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युग ननममाण निद्यमलय
िर्ाममन समय की निभीनिकम
• मानव-मानव के रक्त का प्यासा है
• युद्ध-ऄनैततकता-भ्रष्टाचार-ऄपराध सभी राष्ट्रों
की बड़ी समस्या हैं
• मनुष्ट्य ने स्वाथथवश प्राकृ ततक संतुलन तबगाड़
तदया है
• प्रकृ तत क्रु द्ध हो तवनाश पर ईतारू है
• आततहास गवाह है जब जब धरती पर मानवता की हातन हुइ है, तब तब सृजनकारी इश्वरीय शतक्त तकसी न
तकसी रूप में ऄवतररत होती है ।
• वो शतक्त सज्जनो को संगतित करती है, ऄनीतत से लोहा लेती है; संसार में सत्प्प्रवृतियों को पुनः स्थातपत
करती है । ईदाहरण रामायण, महाभारत, बुद्ध ऄवतार अतद ।
2
युग ननममाण निद्यमलय
युग पररिर्ान: इश्वरीय संकल्प
• भीषण हो चुके कतलयुग को
हटाना अवश्यक
• ऄन्यथा पृथ्वी तवस्फोट कर
देगी और मनुष्ट्य मानवता का
तवनाश कर देंगे
• युग पररवतथन की शतक्त हैं
महाकाल
• इश्वर
योजना तथा
शतक्त
• तहमालय के तदव्य क्षेत्र में तप कर
रही हमारी महान ऋतष सिाएं
ऄनुशासन
एवं संरक्षण
• सत्प्पुरषों का
• भावनाशील-संवेदनशील मनुष्ट्य
तजनके ह्रदय में मानवता शेष है
पुरुषाथथ और
सहकार
इश्वर ने ऄपना यह संकल्प
के रूप में ईद्गोष तकया ।
3
युग ननममाण निद्यमलय
युग ननममाण योजनम के प्रणेर्म युगऋनि
युगऋषष ऩंडित श्रीराम शमाा
आचाया जी (1911-1989)
देवात्प्म तहमालय की ऋतष परंपरा में, युगऋतष पंतित श्रीराम शमाथ अचायथ जी ने
1958 में प्रथम बार युग तनमाथण योजना की रूपरेखा बताइ, ईनके शब्द
'यह समय युग पररवतथन का है, इश्वर ऄनीतत को हटा कर
सत्प्य की स्थापना हेतु संकतल्पत है; महान ऋतषयों का
तदव्य संरक्षण-पोषण हमें प्राप्त है। धरती पर रहने वाले हर
जागृत-भावनाशील मनुष्ट्य को आसमें भागीदार होना है।’
युगऋतष पंतित श्रीराम शमाथ अचायथ जी संतक्षप्त पररचय :
• 3200 से ऄतधक पुस्तकों के रतचयता, तजसमें देश-समाज को पररवततथत करने की
शतक्त है ।
• ऋतष-परंपरा, भारतीय संस्कृ तत, संस्कार, अदशथवातदता, नैततकता का पुनजीवन ।
• गायत्री-यज्ञ को जातत-पंथ-धमथ-रूतढ़यों से मुक्त करा गायत्रीमंत्र एवं यज्ञ को
सवथसुलभ बनाना ।
• समाज में ऄनेकों कु रीततयों से लड़ते हुए समाज को नया प्राण तदया ।
• स्वतंत्र सेनानी के रूप में प्रतततित एवं भारतीय सरकार द्वारा सम्मातनत ।
• ऄपनी तप-साधना से सम्पूणथ तवश्व की कु ण्ितलनी शतक्त का जागरण |
• शांततकुं ज, गायत्री पररवार, ब्रह्मवचथस की स्थापना ।
4
युग ननममाण निद्यमलय
युग ननममाण योजनम : पररचय
लक्ष्य: मनुष्ट्य में देवत्प्व का ईदय धरती पर स्वगथ का ऄवतरण
ईद्देश्य: स्वस्थ्य शरीर, स्वछ मन, सभ्य समाज
क्यम करनम होगम: व्यतक्त तनमाथण, पररवार तनमाथण, समाज
तनमाथण
कै से करनम होगम: प्रचारात्प्मक, रचनात्प्मक, संघषाथत्प्मक
कायथक्रम
क्मंनर्: बौतद्धक क्रांतत, नैततक क्रांतत, सामातजक क्रांतत
5
युग ननममाण निद्यमलय
युग ननममाण कम ममध्यम: धमार्ंत्र
धमातंत्र
राजतंत्र
रमष्ट्र कम निकमस
• राष्ट्र में संतवधान, सुरक्षा, व्यवस्था एवं तवकास का तजम्मेदार
राजतंत्र होता है।
• समाज के तवकास, नैततक मूल्यों की स्थापना, मूल्यपरक
तशक्षा, संस्कृ तत संवधथन, पररवार में संस्कारों का समावेश एवं
श्रेि तवचार-ज्ञान-कमथ वाले मनुष्ट्यों को बनाने की तजम्मेदारी
'धमथतंत्र' की होती है।
• ईदहारण प्राचीन गुरुकु ल तशक्षा पद्धतत, पररव्राजक तीथाथटन,
पुरोतहत-अचायथ द्वारा सामातजक तशक्षा, राजपुरोतहतों द्वारा
राजतंत्र को मागथदशथन ।
• बदलते समय में यह 'धमथतंत्र' लुप्त हो गया एवं राजतंत्र भटक
कर शोषण के मागथ पर चला गया ।
हममरम लक्ष्य है धमार्ंत्र पुनः नजिंर्-जमगृर् कर रमष्ट्र कम
निननममाण करनम ।
6
युग ननममाण निद्यमलय
युग पररिर्ान कम मुख्य अधमर:
मनुष्ट्य में देित्ि कम जमगरण
• देवता जहााँ होते हैं वही स्वगथ बना लेते है ।
• धरती पर स्वगथ बनाने के तलयें प्रथथम ऄतनवायथ शतथ है मनुष्ट्य में सोया
हुअ खोया हुअ देवत्प्व को ढूंढ कर तराश कर पुनः जगाया जाये। ईन्हें
देव मानव बनाया जाये । ईदहारण वाल्मीतक, ऄंगुतलमाल, सम्राट
ऄशोक, अम्रपाली अतद
• धरती पर मौजूद सभी प्रकार की सामातजक-वैचाररक तवनाशकारी
शतक्तयों को हरा कर स्वगथ की स्थापना करना संभव है ।
• ऋनिर्ंत्र ने व्यिस्थम बनम दी है-जो ईनके ऄनुशमसन के ऄनुरूप
चलेंगे, ईनके ऄंदर देित्ि निकनसर् हो ही जमयेगम।
युग समस्या का मूल कारण
• मनुष्ट्यों में छाया भीषण अस्था संकट ।
• गलत अस्था-मान्यता-अकांशा के चलते गलत
अचरण कर रहे है।
• लोगो का तचंतन, चररत्र, व्यवहार, गुण, कमथ,
स्वाभाव सब तबगड़ गएाँ हैं ।
7
युग ननममाण निद्यमलय
देित्ि संिधान के नदव्य सूत्र: जीिन समधनम
जीवन साधना
आत्म ननमााण
उऩासना
भावभरी
साधना
जीवन भर
स्वाध्याय
च िंतन-मनन
सिंयम
24 घिंटे
इन्द्रिय
कमा-ऻान
समय
अनुशासन
अथा
ममत्वनययता
वव ार
सान्द्त्वकता
आराधना
ऱोक मिंगऱ
समय दान
ननत्य
श्रम दान
ननत्य
अिंश दान
ननत्य
ननयममत ननरिंतर देवत्व
8
युग ननममाण निद्यमलय
देित्ि संिधान के नदव्य सूत्र: जीिन समधनम
देवत्व
साधना
आत्म
समीऺा
आत्म
शोधन
आत्म
ननमााण
आत्म
ववकास
चचंतन
चररत्र
व्यवहार
गुण
कमा
स्वभाव
9
युग ननममाण निद्यमलय
 एक राष्ट्र ऄनेक समाजों का
सामूतहक रूप है ।
 एक समाज ऄनेक पररवारों का
समूह है ।
 एक पररवार ऄनेक व्यतक्तयों का
संघटन है ।
 ऄतः राष्ट्र तनमाथण हेतु प्रत्प्येक
व्यतक्त, प्रत्प्येक पररवार एवं प्रत्प्येक
समाज देवत्प्व संवधथन अवश्यक है ।
रमष्ट्र ननममाण की इकमइ: व्यनि-पररिमर-सममज
व्यनि
ननममाण
पररवार
तनमाथण
समाज
तनमाथण
युग
ननममाण
10
युग ननममाण निद्यमलय
युग ननममाण कम प्रथम घटक :
व्यनि ननममाण
 व्यतक्त तनमाथण का ऄथथ है व्यतक्तत्प्व का तनमाथण।
 ईपमसनम: परमात्प्मा के तजस भी स्वरुप को अप मानते हों, ईस के सामने मन को खाली करके बैिना
तथा इश्वरीय प्रेरणा-प्रकाश को ऄंदर ईतारने का भाव करना मनुष्ट्य में देवत्प्व का संचार करता है ।
आष्टमंत्र या आष्टनाम का जप आसमें सहायक तसद्ध होता है।
 स्िमध्यमय- सत्प्सातहत्प्य का ऄध्ययन करके , सत्प्पुरुषों के ऄनुभव सुनकर-सत्प्संग से जो सूत्र तमलें, ईन्हें
मनन-तचंतन द्वारा जीवन का ऄंग बनाने का प्रयास स्वाध्याय है। युग सातहत्प्य आसमें समथथ सहयोगी की
भूतमका तनभाता है।
 संयम- महतषथ पतंजतल का सूत्र है-‘त्रयमेकम् संयमः’ तीन तमलकर संयम बनते हैं। हर मनुष्ट्य के ऄंदर
तदव्य क्षमताएाँ हैं, ईन्हें :
1. निकनसर् करनम, 2. ननयंनत्रर् रखनम, नबखरने न देनम र्थम 3. सदुद्देश्यों में संकल्पपूिाक लगम देनम।
आन तीनों प्रयासों के संयोग से संयम साधना सधती है।
हर मनुष्ट्य में चार तवतशष्ट क्षमताएाँ हैं, ईनको संयतमत करना जरूरी है। वे हैं-आतन्िय संयम, ऄथथ संयम,
समय संयम और तवचार संयम।
आन्हें तमलाकर जीवन व्यवस्थापन (Life Management) भी कह सकते हैं।
 सेवा: लोक अराधना-श्रद्धा, संवेदना युक्त सेवा समाज की । आसके तलयें तनयतमत रूप से समय दान, ऄंश
दान तनकलना ।
11
युग ननममाण निद्यमलय
युग ननममाण कम प्रथम घटक :
व्यनि ननममाण
जो भी व्यनि जीिन समधनम के सूत्रों को जीिन में ननयनमर्र्म से धमरण करेंगे, ईनके ऄंदर
देित्ि के स्र्र की सर्र् िृनि होर्े रहनम सुनननिर् है।
अत्म समीक्षम
• स्व-मूल्यांकन
(Self Assessment)
की आस प्रतक्रया में
ऄपने गुण-ऄवगुण
की समीक्षा करते
हैं ।
अत्म शोधन
• समीक्षा से ऄपने
ऄंदर जो दोष-
दुगुथण तदखें, ईन्हें
संकल्पपूवथक एक-
एक करके दूर
करना अत्प्म
शोधन है।
अत्म ननममाण
• समीक्षा के अधार
पर ऄपने ऄंदर
तजन श्रेि गुणों
का ऄभाव तदखता
है, ईन्हें ऄपने ऄंदर
पैदा करना,
स्थातपत करना
अत्प्म तनमाथण है।
अत्म निकमस
• ऄपने ऄंदर जो
श्रेि गुण-भाव
(प्रेम, अत्प्मीयता
अतद) हैं, ईन्हें
छोटी सीमा से
तनकाल कर
व्यापक बनाना
अत्प्म तवकास है।
व्यतक्तत्प्व में प्रगतत का क्रम बराबर बना रहे आसको तनयंतत्रत करने के चार सूत्र हैं :
12
युग ननममाण निद्यमलय
युग ननममाण कम दूसरम घटक :
पररिमर ननममाण
 युगऋतष ने पररवार को व्यतक्त तनमाथण की प्रयोगशाला, व्यायाम शाला, टकसाल कहा है।
 प्यार और सहकार से भरा-पूरा पररवार ही धरती का स्वगथ होता है।
 पररवार घर-पररवार भी होता है, लेतकन वह वहीं तक सीतमत नहीं। वह संस्था-पररवार, संगिन-पररवार,
राष्ट्र-पररवार से तवश्व पररवार तक तवकतसत हो सकता है।
आदशा
ऩररवार
श्रमशीऱता
शाऱीनता
ममतव्यनयता
सुव्यवस्था
सहकाररता
अदशथ पररवारभाव तवकतसत करने के ऋतष सूत्र
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युग ननममाण निद्यमलय
युग ननममाण कम र्ीसरम घटक:
सममज ननममाण
• धमथ की पहुाँच मनुष्ट्य के अस्था-तवचारों तक है। ऄतः व्यतक्त-पररवार-समाज तनमाथण हेतु धमथतंत्र का मागथ ही श्रेि
है । तनम्न कायथक्रम तनधाथररत हैं:
• भतवष्ट्य की अदशथ सामातजक व्यवस्था परस्पर पाररवाररक संवेदना-सहकार के अधार पर ही बनेगी।
• श्रेि व्यतक्त तथा सुसंस्काररत पररवारों के संयोग से अदशथ समाज तनमाथण का लक्ष्य प्राप्त तकया जा सकता है।
• समाज तनमाथण का मागथ है :
• समाज से रूतढ़वादी
परम्पराओं, जाततवाद ऄनेक
दुष्ट्प्रवृति को पूणथतः हटाया
जाये ।
दुष्ट्प्रवृति
ईन्मूलन
• समाज में सतद्वचारों की प्रचार-
प्रसार हो, नैततक-सज्जन
व्यतक्तयों का सम्मान हो एवं
सत्प्प्रवृतियों की स्थापना हो ।
सत्प्प्रवृति
संवधथन
14
युग ननममाण निद्यमलय
युग ननममाण कम र्ीसरम घटक:
सममज ननममाण
दुष्ट्प्रिृनि ईन्मूलन र्थम सत्प्रिृनि संिधान के नलए र्ीन प्रकमर की गनर्निनधयमाँ जरूरी हैं
• से बड़ी संख्या में लोगों में जागरूकता फै ले। नर-नारी प्रभातवत होकर नवसृजन के तलए अगे अयें
• जन साधारण में जैसा ईत्प्साह धातमथक कमथकाण्ि करके पुण्य लूट लेने के तलए है, वैसा ही ईत्प्साह
स्वयं को इश्वरीय योजना में भागीदार बनने-बनाने के तलए भी जगाना होगा।
• आसके तलए सातहत्प्य, सत्प्संग, संगीत, कला, मीतिया सभी का सहारा लेना होगा।
प्रचमरमत्मक
• हमारा सबसे प्रधान रचनात्प्मक कायथ है ‘जन मानस का तनमाथण, नवयुग के ऄनुरूप व्यतक्त तनमाथण।’
• नवसृजन की तदशा में समय, शतक्त, साधनों का तनयोजन होगा।
• व्यतक्त तनमाथण की सृजन साधना एक तप है, तजसमें लगन और धैयथ के साथ तनयतमत ऄभ्यास करना
होता है ।
• जो यह नहीं कर सकते ईन्हें ऄन्य रचनात्प्मक कायथक्रमों में समयदान, ऄंशदान करना चातहयें ।
रचनमत्मक
• से सृजन के मागथ में अने वाले ऄवरोधों को काटकर अगे बढ़ने का क्रम चलेगा।
• संघषथ के तलए पुकार पर तत्प्काल ईछल कर अगे अना पड़ता है।
• हमारा प्रचार भी सृजन हेतु है तथा संघषथ भी सृजन का सहयोगी है।
संघिमात्मक
आस प्रकार संस्कारवान् व्यतक्त ईभरकर इश्वरीय चेतना तथा ऋतषसिा के सहयोग से व्यतक्त, पररवार एवं समाज
तनमाथण के चरण बढ़ाते हुए युग तनमाथण के महान् लक्ष्य की ओर बढ़ते रह सकें गे।
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युग ननममाण निद्यमलय
युग ननममाण की नत्रनिध क्मनन्र्यमाँ
• संसार में हुए पररवतथन ऄब तक तकसी एक तवशेष क्षेत्र-राष्ट्र तक सीतमत थे। जैसे तकसी क्षेत्र तवशेष की
राजनैततक स्वतंत्रता, तशक्षा क्रांतत, हररत क्रांतत अतद।
• अज तवज्ञानं द्वारा एक हो चुकी दुतनया में व्यापक पररवतथन के तलयें तवज्ञानं एवं अध्यात्प्म के अधार पर
सवाांग क्रांतत करनी होगी।
• तजसका लक्ष्य समाज में व्याप्त सभी दोषों को हटाना तथा स्वगीय पररतस्थततयों को साकार करना होगा ।
• वह क्रांततयााँ है :: बौतद्धक क्रांतत, नैततक क्रांतत, सामातजक क्रांतत
बौनिक
क्मंनर्
नैनर्क
क्मंनर्
समममनजक
क्मंनर्
16
युग ननममाण निद्यमलय
युग ननममाण की नत्रनिध क्मनन्र्यमाँ
• गलत तवचारों, तवकृ त अस्था के चलते इश्वर का पुत्र मनुष्ट्य गलत अचरण कर रहा है।
• तवकृ त तवचारधारा को हटा कर सतद्वचारों, सद्भावनाओंसे भरी तवचारधारा प्रवातहत करना तवचार क्रांतत का लक्ष्य।
• गायत्री सतद्वचारों के देवी हैं और यज्ञ श्रेष्ट कमों के देवता। गायत्री-यज्ञ अधाररत जीवन पद्धतत लाएगी अत्प्म-तवचार
क्रांतत ।
• सातहत्प्य, सत्प्संग, संगीत, कला, मीतिया सभी का सहारा लेते हुए समाज में सतद्वचारों का व्यापक प्रचार-स्थापना ।
• मनुष्ट्य में ईच्च अदशों, तसद्धान्तों को ऄपनाकर चलने योग्य नैततक बल नहीं आसतलयें ईन्हें जीवन में ऄपना नहीं पाता
• मनुष्ट्यों के तचंतन, चररत्र और व्यवहार में मनुष्ट्योतचत नैततकता का समावेश करना नैततक क्रांतत का लक्ष्य है। जो
समाज में श्रेि मनुष्ट्य एवं श्रेि पाररवाररक व्यवस्था स्थातपत करे ।
• जो ऋतष ऄनुशासन ऄपनाता है, ईसमे नैततक बल की सतत वृतद्ध होना सुतनतित है ।
• समाज के तवतभन्न वगों, तवतभन्न क्षेत्रों की अवश्यकता के ऄनुरूप दुष्ट्प्रवृति ईन्मूलन, सत्प्प्रवृति संवधथन के तलए
तमाम क्रांततकारी अंदोलन चलाने होंगे।
• जैसे-जैसे तवचार क्रांतत और नैततक क्रांततयों का स्तर बढ़ता जायेगा, वैसे-वैसे ऄनेक प्रकार की सामातजक क्रांततयों का
मागथ प्रशस्त होता जायेगा और हर क्षेत्र एवं हर वगथ की अवश्यकता के ऄनुरूप सामातजक क्रांततकारी अन्दोलनों की
झड़ी लग जायेगी। तचर प्रतीतक्षत इश्वरीय योजना के ऄनुरूप महाक्रांतत गततशील हो ईिेगी।
17
युग ननममाण निद्यमलय
क्मंनर् के सप्त सूत्री अंदोलन
तनयतमत जीवन साधना
सत्प्प्रवृतियों अदतों को ऄपनाने एवं
दुष्ट्प्रवृतियों - गलत अदतों को छोड़ने
का संकल्पपूवथक ऄभ्यास ।
गायत्री मन्त्र एवं यज्ञ का समाज में
व्यापक प्रचार ।
साधना
अंदोलन
• संस्कार अधाररत तशक्षा-तवद्या व्यवस्थाका तनमाथण
।
• बाल संस्कार शाला, प्रौढ़ तशक्षाशाला,मतहला तशक्षा
ऄतभयान चलाना।
• स्वाध्याय, सत्प्संग, तचन्तन मनन करना और
अचरण में तकतना ईतरा समीक्षा करना।
• तवद्यालयों, ऑतफस, फै क्ट्री, कं पनीज़ अतद में युग
सातहत्प्य का प्रचार ।
तशक्षा अंदोलन
•स्वास्थ्य के सूत्रों का ऄभ्यास।
•योग, व्यायाम, प्राणायाम तथा अहार
तवहार के तनयम को तदनचयाथ का ऄंग
बनाना।
•पररवार व समाज में ईक्त सूत्रों को लागू
करने का प्रयास ।
स्वास्थ्य
अंदोलन
•श्रमशील बनना, श्रम का, श्रम प्रधान
वगथ का सम्मान करना।
•लघु ईद्योगों को बढ़ावा देते हुए
स्वाबलम् प्रतशक्षण ।
•स्वदेशी वस्तुओंका ऄतधकातधक
ईपयोग ।
स्वावलम्बन
अंदोलन
• प्रकृ तत के पयाथवरण सन्तुलन के प्रतत अस्था
बढ़ाना।
• हरीततमा संवद्धथन हेतु स्वयं संकतल्पत होकर
पौधे लगाना, ईसकी सुरक्षा करना, औरों को
प्रेररत करना।
• समाज में पयाथवरण के प्रतत जागरूकता
बढ़ाना एवं वृक्षारोपण करना करवाना ।
पयाथवरण
अन्दोलन
• कु रीततयों व व्यसनों से समय श्रम, धन व स्वास्थ्य
को बचाकर सृजन में, श्रेि कायों में लगाना।
• स्वयं नशामुक्त हों औरों को नशा मुक्त होने की
प्रेरणा देना।
• तवद्यालयों, तवतभन्न सामातजक संगिनों को व्यसन
मुतक्त, कु रीतत ईन्मूलन हेतु प्रेररत व सतक्रय करना।
• स्वयं का अदशथ तववाह करने का संकल्प लेना।
युवक दहेजरतहत तववाह में गौरव समझें।
व्यसन मुतक्त,
कु रीतत ईन्मूलन
अन्दोलन
• फै शनपरस्ती, जेवर/श्रृंगार का शौक
त्प्यागना।
• वेशभूषा, हेयर स्टाआल, रहन- सहन में
सादगी ऄपनाना।
• नारी स्वयं संस्कारवान बनें जागृत नारी
बच्चों में प्रारम्भ से ही संस्कार िालें।
• घर के काम हल्के करें, तवकास के
ऄवसर दें, ईनकी सहायक बनें।
नारी जागरण
अन्दोलन
18
युग ननममाण निद्यमलय
युग ननममाण समग्र स्िरुप
व्यनि
ननममाण
पररिमर
ननममाण
सममज
ननममाण
बौनिक
क्मंनर्
नैनर्क
क्मंनर्
समममनजक
क्मंनर्
अंदोलन
प्रचारात्प्मक
रचनात्प्मकसंघषाथत्प्मक
19
युग ननममाण निद्यमलय
ननममाण की ईपलनधधयमाँ
• शरीरमाद्यं खलु धमथ साधनम्
• स्थूल-सूक्ष्म-कारण शरीर का ईिम
स्वास्थ्य
स्वस्थ शरीर
• मन एव मनुष्ट्याणां कारणं बन्ध मोक्षयोः
• १.तचंतन, २.चररत्र एवं ३.व्यवहार का
शोधन
स्वच्छ मन
• वसुधैव कु टुंबकम
• एकता-समता-ममता-शुतचता पर
अधाररत सभ्य समाज
सभ्य समाज
क्रांतत की तत्रतवध ईपलतब्धयााँ :
20
युग ननममाण निद्यमलय
युग ननममाण कम प्रर्ीक लमल मशमल
लाल मशाल युग तनमाथण का प्रतीक है । भली सोच वाले व्यतक्तयों का समूह जो युग तनमाथण के लक्ष्य से एक
साथ आक्ट्किा होते हैं व् क्रांतत की लाल मशाल ले धरती पर सतयुग की स्थापना करते है । अप भी आस लाल
मशाल का भाग बन सकते है ।
21
युग ननममाण निद्यमलय
नियुग कम संनिधमन
नयम युग नजसमे एक रमष्ट्र, एक भमिम, एक धमा, एक शमसन होगम। नए युग कम अगमज़ आन 18 सूत्रीय संनिधमन से होगम :
1 हम इश्वर को सवथव्यापी, न्यायकारी मानकर ईसके ऄनुशासन को ऄपने जीवन में ईतारेंगे।
2 शरीर को भगवान् का मंतदर समझकर अत्प्म-संयम और तनयतमतता द्वारा अरोग्य की रक्षा करेंगे।
3 मन को कु तवचारों और दुभाथवनाओंसे बचाए रखने के तलए स्वाध्याय एवं सत्प्संग की व्यवस्था रखे रहेंगे।
4 आंतिय-संयम ऄथथ-संयम समय-संयम और तवचार-संयम का सतत ऄभ्यास करेंगे।
5 ऄपने अपको समाज का एक ऄतभन्न ऄंग मानेंगे और सबके तहत में ऄपना तहत समझेंगे।
6 मयाथदाओंको पालेंगे, वजथनाओंसे बचेंगे, नागररक कतथव्यों का पालन करेंगे और समाजतनि बने रहेंगे।
7 समझदारी, इमानदारी, तजम्मेदारी और बहादुरी को जीवन का एक ऄतवतच्छन्न ऄंग मानेंगे।
8 चारों ओर मधुरता, स्वच्छता, सादगी एवं सज्जनता का वातावरण ईत्प्पन्न करेंगे।
9 ऄनीतत से प्राप्त सफलता की ऄपेक्षा नीतत पर चलते हुए ऄसफलता को तशरोधायथ करेंगे।
10 दूसरों के साथ वह व्यवहार न करेंगे, जो हमें ऄपने तलए पसन्द नहीं।
11 मनुष्ट्य के मूल्यांकन की कसौटी ईसकी सफलताओं, योग्यताओंएवं तवभूततयों को नहीं, ईसके सतद्वचारों और सत्प्कमों को मानेंगे।
12 नर-नारी परस्पर पतवत्र दृतष्ट रखेंगे।
13 संसार में सत्प्प्रवृतियों के पुण्य प्रसार के तलए ऄपने समय, प्रभाव, ज्ञान, पुरुषाथथ एवं धन का एक ऄंश तनयतमत रूप से लगाते रहेंगे।
14 परम्पराओंकी तुलना में तववेक को महत्त्व देंगे।
15 सज्जनों को संगतित करने, ऄनीतत से लोहा लेने और नवसृजन की गतततवतधयों में पूरी रुतच लेंगे।
16 राष्ट्रीय एकता एवं समता के प्रतत तनिावान् रहेंगे। जातत, तलंग, भाषा, प्रान्त, सम्प्रदाय अतद के कारण परस्पर कोइ भेदभाव न बरतेंगे।
17 मनुष्ट्य ऄपने भाग्य का तनमाथता अप है, आस तवश्वास के अधार पर हमारी मान्यता है तक हम ईत्प्कृ ष्ट बनेंगे और दूसरों को श्रेि बनायेंगे, तो युग ऄवश्य
बदलेगा।
18 हम बदलेंगे-युग बदलेगा, हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा आस तथ्य पर हमारा पररपूणथ तवश्वास है।
22
युग ननममाण निद्यमलय
कै से बने हम युगननममाणी
युग तनमाथण योजना मनुष्ट्य में देवत्प्व की धरती पर स्वगथ ऄवतरण की योजना है। योजना में भागीदार होने के
तलयें एकमात्र ऄतनवायथता है तक अप ऄभी आसी क्षण से स्वयं में देवत्प्व ईदय हेतु संकतल्पत हो, एवं आस तदशा में
पुरुषाथथ प्रारम्भ करें । युग तनमाथण में 4 प्रकार की भागीदारी :
सहमयक सदस्य
युग ननमााण के ववबिरन
कायाक्रमों में आचथाक-
सामान्द्जक सहयोग करें ।
समय समय ऩर
कायाक्रमों में भागीदारी
करते रहें ।
सक्ीय सदस्य
ननयनमर् रूप से
ईपमसनम-समधनम-
अरमधनम करे ।
समममनजक कल्यमण हेर्ु
ननत्य 1 घंटे कम
समयदमन करे।
ऄपनी ममनसक अय में से
एक नदन की अय सममज
कल्यमण हेर्ु दमन करे।
कमाठ सदस्य
ननयनमर् रूप से ईपमसनम-
समधनम-अरमधनम करे ।
समममनजक कल्यमण हेर्ु
ननत्य 4 घंटे कम समयदमन
करे।
ऄपनी ममनसक अय में से
10 नदन की अय सममज
कल्यमण हेर्ु दमन करे।
लोक-सेिी
िमनप्रस्थ सदस्य
जो ऄपने पमररिमररक दमनयत्िों से
मुि हो गए हों ऐसे प्रनर्भमशमली
व्यनि युगननममाण के निनबन्न
कमयाक्मों हेर्ु पूणा रूप से कमया
करें ।
जो न्यूनर्म में ननिमाह की
अदशािमदी ब्रमह्मण परंपरम 'सदम
जीिन ईच्च निचमर' ऄनुसमर जी
सकर्े हैं ।
23
युग ननममाण निद्यमलय
युगननममाणी कम व्यनित्ि और कर्ाव्य
 युगतनमाथणी तनयतमत-तनरंतर-तनबाथध गतत से जीवन साधना करता हुअ ऄपने ऄंत:करण का पररष्ट्कार करता
चलता है ।
 युगतनमाथणी का व्यतक्तव शालीन, चररत्रवान, प्रततभाशाली एवं कमथि होता है । ईसके तवचार सुन्दर, भाव तनमथल
और कमथ प्रखर होते हैं ।
 युगतनमाथणी ऄपने समय-पैसे-प्रततभा के एक ऄंश तनयतमत-तनरंतर रूप से समाज कल्याण के तलयें लगता है ।
 समान तवचार वाले ऄन्य युगतनमाथतणयों के साथ संगतित हो युगतनमाथण का कायथ ऄपनी 'रूतच, क्षमता,
योग्यता' के ऄनुरूप करता है ।
 युगतनमाथणी भली सोच वाले लोगो का स्वयंसेवी संगिन बना कर ईनकी 'रूतच, क्षमता, कु शलता' ऄनुसार
समाज तनमाथण का कोइ भी रचनात्प्मक कायथ करता है ।
 युगतनमाथणी ऄपने पररवार के तनमाथण में तवशेष ध्यान देता है । पररवार में गुणों को तवकतसत करता है ।
 युगतनमाथणी ऄपने अचरण से समाज में नैततक क्रांतत करता है । ऄपने पररवार को अदशथ पाररवाररक स्थल
बनता है ।
 युगतनमाथणी ऄपने तचंतन-व्यवहार द्वारा ऄपने तमत्र-ररश्तेदार-व्यापार रुपी समाज को सही तदशा का ज्ञान
देता है ।
24
युग ननममाण निद्यमलय
युगननममानणयों की टकसमल: शमनन्र्कु ञ्ज
• यतद अप एक सरकारी या सामातजक संगिन है, समाज सेवक हैं एवं इश्वरीय योजना से जुड़ना चाहते हैं,
तो अप का स्वागत है ।
• शांततकुं ज हररद्वार, युगऋतष पंतित श्रीराम शमाथ अचायथ जी द्वारा स्थातपत एक अध्यातत्प्मक प्रयोगशाला है
जहााँ जीवन साधना, पररवार तनमाथण, समाज तनमाथण की व्यवहाररक तशक्षा दी जाती है ।
• शांततकुं ज द्वारा समाज तनमाथण की ऄनेक गतततवतधयााँ सम्पूणथ तवश्व में संचातलत होती है ।
• अप ऄपने पररवार, संगिन के साथ अकर जीवन साधना, पररवार तनमाथण, समाज तनमाथण की तवतधवत
तशक्षा ले सकते हैं।
• शांततकुं ज द्वारा चलाइ जा रही तवतभन्न गतततवतधयों में सहयोग कर युगतनमाथण योजना में सक्रीय भागीदार
बन सकते हैं।
25
॥ ॐ शमंनर्ः ॥
हम बदलेंगे युग बदलेगम,
हम सुधरेंगे युग सुधरेगम
ऄपनम र्ो है लक्ष्य महमन,
बने यह धरर्ी स्िगा समममन
26
युग तनमाथण तवद्यालय
vidyalaya.awgp@gmail.com

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  • 1.
  • 2. युग ननममाण निद्यमलय िर्ाममन समय की निभीनिकम • मानव-मानव के रक्त का प्यासा है • युद्ध-ऄनैततकता-भ्रष्टाचार-ऄपराध सभी राष्ट्रों की बड़ी समस्या हैं • मनुष्ट्य ने स्वाथथवश प्राकृ ततक संतुलन तबगाड़ तदया है • प्रकृ तत क्रु द्ध हो तवनाश पर ईतारू है • आततहास गवाह है जब जब धरती पर मानवता की हातन हुइ है, तब तब सृजनकारी इश्वरीय शतक्त तकसी न तकसी रूप में ऄवतररत होती है । • वो शतक्त सज्जनो को संगतित करती है, ऄनीतत से लोहा लेती है; संसार में सत्प्प्रवृतियों को पुनः स्थातपत करती है । ईदाहरण रामायण, महाभारत, बुद्ध ऄवतार अतद । 2
  • 3. युग ननममाण निद्यमलय युग पररिर्ान: इश्वरीय संकल्प • भीषण हो चुके कतलयुग को हटाना अवश्यक • ऄन्यथा पृथ्वी तवस्फोट कर देगी और मनुष्ट्य मानवता का तवनाश कर देंगे • युग पररवतथन की शतक्त हैं महाकाल • इश्वर योजना तथा शतक्त • तहमालय के तदव्य क्षेत्र में तप कर रही हमारी महान ऋतष सिाएं ऄनुशासन एवं संरक्षण • सत्प्पुरषों का • भावनाशील-संवेदनशील मनुष्ट्य तजनके ह्रदय में मानवता शेष है पुरुषाथथ और सहकार इश्वर ने ऄपना यह संकल्प के रूप में ईद्गोष तकया । 3
  • 4. युग ननममाण निद्यमलय युग ननममाण योजनम के प्रणेर्म युगऋनि युगऋषष ऩंडित श्रीराम शमाा आचाया जी (1911-1989) देवात्प्म तहमालय की ऋतष परंपरा में, युगऋतष पंतित श्रीराम शमाथ अचायथ जी ने 1958 में प्रथम बार युग तनमाथण योजना की रूपरेखा बताइ, ईनके शब्द 'यह समय युग पररवतथन का है, इश्वर ऄनीतत को हटा कर सत्प्य की स्थापना हेतु संकतल्पत है; महान ऋतषयों का तदव्य संरक्षण-पोषण हमें प्राप्त है। धरती पर रहने वाले हर जागृत-भावनाशील मनुष्ट्य को आसमें भागीदार होना है।’ युगऋतष पंतित श्रीराम शमाथ अचायथ जी संतक्षप्त पररचय : • 3200 से ऄतधक पुस्तकों के रतचयता, तजसमें देश-समाज को पररवततथत करने की शतक्त है । • ऋतष-परंपरा, भारतीय संस्कृ तत, संस्कार, अदशथवातदता, नैततकता का पुनजीवन । • गायत्री-यज्ञ को जातत-पंथ-धमथ-रूतढ़यों से मुक्त करा गायत्रीमंत्र एवं यज्ञ को सवथसुलभ बनाना । • समाज में ऄनेकों कु रीततयों से लड़ते हुए समाज को नया प्राण तदया । • स्वतंत्र सेनानी के रूप में प्रतततित एवं भारतीय सरकार द्वारा सम्मातनत । • ऄपनी तप-साधना से सम्पूणथ तवश्व की कु ण्ितलनी शतक्त का जागरण | • शांततकुं ज, गायत्री पररवार, ब्रह्मवचथस की स्थापना । 4
  • 5. युग ननममाण निद्यमलय युग ननममाण योजनम : पररचय लक्ष्य: मनुष्ट्य में देवत्प्व का ईदय धरती पर स्वगथ का ऄवतरण ईद्देश्य: स्वस्थ्य शरीर, स्वछ मन, सभ्य समाज क्यम करनम होगम: व्यतक्त तनमाथण, पररवार तनमाथण, समाज तनमाथण कै से करनम होगम: प्रचारात्प्मक, रचनात्प्मक, संघषाथत्प्मक कायथक्रम क्मंनर्: बौतद्धक क्रांतत, नैततक क्रांतत, सामातजक क्रांतत 5
  • 6. युग ननममाण निद्यमलय युग ननममाण कम ममध्यम: धमार्ंत्र धमातंत्र राजतंत्र रमष्ट्र कम निकमस • राष्ट्र में संतवधान, सुरक्षा, व्यवस्था एवं तवकास का तजम्मेदार राजतंत्र होता है। • समाज के तवकास, नैततक मूल्यों की स्थापना, मूल्यपरक तशक्षा, संस्कृ तत संवधथन, पररवार में संस्कारों का समावेश एवं श्रेि तवचार-ज्ञान-कमथ वाले मनुष्ट्यों को बनाने की तजम्मेदारी 'धमथतंत्र' की होती है। • ईदहारण प्राचीन गुरुकु ल तशक्षा पद्धतत, पररव्राजक तीथाथटन, पुरोतहत-अचायथ द्वारा सामातजक तशक्षा, राजपुरोतहतों द्वारा राजतंत्र को मागथदशथन । • बदलते समय में यह 'धमथतंत्र' लुप्त हो गया एवं राजतंत्र भटक कर शोषण के मागथ पर चला गया । हममरम लक्ष्य है धमार्ंत्र पुनः नजिंर्-जमगृर् कर रमष्ट्र कम निननममाण करनम । 6
  • 7. युग ननममाण निद्यमलय युग पररिर्ान कम मुख्य अधमर: मनुष्ट्य में देित्ि कम जमगरण • देवता जहााँ होते हैं वही स्वगथ बना लेते है । • धरती पर स्वगथ बनाने के तलयें प्रथथम ऄतनवायथ शतथ है मनुष्ट्य में सोया हुअ खोया हुअ देवत्प्व को ढूंढ कर तराश कर पुनः जगाया जाये। ईन्हें देव मानव बनाया जाये । ईदहारण वाल्मीतक, ऄंगुतलमाल, सम्राट ऄशोक, अम्रपाली अतद • धरती पर मौजूद सभी प्रकार की सामातजक-वैचाररक तवनाशकारी शतक्तयों को हरा कर स्वगथ की स्थापना करना संभव है । • ऋनिर्ंत्र ने व्यिस्थम बनम दी है-जो ईनके ऄनुशमसन के ऄनुरूप चलेंगे, ईनके ऄंदर देित्ि निकनसर् हो ही जमयेगम। युग समस्या का मूल कारण • मनुष्ट्यों में छाया भीषण अस्था संकट । • गलत अस्था-मान्यता-अकांशा के चलते गलत अचरण कर रहे है। • लोगो का तचंतन, चररत्र, व्यवहार, गुण, कमथ, स्वाभाव सब तबगड़ गएाँ हैं । 7
  • 8. युग ननममाण निद्यमलय देित्ि संिधान के नदव्य सूत्र: जीिन समधनम जीवन साधना आत्म ननमााण उऩासना भावभरी साधना जीवन भर स्वाध्याय च िंतन-मनन सिंयम 24 घिंटे इन्द्रिय कमा-ऻान समय अनुशासन अथा ममत्वनययता वव ार सान्द्त्वकता आराधना ऱोक मिंगऱ समय दान ननत्य श्रम दान ननत्य अिंश दान ननत्य ननयममत ननरिंतर देवत्व 8
  • 9. युग ननममाण निद्यमलय देित्ि संिधान के नदव्य सूत्र: जीिन समधनम देवत्व साधना आत्म समीऺा आत्म शोधन आत्म ननमााण आत्म ववकास चचंतन चररत्र व्यवहार गुण कमा स्वभाव 9
  • 10. युग ननममाण निद्यमलय  एक राष्ट्र ऄनेक समाजों का सामूतहक रूप है ।  एक समाज ऄनेक पररवारों का समूह है ।  एक पररवार ऄनेक व्यतक्तयों का संघटन है ।  ऄतः राष्ट्र तनमाथण हेतु प्रत्प्येक व्यतक्त, प्रत्प्येक पररवार एवं प्रत्प्येक समाज देवत्प्व संवधथन अवश्यक है । रमष्ट्र ननममाण की इकमइ: व्यनि-पररिमर-सममज व्यनि ननममाण पररवार तनमाथण समाज तनमाथण युग ननममाण 10
  • 11. युग ननममाण निद्यमलय युग ननममाण कम प्रथम घटक : व्यनि ननममाण  व्यतक्त तनमाथण का ऄथथ है व्यतक्तत्प्व का तनमाथण।  ईपमसनम: परमात्प्मा के तजस भी स्वरुप को अप मानते हों, ईस के सामने मन को खाली करके बैिना तथा इश्वरीय प्रेरणा-प्रकाश को ऄंदर ईतारने का भाव करना मनुष्ट्य में देवत्प्व का संचार करता है । आष्टमंत्र या आष्टनाम का जप आसमें सहायक तसद्ध होता है।  स्िमध्यमय- सत्प्सातहत्प्य का ऄध्ययन करके , सत्प्पुरुषों के ऄनुभव सुनकर-सत्प्संग से जो सूत्र तमलें, ईन्हें मनन-तचंतन द्वारा जीवन का ऄंग बनाने का प्रयास स्वाध्याय है। युग सातहत्प्य आसमें समथथ सहयोगी की भूतमका तनभाता है।  संयम- महतषथ पतंजतल का सूत्र है-‘त्रयमेकम् संयमः’ तीन तमलकर संयम बनते हैं। हर मनुष्ट्य के ऄंदर तदव्य क्षमताएाँ हैं, ईन्हें : 1. निकनसर् करनम, 2. ननयंनत्रर् रखनम, नबखरने न देनम र्थम 3. सदुद्देश्यों में संकल्पपूिाक लगम देनम। आन तीनों प्रयासों के संयोग से संयम साधना सधती है। हर मनुष्ट्य में चार तवतशष्ट क्षमताएाँ हैं, ईनको संयतमत करना जरूरी है। वे हैं-आतन्िय संयम, ऄथथ संयम, समय संयम और तवचार संयम। आन्हें तमलाकर जीवन व्यवस्थापन (Life Management) भी कह सकते हैं।  सेवा: लोक अराधना-श्रद्धा, संवेदना युक्त सेवा समाज की । आसके तलयें तनयतमत रूप से समय दान, ऄंश दान तनकलना । 11
  • 12. युग ननममाण निद्यमलय युग ननममाण कम प्रथम घटक : व्यनि ननममाण जो भी व्यनि जीिन समधनम के सूत्रों को जीिन में ननयनमर्र्म से धमरण करेंगे, ईनके ऄंदर देित्ि के स्र्र की सर्र् िृनि होर्े रहनम सुनननिर् है। अत्म समीक्षम • स्व-मूल्यांकन (Self Assessment) की आस प्रतक्रया में ऄपने गुण-ऄवगुण की समीक्षा करते हैं । अत्म शोधन • समीक्षा से ऄपने ऄंदर जो दोष- दुगुथण तदखें, ईन्हें संकल्पपूवथक एक- एक करके दूर करना अत्प्म शोधन है। अत्म ननममाण • समीक्षा के अधार पर ऄपने ऄंदर तजन श्रेि गुणों का ऄभाव तदखता है, ईन्हें ऄपने ऄंदर पैदा करना, स्थातपत करना अत्प्म तनमाथण है। अत्म निकमस • ऄपने ऄंदर जो श्रेि गुण-भाव (प्रेम, अत्प्मीयता अतद) हैं, ईन्हें छोटी सीमा से तनकाल कर व्यापक बनाना अत्प्म तवकास है। व्यतक्तत्प्व में प्रगतत का क्रम बराबर बना रहे आसको तनयंतत्रत करने के चार सूत्र हैं : 12
  • 13. युग ननममाण निद्यमलय युग ननममाण कम दूसरम घटक : पररिमर ननममाण  युगऋतष ने पररवार को व्यतक्त तनमाथण की प्रयोगशाला, व्यायाम शाला, टकसाल कहा है।  प्यार और सहकार से भरा-पूरा पररवार ही धरती का स्वगथ होता है।  पररवार घर-पररवार भी होता है, लेतकन वह वहीं तक सीतमत नहीं। वह संस्था-पररवार, संगिन-पररवार, राष्ट्र-पररवार से तवश्व पररवार तक तवकतसत हो सकता है। आदशा ऩररवार श्रमशीऱता शाऱीनता ममतव्यनयता सुव्यवस्था सहकाररता अदशथ पररवारभाव तवकतसत करने के ऋतष सूत्र 13
  • 14. युग ननममाण निद्यमलय युग ननममाण कम र्ीसरम घटक: सममज ननममाण • धमथ की पहुाँच मनुष्ट्य के अस्था-तवचारों तक है। ऄतः व्यतक्त-पररवार-समाज तनमाथण हेतु धमथतंत्र का मागथ ही श्रेि है । तनम्न कायथक्रम तनधाथररत हैं: • भतवष्ट्य की अदशथ सामातजक व्यवस्था परस्पर पाररवाररक संवेदना-सहकार के अधार पर ही बनेगी। • श्रेि व्यतक्त तथा सुसंस्काररत पररवारों के संयोग से अदशथ समाज तनमाथण का लक्ष्य प्राप्त तकया जा सकता है। • समाज तनमाथण का मागथ है : • समाज से रूतढ़वादी परम्पराओं, जाततवाद ऄनेक दुष्ट्प्रवृति को पूणथतः हटाया जाये । दुष्ट्प्रवृति ईन्मूलन • समाज में सतद्वचारों की प्रचार- प्रसार हो, नैततक-सज्जन व्यतक्तयों का सम्मान हो एवं सत्प्प्रवृतियों की स्थापना हो । सत्प्प्रवृति संवधथन 14
  • 15. युग ननममाण निद्यमलय युग ननममाण कम र्ीसरम घटक: सममज ननममाण दुष्ट्प्रिृनि ईन्मूलन र्थम सत्प्रिृनि संिधान के नलए र्ीन प्रकमर की गनर्निनधयमाँ जरूरी हैं • से बड़ी संख्या में लोगों में जागरूकता फै ले। नर-नारी प्रभातवत होकर नवसृजन के तलए अगे अयें • जन साधारण में जैसा ईत्प्साह धातमथक कमथकाण्ि करके पुण्य लूट लेने के तलए है, वैसा ही ईत्प्साह स्वयं को इश्वरीय योजना में भागीदार बनने-बनाने के तलए भी जगाना होगा। • आसके तलए सातहत्प्य, सत्प्संग, संगीत, कला, मीतिया सभी का सहारा लेना होगा। प्रचमरमत्मक • हमारा सबसे प्रधान रचनात्प्मक कायथ है ‘जन मानस का तनमाथण, नवयुग के ऄनुरूप व्यतक्त तनमाथण।’ • नवसृजन की तदशा में समय, शतक्त, साधनों का तनयोजन होगा। • व्यतक्त तनमाथण की सृजन साधना एक तप है, तजसमें लगन और धैयथ के साथ तनयतमत ऄभ्यास करना होता है । • जो यह नहीं कर सकते ईन्हें ऄन्य रचनात्प्मक कायथक्रमों में समयदान, ऄंशदान करना चातहयें । रचनमत्मक • से सृजन के मागथ में अने वाले ऄवरोधों को काटकर अगे बढ़ने का क्रम चलेगा। • संघषथ के तलए पुकार पर तत्प्काल ईछल कर अगे अना पड़ता है। • हमारा प्रचार भी सृजन हेतु है तथा संघषथ भी सृजन का सहयोगी है। संघिमात्मक आस प्रकार संस्कारवान् व्यतक्त ईभरकर इश्वरीय चेतना तथा ऋतषसिा के सहयोग से व्यतक्त, पररवार एवं समाज तनमाथण के चरण बढ़ाते हुए युग तनमाथण के महान् लक्ष्य की ओर बढ़ते रह सकें गे। 15
  • 16. युग ननममाण निद्यमलय युग ननममाण की नत्रनिध क्मनन्र्यमाँ • संसार में हुए पररवतथन ऄब तक तकसी एक तवशेष क्षेत्र-राष्ट्र तक सीतमत थे। जैसे तकसी क्षेत्र तवशेष की राजनैततक स्वतंत्रता, तशक्षा क्रांतत, हररत क्रांतत अतद। • अज तवज्ञानं द्वारा एक हो चुकी दुतनया में व्यापक पररवतथन के तलयें तवज्ञानं एवं अध्यात्प्म के अधार पर सवाांग क्रांतत करनी होगी। • तजसका लक्ष्य समाज में व्याप्त सभी दोषों को हटाना तथा स्वगीय पररतस्थततयों को साकार करना होगा । • वह क्रांततयााँ है :: बौतद्धक क्रांतत, नैततक क्रांतत, सामातजक क्रांतत बौनिक क्मंनर् नैनर्क क्मंनर् समममनजक क्मंनर् 16
  • 17. युग ननममाण निद्यमलय युग ननममाण की नत्रनिध क्मनन्र्यमाँ • गलत तवचारों, तवकृ त अस्था के चलते इश्वर का पुत्र मनुष्ट्य गलत अचरण कर रहा है। • तवकृ त तवचारधारा को हटा कर सतद्वचारों, सद्भावनाओंसे भरी तवचारधारा प्रवातहत करना तवचार क्रांतत का लक्ष्य। • गायत्री सतद्वचारों के देवी हैं और यज्ञ श्रेष्ट कमों के देवता। गायत्री-यज्ञ अधाररत जीवन पद्धतत लाएगी अत्प्म-तवचार क्रांतत । • सातहत्प्य, सत्प्संग, संगीत, कला, मीतिया सभी का सहारा लेते हुए समाज में सतद्वचारों का व्यापक प्रचार-स्थापना । • मनुष्ट्य में ईच्च अदशों, तसद्धान्तों को ऄपनाकर चलने योग्य नैततक बल नहीं आसतलयें ईन्हें जीवन में ऄपना नहीं पाता • मनुष्ट्यों के तचंतन, चररत्र और व्यवहार में मनुष्ट्योतचत नैततकता का समावेश करना नैततक क्रांतत का लक्ष्य है। जो समाज में श्रेि मनुष्ट्य एवं श्रेि पाररवाररक व्यवस्था स्थातपत करे । • जो ऋतष ऄनुशासन ऄपनाता है, ईसमे नैततक बल की सतत वृतद्ध होना सुतनतित है । • समाज के तवतभन्न वगों, तवतभन्न क्षेत्रों की अवश्यकता के ऄनुरूप दुष्ट्प्रवृति ईन्मूलन, सत्प्प्रवृति संवधथन के तलए तमाम क्रांततकारी अंदोलन चलाने होंगे। • जैसे-जैसे तवचार क्रांतत और नैततक क्रांततयों का स्तर बढ़ता जायेगा, वैसे-वैसे ऄनेक प्रकार की सामातजक क्रांततयों का मागथ प्रशस्त होता जायेगा और हर क्षेत्र एवं हर वगथ की अवश्यकता के ऄनुरूप सामातजक क्रांततकारी अन्दोलनों की झड़ी लग जायेगी। तचर प्रतीतक्षत इश्वरीय योजना के ऄनुरूप महाक्रांतत गततशील हो ईिेगी। 17
  • 18. युग ननममाण निद्यमलय क्मंनर् के सप्त सूत्री अंदोलन तनयतमत जीवन साधना सत्प्प्रवृतियों अदतों को ऄपनाने एवं दुष्ट्प्रवृतियों - गलत अदतों को छोड़ने का संकल्पपूवथक ऄभ्यास । गायत्री मन्त्र एवं यज्ञ का समाज में व्यापक प्रचार । साधना अंदोलन • संस्कार अधाररत तशक्षा-तवद्या व्यवस्थाका तनमाथण । • बाल संस्कार शाला, प्रौढ़ तशक्षाशाला,मतहला तशक्षा ऄतभयान चलाना। • स्वाध्याय, सत्प्संग, तचन्तन मनन करना और अचरण में तकतना ईतरा समीक्षा करना। • तवद्यालयों, ऑतफस, फै क्ट्री, कं पनीज़ अतद में युग सातहत्प्य का प्रचार । तशक्षा अंदोलन •स्वास्थ्य के सूत्रों का ऄभ्यास। •योग, व्यायाम, प्राणायाम तथा अहार तवहार के तनयम को तदनचयाथ का ऄंग बनाना। •पररवार व समाज में ईक्त सूत्रों को लागू करने का प्रयास । स्वास्थ्य अंदोलन •श्रमशील बनना, श्रम का, श्रम प्रधान वगथ का सम्मान करना। •लघु ईद्योगों को बढ़ावा देते हुए स्वाबलम् प्रतशक्षण । •स्वदेशी वस्तुओंका ऄतधकातधक ईपयोग । स्वावलम्बन अंदोलन • प्रकृ तत के पयाथवरण सन्तुलन के प्रतत अस्था बढ़ाना। • हरीततमा संवद्धथन हेतु स्वयं संकतल्पत होकर पौधे लगाना, ईसकी सुरक्षा करना, औरों को प्रेररत करना। • समाज में पयाथवरण के प्रतत जागरूकता बढ़ाना एवं वृक्षारोपण करना करवाना । पयाथवरण अन्दोलन • कु रीततयों व व्यसनों से समय श्रम, धन व स्वास्थ्य को बचाकर सृजन में, श्रेि कायों में लगाना। • स्वयं नशामुक्त हों औरों को नशा मुक्त होने की प्रेरणा देना। • तवद्यालयों, तवतभन्न सामातजक संगिनों को व्यसन मुतक्त, कु रीतत ईन्मूलन हेतु प्रेररत व सतक्रय करना। • स्वयं का अदशथ तववाह करने का संकल्प लेना। युवक दहेजरतहत तववाह में गौरव समझें। व्यसन मुतक्त, कु रीतत ईन्मूलन अन्दोलन • फै शनपरस्ती, जेवर/श्रृंगार का शौक त्प्यागना। • वेशभूषा, हेयर स्टाआल, रहन- सहन में सादगी ऄपनाना। • नारी स्वयं संस्कारवान बनें जागृत नारी बच्चों में प्रारम्भ से ही संस्कार िालें। • घर के काम हल्के करें, तवकास के ऄवसर दें, ईनकी सहायक बनें। नारी जागरण अन्दोलन 18
  • 19. युग ननममाण निद्यमलय युग ननममाण समग्र स्िरुप व्यनि ननममाण पररिमर ननममाण सममज ननममाण बौनिक क्मंनर् नैनर्क क्मंनर् समममनजक क्मंनर् अंदोलन प्रचारात्प्मक रचनात्प्मकसंघषाथत्प्मक 19
  • 20. युग ननममाण निद्यमलय ननममाण की ईपलनधधयमाँ • शरीरमाद्यं खलु धमथ साधनम् • स्थूल-सूक्ष्म-कारण शरीर का ईिम स्वास्थ्य स्वस्थ शरीर • मन एव मनुष्ट्याणां कारणं बन्ध मोक्षयोः • १.तचंतन, २.चररत्र एवं ३.व्यवहार का शोधन स्वच्छ मन • वसुधैव कु टुंबकम • एकता-समता-ममता-शुतचता पर अधाररत सभ्य समाज सभ्य समाज क्रांतत की तत्रतवध ईपलतब्धयााँ : 20
  • 21. युग ननममाण निद्यमलय युग ननममाण कम प्रर्ीक लमल मशमल लाल मशाल युग तनमाथण का प्रतीक है । भली सोच वाले व्यतक्तयों का समूह जो युग तनमाथण के लक्ष्य से एक साथ आक्ट्किा होते हैं व् क्रांतत की लाल मशाल ले धरती पर सतयुग की स्थापना करते है । अप भी आस लाल मशाल का भाग बन सकते है । 21
  • 22. युग ननममाण निद्यमलय नियुग कम संनिधमन नयम युग नजसमे एक रमष्ट्र, एक भमिम, एक धमा, एक शमसन होगम। नए युग कम अगमज़ आन 18 सूत्रीय संनिधमन से होगम : 1 हम इश्वर को सवथव्यापी, न्यायकारी मानकर ईसके ऄनुशासन को ऄपने जीवन में ईतारेंगे। 2 शरीर को भगवान् का मंतदर समझकर अत्प्म-संयम और तनयतमतता द्वारा अरोग्य की रक्षा करेंगे। 3 मन को कु तवचारों और दुभाथवनाओंसे बचाए रखने के तलए स्वाध्याय एवं सत्प्संग की व्यवस्था रखे रहेंगे। 4 आंतिय-संयम ऄथथ-संयम समय-संयम और तवचार-संयम का सतत ऄभ्यास करेंगे। 5 ऄपने अपको समाज का एक ऄतभन्न ऄंग मानेंगे और सबके तहत में ऄपना तहत समझेंगे। 6 मयाथदाओंको पालेंगे, वजथनाओंसे बचेंगे, नागररक कतथव्यों का पालन करेंगे और समाजतनि बने रहेंगे। 7 समझदारी, इमानदारी, तजम्मेदारी और बहादुरी को जीवन का एक ऄतवतच्छन्न ऄंग मानेंगे। 8 चारों ओर मधुरता, स्वच्छता, सादगी एवं सज्जनता का वातावरण ईत्प्पन्न करेंगे। 9 ऄनीतत से प्राप्त सफलता की ऄपेक्षा नीतत पर चलते हुए ऄसफलता को तशरोधायथ करेंगे। 10 दूसरों के साथ वह व्यवहार न करेंगे, जो हमें ऄपने तलए पसन्द नहीं। 11 मनुष्ट्य के मूल्यांकन की कसौटी ईसकी सफलताओं, योग्यताओंएवं तवभूततयों को नहीं, ईसके सतद्वचारों और सत्प्कमों को मानेंगे। 12 नर-नारी परस्पर पतवत्र दृतष्ट रखेंगे। 13 संसार में सत्प्प्रवृतियों के पुण्य प्रसार के तलए ऄपने समय, प्रभाव, ज्ञान, पुरुषाथथ एवं धन का एक ऄंश तनयतमत रूप से लगाते रहेंगे। 14 परम्पराओंकी तुलना में तववेक को महत्त्व देंगे। 15 सज्जनों को संगतित करने, ऄनीतत से लोहा लेने और नवसृजन की गतततवतधयों में पूरी रुतच लेंगे। 16 राष्ट्रीय एकता एवं समता के प्रतत तनिावान् रहेंगे। जातत, तलंग, भाषा, प्रान्त, सम्प्रदाय अतद के कारण परस्पर कोइ भेदभाव न बरतेंगे। 17 मनुष्ट्य ऄपने भाग्य का तनमाथता अप है, आस तवश्वास के अधार पर हमारी मान्यता है तक हम ईत्प्कृ ष्ट बनेंगे और दूसरों को श्रेि बनायेंगे, तो युग ऄवश्य बदलेगा। 18 हम बदलेंगे-युग बदलेगा, हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा आस तथ्य पर हमारा पररपूणथ तवश्वास है। 22
  • 23. युग ननममाण निद्यमलय कै से बने हम युगननममाणी युग तनमाथण योजना मनुष्ट्य में देवत्प्व की धरती पर स्वगथ ऄवतरण की योजना है। योजना में भागीदार होने के तलयें एकमात्र ऄतनवायथता है तक अप ऄभी आसी क्षण से स्वयं में देवत्प्व ईदय हेतु संकतल्पत हो, एवं आस तदशा में पुरुषाथथ प्रारम्भ करें । युग तनमाथण में 4 प्रकार की भागीदारी : सहमयक सदस्य युग ननमााण के ववबिरन कायाक्रमों में आचथाक- सामान्द्जक सहयोग करें । समय समय ऩर कायाक्रमों में भागीदारी करते रहें । सक्ीय सदस्य ननयनमर् रूप से ईपमसनम-समधनम- अरमधनम करे । समममनजक कल्यमण हेर्ु ननत्य 1 घंटे कम समयदमन करे। ऄपनी ममनसक अय में से एक नदन की अय सममज कल्यमण हेर्ु दमन करे। कमाठ सदस्य ननयनमर् रूप से ईपमसनम- समधनम-अरमधनम करे । समममनजक कल्यमण हेर्ु ननत्य 4 घंटे कम समयदमन करे। ऄपनी ममनसक अय में से 10 नदन की अय सममज कल्यमण हेर्ु दमन करे। लोक-सेिी िमनप्रस्थ सदस्य जो ऄपने पमररिमररक दमनयत्िों से मुि हो गए हों ऐसे प्रनर्भमशमली व्यनि युगननममाण के निनबन्न कमयाक्मों हेर्ु पूणा रूप से कमया करें । जो न्यूनर्म में ननिमाह की अदशािमदी ब्रमह्मण परंपरम 'सदम जीिन ईच्च निचमर' ऄनुसमर जी सकर्े हैं । 23
  • 24. युग ननममाण निद्यमलय युगननममाणी कम व्यनित्ि और कर्ाव्य  युगतनमाथणी तनयतमत-तनरंतर-तनबाथध गतत से जीवन साधना करता हुअ ऄपने ऄंत:करण का पररष्ट्कार करता चलता है ।  युगतनमाथणी का व्यतक्तव शालीन, चररत्रवान, प्रततभाशाली एवं कमथि होता है । ईसके तवचार सुन्दर, भाव तनमथल और कमथ प्रखर होते हैं ।  युगतनमाथणी ऄपने समय-पैसे-प्रततभा के एक ऄंश तनयतमत-तनरंतर रूप से समाज कल्याण के तलयें लगता है ।  समान तवचार वाले ऄन्य युगतनमाथतणयों के साथ संगतित हो युगतनमाथण का कायथ ऄपनी 'रूतच, क्षमता, योग्यता' के ऄनुरूप करता है ।  युगतनमाथणी भली सोच वाले लोगो का स्वयंसेवी संगिन बना कर ईनकी 'रूतच, क्षमता, कु शलता' ऄनुसार समाज तनमाथण का कोइ भी रचनात्प्मक कायथ करता है ।  युगतनमाथणी ऄपने पररवार के तनमाथण में तवशेष ध्यान देता है । पररवार में गुणों को तवकतसत करता है ।  युगतनमाथणी ऄपने अचरण से समाज में नैततक क्रांतत करता है । ऄपने पररवार को अदशथ पाररवाररक स्थल बनता है ।  युगतनमाथणी ऄपने तचंतन-व्यवहार द्वारा ऄपने तमत्र-ररश्तेदार-व्यापार रुपी समाज को सही तदशा का ज्ञान देता है । 24
  • 25. युग ननममाण निद्यमलय युगननममानणयों की टकसमल: शमनन्र्कु ञ्ज • यतद अप एक सरकारी या सामातजक संगिन है, समाज सेवक हैं एवं इश्वरीय योजना से जुड़ना चाहते हैं, तो अप का स्वागत है । • शांततकुं ज हररद्वार, युगऋतष पंतित श्रीराम शमाथ अचायथ जी द्वारा स्थातपत एक अध्यातत्प्मक प्रयोगशाला है जहााँ जीवन साधना, पररवार तनमाथण, समाज तनमाथण की व्यवहाररक तशक्षा दी जाती है । • शांततकुं ज द्वारा समाज तनमाथण की ऄनेक गतततवतधयााँ सम्पूणथ तवश्व में संचातलत होती है । • अप ऄपने पररवार, संगिन के साथ अकर जीवन साधना, पररवार तनमाथण, समाज तनमाथण की तवतधवत तशक्षा ले सकते हैं। • शांततकुं ज द्वारा चलाइ जा रही तवतभन्न गतततवतधयों में सहयोग कर युगतनमाथण योजना में सक्रीय भागीदार बन सकते हैं। 25
  • 26. ॥ ॐ शमंनर्ः ॥ हम बदलेंगे युग बदलेगम, हम सुधरेंगे युग सुधरेगम ऄपनम र्ो है लक्ष्य महमन, बने यह धरर्ी स्िगा समममन 26 युग तनमाथण तवद्यालय vidyalaya.awgp@gmail.com