Sadhak ka jivan साधक का जीवन एक व्यवहारिक व्याख्या
1. साधक का जीवन
एक व्यवहारिक व्याख्या
भगवद्गीता अध्याय २ श्लोक ५४-७२ के आधार पर
1. उच्च स्तर के साधक (स्स्ितप्रज्ञ) का जीवन
2. मध्यम स्तर के साधक का जीवन
3. ननम्न स्तर के साधक का जीवन
3. भगवद्गीता अध्याय २ श्लोक
५५
मध्यम स्तर का साधक समस्त कामनाओं का पररत्याग न कर पाने पर भी भोगवादी की
तरह अनेक प्रकार की कामनाओं से ग्रस्त नहीं होता है | उसकी कामनाएँ मयााददत होती है
| जबकक ननम्न स्तर के साधक की कामनाएँ िोड़े ही अंश तक मयााददत हुई होती है |
मध्यम स्तर का साधक कभी आत्मा में ही स्स्ित रहता है तो कभी भौनतक जगत से
प्रभाववत होता है | ननम्न स्तर का साधक कभीकबार ही आत्मा में स्स्ित होता है अन्यिा
वह भौनतक जगत से प्रभाववत होता रहता है |
4. भगवद्गीता अध्याय २ श्लोक
५६
आधध, व्याधध एवं उपाधध के आने पर मध्यम स्तर का साधक कभी उददग्न होता
है तो कभी उददग्न नहीं होता है | ननम्न स्तर का साधक आधध, व्याधध एवं
उपाधध के आने पर उददग्न तो हो जाता है परन्तु जो साधक नहीं है ऐसे भोगवादी
की तरह छोटी-छोटी बातों में उददग्न नहीं हो जाता है |
5. भगवद्गीता अध्याय २ श्लोक
५७
मध्यम स्तर का साधक राग द्वेष से संपूर्ा रूप से मुक्त नहीं होने पर
भी राग द्वेष पर काफी हद तक अपना काबू प्राप्त कर लेता है | ननम्न
स्तर का साधक राग द्वेष पर िोड़ा सा ही काबू प्राप्त कर पाता है |
6. भगवद्गीता अध्याय २ श्लोक
५८
मध्यम स्तर का साधक कभी ववषयों से मुक्त हो जाता है तो कभी
ववषयों में फं स जाता है | ननम्न स्तर का साधक ववषयों से कभी-कबार
ही मुक्त हो पाता है |
7. भगवद्गीता अध्याय २ श्लोक
५९
ववषय ग्रहर् न करने पर भी देहाभभमान संपूर्ा रूप से ख़त्म न होने पर मध्यम स्तर के
साधक के ववषयों के प्रनत राग संपूर्ा रूप से खत्म नहीं होते है , कफर भी ववषयों पर अच्छा
काबू प्राप्त कर लीया होता है | ननम्न स्तर के साधक ववषय ग्रहर् न करने की स्स्िनत में भी
ववषयों के प्रनत अधधकांश रूप से राग से युक्त रहता है |
8. भगवद्गीता अध्याय २ श्लोक
६०
मध्यम स्तर का साधक मोक्ष के भलए प्रयत्न तो करता है पर कभी इस्न्ियाँ
उसका मन हर लेती है तो कभी वह इस्न्ियों पर काबू प्राप्त कर लेता है | ननम्न
स्तर का साधक इस्न्ियों पर कभीकबार ही काबू प्राप्त कर पाता है |
9. भगवद्गीता अध्याय २ श्लोक
६१
इस श्लोक में सभी प्रकार के साधकों के भलए इस्न्िय संयम की अननवायाता बताई
गयी है | भभन्न-भभन्न स्तर के साधकों का इस्न्िय संयम भी भभन्न-भभन्न स्तर का
होता है |
11. ववषयों का सबसे ज्यादा धचंतन भोगवादी करते है | ननम्न स्तर के साधक में इस तरह के धचंतन में
िोड़ी कमी आ जाने के कारर् ववषयों के प्रनत आसस्क्त िोड़ी कम होती है | आसस्क्त कम होने के
कारर् काम-वासनाएँ कम होती है | काम-वासनाएँ कम होने के कारर् क्रोध भी कम होता है |
मध्यम स्तर के साधक में ववषयों का धचंतन, ववषयों में आसस्क्त, काम-वासनाएँ एवं क्रोध बहुत ही
कम होता है | भोगवादी व्यस्क्त स्जस ववषय में रस आता है उसी में आसक्त हो कर उसे बार-बार
सुनता है या देखता है | ननम्न स्तर का साधक कभी आसक्त होता है कभी नहीं होता है | मध्यम
स्तर का साधक शायद ही कभी आसक्त होता है और स्स्ितप्रज्ञ कभी आसक्त नहीं होता है |
भोगवादी को भोग भोगने को नहीं भमलते इसभलए वह अत्यंत क्रोधधत रहता है | ननम्न स्तर का
साधक कभी भोग में भलप्त होता है कभी नहीं होता है इसभलए उसका क्रोध िोड़ा कम होता है |
माध्यम स्तर के साधक का क्रोध बहुत ही कम होता है| स्स्ितप्रज्ञ कभी क्रोधधत नहीं होता है |
12. भगवद्गीता अध्याय २ श्लोक
६३
साधक अगर उच्च स्तर तक पहुँच जाता है तो वह पुनः जन्म नहीं लेता है | परन्तु मध्यम स्तर के साधक
में जो िोड़ा सा क्रोध उत्पन्न होता है उस क्रोध से क्रमशः सम्मोह (संज्ञादहनता), स्मृनतनाश कु छ हद तक
होता है एवं मुक्त होने से पहले १-२ जन्म और लेने पड़ सकते है | ननम्न स्तर के साधक का क्रोध, सम्मोह,
स्मृनतनाश ज्यादा होता है और उसे मुक्त होने में कई जन्म लग सकते है |
16. • मध्यम स्तर के साधक के काफी सारे दुःख दूर हो जाते है| ननम्न स्तर के
साधक के कु छ दुःख दूर होते है कु छ रह जाते है | ननम्न स्तर के साधक
की बुद्धध िोड़ी आत्म ववषय सम्बन्धी होती है तो िोड़ी भोगवादी |
परमेश्वर का कभी ध्यान करता है कभी नहीं करता | इसभलए कभी शांनत
भमलती है कभी नहीं भमलती | इसभलए उसे कभी सुख भमलता है तो कभी
दुःख | मध्यम स्तर के साधक की बुद्धध की स्स्िरता स्स्ितप्रज्ञ से कम
परन्तु ननम्न स्तर के साधक से ज्यादा होती है | वह ननम्न स्तर के
साधक से ज्यादा आत्मवादी होता है | परमेश्वर का ध्यान भी वह ज्यादा
करता है | इसभलए उसे क्रमशः शांनत और सुख ज्यादा भमलता है |
17. भगवद्गीता अध्याय २ श्लोक
६७
भोगवादी व्यस्क्त एक ही इस्न्िय का गुलाम बनकर पतन की और धगरता है | ननम्न स्तर का साधक पतन
की और नहीं धगरता पर कभी-कबार कोई इस्न्िय उसके मन को हर ले सकती है | मध्यम स्तर के साधक के
मन को शायद ही कोई इस्न्िय हर लेती है | और स्स्ितप्रज्ञ का मन कभी भी इस्न्ियों द्वारा हरा नहीं जाता
है |
19. भगवद्गीता अध्याय २ श्लोक
६९
भोगवादी समाज जब भोगो में भलप्त होता है तब स्स्ितप्रज्ञ बबलकु ल ही ननस्रक्रय रहते है | जबकक मध्यम
स्तर के साधक भी लगभग-लगभग ननस्रक्रय ही रहते है | ननम्न स्तर के साधक कभी सक्रीय तो कभी
ननस्रक्रय रहते है | भोगवादी समाज जब नैनतक एवं आध्यास्त्मक उन्ननत में ननस्रक्रय होता है तब ननम्न
स्तर का साधक कभी सकक्रय तो कभी ननस्रक्रय होता है | मध्यम स्तर का साधक सकक्रय होता है और
22. अपनी कामनाओं की पूनता में ही लगे हुए लोग वास्तववक शांनत को प्राप्त नहीं
होते है | ननम्न स्तर का साधक कभी कामनाओं की पूनता में लगा रहता है कभी
आस्त्मक उत्कषा में | माध्यम स्तर का साधक कामनाओं की पूनता का कभी-
कबार ही प्रयास करता है |स्स्ितप्रज्ञ वास्तववक अिा में धचर शांनत को प्राप्त
होता है |