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हरिहि काका
संचयन
कक्षा 10
कहानी क
े पात्र
हरिहि काका का परिवाि
हरिहि काका
महंत
लेखक
हरिहि काका क
े यहााँ से मैं अभी- अभी लौटा हाँ ।
कल भी उनक
े यहााँ गया था, लेककन न तो वह ही क
ु छ कह
सक
े औि न आज ही । दोनों ददन उनक
े पास में देि तक
बैठा िहा, लेककन उन्होंने कोई बातचीत नहीं की । जब उनकी
तबीयत क
े बािे में पछा तब उन्होंने ससि उठाकि एक बाि
मुझे देखा । किि ससि झुकाया तो दुबािा मेिी ओि नहीं देखा
। हालााँकक उनकी एक ही नज़ि बहुत क
ु छ कह गई । जजन
यंत्रणाओं (कष्ट) क
े बीच वह घििे थे औि जजस मन:जथथघत
(मन की जथथघत) में जी िहे थे. उसमें आाँखें ही बहुत क
ु छ
कह देती हैं, मुाँह खोलने की ज़रूित नहीं पड़ती ।
हरिहि काका की जजंदगी से मैं बहुत गहिे में जुड़ा हाँ । अपने गााँव में जजन चंद
लोगों को मैं सम्मान देता हाँ, उनमें हरिहि काका भी एक हैं । हरिहि काका क
े
प्रघत मेिी आसजतत (प्याि) क
े अनेक व्यावहारिक (व्यवहाि संबंधित) औि
वैचारिक (ववचािा संबंिी) कािण हैं । उनमें प्रमुख कािण दो हैं । एक तो यह कक
हरिहि काका मेिे पड़ोस में िहते हैं औि दसिा कािण यह कक मेिी मााँ बताती है
, हरिहि काका बचपन में मुझे बहुत दुलाि किते थे । अपने क
ं िे पि बैठाकि
िुमाया किते थे । एक वपता अपने बच्चे को जजतना प्याि किता है , उससे कहीं
ज्यादा प्याि हरिहि काका मुझे किते थे । औि जब मैं सयाना हुआ तब मेिी
पहली दोथती हरिहि काका क
े साथ ही हुई । हरिहि काका ने भी जैसे मुझसे
दोथती क
े सलए ही इतनी उम्र तक प्रतीक्षा की थी । मााँ बताती है कक मुझसे
पहले गााँव में ककसी अन्य से उनकी इतनी गहिी दोथती नहीं हुई थी । वह
मुझसे क
ु छ भी नहीं घछपाते थे । खब खुलकि बातें किते थे । लेककन किलहाल
मुझसे भी क
ु छ कहना उन्होंने बंद कि ददया है । उनकी इस जथथघत ने मुझे
धचंघतत कि ददया है ।
हरिहि काका औि लेखक क
े बीच गहिा का संबंध
जैसे कोई नाव बीच मझिाि में ि
ं सी हो औि उस पि सवाि
लोग धचल्लाकि भी अपनी िक्षा न कि सकते हों, योंकक उनकी
धचल्लाहट दि तक ि
ै ले सागि क
े बीच उठती - धगिती लहिों में
ववलीन (गायब) हो जाने क
े अघतरितत कि ही तया सकती है ?
मौन होकि (चुपचाप) जल - समाधि लेने क
े अघतरितत कोई
दसिा ववकल्प (option) नहीं । लेककन मन इसे मानने को कतई
तैयाि नहीं । जीने की लालसा की वजह से बेचैनी औि
छटपटाहट बढ़ गई हो, क
ु छ ऐसी ही जथथघत क
े बीच हरिहि
काका घिि गए हैं ।
हरिहि काका का पिेशाघनयों क
े बीच घिि जाना
हरिहि काका क
े बािे में मैं सोचता हूँ तो मुझे लगता है कक वह
यह समझ नह ं पा िहे हैं कक कहें तो क्या कहें ? अब कोई
ऐसी बात नह ं जिसे कहकि वह हलका हो सक
ें । कोई ऐसी
उजक्त (उपाय) नह ं जिसे कहकि वे मुजक्त पा सक
ें । हरिहि
काका की जथितत में मैं भी होता तो तनश्चय ह इस गंगेपन का
शिकाि हो िाता ।
हरिहि काका इस जथितत में क
ै से आ फ
ूँ से ? यह कौन - सी जथितत है ? इसक
े शलए कौन जिम्मेवाि है ? यह सब
बताने से पहले अपने गाूँव का औि खासकि अपने गाूँव की ठाक
ु िबाि (मंदिि) का संक्षक्षप्त परिचय मैं आपको िे िेना
उचचत समझता हूँ क्योंकक उसक
े बबना तो यह कहानी अधि ह िह िाएगी ।
हरिहि काका का घनिाशा में चले जाना
ठाक
ु िबािी की थथापना
पजश्चम ककनािे का बड़ा तालाब
मध्य जथित
बिगि का
पुिाना वृक्ष
मेिा गाूँव कथबाई िहि आिा से चाल स ककलोमीटि
की िि पि है । हसनबाजाि बस थटैंड क
े पास ।
गाूँव की क
ु ल आबाि ढाई - तीन हिाि होगी ।
गाूँव में तीन प्रमुख थिान हैं । गाूँव क
े पजश्चम
ककनािे का बड़ा - सा तालाब । गाूँव क
े मध्य जथित
बिगि का पुिाना वृक्ष औि गाूँव क
े पिब में
ठाक
ु ििी का वविाल मंदिि, जिसे गाूँव क
े लोग
ठाक
ु िबाि कहते हैं ।
गाूँव में इस ठाक
ु िबाि की थिापना कब हुई, इसकी
ठीक-ठीक िानकाि ककसी को नह ं । इस संबंध में गाूँव
में िो कहानी प्रचशलत है वह यह कक वर्षों पहले िब
यह गाूँव पि तिह बसा भी नह ं िा, कह ं से एक संत
आकि इस थिान पि झोंपड़ी बना िहने लगे िे । वह
सुबह - िाम यहाूँ ठाक
ु ििी की पिा किते िे । लोगों
से माूँगकि खा लेते िे औि पिा-पाठ की भावना िाग्रत
किते िे । बाि में लोगों ने चंिा (donation) किक
े यहाूँ
ठाक
ु ििी का एक छोटा - सा मंदिि बनवा दिया । कफि
िैसे - िैसे गाूँव बसता गया औि आबाि बढ़ती गई ,
मंदिि क
े कलेवि (area) में भी ववथताि होता गया ।
लोग ठाक
ु ििी को मनौती (मन्नत) मनाते कक पुत्र हो ,
मुकिमे(Court case) में वविय हो , लड़की की िाि अच्छे
घि में तय हो. लड़क
े को नौकि शमल िाए। कफि इसमें
जिनको सफलता शमलती, वह खुिी में ठाक
ु ििी पि रुपये.
िेवि, अनाि चढ़ाते । अचधक खुिी होती तो ठाक
ु ििी क
े
नाम अपने खेत का एक छोटा-सा टुकड़ा शलख िेते । यह
पिंपिा आि तक िाि है । अचधकांि लोगों को ववश्वास है
कक उन्हें अच्छी फसल होती है तो ठाक
ु ििी की कृ पा से ।
मुकिमे में उनकी िीत हुई तो ठाक
ु ििी क
े चलते । लड़की
की िाि इसीशलए िल्ि तय हो गई , क्योंकक ठाक
ु ििी को
मनौती मनाई गई िी । लोगों क
े इस ववश्वास का ह यह
परिणाम है कक गाूँव की अन्य चीिों की तुलना में
ठाक
ु िबाि का ववकास हिाि गुना अचधक हुआ है । अब तो
यह गाूँव ठाक
ु िबाि से ह पहचाना िाता है । यह
ठाक
ु िबाि न शसफ
फ मेिे गाूँव की एक बड़ी औि वविाल
ठाक
ु िबाि है बजल्क पिे इलाक
े में इसकी िोड़ की िसि
ठाक
ु िबाि नह ं ।
ठाक
ु िबाि क
े नाम पि बीस बीघे खेत हैं । धाशमफक लोगों
की एक सशमतत(TRUST) है, िो ठाक
ु िबाि की िेख-िेख औि
संचालन क
े शलए प्रत्येक तीन साल पि एक महंत औि एक
पुिाि की तनयुजक्त किती है ।
Note:
1 बीघा = 0.25 Hectare
20 बीघा = 5 Hectare
ठाक
ु िबािी क
े ववकास की कहानी
ठाक
ु िबािी का काम लोगों क
े अंदि ठाक
ु िजी क
े प्रघत भजतत-भावना पैदा किना तथा िमम से
ववमुख (मुंह फ
े िने वाले) हो िहे लोगों को िाथते पि लाना है । ठाक
ु िबािी में भजन-कीतमन की
आवाज़ बिाबि गंजती िहती है । गााँव जब भी बाढ़ या सखे (DROUGHT) की चपेट में आता है ,
ठाक
ु िबािी क
े अहाते (COURTYARD) में तंब लग जाता है । लोग औि ठाक
ु िबािी क
े सािु-संत
अखंड हरिकीतमन शुरू कि देते हैं । इसक
े अघतरितत गााँव में ककसी भी पवम - त्योहाि की शुरुआत
ठाक
ु िबािी से ही होती है । होली में सबसे पहले गुलाल ठाक
ु िजी को ही चढ़ाया जाता है ।
दीवाली का पहला दीप ठाक
ु िबािी में ही जलता है । जन्म, शादी औि जनेऊ क
े अवसि पि
अन्न-वथत्र की पहली भेंट ठाक
ु िजी क
े नाम की जाती है । ठाक
ु िबािी क
े ब्राह्मण-सािु व्रत -
कथाओं क
े ददन िि-िि िमकि कथावाचन किते हैं । लोगों क
े खसलहान में जब िसल की
दवनी (गेंहूँ तनकालने का PROCESS) होकि अनाज की 'ढेिी’ (PILE) तैयाि हो जाती है, तब
ठाक
ु िजी क
े नाम 'अगउम’ (प्रसाि क
े रूप में तनकाला गया अंि) घनकालकि ही लोग अनाज
अपने िि ले जाते हैं ।
ठाक
ु िबािी क
े साथ अधिकांश लोगों का संबंि बहुत ही िघनष्ठ (गहिा) है - मन औि तन दोनों
थति पि। कृ वि-कायम से अपना बचा हुआ समय वे ठाक
ु िबािी में ही बबताते हैं । ठाक
ु िबािी में
सािु-संतो का प्रवचन सुन औि ठाक
ु िजी का दशमन कि वे अपना यह जीवन साथमक (सफल)
मानने लगते हैं । उन्हें यह महसस होता है कक ठाक
ु िबािी में प्रवेश किते ही वे पववत्र हो जाते हैं
। उनक
े वपछले सािे पाप अपने आप खत्म हो जाते हैं ।
परिजथथघतवश इिि हरिहि काका ने ठाक
ु िबािी में जाना बंद कि ददया है । पहले वह अकसि ही
ठाक
ु िबािी में जाते थे । मन बहलाने क
े सलए कभी - कभी मैं भी ठाक
ु िबािी में जाता हाँ ।
लेककन वहााँ क
े सािु - संत मुझे िटी आाँखों (मु.) नहीं सुहाते । काम-िाम किने में उनकी कोई
रुधच नहीं । ठाक
ु िजी को भोग लगाने क
े नाम पि दोनों जन (समय) हलवा - पड़ी खाते हैं औि
आिाम से पड़े िहते हैं । उन्हें अगि क
ु छ आता है तो ससि
म बात बनाना आता है ।
ठाक
ु िबाि में
भिन कीतफन
की आवािें
गााँव क
े लोगों की ठाक
ु िबािी क
े
प्रघत गहिी आथथा
हरिहि काका चाि भाई हैं । सबकी शादी हो चुकी है ।
हरिहि काका क
े अलावा सबक
े बाल-बच्चे हैं । बड़े औि
छोटे भाई क
े लड़क
े काफी सयाने हो गए हैं । दो की
शाददयााँ हो गई हैं । उनमें से एक पढ़-सलखकि शहि क
े
ककसी दफ्ति में तलकी किने लगा है । लेककन हरिहि
काका की अपनी देह से कोई औलाद नहीं । भाइयों में
हरिहि काका का नंबि दसिा है । औलाद क
े सलए उन्होंने
दो शाददयााँ की । लंबे समय तक प्रतीक्षाित िहे । लेककन
बबना बच्चा जने (पैिा) उनकी दोनों पजत्नयााँ थवगम ससिाि
गई । लोगों ने तीसिी शादी किने की सलाह दी लेककन
अपनी धगिती हुई उम्र औि िासममक संथकािों की वजह से
हरिहि काका ने इंकाि कि ददया । वह इत्मीनान (आिाम
से) औि प्रेम से अपने भाइयों क
े परिवाि क
े साथ िहने
लगे
हरिहि काका क
े परिवाि की जानकािी – चाि भाई,
शादीशुदा, सभी क
े बाल-बच्चे, थवयं घनसंतान
हरिहि काका क
े परिवाि क
े पास क
ु ल साठ बीघे खेत हैं । प्रत्येक भाई क
े दहथसे पंद्रह बीिे पड़ेंगे । कृ वि-कायम पि ये लोग
घनभमि हैं । शायद इसीसलए अब तक संयुतत परिवाि क
े रूप में ही िहते आ िहे हैं ।
हरिहि काका क
े तीनों भाइयों ने अपनी पसलयों को यह सीख दी थी कक हरिहि काका की अच्छी तिह सेवा किें । समय पि
उन्हें नाश्ता-खाना दें । ककसी बात की तकलीफ न होने दें । क
ु छ ददनों तक वे हरिहि काका की खोज-खबि (LOOK AFTER)
लेती िहीं । किि उन्हें कौन पछने वाला ? ' ठहि–चौका (खाना बनाकि) लगाकि पंखा झलते हुए अपने मदो को अच्छे -
अच्छे व्यंजन खखलाती । हरिहि काका क
े आगे तो बची-खुची (रुखा-सखा) चीजें आतीं । कभी कभी तो हरिहि काका को
रूखा-सखा खाकि ही संतोि किना पड़ता ।
अगि कभी हरिहि काका की तबीयत खिाब हो जाती तो वह मुसीबत में पड़ जाते । इतने बड़े परिवाि क
े िहते हुए भी कोई
उन्हें पानी देने वाला तक नहीं । सभी अपने कामों में मशगल (व्यथत/BUSY) । बच्चे या तो पढ़-सलख िहे होते या
िमाचौकड़ी (िैतानी) मचाते । मदम खेतों पि गए िहते । औितें हाल पछने भी नहीं आती दालान क
े कमिे में अक
े ले पड़े
हरिहि काका को थवयं उठकि अपनी जरूितों की पघतम किनी पड़ती । ऐसे वतत अपनी पजत्नयों को याद कि-किक
े हरिहि
काका की आाँखें भि आतीं । भाइयों क
े परिवाि क
े प्रघत मोहभंग (भाईयों क
े प्रतत प्रेम कम होने की) की शुरुआत (मु.) इन्हीं
क्षणों में हुई थी । औि किि, एक ददन तो ववथिोट ही हो गया । उस ददन हरिहि काका की सहन-शजतत जवाब दे गई ।
उस ददन शहि में तलकी किने वाले भतीजे का एक दोथत गााँव आया था । उसी क
े आगमन (आने पि) क
े उपलक्ष्य
(अवसि) में दो- तीन तिह की सब्जी, बजक
े ,(पकौड़ी) चटनी, िायता आदद बने थे । बीमािी से उठे हरिहि काका का मन
थवाददष्ट भोजन क
े सलए बेचैन था । मन ही मन उन्होंने अपने भतीजे क
े दोथत की सिाहना की, जजसक
े बहाने उन्हें अच्छी
चीजें खाने को समलने वाली थीं । लेककन बातें बबलक
ु ल ववपिीत हुईं । सबों ने खाना खा सलया . उनको कोई पछने तक नहीं
आया । उनक
े तीनों भाई खाना खाकि खसलहान (खेत) में चले गए । देवनी हो िही थी । वे इस बात क
े प्रघत घनजश्चत थे
कक हरिहि काका को तो पहले ही खखला ददया गया होगा ।
हरिहि काका क
े भईयों क
े प्रघत प्रेम में दिाि पड़ना 💔
अंत में हरिहि काका ने थवयं दालान क
े
कमिे से घनकल हवेली में प्रवेश ककया । तब
उनक
े छोटे भाई की पत्नी ने रूखा-सखा
खाना लाकि उनक
े सामने पिोस ददया -
भात, मट्ठा औि अचाि । बस , हरिहि
काका क
े बदन में तो जैसे आग लग (मु.)
गई । उन्होंने थाली उठाकि बीच आाँगन में
ि
ें क दी । झन्न की तेज आवाज़ क
े साथ
आाँगन में थाली धगिी, भात बबखि गया ।
ववसभन्न ििों में बैठी लड़ककयााँ, बहुएाँ सब
एक ही साथ बाहि घनकल आई ।
िालान
हरिहि काका गिजते हुए हवेली से दालान की ओि चल पड़े-
" समझ िही हो कक मुफ़्त में खखलाती
हो, तो अपने मन से यह बात घनकाल
देना । मेिे दहथसे क
े खेत की पैदावाि
इसी िि में आती है । उसमें तो मैं दो-
चाि नौकि िख लाँ, आिाम से खाऊ
ाँ ,
तब भी कमी नहीं होगी । मैं अनाथ
औि बेसहािा नहीं हाँ । मेिे िन पि तो
तुम सब मौज कि िही हो । लेककन
अब मैं तुम सबों को बताऊ
ाँ गा ... आदद
। "
परिवाि की औितों पि
हरिहि काका का क्रोध
हरिहि काका जजस वतत यह सब बोल िहे थे , उस वतत
ठाक
ु िबािी क
े पुजािी जी उनक
े दालान पि ही वविाजमान (बैठे)
थे । वाविमक हुमाि (हवन) क
े सलए वह िी औि शकील (हवन
में डाल िाने वाल सामग्री ) लेने आए थे । लौटकि उन्होंने
महंत जी को ववथताि क
े साथ सािी बात बताई । उनक
े कान
खड़े हो गए । वह ददन उन्हें बहुत शुभ महसस हुआ । उस ददन
को उन्होंने ऐसे ही गुज़ि जाने देना उधचत नहीं समझा ।
तत्क्षण टीका - घतलक लगा, क
ं िे पि िामनामी सलखी चादि
डाल ठाक
ु िबािी से चल पड़े ।
िाम
िाम
िाम
संयोग अच्छा था । हरिहि क
े दालान तक नहीं जाना पड़ा । िाथते में ही हरिहि
समल गए । गुथसे में िि से घनकल वह खसलहान की ओि जा िहे थे । लेककन
महंत जी ने उन्हें खसलहान की ओि नहीं जाने ददया । अपने साथ ठाक
ु िबािी पि
लेते आए । किि एकांत कमिे में उन्हें बैठा , खब प्रेम से समझाने लगे- " हरिहि !
यहााँ कोई ककसी का नहीं है । सब माया का बंिन है । त तो िासममक प्रवृवि का
आदमी है । मैं समझ नहीं पा िहा हाँ कक तुम इस बंिन में क
ै से ि
ाँ स गए ? ईश्वि
में भजतत लगाओ । उसक
े ससवाय कोई तुम्हािा अपना नहीं । पत्नी, बेटे, भाई-बंिु
सब थवाथम क
े साथी हैं । जजस ददन उन्हें लगेगा कक तुमसे उनका थवाथम सिने
(पिा) वाला नहीं, उस ददन वे तुम्हें पछेगे तक नहीं । इसीसलए ज्ञानी, संत, महात्मा
ईश्वि क
े ससवाय ककसी औि में प्रेम नहीं लगाते । तुम्हािे दहथसे में पंद्रह बीिे खेत
हैं । उसी क
े चलते तुम्हािे भाई क
े परिवाि तुम्हें पकड़े हुए हैं । तुम एक ददन
कहकि तो देख लो कक अपना खेत उन्हें न देकि दसिे को सलख दोगे, वह तुमसे
बोलना बंद कि देंगे । खन का रिश्ता खत्म हो जाएगा । तुम्हािे भले क
े सलए मैं
बहुत ददनों से सोच िहा था लेककन संकोचवश नहीं कह िहा था । आज कह देता हाँ,
तुम अपने दहथसे का खेत ठाक
ु िजी क
े नाम पि सलख दो । सीिे बैक
ुं ठ (थवगफ) को
प्राप्त किोगे । तीनों लोक में तुम्हािी कीघतम जगमगा उठेगी । जब तक चााँद-सिज
िहेंगे, तब तक लोग तुम्हें याद किेंगे । ठाक
ु िजी क
े नाम पि जमीन सलख देना ,
तुम्हािे जीवन का महादान होगा । सािु-संत तुम्हािे पााँव पखािेंगे । सभी तुम्हािा
यशोगान किेंगे । तुम्हािा यह जीवन साथमक हो जाएगा । अपनी शेि जजंदगी तुम
इसी ठाक
ु िबािी में गुजािना, तुम्हें ककसी चीज़ की कमी नहीं होगी । एक मााँगोगे तो
चाि हाजजि की जाएंगी । हम तुम्हें ससि-आाँखों पि उठाकि िखेंगे (मु.)। ठाक
ु िजी क
े
साथ-साथ तुम्हािी आिती भी लगाएाँगे । भाई का परिवाि तुम्हािे सलए क
ु छ नहीं
किेगा । पता नहीं पवमजन्म में तुमने कौन-सा पाप ककया था कक तुम्हािी दोनों
पजत्नयााँ अकालमृत्यु को प्रप्त हुई । तुमने औलाद का मुाँह तक नहीं देखा । अपना
यह जन्म तुम अकािथ " न जाने दो । ईश्वि को एक भि दोगे तो दस भि पाओगे
। मैं अपने सलए तो तुमसे मााँग नहीं िहा हाँ । तुम्हािा यह लोक औि पिलोक दोनों
बन जाएाँ , इसकी िाह मैं तुम्हें बता िहा हाँ ..।
ठाक
ु िबाि क
े नाम जमीन
शलखने का िबाव
हरिहि देि तक महंत जी की बातें सुनते िहे । महंत जी की बातें उनक
े मन में
बैठती जा िही थीं । ठीक ही तो कह िहे हैं महंत जी । कौन ककसका है ?
पंद्रह बीिे खेत की िसल भाइयों क
े परिवाि को देते हैं, तब तो कोई पछता
नहीं, अगि क
ु छ न दें तब तया हालत होगी ? उनक
े जीवन में तो यह जथथघत
है, मिने क
े बाद कौन उन्हें याद किेगा ? सीिे-सीिे उनक
े खेत हड़प जाएाँगे ।
ठाक
ु िजी क
े नाम सलख देंगे तो पुश्तों तक लोग उन्हें याद किेंगे । अब तक क
े
जीवन में तो ईश्वि क
े सलए उन्होंने क
ु छ नहीं ककया । अंघतम समय तो यह
बड़ा पुण्य कमा लें । लेककन यह सोचते हुए भी हरिहि काका का मुाँह खुल नहीं
िहा (मु.) था । भाई का परिवाि तो अपना ही होता है । उनको न देकि
ठाक
ु िबािी में दे देना उनक
े साथ िोखा औि ववश्वासिात होगा ...।
अपनी बात समाप्त कि महंत जी प्रघतकिया जानने क
े सलए हरिहि की ओि
देखने लगे । उन्होंने मुाँह से तो क
ु छ नहीं कहा, लेककन उनक
े चेहिे क
े
परिवघतमत भाव महंत जी की अनुभवी आाँखों से घछपे न िह सक
े । अपनी
सिलता पि महंत जी को बहुत खुशी हुई । उन्होंने सही जगह वाि ककया है ।
इसक
े बाद उसी वतत ठाक
ु िबािी क
े दो सेवकों को बुलाकि आदेश ददया कक एक
साफ-सुथिे कमिे में पलंग पि बबथतिा लगाकि उनक
े आिाम का इंतज़ाम किें
। किि तो महंत जी क
े कहने में जजतना समय लगा था, उससे कम समय में
ही , सेवकों ने हरिहि काका क
े मना किने क
े बावजद उन्हें एक सुंदि कमिे में
पलंग पि जा सलटाया । औि महंत जी ! उन्होंने पुजािी जी को यह समझा
ददया कक हरिहि क
े सलए ववशेि रूप से भोजन की व्यवथथा किें । हरिहि काका
को महंत जी एक ववशेि उद्देश्य से ले गए थे, इसीसलए ठाक
ु िबािी में चहल-
पहल शुरू हो (मु.)गई ।
सािुसंतों द्वािा हरिहि काका को प्रभाववत
किने का प्रयास ककया जाना
इिि शाम को हरिहि काका क
े भाई जब खसलहान से लौटे तब
उन्हें इस दुिमटना का पता चला । पहले तो अपनी पजत्नयों पि
वे खब बिसे (मु.) , किि एक जगह बैठकि धचंतामग्न हो गए ।
हालााँकक गााँव क
े ककसी व्यजतत ने भी उनसे क
ु छ नहीं कहा था ।
महंत जी ने हरिहि काका को तया-तया समझाया है , इसकी भी
जानकािी उन्हें नहीं थी । लेककन इसक
े बावजद उनका मन
शंकालु औि बेचैन हो गया । दिअसल, बहुत सािी बातें ऐसी
होती हैं, जजनकी जानकािी बबना बताए ही लोगों को समल जाती
है ।
शाम गहिाते-गहिाते हरिहि काका क
े तीनों भाई ठाक
ु िबािी पहुंचे
। उन्होंने हरिहि काका को वापस िि चलने क
े सलए कहा ।
इससे पहले कक हरिहि काका क
ु छ कहते, महंत जी बीच में आ
गए-
लेककन उनक
े भाई उन्हें िि ले चलने क
े सलए जजद किने लगे ।
इस पि ठाक
ु िबािी क
े सािु-संत उन्हें समझाने लगे । वहााँ
उपजथथत गााँव क
े लोगों ने भी कहा कक एक िात ठाक
ु िबािी में
िह जाएाँगे तो तया हो जाएगा ? अंतत : भाइयों को घनिाश हो
वहााँ से लौटना पड़ा ।
भाईयों द्वािा िि चलने का
आग्रह ककया जाना
" आज हरिहि को यहीं िहने दो ... बीमािी से उठा है
। इसका मन अशांत है । ईश्वि क
े दिबाि में िहेगा
तो शांघत समलेगी .... |"
िात में हरिहि काका को भोग लगाने क
े सलए
जो समष्टान्न औि व्यंजन समले, वैसे उन्होंने
कभी नहीं खाए थे । िी टपकते मालपुए, िस
बुघनया, लड्ड , छेने की तिकािी, दही, खीि ...।
पुजािी जी ने थवयं अपने हाथों से खाना पिोसा
था । पास में बैठे महंत जी िमम-चचाम से मन में
शांघत पहुाँचा िहे थे । एक ही िात में ठाक
ु िबािी
में जो सुख-शांघत औि संतोि पाया, वह अपने
अब तक क
े जीवन में उन्होंने नहीं पाया था ।
ठाक
ु िबाि में हरिहि काका की आवभगत
लेककन यह तया ? इस बाि अपने िि पि जो बदलाव उन्होंने
लक्ष्य (िेखा) ककया , उसने उन्हें सुखद आश्चयम में डाल ददया ।
िि क
े छोटे-बड़े सब उन्हें ससि - आाँखों पि उठाने (मु.)को तैयाि
। भाइयों की पसलयों ने उनक
े पैि पि माथा िख गलती क
े सलए
क्षमा-याचना की । किि उनकी आवभगत (खाततििाि ) औि जो
खाघति शुरू हुई , वैसी खाघति ककसी क
े यहााँ मेहमान आने पि
भी नहीं होती होगी । उनकी रुधच औि इच्छा क
े मुताबबक दोनों
जन खाना - नाश्ता तैयाि । पााँच मदहलाएाँ उनकी सेवा में
मुथतैद(तैयाि) -तीन भाइयों की पसलयााँ औि दो उनकी बहुएाँ ।
हरिहि काका आिाम से दालान में पड़े िहते । जजस ककसी चीज़
की इच्छा होती, आवाज़ लगाते ही हाजज़ि । वे समझ गए थे कक
यह सब महंत जी क
े चलते ही हो िहा है, इससलए महंत जी क
े
प्रघत उनक
े मन में आदि औि श्रद्िा क
े भाव घनिंति बढ़ते ही
जा िहे थे ।
इिि तीनों भाई िात - भि सो नहीं सक
े । भावी आशंका उनक
े मन को मथती िही । पंद्रह बीिे खेत ! इस गााँव की
उपजाऊ जमीन ! दो लाख से अधिक की संपवि ! अगि हाथ से घनकल गई तो किि वह कहीं क
े न िहेंगे ।
सुबह तड़क
े ही तीनों भाई पुनः ठाक
ु िबािी पहुंचे । हरिहि काका क
े पााँव पकड़ िोने लगे । अपनी पसलयों की गलती क
े
सलए माफी मााँगी तथा उन्हें दंड देने की बात कही । साथ ही खन क
े रिश्ते की माया ि
ै लाई । हरिहि काका का ददल
पसीज गया (मु.)। वह पुनः वापस िि लौट आए ।
हरिहि काका का पुनः भईयों क
े पास लौट आना |
बहुत बाि ऐसा होता है कक बबना ककसी क
े क
ु छ बताए गााँव क
े
लोग असली तथ्य से थवयं वाककफ हो जाते हैं । हरिहि काका
की इस िटना क
े साथ ऐसा ही हुआ । दिअसल लोगों की
जुबान से िटनाओं की जुबान ज्यादा पैनी (तीखी) औि असिदाि
होती है । िटनाएाँ थवयं ही बहुत क
ु छ कह देती हैं, लोगों क
े
कहने की ज़रूित नहीं िहती । न तो गााँव क
े लोगों से महंत जी
ने ही क
ु छ कहा था औि न हरिहि काका क
े भाइयों ने ही ।
इसक
े बावजद गााँव क
े लोग सच्चाई से अवगत हो गए थे ।
किि तो गााँव की बैठकों में बातों का जो ससलससला चल घनकला
उसका कहीं कोई अंत नहीं । हि जगह उन्हीं का प्रसंग शुरू ।
क
ु छ लोग कहते कक हरिहि को अपनी जमीन ठाक
ु िजी क
े नाम
सलख देनी चादहए । इससे उिम औि क
ु छ नहीं । इससे कीघतम
भी अचल बनी िहती है । इसक
े ववपिीत क
ु छ लोगों की मान्यता
यह थी कक भाई का परिवाि तो अपना ही होता है । अपनी
जायदाद उन्हें न देना उनक
े साथ अन्याय किना होगा । खन क
े
रिश्ते क
े बीच दीवाि बनानी होगी ।
गााँव में चचाम का वविय – हरिहि काका
जजतने मुाँह, उतनी बातें (मु.) । ऐसा जबिदथत मसला (मामला) पहले कभी नहीं
समला था , इसीसलए लोग मौन होना नहीं चाहते थे । अपने-अपने तिीक
े से
समािान ढाँढ़ िहे थे औि प्रतीक्षा कि िहे थे कक िदटत हो । हालााँकक इसी िम में
बातें गमामहट-भिी भी होने लगी थीं । लोग प्रत्यक्ष (सामने) औि पिोक्ष (पीठ पीछे)
रूप से दो वगों में बाँटने लगे थे । कई बैठकों में दोनों वगों क
े बीच आपस में त-
त, मैं-मैं (मु.)भी होने लगी थी । एक वगम क
े लोग चाहते थे कक हरिहि अपने
दहथसे की ज़मीन ठाक
ु िजी क
े नाम सलख दें । तब यह ठाक
ु िबािी न ससफ
म इलाक
े
की ही सबसे बड़ी ठाक
ु िबािी होगी, बजल्क पिे िाज्य में इसका मुकाबला कोई दसिी
ठाक
ु िबािी नहीं कि सक
े गी । इस वगम क
े लोग िासममक संथकािों क
े लोग हैं । साथ
ही ककसी न ककसी रूप में ठाक
ु िबािी से जुड़े हैं । असल में सुबह-शाम जब ठाक
ु िजी
को भोग लगाया जाता है, तब सािु-संतों क
े साथ गााँव क
े क
ु छ पेट औि चटोि
ककथम क
े लोग प्रसाद पाने क
े सलए वहााँ जुट जाते हैं । ये लोग इसी वगम क
े
दहमायती (पक्षपाती) हैं । दसिे वगम में गााँव क
े प्रगघतशील ववचािों वाले लोग तथा
वैसे ककसान हैं , जजनक
े यहााँ हरिहि जैसे औित-मदम पल िहे होते हैं । गााँव का
वाताविण तनावपणम हो गया था औि लोग क
ु छ िदटत होने की प्रतीक्षा किने लगे
थे |
हरिहिकाका को लेकि गााँव का
दो भागों में बाँटना
गााँव क
े दो वगम
एक वगम क
े लोग
ठाक
ु िबािी क
े पक्षिि थे
दसिे वगम क
े लोग
भाईयों क
े परिवाि वालों
क
े पक्ष में थे
इिि भावी आशंकाओं को मद्देनजि िखते हुए हरिहि काका क
े
भाई उनसे यह घनवेदन किने लगे थे कक अपनी ज़मीन वे उन्हें
सलख दें । उनक
े ससवाय उनका औि अपना है ही कौन ? इस
वविय पि हरिहि काका ने एकांत में मुझसे काफी देि तक
बात की । अंततः हम इस घनष्किम पि पहुंचे कक जीते-जी अपनी
जायदाद का थवामी (माशलक) ककसी औि को बनाना ठीक नहीं
होगा । चाहे वह अपना भाई या मंददि का महंत ही तयों न हो
? हमें अपने गााँव औि इलाक
े क
े वे क
ु छ लोग याद आए,
जजन्होंने अपनी जजंदगी में ही अपनी जायदाद अपने
उििाधिकारियों या ककसी अन्य को सलख दी थी, लेककन इसक
े
बाद उनका जीवन क
ु िे का जीवन हो गया । कोई उन्हें पछने
वाला नहीं िहा । हरिहि काका बबलक
ु ल अनपढ़ व्यजतत हैं, किि
भी इस बदलाव को उन्होंने समझ सलया औि यह घनश्चय ककया
कक जीते-जी ककसी को जमीन नहीं सलखेंगे । अपने भाइयों को
समझा ददया. मि जाऊ
ाँ गा तो अपने आप मेिी ज़मीन तुम्हें समल
जाएगी । जमीन लेकि तो जाऊ
ाँ गा नहीं । इसीसलए सलखवाने की
तया जरूित ?
उिि महंत जी भी हरिहि काका की टोह (तनगाह िखना) में
िहने लगे । जहााँ कहीं एकांत पाते, कह उठते- " ववलंब (िेि ) न
किो हरिहि । शुभ काम में देि नहीं किते । चलकि ठाक
ु िजी क
े
नाम ज़मीन बय (वसीयत) कि दो । किि पिी जजंदगी ठाक
ु िबािी
में िाज किो । मिोगे तो तुम्हािी आत्मा को ले जाने क
े सलए
थवगम से ववमान आएगा । देवलोक को प्राप्त किोगे ...। '
भाईयों द्वािा उनक
े नाम जमीन शलखने
का िवाब डाला िाना |
काका एवं लेखक क
े
बीच काका की
जमीन को लेकि
बात होना |
पि बीतते समय क
े अनुसाि महंत जी की धचंताएाँ बढ़ती जा िही थीं । जाल में ि
ं सी
धचडड़या (मु.) पकड़ से बाहि हो गई थी , महंत जी इस बात को सह नहीं पा िहे थे ।
महंत जी को लग िहा था कक हरिहि िमम-संकट (CONFUSED) में पड़ गया है । एक
ओि वह चाहता है कक ठाक
ु िजी को सलख दाँ , ककं तु दसिी ओि भाई क
े परिवाि क
े
माया-मोह में बाँि जाता है । इस जथथघत में हरिहि का अपहिण कि ज़बिदथती उससे
सलखवाने क
े अघतरितत दसिा कोई ववकल्प नहीं । बाद में हरिहि थवयं िाजी हो
जाएगा ।
महंत जी लड़ाक औि दबंग प्रकृ घत क
े आदमी हैं । अपनी योजना को कायम-रूप में
परिणत (पिा) किने क
े सलए वह जी-जान से जुट गए (मु.) । हालााँकक यह सब
गोपनीयता (गुपचुप) का घनवामह किते हुए ही वह कि िहे थे । हरिहि काका क
े भाइयों
को इसकी भनक तक नहीं थी (मु.) ।
बात अभी हाल की ही है । आिी िात क
े आस-पास ठाक
ु िबािी क
े सािु-संत औि उनक
े
पक्षिि भाला, गंडासा औि बंदक से लैस (भिकि) एकाएक हरिहि काका क
े दालान पि
आ िमक
े । हरिहि काका क
े भाई इस अप्रत्यासशत हमले क
े सलए तैयाि नहीं थे ।
इससे पहले कक वे जवाबी कािमवाई किें औि गुहाि लगाकि अपने लोगों को जुटाएाँ ,
तब तक आिमणकािी उनको पीठ पि लादकि चंपत हो गए (मु.) ।
• (21. आकजथमक)
घटना घट – हरिहि काका का अपहिण
महंत िी क
े लोगों द्वािा
लेककन हरिहि काका न ' हााँ ' कहते औि न ' ना ' । 'ना' कहकि वे महंत जी को दुखी किना नहीं चाहते थे
तयोंकक भाई क
े परिवाि से जो सुख-सुवविाएाँ उन्हें समल िही थीं, वे महंत जी की कृ पा से ही । औि 'हााँ' तो
उन्हें कहना है नहीं, तयोंकक अपनी जजंदगी में अपनी जमीन उन्हें ककसी को नहीं सलखनी । इस मुद्दे पि वे
जागरूक हो गए थे ।
भाला गंडासा
गााँव में ककसी ने ऐसी िटना नहीं देखी थी, न सुनी ही थी ।
सािा गााँव जाग गया । शुभधचंतक (well-wishers) तो उनक
े
यहााँ जुटने लगे, लेककन अन्य लोग अपने दालान औि मकान
की छतों पि जमा होकि आहट लेने औि बातचीत किने लगे ।
हरिहि काका क
े भाई लोगों क
े साथ उन्हें ढाँढ़ने घनकले । उन्हें
लगा कक यह महंत का काम है । वे मय दल-बल ठाक
ु िबािी जा
पहुाँचे । वहााँ खामोशी औि शांघत नज़ि आई । िोज की भााँघत
ठाक
ु िबािी का मुख्य िाटक बंद था । वाताविण में िात का
सन्नाटा औि सनापन व्याप्त समला । उन्हें लगा, यह काम
महंत का नहीं, बाहि क
े डाक
ु ओं का है । वे तो हिजाने
(Ransom) की मोटी िकम लेकि ही हरिहि काका को मुतत
किेंगे ।
खोज में घनकले लोग ककसी दसिी ददशा की ओि प्रथथान किते
कक इसी समय ठाक
ु िबािी क
े अंदि से बातचीत किने की
सजम्मसलत, ककं तु िीमी आवाज़ सुनाई पड़ी । सबक
े कान खड़े हो
गए (मु.) । उन्हें यकीन हो गया कक हरिहि काका इसी में हैं ।
अब तया सोचना ? वे ठाक
ु िबािी का िाटक पीटने लगे । इसी
समय
भाईयों का ठाक
ु िबाि पहुंचना
ठाक
ु िबािी की छत से िोड़े औि पत्थि उनक
े ऊपि धगिने लगे । वे
घतति-बबति होने लगे (मु.)। अपने हधथयाि साँभाले । लेककन
हधथयाि संभालने से पहले ही ठाक
ु िबािी क
े कमिों की खखड़ककयों
से िायरिंग शुरू हो गई । एक नौजवान क
े पैि में गोली लग गई
। वह धगि गया । उसक
े धगिते ही हरिहि काका क
े भाइयों क
े
पक्षिि भाग चले । ससफ
म वे तीनों भाई बचे िह गए । अपने तीनों
क
े बते (बल पि) इस युद्ि को जीतना उन्हें संभव नहीं जान पड़ा
। इसीसलए वे कथबे क
े पुसलस थाने की ओि दौड़ पड़े ।
इिि ठाक
ु िबािी क
े भीति महंत औि उनक
े क
ु छ चंद ववश्वासी
सािु सादे (plain) औि सलखे कागज़ों पि अनपढ़ हरिहि काका क
े
अंगठे क
े घनशान जबिन (िबििथती) ले िहे थे । हरिहि काका तो
महंत क
े इस व्यवहाि से जैसे आसमान से जमीन में आ गए थे ।
उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कक महंत जी इस रूप में भी
आएंगे । जजस महंत को वह आदिणीय एवं श्रद्िेय समझते थे,
वह महंत अब उन्हें िृखणत, (घृणा योग्य) दुिाचािी औि पापी
नज़ि आने लगा था । अब वह उस महंत की सित भी देखना
नहीं चाहते थे । अब अपने भाइयों का परिवाि महंत की तुलना में
उन्हें ज्यादा पववत्र, नेक औि अच्छा लगने लगा था । हरिहि
काका ठाक
ु िबािी से अपने िि पहुाँचने क
े सलए बेचैन थे । लेककन
लोग उन्हें पकड़े हुए थे औि महंत जी उन्हें समझा िहे थे- "
तुम्हािे भले क
े सलए ही यह सब ककया गया हरिहि । अभी तुम्हें
लगेगा कक हम लोगों ने तुम्हािे साथ ज़ोि - ज़बिदथती की,
लेककन बाद में तुम समझ जाओगे कक जजस िमम-संकट में तुम
पड़े थे, उससे उबािने क
े सलए यही एकमात्र िाथता था ... ! "
महंत औि उनक
े साधथयों द्वािा हरिहि काका
क
े साथ ज़मीन को लेकि बदसलकी किना,
उनका असली रूप उनक
े सामने आना |
एक ओि ठाक
ु िबािी क
े भीति जबिन अाँगठे का घनशान लेने औि पकड़कि
समझाने का कायम चल िहा था तो दसिी ओि हरिहि काका क
े तीनों भाई
सुबह होने से पहले ही पुसलस की जीप क
े साथ ठाक
ु िबािी आ पहुंचे । जीप
से तीनों भाई , एक दिोगा औि पुसलस क
े आठ जवान उतिे । पुसलस इंचाजम
ने ठाक
ु िबािी क
े िाटक पि आवाज़ लगाई । ' दथतक दी । लेककन अंदि से
कोई जवाब नहीं । अब पुसलस क
े जवानों ने ठाक
ु िबािी क
े चािों तिफ िेिा
डालना शुरू ककया । ठाक
ु िबािी अगि छोटी िहती तो पुसलस क
े जवान
आसानी से उसे िेि लेते, लेककन ववशालकाय ठाक
ु िबािी को पुसलस क
े सीसमत
जवान िेि सकने में असमथम साबबत हो िहे थे । किि भी जजतना संभव हो
सका, उस रूप में उन्होंने िेिा डाल ददया औि अपना-अपना मोचाम संभाल
सुबह की प्रतीक्षा किने लगे ।
हरिहि काका क
े भाइयों ने सोचा था कक जब वे पुसलस क
े साथ ठाक
ु िबािी
पहुंचेंगे तो ठाक
ु िबािी क
े भीति से हमले होंगे औि सािु - संत िंगे हाथों
पकड़ सलए (मु.) जाएंगे । लेककन ऐसा आते हुए उन्होंने देख सलया था ।
क
ु छ भी नहीं हुआ । ठाक
ु िबािी क
े अंदि से एक िोड़ा भी बाहि नहीं आया ।
शायद पुसलस को आते हुए उन्होंने देख सलया था |
सुबह होने में अभी क
ु छ देि थी, इससलए पुसलस इंचाजम िह-िहकि ठाक
ु िबािी
का िाटक खोलने तथा सािु-संतों को आत्मसमपमण (surrender) किने क
े
सलए आवाज़ लगा िहे थे । साथ ही पुसलस वगम की ओि से हवाई िायि भी
ककए जा िहे थे, लेककन ठाक
ु िबािी की ओि से कोई जवाब नहीं आ िहा था ।
भाईयों का पुसलस को लेकि
ठाक
ु िबािी पहुाँचाना
सुबह तड़क
े एक वृद्ि सािु ने ठाक
ु िबािी का िाटक खोल ददया ।
उस सािु की उम्र अथसी विम से अधिक की होगी । वह लाठी क
े
सहािे कााँपते हुए खड़ा था । पुसलस इंचाजम ने उस वृद्ि सािु क
े
पास पहुाँच हरिहि काका तथा ठाक
ु िबािी क
े महंत , पुजािी एवं
अन्य सािुओं क
े बािे में पछा । लेककन उसने क
ु छ भी बताने से
इंकाि कि ददया । पुसलस इंचाजम ने कई बाि उससे पछा । डााँट
लगाई, िमककयााँ दी, लेककन हि बाि एक ही वातय कहता , " मुझे
क
ु छ मालम नहीं । " ऐसे वतत पुसलस क
े लोग माि-पीट का सहािा
लेकि भी बात उगलवाते हैं । लेककन उस सािु की वय (आयु)
देखकि पुसलस इंचाजम को महदटया (नजि अंिाज कि िेना ) जाना
पड़ा ।
पुसलस इंचाजम क
े नेतृत्व में पुसलस क
े जवान ठाक
ु िबािी की तलाशी लेने लगे ।
लेककन न तो ठाक
ु िबािी क
े नीचे क
े कमिों में ही कोई पाया गया औि न छत
क
े कमिों में ही । पुसलस क
े जवानों ने खब छान-बीन की, उस वृद्ि सािु क
े
अलावा कोई दसिा ठाक
ु िबािी में नहीं समला ।
हरिहि काका क
े भाई धचंता, पिेशानी औि दुखद आश्चयम से घिि गए ।
ठाक
ु िबािी क
े महंत औि सािु-संत हरिहि काका को लेकि कहााँ भाग गए ?
अब तया होगा ? काफी पैसे खचम कि पुसलस को लाए थे । पुसलस क
े साथ
आने क
े बाद वह अंदि ही अंदि गवम महसस कि िहे थे । उन्हें लग िहा था
कक अब भाई को वे आसानी से िि ले जाएाँगे तथा सािु-संतों को जेल सभजवा
देंगे । लेककन दोनों में से एक भी नहीं हुआ ।
ठाक
ु िबािी क
े जो कमिे खुले थे, उनकी तलाशी पहले ली गई थी । बाद में
जजन कमिों की धचटककनी बंद थी, उन्हें भी खोलकि देखा गया था । एक
कमिे क
े बाहि बड़ा-सा ताला लटक िहा था । पुसलस औि हरिहि काका क
े
भाई सब वहीं एकत्र हो गए । उस कमिे की क
ुं जी (चाबी) की मााँग वृद्ि सािु
से की गई तो उसने साफ कह ददया, " मेिे पास नहीं । "
जब उससे पछा गया, " इस कमिे में तया है ? " तब उसने जवाब ददया , "
अनाज है । "
पुसलस इंचाजम अभी यह सोच ही िहे थे कक इस कमिे का ताला तोड़कि देखा
जाए या छोड़ ददया जाए कक अचानक उस कमिे क
े दिवाजे को भीति से
ककसी ने ितका देना शुरू ककया ।
पुसलस क
े जवान साविान हो गए ।
(22. उम्र 23. टाल जाना / नजिअंदाज कि देना)
पुशलस का भ्रष्ट रूप दिखाई िेना
भाईयों द्वािा हरिहि काका
की जमीन को लेकि चचंततत
होना |
12
ताला तोड़कि कमिे का दिवाजा खोला गया । कमिे क
े भीति हरिहि काका जजस
जथथघत में समले , उसे देखकि उनक
े भाइयों का खन खौल उठा । उस वतत
अगि महंत , पुजािी या अन्य नौजवान सािु उन्हें नज़ि आ जाते तो वे जीते -
जी उन्हें नहीं छोड़ते ।
हरिहि काका क
े हाथ औि पााँव तो बााँि ही ददए गए थे, उनक
े मुाँह में कपड़ा
ठाँसकि बााँि ददया गया था । हरिहि काका ज़मीन पि लुढ़कते हुए दिवाजे तक
आए थे औि पैि से दिवाजे पि ितका लगाया था ।
काका को बंिनमुतत ककया गया, मुाँह से कपड़े घनकाले गए । हरिहि काका ने
ठाक
ु िबािी क
े महंत, पुजािी औि सािुओं की काली किततों का पिदाफाश किना
शुरू ककया कक वह सािु नहीं, डाक, हत्यािे औि कसाई (BUTCHER) हैं, कक उन्हें
इस रूप में कमिे में बंद कि गुप्त दिवाज़े से भाग गए, कक उन्होंने कई सादे
औि सलखे हुए कागज़ों पि जबिन उनक
े अंगठे क
े घनशान सलए ... आदद । हरिहि काका का बुि हालत में शमलना
13
हरिहि काका ने देि तक अपने बयान दजम किाए । उनक
े
शब्द-शब्द से सािुओं क
े प्रघत नफित औि िृणा व्यतत हो
िही थी। जीवन में कभी ककसी क
े खखलाफ उन्होंने इतना नहीं
कहा होगा जजतना ठाक
ु िबािी क
े महंत, पुजािी औि सािुओं क
े
बािे में कहा ।
अब हरिहि काका पुनः अपने भाइयों क
े परिवाि क
े साथ िहने
लगे थे । इस बाि उन्हें दालान पि नहीं, िि क
े अंदि िखा
गया था-ककसी बहुमल्य वथतु की तिह साँजोकि, घछपाकि ।
उनकी सुिक्षा क
े सलए रिश्ते-नाते में जजतने 'सिमा' थे, सबको
बुला सलया गया था । हधथयाि जुटा सलए गए थे । चौबीसों
िंटे पहिे ददए जाने लगे थे । अगि ककसी आवश्यक कायमवश
काका िि से गााँव में घनकलते तो चाि - पााँच की संख्या में
हधथयािों से लैस लोग उनक
े आगे - पीछे चलते िहते । िात
में चािों तिफ से िेिकि सोते । भाइयों ने ड्यटी बााँट ली थी
। आिे लोग सोते तो आिे लोग जागकि पहिा देते िहते ।
ठाक
ु िबाि क
े महंत
एवं पुिाि की काल
किततों का हरिहि
काका द्वािा पिाफफ़ाि
ककया गया |
भाईयों द्वािा सुिक्षा प्रिान ककया िाना
इिि ठाक
ु िबािी का दृश्य भी बदल गया था । एक से एक खखाि लोग ठाक
ु िबािी
में आ गए थे । उन्हें देखकि ही डि लगता था । गााँव क
े बच्चों ने तो ठाक
ु िबािी
की ओि जाना ही बंद कि ददया । हरिहि काका को लेकि गााँव प्रािंभ से ही दो वगों
में बाँट गया था । इस नयी िटना को लेकि दोनों तिफ से प्रघतकियाएाँ व्यतत की
जाने लगी थीं ।
औि अब हरिहि काका एक सीिे-सादे औि भोले ककसान की अपेक्षा चतुि औि
ज्ञानी हो चले थे । वह महसस किने लगे थे कक उनक
े भाई अचानक उनको जो
आदि-सम्मान औि सुिक्षा प्रदान किने लगे हैं, उसकी वजह उन लोगों क
े साथ
उनका सगे भाई का संबंि नहीं, बजल्क उनकी जायदाद है, अन्यथा वे उनको पछते
तक नहीं । इसी गााँव में जायदादहीन भाई को कौन पछता है ? हरिहि काका को
अब सब नज़ि आने लगा था ! महत की धचकनी चुपड़ी बातों (मु.) क
े भीति की
सच्चाई भी अब वह जान गए थे । ठाक
ु िजी क
े नाम पि वह अपना औि अपने
जैसे सािुओं का पेट पालता है । उसे िमम औि पिमाथम से कोई मतलब नहीं ।
घनजी थवाथम क
े सलए सािु होने औि पजा-पाठ किने का ढोंग िचाया है । सािु क
े
बाने (भेर्ष) में महंत , पुजािी औि उनक
े अन्य सहयोगी लोभी-लालची औि क
ु कमी
हैं । ककसी भी तिह िन अजजमत कि बबना परिश्रम ककए आिाम से िहना चाहते हैं ।
अपने िृखणत इिादों को घछपाने क
े सलए ठाक
ु िवािी को इन्होंने माध्यम बनाया है ।
एक ऐसा माध्यम जजस पि अववश्वास न ककया जा सक
े । इसीसलए हरिहि काका ने
मन ही मन तय कि सलया कक अब महंत को वे अपने पास िटकने तक नहीं देंगे
। साथ ही अपनी जजंदगी में अपनी जायदाद भाइयों को भी नहीं सलखेंगे , अन्यथा
किि वह दि की मतखी हो जाएंगे((मु.) । लोग घनकालकि ि
ें क देंगे । कोई उन्हें
पछेगा तक नहीं । बुढ़ापे का दुख बबताए नहीं बीतेगा !
(युजतत / बुद्धि)
ठाक
ु िबाि से हरिहि काका
को घृणा
लेककन हरिहि काका सोच क
ु छ औि िहे थे औि वाताविण क
ु छ दसिा ही तैयाि हो िहा
था । ठाक
ु िबािी से जजस ददन उन्हें वापस लाया गया था, उसी ददन से उनक
े भाई औि
रिश्ते - नाते क
े लोग समझाने लगे थे कक ववधिवत अपनी जायदाद वे अपने भतीजों
क
े नाम सलख दें । वह जब तक ऐसा नहीं किेंगे तब तक महंत की धगद्ि-दृजष्ट (बुि
नजि) उनक
े ऊपि लगी िहेगी । ससि पि माँडिा िहे तफान से मुजतत पाने क
े सलए
उनक
े समक्ष अब यही एकमात्र िाथता है ...।
सुबह, दोपहि, शाम, िात गए तक यही चचाम । लेककन हरिहि काका साफ नकाि जाते
। कहते - " मेिे बाद तो मेिी जायदाद इस परिवाि को थवत: समल जाएगी इसीसलए
सलखने का कोई अथम नहीं । महंत ने अंगठे क
े जो जबिन घनशान सलए हैं, उसक
े
खखलाि मुकदमा हमने ककया ही है ...। "
भाई जब समझाते-समझाते हाि गए तब उन्होंने डााँटना औि दबाव देना शुरू ककया ।
लेककन काका इस िाथते भी िाजी नहीं हुए । थपष्ट कह ददया कक अपनी जजंदगी में वह
नहीं सलखेंगे । बस, एक िात उनक
े भाइयों ने वही रूप िािण कि सलया, जो रूप महंत
औि उनक
े सहयोधगयों ने िािण ककया था । हरिहि काका को अपनी आाँखों पि
ववश्वास नहीं हुआ । उनक
े वही अपने सगे भाई, जो उनकी सेवा औि सुिक्षा में तैयाि
िहते थे, उन्हें अपना असभन्न समझते थे, जो उनकी नींद ही साते औि जागते थे,
हधथयाि लेकि उनक
े सामने खड़े थे । कह िहे थे - " सीिे मन से कागज़ों पि जहााँ-
जहााँ ज़रूित है, अंगठे क
े घनशान बनाते चलो अन्यथा मािकि यहीं िि क
े अंदि गाड़
देंगे । गााँव क
े लोगों को कोई सचना तक नहीं समलने पाएगी । "
पुनः हरिहि काका पि ज़मीन भाईयों को देने क
े सलए
दवाब डाला जाना
अगि पहले वाली बात होती तो हरिहि काका
डि जाते । अज्ञान की जथथघत में ही मनुष्य
मृत्यु से डिते हैं । ज्ञान होने क
े बाद तो
आदमी आवश्यकता पड़ने पि मृत्यु को विण
किने क
े सलए तैयाि हो जाता है । हरिहि
काका ने सोच सलया कक ये सब एक ही बाि
उन्हें माि दें, वह ठीक होगा । लेककन अपनी
जमीन सलखकि िमेसि की वविवा की तिह
शेि जजंदगी वे िुट - िुटकि मिें , यह ठीक
नहीं होगा । िमेसि की वविवा को बहला -
ि
ु सलाकि उसक
े दहथसे की ज़मीन िमेसि क
े
भाइयों ने सलखवा ली । शुरू में तो उसका
खब आदि- मान ककया , लेककन बुढ़ापे में
उसे दोनों जन(समय) खाना देते उन्हें अखिने
लगा । अंत में तो उसकी वह दुगमघत हुई कक
गााँव क
े लोग देखकि ससहि जाते (बुि तिह
से घबिाना िाना ) । हरिहि काका को लगता
है कक अगि िमेसि की ववधवा ने अपनी
जमीन नहीं सलखी होती तो अंत समय तक
लोग उसक
े पााँव पखािते (मु.) होते ।
हरिहि काका गुथसे में खड़े हो गए औि
गिजते हुए कहा ,
" मैं अक
े ला हाँ ... तुम सब
इतने हो ! ठीक है , मुझे माि
दो ... मैं मि जाऊ
ाँ गा , लेककन
जीते - जी एक िि जमीन भी
तुम्हें नहीं सलखगा ... तुम सब
ठाक
ु िबािी क
े महंत - पुजािी
से तघनक भी कम नहीं ... ! "
" देखते हैं , क
ै से
नहीं सलखोगे ?
सलखना तो तुम्हें है
ही , चाहे हाँस क
े
सलखो या िो क
े ...।
हरिहि काका क
े साथ उनक
े भाइयों की हाथापाई (मािपीट) शुरू हो गई ।
हरिहि काका अब उस िि से घनकलकि बाहि गााँव में भाग जाना चाहते
थे, लेककन उनक
े भाइयों ने उन्हें मजबती से पकड़ सलया था । प्रघतकाि
(वविोध) किने पि अब वे प्रहाि (मािना) भी किने लगे थे । अक
े ले हरिहि
कई लोगों से जझ सकने में असमथम थे, िलथवरूप उन्होंने अपनी िक्षा क
े
सलए खब ज़ोि-ज़ोि से धचल्लाना शुरू कि ददया । अब भाइयों को चेत
(होि) आया कक मुाँह तो उन्हें पहले ही बंद कि देना चादहए था । उन्होंने
तत्क्षण उन्हें पटक उनक
े मुाँह में कपड़ा ठाँस ददया । लेककन ऐसा किने से
पहले ही काका की आवाज़ गााँव में पहुंच गई थी । टोला - पड़ोस क
े लोग
दालान में जुटने (आने) लगे थे । ठाक
ु िबािी क
े पक्षििों क
े माध्यम से
तत्काल यह खबि महंत जी तक भी चली गई थी । लेककन वहााँ उपजथथत
हरिहि काका क
े परिवाि औि रिश्ते-नाते क
े लोग, गााँव क
े लोगों को
समझा देते कक अपने परिवाि का घनजी मामला है, इससे दसिों को तया
मतलब ? लेककन महंत जी ने वह तत्पिता औि ि
ु िती ददखाई जो काका
क
े भाइयों ने भी नहीं ददखाई थी । वह पुसलस को जीप क
े साथ आ
िमक
े ।
भाईयों द्वािा भी महंत वाला रूप
धािण कि लेना
बंिनमुतत होने औि पुसलस की सुिक्षा पाने क
े बाद उन्होंने
बताया कक उनक
े भाइयों ने उनक
े साथ बहुत ज़ुल्म-अत्याचाि
ककया है, कक जबिन अनेक कागजों पि उनक
े अाँगठे क
े घनशान
सलए हैं, कक उन्हें खब मािा-पीटा है, कक उनकी कोई भी दुगमघत
बाकी नहीं छोड़ी है, कक अगि औि थोड़ी देि तक पुसलस नहीं
आती तो वह उन्हें जान से माि देते....।
हरिहि काका क
े पीठ, माथे औि पााँवों पि कई जगह ज़ख्म क
े
घनशान उभि आए थे। वह बहुत िबिाए हुए-से लग िहे थे। कााँप
िहे थे। अचानक धगि कि बेहोश हो गए। मुाँह पि पानी छींटकि
उन्हें होश में लाया गया। भाई औि भतीजे तो पुसलस आते ही
चंपत हो गए थे। पुसलस की पकड़ में रिश्ते क
े दो व्यजतत आए।
रिश्ते क
े शेि लोग भी फिाि हो गए थे....।
हरिहि काका का िबिाकि बेहोश हो जाना
हरिहि काका क
े साथ िटी िटनाओं में यह अब तक की सबसे
अंघतम िटना है। इस िटना क
े बाद काका अपने परिवाि से
एकदम अलग िहने लगे हैं। उनकी सुिक्षा क
े सलए िाइिलिािी
पुसलस क
े चाि जवान समले हैं। हालााँकक इसक
े सलए उनक
े भाइयों
औि महंत की ओि से काफी प्रयास ककए गए हैं। असल में
भाइयों को धचंता थी कक हरिहि काका अक
े ले िहने लगेंगे, तब
ठाक
ु िबािी क
े महंत अपने लोगों क
े साथ आकि पुनः उन्हें ले
भागेंगे। औि यही धचंता महंत जी को भी थी कक हरिहि को
अक
े ला औि असुिक्षक्षत पा उनक
े भाई पुनः उन्हें िि दबोचेंगे।
इसीसलए जब हरिहि काका ने अपनी सुिक्षा क
े सलए पुसलस की
मााँग की तब नेपथ्य में िहकि ही उनक
े भाइयों औि महंत जी
ने पैिवी( speak in support of) लगा औि पैसे खचम कि उन्हें
पिी सहायता पहुाँचाई। यह उनकी सहायता का ही परिणाम है
कक एक व्यजतत की सुिक्षा क
े सलए गााँव में पुसलस क
े चाि
जवान तैनात कि ददए गए हैं।
हरिहि काका की कहानी की अंघतम िटना
उनकी सुिक्षा क
े शलए पुशलस तैनात होना
जहााँ तक मैं समझता हाँ, किलहाल हरिहि काका पुसलस की सुिक्षा में िह
ज़रूि िहे हैं, लेककन वाथतववक सुिक्षा ठाक
ु िबािी औि अपने भाइयों की ओि
से ही समल िही है । ठाक
ु िबािी क
े सािु - संत औि काका क
े भाई इस बात
क
े प्रघत पिी तिह सतक
म हैं कक उनमें से कोई या गााँव का कोई अन्य हरिहि
काका क
े साथ जोि - ज़बिदथती न किने पाए । साथ ही अपना सद्भाव
औि मिुि व्यवहाि प्रकट कि पुनः उनका ध्यान अपनी ओि खींच लेने क
े
सलए दोनों दल प्रयत्नशील हैं ।
गााँव में एक नेता जी हैं, वह न तो कोई नौकिी किते हैं औि न खेती -
गृहथथी , किि भी बािहों महीने मौज़ उड़ाते िहते हैं । िाजनीघत की जादुई
छड़ी उनक
े पास है । उनका ध्यान हरिहि काका की ओि जाता है । वह
तत्काल गााँव क
े क
ु छ ववसशष्ट लोगों क
े साथ उनक
े पास पहुाँचते हैं औि यह
प्रथताव िखते हैं कक उनकी जमीन में ' हरिहि उच्च ववद्यालय ' नाम से
एक हाई थकल खोला जाए । इससे उनका नाम अमि हो जाएगा । उनकी
जमीन का सही उपयोग होगा औि गााँव क
े ववकास क
े सलए एक थकल समल
जाएगा । लेककन हरिहि काका क
े ऊपि तो अब कोई भी दसिा िंग चढ़ने
वाला (मु.) नहीं था । नेता जी भी घनिाश होकि लौट आते हैं ।
गााँव क
े नेताजी का ध्यान हरिहि काका की
ज़मीन पि पड़ना
इन ददनों गााँव की चचामओं क
े क
ें द्र हैं हरिहि काका । आाँगन ,
खेत , खसलहान , अलाव , बगीचे , बिगद हि जगह उनकी ही
चचाम । उनकी िटना की तिह ववचािणीय औि चचमनीय कोई
दसिी िटना नहीं । गााँव में आए ददन छोटी - बड़ी िटनाएाँ
िटती िहती हैं, लेककन काका क
े प्रसंग क
े सामने उनका कोई
अजथतत्व नहीं । गााँव में जहााँ कहीं औि जजन लोगों क
े बीच
हरिहि काका की चचाम घछड़ती है तो किि उसका कोई अंत नहीं
। लोग तिह - तिह की संभावनाएाँ व्यतत किते हैं- " िाम जाने
तया होगा ? दोनों ओि क
े लोगों ने अंगठे क
े घनशान ले सलए हैं
। लेककन हरिहि ने अपना बयान दजम किाया है कक वे दोनों
लोगों में से ककसी को अपनी ज़मीन का उििाधिकािी नहीं
मानते हैं । दोनों ओि क
े लोगों ने जबिन उनक
े अंगठे क
े
घनशान सलए हैं । इस जथथघत में उनक
े बाद उनकी जायदाद का
हकदाि कौन होगा ? "
लोगों क
े बीच बहस घछड़ जाती है । उििाधिकािी क
े कानन पि जो जजतना जानता है , उससे दस गुना अधिक उगल देता है
। किि भी कोई समािान नहीं घनकलता । िहथय खत्म नहीं होता , आशंकाएाँ बनी ही िहती हैं । लेककन लोग आशंकाओं को
नज़िअंदाज कि अपनी पक्षििता शुरू कि देते हैं कक उििाधिकाि ठाक
ु िबािी को समलता तो ठीक िहता । दसिी ओि क
े लोग
कहते कक हरिहि क
े भाइयों को समलता तो ज्यादा अच्छा िहता ।
पिे गााँव में एक ही चचाम – हरिहि काका
ठाक
ु िबािी क
े सािु - संत औि काका क
े भाइयों ने कब तया कहा, यह खबि बबजली की तिह एक ही बाि समचे गााँव में ि
ै ल
जाती है । खबि झठी है कक सच्ची, इस पि कोई ध्यान नहीं देता । जजसे खबि हाथ लगती है, वह नमक-समचम समला उसे
चटकाकि आगे बढ़ा देता है ।
एक तीसिी खबि आती है कक हरिहि काका की मृत्यु क
े बाद
उनकी जमीन पि कब्जा किने क
े सलए उनक
े भाई अभी से
तैयािी कि िहे हैं । इलाक
े क
े मशहि डाक बुटन ससंह से उन
लोगों ने बातचीत पतकी कि ली है । हरिहि क
े पंद्रह बीिे खेत
में से पााँच बीिे बुटन लेगा औि दखल (Get it registered in their
name) किा देगा । इससे पहले भी इस तिह क
े दो-तीन मामले
बुटन ने घनपटाए हैं । पिे इलाक
े में उसक
े नाम की तती बोलती
(मु.) है ।
हरिहि काका को लेकि खबिों
का बाज़ाि गिम
18
िहथयात्मक औि भयावनी खबिों से गााँव का आकाश
आच्छाददत (भि गया था ) हो गया है । ददन-प्रघतददन
आतंक (डि) का माहौल गहिाता जा िहा है । सबक
े
मन में यह बात है कक हरिहि कोई अमृत पीकि तो
आए हैं नहीं । एक न एक ददन उन्हें मिना ही है ।
किि एक भयंकि तफान की चपेट में यह गााँव आ
जाएगा । उस वतत तया होगा, क
ु छ कहा नहीं जा
सकता । यह कोई छोटी लड़ाई नहीं, एक बड़ी लड़ाई
है । जाने-अनजाने पिा गााँव इसकी चपेट में आएगा
ही...। इसीसलए लोगों क
े अंदि भय भी है औि प्रतीक्षा
भी। एक ऐसी प्रतीक्षा जजसे झुठलाकि भी उसक
े
आगमन को टाला नहीं जा सकता ।
गाूँव वालों को काका क
े मिने का इंतिाि
औि हरिहि काका ! वह तो बबलक
ु ल मौन हो अपनी
जजंदगी क
े शेि ददन काट िहे हैं । एक नौकि िख
सलया है, वही उन्हें बनाता-खखलाता है । उनक
े दहथसे
की जमीन में जजतनी िसल होती है, उससे अगि वह
चाहते तो मौज की जजंदगी बबता सकते थे । लेककन
वह तो गंगेपन का सशकाि हो गए हैं । कोई बात कहो,
क
ु छ पछो, कोई जवाब नहीं । खुली आाँखों से बिाबि
आकाश को घनहािा किते हैं । कोई बात नहीं । सािे
गााँव क
े लोग उनक
े बािे में बहुत क
ु छ कहते-सुनते हैं,
लेककन उनक
े पास अब कहने क
े सलए कोई बात नहीं |
काका की घनिाशाजनक जथथघत
पुसलस क
े जवान हरिहि काका क
े खचे पि ही खब मौज - मथती से िह िहे हैं । जजसका िन वह
िहे उपास, खाने वाले किें ववलास (मु.-जजसकी िन-दौलत है, वह तो अपने िन का उपयोग नहीं
कि पा िहा है लेककन दसिे लोग मौज-मथती कि िहे है )। अब तक जो नहीं खाया था, दोनों जन
उसका भोग लगा िहे हैं ।
इस कहानी को पढ़कि ऐसा लगता है कक
समाज में जजतने भी रिश्ते हैं वे थवाथम पि
आिारित हैं। महंत ने हरिहि काका की
आवभगत इससलए की तयोंकक वह उनकी
जमीन हड़पना चाहता था। हरिहि काका क
े
भाइयों ने उनकी दोबािा इज्जत किनी शुरु
कि दी तयोंकक वे पंद्रह बीिे जमीन को
अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे।
गााँव में ऐसे कई प्रकिण पहले भी हो चुक
े
थे। िन दौलत क
े आगे खन क
े रिश्ते भी
िीक
े पड़ने लगते हैं। यह कहानी यह उजतत
ससद्ि किती है ---
‘बाप बड़ा न भैया,
सबसे बड़ा रुपैया |’
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  • 2. कहानी क े पात्र हरिहि काका का परिवाि हरिहि काका महंत लेखक
  • 3. हरिहि काका क े यहााँ से मैं अभी- अभी लौटा हाँ । कल भी उनक े यहााँ गया था, लेककन न तो वह ही क ु छ कह सक े औि न आज ही । दोनों ददन उनक े पास में देि तक बैठा िहा, लेककन उन्होंने कोई बातचीत नहीं की । जब उनकी तबीयत क े बािे में पछा तब उन्होंने ससि उठाकि एक बाि मुझे देखा । किि ससि झुकाया तो दुबािा मेिी ओि नहीं देखा । हालााँकक उनकी एक ही नज़ि बहुत क ु छ कह गई । जजन यंत्रणाओं (कष्ट) क े बीच वह घििे थे औि जजस मन:जथथघत (मन की जथथघत) में जी िहे थे. उसमें आाँखें ही बहुत क ु छ कह देती हैं, मुाँह खोलने की ज़रूित नहीं पड़ती ।
  • 4. हरिहि काका की जजंदगी से मैं बहुत गहिे में जुड़ा हाँ । अपने गााँव में जजन चंद लोगों को मैं सम्मान देता हाँ, उनमें हरिहि काका भी एक हैं । हरिहि काका क े प्रघत मेिी आसजतत (प्याि) क े अनेक व्यावहारिक (व्यवहाि संबंधित) औि वैचारिक (ववचािा संबंिी) कािण हैं । उनमें प्रमुख कािण दो हैं । एक तो यह कक हरिहि काका मेिे पड़ोस में िहते हैं औि दसिा कािण यह कक मेिी मााँ बताती है , हरिहि काका बचपन में मुझे बहुत दुलाि किते थे । अपने क ं िे पि बैठाकि िुमाया किते थे । एक वपता अपने बच्चे को जजतना प्याि किता है , उससे कहीं ज्यादा प्याि हरिहि काका मुझे किते थे । औि जब मैं सयाना हुआ तब मेिी पहली दोथती हरिहि काका क े साथ ही हुई । हरिहि काका ने भी जैसे मुझसे दोथती क े सलए ही इतनी उम्र तक प्रतीक्षा की थी । मााँ बताती है कक मुझसे पहले गााँव में ककसी अन्य से उनकी इतनी गहिी दोथती नहीं हुई थी । वह मुझसे क ु छ भी नहीं घछपाते थे । खब खुलकि बातें किते थे । लेककन किलहाल मुझसे भी क ु छ कहना उन्होंने बंद कि ददया है । उनकी इस जथथघत ने मुझे धचंघतत कि ददया है । हरिहि काका औि लेखक क े बीच गहिा का संबंध
  • 5. जैसे कोई नाव बीच मझिाि में ि ं सी हो औि उस पि सवाि लोग धचल्लाकि भी अपनी िक्षा न कि सकते हों, योंकक उनकी धचल्लाहट दि तक ि ै ले सागि क े बीच उठती - धगिती लहिों में ववलीन (गायब) हो जाने क े अघतरितत कि ही तया सकती है ? मौन होकि (चुपचाप) जल - समाधि लेने क े अघतरितत कोई दसिा ववकल्प (option) नहीं । लेककन मन इसे मानने को कतई तैयाि नहीं । जीने की लालसा की वजह से बेचैनी औि छटपटाहट बढ़ गई हो, क ु छ ऐसी ही जथथघत क े बीच हरिहि काका घिि गए हैं । हरिहि काका का पिेशाघनयों क े बीच घिि जाना
  • 6. हरिहि काका क े बािे में मैं सोचता हूँ तो मुझे लगता है कक वह यह समझ नह ं पा िहे हैं कक कहें तो क्या कहें ? अब कोई ऐसी बात नह ं जिसे कहकि वह हलका हो सक ें । कोई ऐसी उजक्त (उपाय) नह ं जिसे कहकि वे मुजक्त पा सक ें । हरिहि काका की जथितत में मैं भी होता तो तनश्चय ह इस गंगेपन का शिकाि हो िाता । हरिहि काका इस जथितत में क ै से आ फ ूँ से ? यह कौन - सी जथितत है ? इसक े शलए कौन जिम्मेवाि है ? यह सब बताने से पहले अपने गाूँव का औि खासकि अपने गाूँव की ठाक ु िबाि (मंदिि) का संक्षक्षप्त परिचय मैं आपको िे िेना उचचत समझता हूँ क्योंकक उसक े बबना तो यह कहानी अधि ह िह िाएगी । हरिहि काका का घनिाशा में चले जाना
  • 7. ठाक ु िबािी की थथापना पजश्चम ककनािे का बड़ा तालाब मध्य जथित बिगि का पुिाना वृक्ष मेिा गाूँव कथबाई िहि आिा से चाल स ककलोमीटि की िि पि है । हसनबाजाि बस थटैंड क े पास । गाूँव की क ु ल आबाि ढाई - तीन हिाि होगी । गाूँव में तीन प्रमुख थिान हैं । गाूँव क े पजश्चम ककनािे का बड़ा - सा तालाब । गाूँव क े मध्य जथित बिगि का पुिाना वृक्ष औि गाूँव क े पिब में ठाक ु ििी का वविाल मंदिि, जिसे गाूँव क े लोग ठाक ु िबाि कहते हैं ।
  • 8. गाूँव में इस ठाक ु िबाि की थिापना कब हुई, इसकी ठीक-ठीक िानकाि ककसी को नह ं । इस संबंध में गाूँव में िो कहानी प्रचशलत है वह यह कक वर्षों पहले िब यह गाूँव पि तिह बसा भी नह ं िा, कह ं से एक संत आकि इस थिान पि झोंपड़ी बना िहने लगे िे । वह सुबह - िाम यहाूँ ठाक ु ििी की पिा किते िे । लोगों से माूँगकि खा लेते िे औि पिा-पाठ की भावना िाग्रत किते िे । बाि में लोगों ने चंिा (donation) किक े यहाूँ ठाक ु ििी का एक छोटा - सा मंदिि बनवा दिया । कफि िैसे - िैसे गाूँव बसता गया औि आबाि बढ़ती गई , मंदिि क े कलेवि (area) में भी ववथताि होता गया ।
  • 9. लोग ठाक ु ििी को मनौती (मन्नत) मनाते कक पुत्र हो , मुकिमे(Court case) में वविय हो , लड़की की िाि अच्छे घि में तय हो. लड़क े को नौकि शमल िाए। कफि इसमें जिनको सफलता शमलती, वह खुिी में ठाक ु ििी पि रुपये. िेवि, अनाि चढ़ाते । अचधक खुिी होती तो ठाक ु ििी क े नाम अपने खेत का एक छोटा-सा टुकड़ा शलख िेते । यह पिंपिा आि तक िाि है । अचधकांि लोगों को ववश्वास है कक उन्हें अच्छी फसल होती है तो ठाक ु ििी की कृ पा से । मुकिमे में उनकी िीत हुई तो ठाक ु ििी क े चलते । लड़की की िाि इसीशलए िल्ि तय हो गई , क्योंकक ठाक ु ििी को मनौती मनाई गई िी । लोगों क े इस ववश्वास का ह यह परिणाम है कक गाूँव की अन्य चीिों की तुलना में ठाक ु िबाि का ववकास हिाि गुना अचधक हुआ है । अब तो यह गाूँव ठाक ु िबाि से ह पहचाना िाता है । यह ठाक ु िबाि न शसफ फ मेिे गाूँव की एक बड़ी औि वविाल ठाक ु िबाि है बजल्क पिे इलाक े में इसकी िोड़ की िसि ठाक ु िबाि नह ं । ठाक ु िबाि क े नाम पि बीस बीघे खेत हैं । धाशमफक लोगों की एक सशमतत(TRUST) है, िो ठाक ु िबाि की िेख-िेख औि संचालन क े शलए प्रत्येक तीन साल पि एक महंत औि एक पुिाि की तनयुजक्त किती है । Note: 1 बीघा = 0.25 Hectare 20 बीघा = 5 Hectare ठाक ु िबािी क े ववकास की कहानी
  • 10. ठाक ु िबािी का काम लोगों क े अंदि ठाक ु िजी क े प्रघत भजतत-भावना पैदा किना तथा िमम से ववमुख (मुंह फ े िने वाले) हो िहे लोगों को िाथते पि लाना है । ठाक ु िबािी में भजन-कीतमन की आवाज़ बिाबि गंजती िहती है । गााँव जब भी बाढ़ या सखे (DROUGHT) की चपेट में आता है , ठाक ु िबािी क े अहाते (COURTYARD) में तंब लग जाता है । लोग औि ठाक ु िबािी क े सािु-संत अखंड हरिकीतमन शुरू कि देते हैं । इसक े अघतरितत गााँव में ककसी भी पवम - त्योहाि की शुरुआत ठाक ु िबािी से ही होती है । होली में सबसे पहले गुलाल ठाक ु िजी को ही चढ़ाया जाता है । दीवाली का पहला दीप ठाक ु िबािी में ही जलता है । जन्म, शादी औि जनेऊ क े अवसि पि अन्न-वथत्र की पहली भेंट ठाक ु िजी क े नाम की जाती है । ठाक ु िबािी क े ब्राह्मण-सािु व्रत - कथाओं क े ददन िि-िि िमकि कथावाचन किते हैं । लोगों क े खसलहान में जब िसल की दवनी (गेंहूँ तनकालने का PROCESS) होकि अनाज की 'ढेिी’ (PILE) तैयाि हो जाती है, तब ठाक ु िजी क े नाम 'अगउम’ (प्रसाि क े रूप में तनकाला गया अंि) घनकालकि ही लोग अनाज अपने िि ले जाते हैं । ठाक ु िबािी क े साथ अधिकांश लोगों का संबंि बहुत ही िघनष्ठ (गहिा) है - मन औि तन दोनों थति पि। कृ वि-कायम से अपना बचा हुआ समय वे ठाक ु िबािी में ही बबताते हैं । ठाक ु िबािी में सािु-संतो का प्रवचन सुन औि ठाक ु िजी का दशमन कि वे अपना यह जीवन साथमक (सफल) मानने लगते हैं । उन्हें यह महसस होता है कक ठाक ु िबािी में प्रवेश किते ही वे पववत्र हो जाते हैं । उनक े वपछले सािे पाप अपने आप खत्म हो जाते हैं । परिजथथघतवश इिि हरिहि काका ने ठाक ु िबािी में जाना बंद कि ददया है । पहले वह अकसि ही ठाक ु िबािी में जाते थे । मन बहलाने क े सलए कभी - कभी मैं भी ठाक ु िबािी में जाता हाँ । लेककन वहााँ क े सािु - संत मुझे िटी आाँखों (मु.) नहीं सुहाते । काम-िाम किने में उनकी कोई रुधच नहीं । ठाक ु िजी को भोग लगाने क े नाम पि दोनों जन (समय) हलवा - पड़ी खाते हैं औि आिाम से पड़े िहते हैं । उन्हें अगि क ु छ आता है तो ससि म बात बनाना आता है । ठाक ु िबाि में भिन कीतफन की आवािें गााँव क े लोगों की ठाक ु िबािी क े प्रघत गहिी आथथा
  • 11. हरिहि काका चाि भाई हैं । सबकी शादी हो चुकी है । हरिहि काका क े अलावा सबक े बाल-बच्चे हैं । बड़े औि छोटे भाई क े लड़क े काफी सयाने हो गए हैं । दो की शाददयााँ हो गई हैं । उनमें से एक पढ़-सलखकि शहि क े ककसी दफ्ति में तलकी किने लगा है । लेककन हरिहि काका की अपनी देह से कोई औलाद नहीं । भाइयों में हरिहि काका का नंबि दसिा है । औलाद क े सलए उन्होंने दो शाददयााँ की । लंबे समय तक प्रतीक्षाित िहे । लेककन बबना बच्चा जने (पैिा) उनकी दोनों पजत्नयााँ थवगम ससिाि गई । लोगों ने तीसिी शादी किने की सलाह दी लेककन अपनी धगिती हुई उम्र औि िासममक संथकािों की वजह से हरिहि काका ने इंकाि कि ददया । वह इत्मीनान (आिाम से) औि प्रेम से अपने भाइयों क े परिवाि क े साथ िहने लगे हरिहि काका क े परिवाि की जानकािी – चाि भाई, शादीशुदा, सभी क े बाल-बच्चे, थवयं घनसंतान
  • 12. हरिहि काका क े परिवाि क े पास क ु ल साठ बीघे खेत हैं । प्रत्येक भाई क े दहथसे पंद्रह बीिे पड़ेंगे । कृ वि-कायम पि ये लोग घनभमि हैं । शायद इसीसलए अब तक संयुतत परिवाि क े रूप में ही िहते आ िहे हैं । हरिहि काका क े तीनों भाइयों ने अपनी पसलयों को यह सीख दी थी कक हरिहि काका की अच्छी तिह सेवा किें । समय पि उन्हें नाश्ता-खाना दें । ककसी बात की तकलीफ न होने दें । क ु छ ददनों तक वे हरिहि काका की खोज-खबि (LOOK AFTER) लेती िहीं । किि उन्हें कौन पछने वाला ? ' ठहि–चौका (खाना बनाकि) लगाकि पंखा झलते हुए अपने मदो को अच्छे - अच्छे व्यंजन खखलाती । हरिहि काका क े आगे तो बची-खुची (रुखा-सखा) चीजें आतीं । कभी कभी तो हरिहि काका को रूखा-सखा खाकि ही संतोि किना पड़ता । अगि कभी हरिहि काका की तबीयत खिाब हो जाती तो वह मुसीबत में पड़ जाते । इतने बड़े परिवाि क े िहते हुए भी कोई उन्हें पानी देने वाला तक नहीं । सभी अपने कामों में मशगल (व्यथत/BUSY) । बच्चे या तो पढ़-सलख िहे होते या िमाचौकड़ी (िैतानी) मचाते । मदम खेतों पि गए िहते । औितें हाल पछने भी नहीं आती दालान क े कमिे में अक े ले पड़े हरिहि काका को थवयं उठकि अपनी जरूितों की पघतम किनी पड़ती । ऐसे वतत अपनी पजत्नयों को याद कि-किक े हरिहि काका की आाँखें भि आतीं । भाइयों क े परिवाि क े प्रघत मोहभंग (भाईयों क े प्रतत प्रेम कम होने की) की शुरुआत (मु.) इन्हीं क्षणों में हुई थी । औि किि, एक ददन तो ववथिोट ही हो गया । उस ददन हरिहि काका की सहन-शजतत जवाब दे गई । उस ददन शहि में तलकी किने वाले भतीजे का एक दोथत गााँव आया था । उसी क े आगमन (आने पि) क े उपलक्ष्य (अवसि) में दो- तीन तिह की सब्जी, बजक े ,(पकौड़ी) चटनी, िायता आदद बने थे । बीमािी से उठे हरिहि काका का मन थवाददष्ट भोजन क े सलए बेचैन था । मन ही मन उन्होंने अपने भतीजे क े दोथत की सिाहना की, जजसक े बहाने उन्हें अच्छी चीजें खाने को समलने वाली थीं । लेककन बातें बबलक ु ल ववपिीत हुईं । सबों ने खाना खा सलया . उनको कोई पछने तक नहीं आया । उनक े तीनों भाई खाना खाकि खसलहान (खेत) में चले गए । देवनी हो िही थी । वे इस बात क े प्रघत घनजश्चत थे कक हरिहि काका को तो पहले ही खखला ददया गया होगा । हरिहि काका क े भईयों क े प्रघत प्रेम में दिाि पड़ना 💔
  • 13. अंत में हरिहि काका ने थवयं दालान क े कमिे से घनकल हवेली में प्रवेश ककया । तब उनक े छोटे भाई की पत्नी ने रूखा-सखा खाना लाकि उनक े सामने पिोस ददया - भात, मट्ठा औि अचाि । बस , हरिहि काका क े बदन में तो जैसे आग लग (मु.) गई । उन्होंने थाली उठाकि बीच आाँगन में ि ें क दी । झन्न की तेज आवाज़ क े साथ आाँगन में थाली धगिी, भात बबखि गया । ववसभन्न ििों में बैठी लड़ककयााँ, बहुएाँ सब एक ही साथ बाहि घनकल आई । िालान
  • 14. हरिहि काका गिजते हुए हवेली से दालान की ओि चल पड़े- " समझ िही हो कक मुफ़्त में खखलाती हो, तो अपने मन से यह बात घनकाल देना । मेिे दहथसे क े खेत की पैदावाि इसी िि में आती है । उसमें तो मैं दो- चाि नौकि िख लाँ, आिाम से खाऊ ाँ , तब भी कमी नहीं होगी । मैं अनाथ औि बेसहािा नहीं हाँ । मेिे िन पि तो तुम सब मौज कि िही हो । लेककन अब मैं तुम सबों को बताऊ ाँ गा ... आदद । " परिवाि की औितों पि हरिहि काका का क्रोध
  • 15. हरिहि काका जजस वतत यह सब बोल िहे थे , उस वतत ठाक ु िबािी क े पुजािी जी उनक े दालान पि ही वविाजमान (बैठे) थे । वाविमक हुमाि (हवन) क े सलए वह िी औि शकील (हवन में डाल िाने वाल सामग्री ) लेने आए थे । लौटकि उन्होंने महंत जी को ववथताि क े साथ सािी बात बताई । उनक े कान खड़े हो गए । वह ददन उन्हें बहुत शुभ महसस हुआ । उस ददन को उन्होंने ऐसे ही गुज़ि जाने देना उधचत नहीं समझा । तत्क्षण टीका - घतलक लगा, क ं िे पि िामनामी सलखी चादि डाल ठाक ु िबािी से चल पड़े । िाम िाम िाम
  • 16. संयोग अच्छा था । हरिहि क े दालान तक नहीं जाना पड़ा । िाथते में ही हरिहि समल गए । गुथसे में िि से घनकल वह खसलहान की ओि जा िहे थे । लेककन महंत जी ने उन्हें खसलहान की ओि नहीं जाने ददया । अपने साथ ठाक ु िबािी पि लेते आए । किि एकांत कमिे में उन्हें बैठा , खब प्रेम से समझाने लगे- " हरिहि ! यहााँ कोई ककसी का नहीं है । सब माया का बंिन है । त तो िासममक प्रवृवि का आदमी है । मैं समझ नहीं पा िहा हाँ कक तुम इस बंिन में क ै से ि ाँ स गए ? ईश्वि में भजतत लगाओ । उसक े ससवाय कोई तुम्हािा अपना नहीं । पत्नी, बेटे, भाई-बंिु सब थवाथम क े साथी हैं । जजस ददन उन्हें लगेगा कक तुमसे उनका थवाथम सिने (पिा) वाला नहीं, उस ददन वे तुम्हें पछेगे तक नहीं । इसीसलए ज्ञानी, संत, महात्मा ईश्वि क े ससवाय ककसी औि में प्रेम नहीं लगाते । तुम्हािे दहथसे में पंद्रह बीिे खेत हैं । उसी क े चलते तुम्हािे भाई क े परिवाि तुम्हें पकड़े हुए हैं । तुम एक ददन कहकि तो देख लो कक अपना खेत उन्हें न देकि दसिे को सलख दोगे, वह तुमसे बोलना बंद कि देंगे । खन का रिश्ता खत्म हो जाएगा । तुम्हािे भले क े सलए मैं बहुत ददनों से सोच िहा था लेककन संकोचवश नहीं कह िहा था । आज कह देता हाँ, तुम अपने दहथसे का खेत ठाक ु िजी क े नाम पि सलख दो । सीिे बैक ुं ठ (थवगफ) को प्राप्त किोगे । तीनों लोक में तुम्हािी कीघतम जगमगा उठेगी । जब तक चााँद-सिज िहेंगे, तब तक लोग तुम्हें याद किेंगे । ठाक ु िजी क े नाम पि जमीन सलख देना , तुम्हािे जीवन का महादान होगा । सािु-संत तुम्हािे पााँव पखािेंगे । सभी तुम्हािा यशोगान किेंगे । तुम्हािा यह जीवन साथमक हो जाएगा । अपनी शेि जजंदगी तुम इसी ठाक ु िबािी में गुजािना, तुम्हें ककसी चीज़ की कमी नहीं होगी । एक मााँगोगे तो चाि हाजजि की जाएंगी । हम तुम्हें ससि-आाँखों पि उठाकि िखेंगे (मु.)। ठाक ु िजी क े साथ-साथ तुम्हािी आिती भी लगाएाँगे । भाई का परिवाि तुम्हािे सलए क ु छ नहीं किेगा । पता नहीं पवमजन्म में तुमने कौन-सा पाप ककया था कक तुम्हािी दोनों पजत्नयााँ अकालमृत्यु को प्रप्त हुई । तुमने औलाद का मुाँह तक नहीं देखा । अपना यह जन्म तुम अकािथ " न जाने दो । ईश्वि को एक भि दोगे तो दस भि पाओगे । मैं अपने सलए तो तुमसे मााँग नहीं िहा हाँ । तुम्हािा यह लोक औि पिलोक दोनों बन जाएाँ , इसकी िाह मैं तुम्हें बता िहा हाँ ..। ठाक ु िबाि क े नाम जमीन शलखने का िबाव
  • 17. हरिहि देि तक महंत जी की बातें सुनते िहे । महंत जी की बातें उनक े मन में बैठती जा िही थीं । ठीक ही तो कह िहे हैं महंत जी । कौन ककसका है ? पंद्रह बीिे खेत की िसल भाइयों क े परिवाि को देते हैं, तब तो कोई पछता नहीं, अगि क ु छ न दें तब तया हालत होगी ? उनक े जीवन में तो यह जथथघत है, मिने क े बाद कौन उन्हें याद किेगा ? सीिे-सीिे उनक े खेत हड़प जाएाँगे । ठाक ु िजी क े नाम सलख देंगे तो पुश्तों तक लोग उन्हें याद किेंगे । अब तक क े जीवन में तो ईश्वि क े सलए उन्होंने क ु छ नहीं ककया । अंघतम समय तो यह बड़ा पुण्य कमा लें । लेककन यह सोचते हुए भी हरिहि काका का मुाँह खुल नहीं िहा (मु.) था । भाई का परिवाि तो अपना ही होता है । उनको न देकि ठाक ु िबािी में दे देना उनक े साथ िोखा औि ववश्वासिात होगा ...। अपनी बात समाप्त कि महंत जी प्रघतकिया जानने क े सलए हरिहि की ओि देखने लगे । उन्होंने मुाँह से तो क ु छ नहीं कहा, लेककन उनक े चेहिे क े परिवघतमत भाव महंत जी की अनुभवी आाँखों से घछपे न िह सक े । अपनी सिलता पि महंत जी को बहुत खुशी हुई । उन्होंने सही जगह वाि ककया है । इसक े बाद उसी वतत ठाक ु िबािी क े दो सेवकों को बुलाकि आदेश ददया कक एक साफ-सुथिे कमिे में पलंग पि बबथतिा लगाकि उनक े आिाम का इंतज़ाम किें । किि तो महंत जी क े कहने में जजतना समय लगा था, उससे कम समय में ही , सेवकों ने हरिहि काका क े मना किने क े बावजद उन्हें एक सुंदि कमिे में पलंग पि जा सलटाया । औि महंत जी ! उन्होंने पुजािी जी को यह समझा ददया कक हरिहि क े सलए ववशेि रूप से भोजन की व्यवथथा किें । हरिहि काका को महंत जी एक ववशेि उद्देश्य से ले गए थे, इसीसलए ठाक ु िबािी में चहल- पहल शुरू हो (मु.)गई । सािुसंतों द्वािा हरिहि काका को प्रभाववत किने का प्रयास ककया जाना
  • 18. इिि शाम को हरिहि काका क े भाई जब खसलहान से लौटे तब उन्हें इस दुिमटना का पता चला । पहले तो अपनी पजत्नयों पि वे खब बिसे (मु.) , किि एक जगह बैठकि धचंतामग्न हो गए । हालााँकक गााँव क े ककसी व्यजतत ने भी उनसे क ु छ नहीं कहा था । महंत जी ने हरिहि काका को तया-तया समझाया है , इसकी भी जानकािी उन्हें नहीं थी । लेककन इसक े बावजद उनका मन शंकालु औि बेचैन हो गया । दिअसल, बहुत सािी बातें ऐसी होती हैं, जजनकी जानकािी बबना बताए ही लोगों को समल जाती है । शाम गहिाते-गहिाते हरिहि काका क े तीनों भाई ठाक ु िबािी पहुंचे । उन्होंने हरिहि काका को वापस िि चलने क े सलए कहा । इससे पहले कक हरिहि काका क ु छ कहते, महंत जी बीच में आ गए- लेककन उनक े भाई उन्हें िि ले चलने क े सलए जजद किने लगे । इस पि ठाक ु िबािी क े सािु-संत उन्हें समझाने लगे । वहााँ उपजथथत गााँव क े लोगों ने भी कहा कक एक िात ठाक ु िबािी में िह जाएाँगे तो तया हो जाएगा ? अंतत : भाइयों को घनिाश हो वहााँ से लौटना पड़ा । भाईयों द्वािा िि चलने का आग्रह ककया जाना " आज हरिहि को यहीं िहने दो ... बीमािी से उठा है । इसका मन अशांत है । ईश्वि क े दिबाि में िहेगा तो शांघत समलेगी .... |"
  • 19. िात में हरिहि काका को भोग लगाने क े सलए जो समष्टान्न औि व्यंजन समले, वैसे उन्होंने कभी नहीं खाए थे । िी टपकते मालपुए, िस बुघनया, लड्ड , छेने की तिकािी, दही, खीि ...। पुजािी जी ने थवयं अपने हाथों से खाना पिोसा था । पास में बैठे महंत जी िमम-चचाम से मन में शांघत पहुाँचा िहे थे । एक ही िात में ठाक ु िबािी में जो सुख-शांघत औि संतोि पाया, वह अपने अब तक क े जीवन में उन्होंने नहीं पाया था । ठाक ु िबाि में हरिहि काका की आवभगत
  • 20. लेककन यह तया ? इस बाि अपने िि पि जो बदलाव उन्होंने लक्ष्य (िेखा) ककया , उसने उन्हें सुखद आश्चयम में डाल ददया । िि क े छोटे-बड़े सब उन्हें ससि - आाँखों पि उठाने (मु.)को तैयाि । भाइयों की पसलयों ने उनक े पैि पि माथा िख गलती क े सलए क्षमा-याचना की । किि उनकी आवभगत (खाततििाि ) औि जो खाघति शुरू हुई , वैसी खाघति ककसी क े यहााँ मेहमान आने पि भी नहीं होती होगी । उनकी रुधच औि इच्छा क े मुताबबक दोनों जन खाना - नाश्ता तैयाि । पााँच मदहलाएाँ उनकी सेवा में मुथतैद(तैयाि) -तीन भाइयों की पसलयााँ औि दो उनकी बहुएाँ । हरिहि काका आिाम से दालान में पड़े िहते । जजस ककसी चीज़ की इच्छा होती, आवाज़ लगाते ही हाजज़ि । वे समझ गए थे कक यह सब महंत जी क े चलते ही हो िहा है, इससलए महंत जी क े प्रघत उनक े मन में आदि औि श्रद्िा क े भाव घनिंति बढ़ते ही जा िहे थे । इिि तीनों भाई िात - भि सो नहीं सक े । भावी आशंका उनक े मन को मथती िही । पंद्रह बीिे खेत ! इस गााँव की उपजाऊ जमीन ! दो लाख से अधिक की संपवि ! अगि हाथ से घनकल गई तो किि वह कहीं क े न िहेंगे । सुबह तड़क े ही तीनों भाई पुनः ठाक ु िबािी पहुंचे । हरिहि काका क े पााँव पकड़ िोने लगे । अपनी पसलयों की गलती क े सलए माफी मााँगी तथा उन्हें दंड देने की बात कही । साथ ही खन क े रिश्ते की माया ि ै लाई । हरिहि काका का ददल पसीज गया (मु.)। वह पुनः वापस िि लौट आए । हरिहि काका का पुनः भईयों क े पास लौट आना |
  • 21. बहुत बाि ऐसा होता है कक बबना ककसी क े क ु छ बताए गााँव क े लोग असली तथ्य से थवयं वाककफ हो जाते हैं । हरिहि काका की इस िटना क े साथ ऐसा ही हुआ । दिअसल लोगों की जुबान से िटनाओं की जुबान ज्यादा पैनी (तीखी) औि असिदाि होती है । िटनाएाँ थवयं ही बहुत क ु छ कह देती हैं, लोगों क े कहने की ज़रूित नहीं िहती । न तो गााँव क े लोगों से महंत जी ने ही क ु छ कहा था औि न हरिहि काका क े भाइयों ने ही । इसक े बावजद गााँव क े लोग सच्चाई से अवगत हो गए थे । किि तो गााँव की बैठकों में बातों का जो ससलससला चल घनकला उसका कहीं कोई अंत नहीं । हि जगह उन्हीं का प्रसंग शुरू । क ु छ लोग कहते कक हरिहि को अपनी जमीन ठाक ु िजी क े नाम सलख देनी चादहए । इससे उिम औि क ु छ नहीं । इससे कीघतम भी अचल बनी िहती है । इसक े ववपिीत क ु छ लोगों की मान्यता यह थी कक भाई का परिवाि तो अपना ही होता है । अपनी जायदाद उन्हें न देना उनक े साथ अन्याय किना होगा । खन क े रिश्ते क े बीच दीवाि बनानी होगी । गााँव में चचाम का वविय – हरिहि काका
  • 22. जजतने मुाँह, उतनी बातें (मु.) । ऐसा जबिदथत मसला (मामला) पहले कभी नहीं समला था , इसीसलए लोग मौन होना नहीं चाहते थे । अपने-अपने तिीक े से समािान ढाँढ़ िहे थे औि प्रतीक्षा कि िहे थे कक िदटत हो । हालााँकक इसी िम में बातें गमामहट-भिी भी होने लगी थीं । लोग प्रत्यक्ष (सामने) औि पिोक्ष (पीठ पीछे) रूप से दो वगों में बाँटने लगे थे । कई बैठकों में दोनों वगों क े बीच आपस में त- त, मैं-मैं (मु.)भी होने लगी थी । एक वगम क े लोग चाहते थे कक हरिहि अपने दहथसे की ज़मीन ठाक ु िजी क े नाम सलख दें । तब यह ठाक ु िबािी न ससफ म इलाक े की ही सबसे बड़ी ठाक ु िबािी होगी, बजल्क पिे िाज्य में इसका मुकाबला कोई दसिी ठाक ु िबािी नहीं कि सक े गी । इस वगम क े लोग िासममक संथकािों क े लोग हैं । साथ ही ककसी न ककसी रूप में ठाक ु िबािी से जुड़े हैं । असल में सुबह-शाम जब ठाक ु िजी को भोग लगाया जाता है, तब सािु-संतों क े साथ गााँव क े क ु छ पेट औि चटोि ककथम क े लोग प्रसाद पाने क े सलए वहााँ जुट जाते हैं । ये लोग इसी वगम क े दहमायती (पक्षपाती) हैं । दसिे वगम में गााँव क े प्रगघतशील ववचािों वाले लोग तथा वैसे ककसान हैं , जजनक े यहााँ हरिहि जैसे औित-मदम पल िहे होते हैं । गााँव का वाताविण तनावपणम हो गया था औि लोग क ु छ िदटत होने की प्रतीक्षा किने लगे थे | हरिहिकाका को लेकि गााँव का दो भागों में बाँटना
  • 23. गााँव क े दो वगम एक वगम क े लोग ठाक ु िबािी क े पक्षिि थे दसिे वगम क े लोग भाईयों क े परिवाि वालों क े पक्ष में थे
  • 24. इिि भावी आशंकाओं को मद्देनजि िखते हुए हरिहि काका क े भाई उनसे यह घनवेदन किने लगे थे कक अपनी ज़मीन वे उन्हें सलख दें । उनक े ससवाय उनका औि अपना है ही कौन ? इस वविय पि हरिहि काका ने एकांत में मुझसे काफी देि तक बात की । अंततः हम इस घनष्किम पि पहुंचे कक जीते-जी अपनी जायदाद का थवामी (माशलक) ककसी औि को बनाना ठीक नहीं होगा । चाहे वह अपना भाई या मंददि का महंत ही तयों न हो ? हमें अपने गााँव औि इलाक े क े वे क ु छ लोग याद आए, जजन्होंने अपनी जजंदगी में ही अपनी जायदाद अपने उििाधिकारियों या ककसी अन्य को सलख दी थी, लेककन इसक े बाद उनका जीवन क ु िे का जीवन हो गया । कोई उन्हें पछने वाला नहीं िहा । हरिहि काका बबलक ु ल अनपढ़ व्यजतत हैं, किि भी इस बदलाव को उन्होंने समझ सलया औि यह घनश्चय ककया कक जीते-जी ककसी को जमीन नहीं सलखेंगे । अपने भाइयों को समझा ददया. मि जाऊ ाँ गा तो अपने आप मेिी ज़मीन तुम्हें समल जाएगी । जमीन लेकि तो जाऊ ाँ गा नहीं । इसीसलए सलखवाने की तया जरूित ? उिि महंत जी भी हरिहि काका की टोह (तनगाह िखना) में िहने लगे । जहााँ कहीं एकांत पाते, कह उठते- " ववलंब (िेि ) न किो हरिहि । शुभ काम में देि नहीं किते । चलकि ठाक ु िजी क े नाम ज़मीन बय (वसीयत) कि दो । किि पिी जजंदगी ठाक ु िबािी में िाज किो । मिोगे तो तुम्हािी आत्मा को ले जाने क े सलए थवगम से ववमान आएगा । देवलोक को प्राप्त किोगे ...। ' भाईयों द्वािा उनक े नाम जमीन शलखने का िवाब डाला िाना | काका एवं लेखक क े बीच काका की जमीन को लेकि बात होना |
  • 25. पि बीतते समय क े अनुसाि महंत जी की धचंताएाँ बढ़ती जा िही थीं । जाल में ि ं सी धचडड़या (मु.) पकड़ से बाहि हो गई थी , महंत जी इस बात को सह नहीं पा िहे थे । महंत जी को लग िहा था कक हरिहि िमम-संकट (CONFUSED) में पड़ गया है । एक ओि वह चाहता है कक ठाक ु िजी को सलख दाँ , ककं तु दसिी ओि भाई क े परिवाि क े माया-मोह में बाँि जाता है । इस जथथघत में हरिहि का अपहिण कि ज़बिदथती उससे सलखवाने क े अघतरितत दसिा कोई ववकल्प नहीं । बाद में हरिहि थवयं िाजी हो जाएगा । महंत जी लड़ाक औि दबंग प्रकृ घत क े आदमी हैं । अपनी योजना को कायम-रूप में परिणत (पिा) किने क े सलए वह जी-जान से जुट गए (मु.) । हालााँकक यह सब गोपनीयता (गुपचुप) का घनवामह किते हुए ही वह कि िहे थे । हरिहि काका क े भाइयों को इसकी भनक तक नहीं थी (मु.) । बात अभी हाल की ही है । आिी िात क े आस-पास ठाक ु िबािी क े सािु-संत औि उनक े पक्षिि भाला, गंडासा औि बंदक से लैस (भिकि) एकाएक हरिहि काका क े दालान पि आ िमक े । हरिहि काका क े भाई इस अप्रत्यासशत हमले क े सलए तैयाि नहीं थे । इससे पहले कक वे जवाबी कािमवाई किें औि गुहाि लगाकि अपने लोगों को जुटाएाँ , तब तक आिमणकािी उनको पीठ पि लादकि चंपत हो गए (मु.) । • (21. आकजथमक) घटना घट – हरिहि काका का अपहिण महंत िी क े लोगों द्वािा लेककन हरिहि काका न ' हााँ ' कहते औि न ' ना ' । 'ना' कहकि वे महंत जी को दुखी किना नहीं चाहते थे तयोंकक भाई क े परिवाि से जो सुख-सुवविाएाँ उन्हें समल िही थीं, वे महंत जी की कृ पा से ही । औि 'हााँ' तो उन्हें कहना है नहीं, तयोंकक अपनी जजंदगी में अपनी जमीन उन्हें ककसी को नहीं सलखनी । इस मुद्दे पि वे जागरूक हो गए थे । भाला गंडासा
  • 26. गााँव में ककसी ने ऐसी िटना नहीं देखी थी, न सुनी ही थी । सािा गााँव जाग गया । शुभधचंतक (well-wishers) तो उनक े यहााँ जुटने लगे, लेककन अन्य लोग अपने दालान औि मकान की छतों पि जमा होकि आहट लेने औि बातचीत किने लगे । हरिहि काका क े भाई लोगों क े साथ उन्हें ढाँढ़ने घनकले । उन्हें लगा कक यह महंत का काम है । वे मय दल-बल ठाक ु िबािी जा पहुाँचे । वहााँ खामोशी औि शांघत नज़ि आई । िोज की भााँघत ठाक ु िबािी का मुख्य िाटक बंद था । वाताविण में िात का सन्नाटा औि सनापन व्याप्त समला । उन्हें लगा, यह काम महंत का नहीं, बाहि क े डाक ु ओं का है । वे तो हिजाने (Ransom) की मोटी िकम लेकि ही हरिहि काका को मुतत किेंगे । खोज में घनकले लोग ककसी दसिी ददशा की ओि प्रथथान किते कक इसी समय ठाक ु िबािी क े अंदि से बातचीत किने की सजम्मसलत, ककं तु िीमी आवाज़ सुनाई पड़ी । सबक े कान खड़े हो गए (मु.) । उन्हें यकीन हो गया कक हरिहि काका इसी में हैं । अब तया सोचना ? वे ठाक ु िबािी का िाटक पीटने लगे । इसी समय भाईयों का ठाक ु िबाि पहुंचना
  • 27. ठाक ु िबािी की छत से िोड़े औि पत्थि उनक े ऊपि धगिने लगे । वे घतति-बबति होने लगे (मु.)। अपने हधथयाि साँभाले । लेककन हधथयाि संभालने से पहले ही ठाक ु िबािी क े कमिों की खखड़ककयों से िायरिंग शुरू हो गई । एक नौजवान क े पैि में गोली लग गई । वह धगि गया । उसक े धगिते ही हरिहि काका क े भाइयों क े पक्षिि भाग चले । ससफ म वे तीनों भाई बचे िह गए । अपने तीनों क े बते (बल पि) इस युद्ि को जीतना उन्हें संभव नहीं जान पड़ा । इसीसलए वे कथबे क े पुसलस थाने की ओि दौड़ पड़े । इिि ठाक ु िबािी क े भीति महंत औि उनक े क ु छ चंद ववश्वासी सािु सादे (plain) औि सलखे कागज़ों पि अनपढ़ हरिहि काका क े अंगठे क े घनशान जबिन (िबििथती) ले िहे थे । हरिहि काका तो महंत क े इस व्यवहाि से जैसे आसमान से जमीन में आ गए थे । उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कक महंत जी इस रूप में भी आएंगे । जजस महंत को वह आदिणीय एवं श्रद्िेय समझते थे, वह महंत अब उन्हें िृखणत, (घृणा योग्य) दुिाचािी औि पापी नज़ि आने लगा था । अब वह उस महंत की सित भी देखना नहीं चाहते थे । अब अपने भाइयों का परिवाि महंत की तुलना में उन्हें ज्यादा पववत्र, नेक औि अच्छा लगने लगा था । हरिहि काका ठाक ु िबािी से अपने िि पहुाँचने क े सलए बेचैन थे । लेककन लोग उन्हें पकड़े हुए थे औि महंत जी उन्हें समझा िहे थे- " तुम्हािे भले क े सलए ही यह सब ककया गया हरिहि । अभी तुम्हें लगेगा कक हम लोगों ने तुम्हािे साथ ज़ोि - ज़बिदथती की, लेककन बाद में तुम समझ जाओगे कक जजस िमम-संकट में तुम पड़े थे, उससे उबािने क े सलए यही एकमात्र िाथता था ... ! " महंत औि उनक े साधथयों द्वािा हरिहि काका क े साथ ज़मीन को लेकि बदसलकी किना, उनका असली रूप उनक े सामने आना |
  • 28. एक ओि ठाक ु िबािी क े भीति जबिन अाँगठे का घनशान लेने औि पकड़कि समझाने का कायम चल िहा था तो दसिी ओि हरिहि काका क े तीनों भाई सुबह होने से पहले ही पुसलस की जीप क े साथ ठाक ु िबािी आ पहुंचे । जीप से तीनों भाई , एक दिोगा औि पुसलस क े आठ जवान उतिे । पुसलस इंचाजम ने ठाक ु िबािी क े िाटक पि आवाज़ लगाई । ' दथतक दी । लेककन अंदि से कोई जवाब नहीं । अब पुसलस क े जवानों ने ठाक ु िबािी क े चािों तिफ िेिा डालना शुरू ककया । ठाक ु िबािी अगि छोटी िहती तो पुसलस क े जवान आसानी से उसे िेि लेते, लेककन ववशालकाय ठाक ु िबािी को पुसलस क े सीसमत जवान िेि सकने में असमथम साबबत हो िहे थे । किि भी जजतना संभव हो सका, उस रूप में उन्होंने िेिा डाल ददया औि अपना-अपना मोचाम संभाल सुबह की प्रतीक्षा किने लगे । हरिहि काका क े भाइयों ने सोचा था कक जब वे पुसलस क े साथ ठाक ु िबािी पहुंचेंगे तो ठाक ु िबािी क े भीति से हमले होंगे औि सािु - संत िंगे हाथों पकड़ सलए (मु.) जाएंगे । लेककन ऐसा आते हुए उन्होंने देख सलया था । क ु छ भी नहीं हुआ । ठाक ु िबािी क े अंदि से एक िोड़ा भी बाहि नहीं आया । शायद पुसलस को आते हुए उन्होंने देख सलया था | सुबह होने में अभी क ु छ देि थी, इससलए पुसलस इंचाजम िह-िहकि ठाक ु िबािी का िाटक खोलने तथा सािु-संतों को आत्मसमपमण (surrender) किने क े सलए आवाज़ लगा िहे थे । साथ ही पुसलस वगम की ओि से हवाई िायि भी ककए जा िहे थे, लेककन ठाक ु िबािी की ओि से कोई जवाब नहीं आ िहा था । भाईयों का पुसलस को लेकि ठाक ु िबािी पहुाँचाना
  • 29. सुबह तड़क े एक वृद्ि सािु ने ठाक ु िबािी का िाटक खोल ददया । उस सािु की उम्र अथसी विम से अधिक की होगी । वह लाठी क े सहािे कााँपते हुए खड़ा था । पुसलस इंचाजम ने उस वृद्ि सािु क े पास पहुाँच हरिहि काका तथा ठाक ु िबािी क े महंत , पुजािी एवं अन्य सािुओं क े बािे में पछा । लेककन उसने क ु छ भी बताने से इंकाि कि ददया । पुसलस इंचाजम ने कई बाि उससे पछा । डााँट लगाई, िमककयााँ दी, लेककन हि बाि एक ही वातय कहता , " मुझे क ु छ मालम नहीं । " ऐसे वतत पुसलस क े लोग माि-पीट का सहािा लेकि भी बात उगलवाते हैं । लेककन उस सािु की वय (आयु) देखकि पुसलस इंचाजम को महदटया (नजि अंिाज कि िेना ) जाना पड़ा ।
  • 30. पुसलस इंचाजम क े नेतृत्व में पुसलस क े जवान ठाक ु िबािी की तलाशी लेने लगे । लेककन न तो ठाक ु िबािी क े नीचे क े कमिों में ही कोई पाया गया औि न छत क े कमिों में ही । पुसलस क े जवानों ने खब छान-बीन की, उस वृद्ि सािु क े अलावा कोई दसिा ठाक ु िबािी में नहीं समला । हरिहि काका क े भाई धचंता, पिेशानी औि दुखद आश्चयम से घिि गए । ठाक ु िबािी क े महंत औि सािु-संत हरिहि काका को लेकि कहााँ भाग गए ? अब तया होगा ? काफी पैसे खचम कि पुसलस को लाए थे । पुसलस क े साथ आने क े बाद वह अंदि ही अंदि गवम महसस कि िहे थे । उन्हें लग िहा था कक अब भाई को वे आसानी से िि ले जाएाँगे तथा सािु-संतों को जेल सभजवा देंगे । लेककन दोनों में से एक भी नहीं हुआ । ठाक ु िबािी क े जो कमिे खुले थे, उनकी तलाशी पहले ली गई थी । बाद में जजन कमिों की धचटककनी बंद थी, उन्हें भी खोलकि देखा गया था । एक कमिे क े बाहि बड़ा-सा ताला लटक िहा था । पुसलस औि हरिहि काका क े भाई सब वहीं एकत्र हो गए । उस कमिे की क ुं जी (चाबी) की मााँग वृद्ि सािु से की गई तो उसने साफ कह ददया, " मेिे पास नहीं । " जब उससे पछा गया, " इस कमिे में तया है ? " तब उसने जवाब ददया , " अनाज है । " पुसलस इंचाजम अभी यह सोच ही िहे थे कक इस कमिे का ताला तोड़कि देखा जाए या छोड़ ददया जाए कक अचानक उस कमिे क े दिवाजे को भीति से ककसी ने ितका देना शुरू ककया । पुसलस क े जवान साविान हो गए । (22. उम्र 23. टाल जाना / नजिअंदाज कि देना) पुशलस का भ्रष्ट रूप दिखाई िेना भाईयों द्वािा हरिहि काका की जमीन को लेकि चचंततत होना |
  • 31. 12 ताला तोड़कि कमिे का दिवाजा खोला गया । कमिे क े भीति हरिहि काका जजस जथथघत में समले , उसे देखकि उनक े भाइयों का खन खौल उठा । उस वतत अगि महंत , पुजािी या अन्य नौजवान सािु उन्हें नज़ि आ जाते तो वे जीते - जी उन्हें नहीं छोड़ते । हरिहि काका क े हाथ औि पााँव तो बााँि ही ददए गए थे, उनक े मुाँह में कपड़ा ठाँसकि बााँि ददया गया था । हरिहि काका ज़मीन पि लुढ़कते हुए दिवाजे तक आए थे औि पैि से दिवाजे पि ितका लगाया था । काका को बंिनमुतत ककया गया, मुाँह से कपड़े घनकाले गए । हरिहि काका ने ठाक ु िबािी क े महंत, पुजािी औि सािुओं की काली किततों का पिदाफाश किना शुरू ककया कक वह सािु नहीं, डाक, हत्यािे औि कसाई (BUTCHER) हैं, कक उन्हें इस रूप में कमिे में बंद कि गुप्त दिवाज़े से भाग गए, कक उन्होंने कई सादे औि सलखे हुए कागज़ों पि जबिन उनक े अंगठे क े घनशान सलए ... आदद । हरिहि काका का बुि हालत में शमलना
  • 32. 13 हरिहि काका ने देि तक अपने बयान दजम किाए । उनक े शब्द-शब्द से सािुओं क े प्रघत नफित औि िृणा व्यतत हो िही थी। जीवन में कभी ककसी क े खखलाफ उन्होंने इतना नहीं कहा होगा जजतना ठाक ु िबािी क े महंत, पुजािी औि सािुओं क े बािे में कहा । अब हरिहि काका पुनः अपने भाइयों क े परिवाि क े साथ िहने लगे थे । इस बाि उन्हें दालान पि नहीं, िि क े अंदि िखा गया था-ककसी बहुमल्य वथतु की तिह साँजोकि, घछपाकि । उनकी सुिक्षा क े सलए रिश्ते-नाते में जजतने 'सिमा' थे, सबको बुला सलया गया था । हधथयाि जुटा सलए गए थे । चौबीसों िंटे पहिे ददए जाने लगे थे । अगि ककसी आवश्यक कायमवश काका िि से गााँव में घनकलते तो चाि - पााँच की संख्या में हधथयािों से लैस लोग उनक े आगे - पीछे चलते िहते । िात में चािों तिफ से िेिकि सोते । भाइयों ने ड्यटी बााँट ली थी । आिे लोग सोते तो आिे लोग जागकि पहिा देते िहते । ठाक ु िबाि क े महंत एवं पुिाि की काल किततों का हरिहि काका द्वािा पिाफफ़ाि ककया गया | भाईयों द्वािा सुिक्षा प्रिान ककया िाना
  • 33. इिि ठाक ु िबािी का दृश्य भी बदल गया था । एक से एक खखाि लोग ठाक ु िबािी में आ गए थे । उन्हें देखकि ही डि लगता था । गााँव क े बच्चों ने तो ठाक ु िबािी की ओि जाना ही बंद कि ददया । हरिहि काका को लेकि गााँव प्रािंभ से ही दो वगों में बाँट गया था । इस नयी िटना को लेकि दोनों तिफ से प्रघतकियाएाँ व्यतत की जाने लगी थीं । औि अब हरिहि काका एक सीिे-सादे औि भोले ककसान की अपेक्षा चतुि औि ज्ञानी हो चले थे । वह महसस किने लगे थे कक उनक े भाई अचानक उनको जो आदि-सम्मान औि सुिक्षा प्रदान किने लगे हैं, उसकी वजह उन लोगों क े साथ उनका सगे भाई का संबंि नहीं, बजल्क उनकी जायदाद है, अन्यथा वे उनको पछते तक नहीं । इसी गााँव में जायदादहीन भाई को कौन पछता है ? हरिहि काका को अब सब नज़ि आने लगा था ! महत की धचकनी चुपड़ी बातों (मु.) क े भीति की सच्चाई भी अब वह जान गए थे । ठाक ु िजी क े नाम पि वह अपना औि अपने जैसे सािुओं का पेट पालता है । उसे िमम औि पिमाथम से कोई मतलब नहीं । घनजी थवाथम क े सलए सािु होने औि पजा-पाठ किने का ढोंग िचाया है । सािु क े बाने (भेर्ष) में महंत , पुजािी औि उनक े अन्य सहयोगी लोभी-लालची औि क ु कमी हैं । ककसी भी तिह िन अजजमत कि बबना परिश्रम ककए आिाम से िहना चाहते हैं । अपने िृखणत इिादों को घछपाने क े सलए ठाक ु िवािी को इन्होंने माध्यम बनाया है । एक ऐसा माध्यम जजस पि अववश्वास न ककया जा सक े । इसीसलए हरिहि काका ने मन ही मन तय कि सलया कक अब महंत को वे अपने पास िटकने तक नहीं देंगे । साथ ही अपनी जजंदगी में अपनी जायदाद भाइयों को भी नहीं सलखेंगे , अन्यथा किि वह दि की मतखी हो जाएंगे((मु.) । लोग घनकालकि ि ें क देंगे । कोई उन्हें पछेगा तक नहीं । बुढ़ापे का दुख बबताए नहीं बीतेगा ! (युजतत / बुद्धि) ठाक ु िबाि से हरिहि काका को घृणा
  • 34. लेककन हरिहि काका सोच क ु छ औि िहे थे औि वाताविण क ु छ दसिा ही तैयाि हो िहा था । ठाक ु िबािी से जजस ददन उन्हें वापस लाया गया था, उसी ददन से उनक े भाई औि रिश्ते - नाते क े लोग समझाने लगे थे कक ववधिवत अपनी जायदाद वे अपने भतीजों क े नाम सलख दें । वह जब तक ऐसा नहीं किेंगे तब तक महंत की धगद्ि-दृजष्ट (बुि नजि) उनक े ऊपि लगी िहेगी । ससि पि माँडिा िहे तफान से मुजतत पाने क े सलए उनक े समक्ष अब यही एकमात्र िाथता है ...। सुबह, दोपहि, शाम, िात गए तक यही चचाम । लेककन हरिहि काका साफ नकाि जाते । कहते - " मेिे बाद तो मेिी जायदाद इस परिवाि को थवत: समल जाएगी इसीसलए सलखने का कोई अथम नहीं । महंत ने अंगठे क े जो जबिन घनशान सलए हैं, उसक े खखलाि मुकदमा हमने ककया ही है ...। " भाई जब समझाते-समझाते हाि गए तब उन्होंने डााँटना औि दबाव देना शुरू ककया । लेककन काका इस िाथते भी िाजी नहीं हुए । थपष्ट कह ददया कक अपनी जजंदगी में वह नहीं सलखेंगे । बस, एक िात उनक े भाइयों ने वही रूप िािण कि सलया, जो रूप महंत औि उनक े सहयोधगयों ने िािण ककया था । हरिहि काका को अपनी आाँखों पि ववश्वास नहीं हुआ । उनक े वही अपने सगे भाई, जो उनकी सेवा औि सुिक्षा में तैयाि िहते थे, उन्हें अपना असभन्न समझते थे, जो उनकी नींद ही साते औि जागते थे, हधथयाि लेकि उनक े सामने खड़े थे । कह िहे थे - " सीिे मन से कागज़ों पि जहााँ- जहााँ ज़रूित है, अंगठे क े घनशान बनाते चलो अन्यथा मािकि यहीं िि क े अंदि गाड़ देंगे । गााँव क े लोगों को कोई सचना तक नहीं समलने पाएगी । " पुनः हरिहि काका पि ज़मीन भाईयों को देने क े सलए दवाब डाला जाना
  • 35. अगि पहले वाली बात होती तो हरिहि काका डि जाते । अज्ञान की जथथघत में ही मनुष्य मृत्यु से डिते हैं । ज्ञान होने क े बाद तो आदमी आवश्यकता पड़ने पि मृत्यु को विण किने क े सलए तैयाि हो जाता है । हरिहि काका ने सोच सलया कक ये सब एक ही बाि उन्हें माि दें, वह ठीक होगा । लेककन अपनी जमीन सलखकि िमेसि की वविवा की तिह शेि जजंदगी वे िुट - िुटकि मिें , यह ठीक नहीं होगा । िमेसि की वविवा को बहला - ि ु सलाकि उसक े दहथसे की ज़मीन िमेसि क े भाइयों ने सलखवा ली । शुरू में तो उसका खब आदि- मान ककया , लेककन बुढ़ापे में उसे दोनों जन(समय) खाना देते उन्हें अखिने लगा । अंत में तो उसकी वह दुगमघत हुई कक गााँव क े लोग देखकि ससहि जाते (बुि तिह से घबिाना िाना ) । हरिहि काका को लगता है कक अगि िमेसि की ववधवा ने अपनी जमीन नहीं सलखी होती तो अंत समय तक लोग उसक े पााँव पखािते (मु.) होते । हरिहि काका गुथसे में खड़े हो गए औि गिजते हुए कहा , " मैं अक े ला हाँ ... तुम सब इतने हो ! ठीक है , मुझे माि दो ... मैं मि जाऊ ाँ गा , लेककन जीते - जी एक िि जमीन भी तुम्हें नहीं सलखगा ... तुम सब ठाक ु िबािी क े महंत - पुजािी से तघनक भी कम नहीं ... ! " " देखते हैं , क ै से नहीं सलखोगे ? सलखना तो तुम्हें है ही , चाहे हाँस क े सलखो या िो क े ...।
  • 36. हरिहि काका क े साथ उनक े भाइयों की हाथापाई (मािपीट) शुरू हो गई । हरिहि काका अब उस िि से घनकलकि बाहि गााँव में भाग जाना चाहते थे, लेककन उनक े भाइयों ने उन्हें मजबती से पकड़ सलया था । प्रघतकाि (वविोध) किने पि अब वे प्रहाि (मािना) भी किने लगे थे । अक े ले हरिहि कई लोगों से जझ सकने में असमथम थे, िलथवरूप उन्होंने अपनी िक्षा क े सलए खब ज़ोि-ज़ोि से धचल्लाना शुरू कि ददया । अब भाइयों को चेत (होि) आया कक मुाँह तो उन्हें पहले ही बंद कि देना चादहए था । उन्होंने तत्क्षण उन्हें पटक उनक े मुाँह में कपड़ा ठाँस ददया । लेककन ऐसा किने से पहले ही काका की आवाज़ गााँव में पहुंच गई थी । टोला - पड़ोस क े लोग दालान में जुटने (आने) लगे थे । ठाक ु िबािी क े पक्षििों क े माध्यम से तत्काल यह खबि महंत जी तक भी चली गई थी । लेककन वहााँ उपजथथत हरिहि काका क े परिवाि औि रिश्ते-नाते क े लोग, गााँव क े लोगों को समझा देते कक अपने परिवाि का घनजी मामला है, इससे दसिों को तया मतलब ? लेककन महंत जी ने वह तत्पिता औि ि ु िती ददखाई जो काका क े भाइयों ने भी नहीं ददखाई थी । वह पुसलस को जीप क े साथ आ िमक े । भाईयों द्वािा भी महंत वाला रूप धािण कि लेना
  • 37. बंिनमुतत होने औि पुसलस की सुिक्षा पाने क े बाद उन्होंने बताया कक उनक े भाइयों ने उनक े साथ बहुत ज़ुल्म-अत्याचाि ककया है, कक जबिन अनेक कागजों पि उनक े अाँगठे क े घनशान सलए हैं, कक उन्हें खब मािा-पीटा है, कक उनकी कोई भी दुगमघत बाकी नहीं छोड़ी है, कक अगि औि थोड़ी देि तक पुसलस नहीं आती तो वह उन्हें जान से माि देते....। हरिहि काका क े पीठ, माथे औि पााँवों पि कई जगह ज़ख्म क े घनशान उभि आए थे। वह बहुत िबिाए हुए-से लग िहे थे। कााँप िहे थे। अचानक धगि कि बेहोश हो गए। मुाँह पि पानी छींटकि उन्हें होश में लाया गया। भाई औि भतीजे तो पुसलस आते ही चंपत हो गए थे। पुसलस की पकड़ में रिश्ते क े दो व्यजतत आए। रिश्ते क े शेि लोग भी फिाि हो गए थे....। हरिहि काका का िबिाकि बेहोश हो जाना
  • 38. हरिहि काका क े साथ िटी िटनाओं में यह अब तक की सबसे अंघतम िटना है। इस िटना क े बाद काका अपने परिवाि से एकदम अलग िहने लगे हैं। उनकी सुिक्षा क े सलए िाइिलिािी पुसलस क े चाि जवान समले हैं। हालााँकक इसक े सलए उनक े भाइयों औि महंत की ओि से काफी प्रयास ककए गए हैं। असल में भाइयों को धचंता थी कक हरिहि काका अक े ले िहने लगेंगे, तब ठाक ु िबािी क े महंत अपने लोगों क े साथ आकि पुनः उन्हें ले भागेंगे। औि यही धचंता महंत जी को भी थी कक हरिहि को अक े ला औि असुिक्षक्षत पा उनक े भाई पुनः उन्हें िि दबोचेंगे। इसीसलए जब हरिहि काका ने अपनी सुिक्षा क े सलए पुसलस की मााँग की तब नेपथ्य में िहकि ही उनक े भाइयों औि महंत जी ने पैिवी( speak in support of) लगा औि पैसे खचम कि उन्हें पिी सहायता पहुाँचाई। यह उनकी सहायता का ही परिणाम है कक एक व्यजतत की सुिक्षा क े सलए गााँव में पुसलस क े चाि जवान तैनात कि ददए गए हैं। हरिहि काका की कहानी की अंघतम िटना
  • 39. उनकी सुिक्षा क े शलए पुशलस तैनात होना
  • 40. जहााँ तक मैं समझता हाँ, किलहाल हरिहि काका पुसलस की सुिक्षा में िह ज़रूि िहे हैं, लेककन वाथतववक सुिक्षा ठाक ु िबािी औि अपने भाइयों की ओि से ही समल िही है । ठाक ु िबािी क े सािु - संत औि काका क े भाई इस बात क े प्रघत पिी तिह सतक म हैं कक उनमें से कोई या गााँव का कोई अन्य हरिहि काका क े साथ जोि - ज़बिदथती न किने पाए । साथ ही अपना सद्भाव औि मिुि व्यवहाि प्रकट कि पुनः उनका ध्यान अपनी ओि खींच लेने क े सलए दोनों दल प्रयत्नशील हैं । गााँव में एक नेता जी हैं, वह न तो कोई नौकिी किते हैं औि न खेती - गृहथथी , किि भी बािहों महीने मौज़ उड़ाते िहते हैं । िाजनीघत की जादुई छड़ी उनक े पास है । उनका ध्यान हरिहि काका की ओि जाता है । वह तत्काल गााँव क े क ु छ ववसशष्ट लोगों क े साथ उनक े पास पहुाँचते हैं औि यह प्रथताव िखते हैं कक उनकी जमीन में ' हरिहि उच्च ववद्यालय ' नाम से एक हाई थकल खोला जाए । इससे उनका नाम अमि हो जाएगा । उनकी जमीन का सही उपयोग होगा औि गााँव क े ववकास क े सलए एक थकल समल जाएगा । लेककन हरिहि काका क े ऊपि तो अब कोई भी दसिा िंग चढ़ने वाला (मु.) नहीं था । नेता जी भी घनिाश होकि लौट आते हैं । गााँव क े नेताजी का ध्यान हरिहि काका की ज़मीन पि पड़ना
  • 41. इन ददनों गााँव की चचामओं क े क ें द्र हैं हरिहि काका । आाँगन , खेत , खसलहान , अलाव , बगीचे , बिगद हि जगह उनकी ही चचाम । उनकी िटना की तिह ववचािणीय औि चचमनीय कोई दसिी िटना नहीं । गााँव में आए ददन छोटी - बड़ी िटनाएाँ िटती िहती हैं, लेककन काका क े प्रसंग क े सामने उनका कोई अजथतत्व नहीं । गााँव में जहााँ कहीं औि जजन लोगों क े बीच हरिहि काका की चचाम घछड़ती है तो किि उसका कोई अंत नहीं । लोग तिह - तिह की संभावनाएाँ व्यतत किते हैं- " िाम जाने तया होगा ? दोनों ओि क े लोगों ने अंगठे क े घनशान ले सलए हैं । लेककन हरिहि ने अपना बयान दजम किाया है कक वे दोनों लोगों में से ककसी को अपनी ज़मीन का उििाधिकािी नहीं मानते हैं । दोनों ओि क े लोगों ने जबिन उनक े अंगठे क े घनशान सलए हैं । इस जथथघत में उनक े बाद उनकी जायदाद का हकदाि कौन होगा ? " लोगों क े बीच बहस घछड़ जाती है । उििाधिकािी क े कानन पि जो जजतना जानता है , उससे दस गुना अधिक उगल देता है । किि भी कोई समािान नहीं घनकलता । िहथय खत्म नहीं होता , आशंकाएाँ बनी ही िहती हैं । लेककन लोग आशंकाओं को नज़िअंदाज कि अपनी पक्षििता शुरू कि देते हैं कक उििाधिकाि ठाक ु िबािी को समलता तो ठीक िहता । दसिी ओि क े लोग कहते कक हरिहि क े भाइयों को समलता तो ज्यादा अच्छा िहता । पिे गााँव में एक ही चचाम – हरिहि काका
  • 42. ठाक ु िबािी क े सािु - संत औि काका क े भाइयों ने कब तया कहा, यह खबि बबजली की तिह एक ही बाि समचे गााँव में ि ै ल जाती है । खबि झठी है कक सच्ची, इस पि कोई ध्यान नहीं देता । जजसे खबि हाथ लगती है, वह नमक-समचम समला उसे चटकाकि आगे बढ़ा देता है ।
  • 43. एक तीसिी खबि आती है कक हरिहि काका की मृत्यु क े बाद उनकी जमीन पि कब्जा किने क े सलए उनक े भाई अभी से तैयािी कि िहे हैं । इलाक े क े मशहि डाक बुटन ससंह से उन लोगों ने बातचीत पतकी कि ली है । हरिहि क े पंद्रह बीिे खेत में से पााँच बीिे बुटन लेगा औि दखल (Get it registered in their name) किा देगा । इससे पहले भी इस तिह क े दो-तीन मामले बुटन ने घनपटाए हैं । पिे इलाक े में उसक े नाम की तती बोलती (मु.) है । हरिहि काका को लेकि खबिों का बाज़ाि गिम
  • 44. 18 िहथयात्मक औि भयावनी खबिों से गााँव का आकाश आच्छाददत (भि गया था ) हो गया है । ददन-प्रघतददन आतंक (डि) का माहौल गहिाता जा िहा है । सबक े मन में यह बात है कक हरिहि कोई अमृत पीकि तो आए हैं नहीं । एक न एक ददन उन्हें मिना ही है । किि एक भयंकि तफान की चपेट में यह गााँव आ जाएगा । उस वतत तया होगा, क ु छ कहा नहीं जा सकता । यह कोई छोटी लड़ाई नहीं, एक बड़ी लड़ाई है । जाने-अनजाने पिा गााँव इसकी चपेट में आएगा ही...। इसीसलए लोगों क े अंदि भय भी है औि प्रतीक्षा भी। एक ऐसी प्रतीक्षा जजसे झुठलाकि भी उसक े आगमन को टाला नहीं जा सकता । गाूँव वालों को काका क े मिने का इंतिाि
  • 45. औि हरिहि काका ! वह तो बबलक ु ल मौन हो अपनी जजंदगी क े शेि ददन काट िहे हैं । एक नौकि िख सलया है, वही उन्हें बनाता-खखलाता है । उनक े दहथसे की जमीन में जजतनी िसल होती है, उससे अगि वह चाहते तो मौज की जजंदगी बबता सकते थे । लेककन वह तो गंगेपन का सशकाि हो गए हैं । कोई बात कहो, क ु छ पछो, कोई जवाब नहीं । खुली आाँखों से बिाबि आकाश को घनहािा किते हैं । कोई बात नहीं । सािे गााँव क े लोग उनक े बािे में बहुत क ु छ कहते-सुनते हैं, लेककन उनक े पास अब कहने क े सलए कोई बात नहीं | काका की घनिाशाजनक जथथघत
  • 46. पुसलस क े जवान हरिहि काका क े खचे पि ही खब मौज - मथती से िह िहे हैं । जजसका िन वह िहे उपास, खाने वाले किें ववलास (मु.-जजसकी िन-दौलत है, वह तो अपने िन का उपयोग नहीं कि पा िहा है लेककन दसिे लोग मौज-मथती कि िहे है )। अब तक जो नहीं खाया था, दोनों जन उसका भोग लगा िहे हैं ।
  • 47. इस कहानी को पढ़कि ऐसा लगता है कक समाज में जजतने भी रिश्ते हैं वे थवाथम पि आिारित हैं। महंत ने हरिहि काका की आवभगत इससलए की तयोंकक वह उनकी जमीन हड़पना चाहता था। हरिहि काका क े भाइयों ने उनकी दोबािा इज्जत किनी शुरु कि दी तयोंकक वे पंद्रह बीिे जमीन को अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे। गााँव में ऐसे कई प्रकिण पहले भी हो चुक े थे। िन दौलत क े आगे खन क े रिश्ते भी िीक े पड़ने लगते हैं। यह कहानी यह उजतत ससद्ि किती है --- ‘बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया |’