने अपन उद्धाि नमह प्रगट नमह कििाह। 17 िखन अहााँ सभ हनोक, नूह, र्ेि, अब्राहि, इसहाक आ याक ू ब क ेाँ प्रसन्निापूवशक दमहना काि उठै ि देखब। 18 िखन हि सभ अपन-अपन गोत्रक ऊपि उमठ कऽ स् वगशक िाजाक आिाधना किब जे पृर्् वी पि मवनम्रिापूवशक िनुखक रूप िे प्रकट भेलाह। 19 पृर्् वी पि जे सभ हुनका पि मवर्् वास किैि छमर्, हुनका संग आनखन्दि हेिाह। 20 िखन सभ लोक उठि, मकयो िमहिा िे आ मकछु लज्जा िे। 21 पििेर्् वि इस्राएल सभक अधिशक कािणेाँ पमहने इस्राएलक न् याय कििाह। कािण जखन ओ हुनका सभ क ेाँ उद्धाि किबाक लेल र्िीि िे पििेर्् विक रूप िे प्रकट भेलाह िखन ओ सभ हुनका पि मवर्् वास नमह कयलमन। 22 िखन ओ सभ गैि-यहूदी सभक न्याय कििाह, जे सभ हुनका पि मवर्् वास नमह क े ने छलाह जखन ओ पृर्् वी पि प्रकट भेलाह। 23 ओ गैि-यहूदी सभक चुनल लोक सभक द्वािा इस्राएल क ेाँ दोर्ी ठहिौिाह, जेना ओ मिद्यानी सभक िाध्यिे एसाव क ेाँ डााँमट देलमन, जे सभ अपन भाय सभ क ेाँ धोखा देलक, जामह साँ ओ सभ व्यमभचाि आ िूमिशपूजा िे पमड गेलाह। ओ सभ पििेर्् वि साँ मविक्त भऽ गेलाह, िेाँ प्रभुक भयभीि कियवला सभक भाग िे संिान बमन गेलाह। 24 हिि सन्तान, जाँ अहााँ सभ पििेर्् विक आज्ञाक अनुसाि पमवत्रिा िे चलब िाँ फ े ि हििा संग सुिमिि िहब आ सिस्त इस्राएल पििेर्् विक सिि जिा भऽ जायि। 25 आब अहााँ सभक मवनार्क कािणेाँ हििा खिखि भेमडया नमह कहल जायि, बल् मक प्रभुक काज कियवला जे नीक काज कियवला सभ क ेाँ भोजन बााँमट िहल छी। 26 बादक मदन िे प्रभुक मप्रय, यहूदा आ लेवीक गोत्र िे साँ एक गोटे उठि, जे अपन िुंह िे अपन प्रसन्निाक पालन कियवला, नव ज्ञानक संग गैि-यहूदी सभ क ेाँ प्रबुद्ध किि। 27 युगक सिापन धरि ओ गैि-यहूदी सभक सभाघि िे आ ओकि सभक र्ासक सभक बीच िे िहिाह, जेना सभ लोकक िुाँह िे संगीिक वादन होइि अमछ। 28 ओ अपन काज आ ओकि वचन दुनू पमवत्र पुस्तक िे अंमकि िहि, आ ओ समदखन पििेर्् विक चुनल लोक िहि। 29 हुनका सभक िाध्यिे ओ हिि मपिा याक ू ब जकााँ एम्हि-ओम्हि घुिैि िहिाह, “ओ अहााँक गोत्र िे जे किी अमछ िकिा पूिा किि।” 30 ई बाि कमह कऽ ओ अपन पएि पसारि लेलमन। 31 ओ सुन्दि आ नीक नींद िे िरि गेलाह। 32 हुनकि पुत्र सभ हुनकि आज्ञानुसाि कयलमन आ हुनकि र्व क ेाँ उठा कऽ हुनकि पूवशज सभक संग हेब्रोन िे गामड देलमन। 33 हुनकि जीवनक संख्या एक सय पच्चीस वर्श छलमन।