1. चौधरी बंसी लाल विश्िविद्यालय
(भििानी)
2020-2022
अरस्तु को राजनीततक शास्त्र का तिता
क्यों कहा जाता हैं?
प्राप्तकताा:-
निीन क
ु मार
प्रस्तुतकताा:
विशेष
एम.ए. प्रथम वर्ा
(राजनीतत ववज्ञान)
2. शोध सार
अरस्तु को राजनीततक शास्त्र का तिता क्यों कहा जाता हैं? इस
तिषय िर शोध करने का मैंने प्रयास तकया है, इस शोध में मैंने
ऐततहातसक तितध का प्रयोग तकया हैं । इस शोध से मुझे यह प्राति
हुई तक अरस्तु द्वारा राजनीततक तस्िरता के तिए जो
अतिजाततंत्र और िोकतंत्र की तमतित शासन प्रणािी के बारे में
बताया िा । िह सही है इसके द्वारा एक अच्छे राज्य की
स्िािना संिि हो सकती हैं ।
3. मुख्य शब्द :-
• दशानशास्र
• अभिजाततंर
• अनुिवमूलक पद्धतत
• नीततशास्र
4. पररचय
• अरस्तु का जन्म 384 ई.िू. में
स्टेगेरिया नामक नगर में हुआ िा । िह
महान यूनानी दाशशतनक प्लेटो का
तशष्य िा । प्िेटो अरस्तु को अिनी
‘अकादमी का मस्स्िष्क’ कहा करता
िा । अरस्तु के समय राजनीततक
अतस्िरता एक बहुत बडा खतरा िी ।
उनकी मृत्यु 322 ई.िू. में हुई।
• अरस्तु की मुख्य रचनाएं :
द पॉस्लस्टक्स,एस्िक्स,रिटोरिक
5. िाजनीस्ि शास्त्र के स्पिा के रूप में अिस्िु
• राजनीततक शास्त्र को एक तिज्ञान के रूि में दशाशया हैं ।
• अरस्तु से िहिे ितिमी िरंिरा में सिी तिषयों का संिूणश ज्ञान दशशन शास्त्र
के तिचार क्षेत्र में आता िा । िेतकन अरस्तू ने ज्ञान-तिज्ञान का िगीकरण
करके उनके तिकास की नई तदशा का संके त तदया है । इसी क्रम में अरस्तू
ने राजनीततक शास्त्र की एक नई नींि रखी, अरस्तू ने राजनीतत शास्त्र को
सिोच्च तिज्ञान या िरम तिद्या की संज्ञा दी । क्योंतक इसका सरोकार मानि
जीिन के साध्य है । जबतक अन्य सिी तिज्ञान इसके तिए के िि साधन
प्रदान करते हैं । इस दृतिकोण के अनुसार मनुष्य जीिन की प्राति के तिए
राजनीततक समुदाय के रूि में रहते ।
6. िुलनात्मक पद्धस्ि
अरस्तू ने राजनीततक शास्त्र के अध्ययन के तिए अनुभवमूलक पद्धस्ि
को बढािा तदया इसके साि िुलनात्मक पद्धस्ि को िी तमिा तदया ।
िह तत्कािीन शासन प्रणातियों की अतस्िरता की समस्या से तचंततत
िा । इस तस्ितत के तिश्लेषण के तिए उसने 158 नगर राज्य के
इततिृत (Case Histories) तैयार कराए, इनके आधार िर उन्होंने 6
तरह की शासन प्रणािी के बारे में बताया । िुलनात्मक स्वश्लेषण के
बाद अरस्तु इस तनष्कषश िर िहुंचा की शासन प्रणािी तिकतसत करने
के तिए बहुतंत्र और अतिजाततंत्र का समन्िय उियुक्त होगा ।
7. शासन प्रणाली का िररवततन चक्र
राजतंत्र
ननरंक
ु शतंत्र
अभिजाततंत्र
गुटतंत्र
बहुतंत्र
लोकतंत्र
8. िाज्य के स्वरूप औि उत्पस्ि पि अिस्िू के स्व ाि
अरस्तु की प्रतसद्ध कृ तत पॉस्लस्टक्स में राज्य के स्िरूि और उत्िति िर तिचार
तकया गया है । राज्य के तिकास िर तिचार करते हुए अरस्तू ने तिखा है तक
अके िा मनुष्य अिूणश है । मनुष्य जीिन के तिस्तार प्रिाह को कायम रखने के
तिए िुरुष और स्त्री का सहयोग से घर-िररिार बनता है । जब घर िररिार
फै िता है तब ग्राम अतस्तत्ि में आता है । ग्रामीणों के सहयोग से नगर या राज्य
का तनमाशण होता है। इस तरह सामातजक संगठन की प्रतक्रया िूरी हो जाती है ।
यह प्रतक्रया जीिन की सामान्य आिश्यकताएंिूरी करने के उद्देश्य से शुरू होती
है । मनुष्य के तिए राज्य में रहना इतना स्िािातिक है तक उसके शब्दों में मनुष्य
राजनीततक प्राणी होता है । यतद कोई मनुष्य राज्य में नहीं रहता है या तो िह
िशु है या िह अतत मानि होगा ।
9. स्मस्िि सस्वधान का स्सद्धाांि।
अरस्तु मुख्य रूि से ऐसे संतिधान का िता िगाना चाहता िा जो
राजनीततक अतस्िरता िैदा ना होने दें । बहुत अतधक तिश्लेषण के बाद
अरस्तू ने अतिजाततंत्र और िोकतंत्र के तमिण को सिोिम शासन
प्रणािी माना है तजसमें मतदान का अतधकार तो सिश व्यािक हो िरंतु
शासन का अतधकार बुतद्धमान नागररकों तक सीतमत रहें तातक तगने-चुने
सिोिम व्यतक्त ही शासन के संचािन के तिए चुने जाए । तमतित संतिधान
इसी मान्यता िर आधाररत है ।
10. स्वस्णिम मध्यमान का स्सद्धाांि
अरस्तू ने स्ितणशम मध्यमान का तसद्धांत अिनाया है तजसे मूितः
उसने नीततशास्त्र के संदिश में तिकतसत तकया िा । यह
समन्ियिादी दृतिकोण है तजसमें अतत का िररत्याग करके मध्य
मागश का अनुसरण तकया जाता है । अरस्तु के अनुसार मध्य मागश
सद्गुण की कुं जी है, तजस िर चिकर खतरों से बच सकते हैं ।
11. स्नष्कषि
➢अरस्तु के संिूणश अध्ययन के ििात यह कहा जा सकता है तक अरस्तु का
जन्म तजस समाज में हुआ िहां राजनीततक तस्िरता नहीं िी, उिि िुिि
का दौर िा । इन सब िररतस्िततयों को देखते हुए अरस्तू ने 158 देशों का
तुिनात्मक अध्ययन तकया िा और तमतित सतिधान का तसद्धांत िी
प्रस्तुत तकया तजससे एक कु शि राज्य की स्िािना की जा सकती है ।
➢अतः हम कह सकते हैं तक अरस्तु को िाजनीस्िक शास्त्र का स्पिा कहना
गित नहीं है ।
12. सांदभिसू ी–
• Gauba, OmPrakash, “Western Political
Thought”, Seventh Edition, New Delhi,
National Paperbacks, 2019.
• Prasad, ChandraDeo, “Yunani Rajnitik
Vicharak”, Second Vol., New Delhi, Atlantic
Publishers & Distributors Pvt. Ltd, 2012.