3. आज वन में समस्त ब्रज नारी उमंग से भरी हैं। ग्ननग्नित ही हर्षोल्लास
से सब सखियााँ गुणsurगान कर रही हैं एवं प्राण प्यारी श्री स्वाग्नमनी
जी [श्री राधा] झूला झूल रही हैं। [1]एक सिी फ
ू ल की सेवा कर
रही है, फ
ू लों को लाकर श्री राधा क
े ऊपर सजा रही है, एक सिी
उन दोनों को अपलक ग्ननहार रही है। एक सिी श्री क
ृ ष्ण की तरफ
भाग कर जा रही है और उन्हें गले से लगा रही है। [2]श्री ग्नप्रया
ग्नप्रयतम क
े अंगों पर नीले और पीले वस्त्र हैं एवं ग्नवग्नभन्न प्रकार क
े
ग्नश्रंगार से सजे हैं। श्री सूरदास कहते हैं, "परम क
ृ पालु स्वाग्नमनी
भाग्नमनी [श्री राधा] सुर [क
ृ ष्ण] संग ग्नवलास कर रही हैं, एवं यह दोनों
एक क्षण को भी अलग नहीं होते।" [3]
आज वन में समस्त ब्रज नारी उमंग से भरी हैं। नननित ही
हर्षोल्लास से सब सखिर्ााँ गुणsurगान कर रही हैं एवं प्राण
प्यारी श्री स्वानमनी जी [श्री राधा] झूला झूल रही हैं। [1]
एक सिी फ
ू ल की सेवा कर रही है, फ
ू ल ं क लाकर श्री राधा
क
े ऊपर सजा रही है, एक सिी उन द न ं क अपलक ननहार
रही है। एक सिी श्री क
ृ ष्ण की तरफ भाग कर जा रही है
और उन्हें गले से लगा रही है। [2]
श्री नप्रर्ा नप्रर्तम क
े अंग ं पर नीले और पीले वस्त्र हैं एवं
नवनभन्न प्रकार क
े नश्रंगार से सजे हैं। श्री सूरदास कहते हैं,
"परम क
ृ पालु स्वानमनी भानमनी [श्री राधा] सुर [क
ृ ष्ण] संग
नवलास कर रही हैं, एवं र्ह द न ं एक क्षण क भी अलग नहीं
ह ते।" [3]
अर्य
4.
5. चतुर सखियााँ श्री राधा से पूछती हैं: हे राधा, आपका
मोग्नतयों का हार ग्नकसने चुराया है? मैं नाम से सभी
साखियों को जानती हं, सुनो: - श्यामा, कामा, चतुरा,
नवला, प्रमुदा, सुमदा, सुिमा, शीला, अवधा, नंदा,
वृंदा, यमुना, कमला, तारा, ग्नबमला, चंदा, चंद्रावली,
अमला, अबला, क
ुं जा, मुक्ता, हीरा, लीला, सुमना,
बहुला, चम्पा, जुग्नहला, ज्ञाना, भाना, प्रेमा, दामा, रूपा,
हंसा, रंगा, हरर्षा, ग्नदवा, रंभा, क
ृ ष्णा, ध्याना, मैना, नैना,
रत्ना, क
ु सुमा, मोहा, करुणा, ललना, लोभा और अनुपा।
आप इन सब में से मुझे अपना हार चुराने वाली का नाम
बताइए। सिी पुने: बोलीं, हे प्यारी, मैं तुम्हारे सारे दााँव
जानती हाँ! अगर कोई भी इसे चुरा ले गया है, तो यह
अवश्य ही सूरदास क
े स्वामी श्याम सुंदर हैं हैं !
अर्य