This presentation is on Hindi poem Parvat Pradesh Main Pavas
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And it is a ppt in which you will get to know about nature in the mountains,valleys and how do the poet compares it with all the things which we all humans do.
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Hindi presentation
1.
2. कवि ने इस कविता में प्रकृ तत का ऐसा िर्णन ककया है कक लग रहा है कक प्रकृ तत सजीि हो
उठी है। कवि कहता है कक िर्ाण ऋतु में प्रकृ तत का रूप हर पल बदल रहा है कभी िर्ाण होती
है तो कभी धूप तनकल आती है। पिणतों पर उगे हजारों फू ल ऐसे लग रहे है जैसे पिणतों की आँखे
हो और िो इन आँखों के सहारे अपने आपको अपने चरर्ों ने फै ले दपणर् रूपी तालाब में देख
रहे हों। पिणतो से गगरते हुए झरने कलकल की मधुर आिाज कर रहे हैं जो नस नस को
प्रसन्नता से भर रहे हैं। पिणतों पर उगे हुए पेड़ शाांत आकाश को ऐसे देख रहे हैं जैसे िो उसे
छू ना चाह रहे हों। बाररश के बाद मौसम ऐसा हो गया है कक घनी धुांध के कारर् लग रहा है
मानो पेड़ कही उड़ गए हों अर्ाणत गायब हो गए हों,चारों ओर धुँआ होने के कारर् लग रहाहै
कक तालाब में आग लग गई है। ऐसा लग रहा है कक ऐसे मौसम में इांद्र भी अपना बादल रूपी
विमान ले कर इधर उधर जादू का खेल ददखता हुआ घूम रहा है।
3. प्रस्तुत पदयाांश हमारी दहांदी की पाठ्य पुस्तक
'स्पशण - भाग 2' से ललया गया है। इसके कवि 'सुलमत्रानांदन
पांत जी 'हैं। इसमें कवि ने िर्ाण ऋतु का सुांदर िर्णन ककया
है।
कवि कहता है कक पिणतीय क्षेत्र में िर्ाण ऋतु का
प्रिेश हो गया है। जजसकी िजह से प्रकृ तत के रूप में बार
बार बदलाि आ रहा है अर्ाणत कभी बाररश होती है तो
कभी धूप तनकल आती है।
4. प्रस्तुत पदयाांश हमारी दहांदी की पाठ्य पुस्तक 'स्पशण - भाग 2'
से ललया गया है। इसके कवि 'सुलमत्रानांदन पांत जी 'हैं। इसमें कवि ने
पिणतों का सजीि गचत्रर् ककया है।
इस पदयाांश में कवि ने पहाड़ों के आकार की तुलना करघनी
अर्ाणत कमर में बाांधने िाले आभूर्र् से की है । कवि कहता है कक
करघनी के आकर िाले पहाड़ अपनी हजार पुष्प रूपी आांखें फाड़ कर
नीचे जल में अपनेविशाल आकार को देख रहे हैं।ऐसा लग रहा है कक
पहाड़ ने जजस तालाब को अपने चरर्ों में पाला है िह तालाब पहाड़ के
ललए विशाल आईने का काम कर रहा है।
5. प्रस्तुत पदयाांश हमारी दहांदी की पाठ्य पुस्तक 'स्पशण - भाग 2' से ललया गया
है। इसके कवि 'सुलमत्रानांदन पांत जी 'हैं। इसमें कवि ने झरनों की सुांदरता का िर्णन
ककया है।
इस पदयाांश में कवि कहता है कक मोततयों की लडड़यों के समान सुांदर झरने
झर झर की आिाज करते हुए बह रहे हैं,ऐसा लग रहा है की िे पहाड़ों का गुर्गान कर
रहे हों। उनकी करतल ध्ितन नस नस में उत्साह अर्िा प्रसन्नता भर देती है।पहाड़ों के
हृदय से उठ-उठ कर अनेकों पेड़ ऊँ च्चा उठने कीइच्छा ललए एक टक दृजष्ट से जस्र्र हो
कर शाांत आकाश को इस तरह देख रहे हैं, मनो िो ककसी गचांता में डूबे हुए हों। अर्ाणत
िे हमें तनरन्तर ऊँ च्चा उठने की प्रेरर्ा दे रहे हैं।
6. प्रस्तुत पदयाांश हमारी दहांदी की पाठ्य पुस्तक 'स्पशण - भाग 2' से ललया गया
है। इसके कवि 'सुलमत्रानांदन पांत जी 'हैं। इसमें कवि ने बाररश के कारर् प्रकृ तत का
बबल्कु ल बदला हुआ रूप दशाणया है।
इस पदयाांश में कवि कहता है कक तेज बाररश के बाद मौसम ऐसा हो गया
है कक घनी धुांध के कारर् लग रहा है मानोपेड़ कही उड़ गए हों अर्ाणत गायब हो गए
हों। ऐसा लग रहा है कक पूरा आकाश ही धरती पर आ गया हो के िल झरने की
आिाज़ ही सुनाई दे रही है। प्रकृ तत का ऐसा भयानक रूप देख कर शाल के पेड़ डर
कर धरती के अांदर धांस गए हैं। चारों ओर धुँआ होने के कारर् लग रहा है कक तालाब
में आग लग गई है।ऐसा लग रहा है कक ऐसे मौसम में इांद्र भी अपना बादल रूपी
विमान ले कर इधर उधर जादू का खेल ददखता हुआ घूम रहा है।