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जे.पी.इन्टरनैशन
ल
कक्षा : 10 - 'अ ‘
अध्यापपका : श्रीमती मीनाक्षी जी
पिषय : पिन्दी
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद
तुलसीदास
नाथ संभुधनु भंजननहारा। होइनह क
े उ एक दास तुम्हारा॥
आयेसु काह कनहअ नकन मोही। सुनन ररसाइ बोले मुनन कोही॥
सेवक
ु सो जो करै सेवकाई। अररकरनी करर कररअ लराई॥
इन पंक्तिय ं में श्री राम परशुराम जी से कि रिे िैं पक – िे नाथ! पशिजी क
े धनुष क त ड़ने की शक्ति त क
े िल आपक
े
दास में िी ि सकती िै। इसपलए िि आपका क ई दास िी ि गा, पजसने इस धनुष क त डा िै। क्या आज्ञा िै? मुझे
आदेश दें। यि सुनकर परशुराम जी और क्र पधत ि जाते िैं और किते िैं पक सेिक ििी ि सकता िै, ज सेिक ं जैसा
काम करे। यि धनुष त ड़कर उसने शत्रुता का काम पकया िै और इसका पररणाम युद्ध िी िै। उसने इस धनुष क
त ड़कर मुझे युद्ध क
े पलए ललकारा िै, इसपलए ि मेरे सामने आए।
सुनहु राम जेनह नसवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो ररपु मोरा॥
सो नबलगाउ नबहाइ समाजा। न त मारे जैहनहं सब राजा॥
सुनन मुननबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरनह अवमाने॥
बहु धनुही तोरी लररकाईं। कबहुुँ न अनस ररस नकन्हि गोसाई
ुँ ॥
येही धनु पर ममता क
े नह हेतू। सुनी ररसाइ कह भृगुक
ु लक
े तू॥
परशुराम जी श्री राम से किते िैं, पजसने भी पशिजी क
े धनुष क त डा िै, िि इस स्वयंिर क छ ड़कर अलग
खड़ा ि जाए, निींत इस दरबार में उपक्तथथत सारे राजाओं क अपनी जान से िाथ ध ना पड़ सकता िै। परशुराम
क
े क्र ध से भरे स्वर क सुनकर लक्ष्मण उनका मज़ाक उड़ाते हुए किते िैं पक िे मुपनिर! िम बचपन में खेल-खेल
में ऐसे कई धनुष त ड़ चुक
े िैं, तब त आप क्र पधत निींहुए। परन्तु यि धनुष आपक इतना पिय क्य ं िै? ज इसक
े
टू ट जाने पर आप इतना क्र पधत ि उठे िैं और पजसने यि धनुष त डा िै, उससे युद्ध करने क
े पलए तैयार ि गए
िैं।
रे नृपबालक कालबस बोलत तोनह न सुँभार्।
धनुही सम निपुराररधनु नबनदत सकल संसार॥
परशुराम जी किते िैं, िे राजपूत (राजा क
े बेटे) तुम काल क
े िश में ि , अथाात तुम में अिंकार समाया हुआ िै
और इसी कारणिश तुम्हें यि निींपता चल पा रिा िै पक तुम क्या ब ल रिे ि । क्या तुम्हें बचपन में त ड़े गए धनुष
एिं पशिजी क
े इस धनुष में क ई अंतर निींपदख रिा? ज तुम इनकी तुलना आपस में कर रिे ि ?
लखन कहा हनस हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना॥
का छनत लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन क
े भोरें।।
छुअत टू ट रघुपनतहु न दोसू। मुनन नबनु काज कररअ कत रोसू॥
परशुराम की बात सुनने क
े उपरांत लक्ष्मण मुस्क
ु राते हुए व्यंगपूिाक उनसे किते िैं पक, िमें त सारे धनुष एक
जैसे िी पदखाई देते िैं, पकसी में क ई फक
ा नजर निींआता। पफर इस पुराने धनुष क
े टू ट जाने पर ऐसी क्या आफ़त
आ गई िै? ज आप इतना क्र पधत ि उठे िैं। जब लक्ष्मण परशुराम जी से यि बात कि रिे थे, तब उन्हें श्री राम
पतरछी आँख ं से चुप रिने का इशारा कर रिे थे। आगे लक्ष्मण किते िैं, इस धनुष क
े टू टने में श्री रा
बोले नचतै परसु की ओरा। रे सठ सुनेनह सुभाउ न मोरा॥
बालक
ु बोनल बध ंननह तोही। क
े वल मुनन जड़ जाननह मोही।।
बाल ब्रह्म्चारी अनत कोही। नबस्वनबनदत क्षनियक
ु ल द्रोही॥
भुजबल भूनम भूप नबनु कीिी। नबपुल बार मनहदेवि दीिी॥
सहसबाहुभुज छेदननहारा। परसु नबलोक
ु महीपक
ु मारा
परशुराम, लक्ष्मण जी की इन व्यंग से भरी बात ं क सुनकर और भी ज्यादा क्र पधत ि जाते िैं। िे अपने फ़रसे की
तरफ देखते हुए ब लते िैं, िे मूखा लक्ष्मण! लगता िै, तुझे मेरे व्यक्तित्व क
े बारे में निींपता। मैं अभी तक बालक
समझकर तुझे क्षमा कर रिा था। परन्तु तू मुझे एक साधारण मुनी समझ बैठा िै।
मैं बचपन से िी ब्रह्मचारी हँ। सारा संसार मेरे क्र ध क अच्छी तरि से पिचानता िै। मैं क्षपत्रय ं का सबसे बड़ा शत्रु
हँ। अपने बाजुओं क
े बल पर मैंने कई बार इस पृथ्वी से क्षपत्रय ं का सिानाश पकया िै और इस पृथ्वी क जीतकर
ब्राह्मण ं क दान में पदया िै। इसपलए िे राजक
ु मार लक्ष्मण! मेरे फरसे क तुम ध्यान से देख ल , यिी िि फरसा िै,
पजससे मैंने सिस्त्रबाहु का संिार पकया था।
मातु नपतनह जनन सोचबस करनस महीसनकसोर।
गभभि क
े अभभक दलन परसु मोर अनत घोर॥
िे राजक
ु मार बालक! तुम मुझसे पभड़कर अपने माता-पपता क पचंता में मत डाल , अथाात अपनी मृत्यु क न्यौता
मत द । मेरे िाथ में ििी फरसा िै, पजसकी गजाना सुनकर गभा में पल रिे बच्चे का भी नाश ि जाता िै।
क
ु छ सवाल
पकसकी नजर ं में सारे धनुष एक समान िै
क) राम
ख) लक्ष्मण
घ) सीता
ड़) परशुराम
रामजी ने धनुष क क
ै सा समझा था
क) कमज र
ख) पुराना
घ) नया
ड़) मजबूत
"रे सठ सूनेिी सुभाउ न म रा" पकसने किा था
क) लक्ष्मण ने
ख) राम ने
घ) मुपन ने
ड़) इनमें से पकसी ने निीं
मुपन क्षपत्रय क
ु ल क
े क्या थे
क) द्र िी
ख) गुरु
घ) राजा
ड़) सिय गी
परशुराम क्र ध में क्य ं थे
क) सम्मान ना ि ने क
े कारण
ख) पशि धनुष टू टने क
े कारण
घ) अज्ञानता क
े कारण
ड़) ऊपर क
े सारे
परशुराम पकन चीज ं क
े पलए जाने जाते थे?
क)अपनी भुजाओं से पृथ्वी क राजाओं से रपित करने से
ख) शांत स्वभाि क
े पलए
ग) अपनी बुक्तद्धमानी क
े पलए
घ) इनमें से क ई निीं
पकसक
े द्वारा धनुष त ड़ा गया ?
क) राम द्वारा
ख)लक्षण द्वारा
ग)परशुराम द्वारा
घ) इनमें से क ई निीं
धनुष क त ड़ने पर पकस क क्र ध आ गया ?
क) राम
ख)लक्षण
ग)परशुराम
घ) इनमें से क ई निीं
पकसक
े कारण पृथ्वी रपित ि गई थी?
क) राम
ख)लक्षण
ग)परशुराम
घ )इनमें से क ई निीं
पकसका फरशा बहुत भयानक िै?
क) राम
ख)लक्षण
ग)परशुराम
घ) इनमें से क ई निीं
परशुराम ने ( गापधसूनु) का िय ग पकसक
े पलए पकया िै?
क) रुियं क
े पलए
ख) गुरु िापशष्ट क
े पलए
ग) पिश्वापम क
े पलए
घ)लक्षमण क
े पलए
शूरिीर क अपनी शूरता िदपशात करनी चापिए।
क) रुियंिर क
े समय
ख) अपने क और से बडा बताने क
े समय
ग) युद्ध भूपम मे
घ) राजभिन मे
तुम तौ कालु िाँक जनु लािा ' पंक्ति मे पनपित अलंकार ___?
क) उपमा
ख) उत्प्रेक्षा
ग) रुपक
घ) श्रलेष
परशुराम क
े िचन पकसक
े समान कठ र िैं?
क) िज्र क
े
ख) ल िे क
े
ग) पत्थर क
े
घ) पिात क
े
इस पाठ का लेखक कौन िैं?1
क) तुलसीदास
ख) पगररराजक
ु मार माथुर
ग) सूरदास
घ) नागाजुान
परशुराम पशि क क्या मानते िैं?
क) पपता
ख) ईश्वर
ग) गुरू
घ) सेिक
परशुराम का स्वभाि क
ै सा िै?
क) उदार
ख) शील
ग) क्र धी
घ) चंचल
मुपन क
े िचन सुनकर लक्ष्मण जी नए क्या पकया?
क) िि क्र पधत ि गए
ख) िि उदास ि गए
ग) िि भािुक ि गए
घ) िि मुस्क
ु राए
'अयमय खाडँ न ऊखमय ' पंक्ति मे अलंकार िै?
क) श्रलेष
ख)रुपक
ग) उत्षेक्षा
घ) अनुषास
राम -लक्षमण-परशुराम संिाद मे पकस छं द का िय ग हुआ िै?
क)सिैया
ख) चौपाई
ग) द िा
घ)चौपाई ि द िा द न
धन्यवाद!
दल द क
े सदस्य िैं : -
पृषा शमाा
मयंक सागर
आराध्या चौिान
ईशान ित्स
मानशी शमाा

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  • 1. जे.पी.इन्टरनैशन ल कक्षा : 10 - 'अ ‘ अध्यापपका : श्रीमती मीनाक्षी जी पिषय : पिन्दी
  • 2. राम लक्ष्मण परशुराम संवाद तुलसीदास नाथ संभुधनु भंजननहारा। होइनह क े उ एक दास तुम्हारा॥ आयेसु काह कनहअ नकन मोही। सुनन ररसाइ बोले मुनन कोही॥ सेवक ु सो जो करै सेवकाई। अररकरनी करर कररअ लराई॥ इन पंक्तिय ं में श्री राम परशुराम जी से कि रिे िैं पक – िे नाथ! पशिजी क े धनुष क त ड़ने की शक्ति त क े िल आपक े दास में िी ि सकती िै। इसपलए िि आपका क ई दास िी ि गा, पजसने इस धनुष क त डा िै। क्या आज्ञा िै? मुझे आदेश दें। यि सुनकर परशुराम जी और क्र पधत ि जाते िैं और किते िैं पक सेिक ििी ि सकता िै, ज सेिक ं जैसा काम करे। यि धनुष त ड़कर उसने शत्रुता का काम पकया िै और इसका पररणाम युद्ध िी िै। उसने इस धनुष क त ड़कर मुझे युद्ध क े पलए ललकारा िै, इसपलए ि मेरे सामने आए। सुनहु राम जेनह नसवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो ररपु मोरा॥ सो नबलगाउ नबहाइ समाजा। न त मारे जैहनहं सब राजा॥ सुनन मुननबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरनह अवमाने॥ बहु धनुही तोरी लररकाईं। कबहुुँ न अनस ररस नकन्हि गोसाई ुँ ॥ येही धनु पर ममता क े नह हेतू। सुनी ररसाइ कह भृगुक ु लक े तू॥
  • 3. परशुराम जी श्री राम से किते िैं, पजसने भी पशिजी क े धनुष क त डा िै, िि इस स्वयंिर क छ ड़कर अलग खड़ा ि जाए, निींत इस दरबार में उपक्तथथत सारे राजाओं क अपनी जान से िाथ ध ना पड़ सकता िै। परशुराम क े क्र ध से भरे स्वर क सुनकर लक्ष्मण उनका मज़ाक उड़ाते हुए किते िैं पक िे मुपनिर! िम बचपन में खेल-खेल में ऐसे कई धनुष त ड़ चुक े िैं, तब त आप क्र पधत निींहुए। परन्तु यि धनुष आपक इतना पिय क्य ं िै? ज इसक े टू ट जाने पर आप इतना क्र पधत ि उठे िैं और पजसने यि धनुष त डा िै, उससे युद्ध करने क े पलए तैयार ि गए िैं। रे नृपबालक कालबस बोलत तोनह न सुँभार्। धनुही सम निपुराररधनु नबनदत सकल संसार॥ परशुराम जी किते िैं, िे राजपूत (राजा क े बेटे) तुम काल क े िश में ि , अथाात तुम में अिंकार समाया हुआ िै और इसी कारणिश तुम्हें यि निींपता चल पा रिा िै पक तुम क्या ब ल रिे ि । क्या तुम्हें बचपन में त ड़े गए धनुष एिं पशिजी क े इस धनुष में क ई अंतर निींपदख रिा? ज तुम इनकी तुलना आपस में कर रिे ि ? लखन कहा हनस हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना॥ का छनत लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन क े भोरें।। छुअत टू ट रघुपनतहु न दोसू। मुनन नबनु काज कररअ कत रोसू॥ परशुराम की बात सुनने क े उपरांत लक्ष्मण मुस्क ु राते हुए व्यंगपूिाक उनसे किते िैं पक, िमें त सारे धनुष एक जैसे िी पदखाई देते िैं, पकसी में क ई फक ा नजर निींआता। पफर इस पुराने धनुष क े टू ट जाने पर ऐसी क्या आफ़त आ गई िै? ज आप इतना क्र पधत ि उठे िैं। जब लक्ष्मण परशुराम जी से यि बात कि रिे थे, तब उन्हें श्री राम पतरछी आँख ं से चुप रिने का इशारा कर रिे थे। आगे लक्ष्मण किते िैं, इस धनुष क े टू टने में श्री रा
  • 4. बोले नचतै परसु की ओरा। रे सठ सुनेनह सुभाउ न मोरा॥ बालक ु बोनल बध ंननह तोही। क े वल मुनन जड़ जाननह मोही।। बाल ब्रह्म्चारी अनत कोही। नबस्वनबनदत क्षनियक ु ल द्रोही॥ भुजबल भूनम भूप नबनु कीिी। नबपुल बार मनहदेवि दीिी॥ सहसबाहुभुज छेदननहारा। परसु नबलोक ु महीपक ु मारा परशुराम, लक्ष्मण जी की इन व्यंग से भरी बात ं क सुनकर और भी ज्यादा क्र पधत ि जाते िैं। िे अपने फ़रसे की तरफ देखते हुए ब लते िैं, िे मूखा लक्ष्मण! लगता िै, तुझे मेरे व्यक्तित्व क े बारे में निींपता। मैं अभी तक बालक समझकर तुझे क्षमा कर रिा था। परन्तु तू मुझे एक साधारण मुनी समझ बैठा िै। मैं बचपन से िी ब्रह्मचारी हँ। सारा संसार मेरे क्र ध क अच्छी तरि से पिचानता िै। मैं क्षपत्रय ं का सबसे बड़ा शत्रु हँ। अपने बाजुओं क े बल पर मैंने कई बार इस पृथ्वी से क्षपत्रय ं का सिानाश पकया िै और इस पृथ्वी क जीतकर ब्राह्मण ं क दान में पदया िै। इसपलए िे राजक ु मार लक्ष्मण! मेरे फरसे क तुम ध्यान से देख ल , यिी िि फरसा िै, पजससे मैंने सिस्त्रबाहु का संिार पकया था। मातु नपतनह जनन सोचबस करनस महीसनकसोर। गभभि क े अभभक दलन परसु मोर अनत घोर॥ िे राजक ु मार बालक! तुम मुझसे पभड़कर अपने माता-पपता क पचंता में मत डाल , अथाात अपनी मृत्यु क न्यौता मत द । मेरे िाथ में ििी फरसा िै, पजसकी गजाना सुनकर गभा में पल रिे बच्चे का भी नाश ि जाता िै।
  • 5. क ु छ सवाल पकसकी नजर ं में सारे धनुष एक समान िै क) राम ख) लक्ष्मण घ) सीता ड़) परशुराम रामजी ने धनुष क क ै सा समझा था क) कमज र ख) पुराना घ) नया ड़) मजबूत
  • 6. "रे सठ सूनेिी सुभाउ न म रा" पकसने किा था क) लक्ष्मण ने ख) राम ने घ) मुपन ने ड़) इनमें से पकसी ने निीं मुपन क्षपत्रय क ु ल क े क्या थे क) द्र िी ख) गुरु घ) राजा ड़) सिय गी परशुराम क्र ध में क्य ं थे क) सम्मान ना ि ने क े कारण ख) पशि धनुष टू टने क े कारण घ) अज्ञानता क े कारण ड़) ऊपर क े सारे
  • 7. परशुराम पकन चीज ं क े पलए जाने जाते थे? क)अपनी भुजाओं से पृथ्वी क राजाओं से रपित करने से ख) शांत स्वभाि क े पलए ग) अपनी बुक्तद्धमानी क े पलए घ) इनमें से क ई निीं पकसक े द्वारा धनुष त ड़ा गया ? क) राम द्वारा ख)लक्षण द्वारा ग)परशुराम द्वारा घ) इनमें से क ई निीं धनुष क त ड़ने पर पकस क क्र ध आ गया ? क) राम ख)लक्षण ग)परशुराम घ) इनमें से क ई निीं
  • 8. पकसक े कारण पृथ्वी रपित ि गई थी? क) राम ख)लक्षण ग)परशुराम घ )इनमें से क ई निीं पकसका फरशा बहुत भयानक िै? क) राम ख)लक्षण ग)परशुराम घ) इनमें से क ई निीं परशुराम ने ( गापधसूनु) का िय ग पकसक े पलए पकया िै? क) रुियं क े पलए ख) गुरु िापशष्ट क े पलए ग) पिश्वापम क े पलए घ)लक्षमण क े पलए
  • 9. शूरिीर क अपनी शूरता िदपशात करनी चापिए। क) रुियंिर क े समय ख) अपने क और से बडा बताने क े समय ग) युद्ध भूपम मे घ) राजभिन मे तुम तौ कालु िाँक जनु लािा ' पंक्ति मे पनपित अलंकार ___? क) उपमा ख) उत्प्रेक्षा ग) रुपक घ) श्रलेष परशुराम क े िचन पकसक े समान कठ र िैं? क) िज्र क े ख) ल िे क े ग) पत्थर क े घ) पिात क े
  • 10. इस पाठ का लेखक कौन िैं?1 क) तुलसीदास ख) पगररराजक ु मार माथुर ग) सूरदास घ) नागाजुान परशुराम पशि क क्या मानते िैं? क) पपता ख) ईश्वर ग) गुरू घ) सेिक परशुराम का स्वभाि क ै सा िै? क) उदार ख) शील ग) क्र धी घ) चंचल
  • 11. मुपन क े िचन सुनकर लक्ष्मण जी नए क्या पकया? क) िि क्र पधत ि गए ख) िि उदास ि गए ग) िि भािुक ि गए घ) िि मुस्क ु राए 'अयमय खाडँ न ऊखमय ' पंक्ति मे अलंकार िै? क) श्रलेष ख)रुपक ग) उत्षेक्षा घ) अनुषास राम -लक्षमण-परशुराम संिाद मे पकस छं द का िय ग हुआ िै? क)सिैया ख) चौपाई ग) द िा घ)चौपाई ि द िा द न
  • 12. धन्यवाद! दल द क े सदस्य िैं : - पृषा शमाा मयंक सागर आराध्या चौिान ईशान ित्स मानशी शमाा